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🎋संत रामपालजी महाराज का जीवन परिचय व् आध्यात्मिक संघर्ष🎋
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ, जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद संत ऱामपालजी महाराज हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। इसी दौरान संत रामपाल जी महाराज जी ने 17 फरवरी सन् 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम संत रामदेवानंद जी से नाम दीक्षा प्राप्त की। उनके अनुयायी इस दिवस को बोध दिवस के रूप में मनाते हैं।
अपने गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर दृढ भक्ति करने के बाद संत रामपाल जी महाराज जी को 1994 में स्वामी रामदेवानंद जी ने आदेश दिया कि अब आप लोगों को नाम दीक्षा दिया करो। अपने गुरुजी की आज्ञा को मानकर संत रामपाल जी महाराज ने 18 साल की अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों के आधार पर लोगों को तत्वज्ञान का भेद करा रहे हैं व् लोगों को पाखंडवाद से मुक्त कर शास्त्रानुसार कबीर साहेब की सतभक्ति करने के लिए जागृत कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी अपने तत्वज्ञान के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, हमें किस तरह से मनुष्य जीवन में रहना चाहिए, किस की भक्ति करनी चाहिए, शास्त्रानुसार वास्तविक भक्ति विधि क्या है इन सबकी जानकारी बताते हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव गाँव, नगर नगर जाकर सत्ज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नही सका।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
#17Feb_SantRampalJi_BodhDiwas
#SantRampalJiMaharaj
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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🎋संत रामपालजी महाराज का जीवन परिचय व् आध्यात्मिक संघर्ष🎋
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में जाट किसान परिवार में हुआ, जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद संत ऱामपालजी महाराज हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। इसी दौरान संत रामपाल जी महाराज जी ने 17 फरवरी सन् 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को परम संत रामदेवानंद जी से नाम दीक्षा प्राप्त की। उनके अनुयायी इस दिवस को बोध दिवस के रूप में मनाते हैं।
अपने गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर दृढ भक्ति करने के बाद संत रामपाल जी महाराज जी को 1994 में स्वामी रामदेवानंद जी ने आदेश दिया कि अब आप लोगों को नाम दीक्षा दिया करो। अपने गुरुजी की आज्ञा को मानकर संत रामपाल जी महाराज ने 18 साल की अपनी नौकरी से 21/05/1995 को इस्तीफा दे दिया और पूर्णतः नामदान देने लग गए।
वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों के आधार पर लोगों को तत्वज्ञान का भेद करा रहे हैं व् लोगों को पाखंडवाद से मुक्त कर शास्त्रानुसार कबीर साहेब की सतभक्ति करने के लिए जागृत कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी अपने तत्वज्ञान के माध्यम से लोगों को यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, हमें किस तरह से मनुष्य जीवन में रहना चाहिए, किस की भक्ति करनी चाहिए, शास्त्रानुसार वास्तविक भक्ति विधि क्या है इन सबकी जानकारी बताते हैं।
सतगुरु रामपाल जी महाराज को लोगों तक वास्तविक तत्वज्ञान पहुँचाने के लिए अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव गाँव, नगर नगर जाकर सत्ज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नही सका।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही आज उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है।
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#StopDrinkingAlcohol🌬️संत गरीबदास जी ने बताया है कि
गरीब, परद्वारा स्त्री का खोलै। सत्तर जन्म अंधा हो डोलै।।
मदिरा पीवै कड़वा पानी। सत्तर जन्म श्वान के जानी।।
जो व्यक्ति अन्य स्त्री से अवैध सम्बन्ध बनाता है, वह 70 जन्म अंधा होता है। शराबी सत्तर जन्म तक कुत्ते के जन्म पाता है।
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🌈 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🌈
आज़ से 505 वर्ष पहले ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष पूर्णमासी को विक्रमी संवत् 1455 सन् 1398 में सुबह ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से डेढ़ घंटा पहले) काशी में लहरतारा तालाब पर कमल के फूल पर शिशु रुप में कबीर परमेश्वर प्रकट हुए थे। उस समय स्वामी रामानंद जी के शिष्य अष्टानंद ऋषि भी स्नान करने लहरतारा तालाब पर गए हुए थे। जब कबीर परमेश्वर शिशु रुप में तेजपुंज का शरीर बनाकर कमल के फूल पर विराजमान हुए थे। उस घटना को अष्टानंद जी ने अपनी आंखों से देखा, लेकिन चमकीला प्रकाश होने से कबीर परमेश्वर को नहीं देख पाए।
जब अष्टानंद जी ने अपने गुरुदेव स्वामी रामानंद जी को सारी बात बताई तो रामानंद जी ने कहा कि, जब ऊपर के लोक से अवतारी शक्ति धरती पर अवतरित होते हैं तब ऐसी ही घटना होती है।
गरीब, सेवक होकर उतरे, इस पृथ्वी के माहिं।
जीव उधारन जगतगुरु, बार बार बलि जांव।।
कबीर परमेश्वर ने 120 वर्ष तक पृथ्वी पर रहकर अनेकों लीलाएं की। अपने सतलोक गमन करने के दौरान भी एक अद्भुत लीला की।
उस समय ब्राह्मणों ने एक ग़लत धारणा फैला रखी थी कि काशी में मरने वाला स्वर्ग तथा मगहर में मरने वाला नर्क में जाता है। इसी भ्रम को दूर करने के लिए कबीर परमेश्वर माघ महीने की शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी वि.सं.1575 सन् 1518 को काशी से चलकर
मगहर आए और सशरीर सतलोक गमन किया। और लोगों का भ्रम निवारण किया कि सतभक्ति करने वाला कहीं भी प्राण त्यागे वह अपने स्थान पर ही जाएगा। और सतभक्ति न करने वाले चाहे काशी में प्राण त्यागे तो भी नर्क में जाएगा ही जाएगा।
मगहर में शरीर छोड़ने से पहले कबीर परमेश्वर ने मगहर की एकमात्र आमी नदी जो भगवान शिव जी के श्राप से सूख गई थी उसमें जल बहा दिया जो आज भी प्रमाण के तौर पर विद्यमान है।
सतलोक प्रस्थान के समय हिंदू तथा मुस्लिम आपस में कबीर साहेब के शरीर को लेकर उनके अंतिम संस्कार को लेकर लड़ाई करने की तैयारी में थे, लेकिन कबीर परमेश्वर ने एक अद्भुत लीला की। और कहा कि मेरे जाने के पश्चात आप आपस में लड़ना मत, क्योंकि आप दो नहीं बल्कि एक ही परमेश्वर के पुत्र हो।
कबीर परमेश्वर ने राजा बीर सिंह बघेल तथा बिजली खां पठान से कहां कि एक चद्दर नीचे बिछाओ और एक मेरे ऊपर। फिर कुछ देर बाद आकाशवाणी हुई कि,
उठा लो पर्दा, इसमें नहीं है मुर्दा।
जब चद्दर उठाकर देखा तो वहां कबीर परमेश्वर का शव नहीं मिला, वहां सुगंधित फूलों का ढेर मिला। जिसे हिंदू मुसलमानों ने आधे आधे बांटकर वही पर 100 -100 फुट की दूरी पर एक एक यादगार बनाई,जो आज भी विद्यमान है।
#कबीरपरमेश्वर_निर्वाणदिवस 1 फरवरी 2023
#मगहर_लीला
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🥏 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🥏
प्रसिद्ध कवि एवं जुलाहे की भूमिका करने वाले महान सन्त के रूप में विख्यात कबीर साहिब ही पूर्ण परमेश्वर हैं। जिनका जन्म मां के गर्भ से नहीं होता। इसका वेदों में भी प्रमाण है कि पूर्ण परमेश्वर ऊपर से गति करके स्वयं प्रकट होता है। वह पृथ्वीलोक में वाणियों, कविताओं के माध्यम से तत्वज्ञान सुनाता है व कवि की उपाधि धारण करता है।
कलयुग में पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब अपने वास्तविक नाम कबीर देव अर्थात कबीर साहिब नाम से प्रकट होते हैं। विक्रम संवत 1455 (सन 1398) जेष्ठ मास की पूर्णिमा सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त में काशी के अंदर लहरतारा नामक तालाब पर कमल के फूल पर नीरू और नीमा नामक एक दंपत्ति जो जुलाहे का काम करते थे, उन्हें मिले थे। परमेश्वर कबीर साहेब 120 वर्ष तक इस पृथ्वीलोक में रहे और अनेकों चमत्कार किए व तत्वज्ञान का प्रचार किया।
पाखण्डी धर्मगुरुओं ने अफवाह फैला रखी थी कि जो काशी में मरेगा वह स्वर्ग जायेगा तथा जो मगहर में मरेगा वह गधा बनेगा।
परमेश्वर कबीर जी कहते थे कि जैसी काशी है वैसा ही मगहर है, केवल हृदय में सच्चा राम होना चाहिए, यदि आप सतभक्ति करते हो तो आप कही भी प्राण त्यागो, मोक्ष के अधिकारी हो।
505 वर्ष पूर्व सन् 1518 वि. स. 1575 महीना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी को कबीर साहिब सशरीर सतलोक गये थे तब हिंदू तथा मुस्लिम आपस में कबीर साहिब के शरीर के अंतिम संस्कार को लेकर लड़ाई करने की तैयारी में थे, तभी कबीर परमेश्वर ने आकाशवाणी की कोई झगड़ा न करे। जो भी चादर के नीचे मिले उसे आधा-आधा बांट ले, कबीर परमेश्वर के शरीर के स्थान पर सुगंधित फूलों के अलावा कुछ न मिला क्योंकि कबीर परमेश्वर सशरीर सत्यलोक चले गए थे।
तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छांडी पदहि समाये |
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं ||
हिंदू व मुसलमानों ने बिना झगड़ा किये दोनों धर्मों ने आधे-आधे फूल बांटे एवं उस पर एक यादगार बना दी। आज भी मगहर में यह यादगार विद्यमान है।
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब सशरीर आये तथा अनेक लीलाएं करके पुनः सशरीर सतलोक गए क्योंकि पूर्ण परमात्मा कभी भी न जन्म लेता है और न उसकी मृत्यु होती है।
#कबीरपरमेश्वर_निर्वाणदिवस 1 फरवरी 2023
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🌈 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🌈
आज़ से 505 वर्ष पहले ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष पूर्णमासी को विक्रमी संवत् 1455 सन् 1398 में सुबह ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से डेढ़ घंटा पहले) काशी में लहरतारा तालाब पर कमल के फूल पर शिशु रुप में कबीर परमेश्वर प्रकट हुए थे। उस समय स्वामी रामानंद जी के शिष्य अष्टानंद ऋषि भी स्नान करने लहरतारा तालाब पर गए हुए थे। जब कबीर परमेश्वर शिशु रुप में तेजपुंज का शरीर बनाकर कमल के फूल पर विराजमान हुए थे। उस घटना को अष्टानंद जी ने अपनी आंखों से देखा, लेकिन चमकीला प्रकाश होने से कबीर परमेश्वर को नहीं देख पाए।
जब अष्टानंद जी ने अपने गुरुदेव स्वामी रामानंद जी को सारी बात बताई तो रामानंद जी ने कहा कि, जब ऊपर के लोक से अवतारी शक्ति धरती पर अवतरित होते हैं तब ऐसी ही घटना होती है।
गरीब, सेवक होकर उतरे, इस पृथ्वी के माहिं।
जीव उधारन जगतगुरु, बार बार बलि जांव।।
कबीर परमेश्वर ने 120 वर्ष तक पृथ्वी पर रहकर अनेकों लीलाएं की। अपने सतलोक गमन करने के दौरान भी एक अद्भुत लीला की।
उस समय ब्राह्मणों ने एक ग़लत धारणा फैला रखी थी कि काशी में मरने वाला स्वर्ग तथा मगहर में मरने वाला नर्क में जाता है। इसी भ्रम को दूर करने के लिए कबीर परमेश्वर माघ महीने की शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी वि.सं.1575 सन् 1518 को काशी से चलकर
मगहर आए और सशरीर सतलोक गमन किया। और लोगों का भ्रम निवारण किया कि सतभक्ति करने वाला कहीं भी प्राण त्यागे वह अपने स्थान पर ही जाएगा। और सतभक्ति न करने वाले चाहे काशी में प्राण त्यागे तो भी नर्क में जाएगा ही जाएगा।
मगहर में शरीर छोड़ने से पहले कबीर परमेश्वर ने मगहर की एकमात्र आमी नदी जो भगवान शिव जी के श्राप से सूख गई थी उसमें जल बहा दिया जो आज भी प्रमाण के तौर पर विद्यमान है।
सतलोक प्रस्थान के समय हिंदू तथा मुस्लिम आपस में कबीर साहेब के शरीर को लेकर उनके अंतिम संस्कार को लेकर लड़ाई करने की तैयारी में थे, लेकिन कबीर परमेश्वर ने एक अद्भुत लीला की। और कहा कि मेरे जाने के पश्चात आप आपस में लड़ना मत, क्योंकि आप दो नहीं बल्कि एक ही परमेश्वर के पुत्र हो।
कबीर परमेश्वर ने राजा बीर सिंह बघेल तथा बिजली खां पठान से कहां कि एक चद्दर नीचे बिछाओ और एक मेरे ऊपर। फिर कुछ देर बाद आकाशवाणी हुई कि,
उठा लो पर्दा, इसमें नहीं है मुर्दा।
जब चद्दर उठाकर देखा तो वहां कबीर परमेश्वर का शव नहीं मिला, वहां सुगंधित फूलों का ढेर मिला। जिसे हिंदू मुसलमानों ने आधे आधे बांटकर वही पर 100 -100 फुट की दूरी पर एक एक यादगार बनाई,जो आज भी विद्यमान है।
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💎 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 💎
आज से लगभग 505 वर्ष पूर्व सन् 1518 वि. स. 1575 महीना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी को कबीर साहेब जी सशरीर सतलोक गये थे।
परमात्मा कबीर जी चार दाग से न्यारे हैं।
चदरि फूल बिछाये सतगुरु, देखें सकल जिहाना हो।
च्यारि दाग से रहत जुलहदी, अविगत अलख अमाना हो।।
हिंदू राजा बीर सिंह बघेल और मुस्लिम राजा बिजली ख़ाँ पठान को कबीर परमात्मा ने सतलोक जाने से पहले कहा जो मेरे जाने के बाद मिले आधा आधा बांट लेना। दो चद्दर और सुगंधित फूल मिले, परमात्मा का शरीर नहीं मिला था। शरीर की जगह सुगन्धित पुष्प मिले जिस वजह से हिन्दू मुस्लमान का भयंकर युद्ध टला था। वे सभी एक दूसरे के सीने से लग कर रोये थे जैसे किसी बच्चे की माँ मर जाती है। यह समर्थता कबीर परमेश्वर जी ने दिखाई जिससे गृहयुद्ध टला।
बीरसिंघ बघेला करै बीनती, बिजली खाँ पठाना हो।
दो चदरि बकसीस करी हैं, दीनां यौह प्रवाना हो।।
कबीर परमेश्वर सन् 1398, ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी को ब्रह्म मुहूर्त में अपने निज धाम सतलोक से चलकर आए और काशी के लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर शिशु रूप धारण करके विराजमान हुए। जहाँ से नीरू-नीमा उठा कर ले गये और पुत्रवत पालन किया।
कबीर, ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
कबीर साहेब ही एक ऐसे सच्चे भगवान हैं जिन्होंने ऐसी लीला की जिसका प्रमाण हमारे वेदों में भी मिलता है।
आज तक जितने भी अवतार हुए हैं सभी ने मां के गर्भ में जन्म लिया है श्रीराम जी, श्रीकृष्ण जी, परशुरामजी आदि और वे सब मृत्यु को भी प्राप्त हुए।
जबकि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी चारों युगों में आते हैं और सशरीर ही आते हैं और सशरीर ही जाते हैं जैसा एक कलियुग का वर्णन आपने ऊपर पढ़ा।
वो परमात्मा सन् 1398 से सन् 1518 तक 120 वर्ष तक इस धरातल पर अपनी लीला करके गये।
ऋग्वेद मण्डल नं 9 सुक्त 94 मंत्र 1 में कहा है कि वह कबीर परमेश्वर कवियों की तरह आचरण करता हुआ इधर-उधर जाता है यानि घूम-फिरकर कविताओं, लोकोक्तियों द्वारा तत्वज्ञान बताता फिरता है।
#कबीरपरमेश्वर_निर्वाणदिवस 1 फरवरी 2023
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आज से लगभग 505 वर्ष पूर्व सन् 1518 वि. स. 1575 महीना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी को कबीर साहेब जी सशरीर सतलोक गये थे।
परमात्मा कबीर जी चार दाग से न्यारे हैं।
चदरि फूल बिछाये सतगुरु, देखें सकल जिहाना हो।
च्यारि दाग से रहत जुलहदी, अविगत अलख अमाना हो।।
हिंदू राजा बीर सिंह बघेल और मुस्लिम राजा बिजली ख़ाँ पठान को कबीर परमात्मा ने सतलोक जाने से पहले कहा जो मेरे जाने के बाद मिले आधा आधा बांट लेना। दो चद्दर और सुगंधित फूल मिले, परमात्मा का शरीर नहीं मिला था। शरीर की जगह सुगन्धित पुष्प मिले जिस वजह से हिन्दू मुस्लमान का भयंकर युद्ध टला था। वे सभी एक दूसरे के सीने से लग कर रोये थे जैसे किसी बच्चे की माँ मर जाती है। यह समर्थता कबीर परमेश्वर जी ने दिखाई जिससे गृहयुद्ध टला।
बीरसिंघ बघेला करै बीनती, बिजली खाँ पठाना हो।
दो चदरि बकसीस करी हैं, दीनां यौह प्रवाना हो।।
कबीर परमेश्वर सन् 1398, ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी को ब्रह्म मुहूर्त में अपने निज धाम सतलोक से चलकर आए और काशी के लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर शिशु रूप धारण करके विराजमान हुए। जहाँ से नीरू-नीमा उठा कर ले गये और पुत्रवत पालन किया।
कबीर, ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
कबीर साहेब ही एक ऐसे सच्चे भगवान हैं जिन्होंने ऐसी लीला की जिसका प्रमाण हमारे वेदों में भी मिलता है।
आज तक जितने भी अवतार हुए हैं सभी ने मां के गर्भ में जन्म लिया है श्रीराम जी, श्रीकृष्ण जी, परशुरामजी आदि और वे सब मृत्यु को भी प्राप्त हुए।
जबकि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी चारों युगों में आते हैं और सशरीर ही आते हैं और सशरीर ही जाते हैं जैसा एक कलियुग का वर्णन आपने ऊपर पढ़ा।
वो परमात्मा सन् 1398 से सन् 1518 तक 120 वर्ष तक इस धरातल पर अपनी लीला करके गये।
ऋग्वेद मण्डल नं 9 सुक्त 94 मंत्र 1 में कहा है कि वह कबीर परमेश्वर कवियों की तरह आचरण करता हुआ इधर-उधर जाता है यानि घूम-फिरकर कविताओं, लोकोक्तियों द्वारा तत्वज्ञान बताता फिरता है।
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🧿 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🧿
प्रसिद्ध कवि एवं जुलाहे की भूमिका करने वाले महान सन्त के रूप में विख्यात कबीर साहेब जी ही पूर्ण परमेश्वर हैं। जिनका जन्म मां के गर्भ से नहीं होता। इसका वेदों में भी प्रमाण है कि पूर्ण परमेश्वर ऊपर से गति करके स्वयं प्रकट होता है एवं नि:संतान दंपत्ति को मिलता है। वह पृथ्वीलोक में वाणियों, कविताओं के माध्यम से तत्वज्ञान सुनाता है व कवि की उपाधि धारण करता है।
कलयुग में पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब अपने वास्तविक नाम कबीर देव अर्थात कबीर साहिब नाम से प्रकट होते हैं। विक्रम संवत 1455 (सन 1398) जेष्ठ मास की पूर्णिमा सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त में काशी के अंदर लहरतारा नामक तलाब पर कमल के फूल पर नीरू और नीमा नामक एक दंपति जो जुलाहे का काम करते थे, उन्हें मिले थे। परमेश्वर कबीर साहेब 120 वर्ष तक इस पृथ्वीलोक में रहे और अनेकों चमत्कार व तत्वज्ञान का प्रचार किया।
सूखी पड़ी आमी नदी में जल बहाना
मगहर के पास एक आमी नदी बहती थी, जो शिवजी के श्राप से सूख पड़ी थी। आमी नदी को देखकर कबीर साहेब ने हाथ से आगे बढ़ने की ओर इशारा किया उतने में ही नदी जल से प्रवाहित हो गई और बहने लगी। वह नदी आज भी बह रही है।
वही पाखण्डी धर्मगुरुओं ने अफवाह फैला रखी थी कि जो काशी में मरेगा वह स्वर्ग जायेगा तथा जो मगहर में मरेगा वह गधा बनेगा।
परमेश्वर कबीर जी कहते थे कि जैसी काशी है वैसा ही मगहर है, केवल हृदय में सच्चा राम होना चाहिए, यदि आप सतभक्ति करते हो तो आप कही भी प्राण त्यागो, मोक्ष के अधिकारी हो।
505 वर्ष पूर्व सन् 1518 वि. स. 1575 महीना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी को कबीर साहेब जी सशरीर सतलोक गये थे तब हिंदू तथा मुस्लिम आपस में कबीर साहिब के शरीर के अंतिम संस्कार को लेकर लड़ाई करने की तैयारी में थे, तभी कबीर परमेश्वर जी ने आकाशवाणी की कोई झगड़ा न करे। जो भी चादर के नीचे मिले उसे आधा-आधा बांट ले, कबीर परमेश्वर के शरीर के स्थान पर सुगंधित फूलों के अलावा कुछ न मिला क्योंकि कबीर परमेश्वर सशरीर सत्यलोक चले गए थे।
तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छांडी पदहि समाये |
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं ||
हिंदू व मुसलमानों ने बिना झगड़ा किये दोनों धर्मों ने आधे-आधे फूल बांटे एवं उस पर एक यादगार बना दी। आज भी मगहर में यह यादगार विद्यमान है। आज भी मगहर में कबीर परमेश्वर के आशीर्वाद से हिन्दू व मुस्लिम भाईचारे के साथ रहते हैं व धर्म के नाम पर आपस में कोई झगड़ा नहीं करते हैं।
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी सशरीर आये तथा अनेक लीलाएं करके पुनः सशरीर सतलोक गए क्योंकि पूर्ण परमात्मा कभी भी न जन्म लेता है और न उसकी मृत्यु होती है।
#कबीरपरमेश्वर_निर्वाणदिवस 1 फरवरी 2023
#मगहर_लीला
#SantRampalJiMaharaj
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🎍 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🎍
कौन है पूर्ण परमात्मा/अविनाशी भगवान जो कभी माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते, ना ही मृत्यु को प्राप्त होते, सशरीर आते हैं, सशरीर जाते हैं?
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब प्रत्येक युग मे आते हैं, माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं, सशरीर आते हैं, सशरीर जाते हैं। सतलोक से आते हैं शिशु रूप में प्रकट होते हैं। सभी धर्मों में फैली कुरीतियों को दूर कर सद्भक्ति बताकर जाति, धर्म का का भेद मिटाकर मानव धर्म की स्थापना करते हैं।
505 वर्ष पहले कबीर साहिब सतलोक जा रहे थे तब हिन्दू-मुस्लिम उनके शरीर को लेकर लड़ने को तैयार हो रहे थे, तब कबीर जी ने समझाया मेरा शरीर नहीं मिलेगा, जो मिलेगा उसको आधा आधा बांट लेना।
उनके शरीर के स्थान पर सुगन्धित पुष्प मिले।
आज भी मगहर में इसका प्रमाण है। वहाँ एक ही स्थान पर हिन्दू मुस्लिमों ने मजार बना रखी है।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) को काशी के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर प्रकट हुए तथा माघ मास की शुक्ल एकादशी वि.सं.1575 सन् 1518 को मगहर से सशरीर सतलोक गये।
कबीर साहेब के अतिरिक्त जितने भी देव/साहब/भगवान है सभी जन्म मृत्यु में हैं। अर्थात अविनाशी नहीं हैं।
कबीर साहेब की वाणी है:-
राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाहि संसार।
जिन साहब संसार किया, सो किनहु ना जनम्या नार।।
अर्थात सभी अवतार, तीनों प्रधान देव (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी ) तथा इनके पिता ब्रह्म (काल) भी जन्म मृत्यु में हैं।
जबकि पूर्ण परमात्मा कविर्देव/ कबीर साहेब अविनाशी, जन्म-मृत्यु से परे हैं, सर्व सृष्टि रचनहार हैं, कुल के मालिक हैं।
कबीर साहेब की वाणी:-
ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहां जुलाहे कूं पाया।।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब 505 वर्ष पहले काशी में लहरतारा तालाब में सन 1398 में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे वहां से नि:संतान दंपति नीरू नीमा उनको ले गए थे। 120 वर्ष तक लीला की, अपनी प्यारी आत्माओं को तत्वज्ञान बताया। सामाजिक कुरूतियों तथा पाखण्डवाद का विरोध किया। जातिवाद तथा साम्प्रदायिकता को मिटाकर सबको मानवता के सूत्र में पिरोया।
1518 में सशरीर अपने निज धाम सतलोक गये। जाते समय हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच होने वाले भयंकर गृहयुद्ध को टाल दिया।
कबीर परमेश्वर ने कहा था कि जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जायेगा तब मैं पुनः पृथ्वी पर आऊँगा। सब धर्म / पंथों को मिटाकर एक कर दूँगा।
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🥏 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🥏
प्रसिद्ध कवि एवं जुलाहे की भूमिका करने वाले महान सन्त के रूप में विख्यात कबीर साहिब ही पूर्ण परमेश्वर हैं। जिनका जन्म मां के गर्भ से नहीं होता। इसका वेदों में भी प्रमाण है कि पूर्ण परमेश्वर ऊपर से गति करके स्वयं प्रकट होता है। वह पृथ्वीलोक में वाणियों, कविताओं के माध्यम से तत्वज्ञान सुनाता है व कवि की उपाधि धारण करता है।
कलयुग में पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब अपने वास्तविक नाम कबीर देव अर्थात कबीर साहिब नाम से प्रकट होते हैं। विक्रम संवत 1455 (सन 1398) जेष्ठ मास की पूर्णिमा सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त में काशी के अंदर लहरतारा नामक तालाब पर कमल के फूल पर नीरू और नीमा नामक एक दंपत्ति जो जुलाहे का काम करते थे, उन्हें मिले थे। परमेश्वर कबीर साहेब 120 वर्ष तक इस पृथ्वीलोक में रहे और अनेकों चमत्कार किए व तत्वज्ञान का प्रचार किया।
पाखण्डी धर्मगुरुओं ने अफवाह फैला रखी थी कि जो काशी में मरेगा वह स्वर्ग जायेगा तथा जो मगहर में मरेगा वह गधा बनेगा।
परमेश्वर कबीर जी कहते थे कि जैसी काशी है वैसा ही मगहर है, केवल हृदय में सच्चा राम होना चाहिए, यदि आप सतभक्ति करते हो तो आप कही भी प्राण त्यागो, मोक्ष के अधिकारी हो।
505 वर्ष पूर्व सन् 1518 वि. स. 1575 महीना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी को कबीर साहिब सशरीर सतलोक गये थे तब हिंदू तथा मुस्लिम आपस में कबीर साहिब के शरीर के अंतिम संस्कार को लेकर लड़ाई करने की तैयारी में थे, तभी कबीर परमेश्वर ने आकाशवाणी की कोई झगड़ा न करे। जो भी चादर के नीचे मिले उसे आधा-आधा बांट ले, कबीर परमेश्वर के शरीर के स्थान पर सुगंधित फूलों के अलावा कुछ न मिला क्योंकि कबीर परमेश्वर सशरीर सत्यलोक चले गए थे।
तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छांडी पदहि समाये |
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं ||
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सृष्टि की रचना कैसे हुई?
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