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#औरंगाबाद(बिहार) का इतिहास
bihar-vishesh · 1 year
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Aurangabad, Bihar (Historical Facts) |औरंगाबाद(बिहार) से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य |
औरंगाबाद(बिहार) का एक गौरवशाली इतिहास है और प्राचीन भारत में सबसे बड़े और सबसे मजबूत साम्राज्यों में से एक होने का गौरव प्राप्त है – मगध। मगध का क्षेत्र प्राचीन काल में 600 से 250 ईसा पूर्व के दौरान एक विशाल साम्राज्य का घर था। Aurangabad, Bihar (Historical Facts) |औरंगाबाद(बिहार) से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य | इस पर बिम्बिसार और अजातशत्रु का भी शासन था। बाद में, चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक ने इस क्षेत्र…
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karanaram · 3 years
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🚩महाशिवरात्रि का ऐसा है इतिहास, इसदिन शिवजी को ऐसे करें प्रसन्न-09 मार्च 2021
🚩तीनों लोकों के मालिक भगवान शिव का सबसे बड़ा त्यौहार महाशिवरात्रि है ।महाशिवरात्रि भारत के साथ कई अन्य देशों में भी धूम-धाम से मनाई जाती है ।
🚩‘स्कंद पुराण के ब्रह्मोत्तर खंड में शिवरात्रि के उपवास तथा जागरण की महिमा का वर्णन है : ‘शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है । उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और भी दुर्लभ है । लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वशिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है ।
🚩शिवलिंग का प्रागट्य!
🚩पुराणों में आता है कि ब्रह्मा जी जब सृष्टि का निर्माण करने के बाद घूमते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो देखा कि भगवान विष्णु आराम कर रहे हैं। ब्रह्मा जी को यह अपमान लगा ‘संसार का स्वामी कौन?’ इस बात पर दोनों में युद्ध की स्थिति बन गई तो देवताओं ने इसकी जानकारी देवाधिदेव भगवान शंकर को दी।
🚩भगवान शिव युद्ध रोकने के लिए दोनों के बीच प्रकाशमान शिवलिंग के रूप में प्रकट हो गए। दोनों ने उस शिवलिंग की पूजा की। यह विराट शिवलिंग ब्रह्मा जी की विनती पर बारह ज्योतिर्लिंगों में विभक्त हुआ। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवलिंग का पृथ्वी पर प्राकट्य दिवस महाशिवरात्रि कहलाया।
🚩बारह ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं। वे स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है "स्वयं उत्पन्न"।
🚩1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के सौराष्ट्र में स्थापित है।
🚩2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है।
🚩3. महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।
🚩4. ॐकारेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदान देने हेतु यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।
🚩5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
🚩6. बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।
🚩7. भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।
🚩8. त्र्यंम्बकेश्वर (महाराष्ट्र) नासिक से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
🚩9. घुश्मेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग।
🚩10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मील दूरी पर स्थित है।
🚩11. काशी विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
🚩12. रामेश्वरम्‌ त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।
🚩दूसरी पुराणों में ये कथा आती है कि सागर मंथन के समय कालकेतु विष निकला था उस समय भगवान शिव ने संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिये स्वयं ही सारा विषपान कर लिया था। विष पीने से भोलेनाथ का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ के नाम से पुकारे जाने लगे। पुराणों के अनुसार विषपान के दिन को ही महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।
🚩कई जगहों पर ऐसा भी वर्णन आता है कि शिव पार्वती का उस दिन विवाह हुआ था इसलिए भी इस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाने की परंपरा रही है।
🚩पुराणों अनुसार ये भी माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया।
🚩शिवरात्रि वैसे तो प्रत्येक मास की चतुर्दशी (कृष्ण पक्ष) को होती है परन्तु फाल्गुन (कृष्ण पक्ष) की शिवरात्रि (महाशिवरात्रि) नाम से ही प्रसिद्ध है।
🚩महाशिवरात्रि से संबधित पौराणिक कथा!!
🚩एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?
🚩उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था । पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'
🚩शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
🚩पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरी। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।
🚩कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।
🚩शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।
🚩मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।
🚩मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
🚩थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।
🚩परंपरा के अनुसार, इस रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है जिससे मानव प्रणाली में ऊर्जा की एक शक्तिशाली प्राकृतिक लहर बहती है। इसे भौतिक और आध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है इसलिए इस रात जागरण की सलाह भी दी गयी है ।
🚩शिवरात्रि व्रत की महिमा!!
🚩इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो जन करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है ।
🚩महाशिवरात्रि व्रत की विधि!!
इस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है। प्रत्येक पहर की पूजा में "ॐ नम: शिवाय" का जप करते रहना चाहिए। अगर शिव मंदिर में यह जप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जप किया जा सकता है । चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जपों से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उपवास की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।
🚩फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी अर्थात् महाशिवरात्रि पृथ्वी पर शिवलिंग के प्राकट्य का दिवस है और प्राकृतिक नियम के अनुसार जीव-शिव के एकत्व में मदद करनेवाले ग्रह-नक्षत्रों के योग का दिवस है । इस दिन रात्रि-जागरण कर ईश्वर की आराधना-उपासना की जाती है । ‘शिव से तात्पर्य है ‘कल्याणङ्क अर्थात् यह रात्रि बडी कल्याणकारी रात्रि है ।
🚩महाशिवरात्रि का पर्व अपने अहं को मिटाकर लोकेश्वर से मिलने के लिए है । आत्मकल्याण के लिए पांडवों ने भी शिवरात्रि महोत्सव का आयोजन किया था, जिसमें सम्मिलित होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारिका से हस्तिनापुर आये थे । जिन्हें संसार से सुख-वैभव लेने की इच्छा होती है वे भी शिवजी की आराधना करते हैं और जिन्हें सद्गति प्राप्त करनी होती है अथवा आत्मकल्याण में रुचि है वे भी शिवजी की आराधना करते हैं ।
शिवपूजा में वस्तु का मूल्य नहीं, भाव का मूल्य है । भावो हि विद्यते देवः । आराधना का एक तरीका यह है कि उपवास रखकर पुष्प, पंचामृत, बिल्वपत्रादि से चार प्रहर पूजा की जाये । दूसरा तरीका यह है कि मानसिक पूजा की जाये ।
🚩 हम मन-ही-मन भावना करें :
ज्योतिर्मात्रस्वरूपाय निर्मलज्ञानचक्षुषे । नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिंगमूर्तये ।।
‘ज्योतिमात्र (ज्ञानज्योति अर्थात् सच्चिदानंद, साक्षी) जिनका स्वरूप है, निर्मल ज्ञान ही जिनके नेत्र है, जो लिंगस्वरूप ब्रह्म हैं, उन परम शांत कल्याणमय भगवान शिव को नमस्कार है ।
🚩‘ईशान संहिता में भगवान शिव पार्वतीजी से कहते हैं : फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथिः स्याच्चतुर्दशी । तस्या या तामसी रात्रि सोच्यते शिवरात्रिका ।।तत्रोपवासं कुर्वाणः प्रसादयति मां ध्रुवम् । न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया । तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः ।।
🚩‘फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रय करके जिस अंधकारमयी रात्रि का उदय होता है, उसीको ‘शिवरात्रि' कहते हैं । उस दिन जो उपवास करता है वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है । उस दिन उपवास करने पर मैं जैसा प्रसन्न होता हूँ, वैसा स्नान कराने से तथा वस्त्र, धूप और पुष्प के अर्पण से भी नहीं होता ।
🚩शिवरात्रि व्रत सभी पापों का नाश करनेवाला है और यह योग एवं मोक्ष की प्रधानतावाला व्रत है ।
🚩महाशिवरात्रि बड़ी कल्याणकारी रात्रि है । इस रात्रि में किये जानेवाले जप, तप और व्रत हजारों गुणा पुण्य प्रदान करते हैं ।
🚩स्कंद पुराण में आता है : ‘शिवरात्रि व्रत परात्पर (सर्वश्रेष्ठ) है, इससे बढकर श्रेष्ठ कुछ नहीं है । जो जीव इस रात्रि में त्रिभुवनपति भगवान महादेव की भक्तिपूर्वक पूजा नहीं करता, वह अवश्य सहस्रों वर्षों तक जन्म-चक्रों में घूमता रहता है ।
🚩यदि महाशिवरात्रि के दिन ‘बं' बीजमंत्र का सवा लाख जप किया जाय तो जोड़ों के दर्द एवं वायु-सम्बंधी रोगों में विशेष लाभ होता है ।
🚩व्रत में श्रद्धा, उपवास एवं प्रार्थना की प्रधानता होती है । व्रत नास्तिक को आस्तिक, भोगी को योगी, स्वार्थी को परमार्थी, कृपण को उदार, अधीर को धीर, असहिष्णु को सहिष्णु बनाता है । जिनके जीवन में व्रत और नियमनिष्ठा है, उनके जीवन में निखार आ जाता है
स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित "ऋषि प्रसाद पत्रिका"
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shaileshg · 4 years
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कुछ घंटों पहले ही बिहार के डीजीपी से पूर्व डीजीपी हुए गुप्तेश्वर पांडे इन दिनों छाए हुए हैं। अभी मंगलवार को ही उन्होंने रिटायरमेंट से पांच महीना पहले ही वीआरएस लिया है। अब राजनीतिक गलियारों में उनके चुनाव लड़ने की चर्चा जोरों पर है। माना जा रहा है कि एनडीए ���ी सीट पर वे विधानसभा चुनाव या वाल्मीकिनगर से लोकसभा उपचुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि उन्होंने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड केस पर अपने बयानों से लाइम लाइट में आए गुप्तेश्वर पांडे ने इससे पहले 2009 में भी इस्तीफा दिया था और बक्सर लोकसभा सीट से दावेदारी पेश की थी। हालांकि ऐन वक्त पर भाजपा ने सिटिंग कैंडिडेट लालमुनि चौबे को टिकट दे दिया था। जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया था।
गुप्तेश्वर पांडे के वीआरएस लेने की घटना को पॉलिटिकल माइलेज जरूर मिल रहा है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पहली बार कोई डीजीपी राजनीति में एंट्री लिया है। इससे पहले भी दर्जनभर से ज्यादा डीजीपी राजनीति में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। कई सफल भी हुए हैं तो कइयों को निराशा भी हाथ लगी है।
1. विष्णु दयाल राम : आंख फोड़वा कांड को लेकर चर्चा में आए, 2019 में लगातार दूसरी बार चुने गए सांसद
1980 के दशक में बिहार में आंख फोड़वा कांड को लेकर सियासत काफी गरमाई थी। तब अपराधियों की आंख में तेजाब डाल दिया जाता था। 30 से ज्यादा अपराधियों के आंख फोड़ने की घटना सामने आई थी। ज्यादातर घटनाएं भागलपुर में हुई थी। तब भागलपुर के एसपी थे विष्णु दयाल राम यानी वीडी राम। इस घटना को लेकर उन पर आरोप लगे जिसकी सीबीआई जांच भी हुई। लेकिन, उनके खिलाफ सबूत नहीं मिल सका। ऐसा कहा जाता है कि साल 2003 में बनी गंगाजल फिल्म बहुत हद तक उसी घटना पर आधारित थी।
विष्णु दयाल राम झारखंड के पलामू से सांसद हैं। 1973 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे विष्णु दो बार झारखंड के डीजीपी रह चुके हैं। एक बार 2005 से 2006 और दूसरी बार 2007 से 2010 तक। बिहार के बक्सर जिले से ताल्लुक रखने वाले विष्णु रिटायरमेंट के करीब चार साल बाद 2014 में भाजपा में शामिल हुए और झारखंड की पलामू लोकसभा सीट से सांसद बने। इसके बाद 2019 में वे लगातार दूसरी बार सांसद बने। वे कई पार्लियामेंट्री कमेटी के सदस्य रह चुके हैं।
2. युमनाम जयकुमार सिंह : डीजीपी के बाद सीधे डिप्टी सीएम बने लेकिन दो साल बाद ही सरकार से बगावत कर दी
इस साल जून के महीने में जब पूरा देश कोरोना से लड़ रहा था तब मणिपुर में एनडीए अपनी सरकार बचाने के लिए जहोजद्द कर रही थी। गठबंधन के 9 विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत कर दिया था। इस बगावत के सूत्रधार थे यहां के डिप्टी सीएम युमनाम जयकुमार। जिसके बाद एनडीए सरकार अल्पमत में आ गई थी। जैसे तैसे सरकार तो बच गई लेकिन युमनाम की छुट्टी हो गई। हाल ही में एनपीपी ने उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से बर्खास्त कर दिया है।
65 साल के युमनाम जयकुमार सिंह की गिनती पूर्वोत्तर के बड़े नेताओं में होती है। अभी वे उरिपोक विधानसभा क्षेत्र से नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के विधायक हैं। इससे पहले वे मणिपुर के उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।1976 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे युमनाम 2007 से 2012 तक मणिपुर के डीजीपी रहे। रिटायरमेंट के करीब 5 साल बाद उन्होंने उन्होंने राजनीति में एंट्री ली। 2017 में उरिपोक सीट से जीत दर्ज करने के बाद वे एन विरेन सिंह की सरकार में उपमुख्यमंत्री बने।
3. डीके पांडेय : रिटायरमेंट के भाजपा में शामिल हुए, टिकट के लिए दावेदारी की लेकिन चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला डीके पांडेय 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। वे सीआरपीएफ के एडीजी भी रह चुके हैं। 2015 में उन्हें झारखंड का डीजीपी बनाया गया था। वे मार्च 2019 तक झारखंड के डीजीपी रहे। रिटायरमेंट के बाद अक्टूबर 2019 में पांडेय भाजपा में शामिल हो गए।
पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास के करीबी माने जाने वाले डीके को उम्मीद थी कि इस बार के झारखंड विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट मिलेगा। उन्होंने निरसा सीट से दावेदारी की थी लेकिन ऐन वक्त पर उनका टिकट कट गया। एक दिलचस्प किस्सा यह भी है कि उनका अपना टिकट तो कटा ही उन्होंने अपने समधी गणेश मिश्र का भी टिकट कटवा दिया। दोनों में से किसी को निरसा से टिकट नहीं मिला।
डीके पांडेय कांके इलाके में अपने बने हुए घर को लेकर हमेशा चर्चा में रहे हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने गैरमजरूआ जमीन पर अपना घर बनाया है। इस मामले की जांच चल रही है। अभी कुछ दिन पहले उनकी बहू ने भी उनपर दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाया था।
4. निखिल कुमार : एक बार सांसद और दो बार राज्यपाल बने, पिता रह चुके हैं बिहार के सीएम निखिल कुमार के परिवार का पुराना राजनीतिक इतिहास रहा है। उनके पिता सत्येन्द्र नारायण सिंह बिहार के मुख्यमंत्री ��र औरंगाबाद लोकसभा से छह बार सांसद रह रहे। बिहार के वैशाली जिले से ताल्लुक रखने वाले 1963 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे निखिल नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी) आईटीबीपी और आरपीएफ के डीजीपी रह चुके हैं। वे 2001 में रिटायर हुए। इसके बाद 2004 में कांग्रेस में शामिल हो गए।
उन्होंने कांग्रेस से औरंगाबाद सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इसके बाद 2009 में नागालैंड और 2013 में केरल के राज्यपाल बने। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिला। जिसके बाद कांग्रेस ने राज्यसभा के लिए उन्हें उम्मीदवार बनाए जाने का भरोसा दिया था लेकिन, उन्हें मौका नहीं मिला।
5. प्रकाश मिश्रा : रिटायरमेंट के बाद भाजपा में शामिल हुए लेकिन एक लाख से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा
1977 बैच के आईपीएस अधिकारी और ओडिशा के पूर्व डीजीपी प्रकाश मिश्रा का भी विवादों से नाता रहा है। वे 2012 से 2014 तक ओडिशा के डीजीपी रहे। सिंतबर 2014 में ओडिशा सरकार ने उन पर विजिलेंस का चार्ज लगा दिया और डीजीपी पद से हटा दिया। तब जमकर सियासत हुई थी। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने ओडिशा सरकार को घेरा था और साजिश के तहत परेशान करने का आरोप लगाया था। जिसके बाद पूरा मामला कोर्ट में गया। जून 2015 में कोर्ट ने सरकार के आरोपों को खारिज करते हुए प्रकाश मिश्रा को राहत दी थी।
इसके बाद 2014 से 2016 तक वे सीआरपीएफ के डीजीपी रहे। रिटायरमेंट के बाद 2019 में वे भाजपा में शामिल हो गए। कटक सीट से उन्हें लोकसभा का टिकट भी मिला, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली। उन्हें बीजद के उम्मीदवार भर्तृहरि महताब के हाथों एक लाख से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।
इन अधिकारियों के अलावा और भी ऐसे डीजीपी रहे जिन्होंने राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई। हालांकि इनमें से ज्यादातर को उतनी सफलता और शोहरत नहीं मिली जिसकी उन्होंने उम्मीद की थी।
6. सुनील कुमार 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे सुनील कुमार हाल ही में जदयू में शामिल हुए हैं। इस बार के विधानसभा में वे भी अपना किस्मत आजमा सकते हैं। सुनील कुमार होम गार्ड और फायर सर्विसेज के डीजीपी रह चुके हैं। इसी साल जुलाई में सुनील कुमार रिटायर हुए हैं। गोपालगंज से ताल्लुक रखने वाले पूर्व DGP सुनील कुमार के भाई अनिल कुमार कांग्रेस के विधायक हैं।
7. अजीत सिंह भटोटिया
1968 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे अजीत सिंह भटोटिया हरियाणा के पूर्व डीजीपी रह चुके हैं। रिटायरमेंट के बाद 2005 में वे भाजपा में शामिल हुए। इसके बाद 2010 वे कांग्रेस में शामिल हो गए। हालांकि कांग्रेस में भी वे ज्यादा दिन टिक नहीं सके और 2014 में उन्होंने आम आदमी पार्टी की सदस्यता ले ली।
8. आर नटराज
आर नटराज तमिलनाडु की एक सीट से विधायक हैं। 1975 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे नटराज की गिनती तेज तर्रार अधिकारियों में होती थी। तमिलनाडु के डीजीपी रह चुके नटराज 2014 में एआईडीएमके में शामिल हुए थे। इसके बाद 2016 में उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।
9. एचआर स्वान
1957 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे एचआर स्वान की मौत इसी साल मई में हुई। हरियाणा के डीजीपी रह चुके स्वान 1996 में भाजपा में शामिल हुए थे। उन्होंने 1996 और 98 में लोकसभा चुनाव लड़ा था, हालांकि उन्हें जीत नहीं मिली। 2004 में उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया था।
10.विकास नारायण राय
विकास नारायण राय हरियाणा के डीजीपी रह चुके हैं। 1977 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे विकास 2012 में रिटायर हुए। इसके बाद 2014 में आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। वे अक्सर भाजपा और केंद्र सरकार को लेकर प्रहार करते रहते हैं।
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निखिल कुमार, डीके पांडेय, प्रकाश मिश्रा , युमनाम जयकुमार सिंह और विष्णु दयाल राम (ऊपर से नीचे) ये सभी डीजीपी रह चुके हैं।
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theindiapost · 5 years
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रजाकार और कम्युनिस्ट : अपराधियों का महिमामंडन कोई कम्युनिस्टों से सीखे
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डॉ विवेक आर्य : अपराधियों का महिमामंडन कोई कम्युनिस्टों से सीखे. आजकल मुख्य मिडिया और सोशियल मिडिया पर रजाकारों के गुण गाए जा रहे हैं. उन्हें स्वतन्त्रता आन्दोलन का सिपाही बताया जा रहा है. सामान्य भारतीय तो दूर 99% इतिहास के अध्यापक भी नहीं जानते कि रजाकार कौन थे और उन्होंने कितने अत्याचार किए थे? ‘रजा़कार’ का शाब्दिक अर्थः स्वयंसेवक। लेकिन ऐतिहासिक कारणों से इस शब्द का इतना अवमूल्यन हो चुका है कि यह शब्द धर्माध नृशंस अत्याचारी के रूप में रूढ़ हो गया। अविभाजित भारत के रजवाड़ों में सबसे बड़ा राज्य था आसिफज़ाही ने। इसी वंश के अंतिम बादशाह निज़ाम मीर उस्मान अली द्वारा शासित हैदराबाद। तेलंगाना के आठ (करीमनगर, अदिलाबाद, निज़ामाबाद, मेदक, महबूबनगर, नलगोंडा, वारंगल व खम्माम) महाराष्ट्र के पांच (औरंगाबाद, नादेड़, उस्मानाबाद, परभणी व बीड), कर्नाटक के तीन (गुलबर्गा, रायचूर व बीदर)-कुल सोलह जिलों से मिल कर बना था हैदराबाद राज्य। इस राज्य पर दो राजवंशों ने शासन किया था-कुतुबशाही और आसिफजाही ने। इसी वंश का सातवां व अंतिम बादशाह था उस्मान अली, जो दुनिया का तीसरा सबसे धनवान आदमी था। इस राज्य की बानवे प्रतिशत जनता तेलुगु, कन्नड़ और मराठीभाषी हिंदू थी, केवल आठ प्रतिशत मुसलमान थे, जो अधिकांशतः शासक वर्ग था। वक्त गुज़रते धर्मांधता की हवाएं बहने लगीं....मुल्ला-मौलवियों की ताकत बढ़ गयी और इस्लाम का उन्माद जागने लगा। बहादुर यार जंग से शुरू हुई यह दास्तान का़सिम रज़वी तक पहुंचते-पहुचते ख़तरनाक मोड़ पर आ गयी। लातूर का एक वकील क़ासिम रजवी हैदराबाद आता है और इस ज़मीन को अपने इरादों का महल खड़ा करने के काबिल पाता है...तुर्की के ख़िलाफ़त आंदोलन ने दुनिया के मुसलमानों को अपनी एक पहचान बनाने की राजनीतिक ताकत का अहसास दिला दिया...दुर्भाग्य से गांधी ने सुदूर देश में घटती ऐतिहासिक घटना को पूरा-पूरा समर्थन देते हुए इसके दूरगामी परिणामों को नजरंदाज़ कर दिया। ‘दारुल इस्लाम’ की प्रबल भावना मुल्ला-मौलवियों द्वारा मुसलमानों में फैलायी जाती रही। इसका दुष्परिणाम हुआ-एक ही राष्ट्र में अलगाववादी मनोवृत्ति का उद्रेक। केरल में मोपलाओं ने जिस बड़े पैमाने पर हिंदुओं की हत्याएं की, तलवार के बल पर उन्हें जबरन मुसलमान बनाया, यह मध्ययुग की बात नहीं, बीसवीं, सदी के आरंभिक दशकों की दारुण दास्तान है। बंगाल और उत्तर प्रदेश भी कहां अछूते रहे ? फिर हैदराबाद तो मुसलमान बादशाहों द्वारा शासित ऐसा बड़ा राज्य था जिसकी अपनी रेलवे थी, डाक व्यवस्था थी, सिक्के थे...और अंग्रेजों की दोस्ती थी... नौजवान वकील क़ासिम रज़वी ने दस बरसों में तो हैदराबाद का माहौल ही बदल डाला। रजाकारों की प्राइवेट आर्मी खड़ी कर ली। यह संख्या देखते-देखते दो लाख तक पहुंच गयी। एक ख़ास वेशभूषा : खाकी निकर, ख़ाकी क��ीज़, रूमी टोपी, हाथ में हथियार, कमर में लटकता जंबिया और खंज़र। सुबह ही शुरू हो जाती परेड बेग़म बाजार, चारमीनार, कोठी, नामपल्ली हिमायत नगर में। यूं कहें कि सारे शहर में लंबी-लंबी कतारें रज़ाकारों की परेड करती...गगनभेदी नारे लगातीं...निकलतीं तो हिंदुओं के दिल कांपने लगते। राह चलते किसी ब्राह्मण की चोटी खींची जाती, किसी दुकान या मकान पर पत्थर बरसाये जाते, मनचाही चीज़ उठा ली जाती...निरीह बहुसंख्य हिंदू देखते रह जाते। औरतों ने सड़कों पर निकलना बंद कर दिया था...मर्द भी सहमे-सहमे काम पर आते-जाते...चारों ओर आतंक का साया छाया हुआ था। गांवों में तबलीग (धर्मांतरण) का बाज़ार गर्म था। माला, मादिमा....चमारों, हरिजनों को मार-मार कर मुसलमान बनाया जाता था। जो नहीं मानते, उन पर चोरी-डकैती के आरोप लगा कर पुलिस उन्हें पक़ड़ कर ले जाती। उनकी इतनी धुनाई होती कि कभी-कभी मर भी जाते। उनकी झोंपड़ियां जला दी जातीं...घर की औरतों को नंगा कर के पीटा जाता...उन्हें उठा कर ले जाया जाता। अत्याचारों के इस डर से बड़ी संख्या में मुसलमान बन रहे थे। मुस्लिम बनने के बाद उनको दो फायदे हो रहे थे-पुलिस का संरक्षण और रज़ाकार बन कर लूटपाट का अवसर। उनकी ग़रीबी बेरोज़गारी और मुफ़लिसी दूर हो जाती...और जो ऊंचे कुल वाले व्यापारी, जमींदार के कारिदे, माली पटेल, पुलिस पटेल उनको जूतों के बराबर समझते, दिन भर बेगारी कराते और जूते मारते, उन्हीं पर ये नये मुसलमान अपना रोब झाड़ते...रातों-रात सारा माहौल बदल जाता।, उन्हें गाय का गोश्त खिलाया जाता, उन्हें कलमा पढ़ाया जाता और उनका नये सिरे से नामकरण संस्कार होता-करीमुल्ला, रहमत अली, इद्रीस, रफअत आदि। दूसरे दिन से ही ये हरिजन रजारों में शामिल हो जाते डंडे, चाक, जंबिये, दुरांती ले कर। शाम तक लूट का काफी माल ले आते। खू़ब खाते-पीते और मौज-मस्ती मनाते। नया धर्म शासक का धर्म था, पुलिस और सरकारी अमले उनके साथ थे, फिर डर काहे का ? सदियों से सोया हुआ उनका प्रतिकार भंयकर रूप ले कर प्रकट होने लगा था। इधर क़ासिम रज़वी ने उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल से बड़ी संख्या में मुसलमानों को बुला कर हैदराबाद में बसाया। उसकी मंशा यही थी कि हैदराबाद में मुसलमानों की संख्या आधी हो जाये, बस। फिर तो इन काफ़िरों से वे निपट लेंगे। क़ासिम रज़वी इतना शक्तिशाली हो गया कि उससे निजा़म भी डरने लगा। उसका ‘मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन’ संगठन उत्तर भारत के ‘मुस्लिम लीग’ से कुछ कम नहीं था, जिसने पंजाब और नोआखली में क़त्लेआम रचाया था। जाने-माने गुंडे और हत्यारे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करने रज़ाकार बन बैठे पुलिस और रज़ाकार एक ही थैली के चट्टे बट्टे थे। इसके बाद निज़ाम के राज्य में शहरों से ले कर कस्बों और गांवों तक रज़ाकारों ने सामान्य प्रजा पर जो अत्याचार किये, लूटपाट और हत्याएं कीं, स्त्रियों की अस्मतों को लूटा, घर जलाये और आतंक का वातावरण तैयार कर बड़ी संख्या में लोगों को पड़ोस के प्रांतों में भागने के लिए बाध्य किया, वह तो इतिहास की ही बात है। रजाकारों के गिरोह न केवल रियासत के हिन्दुओं पर अत्याचार ढा रहे थे, बल्कि पड़ोस के राज्यों में भी उत्पात मचा रहे थे। पड़ोसी राज्य मद्रास के कम्युनिस्ट भी इन हत्यारों के साथ हो गये। कासिम रिजवी और उसके साथी उत्तेजक भाषणों से मुसलमानों को हिन्दू समाज पर हमले के लिये उकसा रहे थे। हैदराबाद रेडियो से हर रोज घोषणाएं होती थीं। इधर निजाम ने कानून बना दिया था कि भारत का रुपया रियासत में नहीं चलेगा। यही नहीं, उसने पाकिस्तान को बीस करोड़ रुपये की मदद भी दे दी और कराची में रियासत का एक जन सम्पर्क अधिकारी बिना भारत सरकार की अनुमति के नियुक्त कर दिया। निज़ाम के राज्य में 95 प्रतिशत सरकारी नौकरियों पर मुसलमानों का कब्ज़ा था और केवल 5 प्रतिशत छोटी नौकरियों पर हिन्दुओं को अनुमति थी। निज़ाम के राज्य में हिन्दुओं को हर प्रकार से मुस्लमान बनाने के लिए प्रेरित किया जाता था। हिन्दू अपने त्योहार बिना पुलिस की अनुमति के नहीं मना सकते थे। किसी भी प्रकार का धार्मिक जुलूस निकालने की अनुमति नहीं थी क्यूंकि इससे मुसलमानों की नमाज़ में व्यवधान पड़ता था। हिन्दुओं को अखाड़े में कुश्ती तक लड़ने की अनुमति नहीं थी। जो भी हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेता तो उसे नौकरी, औरतें, जायदाद सब कुछ निज़ाम साहब दिया करते थे। जो भी कोई हिन्दू अख़बार अथवा साप्ताहिक पत्र के माध्यम से निज़ाम के अत्याचारों को हैदराबाद से बाहर अवगत कराने की कोशिश करता था तो उस पर छापा डाल कर उसकी प्रेस जब्त कर ली जाती और जेल में डाल कर अमानवीय यातनाएँ दी जाती थी। 29 नवंबर 1947 को इसी निजाम से नेहरू ने एक समझौता किया था कि हैदराबाद की स्थिति वैसी ही रहेगी जैसी आजादी के पहले थी। 10 सिंतबर 1948 को सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को एक खत लिखा जिसमें उन्होने हैदराबाद को हिंदुस्तान में शामिल होने का आखिरी मौका दिया थ���। लेकिन हैदराबाद के निजाम ने सरदार पटेल की अपील ठुकरा दी.आखिर सरदार पटेल क्रुद्ध हो उठे और भारतीय सेना ने 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद रियासत पर आपरेशन पोलो के नाम से हमला कर दिया तब नेहरू देश में नहीं थे। सेना ने केवल 4 दिनों की लड़ाई में 2,00,000 बहादुर जेहादियों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा और 1373 जेहादियों को 72 हूरों के पास भेज दिया। 17 सितम्बर 1948 को आत्मसमर्पण कर दिया. ये सब लिखने का उद्देश्य यह है कि मिडिया के झूठ से बचें. 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hotsservices · 7 years
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