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akashghoderao-blog · 4 years
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मराठी भाषा में रामायण परंपरा
         राम के जीवन पर आधारित दो महान भारतीय ग्रंथ हैं, आदि कवि वाल्मीकि द्वारा रचित ‘रामायण‘ और तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’।  हिंदू धर्म को मानने वालों में इन्हें पूजनीय ग्रंथ भी माना जाता है। इन दोनों ग्रंथों के बीच समानता के साथ कुछ अंतर भी है, जो तुलनात्मक-अध्ययन क्या रुचिकर विषय रहा है।
         वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक लेखकों ने न केवल भारत भूमि, बल्कि विदेशों में भी राम कथा का अपनी-अपनी भाषाओं में अपने-अपने ढंग से वर्णन किया है। एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में 300 से ज्यादा रामायणें रची गई हैं, जो हमें राम-कथा के कई अनछुए पहलुओं की जानकारी देती हैं। लेकिन वास्तविकता में राम के चरित्र और गुणों का वर्णन जिन दो मुख्य ग्रन्थों में किया गया है, वे वाल्मीकि-रामायण और रामचरितमानस ही हैं।
        वाल्मीकि ने अपने महाकाव्य में राम को एक साधारण पुत्र, भाई और पति के रूप में ही चित्रित किया है। एक साधारण मानव, जिसे अपने हर काम के लिए अपने मित्रों और सहयोगियों की आवश्यकता होती है। न केवल राम, बल्कि इस महाकाव्य का हरेक पात्र, चाहे वह भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण या विभीषण जैसा भाई हो, उर्मिला, सीता, कैकई और मंदोदरी जैसी पत्नी हो, हनुमान जैसा मित्र हो या फिर दशरथ जैसा पिता हो, वाल्मीकि द्वारा हर चरित्र को सशक्त और प्रेरक रूप में प्रस्तुत किया गया है। दूसरी ओर तुलसी के राम एक दैवीय शक्ति से युक्त अतिमानव हैं, जो स्वयं में एक महाशक्ति का रूप हैं। तुलसी के राम मर्यादा पुरषोत्तम हैं और वाल्मीकि के राम मानवीय भावनाओ के संतुलित रूप हैं। एक बड़ा अंतर है, दोनों ग्रंथों के रचना-आधार का। वाल्मीकि-रामायण की रचना ऐतिहासिक घटना पर आधारिक है, जबकि तुलसीदास ने वाल्मीकि रामायण को आधार मानकर अपने आदर्श चरित्र राम को रचा है।  
   भारत में विभिन्न भाषाओं में रामायणों की रचना हुई, लेकिन प्रत्येक रामायण का केंद्र बिंदु वाल्मीकि रामायण ही रही है। बारहवीं सदी में तमिल भाषा में “कंबन रामायण”, सोलावीं सदी में मराठी भाषा में “भावार्थ रामायण” और तेलुगु भाषा में “रंगनाथ रामायण”, पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी में “उड़िया रामायण”, कन्नड में “कुमुदेन्दु रामायण”, पंजाबी में “रामावतार” या “गोबिन्द रामायण” और कृत्तिबास की “बँगला रामायण” प्रसिद्ध हैं, लेकिन इन सबमें तुलसी दास की “रामचरित मानस” सबसे प्रसिद्ध रामायण है।
            मराठी रामायण और रचनाकार
   मराठी भाषा में सर्वप्रथम रामायण की रचना 1595 से 1599 तक, लगभग 4 वर्ष की अवधि में संत एकनाथ महाराज द्वारा “भावार्थ रामायण” के नाम से की गई। यह वाल्मीकि रामायण का एक प्राकृत मराठी भाष्य है अथवा कहें कि वाल्मीकि रामायण का आधार लेकर “भावार्थ रामायण” की रचना की गई। उन्होंने इसके 44 अध्याय लिखे। एकनाथ की मृत्यु के बाद, उनके शिष्य गायबा ने अन्य अध्याय पूरे किए।
   इस ग्रंथ का वैशिष्ट्य देखा जाए तो, इसमें भारतीय संस्कृति में रामायण का महत्व और संत तथा उनके पाठकों के बीच संबंध का परिचय दिया गया है। प्रत्येक चरण की शुरुआत में, उन्होंने कहानी को संक्षेप में प्रस्तुत किया है, जिससे प्रत्येक कांड के कथानक को समझा जा सकता है। प्रत्येक पृष्ठ में नीचे उस पृष्ठ के कठिन शब्दों के अर्थ दिए गए हैं, जिससे वाक्यों का अर्थ लगाना आसान होता है।
        कृष्णदास मुदगल एक महत्वपूर्ण मराठी कवि थे। उन्होंने सन 1600 में “सम्पूर्ण रामायण” रची या रूपांतर किया। वह एकनाथ के समकालीन थे, और पैठन के निवासी थे। उनका “युद्ध-रामायण” ग्रंथ इतना लोकप्रिय था कि पूरे महाराष्ट में दैनिक जीवन में उसे पढ़ा जाता था। कवि ने अपने रूपांतर में वाल्मीकि “रामायण” के साथ साथ “अध्यात्म रामायण” और “अग्निपुराण" का उल्लेख किया। उन्होने मराठी भाषा और कविता की समृद्ध विरासत पर गर्व किया।
    चिन्तामणि विनायक वैद्य (1861–1938) संस्कृत के विद्वान तथा मराठी लेखक एवं इतिहसकार थे। इन्होंने 1920 में “वाल्मीकि रामायण परीक्षण” ग्रंथ प्रकाशित किया और दूसरा ग्रंथ “श्रीराम चरित” 1926 में प्रकाशित किया। ‘श्रीराम चरित’ ग्रंथ जन्म ,बालकांड ,अयोध्या कांड ,अरण्य कांड ,किष्किंधा कांड ,सुंदर कांड ,युद्ध कांड ,उत्तर कांड तथा उपसंहार में विभाजित गद्य रचना है। इस कारण श्रीराम का परिचय होता है। मराठी लेखक ने पाठकों को श्रीराम के चरित्र का परिचय कराने हेतु इस ग्रंथ का लेखन किया। इस ग्रंथ की भाषा अत्यंत सुलभ तथा सरस है। इन्होंने तत्पश्चात वाल्मीकि की रामायण कथा को प्रस्तुत किया है। लेखक ने स्वयं बताया है कि उसने वाल्मीकि रामायण कि कथा को गद्य रूप में प्रस्तुत किया है। कथा तथा सभी वर्णन मूल ग्रंथ के समान दिए हैं।
    गजानन दिगंबर माडगूलकर (1 अक्टूबर 1919 – 14 दिसम्बर 1977) मराठी के प्रमुख कवि, गीतकार, लेखक तथा अभिनेता थे। महाराष्ट्र में वे अपने नाम के आद्यक्षरों से बने 'गदीमा' नाम से ही अधिक जाने जाते हैं। मराठी संस्कृति के लिए उनका योगदान मात्रा और गुणवत्ता दोनो दृ��्टियों से बहुत अधिक है। वे आधुनिक काल के प्रमुख साहित्यकार थे।
   सन 1955 में गदीमा ने “गीतरामायण” की रचना की थी। यह अत्यन्त प्रसिद्ध हुआ। इस गीत को सुधीर फडके ने संगीतबद्ध किया था। यह प्रसिद्ध है कि 56 मराठी रामायण गीत रचे गए थे, जिन्हें आकाशवाणी पुणे द्वारा प्रसारित किया गया था। उन दिनों पुणे आकाशवाणी केंद्र पर सीताकात लाड़ स्टेशन डारेक्टर थे, जो गदीमा के मित्र थे। उन्हें समाज के प्रबोधन हेतु कार्यक्र्म प्रसारित करना था। सीताकात लाड़ ने अपनी योजना गदीमा के समक्ष प्रकट की। गदीमा को उनकी यह संकल्पना लुभा गई, अत:  गयी फिर उन्होंने गीत-रचना शुरू कर दी। गदीमा के पुत्र, आनंद माडगुलकर बताते हैं कि सन 1936 में गदीमा ने दत्तात्रेय पराडकर के घर जाकर मरोपंथ का 108 रामायण काव्य ग्रंथ पढ़ा था। तभी से उनकी इच्छा थी कि रामायण पर कुछ लिखा जाए।
    वैशिष्ट्य की दृष्टि से देखें, तो वाल्मीकि रामायण को गीतों का स्वरूप देकर ‘गीतरामायण’ की रचना की गई है। इस गीतों की निर्मिति में 26 से अधिक रागों का उपयोग किया गया है, जैसे- मिश्र भूप, मिश्र देशकर, देस, बिभास, मिश्र भैरव, मधुवंती, तोड़ी, मिश्र खमाज आदि। ‘गीतरामायण’ में 27 पात्र दिखने को मिलता है । इसमें सबसे अधिक दस गीत राम के मुख से गवाए गए हैं। सीता द्वारा आठ, कोसल्या तथा लव-कुश द्वारा तीन-तीन,  दशरथ, विश्वमित्र, लक्ष्म्ण, सूंमत, भरत, शुर्पणखा, हनुमान द्वारा दो-दो गीतों का गायन किया गया है। एक-एक गीत निवेदक, अयोध्या स्त्री और आश्रमिक ने गाया है । आगे चल कर संगीतकार सुधीर फडके, लता मंगेशकर, माणिक वर्मा, वसंतराव देशपांडे, राम फाटक, ललिता फडके, बबन नावडिकर आदि गीतकारों ने ‘गीतरामायण’ के गीतों का गायन कर इसे जन-जन तक पहुँचाया।  
    सन 1955 में “श्रीरामायन कथा” की रचना  त्र्यंबक गणेश बापट ने की।  इसकी कथावस्तु वाल्मीकि रामायण के अनुसार है।  वाल्या के वाल्मीकि बनने के प्रसंग से “श्री रामायण कथा” शुरू होती है। रावण के साथ युद्ध ,विजय प्राप्ति, वापसी, सीता त्याग, अश्वमेध यज्ञ, लक्ष्मण त्याग आदि का विश्लेषण किया गया है। इसके पात्रों के संवाद, वर्णन, पूर्ववर्ती रचनाकारों के उद्धरण आदि रामकथा को पढ़ने में आसान और प्रभावशाली बनाते हैं। ‘श्री रामायण कथा ’ का प्रारंभ श्री गणेश और सरस्वती वंदना से हुआ है, इस कारण अन्य रामकथाओं या रामायणों से भिन्नता नजर आती है। रामकथा के सभी संदर्भ इस रचना में आए हैं। बापट ने न केवल स्वयं सर्वश्रुत रामायण कथा लिखी, बल्कि अपने प्रसंग-लेखन या घटना-वर्णन को अपने पूर्वकालीन रामायणकारों के उदाहरणों द्वारा पुष्ट भी किया। उन्होंने एकनाथ ,श्रीधर ,कृष्णाबाई ,मोरोपन्त पराडकर आदि रामायणकर्ताओं की मदद लेकर अपना रामायण ग्रंथ अधिक ओजस्वी बनाया। श्रीराम तथा लव कुश की भेंट और उसके बाद श्री राम के आत्मस्वरूप में विलीन होने से बापट ने रामायण कथा समाप्त की है। अंत में उन्होंने लिखा है कि ‘राम चरित्र के मनन से सर्वाभूति राम के साथ अभिन्नता दृष्टिगत होने लगती है। राम ही परब्रह्म है।‘
            सन 2015 में सौ. सुनीता लूले द्वारा ‘प्रश्नोतरी रामायण’ की रचना की गई । इस में प्रश्न किए गए हैं और उनके उत्तर दिए गए हैं, जैसे- प्रश्न- राजा दशरथ ला किती पुत्र होते? उतर- चार।
      विदुला टोकेकर मराठी लेखिका हैं। उन्होंने अनेक अंग्रेजी ग्रंथों का मराठी में अनुवाद किया है। उन्हीं के द्वारा देवदत्त पटनायक की अंग्रेज़ी पुस्तक, ‘सीता’ (Sita-An illustrate re-telling of ramayan) का मराठी में “सीता: रामयनाचे चित्रमय पुन:कथन” नाम से अनुवाद किया गया है। इसमें चित्रमय प्रसंग दिखा कर सीता का परिचय दिया गया है। इसी प्रकार विवाह , वनवास, अपहरण, अपेक्षा, मुक्तता, आदि प्रसंगों का विश्लेषण किया गया है।  
      सुलेचना खांडेकर ने तुलसीदास की रामायण ‘श्रीराम चरित्रमानस’ का मराठी भाषा में अनुवाद किया है।
      “तत्वबोध रामायण” के लेखक सिद्धविनायक बोंद्रे ने वाल्मीकि रामायण में से कुछ निवडक श्लोक चुन कर उनका अनुवाद किया है।
      आदिकवि वाल्मीकि प्रणीत “श्रीरामायण” महाकाव्य का मराठी अनुवाद श्री दा. सातावलेकर और विष्णु दामोदरशास्त्री पंडित द्वारा किया गया है।
अनुवाद की भूमिका :
     मराठी साहित्य में रामायण की रचना मध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक होती आ रही है। आज तक मराठी में 10 से अधिक रामायणों की निर्मिति हुई है। सभी रचनाकारों ने मूल वाल्मीकि रामायण का आधार लेकर अपने काल के अनुसार कुछ परिवर्तन करके रामायण की रचना की है।  
  व्यापक तौर पर देखा जाए तो, मध्यकाल के दौरान वाल्मीकि ‘रामायण’ ने सांस्कृतिक उद्देश्य से अथवा भक्तिभाव के माध्यम से मराठी साहित्य और संस्कृति में प्रवेश किया होगा। प्रवेश करने के बाद संत, लेखक, कीर्तनकार और वारकारी संप्रदाय ने रामायण और उसके पात्रों के अच्छे-बुरे पहलुओं को परखा होगा। इस आधार पर यहाँ के वारकरी संप्रदाय ने “राम कृष्णहरी” के गुण गाए। कुछ संत ‘अभंगों’ में राम, सीता, हनुमान के संदर्भ गायन करते रहे। इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए एकनाथ जी ने ‘भावार्थ रामायण’ रची। उसके बाद कृष्णदास मुदगल ने सम्पूर्ण ‘रामायण’ लिखी तथा समर्थ रामदास ने ‘लघुरामायण’ लिखी। उसी के साथ भारतीय संस्कृति के राम का विस्तार मराठी के साथ गुजरती में भी हुआ। इस तरह अन्य भाषाओं में भी रामायण ग्रंथ रचे गए।
            मराठी साहित्य मे अन्य भाषाओं से आए कुछ ‘रामायण’ अनुवाद हैं। तात्पर्य यही है कि वाल्मीकि 'रामायण’ संस्कृत में लिखी गई। अनुमान किया जा सकता है कि विभिन्न भाषाओं में अनुवाद के द्वारा ‘रामायण’ रचे गए होंगे। इस से पता चलता है कि मध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक अनुवाद प्रत्येक क्षेत्र में अपना महत्व दर्शाता आ रहा है। उल्लेखनीय है कि भावार्थ रामायण वाल्मीकि रामायण का संदर्भ ले के काव्य रूप में रची गई और मध्यकाल में मराठी भाषा का जो रूप था, उस भाषा में भावार्थ रामायण की रचना हुई।
      मराठी साहित्य का आधुनिक काल सन 1875 से अब तक माना जाता है। इस काल में मराठी रामायण की रचना तो बहुत हुई, पर सबसे अधिक लोकप्रियता के शिखर पर ‘गीतरामायण’ है। गीतरामायण की रचना अत्यत साधारण और सुश्राव्य मानी जाती है। इसके गीतों का अनुवाद गुराजती, कन्नड, हिंदी, सिंधी, तेलुगु, कोंकणी, अंग्रेजी आदि में भी हुआ है। इस काल में एक दूसरे के ‘रामायण’ ग्रंथों या लेखकों से प्रेरित होकर रामायण की रचना हुई है, जैसे- सन 1955 में त्र्यबंक गणेश बापट ने मराठी के अन्य रचनाकारों से प्रेरित होकर अपनी रामायण रची।
 आकाश वा. घोडेराव एम.ए. अनुवाद अध्ययन (चतुर्थ सेमिस्टर) महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा-442001 (महाराष्ट्र) Mob no. 7588788073 Email id: [email protected]
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