Tumgik
amitwrites · 5 months
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Jorge Luis Borges, from Gods & Mortals: Modern Poems on Classics; "The Labyrinth,"
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amitwrites · 6 years
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मैं कौन हूँ? ग़ज़ल का मतला ! तुम कौन हो? मतले का इशारा ! मैं कौन हूँ? डूबता एक सफ़ीना ! तुम कौन हो? तिनके का सहारा !
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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राम कहानी बाँचते निज बह गए सारे नीर नर नारायण की लीला से परे राम की पीर
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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आज छलका है जो एक अदना सा आँसू कल यही एक खुशनुमा मंज़र बनेगा बूंद हूँ मैं, ये मुझे मालूम है पर मेरा ही विस्तार तो सागर बनेगा
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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आँसुओं की हर कथा तुमको सुनाऊँगा सूख जाओगे, तुम्हें इतना रुलाऊँगा मैं समय की मार सहकर भी प्रणयरत हूँ सच कहा था तुमने, मैं सब भूल जाऊंगा !
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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ज़ख्म की पत्तियाँ फिर हरी हो गई दर्द की इन्तेहाँ डायरी हो गई हर्फ़ का रंग मेरी उदासी पे जो चढ़ गया तो अमित शायरी हो गई
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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ज़हन के रोड पर ख़्यालों की ट्राफ़िक बहुत बढ़ गई थी, सो मेरा धैर्य अपने दोनों पैरों से दिव्यांग हो चला है! अब मुझसे प्रतीक्षा की अपेक्षा रखना मूर्खता है। जल्दी लौट आना!
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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"सरल अमरता किसे प्रिय है, जटिल युद्ध भी करना है ! प्रेम गीत गा-गाकर प्राणों को विशुद्ध भी करना है !"
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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हवा की बेउदास रंगीनियाँ मेरे अंदर के श्वेत आकाश को क्रुद्ध कर रही हैं ! #तरुण_वेग_पीड़ा_का
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amitwrites · 6 years
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रात का हर प्रहर विरोधाभासों का संताप है!
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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No mediocre ocean deserves a river like me which has extra-terrestrial eurythmics !
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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भीड़ में मैंने देखा कोई मेरे पास चला आ रहा था। मैं शाश्वतेकान्त में विचरण कर रहा था देहों के बीच, सहसा यों लगा जैसे कोई मेरी साँसों में गंध भर गया, कोई स्पर्श दे गया, ठीक वैसे जैसे हिमशिखरों को बादल स्पर्श कर नेह बरसा जाता है। पर बादल तो बादल ही है, गुज़र गया और मैं खड़ा रहा अपनी नदी की प्रतीक्षा में। पर क्या नदी ठहरेगी ? कहाँ कोई रुकता है मेरे समक्ष!
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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तीन दिवस तक विनय संभाले बैठे थे श्री राम चौथे दिन धधके रघुवर, देखा पूरा जलधाम ! जलधिराज निकले बाहर सुन धन्वा की टंकार देखा सारी सृष्टि ने कैसे कंपते हैं प्राण !
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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अक्सर सोचता हूँ, ये रस्ते जो मैं बो रहा हूँ, मंज़िल कौन काटेगा ?
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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वो बला की नदी किस ग़ुरूर में है मैं समंदर हूँ आकर मिले तो सही
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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कैसा सूरज है तू बतला, मुझ जुगनू से भिड़ता है तेज भले हो मस्तक पर लेकिन बुद्धि में जड़ता है
Amit Kashyap
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amitwrites · 6 years
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She came and said, 'I want the diary, that you keep writing on the last bench.' I wanted to give her my diary but the truth was, I never wrote one. Last bench was the best place to watch all her activities. All pages were blank.
Amit Kashyap
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