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#अंतिम दिनों के मसीह के कथन
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अध्याय 29
लोगों द्वारा किए गए कार्य में से, कुछ परमेश्वर की ओर से प्रत्यक्ष निर्देश के साथ किया जाता है, किन्तु इसके कुछ हिस्से के लिए परमेश्वर, पर्याप्त रूप से यह दर्शाते हुए है कि परमेश्वर द्वारा जो किया जाता है उसे, आज, अभी भी पूरी तरह से प्रकाशित किया जाना है, प्रत्यक्ष निर्देश नहीं देता है—जिसका तात्पर्य है कि, बहुत कुछ छुपा हुआ रहता है और अभी सार्वजनिक होना बाकी है। किन्तु कुछ चीजों को सार्वजनिक किये जाने की आवश्यकता है, और कुछ ऐसी हैं जिनकी लोगों को चकित और उलझन में छोड़ने की आवश्यकता है; यही वह है जो परमेश्वर के कार्य से अपेक्षित है। उदाहरण के लिए, स्वर्ग से परमेश्वर का मनुष्यों के बीच आगमन: वह कैसे पहुँचा, वह किस क्षण पहुँचा, या क्या आकाश और पृथ्वी और सभी चीजें परिवर्तन से गुज़री या नहीं—इन बातों से लोगों का भ्रमित होना अपेक्षित है। यह वास्तविक परिस्थितियों पर भी आधारित है, क्योंकि मानव देह स्वयं सीधे आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करने में असमर्थ है। इसलिए, भले ही परमेश्वर स्पष्ट रूप से कहता है कि कैसे वह स्वर्ग से पृथ्वी तक आया या जब वह कहता है, "जिस दिन सभी चीज़ें पुनर्जीवित हुईं थीं, मै मनुष्यों के बीच आया, और मैंने उसके साथ अद्भुत दिन और रात बिताये हैं," तो ये वचन ऐसे हैं मानो कोई किसी पेड़ के तने से बात कर रहा हो—थोड़ी सी भी प्रतिक्रिया नहीं होती है, क्योंकि लोग परमेश्वर के कार्य के कदमों से अनजान हैं। यहाँ तक कि जब वे वास्तव में भी जानते हैं, तब भी वे मानते हैं कि परमेश्वर एक परी की तरह स्वर्ग से पृथ्वी पर उड़ कर आया और उसका मनुष्य के बीच पुनर्जन्म हुआ। यही वह है जो मनुष्य के विचारों से प्राप्त होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्य का सार है कि वह परमेश्वर के सार को समझने में असमर्थ है, और आध्यात्मिक क्षेत्र की वास्तविकता को समझने में असमर्थ है। केवल अपने सार से, लोग दूसरों के लिए अनुकरणीय आदर्श के रूप में कार्यकलाप करने में अक्षम होंगे, क्योंकि लोग अंतर्निहित रूप से समान हैं, और भिन्न नहीं हैं। इस प्रकार, यह पूछना कि लोग दूसरों के अनुकरण के लिए एक उदाहरण स्थापित करें या एक अनुकरणीय आदर्श के रूप में सेवा करें, बुलबुला बन जाता है, यह पानी से उठती भाप बन जाता है। जबकि जब परमेश्वर कहता है कि, "जो मेरे पास है और मैं हूँ इस बारे में उसे कुछ ज्ञान प्राप्त होता है", इन वचनों को मात्र उस कार्य की अभिव्यक्ति पर संबोधित किया जाता है जिसे परमेश्वर देह में करता है; दूसरे शब्दों में, वे परमेश्वर के वास्तविक चेहरे—दिव्यता—पर निर्देशित होते हैं, जो मुख्य रूप से उसके दिव्य स्वभाव को संदर्भित करता है। कहने का तात्पर्य है कि, लोगों को ऐसी चीजों को समझने के लिए कहा जाता है जैसे कि परमेश्वर इस तरह से कार्य क्यों करता है, परमेश्वर के वचनों द्वारा किस चीज़ को पूरा किया जाना है, परमेश्वर पृथ्वी पर क्या प्राप्त करना चाहता है, वह मनुष्य के बीच क्या प्राप्त करना चाहता है, वे विधियाँ जिनके द्वारा परमेश्वर बोलता है, और मनुष्य के प्रति परमेश्वर का दृष्टिकोण क्या है। यह कहा जा सकता है कि मनुष्य में आत्मश्लाघा योग्य कुछ भी नहीं है, अर्थात्, उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो दूसरों के अनुकरण के लिए एक अनुकरणीय आदर्श स्थापित कर सकता है।
यह निश्चित रूप से देह में परमेश्वर की साधारणता की वजह से है, स्वर्ग में परमेश्वर और देह में परमेश्वर, जो स्वर्ग में परमेश्वर से जन्मा प्रतीत नहीं होता है, में असमानता की वजह से है, कि परमेश्वर कहता है, "मैंने मनुष्यों के बीच बहुत वर्ष बिताये हैं, फिर भी वह हमेशा अनभिज्ञ रहा है, और उसने मुझे कभी नहीं जाना।" परमेश्वर यह भी कहता है, "जब मेरे कदम ब्रह्माण्ड के कोने-कोने में पड़ेंगे, तब मनुष्य खुद पर चिंतन करना शुरू कर देगा, और सभी लोग मेरे पास आएँगे और मेरे सामने दण्डवत करेंगे और मेरी आराधना करेंगे। यह मेरी महिमा का दिन, मेरी वापसी का दिन और साथ ही मेरे प्रस्थान का दिन भी होगा।" केवल यही वह दिन है जब परमेश्वर का असली चेहरा मनुष्य को दिखाया जाता है। फिर भी परमेश्वर परिणामस्वरूप अपने कार्य में विलंब नहीं करता है, और वह केवल उस कार्य को करता है जो किया जाना चाहिए। जब वह न्याय करता है, तो वह देह में परमेश्वर के प्रति लोगों की प्रवृत्ति के अनुसार दण्ड देता है। इस अवधि के दौरान यह परमेश्वर के कथनों के मुख्य सूत्रों में से एक है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर कहता है, "मैंने पूरे ब्रह्माण्ड में, अपनी प्रबन्धन योजना के अंतिम अंश कीऔपचारिक शुरूआत कर दी है। इस क्षण से आगे, जो कोई भी सावधान नहीं हैं वे किसी भी क्षण निर्दयी ताड़ना के बीच डूबने के लिए उत्तरदायी हैं।" यह परमेश्वर की योजना की सामग्री है, और यह न तो विलक्षण है या न ही अजीब है, बल्कि कार्य का समस्त कदम है। विदेश में परमेश्वर के लोगों और पुत्रों का, इस बीच, परमेश्वर द्वारा उस सभी के अनुसार न्याय किया जाएगा जो वे कलीसियाओं में करते हैं,और इसलिए परमेश्वर कहता है, "जब मैं कार्य करता हूँ, तो सभी स्वर्गदूत निर्णायक युद्धमें मेरे साथ शुरू हो जाते हैं और अंतिम चरण में मेरी इच्छाओं को पूरा करने का दृढ़ निश्चय करते हैं, ताकि पृथ्वी के लोग मेरे सामने स्वर्गदूतों के समान समर्पण कर दें, और मेरा विरोध करने की इच्छा न करें, और ऐसा कुछ न करें जो मेरे विरुद्ध विद्रोह करता हो। समस्त संसार में ये मेरे कार्य की गतिशीलताएँ हैं।" परमेश्वर सारी दुनिया में जो कार्य करता है उसमें यही अंतर है; वे जिस पर निर्देशित होते हैं उसके अनुसार वह विभिन्न उपायों को काम में लगाता है। आज, कलीसियाओं के सभी लोगों के पास एक उत्कंठा वाला हृदय है, और उन्होंने परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना शुरू कर दिया है—जो यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि परमेश्वर का कार्य अपनी समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। आकाश से नीचे की ओर देखना एक बार और कुम्हलाई हुई शाखाओं और झड़ती हुई पत्तियों के उदास दृश्यों को, शरद ऋतु की हवा के साथ उड़ कर आने वाली मिट्टी के अम्बारको देखने के समान है, ऐसा महसूस होता है मानो कि मनुष्यों के बीच एक सर्वनाश होने ही वाला है, जैसे कि सभी कुछ उजाड़ में बदलने ही वाला है। हो सकता है कि यह आत्मा की संवेदनशीलता के कारण हो, शांत आराम के एक छोटे से अंश के साथ, हृदय में दुःख का एक भाव हमेशा होता है, मगर इसमें भी कुछ दु:ख मिला होता है। यह परमेश्वर के वचनों का चित्रण हो सकता है कि "मनुष्य जाग रहा है, पृथ्वी पर हर चीज़ व्यवस्थित है, और पृथ्वी के बचे रहने के दिन अब और नहीं हैं, क्योंकि मैं पहुँच गया हूँ!" इन वचनों को सुनने के बाद लोग कुछ-कुछ नकारात्मक हो सकते हैं, या वे परमेश्वर के कार्य से थोड़ा निराश हो सकते हैं, या वे अपनी आत्मा की भावना पर अधिक ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं। किन्तु पृथ्वी पर अपने कार्य के पूरा होने से पहले, परमेश्वर संभवतः इतना मूर्ख नहीं हो सकता था कि लोगों को ऐसा भ्रम दे। यदि तुममें वास्तव में ऐसी भावनाएँ हैं, तो यह दर्शाता है कि तुम अपनी भावनाओं पर बहुत अधिक ध्यान देते हो, कि तुम कोई ऐसे व्यक्ति हो जो वह करता है जो उसे अच्छा लगता है, और परमेश्वर से प्रेम नहीं करता है; यह दर्शाता है कि ऐसे लोग अलौकिक पर बहुत अधिक ध्यान केन्द्रित करते हैं, और परमेश्वर पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते हैं। परमेश्वर के हाथ की वजह से, चाहे लोग किसी भी प्रकार से दूर हटने का प्रयास क्यों न करें, वे इस परिस्थिति से बच निकलने में अक्षम हैं। परमेश्वर के हाथ से कौन बच कर निकल सकता है? तुम्हारी हैसियत और परिस्थितियों को परमेश्वर द्वारा कब व्यवस्थित नहीं किया गया है? चाहे तुम पीड़ित हो या धन्य हो, तुम परमेश्वर के हाथ से बचकर कैसे निकल सकते हो? यह कोई मानवीय मामला नहीं है, यह पूरी तरह से परमेश्वर की आवश्यकता है—इस वजह से कौन आज्ञापालन नहीं करेगा?
"अन्यजातियों के बीच अपने कार्य को फैलाने के लिए मैं ताड़ना का उपयोग करूँगा, जिसका अर्थ है, कि मैं उन सभी के विरूद्ध बल का उपयोग करूँगा जो अन्यजातियाँ हैं। प्राकृतिक रूप से, यह कार्य उसी समय किया जाएगा जिस समय मेरा कार्य चुने हुओं के बीच किया जाएगा।" इन वचनों के कथन के साथ, परमेश्वर इस कार्य को पूरे विश्व में आरंभ करता है, और यह परमेश्वर के कार्य का एक कदम है, जो पहले से ही इस स्थिति तक प्रगति कर चुका है; कोई भी चीजों को पलट नहीं सकता है। तबाही मानवजाति के एक हिस्से का समाधान करेगी, उन्हें दुनिया के साथ नष्ट कर देगी। जब ब्रह्माण्ड को आधिकारिक रूप से ताड़ना दी जाती है, तो परमेश्वर आधिकारिक रूप से सभी लोगों के लिए प्रकट होता है। और उसके प्रकटन के कारण लोगों को ताड़ना दी जाती है। इसके आलावा, परमेश्वर ने भी यह भी कहा है कि, "जब मैं औपचारिक रूप से पुस्तक खोलता हूँ तो ऐसा तब होता है जब संपूर्ण ब्रह्माण्ड में लोगों को ताड़ना दी जाती है, जब दुनिया भर के लोगों को परीक्षणों के अधीन किया जाता है।" इससे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि सात मुहरों की सामग्री ताड़ना की सामग्री है, जिसका अर्थ है कि, सात मुहरों में तबाही है। इसलिए, आज, सात मुहरें अभी खोली जानी हैं; यहाँ उल्लिखित "परीक्षण" मनुष्य द्वारा भोगी गई ताड़ना हैं, और इस ताड़ना के बीच लोगों का एक समूह प्राप्त किया जाएगा जो आधिकारिक रूप से परमेश्वर द्वारा जारी किए गए "प्रमाणपत्र" को स्वीकार करते हैं, और इस प्रकार वे परमेश्वर के राज्य में लोग होंगे। ये परमेश्वर के पुत्रों और लोगों का उद्गम है, और आज वे अभी तय किए जाने हैं, और केवल भविष्य के अनुभवों के लिए नींव डाल रहे हैं। अगर किसी का सच्चा जीवन है, तो वे परीक्षण के दौरान अडिग रह सकेंगे, और यदि वे जीवन के बिना हैं, तो यह पर्याप्त रूप से साबित करता है कि परमेश्वर के कार्य का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, वे अपने आप को परेशानी में डालते हैं, और परमेश्वर के वचनों पर ध्यान केन्द्रित नहीं करते हैं। क्योंकि यह अंत के दिनों का कार्य है, जो कि कार्य को करते रहने के बजाय इस युग को समाप्त करने के लिए है, इसलिए परमेश्वर कहता है, "दूसरे वचनों में, यही वह जीवन है जिसे मनुष्य ने सृष्टि की उत्पत्ति के समय से आज के दिन तक कभी भी अनुभव नहीं किया है, और इसलिए मैं कहता हूँ कि मैं ऐसा कार्य करता हूँ जैसा पहले कभी नहीं किया गया है।" और वह यह भी कहता है, "क्योंकि मेरा दिन समस्त मानवजाति के नज़दीक आता है, क्योंकि यह दूर प्रतीत नहीं होता है,किन्तु यह मनुष्य की आँखों के बिल्कुल सामने ही है।" अतीत के दिनों में, परमेश्वर ने कई शहरों को व्यक्तिगत रूप से नष्ट किया था, तब भी उनमें से किसी को भी अंत के समय की तरह नहीं ढहाया गया था। यद्यपि, अतीत में, परमेश्वर ने सदोम को नष्ट किया था, किन्तु आज के सदोम के साथ उस तरह से व्यवहार नहीं किया जाना है जैसे अतीत में किया गया था—इसे सीधे नष्ट नहीं किया जाना है, बल्कि पहले इसे जीता जाना है और फिर इसका न्याय किया जाना है, और, अंततः, अनन्त काल तक दंड के अधीन किया जाना है। ये कार्य के कदम हैं, और अंत में, आज के सदोम को उसी अनुक्रम में नष्ट किया जाएगा जैसे कि दुनिया का पिछला विनाश—जो कि परमेश्वर की योजना है। जिस दिन परमेश्वर प्रकट होता है, वह इसके आधिकारिक दण्ड का दिन है, और यह उसके प्रकटन के माध्यम से इसे बचाने के लिए नहीं है। इसलिए, परमेश्वर कहता है, "मैं पवित्र राज्य पर प्रकट होता हूँ, और अपने आप को अपवित्र भूमि से छिपा लेता हूँ।" क्योंकि आज का सदोम अशुद्ध है, इसलिए परमेश्वर वास्तव में इसके सामने प्रकट नहीं होता है, बल्कि इसे ताड़ना देने के लिए इस साधन का उपयोग करता है—क्या तुमने इसे स्पष्ट रूप से नहीं देखा है? यह कहा जा सकता है कि पृथ्वी पर कोई भी परमेश्वर के सच्चे चेहरे को देखने में सक्षम नहीं है। परमेश्वर मनुष्य के सामने कभी भी प्रकट नहीं हुआ है, और कोई नहीं जानता कि परमेश्वर स्वर्ग के किस स्तर पर है? यही वह है जिसने आज के लोगों को इस परिस्थिति में रहने दिया है। यदि उन्हें परमेश्वर का चेहरा देखना होता, तो निश्चित रूप से वह समय होता जब उनका अंत प्रकट किया जाता, वह समय होता जब प्रत्येक को प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाता। आज, दिव्यता के वचन सीधे लोगों को दिखाये जाते हैं, जो भविष्यवाणी करता है कि मानवजाति के अंत के दिन आ चुके हैं, और अधिक समय तक नहीं रहेंगे। यह उस समय लोगों को परीक्षणों के अधीन किए जाने के चिह्नों में से एक है जब परमेश्वर सभी लोगों के सामने प्रकट होता है। इस प्रकार, यद्यपि लोग परमेश्वर के वचनों का आनंद उठाते हैं, फिर भी उनमें हमेशा एक अपशकुन की भावना होती है, मानो कि कोई बड़ी आपदा उन पर पड़ने ही वाली हो। आज के लोग हिमाच्छादित देशों में गौरैयों की तरह हैं, जिन पर ऐसा होता है जैसे मृत्यु कर्ज को जबरदस्ती वसूलती हो और उनके जीवित रहने के लिए कोई रास्ता नहीं छोड़ती हो। मनुष्य पर बकाया मृत्यु के कर्ज के कारण, सभी लोग महसूस करते हैं कि उनके अंत के दिन आ चुके हैं। यही है वह जो ब्रह्मांड भर के लोगों के हृदयों में हो रहा है, और यद्यपि यह उनके चेहरे पर प्रकट नहीं होता है, उनके हृदयों में जो है वह मेरी नज़रों से छिपाने में अक्षम है—यह मनुष्य की वास्तविकता है। शायद, कुछ हद तक बहुत से वचनों को खराब ढंग से चुना गया हो—किन्तु ये ही वे वचन हैं जो समस्या को दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं। परमेश्वर के मुँह से बोले गये वचनों में से हर एक को पूरा किया जाएगा, चाहे वे अतीत के हों या वर्तमान के; वे तथ्यों को लोगों के सामने प्रकट करवाएँगे, उनकी आँखों के लिए एक भोज, जिस समय पर वे चौंधियाँ जाएँगे और भ्रमित हो जाएँगे। क्या तुम लोगों ने अब तक स्पष्ट रूप से नहीं देखा है कि आज कौन सा युग है?
                                               स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
अनुशंसित: अब अंत के दिन है, यीशु मसीह का दूसरा आगमन की भविष्यवाणियां मूल रूप से पूरी हो चुकी हैं। तो हम किस प्रकार बुद्धिमान कुंवारी बने जो प्रभु का स्वागत करते हैं? जवाब जानने के लिए अभी पढ़ें और देखें।
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jinjingengsui-blog · 4 years
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aadhunikblr-blog · 5 years
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julianayu · 3 years
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अध्याय 12
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जब सभी लोग सुनते हैं, जब सब कुछ नवीकृत और पुनर्जीवित हो जाता है, जब हर व्यक्ति बिना आशंका के परमेश्वर को समर्पित हो जाता है, और परमेश्वर के बोझ की भारी ज़िम्मेदारी को अपने कंधे पर उठाने के लिए तैयार होता है—तभी ऐसा होता है कि पूर्वी बिजली आगे बढ़ती है, प्रभु यीशुपूर्व से पश्चिम तक सभी को रोशन करते हुए, इस प्रकाश के आगमन के साथ पृथ्वी पर सभी को भयभीत करते हुए; और इस समय, परमेश्वर एक बार फिर अपना नया जीवन शुरू करता है। कहने का अर्थ है इस समय परमेश्वर पृथ्वी पर अपना नया काम शुरू करता है, पूरे विश्व के लोगों के प्रति यह घोषणा करते हुए कि "जब पूर्व से बिजली चमकती है—जो कि निश्चित रूप से वही क्षण भी होता है जब मैं बोलना आरम्भ करता हूँ—जिस क्षण बिजली प्रकट होती है, तो संपूर्ण नभमण्डल जगमगा उठता है, और सभी तारे रूपान्तरित होना शुरू कर देते हैं।" तो, कब वह समय होता है जब बिजली पूर्व दिशा से निकल कर आगे बढ़ती है? जब स्वर्ग पर अंधेरा छाने लगता है और पृथ्वी धुंधली हो जाती है, और ऐसा तब होता है जब परमेश्वर दुनिया से अपना चेहरा छिपा लेता है, और उस क्षण जब आकाश के नीचे सब कुछ एक शक्तिशाली तूफान से घिरने वाला होता है। इस समय, सभी लोग आतंक से ग्रसित हो जाते हैं, गड़गड़ाहट से भयभीत, बिजली की चमक से डरते हुए, और प्रलय के आक्रमण से और भी ज्यादा भयाकुल, इस तरह कि उनमें से ज्यादातर अपनी आँखें मूँद लेते हैं और परमेश्वर के क्रोधित होकर उन्हें मार देने की प्रतीक्षा करते हैं। जैसे ही विभिन्न स्थितियाँ गुजरती हैं, पूर्वी बिजली तत्काल आगे बढती है। जिसका अर्थ है कि दुनिया के पूर्व में, उस समय से लेकर जब खुद परमेश्वर के प्रति गवाही शुरू होती है, और उस समय तक जब वह कार्य करना शुरू करता है, अर्थात् उस समय तक जब देवत्व समग्र पृथ्वी पर अपनी सार्वभौमिक सत्ता का संचालन करने लगता है—यह पूर्वी बिजली की चमचमाती किरणें ही हैं, जो पूरे ब्रह्मांड के लिए सदैव जगमगाती रही हैं। जब धरती के सारे देश मसीह का राज्य बन जाते हैं, तभी पूरा ब्रह्मांड प्रकाशित होता है। अब वह समय है जब पूर्वी बिजली आगे बढ़ती है: देहधारी परमेश्वर कार्य करना शुरू कर देता है, और साथ ही साथ, सीधे दिव्यता में बात करता है। यह कहा जा सकता है कि जब परमेश्वर पृथ्वी पर बात करना शुरू करता है, तभी पूर्वी बिजली प्रकट होती है। अधिक सटीकता से कहें तो, जब सिंहासन से जीवन का जल बहता है—जब सिंहासन से आने वाले कथन शुरू होते हैं—ठीक वही समय होता है जब सातगुना आत्मा के कथन औपचारिक रूप से शुरू होते हैं। इस समय, पूर्वी बिजली आगे बढ़ना शुरू करती है, और समय में अंतर के कारण, रोशनी की मात्रा भी बदलती है, और इसमें, तेजस्विता की एक सीमा भी है। लेकिन जैसे ही परमेश्वर का कार्य चल पड़ता है, और जैसे ही उसकी योजना बदलती है— चूँकि परमेश्वर के पुत्रों और प्रजा पर कार्य अलग-अलग होता है, बिजली अधिकाधिक अपना निहित कार्य करती है, इस तरह कि पूरे ब्रह्मांड में सभी प्रकाशित हो जाते हैं, और कोई तलछट या अशुद्धता नहीं रह जाती है। यह परमेश्वर की 6,000 साल की प्रबंधन योजना का रवाकरण है, और यही वह फल है जिसका परमेश्वर आनंद लेता है। "सितारों" का अर्थ आकाश के सितारे नहीं, बल्कि परमेश्वर के सभी पुत्र और प्रजा हैं जो परमेश्वर के लिए काम करते हैं। चूँकि वे परमेश्वर के राज्य में परमेश्वर की गवाही देते हैं, और परमेश्वर के राज्य में परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करते हैं, और क्योंकि वे जीव हैं, उन्हें "सितारे" कहा जाता है। जो परिवर्तन होते हैं, वे लोगों की पहचान और उनके कद में हुए परिवर्तन हैं: वे पृथ्वी के लोगों से राज्य की प्रजा में बदल जाते हैं, और, इसके अलावा, परमेश्वर उनके साथ होता है, और परमेश्वर की महिमा उनमें होती है। नतीजतन, वे परमेश्वर की जगह पर सार्वभौमिक शक्ति का संचालन करते हैं, और उनके जहर और अशुद्धियों को परमेश्वर के कार्य के कारण शुद्ध कर दिया जाता है, अंततः उन्हें परमेश्वर के द्वारा उपयोग के योग्य और परमेश्वर के हृदय के अनुकूल बनाते हुए—जो इन शब्दों के अर्थ का एक पहलू है। जब परमेश्वर की रोशनी की किरणें समस्त भूमि को प्रकाशित करती हैं, तो स्वर्ग और पृथ्वी की सभी चीजें कम-ज्यादा बदल जाएंगी, और आकाश में तारे भी बदलेंगे, सूरज और चंद्रमा का नवीकरण किया जाएगा, और बाद में पृथ्वी पर लोग भी नवीकृत होंगे--जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच परमेश्वर द्वारा किया गया समूचा कार्य है, और इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
जब परमेश्वर लोगों को बचाता है—जो, स्वाभाविक रूप से, उन लोगों को शामिल नहीं करता है जो चुने हुए नहीं हैं—वह ठीक वही समय है जब परमेश्वर लोगों का शुद्धिकरण और न्याय करता है, और सभी लोग फूट फूट कर रोते हैं, या अपने बिस्तरों पर आहत पड़े होते हैं, या परमेश्वर के वचनों की वजह से मृत्यु के नरक में मार गिराए जाते हैं। केवल परमेश्वर की बातों के कारण ही वे खुद को जानना शुरू करते हैं। यदि नहीं, तो उनकी आँखें मेंढक की तरह होंगी, ऊपर ताकती हुईं, उनमें से कोई भी आश्वस्त नहीं होगा, उनमें से कोई भी खुद को नहीं जानता होगा, खुद का वज़न कितना है इससे भी अनजान। लोग वास्तव में एक हद तक शैतान द्वारा भ्रष्ट हो चुके हैं। यह निश्चित रूप से परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता की वजह से है कि मनुष्य का कुरूप चेहरा इतने स्पष्ट रूप से चित्रित किया गया है, जिसके कारण मनुष्य इसे पढ़ने के बाद, अपने वास्तविक चेहरे से इसकी तुलना करता है। सभी लोग जानते हैं कि उनके सिर में मस्तिष्क की कितनी कोशिकाएँ हैं, यह परमेश्वर को स्पष्ट रूप से दिखता है, उनके बदसूरत चेहरों या अंदरूनी विचारों के बारे में कुछ भी न कहना बेहतर होगा। इन शब्दों में "ऐसा प्रतीत होता है मानो पूरी मानवजाति को उचित प्रकार से शुद्ध करने और काट-छाँट करने के अधीन कर दिया गया हो। पूर्व के प्रकाश की इस किरण के नीचे, समस्त मानवजाति को उसके मूल स्वरूप में प्रकट किया जाता है चुँधियाई आँखें, भ्रम में हक्के बक्के" यह देखा जा सकता है कि एक दिन जब परमेश्वर का कार्य समाप्त हो जाता है, तो समस्त मानवजाति से परमेश्वर न्याय कर चुका होगा। कोई भी भाग नहीं पाएगा, परमेश्वर मानवजाति में से लोगों को एक-एक करके संभाल लेगा, उनमें से एक को भी माफ़ नहीं करते हुए, और उसके बाद ही परमेश्वर का दिल संतुष्ट होगा। और इसलिए, परमेश्वर कहता है, "फिर, वे ऐसे पशुओं के समान हैं जो पहाड़ों की गुफाओं में शरण लेने के लिए मेरे प्रकाश से दूर भाग रहे हैं; फिर भी, उन में से एक को भी मेरे प्रकाश के भीतर से मिटाया नहीं जा सकता है।" लोग अधम और नीच पशु हैं। शैतान के हाथों में रहते हुए ऐसा लगता है कि वे पहाड़ों के भीतर गहरे प्राचीन वनों में शरण ले चुके हैं—परन्तु चूँकि सब चीजें परमेश्वर की आग से जलाए जाने से बच नहीं सकतीं, शैतान की शक्तियों के "संरक्षण" के तहत रहते हुए भी, तो परमेश्वर उन्हें कैसे भूल सकते हैं? जब वे परमेश्वर के वचनों के आगमन को स्वीकार करते हैं, तो सभी लोगों की भद्दी शकलें और विकृत स्थितियाँ परमेश्वर की कलम के द्वारा चित्रित होती हैं; परमेश्वर मनुष्य की ज़रूरतों और मानसिकता के अनुरूप बोलता है। इस प्रकार, लोगों के लिए, परमेश्वर मनोविज्ञान में माहिर नज़र आता है। ऐसा लगता है जैसे परमेश्वर एक मनोवैज्ञानिक है, बल्कि यह भी जैसे कि परमेश्वर आंतरिक उपचार का एक चिकित्सक है—कोई आश्चर्य नहीं है कि उसे मनुष्य की, जो "जटिल" है, ऐसी समझ है। जितना अधिक लोग इस बार में सोचते हैं, परमेश्वर की बहुमूल्यता का उन्हें उतना ही अधिक एहसास होता है और उतना ही अधिक उन्हें लगता है कि परमेश्वर गहन और अथाह है। ऐसा लगता है कि मनुष्य और परमेश्वर के बीच, एक अगम्य स्वर्गीय सीमा-रेखा है, बल्कि यह भी कि मानो चू नदी[क] के दो किनारों से वे दोनों एक दूसरे का लिहाज करते हैं, दोनों में से कोई भी दूसरे को देखने के अलावा कुछ भी करने में सक्षम नहीं है। कहने का अर्थ है, पृथ्वी पर रहने वाले लोग केवल अपनी आँखों से परमेश्वर को देखते हैं, उन्हें कभी भी उसका समीप से अध्ययन करने का मौका नहीं मिला है, और उनके पास केवल एक लगाव की भावना मात्र है। उनके दिल में, वे हमेशा एक भावना रखते हैं कि परमेश्वर सुंदर है, परन्तु चूँकि परमेश्वर इतना "बेरहम और निर्दयी है," उनके पास उनके दिल की पीड़ा की बात उसके सामने करने का अवसर कभी नहीं रहा है। वे पति के सामने रही एक खूबसूरत जवान पत्नी की तरह हैं जो अपने पति की सत्यनिष्ठा के कारण, कभी भी अपनी सच्ची भावनाओं का खुलासा करने का अवसर नहीं पा सकी है। लोग खुद से घृणा करने वाले अभागे हैं, और इसलिए, उनकी भंगुरता के कारण, आत्मसम्मान की कमी के कारण, मनुष्य के प्रति मेरी नफरत कुछ हद तक बढ़ जाती है, और मेरे दिल का रोष फूट पड़ता है। मेरे मन में, ऐसा लगता है जैसे मैंने एक आघात का सामना किया है। मैं लंबे समय से मनुष्य में आशा खो चुका हूँ, लेकिन क्यो���कि "एक बार फिर, मेरा दिन मानवजाति के नज़दीक आ रहा है, एक बार फिर मानवजाति को जाग्रत कर रहा है और मानवता को एक स्थान दे रहा है जहाँ से एक नई शुरूआत की जाए," मैं एक बार फिर से समग्र मानव जाति को जीतने के लिए साहस जुटाता हूँ, बड़े लाल अजगर को पकड़ने और हराने के लिए। परमेश्वर का मूल इरादा इस प्रकार था: चीन में बड़े लाल अजगर के वंश-विस्तार पर विजय पाने से बढ़कर कुछ नहीं करना; केवल इसे ही बड़े लाल अजगर की शिकस्त माना जा सकता था, बड़े लाल अजगर की पराजय, और केवल यही साबित करने के लिए पर्याप्त होगा कि परमेश्वर समूची पृथ्वी पर राजा के रूप में शासन करता है, परमेश्वर के महान उद्यम की पूर्ति को साबित करते हुए, और (इसे भी साबित करते हुए कि) पृथ्वी पर परमेश्वर की एक नई शुरुआत है, और पृथ्वी पर उसकी महिमा हुई है। अंतिम सुंदर दृश्य की वजह से, परमेश्वर अपने दिल की उत्कंठा को व्यक्त किये बिना नहीं रह सकता: "मेरा हृदय धड़कता है और, मेरे हृदय की धड़कन की लय का अनुसरण करते हुए पहाड़ आनन्द के लिए उछलते हैं और समुद्र खुशी से नृत्य करता है तथा लहरें समय-समय पर चट्टानी भित्तियों से टकराती हैं। जो मेरे हृदय में है उसे व्यक्त करना कठिन है।" इससे यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर द्वारा जो योजना बनाई गई थी, उसे वह पहले से ही पूरा कर चुका है, कि यह परमेश्वर द्वारा पूर्व निर्धारित था, और यह ठीक वही है जो परमेश्वर लोगों को अनुभव कराता और दिखाता है। राज्य की संभावना सुंदर है, राज्य का राजा विजयी है, सिर से पैर तक मांस और रक्त का कोई निशान नहीं है, उसका सब कुछ पवित्र है। उसका पूरा देह पवित्र महिमा से उज्जवल है, मानव विचारों से पूरी तरह से अछूता, उसका सारा शरीर ऊपर से नीचे तक, धार्मिकता और स्वर्ग की आभा के साथ छलकता है, और एक मनोरम सुगंध छोड़ता है। श्रेष्ठ गीत में प्राणप्रिय की तरह, वह सभी संतों की तुलना में अधिक सुंदर है, प्राचीन संतों की तुलना में बढ़कर है, वह सभी लोगों के बीच आदर्श है, और मनुष्य के लिए अतुलनीय है; लोग उसे सीधे देखने के योग्य भी नहीं हैं। कोई भी परमेश्वर के महिमापूर्ण चेहरे को, परमेश्वर की उपस्थिति या परमेश्वर की छवि को, प्राप्त नहीं कर सकता, कोई भी प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता, और कोई भी आसानी से अपने मुंह से इन बातों की प्रशंसा तक नहीं कर सकता।
परमेश्वर के वचनों का कोई अंत नहीं है, एक झरने से फूट पड़ते पानी की तरह वे कभी सूखेंगे नहीं और इस प्रकार कोई भी परमेश्वर की प्रबंधन योजना के रहस्यों की थाह नहीं पा सकता—फिर भी परमेश्वर के लिए, ऐसे रहस्य अनंत हैं। विभिन्न तरीकों और भाषा का प्रयोग करते हुए, परमेश्वर ने कई बार पूरे ब्रह्मांड के अपने नवीकरण और परिवर्तन के बारे में कहा है, हर समय आखिरी बार की तुलना में अधिक गहराई से: "मैं चाहता हूँ कि सभी अशुद्ध चीज़ें मेरे घूरने से जलकर भस्म हो जाएँ। मैं चाहता हूँ कि अवज्ञा के सभी पुत्र मेरी नज़रों के सामने से ओझल हो जाएँ, और आगे से अस्तित्व में न मँडराते रहें।" परमेश्वर बार-बार ऐसी बातों को क्यों कहता है? क्या वह भयभीत नहीं कि लोग इनसे से थक जाएँगे? लोग परमेश्वर के वचनों के बीच यूं ही टटोलते रहते हैं, इस तरह से परमेश्वर को जानना चाहते हुए, लेकिन खुद को जाँचने की कभी याद नहीं रखते। इस प्रकार, परमेश्वर इस साधन का उपयोग करता है उनको याद दिलाने के लिए, ताकि वे खुद को जान सकें, ताकि वे खुद ही मनुष्य की अवज्ञा के बारे में जान सकें, और इस प्रकार परमेश्वर के सामने उनकी अवज्ञा को समाप्त कर सकें। यह पढ़कर कि परमेश्वर "साफ और सुव्यवस्थित करना" चाहता है, उनका मनोभाव तुरंत चिंता में पड़ जाता है, और उनकी मांसपेशियाँ भी निष्क्रिय हो जाती हैं। वे तुरंत खुद की आलोचना करने के लिए परमेश्वर के सामने लौट आते हैं, और इस तरह परमेश्वर को जान पाते हैं। इसके बाद—उनके निश्चय कर लेने के बाद—परमेश्वर इस अवसर का उपयोग उन्हें बड़े लाल अजगर का सार दिखाने के लिए करता है; इस प्रकार, लोग सीधे आध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़ते हैं, और उनके संकल्प द्वारा निभाई गई भूमिका के कारण, उनके दिमाग भी एक किरदार निभाना शुरू कर देते हैं, जिससे मनुष्य और परमेश्वर के बीच भावना में बढ़ोतरी होती है—जो देहधारी परमेश्वर के कार्य के लिए अधिक लाभकारी है। इस तरह, लोग अनजाने में गुज़रे समय की ओर पीछे मुड़कर देखना चाहते हैं: पिछले कई वर्षों से लोग एक अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास करते थे, कई सालों से, वे अपने दिलों में कभी भी आज़ाद नहीं थे, वे बहुत आनंद लेने में असमर्थ थे, और यद्यपि वे परमेश्वर में विश्वास करते थे, उनके जीवन में कोई व्यवस्था नहीं थी। ऐसा लगता था कि विश्वासी बनकर भी पहले की तुलना में कोई फर्क नहीं पड़ा था, उनके जीवन अभी भी खाली और निराश महसूस होते थे, ऐसा लगता था कि उस समय उनका विश्वास एक प्रकार की उलझन ही था, और यह कि अगर वे विश्वास न ही करते, तो शायद बेहतर होता। जब से उन्होंने आज के स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर को देखा, ऐसा लगता है जैसे स्वर्ग और पृथ्वी का नवीकरण हो गया है; उनके जीवन उज्ज्वल हो गए हैं, वे अब आशाहीन नहीं हैं, और व्यावहारिक परमेश्वर के आगमन के कारण, वे अपने दिलों में दृढ़ और अपनी आत्माओं के भीतर शांत हैं। वे जो भी करते हैं उसमें अब वे हवा का पीछा नहीं करते और छाया को नहीं पकड़ते, अब उनकी खोज लक्ष्यहीन नहीं है और अब वे यूं ही इधर-उधर हाथ-पैर नहीं मार रहें हैं। आज का जीवन और भी अधिक सुंदर है, लोगों ने अनपेक्षित रूप से राज्य में प्रवेश किया और परमेश्वर की प्रजा में शामिल हो गए हैं, और बाद में ... उनके दिलों में, जितना अधिक लोग सोचते हैं, उतनी अधिक मिठास होती है, जितना अधिक वे सोचते हैं, उतने ही अधिक वे खुश है, और उतने ही अधिक वे परमेश्वर से प्रेम करने के लिए प्रेरित होते हैं। इस प्रकार, उनके यह जाने बिना ही, परमेश्वर और मनुष्य के बीच की दोस्ती बढ़ जाती है। लोग परमेश्वर से अधिक प्रेम करने, और परमेश्वर को ��र अधिक जानने लगते हैं, और मनुष्य में परमेश्वर का कार्य अधिक आसान होने लग जाता है, और यह कार्य अब लोगों को मजबूर या विवश नहीं करता है, बल्कि प्रकृति के अनुसार चलता है, और मनुष्य अपना अनोखा काम करता है—केवल तभी परमेश्वर को जानने के लिए वे धीरे-धीरे सक्षम होंगे। केवल यही परमेश्वर का ज्ञान है—इसमें थोड़ी-सी भी कोशिश निहित नहीं है, और इसे मनुष्य के स्वभाव के अनुरूप बनाया जाता है। इस प्रकार, इस समय परमेश्वर कहता है, "मानव जगत में मेरे देहधारण के समय, मानवजाति मेरे मार्गदर्शन करने वाले हाथ की सहायता से अनिच्छापूर्वक इस दिन तक पहुँची, मुझे जानने के लिए अनिच्छापूर्वक आयी। लेकिन, जहाँ तक इसकी बात है कि जो मार्ग सामने है उस पर कैसे चला जाए, तो किसी को कोई आभास नहीं है, कोई नहीं जानता है, और किसी के पास कोई सुराग तो और भी कम है कि वह मार्ग उसे किस दिशा में ले जाएगा? जिस पर सर्वशक्तिमान निग़रानी रखेगा केवल वही मार्ग पर अंत तक चल पाने में समर्थ होगा; केवल पूर्व की चमकती हुई बिजली के मार्गदर्शन के द्वारा ही कोई मेरे राज्य की ओर ले जाने वाली दहलीज़ को पार करने में समर्थ होगा।" क्या यह मनुष्य के दिल के बारे में मैंने जो ऊपर वर्णित किया है, उसका सारांश नहीं है? इसी में परमेश्वर के वचनों का रहस्य है। मनुष्य के दिल के विचार वे ही हैं जो परमेश्वर के मुंह से कहे गए हैं, और परमेश्वर के मुंह से जो बात कही जाती है वह मनुष्य द्वारा चाही जाती है, और यही ठीक वो है जिसमें कि, मनुष्य के दिल को उजागर करने के लिए, परमेश्वर सबसे अधिक कुशल है; यदि नहीं, ��ो सभी ईमानदारी से कैसे आश्वस्त हो सकते हैं? क्या यही वह परिणाम नहीं है जो कि परमेश्वर बड़े लाल अजगर को जीत कर प्राप्त करना चाहता है?
वास्तव में, जैसा कि परमेश्वर का मूल इरादा था, उसके कई वचनों का मतलब उनके सतही अर्थ में नहीं है। उसके कई वचनों में, परमेश्वर बस जानबूझकर लोगों की धारणाएँ बदल रहा है और उनके ध्यान को दूसरी ओर ले जा रहा है। परमेश्वर इन वचनों को कोई महत्व नहीं देता है, और इस प्रकार कई वचन स्पष्टीकरण के योग्य भी नहीं हैं। जब परमेश्वर के वचनों द्वारा मनुष्य पर प्राप्त विजय उस बिंदु तक पहुँच जाती है जहाँ यह अभी है, तो लोगों की ताकत एक निश्चित सीमा तक पहुँच चुकी होती है, और इसीलिए परमेश्वर चेतावनी के और अधिक वचनों का इस्तेमाल करता है—वह नियमावली जिसे वह परमेश्वर की प्रजा के सामने पेश करता है: "यद्यपि मनुष्य जो पृथ्वी पर बसे हुए हैं वे तारों के समान अनगिनित हैं, फिर भी मैं उन सब को इतना स्पष्ट रूप से जानता हूँ जैसे मैं अपने हाथ की हथेली को देखता हूँ। और, यद्यपि ऐसे मनुष्य जो मुझ से "प्रेम" करते हैं वे भी समुद्र की रेत के कणों के समान अनगिनित हैं, फिर भी मैं थोड़े से लोगों को ही चुनता हूँ: केवल उन्हें जो चमकते हुए प्रकाश का अनुसरण करते हैं, और जो उन से अलग हैं जो मुझ से "प्रेम" करते हैं।" दरअसल, ऐसे कई लोग हैं जो कहते हैं कि वे परमेश्वर से प्यार करते हैं, लेकिन कुछ ही ऐसे हैं जो उनके दिलों में उससे प्यार करते हैं—जो कि, ऐसा प्रतीत होता है, बंद आँखों से भी स्पष्ट रूप से ज्ञात हो सकता है। यह उन सभी लोगों की दुनिया की वास्तविक स्थिति है जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। इसमें, हम देखते हैं कि अब परमेश्वर लोगों के निष्कासन के कार्य को कर रहा है, जो यह दर्शाता है कि परमेश्वर जो चाहता है, और जो परमेश्वर को संतुष्ट करता है, वह आज की कलीसिया नहीं है, बल्कि निष्कासन के बाद का राज्य है। इस समय आगे वह सभी "खतरनाक चीज़ों" के प्रति एक चेतावनी देता है: परमेश्वर कार्य ही न करे इसे छोड़ दिया जाए तो, जैसे ही परमेश्वर कार्य करना शुरू करता है, इन लोगों को राज्य से मिटा दिया जाएगा। परमेश्वर कभी भी लापरवाही से चीज़ों को नहीं करता है, वह हमेशा "एक तो एक ही है, और दो तो दो ही है" के सिद्धांत के अनुसार कार्य करता है, और यदि ऐसे लोग हैं जिनकी ओर वह नज़र डालना ही नहीं चाहता है, तो वह हर संभव काम करता है उन्हें मिटाने के लिए, ताकि उन्हें भविष्य में परेशानी पैदा करने से रोका जा सके। इसे "कचरा निकालना और पूरी तरह से सफाई करना" कहा जाता है। जब परमेश्वर मनुष्यों के लिए प्रशासनिक नियमों की घोषणा करता है तो वही वह क्षण है जब अपने चमत्कारिक कार्यों को, और जो कुछ भी उसके भीतर है उसे, वह प्रस्तुत करता है, और इस प्रकार वह बाद में कहता है: "पहाड़ों में असंख्य जंगली जानवर हैं, किन्तु वे सभी मेरे सामने एक भेड़ के समान पालतू हैं; समुद्र की गहराईयों में अथाह रहस्य छिपे हुए हैं, किन्तु वे पृथ्वी की सतह की सभी चीज़ों के समान मेरे सामने स्पष्ट रूप से अपने आपको प्रस्तुत करते हैं; ऊपर नभमण्डल में ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ मनुष्य कभी नहीं पहुँच सकता है, फिर भी मैं उन अगम्य क्षेत्रों में स्वतन्त्र रूप से चलता-फिरता हूँ।" परमेश्वर का तात्पर्य यह है: यद्यपि मनुष्य का हृदय सभी चीजों से अधिक धोखेबाज़ है, और वह लोगों की धारणाओं के नरक के जितना ही रहस्यमय प्रतीत होता है, परमेश्वर मनुष्य की वास्तविक स्थितियों को बहुत अच्छी तरह जानता है। सभी चीजों में, मनुष्य एक ऐसा पशु है जो कि एक जंगली जानवर से भी अधिक खूँखार और क्रूर है, फिर भी परमेश्वर ने मनुष्य पर इस हद तक विजय प्राप्त की है कि कोई भी उठने और विरोध करने की हिम्मत नहीं करता। वास्तव में, जैसा कि परमेश्वर का तात्पर्य है, लोग अपने दिल में जो सोचते हैं वह सभी चीजों में, सभी चीजों की तुलना में, अधिक जटिल है, यह अथाह है, फिर भी परमेश्वर को मनुष्य के दिल से कोई सरोकार नहीं है, वह उसे केवल अपनी आँखों के सामने एक छोटे कीड़े के रूप में देखता है; उसके मुंह से निकले एक शब्द के साथ ही, वह इसे जीतता है, किसी भी समय जब वह चाहे, वह उसे मार गिराता है, अपने हाथ की एक हलकी-सी ही गति के साथ, वह उसे ताड़ना देता है, और वह अपनी इच्छा से इसकी निंदा करता है।
आज, सभी लोग अंधेरों में रहते हैं, परन्तु परमेश्वर के आगमन के कारण, परमेश्वर को देखने के परिणामस्वरूप लोगों को प्रकाश के सार का पता चलता है, और पूरे विश्व में ऐसा लगता है कि पृथ्वी पर एक विशाल काला मटका उलट दिया गया हो; कोई भी सांस नहीं ले सकता है, वे सभी लोग स्थिति को उलटना चाहते हैं, फिर भी कोई भी कभी उस काले मटके को हटा नहीं सका है। यह केवल परमेश्वर के देह्धारण के कारण है कि लोगों की आँखें अचानक खुल गई हैं, और उन्होंने व्यावहारिक परमेश्वर को देखा है, और इस प्रकार, परमेश्वर उनसे सवाल के लहजे में पूछता है: "मनुष्य ने प्रकाश में मुझे कभी नहीं पहचाना है, किन्तु सिर्फ अन्धकार के संसार में ही मुझे देखा है। क्या आज तुम लोग बिल्कुल इसी स्थिति में नहीं हो? यह बड़े लाल अजगर के हिंसात्मक व्यवहार की चरम सीमा का समय था कि मैंने अपने कार्य को करने के लिए विधिवत देह का वस्त्र धारण किया।" आध्यात्मिक क्षेत्र में जो कुछ भी हो रहा है, परमेश्वर उसे छिपाता नहीं है, न ही वह मनुष्य के दिल में क्या हो रहा है, उसे छिपाता है, और इस प्रकार वह बार-बार लोगों को याद दिलाता है: "मैं ऐसा न केवल अपने लोगों को देहधारी परमेश्वर को जानने में सक्षम बनाने के लिए करता हूँ, बल्कि अपने लोगों को शुद्ध करने के लिए भी करता हूँ। मेरी प्रशासनिक आज्ञाओं की कठोरता के कारण, लोगों का एक बहुत बड़ा भाग अभी भी मेरे द्वारा निष्कासित किए जाने के खतरे में है। जब तक तुम लोग स्वयं से निपटने के लिए, अपने शरीर को वश में लाने के लिए हर प्रकार का प्रयास नहीं करते हो, और जब तक तुम लोग ऐसा नहीं करते हो, तब तक तुम लोग निःसन्देह, नरक में फेंके जाने के लिए, एक ऐसी वस्तु बनोगे जिससे मैं घृणा करता हूँ और जिसे मैं अस्वीकार करता हूँ, ठीक वैसे ही जैसे पौलुस ने सीधे मेरे हाथों से ताड़ना प्राप्त की थी, जिससे बचने का कोई रास्ता नहीं था।" जितना अधिक परमेश्वर इस तरह की बातें कहता है, उतना अधिक लोग अपने क़दमों के बारे में सतर्क रहते हैं, और उतना ही अधिक वे परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों से भयभीत होते हैं, और तभी तो परमेश्वर की शक्ति को प्रयोग में लाया जा सकता है और उसकी महिमा को स्पष्ट किया जा सकता है। यहाँ, पौलुस का एक बार फिर उल्लेख किया गया है ताकि लोग परमेश्वर की इच्छा को समझ सकें: उनको ऐसे व्यक्ति नहीं बनना चाहिए जिन्हें परमेश्वर ताड़ना देता है, बल्कि ऐसे लोग बनना चाहिए जो परमेश्वर की इच्छा के प्रति सचेत हैं। केवल यही लोगों को, उनके भय के बीच, परमेश्वर के सामने, उसे पूरी तरह से संतुष्ट करने के लिए किये गए उनके संकल्प की विगत असमर्थता पर ध्यान दिला सकता है, जिससे उन्हें अधिक अफसोस होता है, और जो उन्हें व्यावहारिक परमेश्वर का अधिक ज्ञान प्रदान करता है, और केवल इसी प्रकार यह हो सकता है कि परमेश्वर के वचनों के बारे में उन्हें कोई संदेह न रहे।
"यह मात्र ऐसा नहीं है कि मनुष्य मुझे मेरी देह में नहीं जानता है; उस से भी निकृष्टतर यह है, कि वह अपनी स्वंय की अस्मिता को समझने में असफल हो गया है जो एक दैहिक शरीर में निवास करती है। कितने वर्षों से ऐसा रहा ��ै, और इस पूरे समय में, मेरे साथ एक बाहरी मेहमान के रूप में व्यवहार करते हुए, मनुष्य ने मुझे धोखा दिया है। कितनी बार…?" ये "कितनी बार" परमेश्वर के प्रति मनुष्य के विरोध की वास्तविकता को सूचीबद्ध करते हैं, लोगों को ताड़ना के वास्तविक उदाहरण को दर्शाते हुए; यह पाप का सबूत है, और कोई भी फिर से इसका खंडन नहीं कर सकता है। सभी लोग दिनचर्या की किसी वस्तु की तरह परमेश्वर का उपयोग करते हैं, जैसे कि वह कोई घरेलु आवश्यकता की चीज़ हो जिसका वे इच्छानुसार उपयोग कर सकते हैं। कोई भी परमेश्वर को अपनी आँखों का तारा नहीं मानता है, कोई भी परमेश्वर की सुंदरता को, उसके महिमामय चेहरे को, जानने की कोशिश नहीं करता है, और परमेश्वर के प्रति इच्छापूर्वक समर्पण करने वाले तो और भी कम हैं। न ही किसी ने कभी भी अपने दिल में परमेश्वर को किसी प्रियजन के रूप में देखा है; जब उन्हें उसकी ज़रूरत होती है, तब वे सभी उसे खींच ले आते हैं, और जब उसकी ज़रुरत नहीं होती तो वे उसे एक तरफ फ़ेंक देते हैं और उसकी अवहेलना करते हैं। ऐसा लगता है कि मनुष्य के लिए, परमेश्वर एक कठपुतली है, जिसमें इच्छानुसार मनुष्य हेरफेर कर सकता है, और जैसे भी वह चाहे या इच्छा करे, उसकी माँग कर सकता है। लेकिन परमेश्वर कहता है, "यदि, मेरे देहधारण की अवधि के दौरान, मैंने मनुष्य की कमज़ोरी का ध्यान न रखा होता, तो संपूर्ण मानवजाति, एकमात्र मेरे देहधारण के कारण, भयभीत हो गई होती, और परिणामस्वरूप, अधोलोक में गिर गई होती," जो कि दर्शाता है कि परमेश्वर के अवतार का महत्व कितना विशाल है: देह में, वह समस्त मानव जाति को आध्यात्मिक क्षेत्र से नष्ट कर देने के बजाय मानव जाति पर विजय प्राप्त करने आया है। इस प्रकार, वचन कब देह बन गया, कोई नहीं जान पाया था। अगर परमेश्वर मनुष्य की कमजोरी का ख्याल नहीं करता, तो जब वह देह बना और स्वर्ग तथा पृथ्वी उलट दिए गए, तो सभी लोगों का विनाश हो गया होता। चूँकि यह लोगों की प्रकृति में है कि वे नए को पसंद करें और पुराने से घृणा करें, और जब सब कुछ ठीक चल रहा हो तो वे अक्सर बुरे समय को भूल जाते हैं, और उनमें से कोई भी नहीं जानता कि वे कितने धन्य हैं, तो इस प्रकार परमेश्वर बार-बार उन्हें याद दिलाता है कि उन्हें इस बात को संजोये रखना चाहिए कि आज का दिन कितनी कठिनाई से आया है; आने वाले कल की खातिर, उन्हें आज को और भी अधिक कीमती समझना चाहिए, और उन्हें एक जानवर की तरह नहीं होना चाहिए जो ऊँचाई पर चढ़कर अपने स्वामी को ही न पहचानता हो, और उन्हें उन सभी आशीषों से अनभिज्ञ नहीं होना चाहिए जिनके बीच वे रहते हैं। इस प्रकार, वे अच्छी तरह से व्यवहार करने लगते हैं, अब वे दम्भी या अभिमानी नहीं रहते, और उन्हें पता चल जाता है कि बात यह नहीं है कि मनुष्य का स्वभाव अच्छा है, बल्कि यह कि परमेश्वर की दया और प्रेम मनुष्य पर आ गए हैं; वे लोग ताड़ना से भय करते हैं, तथा और कुछ भी कर डालने की हिम्मत नहीं करते।
                                        स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
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अगर कोई केवल परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेता है, तो क्या यह परमेश्वर पर विश्वास की वास्तविक गवाही है?
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अगर कोई केवल परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेता है, तो क्या यह परमेश्वर पर विश्वास की वास्तविक गवाही है?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
शांतिमय पारिवारिक जीवन या भौतिक आशीषों के साथ, यदि तुम केवल परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेते हैं, तो तुमने परमेश्वर को प्राप्त नहीं किया है, और परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास पराजित हो गया है। परमेश्वर ने शरीर में अनुग्रह के कार्य के एक चरण को पहले ही पूरा कर लिया है, और मनुष्य को भौतिक आशीषें प्रदान कर दी हैं - परंतु मनुष्य को केवल अनुग्रह, प्रेम और दया के साथ सिद्ध नहीं किया जा सकता। मनुष्य के अनुभवों में वह परमेश्वर के कुछ प्रेम का अनुभव करता है, और परमेश्वर के प्रेम और उसकी दया को देखता है, फिर भी कुछ समय तक इसका अनुभव करने के बाद वह देखता है कि परमेश्वर का अनुग्रह और उसका प्रेम और उसकी दया मनुष्य को सिद्ध बनाने में असमर्थ हैं, और उसे प्रकट करने में भी असमर्थ है जो मनुष्य में भ्रष्ट है, और न ही वे मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव से उसे आज़ाद कर सकते हैं, या उसके प्रेम और विश्वास को सिद्ध बना सकते हैं। परमेश्वर का अनुग्रह का कार्य एक अवधि का कार्य था, और मनुष्य परमेश्वर को जानने के लिए परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद उठाने पर निर्भर नहीं रह सकता।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो" से
यदि कोई केवल परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद उठाए, तो वह परमेश्वर के द्वारा पूर्ण नहीं बनाया जा सकता है। कुछ लोग शारीरिक शांति और आनंद को पाकर संतुष्ट हो पाते होंगे, शत्रुता या किसी दुर्भाग्य के बिना सरल सा जीवन, परिवार में बिना किसी लड़ाई या झगड़े के शांति से जीवन व्यतीत कर संतुष्ट रह पाते होंगे। वे यह भी विश्वास कर सकते हैं कि यही परमेश्वर की आशीष है, पर सच्चाई तो यह है, यह परमेश्वर का केवल अनुग्रह है। तुम लोग सिर्फ परमेश्वर के अनुग्रह में आनंदित होकर संतुष्ट नहीं रह सकते। इस प्रकार का विचार नीच है। तू प्रतिदिन क्यों न परमेश्वर का वचन पढ़े, प्रतिदिन प्रार्थना करे और तेरी अपनी आत्मा में आनंद और शांति का अनुभव करे, तो भी तू अंत में कह नहीं सकता कि परमेश्वर और उसके कार्य का ज्ञान या किसी प्रकार का अनुभव मिला है, और इसके कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तूने परमेश्वर का कितना वचन खाया और पीया है, यदि तू अपनी आत्मा में केवल शांति और आनंद का आभास करता है और यह कि परमेश्वर के वचन अतुल्य रूप से मीठे हैं, मानो तू इसका पर्याप्त आनंद नहीं उठा सकता है, परंतु तुझे परमेश्वर के वचन का कोई वास्तविक अनुभव नहीं हुआ है, फिर तू इस प्रकार के विश्वास से क्या प्राप्त कर सकता है? यदि तू परमेश्वर के वचन के सार को जीवन में उतार नहीं सकता, तेरा खाना-पीना और प्रार्थना पूरी तरह से धर्म से संबंधित है। तब इस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर द्वारा पूर्ण नहीं किया जा सकता है और प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "प्रतिज्ञाएं उनके लिए जो पूर्ण बनाए जा चुके हैं" से
जो लोग परमेश्वर के अनुग्रहों का आनन्द उठाने से अधिक और कुछ नहीं करते हैं वे पूर्ण नहीं बनाए जा सकते हैं, या परिवर्तित नहीं किए जा सकते हैं, और उनकी आज्ञाकारिता, धर्मनिष्ठता, और प्रेम तथा धैर्य सभी सतही हैं। जो लोग केवल परमेश्वर के अनुग्रहों का आनन्द लेते हैं वे वास्तव में परमेश्वर को नहीं जान सकते हैं, और यहाँ तक कि जब वे परमेश्वर को जान जाते हैं, तब भी उनका ज्ञान उथला होता है, और वे ऐसी बातें कहते हैं जैसे कि परमेश्वर मनुष्य से प्रेम करता है, या परमेश्वर मनुष्य के प्रति करूणामय है। यह मनुष्य के जीवन का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, और यह नहीं दिखाता है कि लोग सचमुच में परमेश्वर को जानते हैं। यदि, जब परमेश्वर के वचन उन्हें शुद्ध करते हैं, या जब परमेश्वर के परीक्षण उन पर आते हैं, तो लोग परमेश्वर की आज्ञा मानने में असमर्थ होते हैं-उसके बजाए, यदि वे सन्देहास्पद हो जाते हैं, और नीचे गिर जाते हैं-तो वे न्यूनतम आज्ञाकारी भी नहीं रहते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए" से
लोग केवल अनुग्रह की प्राप्ति और शांति के आनंद को परमेश्वर में विश्वास के प्रतीक के रूप में, और आशीषों के लिए माँग करने को परमेश्वर में विश्वास के आधार के रूप में मानते हैं। बहुत कम लोग परमेश्वर को जानने की या अपने स्वभाव में बदलाव करने की माँग करते हैं। परमेश्वर में लोगों का विश्वास परमेश्वर से उन्हें एक उपयुक्त मंजिल प्रदान करवाने, पृथ्वी पर समस्त अनुग्रह दिलवाने, परमेश्वर को अपना सेवक बनाने, परमेश्वर के साथ उनके शांतिपूर्ण, मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखवाने, और उनके बीच कभी भी कोई संघर्ष नहीं होने देने की चाहत है। अर्थात्, परमेश्वर में उनके विश्वास के लिए आवश्यक है कि परमेश्वर उनकी सभी माँगों को पूरा करने का वादा करे, वे जो कुछ भी प्रार्थना करते हैं उन्हें प्रदान करे, ठीक जैसा कि बाइबिल में कहा गया है "मैं तुम्हारी सारी प्रार्थनाओं को सुनूँगा।" उन्हें परमेश्वर से अपेक्षा है कि वे किसी का न्याय या किसी के साथ व्यवहार न करे, क्योंकि परमेश्वर हमेशा दयालु उद्धारकर्ता यीशु है, जो लोगों के साथ हर समय और हर स्थान पर अच्छे संबंध रखता है। जिस तरह से वे विश्वास करते हैं, वह इस तरह से है: वे हमेशा बेशर्मी के साथ परमेश्वर से चीज़ें माँगे, और परमेश्वर उन्हें सब कुछ आँख बंद करके प्रदान कररे, चाहे वे विद्रोही हों या आज्ञाकारी। लोग परमेश्वर से लगातार "भुगतान" की माँग करते हैं और परमेश्वर को किसी भी प्रतिरोध के बिना भुगतान अवश्य करना चाहिए, और दोहरा भुगतान करना चाहिए, चाहे परमेश्वर ने उनसे कुछ भी प्राप्त किया हो या नहीं। परमेश्वर केवल उनकी दया पर ही हो सकता है; वह मनमाने ढंग से गुप्त रूप से लोगों के लिए योजना नहीं बना सकता है, अपने उस विवेक और धर्मी स्वभाव को जैसा चाहे लोगों पर, उनकी अनुमति के बिना, तो बिल्कुल भी प्रकट नहीं कर सकता है जो कई वर्षों से छुपा हुआ है। वे परमेश्वर के सामने सिर्फ अपने पापों की स्वीकारोक्ति करें और परमेश्वर बस उनको पाप-मुक्त कर दे, और इससे तंग न हो सकें, और ऐसा हमेशा चलता रहे। वे परमेश्वर को सिर्फ आदेश दें और वह सिर्फ उस आज्ञा का पालन करे, जैसा कि बाइबल में अभिलिखित है कि "वह इसलिये नहीं आया कि मनुष्य द्वारा उसकी सेवा टहल की जाए, परन्तु सेवा टहल करने आया। वह मनुष्य का सेवक बनने के लिए आया।" क्या तुम लोगों ने हमेशा इस तरह से विश्वास नहीं किया है? जब तुम लोग परमेश्वर से कुछ प्राप्त नहीं कर सकते हो तो तुम लोग भाग जाना चाहते हो। और जब कोई चीज तुम लोगों की समझ में नहीं आती है तो तुम लोग बहुत क्रोधित हो जाते हो, और इस हद तक भी चले जाते हो कि सभी तरह के दुर्वचन कहने लगते हो। तुम लोग परमेश्वर को अपना विवेक और चमत्कार बस पूरी तरह से व्यक्त नहीं करने दोगे, बल्कि इसके बजाय तुम लोग मात्र अस्थायी सुविधा और आराम का आनंद लेना चाहते हो। अब तक, परमेश्वर में तुम लोगों के विश्वास में तुम लोगों की प्रवृत्ति वही पुराने विचारों वाली रही है। यदि परमेश्वर तुम लोगों को थोड़ा सा प्रताप दिखाता है तो तुम लोग अप्रसन्न हो जाते हो; क्या तुम लोग अब देखते हो कि तुम लोगों का डील-डौल कैसा है? ऐसा मत सोचो कि तुम सभी लोग परमेश्वर के प्रति वफ़ादार हो जबकि वास्तव में तुम लोगों के पुराने विचारों में बदलाव नहीं हुआ है। जब तक तुम्हारे साथ कुछ अशुभ नहीं होता है, तब तक तुम सोचते हो कि हर चीज आसानी से चल रही है और तुम परमेश्वर को सर्वोच्च शिखर तक प्यार करते हो। लेकिन जब तुम्हारे साथ ज़रा-सा भी अशुभ हो जाता है तो तुम अधोलोक में गिर जाते हो। क्या यही तुम्हारा परमेश्वर के प्रति वफादार होना है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "तुम लोगों को हैसियत के आशीषों को अलग रखना चाहिए और मनुष्य के उद्धार के लिए परमेश्वर की इच्छा को समझना चाहिए" से
अधिकांश लोग शांति और अन्य लाभों के लिए परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। जब तक यह तुम्हारे लाभ के लिए न हो, तब तक तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हो, और यदि तुम परमेश्वर के अनुग्रह प्राप्त नहीं कर सकते हो, तो तुम खीज जाते हो। यह तुम्हारी असली कद-काठी कैसे हो सकती है? जब अनिवार्य पारिवारिक की घटनाओं (बच्चों का बीमार पड़ना, पति का अस्पताल जाना, ख़राब फसल पैदावार, परिवार के सदस्यों का उत्पीड़न इत्यादि) की बात आती है, तो तुम इन्हें भी उन चीजों के माध्यम से नहीं कर सकते हो जो प्रायः दिन-प्रतिदिन जीवन में होती हैं। जब ऐसी चीजें होती हैं, तो तुम घबरा जाते हो, तुम्हें पता नहीं होता कि क्या करना है-और अधिकांश समय, तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो। तुम शिकायत करते हो कि परमेश्वर के वचनों ने तुम्हारे साथ चालाकी की है, कि परमेश्वर के कार्य ने तुम्हें चारों ओर से गड़बड़ कर दिया है। क्या तुम लोगों के ऐसे विचार नहीं हो? क्या तुम्हें लगता है कि ऐसी चीजें कभी-कभार ही तुम लोगों के बीच में होती हैं? तुम लोग इस तरह की घटनाओं के बीच रहते हुए हर दिन बिताते हो। तुम लोग परमेश्वर में अपने विश्वास की सफलता के बारे में और कैसे परमेश्वर की इच्छा को पूरा करें, इस बारे में जरा सा भी विचार नहीं करते हो। तुम लोगों की असली कद-काठी बहुत छोटी है, यहाँ तक कि चूजे से भी छोटी है। जब तुम लोगों के पतियों के व्यवसाय में नुकसान होता है तो तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो, जब तुम लोग स्वयं को परमेश्वर की सुरक्षा के बिना किसी वातावरण में पाते हो तब भी तुम लोग परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो, यहाँ तक कि तुम तब भी शिकायत करते हो जब तुम्हारे चूजे मर जाते हैं या तुम्हारी बूढ़ी गाय बाड़े में बीमार पड़ जाती है, तुम तब शिकायत करते हो जब तुम्हारे बेटे का परिवार शुरू करने का समय आता है लेकिन तुम्हारे परिवार के पास पर्याप्त धन नहीं होता है, और जब कलीसिया के कार्यकर्ता तुम्हारे घर पर कुछ भोजन खाते हैं, लेकिन कलीसिया तुम्हें प्रतिपूर्ति नहीं करती है या कोई भी तुम्हें कोई सब्ज़ी नहीं भेजता है, तब भी तुम शिकायत करते हो। तुम्हारा पेट शिकायतों से भरा है, और इस वजह से तुम कभी-कभी सभाओं में नहीं जाते हो या परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते नहीं हो, तो लंबे समय तक तुम्हारे नकारात्मक हो जाने की संभावना हो जाती है। आज तुम्हारे साथ जो भी कुछ भी होता है उसका तुम्हारी संभावनाओं या भाग्य से कोई संबंध नहीं है; ये चीजें तब भी होती हैं जब तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हो, मगर आज तुम उनका उत्तरदायित्व परमेश्वर पर डाल देते हो और यह कहने पर जोर देते हो कि परमेश्वर ने तुम्हें मार दिया है। परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास कितना है, क्या तुमने अपना जीवन सचमुच अर्पित किया है? यदि तुम लोगों ने अय्यूब के समान परीक्षणों का सामना किया होता, तो परमेश्वर का अनुसरण करने वाले तुम लोगों में से ऐसा कोई भी आज डटा नहीं रह पाता, तुम सभी लोग नीचे गिर जाते। और, निस्संदेह, तुम लोगों के और पतरस के बीच ज़मीन-आसमान का अंतर है। आज, यदि तुम लोगों की आधी संपत्ति जब्त कर ली जाए तो तुम लोग परमेश्वर के अस्तित्व को अस्वीकार करने की हिम्मत करोगे; यदि तुम्हारे बेटे या बेटी को तुम से ले लिया जाए, तो तुम चिल्लाते हुए सड़कों पर दौड़ेंगे कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है; यदि तुम्हारा जीवन किसी अंधी गली में पहुँच जाए, तो तुम यह पूछते हुए कि मैंने तुम्हें डराने के लिए शुरुआत में इतने सारे वचनों को क्यों कहा, कोशिश करोगे और इसे "परमेश्वर" से कहोगे? ऐसा कुछ नहीं है जिसे तुम लोग ऐसे समय में करने की हिम्मत नहीं करोगे। यह दर्शाता है कि तुम लोगों ने वास्तव में देखा नहीं है, और तुम लोगों की कोई वास्तविक कद काठी नहीं है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "अभ्यास (3)" से
क्या तू शैतान के प्रभाव में, शांति और आनन्द, और थोड़ा बहुत देह के सुकून के साथ जीवन बिताकर संतुष्ट है? क्या तू सभी लोगों में सब से अधिक निम्न नहीं हैं? उन से ज़्यादा मूर्ख और कोई नहीं है जिन्होंने उद्धार को देखा किन्तु उसे प्राप्त करने के लिए अनुसरण नहीं किया: वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने लालची इंसान की तरह माँस खाया और शैतान को प्रसन्न किया है। तू आशा करता है कि परमेश्वर पर विश्वास करने से तुझे चुनौतियाँ और क्लेश, या थोड़ी बहुत कठिनाई विरासत में नहीं मिलेगी। तू हमेशा ऐसी चीज़ों का अनुसरण करता है जो निकम्मी हैं, और तू अपने जीवन में कोई मूल्य नहीं जोड़ता है, उसके बजाय तू अपने फिजूल के विचारों को सत्य के सामने रख देता है। तू कितना निकम्मा है! तू एक सुअर के समान जीता है-तुझ में, और सूअर और कुत्तों में क्या अन्तर है? क्या वे जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं, और उसके बजाय शरीर से प्रेम करते हैं, सब के सब जानवर नहीं हैं? क्या वे मरे हुए लोग जिन में आत्मा नहीं है चलती फिरती हुई लाशें नहीं हैं? तुम लोगों के बीच में कितने सारे वचन बोले गए हैं? क्या तुम लोगों के बीच में केवल थोड़ा सा ही कार्य किया गया है? मैं ने तुम लोगों के बीच में कितनी सामग्रियों का प्रबन्ध किया है? तो फिर तूने इसे प्राप्त क्यों नहीं किया? तेरे पास शिकायत करने के लिए क्या है? क्या यह वह मामला नहीं है कि तूने कुछ भी प्राप्त नहीं किया है क्योंकि तू देह के साथ बहुत अधिक प्रेम करता है? और क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि तेरे विचार बहुत ज़्यादा फिजूल हैं? क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि तू बहुत ही ज़्यादा मूर्ख हैं? यदि तू इन आशीषों को प्राप्त करने में असमर्थ है, तो क्या तू परमेश्वर को दोष देगा कि उसने तुझे नहीं बचाया? तू परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद शांति प्राप्त करने के योग्य होने के लिए अनुसरण करता है-अपनी सन्तानों के लिए कि वे बीमारी से आज़ाद हों, अपने पति के लिए कि उसके पास एक अच्छी नौकरी हो, अपने बेटे के लिए कि उसके पास एक अच्छी पत्नी हो, तेरी बेटी के लिए कि वह एक सज्जन पति ढूँढ़ पाए, अपने बैल और घोड़े के लिए कि वे अच्छे से जमीन की जुताई करें, और अपनी फसलों के लिए साल भर अच्छे मौसम के लिए कोशिश करता है। तू इन्हीं चीज़ों की खोज करता है। तेरा कार्य केवल सुकून के साथ जीवन बिताना है, क्योंकि तेरे परिवार में कोई दुर्घटना नहीं होती है, क्योंकि हवा तेरे पास से होकर गुज़र जाती है, क्योंकि धूल मिट्टी तेरे चेहरे को छूती नहीं है, क्योंकि तेरे परिवार की फसलें बाढ़ में बहती नहीं हैं, क्योंकि तू किसी भी विपत्ति से प्रभावित नहीं होता है, इसलिए कि तू परमेश्वर की बांहों में रहता है, इसलिए कि तू आरामदायक घोंसले में रहता है। तेरे जैसा डरपोक इंसान, जो हमेशा शरीर के पीछे पीछे चलता है-क्या तेरे पास एक हृदय है, क्या तेरे पास एक आत्मा है? क्या तू एक पशु नहीं हैं? बदले में बिना कुछ मांगते हुए मैं ने तुझे एक सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी तू अनुसरण नहीं करता है। क्या तू उनमें से एक है जो परमेश्वर पर विश्वास करता है? मैं ने तुझे वास्तविक मानवीय जीवन दिया है, फिर भी तू अनुसरण नहीं करता है। क्या तू कुत्ता और सुअर से अलग नहीं है? सूअर मनुष्य के जीवन का अनुसरण नहीं करते हैं, वे शुद्ध किए जाने का प्रयास नहीं करते हैं, और वे नहीं समझते हैं कि जीवन है क्या? प्रति दिन, जी भरकर खाने के बाद, वे बस सो जाते हैं। मैं ने तुझे सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी तूने उसे प्राप्त नहीं किया है: तेरे हाथ खाली हैं। क्या तू इस जीवन में, सूअर के जीवन में, निरन्तर बने रहना चाहता है? ऐसे लोगों के ज़िन्दा रहने का क्या महत्व है? तेरा जीवन घृणित और नीच है, तू गन्दगी और व्यभिचार के मध्य रहता है, और तू किसी उद्देश्य का पीछा नहीं करता है; क्या तेरा जीवन सब से अधिक निम्न नहीं है? क्या तेरे पास परमेश्वर की ओर देखने की कठोरता है? यदि तू लगातार इस तरह अनुभव करता रहे, तो क्या तुझे शून्यता प्राप्त नहीं होगी?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" से
आज मनुष्य देखता है कि परमेश्वर के केवल अनुग्रह, प्रेम और उसकी दया के साथ वह स्वयं को पूरी तरह से जान सकने में असमर्थ है, और वह मनुष्य के तत्व को तो जान ही नहीं सकता है। केवल परमेश्वर के शोधन और न्याय के द्वारा, केवल ऐसे शोधन के द्वारा तुम अपनी कमियों को जान सकते हो, और तुम जान सकते हो कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है। अतः, मनुष्य का परमेश्वर के प्रति प्रेम परमेश्वर की ओर से आने वाले शोधन और न्याय की नींव पर आधारित होता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो" से
तुम अपने अनुभवों में देखोगे कि वे जो अत्यधि�� शुद्धिकरण तथा दर्द, और अधिक व्यवहार तथा अनुशासन सहते हैं, उनका परमेश्वर के प्रति गहरा प्रेम होता है, और उनके पास परमेश्वर का अधिक गहन एवं मर्मज्ञ ज्ञान होता है। ऐसे लोग जिन्होंने व्यवहार किए जाने का अनुभव नहीं किया है, उनके पास केवल सतही ज्ञान होता है, और वे केवल यह कह सकते हैं: "परमेश्वर बहुत अच्छा है, वह लोगों को अनुग्रह प्रदान करता है ताकि वे परमेश्वर में आनन्दित हो सकें"। यदि लोगों ने व्यवहार और अनुशासित किए जाने का अनुभव किया है, तो वे परमेश्वर के सच्चे ज्ञान के बारे में बोलने में समर्थ हैं। अतः मनुष्य में परमेश्वर का कार्य जितना ज़्यादा अद्भुत होता है, उतना ही ज़्यादा यह मूल्यवान एव महत्वपूर्ण होता है। यह तुम्हारे लिए जितना अधिक अभेद्य होता है और यह तुम्हारी अवधारणाओं के साथ जितना अधिक असंगत होता है, परमेश्वर का कार्य उतना ही अधिक तुम्हें जीतने में समर्थ होता है, तुम तक पहुँचता है और तुम्हें परिपूर्ण बना पाता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "पूर्ण बनाए जाने वालों को शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए" से
क्या अब तुम लोग समझते हो कि परमेश्वर पर विश्वास करना क्या होता है? क्या संकेतों और चमत्कारों को देखना परमेश्वर पर विश्वास करना है? क्या यह स्वर्ग पर आरोहण करना है? परमेश्वर पर विश्वास आसान नहीं है। आज, इस प्रकार के धार्मिक अभ्यासों को निकाल दिया जाना चाहिए; परमेश्वर के चमत्कारों के प्रकटीकरण का अनुसरण करना, परमेश्वर की चंगाई और उसका दुष्टात्माओं को निकालना, परमेश्वर द्वारा शांति और प्रचुर अनुग्रह प्रदान किए जाने की तलाश करना, और देह के लिए संभावना और आराम प्राप्त करने की तलाश करना-ये धार्मिक अभ्यास हैं, और ऐसे धार्मिक अभ्यास विश्वास के अस्पष्ट और अमूर्त रूप हैं। आज, परमेश्वर में वास्तविक विश्वास क्या है? यह परमेश्वर के वचन को अपने जीवन की वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना, और परमेश्वर का सच्चा प्यार प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के वचन से परमेश्वर को जानना है। स्पष्ट करने के लिए: यह परमेश्वर में विश्वास है जिसकी वजह से तुम परमरेश्वर की आज्ञा का पालन कर सकते हो, उससे प्रेम कर सकते हो, और उस कर्तव्य को कर सकते हो जो एक परमेश्वर के प्राणी द्वारा की जानी चाहिए। यही परमेश्वर पर विश्वास करने का लक्ष्य है। तुम्हें परमेश्वर के प्रेम का ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए है, या यह ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए कि परमेश्वर कितने आदर के योग्य हैं, कैसे अपने सृजन किए गए प्राणियों में परमेश्वर उद्धार का कार्य करता है और उन्हें पूर्ण बनाता है-यह वह न्यूनतम है जो तुम्हें परमेश्वर पर विश्वास में धारण करना चाहिए। परमेश्वर पर विश्वास मुख्यतः देह के जीवन से परमेश्वर से प्रेम करने वाले जीवन में बदलना है, प्राकृतिकता के भीतर जीवन से परमेश्वर के अस्तित्व के भीतर जीवन में बदलना है, यह शैतान के अधिकार क्षेत्र से बाहर आना और परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा में जीवन जीना है, यह परमेश्वर की आज्ञाकारिता को, और न कि देह की आज्ञाकारिता को, प्राप्त करने में समर्थ होना है, यह परमेश्वर को तुम्हारा संपूर्ण हृदय प्राप्त करने की अनुमति देना है, परमेश्वर को तुम्हें पूर्ण बनाने और तुम्हें भ्रष्ट शैतानिक स्वभाव से मुक्त करने की अनुमति देना है। परमेश्वर में विश्वास मुख्यतः इस वजह से है ताकि परमेश्वर की सामर्थ्य और महिमा तुममें प्रकट हो सके, ताकि तुम परमेश्वर की इच्छा को पूर्ण कर सको, और परमेश्वर की योजना को संपन्न कर सको, और शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही दे सको। परमेश्वर पर विश्वास संकेतों और चमत्कारों को देखने के उद्देश्य से नहीं होना चाहिए, न ही यह तुम्हारी व्यक्तिगत देह के वास्ते होना चाहिए। यह परमेश्वर को जानने की तलाश के लिए, और परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने, और पतरस के समान, मृत्यु तक परमेश्वर का आज्ञापालन करने में सक्षम होने के लिए, होना चाहिए। यही वह सब है जो मुख्यतः प्राप्त करने के लिए है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है" से
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अंतिम दिनों के मसीह के कथन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" (भाग सात)
          सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "इसे साधारण रूप से कहें, तो परमेश्वर के अधिकार के अधीन प्रत्येक व्यक्ति सक्रियता से या निष्क्रियता से उसकी संप्रभुता एवं इंतज़ामों को स्वीकार करता है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह किस प्रकार अपने जीवन के पथक्रम में संघर्ष करता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह कितने टेढ़े-मेढ़े पथों पर चलता है, क्योंकि अंत में वह नियति की परिक्रमा-पथ पर वापस लौट आएगा जिसे सृष्टिकर्ता ने उस पुरुष या स्त्री के लिए चिन्हित किया है।
         यह सृष्टिकर्ता के अधिकार की अजेयता है, और वह रीति है जिसके तहत उसका अधिकार विश्व पर नियन्त्रण एवं शासन करता है। …... परमेश्वर ही मनुष्य का एकमात्र प्रभु है, परमेश्वर ही मानव की नियति का एकमात्र स्वामी है, और इस प्रकार मनुष्य के लिए अपनी स्वयं की नियति का नियन्त्रण करना असंभव है, और उससे बढ़कर होना असंभव है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि किसी व्यक्ति की योग्यताएं कितनी ऊंची हैं, वह दूसरों की नियति को प्रभावित नहीं कर सकता है, आयोजित, व्यवस्थित, नियन्त्रित, या परिवर्तित तो बिलकुल नहीं कर सकता है। केवल स्वयं अद्वितीय परमेश्वर ही मनुष्य के लिए सभी हालातों को नियन्त्रित करता है, क्योंकि केवल वह ही अद्वितीय अधिकार धारण करता है जो मानव की नियति के ऊपर संप्रभुता रखता है; और इस प्रकार केवल सृष्टिकर्ता ही मनुष्य का अद्वितीय स्वामी है।"
         चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।
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burningpiratesoul · 3 years
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सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्...
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hardchildsong-blog1 · 4 years
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अंतिम दिनों के मसीह के कथन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्व...
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अंतिम दिनों के मसीह के कथन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्व...
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go-emma-blr · 4 years
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अंतिम दिनों के मसीह के कथन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्व...
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अंतिम दिनों के मसीह के कथन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्व...
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अध्याय 11
मनुष्य की नग्न आँखों के लिए, ऐसा प्रतीत होता है कि इस अवधि में परमेश्वर के कथनों में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जो कि इसलिए है क्योंकि लोग उस व्यवस्था को समझने में असमर्थ हैं जिसके द्वारा परमेश्वर बोलता है, और उसके वचनों के संदर्भ को नहीं समझते हैं। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, लोग नहीं मानते कि इन वचनों में कोई नया रहस्य है; इस प्रकार, वे ऐस जीवन जीने में असमर्थ हैं जो असाधारण रूप से नए हैं, और इसके बजाय ऐसे जीवन जीते हैं जो गतिहीन और बेजान हैं। किन्तु परमेश्वर के कथनों में, हम देखते हैं कि इनमें गहरे स्तर का अर्थ है, ऐसा जो मनुष्य के लिए अथाह और अगम्य दोनों है। आज, मनुष्य के लिए परमेश्वर के ऐसे वचनों को पढ़ने के लिए पर्याप्त रूप से भाग्यशाली होना ही सभी आशीषों में सबसे बड़ा है। यदि इन वचनों को कोई भी नहीं पढ़ता, तो मनुष्य सदैव अभिमानी, दंभी, स्वयं से अनभिज्ञ, और इस बात से अनजान होता कि उसकी कितनी असफलताएँ हैं। परमेश्वर के ग���न, अथाह वचनों को पढ़ने के बाद, लोग चुपके से उनकी प्रशंसा करते हैं, और उनके हृदयों में, सच्चा दृढ़ विश्वास होता है जिसमें झूठ का दाग नहीं होता; उनके हृदय खरेबन जाते हैं, न कि नकली माल। वास्तव में लोगों के हृदय में यही होता है। हर एक के हृदय में उसकी अपनी कहानी है। ऐसा लगता है मानो कि वे स्वयं से कह रहे हों: सर्वाधिक संभावना है कि यह परमेश्वर स्वयं द्वारा बोला गया था—यदि परमेश्वर नहीं, तो और कौन ऐसे वचनों को बोल सकता था? मैं उन्हें क्यों नहीं कह सकता हूँ? मैं क्यों ऐसा कार्य करने में अक्षम हूँ? ऐसा प्रतीत होता है कि देहधारी परमेश्वर जिसके बारे में परमेश्वर बोलता है सच में वास्तविक है, और परमेश्वर स्वयं है! मैं और अधिक संदेह नहीं करूँगा। अन्यथा, निश्चय ही ऐसा हो सकता है कि जब परमेश्वर का हाथ आएगा, तो पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी! ... अधिकांश लोग अपने हृदय में ऐसा ही सोचते हैं। यह कहना उचित है कि, जब से परमेश्वर ने बोलना शुरू किया तब से आज तक, सभी लोग परमेश्वर के वचनों के सहारे के बिना गिर गए होते। ऐसा क्यों कहा जाता है कि यह सब कार्य परमेश्वर स्वयं के द्वारा किया जाता है, और मनुष्य के द्वारा नहीं? यदि परमेश्वर कलीसिया के जीवन को सहारा देने के लिए वचनों का उपयोग नहीं करता, तो हर कोई बिना कोई निशान छोड़े गायब हो जाता। क्या यह परमेश्वर की सामर्थ्य नहीं है? क्या यह सच में मनुष्य की वाक्पटुता है? क्या यही मनुष्य की विलक्षण प्रतिभाएँ है? बिलकुल नहीं! विश्लेषण के बिना, किसी को नहीं पता होगा कि उसकी नसों में किस प्रकार का रक्त बह रहा है, वे इस बात से अनभिज्ञ होंगे कि उनके कितने हृदय हैं, या कितने मस्तिष्क हैं, और उन सभी को लगेगा कि वे परमेश्वर को जानते हैं। क्या वे नहीं जानते हैं कि उनके ज्ञान में अभी भी विरोध निहित है? कोई आश्चर्य नहीं कि परमेश्वर कहता है कि, "मानवजाति में प्रत्येक व्यक्ति को मेरे आत्मा के अवलोकन को स्वीकार करना चाहिए, अपने हर वचन और कार्य की बारीकी से जाँच करनी चाहिए, और इसके अलावा, मेरे चमत्कारिक कर्मों पर विचार करना चाहिए।" इससे यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर के वचन निरुद्देश्य और आधारहीन नहीं हैं। परमेश्वर ने कभी भी किसी भी मनुष्य के साथ अन्यायपूर्ण ढंग से व्यवहार नहीं किया है; यहाँ तक कि अय्यूब को भी, उसके समस्त विश्वास के होते हुए भी, क्षमा नहीं किया गया था—उसका भी विश्लेषण किया गया था, और उसे अपनी शर्म से छुपने के लिए कहीं का नहीं छोड़ा था। और आज के लोगों के बारे में तो कुछ कहना ही नहीं है। इस प्रकार, परमेश्वर तत्काल पूछता है: "पृथ्वी पर राज्य के आगमन के समय तुम लोग कैसा महसूस करते हो?" परमेश्वर के प्रश्न के मायने कम हैं, किन्तु यह लोगों को व्याकुल कर देता है: हम क्या महसूस करते हैं? हम अभी भी नहीं जानते हैं कि राज्य कब आएगा, तो हम भावनाओं की बात कैसे कर सकते हैं? इससे अधिक और क्या, हमें कोई भनक नहीं है। यदि मुझे कुछ महसूस करना पड़ता, तो मैं "चकित" होता, और कुछ नहीं। वास्तव में, यह प्रश्न परमेश्वर के वचनों का उद्देश्य नहीं है। सबसे अधिक, "जब मेरे पुत्र एवं लोग मेरे सिंहासन की ओर वापिस प्रवाहित होते हैं, तो मैं महान सफेद सिंहासन के सम्मुख औपचारिक रूप से न्याय आरम्भ करता हूँ," यह अकेला वाक्य समस्त आध्यात्मिक क्षेत्र के घटनाक्रमों का सार निकालता है। कोई भी नहीं जानता है कि इस समय के दौरान परमेश्वर आध्यात्मिक क्षेत्र में क्या करना चाहता है, और जब परमेश्वर इन वचनों को कहता है तो केवल उसके बाद ही लोगों में थोड़ी सी जागृति आती है। क्योंकि परमेश्वर के कार्य के भिन्न-भिन्न कदम हैं, पूरे विश्व में परमेश्वर का कार्य भी भिन्न होता है। इस समय के दौरान, परमेश्वर मुख्यतः परमेश्वर के पुत्रों और लोगों को बचाता है, जिसका मतलब है कि, स्वर्गदूतों द्वारा चरवाही किए गए, परमेश्वर के पुत्र और लोग निपटाया और टूटा जाना स्वीकार करना शुरू करते हैं, वे आधिकारिक रूप से अपने विचारों और अवधारणाओं को दूर करना, और दुनिया के तरीकों से अलविदा कहना शुरू करते हैं; दूसरे शब्दों में, परमेश्वर द्वारा बोला गया "महान सफेद सिंहासन के सम्मुख न्याय" आधिकारिक रूप से आरंभ होता है। क्योंकि यह परमेश्वर का न्याय है, इसलिए परमेश्वर अपनी वाणी बोलनी ही चाहिए—और यद्यपि विषयवस्तु भिन्न होती है, फिर भी उद्देश्य हमेशा एक समान होता है। आज, जिस स्वर से परमेश्वर बोलता है उससे आँकने पर, ऐसा लगता है कि उसके वचन लोगों के एक निश्चित समूह पर निर्देशित है। वास्तव में, सबसे ज़्यादा, ये वचन समस्त मानवजाति की प्रकृति को संबोधित करते हैं। वे सीधे मनुष्य की रीढ़ की हड्डी पर लगते हैं, वे मनुष्यों की भावनाओं को नहीं छोड़ते हैं, और वे उसके सार की समग्रता को प्रकट करते हैं, कुछ भी नहीं छोड़ते हैं, कुछ भी नहीं जाने देते हैं। आज से आरंभ करके, परमेश्वर आधिकारिक रूप से मनुष्य के असली चेहरे को प्रकट करता है, और इस प्रकार "अपनी आत्मा की आवाज़ को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जारी करता है।" अंततः जो प्रभाव प्राप्त होता है वह है "मेरे वचनों के माध्यम से, मैं उनमें से सभी लोगों और चीज़ों को धो कर साफ कर दूँगा जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर हैं, ताकि भूमि अब और अधिक गंदी और व्यभिचारी नहीं हो, बल्कि एक पवित्र राज्य हो।" ये वचन राज्य का भविष्य प्रस्तुत करते हैं, जो कि पूरी तरह से मसीह के राज्य का है, ठीक जैसे कि परमेश्वर ने कहा था, "सब अच्छा फल है, सभी मेहनती किसान हैं।" स्वाभाविक रूप से, यह पूरे विश्व में घटित होगा, और सिर्फ चीन तक सीमित नहीं है।
जब परमेश्वर बोलना और कार्य करना आरंभ करता है केवल तभी लोगों को अपनी धारणाओं में उसके बारे में थोड़ा ज्ञान होता है। आरंभ में, यह ज्ञान केवल उनकी धारणाओं में ही विद्यमान होता है, किन्तु जैसे-जैसे समय बीतता है, लोगों को यह महसूस होना शुरू हो जाता है कि उनके स्वयं के विचार अत्यधिक बेकार और अनुचित हैं; इस प्रकार, वे उन सब पर विश्वास करने लगते हैं जो परमेश्वर कहता है, इस हद तक कि वे "अपनी चेतना में व्यवहारिक परमेश्वर के लिए स्थान बनाते हैं।" यह केवल उनकी चेतना में है कि लोगों के पास व्यावहारिक परमेश्वर के लिए जगह है। वास्तविकता में, हालाँकि, वे परमेश्वर को नहीं जानते, और खोखले वचनों के अलावा और कुछ नहीं बोलते हैं। फिर भी अतीत की तुलना में, उन्होंने बहुत अधिक प्रगति की है—यद्यपि वे अभी भी व्यावहारिक परमेश्वर स्वयं से बहुत दूर हैं। क्यों परमेश्वर हमेशा कहता है, "प्रत्येक दिन मैं लोगों के अनवरत प्रवाह के बीच चलता हूँ, और प्रत्येक दिन मैं प्रत्येक व्यक्ति के भीतर कार्य करता हूँ"? परमेश्वर जितना अधिक ऐसी बातें कहता है, लोग उतना ही अधिक आज के व्यावहारिक परमेश्वर स्वयं के कार्यों से उनकी तुलना कर सकते हैं, और इसलिए वे वास्तविकता में व्यावहारिक परमेश्वर को बेहतर ढंग से जान सकते हैं। क्योंकि परमेश्वर के वचनों को देह के परिप्रेक्ष्य से बोला जाता है, और मानवजाति की भाषा का उपयोग करके कहा जाता है, इसलिए लोग उन्हें भौतिक चीज़ों से माप कर परमेश्वर के वचनों की सराहना करने में सक्षम होते हैं, और फलस्वरूप एक अधिक बड़ा प्रभाव प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त, बार-बार परमेश्वर लोगों के दिलों में "स्वयं" की छवि की औ�� वास्तविकता में "स्वयं" की बात करते हैं, जिससे लोग अपने हृदय में परमेश्वर की छवि को शुद्ध करने के लिए और अधिक इच्छुक हो जाते हैं, और इस प्रकार व्यावहारिक परमेश्वर स्वयं को जानने और उसके साथ संलग्न होने के इच्छुक हो जाते हैं। यह परमेश्वर के वचनों की बुद्धि है। परमेश्वर जितना अधिक ऐसी बातें कहता है, उतना ही अधिक लोगों के परमेश्वर के ज्ञान को लाभ मिलता है, और इस लिए परमेश्वर कहता है, "यदि मैं देहधारी नहीं होता, तो मनुष्य ने मुझे कभी भी नहीं जाना होता, और यहाँ तक कि उसने मुझे जान भी लिया होता, तो क्या इस प्रकार का ज्ञान अभी भी एक धारणा नहीं होता?" निस्संदेह, यदि लोगों को अपनी धारणाओं के अनुसार परमेश्वर को जानना अपेक्षित होता, तो यह उनके लिए आसान होता, वे आराम से और खुश होते, और इस प्रकार परमेश्वर हमेशा के लिए अस्पष्ट होता, और लोगों के हृदयों में व्यावहारिक नहीं होता, जिससे साबित होता कि शैतान, न कि परमेश्वर, पूरे ब्रह्मांड पर प्रभुत्व रखता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचन कि "मैंने अपनी सामर्थ्य वापस ले ली है" हमेशा के लिए खोखले रह जाते।
जब दिव्यता सीधे कार्य करना शुरू करती है तभी वह समय भी होता है कि राज्य आधिकारिक रूप से मनुष्य की दुनिया में उतरता है। किन्तु यहाँ जो कहा गया है वह है कि राज्य मनुष्य के बीच उतरता है, यह नहीं कि राज्य मनुष्य के बीच रूप लेता है—और इस प्रकार आज जो बोला जाता है वह राज्य का निर्माण है, और न कि यह कैसे रूप लेता है। क्यों परमेश्वर हमेशा कहता है कि "सभी चीज़ें मौन हो जाती हैं"? क्या ऐसा हो सकता है कि सभी चीजें रुक कर स्थिर हो जाती हैं? क्या ऐसा हो सकता है कि बड़े-बड़े पहाड़ सचमुच मौन हो जाते हैं? तो लोगों को इस बात की कोई समझ क्यों नहीं है? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर का वचन गलत है? या परमेश्वर अतिशयोक्ति कर रहा है? क्योंकि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह एक निश्चित वातावरण में किया जाता है, इसलिए कोई भी इसके बारे में नहीं जानता है, या इसे अपनी स्वयं की आँखों से देखने में सक्षम नहीं है, और लोग बस इतना कर सकते हैं कि वेपरमेश्वर को बोलते हुए सुनें। क्योंकि जिस महिमा के साथ परमेश्वर कार्य करता है उसके कारण, जब परमेश्वर आता है, तो ऐसा लगता है मानो कि स्वर्ग में और पृथ्वी पर भारी परिवर्तन हुआ है; और परमेश्वर को, ऐसा प्रतीत होता है कि सभी इस क्षण को देख रहे हैं। आज, तथ्य अभी तक ज्ञात नहीं हुए हैं। लोगों ने परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ के केवल छोटे से हिस्से को ही सीखा है। सही अर्थ उस समय की प्रतीक्षा करत है जब वे अपनी धारणाओं को शुद्ध करते हैं; केवल तभी वे अवगत हो जाएँगे कि देहधारी परमेश्वर आज पृथ्वी पर और स्वर्ग में क्या कर रहा है। चीन में परमेश्वर के लोगों में न केवल बड़े लाल अजगर का जहर है। इसलिए, उनमें बड़े लाल अजगर की प्रकृति भी अधिक प्रचुर मात्रा में, और अधिक स्पष्ट रूप से, प्रकट होती है। किन्तु परमेश्वर इस बारे में प्रत्यक्ष रूप से बात नहीं करता है, बड़े लाल अजगर के जहर के बारे में मात्र थोड़ा सा उल्लेख करता है। इस तरह, वह प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के दाग़ों को उजागर नहीं करता है, जो मनुष्य की प्रगति के लिए अधिक लाभकारी है। बड़े लाल अजगर के सपोले दूसरों के सामने बड़े लाल अजगर के वंशज कहलाना पसंद नहीं करते हैं। ऐसा लगता है मानो कि "बड़ा लाल अजगर" ये शब्द उन पर शर्मिंदगी लाता है; उनमें से कोई भी इन शब्दों के बारे में बात करने को तैयार नहीं है, और इस प्रकार परमेश्वर केवल यह कहता है, "मेरे कार्य का यह चरण मुख्य रूप से तुम लोगों के ऊपर केन्द्रित है, और चीन में मेरे देहधार��� के महत्व का एक पहलू है।" अधिक सटीक रूप से, परमेश्वर मुख्यतः बड़े लाल अजगर के सपोलों के मूलप्रतिनिधियों को जीतने के लिए आता है, जो कि चीन में परमेश्वर के देहधारण का महत्व है।
"जब मैं व्यक्तिगत रूप से मनुष्यों के बीच आता हूँ, तो स्वर्गदूत साथ-साथ चरवाही का कार्य आरम्भ कर देते हैं।" वास्तव में, इसे अक्षरशः नहीं लिया जाता है कि जब स्वर्गदूत सभी लोगों के बीच अपना कार्य शुरू करते हैं तभी परमेश्वर का आत्मा मनुष्य की दुनिया में आता है। इसके बजाय, कार्य के दो अंश—दिव्यता का कार्य और स्वर्गदूतों की चरवाही—साथ-साथ किए जाते हैं। इसके बाद, परमेश्वर स्वर्गदूतों की चरवाही के बारे में थोड़ी बात करता है। जब वह कहता है कि "सभी पुत्र और लोग न केवल परीक्षाओं और चरवाही को प्राप्त करते हैं, बल्कि अपनी स्वयं की आँखों से सभी प्रकार के दर्शनों को देखने में समर्थ भी हो जाते हैं," तो अधिकांश लोगों को "दर्शन" शब्द के बारे में बहुत सी कल्पनाएँ होती हैं। दर्शन लोगों की कल्पनाओं में अलौकिक घटनाओं को संदर्भित करता है। किन्तु कार्य की विषय-वस्तु व्यावहारिक परमेश्वर स्वयं का ज्ञान बना रहता है। दर्शन वे साधन हैं जिनके द्वारा स्वर्गदूत कार्य करते हैं। वे लोगों को स्वर्गदूतों के अस्तित्व का बोध होने देते हुए, उन्हें भावनाएँ या सपने दे सकते हैं। किन्तु स्वर्गदूत मनुष्यों के लिए अदृश्य रहते हैं। जिस तरीके से वे परमेश्वर के पुत्रों और लोगों के बीच कार्य करते हैं, वह उन्हें प्रत्यक्ष रूप से प्रबुद्ध और रोशन करने के लिए है, जिसमें उनसे निपटना और उनका टूटना जुड़ा होता है। वे शायद ही कभी धर्मोपदेश देते हैं। स्वाभाविक रूप से, लोगों के बीच समागम तो अपवाद है; यही चीन के बाहर के देशों में हो रहा है। परमेश्वर के वचनों में समस्त मानवजाति की रहने की परिस्थितियों का प्रकटन सम्मिलित है—स्वाभाविक रूप से, यह मुख्य रूप से बड़े लाल अजगर के सपोलों पर निर्देशित है। समस्त मानवजाति की विभिन्न आध्यात्मिक अवस्थाओ में से, परमेश्वर उन का चयन करता है जो आदर्श के रूप में काम आने के लिए प्रतिनिधिक हैं। इस प्रकार, परमेश्वर के वचन लोगों को नग्न कर देते हैं, और उन्हें कोई शर्म नहीं आती है, या उनके पास चमकते हुए प्रकाश से छिपने का कोई समय नहीं होता है, और वे अपने ही खेल में पराजित हो जाते हैं। मनुष्य के कई व्यवहार बहुत सी कलाकृतियाँ हैं, जिन्हें परमेश्वर ने प्राचीन काल से आज तक बनाया है, और वह आज से कल तक बनाएगा। वह जो कुछ भी चित्रित करता है वह सब मनुष्य की कुरूपता है: कुछ लोग, अपनी आँखों की दृष्टि खो जाने के कारण दुःखी प्रतीत होते हुए अंधेरे में रोते हैं, कुछ हँसते हैं, कुछ को बड़ी-बड़ी लहरों के थपेड़े पड़ते हैं, कुछ लहरदार पहाड़ी सड़कों पर चलते हैं, कुछ लोग, मात्र धनुष-टंकार से चौंके हुए पक्षी की तरह, पहाड़ों में जंगली जानवरों द्वारा खाये जाने से भयभीत, काँपते हुए, विशाल बीहड़ के बीच खोज करते हैं। परमेश्वर के हाथों में, ये बहुत से बदसूरत व्यवहार मार्मिक, सजीव झाँकियाँ बन जाते हैं, उनमें से अधिकाँश देखने में बहुत भयानक होते हैं, या अन्यथा लोगों के रोंगटे खड़े करने और उन्हें व्यग्र और भ्रमित करने के लिए पर्याप्त होते हैं। परमेश्वर की नज़रों में, मनुष्य में जो कुछ भी अभिव्यक्त होता है वह केवल कुरूपता है, और भले ही यह करुणा उत्पन्न कर सकती है, फिर भी यह कुरूपता है। परमेश्वर से मनुष्य के मतभेद का बिंदुपथ यह है कि मनुष्य की कमजोरी दूसरों के प्रति दया दिखाने की उसकी प्रवृत्ति में निहित है। हालाँकि, परमेश्वर हमेशा मनुष्य के प्रति एकसा ही रहा है, जिसका अर्थ है कि उसका हमेशा एकसा दृष्टिकोण था। वह हमेशा ऐसा दयावान नहीं है जैसा कि लोग कल्पना करते हैं, एक अनुभवी माँ की तरह जिसके बच्चे हमेशा उसके मन में सबसे आगे रहते हैं। वास्तविकता में, यदि परमेश्वर ने बड़े लाल अजगर को जीतने के लिए कई तरीकों को काम में नहीं लाना चाहा होता, तो ऐसा हो ही नहीं सकता था कि वह स्वयं को मनुष्य की सीमाओं के अधीन करने देते हुए, इस तरह के अपमानों के प्रति आत्मसमर्पण करता। परमेश्वर की प्रकृति के अनुसार, लोग जो कुछ भी करते और कहते हैं वह सब परमेश्वर के कोप को भड़काता है, और उन्हें ताड़ित किया जाना चाहिए। परमेश्वर की नज़रों में, उनमें से एक भी मानक पर खरा नहीं उतरता है, और प्रत्येक परमेश्वर के हमलों का लक्ष्य है। चीन में परमेश्वर के कार्य के सिद्धांतों के कारण, और, इसके अलावा, बड़े लाल अजगर की प्रकृति के कारण, और इस कारण भी कि चीन बड़े लाल अजगर का देश है, और ऐसी भूमि है जिसमें देहधारी परमेश्वर रहता है, परमेश्वर को अपने क्रोध को निगल जाना होगा और बड़े लाल अजगर के सभी सपोलों को जीत लेना होगा; फिर भी वह बड़े लाल अजगर के सपोलों से हमेशा घृणा करता रहेगा, अर्थात् वह बड़े लाल अजगर से आने वाली सभी चीजों से हमेशा घृणा करेगा—और यह कभी भी नहीं बदलेगा।
किसी को भी कभी भी परमेश्वर के किसी भी कार्य के बारे में पता नहीं चला है, न ही उसके कार्यों को कभी भी किसी भी चीज़ के द्वारा देखा गया है। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर सिय्योन में वापस आया, तो इस बारे में कौन जानता था? इस प्रकार, "मैं चुपचाप मनुष्यों के बीच आता हूँ, और चुपचाप चला जाता हूँ। क्या किसी ने कभी मुझे देखा है?" जैसे वचन दर्शाते हैं कि मनुष्य में निस्संदेह आध्यात्मिक क्षेत्र की घटनाओं को स्वीकार करने के लिए योग्यताओं का अभाव है। अतीत में, सिय्योन में लौटने के दौरान, परमेश्वर ने कहा था "सूर्य तेजस्वी है, चंद्रमा चमकदार है"। क्योंकि लोग अभी भी सिय्योन में परमेश्वर की वापसी के साथ व्यस्त हैं—क्योंकि वे अभी तक इसे भूले नहीं हैं—इसलिए, लोगों की धारणाओं के अनुरूप होने के लिए, परमेश्वर "सूर्य तेजस्वी है, चंद्रमा चमकदार है" वचनों को सीधे कहता है। परिणामस्वरूप, जब लोगों की धारणाओं को परमेश्वर के वचनों से चोट पहुँचती है, तो वे देखते हैं कि परमेश्वर के कार्य बहुत चमत्कारिक हैं, और देखते हैं कि उसके वचन गहरे और अथाह हैं, और सभी के लिए अबूझनीय हैं; इसलिए, वे इस मामले को पूरी तरह से अलग रख देते हैं, और अपनी आत्माओं में थोड़ी स्पष्टता महसूस करते हैं, मानो कि परमेश्वर पहले से ही सिय्योन में लौट आया हो, और इसलिए लोग इस मामले पर अधिक ध्यान नहीं देते हैं। तब से, वे परमेश्वर के वचनों को एक हृदय और एक मन से स्वीकार करते हैं, तथा अब और झुँझलाते नहीं हैं कि परमेश्वर के सिय्योन में लौटने के बाद तबाही आएगी। केवल तभी लोगों के लिए, परमेश्वर के वचनों पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित करते हुए, और उन्हें कुछ और विचार करने की इच्छा के बिना छोड़ते हुए, परमेश्वर के वचनों को स्वीकार करना आसान है।
                                                 स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
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परमेश्वर के कथन "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है" What Is Judgement of the Last Days?
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परमेश्वर के कथन "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है" What Is Judgement of the Last Days?
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "अंत के दिनों में, मसीह मनुष्य को सिखाने के लिए विभिन्न प्रकार की सच्चाइयों का उपयोग करता है, मनुष्य के सार को उजागर करता है, और उसके वचनों और कर्मों का विश्लेषण करता है। इन वचनों में विभिन्न सच्चाइयों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर का आज्ञापालन करना चाहिए, हर व्यक्ति जो परमेश्वर के कार्य को मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मानवता से, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और उसके स्वभाव इत्यादि को जीना चाहिए। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खासतौर पर, वे वचन जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार से परमेश्वर का तिरस्कार करता है इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार से मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरूद्ध दुश्मन की शक्ति है। अपने न्याय का कार्य करने में, परमेश्वर केवल कुछ वचनों से ही मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता है; वह लम्बे समय तक इसे उजागर करता है, इससे निपटता है, और इसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने की इन विधियों, निपटने, और काट-छाँट को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे मनुष्य बिल्कुल भी धारण नहीं करता है। केवल इस तरीके की विधियाँ ही न्याय समझी जाती हैं; केवल इसी तरह के न्याय के माध्यम से ही मनुष्य को वश में किया जा सकता है और परमेश्वर के प्रति समर्पण में पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इसके अलावा मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य जिस चीज़ को उत्पन्न करता है वह है परमेश्वर के असली चेहरे और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता के सत्य के बारे में मनुष्य में समझ। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा की, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य की, और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त करने देता है जो उसके लिए अबोधगम्य हैं। यह मनुष्य को उसके भ्रष्ट सार तथा उसकी भ्रष्टता के मूल को पहचानने और जानने, साथ ही मनुष्य की कुरूपता को खोजने देता है। ये सभी प्रभाव न्याय के कार्य के द्वारा निष्पादित होते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त ���रने का कार्य है जिनका उस पर विश्वास है।"
चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।
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