17.02.2024 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के सहयोग से संत गाडगे जी महाराज प्रेक्षागृह, गोमती नगर, लखनऊ में कल्चरल क्वेस्ट द्वारा "विपश्यना नृत्य नाटिका" का प्रस्तुतीकरण किया गया | कार्यक्रम में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार एवं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (NCZCC) ने आर्थिक सहयोग प्रदान किया है | विपश्यना नृत्य नाटिका की परिकल्पना, नृत्य कला एवं निर्देशन अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कत्थक नृत्यांगना सुश्री सुरभि सिंह ने की हैं | कार्यक्रम में मुख्य अतिथि भिक्खु डॉ. नंद रतन, संयुक्त सचिव, कुशीनगर भिक्खु संघ, कुशीनगर तथा विशिष्ट अतिथि कुँ अक्षय प्रताप सिंह “गोपाल भैया”, माननीय सदस्य, विधान परिषद उत्तर प्रदेश, प्रतापगढ़, श्री हरगोविंद कुशवाहा बौद्ध, कार्यकारी अध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, लखनऊ, कुँ बृजेश सिंह राजावत, प्रदेश महासचिव, जनसत्तादल (राजा भैया) एवं श्री बाबा हरदेव सिंह, राजनीतिज्ञ भारतीय जनता पार्टी, प्रांतीय सिविल सेवा उ.प्र. (कार्यकारी शाखा) की गरिमामयी उपस्थिति रही |
सुश्री सुरभि सिंह एवं उनकी टीम के द्वारा, किस तरह महात्मा बुद्ध की शरण में नर्तकी वासवदत्ता का हृदय परिवर्तन हुआ, यह नृत्य नाटिका के माध्यम से प्रस्तुत किया गया | इस नृत्य नाटिका के माध्यम से विपश्यना ध्यान विधि, जो की दुखों से मुक्ति पाने का सबसे सशक्त माध्यम माना जाता है, को प्रभावी रूप से आम जन तक पहुंचाया गया | इसमें स्वयं में जाकर अपनी ही ध्यान की शक्ति से आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलकर जीवन के उद्देश्य को जानने की प्रक्रिया को संप्रेषित किया गया | इस प्रस्तुति का उद्देश्य जनजागरूकता पैदा करने के साथ-साथ युवाओं को शिक्षित करना भी था |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने सभी अतिथियों एवं कलाकारों का स्वागत करते हुए कहा कि, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री परम आदरणीय माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी ध्यान और योग को कितना महत्व देते हैं जिसके लिए पूरे विश्व में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है | माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, "वर्तमान समय में युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों के जीवन में तनाव और परेशानी आम है और विपश्यना की शिक्षाएं उनकी समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने में मदद कर सकती हैं |" वह कहते हैं कि "विपश्यना प्राचीन भारत का एक अनुपम उपहार होने के साथ ही एक आधुनिक विज्ञान भी है, जिसके जरिए युवा और बुजुर्ग लोगों को जीवन के तनाव और परेशानी से निपटने में मदद मिल सकती है । ध्यान और विपश्यना को कभी त्याग के माध्यम के रूप में देखा जाता था, लेकिन अब यह व्यावहारिक जीवन में व्यक्तित्व विकास का माध्यम बन गया है । विपश्यना आत्मा की ओर एक यात्रा है और अपने भीतर गहराई से गोता लगाने का एक तरीका है । यह सिर्फ एक शैली नहीं, बल्कि एक विज्ञान है ।" तो आइए आज इस कार्यक्रम में विपश्यना नृत्य नाटिका के द्वारा हम भी विपश्यना ध्यान को समझने का प्रयास करते हैं और उसे कहीं ना कहीं अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेते हैं |
कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य श्री महेंद्र भीष्म, डॉ अलका निवेदन सहित शहर के अन्य गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति रही |
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फ़रवरी
देवी प्रसाद मिश्र
(एक)
युवा होने के ख़तरों से मैं दूर आ गया हूँ लेकिन नसों में कितनी ही फ़रवरियों का ख़ून बह रहा है
फ़रवरी में फ़रवरी से बेहतर महीना ढूँढने का
यह वक्त नहीं है
मनुष्यों से अधिक पेड़
एक नयी दुनिया बनाने के संकल्प से भरे हैं
लेकिन नये पत्ते नये अर्थ का प्रतीक बनने से
गुरेज़ कर रहे हैं
कौन जाने यह वसंत है भी कि नहीं –
अनिश्चयों के इस शमशेर सन्नाटे में
राजनीति को मैं बदल नहीं सका
पर्दे मैंने बदल दिये हैं कि तुम आओगी
नई माचिस ले आया हूं कि रगड़ते ही जल उठें तीलियाँ और भक्क से निकलने वाली हँसी और आग में मैं चाय बनाता रहूँ
और तुम मुझे देखो
एक मनमाने स्वतंत्रचेता पशु की
लाल आँखों से कि
कोई भी प्रेम अपूर्णता ही क्यों है
व्यक्तियों को न बदलने के अवसाद के साथ मैंने चादर बदल दी है अधिक फूलों वाली चादर की जगह ज़मीन के रंग वाली चादर बिछा दी है
यह एक अनाथ भूभाग है
इच्छाएं हमें जहाँ निर्लज्ज बना देंगी
लालसा के तारे दमक रहे होंगे
विद्रोही वासना के सूने आकाश में
होगा उल्कापात पूरी रात
तामसिक उजाले में हम होते जाएंगे अगाध और अप्रमेय की गोधूलि का झुटपुटा
वैधता का धर्मग्रंथ मैं फाड़ दूँगा
कुछ भी नहीं होगा सोशली करेक्ट
पोलिटिकल करेक्टनेस हासिल कर लेंगे
ठीक ही कहा था लेनिन ने कि
रणनीतियाँ प्रक्रिया में बनती हैं;
बहुत पहले से तो पूर्वग्रह होते हैं- यह मैंने कहा लेकिन क्या तुमने सुना
हमारे बीच हुई
हिंसाओं में दृष्टिकोण,
चयन और आग्रहों का रक्तपात है
तुम्हारा आना एक दृष्टिकोण का आना है जिसकी जगह बनाने के लिए मैंने कमरों की जो सफाई शुरू की तो इतनी धूल उड़ी कि पड़ोसी गोली मारने आ गया जिससे मैंने कहा कि प्रेम करने के बाद मैं मरने के लिए उसके घर आ जाऊँगा ज़्यादा नाराज़ होकर वह लौट गया यह कहते हुए कि उसकी हिंदू चाय को लेकर मेरी अन्यमनस्कता मुझे महँगी पड़ेगी
मुझसे बेहतर कवि होने के लिए
मुझसे अधिक दुख उठाने होंगे
और मुझसे खराब कविता लिखने के लिए
करने होंगे वैचारिक अपराध
भागती रेलगाड़ी की खिड़की के पास बैठा अच्छी कविता लिखने का फार्मूला बाहर फेंकता ब्लू-ब्लैक स्याही की दवात-सा मैं प्रगाढ़तर होता उजास हूँ अगर हवास हूँ
मेरे गाँव का नाम हरखपुर है- यहाँ के नारीवाद पर मैं किताब ढूँढ रहा हूँ कवितावली वाली अवधी में राउटलेज और सेज की किताबें मध्यवर्गीय धर्मग्रंथ हैं
नहाने की जगह मैंने रगड़कर साफ़ की
तेज़ाब से मेरी जल गईं उंगलियाँ
दुनिया के दाग़दार फर्श को इतनी ही शिद्दत से साफ़ करूँगा यह तय किया है
बाथरूम के शीशे में मेरा चेहरा उस आदमी के चेहरे-सा था जिसके राज्यसत्ता के साथ बहुत बुरे सम्बन्ध रहे- वह स्याह पूरे घर में फैल गया है
भारतीय वसंत और पतझड़ के बीच फैले इस अपारदर्शी में अब और भी जरूरत है मुझे तुम्हारी प्यार और अपरायजिंग में होती पराजयों ने मुझे
रोते हुए हँसने का नमूना बना रखा है
मेरे पास आना एक ज़ख्मी आदमी की
कराह सुनने के धीरज के साथ आना है
मेरे और निराला के तख्त के बीच बमुश्किल तीन मील का फासला होगा- मैं इलाहाबाद की आंख और घाव से टपका खून का आख़िरी कतरा तो नहीं ही हूँ
मैंने घर को तुम्हारे आने के लिए तैयार कर रखा है जबकि तुमने कह दिया है कि तुम नहीं आओगी फ़रवरी में – कारण न मैं जानता हूँ न तुम
प्रेम एक टेढ़ी नदी है जो पहाड़ों की घाटियों से शिखरों की तरफ बहती है उल्टी
उल्टियाँ करने का मेरा मन होता रहा है
सिर कितना घूमताssरहा है गेंदबाज़ चंद्रशेखर की लेग स्पिन- सा
तुम्हें याद करना एक बोझ उठाना है
और न याद करना निरुद्देश्य पर्वतारोही हो जाना है
शोकसभा के बाद बिछी रह गई दरी सी है
फरवरी
अट्ठाईस दिनों की फ़रवरी में अगर तुम नहीं आ रही हो तो इसे मैं तीस और इकतीस दिनों का कर दूँगा
इससे ज्यादा क्या चाहती हो क्या कर दूँ पूरा कैलेंडर बदल दूँ ?
(दो)
मैं तुम्हें विचलित करने के लिए कहता हूँ कि तुम अविश्वसनीय हो इसलिए उत्तेजक हो
तुम कहती हो कि तीन साल पुराना प्रेम डेढ क्विंटल राख है
प्रेम के फ़ायरप्लेस में अब संस्मरणों की सूखी लकड़ियाँ जल रही हैं
जलाने के लिए तुम्हारी चिट्ठियाँ नहीं हैं मेरे पास तुम्हारी आवाज़ है और उसके अपरिमित संस्करण जो मुझे पहाड़ों की तरह घेरे रहते हैं और ऐन छत को छूकर गुज़रते हवाई जहाज़ की तरह गूँजते हैं
यह बता पाना मुश्किल है कि तुम्हें याद करना वृत्त में घूमना है या एक दीवार को छूकर दूसरी दीवार तक जाना है- तुम्हारी स्मृति कारावास है या आभासीय आवासीयता का अनोखा आसमान
हम अलगाव के उजाड़ तुग़लकाबाद में घूम रहे हैं
हमने गणतंत्र दिवस पर एक दूसरे से स्वतंत्र होने का अभिनय किया दो राष्ट्र बना लिए और एक कँटीली फेंस डाल दी बीच में और ज़ल्दबाज़ी में एक दूसरे का संविधान उठा लाये
इतना दुख था कि जैसे प्रेम में घायलों की आख़िरी प्रजाति थे हम और आसक्ति की संस्कृति में कई बार मरने के क्रम का पहला मरना
हमारी स्वायत्तता अब
हमारा अकेलापन है
मालूम है
आधुनिकता अपारगम्य कलह है
तुम्हारी तरफ जाने वाला रास्ता
और मेरी तरफ आने वाली पगडंडी
इस बात की मिसाल हैं
कि हमने सरल को समाधान नहीं माना
मंगलेश के साथ हिंदी के हर सरल वाक्य की मृत्यु हो गई क्या
तुम्हारा फोन नहीं आ रहा इक्कीसवीं सदी के पहले चतुर्थांश का यह अहंवाद है जिसमें स्त्री बोहेमियन हो सकती है
मेरे पास हजारों साल पुराना पुरुष होने का नियंत्रक अहंकार है जो एकनिष्ठ होने का नाट्य कर सकता है और जो एकाधिकार की दार्शनिकता को अभिपुष्ट कर सकता है
मोबाइल एक ब्लैक बोर्ड की तरह ख़ाली है जहाँ नहीं चमकता तुम्हारे संदेश का लाल तारा
व्हाट्सऐप हरे चौकोर घास के मैदान सा निर्जन है
यह डूबने के लिए झुका हुआ जहाज है
पूरा नहीं ध्वस्त है आधा जला बंदरगाह
भूख के उदाहरणों से भरे शहर में
प्रेम छीन लिया गया
जैसे थाली हटा ली जाती है
बुभुक्षु के सामने से
क्या प्रेम सेक्स के रनवे तक पहुँचने की खड़ंजा वाली मनरेगा रोड भर है
तुमसे अलग होने का दुख पूछता रहा है कि क्यों खत्म होता है आरंभ- वह चाहता है कि लौट आए उस पहले वाक्य की उदग्रता उस दूसरे वाक्य की उसाँस उस तीसरे वाक्य का धैर्य उस नवें वाक्य की असहमति उस तेरहवें वाक्य का विषण्ण और जो इस निरुपाय हठ से भरा है कि फरवरी के फर फर में उड़ती धूप के पर्दे पर उसकी कथा फिल्म देखी जाये निस्सहायता परिभाषित हो और पारस्परिकता के नष्ट होने को एक बड़ी त्रासदी माना जाये
यह प्यार का एकेश्वरवाद था- पत्थरों की उपासना के वैविध्य से भरा बहुदेववाद: पत्थर के सनम, तुझे हमने मुहब्बत का ख़ुदा माना
एक ढहते हुए रेस्तरां में एक मेज़ और आमने सामने रखी घुन खाई दो कुर्सियाँ संवाद के आख़िरी नमूने हैं
उच्चस्थानीय एक प्रतिशत के पास चालीस प्रतिशत और आखिरी पचास प्रतिशत के पास तीन प्रतिशत परिसंपत्ति है और यही हमारी केंद्रीय विपत्ति है, यह कहकर हमने एक दूसरे को कॉमरेड कहा और फिर कभी बात न करने का फैसला किया
रेनेसां की बजाय हमारे पास धार्मिक छिछोरापन है, गाय बचाने की पाशविकता और मनुष्य मारने का सलफास और नागरिकता का मुँह चमकाने की फिटकिरी और हर साल कला और साहित्य के लिए दिये गये पुरस्कारों का कई टन तांबा, टीन और लक्कड़
जले हुए प्रेम के पुस्तकालय के नालंदा के उजाड़ में हैं हम
पत्तों के वस्त्र पहनकर मैं जंगल की तरफ जा रहा हूँ तुम भी आ जाओ री, अनिवारणीय ! सुबह के झुटपुटे अनार के रंग वाली
आओ,
हम प्रकृति के दो पर्ण हो जाएँ
और हिंदी के आरंभिक
उत्तर-मनुष्य
हम दुर्भाग्य के मारे हैं हमारे पास
न नवजागरण है और न साम्यवाद
और न अनीश्वरवाद का महास्नान
एक डग डग प्रधानमंत्री और एक धक धक पूंजीपति के बीच हम क्रांति में न मरने का जेनेटिक डिज़ाइन
और वंशानुगत इनसेस्टुअस मतदाता होने की हेडलाइन हैं भारतीय लोकतंत्र में इच्छाओं
का प्रतिनिधित्व नहीं आसान
क्या अपराधी ही बनाते हैं सरकार, मेरी जान.
_______________
(देवी प्रसाद मिश्र की कविता फ़रवरी का पहला हिस्सा ‘फ़रवरी-एक’ सदानीरा पत्रिका में भी प्रकाशित हुई है. यह उसका संवर्धित रूप है.)
देवी प्रसाद मिश्र
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लखनऊ, 12.01.2024 | राष्ट्रीय युवा दिवस 2024 (स्वामी विवेकानंद जयंती) के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, लोयोला इंटरनेशनल स्कूल, गोमती नगर, लखनऊ तथा यंग मैनेजर फोरम, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में लोयोला इंटरनेशनल स्कूल, गोमती नगर लखनऊ में सेमिनार "Empowering Youth for Nation Building:Lessons from Swami Vivekananda's Ideals" का आयोजन किया गया | सेमिनार में विशिष्ट वक्ता के रूप में श्री शोभित नारायण अग्रवाल, Youth Volunteer at Ram Krishna Math, Trainer & Practitioner, CA देवेश अग्रवाल व मिस प्रियम गुप्ता, HR Professional and Educator ने विद्यार्थियों को स्वामी विवेकानंद जी के व्यक्तित्व व सिद्धांतों से अवगत कराया तथा यह भी बताया कि किस तरह से स्वामी विवेकानंद द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलकर वे एक अच्छे तथा सफल इंसान बन सकते हैं | सेमिनार का संचालन वंदना त्रिभुवन सिंह ने किया |
सेमिनार का शुभारंभ करते हुए श्री शोभित नारायण अग्रवाल, CA देवेश अग्रवाल, मिस प्रियम गुप्ता, डॉ रोहित चंद्रा, प्रधानाध्यापक, लोयोला इंटरनेशनल स्कूल, गोमती नगर तथा डॉ रूपल अग्रवाल, न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने दीप प्रज्वलन किया तथा स्वामी विवेकानंद जी को श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि अर्पित की | सभी अतिथियों का डॉ रूपल अग्रवाल ने प्रतीक चिन्ह द्वारा सम्मान किया |
डॉ रूपल अग्रवाल ने सभी सम्मानित अतिथियों का स्वागत किया तथा कहा कि "स्वामी विवेकानंद जी की जन्म जयंती सिर्फ एक उत्सव ही नहीं है बल्कि यह जीवन में कुछकर गुजरने का आवाहन है | स्वामी विवेकानंद मानते थे कि अगर देश को प्रगति की ऊंचाइयों तक ले जाना है तो देश के युवा वर्ग को आगे आना होगा तथा अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा | आज इस सेमिनार के माध्यम से हम विद्यार्थियों को यही संदेश देना चाहते हैं कि वे अपने सपनों के पीछे भागे तथा जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए तब तक ना रुके |"
श्री शोभित नारायण अग्रवाल ने विद्यार्थियों को बताया कि "जैसा आप सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं इसलिए हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए | हमें सुबह उठकर भगवान का, अपने माता-पिता का तथा अपने गुरुजनों का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उन्होंने हमें यह जीवन दिया और हमारी जिंदगी के हर सपने को पूरा करने में हमारी मदद की | उन्होंने बताया कि हमेशा अपने लक्ष्य को बड़ा रखना चाहिए क्योंकि लक्ष्य जितना बड़ा होगा उतनी ही बड़ी उसको पाने की जिद भी होगी क्योंकि स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि "उठो, जागो और अपने लक्ष्य तक पहुंचने से पहले मत रुको |"
CA देवेश अग्रवाल ने विद्यार्थियों को उनके करियर के बारे में जानकारी दी और कहा कि "आप जो कुछ भी बनना चाहते हैं उसके बारे में एक सकारात्मक सोच रखें | आप जो कुछ भी बनना चाहते हैं उसको अपने दिमाग में रखकर उसी दिशा में काम करें तभी सफलता निश्चित है |
मिस प्रियम गुप्ता ने दो लकड़हारे की कहानी के माध्यम से विद्यार्थियों को समझाया कि किस तरह से एक युवा लकड़हारे ने अपने दिमाग का सही इस्तेमाल कर कम समय में अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया| उन्होंने बताया कि, "हमें अपने जीवन के लक्ष्य को सही समय पर निर्धारित कर लेना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि हम बनना कुछ और चाहते हैं और दिशा कुछ और पकड़ लेते हैं जिससे बाद में हमें ही अवसाद का शिकार होना पड़ता है इसलिए हमारे लिए यह जरूरी है कि हम लोगों की बातों को समझें, अपने विचारों को सही तरह से लोगों के सामने रखें तथा अपनी कमजोरी पर विजय हासिल करें तभी सफलता निश्चित है |
श्री रोहित चंद्रा ने विद्यार्थियों को राष्ट्रीय युवा दिवस की बधाई देते हुए उन्हें स्वामी विवेकानंद के बताए रास्ते पर चलने के लिए कहा तथा यह भी बताया कि "हमारे महापुरुष हमें बहुत कुछ सिखाते हैं जरूरत है उनके बारे में पढ़ने की और उसे समझने की |"
सेमिनार में लोयोला इंटरनेशनल स्कूल से शिक्षिकाओं मिस शिखा झुनझुनवाला, मिस कोमल यदुवंशी तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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