Tumgik
winged-shine · 6 years
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Lal Qila
लाल क़िला
Chandni Chowk
New Delhi, Delhi 110006
लाल किला या लाल क़िला, दिल्ली के ऐतिहासिक, क़िलेबंद, पुरानी दिल्ली के इलाके में स्थित, लाल रेत-पत्थर से निर्मित है। इस किले को पाँचवे मुग़ल बाद्शाह शाहजहाँ ने बनवाया था। इस के किले को "लाल किला", इसकी दीवारों के लाल रंग के कारण कहा जाता है। इस ऐतिहासिक किले को वर्ष २००७ में युनेस्को द्वारा एक विश्व धरोहर स्थल चयनित किया गया था।
लाल किला एवं शाहजहाँनाबाद का शहर, मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा ई स 1639 में बनवाया गया था। लाल किले का अभिन्यास फिर से किया गया था, जिससे इसे सलीमगढ़ किले के संग एकीकृत किया जा सके। यह किला एवं महल शाहजहाँनाबाद की मध्यकालीन नगरी का महत्वपूर्ण केन्द्र-बिन्दु रहा है। लालकिले की योजना, व्यवस्था एवं सौन्दर्य मुगल सृजनात्मकता का शिरोबिन्दु है, जो कि शाहजहाँ के काल में अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँची। इस किले के निर्माण के बाद कई विकास कार्य स्वयं शाहजहाँ द्वारा किए गए। विकास के कई बड़े पहलू औरंगजे़ब एवं अंतिम मुगल शासकों द्वारा किये गये। सम्पूर्ण विन्यास में कई मूलभूत बदलाव ब्रिटिश काल में 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद किये गये थे। ब्रिटिश काल में यह किला मुख्यतः छावनी रूप में प्रयोग किया गया था। बल्कि स्वतंत्रता के बाद भी इसके कई महत्वपूर्ण भाग सेना के नियंत्रण में 2003 तक रहे।
लाल किला मुगल बादशाह शाहजहाँ की नई राजधानी, शाहजहाँनाबाद का महल था। यह दिल्ली शहर की सातवीं मुस्लिम नगरी थी। उसने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली बदला, अपने शासन की प्रतिष्ठा बढ़ाने हेतु, साथ ही अपनी नये-नये निर्माण कराने की महत्वकाँक्षा को नए मौके देने हेतु भी। इसमें उसकी मुख्य रुचि भी थी।
यह किला भी ताजमहल और आगरे के क़िले की भांति ही यमुना नदी के किनारे पर स्थित है। वही नदी का जल इस किले को घेरकर खाई को भरती थी। इसके पूर्वोत्तरी ओर की दीवार एक पुराने किले से लगी थी, जिसे सलीमगढ़ का किला भी कहते हैं। सलीमगढ़ का किला इस्लाम शाह सूरी ने 1546 में बनवाया था। लालकिले का निर्माण 1638 में आरम्भ होकर 1648 में पूर्ण हुआ। पर कुछ मतों के अनुसार इसे लालकोट का एक पुरातन किला एवं नगरी बताते हैं, जिसे शाहजहाँ ने कब्जा़ करके यह किला बनवाया था। लालकोट राजा पृथ्वीराज चौहान की बारहवीं सदी के अन्तिम दौर में राजधानी थी।
11 मार्च 1783 को, सिखों ने लालकिले में प्रवेश कर दीवान-ए-आम पर कब्जा़ कर लिया। नगर को मुगल वजी़रों ने अपने सिख साथियों का समर्पण कर दिया। यह कार्य करोर सिंहिया मिस्ल के सरदार बघेल सिंह धालीवाल के कमान में हुआ।
लाल किले में उच्चस्तर की कला एवं विभूषक कार्य दृश्य है। यहाँ की कलाकृतियाँ फारसी, यूरोपीय एवं भारतीय कला का संश्लेषण है, जिसका परिणाम विशिष्ट एवं अनुपम शाहजहानी शैली था। यह शैली रंग, अभिव्यंजना एवं रूप में उत्कृष्ट है। लालकिला दिल्ली की एक महत्वपूर्ण इमारत समूह है, जो भारतीय इतिहास एवं उसकी कलाओं को अपने में समेटे हुए हैं। इसका महत्व समय की सीमाओं से बढ़कर है। यह वास्तुकला सम्बंधी प्रतिभा एवं शक्ति का प्रतीक है। सन 1913में इसे राष्ट्रीय महत्व के स्मारक घोषित होने से पूर्वैसकी उत्तरकालीनता को संरक्षित एवं परिरक्षित करने हेतु प्रयास हुए थे।
इसकी दीवारें, काफी सुचिक्कनता से तराशी गईं हैं। ये दीवारें दो मुख्य द्वारों पर खुली हैं ― दिल्ली दरवाज़ा एवं लाहौर दरवाज़ा। लाहौर दरवाज़े इसका मुख्य प्रवेशद्वार है। इसके अन्दर एक लम्बा बाजार है, चट्टा चौक, जिसकी दीवारें दुकानों से कतारित हैं। इसके बाद एक बडा़ खुला स्थान है, जहाँ यह लम्बी उत्तर-दक्षिण सड़क को काटती है। यही सड़क पहले किले को सैनिक एवं नागरिक महलों के भागों में बांटती थी। इस सड़क का दक्षिणी छोर दिल्ली गेट पर है।
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winged-shine · 6 years
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The Garden of Five Senses
The Garden of Five Senses
Western Marg, Near Saket Metro Station, Said-ul-Ajaib Village, Freedom Fighter Colony, Saiyad ul Ajaib, Sainik Farm, New Delhi, Delhi 110030
पंच इंद्रीय उद्यान या गार्डन ऑफ़ फ़ाइव सेन्सेज़ नामक उद्यान दिल्ली के दक्षिणी क्षेत्र में सैद-उल-अजाब गांव के पास स्थित है। यह महरौली और साकेत के बीच में पड़ता है। यह उद्यान दिल्ली पर्यटन एवं परिवहन विकास निगम द्वारा विकसित किया गया है। दिल्ली के एक प्राचीन पुरातात्विक धरोहर परिसर के पास गाँव के पास २० एकड में बनाया गए इस उद्यान में २०० से भी अधिक प्रकार के मोहक एवं सुगंधित पौधों के बीच २५ से ज्यादा मृत्तिका एवं शैल शिल्प बने हैं। रूप, रंग, गंध, ध्वनि एवं स्वाद की तृप्ति के लिए बना इस उद्यान का शांत, नीरव एवं मनमोहक परिसर प्रेमी युगल के बीच खासा लोकप्रिय है।
दिल्ली पर्यटन एवं परिवहन विकास निगम द्वारा फरवरी २००३ में इस उद्यान की स्थापना दिल्ली की पहली स्थापित राजधानी महरौली के पास किया गया। राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान द्वारा बनवाए गए किला राय पिथौरा के अवशेषों के निकट लगभग २० एकड भूमि पर इस उद्यान को भव्य तरीके से बसाया गया है। महरौली-बदरपुर रोड पर स्थित साकेत मेट्रो स्टेशन से उद्यान की दूरी १ किलोमीटर दक्षिण है। मन को मोहित करनेवाले इस खास उद्यान को जनता के सैर-सपाटे के अलावे सामूहिक कार्यक्रम एवं गतिविधियों के लिए बसाया गया है। उद्यान पहुँचने के लिए सबसे सुगम साधन जहाँगीरपुरी- कश्मीरी गेट- हूडा सिटी सेन्टर मेट्रो लाईन की ट्रेनें है। निकटतम स्टेशन साकेत है। बदरपुर-मेहरौली-गुरगाँव रूट पर चलनेवाली अगणित सवारियों से भी यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है। मेट्रो स्टेशन के बगल से दक्षिण जाने वाली सडक पर किला राय पिथौरा की मोटी दिवार के साथ लगभग १ किलोमीटर चलकर यहाँ पहुँच सकते हैं।
जैसा कि इस उद्यान का नाम रखा गया है- यह शरीर की पाँचों ज्ञानेन्द्रियों (आँख, कान, नाक, त्वचा एवं जीभ) की तृष्णा को समर्पित है। उद्यान का मोहक-दृश्य, फूलों के सुगंध, बेहतरीन कलाकृतियों का स्पर्श, पत्तियों की सरसराहट एवं घंटियों की ध्वनि और उत्तम व्यंजनों का आस्वादन हर व्यक्ति के नेत्र, नसिका (नाक), त्वचा, श्रवन-रंध्र (कान) एवं जीभ को किसी हद तक तृप्त करने में सक्षम है। प्रवेश के बाद उद्यान का पहला हिस्सा पत्थर एवं टेराकोट्टा से बनी कलाकृतियों से बना है। राजस्थानी फाड् शिल्पकलाएँ, मृदभांड एवं टेराकोट्टा की बनी कलाकृतियों का आप स्पर्श कर सकते हैं। इसी हिस्से में कलाकारों का एक खंड भी है। आगे, उद्यान को दो भागों में बनाया गया है। मुगल-गार्डेन की तर्ज पर बना खास-बाग की विशेषता छोटे नहर, तलाब एवं घुमावदार रास्तों एवं सीढियों के किनारे लगाए गए मोहक एवं सुगंधित पौधे हैं। ये सुंदर पुष्प आँख एवँ नाक को अपने वश में करने में सक्षम हैं। उद्यान के दूसरे हिस्से में नील-बाग है जहाँ छोटे-छोटे तलाबों में खिलता कमल, कुमुदिनी, लताएँ एवं खास किस्म की झाडियाँ है। उद्यान के बीचोंबीच एक छोटे से तलाब के पास बना स्टील का बना फव्वारा-वूक्ष भी खास है। इसमें लगी घंटियाँ एवं झाडियों के बीच चिडियों की चहचहाट कर्ण प्रिय लगते हैं। खास पौधों के खंड में मुश्किल से नजर आने वाले कुछेक वृक्ष जैसे- कल्प वृक्ष, अर्जुन, रूद्राक्ष, कदम्ब, कर्पूर, सागवान, खास किस्म के कैक्टस एवं बांस एवं दुर्लभ जडी-बुटियाँ यहाँ देखी जा सकती है। उद्यान के उत्तरी छोड़ पर एक रेस्तरां तथा कुछेक फूड-स्टाल है जहाँ अच्छे भोजन का स्वाद लिया जा सकता है। उद्यान का एक खंड सौर ऊर्जा के लिए समर्पित है।
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winged-shine · 6 years
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Lodhi Garden
 Lodhi Garden लोधी उद्यान [
Lodhi Rd, Lodhi Gardens, Lodhi Estate, New Delhi, Delhi 110003 ]
A British-era public park featuring ancient tombs, rose & herb gardens, bonsai trees and a lake.
लोधी उद्यान (पूर्व नाम:विलिंग्डन गार्डन, अन्य नाम: लोधी गार्डन) दिल्ली शहर के दक्षिणी मध्य इलाके में बना सुंदर उद्यान है। यह सफदरजंग के मकबरे से १ किलोमीटर पूर्व में लोधी मार्ग पर स्थित है। पहले ब्रिटिश काल में इस बाग का नाम लेडी विलिंगटन पार्क था। यहां के उद्यान के बीच-बीच में लोधी वंश के मकबरे हैं तथा उद्यान में फव्वारे, तालाब, फूल और जॉगिंग ट्रैक भी बने हैं। यह उद्यान मूल रूप से गांव था जिसके आस-पास १५वीं-१६वीं शताब्दी के सैय्यद और लोदी वंश के स्मारक थे। अंग्रेजों ने १९३६ में इस गांव को दोबारा बसाया। यहां नेशनल बोंजाई पार्क भी है जहां बोंज़ाई का अच्छा संग्रह है।
लोधी उद्यान का नाम पहले लेडी विलिंगटन पार्क था। लेडी वेलिंगटन, वेलिंगटन के मार्क्वेस की पत्नी थी, जो उस समय ब्रिटिश शासनकाल में १९३१-३६ तक भारत के गवर्नर जनरल थे। भारतीय स्वतंत्रता उपरांत इसका नाम बदल कर लोधी उद्यान कर दिया गया है। कालांतर में इस उद्यान क्षेत्र का पुनर्निर्माण १९६८ में अमरीकी वास्तुकार जोसेफ एलन स्टीन और गेटेट ईको द्वारा करवाया गया था।[2] इस क्षेत्र में कई स्मारक हैं हैं, जिनमें मुहम्मद शाह और सिकंदर लोदी के मकबरों पर लोधी राजवंश के वास्तुशिल्प दिखाई देते हैं। इनका निर्माण १५ वीं शताब्दी में किया गया था। मुहम्मद शाह का मक़बरा १४४४ में अला-उद-दीन आलम शाह द्वारा बनवाया गया था। उद्यान से पूर्व यह क्षेत्र गांव था जिसके निकट १५-१६वीं शताब्दी के सैय्यद और लोधी वंश के मकबरे बने हुए थे। १९३६ में अंग्रेजों द्वारा इस गांव को दोबारा बसाया गया जो कालांतर में लेडी विलिंगडन के लिए आरक्षित कर दिया गया था। लेडी विलिंगडन भारत के गवर्नर जनरल की पत्नी थी और बाद में इसका नाम लेडी विलिंगडन पार्क रख दिया गया, लेकिन सन १९४७ में स्वतंत्रता के बाद इसे लोधी उद्यान नाम कर दिया गया।
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