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bazmeshayari · 3 days
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मत बुरा उसको कहो गरचे वो अच्छा भी नहीं
मत बुरा उसको कहो गरचे वो अच्छा भी नहीं वो न होता तो ग़ज़ल मैं कभी कहता भी नहीं, जानता था कि सितमगर है मगर क्या कीजे दिल लगाने के लिए और कोई था भी नहीं, जैसा बेदर्द हो वो फिर भी ये जैसा महबूब ऐसा कोई न हुआ और कोई होगा भी नहीं, वही होगा जो हुआ है जो हुआ करता है मैंने इस प्यार का अंजाम तो सोचा भी नहीं, हाए क्या दिल है कि लेने के लिए जाता है उस से पैमान ए वफ़ा जिसपे भरोसा भी नहीं, बारहा गुफ़्तुगू…
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bazmeshayari · 3 days
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ज़ख्म ए वाहिद ने जिसे ता उम्र रुलाया हो
ज़ख्म ए वाहिद ने जिसे ता उम्र रुलाया हो हरगिज़ ना दुखाना दिल जो चोट खाया हो, जिसे हासिल ही नहीं उसे अहमियत क्या ? उनसे पूछो जिन्होंने पा कर भी गँवाया हो, ख़ुशनसीब नहीं यहाँ हर मुस्कुराने वाला किसे पता हँसी के पीछे क्या दर्द छुपाया हो, खौफ़ से तो हर कोई झुका दे ज़माने को बात तब है किसी ने इज्ज़त से सर झुकाया हो, ऐसा भी नहीं कि कोई निभा नहीं रहा रिश्तें तारीफ़ तो तब है जब एक तरफ़ा निभाया हो, तजुर्बा…
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bazmeshayari · 3 days
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ज़िन्दगानी के काम एक तरफ़
ज़िन्दगानी के काम एक तरफ़ अक़द का इंतज़ाम एक तरफ़, हां मुहब्बत का नाम एक तरफ़ साज़ो सामां तमाम एक तरफ़, हुस्न पत्थर मिज़ाज ख़ूब रहे हुस्न का एहतराम एक तरफ़, एक तरफ़ है अदालतों की क़तार हाकिम ए बेलगाम एक तरफ़, मेरी तनहाईयां वहीं की वहीं शहर का इंतज़ाम एक तरफ़, दुश्मनों का मिज़ाज और कहीं दोस्त का इंतक़ाम एक तरफ़, साथ तेरा मिला है जब से मुझे रख दिया हर निज़ाम एक तरफ़, आक़िलों की मिसाल और सही बे ख़ुदी का कलाम एक…
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bazmeshayari · 12 days
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रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं
रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं आपस में घर बार उलझने लगते हैं, माज़ी की आँखों में झाँक के देखूँ तो कुछ चेहरे हर बार उलझने लगते हैं, साल में एक ऐसा मौसम भी आता है फूलों से ही ख़ार उलझने लगते हैं, घर की तन्हाई में अपने आप से हम बन कर एक दीवार उलझने लगते हैं, ये सब तो दुनिया में होता रहता है हम ख़ुद से बेकार उलझने लगते हैं, कब तक अपना हाल बताएँ लोगों को तंग आ कर बीमार उलझने लगते हैं, जब दरिया का…
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bazmeshayari · 12 days
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चमन में जब भी सबा को गुलाब पूछते हैं
चमन में जब भी सबा को गुलाब पूछते हैं तुम्हारी आँख का अहवाल ख़्वाब पूछते हैं, कहाँ कहाँ हुए रौशन हमारे बाद चिराग़ ? सितारे दीदा ए तर से हिसाब पूछते हैं, वो तिश्ना लब भी अज़ब हैं मौज ए सहरा से सुराग ए हब्स मिज़ाज ए सराब पूछते हैं, कहाँ बसी हैं वो यादें उजाड़ना है जिन्हें ? दिलों की बाँझ ज़मीं से अज़ाब पूछते हैं, बरस पड़ी तेरी आँखें तो फिर ये भेद खुला सवाल ख़ुद से भी अपना जवाब पूछते हैं, हवा की हमसफरी से अब…
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bazmeshayari · 12 days
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हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है
हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है किसी ने जिस्म किसी ने ज़मीर बेचा है, नहीं रही बशीरत की ख़ूबी इंसा में आसास ए अनस का सब ने ख़मीर बेचा है, मज़ाक उड़ा मज़हब का अहल ए इल्म ने जब से आयतों को सर ए बाज़ार बेचा है, इरम भी न मिली जिस के हसूल की खातिर समझ कर ईमां को सब ने हक़ीर बेचा है, बस एक ओहदे की ख़ातिर अमीर ए लश्कर ने मुखालफिन को एक एक तीर बेचा है, बुजुर्ग के हुआ फैज़ान का यहाँ सौदा कि पैरोकारों ने अपना ही पीर…
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bazmeshayari · 1 month
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मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते
मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते मुश्किल थी अगर कोई तो आसान बनाते, रखते कहीं खिड़की कहीं गुलदान बनाते दीवार जहाँ है वहाँ दालान बनाते, थोड़ी है बहुत एक मसाफ़त को ये दुनिया कुछ और सफ़र का सर ओ सामान बनाते, करते कहीं एहसास के फूलों की नुमाइश ख़्वाबों से निकलते कोई विज्दान बनाते, तस्वीर बनाते जो हम इस शोख़अदा की लाज़िम था कि मुस्कान ही मुस्कान बनाते, उस जिस्म को कुछ और समेटा हुआ रखते ज़ुल्फ़ों को…
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bazmeshayari · 1 month
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सताते हो तुम मज़लूमों को सताओ
सताते हो तुम मज़लूमों को सताओ मगर ये समझ के ज़रा ज़ुल्म ढहाओ मज़ालिम का लबरेज़ जब जाम होगा तो हिटलर के जैसा ही अंज़ाम होगा, तुम्हे है हम को मिटाने की ख्वाहिश तो हमें भी है सर कटाने की ख्वाहिश..!!
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bazmeshayari · 1 month
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पिछले ज़ख़्मों का इज़ाला न ही...
पिछले ज़ख़्मों का इज़ाला न ही वहशत करेगा तुझ से वाक़िफ़ हूँ मेरी जाँ तू मोहब्बत करेगा, मैं चला जाऊँगा दुनिया से सिकंदर की तरह अगली सदियों पे मेरा नाम हुकूमत करेगा, पेश है दूसरे आलम में भी तन्हा रहना मैं ने सोचा था तू दुनिया से बग़ावत करेगा, दिल तेरी राह ए अज़िय्यत से पलटने को है क्या तू अब भी न मेरा ख़्वाब हक़ीक़त करेगा, तू मेरी मौत की तस्दीक़ नहीं कर सकता छुएगा तो मुझे और दिल मेरा हरकत…
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bazmeshayari · 1 month
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अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो
अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो गुनाह के बोझ से लदे काँधों को सलाम करो, पहचान गर बनानी हो तुम्हें अपनी इस भीड़ में ख़ुद को न दो तवज्जों दूसरों को बदनाम करो, कोई सिक्को का कोई कुर्सी का है गुलाम यहाँ जो आ ही गए हो तुम भी तो कुछ काम करो, गर चाहत है तुम्हे भी चाभी ए तरक्की की तो रोज़ सुबह ख़ुद से और यारों से धोखे शाम करो, यारों तुम को क्यूँ पड़ गया गैरत का दौरा अभी शाम रंगीन है महफ़िल जवाँ चलो जाम…
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bazmeshayari · 2 months
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दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ
दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ देखिए रूह से कब दाग़ पुराने जाएँ, हम को बस तेरी ही चौखट पे पड़े रहना है तुझसे बिछ्ड़ें न किसी और ठिकाने जाएँ, अपनी दीवार ए अना आप ही कर के मिस्मार अपने रूठों को चलो आज मनाने जाएँ, जाने क्या राज़ छुपा है तेरी सालारी में तू जहाँ जाए तेरे पीछे ज़माने जाएँ, रहें गुमनाम तो बस तुझ से ही मंसूब रहें जाने जाएँ तो तेरे नाम से जाने जाएँ, देख पाएँगे उन आँखों में उदासी…
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bazmeshayari · 2 months
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धोखे पे धोखे इस तरह खाते चले गए
धोखे पे धोखे इस तरह खाते चले गए हम दुश्मनों को दोस्त बनाते चले गए, हर ज़ख्म ज़िंदगी का गले से लगा लिया हम ज़िंदगी से यूँ ही निभाते चले गए, वो नफ़रतों का बोझ लिए घूमते रहे हम चाहतों को उन पे लुटाते चले गए, जो ख़्वाब ज़िंदगी की हक़ीक़त न बन सका उसके ही हसीं फ़रेब में आते चले गए, दर्द ए दिल को छुपाना आसाँ न था मगर हम आड़ मे हँसी की छुपाते चले गए..!! ~रुबीना मुमताज़ रूबी
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bazmeshayari · 2 months
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अपनों से कोई बात छुपाई नहीं जाती
अपनों से कोई बात छुपाई नहीं जाती ग़ैरों को कभी दिल की बताई नहीं जाती, लग जाती है ग़लती से कभी आग व लेकिन ना दीदा ओ दानिस्ता बुझाई नहीं जाती, तालीम सिखाती नहीं आलिम को सलीक़ा तहज़ीब तो जाहिल को सिखाई नहीं जाती, रुख़ हवाओं का मुआफ़िक़ भी हो फिर भी तूफ़ान में क़िंदील जलाई नहीं जाती, सीधी सी है ये बात मियाँ ऐसे मुसलसल रोने से मुक़द्दर की बुराई नहीं जाती, ऐ साहिब ए तदबीर इशारों से तो हरगिज़ दीवार…
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bazmeshayari · 2 months
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हमारे हाफ़िज़े बेकार हो गए साहिब
हमारे हाफ़िज़े बेकार हो गए साहिब जवाब और भी दुश्वार हो गए साहिब, उसे भी शौक़ था तस्वीर में उतरने का तो हम भी शौक़ से दीवार हो गए साहिब, तीरे लिबास के रंगों में खो गई फ़ितरत ये फूल शूल तो बेकार हो गए साहिब, गले लगा के उसे ख़्वाब में बहुत रोए और इतना रोए कि बेदार हो गए साहिब, हमारी रूह परिंदों को सौंप दी जाए कि ये बदन तो गुनाहगार हो गए साहिब, नज़र मिलाई तो एक आग ने लपेट लिया बदन जला ये तो गुलज़ार हो गए…
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bazmeshayari · 2 months
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तेरा लहजा तेरी पहचान मुबारक हो तुझे
तेरा लहजा तेरी पहचान मुबारक हो तुझे तेरी वहशत तेरा हैजान मुबारक हो तुझे, मैं मोहब्बत का पुजारी हूँ सो मैं जाता हूँ यानि नफ़रत का ये सामान मुबारक हो तुझे, आँख में तंज़ ओ रऊनत की चमक बाक़ी रहे लब पे ये तल्ख़ सी मुस्कान मुबारक हो तुझे, मैं दुआ करता हूँ तू शहर ए चराग़ाँ में रहे तेरा हर ख़्वाब ए गुलिस्तान मुबारक हो तुझे, तू हुकूमत का है शौक़ीन तेरा बनता है बेबसी शहर की सुल्तान मुबारक हो तुझे, मैं तो…
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bazmeshayari · 2 months
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मुझे आरज़ू जिसकी है उसको ही ख़बर नहीं
मुझे आरज़ू जिसकी है उसको ही ख़बर नहीं नज़रअंदाज़ कर दूँ ऐसी मेरी कोई नज़र नहीं, मना पाबंदियाँ हज़ार है इक़रार ए इश्क़ पर लेकिन असरार ए इश्क़ में कोई असर नहीं, कभी तो सुकूं की नींद सोए हम भी सारी रात मगर उसके जैसा तो और कोई सितमगर नहीं, आरज़ू है कि बहक जाऊँ उसकी आग़ोश में उसके दिल के सिवा और कोई मेरा घर नहीं..!!
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bazmeshayari · 2 months
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घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे
घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे वो गुलाबी कटोरे छलक जाएँगे, हमने अल्फ़ाज़ को आइना कर दिया छपने वाले ग़ज़ल में चमक जाएँगे, दुश्मनी का सफ़र एक क़दम दो क़दम तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे, रफ़्ता रफ़्ता हर एक ज़ख़्म भर जाएगा सब निशानात फूलों से ढक जाएँगे, नाम पानी पे लिखने से क्या फ़ाएदा लिखते लिखते तेरे हाथ थक जाएँगे, ये परिंदे भी खेतों के मज़दूर हैं लौट के अपने घर शाम तक जाएँगे, दिन में परियों की…
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