Tumgik
*बेटी का दर्द*
तुम अपने घर हो,
मै परदेश बसी तुमसे,
दूर बहुत हू मां,
तुम्हारे प्यार के खुशबू में,
रची बसी आंचल के छांव में,
बचपन बीता, खट्टी मीठी बातें ,
करके ख़ुशी मिलती थी बहुत मां,
संस्कारों में बंधकर बाबूजी अपने,
आंगन से हमको दूर किये,
पर मेरी यादों में बाबूजी,
रोते थे बहुत मां,
जब तुम लोगों की यादों में,
मन बेचैन होता है,
कैसे मन समझाऊ तुमसे,
दूर बहुत हूं मां,
जब नींद भरे आखो के,
सपने में आती हो,
मन खुशियों में डूब जाता है,
आंख खुलती पास नहीं मिलती हो,
मन रोता बहुत है ,दूर बहुत हूं मां।
मायके की गलियों मे घूम कर ,
चाचा ,चाची भइया भाभी, .
संग सहेलियां बहनों से बातें करना, .
बहुत चुभन देती है मां, .
वह गलियां याद बहुत आती हैं मां# .
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"कोई अपना मुकद्दर बनाता नहीं,
ऐसा कहते है सबने सुना है यही,
इंसान मेहनत से मुकद्दर बनाता यहां,
अपनी पौरुष और बल से जीता जहां,
हाथ की लकीरों से जीवन चलता कहां,
अपनी मेहनत से जीवन का है कारवां#
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"गजल "
हम तो हवा के झोंके है,
चलते है संभल-सभल कर,
दिल में जो खिची तस्वीरें,
उनकी खुशबुओं में रहते है,
हम मचल -मचल कर,
जब -जब कांटों भरी राहें,
हमको मिली उन राहों पर ,
हम रखते हैं कदम संभल-सभल कर,
जो नसीब में नहीं ��ा वो हमको नही मिला,
हाध की रेखाएं पढ़ते हैं सिसक सिसक कर,
हम भी हवा के झोंके है।।।।।।।
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"गजल "
हम तो हवा के झोंके है,
चलते है संभल-सभल कर,
दिल में जो खिची तस्वीरें,
उनकी खुशबुओं में रहते है,
हम मचल -मचल कर,
जब -जब कांटों भरी राहें,
हमको मिली उन राहों पर ,
हम रखते हैं कदम संभल-सभल कर,
जो नसीब में नहीं था वो हमको नही मिला,
हाध की रेखाएं पढ़ते हैं सिसक सिसक कर,
हम भी हवा के झोंके है।।।।।।।
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