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#भारतीयअंतरिक्षअनुसंधानसंगठन
allgyan · 3 years
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नंबी नारायणन: राकेट्री फिल्म का ट्रेलर लांच -
नंबी नारायणन -दी नंबी इफ़ेक्ट -
राकेट्री फिल्म का ट्रेलर लांच हुआ। लोग इस फिल्म की बहुत प्रशंसा कर रहे है। अर माधवन इसमें बहुत ही अच्छी एक्टिंग करते दिखाई दे रहे है। लेकिन हो सकता है कुछ लोगों इस फिल्म के टेलर भर देखने से ही फिल्म का स्क्रिप्ट का पता नहीं लग पा रहा है और वो ये भी नहीं जान पा रहे है की ये फिल्म किस पर आधारित है। इसलिए हमारी कोशिश ये है की आप को फिल्म के स्क्रिप्ट और कहानी किस पे आधारित है इसके बारे में बताया जाये। इस फिल्म के टेलर में इतना तो पता लग ही है की इसमें देशभक्त और देशद्रोह के बारे में बात की गयी है। और ये फिल्म विज्ञानं पर आधारित फिल्म है। सबसे पहली फिल्म की बात इस फिल्म को आर माधवन ने ही लिखा और डायरेक्ट भी किया है। वर्घी  मूलन पिक्चर्स के साथ  आर माधवन ने इस फिल्म को प्रोडूस भी किया है।फिल्म का टेलर देखकर यही लग रहा है की फिल्म बहुत अच्छी बनी पड़ी है।
नंबी नारायणन पर आधारित फिल्म -
आये जानते है नंबी नारायणन के बारे में विस्तार से आखिर वो कौन है कहा से बिलोंग करते है। नंबी नारायणन एक भारतीय वैज्ञानिक और एयरोस्पेस इंजीनियर है 12 दिसंबर 1941 केरला के त्रिवंदपुरम में पैदा हुए थे। नांबी नारायणन एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे थे अपनी पांच बहनों के बाद जन्मे नारायणन माता-पिता की छठी संतान थे।उनके पिता नारियल के कारोबारी थे और मां घर पर रहकर बच्चों की देखभाल करती थीं।नारायणन मेधावी छात्र थे और अपनी कक्षा अव्वल आते थे।इसरो जाने से पहले उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज से डिग्री ली और कुछ समय तक चीनी की फ़ैक्टरी में काम किया वो बताते हैं, "एयरक्राफ़्ट मुझे हमेशा आकर्षित करते थे "।
नारायणन ने पहली बार 1966 में थिम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन थुम्बा,तिरुवनंतपुरम में इसरो के अध्यक्ष विक्रम साराभाई से मुलाकात की, जबकि उन्होंने वहां एक पेलोड इंटीग्रेटर के रूप में काम करने का मौका मिला।उस समय स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर (एसएसटीसी) के चेयरमैन, साराभाई ने केवल उच्च योग्य पेशेवरों की भर्ती की।पीछा करते हुए, नारायणन ने अपनी एमटेक डिग्री के लिए तिरुवनंतपुरम में इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया।इसे सीखने पर,साराभाई ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए छोड़ दिया अगर उन्होंने इसे किसी भी आइवी लीग विश्वविद्यालयों में बनाया।इसके बाद, नारायणन ने नासा फैलोशिप अर्जित की और 1969 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय में प्रवेश किया।उन्होंने दस महीने के रिकॉर्ड में प्रोफेसर लुइगी क्रोको के तहत रासायनिक रॉकेट प्रणोदन में अपने मास्टर कार्यक्रम को पूरा किया। अमेरिका में नौकरी की पेशकश के बावजूद,नारायणन तरल प्रणोदन में विशेषज्ञता के साथ भारत लौट आए,जब भारतीय रॉकेट अभी भी ठोस प्रणोदकों पर निर्भर था।
नारायणन याद करते हैं, "जब मैंने इसरो में काम करना शुरू किया तब यह अपने शुरुआती दौर में था।सच कहें तो किसी तरह का रॉकेट सिस्टम विकसित करने की हमारी कोई योजना थी ही नहीं।अपने एयरक्राफ़्ट उड़ाने के लिए हम अमरीका और फ़्रांस के रॉकेट इस्तेमाल करने की योजना बना रहे थे ''
हालांकि ये प्लान बाद में बदल गया और नारायणन भारत के स्वदेशी रॉकेट बनाने के प्रोजेक्ट में अहम भूमिका निभाने लगे।साल 1994 तक उन्होंने एक वैज्ञानिक के तौर पर बड़ी मेहनत से काम किया तब तक,जब तक नवंबर 1994 में उनकी ज़िंदगी पूरी तरह उलट-पलट नहीं गई    
जासूसी स्कैंडल में फसा एक वैज्ञानिक -
नारायणन की गिरफ़्तारी से एक महीने पहले केरल पुलिस ने मालदीव की एक महिला मरियम राशीदा को अपने वीज़ा में निर्धारित वक़्त से ज़्यादा समय तक भारत में रहने के आरोप में गिरफ़्तार किया था राशीदा की गिरफ़्तारी के कुछ महीनों बाद पुलिस ने मालदीव की एक बैंक कर्मचारी फ़ौज़िया हसन को गिरफ़्तार किया।इसके बाद एक बड़ा स्कैंडल सामने आया।पुलिस की जानकारी के आधार के अनुसार मालदीव की ये महिलाएं भारतीय रॉकेट से जुड़ी 'गुप्त जानकारियां' चुराकर पाकिस्तान को बेच रही हैं और इसमें इसरो के वैज्ञानिकों की मिलीभगत भी है। अगले कुछ महीनों में नारायण की प्रतिष्ठा और इज़्ज़त जैसे टुकड़ों में बिखर गई. उन पर भारत के सरकारी गोपनीय क़ानून (ऑफ़िशियल सीक्रेट लॉ) के उल्लंघन और भ्रष्टाचार समेत अन्य कई मामले दर्ज किए गए।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन ने कहा है कि उन्हें जासूसी के झूठे मामले में फंसाने वाले षड्यंत्रकारी अलग-अलग उद्देश्यों वाले अलग-अलग लोग थे,लेकिन पीड़ित एक ही तरह के लोग थे सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के जासूसी मामले में मानसिक यातना को लेकर नारायणन को 50 लाख रुपये का मुआवजा दिए जाने का निर्देश दिया था।शीर्ष अदालत ने मनगढ़ंत मामला बनाने और नारायणन की गिरफ्तारी तथा उन्हें भयानक प्रताड़ना और अत्यंत दुख पहुंचाए जाने को लेकर केरल पुलिस की भूमिका की जांच के लिए उच्चस्तरीय जांच का भी आदेश दिया था।
एक वैज्ञानिक पर यातना -
जांचकर्ता उन्हें पीटते थे और पीटने के बाद एक बिस्तर से बांध दिया करते थे। वो उन्हें 30 घंटे तक खड़े रहकर सवालों के जवाब देने पर मजबूर किया करते थे. उन्हें लाइ-डिटेक्टर टेस्ट लेने पर मजबूर किया जाता था। नारायणन को कड़ी सुरक्षा वाली जेल में रखा गया था। नारायणन ने पुलिस को बताया था कि रॉकेट की ख़ुफ़िया जानकारी 'काग़ज के ज़रिए ट्रांसफ़र नहीं की जा सकती' और उन्हें साफ़ तौर पर फंसाया जा रहा है उस समय भारत शक्तिशाली रॉकेट इंजन बनाने के लिए क्राइजेनिक टेक्नॉलजी को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहा था और इसलिए जांचकर्ताओं ने नारायणन की बातों पर भरोसा नहीं किया।इस मामले में नारायणन को 50 दिन गिरफ़्तारी में गुजारने पड़े थे. वो एक महीने जेल में ��ी रहे जब भी उन्हें अदालत में सुनवाई के लिए ले जाया जाता,भीड़ चिल्ला-चिल्लाकरक उन्हें 'गद्दार' और 'जासूस' बुलाती थी।
क्लीन चिट और पद्म भूषण पुरस्कार मिलना -
साल 1996 में सीबीआई ने अपनी 104 पन्नों की रिपोर्ट जारी की और सभी अभियुक्तों को क्लीन चिट दे दी। सीबीआई ने कहा कि न तो इसरो से गोपनीय क़ागज चुराने के सबूत हैं और न ही पैसों के लेनदेन के इसरो की एक आंतरिक जांच में भी पता चला कि क्राइजेनिक इंजन से जुड़ा कोई काग़ज ग़ायब नहीं था।इसके बाद नांबी नारायणन ने एक बार फिर इसरो में काम करना शुरू किया हालांकि अब वो बेंगलुरु में एक प्रशासनिक भूमिका निभा रहे थे हालांकि इन सबके बाद भी उनकी परेशानियों का अंत नहीं हु।सीबीआई के मामला बंद किए जाने के बावजूद, राज्य सरकार ने इसे दोबारा शुरू करने की कोशिश की और सुप्रीम कोर्ट गई।लेकिन साल 1998 में इसे पूरी तरह ख़ारिज कर दिया गया।
इन सबके बाद नारायणन ने उन्हें ग़लत तरीके से फंसाने के लिए केरल सरकार पर मुक़दमा कर दिया।  मुआवज़े के तौर पर उन्हें 50 लाख रुपए दिए गए।अभी पिछले महीने केरल सरकार ने कहा कि वो ग़ैरक़ानूनी गिरफ़्तारी और उत्पीड़न के मुआवज़े के तौर पर उन्हें एक करोड़ 30 लाख रुपए और देगी ।साल 2019 में नांबी नारायणन को भारत सरकार के प्रतिष्ठित पद्म भूषण पुरस्कार से भी नवाजा गया। नारायणन का कहना है कि मामले के पीछे निहित स्वार्थ थे क्योंकि मामले के चलते भारत के क्रायोजनिक इंजन का विकास करने में कम से कम 15 साल की देरी हुई।  रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट नामक एक जीवनी फिल्म जिसका टेलर लॉंच हुआ है इस फिल्म में इन चीजें को दिखाया जायेगा।
पूरा जानने के लिए-https://bit.ly/2PTaLYp
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chaitanyabharatnews · 4 years
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अच्छी खबर: अगले साल की शुरुआत में भारत का चंद्रमा मिशन 'चंद्रयान-3' हो सकता है लॉन्च
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चैतन्य भारत न्यूज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। अब इसरो ने एक और उपलब्धि अपने नाम करने को तैयार है। इसरो साल 2021 की शुरुआत में चंद्रयान 3 की लांच कर सकता है। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने रविवार को यह जानकारी दी। हालांकि, चंद्रयान-2 के विपरित इसमें ‘ऑर्बिटर’ नहीं होगा लेकिन इसमें एक ‘लैंडर’ और एक ‘रोवर’ होगा। बता दें पिछले साल सितंबर में चंद्रयान-2 की चंद्रमा की सतह पर ‘हार्ड लैंडिंग’ हुई थी जिसके बाद इसरो ने इस साल के अंतिम महीनों के लिलिए ये एक अन्य अभियान की योजना बनाई थी। हालांकि, कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन ने इसरो की कई परियोजनाओं को प्रभावित किया और चंद्रयान-3 जैसे अभियान में देर हुई। सिंह के हवाले जारी एक बयान में कहा गया है, जहां तक चंद्रयान-3 की बात है तो इसका प्रक्षेपण 2021 की शुरूआत में कभी भी होने की संभावना है। चंद्रयान-3, चंद्रयान-2 का ही पुन: अभियान होगा और इसमें चंद्रयान-2 की तरह ही एक लैंडर और एक रोवर होगा। चंद्रयान-2 को पिछले साल 22 जुलाई को प्रक्षेपित किया गया था। इसके चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की योजना थी। लेकिन लैंडर विक्रम ने सात सितंबर को हार्ड लैंडिंग की और अपने प्रथम प्रयास में ही पृथ्वी के उपग्रह की सतह को छूने का भारत का सपना टूट गया था। अभियान के तहत भेजा गया आर्बिटर अच्छा काम कर रहा है और जानकारी भेज रहा है। चंद्रयान-1 को 2008 में प्रक्षेपित किया गया था। जितेंद्र सिंह ने कहा कि इसरो के प्रथम चंद्र अभियान ने कुछ चित्र भेजे हैं जो प्रदर्शित करते हैं कि चंद्रमा के ध्रुवों पर जंग सा लगता दिख रहा है। बयान में कहा गया है कि नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रिेशन (नासा) के वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि पृथ्वी का अपना वातावरण इसमें सहायता कर रहा हो, दूसरे शब्दों में इसका अर्थ यह हुआ कि पृथ्वी का वातावरण चंद्रमा की भी रक्षा कर रहा हो। इस प्रकार, चंद्रयान-1 के डेटा से संकेत मिलता है कि चांद के ध्रुव पर पानी है, वैज्ञानिक इसी का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं। इस बीच, अंतरिक्ष में मानव को भेजने के भारत के प्रथम अभियान ‘गगनयान’ की तैयारियां जारी हैं। मंत्री ने कहा कि गगनयान की तैयारी में कोविड-19 से कुछ अड़चनें आई लेकिन 2022 के आसपास की समय सीमा को पूरा करने के लिये कोशिश जारी है। Read the full article
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allgyan · 3 years
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नंबी नारायणन -दी नंबी इफ़ेक्ट -
राकेट्री फिल्म का ट्रेलर लांच हुआ। लोग इस फिल्म की बहुत प्रशंसा कर रहे है। अर माधवन इसमें बहुत ही अच्छी एक्टिंग करते दिखाई दे रहे है। लेकिन हो सकता है कुछ लोगों इस फिल्म के टेलर भर देखने से ही फिल्म का स्क्रिप्ट का पता नहीं लग पा रहा है और वो ये भी नहीं जान पा रहे है की ये फिल्म किस पर आधारित है। इसलिए हमारी कोशिश ये है की आप को फिल्म के स्क्रिप्ट और कहानी किस पे आधारित है इसके बारे में बताया जाये। इस फिल्म के टेलर में इतना तो पता लग ही है की इसमें देशभक्त और देशद्रोह के बारे में बात की गयी है। और ये फिल्म विज्ञानं पर आधारित फिल्म है। सबसे पहली फिल्म की बात इस फिल्म को आर माधवन ने ही लिखा और डायरेक्ट भी किया है। वर्घी  मूलन पिक्चर्स के साथ  आर माधवन ने इस फिल्म को प्रोडूस भी किया है।फिल्म का टेलर देखकर यही लग रहा है की फिल्म बहुत अच्छी बनी पड़ी है।
नंबी नारायणन पर आधारित फिल्म -
आये जानते है नंबी नारायणन के बारे में विस्तार से आखिर वो कौन है कहा से बिलोंग करते है। नंबी नारायणन एक भारतीय वैज्ञानिक और एयरोस्पेस इंजीनियर है 12 दिसंबर 1941 केरला के त्रिवंदपुरम में पैदा हुए थे। नांबी नारायणन एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे थे अपनी पांच बहनों के बाद जन्मे नारायणन माता-पिता की छठी संतान थे।उनके पिता नारियल के कारोबारी थे और मां घर पर रहकर बच्चों की देखभाल करती थीं।नारायणन मेधावी छात्र थे और अपनी कक्षा अव्वल आते थे।इसरो जाने से पहले उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज से डिग्री ली और कुछ समय तक चीनी की फ़ैक्टरी में काम किया वो बताते हैं, "एयरक्राफ़्ट मुझे हमेशा आकर्षित करते थे "।
नारायणन ने पहली बार 1966 में थिम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन थुम्बा,तिरुवनंतपुरम में इसरो के अध्यक्ष विक्रम साराभाई से मुलाकात की, जबकि उन्होंने वहां एक पेलोड इंटीग्रेटर के रूप में काम करने का मौका मिला।उस समय स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर (एसएसटीसी) के चेयरमैन, साराभाई ने केवल उच्च योग्य पेशेवरों की भर्ती की।पीछा करते हुए, नारायणन ने अपनी एमटेक डिग्री के लिए तिरुवनंतपुरम में इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया।इसे सीखने पर,साराभाई ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए छोड़ दिया अगर उन्होंने इसे किसी भी आइवी लीग विश्वविद्यालयों में बनाया।इसके बाद, नारायणन ने नासा फैलोशिप अर्जित की और 1969 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय में प्रवेश किया।उन्होंने दस महीने के रिकॉर्ड में प्रोफेसर लुइगी क्रोको के तहत रासायनिक रॉकेट प्रणोदन में अपने मास्टर कार्यक्रम को पूरा किया। अमेरिका में नौकरी की पेशकश के बावजूद,नारायणन तरल प्रणोदन में विशेषज्ञता के साथ भारत लौट आए,जब भारतीय रॉकेट अभी भी ठोस प्रणोदकों पर निर्भर था।
नारायणन याद करते हैं, "जब मैंने इसरो में काम करना शुरू किया तब यह अपने शुरुआती दौर में था।सच कहें तो किसी तरह का रॉकेट सिस्टम विकसित करने की हमारी कोई योजना थी ही नहीं।अपने एयरक्राफ़्ट उड़ाने के लिए हम अमरीका और फ़्रांस के रॉकेट इस्तेमाल करने की योजना बना रहे थे ''
हालांकि ये प्लान बाद में बदल गया और नारायणन भारत के स्वदेशी रॉकेट बनाने के प्रोजेक्ट में अहम भूमिका निभाने लगे।साल 1994 तक उन्होंने एक वैज्ञानिक के तौर पर बड़ी मेहनत से काम किया तब तक,जब तक नवंबर 1994 में उनकी ज़िंदगी पूरी तरह उलट-पलट नहीं गई    
जासूसी स्कैंडल में फसा एक वैज्ञानिक -
नारायणन की गिरफ़्तारी से एक महीने पहले केरल पुलिस ने मालदीव की एक महिला मरियम राशीदा को अपने वीज़ा में निर्धारित वक़्त से ज़्यादा समय तक भारत में रहने के आरोप में गिरफ़्तार किया था राशीदा की गिरफ़्तारी के कुछ महीनों बाद पुलिस ने मालदीव की एक बैंक कर्मचारी फ़ौज़िया हसन को गिरफ़्तार किया।इसके बाद एक बड़ा स्कैंडल सामने आया।पुलिस की जानकारी के आधार के अनुसार मालदीव की ये महिलाएं भारतीय रॉकेट से जुड़ी 'गुप्त जानकारियां' चुराकर पाकिस्तान को बेच रही हैं और इसमें इसरो के वैज्ञानिकों की मिलीभगत भी है। अगले कुछ महीनों में नारायण की प्रतिष्ठा और इज़्ज़त जैसे टुकड़ों में बिखर गई. उन पर भारत के सरकारी गोपनीय क़ानून (ऑफ़िशियल सीक्रेट लॉ) के उल्लंघन और भ्रष्टाचार समेत अन्य कई मामले दर्ज किए गए।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन ने कहा है कि उन्हें जासूसी के झूठे मामले में फंसाने वाले षड्यंत्रकारी अलग-अलग उद्देश्यों वाले अलग-अलग लोग थे,लेकिन पीड़ित एक ही तरह के लोग थे सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के जासूसी मामले में मानसिक यातना को लेकर नारायणन को 50 लाख रुपये का मुआवजा दिए जाने का निर्देश दिया था।शीर्ष अदालत ने मनगढ़ंत मामला बनाने और नारायणन की गिरफ्तारी तथा उन्हें भयानक प्रताड़ना और अत्यंत दुख पहुंचाए जाने को लेकर केरल पुलिस की भूमिका की जांच के लिए उच्चस्तरीय जांच का भी आदेश दिया था।
एक वैज्ञानिक पर यातना -
जांचकर्ता उन्हें पीटते थे और पीटने के बाद एक बिस्तर से बांध दिया करते थे। वो उन्हें 30 घंटे तक खड़े रहकर सवालों के जवाब देने पर मजबूर किया करते थे. उन्हें लाइ-डिटेक्टर टेस्ट लेने पर मजबूर किया जाता था। नारायणन को कड़ी सुरक्षा वाली जेल में रखा गया था। नारायणन ने पुलिस को बताया था कि रॉकेट की ख़ुफ़िया जानकारी 'काग़ज के ज़रिए ट्रांसफ़र नहीं की जा सकती' और उन्हें साफ़ तौर पर फंसाया जा रहा है उस समय भारत शक्तिशाली रॉकेट इंजन बनाने के लिए क्राइजेनिक टेक्नॉलजी को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहा था और इसलिए जांचकर्ताओं ने नारायणन की बातों पर भरोसा नहीं किया।इस मामले में नारायणन को 50 दिन गिरफ़्तारी में गुजारने पड़े थे. वो एक महीने जेल में भी रहे जब भी उन्हें अदालत में सुनवाई के लिए ले जाया जाता,भीड़ चिल्ला-चिल्लाकरक उन्हें 'गद्दार' और 'जासूस' बुलाती थी।
क्लीन चिट और पद्म भूषण पुरस्कार मिलना -
साल 1996 में सीबीआई ने अपनी 104 पन्नों की रिपोर्ट जारी की और सभी अभियुक्तों को क्लीन चिट दे दी। सीबीआई ने कहा कि न तो इसरो से गोपनीय क़ागज चुराने के सबूत हैं और न ही पैसों के लेनदेन के इसरो की एक आंतरिक जांच में भी पता चला कि क्राइजेनिक इंजन से जुड़ा कोई काग़ज ग़ायब नहीं था।इसके बाद नांबी नारायणन ने एक बार फिर इसरो में काम करना शुरू किया हालांकि अब वो बेंगलुरु में एक प्रशासनिक भूमिका निभा रहे थे हालांकि इन सबके बाद भी उनकी परेशानियों का अंत नहीं हु।सीबीआई के मामला बंद किए जाने के बावजूद, राज्य सरकार ने इसे दोबारा शुरू करने की कोशिश की और सुप्रीम कोर्ट गई।लेकिन साल 1998 में इसे पूरी तरह ख़ारिज कर दिया गया।
इन सबके बाद नारायणन ने उन्हें ग़लत तरीके से फंसाने के लिए केरल सरकार पर मुक़दमा कर दिया।  मुआवज़े के तौर पर उन्हें 50 लाख रुपए दिए गए।अभी पिछले महीने केरल सरकार ने कहा कि वो ग़ैरक़ानूनी गिरफ़्तारी और उत्पीड़न के मुआवज़े के तौर पर उन्हें एक करोड़ 30 लाख रुपए और देगी ।साल 2019 में नांबी नारायणन को भारत सरकार के प्रतिष्ठित पद्म भूषण पुरस्कार से भी नवाजा गया। नारायणन का कहना है कि मामले के पीछे निहित स्वार्थ थे क्योंकि मामले के चलते भारत के क्रायोजनिक इंजन का विकास करने में कम से कम 15 साल की देरी हुई।  रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट नामक एक जीवनी फिल्म जिसका टेलर लॉंच हुआ है इस फिल्म में इन चीजें को दिखाया जायेगा।
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allgyan · 3 years
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नंबी नारायणन -दी नंबी इफ़ेक्ट -
राकेट्री फिल्म का ट्रेलर लांच हुआ। लोग इस फिल्म की बहुत प्रशंसा कर रहे है। अर माधवन इसमें बहुत ही अच्छी एक्टिंग करते दिखाई दे रहे है। लेकिन हो सकता है कुछ लोगों इस फिल्म के टेलर भर देखने से ही फिल्म का स्क्रिप्ट का पता नहीं लग पा रहा है और वो ये भी नहीं जान पा रहे है की ये फिल्म किस पर आधारित है। इसलिए हमारी कोशिश ये है की आप को फिल्म के स्क्रिप्ट और कहानी किस पे आधारित है इसके बारे में बताया जाये। इस फिल्म के टेलर में इतना तो पता लग ही है की इसमें देशभक्त और देशद्रोह के बारे में बात की गयी है। और ये फिल्म विज्ञानं पर आधारित फिल्म है। सबसे पहली फिल्म की बात इस फिल्म को आर माधवन ने ही लिखा और डायरेक्ट भी किया है। वर्घी  मूलन पिक्चर्स के साथ  आर माधवन ने इस फिल्म को प्रोडूस भी किया है।फिल्म का टेलर देखकर यही लग रहा है की फिल्म बहुत अच्छी बनी पड़ी है।
नंबी नारायणन पर आधारित फिल्म -
आये जानते है नंबी नारायणन के बारे में विस्तार से आखिर वो कौन है कहा से बिलोंग करते है। नंबी नारायणन एक भारतीय वैज्ञानिक और एयरोस्पेस इंजीनियर है 12 दिसंबर 1941 केरला के त्रिवंदपुरम में पैदा हुए थे। नांबी नारायणन एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे थे अपनी पांच बहनों के बाद जन्मे नारायणन माता-पिता की छठी संतान थे।उनके पिता नारियल के कारोबारी थे और मां घर पर रहकर बच्चों की देखभाल करती थीं।नारायणन मेधावी छात्र थे और अपनी कक्षा अव्वल आते थे।इसरो जाने से पहले उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज से डिग्री ली और कुछ समय तक चीनी की फ़ैक्टरी में काम किया वो बताते हैं, "एयरक्राफ़्ट मुझे हमेशा आकर्षित करते थे "।
नारायणन ने पहली बार 1966 में थिम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन थुम्बा,तिरुवनंतपुरम में इसरो के अध्यक्ष विक्रम साराभाई से मुलाकात की, जबकि उन्होंने वहां एक पेलोड इंटीग्रेटर के रूप में काम करने का मौका मिला।उस समय स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर (एसएसटीसी) के चेयरमैन, साराभाई ने केवल उच्च योग्य पेशेवरों की भर्ती की।पीछा करते हुए, नारायणन ने अपनी एमटेक डिग्री के लिए तिरुवनंतपुरम में इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया।इसे सीखने पर,साराभाई ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए छोड़ दिया अगर उन्होंने इसे किसी भी आइवी लीग विश्वविद्यालयों में बनाया।इसके बाद, नारायणन ने नासा फैलोशिप अर्जित की और 1969 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय में प्रवेश किया।उन्होंने दस महीने के रिकॉर्ड में प्रोफेसर लुइगी क्रोको के तहत रासायनिक रॉकेट प्रणोदन में अपने मास्टर कार्यक्रम को पूरा किया। अमेरिका में नौकरी की पेशकश के बावजूद,नारायणन तरल प्रणोदन में विशेषज्ञता के साथ भारत लौट आए,जब भारतीय रॉकेट अभी भी ठोस प्रणोदकों पर निर्भर था।
नारायणन याद करते हैं, "जब मैंने इसरो में काम करना शुरू किया तब यह अपने शुरुआती दौर में था।सच कहें तो किसी तरह का रॉकेट सिस्टम विकसित करने की हमारी कोई योजना थी ही नहीं।अपने एयरक्राफ़्ट उड़ाने के लिए हम अमरीका और फ़्रांस के रॉकेट इस्तेमाल करने की योजना बना रहे थे ''
हालांकि ये प्लान बाद में बदल गया और नारायणन भारत के स्वदेशी रॉकेट बनाने के प्रोजेक्ट में अहम भूमिका निभाने लगे।साल 1994 तक उन्होंने एक वैज्ञानिक के तौर पर बड़ी मेहनत से काम किया तब तक,जब तक नवंबर 1994 में उनकी ज़िंदगी पूरी तरह उलट-पलट नहीं गई    
जासूसी स्कैंडल में फसा एक वैज्ञानिक -
नारायणन की गिरफ़्तारी से एक महीने पहले केरल पुलिस ने मालदीव की एक महिला मरियम राशीदा को अपने वीज़ा में निर्धारित वक़्त से ज़्यादा समय तक भारत में रहने के आरोप में गिरफ़्तार किया था राशीदा की गिरफ़्तारी के कुछ महीनों बाद पुलिस ने मालदीव की एक बैंक कर्मचारी फ़ौज़िया हसन को गिरफ़्तार किया।इसके बाद एक बड़ा स्कैंडल सामने आया।पुलिस की जानकारी के आधार के अनुसार मालदीव की ये महिलाएं भारतीय रॉकेट से जुड़ी 'गुप्त जानकारियां' चुराकर पाकिस्तान को बेच रही हैं और इसमें इसरो के वैज्ञानिकों की मिलीभगत भी है। अगले कुछ महीनों में नारायण की प्रतिष्ठा और इज़्ज़त जैसे टुकड़ों में बिखर गई. उन पर भारत के सरकारी गोपनीय क़ानून (ऑफ़िशियल सीक्रेट लॉ) के उल्लंघन और भ्रष्टाचार समेत अन्य कई मामले दर्ज किए गए।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन ने कहा है कि उन्हें जासूसी के झूठे मामले में फंसाने वाले षड्यंत्रकारी अलग-अलग उद्देश्यों वाले अलग-अलग लोग थे,लेकिन पीड़ित एक ही तरह के लोग थे सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के जासूसी मामले में मानसिक यातना को लेकर नारायणन को 50 लाख रुपये का मुआवजा दिए जाने का निर्देश दिया था।शीर्ष अदालत ने मनगढ़ंत मामला बनाने और नारायणन की गिरफ्तारी तथा उन्हें भयानक प्रताड़ना और अत्यंत दुख पहुंचाए जाने को लेकर केरल पुलिस की भूमिका की जांच के लिए उच्चस्तरीय जांच का भी आदेश दिया था।
एक वैज्ञानिक पर यातना -
जांचकर्ता उन्हें पीटते थे और पीटने के बाद एक बिस्तर से बांध दिया करते थे। वो उन्हें 30 घंटे तक खड़े रहकर सवालों के जवाब देने पर मजबूर किया करते थे. उन्हें लाइ-डिटेक्टर टेस्ट लेने पर मजबूर किया जाता था। नारायणन को कड़ी सुरक्षा वाली जेल में रखा गया था। नारायणन ने पुलिस को बताया था कि रॉकेट की ख़ुफ़िया जानकारी 'काग़ज के ज़रिए ट्रांसफ़र नहीं की जा सकती' और उन्हें साफ़ तौर पर फंसाया जा रहा है उस समय भारत शक्तिशाली रॉकेट इंजन बनाने के लिए क्राइजेनिक टेक्नॉलजी को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहा था और इसलिए जांचकर्ताओं ने नारायणन की बातों पर भरोसा नहीं किया।इस मामले में नारायणन को 50 दिन गिरफ़्तारी में गुजारने पड़े थे. वो एक महीने जेल में भी रहे जब भी उन्हें अदालत में सुनवाई के लिए ले जाया जाता,भीड़ चिल्ला-चिल्लाकरक उन्हें 'गद्दार' और 'जासूस' बुलाती थी।
क्लीन चिट और पद्म भूषण पुरस्कार मिलना -
साल 1996 में सीबीआई ने अपनी 104 पन्नों की रिपोर्ट जारी की और सभी अभियुक्तों को क्लीन चिट दे दी। सीबीआई ने कहा कि न तो इसरो से गोपनीय क़ागज चुराने के सबूत हैं और न ही पैसों के लेनदेन के इसरो की एक आंतरिक जांच में भी पता चला कि क्राइजेनिक इंजन से जुड़ा कोई काग़ज ग़ायब नहीं था।इसके बाद नांबी नारायणन ने एक बार फिर इसरो में काम करना शुरू किया हालांकि अब वो बेंगलुरु में एक प्रशासनिक भूमिका निभा रहे थे हालांकि इन सबके बाद भी उनकी परेशानियों का अंत नहीं हु।सीबीआई के मामला बंद किए जाने के बावजूद, राज्य सरकार ने इसे दोबारा शुरू करने की कोशिश की और सुप्रीम कोर्ट गई।लेकिन साल 1998 में इसे पूरी तरह ख़ारिज कर दिया गया।
इन सबके बाद नारायणन ने उन्हें ग़लत तरीके से फंसाने के लिए केरल सरकार पर मुक़दमा कर दिया।  मुआवज़े के तौर पर उन्हें 50 लाख रुपए दिए गए।अभी पिछले महीने केरल सरकार ने कहा कि वो ग़ैरक़ानूनी गिरफ़्तारी और उत्पीड़न के मुआवज़े के तौर पर उन्हें एक करोड़ 30 लाख रुपए और देगी ।साल 2019 में नांबी नारायणन को भारत सरकार के प्रतिष्ठित पद्म भूषण पुरस्कार से भी नवाजा गया। नारायणन का कहना है कि मामले के पीछे निहित स्वार्थ थे क्योंकि मामले के चलते भारत के क्रायोजनिक इंजन का विकास करने में कम से कम 15 साल की देरी हुई।  रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट नामक एक जीवनी फिल्म जिसका टेलर लॉंच हुआ है इस फिल्म में इन चीजें को दिखाया जायेगा।
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chaitanyabharatnews · 4 years
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अच्छी खबर: अगले साल की शुरुआत में भारत का चंद्रमा मिशन 'चंद्रयान-3' हो सकता है लॉन्च
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चैतन्य भारत न्यूज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। अब इसरो ने एक और उपलब्धि अपने नाम करने को तैयार है। इसरो साल 2021 की शुरुआत में चंद्रयान 3 की लांच कर सकता है। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने रविवार को यह जानकारी दी। हालांकि, चंद्रयान-2 के विपरित इसमें ‘ऑर्बिटर’ नहीं होगा लेकिन इसमें एक ‘लैंडर’ और एक ‘रोवर’ होगा। बता दें पिछले साल सितंबर में चंद्रयान-2 की चंद्रमा की सतह पर ‘हार्ड लैंडिंग’ हुई थी जिसके बाद इसरो ने इस साल के अंतिम महीनों के लिलिए ये एक अन्य अभियान की योजना बनाई थी। हालांकि, कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन ने इसरो की कई परियोजनाओं को प्रभावित किया और चंद्रयान-3 जैसे अभियान में देर हुई। सिंह के हवाले जारी एक बयान में कहा गया है, जहां तक चंद्रयान-3 की बात है तो इसका प्रक्षेपण 2021 की शुरूआत में कभी भी होने की संभावना है। चंद्रयान-3, चंद्रयान-2 का ही पुन: अभियान होगा और इसमें चंद्रयान-2 की तरह ही एक लैंडर और एक रोवर होगा। चंद्रयान-2 को पिछले साल 22 जुलाई को प्रक्षेपित किया गया था। इसके चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की योजना थी। लेकिन लैंडर विक्रम ने सात सितंबर को हार्ड लैंडिंग की और अपने प्रथम प्रयास में ही पृथ्वी के उपग्रह की सतह को छूने का भारत का सपना टूट गया था। अभियान के तहत भेजा गया आर्बिटर अच्छा काम कर रहा है और जानकारी भेज रहा है। चंद्रयान-1 को 2008 में प्रक्षेपित किया गया था। जितेंद्र सिंह ने कहा कि इसरो के प्रथम चंद्र अभियान ने कुछ चित्र भेजे हैं जो प्रदर्शित करते हैं कि चंद्रमा के ध्रुवों पर जंग सा लगता दिख रहा है। बयान में कहा गया है कि नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रिेशन (नासा) के वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि पृथ्वी का अपना वातावरण इसमें सहायता कर रहा हो, दूसरे शब्दों में इसका अर्थ यह हुआ कि पृथ्वी का वातावरण चंद्रमा की भी रक्षा कर रहा हो। इस प्रकार, चंद्रयान-1 के डेटा से संकेत मिलता है कि चांद के ध्रुव पर पानी है, वैज्ञानिक इसी का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं। इस बीच, अंतरिक्ष में मानव को भेजने के भारत के प्रथम अभियान ‘गगनयान’ की तैयारियां जारी हैं। मंत्री ने कहा कि गगनयान की तैयारी में कोविड-19 से कुछ अड़चनें आई लेकिन 2022 के आसपास की समय सीमा को पूरा करने के लिये कोशिश जारी है। Read the full article
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chaitanyabharatnews · 4 years
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‘गगनयान’ मिशन में उड़ान भरेगी यह महिला रोबोट, इंसानों जैसा करेगी बर्ताव
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चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) ने बुधवार को मानवरहित अंतरिक्ष मिशन गगनयान में भेजी जाने वाली ह्यूमनॉइड व्योममित्रा का वीडियो जारी किया। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); इसरो के वैज्ञानिक सैम दयाल ने बताया कि, 'यह एक हाफ ह्यूमेनॉयड रोबोट है। इसका नाम है व्योममित्र। इस ह्यूमेनॉयड रोबोट में मानव शरीर से संबंधित कुछ मशीनें लगी हैं जो अंतरिक्ष में मानव शरीर संरचना पर होने वाले बदलावों का अध्ययन करेगी। साल 1984 में राकेश शर्मा रूस के अंतरिक्ष यान में बैठकर अंतरिक्ष गए थे। इस बार भारतीय एस्ट्रोनॉट्स भारत के अंतरिक्ष यान में बैठ कर स्पेस में जाएंगे।' इसरो चीफ डॉक्टर के. सिवन ने बताया कि गगनयान मिशन के लिए जनवरी के अंत में ही 4 चुने हुए एस्ट्रोनॉट्स ट्रेनिंग के लिए रूस भेजे जाएंगे। हमारे गगननॉट्स की ट्रेनिंग रूस में 11 महीने चलेगी। इसके बाद वे भारत में आकर क्रू मॉड्यूल की ट्रेनिंग लेंगे। ये ट्रेनिंग बेंगलुरु के पास चलकेरा में होने की संभावना है। First glimpse of 'व्योममित्र', the half humanoid prepaired by @isro for #Gaganyaan mission unveiled... Proud moment for us... pic.twitter.com/BmUT6J6pDr — Maheish Girri (@MaheishGirri) January 22, 2020 के. सिवन का कहना है कि, 'गगनयान मिशन सिर्फ इंसान को अंतरिक्ष में भेजने का मिशन नहीं है। यह मिशन हमें आगे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग जुटाने में मदद करेगा। हम जानते हैं कि वैज्ञानिक खोज, आर्थिक विकास, शिक्षा, तकनीकी विकास और युवाओं को प्रेरणा देना सभी देशों का लक्ष्य है। किसी भारतीय द्वारा अंतरिक्ष की यात्रा इन सभी प्रेरणाओं के लिए सबसे बेहतरीन प्लेटफॉर्म है।' उन्होंने कहा कि, 'हम तीन चरणों में यह सब कर रहे हैं। दिसंबर 2020 और जून 2021 में दो मानवरहित मिशन और उसके बाद दिसंबर 2021 में मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजेंगे।'' ये भी पढ़े... चंद्रयान-3 को मिली हरी झंडी, इसरो प्रमुख ने बताया कब होगा लॉन्च? इसरो ने चांद पर खोज निकाला विक्रम लैंडर, ऑर्बिटर ने भेजी पहली तस्वीर इसरो ने लॉन्च की डिफेंस सैटेलाइट RISAT-2BR1, अंतरिक्ष में बनेगी भारत की खुफिया आंख, चप्‍पे-चप्‍पे पर रखेगी नजर Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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घर में मृत पाए गए ISRO के साइंटिस्ट, हत्या की आशंका
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चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो ISRO) के वैज्ञानिक एस आर सुरेश कुमार अपने निवास स्थान पर मृत पाए गए है। वह अंतरिक्ष एजेंसी के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर में काम करते थे।   Hyderabad Police: SR Suresh Kumar, who was working as a scientist at National Remote Sensing Centre (NRSC) of ISRO, found dead at his residence in Ameerpet. Body shifted to Osmania hospital for post mortem. Investigation is underway pic.twitter.com/EZFvSHM8JR — ANI (@ANI) October 2, 2019 उनके शव को पोस्टमार्टम के लिए ओसमानिया अस्पताल भेजा गया है। पुलिस इस मामले में आगे की जांच में जुटी हुई है। Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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चांद को छूने के लिए चंद्रयान-2 हुआ लॉन्च, देशभर में मनाई जा रही खुशियां
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चैतन्य भारत न्यूज अंतरिक्ष की दुनिया में हिंदुस्तान आज एक बार फिर इतिहास रचने जा रहा है। 22 जुलाई को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने सबसे बड़े मिशनों में से एक चंद्रयान-2 को लॉन्च कर दिया है। दोपहर 2:43 बजे चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल-मार्क-3 (जीएसएलवी-एमके3) के जरिए की गई है। #Chandrayaan2 lifts off from Sriharikota centre #ISRO pic.twitter.com/fKpVE0a30o — ANI (@ANI) July 22, 2019 #WATCH live from Sriharikota: ISRO launches #Chandrayaan2(Courtesy: ISRO) https://t.co/AiDD9xhQZQ — ANI (@ANI) July 22, 2019 #WATCH live from Sriharikota: ISRO launches #Chandrayaan2(Courtesy: ISRO) https://t.co/AiDD9xhQZQ — ANI (@ANI) July 22, 2019 Launch of Chandrayaan 2 by GSLV MkIII-M1 Vehicle https://t.co/P93BGn4wvT — ISRO (@isro) July 22, 2019 #ISRO #Chandrayaan2 As our journey begins, do you know what is the distance of Moon from Earth? The average distance is 3, 84, 000 km, Vikram lander will land on Moon on the 48th day of the mission, which begins today. Here's different view of #GSLVMkIII-M1 pic.twitter.com/4LFEmT2xxZ — ISRO (@isro) July 22, 2019 Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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आ गई चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग की नई तारीख, इस दिन चांद को छूने निकलेगा भारत
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चैतन्य भारत न्यूज श्रीहरिकोटा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण मून मिशन चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग पहले 15 जुलाई को होने वाली थी, लेकिन तकनीकी खामी के चलते लॉन्चिंग 56.24 मिनट पहले ही रोक दी गई। देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल-मार्क-3 (जीएसएलवी-एमके3) से चंद्रयान-2 को तड़के 2.51 बजे लॉन्च किया जाना था। अब इसकी नई लॉन्चिंग तारीख तय की गई है। 15 जुलाई को इसरो प्रवक्ता बीआर गुरुप्रसाद ने बयान देते हुए कहा था कि, 'जीएसएलवी-एमके3 लॉन्च व्हीकल (रॉकेट) में खामी आने की वजह से लॉन्चिंग रोक दी गई है। लॉन्चिंग की अगली तारीख जल्द ही घोषित की जाएगी।' इसरो के वैज्ञानिकों ने खामी को खोज कर उसे ठीक भी कर दिया। इसरो के सूत्रों ने बताया है कि, वैज्ञानिकों ने हीलियम लीकेज की समस्या को ठीक कर दिया है। यान के और भी कुछ टेस्ट जो बाकी हैं उसे 18 जुलाई तक पूरे कर लिए जाएंगे। इसके बाद 22 जुलाई को दोपहर 2.52 बजे चंद्रयान-2 लॉन्च किया जा सकता है। ऐसे में चंद्रयान-2 की यात्रा चार दिन और आगे बढ़ जाएगी। दरअसल पहले यह 6 सितंबर को चांद पर पहुंचने वाला था लेकिन अब 11 या 12 सितंबर तक चांद के दक्षिणी ध्रुव पहुंचेगा। सूत्रों ने यह भी बताया कि यदि चंद्रयान-2 जुलाई के अंत तक भी लॉन्च नहीं हुआ तो फिर इसे सितंबर में लॉन्च किया जाएगा। हालांकि, इसके जुलाई में ही लॉन्च होने की पूरी संभावना है। दरअसल, 15 जुलाई को लॉन्चिंग से पहले चंद्रयान-2 में क्रायोजेनिक स्टेज के कमांड गैस बॉटल में प्रेशर लीकेज था। इसके अंदर हीलियम भरा था जो कि क्रायोजेनिक इंजन में भरे लिक्विड ऑक्सीजन और लिक्विड हाइड्रोजन को ठंडा रखने का काम करता है। हीलियम लीकेज होने लगा था जिसके कारण बॉटल में हीलियम का प्रेशर लेवल नहीं बन रहा था। यह प्रेशर 330 प्वाइंट से घटकर 300, फिर 280 और अंत में 160 तक पहुंच गया था। इसलिए चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग को रोकना पड़ा। ये भी पढ़े... 56 मिनट पहले रोकी गई चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग, जानि�� क्या है वजह इन दो महिलाओं के कंधों पर है चंद्रयान-2 मिशन की जिम्मेदारी कुछ ही घंटों बाद चांद को छूने निकलेगा चंद्रयान-2, जानिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है इसरो का यह मिशन Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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56 मिनट पहले रोकी गई 'चंद्रयान-2' की लॉन्चिंग, जानिए क्या है वजह
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चैतन्य भारत न्यूज श्रीहरिकोटा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सबसे ��ास मिशन में से एक 'चंद्रयान-2' की लॉन्चिंग आखिरी समय में रुक गई। लॉन्चिंग से 56.24 मिनट पहले ही चंद्रयान-2 के व्हीकल सिस्टम में तकनीकी खामी आने की वजह से इसे रोकना पड़ा। बता दें चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग 15 जुलाई को तड़के 2:51 बजे होने वाली थी। चंद्रयान-2 को देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल-मार्क-3 (जीएसएलवी-एमके3) से लॉन्च किया जाना था लेकिन 56.24 मिनट पहले काउंटडाउन रोक दिया गया। इसरो के वैज्ञानिक यह पता लगाने में जुट गए हैं कि अचानक से यह तकनीकी खामी कहां से आ गई। इसके बाद इसरो की ओर से आधिकारिक बयान जारी करके इसकी लॉन्चिंग टलने की जानकारी दी गई है। इसरो ने कहा कि, 'प्रक्षेपण से 1 घंटे पहले लॉन्च व्हीकल सिस्टम में तकनीकी खामी सामने आई। इसलिए चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग को टाल दिया गया है। जल्द ही इसके प्रक्षेपण की अगली तारीख का एलान किया जाएगा।' लॉन्चिंग में आई इस रुकावट के चलते इसरो वैज्ञानिकों की 11 साल की मेहनत को छोटा सा झटका लगा है। हालांकि वैज्ञानिक जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान निकालकर चंद्रयान-2 की सफल लॉन्चिंग करेंगे। वैसे वैज्ञानिकों द्वारा अंतिम क्षणों में यह तकनीकी खामी खोज लेना बहुत जरुरी था वरना आगे चलकर बड़ा हादसा भी हो सकता था। ये है लॉन्चिंग रोकने का कारण इसरो के सूत्रों ने बताया कि, काउंटडाउन के आखिरी समय में चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग रोकी गई। कुछ मिनट पहले ही क्रायोजेनिक इंजन में लिक्विड हाइड्रोजन भरा गया था। बता दें क्रायोजेनिक इंजन और चंद्रयान-2 को जोड़ने वाले हिस्से को लॉन्च व्हीकल कहते हैं। यान के इस हिस्से में ही प्रेशर लीकेज था। यह तय सीमा पर स्थिर नहीं हो रहा था और रॉकेट लॉन्च के लिए जितना प्रेशर चाहिए था वह नहीं मिल पा रहा था। प्रेशर लगातार घट��ा जा रहा था। इसलिए इसरो के मून मिशन चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग को आखिरी समय में टालना पड़ा। बता दें इस मिशन का मुख्य उद्देश्य चांद पर पानी का पता लगाना और वहां भूकंप आता है या नहीं ये पता लगाना है। चंद्रयान-2 की लागत 603 करोड़ रुपए और अंतरिक्ष यान की लागत 375 करोड़ रुपए हैं। ये भी पढ़े...  इन दो महिलाओं के कंधों पर है चंद्रयान-2 मिशन की जिम्मेदारी कुछ ही घंटों बाद चांद को छूने निकलेगा चंद्रयान-2, जानिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है इसरो का यह मिशन Read the full article
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