Chirag Paswan: अमित शाह के आवास पर पहुंचे चिराग पासवान, एनडीए की बैठक से पहले हुई अहम मुलाकात
Chirag Paswan: लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) {LJP(R)} के मुखिया चिराग पासवान (Chirag Paswan) सोमवार को दिल्ली पहुंचकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के आवास पर उनसे मुलाकात की। आपको बता दें, इससे पहले केन्द्रीय मंत्री पशुपति पारस (Pashupati Paras) और चिराग पासवान (Chirag Paswan) के बीच एक बार फिर रार पड़ने की बात सियासी सरजमीं पर चल रही थीं। अब, कल मंगलवार, 18 जुलाई यानि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की होने वाली अहम बैठक के पहले हो रही इस मुलाकात पर सियासी जानकारों की नजर बनी हुई है।
लोकसभा सीटों की हिस्सेदारी को लेकर हो सकती है बात
सूत्रों के मुताबिक, चिराग पासवान (Chirag Paswan) 2024 के आम चुनावों के लिए बिहार में अपनी पार्टी की लोकसभा सीटों की हिस्सेदारी को अंतिम रूप देने के लिए भाजपा के साथ बातचीत कर रहे हैं। इसके अलावा बीते चु��ाव में जमुई से लोकसभा पहुंचे चिराग (Chirag Paswan) इस सीट पर दावा जता रहे थे। वह चाहते हैं कि बैठक से पहले हाजीपुर को ले कर स्थिति साफ हो। हालांकि इस बात की अभी कोई पुष्टि नहीं हुई है। इससे पहले केंद्रीय मंत्री और बिहार से भाजपा के वरिष्ठ नेता नित्यानंद राय (Nityanand Rai) इससे पहले दो बार पासवान (Chirag Paswan) से मिल चुके हैं।
दिवंगत दलित नेता और चिराग के पिता राम विलास पासवान (Ram Vilas Paswan) के नेतृत्व में लोजपा ने 2019 में छह लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और भाजपा के साथ सीट-बंटवारे की व्यवस्था के तहत उन्हें एक राज्यसभा सीट भी मिली थी। चिराग पासवान (Chirag Paswan) चाहते हैं कि उनकी पार्टी में टूट के बावजूद भाजपा उसी व्यवस्था पर कायम रहे।
NDA की बैठक में होंगे 30 दल, बीते एक हफ्ते में जुड़े छह नए दल
लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के पहले भाजपा और विपक्ष के बीच अपने-अपने अगुवाई वाले गठबंधन का दायरा बड़ा दिखाने के लिए दोनों ने एड़ी-चोटी का बल लगाना शुरू कर दिया है। एक मंच पर आने की कवायद में सोमवार से दो दिनों के विपक्षी दलों के जुटान में 26 दलों के शामिल होने की चर्चा है। इसके जवाब में भाजपा मंगलवार को होने वाली एनडीए की बैठक में 30 दलों को जुटाने की घोषणा की है।
विपक्ष के मुकाबले एनडीए (NDA) की बढ़ी ताकत दिखाने के लिए भाजपा ने बीते एक हफ्ते में छह नए दलों को जोड़ा है। एनडीए (NDA) में पहले से ही 24 दल शामिल थे। इन छह नए दलों के जुड़ने के बाद एनडीए (NDA) में शामिल दलों की संख्या 30 हो गई है। हालांकि पार्टी सूत्रों ने स्पष्ट किया है कि भविष्य में अकाली दल, तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), आरएलएसपी और जदएस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं किया जाएगा।
फिलहाल ये दल शामिल हैं एनडीए में
मंगलवार की राजग की बैठक से पहले भाजपा ने एनसीपी (अजित गुट), लोजपा (रामविलास), हम, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी, मुकेश सहनी की वीआईपी और ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा को साधा है। राजग में भाजपा के अलावा शिवसेना शिंदे गुट, अन्नाद्रमुक, एनपीपी, एनडीपीपी, जेजेपी, एसकेएम, बीपीपी, आईएमकेएमके, आईटीएफटी, आजसू, एमएनएफ, तमिल मनीला कांग्रेस, पीएमके, अपना दल एस, एमजीपी, एजीपी, लोजपा, निषाद पार्टी, यूपीपीएल, अखिल भारतीय एनआर कांग्रेस पुदुचेरी, अकाली दल ढींडसा, आरपीआई और पवन कल्याण की जनसेना शामिल है।
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बिहार की बदहाली मेरी नजर में ।
दो टूक !
15 वर्ष लालू-राबड़ी शासन में बिहार लुट-पिट गया ।
बिजली तो छोड़िए , बिजली के खंभे नहीं बचे।
सड़क नहीं गड्ढ़ों में गाड़ियां चलती थीं।
अपहरण बिहार का प्रमुख उद्द्योग था।
राज्य के हजारों उद्द्यमी, चिकित्सक, अभियंता सब पलायन कर गए।
लोग शाम होते ही अपने घरों में पैक हो जाया करते थे।
जनरेटर और इन्वर्टर चला बच्चे शाम को पढ़ा करते थे।
लालू जब चारा घोटाला में फसे तब अपनी सुयोग्य पत्नी को रसोई घर से उठा राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। हमारे भाग्य का फैसला राबड़ी करने लगी।
राजद में शायद लालू परिवार छोड़ दूसरा कोई योग्य नहीं था ! 15 वर्ष के इस भ्रष्ट शासन में कांग्रेस ने पूरा सहयोग दिया।
त्राहिमाम जनता ने 15 वर्ष के अराजक लालू और कांग्रेस के शासन का खात्मा कर जदयू और बीजेपी को गद्दी पर बिठाया। नीतीश मुख्यमंत्री बने।
बिहार विकास के पथ पर अग्रसर हुआ।
जिस राज्य में विकास के एक कार्य नहीं होते थे अब सड़कें बनने लगी, बिजली रहने लगी, पटना में फ्लाईओवर , मॉल और मल्टीप्लेक्स दिखने लगे, गाँवों में भी बिजली रहने लगी।
विकास को तरसा बिहार चैन की सांस लेने लगा।
नीतीश की वाहवाही पूरे देश-दुनिया मे 'विकास-पुरूष' के नाम से होने लगी।
प्रसन्न जनता ने अगले विधानसभा चुनाव में भारी मतों से फिर से जिताया।
लेकिन अब नीतीश की महत्वाकांक्षा सर चढ़ कर बोलने लगी। प्रधानमंत्री की गद्दी उनके ख्वाबों में आने लगी। जदयू जैसे एक क्षेत्रीय दल जो सिर्फ अपने दम पर एक राज्य में भी सरकार नहीं बना सकता था , उसके मुखिया अब देश के प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगे।
अपनी महत्वाकांक्षा के पोषण केलिये उन्होंने BJP का साथ छोड़ लालू से हाथ मिला लिया जिनके जंगलराज के खात्मे केलिये जनता ने उन्हें गद्दी पर बिठाया था।
फिर क्या था, जम कर गालियाँ दी BJP को, मोदी को ।
लालू अब बड़े भाई हो गए।
अगले चुनाव में छोटे भाई-बड़े भाई ने मिलकर भाजपा को जबरदस्त पटखनी दी ।
छोटे भाई मुख्यमंत्री बने और बड़े भाई के नवी पास सुयोग्य पुत्र उपमुख्यमंत्री।
ज्यादा दिन यह बेमेल विवाह टिक नहीं पाया।
बड़े भाई के सामने छोटे भाई चारों खाने चित नजर आए।
बेचारे होकर जनता के मैंडेट की धज़्ज़ियाँ उड़ा फिर से BJP के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बन गए।
न तो पहले जनता ने उन्हें लालू जी के साथ मुख्यमंत्री बनने केलिये वोट किया था न तो बाद में जनता ने उन्हें लालू को छोड़ BJP का दामन थामने केलिये चुना था।
लेकिन महत्वाकांक्षी नीतीश को जनता के मैंडेट से क्या मतलब ?
उनकी आंखें तो हमेशा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रही क्योकि प्रधानमंत्री बनने के उनके ख्वाब धरे रह गए।
नितीश को जो मुख्यमंत्री बनाएगा वे उस पार्टी का दामन थामेंगे।
अतः नीतीश का पहला टर्म निश्चय ही उल्लेखनीय रहा।
बिहार ने प्रगति की। नितीश की राष्ट्रीय साख बढ़ी।
लेकिन फिर अपनी महती महत्वाकांक्षा के वे शिकार हुए।
अभी आलम यह है कि बिहार सरकार के पास एक भी अस्पताल नही, मेडिकल कॉलेज नहीं जहाँ सीरियस कोरोना मरीजों का ईलाज हो सके।
सब भारत सरकार के AIIMS पटना में भर्ती होना चाहते हैं। बड़े-बड़े नेता, अफसर सब AIIMS में। कोरोना से लड़ रहे चिकित्सक भी अगर गंभीर रूप से संक्रमित होते हैं तो उन्हें भी AIIMS में दाखिला नहीं मिलेगा।
राज्य के मुख्यमंत्री और सारे नेता नदारद हैं। ट्विटर और फेसबुक पर चिचिया रहे हैं, इधर जनता त्राहिमाम।
जदयू और उसका पीठलग्गु भाजपा सरकार का पोल इस महामारी ने पूरी तरह से खोल दिया।
जाति के नाम पर वोट करने वाले हर जाति के बिहारी मर रहे हैं, कहीं कोई व्यवस्था नहीं।
सिर्फ कागजी लिफ़ाफ़ेबाजी !
साहब लोग पिछले कुछ महीनों से मेडिकल कॉलेज की चिकित्सा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के बदले आगामी चुनाव में व्यस्त हो गए। जातियों के समीकरण, कैंडिडेट के चयन और BJP और चिराग पासवान से सीटों के बटवारे पर बातचीत में लगे थे , इधर कोरोना ने अपना मुंह खोलना शुरू कर दिया।
देखा जाए तो बिहार की बर्बादी केलिये सबसे जिम्मेदार है यहाँ की जनता जिन्हें जीवन से ज्यादा जाति प्यारी है।
फिर है दो राष्ट्रीय पार्टियाँ कांग्रेस और भाजपा।
कांग्रेस ने लालूपरिवार और उनके अधर्मों को 15 वर्षों तक समर्थन किया, उनके पीछे नाचते रहे और अब भी उन्हीं के लट्टू हैं , जबकि भाजपा नितीश की घिरनी बन नाच रही है। भाजपा में नेता कौन है, लोगों को अब यह भी पता नहीं। जदयू के नेता नितीश और भाजपा के भी नितीश क्योकि सुशील मोदी तो नितीश के स्टेपनी हैं।
फिर आते हैं लालू और नीतीश(राजद और जदयू तो नाम हैं, ये दोनों पार्टियां सिर्फ इन दोनों महापुरुषों के व्यक्तिगत झुनझुने हैं )
दोनों ने बिहार के जनमानस में , उनकी सोच में, जाति और संप्रदाय के जहर को एक नई गहराई दी।
बिहार की जनता अब भी विकास छोड़ जाति पर वोट करती है।
नतीजा शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत आवश्यकताओं केलिये इस राज्य की जातिवाद जनता तरस रही है।
जाति इस राज्य की सबसे बड़ी करेंसी है। जाति से आप यहाँ सत्ता खरीदिये और बेचिए।
अब क्या करेंगे आप ?
कोरोना क्या लोगों की जातियां, सम्प्रदाय , भाषा , प्रांत, राष्ट्र और मजहब देख मार रहा है ?
वायरस और बैक्टेरिया हमसे ज्यादा विकसित हैं।
वे जातिवाद नहीं करते, वे सामाजिक हैसियत नहीं देखते, सबको समान रूप से मारते हैं।
बचेगा वह समाज जो शिक्षित, अनुशासित और जहाँ की स्वास्थ्य व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त ।
बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों बदहाल, फटेहाल।
इतना कि एक मात्र AIIMS पटना में सारे नेता, अभिनेता और बड़े-बड़े अफसर ही भर्ती हो रहे हैं। इनमें से
कोई बिहार सरकार के मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में भर्ती होना नहीं चाहता। वहाँ भर्ती होंगे आप और मैं।
हाँ सालों भर इनकम टैक्स, प्रदूषण टैक्स आदि सैकड़ों टैक्सों की चिट्ठियां आने में देर नहीं लगती।
थाने से लेकर हर सरकारी दफ्तरों में चपरासी से लेकर बड़े अफसरों तक की जेबें गर्म किये बिना शायद ही कोई कार्य सम्पन्न हो।
तो फिर क्या करेंगे ?
किसे वोट देंगे ?
लालू को, नीतीश को या उनके चट्टे-बट्टे कांग्रेस और भाजपा को ?
सारे पापी, अधर्मी, पाखंडी ।
जाति से ऊपर उठिए, समझिये राजनीति और अपनी सही जरूरतें।
हटाइये इन सब अधर्मियों को।
फिलहाल तो दूर-दूर तक निराशा ही निराशा है।
मरते रहिये कोरोना से ।
मैं तो सिर्फ ईश्वर से आपकी सलामती की दुआ मांग सकता हूँ।
🙏🏼
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