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jmyusuf · 8 months
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हामिद अली एकेडमिक एक्सीलेंस सम्मान समारोह, विद्यार्थियों के चेहरों पर दिखी कामयाबी की मुस्कान
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हामिद अली एकेडमिक एक्सीलेंस सम्मान समारोह, विद्यार्थियों के चेहरों पर दिखी कामयाबी की मुस्कान #viral
असफलता से कभी न हों निराश - डीआईओएस तरक्की के लिए कड़ी मेहनत व लगन जरूरी - डीएमओ गोरखपुर : एमएसआई इंटर कॉलेज बक्शीपुर के सभागार में शनिवार को विभिन्न बोर्ड के हाईस्कूल, इंटर व नीट परीक्षा के मेधावी विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया। मौका था साजिद अली मेमोरियल कमेटी द्वारा आयोजित मो. हामिद अली एकेडमिक एक्सीलेंस सम्मान समारोह का। मुख्य अतिथि डीआईओएस अमर कांत सिंह, विशिष्ट अतिथि डीएमओ कमलेश कुमार मौर्य व कमेटी के सचिव महबूब सईद हारिस से सम्मानित होने पर मेधावियों में उत्साह और उमंग का माहौल रहा। विद्यार्थियों की सफलता की खुशी उनके अभिभावकों की मुस्कानों में साफ नजर आईं। मुख्य अतिथि ने विद्यार्थियों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि जिसमें उनकी रुचि हो, वहीं काम करें। लगन, निष्ठा के साथ जो भी दिशा चुनेंगे वह आपके जीवन में अहम होगी। असफलता से निराश न हों, बल्कि उससे सीखें और आगे बढ़ें। इस सम्मान समारोह के बारे में और जानने के लिए वीडियो देखें।
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#HamidAliAcademicExcellenceAwards #Success #Motivation #Celebration #HonoringAchievement"
Translation:
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Hamid Ali Academic Excellence Awards, the smile of success seen on the faces of students #viral
Never be disappointed by failure - DIOAS Hard work and dedication are essential for progress - DMO Gorakhpur: In the auditorium of MSI Inter College Bakshipur, various board's high school, intermediate and NEET exam toppers were honored on Saturday. It was the occasion of the Mo. Hamid Ali Academic Excellence Awards organized by the Sajid Ali Memorial Committee. The chief guest was DIOAS Amar Kant Singh, special guest was DMO Kamlesh Kumar Maurya, and the committee secretary Mahboob Saeed Harris. The atmosphere was filled with enthusiasm and excitement among the achievers as they were honored. The joy of the students' success was clearly visible in the smiles of their parents. The chief guest, while boosting the students' morale, said that they should work in the field that interests them. Whatever direction you choose with passion and dedication will be important in your life. Don't be disappointed by failure, but learn from it and move forward. Watch the video to know more about this award ceremony.
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jmyusuf · 8 months
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jmyusuf · 3 years
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ये यूपी की सीएम सिटी यानी गोरखपुर है । अभी बाढ़ नही आई है सिर्फ बरसात हुई है।  फिलहाल यह डबल इंजन क्या कहिये सुपर इंजन सरकार है। बीते 30 सालों से विधायक, सांसद से ले कर मेयर तक एक ही पार्टी (भाजपा) के ही हैं, फिलहाल हर तरफ सत्ता है मगर शहर बेहाल है । विकास के नाम पर 1 किलोमीटर की तारामंडल मरीन ड्राइव और गोरखनाथ मंदिर की सड़क को चौड़ा करने के सिवा और कुछ नही दिखाने को (ये दोनों भी पुरानी योजनाओ का नतीजा है) पानी हटते ही सड़को पर गड्ढे मिलेंगे , वाकई विकास की गाड़ी पलटी और इनकाउंटर हो गया है
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jmyusuf · 3 years
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देख लीजिये देश के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के अपमान पर भांड मीडिया के इशारे पर हो हल्ला मचाने वाले भक्त आज राष्ट्रवादी दल द्वारा कल्याण सिंह जी के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे से ढके पार्थिव शरीर पर तिरंगे के  ऊपर दल का झंडा लगाये जाने पर कैसे खामोश हैं....?? राष्ट्रीय ध्वज संहित के अनुसार '' किसी दूसरे ध्वज या पताका को राष्ट्रीय ध्वज से ऊँचा या ऊपर नहीं लगाया जायेगा,न ही बराबर रखा जायेगा,ध्वज पर कुछ लिखा व छपा नहीं होना चाहिए ''कल्याण सिंह जी के निधन पर विनम्र श्रद्धांजली ..ये दुःखद है...मैं कहता हूँ न....पढे लिखे जाति व धार्मिक नफरत की भावना से ग्रसित अंधभक्ति में सोचने समझने की क्षमता खो कर मानसिक रूप से प्रायोजित भांड मीडिया,आईटी सेल व व्हाटसएप यूनिवर्सिटी के मनगढंत व झूठी खबरों से गुलामों के भांति संचालित होते हैं....इसका प्रत्यक्ष उदाहरण इससे बेहतर क्या हो सकता है..??
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jmyusuf · 3 years
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👌👌नौकरी के अदबुत फायदे👌👌
जिसमे 70% लोगों की समझदारी से, जिंदगी की ( इनकम की ) मजबूरी के राज , नौकरी में छुपे है। 💐जो आपको,सोचने पे मजबूर कर देंगे, 1-बचपन से ही,न��कर बनने के सपने दिखाए जाते है। 2-नौकरी के लिए 25 , 26साल तक इंतजार करना पड़ता है। 3-पढ़ाई पे लाखो रु.खर्चा करके,नौकर बनना,सौभाग्य समझते है। 4-रिमोट की तरह , बॉस का हर हुकुम मानना पड़ता है। 5-यस सर,ओके सर,नो सर ,जी सर ,सॉरी सर भी करना पड़ता है। 5-बॉस के सामने ठीक से , अपना फोन भी , यूज नही कर सकते। 6-शाम को घर आने के लिए ,बॉस से इजाजत लेनी पड़ती है। 7-सैलरी लेट होने पे ,दोस्तों के आगे हाथ फैलाने पड़ते है। 8-सैलरी लेने के बाद , हर महीना 0 से शुरू करना पड़ता है। 9-हर साल 2 साल में अलग अलग जगह जॉब करनी पड़ती है। 10-कभी कभी ,खाली और परिवार से दूर भी रहना पड़ता है। 11-हर जगह बॉस के फायदे के लिए काम करना पड़ता है। इसी लिए ,जॉब वर्कर सारी उम्र , प्रोग्रेस नही कर पाते। 12-जॉब में फ्रीडम नही रहता और एक्स्ट्रा टाइम भी देना पड़ता है। 13-गल्ती होने पे ,डांट ,जुर्माना व रिजाइन भी देना पड़ता है। 14-पूरा महीना बिना पैसे के काम करना पड़ता है। 15- टारगेट पूरा ना होने पे  ,और छुटटी करने पे सैलरी भी , काट ली जाती है। 16-नौकरी करने से इनकम और सोच लिमिट की ,रहती है। 17-पैसे के मामले में , रिस्क लेने की छमता नही रहती । इसी लिए 18-जादातर लोग 20,30 हजार की जॉब के बारे में, ही सोचते है। 19-और अपने बच्चों को भी नौकरी के दल दल में धकेल देते है। 20-जॉब से बैंकवेलेन्स कभी बड़ा नही हो पाता। इसीलिए मजबूर होकर बुढ़ापे में  ,आज भी लोग जॉब कर रहे है। 21-जादातर लोग नौकरी से ज्यादा , कुछ बड़ा सोच ही नही पाते । इसीलिए अमीरों की लिस्ट में , आज तक किसी जॉब वाले का नाम नही आया । 22-नौकरी से हम,  लोन के सहारे , अपनी जरूरत पूरी कर सकते है । सपने नही । 23-नॉर्मल जॉब्स से , 70% लोग अपनी पढ़ाई का( डिग्री का ) खर्चा भी , वापिस नही कमा  पाते । 24-  नौकरी के लिये , जितनी महेनत आप ने की है , उतनी महेनत आपके बच्चों को भी करनी पड़ेगी,,जबकि बिज़नेस मे आपका बेटा आपकी गद्दी सम्भालेगा और आपके बिज़नेस को आगे बढायेगा ।
         👌वहा रे पढालिखा भारत👌 जहाँ लोग पढ़लिख कर, गुलाम होना पसन्द करते है। और सारी उम्र , अपने बॉस को, और ज्यादा अमीर बनाने में लगे रहते है। 💐-कुछ महान लोग तो , वेरोजगार होकर भी। अपनी डिग्री पे घमण्ड करते है। 💐पैसे पे ध्यान दो।डिग्री का क्या करना। 💐-जिंदगी पैसे से चलती है , डिग्री से नही। और पैसे से डिग्रीयां भी खरीद ली जाती है 👍में तो कहता हूँ ? ..की साला 👍 बड़ा नौकर बनने से अच्छा है, । छोटा मालिक बनो। 💐  💐
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jmyusuf · 3 years
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खाकी को भी नहीं छोड़ रहे साइबर ठग : साइबर सेल प्रभारी से लेकर कई पुलिस कर्मियों की बनाई फर्जी फेसबुक आईडी, फिर मदद के नाम पर परिचितों से करते पैसे की मांग || EN Daily ||
साइबर ठगों ने आम आदमी तो दूर ‘खाकी’ को भी नहीं छोड़ा है। झारखंड, पश्चिमी बंगाल, असम, बिहार में बैठकर साइबर ठग पुलिसकर्मियों की फर्जी फेसबुक आईडी बनाकर उनके करीबियों से पैसे की मांग कर ठगी कर रहे हैं। लोग बगैर पूछताछ किए ही उन्हें बताए गए एकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर देते हैं। जब तक उन्हें इसका पता चलता है तब तक वह ठगी के शिकार हो चुके होते हैं। लखनऊ में पिछले दिनों कई पुलिस के अफसर व कर्मचारियों की फर्जी फेसबुक आईडी बनाकर ठगी की गई है। इसमें पूर्व में साइबर सेल के नोडल इंरचार्ज व एसीपी हजरतगंज अभय मिश्र व सीओ भगवान सिंह भी इसका शिकार हुए। साथ ही एडीजी के पीआरओ संजय संखवार व गोमती नगर के सब इंस्पेक्टर संजय गुप्ता , इंस्पेक्टर संतोष तिवारी, नीरज यादव, सीओ संतोष सिंह समेत साइबर सेल में तैनात ही कई पुलिस कर्मी ठगी के शिकार हुए।
इन साइटों से हो रही सबसे ज्यादा ठगी
लखनऊ की साइबर सेल में पिछले दो सालों में सबसे ज्यादा ठगी करने वाली वेबसाइट को चिन्हित किया है। इसके लिए लोगों को लोग इन वेबसाइटों पर कोई डाटा न शेयर करने की अपील की गई है। साथ ही किसी भी अंजान लिंक पर क्लिक कर अपनी निजी जानकारी न देने के लिए भी कहा गया है।
https://applypanindia.in
https://bonusredeem.online
https://onlineoffer.in.net
https://rewardpoints.in.net
https://www.quickreplacement.com
https://www.quikr.com/jobs
खाते में सहायता राशि भेजने का बहाना
लॉकडाउन के दौरान साइबर ठगों ने लोगों को सहायता राशि देने के बाहने खाते की डिटेल पताकर लाखों की ठगी की। यह लोग मध्यम वर्गीय व बुजुर्ग को खाते में सहायता राशि भेजने के नाम पर अपनी बातों में फंसा रहे थे। लखनऊ साइबर सेल में ऐसे अबतक 39 शिकायतें दर्ज हुई।
लोन की किस्त में छूट का झांसा देकर ठगी
साइबर ठगों का एक ग्रुप लोन लेने वाला को चिन्हित कर रहा है। यह लोग लोन लेने वालों को किस्त में छूट दिलाने की बात कहकर खाते का ब्यौरा जुटाते हैं। इसके बाद उनके खाते की रकम उड़ा देते। ऐसे करीब दर्जन भर मामले लखनऊ के विभिन्न थानों में दर्ज हुए।
​​​​​​​क्राइम ब्रांच ने जारी की एडवाइजरी
बैंक या फाइनेंस कंपनी फोन पर कभी खाते की डिटेल नहीं पूछी जाती है, ऐसे फोन काल पर निजी जानकारी साझा न करें।किसी से भी अपने खाते से जुड़ी जानकारी व उससे संबंधित ओटीपी किसी को भी न बताएं। यदि लगातार कोई ओटीपी आ रहा है तो बैंक से संपर्क करें।फोन पर किसी भी व्यक्ति द्वारा भेजा गया लिंक न खोले, वह साइबर ठग के भेजे लिंक हो सकते है। जिससे आपका डाटा चोरी हो सकता है।
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jmyusuf · 3 years
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एक वृद्ध ट्रेन में सफर कर रहा था, संयोग से वह कोच खाली था। तभी 8-10 लड़के उस कोच में आये और बैठ कर मस्ती करने लगे।एक ने कहा - "चलो, जंजीर खीचते है". दूसरे ने कहा - "यहां लिखा है 500 रु जुर्माना ओर 6 माह की कैद." तीसरे ने कहा - "इतने लोग है चंदा कर के 500 रु जमा कर देंगे."चन्दा इकट्ठा किया गया तो 500 की जगह 1200 रु जमा हो गए. जिसमे 200 के तीन नोट, 2 नोट पचास के बांकी सब 100 के थेचंदा पहले लड़के के जेब मे रख दिया गया। तीसरे ने कहा, "जंजीर खीचते है, अगर कोई पूछता है, तो कह देंगे बूढ़े ने खीचा है। पैसे भी नही देने पड़ेंगे तब।"बूढ़े ने हाथ जोड़ के कहा, "बच्चो, मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, मुझे क्यो फंसा रहे हो?"लेकिन नही । जंजीर खीची गई। टीटीई आया सिपाही के साथ, लड़कों ने एक स्वर से कहा, "बूढे ने जंजीर खीची है।"टी टी बूढ़े से बोला, "शर्म नही आती इस उम्र में ऐसी हरकत करते हुए?"बूढ़े ने हाथ जोड़ कर कहा, "साहब" मैंने जंजीर खींची है, लेकिन मेरी बहुत मजबूरी थी।"उसने पूछा, "क्या मजबूरी थी?"बूढ़े ने कहा, "मेरे पास केवल 1200 रु थे, जिसे इन लड़को ने छीन लिए और इस पहले लड़के ने अपनी जेब मे रखे है।" जिसमे 200 के तीन नोट, 2 नोट पचास के बांकी सब 100 के हैंअब टीटी ने सिपाही से कहा, "इसकी तलाशी लो".जैसा बूढ़े ने कहा नोट मिलाये गए लड़के के जेब से 1200रु बरामद हुए, जिनको वृद्ध को वापस कर दिया गया और लड़कों को अगले स्टेशन में पुलिस के हवाले कर दिया गया।पुलिस के साथ जाते समय लड़के ने वृद्ध की ओर घूर के देखा तो वृद्ध ने सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा -"बेटा, ये बाल यूँ ही सफेद नही हुए है!"
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jmyusuf · 3 years
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एक बार मगध सम्राट् बिंन्दुसार ने अपने राज दरबार में पूछा :- देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है...?मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये। चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत परिश्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो। ऐसी हालत में अन्न तो सस्ता हो नहीं सकता.. शिकार का शौक पालने वाले एक अधिकारी ने सोचा कि मांस ही ऐसी चीज है, जिसे बिना कुछ खर्च किये प्राप्त किया जा सकता है.....उसने मुस्कुराते हुऐ कहा :- राजन्... सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है। इसे पाने में पैसा नहीं लगता और एक पौष्टिक वस्तु खाने को भी मिल जाती है।सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन मगध का प्रधान मंत्री आचार्य चाणक्य चुप रहे।सम्राट ने उससे पुछा : आप चुप क्यों हो? आपका इस बारे में क्या मत है? चाणक्य ने कहा : यह कथन कि मांस सबसे सस्ता है...., एकदम गलत है, मैं अपने विचार आपके समक्ष कल रखूँगा....रात होने पर प्रधानमंत्री सीधे उस सामन्त के घर पहुंचे, जिसने सबसे पहले अपना प्रस्ताव रखा था।चाणक्य ने द्वार खटखटाया....सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर वह घबरा गया। उनका स्वागत करते हुए उसने आने का कारण पूछा? प्रधानमंत्री ने कहा :-संध्या को महाराज एकाएक बीमार हो गए है ��नकी हालत बेहद नाज़ुक है। राजवैद्य ने उपाय बताया है कि यदि किसी बड़े आदमी के हृदय का एक तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते है....आप महाराज के विश्वास पात्र सामन्त है। इसलिए मैं आपके पास आपके शरीर का एक तोला मांस लेने आया हूँ। इसके लिए आप जो भी मूल्य लेना चाहे, ले सकते है। कहे तो लाख स्वर्ण मुद्राऐं दे सकता हूँ.....। यह सुनते ही सामान्त के चेहरे का रंग फिका पड़ गया। वह सोचने लगा कि जब जीवन ही नहीं रहेगा, तब लाख स्वर्ण मुद्राऐं किस काम की?उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़कर माफी चाही और अपनी तिजोरी से एक हज़ार स्वर्ण मुद्राऐं देकर कहा कि इस धन से वह किसी और व्यक्ति के हृदय का मांस खरीद लें।मुद्राऐं लेकर प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामन्तों, सेनाधिकारियों के द्वार पर पहुँचे और सभी से राजा के लिऐ हृदय का एक तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ....सभी ने अपने बचाव के लिऐ प्रधानमंत्री को हजार, दो हज़ार , पांच हजार और किसी ने दस हजार तक स्वर्ण मुद्राऐं दे दी। इस प्रकार लाख स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले महल पहुँच गऐ और समय पर राजदरबार में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष लाख स्वर्ण मुद्राऐं रख दी....!सम्राट ने पूछा : यह सब क्या है....? यह मुद्राऐं किसलिए है? प्रधानमंत्री चाणक्य ने सारा हाल सुनाया और बोले: एक तोला मांस ख़रीदने के लिए इतनी धनराशी इक्कट्ठी हो गई ,फिर भी एक तोला मांस नही मिला। अपनी जान बचाने के लिऐ सामन्तों ने ये मुद्राऐं दी है। राजन अब आप स्वयं सोच सकते हैं कि मांस कितना सस्ता है....??जीवन अमूल्य है।इस धरती पर हर किसी को स्वेच्छा से जीने का अधिकार है.........
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jmyusuf · 3 years
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1973 में  इंदिरा गाँधी ने न्यायमूर्ति A.N. रे को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में बैठा दिया  वो भी तब जब उनसे वरिष्ठ न्यायधीशों की लिस्ट जैसे न्यायमूर्ति JM शेलात, KS हेगड़े और AN ग्रोवर सामने थी.अंततः हुआ यह कि नाराज़गी के रूप में इन तीनों न्यायधीशों ने इस्तीफा दे दिया.इसके बाद कांग्रेस ने पार्लियामेंट में जवाब दिया, ...  "यह सरकार का काम है कि किसे मुख्य न्यायधीश रखें और किसको नहीं और हम उसी को बिठाएंगे जो हमारी विचारधारा के पास हो."  और आज वही लोग न्यायाधीशों की आज़ादी की बात करते हैं?1975 में न्यायाधीश जगमोहन सिंहा को एक फैसला सुनाना था.फैसला था राजनारायण बनाम इंदिरा गांधी के चुनावी भ्रष्टाचार के मामले का.उनको फ़ोन आता है जिसमें कहा जाता है, 'अगर तुमने इंदिरा गाँधी के ख़िलाफ़ फैसला सुनाया, तो अपनी पत्नी से कह देना इस साल करवा चौथ का व्रत न रखे'जिसका न्यायमूर्ति सिंहा ने आराम से जवाब देते हुए कहा  'किस्मत से मेरी पत्नी का देहांत 2 महीने पहले ही हो चुका है.'इसके बाद न्यायमूर्ति सिंहा ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया  जो आज भी मिसाल के रूप में जाना जाता है.इसने कांग्रेस सरकार की चूलें हिला दी और इसी से बचने के लिए इंदिरा गाँधी और कांग्रेस द्वारा 'इमरजेंसी' जनता पर थोप दी गयी. देश को नहीं, इंदिरा गाँधी को बचाना था.1976 में  A.N. रे ने इंदिरा गाँधी द्वारा खुद पर किये गए एहसान का बदला चुकाया  शिवकांत शुक्ला बनाम ADM जबलपुर के केस में.उनके द्वारा बैठाई गयी पीठ ने उनके सभी मौलिक अधिकारों को खत्म कर दिया.उस पूरी पीठ में मात्र एक बहादुर न्यायाधीश थें  जिनका नाम था न्यायमूर्ति HR खन्ना जिन्होंने आपमें साथी मुख्य न्यायधीश को कहा कि 'क्या आप खुद को आईने में आँख मिलाकर देख सकते हैं?'इस पीठ में न्यायाधीश AN रे, HR खन्ना, MH बेग, YV चंद्रचूड़ और PN भगवती शामिल थें.यह सब मुख्य न्यायाधीशों की लिस्ट में आये सिर्फ एक न्यायधीश को छोड़ के जिनका नाम था  न्यायधीश HR खन्ना जी.खन्ना जी को इंदिरा गाँधी की सरकार ने दण्डित किया और अनुभव तथा वरिष्ठता में उनसे नीचे बैठे न्यायधीश MH बेग को देश का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया.यह था भारत के लोकतंत्र का हाल कांग्रेस के राज में!यही न्यायाधीश MH बेग रिटायरमेंट के बाद नेशनल हेराल्ड के डायरेक्टर बना दिये गए.यह नेशनल हेराल्ड अखबार वही अखबार है  जिसके घोटाले में आज सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ज़मानत पर छूटे हुए हैं.यह पूरी तरह से कांग्रेस का अखबार था और एक प्रकार से कांग्रेस के मुखपत्र की तरह काम करता था.आश्चर्यजनक रूप से न्यायाधीश बेग ने अपॉइंटमेंट स्वीकार कर लिया.राहुल गाँधी का  'संविधान को खतरा'वाले सवाल पर उनके मुँह पर यह जानकारियां मारी जानी चाहिए और उनसे पूछना चाहिए कि  क्या इस प्रकार से ही बचाना चाहते हो लोकतंत्र को?बात यहीं खत्म नहीं हुई बल्कि1980 में इंदिरा गाँधी सरकार में वापस आयी और इसी MH बेग को अल्पसंख्यक कमीशन का चैयरमैन नियुक्त कर दिया गया.वह इस पद पर 1988 तक रहे  और उनको 'पद्म विभूषण' से राजीव गाँधी की सरकार द्वारा सम्मानित भी किया गया था...1962 में न्यायाधीश बेहरुल इस्लाम का एक और नया केस सामने आया  जो आपको जानना अति आवश्यक है.श्रीमान इस्लाम कांग्रेस के राज्य सभा के MP थें 1962 के दौरान ही और उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था.  हार गए थे.वो दोबारा 1968 में राज्य सभा के MP बनाये गए.  कांग्रेस की ही तरफ से (सीधी सी बात है.)उन्होंने 1972 में राज्य सभा से इस्तीफा दे दिया और उनको गुवाहाटी हाई कोर्ट का न्यायाधीश बना दिया गया.1980 में वो सेवानिवृत्त हो गए.परंतु ,जब इंदिरा गाँधी 1980 में दोबारा वापस आयी तो इन्हीं श्रीमान इस्लाम को 'न्यायाधीश बेहरुल इस्लाम' की उपाधि वापस दी गयी और सीधे सुप्रीम कोर्ट का न्यायधीश बना दिया गया.गुवाहाटी हाई कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के 9 महीने बाद का यह मामला है भाई साहब!इंदिरा गांधी  पूरी तरह से यह चाहती थी कि सभी न्यायालयों पर उनका 'कंट्रोल' हो.उस समय इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी और कांग्रेस पर लगे आरोपों की सुनवाई विभिन्न न्यायालयों में हो रही थी.वो इंदिरा गाँधी के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुए और साफ तौर पर कांग्रेस के लिए भी.'न्यायाधीश' इस्लाम ने एक महीने बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया और फिर एक बार असम के बारपेटा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े.लोकतंत्र का इससे बड़ा मज़ाक क्या होगा? जिस चुनाव में वो खड़े होने वाले थे उस साल चुनाव नहीं हो पाए अतः उनको एकबार फिर से कांग्रेस की तरफ से राज्य सभा का MP बना दिया गया.लोकतंत्र के लिए जिस प्रकार से कांग्रेस आज छाती पीट रही है, उसी ने ��ोकतंत्र का गला सबसे ज़्यादा बार घोंटा है...!!!
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jmyusuf · 3 years
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क्या आप जानते हैं कि IRCTC आपको सीट चुनने की अनुमति क्यों नहीं देता है?  क्या आप विश्वास करेंगे कि इसके पीछे का तकनीकी कारण PHYSICS है।ट्रेन में सीट बुक करना किसी थिएटर में सीट बुक करने से कहीं अधिक अलग है।थिएटर एक हॉल है, जबकि ट्रेन एक चलती हुई वस्तु है।  इसलिए ट्रेनों में सुरक्षा की चिंता बहुत अधिक है।भारतीय रेलवे टिकट बुकिंग सॉफ्टवेयर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह टिकट इस तरह से बुक करेगा जिससे ट्रेन में समान रूप से लोड वितरित किया जा सके।मैं चीजों को और स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण लेता हूँ – कल्पना कीजिए कि S1, S2 S3... S10 नंबर वाली ट्रेन में स्लीपर क्लास के कोच हैं और प्रत्येक कोच में 72 सीटें हैं।इसलिए जब कोई पहली बार टिकट बुक करता है, तो सॉफ्टवेयर मध्य कोच में एक सीट आवंटित करेगा जैसे कि S5, बीच की सीट 30-40 के बीच की संख्या, और अधिमानतः निचली बर्थ (रेलवे पहले ऊपरी वाले की तुलना में निचली बर्थ को भरता है ताकि कम गुरुत्वाकर्षण केंद्र प्राप्त किया जा सके)और सॉफ्टवेयर इस तरह से सीटें बुक करता है कि सभी कोचों में एक समान यात्री वितरण हो और सीटें बीच की सीटों (36) से शुरू होकर गेट के पास की सीटों तक यानी 1-2 या 71-72 से निचली बर्थ से ऊपरी तक भरी जाती हैं।रेलवे बस एक उचित संतुलन सुनिश्चित करना चाहता है कि प्रत्येक कोच में समान भार वितरण के लिए होना चाहिए।इसीलिए जब आप आखिरी में टिकट बुक करते हैं, तो आपको हमेशा एक ऊपरी बर्थ और एक सीट लगभग 2-3 या 70 के आसपास आवंटित की जाती है, सिवाय इसके कि जब आप किसी ऐसे व्यक्ति की सीट नहीं ले रहे हों जिसने अपनी सीट रद्द कर दी हो।क्या होगा अगर रेलवे बेतरतीब ढंग से टिकट बुक करता है?....  ट्रेन एक चलती हुई वस्तु है जो रेल पर लगभग 100 किमी / घंटा की गति से चलती है।इसलिए ट्रेन में बहुत सारे बल और यांत्रिकी काम कर रहे हैं।जरा सोचिए अगर S1, S2, S3 पूरी तरह से भरे हुए हैं और S5, S6 पूरी तरह से खाली हैं और अन्य आंशिक रूप से भरे हुए हैं।  जब ट्रेन एक मोड़ लेती है, तो कुछ डिब्बे अधिकतम केन्द्रापसारक बल का सामना करते हैं और कुछ न्यूनतम, और इससे ट्रेन के पटरी से उतरने की संभावना अधिक होती है।यह एक बहुत ही तकनीकी पहलू है, और जब ब्रेक लगाए जाते हैं तो कोच के वजन में भारी अंतर के कारण प्रत्येक कोच में अलग-अलग ब्रेकिंग फोर्स काम करती हैं, इसलिए ट्रेन की स्थिरता फिर से एक मुद्दा बन जाती है।मुझे लगा कि यह एक अच्छी जानकारी साझा करने लायक है, क्योंकि अक्सर यात्री रेलवे को उन्हें आवंटित असुविधाजनक सीटों/बर्थों का हवाला देते हुए दोष देते हैं।।
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jmyusuf · 3 years
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गोरखपुर - जानिए सन् 1860 ई. में  कौन था किस मुहल्ले का मालिक
गोरखपुर : मियां साहब इमामबाड़ा के पहले सज्जादानशीन मरहूम सैयद अहमद अली शाह अपनी किताब 'महबूबुत तवारीख' में लिखते हैं कि उनके समय में नगर में 52 मुहल्ले एवं चक थे। 36 की तादाद में तालाब थे। कई बाग-बगीचे भी थे। सन् 1860-63 में गोरखपुर नगर के कुछ मुहल्लों तथा उनके मालिकों के नाम इस प्रकार थे। जाफरा बाजार मुहल्ले के मालिक नवाजिश अली थे, उनके साथ एक हिस्सेदार रफीउद्दीन थे, जो इस क्षेत्र का कारोबार देखा करते थे। रफीउद्दीन चक इस्लाम के रईस थे, मगर वह जाफरा बाजार के हिस्सेदार भी थे। मुहल्ला कल्याणपुर के मालिक महाराजा सिंह थे। बिंद टोला की मालकिन अमीरन थीं। फकीरा खान मुहल्ला घोसीपुर के काबिज थे। इस तरह काजीपुर कला प�� रईस असगर अली काबिज थे। मुहल्ला बुलाकीपुर के दो हिस्सेदार थे गोपी सहाय और बैजनाथ सिंह। मोहनलालपुर का मुहल्ला शिव गुलाम के पास था। सिधारीपुर में सद्दन पांडेय, दाऊदचक में मुहम्मद शरीफ और इलाहीबाग में जमीदार मजहर अली थे। यहां बतातें चलें कि सिधारीपुर का नाम सैयद आरिफपुर था, जो बाद में बिगड़कर और बदलकर सिधारीपुर पड़ गया। नरसिंहपुर बेनी माधव सिंह के पास था। मुहल्ला निजामपुर जहूर अशरफ की मिल्कियत था। पुराना मिर्जापुर की मिल्कियत हुसैन अली बेग की और हनुमान चक की मिल्कियत राम प्रसाद की थी। गाजी रौजा की जायदाद खुदाबख्श के हाथ में थी। यहां पहले गाजी मियां का मेला लगता था। इसी वजह से इस मुहल्ले का नाम गाजी रौजा पड़ा। खूनीपुर और शेखपुर मुहल्ला हुसैन अली के संरक्षण में था। इसी तरह साहबगंज के मालिक जीवन मल्ल थे। बसंतपुर के मालिकान मीर इमदाद अली, राम प्रसाद, जीवन दास और गुरूबख्श थे। उर्दू बाजार उस समय का सबसे व्यस्तम क्षेत्र था। यह फौज का बाजार था। मुगलकाल में यहां फौज ठहरती थी। यहां शाही जामा मस्जिद मुगलों ने बनवायीं। बादशाह औरंगजेब के पुत्र मुअज्जम शाह जब गोरखपुर आये तो इस नगर का नाम मुअज़्ज़माबाद कर दिया गया। यह शहर करीब सौ साल मुअज़्ज़माबाद के नाम से  जाना जाता रहा। यहां का उर्दू बाजार बादशाह जहांगीर के जमाने से आबाद था। बसंतपुर मुहल्ला का नाम राजा बसंत सिंह सतासी के नाम पर पड़ा है। मुहल्ला अस्करगंज प्राचीन मुहल्ला है। अस्कर का अर्थ फौज से है। मुगल काल में यहां अस्तबल हुआ करते थे। फौज की एक टुकड़ी भी यहां रहा करती थी।
मुहल्ला नखास भी प्राचीन है। वास्तव में नखास मुहल्ला 'नख्खास' से बना है। मुगल काल में यह मवेशियों का बाजार था। मवेशियों में घोड़े भी शामिल थे। इसके अलावा यहां गुलामों की खरीद फरोख्त भी हुआ करती थी। 'नख्खास' का अर्थ ही है, मवेशियों का बाजार, घोड़ों का बाजार और गुलामों का बाजार। मगर इनके अलावा रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तुएं भी यहां उपलब्ध थीं। रियाज खैराबादी ने नखास पर मुशतरी नाम की तवायफ का वर्णन अपने अखबार में किया है। रेती चौक क्षेत्र के कुछ फासले से राप्ती नदी का बहाव था। रेत के कारण ही रेती चौक नाम पड़ा। काजीपुर कला में मुगल शासन में न्यायिक व्यवस्था के लिए बड़े काजी की नियुक्ति थी। इसी कारण यह मुहल्ला काजीपुर कलां और बड़े काजीपुर के नाम से मशहूर था। मुहल्ला काजीपुर खुर्द और छोटे काजीपुर में भी न्यायिक व्यवस्था संचालित थी। मुहल्ला मोहद्दीपुर वास्तव में मोईनुद्दीनपुर (उस वक्त के रईस शेख मोईनुद्दीन) नाम से बिगाड़ कर और बदलकर पड़ गया। अलीनगर मुहल्ले में सूफी बुजुर्ग अली बहादुर शाह मुकीम थे। उन्हीं के नाम पर मुहल्ला अलीनगर है। खूनीपुर मुहल्ले में शहीदों की मजारात मौजूद है। यह क्षेत्र गंजे शहीदां के नाम से जाना जाता है। सूफी बुजुर्ग शाह मारूफ के नाम पर मुहल्ला शाहमारूफ मशहूर हुआ। घोषकंपनी ब्रिटिश काल से मशहूर है। मौजूदा घोषकंपनी चौक क्षेत्र में सन् 1919 में घोष एंड कंपनी नाम से अंग्रेजी दवा की कंपनी थी। इसे डा. गोपाल घोष देखते थे। खैर। इसी तरह मुगल काल में मुफ्तीपुर मुहल्ले से फतवा देने के लिए मुफ्ती नियुक्त थे। इसी वजह से यह मुहल्ला मुफ्तीपुर के नाम से मशहूर हो गया। तुर्कमानपुर में मुगल फौज  की तुर्क टुकड़ी रहती थीं। इसलिए इस क्षेत्र का नाम तुर्कमानपुर पड़ा। हजरत सैयद रौशन अली अली शाह की इच्छा इमामबाड़ा बनाने की थी। गोरखपुर में उन्हें अपने नाना से दाऊद-चक नामक मुहल्ला विरासत में मिला था। उन्होंने यहां इमामबाड़ा बनवाया। जिस वजह से इस जगह का नाम दाऊद-चक से बदलकर इमामगंज हो गया। मियां साहब की ख्याति की वजह से इसको मियां बाजार के नाम से जाना जाने लगा। कुछ और मुहल्लों के बारे में और भी जानें गोरखपुर का इतिहास आदि से आज तक के लेखक अब्दुर्रहमान गेहूंआ सागरी लिखते हैं कि मुगलों ने गोरखपुर में अपनी पहली फौजी छावनी मोगलहा (बीआरडी मेडिकल कालेज के निकट) बनायी। मुगल फौज की वजह से इस क्षेत्र का नाम मोगलहा या मुगलहा पड़ा। आज भी मोगलहा मौजूद है। चारगांवां में मुगल फौज की घुड़साल (अस्तबल) कायम थीं। मुगलों ने गोरखपुर में तांबे के सिक्के ढ़ालने का टकसाल (लोग बताते हैं कि बसंतपुर के आस-पास था) खोला था। सन् 1675 ई. से 1700 ई. में मुसलमानों के दो बड़े घराने (उंचवां) आबाद हो चुके थे। इस बड़े घराने के बुजुर्ग सैयद कयामुद्दीन थे। खैर। शाहपुर, बशारतपुर, मुगलहा व चारगांवां मुस्लिम बाहुल्य हुआ करते थे। अंग्रेजों के आगमन पर यहां की मुस्लिम आबादी ने अंग्रेजों के विरुद्ध  जमकर लड़ाई (सन् 1857 ई. पहली जंगे आजादी) लड़ी। इस लड़ाई में गोरखपुर के नाजिम मोहम्मद हुसैन का साथ देने वालों को अंग्रेजों ने शहीद कर दिया, बाकी बचे परिवारों को फिजी भेज दिया। शाहपुर व बशारतपुर में ईसाई समुदाय को बसा दिया। खैर। गौतमबुद्ध के समय बौद्ध समुदाय ने 'पिपल्लीपुरम्' वर्तमान पिपरापुर में पीठ स्थापित की जो बाद में विस्थापित हुई। सन् 1801 ई. में अंग्रेजों ने गोरखपुर को जिला घोषित किया। यहां बाढ़ का प्रकोप रहता था। रोहिनी, राप्ती व रामगढ़ताल एक हो जाते थे। नगर के गोरखनाथ, माधवपुर, डोमिनगढ़ (यहां डोम कटार राजा का शासन था), बसंतपुर, पिपरापुर कुछ और मुहल्ले टीलों पर थे। मुहल्ला उंचवां भी टीले पर बसा था। सभी टीलों को अलग-अलग करते हुए रेती और थवई नाले (अलीनगर में) बहते थे। ये पश्चिम में राप्ती+रोहिणी संगम से चलकर पूर्व में सुमेर सागर, बौलिया कालोनी होते हुए बिछिया रामगढ़ताल से मिलते थे। इनसे व्यापारिक नावें शहर के मध्य साहबगंज, रेती तथा बक्शीपुर तक आती थीं। दीवान बाजार  में आज भी थवई नाले के तट पर प्राचीन घाट तथा गोदाम के अवशेष मिल सकते हैं। वहां आज भी मछली कारोबारी अपना व्यवसाय कर रहे हैं और गुजरे जमाने की याद ताजा हो रही है। थवई नाला रेलवे लाइन बनने से पूर्व सुमेर सागर, बौलिया कालोनी होते हुए बिछिया में रामगढ़ताल से मिलता था। बरसात में सभी मिलकर एक हो जाते थे। सन् 1884 ई. में रेलवे लाइन, महराजगंज रोड, कसया रोड, मलानी बांध और हार्बट बांध बन जाने से पूर्वी भाग में रामगढ़ताल का कछार सीमित है। मलोनी बांध (सन् 1906 ई.) बांध बन जाने से नाले नदी से कट गए। रेती और थवई नालों को पक्का नाला बनाने का श्रेय अंग्रेजों को ही है। खैर। गोरखपुर नगर बागों का नगर था। बहुत से मुहल्लों के नाम बागों पर हैं। आम बाग, दशहरी बाग, कौव्वा बाग, रानी बाग, लीची बाग, जमुनहिया बाग आदि। लोगों का मानान है कि मुहल्ला इलाहीबाग का नाम हजरत मखदूम इलाही बख्श के नाम पर इलाहीबाग पड़ा। इलाहीबाग में शाही मस्जिद बादशाह औरंगजेब के शासनकाल की है। हुमायूंपुर का नाम एक बुजुर्ग हजरत हुमायूं खां शहीद के नाम पर पड़ा। जिनकी मजार मकबरे वाली मस्जिद (अंसारी रोड हुमायूंपुर उत्तरी) में है। यहां मस्जिद में शहीदों की कई मजारें हैं। तिवारीपुर कभी औलिया चक के नाम से मशहूर था। आज भी कागजों में यहीं दर्ज है। शेख सनाउल्लाह उर्फ दादा औलिया रहमतुल्लाह अलैह की वजह से इस क्षेत्र का नाम औलिया चक था। काफी समय तक यहीं नाम चला। बाद में लोगों ने इसे तब्दील कर दिया । बैंक रोड का कागजों में नाम  चक जलालपुर है।   यह भी जानें तुर्कमानपुर के बारे में इतिहास की किताबों में लिखा है कि 1206 ई. के आस-पास तुर्क गोरखपुर आयें। तुर्कों ने यहां बस्तियां बसायीं। हांसूपुर का नाम चीनी यात्री फाह्यान व हेनसांग ने 'हंस-क्षेत्र' रखा जो बाद में हांसूपुर में बदल गया। साहबगंज का पुराना नाम साहूगंज था। जिसे अंग्रेजों ने बदलकर साहबगंज किया। मुस्लिम शासक बहराम मसऊद ने ���हरामपुर बसाया। 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मुगलों ने अलीनगर, जाफरा बाजार व नियामत चक बसाया। सिविल लाइन 01 को मुगल बादशाह के फौजदार मिर्जा कमरुद्दीन ने बसाया। मुगलशासन काल में न्याय हेतु 2 काजी, 1 मुफ्ती, जमीनी बंदोबस्त के लिए 1 दीवान, चुंगी वसूली के लिए 1 बख्शी, सरकारी कोष रखने के लिए 1 करोड़ी नियुक्त होते थे। उक्त लोगों के नाम की वजह से जहां वह रहते थे काजीपुर, मुफ्तीपुर, दीवान बाजार व बख्शीपुर मुहल्ला मशहूर हुआ। हुमायूंपुर के बारे में एक तथ्य यह भी मिला है कि इसे अकबर के सेनापति फिदाई खां ने मुगल सम्राट 'हुमायूं' के नाम पर हुमायूंपुर बसाया। बादशाह औरंगजेब के पुत्र मुअज्जम शाह ने धम्माल, अस्करगंज, शेखपुर, नखास बसाया और रेती पर पुल (उस वक्त राप्ती नदी पर) बनवाया। शाही जामा मस्जिद उर्दू बाजार भी बनवायीं। बेतियाहाता बेतिया रियासत की वजह से मशहूर हुआ। पांडेय हाता जय नारायण पांडेय की वजह से मशहूर हुआ। यहीं अफगान हाता है जो बहुत मशहूर है। मोहल्ला धम्माल के पास मीर शिकार मुहल्ला है जो शिकारियों के लिए मशहूर था। अब इसे मिसकार टोला कहते हैं। यहां अब भी परिंदे व पालतू जानवर फरोख्त होते हैं। हजरत मोहम्मद अली बहादुर शाह अलैहिर्रहमां बहुत बड़े बुजुर्ग गुजरे है। आपने मुहल्ला रहमतनगर बसाया। हजरत इस्माईल शाह अलैहिर्रहमां के नाम पर  मुहल्ला इस्माईलपुर बसा। आपकी मजार काजी जी की मस्जिद इस्माईलपुर के निकट है। मुसलमान सूबेदारों ने रसूलपुर व पुराना गोरखपुर कदीमी मुहल्ला आबाद किया। इस क्षेत्र में कई शाही मस्जिद है। गोरखपुर का इतिहास आदि से आज तक के लेखक अब्दुर्रहमान लिखते है कि सन् 1206 ई. में तुर्क सेनापति बख्तियार खिलाजी तथा इख्तियार खिलजी ने दो राज्यों के विजय के बाद गोरखपुर में कुछ सैनिकों को बसाया। गोरखपुर नगर में स्थापित मुहल्ले बख्तियार व तुर्कमानपुर का बसाव इसी काल खंड में प्रतीत होता है।
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jmyusuf · 3 years
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महर्षि पतंजलि हमारे यूपी के गोंडा में 200 ईसा पूर्व पैदा हुए थे. ग्रंथों में गोंडा का प्राचीन नाम गोनार्द है. यहां के वजीरगंज के कोंड़र गांव में पतंजलि हुए थे. प्रकांड विद्वान, चिकित्सक और रसायन शास्त्र के ज्ञाता पतंजलि ने योगसूत्र जैसा ग्रंथ लिखा. आज उनके नाम को मिलावटी सामान बेचने और ठगी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.महर्षि पतंजलि योगशास्त्र के प्रणेता थे. वे प्रकांड ज्ञानी थे. वे अपने योगशास्त्र के लिए पूरी दुनिया में जाने गए. लेकिन उन्होंने अपनी प्रसिद्धि का बेजा इस्तेमाल नहीं किया. उन्होंने कभी मिलावटी तेल नहीं बेचा, कभी फफूंद वाला अचार नहीं बेचा. कभी कालाधन और महंगाई के नाम पर जनता को उल्लू नहीं बनाया. कभी छोटी गंगा बोलकर नाले में नहीं कुदाया. कभी डब्ल्यूएचओ के नाम पर झूठ नहीं बोला. कभी महामारी के समय फर्जी दवाएं नहीं बेचीं. कभी शहद के नाम पर चाइनीज शुगर शिरप नहीं बेचा. ऐसे कुत्सित कारोबार के लिए कोई ठग अगर महर्षि पतंजलि के नाम का इस्तेमाल करता है तो यह भारतीय मनीषा, संस्कृति और ज्ञान परंपरा का अपमान है. वैसे भी मिलावटी सामान बेचना भारतीय कानून के अनुसार अपराध है. आज राजस्थान के अलवर जिले में एक सरसो तेल की फैक्ट्री सिंघानिया आयल मिल सीज की गई है. इसमें पंतजलि ब्रांड के सरसों के तेल का उत्पादन होता और पैकिंग का काम होता था. प्रशासन को इस फैक्ट्री में बनने वाले तेल मिलावट किए जाने की सूचना मिली थी. इसके बाद प्रशासन ने छापा मारकर फैक्ट्री को सीज कर दिया. इस फैक्ट्री में सरसो तेल की पैकिंग होती है जिसे रामदेव नाम का व्यापारी पतंजलि ब्रांड का ठप्पा लगाकर बेचता है. इससे पहले भी रामदेव की कंपनी के उत्पादों में मिलावट पाई गई है. उन पर कई दफा जुर्माना भी ठोंका गया है. प्राचीन ज्ञान परंपरा आज के ज्ञान का आधार है. अपनी ज्ञान परंपरा का सम्मान करें. प्रगतिशील बनें. आधुनिक विचारों और वैज्ञानिकता पर भरोसा रखें. गोबर और मूत्रोपचार से दूर रहें और ठगों से सावधान रहें
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jmyusuf · 3 years
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विंस्टन चर्चिल भारतीयों को तुच्छ समझता था, यहां तक कि गांधी और नेहरू को भी. लेकिन बाद में उसे माफी मांगनी पड़ी.1945 में लंदन में संयुक्त राष्ट्र की असेंबली का पहला सत्र आयोजित हुआ. इंडियन डेलीगेशन की अगुआई कर रही थीं नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित. सत्र के दौरान चर्चिल उनके बगल बैठे थे. अचानक चर्चिल ने विजयलक्ष्मी पंडित से पूछा, 'क्या आपके पति को हमने नहीं मारा? सच में हमने नहीं मारा?' विजयलक्ष्मी पंडित के पति रणजीत सीताराम पंडित की जेल में मौत हो गई थी. चर्चिल इसी बारे में बात कर रहा था. विजयलक्ष्मी पंडित सकपका गईं, लेकिन थोड़ा सोचकर बोलीं, 'नहीं, हर आदमी अपने निर्धारित वक्त तक जिंदा रहता है.' हालांकि, इस जवाब के बाद दोनों में मित्रवत व्यवहार हुआ. बाद में चर्चिल ने विजयलक्ष्मी पंडित से कहा, 'तुम्हारे भाई जवाहर लाल ने मनुष्य के दो दुश्मनों पर विजय पा ली है, नफरत और डर, जो कि मनुष्य के बीच सर्वोच्च सभ्य दृष्टिकोण है और आज के माहौल से गायब है.' इसके कुछ समय बाद नेहरू महारानी के राज्याभिषेक में शामिल होने लंदन गए. समारोह खत्म हुआ तो संयोग से वहां नेहरू और च​र्चिल ही बचे, बाकी लोग चले गए. चर्चिल नेहरू की तरफ घूमे और कहा, 'मिस्टर प्राइम मिनिस्टर, यह अजीब नहीं है कि दो लोग जिन्होंने एक दूसरे से बेहद नफरत की हो, उन्हें इस तरह से एक साथ फेंक दिया जाए?' नेहरू ने जवाब दिया, 'लेकिन मिस्टर प्राइम मिनिस्टर, मैंने आपसे कभी नफरत नहीं की.' चर्चिल ने फिर कहा, 'लेकिन मैंने की, मैंने की.' फिर उसी शाम डिनर पर चर्चिल ने नेहरू के लिए कहा, 'यहां एक ऐसा आदमी बैठा है जिसने नफरत और डर को जीत लिया है.' 1945 में चर्चिल को ब्रिटेन की जनता से सत्ता से उखाड़ फेंका. 47 में भारत आजाद हो गया. Judith Brown की किताब Nehru: A Political Life कहती है कि आजादी के बाद 1948 में जब चर्चिल की नेहरू से मुलाकात हुई तो ​चर्चिल ने भारत की आजादी का विरोध करने के लिए नेहरू से माफी मांगी थी. जब तक ​चर्चिल को समझ में आया कि भारत की आजादी की लड़ाई की अगुआई करने वाले गांधी और नेहरू क्या चीज हैं, तब तक देर हो चुकी थी.  नेहरू का अश्लील फोटोशॉप बनाने वाले और फेक न्यूज फैलाने वाले भी एक दिन पछताएंगे. (संदर्भ: प्रोफेसर विश्वनाथ टंडन, टेलीग्राफ)
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jmyusuf · 3 years
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पनीर दो प्याज़ा और हरे धनिए, कलौंजी वाले बटर नान ।
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jmyusuf · 3 years
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jmyusuf · 3 years
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आज ही के दिन 24 मई 1920 को #अलीगढ़_मुस्लिम_यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई।
#सर_सैय्यद_अहमद_खां ने इसकी बुनियाद 1875 में मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कालेज के रूप में की थी जिसे 1920 में सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला।
1874 में जब इसकी बुनियाद रखी गयी थी तो इसके तामीर में 1,53,492 रुपए 8 आना खर्चा हुआ था। गवर्नर लार्ड नार्थ बूक ने 10,000, पटियाला के महाराजा महेंद्र सिंह ने 58000, हैदराबाद के सातवे निज़ाम, मीर उस्मान अली खान ने 50 हज़ार रुपए दान दिए थे।
शुरुआत में यह कलकत्ता यूनिवर्सिटी से एफिलेटेड था, 1887 में यह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एफिलेटेड हो गया और 1920 में इसे सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला।
एएमयू की मौलान आजाद लाइब्रेरी में 13 लाख किताब मौजूद है।
यह रखी इंडेक्स इस्लामिक्स की कीमत 12 लाख रुपये।
यहां अकबर के दरबारी फैजी की फारसी में अनुवादित गीता और 400 साल पहले फारसी में अनुवादित महाभारत की पांडुलीपि मौज़ूद है।
मुगल बादशाह जहांगीर के पेंटर मंसूर नक्काश ती अद्भुत पेंटिग मौजूद है।
अलीगढ़ मुस्लिम हिंदुस्तान को कई अज़ीम शख्सियत दी
दो भारत रत्न दिए
डॉ0 जाकिर हुसैन (1963)
खान अब्दुल गफ्फार खान (1983)
6 पद्मविभूषण दिए
डॉ0 जाकिर हुसैन (1954)
हाफिज मुहम्मद इब्राहिम (1967)
सैयद बसीर हुसैन जैदी (1976)
प्रो. आवेद सिद्दीकी (2006)
प्रो. राजा राव (2007)
प्रो. एआर किदवई (2010)
8 पद्मभूषण दिए
शेख मोहम्मद अब्दुल्लाह (1964)
प्रो. सैयद जुहूर कासिम (1982)
प्रो. आले अहमद सुरुर (1985)
नसीरुद्दीन शाह (2003)
प्रो. इरफान हबीब (2005)
कुर्रातुल एन हैदर (2005)
जावेद अख्तर (2007)
डॉ. अशोक सेठ (2014)
विश्वविद्यालय के 53 विद्वानों को पद्मश्री मिला
3 ज्ञानपीठ दिए
कुर्रतुलऐन हैदर (1989)
अली सरदार जाफरी (1997)
प्रो. शहरयार (2008)
5 सुप्रीम कोर्ट के जज दिए
जस्टिस बहारुल इस्लाम
जस्टिस सैयद मुर्तजा फजल अली
जस्टिस एस. सगहीर अहमद
जस्टिस आरपी सेठी
एएमयू ने हाईकोर्ट को 47 जज दिए
हमे नही पता कि सर सैय्यद पर लगा कुफ़्र का फ़तवा जायज़ था या नही अल्लाह बेहतर जाने। लेकिन आज उनकी उसी एक कोशिश की वजह से लाखों मुसलमानों ने उच्च शिक्षा हासिल कर देश मे अपना योगदान दिया और आगे भी देते रहेंगे।
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jmyusuf · 3 years
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