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#बिहार बनाम हरियाणा
trendingwatch · 2 years
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विजय हजारे ट्रॉफी लाइव स्कोर अपडेट 17 नवंबर राउंड 4 मैच नवीनतम स्कोरकार्ड टॉस परिणाम हाइलाइट्स
विजय हजारे ट्रॉफी लाइव स्कोर अपडेट 17 नवंबर राउंड 4 मैच नवीनतम स्कोरकार्ड टॉस परिणाम हाइलाइट्स
नमस्ते और गुरुवार को पूरे भारत में हो रहे विजय हजारे ट्रॉफी मैचों के स्पोर्टस्टार के लाइव कवरेज में आपका स्वागत है। देखते रहिए क्योंकि हमें सभी नवीनतम अपडेट और स्कोर मिलते हैं। विजय हजारे ट्रॉफी 2022, राउंड 4 मैच टॉस अपडेट दिल्ली बनाम कर्नाटक: कर्नाटक ने टॉस जीता, पहले फील्डिंग करने का फैसला दिल्ली प्लेइंग XI: हिम्मत सिंह, ध्रुव शौरी, यश ढुल, नीतीश राणा (c), ललित यादव, आयुष बडोनी, लक्ष्य (wk),…
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#Chhattisgarh vs Kerala#Gujarat vs Saurashtra#Jharkhand vs Rajasthan#Maharashtra vs Mumbai#Meghalaya vs Vidarbha#अरुणाचल प्रदेश बनाम हरियाणा#असम बनाम सिक्किम#आज क्रिकेट लाइव स्कोर से मेल खाता है#आज घरेलू मैच लाइव स्कोर#आंध्र बनाम बिहार#क्रिकेट खबर#क्रिकेट लाइव#क्रिकेट स्कोर का सीधा प्रसारण#खेल समाचार#गोवा बनाम तमिलनाडु#घरेलू क्रिकेट लाइव स्कोर#चंडीगढ़ बनाम मणिपुर#जम्मू और कश्मीर बनाम पंजाब#दिल्ली बनाम कर्नाटक#बंगाल बनाम पुडुचेरी#बड़ौदा बनाम ओडिशा#मध्य प्रदेश बनाम उत्तराखंड#रेलवे बनाम सेवाएं#लाइव स्कोर#विजय हजारे ट्रॉफी 15 नवंबर का स्कोरकार्ड से मेल खाता है#विजय हजारे ट्रॉफी 17 नवंबर के मैचों के नतीजे#विजय हजारे ट्रॉफी 2021-22 परिणाम#विजय हजारे ट्रॉफी 2022#विजय हजारे ट्रॉफी 2022 लाइव अपडेट#विजय हजारे ट्रॉफी 2022-23 लाइव क्रिकेट स्कोर
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dainiksamachar · 1 year
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मोदी के खिलाफ सब दल हुए एक तो हारेगी BJP? चौंकाने वाला 'वोट गणित' समझिए
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 () की तैयारी सभी राजनीतिक दलों की ओर से शुरू हो गई है। 2024 के चुनाव में विपक्षी दल (Opposition Parties) बीजेपी (BJP) को घेरने की रणनीति तैयार कर रहे हैं। विपक्षी एकजुटता की बात हो रही है और इसको लेकर प्रयास भी जारी है। भारत में विपक्षी एकता पर एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भी वॉशिंगटन में कहा कि एकजुट विपक्ष बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनाव में हरा देगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अलग-अलग दलों से मुलाकात कर रहे हैं। विपक्ष की ओर से रणनीति तैयार करने के लिए बिहार में एक बैठक भी हो रही है। विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से यह कहा जा रहा है कि मिलकर लड़ेंगे तो बीजेपी को हराया जा सकता है। रणनीति 2024 की तैयार हो रही है लेकिन 2019 के चुनाव को देखा जाए तो मुकाबला सिर्फ बीजेपी बनाम अन्य नहीं था। नतीजों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों का ही सिर्फ दबदबा है। वहां कांग्रेस और बीजेपी सीन में ही नहीं है। साथ ही कई सीटों पर सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला है। 543 सीटों के पूरे गणित को इन 5 पॉइंट्स में समझा जा सकता है। 1. बीजेपी बनाम कांग्रेस (161 सीटें )12 राज्य और 3 केंद्रशासित प्रदेश जिसमें 161 लोकसभा सीटें शामिल हैं। बीजेपी और कांग्रेस के बीच यहां मुख्य मुकाबला देखने को मिला था। 147 सीटें ऐसी जहां दोनों के बीच सीधा मुकाबला था। वहीं 12 सीटों पर क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दल को चुनौती देते दिखे। 2 सीटों पर क्षेत्रीय दलों के बीच ही मुकाबला था। इसमें मध्यप्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, असम, छत्तीसगढ़, हरियाणा राज्य शामिल हैं। यहां बीजेपी को 147 सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस को 9 और अन्य के खाते में 5 सीट गई। 2.बीजेपी बनाम क्षेत्रीय दल (198 सीटें)यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा... इन 5 राज्यों की 198 सीटों पर अधिकांश में बीजेपी और रीजनल पार्टी के बीच ही मुकाबला रहा। 154 सीटों पर सीधा बीजेपी और क्षेत्रीय दलों के बीच मुकाबला था। 25 सीटों पर कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच मुकाबला था। 19 सीटों पर क्षेत्रीय दलों के बीच ही मुकाबला था। बंगाल की 42 सीटों में से 39 सीटों पर बीजेपी या तो पहले या दूसरे नंबर पर थी। पिछले चुनाव में बीजेपी को यहां 116 सीटों पर, कांग्रेस 6 और अन्य को 76 सीटों पर जीत मिली। 3.कांग्रेस बनाम क्षेत्रीय दल (25 सीटें )2019 के चुनाव में कांग्रेस केरल, लक्षद्वीप, नगालैंड, मेघालय और पुडुचेरी की 25 सीटों में से 20 पर पहले या दूसरे नंबर पर रही। यहां ब���जेपी लड़ाई में भी नहीं दिखी। केरल की केवल एक सीट थी जहां बीजेपी को दूसरा स्थान हासिल हुआ था। यहां 17 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली। वहीं अन्य को 8 सीटें मिलीं। 4.यहां कोई मार सकता है बाजी (93 सीटें )6 राज्य ऐसे हैं जहां की 93 सीटों पर सबके बीच मुकाबला देखा गया। 93 सीटों पर बीजेपी, कांग्रेस और क्षेत्रीय दल सभी मजबूत नजर आए। महाराष्ट्र इसका उदाहरण है जहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों गठबंधन के साथ में हैं। यहां पिछले चुनाव में बीजेपी को 40, अन्य को 41 और कांग्रेस को 12 सीटों पर जीत हासिल हुई। 5.सिर्फ स्टेट पार्टी का ही दबदबा (66 सीटें )तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मिजोरम और सिक्किम की 66 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां सिर्फ क्षेत्रीय दल का ही दबदबा है। तमिलनाडु की 39 सीटों में से सिर्फ 12 सीटों पर ही कांग्रेस या बीजेपी का थोड़ा आधार है। वह भी गठबंधन के सहारे। यहां 58 सीटों पर अन्य और 8 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली। बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था। http://dlvr.it/Sq1ww9
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shaileshg · 4 years
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शाम ढलने को है। किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी अभी-अभी अपने घर लौटे हैं। पूरा दिन किसानों के साथ आंदोलन में शामिल रहने बाद अब वे स्थानीय मीडिया से घिरे हुए हैं। उनका फोन अब भी लगातार बज रहा है और लगभग हर कॉल पर वे एक-सा जवाब देते हुए लोगों को बता रहे हैं कि किसानों के लिए आगे कि रणनीति क्या होगी।
बीते कुछ महीनों से यही गुरनाम सिंह की दिनचर्या बन गई है। माना जाता है कि हरियाणा में इन दिनों जो किसान आंदोलन हो रहा है, उसमें गुरनाम सिंह की सबसे अहम भूमिका रही है। कुरुक्षेत्र जिले के चढूनी गांव के रहने वाले गुरनाम सिंह भारतीय किसान यूनियन (हरियाणा) के अध्यक्ष हैं।
पिछले दो महीनों में वे हरियाणा में चार बड़े प्रदर्शन कर चुके हैं। इन प्रदर्शनों की शुरुआत 20 जुलाई से हुई थी, जब 15 हजार ट्रैक्टरों के साथ हरियाणा के किसान सड़कों पर उतर आए थे। गुरनाम सिंह बताते हैं, ‘केंद्र सरकार जून में तीन अध्यादेश लेकर आई। यह वह दौर था जब हम लोग कोरोना के डर से घरों से भी नहीं निकल रहे थे, लेकिन जब हमने इन कानूनों के प्रावधान देखे तो सड़कों पर निकलना हमारी मजबूरी हो गई। ये कानून खेती और किसानी की कब्र खोदने के लिए बनाए गए हैं।’
जिन तीन कानूनों का जिक्र गुरनाम सिंह कर रहे हैं उनमें से दो कानून संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुके हैं, जबकि एक का अभी राज्यसभा से पारित होना बाकी है। ये तीन कानून हैं: कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020।
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कृषि अध्यादेश के विरोध में हरियाणा के किसान और किसान संगठनों से जुड़े लोग सड़कों पर उतर आए हैं। वे इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
केंद्र सरकार का दावा है कि इन कानूनों का पारित होना एक ऐतिहासिक फैसला है और इससे किसानों के जीवन में अभूतपूर्व समृद्धि आएगी। इसके ठीक उलट गुरनाम सिंह दावा करते हैं कि इन कानूनों से किसानों के जीवन में अभूतपूर्व दरिद्रता और बर्बादी आने वाली है।
इस पर विस्तार से चर्चा करते हुए वे कहते हैं, ‘सबसे अहम बदलाव जो इन कानूनों से होगा वह है मंडी के बाहर व्यापारी को खरीद की छूट मिलना। अभी सारा व्यापार मंडियों के जरिए होता है। वहां एक टैक्स व्यापारी को चुकाना होता है जो आखिरकार किसानों के ही काम आता है। पंजाब, हरियाणा के खेतों से गुजरने वाली बेहतरीन पक्की सड़कें जो आपको दिखती हैं वह इसी टैक्स से बन सकी हैं।’
अब सरकार मंडियों से बाहर व्यापार की छूट दे रही है तो इससे किसानों को कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि बड़े व्यापारियों को फायदा होगा, क्योंकि वे लोग बिना टैक्स चुकाए बाहर से खरीद कर सकेंगे। इससे एक तरफ किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिलना बंद हो जाएगा, दूसरी तरफ धीरे-धीरे मंडियां ठप पड़ने लगेंगी, क्योंकि जब मंडियों से सस्ता माल व्यापारी को बाहर मिलेगा तो वह क्यों टैक्स चुकाकर मंडी में माल खरीदेगा।’
बिहार राज्य का उदाहरण देते हुए गुरनाम सिंह कहते हैं, ‘मंडियों से बाहर खरीद की व्यवस्था अगर इतनी ही अच्छी थी तो बिहार के किसान आज तक समृद्ध क्यों नहीं हुए? वहां 2006 से यह व्यवस्था लागू हो चुकी है जो अब देशभर में करने की तैयारी है, लेकिन बिहार के किसानों की स्थिति इतनी खराब है कि वहां का चार एकड़ का किसान भी यहां के दो एकड़ के किसान के खेत में मजदूरी करने आता है। इसका मुख्य कारण यही है कि वहां किसानों को एमएसपी नहीं मिलता।’
जब प्रधानमंत्री लगातार बोल रहे हैं कि एमएसपी की व्यवस्था से कोई छेड़छाड़ नहीं होने वाली और यह बनी रहेगी तो फिर भी किसान विरोध क्यों कर रहे हैं? इस पर गुरनाम सिंह कहते हैं, ‘इस बात की तो हम दाद देते हैं कि प्रधानमंत्री बोलते बहुत अच्छा हैं। उनके पास बोलने की अद्भुत कला है। बस दिक्कत यह है कि वे झूठ बहुत बोलते हैं। अगर ये एमएसपी नहीं खत्म कर रहे तो हमारी छोटी-सी मांग मान लें और एमएसपी की गारंटी का कानून बना दें। कानून में बस इतना लिख दें कि एमएसपी से कम दाम पर खरीदना अपराध होगा, हम लोग कल ही अपना आंदोलन वापस ले लेंगे।'
इन कानूनों को गुमराह करने वाला बताते हुए किसान नेता कहते हैं, ‘इसमें सबसे बड़ा झूठ तो यही है कि इस कानून से किसानों को अपना माल कहीं भी बेचने की छूट मिलेगी। यह सरासर झूठ है, क्योंकि किसानों के पास यह छूट 1977 से ही है। ऐसा ही झूठ फसल के भंडारण को लेकर भी कहा जा रहा है कि अब किसान अपनी उपज स्टॉक कर सकेगा। यह स्टॉक का फायदा अडानी जैसे लोगों को होगा जो अब जमाखोरी करके दाम निर्धारित कर सकेंगे।’
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सभापति वेंकैया नायडू ने सोमवार को आठ विपक्षी सांसदों को सदन की कार्यवाही से पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया। जिसके बाद वे लोग संसद परिसर स्थित गांधी प्रतिमा के पास धरने पर बैठ गए।
अपने पड़ोस का ही उदाहरण देते हुए गुरनाम सिंह कहते हैं, ‘कुरुक्षेत्र-कैथल हाईवे पर ढांड नाम की एक जगह है जहां अडानी का एक वेयरहाउस है। वहां यह सुविधा है कि 10 साल तक गेहूं स्टोर किया जा सकता है। आम किसान या छोटे व्यापारियों के पास तो ऐसे वेयर हाउस हो नहीं सकते, तो सबका राशन खरीदकर अडानी जैसे लोग अब सालों तक स्टोर कर सकेंगे और जब उनके पास असीमित स्टॉक होगा तो पूरा बाजार वे नियंत्रित करेंगे। जैसे मोबाइल की दुनिया में आज पूरा बाजार अंबानी का है, वैसे ही आने वाले सालों में सारी खेती भी बड़े पूंजीपतियों की होगी।’
अपनी बात को समेटते हुए वे कहते हैं, ‘यह असल में सिर्फ किसान का मुद्दा नहीं, बल्कि देश की तमाम जनता का भी मुद्दा है। यह जनता बनाम कॉरपोरेट का मामला है। चंद व्यापारी पूरे देश का माल खरीदेंगे और फिर पूरा देश उनसे लेकर खाएगा। यानी पूरा देश उनका ग्राहक होगा।’
गुरनाम सिंह अपनी बात पूरी करते उससे पहले ही उनके फोन पर एक तस्वीर आती है। यह तस्वीर दिखाते हुए वे कहते हैं, ‘देखिए सरकार की चालाकी। अभी-अभी कई फसलों का एमएसपी बढ़ा दिया गया है। यह बढ़त भी बस ऊंट के मुंह में जीरे जितनी ही है, लेकिन इसे ठीक ऐसे समय पर किया है जब किसान आंदोलन लगातार तेज हो रहा है, जबकि यह एमएसपी हर साल अक्टूबर में आया करती है।
इससे सरकार दिखाना चाहती है कि एमएसपी को लेकर वह कितनी गंभीर है और इस पर काम कर रही है, लेकिन सरकार की नीयत अगर साफ है तो बस यही बात कानून में क्यों नहीं लिख दी जाती कि एमएसपी व्यवस्था बनी रहेगी। इतना हो जाए तो किसान बेफिक्र हों, लेकिन इन्होंने तो किसानों को मार डालने वाले कानून बना दिए हैं, इसलिए किसानों ने भी ठान ली है। अब या तो सरकार ये कानून वापस ले या फिर हमें सीधे ही गोली मार दे।
किसानों से जुड़ी ये खबरें भी आप पढ़ सकते हैं...
1. सरकार ने रबी की फसलों पर MSP बढ़ाया / किसान बिलों पर हंगामे के बीच गेहूं के समर्थन मूल्य में 50 रुपए, चना और सरसों में 225 रुपए प्रति क्विंटल का इजाफा
2. एमएसपी क्या है, जिसके लिए किसान सड़कों पर हैं और सरकार के नए कानूनों का विरोध कर रहे हैं? क्या महत्व है किसानों के लिए एमएसपी का?
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New farm bill 2020:farmer leader Gurnam Singh Chadhuni interview
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jmyusuf · 5 years
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खड़ी अखड़ी...
"झुटहों का बोलबाला" कोई इतना खुदगर्ज, बेईमान, झूठा कैसे हो सकता है जिसे जनता ने अकल्पनीय सीटें देकर देश की बागडोर सौंप दी है ! सत्ता हासिल करने के लिए जिन व्यक्तियों की दुहाई दी जाती रही हो, सत्ता मिलने के बाद उन्हीं नामों को कलंकित कर गर्व महसूस किया जाय कैसे किया जा सकता है ! देश की सबसे ऊँची कुर्सी पर बैठकर देश की सबसे बड़ी पंचायत के भीतर तथा देशवासियों को दिए गए सन्देश में बिना झिझके सफेद झूठ पर सफेद झूठ कोई कैसे बोल सकता है ! पर ये सब हुआ है । जिससे न केवल देशवासियों का सिर शर्म से झुका है बल्कि दुनिया के सामने देश का मान- सम्मान भी गिरा है । "कालिख से परहेज नहीं" जम्मू कश्मीर में लागू धारा 370 का खात्मा एक झटके में करके मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर के इतिहास और भूगोल को बदलने का जो साहसिक काम किया उसे जायज ठहराने के लिए देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह ने जब तर्क देना शुरू किया तो झूठ की बरसात ही कर डाली । इसी तरह देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी अपने राष्ट्र के नाम सन्देश में कहीं से भी पीछे नहीं रहे । श्री नरेन्द्र मोदी और श्री अमित शाह ने एक ही झटके में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व गृहमंत्री स्वर्गीय श्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के उज्ज्वल चरित्र को दागदार बना डाला । "एक झटके में सब खतम" मोदी सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर से धारा 370 को खत्म करके एक ही झटके में शिमला समझौते को खत्म कर दिया गया । यूनाइटेड नेशंस को खत्म कर दिया गया । लाइन ऑफ कंट्रोल को खत्म कर दिया गया क्योंकि लाइन ऑफ कंट्रोल तभी तक था जब तक जम्मू कश्मीर का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में था जिसे 1948 में बनाया गया था । धारा 370 के जरिये ही इस बात का जिक्र होता था कि सीमा पार से आतंकवादी आ रहे थे उसे भी खत्म कर दिया गया । अब आतंकवाद के लिए पाकिस्तान को दोष नहीं दिया जा सकेगा । यह सोचनीय है कि क्या सरकार नहीं जानती थी कि आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की भूमिका क्या है । यकीनन जानती थी फिर भी ! "कमजोर नींव" संसद के भीतर जम्मू कश्मीर से खत्म की गई धारा 370 पर चल रही बहस का जबाब देते हुए देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह ने पूरी तरह से यह गलतबयानी की कि स्वर्गीय श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 के विरोध में पंडित जवाहर लाल नेहरू की खिलाफत करते हुए संसद छोड़ी थी जबकि सच यह है कि स्वर्गीय श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने श्री लियाकत और श्री नेहरू के बीच जो दिल्ली को लेकर पैक्ट हुआ था उसकी खिलाफत करते हुए संसद छोड़ी थी । संविधान सभा में जब धारा 370 को अनुमोदित किया गया था तब भी स्वर्गीय श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी मौजूद थे और उसका हिस्सा थे । "इतिहास बदलने की कोशिश" संसद में बहस के दौरान गृहमंत्री श्री अमित शाह का यह कहना भी सरासर गलतबयानी था कि डॉ. राममनोहर लोहिया ने भी धारा 370 का विरोध किया था । जबकि सच यह है कि 11 सितम्बर 1964 को डॉ लोहिया ने भारत - पाक महासंघ बनाने की वकालत की थी । बकौल डॉ लोहिया "राजनैतिक सत्ता तो आती जाती रहेगी, सरकारें आयेंगी जायेंगी, नेता आयेंगे जायेंगे लेकिन देश बना रहना चाहिए । देश के विचारों में लोगों के विचारों का भी समावेश किया जाना चाहिए । "दोनों मियां सुभानअल्लाह" अपने गृहमंत्री श्री अमित शाह के सुर में सुर मिलाते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी राष्ट्र के नाम सन्देश में कमोबेश यही बातें कही गई हैं । "मंडी तैयार" देशवासियों से इस सच को छुपाया जा रहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचने की तैयारी कर ली गई है । पावर ग्रिड के हिस्से में आने वाली ट्रांसमिशन लाइन को बेचने का इरादा है । बीएसएनएल के 1305 टावर, एमटीएनएल के 392 टावर किराए पर दिए जा चुके हैं । गैस पाइप लाईन (गेल) की 11500 किलोमीटर में से लगभग 2000 किलोमीटर पाईप लाइन लीज पर या प्रायवेट सेक्टर को दिया जाना है । एयरपोर्ट को बेचना शुरू कर दिया गया है । 6 एयरपोर्ट अडानी को बेच दिये गए हैं । पब्लिक सेक्टर की कम्पनियों की सम्पत्ति बेचने की बातें चल रही है । "डरपोकता चरम पर" देशवासियों के सामने यह भी स्वीकार करने में भयाक्रांत हैं कि अपनी नीतियों के तहत न ��ोजगार दे पा रहे हैं न किसानों को सहूलियत दे पा रहे हैं न मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दे पा रहे हैं, न राहत का सामान दे पा रहे हैं, न सामाजिक तौर पर सुरक्षा दे पा रहे हैं । लिंचीग से लेकर जिहाद के नाम पर अलग - अलग जगहों पर प्रताड़ना दी जा रही है । "चरमरा रही व्यवस्थायें" देश की इकॉनमी डावांडोल है । देश के भीतर इकॉनमी क्राइसिस है । धारा 370 को खत्म करने के पीछे जो प्रपोगंडा फैलाया गया कि जम्मू कश्मीर में बदहाली का आलम है । आर्थिक स्थिति नाजुक है । प्रदेशवासी गरीबी, मुफलिसी से हैरान परेशान हैं । कुल लब्बोलुआब यह कि जम्मू कश्मीर की आर्थिक, सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई है । आओ करें शुरू करें तुलना" चलिए देश के ही सरकारी आंकड़ों के जरिये देश के कुल 36 राज्यों में से जम्मू कश्मीर बनाम बाकी राज्य जिसमें केन्द्र शासित राज्य भी शामिल हैं, खास तौर पर गुजरात जिसे देश भर में मॉडल राज्य के रूप में पेश किया जाता है तथा जहाँ श्री नरेन्द्र मोदी और श्री अमित शाह की जोड़ी मुख्यमंत्री तथा गृहमंत्री रहने के बाद आज एक बार फिर यही जोड़ी देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के रूप में विराजमान है, का तुलनात्मक अध्ययन करने की कोशिश की जाय जिसका उल्लेख संसद के भीतर न तो गृहमंत्री श्री अमित शाह ने किया न ही अपने राष्ट्र के नाम सन्देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही किया । "जे आगे जी पीछे" ह्यूमन डवलपमेंट इंडेक्स में पहले पायदान पर केरल, पांचवें पायदान पर दिल्ली, पन्द्रहवें पायदान पर महाराष्ट्र, सत्तरहवें पायदान पर जम्मू कश्मीर तथा इक्कीसवें पायदान पर गुजरात है । मतलब गुजरात सहित 19 राज्य जम्मू कश्मीर से पीछे हैं । "सोशल में भी जी पीछे" सोशल इंडेक्स में भी गुजरात समेत 20 राज्य जम्मू कश्मीर से पीछे हैं । 1995 में जम्मू कश्मीर का सोशल इंडेक्स 0.488 - गुजरात का 0.489 था । इसी तरह 2000 में जम्मू कश्मीर का 0.530 गुजरात का 0.526, 2005 में जम्मू कश्मीर का 0.591 गुजरात का 0.570, 2010 में जम्मू कश्मीर का 0.646 गुजरात का 0.608, 2018 में जम्मू कश्मीर का 0.684 गुजरात का 0.667 रहा है । इसका भी जिक्र नहीं किया गया है । बिहार, यू पी, झारखंड, उडीसा, आसाम, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल सबके सब जम्मू कश्मीर से बहुत पीछे हैं । जबकि इन राज्यों में धारा 370 लागू नहीं है । "जे एंड के बहुत आगे" कंजमसन ह्यूमन डवलपमेंट (आर्थिक संपन्नता) में भी जम्मू कश्मीर देश में 10वें नम्बर पर है । यहां भी केरल पहले नम्बर पर है । जम्मू कश्मीर 0.542, ���ुजरात 0.527 देश का औसत 0.513 है । मतलब आईने की तरह साफ है कि जम्मू कश्मीर से गुजरात सहित 26 राज्य पीछे हैं । "गरीबी रेखा में भी बदतर हालात" गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी का आंकलन किया जाय तो यहां भी जम्मू कश्मीर गुजरात से बेहतर स्थिति में है । सरकार की रिपोर्ट कहती है कि जहां जम्मू कश्मीर में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या 10.35 लाख है वहीं गुजरात में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 16.63 लाख हैं । इससे शर्मनाक स्थिति और क्या हो सकती है कि नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक हो गए लेकिन एकाउंटेबिलिटी बेहतर नहीं कर पाए । झारखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा की हालत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के मामले में जम्मू कश्मीर से बदतर है । इन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने को हैं । "कमतर अपराध" देश के भीतर होने वाले राज्यवार अपराधों पर नजर डाली जाय तो जम्मू कश्मीर में अन्य राज्यों से कम अपराध होते हैं । जम्मू कश्मीर की गिनती 16 वीं है । "किस पायदान की बात करें" सबसे महत्वपूर्ण बिंदु शिक्षा और स्वास्थ्य का भी आंकलन किया जाना चाहिए कि जम्मू कश्मीर देश के 36 राज्यों में किस पायदान पर खड़ा होता है । यहां पर भी केरल पहले पायदान पर खड़ा है । जम्मू कश्मीर 4थे तो गुजरात 9वें पायदान पर है । गुजरात समेत 32 राज्य जम्मू कश्मीर से पीछे खड़े हैं । डब्लू एच ओ की रैंकिंग में भी जम्मू कश्मीर का नम्बर 6वां है । डब्लू एच ओ के हिसाब से भी गुजरात समेत 30 राज्य जम्मू कश्मीर से पिछड़े हुए हैं । डब्लू एच ओ की नजर में झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, उडीसा, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आसाम, उत्तराखंड बद से बदतर राज्य हैं । "शिक्षा तो है ही बेहतरीन" शिक्षा के क्षेत्र में भी झारखंड, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर से पिछड़े हुए हैं । "पैदा किये जा रहे लुटेरे हालात " देश में जहां जम्मू कश्मीर में आर्थिक विषमता आठवें पायदान पर है वहीं अन्य राज्यों में जम्मू कश्मीर की तुलना में बहुत ज्यादा है । या यूं कहें कि जबरदस्त है । बेल्लारी, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में माइनिंग क्षेत्र में खनिज संसाधनों की लूट के जरिए जिस तरह से पैसों की उगाही हो रही है उससे स्पष्ट होता कि देश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो चुकी है । सत्ता खुद देश के भीतर लूट की परिस्थितियों को पैदा कर रही है । "बीमारू बनाने की तैयारी" धारा 370 के चलते जम्मू कश्मीर में यह सब सम्भव नहीं था । हाँ अब सम्भव हो गया है । अब वहां बिल्डर, कारपोरेट, बिजनैसमैन जा सकते हैं । दिल्ली से बनने वाली नीतियां जा सकती हैं । देश की आर्थिक स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि जम्मू कश्मीर भी देश के बीमारू राज्यों में शामिल होगा । "बद से बदतर" देश में रोजगार की हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं । वोकेशनल - टेक्निकल ट्रेनिंग प्राप्त 54 प्रतिशत में से 33 प्रतिशत के पास कोई काम नहीं है । 15 से 29 साल आयु वर्ग के वैल्स्कीलड में से 42℅ के पास कोई काम नहीं है । जहाँ देश के अन्य राज्यों की नियमित मासिक आय औसत 10 हजार रुपए है तो जम्मू कश्मीर में 10 हजार से ज्यादा का औसत है । स्व रोजगार के तहत जहां देश के अन्य राज्यों में दैनिक आमदनी ग्रामीण क्षेत्रों में 233 रुपये तथा शहरी क्षेत्रों में 353 रुपये है वहीं जम्मू कश्मीर में 275 रुपये से 305 रुपये तक है । जहाँ पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार सबसे ज्यादा समय तक रही है मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात यहाँ पर भी आर्थिक, सामाजिक इंडेक्स जम्मू कश्मीर से नीचे का है । "रसातल में जा रही.........! जी डी पी का जादू भी बेअसर होता जा रहा है । जी डी पी नीचे जा रही है । जी डी पी 8 प्रतिशत रहने का दिखाया गया सपना टूट गया है । विश्व बैंक, आई एम एफ सहित अब भारत सरकार भी कहने लगी है कि जी डी पी 6.5 प्रतिशत रहेगी । सीमेंट उत्पादन, कार उत्पादन, दो पहिया उत्पादन 25 से 30 प्रतिशत तक गिर गया है । लगभग 3 लाख 50 हजार नोकरियाँ खत्म हो गई हैं । बैंक क्रेडिट जो दिसम्बर 2018 में 15.1℅ था जुलाई 2019 में 12.2℅ हो गया है । "लड़खड़ाते कदम" क्या इसी लड़खड़ाती आर्थिक स्थिति के भरोसे जम्मू कश्मीर का डेव्हलपमेंट करने का सोचा जा रहा है या फिर जम्मू कश्मीर में भी पब्लिक एसेट्स, पब्लिक सेक्टर से जुड़े उपक्रमों को प्रायवेट सेक्टर को बेचकर या लीज पर देकर पैसा कमाया जाएगा । "इतने बुरे तो न थे" संसद के भीतर जिस तरह से जम्मू कश्मीर की व्याख्या की गई है उससे कश्मीरी अचंभित होकर सोचने में विवश होंगे कि क्या वे वाकई में बदहाल हैं ! आर्थिक रूप से इतने विपन्न हैं ! सामाजिक तौर पर देश के सबसे पिछड़े इलाकों में आते हैं ! "टूरिज्म का सिरमौर" जन्मान्ध तथा निरा मूर्ख भी इतना तो समझ ही सकता है कि अगर जम्मू कश्मीर इतना पिछड़ा इलाका होता जितना देश के गृहमंत्री और प्रधानमंत्री द्वारा देश की सबसे बड़ी पंचायत के भीतर और राष्ट्र के नाम सन्देश में बताया गया है तो देश का सबसे ज्यादा टूरिज्म जम्मू कश्मीर में नहीं आता । आतंकवाद जब अपने पीक (उफान) पर था तब भी जम्मू कश्मीर में टूरिज्म देश के छठवें नम्बर पर था । "पॉलिटिकल पावर की जद्दोजहद" यह और कुछ नहीं विशुद्ध रूप से राजनैतिक ताकत (पॉलिटिकल पावर) हड़पने की कोशिश है । जहाँ तक जम्मू कश्मीर के जिन 2 - 3 परिवारों को पानी पी - पी कर कोसा जा रहा है उन परिवारों को सजा दीजिये, जेल में डाल दीजिए । आपके पास कानून है । उन पर कानून के हिसाब से कार्यवाही कर सकते हैं । यह तो कतई उचित नहीं है कि उन परिवारों का नाम लेकर सारे आवाम के बीच भय का वातावरण बनाया जाय । "रोकेगा कौन !" आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब संसद के भीतर और राष्ट्र के नाम सन्देश में गलतबयानी की जाती है तो आखिर इसे रोकेगा कौन ? रोकने की स्थिति में तो कोई है नहीं, क्योंकि हम लोगों ने बहुमत मान ही लिया है, बहुमत का मतलब भी बहुसंख्या मान लिया गया है । बहुमत का मतलब मल्टिपल डायलॉग्स नहीं माना गया है । "मेरी मुर्गी की डेढ़ टांग" मौजूदा वक्त में यह कतई नहीं समझा जा रहा है कि जम्मू कश्मीर की जो व्याख्या आज सत्ता पक्ष द्वारा की जा रही है (थोपी जा रही है) क्या आने वाले वक्त में वही व्याख्या आने वाली पीढ़ी भी करेगी । "ध्यान रखें पीढियां पढ़ती हैं" आज इतना तो तय होना ही चाहिए कि संसद के भीतर और बाहर राष्ट्र के नाम सन्देश में सच बोला जाय, सही बयानबाजी की जाय । जो दर्ज होती है और आने वाली पीढ़ियाँ पढ़ती हैं ।
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