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🔸️संत रामपाल जी महाराज जी का संघर्ष🔸️
8 सितंबर 1951 को भारत की पावन धरती पर अवतरित हुए एक ऐसे संत जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। सतज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने अपनी जान हथेली पर रख दी, नौकरी, घर परिवार सब कुछ त्याग दिया। ऐसे महान संत, जो परमार्थ के लिए अपना सर्वस्व वार दें, इस धरा पर यदा कदा ही प्रकट होते हैं। हम बात कर रहे हैं जगत गुरु संत रामपाल जी महाराज जी की जिन्हे परमार्थ के मार्ग पर कदम रखने के बाद अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
संत रामपाल जी को नाम दीक्षा 17 फरवरी 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को रात्रि में प्राप्त हुई। उस समय संत रामपाल जी महाराज की आयु 37 वर्ष थी l
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज को सत्संग करने की आज्ञा दी और
सन् 1994 में नामदान करने की आज्ञा प्रदान की।
गुरु पद प्राप्त करने के बाद संत रामपाल जी महाराज ने सत्संग व पाठ करना शुरू किया। लेकिन धीरे-धीरे गुरु पद की जिम्मेदारियां इतनी बढ़ गईं कि संत रामपाल जी महाराज ने जे.ई. की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया जो हरियाणा सरकार द्वारा 16.5.2000 को पत्र क्रमांक 3492-3500, तिथि 16.5.2000 के तहत स्वीकृत है।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
संत रामपाल जी महाराज ने समाज का कल्याण करने के लिए गांव-गांव जाकर तत्वज्ञान का प्रचार किया।
घर त्याग देने के बाद संत रामपाल जी कभी मुड़कर घर वापस नहीं गए। उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव-गाँव, नगर-नगर जाकर सतज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नहीं सका।
कबीर - और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोप का करता चले मैदान।।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है। उनके त्याग और बलिदान को हमें व्यर्थ नहीं होने देना है क्योंकि संत रामपाल जी महाराज हमारे लिए ही वे इस पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं।
#SantRampalJiBodhDiwas
#17Feb_SantRampalJi_BodhDiwas
#SantRampalJiMaharaj
#TheMission_Of_SantRampalJi
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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🔸️संत रामपाल जी महाराज जी का संघर्ष🔸️
8 सितंबर 1951 को भारत की पावन धरती पर अवतरित हुए एक ऐसे संत जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। सतज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने अपनी जान हथेली पर रख दी, नौकरी, घर परिवार सब कुछ त्याग दिया। ऐसे महान संत, जो परमार्थ के लिए अपना सर्वस्व वार दें, इस धरा पर यदा कदा ही प्रकट होते हैं। हम बात कर रहे हैं जगत गुरु संत रामपाल जी महाराज जी की जिन्हे परमार्थ के मार्ग पर कदम रखने के बाद अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
संत रामपाल जी को नाम दीक्षा 17 फरवरी 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को रात्रि में प्राप्त हुई। उस समय संत रामपाल जी महाराज की आयु 37 वर्ष थी l
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज को सत्संग करने की आज्ञा दी और
सन् 1994 में नामदान करने की आज्ञा प्रदान की।
गुरु पद प्राप्त करने के बाद संत रामपाल जी महाराज ने सत्संग व पाठ करना शुरू किया। लेकिन धीरे-धीरे गुरु पद की जिम्मेदारियां इतनी बढ़ गईं कि संत रामपाल जी महाराज ने जे.ई. की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया जो हरियाणा सरकार द्वारा 16.5.2000 को पत्र क्रमांक 3492-3500, तिथि 16.5.2000 के तहत स्वीकृत है।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
संत रामपाल जी महाराज ने समाज का कल्याण करने के लिए गांव-गांव जाकर तत्वज्ञान का प्रचार किया।
घर त्याग देने के बाद संत रामपाल जी कभी मुड़कर घर वापस नहीं गए। उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव-गाँव, नगर-नगर जाकर सतज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नहीं सका।
कबीर - और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोप का करता चले मैदान।।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है। उनके त्याग और बलिदान को हमें व्यर्थ नहीं होने देना है क्योंकि संत रामपाल जी महाराज हमारे लिए ही वे इस पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं।
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𒊹︎︎︎• शास्त्रो में छुपे रहस्य को जानने के लिए पढ़े पवित्र पुस्तक 📘"ज्ञान गंगा"।
इस पुस्तक को निःशुल्क मंगवाने तथा सत्संग से सम्बन्धित अनमोल ज्ञान की बा���ें संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक "ज्ञान गंगा" बिल्कुल निःशुल्क प्राप्त करके पढ़ सकते हैँ।
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⚪ नोट :- पुस्तक तथा इसकी डिलीवरी दोनों पूर्णतः निःशुल्क (Free) है।
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☞ सुदर्शन EWS ☞ साधना
06:00-07:00 AM 07:30 08:30 PM
☞ ईश्वर📺 ☞ शरणम् 📺
08:30-09:30 PM 08:00-09:00 PM
आध्यात्मिक जानकारी के लिए PlayStore से Install करें App :-
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8 सितंबर 1951 को भारत की पावन धरती पर अवतरित हुए एक ऐसे संत जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। सतज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने अपनी जान हथेली पर रख दी, नौकरी, घर परिवार सब कुछ त्याग दिया। ऐसे महान संत, जो परमार्थ के लिए अपना सर्वस्व वार दें, इस धरा पर यदा कदा ही प्रकट होते हैं। हम बात कर रहे हैं जगत गुरु संत रामपाल जी महाराज जी की जिन्हे परमार्थ के मार्ग पर कदम रखने के बाद अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
संत रामपाल जी को नाम दीक्षा 17 फरवरी 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को रात्रि में प्राप्त हुई। उस समय संत रामपाल जी महाराज की आयु 37 वर्ष थी l
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज को सत्संग करने की आज्ञा दी और
सन् 1994 में नामदान करने की आज्ञा प्रदान की।
गुरु पद प्राप्त करने के बाद संत रामपाल जी महाराज ने सत्संग व पाठ करना शुरू किया। लेकिन धीरे-धीरे गुरु पद की जिम्मेदारियां इतनी बढ़ गईं कि संत रामपाल जी महाराज ने जे.ई. की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया जो हरियाणा सरकार द्वारा 16.5.2000 को पत्र क्रमांक 3492-3500, तिथि 16.5.2000 के तहत स्वीकृत है।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
संत रामपाल जी महाराज ने समाज का कल्याण करने के लिए गांव-गांव जाकर तत्वज्ञान का प्रचार किया।
घर त्याग देने के बाद संत रामपाल जी कभी मुड़कर घर वापस नहीं गए। उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव-गाँव, नगर-नगर जाकर सतज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नहीं सका।
कबीर - और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोप का करता चले मैदान।।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है। उनके त्याग और बलिदान को हमें व्यर्थ नहीं होने देना है क्योंकि संत रामपाल जी महाराज हमारे लिए ही वे इस पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं।
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8 सितंबर 1951 को भारत की पावन धरती पर अवतरित हुए एक ऐसे संत जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। सतज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने अपनी जान हथेली पर रख दी, नौकरी, घर परिवार सब कुछ त्याग दिया। ऐसे महान संत, जो परमार्थ के लिए अपना सर्वस्व वार दें, इस धरा पर यदा कदा ही प्रकट होते हैं। हम बात कर रहे हैं जगत गुरु संत रामपाल जी महाराज जी की जिन्हे परमार्थ के मार्ग पर कदम रखने के बाद अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
संत रामपाल जी को नाम दीक्षा 17 फरवरी 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को रात्रि में प्राप्त हुई। उस समय संत रामपाल जी महाराज की आयु 37 वर्ष थी l
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज को सत्संग करने की आज्ञा दी और
सन् 1994 में नामदान करने की आज्ञा प्रदान की।
गुरु पद प्राप्त करने के बाद संत रामपाल जी महाराज ने सत्संग व पाठ करना शुरू किया। लेकिन धीरे-धीरे गुरु पद की जिम्मेदारियां इतनी बढ़ गईं कि संत रामपाल जी महाराज ने जे.ई. की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया जो हरियाणा सरकार द्वारा 16.5.2000 को पत्र क्रमांक 3492-3500, तिथि 16.5.2000 के तहत स्वीकृत है।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
संत रामपाल जी महाराज ने समाज का कल्याण करने के लिए गांव-गांव जाकर तत्वज्ञान का प्रचार किया।
घर त्याग देने के बाद संत रामपाल जी कभी मुड़कर घर वापस नहीं गए। उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव-गाँव, नगर-नगर जाकर सतज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नहीं सका।
कबीर - और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोप का करता चले मैदान।।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है। उनके त्याग और बलिदान को हमें व्यर्थ नहीं होने देना है क्योंकि संत रामपाल जी महाराज हमारे लिए ही वे इस पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं।
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संत रामपाल जी को नाम दीक्षा 17 फरवरी 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को रात्रि में प्राप्त हुई। उस समय संत रामपाल जी महाराज की आयु 37 वर्ष थी l
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज को सत्संग करने की आज्ञा दी और
सन् 1994 में नामदान करने की आज्ञा प्रदान की।
गुरु पद प्राप्त करने के बाद संत रामपाल जी महाराज ने सत्संग व पाठ करना शुरू किया। लेकिन धीरे-धीरे गुरु पद की जिम्मेदारियां इतनी बढ़ गईं कि संत रामपाल जी महाराज ने जे.ई. की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया जो हरियाणा सरकार द्वारा 16.5.2000 को पत्र क्रमांक 3492-3500, तिथि 16.5.2000 के तहत स्वीकृत है।
जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।
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घर त्याग देने के बाद संत रामपाल जी कभी मुड़कर घर वापस नहीं गए। उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव-गाँव, नगर-नगर जाकर सतज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नहीं सका।
कबीर - और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोप का करता चले मैदान।।
इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है। उनके त्याग और बलिदान को हमें व्यर्थ नहीं होने देना है क्योंकि संत रामपाल जी महाराज हमारे लिए ही वे इस पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं।
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#GodMorningWednesday
राधास्वामी के संस्थापक शिव दयाल जी महाराज का कोई गुरु नहीं था, हुक्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया, "राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े। उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने शिव दयाल जी से बिना किसी आदेश के ब्यास में एक डेरा शुरू किया और बिना अधिकार के दीक्षा देने लगे। राधास्वामी पंथ दुनिया भर में लाखों लोगों को गुमराह कर रहा है। यह एक तथ्य है।
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#GodMorningWednesday
राधास्वामी के संस्थापक शिव दयाल जी महाराज का कोई गुरु नहीं था, हुक्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया, "राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े। उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने शिव दयाल जी से बिना किसी आदेश के ब्यास में एक डेरा शुरू किया ।
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#GodMorningWednesday
राधास्वामी के संस्थापक शिव दयाल जी महाराज का कोई गुरु नहीं था, हुक्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया, "राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े। उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने शिव दयाल जी से बिना किसी आदेश के ब्यास में एक डेरा शुरू किया और बिना अधिकार के दीक्षा देने लगे। राधास्वामी पंथ दुनिया भर में लाखों लोगों को गुमराह कर रहा है। यह एक तथ्य है।
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#राधास्वामी_पंथ_की_सच्चाई
राधास्वामी के संस्थापक शिव दयाल जी महाराज का कोई गुरु नहीं था, हुक्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया, "राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े। उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने शिव दयाल जी से बिना किसी आदेश के ब्यास में एक डेरा शुरू किया और बिना अधिकार के दीक्षा देने लगे। राधास्वामी पंथ दुनिया भर में लाखों लोगों को गुमराह कर रहा है। यह एक तथ्य है।
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➜ साधना चैनल 📺 शाम 7:30 से 8:30
➜ श्रद्धा चैनल 📺 दोपहर - 2:00 से 3:00
Visit- "Satlok Ashram" on YouTube.
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#राधास्वामी_पंथ_की_सच्चाई
राधास्वामी के संस्थापक शिव दयाल जी महाराज का कोई गुरु नहीं था, हुक्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया, "राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े। उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने शिव दयाल जी से बिना किसी आदेश के ब्यास में एक डेरा शुरू किया और बिना अधिकार के दीक्षा देने लगे। राधास्वामी पंथ दुनिया भर में लाखों लोगों को गुमराह कर रहा है। यह एक तथ्य है।
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#राधास्वामी_पंथ_की_सच्चाई
राधास्वामी के संस्थापक शिव दयाल जी महाराज का कोई गुरु नहीं था, हुक्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया, "राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े। उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने शिव दयाल जी से बिना किसी आदेश के ब्यास में एक डेरा शुरू किया और बिना अधिकार के दीक्षा देने लगे। राधास्वामी पंथ दुनिया भर में लाखों लोगों को गुमराह कर रहा है। यह एक तथ्य है।
Kabir Is God
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राधास्वामी के संस्थापक शिव दयाल जी महाराज का कोई गुरु नहीं था, हुक्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया, "राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े। उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने शिव दयाल जी से बिना किसी आदेश के ब्यास में एक डेरा शुरू किया और बिना अधिकार के दीक्षा देने लगे। राधास्वामी पंथ दुनिया भर में लाखों लोगों को गुमराह कर रहा है। यह एक तथ्य है।
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राधास्वामी के संस्थापक शिव दयाल जी महाराज का कोई गुरु नहीं था, हु���्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया, "राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े। उनके शिष्य बाबा जयमल सिंह ने शिव दयाल जी से बिना किसी आदेश के ब्यास में एक डेरा शुरू किया और बिना अधिकार के दीक्षा देने लगे। राधास्वामी पंथ दुनिया भर में लाखों लोगों को गुमराह कर रहा है। यह एक तथ्य है।
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#GodNightTuesday
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राधास्वामी संस्थापक शिव दयाल जी महाराज कोई गुरु नहीं था, हुक्का पीते थे, व्यर्थ नाम दीक्षा देना शुरू किया, "राधास्वामी" जैसे मनमाने नाम गढ़े
अवश्य पढ़े पुस्तक ज्ञान गंगा और देखें साधना चैनल शाम 7:30 बजे
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