संत रामपाल जी महाराज जी को 37 वर्ष की आयु में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज से 17 फरवरी 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को रात्रि के समय नाम दीक्षा प्राप्त हुई। और तन-मन से सक्रिय होकर भक्ति साधना करके परमात्मा का साक्षात्कार किया।
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को भारतवर्ष के हरियाणा प्रांत में एक छोटे से गांव - धनाना, तहसील - गोहाना, जिला - सोनीपत में हुआ। संत जी ने अपनी पढ़ाई पूरी करके हरियाणा के सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की नौकरी प्राप्त की।
श्रीमद्देवीभागवत पुराण के सातवें स्कन्ध, अध्याय 36 में "देवी दुर्गा जी हिमालय राजा को ज्ञान उपदेश करते हुए कहती हैं कि ब्रह्म की भक्ति करो"। उस ब्रह्म की जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
पितरों ने कहा कि बेटा रुची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं।" रुची ऋषि ने जवाब दिया की पित्रामहों वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खो की साधना कहा है, अर्थात यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है। 🌱
पितरों ने कहा कि बेटा रुची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं।" रुची ऋषि ने जवाब दिया की पित्रामहों वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खो की साधना कहा है, अर्थात यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है। 🌱
भक्ति नहीं करने वाले व शास्त्रविरुद्ध भक्ति करने वाले, नकली गुरु बनाने वाले एवं पाप अपराध करने वालों को मृत्यु पश्चात् यमदूत घसीटकर ले जाते हैं और नरक में भयंकर यातनाएं देते हैं। तत्पश्चात् 84 लाख कष्टदायक योनियों में जन्म मिलता है।
सत्य भक्ति वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी के पास है। जिससे इस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान प्राप्त करके, उस तत्वज्ञान से अज्ञान का नाश करके, उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।
हजरत मुहम्मद जी को जिबराईल नामक फ़रिश्ते ने गला घोंट घोंट कर जबरदस्ती डरा धमका कर कुरान शरीफ का ज्ञान तथा नमाज आदि बताई। फिर भी हजरत मुहम्मद जी की आंखों के सामने उनके तीनों पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुए।
कुरान के अनुसार भक्ति करते हुए भी हज़रत मुहम्मद जी के जीवन में कहर ही कहर रहा।
(सल्लाहु अलैहि वसल्लम, लेखक - मुहम्मद इनायतुल्लाह सुब्हानी, पृष्ठ नं. 307 में प्रमाण है कि हजरत मुहम्मद जी ने मुसलमानों को खून-खराबा ना करने तथा ब्याज तक भी नहीं लेने का सन्देश दिया है। फिर भी मुस्लमान धर्म में मांस का भक्षण किया जाता है जो कि अल्लाह के विधान के विरुद्ध है।
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