सफर
जीवन जैसे सुनी राह सा
सर्द है मौसम धुन्ध घनेरी
ना कोई रहबर ना कोई सारथी
एकाकी हुई यात्रा जीवन की
सत्य ये शाश्वत फिर भी अनभिज्ञ है
जैसे अदृश्य है अणु-परमाणु
इस एकाकी जीवनयात्रा में
बची हुई कुछ प्रतिध्वनियां अतीत की
देती पोषण बन पाथेय वो
इस सुने एकान्त सफ़र में।
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