Hindi AECC -A Assignment
By -Khyati Kaur Arora
Roll number - 22/0128
हिंदी की स्थिति :
हिंदी न केवल एक भाषा ही नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, सांस्कृतिक विरासत, और संस्कारों का सच्चा प्रतीक भी है। इस सरल, सहज, और सुगम भाषा का अद्वितीयता कारण हिंदी को विश्व की संभावना से भरा बनाता है, जिसे दुनियाभर में समझने, बोलने, और पसंद करने वाले लोगों की अधिकांश संख्या है। यह दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, जो हमारे परंपरागत ज्ञान, प्राचीन सभ्यता, और आधुनिक प्रगति के साथ एक संबंध बनाए रखती है। हिंदी, भारत संघ की राजभाषा के रूप में ही नहीं, बल्कि ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की प्रमुख भाषा भी है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल अन्य इक्कीस भाषाओं के साथ हिंदी को विशेष महत्व है।
देश में तकनीकी और आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ, अंग्रेजी का प्रभाव दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है, हालांकि हिन्दी देश की राजभाषा है। यह विकृति के कारण है कि लोग, हिन्दी को जानते हुए भी, इसे बोलने, पढ़ने, या काम करने में हिचकिचा रहते हैं। सरकार की प्रयास है कि हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए उचित माहौल प्रदान किया जाए। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए राजभाषा विभाग की विशेष भूमिका है, जो हिंदी के विकास में योगदान कर रहा है।
राजभाषा हिंदी को बढ़ावा देने के लिए, भारत सरकार ने राजभाषा विभाग की स्थापना की है। इस दिशा में, सरकार प्रयासरत है कि केंद्र सरकार के अधीन कार्य करने वाले विभागों में अधिक से अधिक कार्य हिंदी में हों। राजभाषा विभाग ने हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य है हिन्दी को प्रोत्साहित करना। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था और इसी दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था।
14 सितंबर, 2017 को राजभाषा विभाग ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया। इस उपलक्ष्य में, राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने देशभर के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, और कार्यालयों के प्रमुखों को राजभाषा कार्यान्वयन में उत्कृष्ट कार्य के लिए पुरस्कृत किया। उन्होंने इस अवसर पर कहा, “हिन्दी अनुवाद की नहीं, ब���्कि संवाद की भाषा है। हिन्दी मौलिक सोच की भाषा है। आज सरकार के कर्मचारियों और नागरिकों को मौलिक पुस्तक लेखन के लिए पुरस्कार मिलना मेरे लिए एक बड़ी खुशी है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सभी देशवासियों को “हिन्दी दिवस” के अवसर पर बधाई दी। इस मौके पर राजभाषा विभाग ने सी डैक के सहयोग से तैयार किए गए लर्निंग इंडियन लैंग्वेज विद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (लीला) के मोबाइल ऐप का लोकार्पण किया। इस ऐप के माध्यम से देशभर में विभिन्न भाषाओं के माध्यम से लोगों को हिंदी सीखने में सुविधा होगी और हिंदी भाषा को समझना, सीखना और कार्य करना सरल होगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसके लिए राजभाषा विभाग को सराहना की, ‘लीला मोबाइल ऐप‘ के जरिये हिन्दी सीखने की ऑनलाइन सुविधा लोगों तक पहुँचाने के लिए मैं राजभाषा विभाग की प्रशंसा करता हूँ।’
हिंदी दिवस के अवसर पर सरकारी विभागों में हिंदी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं और हिंदी प्रोत्साहन सप्ताह का आयोजन भी होता है। सरकार ने हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कई पुरस्कार योजनाएं शुरू की हैं। "राजभाषा कीर्ति पुरस्कार योजना" के अंतर्गत विभिन्न विभागों को हिंदी में उत्कृष्ट कार्य के लिए शील्ड प्रदान की जाती है। हिंदी में लेखन के लिए राजभाषा गौरव पुरस्कार की भी व्यवस्था है। सरकार द्वारा आधुनिक ज्ञान और विज्ञान में हिंदी में पुस्तक लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए भी पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं। इन प्रोत्साहन योजनाओं से हिंदी के विकास में बढ़ोतरी हो रही है।
केंद्र सरकार के कार्यालयों में हिंदी का अधिकाधिक उपयोग सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार के राजभाषा विभाग ने कदम उठाए हैं। कंप्यूटर पर हिंदी में कार्य करना अब और भी आसान हो गया है जिसका परिणामस्वरूप राजभाषा विभाग द्वारा विकसित की गई वेब आधारित सूचना प्रबंधन प्रणाली है। इससे भारत सरकार के सभी कार्यालयों में हिंदी के प्रयोग से संबंधित तिमाही प्रगति रिपोर्ट तथा अन्य रिपोर्टें राजभाषा विभाग को त्वरित गति से भेजी जा सकती हैं। सभी मंत्रालयों और विभागों ने अपनी वेबसाइटें हिंदी में तैयार कर ली हैं।
देश की स्वतंत्रता से लेकर हिन्दी ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं। भारत सरकार द्वारा विकास योजनाओं तथा नागरिक सेवाएं प्रदान करने में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। हिंदी तथा प्रांतीय भाषाओं के माध्यम से हम बेहतर जन सुविधाएं लोगों तक पहुंचा सकते हैं। इसके साथ ही विदेश मंत्रालय द्वारा ‘‘विश्व हिंदी सम्मेलन’’ और अन्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने का कार्य किया जा रहा है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष सरकार द्वारा ‘‘प्रवासी भारतीय दिवस’’ मनाया जाता है जिसमें विश्व भर में रहने वाले प्रवासी भारतीय भाग लेते हैं। विदेशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों की उपलब्धियों के सम्मान में आयोजित इस कार्यक्रम से भारतीय मूल्यों का विश्व में और अधिक विस्तार हो रहा है। विश्वभर में करोड़ों की संख्या में भारतीय समुदाय के लोग एक संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को एक नई पहचान मिली है। यूनेस्को की सात भाषाओं में हिंदी को भी मान्यता मिली है।
भारतीय विचार और संस्कृति का वाहक होने का श्रेय हिन्दी को ही जाता है। आज संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में भी हिंदी की गूंज सुनाई देने लगी है। पिछले वर्ष सितंबर माह में हमारे प्रधानमंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में ही अभिभाषण दिया गया था। विश्व हिंदी सचिवालय विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार करने और संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए कार्यरत है। उम्मीद है कि हिंदी को शीघ्र ही संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा भी प्राप्त हो सकेगा।
हिंदी आम आदमी की भाषा के रूप में देश की एकता का सूत्र है। सभी भारतीय भाषाओं की बड़ी बहन होने के नाते हिंदी विभिन्न भाषाओं के उपयोगी और प्रचलित शब्दों को अपने में समाहित करके सही मायनों में भारत की संपर्क भाषा होने की भूमिका निभा रही है। हिंदी जन-आंदोलनों की भी भाषा रही है। हिंदी के महत्त्व को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने बड़े सुंदर रूप में प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी’। हिंदी के इसी महत्व को देखते हुए तकनीकी कंपनियां इस भाषा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं। यह खुशी की बात है कि सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी का इस्तेमाल बढ़ रहा है। आज वैश्वीकरण के दौर में, हिंदी विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली भाषा बनकर उभरी है। आज पूरी दुनिया में 175 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है। ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें बड़े पैमाने पर हिंदी में लिखी जा रही है। सोशल मीडिया और संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है।
भाषा का विकास उसके साहित्य पर निर्भर करता है। आज के तकनीकी युग में विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी हिंदी में काम को बढ़ावा देना चाहिए ताकि देश की प्रगति में ग्रामीण जनसंख्या सहित सभीकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके। इसके लिए यह अनिवार्य है कि हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में तकनीकी ज्ञान से संबंधित साहित्य का सरल अनुवाद किया जाए। इसके लिए राजभाषा विभाग ने सरल हिंदी शब्दावली भी तैयार की है। राजभाषा विभाग द्वारा राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन योजना के द्वारा हिंदी में ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों के लेखन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे हमारे विद्यार्थियों को ज्ञान-विज्ञान संबंधी पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध होंगी। हिन्दी भाषा के माध्यम से शिक्षित युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध हो सकें, इस दिशा में निरंतर प्रयास भी जरूरी है।
भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग जनता करती है। भारत में लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिन्दी है। इसलिए इसको एक-दूसरे में प्रचारित करना चाहिए। इस कारण हिन्दी दिवस के दिन उन सभी से निवेदन किया जाता है कि वे अपने बोलचाल की भाषा में भी हिंदी का ही उपयोग करें। हिंदी भाषा के प्रसार से पूरे देश में एकता की भावना और मजबूत होगी।
हिन्दी भाषा का इतिहास:
हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही 'पद्य' रचना प्रारम्भ हो गयी थी। हिन्दी भाषा व साहित्य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्था 'अवहट्ट' से हिन्दी का उद्भव स्वीकार करते हैं।[1] चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' ने इसी अवहट्ट को 'पुरानी हिन्दी' नाम दिया।
साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध जो रचनाएँ मिलती हैं वे दोहा रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश आदि प्रमुख हैं। राजाश्रित कवि और चारण नीति, शृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया करते थे। यह रचना-परम्परा आगे चलकर शौरसेनी अपभ्रंश या प्राकृताभास हिन्दी में कई वर्षों तक चलती रही। पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देशी भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता गया। इस भाषा को विद्यापति ने 'देसी भाषा' कहा है, किन्तु यह निर्णय करना सरल नहीं है कि 'हिन्दी' शब्द का प्रयोग इस भाषा के लिए कब और किस देश में प्रारम्भ हुआ। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रारम्भ में 'हिन्दी' शब्द का प्रयोग विदेशी मुसलमानों ने किया था। इस शब्द से उनका तात्पर्य 'भारतीय भाषा' का था।
हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य (roop):
हिंदी पट्टी के रूप में भी जाना जाता है, उत्तरी, मध्य, पूर्वी और पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों को शामिल करने वाला एक भाषाई क्षेत्र है जहां विभिन्न केंद्रीय हिन्द-आर्य भाषाओं को 'हिंदी' शब्द के तहत सम्मिलित किया जाता है (उदाहरण के लिए, भारतीय जनगणना द्वारा) बोली जाने।हिंदी बेल्ट का उपयोग कभी-कभी नौ भारतीय राज्यों को संदर्भित करने के लिए भी किया जाता है, जिनकी आधिकारिक भाषा हिंदी है, अर्थात् बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का क्षेत्र।
1. बम्बइया हिन्दी:
बंबई हिन्दी या बम्बइया हिन्दी का ही एक प्रकार है जो मुम्बई में बोली जाती है। "बॉम्बे हिन्दी " को बोलचाल की भाषारूप में देशी वक्ताओं की युवा पीढ़ी उपयोग करती है।[1] इस बोली में भारत की अन्य भाषाओं: मराठी, हिन्दी, गुजराती ,अंग्रेज़ी तथा अन्य भाषाओं के अंशों व उच्चारणों को भी शामिल किया गया है।
इस तरह की कई स्थानीय बोलियों को दुनिया भर के महानगरीय शहरों ने विकसित किया है, वहीं बंबई हिंदी व्यापक रूप से बॉलीवुड फिल्मों में अपने लगातार उपयोग के परिणाम स्वरुप भारत में काफी जानी जाती है। प्रारंभ में, इस बोली को फिल्मों में बदमाश और गंवार वर्णों का प्रतिनिधित्व करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक सोमा ए चट्टर्जी के शब्दों में "भारतीय फिल्मों की विशेषता है कि इसमें पत्रों द्वारा बोले जाने वाली भाषा, उनकी सामाजिक स्थिति, उनकी जाति, सांप्रदायिकता, व्यवसाय, वित्तीय स्थिति आदि के अनुसार ही होती है।"
2. कलकतिया हिन्दी:
यह हिन्दी कलकत्ते की है।इसका मूल आधार तो मानक हिन्दी है किंतु स्वभावत: इस पर बँगला का प्रभाव काफ़ी है।हिन्दी क्षेत्र के भोजपुर प्रदेश के काफ़ी लोग कलकत्ते में बस गए हैं, इसीलिए उनका भी प्रभाव इस पर है।यह भी किसी की मातृबोली न होकर मात्र सामान्य बोलचाल की भाषा है।कलकत्ते में बँगला के बाद इसी का प्रयोग सर्वाधिक होता है।उपर्युक्त बोलियों की तरह ही भारत के अन्य बड़े नगरों जैसे अहमदाबाद, कटक आदि में भी उपर्युक्त प्रकार की स्थानीय प्रभावों से युक्त टूटी-फूटी हिन्दी बोली और समझी जाती है।
3. हैदराबादी:
हैदराबाद शहर हिंदू , मुस्लिम , आंध्र और तेलंगाना संस्कृतियों के मिश्रण के रूप में भारत में एक अद्वितीय स्थान रखता है । जाहिर है, "हैदराबादी हिंदी" उर्दू , हिंदी और तेलुगु के मिश्रण से अपना अनूठा स्वाद प्राप्त करती है । हैदराबादी होने का सबसे अच्छा हिस्सा जीवन भर प्रफुल्लित करने वाली हिंदी बातचीत का अनुभव करना है। पिछले कुछ वर्षों में, भाषा ने इतना महत्व प्राप्त कर लिया है कि इसके बिना किसी स्थान से जुड़ना मुश्किल हो जाता है। हमारे यहाँ अपना जॉनी है, जिसे 'हौला' (गूंगा-सिर या मूर्ख) कहा जाता है। जो कोई भी बातचीत में इस 'हौला' भाग को प्रतिबिंबित करता है, उसे 'हौलापन' से पीड़ित माना जाता है! “हौलेपने की बातें मत करो यारों!” (मूर्ख मत बनो या मूर्खतापूर्ण बात मत करो)। ध्यान दें, 'यारों' को एकवचन और बहुवचन दोनों में लगा��ा जा सकता है!
हैदराबाद में एकवचन-बहुवचन की अवधारणा बिल्कुल अलग है । यहाँ शब्द को बहुवचन बनाने के लिए उसके अंत में 's' प्रत्यय लगाने की आवश्यकता नहीं है। पारंपरिक 'एस' को 'आन' से बदल दिया गया है, उदाहरण के लिए - बोतलान, फ़ोनान या लोगान। “ऊनो पानी के बोतलां लेके आरा!” विडंबना यह है कि एक बार जब आप कुछ दिनों के लिए यहां रुकते हैं, तो यदि आपको बहुवचनों को 'एस' के साथ संदर्भित करना पड़ता है, तो आप असहज महसूस करते हैं, खासकर जब आप हिंदी में बात कर रहे हों।
सम्पर्क भाषा के रूप में हिंदी:
भारत एक बहुभाषी देश है और बहुभाषा-भाषी देश में सम्पर्क भाषा का विशेष महत्त्व है। अनेकता में एकता हमारी अनुपम परम्परा रही है। वास्तव में सांस्कृतिक दृष्टि से सारा भारत सदैव एक ही रहा है। हमारे इस विशाल देश में जहाँ अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं और जहाँ लोगों के रीति-रीवाजों, खान-पान, पहनावे और रहन-सहन तक में भिन्नता हो वहाँ सम्पर्क भाषा ही एक ऐसी कडी है जो एक छोर से दूसरे छोर के लोगों को जोड़ने और उन्हें एक दूसरे के समीप लाने का काम करती हैडॉ. भोलानाथ तिवारी ने सम्पर्क भाषा के प्रयोग क्षेत्र को तीन स्तरों पर विभाजित किया है : एक तो वह भाषा जो एक राज्य (जैसे महाराष्ट्र या असम) से दूसरे राज्य (जैसे बंगाल या असम) के राजकीय पत्र-व्यवहार में काम आएदूसरे वह भाषा जो केन्द्र और राज्यों के बीच पत्र-व्यवहारों का माध्यम होऔर तीसरे वह भाषा जिसका प्रयोग एक क्षेत्र/प्रदेश का व्यक्ति दूसरे क्षेत्र/प्रदेश के व्यक्ति से अपने निजी कामों में करें।
सम्पर्क भाषा के रूप में Hindi :
भारत एक बहुभाषी देश है और बहुभाषा-भाषी देश में सम्पर्क भाषा का विशेष महत्त्व है। अनेकता में एकता हमारी अनुपम परम्परा रही है। वास्तव में सांस्कृतिक दृष्टि से सारा भारत सदैव एक ही रहा है। हमारे इस विशाल देश में जहाँ अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं और जहाँ लोगों के रीति-रीवाजों, खान-पान, पहनावे और रहन-सहन तक में भिन्नता हो वहाँ सम्पर्क भाषा ही एक ऐसी कडी है जो एक छोर से दूसरे छोर के लोगों को जोड़ने और उन्हें एक दूसरे के समीप लाने का काम करती हैडॉ. भोलानाथ तिवारी ने सम्पर्क भाषा के प्रयोग क्षेत्र को तीन स्तरों पर विभाजित किया है : एक तो वह भाषा जो एक राज्य (जैसे महाराष्ट्र या असम) से दूसरे राज्य (जैसे बंगाल या असम) के राजकीय पत्र-व्यवहार में काम आएदूसरे वह भाषा जो केन्द्र और राज्यों के बीच पत्���-व्यवहारों का माध्यम होऔर तीसरे वह भाषा जिसका प्रयोग एक क्षेत्र/प्रदेश का व्यक्ति दूसरे क्षेत्र/प्रदेश के व्यक्ति से अपने निजी कामों में करें।
आजादी की लड़ाई लड़ते समय हमारी यह कामना थी कि स्वतंत्र राष्ट्र की अपनी एक राष्ट्रभाषा होगी जिससे देश एकता के सूत्र में सदा के लिए जुड़ा रहेगामहात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आदि सभी महापुरुषों ने एक मत से इसका समर्थन किया, क्योंकि हिन्दी हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक आन्दोलनों की ही नहीं अपितु राष्ट्रीय चेतना एवं स्वाधीनता आन्दोलन की अभिव्यक्ति की भाषा भी रही है।
भारत में हिन्दी बहुत पहले सम्पर्क भाषा के रूप में रही है और इसीलिए यह बहुत पहले से 'राष्ट्रभाषा' कहलाती है क्योंकि हिन्दी की सार्वदेशिकता सम्पूर्ण भारत के सामाजिक स्वरूप का प्रतिफल है। भारत की विशालता के अनुरूप ही राष्ट्रभाषा विकसित हुई है जिससे उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम कहीं भी होने वाले मेलों- चाहे वह प्रयाग में कुंभ हो अथवा अजमेर शरीफ की दरगाह हो या विभिन्न प्रदेशों की हमारी सांस्कृतिक एकता के आधार स्तंभ तीर्थस्थल हों- सभी स्थानों पर आदान-प्रदान की भाषा के रूप में हिन्दी का ही अधिकतर प्रयोग होता है। इस प्रकार इन सांस्कृतिक परम्पराओं से हिन्दी ही सार्वदेशिक भाषा के रूप में लोकप्रिय है विशेषकर दक्षिण और उत्तर के सांस्कृतिक सम्बन्धों की दृढ़ शृंखला के रूप में हिन्दी ही सशक्त भाषा बनीं। हिन्दी का क्षेत्र विस्तृत है।
सम्पर्क भाषा हिन्दी का आयाम, जनभाषा हिन्दी, सबसे व्यापक और लोकप्रिय है जिसका प्रसार क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर से बढ़कर भारतीय उपमहाद्वीप तक है। शिक्षित, अर्धशिक्षित, अशिक्षित, तीनों वर्गों के लोग परस्पर बातचीत आदि के लिए और इस प्रकार मौखिक माध्यम में जनभाषा हिन्दी का व्यवहार करते हैं। भारत की लिंग्वे फ्रांका, लैंग्विज आव वाइडर कम्युनिकेशन, पैन इंडियन लैंग्विज, अन्तर प्रादेशिक भाषा, लोकभाषा, भारत-व्यापी भाषा, अखिल भारतीय भाषा- ये नाम 'जनभाषा हिन्दी के लिए प्रयुक्त होते हैं। हमारे देश की बहुभाषिकता के ढाँचे में हिन्दी की विभिन्न भौगोलिक और सामाजिक क्षेत्रों के अतिरिक्त भाषा-व्यवहार के क्षेत्रों में भी सम्पर्क सिद्धि का ऐसा प्रकार्य निष्पादित कर रही है जिसका, न केवल कोई विकल्प नहीं, अपितु जो हिन्दी की विविध भूमिकाओं को समग्रता के साथ निरूपित करने में भी समर्थ है।
निष्कर्ष
वास्तव में भाषा सम्पर्क की स्थिति ही किसी सम्पर्क भाषा के उद्भव और विकास को प्रेरित करती है या एक सुप्रतिष्ठित भाषा के सम्पर्क प्रकार्य को संपुष्ट करती है। हिन्दी के साथ दोनों स्थितियों का सम्बन्ध है। आन्तरिक स्तर पर हिन्दी अपनी बोलियों के व्यवहारकर्ताओं के बीच सम्पर्क की स्थापना करती रही है और अब भी कर रही है, तथा बाह्य स्तर पर वह अन्य भारतीय भाषा भाषी समुदायों के मध्य एकमात्र सम्पर्क भाषा के रूप में उभर आई है जिसके अब विविध आयाम विकसित हो चुके हैंकुल मिलाकर हिन्दी का वर्तमान गौरवपूर्ण हैउसकी भूमिका आज भी सामान्य-जन को जोड़ने में सभी भाषाओं की अपेक्षा सबसे अधिक कारगर है।
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