नेहरू परिवार कैसे और कहाँ से आया ? पूरी असली कहानी | Part 1
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कांग्रेस की सरकारों में आखिर स्वतंत्रता संग्राम के 'शहीदों' की उपेक्षा क्यों?
New Delhi: 27 फरवरी यानी आज ही के दिन 1931 को अंग्रेजों से लड़ते हुए चंद्रशेखर आजाद शहीद हो गए थे। आज उनकी शहादत का दिन है। लेकिन, इतने साल तक आजाद भारत में सत्ता में रही कांग्रेस की सरकारों ने चंद्रशेखर आजाद तो छोड़िए देश के अन्य स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों को वह सम्मान नहीं दिया जिसके वह हकदार थे। जबकि कांग्रेस की तरफ से नेहरू-गांधी परिवार के लोगों को ऐसे दिखाया गया जैसे देश को आजादी…
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1930 के अकाल में पड़ी थी सिंदरी खाद कारखाने की नींव, जानें बर्बादी के कगार पर पहुंचने की इनसाइड स्टोरी, फिर आई बहार
धनबादः सिंदरी वासियों के लिए वह काला दिन बन कर आया जब 1992 में सिंदरी खाद कारखाने को बीमार घोषित कर दिया गया। बाद में औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (बीआईएफआर) ने 2001 में इसे बंद करने की सिफारिश की थी। फिर वह दिन भी आ गया जब 31 दिसंबर 2002 को बंद हो गया। पीडीआइएल के गेट में ताला लटक गया। तब प्लांट में काम कर रहे कर्मचारियों को वीएसएस के तहत सेवानिवृत्त कर दिया गया था, जिनकी संख्या 2000 से भी ज्यादा थी। इसका कारण ये दिया गया कि प्लांट से खास लाभ नहीं हो पा रहा है। हालांकि इससे काफी सारे लोगों का जीवन प्रभावित हुआ और हर साल इस दिन के पास आने के साथ कारखाने से जुड़े लोगों में टीस भर आती है।
1930 के दशक में बंगाल में अकाल से पड़ी थी कारखाने की नींव
इस कारखाने की नींव 1930 के दशक में बंगाल में अकाल से पड़ी थी। माना जाता है कि उस दौरान लाखों लोगों की जानें गईं, जबकि बहुत सारे परिवार दर-बदर हो गए। तब तत्कालीन ब्रिटिश राज में अकाल के कारणों की जांच करते हुए माना गया कि देश के भीतर अनाज की पैदावार बढ़ाने के लिए आधुनिक खेती की जरूरत है। इसके लिए खेती के यंत्रों में सुधार के अलावा खाद बनाने पर भी जोर दिया गया।
1951 में शुरू हुआ था सिंदरी खाद कारखाना में उत्पादन
सिंदरी खाद कारखाना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखी गई पुस्तक ‘सागा आफ सिंदरी’ ��े अनुसार तब खाद बनाने के लिए कोयले और पानी की उपलब्धता जरूरी थी। सिंदरी में दामोदर नदी का पानी था और उससे सटे हुए इलाके झरिया में कोयले का भंडार था। यही देखते हुए सिंदरी में खाद प्लांट बनाने का फैसला ले लिया गया।1951 में कारखाना से उत्पादन शुरू हुआ। मार्च 1952 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सिंदरी खाद कारखाने का उद्घाटन करते हुए अमोनियम सल्फेट नामक रासायनिक उर्वरक को किसानों के नाम किया था, जिसके साथ ही खेती-किसानी एक नए क्रांतिकारी मोड़ पर था। सिंदरी में पहला उर्वरक प्लांट खुला था। जो देश में हरित क्रांति की ओर पहला कदम था।
1970 तक लाभ में, फिर घाटे की शुरुआत
सिंदरी उर्वरक संयंत्र 1967-68 तक और फिर 1969-70 तक लगातार लाभ में रहा। लेकिन आधुनिकीकरण के बावजूद, फैक्ट्री रेटेड (प्राप्य) क्षमता से अधिक होने के बाद भी लाभ बरकरार नहीं रख सकी। इसका मुख्य कारण कंपनी का अवैज्ञानिक विभाजन, उच्च उत्पादन लागत और उर्वरकों की तुलनात्मक रूप से कम बिक्री कीमत रहा। इसके अलावा बढ़ता वेतन बिल और उच्च रखरखाव व्यय भी घाटे का मुख्य कारण बना। पौधों की उम्र बढ़ने और कम विशिष्टताओं-गुणवत्ता वाले बड़े बुनियादी ढांचे की लागत वाले कच्चे माल की उपलब्धता को देखते हुए भारत सरकार ने सितंबर 2002 में कारखाने के संचालन को बंद करने का निर्णय लिया। 31 दिसंबर 2002 को कारखाना बंद हो गया। तब सच में सिंदरी की सुंदरता खत्म हो गई थी।
हर्ल कंपनी ने संभाली कारखाने की बागडोर
2002 से बंद पड़ी सिंदरी खाद कारखाने को एक बार फिर से चालू कराने की कवायद 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से शुरू हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मई 2018 को हिंदुस्तान उर्वरक रसायन लिमिटेड (हर्ल) की आधारशीला रखी गईं।इसी आधारशीला के बाद 2 दशक के बाद फिर से बहार लौटी
नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन हुआ शुरू
ये उर्वरक संयंत्र कोल इंडिया लिमिटेड और एनटीपीसी का संयुक्त उपक्रम है और इसके पुनर्निर्माण पर लगभग 8 हजार करोड़ रुपये की लागत आई है। हालांकि, शुरुआत में इसका बजट 62 सौ करोड़ रुपये तय किया गया था, लेकिन कोविड 19 के चलते निर्माण कार्य में हुई देरी की वजह से लागत बढ़ गई है। इस संयंत्र से प्रतिदिन 2250 मीट्रिक टन अमोनिया और 3850 टन यूरिया का उत्पादन किया जा रहा है। यहां से उत्पादित होने वाला यूरिया नीम कोटेड कृषि के लिए इसे आदर्श उर्वरक माना जाता है। http://dlvr.it/T0rSTb
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परिवारवाद वाले बयान पर 24 घंटे में पलटे थरूर:पहले कहा- कांग्रेस परिवार से चलने वाली पार्टी; अब बोले- गांधी परिवार पार्टी की ताकत
परिवारवाद वाले बयान पर 24 घंटे में पलटे थरूर
कांग्रेस को परिवारवाद वाली पार्टी बताने वाले बयान से सांसद शशि थरूर ने किनारा कर लिया है। थरूर ने बुधवार को सोशल मीडिया पर सफाई देते हुए कहा- मैंने पार्टी को लेकर ऐसा कुछ नहीं कहा। मेरे बयान को गलत तरीके से पेश किया गया।
थरूर ने कहा- सोमवार को मैंने एक निजी कार्यक्रम में जो बयान दिया था, वह कोई फॉर्मल स्टेटमेंट नहीं था। मेरे बयान का गलत मतलब निकाला गया। मैंने बार-बार कहा है कि नेहरू/गांधी परिवार…
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CHILDREN’S DAY 2023: बाल दिवस का इतिहास, उत्सव, अर्थ और महत्व
बाल दिवस का अर्थ है कि बच्चों के अधिकारों को उनकी भलाई के लिए कैसे उपयोग किया जाता है।
क्या देश के हर बच्चे को शिक्षा, चिकित्सा और परिवार के अधिकारों का पूरा अधिकार मिल सकता है? बाल शोषण की कोई शिकायत नहीं है?क्या जो बच्चे खतरनाक नौकरियों में काम करते हैं, उनकी समस्या हल हो गई है? यदि ऐसा नहीं है, तो कम से कम हम माता-पिता को इसके बारे में बता सकते हैं और उन्हें अपने बच्चों को एक ऐसी जगह देने के लिए कह सकते हैं जहां वे अच्छा कर सकते हैं। उन्हें सम्मान और आत्मविश्वास सिखाने के लिए जिम्मेदार होना, और किसी दूसरे की राय सुनने के बजाय अपनी राय बनाने देना।
साथ ही बाल दिवस एक बालिका और एक लड़के को अलग नहीं करने पर भी केंद्रित है। हम युवा लोगों को यह सिखाना चाहिए कि साथियों के दबाव के आगे झुकने से बचना चाहिए, हर संभव कोशिश करना चाहिए और मदद माँगने से नहीं डरना चाहिए जब वे तनाव से गुजर रहे हैं। अब नवीन भारत में शिक्षा, विचार और विकास की नई संभावनाएं हैं। हमारे युवा भावुक और दिलचस्प हैं, इसलिए उनके पास मजबूत विचार हैं। उन्हें दिखाना कि उनकी इच्छाएँ पूरी की जा सकती हैं, उनकी मदद करने का एक तरीका है।
ये बातें बाल दिवस के महत्व को वापस लाएंगी। आइए लक्ष्य को ध्यान में रखने और उस पर कार्य करने का वादा करें ताकि युवा और बच्चे वास्तव में इस दिन का आनंद उठा सकें। 14 नवंबर सिर्फ एक दिन है, लेकिन इसे ऐसा बीज बोने दें जो आने वाले वर्षों में लाभ देगा।
बाल दिवस कब है?
14 नवंबर को भारत बाल दिवस मनाता है।
यह पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन है। पंडित नेहरू भी बच्चों के प्रति उनकी दयालुता के लिए प्रसिद्ध थे।
नेहरू ने भी चिल्ड्रन्स फिल्म सोसाइटी इंडिया की स्थापना की, जो सिर्फ बच्चों के लिए भारतीय फिल्में बनाती है।
बाल दिवस की उत्पत्ति
14 नवंबर 1889 को कश्मीर के एक ब्राह्मण परिवार में जवाहरलाल नेहरू का जन्म हुआ। वह भारत के पहले राष्ट्रपति थे। 1800 के दशक की शुरुआत में उनका परिवार दिल्ली आया था। वे बुद्धिमान थे और व्यवसाय चलाने में अच्छे थे। वह मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रसिद्ध वकील थे। बाद में महात्मा गांधी के करीबी दोस्त मोतीलाल नेहरू बन गए। जवाहरलाल के चार बच्चों में दो लड़कियां सबसे बड़ी थीं। उसकी बहन विजया लक्ष्मी पंडित ने संयुक्त राष्ट्र महासभा का पहला नेतृत्व किया था।
माना जाता है कि बच्चे नेहरू को भारत की शक्ति मानते थे, इसलिए उन्हें “चाचा नेहरू” कहते थे। लेकिन दूसरी कहानी कहती है कि पूर्व प्रधान मंत्री गांधी के करीबी थे, जिन्हें सब लोग “बापू” कहते थे, इसलिए उन्हें “चाचा” कहा जाता था। जवाहरलाल नेहरू को लगता था कि वह “राष्ट्रपिता” के छोटे भाई हैं, इसलिए लोगों ने उन्हें “चाचा” कहा।
1947 में, नेहरू भारत की आजादी की लड़ाई में प्रधानमंत्री बन गए। गांधी ने उन्हें यह कैसे करना सिखाया। उन्होंने स्वतंत्र, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक भारत की नींव रखी। इसलिए नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता बताया जाता है।
1964 में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद संसद ने सर्वसम्मति से उनका सम्मान करने का प्रस्ताव पारित किया। संकल्प ने बाल दिवस को उनके जन्मदिन की आधिकारिक तिथि बनाया। 1956 से पहले, भारत में 20 नवंबर को हर साल बाल दिवस मनाया जाता था। इसका कारण यह था कि संयुक्त राष्ट्र ने 1954 में 20 नवंबर को सार्वभौमिक बाल दिवस घोषित किया था। 14 नवंबर को भारत के पहले प्रधान मंत्री का जन्म हुआ था। 14 नवंबर को उनके जन्मदिन की याद में बाल दिवस मनाया जाता है।
अब स्कूल बाल दिवस मनाने के लिए मनोरंजक और प्रेरक कार्यक्रम करते हैं। बाल दिवस पर बहुत से लोग भाषण लिखते हैं। बच्चों को अक्सर कहा जाता है कि वे स्कूल के कपड़े को छोड़ दें और अलग-अलग कपड़े पहनें। यह समय बच्चों, उनके माता-पिता और शिक्षकों की खुशी का है।
बाल दिवस उत्सव
स्कूलों और अन्य स्थानों पर जो लोग सीखते हैं, कई गतिविधियाँ होती हैं, जो इसे एक मजेदार उत्सव बनाते हैं। बच्चों को खास दिन बनाने के लिए खिलौने, उपहार और मिठाई दी जाती हैं। कुछ स्कूलों में शिक्षकों ने बच्चों को मनोरंजन करने के लिए कार्यक्रमों को दिखाया जाता है।
विश्व बाल दिवस
संयुक्त राष्ट्र का सार्वभौमिक बाल दिवस 1954 में शुरू हुआ था और 20 नवंबर को हर साल मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया भर से लोगों को एकजुट करना है, बच्चों को उनके अधिकारों का ज्ञान देना और बच्चों के कल्याण में सुधार करना है।
20 नवंबर 1959 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अधिकारों की घोषणा को पारित किया। इस दिन बहुत महत्वपूर्ण है। 1989 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अधिकारों पर कन्वेंशन भी पारित किया था।
1990 के बाद से, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अधिकारों पर कन्वेंशन और बाल अधिकारों की घोषणा दोनों पारित की हैं, जो सार्वभौमिक बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस सेवा- मानवाधिकार प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय प्रभारी डा.नम्रता आनंद ने स्लम एरिया में तिरपाल का वितरण किया
पटना, ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस सेवा-मानवाधिकार प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय प्रभारी सह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा. नम्रता आनंद ने कमला नेहरू नगर स्लम एरिया में 15 परिवार वालों के बीच तिरपाल का वितरण किया। डा.नम्रता आनंद ने बताया कि पटना में निरंतर बारिश हो रही है।बड़ी संख्या में ऐसे लोग है जो कि बारिश से बचाव के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं कर पाते है। जरूरतमंद लोगों को जिनकी घर की छत नहीं है उनको जाकर तिरपाल का…
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जिलाधिकारी की अध्यक्षता में कलेक्ट्रेट से मिनी मैराथन का किया गया शुभारंभ
जिलाधिकारी की अध्यक्षता में कलेक्ट्रेट से मिनी मैराथन का किया गया शुभारंभ
फिरोजाबाद में मुख्यालय से मिनी मैराथन का शुभारंभ हुआ। जिलाधिकारी ने मुख्य विकास अधिकारी दीक्षा जैन तथा उपस्थित जिला स्तरीय अधिकारी एवं विभिन्न स्कूली छात्र छात्राओं को अमृत काल के पंचप्रण एवं नशामुक्ति की शपथ दिलाई। जिलाधिकारी ने अमृत काल के पंचप्रण में विकसित भारत का लक्ष्य, गुलामी के हर अंश से मुक्ति, अपनी विरासत पर गर्व, एकता और एकजुटता तथा नागरिकों में कर्तव्य की भावना पर विस्तार से बताया। उन्होंने सभी को शपथ दिलाते हुए कहा कि मैं शपथ लेता हूं कि विकसित भारत के निर्माण में अपनी भागीदारी निभाऊंगा।
मैं शपथ लेता हूं की गुलामी की मानसिकता से मुक्ति के लिए हर संभव प्रयास करूंगा। मैं शपथ लेता हूं कि देश की समृद्ध विरासत पर गर्व करूंगा और इस के उत्थान के लिए हमेशा कार्य करता रहूंगा मैं शपथ लेता हूं कि देश की एकता और एकजुटता के लिए सदैव प्रयासरत रहूंगा। मैं शपथ लेता हूं कि राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों और दायित्वों का पालन करूंगा। मैं शपथ लेता हूं कि देश के गौरव के लिए प्राण देने वाले वीरों से प्रेरित होकर राष्ट्र की रक्षा सम्मान और प्रगति ��े लिए समर्पित रहूंगा।
इसके बाद जिलाधिकारी ने सभी को नशा मुक्ति की शपथ दिलाई। सभी को शपथ दिलाते हुए कहा कि देश की चुनौती को स्वीकार करते हुए हम आज नशा मुक्त प्रदेश अभियान के अंतर्गत एकजुट होकर प्रतिज्ञा करते हैं कि न केवल स्वयं को बल्कि समुदाय, परिवार, मित्र को भी नशा मुक्त करेंगे हम अपने प्रदेश को नशा मुक्त कराएंगे। हम अपने प्रदेश को नशा मुक्त करने के लिए अपनी क्षमता के अनुसार हर संभव प्रयास करेंगे।
मैराथन के दौरान मुख्य विकास अधिकारी दीक्षा जैन, परियोजना निदेशक प्रदीप पांडे, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आशीष कुमार पांडे, क्रीडा अधिकारी, डीपीआरओ नीरज सिन्हा,पुलिस क्षेत्राधिकारी अधिकारी सदर, नेहरू युवा केंद्र अधिकारी, स्काउट गाइड, विभिन्न स्कूल के छात्र छात्राएं एनसीसी केडेट्स, मैराथन में दौड़ने वाले युवक, संबंधित जिला स्तरीय अधिकारी आदि उपस्थित रहे।
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नेहरू गाँधी परिवार की मोदी जी ने खुलवाई फ़ाईल पूरी कांग्रेस मातम में
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चित्तरंजन दास का जीवन परिचय
चित्तरंजन दास का जन्म 5 नवंबर 1870 को बंगाल प्रेसीडेंसी के तेलिरबाग में हुआ था, जो वर्तमान में बांग्लादेश में है।
वह भुवन मोहन दास, एक वकील और उनकी पत्नी निस्तारिणी देबी के पुत्र थे। उनके परिवार के सदस्य राजा राम मोहन राय के ब्रह्म समाज में सक्रिय रूप से शामिल थे। दास के चाचा, दुर्गा मोहन दास एक प्रमुख ब्रह्मो समाज सुधारक थे और उन्होंने विधवा पुनर्विवाह और महिला मुक्ति के क्षेत्र में काम किया।
1890 में, दास ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर उच्च अध्ययन करने और भारतीय सिविल सेवा परीक्षा देने के लिए इंग्लैंड चले गए। हालांकि, उन्होंने आईसीएस क्लियर नहीं किया।
उन्होंने इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई पूरी की और 1893 में भारत लौट आए।
उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में कई वर्षों तक वकालत की।
1908 के अलीपुर बम केस में, दास ने अरबिंदो घोष का बचाव किया और भारतीयों के बीच प्रसिद्धि प्राप्त की।
उन्होंने अरबिंदो और बिपिन चंद्र पाल के साथ अंग्रेजी साप्ताहिक 'बंदे मातरम' में भी योगदान दिया ।
उन्होंने विश्वविद्यालय परीक्षाओं में बंगाली भाषा के प्रयोग की सक्रिय रूप से वकालत की।
उन्होंने खादी और कुटीर उद्योगों का समर्थन किया और अपने पश्चिमी कपड़े और शानदार जीवन शैली को त्याग दिया।
वह महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए।
वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण सदस्य बने और अपने सार्वजनिक बोलने के कौशल और अंतर्दृष्टि के लिए जाने जाते थे।
1921 में आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें उनके बेटे और पत्नी के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने 6 महीने जेल में बिताए।
जब गांधी ने 1922 में चौरी चौरा की घटना के कारण असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, तो दास और अन्य लोगों ने विरोध किया क्योंकि आंदोलन जोरों पर चल रहा था। जनवरी 1923 में उन्होंने मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर स्वराज पार्टी की स्थापना की।
वे एक विपुल लेखक और कवि थे। उन्होंने अपना कविता संग्रह 'मलंचा' और 'माला' नामक दो खंडों में प्रकाशित किया ।
1925 में दास का स्वास्थ्य खराब होने लगा और वे अपने स्वास्थ्य में सुधार के लिए दार्जिलिंग में रहने चले गए।
गांधी दास के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उन्हें एक महान आत्मा कहते थे। लोगों ने उन्हें 'देशबंधु' की सम्मानजनक उपाधि दी । सुभाष चंद्र बोस भी दास को पूजते थे
16 जून 1925 को दार्जिलिंग में तेज बुखार से दास की मृत्यु हो गई। उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए कलकत्ता लाया गया। उनके अंतिम संस्कार में सैकड़ों लोग उमड़े। गांधी ने अंतिम संस्कार के जुलूस का नेतृत्व किया।
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Rahul Gandhi मामले में अब Amit Shah ने मारी एंट्री... गांधी-नेहरू परिवार...
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Bihar: शॉर्ट सर्किट से लगी आग में एक ही परिवार के तीन बच्चों की मौत, एक गंभीर
Araria: अररिया जिला के भरगामा थाना क्षेत्र के वीरनगर विषहरिया गांव में बीती देर रात शॉर्ट सर्किट से लगी आग में एक ही परिवार के चार बच्चे झुलस गए। जिसमे से तीन बच्चों की मौके पर ही मौत हो गई।जबकि एक एक बालक को गंभीर अवस्था में पूर्णिया और फिर पूर्णिया से भागलपुर जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर किया गया है।
आगजनी में वीरनागर विषहरिया वार्ड संख्या दस के शहादत टोला के 16 परिवारों के घर…
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काश कि तुमने उस पर विश्वास न किया होता! दिल्ली का वो पार्क जो उस दिन डीयू छात्रा के खून से लाल हो चुका था
मुझसे शादी कर लो! दिल्ली को दहला देने वाले इस कत्ल की कहानी इसी लाइन से शुरू होती है। वो घर से ये मानकर आया था कि अगर वो शादी से इनकार करेगी तो वो उसे हमेशा के लिए मौत की नींद सुला देगा। मर्डर की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी थी, हथियार तैयार था और ना का इंतजार था। हुआ भी बिल्कुल वैसे ही जैसे ही दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली इस लड़की ने शादी से इनकार किया, इस लड़के ने पहले से तैयार लोहे की रॉड को उठा लिया और फिर दे दना दन लड़की के सिर पर वार करने शुरू कर दिए। ये तब तक तक मारता रहा जब तक लड़की सिर फट नहीं गया।
दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा का कत्ल करने वाला आशिक!
दिल्ली का मालवीय नगर का पार्क जो सुबह सुबह सीनियर सिटिज़न्स के ठहाकों का केन्द्र वही 28 जुलाई को साक्षी बना एक खौफनाक मर्डर का। जिस पार्क में लड़के-लड़कियां मौज-मस्ती करते हैं, लोग घूमते फिरते है वही पार्क उस दिन एक खूबसूरत लड़की के खून से लाल हो गया। एक लड़की के परिवार वालों के सपनों को हमेशा के लिए इस पार्क में दफन हो गए। नरगिस दिल्ली के संगम पार्क में रहती थी और दिल्ली यूनिवर्सिटी के कमला नेहरू कॉलेज से पढ़ाई कर रही थी। नरगिस का सपना था आईएएस ऑफिसर बनकर अपने परिवार के ख्वाबों को पूरा करना।
नरगिस से शादी के सपने देख रहा था इरफान
अब आते हैं उस बेरहम इंसान पर जिससे प्यार न सही नरगिस का दोस्ती का रिश्ता तो था ही। इरफान नाम था इस कातिल का। रिश्ते में नरगिस का मौसेरा भाई। उत्तर प्रदेश के औरैया का रहने वाला। बचपन से ही दोनों परिवारों के बीच रिश्तेदारी होने की वजह से आना जाना था। इरफान कुछ साल पहले करीब 5-6 साल नरगिस के घर पर ही रहा। नरगिस के पिता मोटर मैकेनिक है और उन्होंने ही इरफान को मैकेनिक का काम सिखाया। इसी दौरान इरफान को नरगिस भाने लगी थी। वो तब से ही नरगिस से शादी के सपने देख रहा था।
परिवार ने शादी से कर दिया था इनकार
इरफान ने शादी को लेकर नरगिस को परेशान करना शुरू कर दिया था। परिवार वालों ने इरफान से अपनी बेटी की शादी करने से इनकार कर दिया था। वो अपनी बेटी को पढ़ा-लिखाकर काबिल बना चाह रहे थे। इसी बात के बाद इरफान को नरगिस के पिता ने अपने घर से भगा दिया था। वो वापस औरैया चला गया था, लेकिन कुछ समय पहले वो वापस लौट आया। वो औरेया जरूर गया था, लेकिन नरगिस उसके दिल से कभी नहीं निकली। नरगिस की भी इरफान से दोस्ती थी, लेकिन वो अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं करना चाहती थी। नरगिस ने इरफान का व्हाट्सएप और फोन भी ब्लॉक कर दिया था।
लोहे की रॉड से इतना मारा कि सिर फट गया
26 जुलाई के दिन नरगिस अपनी कोचिंग क्लास में जा रही थी। रास्ते में उसे इरफान मिला। उसने नरगिस का रास्ता रोका, नरगिस को कहा कि मुझे तुमसे बात करनी है। वो नरगिस को अपने साथ बात करने के लिए पार्क में ले गया। ये मालवीय नगर के पॉश इलाके में बना एक पार्क था। उस पार्क में इरफान ने पहले से ही एक रॉड छुपा दी थी। पार्क में ले जाकर इरफान ने फिर से नरगिस से शादी की बात की। नरगिस ने फिर मना किया और बस इसके तुरंत बाद इरफान ने उस पर 10 से 12 वार लोहे की रॉड से हमला कर दिया।
'कातिल को मौत की सजा मिलनी चाहिए'
दिल्ली यूनिवर्सिटी के कमला नेहरू कॉलेज में पढ़ने वाली नरगिस हमेशा के लिए मौत की आगोश में जा चुकी थी। उसके अपने कजिन ने उसकी हत्या कर दी थी। परिवार वाले उसका इंतजार कर रहे थे कोचिंग से लौटने का, लेकिन उस दिन उसके कत्ल की खबर आई। परिवार टूट गया। नरगिस के दो भाई, मां पिता सब सदमे में है। उन्हें पता था कि इरफान उनकी बेटी को बहन को हमेशा परेशान करता था, लेकिन एक दिन वो उसकी जान ले लेगा ये उन्होंने कभी नहीं सोचा था। नरगिस के भाइयों ने कहा कि उनकी बहन के कातिल को मौत की सजा मिलनी चाहिए तभी उनको न्याय मिलेगा। http://dlvr.it/St3Byp
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#लाल बहादुर शास्त्री
My Top Posts in 2022:
#5
Mahatma Gandhi was born on 2 Oct, 1869, and every year, this day is celebrated as Gandhi Jayanti..
He died on 30 Jan, 1948, one year after India's independence….
1 note - Posted October 2, 2022
#4
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और रामदुलारी देवी के घर हुआ था। उन्होंने पूर्व मध्य रेलवे इंटर कॉलेज और हरीश चंद्र हाई स्कूल में पढ़ाई की, जिसे उन्होंने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए छोड़ दिया । उन्होंने मुजफ्फरपुर में हरिजनों की भलाई के लिए काम किया और अपने जाति-व्युत्पन्न उपनाम "श्रीवास्तव" को छोड़ दिया। शास्त्री के विचार स्वामी विवेकानंद , गांधी और एनी बेसेंट के बारे में पढ़कर प्रभावित हुए । गांधी से गहराई से प्रभावित और प्रभावित होकर, वह 1920 के दशक में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी (लोक सेवक मंडल) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया , जिसकी स्थापना ने की थीलाला लाजपत राय और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रमुख पदों पर रहे । 1947 में स्वतंत्रता के बाद, वह भारत सरकार में शामिल हो गए और प्रधान मंत्री नेहरू के प्रमुख कैबिनेट सहयोगियों में से एक बन गए, पहले रेल मंत्री (1951-56) के रूप में, और फिर गृह मंत्री सहित कई अन्य प्रमुख पदों पर रहे ।
उन्होंने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश का नेतृत्व किया । उनका नारा " जय जवान, जय किसान " ("सैनिक की जय हो, किसान की जय हो") युद्ध के दौरान बहुत लोकप्रिय हुआ। 10 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौते के साथ औपचारिक रूप से युद्ध समाप्त हो गया ; वह अगले दिन मर गया, अभी ��ी ताशकंद में, विवाद में उसकी मृत्यु के कारण के साथ; इसे कार्डिएक अरेस्ट बताया गया था, लेकिन उनके परिवार वाले प्रस्तावित कारण से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था ।
1 note - Posted October 2, 2022
#3
Thought of the Day | आज का सुविचार
1 note - Posted October 1, 2022
#2
कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवीं रूप हैं।
'कात्यायनी' अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम है, संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हेेमावती व ईश्वरी इन्हीं के अन्य नाम हैं। शक्तिवाद में उन्हें शक्ति या दुर्गा, जिसमे भद्रकाली और चंडिका भी शामिल है, में भी प्रचलित हैं। यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में उनका उल्लेख प्रथम किया है। स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं , जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दी गई सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया। वे शक्ति की आदि रूपा है, जिसका उल्लेख पाणिनि पर पतञ्जलि के महाभाष्य में किया गया है, जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में रचित है।
Happy Navratri
1 note - Posted October 1, 2022
My #1 post of 2022
भारत में प्रथम पुरुष सूची | Bharat Me Pratham Purush List | List of First Man in India
1 note - Posted September 30, 2022
Get your Tumblr 2022 Year in Review →
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राहुल गांधी 2024 का लोकसभा चुनाव अमेठी से लड़ेंगे : अजय राय
राहुल गांधी 2024 का लोकसभा चुनाव अमेठी से लड़ेंगे : अजय राय
अमेठी. कांग्रेस नेता अजय राय ने बुधवार को दावा किया कि राहुल गांधी 2024 का लोकसभा चुनाव अमेठी से लड़ेंगे, क्योंकि अमेठी से नेहरू-गांधी परिवार का पुराना पारिवारिक रिश्ता है . उन्होंने यहां पार्टी कार्यालय में संवाददाताओं से बातचीत में कहा, “गांधी-नेहरू परिवार के अमेठी से पुराने पारिवारिक संबंध हैं, इसे कोई कमजोर नहीं कर सकता. राहुल गांधी अमेठी से 2024 में चुनाव लड़ेंगे.” उत्तर प्रदेश में पार्टी के…
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