Haryana Politics: कौन है नायब सिंह सैनी, आखिर सैनी को ही क्यों बनाया गया हरियाणा का सीएम? ये है बड़ी वजह
Haryana Politics: हरियाणा: हरियाणा के राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। भाजपा के अचानक उठाए गए इस कदम के बाद सवाल उठता है कि आखिर सैनी जैसे नए चेहरे को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी देने की वजह क्या है? आखिर क्यों नायब सिंह को ही सीएम पद के लिए चुना गया?
Haryana Politics: बता दें कि लोकसभा चुनाव से पहले हरियाणा में मंगलवार दोपहर अचानक हुए बड़े उलटफेर में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और उनके साथी कैबिनेट मंत्रियों ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया। जिसके बाद नायब सिंह सैनी को राज्य का नया मुख्यमंत्री बनाया गया। सैनी के साथ ही 5 अन्य मंत्रियों को शपथ दिलाई गयी। नायब सिंह सैनी हरियाणा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और कुरुक्षेत्र से सांसद हैं।
Haryana Politics: नायब सिंह सैनी ओबीसी समुदाय से आते हैं। पिछले साल उन्हें बीजेपी हरियाणा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। सैनी को पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर का विश्वासपात्र माना जाता है। उन्हें संगठन में काम करने का लंबा अनुभव है।
Haryana Politics: 1996 में उन्हें हरियाणा बीजेपी के संगठन में जिम्मेदारी दी गई। साल 2005 में नायब सिंह सैनी भाजपा अंबाला युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष बने। इसके बाद नायब सिंह सैनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2014 के विधानसभा चुनाव में नायब सिंह सैनी को नारायणगढ़ से टिकट दिया गया और वह जीतकर विधानसभा पहुंच गए। इसके बाद 2023 में उन्हें हरियाणा बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।
Haryana Politics: मनोहर लाल खट्टर के करीबी
Haryana Politics: नायब सिंह सैनी को मनोहर लाल खट्टर के करीबी होने का भी फायदा मिला। उन्हें सीएम बनाने को हरियाणा की जाति-केंद्रित राजनीति में गैर-जाट मतदाताओं खासतौर पर पिछड़े समुदायों को एकजुट करने की बीजेपी की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है। सैनी राज्य में आठ प्रतिशत ओबीसी समुदाय पर मजबूत पकड़ रखते हैं। राज्य में सैनी जाति की कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, अंबाला, हिसार और रेवाड़ी जिलों में अच्छी खासी आबादी है।
Haryana Politics: हरियाणा में जातियों का गणित
Haryana Politics: हरियाणा की आबादी में जाट लगभग 23 प्रतिशत हैं। यहां जाट राजनीतिक रूप से भी प्रभावी रहे हैं। राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से कम से कम 40 सीटों पर जाटों का सीधा प्रभाव है।
Haryana Politics: 2014 के विधानसभा चुनाव में जाटों ने बीजेपी को एकतरफा वोट दिया था लेकिन 2019 चुनावों में मामला उल्टा पड़ गया।जाटों का वोट कांग्रेस, जेजेपी और आईएनएलडी को गया।भाजपा के दिग्गज जाट नेताकैप्टन अभिमन्यु, ओम प्रकाश धनखड़, पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेम लता और तत्कालीन राज्य भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला सभी चुनाव हार गए।
Haryana Politics: हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर पंजाबी समुदाय से आते हैं। जाटों को ये बात खटकती रही है। 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन इसका ही परिणाम रहा। नायब सैनी पिछड़ी जाति से आते हैं। कहा जा रहा है कि सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी राज्य में पंजाबी और बैकवर्ड वोट बैंक बनाना चाहती है।
Haryana Politics: नायब सैनी सीएम बनाने को गैर-जाट और ओबीसी मतदाताओं को खुश करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। इसके अलावा, यह मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने की भी एक कोशिश है। हरियाणा की आबादी का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा जाट हैं, जिनका समर्थन मोटे तौर पर कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी और इंडियन नेशनल लोक दल के बीच बंटा हुआ है।
Haryana Politics: हरियाणा का ओबीसी समुदाय पिछले कुछ समय से सत्ताधारी दल पर समुदाय के लोगों की अनदेखी के आरोप लगा रहा है। हाल ही में रोहतक मे ओबीसी समाज ने एक बड़ी रैली की थी, जिसमें कहा गया था कि सरकार में ओबीसी समाज अब तक अपने हक और अधिकारों से वंचित है। समुदाय के लोगों ने कहा कि अगर उनको हक नहीं मिला तो सत्ताधारी दल को समुदाय के लोग वोट नहीं करेंगे।
Haryana Politics: ओबीसी समाज के संगठनों के पदाधिकारियों की मांग है कि समुदाय के लोगों को हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से कम से कम 25 मिलें। कहना है कि हरियाणा में ओबीसी समुदाय के काफी वोट बैंक होने के बावजूद समाज के लोगों को उस लिहाज से टिकट नहीं दी जाती। उन्होंने कहा कि इस बार लोकसभा की 10 में से 3 और विधानसभा की 90 में से कम से कम 25 सीट ओबीसी समुदाय के लोगों को दी जाएं।
Source: https://newsplus21.com/haryana-politics-who-is-nayab-singh-saini-why-was-saini-made-the-cm-of-haryana-this-is-the-big-reason/
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कमजोर सीट, स्टार कैंडिडेट... बीजेपी के मिशन 2024 का बड़ा प्लान समझिए
नई दिल्ली: अब की बार 400 पार... बीजेपी इस स्लोगन के साथ चुनावी मैदान में उतर गई है। पीएम मोदी खुद चुनावी रैलियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। बीजेपी जल्द ही लोकसभा उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर सकती है। उम्मीदवारों के नाम पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की एक लंबी बैठक में तय किए गए। एक बीजेपी नेता ने कहा, 'यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कितने उम्मीदवारों की घोषणा की जाएगी, लेकिन सूची काफी बड़ी होने की उम्मीद है।' पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, उम्मीदवारों की लिस्ट में कुछ बड़े नाम, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और वो क्षेत्र भी शामिल हो सकते हैं जहां पिछली बार पार्टी हार गई थी।
हारी हुई सीटों पर खास फोकस
सत्��ारूढ़ पार्टी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि पिछली बार हारी हुई सीटों के लिए उसके उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार करने और मतदाताओं तक पहुंचने के लिए पर्याप्त समय मिले। उत्तर प्रदेश में, एक नेता ने (अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर) बताया, 'मैंने सुना है कि कुछ सीटों पर जहां पार्टी को पिछली बार हार मिली थी, वहां बीजेपी ने अनौपचारिक रूप से कुछ प्रभारियों को तैनात किया है। पार्टी के महासचिव सुनील बंसल उन सीटों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। पार्टी को उम्मीद है कि वो इन सीटों को जीत लेगी। पिछले चुनाव में उत्तर प्रदेश की 78 लोकसभा सीटों में से 62 सीटें बीजेपी ने जीती थीं। इस बार अयोध्या राम मंदिर के उद्घाटन, राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के एनडीए में शामिल होने और कमजोर विपक्ष को देखते हुए पार्टी को इन सीटों को जीतने की उम्मीद है।
कांग्रेस को खुली चुनौती
एक बीजेपी नेता ने कहा कि 'कांग्रेस अगर अपने उम्मीदवारों को चुनने से पहले हमारे (बीजेपी) उम्मीदवारों को भी जान ले, तब भी उनके लिए फायदा नहीं होगा, पीएम मोदी की लोकप्रियता इतनी ज्यादा है कि बीजेपी आसानी से चुनाव जीत लेगी।' एक और बीजेपी नेता ने कहा कि पार्टी ने चुनाव की तारीखों से पहले मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी। लोकसभा उम्मीदवारों के जल्दी ऐलान से यह संदेश जाएगा कि बीजेपी एक अनुशासित पार्टी है जिसका 'दृढ़ नेतृत्व' है।
यूपी में बीजेपी की क्या प्लानिंग?
यूपी में, जहां सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें हैं, सूत्रों के मुताबिक, पहली लिस्ट में करीब 20 उम्मीदवारों के नाम हो सकते हैं। पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के लिए भी दो सीटें छोड़ सकती है, जो पिछले महीने एनडीए में शामिल हुई थी। जयंत चौधरी की अगुवाई वाली रालोद ने 27 फरवरी के राज्यसभा चुनाव में बीजेपी के आठवें उम्मीदवार को भी वोट दिया था, जिससे उसे समाजवादी पार्टी के तीसरे उम्मीदवार को हराने में मदद मिली थी। माना जा रहा है कि बीजेपी अपना दल (एस) के लिए एक या दो सीटें, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के लिए एक सीट और निषाद पार्टी के लिए एक सीट भी छोड़ सकती है।
हरियाणा में राजनीतिक समीकरण समझिए
हरियाणा में 10 लोकसभा सीटों के लिए संभावित उम्मीदवारों की लिस्ट बीजेपी नेतृत्व को मिल गई है। इससे हरियाणा में एनडीए (NDA) के भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं। दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) एनडीए की सहयोगी पार्टी है और राज्य की सत्ता में भी शामिल है। हरियाणा के एक बीजेपी नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, 'हमने सभी 10 सीटों के लिए नामों की लिस्ट दे दी है, लेकिन ये केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर करता है कि वो जेजेपी के लिए कोई सीट छोड़ना चाहते हैं या नहीं. ये फैसला हम नहीं ले सकते।' पिछले चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा की सभी 10 सीटें जीत ली थीं।
शिवराज सिंह चौहान को लेकर अटकलें तेज
बीजेपी के सूत्रों ने खुलासा किया है कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विदिशा से चुनाव लड़ सकते हैं। बीजेपी की पहली सूची में 29 में से 10 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नामों की घोषणा होने की उम्मीद है। छत्तीसगढ़ में, पहली सूची में सरगुजा और बस्तर, दो आदिवासी क्षेत्रों की सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम शामिल होने की संभावना है। http://dlvr.it/T3Vnkw
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जैसे ही कृषि विरोध समाप्त होता है, जेजेपी ने बैठक, सदस्यता के साथ विस्तार की योजना बनाई
जैसे ही कृषि विरोध समाप्त होता है, जेजेपी ने बैठक, सदस्यता के साथ विस्तार की योजना बनाई
साल भर से चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन खत्म होने के साथ ही हरियाणा में जननायक जनता पार्टी (JJP) जिस पार्टी की धज्जियां उड़ा रही है, वह है। सत्तारूढ़ गठबंधन का एक हिस्सा, जेजेपी को भाजपा के साथ-साथ राज्य में किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है, वस्तुतः दोनों दलों के नेताओं को उनके निर्वाचन क्षेत्रों से दूर रखा गया है।
कृषि कानूनों के आधिकारिक निरसन के तुरंत बाद, जजपा नेताओं ने जिला…
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जैसे ही कृषि विरोध समाप्त होता है, जेजेपी ने बैठक, सदस्यता के साथ विस्तार की योजना बनाई
जैसे ही कृषि विरोध समाप्त होता है, जेजेपी ने बैठक, सदस्यता के साथ विस्तार की योजना बनाई
साल भर से चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन खत्म होने के साथ ही हरियाणा में जननायक जनता पार्टी (JJP) जिस पार्टी की धज्जियां उड़ा रही है, वह है। सत्तारूढ़ गठबंधन का एक हिस्सा, जजपा को राज्य में किसानों के गुस्से के साथ-साथ गुस्से का भी सामना करना पड़ रहा है बी जे पीवस्तुतः दोनों दलों के नेताओं को उनके निर्वाचन क्षेत्रों से दूर रखना।
कृषि कानूनों के आधिकारिक निरसन के तुरंत बाद, जजपा नेताओं ने जिला…
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जजपा ने दो पूर्व मंत्रियो व दो पूर्व विधायकों सहित पांच राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किये
जजपा ने दो पूर्व मंत्रियो व दो पूर्व विधायकों सहित पांच राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किये : जननायक जनता पार्टी ने अपनी राष्ट्रिय कार्यकारिणी में विस्तार करते हुए दो पूर्व मंत्रियो व दो पूर्व विधायकों सहित पांच राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किये है, पार्टी संस्थापक डा. अजय सिंह चौटाला के विचार विमर्श करने के बाद पार्टी की कोर कमेटी ने राष्ट्रीय महासचिव पद के नामो की सूची जारी की है !
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कर्नल के वरिष्ठ नेता बर्ज शर्मा, होडल विधानसभा क्षेत्र से संबंध रखने वाले पूर्व मंत्री जगदीश नैयर व पूर्व विधायक रणसिंह बैनीवाल को भी जेजेपी का राष्ट्रिय महासचिव बनाया गया है, वयोवृद्ध नेता भानाराम सैनी व पूर्व मंत्री वेद सिंह मालिक भी जेजेपी के राष्ट्रिय महासचिव के पद पर नियुक्त किये गए है !
नारनौल विधानसभा क्षेत्र से संबंध रखने वाले सैनी पहले कांग्रेस सेवा दल के जिला प्रधान रहे, उन्होंने 2009 में इनेलो की टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा और वे मात्र 1400 वोटो के अंतर से यह चुनाव हारे थे, वे इनेलो की प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे !
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कैलाना हल्के से पूर्व विधायक रहे वेद सिंह मलिक ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत भी पंचायती चुनव से की ! 1987 में विधायक बनने के बाद उन्होंने प्लानिंग बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन के पद पर व बाद में चौ. देवीलाल की सर्कार में बतौर परिवहन मंत्री जननायक के साथ काम किया ! जेजेपी में आने से पूर्व वे इनेलो की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य थे !
जजपा ने दो पूर्व मंत्रियो व दो पूर्व विधायकों सहित पांच राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किये
स्त्रोत :- हरिभूमि
छायाचित्र भिन्न हो सकता है !
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हरियाणा में शराब घोटाले ने सरकार की दशा और दिशा की कलई खोल दी है। विशेष जांच दल की रिपोर्ट के बाद सरकार गंभीर असमंजस में है। कमाल की बात यह है कि पहले गृहमंत्री कुछ कहते हैं। फिर मुख्यमंत्री कुछ और कहते हैं। आखिर में उप-मुख्यमंत्री कुछ और कहते नजर आते हैं। राज्य की सत्ता के इन तीन ध्रुवों के बीच विरोधाभास किसी गंभीर गड़बड़ की तरफ इशारा कर रहा है।
कांग्रेस ने खट्टर सरकार पर फिर हमला बोलते हुए कहा है कि कोरोना महामारी में लॉकडाउन के दौरान हरियाणा में हुए खुलेआम ‘शराब घोटाले’ और चोर दरवाजे से सैकड़ों-हजारों करोड़ की शराब बिक्री, तस्करी की परतें खुलने के बाद साफ है कि शराब माफिया के तार सीधे-सीधे उच्च पदों पर बैठे राजनीतिज्ञों और आला अधिकारियों से जुड़े हैं।
कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला और प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने कहा है कि बीजेपी-जेजेपी सरकार में हड़कंप मचा है और प्रदेश के इतिहास में पहली बार परस्पर इल्जामात की राजनीति का खुला खेल चल रहा है।
गृहमंत्री अनिल विज उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के एक्साइज और टैक्टेशन विभाग को दोषी ठहराते हैं। उप-मुख्यमंत्री गृहमंत्री के विभाग पर जिम्मेदारी और दोष मढ़ देते हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शराब घोटाले की जांच के लिए जिस ‘स्पेशल इंक्वायरी टीम’ (एसईटी) का गठन किया था उप-मुख्यमंत्री उसकी रिपोर्ट को ही सिरे से खारिज कर देते हैं। इसके जवाब में मुख्यमंत्री उप-मुख्यमंत्री की बात को ही सिरे से नकार देते हैं।
कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि शराब माफिया के घालमेल में बड़े पदों पर बैठे लोग इस प्रकार के इल्जामात की राजनीति कर रहे हैं। प्रदेश में ‘जूतों में दाल’ बंट रही है। इस सारे विवाद में शराब माफिया और शराब तस्करों की पौ बारह है और दोषी खुलेआम घूम रहे हैं।
11 मई, 2020 को स्पेशल इंक्वायरी टीम के गठन से लेकर आज तक के घटनाक्रम में सीधे-सीधे जिम्मेवारी और जवाबदेही की आंच मुख्यमंत्री की ड्योढ़ी पर ला खड़ी की है। सुरजेवाला और सैलजा ने कहा है कि अब एसईटी के गठन को लेकर गृहमंत्री और मुख्यमंत्री की फाइल नोटिंग सार्वजनिक हो गई है। लिहाजा, मनोहर लाल खट्टर को 5 पहलुओं का जवाब प्रदेश की जनता को देना होगा।
1.पहला यह कि सोनीपत शराब गोदाम से शराब तस्करी का खुला खेल उजागर होने के बाद मुख्यमंत्री ने ‘स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम’ की जांच को सिरे से खारिज क्यों कर दिया?
2.क्या एसआईटी की जांच से और सोनीपत शराब घोटाले के खुलासे से सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोगों के नाम उजागर होने का खतरा था? क्या कारण है कि मुख्यमंत्री और गृहमंत्री ने एसआईटी यानि स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम को खारिज कर एसईटी यानि स्पेशल इंक्वायरी टीम का गठन कर दिया?
3.क्या यह सही नहीं कि एसईटी को क्रिमिनल प्रोसिजर कोड, 1973 की धारा 2 (एच) और 2 (0) के तहत कागजात जब्त करने, रेड़ करने, शराब ठेकों और गोदामों में जाकर जांच करने, शराब फैक्ट्रियों की जांच करने, एक्साइज विभाग का रिकोर्ड जब्त करने और दोषियों की गिरफ्तारी करने का अधिकार ही नहीं दिया गया?
4.क्या गृहसचिव और गृहमंत्री ने 7 मई को एसईटी का गठन करते हुए उसे शराब के ठेकों और शराब गोदामों (एल-1) तथा (एल-13) के स्टॉक की तफ्तीश कर शराब की शॉर्टेज, तस्करी, नाजायज बिक्री की जांच का अधिकार देने की सिफारिश की थी?
5.फिर, मुख्यमंत्री ने एसईटी को यह अधिकार देने से इंकार क्यों क��या? क्या मुख्यमंत्री द्वारा किए गए इस इंकार से शराब तस्करों और नाजायज शराब बेचने वालों को चिन्हित करने में रोड़ा नहीं अटकाया गया? क्या गृहसचिव और गृहमंत्री ने शराब ठेकों, शराब गोदामों और पुलिस मालखानों से चोरी हुई शराब के बारे में दर्ज हुई एफआईआर और की गई कार्रवाई की सूचना एकत्र करने, कार्रवाई करने के बारे में सिफारिश मुख्यमंत्री को नहीं की? फिर मुख्यमंत्री ने इस सारी जानकारी की अवधि को मात्र 25 दिन के समय में ही सीमित कर (15 मार्च से 10 अप्रैल, 2020) एसईटी के हाथ क्यों बांध दिए? इसका सीधा फायदा किसको मिला?
6.क्या गृहसचिव और गृहमंत्री द्वारा 2019-20 के बीच नाजायज शराब पकड़े जाने, नाजायज शराब की ट्रांसपोर्टेशन और पकड़ी गई शराब की स्टोरेज के बारे में हुई कार्रवाई की पूरी रिपोर्ट एसईटी द्वारा दिए जाने की सिफारिश की गई थी? तो फिर मुख्यमंत्री ने इस जांच को एसईटी को ना देकर अलग से फाइल मंगवाने के बारे में क्यों लिखा? वह क्या रहस्य था और वह कौन से नाम थे जिनकी जांच मुख्यमंत्री एसईटी द्वारा नहीं करवाना चाहते थे?
कांग्रेस नेताओं ने कहा कि एसईटी की रिपोर्ट में सफेदपोशों और अफसरशाही की शराब ठेकेदारों और शराब माफिया से संलिप्तता का षडयंत्र खुले तौर से सामने आया है। पर उप-मुख्यमंत्री ने एसईटी की रिपोर्ट को ही सिरे से खारिज कर दिया और मुख्यमंत्री ने उप-मुख्यमंत्री की बात से किनारा कर उनके दावे को खारिज कर दिया। ऐसे में जब मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री अलग-अलग राजनीतिक दलों से हैं और गठबंधन की सरकार चलाते हैं, तो एक–दूसरे पर अविश्वास की स्थिति स्पष्ट है। साफ है कि दोनों दलों ने एक-दूसरे में विश्वास खो दिया है। सवाल यह है कि ऐसे में क्या खट्टर सरकार को सत्ता में बने रहने का अधिकार रह गया है? मुख्यमंत्री और दुष्यंत चौटाला इसका जवाब हरियाणा की जनता को दें।
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दांव पर लगा हरियाणा के 4 क्षत्रपों का भविष्य
दांव पर लगा हरियाणा के 4 क्षत्रपों का भविष्य
अजय सुरा, चंडीगढ़
हरियाणा के करीब 1.83 करोड़ वोटर सोमवार को राज्य के 14वें विधानसभा चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। इन चुनावों में चार मुख्य राजनीतिक दल हैं- सत्तारूढ़ बीजेपी, कांग्रेस, इंडियन नैशनल लोक दल (आईएनएलडी) और उससे अलग हुई पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी)। इसके अलावा बीएसपी, आम आदमी पार्टी, स्वराज इंडिया और बागी विधायक राजकुमार सेनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी भी…
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हरियाणा में जेजेपी अपने दम पर बनाएगी सरकार : दुष्यंत
सांसद दुष्यंत चौटाला ने कहा कि नवगठित जननायक जनता पार्टी सूबे में अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरेगी और किसी भी राजनीतिक दल के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा । दुष्यंत ने एक जनसंपर्क अभियान के दौरान कहा कि उनकी पार्टी चुनाव में किसी अन्य राजनीतिक दल का न तो सहारा लेगी और न ही कोई समझौता करेगी । उन्होंने दावा किया कि देश की अधिकांश जनता ने कांग्रेस व भाजपा की नीतियों को पूरी तरह से नकार दिया है । उन्होंने कहा कि प्रदेश में जननायक जनता पार्टी का मुकाबला भाजपा व कांग्रेस से है। इनेलो का तो अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। दुष्यंत ने कहा कि अगले एक-दो दिन में पार्टी की कोर कमेटी की बैठक बुलाई जाएगी और सभी सदस्यों से विचार-विमर्श कर जल्द ही प्रदेश में पार्टी का संगठन खड़ा किया जाएगा।
स्त्रोत :- navbharattimes
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