कंठ से कुख़्य कथाएं कैसे कथन होंगी?
उसके बारे में कुछ बोलने को मैं समर्थ नहीं
सब मनगंढ़ंत कहानिया लगती अब
सच बताने से जी कतराता है
और जब कुछ कहने जाओ तो मन दाग्मता है
आवाज तो टूट ही जाती है
अश्रुओ का बाँध में भी अप्लाव आन पड़ते है
ओझल सी हुई दुनिया मैं
द्वेष के तले दबे इस कंठ से
कुख़्य कथाये कैसे कह पाएंगे ?
prompt from nikamma ji @murakh
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