महिला पत्रकार और बेटे की संदिग्ध अवस्था में मौत, हाउसिंग कॉलोनी में मचा हड़कंप …
महिला पत्रकार और बेटे की संदिग्ध अवस्था में मौत, रांची। शहर की हरमू हाउसिंग कॉलोनी में रहने वाली महिला पत्रकार सुधा श्रीवास्तव और उसके बेटे की संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई। बताया जा रहा है कि सोमवार की सुबह दोनों की मौत की जानकारी मिलने के बाद पुलिस मौके पर पहुंची। शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। मामले की जांच की जा रही है।
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The body of another journalist was found in UP, a case was registered against a female inspector | यूपी में एक और पत्रकार का शव मिला, महिला इंस्पेक्टर पर केस दर्ज
The body of another journalist was found in UP, a case was registered against a female inspector | यूपी में एक और पत्रकार का शव मिला, महिला इंस्पेक्टर पर केस दर्ज
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उन्नाव (उप्र), 13 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में एक और पत्रकार मृत पाया गया है। उनका शव उन्नाव जिले में एक रेलवे क्रॉसिंग के पास से बरामद किया गया है।
शव की पहचान पत्रकार सूरज पांडे के रूप में हुई है। उनकी मां लक्ष्मी देवी ने एक महिला इंस्पेक्टर सुनीता चौरसिया और कांस्टेबल अमर सिंह पर उसके बेटे को धमकाने और उसे मौत के लिए प्रेरित करने का आरोप लगाया है।
माना जा रहा है कि पत्रकार सूरज…
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prime time news: आपके चैनल आपसे जुड़ी ख़बरों दिखा रहे हैं?
https://youtu.be/7HCShlDBOEI
क्या आपको उमा खुराना याद हैं?
बधाई हो आपके पसंदीदा चैनल और अख़बार जिनको आप पैसे देकर केबल या डिश पर देखते हैं, या फिर अखबारों को खरीद कर पढ़ते हैं, आपकी पसंद की और आप ही से जुड़ी हर ख़बर की पल पल जानकारियां दे रहे हैं। रीया की गिरफ्तारी आज फिर टल गई है। आठ घंटे तक चली पूछताछ... किये कई खुलासे.... लेकिन हमारा सवाल ये हैं कि क्या रीया की गिरफ्तारी तय है... परसो और कल भी टल गई.... की ख़बरें और आज भी यही कहा जा रहा है.... कि फिर टल गई गिरफ्तारी.... तो क्या पुलिस ने मीडिया को पहले ही बता दिया है.... चाहे एक दिन लगे या दो दिन.... पूछताछ में कुछ भी सामने आए... लेकिन उसकी गिरफ्तारी तय है...शायद तभी तो यह कहा जा रहा है कि टल गई। नहीं एथिकली तो ये कहना था कि पूछताछ हुई लेकिन कल फिर होगी। बार बार ये कहना कि गिरफ्तारी आज भी टल गई.... का क्या मतलब है.... मीडिया हमको ये भी बताए। साथ ही आठ घंटे पूछताछ हुई ये तो ठीक है लेकिन कई खुलासे हुए... का क्या मतलब है। अगर एनसीबी का कोई अफसर मीडिया को कुछ बता रहा है.... जांच पूरी होने से पहले.... तो इसका क्या मतलब है.... साथ ही अगर सिर्फ अटकलों से खबरे फैलाई जा रही हैं.... तो क्या भारत सरकार के सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय ने गृहमंत्रालय और कई विभागों की जांच के बाद.... इसी तरह की खबरों के लिए इन निजी हाथों में चैनलों के लाइेसेंस सौंपे हैं। उधर कंगना रनावत को भी वाई ग्रेड की सिक्यूरिटी दे दी गई है। ताकि अब बेखौफ होकर रह सकें। आप भले ही ख़ुश हों... अपनी पंसद की ख़बरे देखकर.... लेकिन कुछ लोग... लाखों लोगों के कोरोना से संग्रमण हजारों लोगों की मौत पर जानकारी मांग रहे हैं। इधर मेरी कालोनी के कुछ लोग ये सवाल कर रहे थे उनके बेटे और कई रिश्तेदारों की नौकरिया चलीं गईं.... उनके बारे में किस चैनल पर खबर आएगी। उधर कुछ लोग पूछ रहे थे कि दो दिन पहले हजारों लोगों ने बेरोजगारी मंहगाई और कई मामलों के विरोध में थाली बजाकर प्रदर्शन किया वो खबर किस किस चैनल ने दिखाई। चलिए हम आपको उस थाली बजाने वाले प्रदर्शन की वीडियो जरूर दिखाएगें।
लेकिन आज आपसे एक सवाल पूछता हूं....उमा खुराना याद हैं...दिल्ली के एक स्कूल की महिला टीचर...टीआरपी बढ़ाने के लिए उनका स्टिंग कराया गया...स्टिंग कराने वाले वही महान पत्रकार थे जिनको आजकल कुछ लोग तिहाड़ी भी कहने लगे हैं...हालांकि हमें इस पर एतराज़ है कि किसी पत्रकार को तिहाड़ी या खबर रोकने नाम पर उगाही बाज कहा जाए...हो सकता है कि ऊपर के दबाव में नीच काम करना पड़ गया हो बेचारे को। वैसे भी तो तिहाड़ जेल जिस मिशन के लिए गये थे वो कुछ और था। दरअसल उनके पास कथिततौर एक बड़े उधोगपति के खिलाफ खबर थी। जिसको चलाने की धमकी देकर और न चलाने का लालच देकर 100 करोड़ रुपये की मांग की गई थी। अब इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जब 100 करोड़ की कथित डील के लिए संपादक जी खुद वहां गये तो उधोगपति ने ही उनकी रिकार्डिंग करके पुलिस को बुला लिया। और बेचारे कंपनी के लिए टीआरपी और मोटी रकम मुहय्या कराने के चक्कर में कुछ महीने के लिए तिहाड़ जेल में आराम करने चले गये थे। बस तभी से उनको कुछ लोग तिहाड़ी ही कहने लगे। तो हम बात कर रहे थे कई साल पहले दिल्ली की एक टीचर उमा खुराना के स्टिंग की। शायद आप को भी याद आ गया हो। आप याद आ गईं होंगी वो तस्वीरे जिसमें दिल्ली के एक गर्ल्स स्कूल की एक महिला टीचर उमा खुराना को मीडिया के लोग घेरे रहते हैं....इसी दौरान उसके बाल तक खींचने की तस्वीरें सामने आईं...दरअसल उस महिला टीचर पर स्टिंग करने वाले चैनल और उसके एंकर ने बेहद गंभीर आरोप लगाया था....स्टिंग के दम पर चैनल और उसके महान संपादक और एंकर ने कहा था कि ये महिला टीचर अपने स्कूल की छात्राओं को धंधा करने के लिए अफसरों और नेताओं और पैसे वालों के पास भेजती हैं...देश में कोहराम मच गया था...चैनल की टीआरपी रातों रात अप हो गई थी....लेकिन कुछ दिनों पर जांच मे पता चला कि खबर झूठी थी....स्टिंग फर्जी था....गर्ल्स स्कूल की महिला टीचर बेगुनाह साबित हुंई....दिल्ली पुलिस ने जब चैनल के खिलाफ कार्रवाई की तो संपादक और एंकर महोदय ने खुद को बचाने के लिए अपने दो जूनियरों को तैयार किया कि वो सारा इल्जाम खुद पर ले लें....और वो बेचारे दोनों जेल भेज दिये गये....भारत के इतिहास मे पहली बार हुआ कि किसी चैनल के प्रसारण पर सरकार ने पांबदी लगाई हो....लेकिन क्या आप में से किसी ने ये खबर देखी कि उस बेक़सूर महिला टीचर के अपमान के बाद किसी पत्रकार ने माफी मांगी...किसी चैनल पर उस महिला को बैठा कर देश के सामने उनसे माफी मांगी गई...यकीनन नहीं...कई दिन से देश में रिया चक्रवर्ती नाम की एक महिला कलाकार का मीडिया ट्राइल चल रहा है। पुलिस की अरेस्टिंग से पहले...चार्जशीट से पहले...कोर्ट में दोष सिद्द होने से पहले और कोर्ट के फैसले से पहले ही ....उसका मीडिया ट्रायल सरेआम चल रहा है...सवाल ये क्या ये रीया चक्रवर्ती भी यही चाहती है कि वो सुर्खियों में बनी रहे... नहीं तो क्या फिर ये सब पुलिस के इशारे पर किसी का मीडिया चीर हरण हो रहा है... या फिर ये सब के पीछे कौन है....क्या देश में सिर्फ यही खबर सबसे बड़ी है....या फिर दूसरी खबरों से ध्यान हटाने के लिए मीडिया टूल की तरह काम कर रहा है...क्योंकि दो दिन पहले देश भर के कई हिस्सों में बेरोजगारी के विरोध में थाली बजा कर छात्रों और जनता ने प्रदर्शन किया था। आपको हम उसी प्रदर्शन की वीडियो के साथ छोड़े जाते हैं। आज फिलहाल प्राइम टाइम न्यूज विद आजाद खालिद में इतना ही अपने मेजबान को इजाजत दें।
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सड़क किनारे बेटे की मौत पर आंसू बहाते प्रवासी श्रमिक की फोटो हुई थी वायरल, अब पहुंचा अपने घर…
रामपुकार की यह फोटो सोशल मीडिया पर हुई थी वायरल.
नई दिल्ली:
देश भर में लॉकडाउन की मार झेल रहे प्रवासी मजदूरों का चेहरा बन चुके रामपुकार पंडित को बिहार के बेगूसराय जिले में एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वह दूर से ही अपनी पत्नी और 9 साल की बेटी से मिले. रामपुकार (38) हाल ही में श्रमिक विशेष ट्रेन से दिल्ली से बिहार पहुंचे और यहां आने के बाद स्थानीय स्कूल में उन्हें क्वारेंटाइन में रखा गया. उन्होंने बताया कि रविवार को अधिकारी उन्हें जांच के लिए अस्पताल ले गए.
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बेटे की मौत की खबर पाकर हताश रामपुकार लॉकडाउन में बड़ी कठिनाई से दिल्ली से बिहार पहुंचे. जब न्यूज एजेंसी ‘भाषा’ ने सोमवार को उनसे संपर्क किया तो वह रो पड़े. उन्होंने धीमी आवाज में कहा, ‘जब भी आंखें खोलता हूं तो सिर चकराता है. मैं बहुत कमजोर महसूस कर रहा हूं. वे कल दोपहर को मुझे क्वारेंटाइन केंद्र से कार में बैठाकर अस्पताल ले आए. उन्होंने मेरे गले और नाक से नमूने लेकर मेरी जांच भी की.’
अपने एक साल के बेटे को खोने के बाद टूट चुका बाप अपने परिवार को गले लगाने को तड़प रहा था. सामाजिक दूरी के नियमों के कारण वह करीब से उनसे मिल भी नहीं सके. रामपुकार ने बताया कि उनकी पत्नी और बेटी पूनम जिले के खुदावंदपुर ब्लॉक के अस्पताल में उनसे मिलने आयी थीं, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें थोड़ी दूर से ही मिलने की अनुमति दी.
उन्होंने कहा, ‘हम सभी रो रहे थे. हम एक-दूसरे को गले लगाना चाहते थे. मैं अपनी बेटी को पकड़ना चाहता था, लेकिन मुझे उनके केवल साथ 10 मिनट का समय मिल पाया.’
रामपुकार ने बताया, ‘मेरी पत्नी और बेटी मेरे लिए ‘सत्तू’, ‘चूड़ा’ और खीरा लाए थे. लेकिन, मैं इतना कमजोर हूं कि खुद से खा भी नहीं सकता.’ बाद में अस्पताल के एक कर्मचारी ने उन्हें दाल-चावल परोसा जिसे उन्होंने दोपहर में खाया. उन्होंने कहा, ‘मैं अपने परिवार में अकेला कमाने वाला हूं और मेरी ही हालत खराब है. मुझे मदद की जरूरत है. मैं सरकार से इस कठिन समय में मेरी और मेरे जैसे लोगों की मदद करने की अपील करता हूं. वरना हम गरीब यूंही मर जाएंगे.’ कुछ दिन पहले मोबाइल फोन पर बात करते समय रोते हुए रामपुकार पंडित की तस्वीर ने सुर्खियों में आकर लोगों की संवेदनाएं जगा दी थी.
उनकी तस्वीर लॉकडाउन के कारण आजीविका खो चुके दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों की त्रासदी का प्रतीक बन गई हैं. दिल्ली से करीब 1200 किलोमीटर दूर बेगूसराय में अपने घर पहुंचने के लिए जूझ रहे 38 वर्षीय रामपुकार की तस्वीर मीडिया में साझा किए जाने के बाद उन्हें बिहार तक पहुंचने में मदद मिल गई.
पीटीआई के फोटो पत्रकार अतुल यादव ने दिल्ली के एक सिनेमा हॉल में निर्माण स्थल पर मजदूर रामपुकार को निजामुद्दीन पुल के किनारे देखा था. वह उस समय फोन पर अपने परिजनों से बात करते हुए रो रहे थे. उसी दौरान उन्होंने उनकी तस्वीर ली और मदद करने का आश्वासन दिया था. रामपुकार की किसी समरितन महिला ने भोजन और 5500 रुपये देकर मदद की. साथ ही, दिल्ली से बेगूसराय जाने के लिए उनकी टिकट भी कराई.
वह निजामुद्दीन पुल पर तीन दिनों से फंसे हुए थे. तभी, उन्हें मदद मिली. दिल्ली में एक वाहन में बैठाकर उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी कोविड-19 की जांच की गई. रामपुकार ने शनिवार को बताया था कि जांच रिपोर्ट निगेटिव थी.
रामपुकार की जिस तस्वीर ने सभी राष्ट्रीय और स्थानीय अखबारों के मुख्यपृष्ठ पर आकर लोगों को झकझोर दिया था, रामपुकार ने अब तक वह तस्वीर नहीं देखी है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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सड़क किनारे बेटे की मौत पर आंसू बहाते प्रवासी श्रमिक की फोटो हुई थी वायरल, अब पहुंचा अपने घर…
रामपुकार की यह फोटो सोशल मीडिया पर हुई थी वायरल.
नई दिल्ली:
देश भर में लॉकडाउन की मार झेल रहे प्रवासी मजदूरों का चेहरा बन चुके रामपुकार पंडित को बिहार के बेगूसराय जिले में एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वह दूर से ही अपनी पत्नी और 9 साल की बेटी से मिले. रामपुकार (38) हाल ही में श्रमिक विशेष ट्रेन से दिल्ली से बिहार पहुंचे और यहां आने के बाद स्थानीय स्कूल में उन्हें क्वारेंटाइन में रखा गया. उन्होंने बता��ा कि रविवार को अधिकारी उन्हें जांच के लिए अस्पताल ले गए.
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बेटे की मौत की खबर पाकर हताश रामपुकार लॉकडाउन में बड़ी कठिनाई से दिल्ली से बिहार पहुंचे. जब न्यूज एजेंसी ‘भाषा’ ने सोमवार को उनसे संपर्क किया तो वह रो पड़े. उन्होंने धीमी आवाज में कहा, ‘जब भी आंखें खोलता हूं तो सिर चकराता है. मैं बहुत कमजोर महसूस कर रहा हूं. वे कल दोपहर को मुझे क्वारेंटाइन केंद्र से कार में बैठाकर अस्पताल ले आए. उन्होंने मेरे गले और नाक से नमूने लेकर मेरी जांच भी की.’
अपने एक साल के बेटे को खोने के बाद टूट चुका बाप अपने परिवार को गले लगाने को तड़प रहा था. सामाजिक दूरी के नियमों के कारण वह करीब से उनसे मिल भी नहीं सके. रामपुकार ने बताया कि उनकी पत्नी और बेटी पूनम जिले के खुदावंदपुर ब्लॉक के अस्पताल में उनसे मिलने आयी थीं, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें थोड़ी दूर से ही मिलने की अनुमति दी.
उन्होंने कहा, ‘हम सभी रो रहे थे. हम एक-दूसरे को गले लगाना चाहते थे. मैं अपनी बेटी को पकड़ना चाहता था, लेकिन मुझे उनके केवल साथ 10 मिनट का समय मिल पाया.’
रामपुकार ने बताया, ‘मेरी पत्नी और बेटी मेरे लिए ‘सत्तू’, ‘चूड़ा’ और खीरा लाए थे. लेकिन, मैं इतना कमजोर हूं कि खुद से खा भी नहीं सकता.’ बाद में अस्पताल के एक कर्मचारी ने उन्हें दाल-चावल परोसा जिसे उन्होंने दोपहर में खाया. उन्होंने कहा, ‘मैं अपने परिवार में अकेला कमाने वाला हूं और मेरी ही हालत खराब है. मुझे मदद की जरूरत है. मैं सरकार से इस कठिन समय में मेरी और मेरे जैसे लोगों की मदद करने की अपील करता हूं. वरना हम गरीब यूंही मर जाएंगे.’ कुछ दिन पहले मोबाइल फोन पर बात करते समय रोते हुए रामपुकार पंडित की तस्वीर ने सुर्खियों में आकर लोगों की संवेदनाएं जगा दी थी.
उनकी तस्वीर लॉकडाउन के कारण आजीविका खो चुके दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों की त्रासदी का प्रतीक बन गई हैं. दिल्ली से करीब 1200 किलोमीटर दूर बेगूसराय में अपने घर पहुंचने के लिए जूझ रहे 38 वर्षीय रामपुकार की तस्वीर मीडिया में साझा किए जाने के बाद उन्हें बिहार तक पहुंचने में मदद मिल गई.
पीटीआई के फोटो पत्रकार अतुल यादव ने दिल्ली के एक सिनेमा हॉल में निर्माण स्थल पर मजदूर रामपुकार को निजामुद्दीन पुल के किनारे देखा था. वह उस समय फोन पर अपने परिजनों से बात करते हुए रो रहे थे. उसी दौरान उन्होंने उनकी तस्वीर ली और मदद करने का आश्वासन दिया था. रामपुकार की किसी समरितन महिला ने भोजन और 5500 रुपये देकर मदद की. साथ ही, दिल्ली से बेगूसराय जाने के लिए उनकी टिकट भी कराई.
वह निजामुद्दीन पुल पर तीन दिनों से फंसे हुए थे. तभी, उन्हें मदद मिली. दिल्ली में एक वाहन में बैठाकर उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी कोविड-19 की जांच की गई. रामपुकार ने शनिवार को बताया था कि जांच रिपोर्ट निगेटिव थी.
रामपुकार की जिस तस्वीर ने सभी राष्ट्रीय और स्थानीय अखबारों के मुख्यपृष्ठ पर आकर लोगों को झकझोर दिया था, रामपुकार ने अब तक वह तस्वीर नहीं देखी है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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