'बाघ की कुर्सी से बंधे, बलात्कार, नशा': संयुक्त राष्ट्र की खराब रिपोर्ट से पता चलता है कि चीन ने शिनजियांग में उइगरों को कैसे प्रताड़ित किया - टाइम्स ऑफ इंडिया
‘बाघ की कुर्सी से बंधे, बलात्कार, नशा’: संयुक्त राष्ट्र की खराब रिपोर्ट से पता चलता है कि चीन ने शिनजियांग में उइगरों को कैसे प्रताड़ित किया – टाइम्स ऑफ इंडिया
रिपोर्ट में विस्तार से वर्णन किया गया है कि चीन द्वारा “व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण केंद्र” (वीईटीसी) नामक पुन: शिक्षा शिविरों का उपयोग “उग्रवाद” के उद्देश्य से किया जाता है। 2019 में चीनी सरकार ने कहा कि वीईटीसी “मामूली मामलों” में शामिल लोगों के लिए पुनर्वास का एक “उदार” रूप है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवाद के “गंभीर” और “मामूली” कृत्यों और / या “चरमपंथी”…
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रेत-समाधिः बधाई लेकिन...?
गीताजंलि श्री के उपन्यास ‘रेत-समाधि’ के अंग्रेजी अनुवाद ‘टाम्ब आॅफ सेन्ड’ को बुकर सम्मान मिलने पर हिंदी जगत का गदगद होना स्वाभाविक है। मेरी भी बधाई। मूल अंग्रेजी में लिखे गए कुछ भारतीय उपन्यासों को पहले भी यह सम्मान मिला है। लेकिन किसी भी भारतीय भाषा के उपन्यास को मिलनेवाला यह पहला सम्मान है। लगभग 50 लाख रु. की यह सम्मान राशि उसकी लेखिका और अनुवादिका डेजी राॅऊबेल के बीच आधी-आधी बटेगी। इतनी बड़ी राशिवाला कोई सम्मान भारत में तो नहीं है। इसलिए भी इसका महत्व काफी है। वैसे हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में इतने उत्कृष्ट उपन्यास लिखे जाते रहे हैं कि वे दुनिया की किसी भी भाषा की कृतियों से कम नहीं हैं लेकिन उनका अनुवाद अपनी भाषाओं में ही नहीं होता तो विदेशी भाषाओं में कैसे होगा? भारतीय भाषाओं में कुल मिलाकर जितनी रचनाएं प्रकाशित होती हैं, उतनी दुनिया के किसी भी देश की भाषा में नहीं होतीं। इसीलिए पहले तो भारत में एक अनुवाद अकादमी स्थापित की जानी चाहिए, जिसका काम सिर्फ श्रेष्ठ ग्रंथों का आपसी अनुवाद प्रकाशित करना हो। इस तरह के कुछ उल्लेखनीय अनुवाद-कार्य साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ और कुछ प्रादेशिक संस्थाएं करती जरुर हैं। उस अकादमी का दूसरा बड़ा काम विदेशी भाषाओं की श्रेष्ठ कृतियों को भारतीय भाषाओं में और भारतीय भाषाओं की रचनाओं का विदेशी भाषाओं में अनुवाद करना हो। यह कार्य भारत की सांस्कृतिक एकता को सुदृढ़ बनाने में सहायक तो होगा ही, विश्व भर की संस्कृतियों से भारत का परिचय बढ़ाने में भी यह अपनी भूमिका अदा करेगा। अभी तो हम सिर्फ अंग्रेजी से हिंदी और हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद पर सीमित हैं, जो कि गलत नहीं है लेकिन यह हमारी गुलाम मनोवृत्ति का प्रतिफल है। आज भी हम भारतीयों को पता ही नहीं है कि रूस, चीन, फ्रांस, जापान, ईरान, अरब देशों और लातीनी अमेरिका में साहित्यिक और बौद्धिक क्षेत्रों में कौन-कौन से नए आयाम खुल रहे हैं। अंग्रेजी की गुलामी का यह दुष्परिणाम तो है ही, इसके अलावा यह भी है कि अंग्रेजी में छपे साधारण लेखों और पुस्तकों को हम जरुरत से ज्यादा महत्व दे देते हैं। हमारे लिए बुकर सम्मान और नोबेल प्राइज़ हमारे भारत रत्न और ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी अधिक सम्मानित और चर्चित हो जाते हैं। गीताजंलि का उपन्यास ‘रेत-समाधि’ भारत-पाक विभाजन की विभीषिका और उससे जुड़ी एक हिंदू-मुसलमान अमर प्रेम-कथा पर केंद्रित है। वह भारत के अत्यंत प्रतिष्ठित प्रकाशन गृह राजकमल ने छापा है तो वह उत्कृष्ट कोटि का तो होगा ही लेकिन सारे देश का ध्यान उस पर अब इसलिए जाएगा कि उसे हमारे पूर्व स्वामियों और पूर्व गुरुजन (अंग्रेजों) ने मान्यता दी है। भारत अपनी इस बौद्धिक दासता से मुक्�� हो जाए तो उसे पता चलेगा कि उसने जैसे दार्शनिक, विचारक, राजनीतिक चिंतक, साहित्यकार और पत्रकार पैदा किए हैं, वैसे दुनिया के अन्य देशों में मिलने दुर्लभ है।
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उइगर मुसलमानों पर चीन कर रहा अत्याचार, दोस्ती की दुहाई देकर मजबूर हुए पाकिस्तान के PM इमरान खान
उइगर मुसलमानों पर चीन कर रहा अत्याचार, दोस्ती की दुहाई देकर मजबूर हुए पाकिस्तान के PM इमरान खान
परिवार के साथ इमरान खान ने कहा कि बैठक के साथ बीमाराबाद की ‘बेहद की बैठक’ की बैठक में करता चीन के अशांत प्रदेश शिनजियांग में उइगर एक मुसलिम मुस्लिम जाति है।
अमेरिका में खराब होने के मामले में यह बेहतर होता है।
चीन में बैन होने के साथ-साथ बदलते समय के साथ बातचीत के दौरान भी, जैसा कि कहा जाता है कि जब भी हम सकारात्मक हों, तो बातचीत के दौरान वे भी इस तरह की बातचीत के साथ बातचीत कर सकते हैं, जैसा कि…
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चुनावी राजनीति : जब प्रतिद्वंदी को आपकी मजबूरियों और सीमाओं का भान हो –
मोदी -02 का एक वर्ष मई महीने में पूरा हो चूका है | पिछले एक वर्ष का कार्यकाल मोदी सरकार के अपने कोर एजेंडे( धारा-३७० ,मंदिर निर्माण , समान नागरिक सहिंता ) के दो -तिहाई हिस्से को पूरा करने का वर्ष रहा है | धारा 370 और 35A को सरकार ने समाप्त कर दिया और मंदिर निर्माण का रास्ता माननीय उच्चतम न्यायालय ने साफ़ कर दिया |हाल -फ़िलहाल CAA भी चुनौती विहीन दिख रहा है|
दिल्ली का ‘ यासीन बाग ‘ हो या प्रयागराज का ‘मंसूर पार्क’ दोनों स्थानों से ‘कोरोना ‘ के चलते आंदोलनकारी हटाए जा चुके है | दिल्ली में तो दिल्ली दंगों और CAA के विरुद्ध प्रदर्शनो के बीच के सम्बन्ध को दिल्ली -पुलिस खंगालने का दावा कर रही है |कुछ एक विपक्षी दलों को छोरकर कोई दल खुलकर CAA के विरोध में अब नहीं आ पा रहा है |
कोविड-19 के मामले में भी जब संक्रमितों की संख्या सैकड़ों में भी नहीं थी तो नोटबंदी की तर्ज़ पर मोदी सरकार एक दिन के नोटिस पर पूर्ण लॉकडाउन करती है | जब संक्रमितों लाखो में पहुंचते है तो अनलॉक की प्रक्रिया शुरू कर देती है | ‘ इक्कीस दिन ‘ कोरोना मुक्ति के लिए मांगने वाली मोदी जी तीन माह पहले ही ले चुके है |…………और लगता है कोविड-19 के साथ जदोजहद अभी और लम्बी चलेगी |
चीन के साथ विवाद के सवाल पर अगर ‘ मोदी सरकार ‘ के तर्क को माना भी जाये , की चीन ने धोखा दिया , तो भी मोदी सरकार इस आरोप से बरी नहीं हो जाती की शी जिनपिन के इरादों को समझने में मोदी जी चूक गये|
रही बात श्रमिकों , किसानो, छोटे व्यपारियों . कामकाजी लोगों , छात्रों -नवजवानो की तो इस कोरोना काल में इनकी स्थिति के बारे में कहना ही क्या ?
इन सब के बावजूद मोदी सरकार अभी भी सशक्त और आशक्त लग रही है |सामाजिक -राजनैतिक वैज्ञानिक क्या इसी वजह से मोदी उभार को ‘ मोदी परिघटना ‘ कहते है |
मोदी के चुनावी प्रतिद्वंदी चुनावी क्षेत्र में भी और राजनैतिक बहसों में भी ‘ मोदी ‘ के सामने पस्त दीखते है | चुनावी राजनीती में कई बार ऐसा दीखता है की विपक्षी भले ही चुनाव हार रहे हो किन्तु नैतिक व् वैचारिक स्तर पर सत्ताधारी दल से बीस पड़ते है |किन्तु यहाँ तो स्थिति दूसरी ही दिख रही है |नैतिक और वैचारिक स्तर पर भी विपक्ष के पास लगता है जनता को कुछ देने के लिए बचा ही नहीं है |
उदाहरण के लिए मुख्या विपक्षी दल कांग्रेस को ले तो ‘पार्टी ‘ ऐसा लगता है मानो ‘ नेहरू परिवार ‘ की निजी सम्पत्ति हो गयी है | इस बाध्यता को मोदी -शाह की भाजपा खूब अच्छे से समझती है | गाँधी परिवार की रणनीति चार स्तरों पर कार्य करती रही है |
1 – सारा श्रेय आजादी के बाद से गाँधी परिवार को देना यहाँ तक की कांग्रेस के दूसरे प्रधानमंत्रियों – नरसिम्हाराव और मनमोहन सिंह को भी हाशिये पर रखना |
2 – भ्रष्टाचार , भाई -भतीजावाद , बाबरी विध्वंश ये सबकुछ दुसरो ( मनमोहन सिंह ) पर मढ़ने देना और श्रेय ( मनरेगा ) स्वम ( सोनिया गाँधी ) लेते रहना |
3 – पार्टी में राहुल -प्रियंका के वर्चस्व को बनाये रखने के लिए नयी पीढ़ी भले ही वंशवाद आधारित हो , ( सचिन पायलेट , सिंधिया आगे बढ़ने से रोकना |
4 – भ्रष्टाचार , वंशवाद , अवसरवादी साम्प्रदायिक प्रयोग के आरोपों से घिर जाने पर कांग्रेस के बहाने गाँधी परिवार को भारत के विचार ( आईडिया ऑफ़ इंडिया ) और धर्मनिरपेक्षतावाद का एक मात्र रक्षक घोषित करने का प्रयास करना |
मोदी -शाह की भाजपा गाँधी परिवार की इस स्थिति को बखूबी समझती है और समझते -भुझते इसका दोहन भी जम के कर रही है |
गाँधी -पटेल -बोस -आंबेडकर को छोड़कर ‘ नेहरू ‘ को टारगेट करना हो या फिर राजीव गाँधी को कटघरे में खड़ा करना हो |राहुल गाँधी को ‘युवराज ‘ कह के सम्बोधन भी इसी रणनीति का हिस्सा है इस मामले में दिलचस्प ये है की भाजपा इंदिरा गाँधी को कुछ ज्यादा नहीं कहती क्यों की कुछ मामलो में इंदिरा गाँधी उनकी राजनीती के लिए अनुकूल लगती है |बांग्लादेश की लड़ाई उनमे से एक है |
सोनिया गाँधी का प्रतक्ष्य राजनीती में पर्दापर्ण , गुजरात दंगों , सप्रंग का गठन ये सब लगभग एक कालखंड की घटनाये है | देश के पैमाने पर मुस्लिम वोटो का ध्रवीकरण कांग्रेस के पक्ष में करने के लिए ताकि दूसरी सेक्युलर क्षेत्रीय पार्टिया में मुसलमान वोट न छिटक जाये , कांग्रेस ने गुजरात दंगों और मोदी -भय को लगातार जीवित रखा |स्वयंसेवी सस्थाओं (NGO ) तरह -२ के प्रकाशनो , मीडिया संस्थानों वैगरह का प्रयोग करके ‘मोदी ‘ को देश के घर -घर में चर्चा का विषय बना डाला |
सोनिया गाँधी ने तो मोदी को इतना महत्व दिया की हर बार (२००७, २०१२ ) का गुजरात चुनाव मोदी vs सोनिया ही हो गया | जिसमे हर बार सोनिया गाँधी ही मात खाई और मोदी ने भी इन चुनावो को राष्ट्रीय स्तर के चुनाव ( २०१४) के पहले के क्वार्टर फाइनल और सेमी फाइनल की तरह खूब भुनाया |
अन्ना -आंदोलन , भ्रष्टाचार , भाई -भतिजावाद अराजकता वैगरह के आरोपों से घिरे गाँधी परिवार और कांग्रेस ने फिर से फासिस्ट मोदी , फासीवाद , संघ परिवार वैगरह का रण अलापना खुद से , और अपनी समर्थक संस्थाओं के माध्यम से शुरू कर के मोदी को केंद्र में ला खड़ा किया |
भारतीय पूंजीपतियों को ये लग ही रहा था की मोदी जैसा व्यक्ति उनके लिए फिलवक्त गाँधी परिवार से बेहतर साबित होगा बाकि तो सब जानते है |
एक दौर था जब आरएसएस , मोदी , आडवाणी वैगरह का भय कांग्रेस और दूसरी क्षेत्रीय दलों के सत्ता में बने रहने की पूर्व शर्त थी , लेकिन अब पैराडाइम ऐसा बदला , की मोदी -शाह के सत्ता में बने रहने के लिए -” गाँधी परिवार “और बाकी वंशवादी दलों का इसी रूप में अस्तित्व में रहना -पूर्व शर्त की तरह हैं|फिर तेजस्वी -अखिलेश -मायावती -राहुल गाँधी जैसे प्रतिद्वंदी मोदी -शाह -आदित्यनाथ आखिर क्यों नहीं चाहेंगे ?
पूरा जानने के लिए -https://bit.ly/3iEG83c
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* मीर कासिम बक्सर की लड़ाई में 1764 को पराजित हुआ।
* महिलाओं के अधिकारों को लेकर पहली बार अमेरिका में नेशनल वुमेन राइट कॉनवोकेशन 1850 में शुरू हुआ।
* ब्लांश एस स्कॉट अमेरिका में 1910 में अकेले हवाई जहाज उड़ाने बनाने वाली पहली महिला बनीं।
* न्यूयार्क में लगभग 25,000 महिलाओं ने मतदान के अधिकार की मांग को लेकर 1915 में प्रदर्शन किया।
* जर्मन सेना ने 1922 में सैक्सनी का अधिग्रहण किया और वहाँ के सोवियत गणराज्य को कुचल दिया।
* अल अलामीन के युद्ध में मित्र राष्ट्रों ने 1942 में जर्मन सेना को पराजित किया।
* द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उत्तरी मिस्र के क्षेत्र अलमैन में ब्रिटिश व जर्मन सेनाओं के 1942 में मध्य युद्ध हुआ।
* नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में आजाद हिंद फौज की ‘झांसी की रानी ब्रिगेड़’ की सिंगापुर में स्थापना की।
* त्रिग्वेली (नार्वे) सं.रा. संघ के प्रथम महासचिव 1946 में नियुक्त।
* संयुक्त राष्ट्र महासभा की न्यूयार्क में 1946 को पहली बार बैठक।
* गेर्टी कोरी और उनके पति कार्ल कोरी पहले ऐसे दंपति थे, जिन्हें 1947 में चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें ये पुरस्कार कार्बोहाइड्रेट साइकल के सिद्धांत के लिए दिया गया था.
* हंग्री की जनता ने 1956 में पूर्व सोवियत संघ के वर्��स्व के विरुद्ध संघर्ष आरंभ किया।
* रूसी कवि एवं उपन्यासकार बोरिस पास्तरनाक को 1958 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार।
* अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड एम निक्सन वाटरगेट मामले में 1973 को टेप जारी करने पर सहमत हुए।
* लेबनान में 1983 को मुसलमान संघर्षताओं द्वारा अमरीकी व फ़्रांसीसी अतिग्रहणकारियों के ठिकानों पर शहादत प्रेमी आक्रमणों में 241 अमरीकी और 58 फ़्रांसीसी सैनिक मारे गए।
* चीन और जापान ने 1978 में चार दशकों से चले आ रही शत्रुता को औपचारिक रूप से समाप्त किया।
* सोवियत संघ के प्रधानमंत्री अलेक्सी एन कोसीजिन ने 1980 में इस्तीफे की घोषणा की।
* लीबिया एवं सीरिया द्वारा 1980 में एकीकरण की घोषणा।
* हंगरी ने स्वयं को 1989 में गणराज्य घोषित किया।
* हंगरी सोवियत संघ से 1989 में 33 वर्षों के बाद आजाद होकर एक स्वतंत्र गणराज्य बना।
* पाकिस्तान ने 1998 में कश्मीर समस्या का समाधान आत्म निर्णय से करने की मांग दोहरायी।
* जापान ने 1998 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपने पहले बैंक का राष्ट्रीयकरण किया।
* अमेरिकन विदेशी मंत्री मेडलिन अल्ब्राइट की 2000 में उत्तरी कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग ली से ऐतिहासिक मुलाकात।
* नासा के मार्स ओडिसी अंतरिक्ष यान ने 2001 में मंगल ग्रह की परिक्रमा शुरू की।
* एप्पल ने 2001 में आईपॉड बाज़ार में उतारा
* 30 से 35 परमाणु बम होने की पुष्टि 2003 में की।
* माओवादी हिंसा ने 2003 में नेपाल के पूर्व मंत्री का आवास बम से उड़ाया।
* भारत और बुल्गारिया ने प्रत्यर्पण संधि पर 2003 में हस्ताक्षर किये।
* अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को ईरान ने 2003 में अपनी परमाणु रिपोर्ट सौंपी।
* विश्व के अकेले सुपरसोनिक विमान कानकोर्ड ने 2003 में न्यूयार्क से अपनी आख़िरी उड़ान भरी।
* जापान में 2004 को आए भूकंप ने 85 हजार लोगों को बेघर कर दिया.
* सूडान सरकार ने 2006 में संयुक्त राष्ट्र संघ के दूत को देश छोड़ने का आदेश दिया।
* कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने 2007 में सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर आर.के. राघवन को अपने नये सलाहकारी बोर्ड में नियुक्त किया।
* नया कम्पनी विधेयक 2008 को लोकसभा में पेश हुआ।
* तुर्की के पूर्वी वान क्षेत्र में 2011 को आए 7.2 की तीव्रता वाले भूकंप में अब तक 264 लोग मारे गए तथा 1300 लोग घायल हो गए।
#जनरल_नॉलेज #GK #Today_Current_Affairs #hindi_thought #History_of_today #today_thought #23_Oct_2019 #Kautilya_Academy_Shahdol #Shahdol
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*मोदी सत्तर साल का हिसाब मांगते हैं तो आपके गले बात उतरने लग जाती है। ठीक भी है ! लोकतंत्र है जवाबदेही होनी ही चाहिए। लेकिन जब मोदी तीन साल पहले हुए पुलवामा हमले के सवालों के जवाब नहीं देते क्या तब भी आपका मन नहीं करता कि पूछे क्यों ?*
*जब 11 बार इंटेलिजेंस रिपोर्ट होने के बावजूद हमला हो जाता है तब भी आपका मन नहीं करता कि पूछे क्यों ?*
*जब तमाम खुफिया रिपोर्ट्स के बावजूद पुलवामा में तीन सौ किलो आरडीएक्स पहुंच जाता है तब भी आपका मन नहीं करता कि पूछे क्यों ?*
*जब हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर–ए–तैयबा के आतंकियों के साथ डीएसपी देवेंद्र सिंह गिरफ्तार होता है तब सवाल उठते हैं कि आखिर संसद से लेकर पुलवामा हमले तक इस डीएसपी की भूमिका क्या थी ? क्या तब भी आप का ��न यह नहीं कहता कि इन सवालों के जवाब तो देश को जानने ही चाहिए ?*
*सवाल ढेर सारे हैं !*
*सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि इस देश के प्रधानमंत्री मोदी ने हमारे चालीस जवानों की शहादत के नाम पर वोट मांगा था। क्या जवान सीमा पर भाजपा पार्टी की चुनावी जीत के लिए तैनात हैं ?*
*क्या उनकी शहादत चुनाव का मुद्दा भी हो सकती है ?*
*लेकिन हम आप तो तब कतारबद्ध हो कर वोट दे रहे थे मानों देश सिर्फ इस एक प्रधानमंत्री मोदी की बदौलत सुरक्षित है!*
*हम तो आज भी भूल जाते हैं कि चीन हमारे देश के भीतर कहां तक घुस आया है और हम सवाल करना तो छोड़ यह भी नहीं पूछते कि सैनिक वर्दी पहनने में भी संकोच न करने वाले प्रधानमंत्री मोदी देश को सच्चाई क्यों नहीं बताते ?*
*पर हम ही कौन सा सच जानना चाहते हैं ? हमारी रुचि तो बस इतनी रह गई है कि मोहल्ले में कोई मुसलमान न रहने आ जाए ,किसी मुसलमान से सब्जी ना खरीदें, कोई मुसलमान गलती से ट्रेन में हमारा सह यात्री भी न बन जाए !*
*लोकतंत्र हम–आप पर यह जिम्मेदारी भी सौंपता है कि हम अपने मुंह, आंख, नाक, कान खुले रखें, लेकिन हिंदुस्तान का लोकतंत्र आज खतरे में है क्योंकि हमारे इन अंगों ने काम करना बंद कर दिया है है ! क्योंकि ना हम सुनना चाहते हैं ,ना समझना ना महसूस करना और न ही सच देखना !*
*उन्होंने कहा पुलवामा पर वोट दो हम लाइन में लग जाते हैं !*
*वो कहते हैं मई–जून में शिमला बना दूंगा हम लोकतंत्र के कठपुतली से दर्शकों की तरह तालियां बजाते हैं !*
*हमको आपको पुलवामा के सवालों को जिंदा रखना चाहिए।*
*हमको आपको पुलवामा के सवालों को इसलिए जिंदा रखना चाहिए क्योंकि हमें अपने लोकतंत्र को भी जिंदा रखना है ।*
*👉🏻क्योंकि हमें जानने का हक है कि चालीस जवानों की शहादत का जिम्मेदार कौन है और साजिश में कौन–कौन शामिल हैं ?*
*पुलवामा हमारे लिए वोट नहीं देश है। पुलवामा हमारे लिए सरकार नहीं झकझोर देने वाला सवाल है।*
*आपको तय करना है कि आपकी जगह तानाशाही का कूड़ेदान है या आप लोकतंत्र के पहरेदार का अभिमान चाहते हैं ?*
*देश सीमाओं पर भी तब सुरक्षित रहेगा जब आप यह तय करेंगे कि आपकी अपनी गलियों में लोकतंत्र सुरक्षित है !*
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हिमालय का इस्लामीकरण
उत्तराखंड और हिमाचल में भूमि जिहाद का आक्रमण।
आज से 29 वर्ष पूर्व जब मैं कश्मीर में आतंकवाद के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही का हिस्सा था, मुझे पाक-प्रशिक्षित कई आतंकवादियों के इंटेरोगेशन यानी पूछताछ करने का अवसर प्राप्त हुआ। कुछ याद नहीं की मैंने कितने आतंकवादियों का इंटेरोगेशन किया। लेकिन एक आतंकवादी का इंटेरोगेशन इतना अधिक महत्वपूर्ण और कुतूहल पैदा करने वाला था कि उसको मैंने अपनी पुस्तक "कश्मीर में आतंकवाद: आंखों देखा सच" में "प्रेम, पराजय और मोहभंग" नामक चैप्टर में लगभग 20 पृष्ठों में लिखा। उस आतंकवादी ने पाकिस्तान में दिए जा रहे हैं जिस प्रशिक्षण के विषय में बताया था यह सब धीरे-धीरे करके अक्षरशः सत्य साबित हो रहे हैं और हमारे सामने आ रहे हैं।
गजवा-ए-हिंद और दारुल-इस्लाम के विषय में अब अधिकतर भारतीय जागरूक हो चुके हैं लेकिन बहुत कम लोगों को पता है की दारुल-इस्लाम और गजवा-ए-हिंद के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए "हिमालय का इस्लामीकरण" (Islamization of Himalayas) नामक भूमि और जनसंख्या जिहाद भी चल रहा है। बड़े आश्चर्य की बात है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही इसके प्रति बिल्कुल उदासीन लगती है। जहां इसके लिए मूलतः कांग्रेस और हरीश रावत उत्तरदायी हैं वहीं भाजपा के त्रिवेन्द्र रावत की भूमिका भी कुछ अच्छी नहीं रही है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 2018 में उस कानून से छेड़छाड़ की जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जो उत्तराखंड का मूलनिवासी नहीं है उत्तराखंड में जमीन नहीं खरीद सकता। रावत के इस परिवर्तित कानून का दुष्परिणाम यह हुआ की देवभूमि उत्तराखंड का इस्लामीकरण और ईसाईकरण एक षड्यंत्र और योजनाबद्ध तरीके से बहुत तेजी से हो रहा है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य हैं क्योंकि पूरे हिमालयन रीजन में मात्र यही दो राज्य हैं जो इस्लामीकरण और ईसाईकरण से बचे हुए हैं।
हिमालय पर्वत का 2400 किलोमीटर का विस्तार कई श्रृंखलाओं में बंटा हुआ है, जो पश्चिमोत्तर में हिंदूकुश पर्वत श्रृंखला (अफगानिस्तान) से शुरू होता है और पूर्वोत्तर तथा दक्षिण पूर्व में नागालैंड की पटकाई पर्वत श्रृंखला पर समाप्त हो जाता है। इसके सब-टरेनियन विस्तार (sub-terrainian parts) का कुछ हिस्सा तिब्बत और चीन के कब्जे में भी है। इस 2400 किलोमीटर के पूरे विस्तार में मात्र हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड दो ऐसे राज्य हैं जो अभी भी अपने सनातनी और हिंदू चरित्र को बनाए रखे हुए हैं। हिमालय की पश्चिमोत्तर की अधिकतर बड़ी पर्वत श्रृंखलाएं जैसे हिंदू कुश (अफगानिस्तान) कराकोरम (पाकिस्तान/पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर) ज़ंसकर (पाक अधिकृत कश्मीर और लद्दाख) पीर पंजाल (भारत- जम्मू-कश्मीर) इत्यादि पहले से ही इस्लामिक हो चुकी हैं। एक समय में हिंदू-बौद्ध संस्कृति का केंद्र अफगानिस्तान अब पूरी तरह से एक इस्लामिक देश (Islamic Republic Afghanistan) ही नहीं 100% मुसलमानों का देश हो चुका है। जो थोड़े हिन्दू /सिख बचें थे वर्तमान तालिबान शासन के शुरू होते ही वहां से खदेड़ दिए गए या भयाक्रांत हो भाग लिए। कराकोरम पर्वत श्रृंखला जो पाकिस्तान/ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और भारत तक फैली है, पूरी तरह से इस्लामीकरण का शिकार हो चुकी। यहां तक कि भारत में भी हिमालय की गोद में बसा कश्मीर, कश्मीरी पंडितों के बहिष्करण (exodus) के बाद 97% मुसलमान आबादी का क्षेत्र बन गया है। कश्मीर और शेष भारत को अलग करने वाली पर्वत श्रृंखला "पीर पंजाल" का भी इस्लामीकरण हो चुका है।
पीर पंजाल के दक्षिण की तरफ से जम्मू क्षेत्र शुरू होता है जहां हिंदू कुल मिलाकर किसी तरह बहुसंख्यक बने हुए हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अभी तक बाहरी लोगों के बसने पर प्रतिबंध लगा हुआ था/है। इन प्रतिबंधों के बावजूद उत्तराखंड और हिमाचल में मुसलमान बहुत तेजी से अनधिकृत रूप से बस रहे हैं। इनका बसाव मजदूर, रेडी पटरी वाले और दुकानदारों के चोले में हो रहा है। अधिक आश्चर्य की बात यह है कि इनमें से बहुसंख्य भारतीय मुसलमान नहीं है बल्कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी हैं।
असम के मुख्यमंत्री, हेमंत विश्व शर्मा सरकार के द्वारा असम में दबाव बनाने और अनधिकृत कब्जे वाली भूमि को रोहिंग्या और बांग्लादेशियों से खाली कराने के बाद काफ�� बांग्लादेशी घुसपैठिये मुसलमान हिमाचल और उत्तराखंड की पहाड़ियों की ओर रुख किए हुए हैं। सबसे दुखद बात यह है कि यह हिंदुओं के पवित्र स्थानों पर डेमोग्राफी (धार्मिक जनसंख्या) में बदलाव की दिशा में बढ़ रहे हैं। पहाड़ों में रोजगार कम होने के कारण अधिकतर पहाड़ी नौजवान मैदानी इलाकों में नौकरी की तलाश में चले आते हैं और पीछे सिर्फ बूढ़े, महिलाएं और बच्चे छूट जाते हैं। ऐसी स्थिति जिहादियों के लिए बहुत ही अनुकूल होती है क्योंकि ना सिर्फ उन्हें दुकान खोलने, मजदूरी करने और अन्य कार्यों को करने का अवसर मिल जाता है बल्कि ऐसे में लव जिहाद के लिए भी मैदान खाली मिल जाता है। यह सब कुछ उत्तराखंड और हिमाचल में बहुत तेजी से हो रहा है। हिमाचल प्रदेश के ज्वाला देवी मंदिर के आसपास पहले कई किलोमीटर तक एक भी मुसलमान नहीं था लेकिन आज वहां हजारों की संख्या में मंदिर के निकट काफी बड़ी संख्या में मुसलमान बस चुके हैं। यही स्थिति उत्तराखंड में हरिद्वार और नैनीताल की है जहां एक समय एक भी मुसलमान नहीं थे और इन दोनों जगहों पर कोई भी मस्जिद नहीं थी लेकिन आज स्थिति यह है कि यहां पर मुसलमान भले ही कम हो लेकिन मस्जिद बहुत तेजी से बन रही है। तारिक फतेह ने स्वयं एक वीडियो में बताया कि अभी कुछ वर्ष पूर्व जब वह नैनीताल गए थे तो सुबह उन्हें बहुत ऊंचे वॉल्यूम में अजान सुनाई पड़ी। तारिक फतेह अपने होटल से उठकर उस मस्जिद तक गए और देखा कि वहां सिर्फ 11 लोग नमाज पढ़ रहे थे। उन्होंने मौलवी से पूछा कि यहां आस-पास कितने मुसलमान रहते हैं तो उसने बताया कि जितने रहते यही हैं। तब तारेक फतह ने प्रश्न किया कि जब कुल 11 लोग ही हैं तो इतनी ऊंची आवाज में अजान देने की आवश्यकता क्या है? स्पष्ट है अजान नमाजियों को बुलाने के लिए नहीं बल्कि अपना डोमिनेंस यानी आधिपत्य स्थापित करने के लिए इतने ऊंचे वाल्यूम में पढ़ी जाती है।
हिमालय के इस्लामीकरण का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हो रहा है कि जो हमारे पवित्र स्थान हैं- जैसे रूद्र प्रयाग, कर्णप्रयाग, देवप्रयाग इत्यादि इन स्थानों पर भी मांस का विक्रय प्रारंभ हो गया है। आवश्यक नहीं कि यह गाय का ही मांस हो लेकिन जो हिंदू धर्म स्थलों की पवित्रता है वह नष्ट होती जा रही है। नेपाल में भी यही दशा है। "हिन्दू राष्ट्र" का संवैधानिक दर्जा हटने के बाद वहां भी ईसाई और इस्लामी करण बहुत तेजी से हो रहा है। बात यह है कि यह सब स्वाभाविक नहीं बल्कि योजना बद्ध और वाह्यारोपित (induced) है।
हमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि हमारे देश के नेताओं को भूगोल का महत्व नहीं पता है। उन्हें पता नहीं कि "जिनका भूगोल नहीं उनका न तो इतिहास होता है न ही भविष्य"। नेहरू ने चीन को प्लेट पर रख कर के तिब्बत दे दिया। ना सिर्फ हमारे बहुत से पवित्र स्थल जैसे मानसरोवर आज चीन के कब्जे में है बल्कि हमारी अधिकतर नदियों का उद्गम स्थल भी चीन के कब्जे में है और वह उस पर बड़े-बड़े बांध बनाकर भारत के लिए "जल प्रलय" की स्थिति पैदा कर रहा है। हमें यह समझना होगा कि पहाड़ों पर जो लोग बसे हुए हैं उनका बहुत अधिक महत्व है। उत्तराखंड से ही हमारे देश की अनेक पवित्र और प्रमुख नदियां निकलती है जिसमें गंगा और यमुना भी शामिल हैं। उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है और हरिद्वार उसका प्रवेश द्वार है लेकिन जिस तरह से षड्यंत्र के तहत देव भूमि का इस्लामीकरण हो रहा है वह सनातन धर्म और देश के लिए बहुत बड़े खतरे की घंटी है।
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" हिंदुओं पर होगा योगी सरकार की जनसंख्या नीति का सबसे बड़ा प्रभाव "- डॉ एस टी हसन
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी के सांसद डॉ एस टी हसन ने यूपी में योगी सरकार की जनसंख्या नीति पर टिप्पड़ी करी. हसन ने कहा कि, इसका सबसे बड़ा असर बहुसंख्यक हिन्दुओं पर ही पड़ेगा. मुसलमानों को इस कानून से घबराने या डरने की कोई ज़रूरत नहीं है. इससे मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं होने वाला है. ये कानून किसानों और मजदूरों को टारगेट कर बनाया जा रहा है. उन्हें ही इस से सबसे ज्यादा नुकसान होने वाला है.
बीजेपी यह सब चुनाव के लिए कर रही है, लेकिन अब किसान और मजदूर का बीजेपी से मोह भंग हो जायेगा और चुनाव में भाजपा को इस से नुकसान होगा .
सपा सांसद ने कहा कि, अगर जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना ही है तो कम से कम 3 बच्चों वाला कानून बनना चाहिए. सपा सांसद ने कहा कि, मुसलमान तो सिर्फ दो प्रतिशत ही सरकारी नौकरियों में हैं, इसलिए जो 98 प्रतिशत हिन्दू सरकारी नौकरियों में हैं, उन पर इस का सबसे अधिक असर पड़ेगा. हिन्दू भी हमारे भाई हैं, उनका नुकसान भी तो हमारा नुकसान है, इसलिए हम इस कानून का स्वागत नहीं करेंगे. हमे उनकी भी फ़िक्र है. हमारी जनसंख्या देश की संपत्ति है.
हसन ने कहा क्योंकि, हमारा देश कृषि प्रधान देश है, जो हमारे खेतों पर काम करने वाले किसान लोग हैं, उनके परिवार में अगर 5-7 लड़के हैं. तो वह सब अपने खेतों में काम करते हैं और बाहर से लेबर नहीं लगानी पड़ती, लेबर बहुत महंगी है. खेत की खुदाई और फसल कटाई में लेबर की ज़रूरत पड़ती है. हमारे यहां छोटे किसान हैं और मशीनरी से यहां काम नहीं होता, इसलिए यहां छोटे किसान खुद ही अपने खेतों में परिवार के साथ काम करते हैं.
उन्हीं किसानों और मजदूरों को निशाना बना कर यह कानून बनाया है. मुसलमानों को निशाना बना कर ये कानून नहीं बनाया है. किसानों और मजदूरों में ये एक धारणा है कि, जितने बच्चे ज्यादा होंगे उतने कमाने वाले हाथ ज्यादा होंगे. जनसंख्या बढ़ने का हिन्दू या मुस्लिम से कोई सम्बन्ध नहीं है, इसका सम्बन्ध शिक्षा से है.
सपा सांसद ने कहा कि, हिंदुस्तान को जवान रखने और जनसंख्या को कंट्रोल करने के लिए कम से कम 3 बच्चों वाला कानून बनना चाहिए .
एस टी हसन ने कहा कि, देश की जनसंख्या हमारी संपत्ति है. बड़ी जनसंख्या की वजह से ही देश के बैंक डूबने से बच गये. क्योंकि मंदी में मोदी सरकार ने सस्ता डीजल, पेट्रोल ख़रीदा और देश की जनता को महंगा बेच कर पैसा कमाया और देश की महिलाओं के गहने तक बिकवा दिए.
देश में बड़ी जनसंख्या की वजह से करोड़ों वाहन हैं और उन्हें डीजल पेट्रोल की ज़रूरत होती है, जिस से सरकार के बैंक खाते में रुपया जमा हुआ. चीन जैसे जिन देशों ने जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाया था वह देश दोबारा उसी पर आ गये और जनसंख्या नियंत्रण कानून ख़त्म कर लोगों को जितने बच्चे चाहें उतने पैदा करने की छूट दे दी. हिंदुस्तान बूढा हो जायेगा अगर आपने दो बच्चों का कानून बनाया.
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उइगरों के समर्थन में बाइडेन प्रशासन: चीन में उइगरों मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार की अमेरिका ने फिर की निंदा, कहा- इसके खिलाफ दुनिया के देशों को एकजुट होने की जरूरत
उइगरों के समर्थन में बाइडेन प्रशासन: चीन में उइगरों मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार की अमेरिका ने फिर की निंदा, कहा- इसके खिलाफ दुनिया के देशों को एकजुट होने की जरूरत
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China Uighur Muslim News; Joe Biden Secretary Of State Condemns China‘Acts Of Genocide’ Against Muslim Uyghurs
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वॉशिंगटनएक घंटा पहले
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अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एंटोनी ब्लिंकेन ने रविवार को उइगरों मुसलमान का एक बार फिर से समर्थन किया है। उनपर चीन की सरकार की तरफ से झिंजियांग इलाके में हुए…
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Genocide: दुनिया के 5 सबसे बड़े नरसंहार, एक में तो 60 लाख लोगों की हुई थी हत्या Divya Sandesh
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Genocide: दुनिया के 5 सबसे बड़े नरसंहार, एक में तो 60 लाख लोगों की हुई थी हत्या
नरसंहार को मानवता के खिलाफ सबसे गंभीर अपराध माना जाता है। दुनिया के सबसे बड़े नरसंहार होलोकॉस्ट को साल 2021 में 80 साल पूरे हो चुके हैं। जर्मनी के तानाशाह हिटलर की अगुवाई में अंजाम दिए गए इस नरसंहार के दौरान यहूदियों की दो तिहाई आबादी का कत्ल कर दिया गया था। यही नहीं, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कई दूसरे भी नरसंहार हुए हैं जिन्होंने मानवता को शर्मशार किया है। संयुक्त राष्ट्र नरसंहार सम्मेलन ने नरसंहार की जो परिभाषा दी है उसके अनुसार, जब किसी देश में एक राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को नष्ट करने के इरादे से हत्याएं की जाती हैं तो उसे नरसंहार कहा जाता है। नरसंहार शब्द 1943 में यहूदी-पोलिश वकील राफेल लेमकिन द्वारा तैयार किया गया था, जिन्होंने ग्रीक शब्द “जीनोस” (जाति या जनजाति) को लैटिन शब्द “सीड” (मारने के लिए) के साथ जोड़ा था। होलोकॉस्ट के दौरान डॉ लेमकिन के भाई को छोड़कर उनके पूरे परिवार को मार दिया गया था। जिसके बाद उन्होंने नरसंहार को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराध के रूप में मान्यता देने का अभियान चलाया। उनके प्रयासों ने दिसंबर 1948 में संयुक्त राष्ट्र नरसंहार सम्मेलन को आयोजित किया गया, जिसमें पारित किए गए प्रस्तावों को जनवरी 1951 में लागू किया गया था।नरसंहार को मानवता के खिलाफ सबसे गंभीर अपराध माना जाता है। दुनिया के सबसे बड़े नरसंहार होलोकॉस्ट को साल 2021 में 80 साल पूरे हो चुके हैं। जर्मनी के तानाशाह हिटलर की अगुवाई में अंजाम दिए गए इस नरसंहार के दौरान यहूदियों की दो तिहाई आबादी का कत्ल कर दिया गया था। यही नहीं, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कई दूसरे भी नरसंहार हुए हैं जिन्होंने मानवता को शर्मशार किया है।नरसंहार को मानवता के खिलाफ सबसे गंभीर अपराध माना जाता है। दुनिया के सबसे बड़े नरसंहार होलोकॉस्ट को साल 2021 में 80 साल पूरे हो चुके हैं। जर्मनी के तानाशाह हिटलर की अगुवाई में अंजाम दिए गए इस नरसंहार के दौरान यहूदियों की दो तिहाई आबादी का कत्ल कर दिया गया था। यही नहीं, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कई दूसरे भी नरसंहार हुए हैं जिन्होंने मानवता को शर्मशार किया है। संयुक्त राष्ट्र नरसंहार सम्मेलन ने नरसंहार की जो परिभाषा दी है उसके अनुसार, जब किसी देश में एक राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को नष्ट करने के इरादे से हत्याएं की जाती हैं तो उसे नरसंहार कहा जाता है। नरसंहार शब्द 1943 में यहूदी-पोलिश वकील राफेल लेमकिन द्वारा तैयार किया गया था, जिन्होंने ग्रीक शब्द “जीनोस” (जाति या जनजाति) को लैटिन शब्द “सीड” (मारने के लिए) के साथ जोड़ा था। होलोकॉस्ट के दौरान डॉ लेमकिन के भाई को छोड़कर उनके पूरे परिवार को मार दिया गया था। जिसके बाद उन्होंने नरसंहार को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराध के रूप में मान्यता देने का अभियान चलाया। उनके प्रयासों ने दिसंबर 1948 में संयुक्त राष्ट्र नरसंहार सम्मेलन को आयोजित किया गया, जिसमें पारित किए गए प्रस्तावों को जनवरी 1951 में लागू किया गया था।होलोकॉस्ट में मारे गए थे 60 लाख यहूदी1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने अंतिम हल (फाइनल सोल्यूशन) को अमल में लाना शुरू किया। बताया जाता है कि 1941 से ऑश्वित्ज के नाजी होलोकॉस्ट सेंटर पर हिटलर की खुफिया एजेंसी एसएस यूरोप के अधिकतर देशों से यहूदियों को पकड़कर यहां लाती थी। जहां काम करने वाले लोगों को जिंदा रखा जाता था, जबकि जो बुढ़े या अपंग लोग होते थे उन्हें गैस चेंबर में डालकर मार दिया जाता था। इन लोगों के सभी पहचान के सभी दस्तावेजों को नष्ट कर हाथ में एक खास निशान बना दिया जाता था। इस कैंप में नाजी सैनिक यहूदियों को तरह तरह के यातनाएं देते थे। वे यहूदियों के सिर से बाल उतार देते थे। उन्हें बस जिंदा रहने भर का ही खाना दिया जाता था। भीषण ठंड में भी इनकों केवल कुछ चिथड़े ही पहनने को दिए जाते थे। जब इनमें से कोई बीमार या काम करने में अक्षम हो जाता था तो उसे गैस चेंबर में डालकर या पीटकर मार दिया जाता था। इस कैंप में किसी भी कैदी को सजा सार्वजनिक रूप से दी जाती थी, जिससे दूसरे लोगों के अंदर डर बना रहे। कई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि होलोकॉस्ट में करीब 60 लाख यहूदियों की हत्या की गई थी, जो इनकी कुल आबादी का दो तिहाई हिस्सा था।कंबोडियन नरसंहार में मारे गए थे 20 लाख लोगदक्षिण अमेरिकी देश कंबोडिया में 1970 के दशक में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पोल पॉट के नेतृत्व में खमेर रूज के शासन में लोगों पर भयंकर अत्याचार किए गए। इस घटना ने पूरे कंबोडियो को साम्यवाद की ओर ढकेल दिया था। इसके परिणामस्वरूप 1975 से 1979 के बीच करीब 20 लाख लोगों की मौत हुई थी। यह संख्या उस समय कंबोडिया की कुल आबादी की एक चौथाई थी। पोल पॉट और खमेर रूज को लंबे समय से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और वहां के तानाशाह माओत्से तुंग का समर्थन प्राप्त था। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि खमेरू रूज को 90 फीसदी विदेशी सहायता चीन से मिली थी। जिसमें बिना ब्याज की 1 बिलियन डॉलर की आर्थिक और सैन्य मदद भी शामिल थी। अप्रैल 1975 में सत्ता पर कब्जा करने के बाद खमेर रूज ने देश को एक समाजवादी कृषि गणराज्य में बदलना चाहा, जो अल्ट्रा-माओवाद की नीतियों पर आधारित था और सांस्कृतिक क्रांति से प्रभावित था। इस शासनकाल के दौरान अत्यधिक काम, भुखमरी और बड़े पैमाने पर लोगों को फांसी देने के चलते करीब 20 लाख लोगों की मौत हो गई थी। यह नरसंहार तब समाप्त हुआ जब 1978 में वियतनामी सेना ने आक्रमण किया और खमेर रूज शासन को खत्म कर दिया।सेरासियन नरसंहार को रूस ने दिया था अंजामसेरासियन नरसंहार को रूस ने 1864 में सेरासियन पर कब्जे के दौरान अंजाम दिया था। तीन साल में ही रूसी सेना के अत्याचार से 25 लाख लोगों की मौत हुई थी। बताया जाता है कि इस दौरान रूसी सेना के हाथों 90 फीसदी तक सेरासियन के लोग या तो मारे गए या फिर भगा दिए गए। उस समय रूसी सेना ने इतने अत्याचार किए थे जिसे सुनकर आज भी लोगों की रूह कांप जाती है। रूसी सैनिक मनोरंजन के लिए सेरासियन की गर्भवती महिलाओं के पेट को फाड़कर बच्चा बाहर निकाल लेते थे। इतना ही नहीं, बाद में वे इस अल्प���िकसित भ्रूण को कुत्तों के सामने फेंक देते थे। रूसी जनरल ग्रिगोरी जास तो यहां की महिलाओं को अमानवीय गंदगी करार देता था। वे यहां के लोगों को पकड़कर उनके ऊपर कई वैज्ञानिक प्रयोग करते थे। जब उनका कोई प्रयोग फेल हो जाता था तो वे इन लोगों को मार देते थे। यहां के लोग तब भागकर पड़ोसी देश तुर्की में शरण लेने पहुंचे थे।आर्मीनियाई नरसंहार में तुर्की ने 15 लाख लोगों को माराआर्मीनिया और अन्य इतिहासकारों के अनुसार 1915 में ऑटोमन सेना ने बड़े व्यवस्थित तरीके से करीब 15 लाख लोगों की हत्या की थी। तुर्की लगातार इन दावों को खारिज करता आया है और इसके कारण आर्मीनिया और तुर्की के संबंधों में तनाव भी रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लाखों यहूदियों की हत्या और उन पर हुए अत्याचारों के बारे में जितनी चर्चा हुई है, उतनी चर्चा पहले विश्व युद्ध के दौरान मारे गए आर्मीनियाई नागरिकों की नहीं हुई। तुर्की ने आजतक आर्मीनिया में लोगों के ऊपर ढाए गए कहर को लेकर सार्वजनिक माफी तक नहीं मांगी है। इसके ठीक उलट, तुर्की के इस्लामिक तानाशाह रेसेप तैयप एर्दोगन ने हाल में ही आर्मीनिया के खिलाफ जंग में अजरबैजान का समर्थन किया था। उन्होंने अजरबैजान को वो हर जरूरी सहायता उपलब्ध कराई, जिससे आर्मीनिया की सेना को भारी नुकसान पहुंचा।बोस्नियाई नरसंहार में 8 हजार मुसलमानों की हुई थी हत्याएक अनुमान के मुताबिक बोस्निया सर्ब सैनिकों ने इस नरसंहार में 8000 मुसलमानों को मौत के घाट उतारा था। मृतकों में अधिकतर की उम्र 12 से 77 साल के बीच थी। यह नरसंहार इतना वीभत्स था कि ज्यादातर लोगों को प्वॉइंट ब्लैंक रेंज (माथे के बीच) पर गोली मारी गई थी। इस नरसंहार के बाद बोस्निया के पूर्व सर्ब कमांडर जनरल रैट्को म्लाडिच को बूचर ऑफ बोस्निया के नाम से जाना जाने लगा। 1992 में यूगोस्लाविया के विभाजन के समय बोस्नियाई मुसलमानों और क्रोएशियाई लोगों ने आजादी के लिए कराये गए जनमत संग्रह के पक्ष में वोट दिया था जबकि सर्बिया के लोगों ने इसका बहिष्कार किया। सर्ब समुदाय और मुस्लिम समुदाय में इस बात को लेकर विवाद शुरू हो गया कि नया देश कैसे बनेगा। सर्ब और मुसलमानों के बीच उस समय मध्यस्थता कराने वाला कोई नहीं था। लिहाजा दोनों पक्षों ने बंदूक के दम पर एक दूसरे के ऊपर हमला करना शुरू कर दिया। इस गृहयुद्ध में हजारों लोगों की मौत हुई जबकि लाखों लोगों को विस्थापन का सामना करना पड़ा। र्ब लोगों को लगता था कि बोस्निया के मुसलमान कम जनसंख्या होने के बावजूद उनपर अधिकार जमाना चाहते हैं। इस बीच सर्ब सेना की कमान जनरल रैट्को म्लाडिच को दी गई। इस खूंखार कमांडर ने बोस्निया की लड़ाई के दौरान बर्बर अभियान चलाया और हर उस विद्रोही की हत्या करवाई जिसने भी सेना या सर्ब सत्ता का विरोध किया।
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लव जिहाद, कोई नया शब्द नहीं है इसे कई वर्षों से कुछ हिंदू संगठन बार-बार बताते जा रहे हैं कि किस प्रकार से मुसलमान लव जिहाद कर रहे हैं आज यह एक बहुत विकराल रूप ले चुका है प्राय भारत के हर कोने में यह देखने में आ रहा है कि मुसलमान हिंदू बेटी बहनों को बहला-फुसलाकर शादी कर रहे हैं फिर बाद में उनके साथ अत्याचार यातनाएं एवं यह भी देखा गया है कि उनका शारीरिक शोषण किया गया है और उन्हें बेचा भी गया है यह पुस्तक पिछले कुछ समय लव जिहाद के कारण मारी गई हिंदू बेटियां और चीन क साथ व्यापार और शारीरिक शोषण किया गया उनकी जानकारी देती है कृपया इसे एक बार अवश्य पढ़ें और उस हिंदू तक अवश्य पहुंचाएं जो कहता है कि लव जिहाद कुछ नहीं होता।
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हिमालय का इस्लामीकरण
उत्तराखंड और हिमाचल में भूमि जिहाद का आक्रमण।
आज से 29 वर्ष पूर्व जब मैं कश्मीर में आतंकवाद के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही का हिस्सा था, मुझे पाक-प्रशिक्षित कई आतंकवादियों के इंटेरोगेशन यानी पूछताछ करने का अवसर प्राप्त हुआ। कुछ याद नहीं की मैंने कितने आतंकवादियों का इंटेरोगेशन किया। लेकिन एक आतंकवादी का इंटेरोगेशन इतना अधिक महत्वपूर्ण और कुतूहल पैदा करने वाला था कि उसको मैंने अपनी पुस्तक "कश्मीर में आतंकवाद: आंखों देखा सच" में "प्रेम, पराजय और मोहभंग" नामक चैप्टर में लगभग 20 पृष्ठों में लिखा। उस आतंकवादी ने पाकिस्तान में दिए जा रहे हैं जिस प्रशिक्षण के विषय में बताया था यह सब धीरे-धीरे करके अक्षरशः सत्य साबित हो रहे हैं और हमारे सामने आ रहे हैं।
गजवा-ए-हिंद और दारुल-इस्लाम के विषय में अब अधिकतर भारतीय जागरूक हो चुके हैं लेकिन बहुत कम लोगों को पता है की दारुल-इस्लाम और गजवा-ए-हिंद के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए "हिमालय का इस्लामीकरण" (Islamization of Himalayas) नामक भूमि और जनसंख्या जिहाद भी चल रहा है। बड़े आश्चर्य की बात है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही इसके प्रति बिल्कुल उदासीन लगती है। जहां इसके लिए मूलतः कांग्रेस और हरीश रावत उत्तरदायी हैं व��ीं भाजपा के त्रिवेन्द्र रावत की भूमिका भी कुछ अच्छी नहीं रही है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 2018 में उस कानून से छेड़छाड़ की जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जो उत्तराखंड का मूलनिवासी नहीं है उत्तराखंड में जमीन नहीं खरीद सकता। रावत के इस परिवर्तित कानून का दुष्परिणाम यह हुआ की देवभूमि उत्तराखंड का इस्लामीकरण और ईसाईकरण एक षड्यंत्र और योजनाबद्ध तरीके से बहुत तेजी से हो रहा है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य हैं क्योंकि पूरे हिमालयन रीजन में मात्र यही दो राज्य हैं जो इस्लामीकरण और ईसाईकरण से बचे हुए हैं।
हिमालय पर्वत का 2400 किलोमीटर का विस्तार कई श्रृंखलाओं में बंटा हुआ है, जो पश्चिमोत्तर में हिंदूकुश पर्वत श्रृंखला (अफगानिस्तान) से शुरू होता है और पूर्वोत्तर तथा दक्षिण पूर्व में नागालैंड की पटकाई पर्वत श्रृंखला पर समाप्त हो जाता है। इसके सब-टरेनियन विस्तार (sub-terrainian parts) का कुछ हिस्सा तिब्बत और चीन के कब्जे में भी है। इस 2400 किलोमीटर के पूरे विस्तार में मात्र हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड दो ऐसे राज्य हैं जो अभी भी अपने सनातनी और हिंदू चरित्र को बनाए रखे हुए हैं। हिमालय की पश्चिमोत्तर की अधिकतर बड़ी पर्वत श्रृंखलाएं जैसे हिंदू कुश (अफगानिस्तान) कराकोरम (पाकिस्तान/पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर) ज़ंसकर (पाक अधिकृत कश्मीर और लद्दाख) पीर पंजाल (भारत- जम्मू-कश्मीर) इत्यादि पहले से ही इस्लामिक हो चुकी हैं। एक समय में हिंदू-बौद्ध संस्कृति का केंद्र अफगानिस्तान अब पूरी तरह से एक इस्लामिक देश (Islamic Republic Afghanistan) ही नहीं 100% मुसलमानों का देश हो चुका है। जो थोड़े हिन्दू /सिख बचें थे वर्तमान तालिबान शासन के शुरू होते ही वहां से खदेड़ दिए गए या भयाक्रांत हो भाग लिए। कराकोरम पर्वत श्रृंखला जो पाकिस्तान/ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और भारत तक फैली है, पूरी तरह से इस्लामीकरण का शिकार हो चुकी। यहां तक कि भारत में भी हिमालय की गोद में बसा कश्मीर, कश्मीरी पंडितों के बहिष्करण (exodus) के बाद 97% मुसलमान आबादी का क्षेत्र बन गया है। कश्मीर और शेष भारत को अलग करने वाली पर्वत श्रृंखला "पीर पंजाल" का भी इस्लामीकरण हो चुका है।
पीर पंजाल के दक्षिण की तरफ से जम्मू क्षेत्र शुरू होता है जहां हिंदू कुल मिलाकर किसी तरह बहुसंख्यक बने हुए हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अभी तक बाहरी लोगों के बसने पर प्रतिबंध लगा हुआ था/है। इन प्रतिबंधों के बावजूद उत्तराखंड और हिमाचल में मुसलमान बहुत तेजी से अनधिकृत रूप से बस रहे हैं। इनका बसाव मजदूर, रेडी पटरी वाले और दुकानदारों के चोले में हो रहा है। अधिक आश्चर्य की बात यह है कि इनमें से बहुसंख्य भारतीय मुसलमान नहीं है बल्कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी हैं।
असम के मुख्यमंत्री, हेमंत विश्व शर्मा सरकार के द्वारा असम में दबाव बनाने और अनधिकृत कब्जे वाली भूमि को रोहिंग्या और बांग्लादेशियों से खाली कराने के बाद काफी बांग्लादेशी घुसपैठिये मुसलमान हिमाचल और उत्तराखंड की पहाड़ियों की ओर रुख किए हुए हैं। सबसे दुखद बात यह है कि यह हिंदुओं के पवित्र स्थानों पर डेमोग्राफी (धार्मिक जनसंख्या) में बदलाव की दिशा में बढ़ रहे हैं। पहाड़ों में रोजगार कम होने के कारण अधिकतर पहाड़ी नौजवान मैदानी इलाकों में नौकरी की तलाश में चले आते हैं और पीछे सिर्फ बूढ़े, महिलाएं और बच्चे छूट जाते हैं। ऐसी स्थिति जिहादियों के लिए बहुत ही अनुकूल होती है क्योंकि ना सिर्फ उन्हें दुकान खोलने, मजदूरी करने और अन्य कार्यों को करने का अवसर मिल जाता है बल्कि ऐसे में लव जिहाद के लिए भी मैदान खाली मिल जाता है। यह सब कुछ उत्तराखंड और हिमाचल में बहुत तेजी से हो रहा है। हिमाचल प्रदेश के ज्वाला देवी मंदिर के आसपास पहले कई किलोमीटर तक एक भी मुसलमान नहीं था लेकिन आज वहां हजारों की संख्या में मंदिर के निकट काफी बड़ी संख्या में मुसलमान बस चुके हैं। यही स्थिति उत्तराखंड में हरिद्वार और नैनीताल की है जहां एक समय एक भी मुसलमान नहीं थे और इन दोनों जगहों पर कोई भी मस्जिद नहीं थी लेकिन आज स्थिति यह है कि यहां पर मुसलमान भले ही कम हो लेकिन मस्जिद बहुत तेजी से बन रही है। तारिक फतेह ने स्वयं एक वीडियो में बताया कि अभी कुछ वर्ष पूर्व जब वह नैनीताल गए थे तो सुबह उन्हें बहुत ऊंचे वॉल्यूम में अजान सुनाई पड़ी। तारिक फतेह अपने होटल से उठकर उस मस्जिद तक गए और देखा कि वहां सिर्फ 11 लोग नमाज पढ़ रहे थे। उन्होंने मौलवी से पूछा कि यहां आस-पास कितने मुसलमान रहते हैं तो उसने बताया कि जितने रहते यही हैं। तब तारेक फतह ने प्रश्न किया कि जब कुल 11 लोग ही हैं तो इतनी ऊंची आवाज में अजान देने की आवश्यकता क्या है? स्पष्ट है अजान नमाजियों को बुलाने के लिए नहीं बल्कि अपना डोमिनेंस यानी आधिपत्य स्थापित करने के लिए इतने ऊंचे वाल्यूम में पढ़ी जाती है।
हिमालय के इस्लामीकरण का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हो रहा है कि जो हमारे पवित्र स्थान हैं- जैसे रूद्र प्रयाग, कर्णप्रयाग, देवप्रयाग इत्यादि इन स्थानों पर भी मांस का विक्रय प्रारंभ हो गया है। आवश्यक नहीं कि यह गाय का ही मांस हो लेकिन जो हिंदू धर्म स्थलों की पवित्रता है वह नष्ट होती जा रही है। नेपाल में भी यही दशा है। "हिन्दू राष्ट्र" का संवैधानिक दर्जा हटने के बाद वहां भी ईसाई और इस्लामी करण बहुत तेजी से हो रहा है। बात यह है कि यह सब स्वाभाविक नहीं बल्कि योजना बद्ध और वाह्यारोपित (induced) है।
हमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि हमारे देश के नेताओं को भूगोल का महत्व नहीं पता है। उन्हें पता नहीं कि "जिनका भूगोल नहीं उनका न तो इतिहास होता है न ही भविष्य"। नेहरू ने चीन को प्लेट पर रख कर के तिब्बत दे दिया। ना सिर्फ हमारे बहुत से पवित्र स्थल जैसे मानसरोवर आज चीन के कब्जे में है बल्कि हमारी अधिकतर नदियों का उद्गम स्थल भी चीन के कब्जे में है और वह उस पर बड़े-बड़े बांध ��नाकर भारत के लिए "जल प्रलय" की स्थिति पैदा कर रहा है। हमें यह समझना होगा कि पहाड़ों पर जो लोग बसे हुए हैं उनका बहुत अधिक महत्व है। उत्तराखंड से ही हमारे देश की अनेक पवित्र और प्रमुख नदियां निकलती है जिसमें गंगा और यमुना भी शामिल हैं। उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है और हरिद्वार उसका प्रवेश द्वार है लेकिन जिस तरह से षड्यंत्र के तहत देव भूमि का इस्लामीकरण हो रहा है वह सनातन धर्म और देश के लिए बहुत बड़े खतरे की घंटी है।
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इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट पहुंचा चीन का उइगुर नरसंहार मामला, जिनपिंग भी आरोपी Edited By Priyesh Mishra | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 08 Jul 2020, 07:00:00 PM IST चीन के उइगुर मुसलमान
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देश में इन दिनों त्यौहारों का मौसम है। नवरात्र में कई हिंदू व्रत रखते हैं। वैसे तो मैं व्रत नहीं रखता, लेकिन जब अपनी रेजिमेंट के जवानों के साथ पोस्टेड था तो चाहे नवरात्र हो या रमजान में व्रत और रोजे दोनों रखता था। मेरे या किसी भी आर्मी ऑफिसर के लिए उसके धर्म से ज्यादा जो अहम है, वो बतौर सैनिक उसकी ड्यूटी, उसकी जिम्मेदारी, अपने सैनिकों के साथ एकजुटता है। मैं जम्मू-कश्मीर लाइट इंफेंट्री रेजिमेंट से हूं। मेरी रेजिमेंट में हर धर्म के सैनिक हैं। और हम सब साथ रहते हैं, ट्रेनिंग लेते हैं, हंसते, खेलते और खुशी-खुशी मौत को गले लगा लेते हैं। ये मॉडल अपने आप में अद्भुत और अनुकरणीय है।
भारतीय सेना दुनिया की असाधारण सेना है, जिसकी लड़ाकू पैदल सेना की संरचना धर्म और धार्मिक मान्यताओं के आसपास हुई है, लेकिन सेना खुद में धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक-सांप्रदायिक एकता का चमकता हुआ उदाहरण है। सेना में धर्म का इस्तेमाल एक धर्म या इलाके के लोगों को एक साथ लाने या फिर एक ईश्वर से प्रेरणा लेने के लिए होता है। सैनिक उसे भारत माता से जोड़कर देखता है। और भारतीय सैनिक देश के लिए अपना सबकुछ कुर्���ान करने को राजी हो जाता है।
हमारी रेजिमेंट सैनिकों को एक उद्देश्य हासिल करने के लिए अलग-अलग बैटल क्राय यानी नारे और अलग-अलग मजहब से जोड़ती हैं। रेजिमेंट का बैटल क्राय भले, आयो गोरखाली, बद्री विशाल की जय या फिर भारत माता की जय हो। ये सभी सैनिकों के शौर्य और त्याग को भारत माता से ही जोड़ते हैं। यही वजह है कि धर्म और इलाकों के नाम पर लड़ाई की जगह सेना एक ऐसा स्ट्रक्चर है जो अलग-अलग धर्म और इलाकों को एकजुट करता है।
मेरी जैकलाई रेजिमेंट में जम्मू-कश्मीर से 50% मुसलमान हैं, 40% डोगरा, 10% सिक्ख और लद्दाख के कुछ बौद्ध भी। ये सैनिक मिट्टी के बेटे हैं। इन्हें लाइन ऑफ कंट्रोल या फिर भीतरी इलाकों में ��तंकवाद से लड़ने अपने ही घर वाले इलाके की रक्षा का मौका मिलता है।
एक्सपर्ट कमेंट / चीन को लेकर भारत के पास ये 4 मिलिट्री ऑप्शन हैं, क्योंकि सेना की तैयारी तो सिर्फ मिलिट्री ऑप्शन की ही होती है
ये जानना बेहद खूबसूरत है कि हमारी रेजिमेंट की हर यूनिट में एक MMG होता है। यहां MMG का मतलब मीडियम मशीन गन नहीं, बल्कि एक ही छत के नीचे मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा है। हर रविवार सामुदायिक प्रार्थना होती हैं, जिसमें सभी सैनिक अपने धर्म से परे MMG जाते हैं।
वहां सभी धर्मों की एक के बाद एक प्रार्थना होती है। पंडित, मौलवी और ग्रंथी प्रार्थना करवाते हैं। त्योहारों के वक्त भी सभी साथ उत्सव मनाते हैं। दिवाली पर मुस्लिम सैनिक खुद खड़े होकर ड्यूटी लगवाते हैं ताकि हिंदू सैनिकों को दिवाली के लिए छुट्टी मिल सके। ईद पर या फिर रमजान में हिंदू और सिक्ख भी ऐसा ही करते हैं।
एक बेहद खूबसूरत वाकया है, तब जब मैं जैकलाई रेजिमेंट का कर्नल हुआ करता था, जो रेजिमेंट में सबसे ऊंचा पद है। LOC पर हमारी एक बटालियन तैनात थी। गुरपुरब आने को थी और उस बटालियन में ग्रंथी पोस्टेड नहीं था। ऑपरेशनल दिक्कतों के चलते ग्रंथी को वहां भेजना मुमकिन नहीं था। इसलिए वहां मौजूद मौलवी ने बटालियन में सिक्ख प्रार्थना और परंपराओं को पूरा करवाया। भारतीय सेना और हमारी रेजिमेंट की यही परंपरा है। काश यही भारत की भी हो।
बात सिर्फ प्रार्थना या त्यौहार की नहीं है। ये जिंदगियों में उतर चुकी है। हम खाते, जीते, लड़ते और फिर साथ ही दुश्मन का मुकाबला करते जान न्यौछावर कर जाते हैं। सेना के कंपनी के किचन यानी कुक हाउस में हलाल और झटका चिकन अलग-अलग पकाया जाता है, ताकि सबकी धार्मिक मान्यताओं का ख्याल रखा जा सके।
जम्मू कश्मीर में एलओसी पर जेकलाई बटालियन के एक ऑपरेशन का एक वाकया है कि वहां एक फॉरवर्ड पोस्ट पर संतरी राइफलमैन जोगिंदर सिंह ने कुछ संदेहास्पद मूवमेंट देखा। उसने कंपनी कमांडर मेजर विजयंत को अलर्ट किया, जिन्होंने अपने जवानों को घुसपैठ की कोशिश कर रहे आतंकियों को रोकने भेजा।
घुसपैठियों को नजदीक आने दिया गया, उन पर लगातार नजर रखी जा रही थी। जब आतंकी हमारे हथियारों की रेंज में आ गए हमारे सैनिकों ने गोलीबारी शुरू कर दी। आतंकियों ने पेड़ के पीछे कवर लिया और गोली चलाने लगे, हैंड ग्रेनेड फेंकने लगे।
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उनके भाग निकलने के रास्ते को रोकते हुए राइफलमैन राजपाल शर्मा को हाथ में एक गोली लग गई। मेजर विजयंत ने अपनी जान खतरे में डाली और गोलीबारी के बीच रेंगते हुए आगे बढ़ने लगे। लंबी चली गोलीबारी के बीच दो आतंकवादियों का खात्मा हुआ। ऑपरेशन अब आमने सामने की लड़ाई में बदल चुका था। बाकी दो आतंकी वहां से बच निकलने के लिए नीचे वाले रास्ते पर दौड़ने लगे। वो लगातार फायरिंग करते हुए ग्रेनेड फेंक रहे थे।
इसी बीच राइफलमैन विजय की गर्दन पर ग्रेनेड का स्प्लिंटर लग गया और भयानक ब्लीडिंग होने लगी। लांस नायक बदर हुसैन अपनी परवाह किए बिना दौड़े और गोलीबारी के बीच विजय को सुरक्षित बाहर निकालकर लाए। और बचे हुए दो आतंकियों को भी मार गिराया। इस ऑपरेशन के लिए मेजर विजयंत को कीर्ति चक्र, लांस नायक बदर हुसैन को शौर्य चक्र मिला।
लेकिन सेना में किसी का ध्यान इस पर नहीं गया कि जोगिंदर सिंह जो सिक्ख है, उसकी तत्परता के चलते ऑपरेशन सफल रहा। इस बात पर भी नहीं सोचा गया कि विजयंत या विजय या बदर हुसैन अलग-अलग धर्म से हैं। युद्ध के मैदान पर तो ऑफिसर और जवान के बीच भी भेद नहीं किया जाता। सभी सैनिक होते हैं, एक मातृभूमि के सैनिक, एक ईश्वर की औलादें। ऐसे ऑपरेशन जम्मू और कश्मीर में आम हैं। जिसमें सभी धर्म हिंदू, सिक्ख, मुस्लिम एक साथ लड़ते हैं।
इससे उलट जिस देश के लिए ये लड़ते हैं, वहां धर्म को लेकर ये ख्याल नहीं होते। यहां तो वोट भी धर्म के आधार पर होते हैं। मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे ही जम्मू कश्मीर में कश्मीरियत की भावना को आगे बढ़ाते हैं। जीने का वो तरीका जिसे पूरा देश भारतीय सेना से सीख सकता है।
भारतीय सेना में हर जगह सर्वधर्म स्थल होते हैं, जहां सभी धर्म के लोग साथ प्रार्थना करते हैं। और इ��्हीं सब भावनाओं के साथ जीते देशभक्त सैनिक तैयार होता है, जो किसी भी धर्म से ऊपर उठ चुका होता है। याद रहे कि सेना की बटालियन भले धर्म और प्रांत पर आधारित हैं, पर सेना फिर भी धर्मनिरपेक्ष है।
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Where MMG is not just a medium machine gun, but also a temple-mosque and gurudwara
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