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#MuktiBodh_Part190
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 363-364
कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को गीता से ही प्रश्न तथा उत्तर देकर सत्य ज्ञान समझाया। उपरोक्त वाणी सँख्या 1 में गीता अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 2 श्लोक 12 वाला वर्णन बताया जिसमें गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। वाणी सँख्या 2 में गीता अध्याय 15 श्लोक 17 वाला वर्णन बताया है। वाणी सँख्या 3 में गीता अध्याय 4 श्लोक 34 वाला ज्ञान बताया है। वाणी सँख्या 4 में गीता अध्याय 18 श्लोक 62ए 66 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 वाला वर्णन बताया है। वाणी सँख्या 5 में गीता अध्याय 18 श्लोक 64 का वर्णन है जिसमें काल कहता है कि मेरा ईष्ट देव भी वही है। वाणी सँख्या 6 में गीता अध्याय 8 श्लोक 13 तथा अध्याय 17 श्लोक 23 वाला ज्ञान है। आगे की वाणियों में कबीर परमेश्वर जी ने अपने आपको छुपाकर अपने ही
विषय में बताया है।
◆ धर्मदास वचन
विष्णु पूर्ण परमात्मा हम जाना।
जिन्द निन्दा कर हो नादाना।।
पाप शीश तोहे लागे भारी।
देवी देवतन को देत हो गारि।।
◆ जिन्दा (कबीर जी) वचन
जे यह निन्दा है भाई।
यह तो तोर गीता बतलाई।।
गीता लिखा तुम मानो साचा।
अमर विष्णु है कहा लिख राखा।।
तुम पत्थर को राम बताओ।
लडूवन का भोग लगाओ।।
कबहु लड्डू खाया पत्थर देवा।
या काजू किशमिश पिस्ता मेवा।।
पत्थर पूज पत्थर हो गए भाई।
आखें देख भी मानत नाहीं।।
ऐसे गुरू मिले अन्याई।
जिन मूर्ति पूजा रीत चलाई।।
इतना कह जिन्द हुए अदेखा।
धर्मदास मन किया विवेका।।
◆ धर्मदास वचन
यह क्या चेटक बिता भगवन।
कैसे मिटे आवा गमन।।
गीता फिर देखन लागा।
वही वृतान्त आगे आगा।।
एक एक श्लोक पढ़ै और रौवै।
सिर चक्रावै जागै न सोवै।।
रात पड़ी तब न आरती कीन्हा।
झूठी भक्ति में मन दीन्हा।।
ना मारा ना जीवित छोड़ा।
अधपका बना जस फोड़ा।।
यह साधु जे फिर मिल जावै।
सब मानू जो कछु बतावै।।
भूल के विवाद करूं नहीं कोई। आधीनी से सब जानु सोई।।
उठ सवेरे भोजन लगा बनाने।
लकड़ी चुल्हा बीच जलाने।।
जब लकड़ी जलकर छोटी होई। पाछलो भाग में देखा अनर्थ जोई।।
चटक-चटक कर चींटी मरि हैं।
अण्डन सहित अग्न में जर हैं।।
तुरंत आग बुझाई धर्मदासा।
पाप देख भए उदासा।।
ना अन्न खाऊँ न पानी पीऊँ।
इतना पाप कर कैसे जीऊँ।।
कराऊँ भोजन संत कोई पावै।
अपना पाप उतर सब जावै।।
लेकर थार चले धर्मनि नागर।
वृक्ष तले बैठे सुख सागर।।
साधु भेष कोई और बनाया।
धर्मदास साधु नेड़े आया।।
रूप और पहचान न पाया।
थाल रखकर अर्ज लगाया।।
भोजन करो संत भोग लगाओ।
मेरी इच्छा पूर्ण कराओ।।
संत कह आओ धर्मदासा।
भूख लगी है मोहे खासा।।
जल का छींटा भोजन पे मारा।
चींटी जीवित हुई थाली कारा।।
तब ही रूप बनाया वाही।
धर्मदास देखत लज्जाई।।
कहै जिन्दा तुम महा अपराधी।
मारे चीटी भोजन में रांधी।।
चरण पकड़ धर्मनि रोया।
भूल में जीवन जिन्दा मैं खोया।।
जो तुम कहो मैं मानूं सबही।
वाद विवाद अब नहीं करही।।
और कुछ ज्ञान अगम सुनाओ।
कहां वह संत वाका भेद बताओ।।
◆ जिन्द (कबीर) वचन
तुम पिण्ड भरो और श्राद्ध कराओ। गीता पाठ सदा चित लाओ।।
भूत पूजो बनोगे भूता।
पितर पूजै पितर हुता।।
देव पूज देव लोक जाओ।
मम पूजा से मोकूं पाओ।।
यह गीता में काल बतावै।
जाकूं तुम आपन इष्ट बतावै।।
(गीता अ. 9 व 25)
इष्ट कह करै नहीं जैसे।
सेठ जी मुक्ति पाओ कैसे।।
◆ धर्मदास वचन
हम हैं भक्ति के भूखे।
गुरू बताए मार्ग कभी नहीं चुके।।
हम का जाने गलत और ठीका।
अब वह ज्ञान लगत है फीका।।
तोरा ज्ञान महा बल जोरा।
अज्ञान अंधेरा मिटै है मोरा।।
हे जिन्दा तुम मोरे राम समाना।
और विचार कुछ सुनाओ ज्ञाना।।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#MuktiBodh_Part195
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 372
◆ जिन्दा वचन
हो धर्मनि जो पूछेहु मोहीं।
सुनहुँ सुरति धरि कहो मैं तोही।।
जिन्दा नाम अहै सुनु मोरा।
जिन्दा भेष खोज किहँ तोरा।।
हम सतगुरू कर सेवक आहीं। सतगुरू संग हम सदा रहाहीं।।
सत्य पुरूष वह सतगुरू आहीं। सत्यलोक वह सदा रहाहीं।।
सकल जीव के रक्षक सोई।
सतगुरू भक्ति काज जिव होई।।
सतगुरू सत्यकबीर सो आहीं।
गुप्त प्रगट कोइ चीन्है नाहीं।।
सतगुरू आ जगत तन धारी।
दासातन धरि शब्द पुकारी।।
काशी रहहिं परखि हम पावा। सत्यनाम उन मोहि दृढ़ावा।।
जम राजा का सब छल चीन्हा।
निरखि परखिभै यम सो भीना।।
तीन लोक जो काल सतावै।
ताको ही सब जग ध्यान लगावै।।
ब्रह्म देव जाकूँ बेद बखानै।
सोई है काल कोइ मरम न जानै।।
तिन्ह के सुत आहि त्रिदेवा।
सब जग करै उनकी सेवा।।
त्रिगुण जाल यह जग फन्दाना।
जाने न अविचल पुरूष पुराना।।
जाकी ईह जग भक्ति कराई।
अन्तकाल जिव को सो धरि खाई।।
सबै जीव सतपुरूषके आहीं।
यम दै धोख फांसा ताहीं।।
प्रथमहि भये असुर यमराई।
बहुत कष्ट जीवन कहँ लाई।।
दूसरि कला काल पुनि धारा।
धरि अवतार असुर सँघारा।।
जीवन बहु विधि कीन्ह पुकारा।
रक्षा कारण बहु करै पुकारा।।
जिव जानै यह धनी हमारा।
दे विश्वास पुनि धरै अवतारा।।
प्रभुता देखि कीन्ह विश्वासा।
अन्तकाल पुनि करै निरासा।।
◆ (ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 24)
कालै भेष दयाल बनावा।
दया दृढ़ाय पुनि घात करावा।।
द्वापर देखहु कृष्ण की रीती।
धर्मनि परिखहु नीति अनीती।।
अर्जून कहँ तिन्ह दया दृढावा।
दया दृढाय पुनि घात करावा।।
गीता पाठ कै अर्थ बतलावा।
पुनि पाछे बहु पाप लगावा।।
बन्धु घातकर दोष लगावा।
पाण्डो कहँ बहु काल सतावा।।
भेजि हिमालय तेहि गलाये।
छल अनेक कीन्ह यमराये।।
पतिव्रता वृन्दा व्रत टारा।
ताके पाप पहने औतारा।।
बलिते सो छल कीन्ह बहुता।
पुण्य नसाय कीन्ह अजगूता।।
छल बुद्वि दीन्हे ताहिं पताला।
कोई न लखै प्रंपची काला।।
बावन सरूप होय प्रथम देखाये। पृथिवी लीन्ह पुनि स्वस्ति कराये।।
स्वस्ति कराइ तबै प्रगटाना।
दीर्घरूप देखि बलि भय माना।।
तीनि पग तीनौ पुर भयऊ।
आधा पाँव नृप दान न दियऊ।।
देहु पुराय नृप आधा पाऊँ। तो
नहिं तव पुण्य प्रभाव नसाऊँ।।
तेहि कारण पीठ जगह दीन्हा।
अन्धा जीव छल प्रगट न चीन्हा।।
तब लै पीठ नपय तेहि दीन्हा।
हरि ले ताहि पतालै कीन्हा।।
यह छल जीव देखि नहि चीन्हा ।
कहै मुक्ति हरि हमको कीन्हा।।
और हरिचन्द का सुन लेखा।
धर्मदास चित करो विवेका।।
स्वर्ग के धोखे नरकही जाहीं।
जीव अचेत यम छल चीन्है नाहीं।।
पाण्डव सम की कृष्ण कूँ प्यारे।
सो ले नरक मेंह डारे।।
◆(ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 25)
यती सती त्यागी भयऊ।
सब कहँ काल बिगुचन लयऊ।।
सो वैकुंठ चाहत नर प्रानी।
यह यम छल बिरले पहिचानी।।
जस जो कर्म करै संसारा।
तस भुगतै चौरासी धारा।।
मानुष जन्म बडे़ पुण्य होई।
सो मानुष तन जात बिगोई।।
नाम विना नहिं छूटे कालू।
बार बार यम नर्कहिं घालू।।
नरक निवारण नाम जो आही।
सुर नर मुनि जानत कोइ नाहीं।।
ताते यम फिर फिर भटकावै।
नाना योनिन में काल सतावै।।
विरलै सार शब्द पहिचाने।
सतगुरू मिले सतनाम समाने।।
ऐसे परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को काल जाल से छुड़वाने के लिए कई झटके दिए। अब दीक्षा मंत्र देने का प्रकरण पढ़ें।
क्रमशः_______________
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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 372
◆ जिन्दा वचन
हो धर्मनि जो पूछेहु मोहीं।
सुनहुँ सुरति धरि कहो मैं तोही।।
जिन्दा नाम अहै सुनु मोरा।
जिन्दा भेष खोज किहँ तोरा।।
हम सतगुरू कर सेवक आहीं। सतगुरू संग हम सदा रहाहीं।।
सत्य पुरूष वह सतगुरू आहीं। सत्यलोक वह सदा रहाहीं।।
सकल जीव के रक्षक सोई।
सतगुरू भक्ति काज जिव होई।।
सतगुरू सत्यकबीर सो आहीं।
गुप्त प्रगट कोइ चीन्है नाहीं।।
सतगुरू आ जगत तन धारी।
दासातन धरि शब्द पुकारी।।
काशी रहहिं परखि हम पावा। सत्यनाम उन मोहि दृढ़ावा।।
जम राजा का सब छल चीन्हा।
निरखि परखिभै यम सो भीना।।
तीन लोक जो काल सतावै।
ताको ही सब जग ध्यान लगावै।।
ब्रह्म देव जाकूँ बेद बखानै।
सोई है काल कोइ मरम न जानै।।
तिन्ह के सुत आहि त्रिदेवा।
सब जग करै उनकी सेवा।।
त्रिगुण जाल यह जग फन्दाना।
जाने न अविचल पुरूष पुराना।।
जाकी ईह जग भक्ति कराई।
अन्तकाल जिव को सो धरि खाई।।
सबै जीव सतपुरूषके आहीं।
यम दै धोख फांसा ताहीं।।
प्रथमहि भये असुर यमराई।
बहुत कष्ट जीवन कहँ लाई।।
दूसरि कला काल पुनि धारा।
धरि अवतार असुर सँघारा।।
जीवन बहु विधि कीन्ह पुकारा।
रक्षा कारण बहु करै पुकारा।।
जिव जानै यह धनी हमारा।
दे विश्वास पुनि धरै अवतारा।।
प्रभुता देखि कीन्ह विश्वासा।
अन्तकाल पुनि करै निरासा।।
◆ (ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 24)
कालै भेष दयाल बनावा।
दया दृढ़ाय पुनि घात करावा।।
द्वापर देखहु कृष्ण की रीती।
धर्मनि परिखहु नीति अनीती।।
अर्जून कहँ तिन्ह दया दृढावा।
दया दृढाय पुनि घात करावा।।
गीता पाठ कै अर्थ बतलावा।
पुनि पाछे बहु पाप लगावा।।
बन्धु घातकर दोष लगावा।
पाण्डो कहँ बहु काल सतावा।।
भेजि हिमालय तेहि गलाये।
छल अनेक कीन्ह यमराये।।
पतिव्रता वृन्दा व्रत टारा।
ताके पाप पहने औतारा।।
बलिते सो छल कीन्ह बहुता।
पुण्य नसाय कीन्ह अजगूता।।
छल बुद्वि दीन्हे ताहिं पताला।
कोई न लखै प्रंपची काला।।
बावन सरूप होय प्रथम देखाये। पृथिवी लीन्ह पुनि स्वस्ति कराये।।
स्वस्ति कराइ तबै प्रगटाना।
दीर्घरूप देखि बलि भय माना।।
तीनि पग तीनौ पुर भयऊ।
आधा पाँव नृप दान न दियऊ।।
देहु पुराय नृप आधा पाऊँ। तो
नहिं तव पुण्य प्रभाव नसाऊँ।।
तेहि कारण पीठ जगह दीन्हा।
अन्धा जीव छल प्रगट न चीन्हा।।
तब लै पीठ नपय तेहि दीन्हा।
हरि ले ताहि पतालै कीन्हा।।
यह छल जीव देखि नहि चीन्हा ।
कहै मुक्ति हरि हमको कीन्हा।।
और हरिचन्द का सुन लेखा।
धर्मदास चित करो विवेका।।
स्वर्ग के धोखे नरकही जाहीं।
जीव अचेत यम छल चीन्है नाहीं।।
पाण्डव सम की कृष्ण कूँ प्यारे।
सो ले नरक मेंह डारे।।
◆(ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 25)
यती सती त्यागी भयऊ।
सब कहँ काल बिगुचन लयऊ।।
सो वैकुंठ चाहत नर प्रानी।
यह यम छल बिरले पहिचानी।।
जस जो कर्म करै संसारा।
तस भुगतै चौरासी धारा।।
मानुष जन्म बडे़ पुण्य होई।
सो मानुष तन जात बिगोई।।
नाम विना नहिं छूटे कालू।
बार बार यम नर्कहिं घालू।।
नरक निवारण नाम जो आही।
सुर नर मुनि जानत कोइ नाहीं।।
ताते यम फिर फिर भटकावै।
नाना योनिन में काल सतावै।।
विरलै सार शब्द पहिचाने।
सतगुरू मिले सतनाम समाने।।
ऐसे परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को काल जाल से छुड़वाने के लिए कई झटके दिए। अब दीक्षा मंत्र देने का प्रकरण पढ़ें।
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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 363-364
कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को गीता से ही प्रश्न तथा उत्तर देकर सत्य ज्ञान समझाया। उपरोक्त वाणी सँख्या 1 में गीता अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 2 श्लोक 12 वाला वर्णन बताया जिसमें गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। वाणी सँख्या 2 में गीता अध्याय 15 श्लोक 17 वाला वर्णन बताया है। वाणी सँख्या 3 में गीता अध्याय 4 श्लोक 34 वाला ज्ञान बताया है। वाणी सँख्या 4 में गीता अध्याय 18 श्लोक 62ए 66 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 वाला वर्णन बताया है। वाणी सँख्या 5 में गीता अध्याय 18 श्लोक 64 का वर्णन है जिसमें काल कहता है कि मेरा ईष्ट देव भी वही है। वाणी सँख्या 6 में गीता अध्याय 8 श्लोक 13 तथा अध्याय 17 श्लोक 23 वाला ज्ञान है। आगे की वाणियों में कबीर परमेश्वर जी ने अपने आपको छुपाकर अपने ही
विषय में बताया है।
◆ धर्मदास वचन
विष्णु पूर्ण परमात्मा हम जाना।
जिन्द निन्दा कर हो नादाना।।
पाप शीश तोहे लागे भारी।
देवी देवतन को देत हो गारि।।
◆ जिन्दा (कबीर जी) वचन
जे यह निन्दा है भाई।
यह तो तोर गीता बतलाई।।
गीता लिखा तुम मानो साचा।
अमर विष्णु है कहा लिख राखा।।
तुम पत्थर को राम बताओ।
लडूवन का भोग लगाओ।।
कबहु लड्डू खाया पत्थर देवा।
या काजू किशमिश पिस्ता मेवा।।
पत्थर पूज पत्थर हो गए भाई।
आखें देख भी मानत नाहीं।।
ऐसे गुरू मिले अन्याई।
जिन मूर्ति पूजा रीत चलाई।।
इतना कह जिन्द हुए अदेखा।
धर्मदास मन किया विवेका।।
◆ धर्मदास वचन
यह क्या चेटक बिता भगवन।
कैसे मिटे आवा गमन।।
गीता फिर देखन लागा।
वही वृतान्त आगे आगा।।
एक एक श्लोक पढ़ै और रौवै।
सिर चक्रावै जागै न सोवै।।
रात पड़ी तब न आरती कीन्हा।
झूठी भक्ति में मन दीन्हा।।
ना मारा ना जीवित छोड़ा।
अधपका बना जस फोड़ा।।
यह साधु जे फिर मिल जावै।
सब मानू जो कछु बतावै।।
भूल के विवाद करूं नहीं कोई। आधीनी से सब जानु सोई।।
उठ सवेरे भोजन लगा बनाने।
लकड़ी चुल्हा बीच जलाने।।
जब लकड़ी जलकर छोटी होई। पाछलो भाग में देखा अनर्थ जोई।।
चटक-चटक कर चींटी मरि हैं।
अण्डन सहित अग्न में जर हैं।।
तुरंत आग बुझाई धर्मदासा।
पाप देख भए उदासा।।
ना अन्न खाऊँ न पानी पीऊँ।
इतना पाप कर कैसे जीऊँ।।
कराऊँ भोजन संत कोई पावै।
अपना पाप उतर सब जावै।।
लेकर थार चले धर्मनि नागर।
वृक्ष तले बैठे सुख सागर।।
साधु भेष कोई और बनाया।
धर्मदास साधु नेड़े आया।।
रूप और पहचान न पाया।
थाल रखकर अर्ज लगाया।।
भोजन करो संत भोग लगाओ।
मेरी इच्छा पूर्ण कराओ।।
संत कह आओ धर्मदासा।
भूख लगी है मोहे खासा।।
जल का छींटा भोजन पे मारा।
चींटी जीवित हुई थाली कारा।।
तब ही रूप बनाया वाही।
धर्मदास देखत लज्जाई।।
कहै जिन्दा तुम महा अपराधी।
मारे चीटी भोजन में रांधी।।
चरण पकड़ धर्मनि रोया।
भूल में जीवन जिन्दा मैं खोया।।
जो तुम कहो मैं मानूं सबही।
वाद विवाद अब नहीं करही।।
और कुछ ज्ञान अगम सुनाओ।
कहां वह संत वाका भेद बताओ।।
◆ जिन्द (कबीर) वचन
तुम पिण्ड भरो और श्राद्ध कराओ। गीता पाठ सदा चित लाओ।।
भूत पूजो बनोगे भूता।
पितर पूजै पितर हुता।।
देव पूज देव लोक जाओ।
मम पूजा से मोकूं पाओ।।
यह गीता में काल बतावै।
जाकूं तुम आपन इष्ट बतावै।।
(गीता अ. 9 व 25)
इष्ट कह करै नहीं जैसे।
सेठ जी मुक्ति पाओ कैसे।।
◆ धर्मदास वचन
हम हैं भक्ति के भूखे।
गुरू बताए मार्ग कभी नहीं चुके।।
हम का जाने गलत और ठीका।
अब वह ज्ञान लगत है फीका।।
तोरा ज्ञान महा बल जोरा।
अज्ञान अंधेरा मिटै है मोरा।।
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कलिसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन "परमेश्वर द्वारा आवासित देह का सार" (भाग एक)
कलिसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन "परमेश्वर द्वारा आवासित देह का सार" (भाग एक)
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "देहधारण का अर्थ यह है कि परमेश्वर देह में प्रकट होता है, और वह अपनी सृष्टि के मनुष्यों के मध्य देह की छवि में कार्य करने आता है। इसलिए, परमेश्वर को देहधारी होने के लिए, उसे सबसे पहले देह, सामान्य मानवता वाली देह अवश्य होना चाहिए; यह, कम से कम, सत्य अवश्य होना चाहिए। वास्तव में, परमेश्वर का देहधारण का निहितार्थ यह है कि परमेश्वर देह में रह कर कार्य करता है, परमेश्वर अपने वास्तविक सार में देहधारी बन जाता है, एक मनुष्य बन जाता है। ......चूँकि उसे, एक देह के रूप में, बढ़ने और परिपक्व होने की आवश्यकता है, इसलिए उसके जीवन का पहला चरण सामान्य मानवता का जीवन है, जबकि दूसरे चरण में, क्योंकि उसकी मानवता उसके कार्य का दायित्व लेने और उसकी सेवकाई को करने में सक्षम है, इसलिए अपनी सेवकाई के दौरान देहधारी परमेश्वर जिस जीवन को जीता है वह मानवता और पूर्ण दिव्यता दोनों का एक जीवन है।"
हम किस प्रकार समझ सकते हैं कि यीशु मसीह का सार मार्ग, सत्य, और जीवन हैं?
परमेश्वर के वचनों के पठन - परमेश्वर के नवीनतम कथन
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Hindi Christian Song | "प्रार्थना का महत्व" | Worship God in Spirit and in Truth
Hindi Christian Song | "प्रार्थना का महत्व" | Worship God in Spirit and in Truth
प्रार्थनाएँ वह मार्ग होती हैं जो जोड़ें मानव को परमेश्वर से,
जिससे वह पुकारे पवित्र आत्मा को
और प्राप्त करे स्पर्श परमेश्वर का।
जितनी करोगे प्रार्थना, उतना ही स्पर्श पाओगे,
प्रबुद्ध होगे और मन में शक्ति आएगी।
ऐसे ही लोगों को मिल सकती है पूर्णता शीघ्र ही,
शीघ्र ही, शीघ्र ही, शीघ्र ही।
तो जो ना करे प्रार्थना वह है जैसे मृत बिना आत्मा के।
ना मिले स्पर्श परमेश्वर का,
ना कर सके अनुपालन परमेश्वर के कार्यों के।
जो नहीं करोगे प्रार्थना तो छूट जाएगा सामान्य आत्मिक जीवन,
नहीं पाओगे परमेश्वर का साथ; वो तुमको अपनाएगा नहीं,
वो तुमको अपनाएगा नहीं।
जितनी करोगे प्रार्थना, उतना ही स्पर्श पाओगे,
प्रबुद्ध होगे और मन में शक्ति आएगी।
ऐसे ही लोगों को मिल सकती है पूर्णता शीघ्र ही,
ऐसे ही लोगों को मिल सकती है पूर्णता शीघ्र ही,
शीघ्र ही, शीघ्र ही, शीघ्र ही, शीघ्र ही।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
प्रभावी ईसाई प्रार्थना - अभ्यास के 4 तरीके - ईसाई धर्म के अनिवार्य तत्व
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part71
‘‘श्राद्ध-पिण्डदान के प्रति रूची ऋषि का वेदमत‘‘
मार्कण्डेय पुराण में ‘‘रौच्य ऋषि के जन्म’’ की कथा आती है। एक रुची ऋषि था। वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वेदों अनुसार साधना करता था। विवाह नहीं कराया था। रुची ऋषि के पिता, दादा, परदादा तथा तीसरे दादा सब पित्तर (भूत) योनि में भूखे-प्यासे भटक रहे थे। एक दिन उन चारों ने रुची ऋषि को दर्शन दिए तथा कहा कि बेटा! आप ने विवाह क्यों नहीं किया? विवाह करके हमारे श्राद्ध करना। रुची ऋषि ने कहा कि हे पितामहो! वेद में इस श्राद्ध आदि कर्म को अविद्या कहा है, मूर्खों का कार्य कहा है। फिर आप मुझे इस कर्म को करने को क्यों कह रहे हो? पित्तरों ने कहा कि यह बात सत्य है कि श्राद्ध आदि कर्म को वेदों में अविद्या अर्थात् मूर्खों का कार्य ही कहा है। फिर उन पित्तरों ने वेदविरूद्ध ज्ञान बताकर रूची ऋषि को भ्रमित कर दिया क्योंकि मोह भी अज्ञान की जड़ है। मार्कण्डेय पुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि वेदों में तथा वेदों के ही संक्षिप्त रुप गीता में श्राद्ध-पिण्डोदक आदि भूत पूजा के कर्म को निषेध बताया है, नहीं करना चाहिए। उन मूर्ख ऋषियों ने अपने पुत्र को भी श्राद्ध करने के लिए विवश किया। उसने विवाह कराया, उससे रौच्य ऋषि का जन्म हुआ, बेटा भी पाप का भागी बना लिया। पितर बना दिया।
Markendya Purana
प्रश्न 30:- क्या गायत्री मंत्र ’’ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‘‘ से पूर्ण मोक्ष संभव है?
उत्तर:- जिसे गायत्री मन्त्र कहते हो, वह यजुर्वेद के अध्याय 36 का मन्त्र 3 है जिसके आगे ‘‘ओम्‘‘ अक्षर नहीं है। यदि ‘‘ओम्’‘ अक्षर को इस वेद मन्त्र के साथ जोड़ा जाता है तो परमात्मा का अपमान है क्योंकि ओम् (ऊँ) अक्षर तो ब्रह्म का जाप है। यजुर्वेद अध्याय 36 मन्त्र 3 में परम अक्षर ब्रह्म की महिमा है। यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति पत्र तो लिख रहा है प्रधानमंत्री को और लिख रहा है सेवा में ‘मुख्यमंत्री जी’ तो वह प्रधानमंत्री का अपमान कर रहा है। फिर बात रही इस मन्त्र यजुर्वेद के अध्याय 36 मन्त्र 3 को बार-बार जाप करने की, यह क्रिया मोक्षदायक नहीं है। मन्त्र का मूल पाठ इस प्रकार है:-
भूर्भुवः स्वः तत् सवितु वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
अनुवाद:- (भूः) स्वयंभू परमात्मा पृथ्वी लोक को (भवः) गोलोक आदि भवनों को वचन से प्रकट करने वाला है (स्वः) स्वर्गलोक आदि सुख धाम हैं। (तत्) वह (सवितुः) उन सर्व का जनक परमात्मा है। (वरेणीयम) सर्व साधकांे को वरण करने योग्य अर्थात् अच्छी आत्माओं के भक्ति योग्य है। (भृगो) तेजोमय अर्थात् प्रकाशमान (देवस्य) परमात्मा का (धीमहि) उच्च विचार रखते हुए अर्थात् बड़ी समझ से (धियो यो नः प्रचोदयात्) जो बुद्धिमानों के समान विवेचन करता है, वह विवेकशील व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी बनता है।
भावार्थ: परमात्मा स्वयंभू जो भूमि, गोलोक आदि लोक तथा स्वर्ग लोक है उन सर्व का सृजनहार है। उस उज्जवल परमेश्वर की भक्ति श्रेष्ठ भक्तों को यह विचार रखते हुए करनी चाहिए कि जो पुरुषोत्तम (सर्व श्रेष्ठ परमात्मा) है, जो सर्व प्रभुओं से श्रेष्ठ है, उसकी भक्ति करें जो सुखधाम अर्थात् सर्वसुख का दाता है।
उपरोक्त मन्त्र का यह हिन्दी अनुवाद व भावार्थ है। इस की संस्कृत या हिन्दी अनुवाद को पढ़ते रहने से मोक्ष नहीं है क्योंकि यह तो परमात्मा की महिमा का एक अंश है अर्थात् हजारों वेद मन्त्रों में से यजुर्वेद अध्याय 36 का मंत्र सँख्या 3 केवल एक मन्त्र है। यदि कोई चारों वेदों को भी पढ़ता रहे तो भी मोक्ष नहीं। मोक्ष होगा वेदों में वर्णित ज्ञान के अनुसार भक्ति क्रिया करने से।
उदाहरण:- विद्युत की महिमा है कि बिजली अंधेरे को उजाले में बदल देती है, बिजली ट्यूबवेल चलाती है जिससे फसल की सिंचाई होती है। बिजली आटा पीसती है, आदि-आदि बहुत से गुण बिजली के लिखे हैं। यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन बिजली के गुणों का पाठ करता रहे तो उसे बिजली का लाभ प्राप्त नहीं होगा। लाभ प्राप्त होगा बिजली का कनेक्शन लेने से। कनेक्शन कैसे प्राप्त हो सकता है? उस विधि को प्राप्त करके फिर बिजली के गुणों का लाभ प्राप्त हो सकता है। केवल बिजली की महिमा को गाने मात्र से नहीं। इसी प्रकार वेद मन्त्रों में अर्थात् श्रीमद् भगवत् गीता (जो चारों वेदों का सार है) में मोक्ष प्राप्ति के लिए जो ज्ञान कहा है, उसके अनुसार आचरण करने से मोक्ष लाभ अर्थात् परमेश्वर प्राप्ति होती है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part71
‘‘श्राद्ध-पिण्डदान के प्रति रूची ऋषि का वेदमत‘‘
मार्कण्डेय पुराण में ‘‘रौच्य ऋषि के जन्म’’ की कथा आती है। एक रुची ऋषि था। वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वेदों अनुसार साधना करता था। विवाह नहीं कराया था। रुची ऋषि के पिता, दादा, परदादा तथा तीसरे दादा सब पित्तर (भूत) योनि में भूखे-प्यासे भटक रहे थे। एक दिन उन चारों ने रुची ऋषि को दर्शन दिए तथा कहा कि बेटा! आप ने विवाह क्यों नहीं किया? विवाह करके हमारे श्राद्ध करना। रुची ऋषि ने कहा कि हे पितामहो! वेद में इस श्राद्ध आदि कर्म को अविद्या कहा है, मूर्खों का कार्य कहा है। फिर आप मुझे इस कर्म को करने को क्यों कह रहे हो? पित्तरों ने कहा कि यह बात सत्य है कि श्राद्ध आदि कर्म को वेदों में अविद्या अर्थात् मूर्खों का कार्य ही कहा है। फिर उन पित्तरों ने वेदविरूद्ध ज्ञान बताकर रूची ऋषि को भ्रमित कर दिया क्योंकि मोह भी अज्ञान की जड़ है। मार्कण्डेय पुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि वेदों में तथा वेदों के ही संक्षिप्त रुप गीता में श्राद्ध-पिण्डोदक आदि भूत पूजा के कर्म को निषेध बताया है, नहीं करना चाहिए। उन मूर्ख ऋषियों ने अपने पुत्र को भी श्राद्ध करने के लिए विवश किया। उसने विवाह कराया, उससे रौच्य ऋषि का जन्म हुआ, बेटा भी पाप का भागी बना लिया। पितर बना दिया।
Markendya Purana
प्रश्न 30:- क्या गायत्री मंत्र ’’ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‘‘ से पूर्ण मोक्ष संभव है?
उत्तर:- जिसे गायत्री मन्त्र कहते हो, वह यजुर्वेद के अध्याय 36 का मन्त्र 3 है जिसके आगे ‘‘ओम्‘‘ अक्षर नहीं है। यदि ‘‘ओम्’‘ अक्षर को इस वेद मन्त्र के साथ जोड़ा जाता है तो परमात्मा का अपमान है क्योंकि ओम् (ऊँ) अक्षर तो ब्रह्म का जाप है। यजुर्वेद अध्याय 36 मन्त्र 3 में परम अक्षर ब्रह्म की महिमा है। यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति पत्र तो लिख रहा है प्रधानमंत्री को और लिख रहा है सेवा में ‘मुख्यमंत्री जी’ तो वह प्रधानमंत्री का अपमान कर रहा है। फिर बात रही इस मन्त्र यजुर्वेद के अध्याय 36 मन्त्र 3 को बार-बार जाप करने की, यह क्रिया मोक्षदायक नहीं है। मन्त्र का मूल पाठ इस प्रकार है:-
भूर्भुवः स्वः तत् सवितु वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
अनुवाद:- (भूः) स्वयंभू परमात्मा पृथ्वी लोक को (भवः) गोलोक आदि भवनों को वचन से प्रकट करने वाला है (स्वः) स्वर्गलोक आदि सुख धाम हैं। (तत्) वह (सवितुः) उन सर्व का जनक परमात्मा है। (वरेणीयम) सर्व साधकांे को वरण करने योग्य अर्थात् अच्छी आत्माओं के भक्ति योग्य है। (भृगो) तेजोमय अर्थात् प्रकाशमान (देवस्य) परमात्मा का (धीमहि) उच्च विचार रखते हुए अर्थात् बड़ी समझ से (धियो यो नः प्रचोदयात्) जो बुद्धिमानों के समान विवेचन करता है, वह विवेकशील व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी बनता है।
भावार्थ: परमात्मा स्वयंभू जो भूमि, गोलोक आदि लोक तथा स्वर्ग लोक है उन सर्व का सृजनहार है। उस उज्जवल परमेश्वर की भक्ति श्रेष्ठ भक्तों को यह विचार रखते हुए करनी चाहिए कि जो पुरुषोत्तम (सर्व श्रेष्ठ परमात्मा) है, जो सर्व प्रभुओं से श्रेष्ठ है, उसकी भक्ति करें जो सुखधाम अर्थात् सर्वसुख का दाता है।
उपरोक्त मन्त्र का यह हिन्दी अनुवाद व भावार्थ है। इस की संस्कृत या हिन्दी अनुवाद को पढ़ते रहने से मोक्ष नहीं है क्योंकि यह तो परमात्मा की महिमा का एक अंश है अर्थात् हजारों वेद मन्त्रों में से यजुर्वेद अध्याय 36 का मंत्र सँख्या 3 केवल एक मन्त्र है। यदि कोई चारों वेदों को भी पढ़ता रहे तो भी मोक्ष नहीं। मोक्ष होगा वेदों में वर्णित ज्ञान के अनुसार भक्ति क्रिया करने से।
उदाहरण:- विद्युत की महिमा है कि बिजली अंधेरे को उजाले में बदल देती है, बिजली ट्यूबवेल चलाती है जिससे फसल की सिंचाई होती है। बिजली आटा पीसती है, आदि-आदि बहुत से गुण बिजली के लिखे हैं। यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन बिजली के गुणों का पाठ करता रहे तो उसे बिजली का लाभ प्राप्त नहीं होगा। लाभ प्राप्त होगा बिजली का कनेक्शन लेने से। कनेक्शन कैसे प्राप्त हो सकता है? उस विधि को प्राप्त करके फिर बिजली के गुणों का लाभ प्राप्त हो सकता है। केवल बिजली की महिमा को गाने मात्र से नहीं। इसी प्रकार वेद मन्त्रों में अर्थात् श्रीमद् भगवत् गीता (जो चारों वेदों का सार है) में मोक्ष प्राप्ति के लिए जो ज्ञान कहा है, उसके अनुसार आचरण करने से मोक्ष लाभ अर्थात् परमेश्वर प्राप्ति होती है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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जय श्री कृष्णा। मित्रों आपको राज़कुमार देशमुख का स्नेह वंदन।।आज मंगलवार है आज हनुमंत लला की कृपा के लिए बहुत से लोग सुंदर कांड का पाठ करते है।सुंदर कांड के संदर्भ में एक रोचक जानकारी हाल के दिनों में पढ़ने मिली तो सोचा आज कथा सेवा में इसे ही साझा करूं।
🌹🌹🔰🙏सुंदरकांड समझ कर उसका पाठ करें तो हमें और भी आनंद आएगा।
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🔰👉सुंदरकांड में ०१ से २६ तक जो दोहे हैं, शिवजी का गायन है, वो शिव कांची है। क्योंकि शिव आधार हैं, अर्थात कल्याण।
🔰👉जहां तक आधार का सवाल है, तो पहले हमें अपने शरीर को स्वस्थ बनाना चाहिए, शरीर स्वस्थ होगा तभी हमारे सभी काम हो पाएंगे।
🔰👉किसी भी काम को करने के लिए अगर शरीर स्वस्थ है तभी हम कुछ कर पाएंगे, या कुछ कर सकते हैं।
🔰👉सुन्दरकाण्ड की एक से लेकर 26 चौपाइयों में तुलसी बाबा ने कुछ ऐसे गुप्त मंत्र हमारे लिए रखे हैं जो प्रकट में तो हनुमान जी का ही चरित्र है लेकिन अप्रकट में जो चरित्र है वह हमारे शरीर में चलता है।
🔰👉हमारे शरीर में 72000 नाड़ियां हैं उनमें से भी तीन सबसे महत्वपूर्ण हैं।
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🔰 #जैसे_ही_हम_सुन्दरकाण्ड_प्रारंभ_करते_हैं🔰
🔰🙏ॐ श्री परमात्मने नमः, तभी से हमारी नाड़ियों का शुद्धिकरण प्रारंभ हो जाता है।
🔰👉सुंदरकांड में एक से लेकर २६ दोहे तक में ऐसी शक्ति है, जिसका बखान करना इस पृथ्वी के मनुष्यों के बस की बात नहीं है।
🔰👉इन दोहों में किसी भी राजरोग को मिटाने की क्षमता है, यदि श्रद्धा से पाठ किया जाए तो इसमें ऐसी संजीवनी है, कि बड़े से बड़ा रोग निर्मूल हो सकता है।
🔰👉एक से लेकर २६ चौपाइयों में शरीर के शुद्धिकरण का फिल्ट्रेशन प्लांट मौजूद है।
🔰👉हमारे शरीर की लंका को हनुमान जी महाराज स्वच्छ बनाते हैं।
🔰👉जैसे-जैसे हम सुंदरकांड के पाठ का अध्ययन करते जाएंगे वैसे-वैसे हमारी एक-एक नाड़ियां शुद्ध होती जाएंगी।
🔰👉शरीर का जो तनाव है, टेंशन है वह २६ वें दोहे तक आते-आते समाप्त हो जाएगा।
🔰👉आप कभी इसका अपने घर प्रयोग करके देखना, हालांकि घर पर कुछ असर कम होगा लेकिन सामूहिक
सुंदरकांड में इसका लाभ कई गुना बढ़ जाता है।
🔰👉क्योंकि आज के युग में कोई शक्ति समूह में ज्यादा काम करती है।
🔰👉अगर वह साकारात्मक है तब भी और यदि नकारात्मक है तब भी ज्यादा काम करेगी।
🔰👉बड़ी संख्या में साकारात्मक शक्तियां एकत्र होकर जब सुंदरकांड का पाठ करती हैं तो भला किस रोग का अस्तित्व ह कि वह हमारे शरीर में टिक जाए।
🔰👉आप घर पर इसका प्रयोग कर इसकी सत्यता की पुष्टि कर सकते हैं।
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🔰👉किसी का यदि ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है तो उसे संकल्प लेकर हनुमान जी के सन्मुख बैठना चाहिए।
🔰💢#संपुट_अवश्य_लगाएं💢🔰
🔰🙏#मंगल_भवन_अमंगल_हारी।🙏🔰
🔰🙏#द्रवहु_सुदसरथ_अजिर_बिहारी।।🙏🔰
🔰👉यह संपुट बड़ा ही प्रभावकारी है, इसे बेहद प्रभावकारी परिणाम देने वाला संपुट माना गया है।
🔰👉आप मानसिक संकल्प लेकर सुन्दरकाण्ड का पाठ आरंभ करें और देखें २६ वें दोहे तक आते-आते आपका ब्लड प्रेशर नार्मल हो जायेगा।
🔰👉आप स्वयं रक्तचाप मापन विधि कर देख सकते हैं वह निश्चित सामान्य होगा नार्मल होगा।
🔰👉१०० में से ९९ लोगों का निश्चित रूप से ठीक होगा, केवल उस व्यक्ति का जरूर गड़बड़ मिलेगा जिसके मन में परिणाम को लेकर शंका होगी।
🔰👉जो सोच रहा होगा कि होगा कि नहीं होगा, उस एक व्यक्ति का परिणाम गड़बड़ हो सकता है।
🔰👉आप पूर्ण श्रद्धा के साथ पाठ करें परिणाम शत-प्रतिशत अनुकूल आएगा ही।
🔰👉एक से लेकर २६ दोहे तक की यह फलश्रुति है कि आपका शरीर बलिष्ट बने।
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🔰💢#शरीरमाद्यं_खलु_धर्मसाधनम्💢🔰
🔰👉जब तक हमारा शरीर स्वस्थ है, तभी तक हम धर्म-कर्म कर सकते हैं।
🔰👉शरीर स्वस्थ है तो हम भगवान का नाम ले सकते हैं।
🔰👉यदि शरीर में बुखार है, ताप है तो हमें प्रभु की माला करना अच्छा लगेगा ही नहीं।
🔰👉इसलिए शरीर तो हमारा रथ है इसका पहले ध्यान रखना है, स्वस्थ रखना है।
🔰सुन्दरकाण्ड बाबा तुलसीदास जी का हनुमान जी के लिए एक वैज्ञानिक अभियान है और जैसे ही २६ वां दोहा आएगा, वैसे ही
🔰🙏#मंगल_भवन_अमंगल_हारी।🙏🔰
🔰🙏#उमा_सहित_जेहि_जपत_पुरारी।।🙏🔰
🔰👉कैलाश में बैठे भगवान शिव और मां पार्वती के साथ यह वार्तालाप है, २६ वें दोहे के बाद जो गंगा बहती है वह है शिव कांची है।
🔰👉इसमें हमारे शरीर का ऊपर का भाग है, उसे स्वस्थ रखने की संजीवनी है। जैसे-जैसे हम पाठ करते जाएंगे २६ वें दोहे के बाद हमारा मन शांत होता जाएगा।
🔰👉प्रत्येक व्यक्ति की कोई ना कोई इच्छा जरूर होती है, बिना इच्छा के कोई व्यक्ति नहीं हो सकता।
🔰👉सुंदरकांड हमारी व्यर्थ की इच्छाओं को निर्मूल करता है, साथ ही हमारी सद्इच्छाओं को जागृत करता है।
🔰🙏विभीषण जी ने राम जी से कहा ही है🙏🔰
🔰#उर_कछु_प्रथम_बासना_रही।🔰
🔰प्रभु_पद_प्रीति_सरित सो_बही॥🔰
🔰👉यहां विभीषण जी ने स्वीकार किया है-
🔰👉प्रभु मुझे भी राजा बनने की इच्छा थी कि मुझे लंका का राज मिलेगा। लेकिन जब से श्री राम जी के दर्शन हुए हैं में इच्छा से भी मुक्त हो गया।
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🔰🙏सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
🔰🙏सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥
🔰👉इसी प्रकार एक और वचन है🙏🔰
🔰भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारी।
🔰तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्द्ध करहिं त्रिसिरारी।।
🔰👉सुन्दरकाण्ड हमें यूं ही अच्छा नहीं लगता है, यह हमें इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि यह हमारे अंदर का जो तत्व है उसको दस्तक देता है, कि जागो।
🔰👉हमारे अंदर जो दिव्यता है सुंदरकांड उसको जगाने का काम करता है।
🔰👉इसीलिए तो विभीषण जी ने कहा है-
🔰🙏उर कछु प्रथम वासना रही।🙏🔰
🔰🙏प्रभु पद प्रीति सरिस सो बही।।🙏🔰
🔰🙏रामजी कहते हैं--
🔰👉निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
🔰👉मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥
🔰👉जिसका मन निर्मल है, वही मुझे पाएगा... कबीर दास जी इसे बेहद सरल ढंग से परिभाषित किया।
🔰👉कबीरा मन निर्मल भया निर्मल भया शरीर।
🔰👉फिर पाछे पाछे हरि चले कहत कबीर कबीर।।
🔰👉दोनों निर्मल हो गए कुछ आशा बची ही नहीं। सुन्दरकाण्ड हमें निरपेक्ष बनाता है।
🔰👉सुंदरकांड भौतिक सुख शांति ही नहीं देता, बल्कि हमें मिलना है वह तो हम लिखवाकर ही आए हैं।
🔰👉गाड़ी बंगला, सुख-वैभव, यह हमारा प्रारब्ध तय करता है।
🔰👉 जो हम लिखावाकर नहीं आए हैं, वह हमें यह पाठ देता है।
🔰👉बिनु सत्संग विवेक न होई।
🔰👉रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।।
🔰👉सुंदरकांड में हमें सब कुछ देने की क्षमता है लेकिन प्रभु से मांग कर उन को छोटा मत कीजिए...
🔰👉तुम्हहि नीक लागै रघुराई।
🔰👉सो मोहि देहु दास सुखदाई॥
🔰🙏है प्रभु आपको जो ठीक लगता है वह हमें दीजिए।
🔰👉उदाहरण के लिए यदि कोई बालक अपने पिता से १० या २० रुपये मांगता है और पिता उसे रुपये देकर अपना कर्तव्य पूरा मान लेगा, यानी पिता सस्ते में छूट गया, लेकिन वही बालक अपने पिता से कहता है कि जो आप को ठीक लगे वह मुझे दीजिए।
🔰👉ऐसा सुनते ही पिता की टेंशन बढ़ जाएगी, तनाव छा जाएगा... क्योंकि पिता पुत्र को सर्वश्रेष्ठ देना चाहता है।
🔰👉इसलिए परमपिता परमेश्वर को मांगकर छोटा मत कीजिए, उनसे कहिए जो बात प्रभु को ठीक लगे, वही मुझे दीजिए। फिर भगवान जब देना शुरू करेंगे तो हमारी ले लेने की क्षमता नहीं होगी... उसी क्षमता को बढ़ाने का काम यह सुन्दरकाण्ड करता है।
🔰👉सुंदरकांड के द्वितीय चरण में एक महामंत्र है।
🔰👉दीन दयाल बिरिदु संभारी।
🔰👉हरहु नाथ मम संकट भारी।।
🔰👉यह चौपाई रामचरितमानस का तारक मंत्र है, इसे अपने हृदय पर लिखकर रख लीजिए।
🔰👉रामचरित मानस का यह मंत्र हमें उस संकट से मुक्ति दिलाता है जिसके बारे में हमें भी नहीं पता है।
🔰👉इसी प्रकार रामचरितमानस का एक और महामृत्युंजय मंत्र है।-
🔰👉नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
🔰👉लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट।।
🔰👉यदि आपको मृत्यु का भय लग रहा है तो इस दोहे का रटन कीजिए, यदि आपको लगता है कि आप फंस गए हैं और निकलना असंभव जान पड़ रहा है, ऐसे में घबराने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। आप हनुमान जी का ध्यान करके इस दोहे का रटन शुरू कर दीजिए। हनुमान जी महाराज की कृपा से १५ मिनट में संकट टल जाएगा।
🔰👉इस पंक्ति का, इस दोहे का कुछ विद्वान इस तरह भी अर्थ निकालते हैं कि जो आपके भाग्य में लिखा है, उसको तो आपको भोगना ही है, लेकिन उसे सहन करने की शक्ति रामजी के अनुग्रह से हनुमान जी प्रदान करते हैं और जीवन से हर परेशानियों को मुक्त कर देते हैं।
🔰👉हनुमान जी की असीम अनुकंपा को बखान करना किसी के भी बस में नहीं है।
🔰👉 हम केवल उसका अनुभव साझा कर सकते हैं।
🔰🙏सुन्दरकाण्ड दिन-प्रतिदिन अपने अर्थ को व्यापक बनाता जाता है।
🔰🙏आज आपके लिए एक अर्थ है, तो कल दूसरा होगा।
🔰🙏ये महिमा है प्रभु की।
🔰🙏तो सुन्दरकाण्ड का अध्ययन करते रहिये और प्रतिदिन प्रभु के प्रसाद को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ाते रहिये।।
____जय श्री राम_____
अंत में आपसे पुनः निवेदन है कि आप कोराॆना काल में मानवीय दूरी का पालन करें मास्क, सेनेटाइजर का प्रयोग करें &चीन के सामान का बहिष्कार करें और स्वदेशी सामान अपनाए ताकि आने वाले आर्थिक संकट का सामना हम कर सके।
📚 संकलन कर्ता: राज़कुमार देशमुख 📚
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*🚩॥सनातन शक्ति संघ॥🚩*
🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞
⛅ *दिनांक 05 मार्च 2021*
⛅ *दिन - शुक्रवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2077*
⛅ *शक संवत - 1942*
⛅ *अयन - उत्तरायण*
⛅ *ऋतु - वसंत*
⛅ *मास - फाल्गुन (गुजरात एवं महारा��्ट्र अनुसार - माघ)*
⛅ *पक्ष - कृष्ण*
⛅ *तिथि - सप्तमी रात्रि 07:54 तक तत्पश्चात अष्टमी*
⛅ *नक्षत्र - अनुराधा रात्रि 10:38 तक तत्पश्चात ज्येष्ठा*
⛅ *योग - हर्षण रात्रि 08:44 तक तत्पश्चात वज्र*
⛅ *राहुकाल - सुबह 11:22 से दोपहर 12:50 तक*
⛅ *सूर्योदय - 06:57*
⛅ *सूर्यास्त - 18:43*
⛅ *दिशाशूल - पश्चिम दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण -*
💥 *विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है था शरीर का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🌷 *घर में सुख-सम्पति लाने के लिए* 🌷
🐄 *गाय के दूध के दही में थोडा जौ और तिल मिला दें | फिर उससे रगड़-रगड़कर*
🌷 *“ॐ लक्ष्मीनारायणाय नम: ॐ लक्ष्मीनारायणाय नम: |” जप करके स्नान करें |*
🙏🏻
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🌷 *श्रद्धा -भक्ति बढ़ाने हेतु* 🌷
🙏🏻 *गीता के १२ वें अध्याय का दूसरा (२) और बीसवां (२०) श्लोक .. केवल दो श्लोक का पाठ कर के... भगवद गीता हाथ में रख कर..हम शुभ संकल्प करें कि " हे भगवन ! आप ने ये दो श्लोकों में जो परम श्रद्धा की बात बताई है वो हमारी हमारे गुरु चरणों में हो जाये " तो वो वचन भगवन के हैं ...भगवान सत्स्वरूप हैं तो उनके वचन भी सत है और हम उन वचनों का पाठ कर के संकल्प करें तो जो सचमुच अपने गुरु में श्रद्धा भक्ति बढ़ाना चाहते हैं उनका संकल्प भी ऐसा ही हो जाएगा ।*
🌷 *शोल्क :-*
*मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।*
*श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।2।।*
🙏🏻 *श्री भगवान बोलेः मुझमें मन को एकाग्र करके निरन्तर मेरे भजन-ध्यान में लगे हुए जो भक्तजन अतिशय श्रेष्ठ श्रद्धा से युक्त होकर मुझ सगुणरूप परमेश्वर को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं।(2)*
🌷 *ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।*
*श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः।।20।।*
🙏🏻 *परन्तु जो श्रद्धायुक्त पुरुष मेरे परायण होकर इस ऊपर कहे हुए धर्ममय अमृत को निष्काम प्रेमभाव से सेवन करते हैं, वे भक्त मुझको अतिशय प्रिय हैं।(20)*
🙏🏻
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🌷 *उम्र बढाने हेतु* 🌷
🙏🏻 *स्कन्द पुराण में आया है कि भोजन करते समय ५ अंग धोकर जो भोजन करता है उसकी उम्र १०० साल की होती हैं ... उसकी आयु बढ़ती है ५ अंग ...२ हात ....२ पैर... और मुंह धोकर भोजन करने बैठें ।*
🕉️🐚⚔️🚩🌞🇮🇳⚔️🌷🙏
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🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞9359990090 ⛅ *दिनांक 05 मार्च 2021* ⛅ *दिन - शुक्रवार* ⛅ *विक्रम संवत - 2077* ⛅ *शक संवत - 1942* ⛅ *अयन - उत्तरायण* ⛅ *ऋतु - वसंत* ⛅ *मास - फाल्गुन (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार - माघ)* ⛅ *पक्ष - कृष्ण* ⛅ *तिथि - सप्तमी रात्रि 07:54 तक तत्पश्चात अष्टमी* ⛅ *नक्षत्र - अनुराधा रात्रि 10:38 तक तत्पश्चात ज्येष्ठा* ⛅ *योग - हर्षण रात्रि 08:44 तक तत्पश्चात वज्र* ⛅ *राहुकाल - सुबह 11:22 से दोपहर 12:50 तक* ⛅ *सूर्योदय - 06:57* ⛅ *सूर्यास्त - 18:43* ⛅ *दिशाशूल - पश्चिम दिशा में* ⛅ *व्रत पर्व विवरण - 💥 *विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है था शरीर का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)* 🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞9359990090 🌷 *घर में सुख-सम्पति लाने के लिए* 🌷 🐄 *गाय के दूध के दही में थोडा जौ और तिल मिला दें | फिर उससे रगड़-रगड़कर* 🌷 *“ॐ लक्ष्मीनारायणाय नम: ॐ लक्ष्मीनारायणाय नम: |” जप करके स्नान करें | - पूज्य बापूजी* 🙏🏻 *-ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१४ से* 🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞9359990090 🌷 *श्रद्धा -भक्ति बढ़ाने हेतु* 🌷 🙏🏻 *गीता के १२ वें अध्याय का दूसरा (२) और बीसवां (२०) श्लोक .. केवल दो श्लोक का पाठ कर के... भगवद गीता हाथ में रख कर..हम शुभ संकल्प करें कि " हे भगवन ! आप ने ये दो श्लोकों में जो परम श्रद्धा की बात बताई है वो हमारी हमारे गुरु चरणों में हो जाये " तो वो वचन भगवन के हैं ...भगवान सत्स्वरूप हैं तो उनके वचन भी सत है और हम उन वचनों का पाठ कर के संकल्प करें तो जो सचमुच अपने गुरु में श्रद्धा भक्ति बढ़ाना चाहते हैं उनका संकल्प भी ऐसा ही हो जाएगा ।* 🌷 *शोल्क :-* *मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।* *श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।2।।* 🙏🏻 *श्री भगवान बोलेः मुझमें मन को एकाग्र करके निरन्तर मेरे भजन-ध्यान में लगे हुए जो भक्तजन अतिशय श्रेष्ठ श्रद्धा से युक्त होकर मुझ सगुणरूप परमेश्वर को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं।(2)* 🌷 *ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।* *श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः।।20।।* 🙏🏻 *परन्तु जो श्रद्धायुक्त पुरुष मेरे परायण होकर इस ऊपर कहे हुए धर्ममय अमृत को निष्काम प्रेमभाव से सेवन करते हैं, वे भक्त मुझको अतिशय प्रिय हैं।(20)* 🙏🏻 *- श्री सुरेशानंदजी अहमदाबाद 16th Jan' 2012* 🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞9359990090 🌷 *उम्र बढाने हेतु* 🌷 🙏🏻 *स्कन्द पुराण में आया है https://www.instagram.com/p/CMBn6BBnmtW/?igshid=13pvoesderbmg
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( #Muktibodh_part189 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part190
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 363-364
कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को गीता से ही प्रश्न तथा उत्तर देकर सत्य ज्ञान समझाया। उपरोक्त वाणी सँख्या 1 में गीता अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 2 श्लोक 12 वाला वर्णन बताया जिसमें गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। वाणी सँख्या 2 में गीता अध्याय 15 श्लोक 17 वाला वर्णन बताया है। वाणी सँख्या 3 में गीता अध्याय 4 श्लोक 34 वाला ज्ञान बताया है। वाणी सँख्या 4 में गीता अध्याय 18 श्लोक 62ए 66 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 वाला वर्णन बताया है। वाणी सँख्या 5 में गीता अध्याय 18 श्लोक 64 का वर्णन है जिसमें काल कहता है कि मेरा ईष्ट देव भी वही है। वाणी सँख्या 6 में गीता अध्याय 8 श्लोक 13 तथा अध्याय 17 श्लोक 23 वाला ज्ञान है। आगे की वाणियों में कबीर परमेश्वर जी ने अपने आपको छुपाकर अपने ही
विषय में बताया है।
◆ धर्मदास वचन
विष्णु पूर्ण परमात्मा हम जाना।
जिन्द निन्दा कर हो नादाना।।
पाप शीश तोहे लागे भारी।
देवी देवतन को देत हो गारि।।
◆ जिन्दा (कबीर जी) वचन
जे यह निन्दा है भाई।
यह तो तोर गीता बतलाई।।
गीता लिखा तुम मानो साचा।
अमर विष्णु है कहा लिख राखा।।
तुम पत्थर को राम बताओ।
लडूवन का भोग लगाओ।।
कबहु लड्डू खाया पत्थर देवा।
या काजू किशमिश पिस्ता मेवा।।
पत्थर पूज पत्थर हो गए भाई।
आखें देख भी मानत नाहीं।।
ऐसे गुरू मिले अन्याई।
जिन मूर्ति पूजा रीत चलाई।।
इतना कह जिन्द हुए अदेखा।
धर्मदास मन किया विवेका।।
◆ धर्मदास वचन
यह क्या चेटक बिता भगवन।
कैसे मिटे आवा गमन।।
गीता फिर देखन लागा।
वही वृतान्त आगे आगा।।
एक एक श्लोक पढ़ै और रौवै।
सिर चक्रावै जागै न सोवै।।
रात पड़ी तब न आरती कीन्हा।
झूठी भक्ति में मन दीन्हा।।
ना मारा ना जीवित छोड़ा।
अधपका बना जस फोड़ा।।
यह साधु जे फिर मिल जावै।
सब मानू जो कछु बतावै।।
भूल के विवाद करूं नहीं कोई। आधीनी से सब जानु सोई।।
उठ सवेरे भोजन लगा बनाने।
लकड़ी चुल्हा बीच जलाने।।
जब लकड़ी जलकर छोटी होई। पाछलो भाग में देखा अनर्थ जोई।।
चटक-चटक कर चींटी मरि हैं।
अण्डन सहित अग्न में जर हैं।।
तुरंत आग बुझाई धर्मदासा।
पाप देख भए उदासा।।
ना अन्न खाऊँ न पानी पीऊँ।
इतना पाप कर कैसे जीऊँ।।
कराऊँ भोजन संत कोई पावै।
अपना पाप उतर सब जावै।।
लेकर थार चले धर्मनि नागर।
वृक्ष तले बैठे सुख सागर।।
साधु भेष कोई और बनाया।
धर्मदास साधु नेड़े आया।।
रूप और पहचान न पाया।
थाल रखकर अर्ज लगाया।।
भोजन करो संत भोग लगाओ।
मेरी इच्छा पूर्ण कराओ।।
संत कह आओ धर्मदासा।
भूख लगी है मोहे खासा।।
जल का छींटा भोजन पे मारा।
चींटी जीवित हुई थाली कारा।।
तब ही रूप बनाया वाही।
धर्मदास देखत लज्जाई।।
कहै जिन्दा तुम महा अपराधी।
मारे चीटी भोजन में रांधी।।
चरण पकड़ धर्मनि रोया।
भूल में जीवन जिन्दा मैं खोया।।
जो तुम कहो मैं मानूं सबही।
वाद विवाद अब नहीं करही।।
और कुछ ज्ञान अगम सुनाओ।
कहां वह संत वाका भेद बताओ।।
◆ जिन्द (कबीर) वचन
तुम पिण्ड भरो और श्राद्ध कराओ। गीता पाठ सदा चित लाओ।।
भूत पूजो बनोगे भूता।
पितर पूजै पितर हुता।।
देव पूज देव लोक जाओ।
मम पूजा से मोकूं पाओ।।
यह गीता में काल बतावै।
जाकूं तुम आपन इष्ट बतावै।।
(गीता अ. 9 व 25)
इष्ट कह करै नहीं जैसे।
सेठ जी मुक्ति पाओ कैसे।।
◆ धर्मदास वचन
हम हैं भक्ति के भूखे।
गुरू बताए मार्ग कभी नहीं चुके।।
हम का जाने गलत और ठीका।
अब वह ज्ञान लगत है फीका।।
तोरा ज्ञान महा बल जोरा।
अज्ञान अंधेरा मिटै है मोरा।।
हे जिन्दा तुम मोरे राम समाना।
और विचार कुछ सुनाओ ज्ञाना।।
क्रमशः_______________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 363-364
कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को गीता से ही प्रश्न तथा उत्तर देकर सत्य ज्ञान समझाया। उपरोक्त वाणी सँख्या 1 में गीता अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 2 श्लोक 12 वाला वर्णन बताया जिसमें गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। वाणी सँख्या 2 में गीता अध्याय 15 श्लोक 17 वाला वर्णन बताया है। वाणी सँख्या 3 में गीता अध्याय 4 श्लोक 34 वाला ज्ञान बताया है। वाणी सँख्या 4 में गीता अध्याय 18 श्लोक 62ए 66 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 वाला वर्णन बताया है। वाणी सँख्या 5 में गीता अध्याय 18 श्लोक 64 का वर्णन है जिसमें काल कहता है कि मेरा ईष्ट देव भी वही है। वाणी सँख्या 6 में गीता अध्याय 8 श्लोक 13 तथा अध्याय 17 श्लोक 23 वाला ज्ञान है। आगे की वाणियों में कबीर परमेश्वर जी ने अपने आपको छुपाकर अपने ही
विषय में बताया है।
◆ धर्मदास वचन
विष्णु पूर्ण परमात्मा हम जाना।
जिन्द निन्दा कर हो नादाना।।
पाप शीश तोहे लागे भारी।
देवी देवतन को देत हो गारि।।
◆ जिन्दा (कबीर जी) वचन
जे यह निन्दा है भाई।
यह तो तोर गीता बतलाई।।
गीता लिखा तुम मानो साचा।
अमर विष्णु है कहा लिख राखा।।
तुम पत्थर को राम बताओ।
लडूवन का भोग लगाओ।।
कबहु लड्डू खाया पत्थर देवा।
या काजू किशमिश पिस्ता मेवा।।
पत्थर पूज पत्थर हो गए भाई।
आखें देख भी मानत नाहीं।।
ऐसे गुरू मिले अन्याई।
जिन मूर्ति पूजा रीत चलाई।।
इतना कह जिन्द हुए अदेखा।
धर्मदास मन किया विवेका।।
◆ धर्मदास वचन
यह क्या चेटक बिता भगवन।
कैसे मिटे आवा गमन।।
गीता फिर देखन लागा।
वही वृतान्त आगे आगा।।
एक एक श्लोक पढ़ै और रौवै।
सिर चक्रावै जागै न सोवै।।
रात पड़ी तब न आरती कीन्हा।
झूठी भक्ति में मन दीन्हा।।
ना मारा ना जीवित छोड़ा।
अधपका बना जस फोड़ा।।
यह साधु जे फिर मिल जावै।
सब मानू जो कछु बतावै।।
भूल के विवाद करूं नहीं कोई। आधीनी से सब जानु सोई।।
उठ सवेरे भोजन लगा बनाने।
लकड़ी चुल्हा बीच जलाने।।
जब लकड़ी जलकर छोटी होई। पाछलो भाग में देखा अनर्थ जोई।।
चटक-चटक कर चींटी मरि हैं।
अण्डन सहित अग्न में जर हैं।।
तुरंत आग बुझाई धर्मदासा।
पाप देख भए उदासा।।
ना अन्न खाऊँ न पानी पीऊँ।
इतना पाप कर कैसे जीऊँ।।
कराऊँ भोजन संत कोई पावै।
अपना पाप उतर सब जावै।।
लेकर थार चले धर्मनि नागर।
वृक्ष तले बैठे सुख सागर।।
साधु भेष कोई और बनाया।
धर्मदास साधु नेड़े आया।।
रूप और पहचान न पाया।
थाल रखकर अर्ज लगाया।।
भोजन करो संत भोग लगाओ।
मेरी इच्छा पूर्ण कराओ।।
संत कह आओ धर्मदासा।
भूख लगी है मोहे खासा।।
जल का छींटा भोजन पे मारा।
चींटी जीवित हुई थाली कारा।।
तब ही रूप बनाया वाही।
धर्मदास देखत लज्जाई।।
कहै जिन्दा तुम महा अपराधी।
मारे चीटी भोजन में रांधी।।
चरण पकड़ धर्मनि रोया।
भूल में जीवन जिन्दा मैं खोया।।
जो तुम कहो मैं मानूं सबही।
वाद विवाद अब नहीं करही।।
और कुछ ज्ञान अगम सुनाओ।
कहां वह संत वाका भेद बताओ।।
◆ जिन्द (कबीर) वचन
तुम पिण्ड भरो और श्राद्ध कराओ। गीता पाठ सदा चित लाओ।।
भूत पूजो बनोगे भूता।
पितर पूजै पितर हुता।।
देव पूज देव लोक जाओ।
मम पूजा से मोकूं पाओ।।
यह गीता में काल बतावै।
जाकूं तुम आपन इष्ट बतावै।।
(गीता अ. 9 व 25)
इष्ट कह करै नहीं जैसे।
सेठ जी मुक्ति पाओ कैसे।।
◆ धर्मदास वचन
हम हैं भक्ति के भूखे।
गुरू बताए मार्ग कभी नहीं चुके।।
हम का जाने गलत और ठीका।
अब वह ज्ञान लगत है फीका।।
तोरा ज्ञान महा बल जोरा।
अज्ञान अंधेरा मिटै है मोरा।।
हे जिन्दा तुम मोरे राम समाना।
और विचार कुछ सुनाओ ज्ञाना।।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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बचें के लिए आध्यात्मिक होना मांस से आगे निकल जा रहा
बचें के लिए आध्यात्मिक होना मांस से आगे निकल जा रहा
रविवार 9-7-2017
आज की बाइबिल पढ़ने से है
भजन 74 और नीतिवचन 9 के पवित्र बाईबल बुक
विषय: बचें के लिए आध्यात्मिक होना मांस से आगे निकल जा रहा
आज की बाइबिल पाठ से है
के पवित्र बाईबल बुक
गलतियों 5:16, रोम 8:14
आपको परमेश्वर के वचन की प्रेरणा से व्यापक रूप से रहना होगा,
प्रार्थना के साथ जीवन समर्पण के माध्यम से
सुनिश्चित करें कि आप अपने चर्च में किसी भी उपवास और प्रार्थना कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं
आ…
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सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे" (भाग एक)
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे" (भाग एक)
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सत्य को समझ लेने के बाद उसका अभ्यास करो
परमेश्वर के कार्य और वचन का अभिप्राय तुम लोगों के स्वभाव में एक परिवर्तन लाना है; उसका उद्देश्य मात्र यह नहीं है कि तुम लोग उसके कार्य और वचन को समझो या जानो और उन्हें अंत तक रखे रहो। उस व्यक्ति के समान जिसके पास प्राप्त करने की योग्यता है, तुम लोगों को परमेश्वर के वचन को समझने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर के अधिकतर वचन मानवीय भाषा में लिखे गए हैं जो समझने में बहुत आसान हैं। उदाहरण के लिए, तुम लोग जान सकते हो जो परमेश्वर तुमसे चाहता है कि तुम समझो और उसका अभ्यास करो; यह कुछ ऐसा है जिसे एक उचित व्यक्ति, जिसके पास समझने की क्षमता है, उसके करने योग्य होना चाहिए। परमेश्वर अब जो कहता है वह विशेष रूप से स्पष्ट और पारदर्शी है, और परमेश्वर बहुत सी चीज़ों, जिस पर लोगों ने विचार नहीं किया है, या मनुष्य की विभिन्न परिस्थितियों की ओर संकेत करता है। उसके वचन सभी के द्वारा स्वीकार किये जाते हैं। पूर्ण चाँद की रोशनी के समान साफ साफ। इसलिए अब, लोग बहुत से मामलों को समझते हैं; उनमें बस उसके वचन का अभ्यास करने की कमी है। लोगों को विस्तार से सत्य के सभी पहलुओं का अनुभव करना होगा, और अधिक विस्तार से उसकी छानबीन एवं खोज करनी होगी। बस यों ही उसे लेने का इन्तजार नहीं करना है जो उन्हें तत्परता से दिया जाता है; अन्यथा वे बेगारों से कुछ बढ़कर ही रह जाते हैं। वे परमेश्वर के वचन को जानते हैं, किन्तु उसे अभ्यास में नहीं लाते हैं। इस किस्म के व्यक्ति में सत्य का प्रेम नहीं होता है, और उसे अंततः निकाल दिया जाएगा। नब्बे के दशक के पतरस की शैली को धारण करने का तात्पर्य है कि तुम लोगों में से प्रत्येक को परमेश्वर के वचन का अभ्यास करना चाहिए। अपने अनुभवों में सही रीति से प्रवेश करना चाहिए और परमेश्वर के साथ अपने सहयोग में और अधिक तथा और बड़ा प्रबोधन प्राप्त करना चाहिए और अपने जीवन में उसका और भी अधिक सहयोग लेना चाहिए। यदि तुम सभी ने बहुतायत से परमेश्वर के वचन पढ़े हैं किन्तु सिर्फ पाठ का अर्थ समझते हो और तुम लोगों के पास अपने-अपने व्यावहारिक अनुभवों के जरिए परमेश्वर का अपने व्यावहारिक अनुभव से प्राप्त प्राथमिक ज्ञान नहीं है, तो तुम परमेश्वर के वचन को नहीं जान पाओगे। जहाँ तक यह बात तुम से सम्बंधित है, परमेश्वर के वचन तुम्हारे लिए जीवन नहीं है, किन्तु बस निर्जीव शब्द हैं। और यदि तुम केवल निर्जीव शब्दों को थामे रहोगे, तो तुम परमेश्वर के वचन का सार समझ नहीं सकते हो, न ही तुम उसकी इच्छा को समझोगे। जब तुम अपने वास्तविक अनुभवों में उसके वचन का अनुभव करते हो केवल तभी परमेश्वर के वचन का आध्यात्मिक अर्थ स्वयं को तुम्हारे लिए खोल देगा, और यह केवल अनुभव में होता है कि तुम बहुत सारे सत्य के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकते हो। और केवल अनुभव के जरिए तुम परमेश्वर के वचन के भेदों का खुलासा कर सकते हो। यदि तुम इसे अभ्यास में न लाओ, तो भले ही परमेश्वर के वचन कितने भी स्पष्ट हों, एकमात्र चीज़ जो तुम समझते हो वह है खोखले शब्द एवं सिद्धांत, जो तुम्हारे लिए धार्मिक नियम बन चुके हैं। क्या फरीसियों ने भी ऐसा ही नहीं किया था? यदि तुम लोग परमेश्वर के वचन का अभ्यास और उसका अनुभव करते हो, तो यह तुम लोगों के लिए व्यावहारिक बन जाता है; यदि तुम इसका अभ्यास करने की कोशिश नहीं करते हो, तो परमेश्वर का वचन तुम्हारे लिए तीसरे स्वर्ग की किवदंती से बस कुछ ही अधिक होता है। वास्तव में, परमेश्वर में विश्वास करने की प्रक्रिया तुम सभी के द्वारा उसके वचन का अनुभव करने और साथ ही साथ उसके द्वारा ग्रहण किए जाने की प्रक्रिया है, या अधिक स्पष्टता से कहें, परमेश्वर में विश्वास करना उसके वचन का ज्ञान एवं समझ रखना है और उसके वचन का अनुभव करना एवं उसे जीना है; यह परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास की वास्तविकता है। यदि तुम लोग परमेश्वर में विश्वास करते हो और परमेश्वर के वचन को तुम भीतर उपस्थित किसी चीज़ की तरह अभ्यास में लाने की कोशिश किए बिना अनन्त जीवन की आशा करते हो, तो तुम लोग मूर्ख हो। यह एक भोज में जाने के समान है कि जाकर सिर्फ ध्यान दो कि वहां पर खाने को क्या क्या है और वास्तव में उसे चखकर न देखो। क्या ऐसा व्यक्ति मूर्ख नहीं है?
वह सत्य जिसे मनुष्य को धारण करने की आवश्यकता है उसे परमेश्वर के वचन में पाया जाता है, यह एक सत्य है जो मानवजाति के लिए सबसे अधिक लाभदायक और सहायक है। यह वह शक्तिवर्धक पेय और पोषण है जिसकी जरूरत तुम लोगों के शरीर को है। कुछ ऐसा जो तुम्हारी सामान्य मानवता को बहाल करने में सहायता करता है। अर्थात् एक सत्य जिससे तुम लोगों को सुसज्जित किया जाना चाहिए। तुम लोग परमेश्वर के वचन का जितना अधिक अभ्यास करते हो, उतनी ही जल्दी तुम लोगों का जीवन फूल की तरह खिलेगा; तुम लोग परमेश्वर के वचन का जितना अधिक अभ्यास करते हो, सत्य उतना ही अधिक स्पष्ट हो जाता है। जैसे जैसे तुम्हारी उच्चता बढ़ती है, तुम लोग आध्यात्मिक संसार की चीज़ों को और भी अधिक साफ साफ देखोगे, और तुम लोग शैतान के ऊपर विजय पाने के लिए और भी अधिक शक्तिशाली होगे। जब तुम परमेश्वर के वचन का अभ्यास करते हो तब बहुत से सत्य जिन्हें तुम नहीं समझते हो, उन्हें स्पष्ट कर दिया जाएगा। बहुत से लोग मात्र परमेश्वर के वचन के पाठ को समझकर ही संतुष्ट हो जाते हैं और उसकी गहराई के अनुभव का अभ्यास किये बगैर अपने आपको सिद्धान्तों से सुसज्जित करने की ओर ध्यान केन्द्रित करते हैं; क्या यह फरीसियों का तरीका नहीं है? तब, किस प्रकार यह वाक्यांश कि "परमेश्वर का वचन जीवन है" उनके लिए सही हो सकता है? जब मनुष्य परमेश्वर के वचन का अभ्यास करता है, केवल तभी उसका जीवन सचमुच में फूल के समान खिल सकता है; यह बस यूं ही उसके वचन को पढ़ने के द्वारा नहीं हो सकता है। यदि यह तुम्हारा विश्वास है कि केवल जीवन पाने और उच्चता पाने के लिए ही परमेश्वर के वचन को समझने की आवश्यकता है, तो तुम्हारी समझ विकृत हो गई है। जब तुम सत्य का अभ्यास करते हो तभी परमेश्वर का वचन सही ढंग से समझ आता है, और तुम्हें यह समझना होगा कि "केवल सत्य का अभ्यास करने के द्वारा ही इसे समझा जा सकता है।" आज, परमेश्वर के वचन को पढ़ने के बाद, तू बस यह कह सकता है कि तू परमेश्वर के वचन को जानता है, किन्तु तू यह नहीं कह सकता है कि तू इसे समझता है। कुछ लोग कहते हैं कि सत्य के अभ्यास का एकमात्र तरीका है कि पहले उसे समझा जाए, किन्तु यह केवल अर्ध-सत्य है और पूरी तरह सटीक नहीं है। इससे पहले कि तुझे सत्य का ज्ञान हो, तूने उस सत्य का अनुभव नहीं किया है। यह महसूस करना कि उपदेश में जो तू सुनता है उसे तू समझता है, वो वास्तविक समझ नहीं है बल्कि यह केवल सत्य के शाब्दिक अक्षर पाना है और यह उसमें निहित सत्य को समझने के समान नहीं है। सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम्हारे पास सत्य का उथला ज्ञान है। इसका मतलब यह नहीं है कि तू वास्तव में इसे समझता है या पहचानता है; सत्य का सच्चा अर्थ उसका अनुभव करने से आता है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि जब तू सत्य का अभ्यास करता है केवल तभी तू उसे समझ सकता है, और जब तू सत्य का अभ्यास करता है केवल तभी तू उसके छिपे हुए भागों को समझ सकता है। गहराई से उसका अनुभव करना ही सत्य के अतिरिक्त अर्थों को समझने, और उसके सार को समझने का एकमात्र तरीका है। इसलिए, तू सत्य के साथ हर जगह जा सकता है, किन्तु यदि तुम्हारे अंदर कोई सत्य नहीं है, तो धार्मिक लोगों को विश्वास दिलाने के विषय में सोचो भी नहीं, अपने परिवार को तो बिल्कुल भी नहीं। तू सत्य के बिना लुढ़कते बर्फ के समान होगा। किन्तु सत्य के साथ, तू प्रसन्न और स्वतंत्र होगा, जहाँ कोई तुझ पर आक्रमण नहीं कर सकता है। भले ही कोई सिद्धांत कितना भी मजबूत हो, यह सत्य पर विजय नहीं पा सकता है। सत्य के साथ, स्वयं संसार को डगमगाया जा सकता है तथा पर्वत और समुद्र खिसकाए जा सकते हैं, जबकि सत्य की कमी कीड़े-मकौडों के द्वारा की गई तबाही की ओर ले जाते हैं; यह मात्र तथ्य है।
अब महत्वपूर्ण यह है कि पहले सत्य को जानें, तब उसे अभ्यास में लाएं, और आगे से अपने आपको सत्य के सच्चे अर्थ से सुसज्जित करें। यह वही है जिस पर तुझे लक्ष्य साधना चाहिए, न केवल दूसरे लोगों से अपने वचनों का पालन करवा बल्कि उनसे अपने कार्यों का अनुसरण भी करवा, और सिर्फ इसमें ही तुझे कुछ अर्थपूर्ण मिल सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तेरे पर क्या गुजरती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कैसे लोगों से तुम्हारा सामना होता है। तू केवल सत्य के साथ स्थिरता से खड़ा हो सकता है। परमेश्वर का वचन वह है जो मनुष्य के लिए जीवन लेकर आता है, मृत्यु नहीं। यदि परमेश्वर के वचन को पढ़ने के बाद तुम जीवित नहीं हो उठते हो, किन्तु उसके वचन को पढ़ने के बाद तुम फिर भी मरे हुए होते हो, तो तुझ में कुछ ग़लत है। यदि कुछ समय के बाद तूने परमेश्वर के अधिकतर वचन पढ़ लिया है और बहुत से व्यावहारिक सन्देशों को सुना है, किन्तु तू अभी भी मृत्यु की दशा में है, तो यह इस बात का प्रमाण है कि तू ऐसा इंसान नहीं है जो सत्य को महत्व देता है, और न ही तू ऐसा व्यक्ति है जो सत्य का अनुसरण करता है। यदि तुम लोग सचमुच में परमेश्वर को पाने की खोज करते हो, तो तुम लोग ऊँचे सिद्धान्तों से अपने आपको सुसज्जित करने और दूसरों को प्रोत्साहित करने के लिए उनका उपयोग करने के ऊपर ध्यान केन्द्रित नहीं करोगे, किन्तु उसके बजाए परमेश्वर के वचन का अनुभव करने और सत्य को अभ्यास में लाने पर ध्यान केन्द्रित करोगे; क्या यह वास्तव में वह नहीं है जिसमें तुम लोगों को वर्तमान में प्रवेश करना चाहिए?
मानव के जीवन में अपना कार्य करने के लिए परमेश्वर के पास सीमित समय है, किन्तु यदि तुम लोग उसके साथ सहयोग नहीं करते हो तो वहां क्या परिणाम हो सकता है? ऐसा क्यों है कि परमेश्वर हमेशा चाहता है कि तुम लोग उसके वचन को समझ लेने के बाद उसका अभ्यास करें? यह इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने अपने वचन तुम लोगों को प्रकट किया है, और तुम लोगों का अगला कदम वास्तव में उनका अभ्यास करना है, और जब तुम लोग इन वचनों का अभ्यास करते हो तो परमेश्वर विशेष प्रबोधन और मार्गदर्शन का कार्य पूरा करेंगे। यह ऐसा ही है। परमेश्वर के वचन का अभिप्राय मनुष्य को बिना किसी विचलन या नकारात्मकता के जीवन में फूल की तरह खिलने देना है। तुम कहते हो कि तूने परमेश्वर के वचन को पढ़ा है और उसका अभ्यास किया है, किन्तु तूने अभी भी पवित्र आत्मा के किसी भी कार्य को प्राप्त नहीं किया है-जो तू कहता है वह केवल एक बच्चे को धोखा दे सकता है। मनुष्य नहीं जानता कि तेरे इरादे उचित हैं कि नहीं, किन्तु तू क्या सोचता है कि परमेश्वर भी नहीं जानेगा? ऐसा कैसे है कि अन्य लोग परमेश्वर के वचन का अभ्यास करते हैं और पवित्र आत्मा का विशेष प्रबोधन प्राप्त करते हैं, और तू किसी न किसी तरह उसके वचन का अभ्यास करता है फिर भी पवित्र आत्मा का विशेष प्रबोधन प्राप्त नहीं करता है? क्या परमेश्वर भावुक है? यदि तेरे इरादे सचमुच में भले हैं और तू सहयोग करने वाला है, तो परमेश्वर की आत्मा तुम्हारे साथ होगा। ऐसा क्यों है कि कुछ लोग हमेशा अहम स्थान लेना चाहते हैं, और फिर भी परमेश्वर उन्हें ऊँचा उठने और कलीसिया की अगुवाई करने नहीं देता है? ऐसा क्यों है कि कुछ लोग मात्र अपने कार्य को अंजाम देते हैं और उसका एहसास किये बगैर, वे परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त कर लेते हैं? ऐसा कैसे हो सकता है? परमेश्वर हृदय को जांचता है, और वे लोग जो सत्य का अनुसरण करते हैं उनको अच्छे इरादों के साथ ऐसा करना चाहिए—ऐसे लोग जिनके इरादे अच्छे नहीं हैं वे स्थिर खड़े नहीं रह सकते हैं। इसके केन्द्र में, तुम लोगों का लक्ष्य परमेश्वर के वचन को तुम लोगों के भीतर प्रभावी होने देना है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के वचन की सही समझ रखना है कि तुम सब उसका अभ्यास कर सको। कदाचित् परमेश्वर के वचन को प्राप्त करने की तुम लोगों की योग्यता बहुत कमज़ोर है, किन्तु जब तुम लोग परमेश्वर के वचन का अभ्यास करते हो, तो वे प्राप्त करने की तुम सब की दुर्बल योग्यता की त्रुटि को सुधारने के लिए उसमें कुछ जोड़ सकते हो, अतः न केवल तुम लोगों को बहुत सा सत्य जानना होगा, बल्कि तुम लोगों को उनका अभ्यास भी करना होगा। यह सबसे बड़ा केंद्र-बिंदु है जिसको नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। यीशु ने साढ़े तैंतीस सालों में बहुत कष्ट उठाया था क्योंकि उन्होंने सत्य का अभ्यास किया था। लेखों में हमेशा यह क्यों कहा जाता है कि उन्हें सताया गया? यह इस बात का वर्णन करने के लिए है कि उन्होंन सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए कितना कष्ट उठाया था। सत्य का अभ्यास किए बगैर यदि उन्होंने उस सत्य को जान लिया होता तो वह दुख से होकर नहीं गुज़रते। यदि यीशु ने यहूदियों की शिक्षाओं का अनुसरण किया होता, और फरीसियों का अनुगमन किया होता, तो उन्हें दुख उठाना नहीं पड़ता। तू यीशु के अभ्यास से सीख सकता है कि मनुष्य के ऊपर परमेश्वर के कार्य की प्रभावशीलता मनुष्य के सहयोग से आती है, और यह कुछ ऐसा है जिसे तुम सब को पहचानना होगा। क्या यीशु ने दुख सहा होता जैसा उन्होंन क्रूस पर सहा था यदि उन्होंने सत्य का अभ्यास नहीं किया होता? क्या वे ऐसी दुख भरी प्रार्थना कर सकते थे यदि उन्होंने परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप कार्य नहीं किया होता। इसलिये तुम लोगों को सत्य को अमल में लाने के लिए कष्ट सहना चाहिए; एक व्यक्ति को इसी प्रकार का कष्ट सहना चहिए।
स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
प्रभु की वाणी को सुनिए——प्रभु का स्वागत कीजिए——ईसाइयों के लिए आधारभूत तत्व
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