Tumgik
sadharan · 2 years
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हार नही पाओगे
दुनिया फूलों से पटी पड़ी है दुनिया हीरों से लदी पड़ी है लेकिन लोगों को सिर्फ धूल दिखती है इंसान की अच्छाई नहीं, उसकी सिर्फ भूल दिखती है
रंग इतने हैं यहाँ की गिन नही पाओगे ज़रा झांको तो सही अपने झरोखों से गिर नही जाओगे
तु अपने रंग का सिपाही है तेरी कलम में सोने और चांदी की स्याही है जरा हिम्मत तो करो लड़ने की मिट नहीं जाओगे
हर साहस की अपनी चमक होती है अपने देश की मिट्टी की अलग ही महक होती है जरा सरहद पर खड़े तो हो जाओ हार नही पाओगे ~ राहुल सिंह
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sadharan · 2 years
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सुख
इस दुनिया में तुम अकेले ही आए थे अकेले ही हो अकेले ही रहोगे और अकेले ही जाओगे
जब जब तुम्हारा ध्यान इस बात से हटेगा दुःख होगा क्योंकि कड़वी सच्चाई यही है की तुम अकेले हो
कृष्ण हैं, बिलकुल हैं लेकिन मिलने नही आते उनकी दुनिया उनकी लीला और हम उलझे हैं क्या खोया क्या मिला
बन्धन समय का ही है लेकिन आरंभ किसने किया इस खेल का जब पृथ्वी पर हर रात के बाद सूरज आता है तो फिर हर दुःख के बाद सुख क्यों नहीं आता ? ~ राहुल सिंह
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sadharan · 2 years
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अडीग
मैं तो अकेला ही निकला था और रास्ते में कुछ लोग मिल गए मैं समझ पाता उनको उसके पहले ही वह बिछड़ गए
बड़ी अजीब है ज़िंदगी कुछ समझ आते आते बहुत कुछ निकल जाता है और जब कुछ नही चाहिए तब बहुत कुछ आ जाता है
मन हर समय भागता है कभी पीछे तो कभी आगे बस "आज" में ही नहीं रहता जबकि इसी आज के क्षण से अगला क्षण फूटता है
पकड़ूँगा तो मैं अब किसी को भी नही न भूत में जाऊँगा न भविष्य में हर क्षण रहूँगा इसी क्षण में जैसे योद्धा रहता है अडीग अपने रण में
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 3 years
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अकड़
बहस हुई जान पहचान सहस हुई बातों ही बातों में अकड़ गुस्साई और हो गयी एक लड़ाई
वह अकड़ा खूब अकड़ा मैं झगड़ा खूब झगड़ा अकड़ के अखाड़े में सवाल था कौन तगड़ा?
पहचान हुई तो दोस्ती हुई दोस्ती हुई तो मुलाक़ातें हुई मिलते मिलते रिश्ता तपा टेढ़े मेढ़े एहसासों की गर्मी से अपनापन पनपा
कभी अच्छा लगा तो कभी बुरा मामला हर बार अकड़ पर अकड़ा अकड़ के अखाड़े में सवाल था कौन तगड़ा ?
कौन है यह “मैं” ? जिसे बुरा लग जाता है अकड़ के अखाड़े में समय ही हमेशा जीत जाता है
चाहे कितनी भी अकड़ हो समय के साथ सब गल जाता है अकड़ के अखाड़े में समय ही हमेशा जीत जाता है
पर अकड़ तो अकड़ है ज़िद की पकड़ है की, कौन सही और कौन है बिगड़ा अकड़ के अखाड़े में सवाल था कौन तगड़ा? ~ राहुल सिंह 
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sadharan · 3 years
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नही रहेगा अवसाद
जिसने सिर्फ लिया और सिर्फ लिया कभी कुछ बिना शर्त नहीं दिया लेता ही रहा और जमा करता रहा पता नहीं पड़ा उसे, कब उसके अंदर अवसाद बढ़ता रहा
जीवन एक ऊर्जा है ऊर्जा जो एक जगह नहीं टिकती वह आती है तो जाती भी है और जाती है तो फिर से आती भी  है
जीवन वस्तुओं को इक्कठा करने का नाम नहीं जीवन सिर्फ रूपया पैसा कमाने की बात नहीं लिया है तो देना भी पड़ेगा जो लेन देन के संतुलन में है, खुश है वही
अशांत मन में ख़ुशी नहीं ठहरती और शान्ति दूसरों की ख़ुशी में ही है मिलती तो फिर सोचता क्या है उस्ताद बाँट ले जो बाँट सकता है, फिर नही रहेगा अवसाद
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 3 years
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बुद्धिबल
वक़्त की सुनूँ तो सब पा जाऊँ और न सुनूँ तो सब गँवा जाऊँ जब अंधेरा हो तो ठहर जाऊँ जब उजाला हो तो कदम बढ़ाऊँ
क्या है मेरी मंज़िल कितनी सीढ़ियाँ और है बाकी चुप रहूँ और चलते जाऊँ या करूँ कुछ बेबाक़ी
जो पाए तो समझदार जो गँवायें सो गँवार ऐसा ही है दुनिया का दस्तूर कह गए संत फ़ितूर लेकिन हर बार गवांने वाला गवाँर नही होता जैसे हर बार पाने वाला समझदार नही होता बुद्धि का भी बल होता है सिर्फ बाहुबल से ही कोई पहलवान नही होता ~ राहुल सिंह
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sadharan · 3 years
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समय
लोगों के पास मिलने का समय नही होता गर दिख भी जाएं तो बतियाने का समय नही होता फिर भी उम्मीद रहती है अच्छे समय की जैसे चवन्नी हवा में उछाल कर बना लो मूठ्ठी रुपए की
अच्छा समय चाहिए तो अपना अच्छा समय देना होगा बहुत कुछ पाने की चाह रखने वाले तो वक़्त नही दे पाएँगे पर जिस�� कुछ नही चाहिए, उसके पास समय होगा
~ राहुल सिंह
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sadharan · 3 years
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एक दिया
मैं तो दिन भर खाली बैठा था और शाम हो गयी कुछ देर और यूँ ही बैठा रहा और रात हो गयी 
बत्तियाँ गायब थी कुछ सुझा नही एक दिया लगाया और दिवाली हो गयी
अब वह भी दिख रहा था जो दिन में छुपा हुआ था दिन भर की उलझन एक सवाल था और जवाब एक कोशिश में था
कितना भी गहरा अंधकार हो कितनी भी लंबी रात हो प्रयास का एक कदम उलझनों को हटा देता है जैसे एक दिया अंधकार को मिटा देता है ~ राहुल सिंह
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sadharan · 3 years
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दिखावा मुझे पसंद है
कहते हैं दिखावा करना ठीक नही होता मैं भी इस बात से सहमत हूँ लेकिन जब समय गिराता है तो लोग भी नज़रों से गिरातें हैं
कई गिर कर टूट जाते हैं और कुछ फिर से उठ जाते हैं गिर कर उठ जाने का दिखावा मुझे पसंद है
गिर कर उठ जाने का दिखावा मुझे पसंद है क्योंकि यह कुछ लोगो को आईना दिखाता है
गिर कर उठ जाने का दिखावा मुझे पसंद है क्योंकि यह नभ में सत्य की पताका है
~ राहुल सिंह
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sadharan · 4 years
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मैं देख सकता हूँ
कुछ लोग बचते हैं मेरी आँखों से क्योंकि वह जानते हैं मैं देख सकता हूँ जो वह छुपाते हैं ज़माने से
खुद ही दीवारें बनाते है अपने आस पास फिर कहते है, मुझे आज़ादी नही भला बंद दिवारों से भी दिखाई देता है कुछ कहीं
बीमार हैं वह लोग जो कड़वे सच से चिड़ते है और बार बार अपना ही मीठा झूठ औरों पर मढ़ते हैं
बेशर्म है वह लोग जो दमित होने का नाटक करते हैं औरों को दबा कर सिर्फ़ खुद की ही बात करते हैं . . .
कुछ लोग बचते हैं मेरी आँखों से क्योंकि वह जानते हैं मैं देख सकता हूँ जो वह छुपाते हैं ज़माने से ~ राहुल सिंह
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sadharan · 4 years
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समय लेकर जो बढ़े
किसी ने कुछ कह दिया और तुमको बुरा लग गया ? मुझे न उस पर आया क्रोध, न तरस अंतर्मन का जल अभी इतना उथला नही कि, कोई कंकड़ फेंके और आवाज़ आ जाए
वक्त बड़ी चालाकियाँ करेगा तुमको उकसाएगा, तेज़ हवाएँ चलाएगा तुम चट्टान बन डटे रहना और हवाओं का रुख़ बदल जाएगा
अपने अहंकार को जितना बढ़ाओगे दुनिया में अपने लिए ज़मीन उतनी ही कम पाओगे साधारण पोधे कम समय में ही बढ़ कर रुक जाते है समय लेकर जो बढ़े, वृक्ष विशाल वही बन पाते है
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 4 years
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मनुष्य
मेरे बिखरे हुए पन्नों को मत समेटना, अच्छे लगते हैं इसलिए नही की मैं रोज़ बिखर जाता हूँ इसलिए की इन बिखरे हुए पन्नों को देख कर मैं रोज़ स्वयं को समेट लेता हूँ
मनुष्य कितना भी अग्रिम हो जाए लेकिन वह प्रकृति को नही बदल सकता टूटना तो सबको ही पड़ता है जो टूट कर जुड़े और जुड़ कर उठे वही मनुष्य है ~ राहुल सिंह
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sadharan · 4 years
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तेरे लिए
हर दिन मैं तुझे खोजता हूँ उसी जगह जहाँ तुझे आख़री बार देखा था हाँ यह वही जगह है जहाँ तूने मुझे देख कर भी नही देखा था
बरसो बाद, आज तू वहीं खड़ी है तेरी आँखें किसी को खोजती हैं मैं आज भी हूँ “वहीं”, तेरे लिए जहाँ तूने मुझे देख कर भी नही देखा था
बिता हुआ समय लौट कर नही आता आज भी मैं तेरे सामने से गुज़रा था तूने मुझे और मैंने तुझे देखा था “वहीं” उसी जगह जहाँ तूने मुझे देख कर भी नही देखा था ~ राहुल सिंह
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sadharan · 4 years
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बिना शर्त
अंतरिक्ष शर्तों पर नहीं चलता सितारों की रोशनी बिकाऊ नहीं होती   प्रकृति का व्यापार नहीं होता आपकी साँसें उधार पर नहीं चलती
जैसे, आपका प्यार आपकी प्रार्थना आपका विश्वास आपकी चेतना माँ का अपने बच्चे को पुकारना पिता का अपने बाँहों में बच्चे को झुलाना
सितारे हमेशा रोशनी देते हैं, मांगते नहीं प्रकृति हमेशा देती है, मांगती नहीं यहाँ सब कुछ बिना शर्त होता है क्योंकि यहाँ सब कुछ देने के लिए होता है
आपके सोचने से पहले ही सितारों की रोशनी आपकी तरफ़ चल देती है आपके मांगने से पहले ही प्रकृति आपकी पसंद को आपकी और बढ़ा देती है
स्वयं को पहचानो, ऐसा अंतरिक्ष कहता है आप किसी के चेहरे की मुस्कुराहट हो बिना शर्त, आप किसी की आंखों की चमक हो आप ही प्रकृति, आप ही सितारे हो
~ राहुल सिंह
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sadharan · 4 years
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संवृद्धि
ज़िंदगी में बड़ी कठिनाइयाँ होती है एक ख़त्म होती है और दूसरी आ जाती है कठिनाइयाँ पार करने का नाम ज़िंदगी नहीं है कठिनाइयों के बीच चलते रहने का नाम ज़िंदगी है
चलते चलते थक जाओ तो विश्राम करो कृत्रिम तनाव जो तुम पर है उसे खत्म करो
नेसर्गिक तनाव ज़रूरी है स्वयं के विकास के लिए लेकिन सिर्फ़ तनाव से थकान मिलती है अगर तनाव के साथ विश्राम भी है तो संवृद्धि है ~ राहुल सिंह
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sadharan · 4 years
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कीचड़
वक़्त के साथ चलोगे तो पता चलेगा कौन से मोड़ पर कौन मिलेगा वर्षा होगी, पानी बहेगा मिट्टी में कीचड़ बनेगा
पानी थमेगा, बादल छितरेंगे लोग निकलेंगे और कीचड़ से बचेंगे इसी कीचड़ में जब कमल खिलेगा तो यही लोग उस कमल के चित्र खीचेंगे
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 4 years
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हर्षित
मेरा देश कभी नहीं टूट सकता क्योंकि कोई वहाँ रहता है लोग उससे कुछ कहते हैं और वह लोगो से कुछ कहता है
वैसे तो हर जगह वह पाया जाता है फिर भी लोग उससे मिलने जाते हैं कभी सन्नाटे की शोभा बढ़ाते हैं तो कभी बहुत भीड़ लगाते हैं
क्या वसंत क्या वर्षा क्या ग्रीष्म क्या शीत आस्था के जन सैलाबों को देख पाषाण भी है हर्षित
~ राहुल सिंह 
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