वाणी:- हृदय कमल महादेव देवं, सती पार्वती संग है।
सोहं जाप जपंत हंसा, ज्ञान जोग भल रंग है।।
सरलार्थ:- हृदय कमल की स्थिति इस प्रकार है:- छाती में बने दोनों स्तनों के मध्य स्थान में ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर यह हृदय कमल बना है, दिल अलग अंग है। हृदय मध्य को भी कहते हैं। जैसे यह बीच (मध्य) का कमल है। तीन इससे नीचे तथा तीन ऊपर बने हैं। इस कारण से इसको हृदय कमल के नाम से जाना जाता है। इस कमल में महादेव शंकर जी तथा सती जी (पार्वती जी) रहते हैं। इस कमल (चक्र) को विकसित करने का नाम मंत्र सोहम् जाप साधक को जपना चाहिए। जो ज्ञान योग में वास्तविक ज्ञान मिला है, यह अच्छा रंग अर्थात् शुभ लगन का कार्य है। इस यथार्थ ज्ञान के रंग में रंगे जाओ।
वाणी:- नाभि कमल में विष्णु विशम्भर, जहां लक्ष्मी संग बास है।
हरियं जाप जपन्त हंसा, जानत बिरला दास है।।
सरलार्थ:- शरीर में बनी नाभि तो पेट के ऊपर स्पष्ट दिखाई देती है। इसके ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी के ऊपर यह नाभि चक्र (कमल) है। इसमें लक्ष्मी जी तथा विष्णु जी का निवास है। इस कमल को विकसित करने के लिए हरियम् नाम का जाप करना चाहिए। इस गुप्त मंत्र को कोई बिरला ही जानता है जो सतगुरू का भक्त होगा।
वाणी:- मूल चक्र गणेश बासा, रक्त वर्ण जहां जानिये।
किलियं जाप कुलीन तज सब, शब्द हमारा मानिये।।
सरलार्थ:- मानव शरीर में एक रीढ़ की हड्डी (Spine) है जिसे Back Bone भी कहते हैं। गुदा के पास इसका निचला सिरा है। इस रीढ़ की हड्डी के साथ शरीर की ओर गुदा से एक इन्च ऊपर मूल चक्र (कमल) है जिसका रक्त वर्ण अर्थात् खून जैसा लाल रंग है। इस कमल की चार पंखुड़ियाँ हैं। इस कमल में श्री गणेश देव का निवास है। हे साधक! इस कमल को खोलने के लिए किलियम् नाम का जाप कर और सब कूलीन अर्थात् नकली व्यर्थ नामों का जाप त्याग दे, हमारे वचन पर विश्वास करके मान लेना।
कबीर, योग (भक्ति) के अंग पाँच हैं, संयम मनन एकान्त।
विषय त्याग नाम रटन, होये मोक्ष निश्चिन्त।।
भावार्थ:- भक्ति के चार आवश्यक पहलु हैं। संयम यानि प्रत्येक कार्य में संयम बरतना चाहिए। धन संग्रह करने में, बोलने में, खाने-पीने में, विषय भोगों में संयम रखे यानि भक्त को कम बोलना चाहिए, विषय विकारों का त्याग करना चाहिए। परमात्मा का भजन तथा परमात्मा की वाणी प्रवचनों का मनन करना अनिवार्य है। ऐसे साधना तथा मर्यादा पालन करने से मोक्ष निश्चित प्राप्त होता है।
Hindu Saheban! It is not understood in the books of Gita, Vedas, Puranas that how Sanatani Puja came to an end and how Sanatani Puja will be resurrected. Must read the sacred book,