"संतुलन"
बीमारी को पालोगे तो और
वह भयावह रूप लेगी
चाहे वो मनोरोग हो
या हृदय रोग हो
निदान तो तब है
जब आपस में संतुलन बना रहे
जन्म और मरण के बीच ही जीवन है
-दिनेश
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"स्वतंत्र"
आधी जात-पात की बात मिटी है
आधे डगर हँस-रो तय किये हैं
आधी घूसख़ोरी अभी भागी है
आधे भ्रष्ट जेल गए हैं
औरों से नहीं वरन अपनों से डर है
घुसपैठों को बिन पट डाले जो छोड़ रखे हैं
एक बूँद पानी की कीमत सब जाने है
वेश्याओं से भी बढ़ ये
अर्धनग्न हो जो कुर्सी तोड़ रहें हैं
देख लो देशवासियों!
सच में, झूठ में फ़र्क़ बड़ा है
इस मिट्टी का हो जो मिट्टी का न हुआ है
सच में मैं स्वतंत्र कहलाऊँगा
स्वतंत्रता मैं धूमधाम से मनाऊँगा
वीरांगना माँएें हीं बच्चे को जन्म दें
अन्यथा वो जनसंख्या पे बोझ न बनें
फिर कोई मनु न बाढ़ में फसेगा
जल-जमाव तो दूर छोटे गड्ढे
में फस फिर न वो मरेगा
प्रकृति का सब अनुकरण करेगा
देश महान शक्तिशाली बनेगा
एक चद्रयान नहीं सौ-सौ बनेंगे
ऐसे झूठ के तीन सौ सत्तर सब हटेंगे
धराशायी होंगे शत्रु नतमस्तक होंगे
रक्षा के बंधन तब कामयाब होंगे
स्वतंत्र बनेंगे स्वतंत्र कहेंगे
एक देश बनेंगे आज़ाद बनेंगे
-दिनेश
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"प्लेटफार्म की भूमिका"
निभाता है अपनी भूमिका
बख़ूबी प्लेटफार्म जब कोई
भिखारी आय, दानी से उसे मिलाय
आते-जाते मुसाफ़िरों की
मुख की हँसी किसी की
तो किसी की मायूसी को महसूस कर जाय
थके हारे पसीने से सराबोर
जब आ यात्री आराम की राहत पाय
बच्चों से लेकर बुढ़ापे तक
का सामान हाथों-हाथ पहुचाय
प्रेमी का रूठना-मनाना सबको
प्रत्यक्ष हो साक्षी बन जाय
कभी आपदा प्रकृति की आय
तो भी साथ नहीं छोड़ा जाय
और कभी विपदा हो, मनुष्य
देन घटना, पूरा रिश्ता निभाय
अपशब्द बोले कहीं यारों से
मज़ाक हो कहीं फिर औरतों की
बात हो ये मन ही मन सुन मुस्काय
अँधेरी रात हो या चाँदनी
सबकी जान सब से बचाय
अपनी यारी-दोस्ती सब के साथ निभाय
जब घनिष्ठ मित्र रेल आय
सब चीज़ सुनाय
हँसते-हँसते रेल अपनी ध्वनि
दे ठहाके लगाय
-दिनेश
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"शिक्षक"
मनुज रूप श्रेष्ठ गुरु समाना
निरंतर काल में आना जाना
ऊर्जा, तरंग, प्रकाश दिखाना
भ्रमित को पतित-पावन कर जाना
उनकी महिमा का न कोई बखाना
नमन प्रथम गुरु चरण नहाना
तदोपरांत प्रभु ध्यान लगाना
दुर्लभ सागर सहज पार कर जाना
शिष्य बीज बो पौधा पेड़ बनाना
अटल स्मरणीय जगत का होना
दुर्व्यवहार, दुर्बुद्धि न होना
देशहित सच शिक्षक कहलाना
-दिनेश
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकमनाएँ
Happy Teacher's Day 🙏😊
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नवरात्रि: ८ "चौपाई"
निर्मल मार्ग मुक्ति की डाली
विशुद्ध ऊर्जा देने वाली
सृष्टि काल आर्या संहारी
जगत अम्मा ज्ञान संचारी
-दिनेश
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"आदमी इम्तिहान है"
अजीब इम्तिहान है
कहीं बारिश से शाम है
कहीं शाम आम है
देखो! सावन में
चकोर रात विद्यमान है
कहने को दिन है
घना अँधेरा सा
कहीं हिम बादल
नील आकाश में
चलायमान ���ै
कहीं लौ बिखेरती
बिजली तातप्यमान है
कहीं धूप है
कहीं छाँव है
आदमी कहीं दीप्यमान है
ख़ुद से कहीं झूझ रहा
परेशान है
आदमी इम्तिहान है
-दिनेश
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"संग कलम-कदम उठाना होगा"
कलम उठाना होगा
कदम आगे बढ़ाना होगा
इस युग में कलम के साथ
कदम भी बढ़ाना है ज़रूरी
हिंसा हो या अहिंसा में
दोनों को मिलना है ज़रूरी
तभी होगी इंसानियत मंजूरी
कालजयी बनना होगा
संग कलम-कदम उठाना होगा
सब काला अक्षर भैंस बराबर नहीं
फिर से एक बार और उठना होगा
वीरों को लड़ना होगा
लेखकों को लिखना होगा
वक़्त पड़ने पर दोनों को
लिखना होगा लड़ना होगा
-दिनेश
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कोई ख़्वाहिश कई लिए आता है
पूरा उसे जी जान लगा करना चाहता है
पूर्ण की चाहत तो रखता है
पर अपूर्ण हो चला जाता है
ये भाग्य क्या विधाता है
या ये सारा तमाशा है
-दिनेश
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"जन्मदिवस की बधाइयाँ"
कितना बड़ा है संयोग
मोदी जी का जन्म दिवस
साक्षात् विश्वकर्मा योग
जिसे करने को कुछ नहीं
फिर भी वो करता है कर्मा
मनु बने सब शान्तिदूत
विश्व का एक ही है धर्मा
ये मोदी दूत हैं ऐसे
महिलाओं को उसका हक दिये
ट्रिपल तलाक से मुक्त किये
गरीबों का सम्मान किये
तीन सौ सत्तर के ऊपर
अपनी कलम खींच दिये
अपने को अपना विमुक्त किये
अब बारी है घुसपैठियों की
उसके ऊपर पी.ओ.के. और अक्साई चीन की
अंदर बैठे गद्दी तोड़ रहे भ्रष्टों की
जड़ से उखाड़ फेकने को आतंकी की
देशहित में और भी सशक्त कदम उठाने की
जले लंका के भाग्य को विश्वकर्मा बन सजाने की
हम भारतवासियों को गोवर्धन में लाठी लगाने की
भारत को फिर से विश्व गुरु बनाने की
-दिनेश
जन्मदिवस की बधाइयाँ मोदीजी
विश्वकर्मा पूजा की हार्दिक शुभकमनाएँ 🙏😊
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नवरात्रि : ९ "श्लोक"
अष्ट सिद्धि दस गौण सिद्धि जगत जननी प्रदायिनी |
सर्वस्व धात्री सिद्धिदात्री माता विश्वरूप स्वरूपिणी |
-दिनेश
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नवरात्रि : ७ "कविता"
मिलन अति भावुक आज
यह कोहरा वर्षा संग
भोर हुई पपीहा गाये
मनमोहक दृश्य प्रसंग
कितना सुन्दर ताल-मेल
यह प्रकृति बिखेरी सुगंध
दिवस सप्तशती की देखो
पुष्प बरसाये जैसे देवतागण
-दिनेश
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नवरात्रि: २ "चौपाई"
ब्रह्मचर्य रुप धरी माता
ब्रह्माण्ड सब जिसमें समाता
नूतन ऊर्जा देने वाली
करो ध्यान उनकी नर नारी
-दिनेश
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बैरी न कोई तोरी, जगत तेरी होरी |
हरि नाम गोरी गोरी, पर धाम ये तोरी ||
-दिनेश
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कमाल का लिखते हो मियाँ
दिल चुराये हो या चुरा रहे हो
-दिनेश
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कुछ फ़ासलों के दरमियां रह गए
नहीं तो तुम और मैं मशहूर होते
-दिनेश
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