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#बोनसाई पौधे
guanpin-gardening · 3 years
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【Common Jasmin Orange】【七里香 飄】【驗證碼 : CJO_001】
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《冠品園藝盆栽》
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col-life23 · 3 years
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इस व्यवसाय को सिर्फ 20 हजार में शुरू करें, घर बैठे लाखों कमाएंगे, सरकार आधा पैसा भी देगी
इस व्यवसाय को सिर्फ 20 हजार में शुरू करें, घर बैठे लाखों कमाएंगे, सरकार आधा पैसा भी देगी
नई दिल्ली: बोनसाई प्लांट एक ऐसा पौधा है जिसे आजकल लोगों की गुडलक माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप इस पौधे के जरिए अच्छा पैसा कमा सकते हैं … आज हम आपको बताएंगे कि कैसे आप इस पौधे की खेती कर सकते हैं (बोन्साई के साथ पैसे कैसे कमाएं प्लांट) और इसके लिए आपको कितने रुपए खर्च करने होंगे। आपको बता दें कि आजकल सजावट और गुडलक के अलावा ज्योतिष, वास्तु शास्त्र के लिए भी इस पौधे का इस्तेमाल किया…
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vilaspatelvlogs · 4 years
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10 हजार एकड़ में फैली, 10 लाख रुपए तक के पौधे; रोज 5 करोड़ का कारोबार होता है
10 हजार एकड़ में फैली, 10 लाख रुपए तक के पौधे; रोज 5 करोड़ का कारोबार होता है
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चीन से बोनसाई को लाया जाता है, जिसकी कीमत 1 लाख से 7 लाख है, स्पेन से ओलिया को लाया जाता है, जिसकी कीमत 10 लाख है
1959 में इस बाजार की शुरुआत हुई थी, उस समय 3-4 नर्सरी फार्म हाउस थे, आज 600 से ज्यादा हैं
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ताराचंद गवारिया
Jul 13, 2020, 08:57 AM IST
राजमुंदरी. आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी से 15 किमी दूर कडियाम इलाका है। एक लंबी सड़क, उसके पास नहर में बहता कलकल पानी। नहर के दोनों तरफ हजारों…
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merisahelimagazine · 4 years
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कहानी- परवरिश (Short Story- Parvarish)
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“उसके जाने के बाद मैंने यह बगिया बसाई. इन पौधों को रोपकर मैं हर्षित होती हूं, सींचकर परितृप्त होती हूं और इन्हें बढ़ता देखती हूं, तो मन में उल्लास की हिलोरें उठने लगती हैं. मैं सच कहती हूं बेटी, मेरे मन में न इनसे फल पाने की इच्छा है और न ही छाया की चाहत. कभी-कभी सोचती हूं, हम अपने बच्चों को भी इसी तरह बिना किसी अपेक्षा के पालें, तो ज़िंदगी कितनी सुकूनभरी हो जाए. ज़रा सोचो, यदि उस दिन मैं बंटी को रोक लेती, तो वह कुछ कहता या नहीं, यह मैं नहीं जानती, पर मेरी अंतरात्मा तो मुझे मेरे स्वार्थी हो जाने के लिए मरते दम तक धिक्कारती रहती.”
रीमा दोनों बच्चों को लेकर सोसायटी पार्क में दाख़िल हुई, तो माला आंटी बेंच पर बैठी सुस्ता रही थीं. कनी तो आते ही अपने ग्रुप में शामिल हो खेलने लगी थी. बच्चों के पास जाने के लिए मचलते दो वर्षीय हनी को लेकर रीमा माला आंटी के पास आकर बैठ गई.
“बहुत दिनों बाद नज़र आ रही हो. कहीं बाहर गई थी क्या?”
“हां आंटी, ससुराल गई थी. हनी, उधर नहीं बेटा, गिर जाओगे. देखिए न आंटी, कितना परेशान करने लग गया है. वहां भी मुझे सारा दिन इसके पीछे लगे रहना पड़ता था. सास और जेठानी दोनों हंसती थीं मुझ पर.”
“क्यों भला?” माला आंटी ने आश्‍चर्य व्यक्त किया.
“सासूजी कह रही थीं कि हमने तो घर का सारा काम करते हुए 6-6 बच्चे पाल लिए और इनसे एक नहीं संभल रहा. मेरे बच्चे तो इतने सयाने थे कि मैं आंगन धोती थी, तो एक-एक बच्चे को खुली आलमारीकी एक-एक ताक में बिठा देती थी.
मजाल है, जो आंगन सूखने से पहले कोई बच्चा नीचे उतर आए और ज़मीन पर पांव रख दे. और एक इसके हनी को देखो, एक सेकंड टिककर बैठ ही नहीं सकता. कभी यह खींचेगा, तो कभी वह. जाने क्या खाकर पैदा किया है इसकी मां ने इसे?” रीमा रुआंसी हो उठी, तो माला आंटी की हंसी फूट पड़ी.
“इसमें तुम्हारा दोष नहीं है. पहले बच्चे वाक़ई सीधे होते थे. माता-पिता से डरते थे और दबकर भी रहते थे. अब तो सारे ही कंप्यूटर दिमाग़वाले पैदा हो रहे हैं. उनका न दिमाग़ स्थिर रहता है, न हाथ-पांव. पर मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि यह पीढ़ी बहुत आगे तक जाएगी.”
लेकिन रीमा मानो सुन ही नहीं रही थी. उसका मन अभी तक ससुराल और गांव में ही झूल रहा था. “एक और चीज़ मुझे बहुत परेशान कर रही है आंटी. सासूजी और जेठानी के अनुसार कनी और हनी ज़रूरत से ज़्यादा ही नाज़ुक हैं. जब भी मैं ससुराल जाती हूं, दोनों बच्चे बीमार पड़ जाते हैं. वहां वॉटर प्यूरिफायर तो है नहीं, बच्चों को पानी उबालकर, छानकर देती हूं, पर फिर भी उन्हें खांसी, बुख़ार व पेटदर्द हो ही जाता है. पेट की समस्या तो मुझे भी हो जाती है, पर लाज-शरम के मारे चुप रहती हूं. अब वही खाना-पानी जेठजी के बच्चे खाते-पीते हैं और वही हनी-कनी. क्या सच में मेरे बच्चों का इम्यून सिस्टम इतना कमज़ोर है आंटी?”
“तू बेकार ही घबरा रही है बेटी. वे बच्चे वहां के वातावरण के अभ्यस्त हैं, लेकिन हनी-कनी उसके आदी नहीं हैं. हवा-पानी बदलने से तो अच्छे-अच्छों का स्वास्थ्य डगमगा जाता है, फिर ये तो छोटे-छोटे बच्चे हैं.”
हनी फिर उठकर खेल रहे बड़े बच्चों के पास जाने लगा, तो रीमा फिर उसे पकड़कर ले आई. आंटी की शह पाकर उसका हौसला बढ़ गया था.
“जेठानी की बेटी कनी की हमउम्र है. वह पूरा खाना बना लेती है. रोटियां तो इतनी गोल कि मैं भी नहीं बना पाऊं. कनी तो स़िर्फ नूडल्स बना पाती है. वहां जाकर तो आंटी अमित भी मानो मेरे नहीं रहते. अपने घरवालों के साथ मेरी खिंचाई करने लग जाते हैं. कहते हैं, मैं बच्चों को लेकर ओवर प्रोटेक्टिव हो जाती हूं. कभी पढ़ाई के लिए, कभी दूध के लिए, तो कभी च्यवनप्राश के लिए बच्चों के पीछे ही पड़ी रहती हूं. बच्चे तो अपने आप बड़े हो जाते हैं. हर व़क़्त उनके पीछे डंडा लेकर घूमने की कहां ज़रूरत है?”
यहभीपढ़े: बच्चों की परवरिश को यूं बनाएं हेल्दी (Give Your Child A Healthy Upbringing)
“बहुत ज़्यादा पीछे पड़ने की ज़रूरत नहीं है, यह तो मैं भी मानती हूं. लेकिन एक बात समझने और ग़ौर करने की है और यह बात अपने उनको भी समझा देना कि खर-पतवार हर कहीं उग आती है, वह भी बिना प्रयास के, लेकिन अच्छी नस्ल का गुलाब यदि उगाना है, तो उसे अच्छी खाद और अच्छी मिट्टी देनी होगी. समय-समय पर कटिंग, ग्राफ्टिंग आदि सब करना होगा.”
रीमा का चेहरा गुलाब की मानिंद खिल उठा था. वह आंटी से बच्चों की परवरिश के और भी टिप्स जुटाना चाहती थी, पर तभी हनी के रोने की आवाज़ से वह घबरा गई. शरारती हनी आख़िर बच्चों के बीच चला ही गया था और उनसे टकराकर गिर भी गया था. रीमा ने फटाफट उसे उठाया और कनी को भी खेल से छुड़ाकर ज़बरदस्ती हाथ पकड़कर घसीटते हुए अपने साथ ले गई.
माला आंटी उन्हें तब तक जाते निहारती रहीं, जब तक वे उनकी आंखों से ओझल नहीं हो गए. उन्हें अपनी जवानी के दिन याद आ गए, जब वे भी रीमा की तरह दिनभर बिन्नी और बंटी के पीछे लगी रहती थीं. एक गहरी सांंस भरकर उन्होंने भी क़दम अपने फ्लैट की ओर बढ़ा दिए.
इसके अगले ही दिन की बात है. रिमझिम बारिश हो रही थी. रीमा शाम के खाने की तैयारी करने रसोई की ओर जा ही रही थी कि डोरबेल की आवाज़ सुनकर उसके क़दम मुख्यद्वार की ओर बढ़ गए. माला आंटी को देखकर वह सुखद आश्‍चर्य से भर उठी.
“अजवायन के पत्तों के पकौड़े बनाए थे. तुम्हारे लिए भी ले आई.” उन्होंने प्लेट आगे बढ़ा दी थी.
“अरे वाह! ये तो मुझे बहुत पसंद हैं. लेकिन आप अजवायन के पत्ते लाई कहां से? मुझे तो पूरे मुंबई में नहीं मिले.”
“मैंने अपने घर में उगाए हैं. छोटा-सा टेरेस गार्डन है मेरा. कभी फुर्सत में हो तो आना, दिखाऊंगी.”
“बिल्कुल, बिल्कुल आंटी! कल छुट्टी है. मैं कल ही आती हूं.”
वादे के मुताबिक़ रीमा अगले ही दिन माला आंटी के यहां पहुंच गई थी. बच्चे अपने पापा के संग टीवी देखने में व्यस्त थे, इसलिए रीमा उन्हें लेकर बिल्कुल निश्‍चिंत थी. माला आंटी उसे देखकर बहुत ख़ुश हुईं और सीधे टेरेस पर ले गईं. पूरा टेरेस छोटे-बड़े गमलों और तरह-तरह के पौधों से सजा हुआ लहलहा रहा था. इस लुभावने दृश्य ने रीमा का मन मोह लिया.
“आंटी, मुझे इतना अच्छा लग रहा है यहां पर! यह हरियाली दिल को इतना सुकून दे रही है कि मैं आपको बता नहीं सकती.”
“मैं समझ सकती हूं. घर का यह हिस्सा ख़ुद मेरे दिल के सबसे क़रीब है. इधर देखो, यह मनीप्लांट! इसे छाया में रखना पड़ता है और यह ऑरेंज रेड गुलाब. इसका यह शेडेड कलर पाने के लिए मुझे ख़ूब मेहनत करनी पड़ी थी. बार-बार कटिंग, ग्राफ्टिंग, कीटनाशक, खाद- जाने क्या-क्या. और यह देखो संतरे का बोनसाई, कितना प्यारा है न? पता नहीं इसमें संतरे कब आएंगे? आएंगे भी या नहीं, पर म��झे यह बहुत प्रिय है. जब इसके पास जाती हूं, तो ऐसा लगता है अपनी छोटी-छोटी डालियां फैलाकर यह मुझे बांहों में भर लेना चाहता है.”
रीमा अवाक् हो आंटी को सुन रही थी. आंटी वैसी ही उत्साहित लग रही थीं, जैसे घर में किसी मेहमान के आने पर वह हनी-कनी को लेकर उत्साहित हो जाया करती थी. ‘हनी बेटे, आंटी को वो पोयम सुनाओ. अच्छा बताओ क्लाउन कैसे करता है. कनी बेटी, आंटी को अपनी क्राफ्ट डायरी तो दिखाओ.’
“आंटी, आप तो इन पौधों को बिल्कुल अपने बच्चों की तरह प्यार करती हैं और वैसे ही साज-संभालकर रखती हैं.”
“हां बेटी, और क्या? जैसे हर बच्चा एक अलग व्यक्तित्व का होता है, उसकी अलग ज़रूरतें होती हैं, वैसे ही हर पौधे की भी अपनी अलग ज़रूरत है. किसी को धूप ज़्यादा चाहिए, तो किसी को पानी. कुछ पौधे अपने आप ही पनप आते हैं. उन पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती, तो कुछ का बहुत ज़्यादा ध्यान रखना पड़ता है.”
रीमा बहुत प्रभावित हो रही थी, “आंटी, मैं दावे के साथ कह सकती हूं, आपने अपने बच्चों की भी बहुत अच्छी परवरिश की होगी. कहां हैं वे?”
“चल, अंदर बैठकर चाय पीते हैं. वहीं गपशप भी हो जाएगी.”
“वो सामने तस्वीर देख रही हो न? वो हैं मेरे बच्चे बिन्नी और बंटी. बिन्नी शुरू से ही मेरे दिल के बहुत क़रीब रही है. मैंने उसे बेटी से ज़्यादा सहेली माना. ख़ुद इतनी बंदिशों में रही थी, इसलिए उसे पूरी आज़ादी दी. दोनों बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे थे. बिन्नी को विदेश में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप का ऑफर आया, तो मैं ख़ुशी से झूम उठी. नाते-रिश्तेदारों ने जवान बेटी को अकेले विदेश भेजने का जमकर विरोध किया, पर मेरा मन उसे तितली की तरह उड़ते देखना चाहता था.”
“और आपके पति?” रीमा ने झिझकते हुए पूछा.
“उन्होंने मेरा साथ दिया. हमारा आशीर्वाद लेकर बिन्नी विदेश चली गई. पढ़ाई पूरी हुई, तो उसे वहीं एक अच्छी नौकरी का ऑफर मिल गया. वह वहीं बस गई. एक एनआरआई से हमने उसका ब्याह रचा दिया. पर... पर उसके बाद कुछ ऐसा घटा कि मेरी सोच बदलने लग गई. बच्चों के पापा अचानक चल बसे. बिन्नी के जाने के बाद मैं वैसे ही बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी और अब यह आघात! मैं अंदर से बहुत टूट गई थी. बंटी की ख़ातिर ख़ुद को ऊपर से संभाले रहती, पर मन ही मन ख़ुद को बहुत अकेला और असहाय महसूस करने लगी थी. बंटी को ज़रा-सी भी देर हो जाती, तो मैं तुरंत फोन मिला देती. उसका फोन नहीं मिलता, तो उसके दोस्तों या टीचर्स तक को लगा देती. उसका खाना लिए बैठी रहती. उसके घर में घुसते ही प्रश्‍नों की झड़ी लगा देती. वह अक्सर झुंझला जाता था.
‘आपको हो क्या गया है मां? छोटा बच्चा नहीं हूं मैं कि गुम हो जाऊंगा. सब कितना मज़ाक बनाते हैं मेरा! दीदी पर तो कभी इतनी पाबंदियां नहीं लगाईं आपने?...’ फिर मेरा सहमा हुआ चेहरा देख ख़ुद ही चुप हो जाता और हम खाना खाने लगते. वह देर तक मुझे समझाते रहता कि मैं उसका खाने के लिए इंतज़ार न किया करूं. व़क़्त पर खाकर दवा वगैरह ले लिया करूं. मैं सब कुछ समझ जाने की मुद्रा में सिर हिलाती रहती. फिर एक दिन वही हुआ, जिसकी मुझे आशंका थी. बंटी को भी उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप मिली और विदेश जाने का कॉल आया, तो मैं सिहर उठी थी. अगर यह भी चला गया, तो मैं किसके सहारे ज़िंदा रहूंगी? फिर मेरी ही अंतरात्मा मुझे धिक्कारती कि मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो गई हूं? गहरे मानसिक अंतर्द्वंद्व के बाद मैंने निश्‍चय कर लिया कि बंटी विदेश जाएगा. दिल ख़ून के आंसू रो रहा था, पर मैंने उसे हंसते हुए विदा किया.
उसके जाने के बाद मैंने यह बगिया बसाई. इन पौधों को रोपकर मैं हर्षित होती हूं, सींचकर परितृप्त होती हूं और इन्हें बढ़ता देखती हूं, तो मन में उल्लास की हिलोरें उठने लगती हैं. मैं सच कहती हूं बेटी, मेरे मन में न इनसे फल पाने की इच्छा है और न ही छाया की चाहत. कभी-कभी सोचती हूं, हम अपने बच्चों को भी इसी तरह बिना किसी अपेक्षा के पालें, तो ज़िंदगी कितनी सुकूनभरी हो जाए. ज़रा सोचो, यदि उस दिन मैं बंटी को रोक लेती, तो वह कुछ कहता या नहीं, यह मैं नहीं जानती, पर मेरी अंतरात्मा तो मुझे मेरे स्वार्थी हो जाने के लिए मरते दम तक धिक्कारती रहती.”
यहभीपढ़े: पैरेंट्स भी करते हैं ग़लतियां (5 Common Mistakes All Parents Make)
व़क़्त काफ़ी हो गया था. रीमा को बच्चों की चिंता सताने लगी थी. माला आंटी के प्रति श्रद्धा से अभिभूत रीमा ने जाने की आज्ञा मांगी. परवरिश के इस नए अध्याय ने उसे अंदर तक मथ डाला था.
मंथन अभी जारी ही था कि एक दिन ऑफिस जाते व़क़्त रीमा को ऊपर बालकनी से आंटी की पुकार सुनाई दी. उनके संतरे के बोनसाई में एक फल आया था. हर्षोल्लास से उनका चेहरा दमक रहा था.
“मैंने तो कल्पना भी नहीं की थी कि इसके फल मुझे देखने और चखने को मिलेंगे.”
रीमा ने शाम को देखने आने का वादा किया. पूरे रास्ते रीमा यही सोचती रही कि अनपेक्षित फल सचमुच कितना सुख देता है! उसे चखने का मज़ा ही कुछ और है.
शाम को वादे के मुताबिक़ वह आंटी के टेरेस पर हाज़िर थी. डाल पर गोल-मटोल छोटा-सा संतरा वाक़ई बहुत प्यारा लग रहा था. आंटी ने चहकते हुए बताया कि उन्होंने उसके न जाने कितने फोटो खींच डाले थे और दोनों बच्चों को भेज भी दिए थे. रीमा कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त करे, इससे पूर्व आंटी का मोबाइल बज उठा. वे वार्तालाप में संलग्न हो गईं.
“हां, हां बेटा... पर... पर तू तो कह रहा था... अच्छा... ठीक है. ठीक है, मैं इंतज़ार करूंगी.” फोन रखते-रखते आंटी की आंखों से आंसू बहने लगे थे. रीमा घबरा उठी.
“क्या हुआ आंटी? सब ठीक तो है न?”
“बंटी का फोन था. वह इंडिया आ रहा है. यहीं रहकर जॉब करेगा.”
“पर उस दिन तो...”
“मैंने भी यही कहा. कह रहा है कि हां, जॉब ऑफर था, पर मैंने स्वीकारने की बात कब कही?” मैं तो आपको बता रहा था... मैं यहां स़िर्फ पढ़ने आया था. रहूंगा तो अपने देश में ही. सेवा तो अपनी मां और अपने देश की ही करूंगा. वह आ रहा है,
हमेशा के लिए. मुझे तो विश्‍वास ही नहीं हो रहा.” भावविभोर आंटी ने नए-नवेले संतरे को चूम लिया.
   अनिल माथुर
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10 हजार एकड़ में फैली, 10 लाख रुपए तक के पौधे; रोज 5 करोड़ का कारोबार होता है
10 हजार एकड़ में फैली, 10 लाख रुपए तक के पौधे; रोज 5 करोड़ का कारोबार होता है
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चीन से बोनसाई को लाया जाता है, जिसकी कीमत 1 लाख से 7 लाख है, स्पेन से ओलिया को लाया जाता है, जिसकी कीमत 10 लाख है
1959 में इस बाजार की शुरुआत हुई थी, उस समय 3-4 नर्सरी फार्म हाउस थे, आज 600 से ज्यादा हैं
ताराचंद गवारिया
Jul 13, 2020, 08:57 AM IST
राजमुंदरी. आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी से 15 किमी दूर कडियाम इलाका है। एक लंबी सड़क, उसके पास नहर में बहता कलकल पानी। नहर के दोनों तरफ हजारों…
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10 हजार एकड़ में मार्केट, हर दिन 5 करोड़ रुपए का कारोबार; यहां 10 लाख रुपए तक की कीमत वाले पौधे भी
10 हजार एकड़ में मार्केट, हर दिन 5 करोड़ रुपए का कारोबार; यहां 10 लाख रुपए तक की कीमत वाले पौधे भी
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चीन से बोनसाई को लाया जाता है, जिसकी कीमत 1 लाख से 7 लाख है, स्पेन से ओलिया को लाया जाता है, जिसकी कीमत 10 लाख है
1959 में इस बाजार की शुरुआत हुई थी, उस समय 3-4 नर्सरी फार्म हाउस थे, आज 600 से ज्यादा हैं
ताराचंद गवारिया
Jul 13, 2020, 07:32 AM IST
राजमुंदरी. आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी से 15 किमी दूर कडियम इलाका है। एक लंबी सड़क, उसके पास नहर में बहता कलकल पानी। नहर के दोनों तरफ हजारों की…
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hindustan-khabar · 4 years
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कई तरह के सजावटी पौधे व फूल वायु प्रदूषण को दूर करने में कारगर पीपल बरगद और बांस के बोनसाई भी पा रहे घरों में जगह। from Jagran Hindi News - uttar-pradesh:kanpur-city https://ift.tt/370xNBg
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ajitnehrano0haryana · 4 years
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कोटा। शहर के मध्य स्थित किशोरसागर तालाब की पाल शनिवार को विभिन्न प्रजातियों के खुबसूरत फूलों एवं गमलों में लगे सुगंधित फूलों से महक उठी। मौका था तीन दिवसीय चम्बल बायोडायवर्सिटी फेस्टिवल के शुभारंभ का। फेस्टिवल के तहत किशोर सागर तालाब की पाल पर एक तरफ सैंकडों प्रजाति के खुबसूरत एवं सुगंधित फूल बरबस ही राहगीरों को अपनी और आकर्षित कर रही थी।
यही नहीं यहां पर बोनसाई, दुर्लभ पौधे, आयुर्वेदिक एवं औषधीय महत्व के पौधों की प्रदर्शनी के अदभुत नजारों को दर्शकों ने खूब सराहा। शहर वासियों को इस चम्बल बायोडायवर्सिटी फेस्टिल के तहत यह नजारा शनिवार से 10 फरवरी तक विभिन्न आयोजनों के साथ देखने को मिलेगा।
पुष्प प्रदर्शनी का शुभारंभ संभागीय आयुक्त एलएल सोनी ने विधिवत फीता काटकर किया। इस अवसर पर जिला कलक्टर ओम कसेरा, उपायुक्त नगर निगम कीर्ति राठौड़ ने भी उपस्थित रहे। पुष्प प्रदर्शनी में 200 से अधिक प्रजातियों के पुष्पों का प्रदर्शन किया गया है। जिला मुख्यालय के सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं एवं शैक्षणिक संस्थानों, औद्योगिक इकाईयों द्वारा संयुक्त रूप से किशोर सागर तालाब की पाल को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया है।
प्रदर्शनी में बोनसाई पौधों की श्रृंखला में वर्षों पुराने दुर्लभ पौधों का संग्रहण भी प्रदर्शित किया गया है। इस प्रदर्शनी में आयुर्वेदिक एवं औषधीय महत्व के पौधों भी प्रदर्शित किए गए हैं। वन विभाग द्वारा वन औषधीय बीज एवं पादप का प्रदर्शन किया गया है। प्रदर्शनी मेंं औषधियों का उपयोग एवं उनकी पहचान के बारे में भी जानकारी दी जा रही है।
फोटो प्रदर्शनी का किया अवलोकन तीन दिवसीय चम्बल बायोडायवर्सिटी फेस्टिवल के तहत आर्ट गैलेरी में वाइल्ड लाइफ के फोटोग्राफ की प्रदर्शनी का संभागीय आयुक्त एलएन सोनी एवं उपायुक्त कीर्ति राठौड़ ने शुभारंभ कर अवलोकन किया। फोटो प्रदर्शनी के बारे में सारांश एवं हर्षित ने अतिथियों को हाड़ौती संभाग में पाए जाने वाले जलीय जीव-ज��तु, देशी-विदेशी पक्षियों के साथ-साथ विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के बारे में जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि इस प्रदर्शनी में करीब 160 जीव जन्तु, पक्षियों के आर्ट गैलेरी में फोटोग्राफ एवं टाइगर की विभिन्न क्रीड़ाओं के मनमोहक चित्रों का चित्रण भी किया गया। यह प्रदर्शनी भी आमजन के अवलोकन के लिए 10 फरवरी तक खुली रहेगी और प्रवेश निशुल्क रहेगा।
रैम्प वॉक से समझाया पौधों का महत्व प्रदर्शनी के पहले दिन कुतुर इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी की ओर से आकर्षक रैम्प वॉक किया गया। संस्था के विद्यार्थियों ने आकर्षक परिधानों में हरियाली के संरक्षण का संदेश दिया। पौधों की पत्तियों के रूप में लगाकर रैम्प वॉक कर प्रदर्शनी देखने के लिए आने वालों को पौधों के महत्व के बारे में समझाया। इस शो को अतिथियों ने भी खूब सराहा।
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bestnewsportal · 7 years
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बोनसाई के प्रति बढ़ रहा है लोगों का रुझान
बोनसाई के प्रति बढ़ रहा है लोगों का रुझान
जरा सोचिए कि यदि आप के ड्रॉइंग रूम के एक कोने में आम का पेड़ है तो दूसरे में संतरा का, यही नहीं आम के पेड़ में फल भी लगे हैं वह भी असली, शायद यह आपको मजाक लग रहा होगा कि बागों में और मैदान में लगने वाले ये पेड़ भला ड्रॉइंग रूम में कैसे लग सकते हैं, जबकि असलियत यह है कि यह संभव है और इसे संभव किया है बोनसाई ने।
आखिर क्या है ये बोनसाई –
संतोष त्रिपाठी ने बताया कि बोनसाई का मतलब है ‘बौने पौधे।’ यह…
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topnews123 · 7 years
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इलाहाबाद में खुशरूबाग में शुरू हुआ पांच दिवसीय हरियाली मेला
इलाहाबाद में खुशरूबाग में शुरू हुआ पांच दिवसीय हरियाली मेला
इलाहाबाद रिपोर्ट प्रियंका पाण्डे:- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता ने किया शुभारम्भ हरियाली मेला में 150 से अधिक प्रजातियों के पौधे हैं उपलब्ध घरों में पौधों तथा फूलों के विभिन्न रंगों और खुशबुओं से सकारात्मक ऊर्जा ��िलती है-न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता हरियाली मेले में औषधीय गुणों वाले पौधे भी हैं उपलब्ध मेले में विभिन्न बोनसाई रहे सबके आकर्षण का केन्द्र
जिलाधिकारी संजय कुमार के…
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जानिए #घर में कौन से #पौधे लगाएं और कौन से नहीं आज हम आपको बता रहे हैं कि #घर में किस प्रकार के #पौधे रखने चाहिए और कौन से नहीं - #वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में #मनी #प्लांट लगाना बहुत ही शुभ होता है। #ज्योतिष के अनुसार मनी प्लांट #शुक्र #ग्रह का कारक है। शुक्र की उपस्थिति में #पति- #पत्नी के #संबंध मधुर होते हैं। घर में #कांटेदार व #दूध वाले पौधे नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि कांटे नकारात्मक #ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। #गुलाब जैसे कांटेदार पौधे लगाए जा सकते हैं पर इसे घर की #छत पर रखें तो बेहतर रहेगा। घर में #बांस के पौधे लगा सकते हैं। #फेंगशुई के अनुसार बांस के पौधे #सुख व #समृद्धि के प्रतीक होते हैं। घर या #कार्यस्थल (#दुकान व #ऑफिस) की पॉजिटिव #एनर्जी को बढ़ाने के लिए #गुलदस्तों में रोज ताजे #फूल लगाएं। फूलों के गुलदस्ते ताजगी व #सौभाग्य की वृद्धि करते हैं। मुरझाए फूल व #पत्तियां नेगेटिव एनर्जी उत्पन्न करती हैं। #बेडरूम में किसी भी तरह के #पौधे लगाने से बचना चाहिए। इससे #मैरिड #लाइफ पर बुरा असर पड़ सकता है। #डाइनिंग व #ड्रॉइंग रूम में #गमले रखे जा सकते हैं। यदि घर की किसी #दीवार पर #पीपल उग आए तो उसे #पूजा करके हटाते हुए गमले में लगा देना चाहिए। पीपल को #बृहस्पति ग्रह का कारक माना जाता है। #बोनसाई पौधा भी घर में तैयार नहीं करने चाहिए और न ही बाहर से लाकर लगाने चाहिए। #वास्तु #शास्त्र के अनुसार बोनसाई पौधा घर में रहने वाले सदस्यों का #आर्थिक #विकास रोकते हैं। तुलसी का पौधा बेहद #कल्याणकारी, बहुउपयोगी, पवित्र एवं शुभ माना जाता है। तुलसी में एंटीबायोटिक सहित अनेक औषधीय गुण होते हैं। इसका स्पर्श व इसकी हवा दोनों लाभकारी है। इसलिए इसे घर में अवश्य लगाना चाहिए। #तुलसी का पौधा #वायु #प्रदूषण को भी कम करता है। तुलसी का पौधा घर के #ब्रह्म स्थल यानी बीचोंबीच लगाना चाहिए। वैसे इसे घर के किसी भी कोने में लगाया जा सकता है। इसे गंदे स्थान पर न लगाएं। #गुलाब, #चंपा व #चमेली के पौधे घर में लगाना अच्छा माना जाता है क्योंकि इससे मानसिक तनाव व अवसाद में कमी आती है। बेडरूम के नैऋत्य कोण में टेराकोटा या #चीनी #मिट्टी के फूलदानों में #सूरजमुखी के असली या नकली फूल लगा सकते हैं। पौधे व फूलों का उपयोग घर के नुकीले कोणों व उबड़-खाबड़ जमीन को ढकने के लिए किया जा सकता है। घर में खूबसूरत पत्ती वाले पौधे जैसे- साइकस, एक्लिया, अर्लिया, फिलोडेण्ट्रोन व ऐरिका आदि लगाए जा सकते हैं। खुशबूदार फूल वाले पौधे जैसे- चंपा, #नागचंपा, चमेली, #बेला, रात #रानी आदि फूल लगाए जा सकते हैं। लेकिन इन्हें घर के बाहर ही लगाएं। घर में नकली पौधे नहीं लगाने चाहिए, ये ऐस्थेटिक सेंस के लिहाज से #अशुभ माने जाते है। ये धूप व गंध को भी ज्यादा आकर्षित करते हैं। ऊंचे व घने #वृक्ष घर के दक्षिण या पश्चिम भाग में घर की दीवारों से थोड़ी दूर ही लगाना चाहिए।
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