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#बहनोई के घर
thesuergicalnews · 2 years
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कई वर्षों से फरार वांछित बहनोई के घर से गिरफ्तार
कई वर्षों से फरार वांछित बहनोई के घर से गिरफ्तार
मुहम्मदाबाद: पुलिस अधीक्षक तथा अपर पुलिस अधीक्षक ग्रामीण एवं क्षेत्राधिकारी श्याम बहादुर सिंह के कुशल दिशा निर्देशन में चलाए जा रहे अपराध को रोकने एवं अपराधियों के विरुद्ध धरपकड़ करने के अंतर्गत विगत वर्षों से फरार चल रहा अभियुक्त को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। घटना के संबंध में बताया जाता है कि क्षेत्र में शांति व्यवस्था एवं कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए एसएसआई राजीव त्रिपाठी अपने…
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tnnews24 · 4 months
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पत्नी से तंग आकर पति ने की आत्महत्या
फतेहाबाद। डौकी क्षेत्र के ग्राम ज्योति राम की ठार में पत्नी से विवाद के बाद एक युवक ने फंदे से लटककर जान दे दी। सूचना पर पहुंची पुलिस ने छानबीन के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। प्रभारी निरीक्षक डौकी आरपी सिंह ने बताया कि ज्योति राम की ठार निवासी बलवीर (32) का सोमवार की रात पत्नी सपना से शराब पीने को लेकर विवाद हो गया था। जिसके बाद पत्नी बच्चों को लेकर पड़ोस के गांव में अपने बहनोई के घर चली…
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n7india · 7 months
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Dumka News : जमीन विवाद में चली गोली, अधेड़ की मौत, एक आरोपित गिरफ्तार
Dumka (Jharkhand News) : दुमका जिले के जामा थाना क्षेत्र के लोधना गांव में रविवार को जमीन विवाद में अपराधियों ने एक व्यक्ति को गोली मार हत्या कर दी। घटना की सूचना मिलते ही थाना प्रभारी उत्तम कुमार पासवान पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे। पुलिस के जांच के क्रम में गोली का तीनों खोखा भी बरामद किया है। जानकारी के अनुसार फरीद शेख और उसके बहनोई अकबर शेख ने घर के बाहर बैठे फारुख शेख को पहले तो लाठी…
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igamravatirange · 11 months
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Post#14
सर्कस में दिल की धड़कन तेज़ करने वाला करतब यानी - फ्लाइंग ट्रपीज- उड़न झूले पर किया जाने वाला करतब। नीचे रिंग में नेट लगा होता है, और उसके भरोसे यह खेल चलता है। एक तरफ़ परिवार-रिश्तेदार और दूसरी तरफ़ नौकरी-धंधा, फ्लाइंग ट्रपीज करके इंसान परेशान हो जाता है, तो वह झूलना छोड़कर दोस्तों के नेटवर्�� पर कूद पड़ता है। यह भरोसेमंद नेटवर्क उसकी कूद को भी बाउन्स कर आनंद प्रदान करता है और, मक़सद और ज़िम्मेदारियाँ भुलाने के लिए उसे आगोश में ले लेता है। बहुधा भाई, भांजा, भतीजा, बहनोई द्वारा उड़ाए या डुबाए गए पैसे, परेशान करने वाला बॉस और धमकाने वाली प्रेमिका आदि से सम्बंधित उसकी समस्याएँ होती हैं। ईश्वर हमें सिर्फ़ समस्याएँ ही नहीं देता है, बल्कि उनसे निपटने के लिए दोस्त भी देता है।
समस्या का समाधान हो या न हो, लेकिन दोस्तों की महफ़िल में अलग-अलग परिदृश्य में विचार करके, उन्हें हल्का ज़रूर किया जाता है। जैसा समझ रहा था, मुझ अकेले को ही धोखा नहीं मिला है बल्कि दूसरे लोग भी इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं, समझ के इस विस्तार से अचानक राहत महसूस होती है। मिज़री लव्ज़ कंपनी ऑफ़ मिज़री। हमारी ज़िंदगी में जिगरी दोस्तों का नेटवर्क टेंशन कम करने के लिए सेफ़्टी-वॉल्व की तरह काम करता है। औपचारिकता, नफ़ा-नुकसान, ऊंच-नीच, गरीबी-अमीरी जैसी सामाजिक परेशानियों से दोस्ती के स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिज़र यानी एस.ओ.पी. का कोई संबंध नहीं होता। अलेक्ज़ेंडर वूलकॉट के शब्दों में कहा जाए तो -- ‘हमें पसंद आने वाली ज़्यादातर चीजें या तो ग़ैरकानूनी, अनैतिक या वज़न बढ़ाने वाली होती हैं।’ दोस्तों की महफ़िल में विषयों का भटकाव और खानपान अक्सर वूलकॉट के सिद्धांत पर ही चलता है। गुड फ्रेंड्स आर बैड फॉर लिवर!
मनुष्य सारी दुनिया को इम्प्रेस कर सकता है, लेकिन दोस्तों को नहीं। दोस्ती की एस.ओ.पी. में यह अभिप्रेत भी नहीं है। माइकल एंजेलो को अगर आदर्श मित्र की मूर्ति बनाने को कहा जाता, तो वह भी निश्चित रूप से ये - ट्रबलशूटर सैंडो बनियान, थ्री-फोर्थ ट्राउज़र, दाएँ हाथ में ऑन द रॉक पेग का ग्लास और बाएँ हाथ में अधजली सिगरेट लिए - इंसान की मूर्ति बनाकर, नीचे ‘नसीहत-ए-यारा’ लिखता, ऐेसा मुझे ना जाने क्यों लगता है।
‘बनता हैं मेरा काम तुम्हारे ही काम से,
होता है मेरा नाम तुम्हारे ही नाम से।
तुम जैसे मेहरबां का सहारा है दोस्तों’
शादी से पहले माता-पिता और शादी के बाद सुविद्य पत्नी इस नेटवर्क के स्वाभाविक दुश्मन होते हैं। आप परिवार के दायरे में किसी दोलक की तरह निरंतर दोलायमान रहें, ऐसी उनकी धारणा होती है। दोस्तों की बुरी संगत में अपना बच्चा बिगड़ जाएगा - ऐसी ज्यामितीय की सभी मान्यताओं को छेद देने वाली हर अभिभावक की धारणा होती है। हर एक की सुविद्य पत्नी विवाह के कुछ दिन बाद पूर्वानुमान को प्रमेय मानने लगती है। एक महिला दूसरे से अलग होती है यह ग़लतफ़हमी यानी प्रेम! घर-घर मिट्टी का चूल्हा और अंकुश में रखो दुल्हा - उक्ति में विश्वास रखने वाली लड़कियाँ...
भगवान, मुझे अपने दोस्तों की औसत उम्र के समान उम्र दे, जिनके बीच समय-समय पर सभी मुखौटे उतारकर रखने, जी खोल कर हँसने और मन खोलकर रोने का सुख मिल सके। नहीं तो, सबके जाने के बाद ‘जंगल में मोर नाचा किसने देखा’ वाली स्थिति हो जाएगी।
-Jayant Naiknavare, IPS
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dainiksamachar · 1 year
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उमेश पाल मर्डर में STF की मेरठ में बड़ी कार्रवाई, अतीक अहमद का बहनोई अरेस्ट
मेरठ: उमेश पाल हत्याकांड में यूपी एसटीएफ का बड़ा एक्शन हुआ है। यूपी एसटीएफ ने उमेश पाल की हत्या की साजिश रचने और शूटरों को पनाह देने के आरोप में माफिया डॉन अतीक अहमद के बहनोई को अरेस्ट किया है। यूपी एसटीएफ ने यह कार्रवाई मेरठ में की है। मेरठ के नौचंदी थाना क्षेत्र से अतीक के बहनोई डॉ. अखलाक को गिरफ्तार किया गया है। दावा किया जा रहा है कि प्रयागराज में हत्याकांड को अंजाम देने के बाद अतीक का बेटा असद अहमद, बमबाज गुड्‌डू मुस्लिम और शूटर साबिर मेरठ आए थे। हत्याकांड के आरोपियों को संरक्षण देने के मामले में यह कार्रवाई की गई है। विधायक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की 24 फरवरी को प्रयागराज मं सरेआम हत्या कर दी गई। हत्याकांड को अंजाम देने के बाद से हत्यारे फरार हैं। उनकी खोज में यूपी पुलिस क्राइम ब्रांच और यूपी एसटीएफ की ओर से लगातार कार्रवाई की जा रही है। हालांकि, मुख्य हत्यारे अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। अतीक के बहनोई पर गंभीर आरोप अतीक के बहनोई डॉ. अखलाक पर गंभीर आरोप लगे हैं। यूपी एसटीएफ का दावा है कि आरोपी ने उमेश पाल के हत्यारों को पनाह दी। उनकी आर्थिक मदद की। इसे यूपी एसटीएफ उमेश पाल हत्याकांड की साजिश रचने के रूप में देख रही है। यूपी एसटीएफ की टीम डॉ. अखलाक को गिरफ्तार करने के बाद वज्रवाहन में रखकर प्रयागराज रखकर रवाना हो गई है। दरअसल, माफिया अतीक अहमद की बहन और बहनोई मेरठ के भवानीनगर में रहते हैं। उसके बहनोई की पोस्टिंग अब्दुल्लापुर सीएचसी में है। अखलाक के घर शूटरों का ठिकाना उमेश पाल की हत्या के मामले की जांच कर रही यूपी एसटीएफ टीम के पास अहम सुराग हाथ लगे हैं। हत्याकांड को अंजाम देने के बाद दो शूटर डॉ. अखलाक के घर आने की भी जानकारी मिली है। एसटीएफ के एसपी बृजेश सिंह ने इस मामले में कहा है कि पूरी तफ्तीश के बाद देर रात एसटीएफ ने डॉ. अखलाक को गिरफ्तार किया।एसटीएफ एसपी ने कहा कि डॉ. अखलाक को थाने लाकर कई घंटों की पूछताछ हुई। इस पूछताछ में एसटीएफ टीम को कुछ अहमद जानकारी हाथ लगी है। इसके बाद एसटीएफ ने अखलाक को अपने साथ लिया और प्रयागराज रवाना हो गई। http://dlvr.it/Sls951
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sanjyasblog · 1 year
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 74
नानक जी का संक्षिप्त यथार्थ परिचय
आदरणीय श्री नानक साहेब जी प्रभु कबीर(धाणक) जुलाहा के साक्षी:- श्री नानक देव का जन्म विक्रमी संवत् 1526 (सन् 1469) कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को हिन्दू परिवार में श्री कालु राम मेहत्ता (खत्री) के घर माता श्रीमती तृप्ता देवी की पवित्र कोख (गर्भ) से पश्चिमी पाकिस्त्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में हुआ। इस स्थान को अब ’’ननकाना साहब‘‘ कहते हैं। इन्होंने फारसी, पंजाबी, संस्कृत भाषा पढ़ी हुई थी। श्रीमद् भगवत गीता जी को श्री बृजलाल पांडे से पढ़ा करते थे। श्री नानक देव जी के श्री चन्द तथा लखमी चन्द दो लड़के थे।
श्री नानक जी चैदह वर्ष की आयु में अपनी बहन नानकी की ससुराल शहर सुल्तानपुर लोधी में चले गए थे। अपने बहनोई श्री जयराम जी की कृपा से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ मोदी खाने की नौकरी किया करते थे। प्रभु में असीम प्रेम था क्योंकि यह पुण्यात्मा युगों-युगों से पवित्र भक्ति ब्रह्म भगवान(काल) की करते हुए आ रहे थे। सत्ययुग में यही नानक जी राजा अम्ब्रीष थे तथा ब्रह्म भक्ति विष्णु जी को ईष्ट मानकर किया करते थे। दुर्वासा जैसे महान तपस्वी भी इनके दरबार में हार मानकर क्षमा याचना करके गए थे।
त्रोता युग में श्री नानक जी ही राजा जनक विदेही बने। जो सीता जी के पिता कहलाए। एक सुखदेव ऋषि जो महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे जो अपनी सिद्धि से आकाश में उड़ जाते थे। परन्तु गुरु से उपदेश नहीं ले रखा था। जब सुखदेव विष्णुलोक के स्वर्ग में गए तो गुरु न होने के कारण वापिस आना पड़ा। विष्णु जी के आदेश से राजा जनक को गुरु बनाया तब स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ। फिर कलियुग में यही राजा जनक की आत्मा एक हिन्दू परिवार में श्री कालुराम महत्ता (खत्री) के घर उत्पन्न हुए तथा श्री नानक नाम रखा गया।
नानक जी तथा परमेश्वर कबीर जी की ज्ञान चर्चा
बाबा नानक देव जी प्रातःकाल प्रतिदिन सुल्तानपुर लोधी के पास बह रही बेई दरिया में स्नान करने जाया करते थे तथा घण्टों प्रभु चिन्तन में बैठे रहते थे।
एक दिन परमेश्वर कबीर जी जिन्दा फकीर के वेश में बेई दरिया पर मिले तथा नानक जी के साथ दरिया में गोता लगाया। कबीर साहेब जी श्री नानक जी की पुण्यात्मा को सत्यलोक ले गए। सचखण्ड में श्री नानक जी ने देखा कि एक असीम तेजोमय मानव सदृश शरीर युक्त प्रभु तख्त पर बैठे थे। अपने ही दूसरे स्वरूप पर कबीर साहेब जिन्दा महात्मा के रूप में चंवर करने लगे। तब श्री नानक जी ने सोचा कि अकाल मूर्त तो यह रब है जो गद्दी पर बैठा है। कबीर तो यहाँ का सेवक होगा। उसी समय जिन्दा रूप में परमेश्वर कबीर साहेब उस गद्दी पर विराजमान हो गए तथा जो तेजोमय शरीर युक्त प्रभु का दूसरा रूप था वह खड़ा होकर तख्त पर बैठे जिन्दा वाले रूप पर चंवर करने लगा। फिर वह तेजोमय रूप नीचे से गये जिन्दा (कबीर) रूप में समा गया तथा गद्दी पर अकेले कबीर परमेश्वर जिन्दा रूप में बैठे थे और चंवर अपने आप ढुरने लगा।
तब नानक जी ने कहा कि वाहे गुरु, सत्यनाम से प्राप्ति तेरी। इस प्रक्रिया में तीन दिन लग गए। नानक जी की आत्मा को साहेब कबीर जी ने वापिस शरीर में प्रवेश कर दिया। तीसरे दिन श्री नानक जी होश में आए।
उधर श्री जयराम जी ने (जो श्री नानक जी का बहनोई था) श्री नानक जी को दरिया में डूबा जान कर दूर तक गोताखोरों से तथा जाल डलवा कर खोज करवाई। परन्तु कोशिश निष्फल रही और मान लिया कि श्री नानक जी दरिया के अथाह वेग में बह कर मिट्टी के नीचे दब गए। तीसरे दिन जब नानक जी उसी नदी के किनारे सुबह-सुबह दिखाई दिए तो बहुत व्यक्ति एकत्रित हो गए, बहन नानकी तथा बहनोई श्री जयराम भी दौड़े गए, खुशी का ठिकाना नहीं रहा तथा घर ले आए। श्री नानक जी अपनी नौकरी पर चले गए। मोदी खाने का दरवाजा खोल दिया तथा कहा जिसको जितना चाहिए, ले जाओ। तेरा-तेरा कहकर पूरा खजाना लुटा कर शमशान घाट पर बैठ गए। जब नवाब को पता चला कि श्री नानक खजाना समाप्त करके शमशान घाट पर बैठा है। तब नवाब ने श्री जयराम की उपस्थिति में खजाने का हिसाब करवाया तो सात सौ साठ रूपये श्री नानक जी के अधिक मिले। नवाब ने क्षमा याचना की तथा कहा कि नानक जी आप सात सौ साठ रूपये जो आपके सरकार की ओर अधिक हैं ले लो तथा फिर नौकरी पर आ जाओ। तब श्री नानक जी ने कहा कि अब सच्ची सरकार की नौकरी करूँगा। उस पूर्ण परमात्मा के आदेशानुसार अपना जीवन सफल करूँगा। वह पूर्ण परमात्मा है जो मुझे बेई नदी पर मिला था।
नवाब ने पूछा वह पूर्ण परमात्मा कहाँ रहता है तथा यह आदेश आपको कब हुआ?
श्री नानक जी ने कहा वह सच्चखण्ड में रहता हेै। बेई नदी के किनारे से मुझे स्वयं आकर वही पूर्ण परमात्मा सचखण्ड (सत्यलोक) लेकर गया था। वह इस पृथ्वी पर भी आकार में आया हुआ है। उसकी खोज करके अपना आत्म कल्याण करवाऊँगा। उस दिन के बाद श्री नानक जी घर त्याग कर पूर्ण परमात्मा की खोज पृथ्वी पर करने के लिए चल पड़े। प्रथम उदासी में बनारस गए। श्री नानक जी सतनाम तथा वाहिगुरु की रटना लगाते हुए बनारस पहुँचे। इसीलिए अब पवित्र सिक्ख समाज के श्रद्धालु केवल सत्यनाम श्री वाहिगुरु कहते रहते हैं। सत्यनाम क्या है तथा वाहिगुरु कौन है? यह मालूम नहीं है। जबकि सत्यनाम(सच्चानाम) गुरु ग्रन्थ साहेब में लिखा है, जो अन्य मंत्र है।
जैसा कि कबीर साहेब ने बताया था कि मैं बनारस (काशी) में रहता हूँ। धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। मेरे गुरु जी काशी में सर्व प्रसिद्ध पंडित रामानन्द जी हैं। इस बात को आधार रखकर श्री नानक जी ने संसार से उदास होकर पहली उदासी यात्रा बनारस (काशी) के लिए प्रारम्भ की (प्रमाण के लिए देखें ‘‘जीवन दस गुरु साहिब‘‘ (लेखक:- सोढ़ी तेजा सिंह जी, प्रकाशक=चतर सिंघ, जीवन सिंघ) पृष्ठ न. 50 पर।)।
परमेश्वर कबीर साहेब जी स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में प्रतिदिन जाया करते थे। जिस दिन श्री नानक जी ने काशी पहुँचना था उससे पहले दिन कबीर साहेब ने अपने पूज्य गुरुदेव रामानन्द जी से कहा कि स्वामी जी कल मैं आश्रम में नहीं आ पाऊँगा। क्योंकि कपड़ा बुनने का कार्य अधिक है। कल सारा दिन लगा कर कार्य निपटा कर फिर आपके दर्शन करने आऊँगा। काशी (बनारस) में जाकर श्री नानक जी ने पूछा कोई रामानन्द जी महाराज है। सबने कहा वे आज के दिन सर्व ज्ञान सम्पन्न ऋषि हैं। उनका आश्रम पंचगंगा घाट के पास है। श्री नानक जी ने श्री रामानन्द जी से वार्ता की तथा सच्चखण्ड का वर्णन शुरू किया। तब श्री रामानन्द स्वामी ने कहा यह पहले मुझे किसी शास्त्रा में नहीं मिला परन्तु अब मैं आँखों देख चुका हूँ, क्योंकि वही परमेश्वर स्वयं कबीर नाम से आया हुआ है तथा मर्यादा बनाए रखने के लिए मुझे गुरु कहता है परन्तु मेरे लिए प्राण प्रिय प्रभु है। पूर्ण विवरण चाहिए तो मेरे व्यवहारिक शिष्य परन्तु वास्तविक गुरु कबीर से पूछो, वही आपकी शंका का निवारण कर सकता है।
श्री नानक जी ने पूछा कि कहाँ हैं कबीर साहेब जी? मुझे शीघ्र मिलवा दो। तब श्री रामानन्द जी ने एक सेवक को श्री नानक जी के साथ कबीर साहेब जी की झोपड़ी पर भेजा। उस सेवक से भी सच्चखण्ड के विषय में वार्ता करते हुए श्री नानक जी चले तो उस कबीर साहेब के सेवक ने भी सच्चखण्ड व सृष्टि रचना जो परमेश्वर कबीर साहेब जी से सुन रखी थी सुनाई। तब श्री नानक जी ने आश्चर्य हुआ कि मेरे से तो कबीर साहेब के चाकर (सेवक) भी अधिक ज्ञान रखते हैं। इसीलिए गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में श्री नानक जी ने कहा है कि:-
“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।
नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक।।”
जिसका भावार्थ है कि हे कबीर परमेश्वर जी मैं नानक कह रहा हूँ कि मेरा उद्धार हो गया, मैं तो आपके सेवकों के चरणों की धूर तुल्य हूँ।
गुरू ग्रन्थ साहेब के पृष्ठ 731 पर कहा है कि:-
नीच जाति प्रदेशी मेरा, खिन आवै तिल जावै।
जाकि संगत नानक रहेंदा, क्यूंकर मौंडा पावै।।
जब नानक जी ने देखा यह धाणक (जुलाहा) वही परमेश्वर है जिसके दर्शन सत्यलोक (सच्चखण्ड) में किए तथा बेई नदी पर हुए थे। वहाँ यह जिन्दा महात्मा के वेश में थे यहाँ धाणक (जुलाहे) के वेश में हैं। यह स्थान अनुसार अपना वेश बदल लेते हैं परन्तु स्वरूप (चेहरा) तो वही है। वही मोहिनी सूरत जो सच्चखण्ड में भी विराजमान था। वही करतार आज धाणक रूप में बैठा है। श्री नानक जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आँखों में आँसू भर गए।
तब श्री नानक जी अपने सच्चे स्वामी अकाल मूर्ति को पाकर चरणों में गिरकर सत्यनाम (सच्चानाम) प्राप्त किया। तब शान्ति पाई तथा अपने प्रभु की महिमा देश विदेश में गाई। पहले श्री नानकदेव जी एक ओंकार(ओम) मन्त्रा का जाप करते थे तथा उसी को सत मान कर कहा करते थे एक ओंकार। उन्हें बेई नदी पर कबीर साहेब ने दर्शन दे कर सतलोक(सच्चखण्ड) दिखाया तथा अपने सतपुरुष रूप को दिखाया। जब सतनाम का जाप दिया तब नानक जी की काल लोक से मुक्ति हुई। नानक जी ने कहा कि:
इसी का प्रमाण गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29
शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।
मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच सनाति।।
काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।_
इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक(मन रूपी) कुत्ता तथा इसके साथ दो (आशा-तृष्णा रूपी) कुतिया अनावश्यक भौंकती(उमंग उठती) रहती हैं तथा सदा नई-नई आशाएँ उत्पन्न(ब्याती हैं) होती हैं। इनको मारने का तरीका(जो सत्यनाम तथा तत्त्व ज्ञान बिना) झूठा(कुड़) साधन(मुठ मुरदार) था। मुझे धाणक के रूप में हक्का कबीर (सत कबीर) परमात्मा मिला। उन्होनें मुझे वास्तविक उपासना बताई।
नानक जी ने कहा कि उस परमेश्वर(कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति(साख) रहनी थी और न ही कोई अच्छी करनी(भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक(सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार को पार(काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे(नानक जी कहते हैं) भी एही एक तेरे नाम की आशा है व यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं।
मुझे धाणक(जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति(स्वरूप) बहुत प्यारी है मन को फंसाने वाली अर्थात् मन मोहिनी है तथा सुन्दर वेश-भूषा में(जिन्दा रूप में) मुझे मिले उसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है धाणक(जुलाहा) फिर बन गया जिन्दा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया भगवान(पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए नानक जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है कि वह धाणक(जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परन्तु है बहुत महिमा(बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप मंे स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने(नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस(वाद-विवाद) की तथा उन्होनें (कबीर साहेब ने) अपने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शन दे कर तथा(नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी ने कहा कि मैं(नानक जी) कुछ करने कराने योग्य नहीं था। फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ(ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जो अपने मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप(जुलाहा रूप में आए करतार कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया? श्री नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूर्ण सोच समझ से कह रहा हूँ कि परमात्मा यही धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में है।
भावार्थ:- श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि यह फाँसने वाली अर्थात् मनमोहिनी शक्ल सूरत में तथा जिस देश में जाता है वैसा ही वेश बना लेता है, जैसे जिंदा महात्मा रूप में बेई नदी पर मिले, सतलोक में पूर्ण परमात्मा वाले वेश में तथा यहाँ उत्तर प्रदेश में धाणक(जुलाहे) रूप में स्वयं करतार (पूर्ण प्रभु) विराजमान है। आपसी वार्ता के दौरान हुई नोंक-झोंक को याद करके क्षमा याचना करते हुए अधिक भाव से कह रहे हैं कि मैं अपने सत्भाव से कह रहा हूँ कि यही धाणक(जुलाहे) रूप में सत्पुरुष अर्थात् अकाल मूर्त ही है।
दूसरा प्रमाण:- नीचे प्रमाण है जिसमें कबीर परमेश्वर का नाम स्पष्ट लिखा है। श्री गु.ग्र.पृष्ठ नं. 721 राग तिलंग महला पहला में है।
और अधिक प्रमाण के लिए प्रस्तुत है ‘‘राग तिलंग महला 1‘‘ पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721.
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार। हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।
दूनियाँ मुकामे फानी तहकीक दिलदानी। मम सर मुई अजराईल गिरफ्त दिल हेच न दानी।।
जन पिसर पदर बिरादराँ कस नेस्त दस्तं गीर। आखिर बयफ्तम कस नदारद चूँ शब्द तकबीर।।
शबरोज गशतम दरहवा करदेम बदी ख्याल। गाहे न नेकी कार करदम मम ई चिनी अहवाल।।
बदबख्त हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक। नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।।
सरलार्थ:-- (कुन करतार) हे शब्द स्वरूपी कर्ता अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि के रचनहार (गोश) निर्गुणी संत रूप में आए (करीम) दयालु (हक्का कबीर) सत कबीर (तू) आप (बेएब परवरदिगार) निर्विकार परमेश्वर हंै। (पेश तोदर) आपके समक्ष अर्थात् आपके द्वार पर (तहकीक) पूरी तरह जान कर (यक अर्ज गुफतम) एक हृदय से विशेष प्रार्थना है कि (दिलदानी) हे महबूब (दुनियां मुकामे) यह संसार रूपी ठिकाना (फानी) नाशवान है (मम सर मूई) जीव के शरीर त्यागने के पश्चात् (अजराईल) अजराईल नामक फरिश्ता यमदूत (गिरफ्त दिल हेच न दानी) बेरहमी के साथ पकड़ कर ले जाता है। उस समय (कस) कोई (दस्तं गीर) साथी (जन) व्यक्ति जैसे (पिसर) बेटा (पदर) पिता (बिरादरां) भाई चारा (नेस्तं) साथ नहीं देता। (आखिर बेफ्तम) अन्त में सर्व उपाय (तकबीर) फर्ज अर्थात् (कस) कोई क्रिया काम नहीं आती (नदारद चूं शब्द) तथा आवाज भी बंद हो जाती है (शबरोज) प्रतिदिन (गशतम) गसत की तरह न रूकने वाली (दर हवा) चलती हुई वायु की तरह (बदी ख्याल) बुरे विचार (करदेम) करते रहते हैं (नेकी कार करदम) शुभ कर्म करने का (मम ई चिनी) मुझे कोई (अहवाल) जरीया अर्थात् साधन (गाहे न) नहीं मिला (बदबख्त) ऐसे बुरे समय में (हम चु) हमारे जैसे (बखील) नादान (गाफील) ला परवाह (बेनजर बेबाक) भक्ति और भगवान का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण ज्ञान नेत्र हीन था तथा ऊवा-बाई का ज्ञान कहता था। (नानक बुगोयद) नानक जी कह रहे हैं कि हे कबीर परमेश्वर आपकी कृपा से (तेरे चाकरां पाखाक) आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ (जनु तुरा) बंदा पार हो गया।
केवल हिन्दी अनुवाद:- हे शब्द स्वरूपी राम अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि रचनहार दयालु ‘‘सतकबीर‘‘ आप निर्विकार परमात्मा हैं। आपके समक्ष एक हृदय से विनती है कि यह पूरी तरह जान लिया है हे महबूब यह संसार रूपी ठिकाना नाशवान है। हे दाता! इस जीव के मरने पर अजराईल नामक यम दूत बेरहमी से पकड़ कर ले जाता है कोई साथी जन जैसे बेटा पिता भाईचारा साथ नहीं देता। अन्त में सभी उपाय और फर्ज कोई क्रिया काम नहीं आता। प्रतिदिन गश्त की तरह न रूकने वाली चलती हुई वायु की तरह बुरे विचार करते रहते हैं। शुभ कर्म करने का मुझे कोई जरीया या साधन नहीं मिला। ऐसे बुरे समय कलियुग में हमारे जैसे नादान लापरवाह, सत मार्ग का ज्ञान न होने से ज्ञान नेत्र हीन था तथा लोकवेद के आधार से अनाप-सनाप ज्ञान कहता रहता था। नानक जी कहते हैं कि मैं आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ बन्दा नानक पार हो गया।
भावार्थ - श्री गुरु नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे हक्का कबीर (सत् कबीर)! आप निर्विकार दयालु परमेश्वर हो। आप से मेरी एक अर्ज है कि मैं तो सत्यज्ञान वाली नजर रहित तथा आपके सत्यज्ञान के सामने तो निरूत्तर अर्थात् जुबान रहित हो गया हूँ। हे कुल मालिक! मैं तो आपके दासों के चरणों की धूल हूँ, मुझे शरण में रखना।
इसके पश्चात् जब श्री नानक जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि पूर्ण परमात्मा तो गीता ज्ञान दाता प्रभु से अन्य ही है। वही पूजा के योग्य है। पूर्ण परमात्मा की भक्ति तथा ज्ञान के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु भी अनभिज्ञ है। परमेश्वर स्वयं ही तत्त्वदर्शी संत रूप से प्रकट होकर तत्त्वज्ञान को जन-जन को सुनाता है। जिस ज्ञान को वेद भी नहीं जानते वह तत्त्वज्ञान केवल पूर्ण परमेश्वर (सतपुरुष) ही स्वयं आकर ज्ञान करवाता है।
फिर प्रमाण है ‘‘राग बसंत महला पहला‘‘ पौड़ी नं. 3 आदि ग्रन्थ(पंजाबी) पृष्ठ नं. 1188
नानक हवमों शब्द जलाईया, सतगुरु साचे दरस दिखाईया।।
इस वाणी से भी अति स्पष्ट है कि नानक जी कह रहे हैं कि सत्यनाम (सत्यशब्द) से विकार-अहम् (अभिमान) जल गया तथा मुझे सच्चे सतगुरु ने दर्शन दिए अर्थात् मेरे गुरुदेव के दर्शन हुए। स्पष्ट है कि नानक जी को कोई सतगुरु आकार रूप में अवश्य मिला था। वह ऊपर तथा नीचे पूर्ण प्रमाणित है। स्वयं कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा(अकाल मूर्त) स्वयं सच्चखण्ड से तथा दूसरे रूप में काशी बनारस से आकर प्रत्यक्ष दर्शन देकर सच्चखण्ड (सत्यलोक) भ्रमण करवा के सच्चा नाम उपदेश काशी (बनारस) में प्रदान किया।
आदरणीय गरीबदास जी महाराज {गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर(हरियाणा)} को भी परमेश्वर कबीर जिन्दा महात्मा के रूप में जंगल में मिले थे। इसी प्रकार सतलोक दिखा कर वापिस छोड़ा था। परमेश्वर ने बताया कि मैंने ही श्री नानक जी तथा श्री दादू जी को पार किया था। जब श्री नानक जी ने पूर्ण परमात्मा को सतलोक में भी देखा तथा फिर बनारस (काशी) में जुलाहे का कार्य करते देखा तब उमंग में भरकर कहा था ‘‘वाहेगुरु सत्यनाम‘‘ वाहेगुरु-वाहेगुरु तथा इसी उपरोक्त वाक्य का उच्चारण करते हुए काशी से वापिस आए। जिसको श्री नानक जी के अनुयाईयों ने जाप मंत्र रूप में जाप करना शुरु कर दिया कि यह पवित्र मंत्र श्री नानक जी के मुख कमल से निकला था, परन्तु वास्तविकता को न समझ सके। अब उनसे कौन छुटाए, इस नाम के जाप को जो सही नहीं है। क्योंकि वास्तविक मंत्र को बोलकर नहीं सुनाया जाता। उसका सांकेतिक मंत्र ‘सत्यनाम‘ है तथा वाहे गुरु कबीर परमेश्वर को कहा है।
इसी का प्रमाण संत गरीबदास साहेब ने अपने सद्ग्रन्थ साहेब में फुटकर साखी का अंग पृष्ठ न. 386 पर दिया है:-
गरीब, झांखी देख कबीर की, नानक कीती वाह। वाह सिक्खों के गल पड़ी, कौन छुटावै ताह।।
गरीब, हम सुलतानी नानक तारे, दादू कुं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, कांशी माहे कबीर हुआ।।
प्रमाण के लिए ‘‘जीवन दस गुरु साहिबान‘‘ पृष्ठ न. 42 से 44 तक (लेखक - सोढी तेजा सिंघ जी) - (प्रकाशक - चतर सिंघ जीवन सिंघ)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
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abhinews1 · 1 year
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पैसे और राजनीतिक जुनून से उमेश पाल बना टैंकर क्लीनर से करोड़पति, 18 साल में प्रॉपर्टी से बनाया करोड़ो का कारोबार
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पैसे और राजनीतिक जुनून से उमेश पाल बना टैंकर क्लीनर से करोड़पति, 18 साल में प्रॉपर्टी से बनाया करोड़ो का कारोबार
प्रयागराज -- एक टैंकर क्लीनर का कार्य करने वाले कृष्ण कुमार पाल उर्फ उमेश पाल, अपने राजनीतिक जुनून और पैसे कमाने की चाहत से मौजूदा समय में करोड़ों के मालिक थे। उमेश के पास सफारी, क्रेटा, इनोवा जैसी कई लग्जरी गाड़ियां होने के साथ  करोड़ो की सम्पत्ति के मालिक थे। दौलत आने के बाद उमेश पाल का कदम की राजनैतिक की ओर बढ़ने लगा था। वह भी विधायकी चुनाव लड़ने की तैयारी में थे | चुनाव को लेकर उनकी चचेरी बहन विधायक पूजा पाल (राजू पाल की पत्नी) से उनकी नाराजगी भी थी। बता दें कि धूमनगंज थाना क्षेत्र के जयंतीपुर में रहने वाले उमेश पाल तीन भाइयों में दूसरे नंबर के थे। बड़े भाई पप्पू पाल छोटे भाई रमेश पाल हैं। परिवार में उनकी बूढ़ी मां पत्नी और दो बेटे एवं दो बेटियां हैं। चायल विधायक पूजा पाल के चचेरे भाई उमेश पाल को बसपा विधायक राजू पाल की हत्या से पहले तक शायद मोहल्ले वाले भी ठीक से नहीं पहचानते थे। तंगहाली और गरीबी में अपने परिवार को चलाने वाले उमेश पाल बचपन में प्रीतम नगर में रहने वाले टैंकर चालक सरदार के साथ क्लीनर का काम करते थे। आईएमएस में स्कूल ऑफ इंग्लिश लैंग्वेज की शुरुआत उमेश की कई लोगों से चल रही थी अंदरूनी खुन्नस राजू पाल हत्याकांड का मुख्य गवाह बनने और अपहरण में अतीक अहमद एंड गैंग पर नामजद एफआईआर दर्ज कराकर चर्चा में आए उमेश पाल ने उसी समय से अपना रसूख बढ़ाना शुरू कर दिया। वह जमीन के कारोबार में उतर गए |पहले पार्टनरशिप में प्लाटिंग शुरू की, फिर धीरे-धीरे अकेले प्रॉपर्टी का कारोबार करने लगे। कुछ लोगों का कहना है कि प्रॉपर्टी का कारोबार इस समय उमेश पाल का धूमनगंज क्षेत्र में बड़े पैमाने पर चल रहा था। इसकी वजह से उनका कई लोगों से तनातनी चल रही थी। सत्ता पक्ष से जुड़े होने की वजह से सीधे उनसे कोई टकरा नहीं रहा था। लेकिन कहीं ना कहीं जमीन का विवाद भी सुलग रहा था। उनके जानने वालों का कहना है कि उमेश पाल ने अपहरण के मामले को खूब भुनाया। उसी के बूते उन्होंने जमीन के कारोबार का बड़ा साम्राज्य स्थापित कर लिया था |जो कहीं ना कहीं व्यवसाय दुश्मनी में भी तब्दील हो रहा था। विधायक पूजा पाल और उमेश के रिश्ते में आ चुकी थी दरार पैसा आने के बाद उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा भी बढ़ने लगी। जिसकी वजह से उनकी चचेरी बहन और चायल से सपा विधायक पूजा पाल के बीच रिश्ते में दूरी भी आ गई।नवाबगंज से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतने के बाद उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। बसपा विधायक रहे राजू पाल की 2005 में हत्या की गई थी इलाहाबाद पश्चिमी के बसपा विधायक रहे राजू पाल की 25 जनवरी 2005 को सुलेमसराय में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। उनकी पत्नी पूजा पाल कौशांबी की चायल सीट से सपा की विधायक हैं। राजू पाल हत्याकांड में पूर्व सांसद अतीक अहमद व उनके छोटे भाई पूर्व विधायक खालिद अजीम उर्फ अशरफ समेत अन्य लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई थी। उमेश पाल घटना का मुख्य गवाह था। वह राजू पाल की पत्नी पूजा पाल की सगी बुआ का लड़का था। राजू पाल हत्याकांड की जांच CBI ने की थी। इसमें उमेश पाल मुख्य गवाह थे। यही कारण है कि उन्हें कई बार जान से मारने की धमकी मिली थी। राजू पाल की पत्नी विधायक पूजा पाल ने भी कई बार आशंका जताई थी कि गवाही को प्रभावित करने के लिए उमेश पाल की हत्या हो सकती है। उमेश पाल ने भी अपनी जान को खतरा बताया था। हत्याकांड का गवाह बनने के बाद  2006 में हुआ उनका अपहरण शुरू से ही उमेश पाल की आगे पढ़ने की बहुत तमन्ना थी। पैसे कमाने की उनके अंदर जुनून सवार थी। उमेश पाल के जीवन में बदलाव विधायक और उनके चचेरे बहनोई राजू पाल हत्याकांड के बाद आया। हत्याकांड के मुख्य गवाह बने उमेश पाल का साल 2006 में धूमनगंज के झलवा इलाके से अपहरण कर लिया गया था। उमेश पाल ने पूर्व सांसद बाहुबली अतीक अहमद, उसके भाई पूर्व विधायक मोहम्मद अशरफ और अन्य पर अपहरण कर चकिया स्थित अपनी कोठी पर ले जाकर पीटने और गवाही न देने का दबाव बनाने का आरोप लगाया था। 24 फरवरी 2023 को इसी प्रकरण की गवाही के लिए उमेश पाल एमपी एमएलए कोर्ट गए थे। वहां से वापस घर पहुंचे थे, तभी उन्हें गोली मार दी गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत करने वाले उमेश पाल का बचपन भले ही मुफलिसी में बीता हो, लेकिन इस समय वह क्षेत्र के चर्चित शख्सियत में गिने जाते थे। वह फाफामऊ विधानसभा से खुद चुनाव लड़ना चाहते थे। चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने सपा ज्वॉइन की थी। साल 2022 में सपा छोड़ थामा था बीजेपी का दामन साल 2017 से 2021 तक खूब प्रचार भी किया था, लेकिन 2022 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का सिराथू में सभा हुआ। इसमें उमेश पाल बीजेपी में शामिल हो गए थे। उनके जानने वालों का कहना है कि चचेरी बहन सपा में और ये बीजेपी में थे। इस वजह से भाई-बहन में रार आ गई थी। पूजा पाल जहां निवर्तमान विधायक हैं। वहीं, उमेश पाल भविष्य में विधायक की लड़ने की तैयारी कर रहे थे। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि वह राजू पाल हत्याकांड में गवाही देने से भी कतराने लगे थे। सिर्फ अपहरण के मामले में अतीक और अशरफ के खिलाफ मुकदमा लड़ रहे थे। Read the full article
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trendswire · 2 years
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trendingwatch · 2 years
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सलमान खान, विक्की कौशल-कैटरीना कैफ और अन्य लोग गणेश चतुर्थी पर क्लिक करते हैं। तस्वीरें देखें:
सलमान खान, विक्की कौशल-कैटरीना कैफ और अन्य लोग गणेश चतुर्थी पर क्लिक करते हैं। तस्वीरें देखें:
सलमान खान की बहन अर्पिता खान और बहनोई आयुष शर्मा ने मुंबई में अपने घर पर गणेश चतुर्थी के अवसर पर सितारों से सजे एक समारोह की मेजबानी की। उपस्थित लोगों में सलमान, विक्की कौशल, कैटरीना कैफ, रितेश देशमुख और जेनेलिया डिसूजा सहित कई बॉलीवुड हस्तियां शामिल थीं। गणेश आरती के लिए सलमान खान ने कैजुअल व्हाइट शर्ट और जींस का कॉम्बिनेशन चुना। कैटरीना कैफ और विक्की कौशल ने पीले रंग के एथनिक वियर का चुनाव…
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Today's Horoscope-
मेष दैनिक राशिफल (Aries Daily Horoscope)
आज के दिन आपकी किसी खास व्यक्ति से मुलाकात होगी। व्यवसाय में पिछले कार्य को निपटाने के लिए भी समय उत्तम रहेगा। आप अपने परिवार के सदस्यों की जरूरतों को पूरा रखेंगे। आपकी किसी नई संपत्ति को खरीदने की इच्छा पूरी होगी,लेकिन आपको कुछ नए लोगों से मिलाप करते समय ध्यान देना होगा कि वह आपको किसी धन की स्कीम में ना फंसा लें। राजनीति की दिशा में कार्यरत लोगों के ऊपर कुछ जिम्मेदारियों का बोझ पड़ सकता है। आप अपने किसी मित्र की सेहत को लेकर चिंतित रहेंगे।
वृष दैनिक राशिफल (Taurus Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए आर्थिक दृष्टिकोण से उत्तम रहने वाला है। आपको अपने कुछ पुराने निवेशकों से मन मुताबिक लाभ मिलेगा। आपको आर्थिक स्थिति की चिंता नहीं सताएगी। आप अपने साथी की बातों को समझेंगे और उनसे कुछ प्यार भरी बातें करेंगे,तभी उनका कोई पिछला लड़ाई झगड़ा सुलझ पाएगा। कार्यक्षेत्र में आपको किसी गलत कार्य के लिए दंड भी किया जा सकता है,इसलिए आपको सावधान रहना होगा। विद्यार्थियों को अपनी शिक्षा में आ रही समस्याओं के कारण अत्यधिक मेहनत करनी होगी,तभी वह सफलता हासिल कर सकेंगे।
मिथुन दैनिक राशिफल (Gemini Daily Horoscope)
आज आपको अपने रुपए पैसे के लेन-देन में सावधानी बरतना बेहतर रहेगा,तभी आप किसी नए व्यवसाय की शुरुआत करेंगे। सरकारी नौकरी में कार्यरत लोग अपनी मीठी वाणी से लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहेंगे। मित्र भी आपकी प्रशंसा करते नजर आएंगे। परिवार में चल रही समस्याओं से आपको काफी हद तक निजात मिलती दिख रही है। आपको संतान के भविष्य से संबंधित कुछ निवेश के लिए जीवनसाथी से बातचीत करनी होगी। परिवार के किसी सदस्य को विदेश से नौकरी का ऑफर आ सकता है।
कर्क दैनिक राशिफल (Cancer Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए प्रसन्नता दिलाने वाला रहेगा। आपको व्यवसाय से संबंधित छोटी दूरी की यात्रा पर जाने का मौका मिलेगा,जो आपके लिए लाभदायक रहेगी। साहित्यकारों को कोई बड़ी खुशखबरी मिल सकती है। व्यापार में आपको मन मुताबिक धन लाभ मिलेगा और परिवार में यदि कोई कलह लंबे समय से पैर पसारे हुए थी, तो वह समाप्त होगी। जो युवा पुरानी नौकरी को छोड़कर किसी नई की तलाश कर रहे हैं,तो उन्हें भी कोई खुशखबरी सुनने को मिलेगी। आप अपनी माता जी की सेहत को लेकर थोड़ा परेशान रहेंगे,जिसके लिए आपको डॉक्टरी परामर्श लेना होगा।
सिंह दैनिक राशिफल (Leo Daily Horoscope)
आज का दिन आपके भाग्य के दृष्टिकोण से उत्तम रहने वाला है। आपको अचानक किसी कार्य के पड़ने के कारण अपने व्यवसाय की कुछ योजनाओं में बदलाव करना पड़ेगा। मन मुताबिक लाभ मिलने से आपकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी। बढ़ते हुए खर्चे आपको थोड़ा परेशान कर सकते हैं,जिनपर आपको लगाम अवश्य लगानी होगी। भाई आपकी हर संभव मदद करेंगे,जिसके कारण आपके बीच आपसी प्रेम और गहरा होगा। जीवनसाथी का सहयोग व सानिध्य मिलने से किसी नई संपत्ति को खरीद सकते हैं।
कन्या दैनिक राशिफल (Virgo Daily Horoscope)
आज का दिन आपके मान सम्मान में वृद्धि लेकर आएगा। यदि आपको अपने साले व बहनोई को धन उधार देना पड़े,तो बहुत ही सोच विचार कर दे,क्योंकि वह आपके आपसी रिश्तों में दरार पैदा करा सकता है। आपको पिताजी की किसी बात का बुरा लग सकता है,लेकिन फिर भी आप उनसे कुछ नहीं कह पाएंगे। जो लोग नौकरी में कार्यरत है,उन्हें अपने कामों को ध्यान पूर्वक करना होगा,नहीं तो उनसे कोई बहुत बड़ी गलती हो सकती है। आपको यात्रा पर जाने से पहले अपने कीमती सामानों की सुरक्षा अवश्य करनी होगी,नहीं तो उनके चोरी होने का भय बना हुआ है।
तुला दैनिक राशिफल (Libra Daily Horoscope)
आज आप अपने परिवार के सदस्यों के साथ सुनहरे पल व्यतीत करेंगे और बुद्धि विवेक से व्यवसाय की काफी सारी समस्याओं से निजात पा सकते हैं। अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए आपको घर के सदस्यों के साथ बैठकर चर्चा करनी होगी,जिसके बाद आपको एक नया आइडिया आएगा। जो लोग सट्टेबाजी में धन का निवेश करते हैं, उन्हें बहुत सोच-विचार कर धन लगाना होगा,नहीं तो वह डूब सकता है। आपको किसी भी कठिन परिस्थिति में हिम्मत हारने से बचना होगा और उसका डटकर सामना करना होगा। किसी सरकारी योजना का भी लाभ आपको मिलता दिख रहा है।
वृश्चिक दैनिक राशिफल (Scorpio Daily Horoscope)
आज आप कार्यक्षेत्र में किसी नए परिवर्तन को कर सकते हैं,लेकिन आपको कामकाज में थोड़ी गंभीरता अवश्य बनाए रखनी होगी। यदि आपने किसी व्यक्ति पर आंख मूंदकर भरोसा किया,तो वह आपके लिए कोई बहुत बड़ा खतरा बन सकता है। आपको अपने मन में चल रही समस्याओं का जिक्र जीवनसाथी से करना होगा, क्योंकि वह आपकी इस समय मदद कर सकती हैं। सरकारी नौकरी का प्रयास कर रहे लोग किसी परीक्षा को दे सकते हैं,जिसमें उन्हें कठिन परिश्रम करना होगा।
धनु दैनिक राशिफल (Sagittarius Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए खुशियों भरा रहेगा। व्यापार में आज नए-नए तरीके से धन कमाने की पूरी कोशिश करेंगे। आपके मन में पैसे को लेकर कई तरह के विचार आ सकते हैं। किसी नवीन व्यवसाय को करने की यदि योजना बना रहे थे तो वह भी सफल होगा। जीवनसाथी से आपको हर संभव मदद मिलती दिख रही है। आपको कीमती वस्तुओं को खरीदने से पहले अपनी जेब का ख्याल रखना होगा। अधिकारी आपको कुछ बड़ी जिम्मेदारियां सौंप सकते हैं,जिनको आपको सावधानीपूर्वक पूरा करना होगा, नहीं तो आपसे कुछ गलती करा सकते हैं।
मकर दैनिक राशिफल (Capricorn Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए उत्तम सम्पति के संकेत दे रहा है। आप अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने में काफी हद तक सफल रहेंगे,क्योंकि आपका कुछ रुका हुआ धन आपको प्राप्त हो सकता है,जो आपकी आर्थिक स्थिति को मजबूती देगा। आपके व्यक्तित्व में निखार आएगा। आपको अपनी प्रतिभा व योग्यता को साबित करने का अवसर मिलेगा। आपकी अपने किसी परिचित या मित्र से मुलाकात होगी। सरकारी नौकरी में कार्यरत लोगों को कोई नया पदभार सौंपा जा सकता है।
कुंभ दैनिक राशिफल (Aquarius Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए मध्यम रूप से फलदायक रहेगा,इसलिए आपको धन का निवेश भी दिल खोल कर करना चाहिए,क्योंकि आपको आप उत्साह पूर्वक व्यवसाय की कुछ योजनाओं को पूरा करेंगे,जिनसे आप लाभ भी अवश्य कमाएंगे। आपके कुछ पुराने निवेशों से आपको अच्छा रिटर्न मिलने की पूरी संभावना है,जो लोग ऑनलाइन व्यवसाय करते हैं,उन्हे कोई बड़ा ऑर्डर मिल सकता है। जो युवा नौकरी के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं,उन्हें कोई बेहतर विकल्प हाथ लगेगा। वैवाहिक जीवन में यदि कुछ परेशानियां चल रही थी,तो उनका आपको समाधान भी आसानी से ही मिलेगा।
मीन दैनिक राशिफल (Pisces Daily Horoscope)
आज का दिन आप अपनी पारिवारिक समस्याओं का समाधान खोजने में व्यतीत करेंगे और विद्यार्थियों को इधर उधर की बातों में ध्यान लगाने से अच्छा है कि अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाएं, तभी वह परीक्षा में सफलता हासिल कर सकेंगे। आपकी वाणी आपके लिए एक वरदान है,जिससे आप लोगों से प्यार से पेश आएंगे और अपने काफी काम आसानी से निकलवा पाएंगे। आप कुछ नए कपड़ों की खरीदारी भी कर सकते हैं,जिसे देखकर आपके परिवार का कोई सदस्य आपसे ईष्या करेगा। माताजी से आप किसी समस्या का समाधान खो���ने के लिए बातचीत कर सकते हैं।
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crickettr · 2 years
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दक्षिण अफ्रीका की ऑलराउंडर मारिजाने कप खेलों से बाहर
दक्षिण अफ्रीका की ऑलराउंडर मारिजाने कप खेलों से बाहर
दक्षिण अफ्रीका की स्टार ऑलराउंडर मारिजैन कैप बर्मिंघम में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में नहीं खेल पाएंगी, जिससे 29 जुलाई से शुरू होने वाले टूर्नामेंट से कुछ दिन पहले टीम मुश्किल में पड़ जाएगी। कप्प, जो एक बहु-प्रारूप श्रृंखला के लिए अपने टीम के बाकी साथियों के साथ इंग्लैंड का दौरा कर रहे थे, को अपने बहनोई के दुर्घटना का शिकार होने के बाद एक पारिवारिक मामले में भाग लेने के लिए जल्दी घर वापस जाना…
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nayesubah · 2 years
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बहन की मौत का बदला लेने के लिए भाइयों ने बहनोई के घर में लगाई आग
बहन की मौत का बदला लेने के लिए भाइयों ने बहनोई के घर में लगाई आग
Bihar: सीतामढ़ी जिले के मेहसौल ओपी थाना क्षेत्र अंतर्गत राजोपट्टी वार्ड संख्या 6 के घर में बहन की मौत का बदला लेने के लिए तीन भाइयों ने मिलकर अपने बहनोई के घर में आग लगा दी, आग लगाने के बाद सुबह जब तीनो भाई घूम रहे थे तब ग्रामीणों ने बंधक बना लिया देखते ही देखते सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण एकजुट हो गए और तीनों युवकों को स्थानीय बैठकखाने में ले गए जहां उन्हें करीब 2 घंटे तक बंधक बनाए रखा। मेहसौल…
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8920554568 · 2 years
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# पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब नानक जी को कैसे मिले आइए जानते हैं
Kabir Prakat Diwas
JAGAT GURU RAMPAL JI
पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब (सिक्ख धर्म) में पूर्ण-परमात्मा की जानकारी
आदरणीय श्री नानक साहेब जी प्रभु कबीर (धाणक) जुलाहा के साक्षी
आदरणीय श्री नानक साहेब जी प्रभु कबीर (धाणक) जुलाहा के साक्षी
कबीर साहिब ने गुरु नानक देव जी को सतनाम दिया तथा सत लोक (सचखंड) दिखाया।
साहेब कबीर द्वारा श्री नानक जी को तत्वज्ञान समझाना
नानक जी का संक्षिप्त परिचय
श्री नानक देव का जन्म विक्रमी संवत् 1526 (सन् 1469) कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को हिन्दु परिवार में श्री कालु राम मेहत्ता (खत्री) के घर माता श्रीमति तृप्ता देवी की पवित्र कोख (गर्भ) से पश्चिमी पाकिस्त्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में हुआ। इन्होंने फारसी, पंजाबी, संस्कृत भाषा पढ़ी हुई थी। श्रीमद् भगवत गीता जी को श्री बृजलाल पांडे से पढ़ा करते थे। श्री नानक देव जी के श्री चन्द तथा लखमी चन्द दो लड़के थे।
श्री नानक जी अपनी बहन नानकी की सुसराल शहर सुल्तान पुर में अपने बहनोई श्री जयराम जी की कृपा से सुल्तान पुर के नवाब के यहाँ मोदी खाने की नौकरी किया करते थे। प्रभु में असीम प्रेम था क्योंकि यह पुण्यात्मा युगों-युगों से पवित्र भक्ति ब्रह्म भगवान(काल) की करते हुए आ रहे थे। सत्ययुग में यही नानक जी राजा अम्ब्रीष थे तथा ब्रह्म भक्ति विष्णु जी को इष्ट मानकर किया करते थे। दुर्वासा जैसे महान तपस्वी ऋषि भी इनके दरबार में हार मान कर क्षमा याचना करके गए थे।
त्रोता युग में श्री नानक जी की आत्मा राजा जनक विदेही बने। जो सीता जी के पिता कहलाए। उस समय सुखदेव ऋषि जो महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे जो अपनी सिद्धि से आकाश में उड़ जाते थे। परन्तु गुरु से उपदेश नहीं ले रखा था। जब सुखदेव विष्णुलोक के स्वर्ग में गए तो गुरु न होने के कारण वापिस आना पड़ा। विष्णु जी के आदेश से राजा जनक को गुरु बनाया तब स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ। फिर कलियुग में यही राजा जनक की आत्मा एक हिन्दु परिवार में श्री कालुराम महत्ता (खत्री) के घर उत्पन्न हुए तथा श्री नानक नाम रखा गया।
नानक जी तथा परमेश्वर कबीर जी की ज्ञान चर्चा
बाबा नानक देव जी प्रातःकाल प्रतिदिन सुल्तानपुर के पास बह रही बेई दरिया में स्नान करने जाया करते थे तथा घण्टों प्रभु चिन्तन में बैठे रहते थे।
एक दिन एक जिन्दा फकीर बेई दरिया पर मिले तथा नानक जी से कहा कि आप बहुत अच्छे प्रभु भक्त नजर आते हो। कृप्या मुझे भी भक्ति मार्ग बताने की कृपा करें। मैं बहुत भटक लिया हूँ। मेरा संशय समाप्त नहीं हो पाया है।
श्री नानक जी ने पूछा कि आप कहाँ से आए हो? आपका क्या नाम है? क्या आपने कोई गुरु धारण किया है?
तब जिन्दा फकीर का रूप धारण किए कबीर जी ने कहा मेरा नाम कबीर है, बनारस (काशी) से आया हूँ। जुलाहे का काम करता हूँं। मैंने पंडित रामानन्द स्वामी जी से नाम उपदेश ले रखा है।
श्री नानक जी ने बन्दी छोड़ कबीर जी को एक जिज्ञासु जानकर भक्ति मार्ग बताना प्रारम्भ किया:-
श्री नानक जी ने कहा हे जिन्दा! गीता में लिखा है कि एक ‘ओ3म’ मंत्र का जाप करो। सतगुण श्री विष्णु जी (जो श्री कृष्ण रूप में अवतरित हुए थे) ही पूर्ण परमात्मा है। स्वर्ग प्राप्ति का एक मात्र साधारण-मार्ग है। गुरु के बिना मोक्ष नहीं, निराकार ब्रह्म की एक ‘ओम् ’मंत्र की साधना से स्वर्ग प्राप्ति होती है।
जिन्दा रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा गुरु किसे बनाऊँ? कोई पूरा गुरु मिल ही नहीं रहा जो संशय समाप्त करके मन को भक्ति में लगा सके। स्वामी रामानन्द जी मेरे गुरु हैं परन्तु उन से मेरा संशय निवारण नहीं हो पाया है (यहाँ पर कबीर परमेश्वर अपने आप को छुपा कर लीला करते हुए कह रहे हैं तथा साथ में यह उद्देश्य है कि इस प्रकार श्री नानक जी को समझाया जा सकता है)।
श्री नानक जी ने कहा मुझे गुरु बनाओ, आप का कल्याण निश्चित है। जिन्दा महात्मा के रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा कि मैं आप को गुरु धारण करता हूँ, परन्तु मेरे कुछ प्रश्न हैं, उनका आप से समाधान चाहूँगा। श्री नानक जी बोले - पूछो।
जिन्दा महात्मा के रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा हे गुरु नानक जी! आपने बताया कि तीन लोक के प्रभु (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) है। त्रिगुण माया सृष्टि, स्थिति तथा संहार करती है। श्री कृष्ण जी ही श्री विष्णु रूप में स्वयं आए थे, जो सर्वेश्वर, अविनाशी, सर्व लोकों के धारण व पोषण कर्ता हैं। यह सर्व के पूज्य हैं तथा सृष्टि रचनहार भी यही हैं। इनसे ऊपर कोई प्रभु नहीं है। इनके माता-पिता नहीं है, ये तो अजन्मा हैं। श्री कृष्ण ने ही गीता ज्ञान दिया है (यह ज्ञान श्री नानक जी ने श्री बृजलाल पाण्डे से सुना था, जो उन्हें गीता जी पढ़ाया करते थे)। परन्तु गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अर्जुन! मैं तथा तू पहले भी थे तथा यह सर्व सैनिक भी थे, हम सब आगे भी उत्पन्न होंगे। तेरे तथा मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता मैं जानता हूँ। इससे तो सिद्ध है कि गीता ज्ञान दाता भी नाशवान है, अविनाशी नहीं है। गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि जो त्रिगुण माया (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी) के द्वारा मिलने वाले क्षणिक लाभ के कारण इन्हीं की पूजा करके अपना कल्याण मानते हैं, इनसे ऊपर किसी शक्ति को नहीं मानते अर्थात् जिनकी बुद्धि इन्हीं तीन प्रभुओं (त्रिगुणमयी माया) तक सीमित है वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले, मूर्ख मुझे भी नहीं पूजते। इससे तो सिद्ध हुआ कि श्री विष्णु (सतगुण) आदि पूजा के योग्य नहीं है तथा अपनी साधना के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में कहा है कि मेरी (गति) पूजा भी (अनुत्तमाम्) अति घटिया है। इसलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 4, अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम सतलोक चला जाएगा। जहाँ जाने के पश्चात् साधक का जन्म-मृत्यु का चक्र सदा के लिए छूट जाएगा। वह साधक फिर लौट कर संसार में नहीं आता अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है। उस परमात्मा के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने कहा है कि मैं नहीं जानता। उस के विषय में पूर्ण (तत्व) ज्ञान तत्वदर्शी संतों से पूछो। जैसे वे कहें वैसे साधना करो। प्रमाण गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में। श्री नानक जी से परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा कि क्या वह तत्वदर्शी संत आपको मिला है जो पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि बताएगा ? श्री नानक जी ने कहा नहीं मिला। परमेश्वर कबीर जी ने कहा जो भक्ति आप कर रहे हो यह तो पूर्ण मोक्ष दायक नहीं है। उस पूर्ण परमात्मा के विषय में पूर्ण ज्ञान रखने वाला मैं ही वह तत्वदर्शी संत हूँ। बनारस (काशी) में धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। गीता ज्ञान दाता प्रभु स्वयं को नाशवान कह रहा है, जब स्वर्ग तथा महास्वर्ग (ब्रह्मलोक) भी नहीं रहेगा तो साधक का क्या होगा ? जैसे आप ने बताया कि श्रीमद् भगवत गीता में लिखा है कि ओ3म मंत्र के जाप से स्वर्ग प्राप्ति हो जाती है। वहाँ स्वर्ग में साधक जन कितने दिन रह सकते हैं? श्री नानक जी ने उत्तर दिया जितना भजन तथा दान के आधार पर उनका स्वर्ग का समय निर्धारित होगा उतने दिन स्वर्ग में आनन्द से रह सकते हैं।
जिन्दा फकीर ने प्रश्न किया कि तत् पश्चात् कहाँ जाएँगे?
उत्तर (नानक जी का) - फिर इस मृत लोक में आना होता है तथा कर्माधार पर अन्य योनियाँ भी भोगनी पड़ती हैं।
प्रश्न (जिन्दा रूप में कबीर साहेब का)- क्या जन्म मरण मिट सकता है? उत्तर (श्री नानक जी का) - नहीं, गीता में कहा है अर्जुन तेरे मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं और आगे भी होंगे अर्थात् जन्म-मरण बना रहेगा(गीता अध्याय 2 श्लोक 12 तथा अध्याय 4 श्लोक 5)। शुभ कर्म ज्यादा करने से स्वर्ग का समय अधिक हो जाता है।
प्रश्न {जिन्दा फकीर (कबीर जी) का} - गीता अध्याय न. 8 के श्लोक न. 16 में लिखा है कि ब्रह्मलोक से लेकर सर्वलोक नाशवान हैं। उस समय कहाँ रहोगे? जब न पृथ्वी रहेगी, न श्री विष्णु रहेगा, न विष्णुलोक, न स्वर्ग लोक तथा पूरे ब्रह्मण्ड का विनाश होगा। इसलिए गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि किसी तत्वदर्शी संत की खोज कर, फिर जैसे उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति की विधि वह संत बताए उसके अनुसार साधना कर। उसके पश्चात् उस परम पद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए, जहाँ पर जाने के पश्चात् साधक का फिर जन्म-मृत्यु कभी नहीं होता अर्थात् फिर लौट कर संसार में नहीं आते। जिस परमेश्वर से सर्व ब्रह्मण्डों की उत्पत्ति हुई है। मैं (गीता ज्ञान दाता) भी उसी पूर्ण परमात्मा की शरण में हूँ (गीता अध्याय 4 श्लोक 34, अध्याय 15 श्लोक 4) इसलिए कहा है कि अर्जुन सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सतलोक स्थान अर्थात् सच्चखण्ड में चला जाएगा(गीता अध्याय 18 श्लोक 62)। उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ओम-तत्-सत् केवल यही मंत्र है(गीता अध्याय 17 श्लोक 23)।
उत्तर नानक जी का - इसके बारे में मुझे ज्ञान नहीं।
जिन्दा फकीर (कबीर साहेब) ने श्री नानक जी को बताया कि यह सर्व काल की कला है। गीता अध्याय न. 11 के श्लोक न. 32 में स्वयं गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि मैं काल हूँ और सभी को खाने के लिए आया हूँ। वही निरंकार कहलाता है। उसी काल का ओंकार (ओम्) मंत्र है।
गीता अध्याय न. 11 के श्लोक न. 21 में अर्जुन ने कहा है कि आप तो ऋषियों को भी खा रहे हो, देवताओं को भी खा रहे हो जो आपही का स्मरण स्तुति वेद विधि अनुसार कर रहे हैं। इस प्रकार काल वश सर्व साधक साधना करके उसी के मुख में प्रवेश करते रहते हैं। आपने इसी काल (ब्रह्म) की साधना करते करते असंख्यों युग हो गए। साठ हजार जन्म तो आपके महर्षि तथा महान भक्त रूप में हो चुके हैं। फिर भी काल के लोक में जन्म-मृत्यु के चक्र में ही रहे हो।
सर्व सृष्टि रचना सुनाई तथा श्री ब्रह्मा (रजगुण), श्री विष्णु (सतगुण) तथा श्री शिव (तमगुण) की स्थिति बताई। श्री देवी महापुराण तीसरा स्कंद (पृष्ठ 123, गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, मोटा टाईप) में स्वयं विष्णु जी ने कहा है कि मैं (विष्णु) तथा ब्रह्मा व शिव तो नाशवान हैं, अविनाशी नहीं हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होता है। आप (दुर्गा/अष्टांगी) हमारी माता हो। दुर्गा ने बताया कि ब्रह्म (ज्योति निरंजन) आपका पिता है। श्री शंकर जी ने स्वीकार किया कि मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर भी आपका पुत्र हूँ तथा ब्रह्मा भी आपका बेटा है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे नानक जी! आप इन्हें अविनाशी, अजन्मा, इनके कोई माता-पिता नहीं हैं आदि उपमा दे रहे हो। यह दोष आप का नहीं है। यह दोष दोनों धर्मों(हिन्दू तथा मुसलमान) के ज्ञानहीन गुरुओं का है जो अपने-अपने धर्म के सद्ग्रन्थों को ठीक से न समझ कर अपनी-अपनी अटकल से दंत कथा (लोकवेद) सुना कर वास्तविक भक्ति मार्ग के विपरीत शास्त्रा विधि रहित मनमाना आचरण (पूजा) का ज्ञान दे रहे हैं। दोनों ही पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रा एक पूर्ण प्रभु का(मेरा) ही ज्ञान करा रहे हैं। र्कुआन शरीफ में सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में भी मुझ कबीर का वर्णन है।
श्री नानक जी ने कहा कि यह तो आज तक किसी ने नहीं बताया। इसलिए मन स्वीकार नहीं कर रहा है। तब जिन्दा फकीर जी (कबीर साहेब जी) श्री नानक जी की अरूचि देखकर चले गए। उपस्थित व्यक्तियों ने श्री नानक जी से पूछा यह भक्त कौन था जो आप को गुरुदेव कह रहा था? नानक जी ने कहा यह काशी में रहता है, नीच जाति का जुलाहा(धाणक) कबीर था। बेतुकी बातें कर रहा था। कह रहा था कि कृष्ण जी तो काल के चक्र में है तथा मुझे भी कह रहा था कि आपकी साधना ठीक नहीं है। तब मैंने बताना शुरू किया तब हार मान कर चला गया। {इस वार्ता से सिक्खों ने श्री नानक जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी का गुरु मान लिया।}
श्री नानक जी प्रथम वार्ता पूज्य कबीर परमेश्वर के साथ करने के पश्चात् यह तो जान गए थे कि मेरा ज्ञान पूर्ण नहीं है तथा गीता जी का ज्ञान भी उससे कुछ भिन्न ही है जो आज तक हमें बताया गया था। इसलिए हृदय से प्रतिदिन प्रार्थना करते थे कि वही संत एक बार फिर आए। मैं उससे कोई वाद-विवाद नहीं करूंगा, कुछ प्रश्नों का उत्तर अवश्य चाहूँगा। परमेश्वर कबीर जी तो अन्तर्यामी हैं तथा आत्मा के आधार व आत्मा के वास्तविक पिता हैं, अपनी प्यारी आत्माओं को ढूंढते रहते हैं। कुछ समय के ऊपरान्त जिन्दा फकीर रूप में कबीर जी ने उसी बेई नदी के किनारे पहुँच कर श्री नानक जी को राम-राम कहा। उस समय श्री नानक जी कपड़े उतार कर स्नान के लिए तैयार थे। जिन्दा महात्मा केवल श्री नानक जी को दिखाई दे रहे थे अन्य को नहीं। श्री नानक जी से वार्ता करने लगे। कबीर जी ने कहा कि आप मेरी बात पर विश्वास करो। एक पूर्ण परमात्मा है तथा उसका सतलोक स्थान है जहाँ की भक्ति करने से जीव सदा के लिए जन्म-मरण से छूट सकता है। उस स्थान तथा उस परमात्मा की प्राप्ति की साधना का केवल मुझे ही पता है अन्य को नहीं तथा गीता अध्याय न. 18 के श्लोक न. 62, अध्याय 15 श्लोक 4 में भी उस परमात्मा तथा स्थान के विषय में वर्णन है।
पूर्ण परमात्मा गुप्त है उसकी शरण में जाने से उसी की कृपा से तू (शाश्वतम्) अविनाशी अर्थात् सत्य (स्थानम्) लोक को प्राप्त होगा। गीता ज्ञान दाता प्रभु भी कह रहा है कि मैं भी उसी आदि पुरुष परमेश्वर नारायण की शरण में हूँ। श्री नानक जी ने कहा कि मैं आपकी एक परीक्षा लेना चाहता हूँ। मैं इस दरिया में छुपूँगा और आप मुझे ढूंढ़ना। यदि आप मुझे ढूंढ दोगे तो मैं आपकी बात पर विश्वास कर लूँगा। यह कह कर श्री नानक जी ने बेई नदी में डुबकी लगाई तथा मछली का रूप धारण कर लिया। जिन्दा फकीर (कबीर पूर्ण परमेश्वर) ने उस मछली को पकड़ कर जिधर से पानी आ रहा था उस ओर लगभग तीन किलो मीटर दूर ले गए तथा श्री नानक जी बना दिया।
(प्रमाण श्री गुरु ग्रन्थ साहेब सीरी रागु महला पहला, घर 4 पृष्ठ 25) -
तू दरीया दाना बीना, मैं मछली कैसे अन्त लहा।
जह-जह देखा तह-तह तू है, तुझसे निकस फूट मरा।
न जाना मेऊ न जाना जाली। जा दुःख लागै ता तुझै समाली।1।रहाऊ।।
नानक जी ने कहा कि मैं मछली बन गया था, आपने कैसे ढूंढ लिया? हे परमेश्वर! आप तो दरीया के अंदर सूक्ष्म से भी सूक्ष्म वस्तु को जानने वाले हो। मुझे तो जाल डालने वाले(जाली) ने भी नहीं जाना तथा गोताखोर(मेऊ) ने भी नहीं जाना अर्थात् नहीं जान सका। जब से आप के सतलोक से निकल कर अर्थात् आप से बिछुड़ कर आए हैं तब से कष्ट पर कष्ट उठा रहा हूँ। जब दुःख आता है तो आपको ही याद करता हूँ, मेरे कष्टों का निवारण आप ही करते हो? (उपरोक्त वार्ता बाद में काशी में प्रभु के दर्शन करके हुई थी)।
तब नानक जी ने कहा कि अब मैं आपकी सर्व वार्ता सुनने को तैयार हूँ। कबीर परमेश्वर ने वही सृष्टि रचना पुनर् सुनाई तथा कहा कि मैं पूर्ण परमात्मा हूँ मेरा स्थान सच्चखण्ड (सत्यलोक) है। आप मेरी आत्मा हो। काल (ब्रह्म) आप सर्व आत्माओं को भ्रमित ज्ञान से विचलित करता है तथा नाना प्रकार से प्राणियों के शरीर में बहुत परेशान कर रहा है। मैं आपको सच्चानाम (सत्यनाम/वास्तविक मंत्र जाप) दूँगा जो किसी शास्त्रा में नहीं है। जिसे काल (ब्रह्म) ने गुप्त कर रखा है।
श्री नानक जी ने कहा कि मैं अपनी आँखों अकाल पुरूष तथा सच्चखण्ड को देखूं तब आपकी बात को सत्य मानूं। तब कबीर साहेब जी श्री नानक जी की पुण्यात्मा को सत्यलोक ले गए। सच्च खण्ड में श्री नानक जी ने देखा कि एक असीम तेजोमय मानव सदृश शरीर युक्त प्रभु तख्त पर बैठे थे। अपने ही दूसरे स्वरूप पर कबीर साहेब जिन्दा महात्मा के रूप में चंवर करने लगे। तब श्री नानक जी ने सोचा कि अकाल मूर्त तो यह रब है जो गद्दी पर बैठा है। कबीर तो यहाँ का सेवक होगा। उसी समय जिन्दा रूप में परमेश्वर कबीर साहेब उस गद्दी पर विराजमान हो गए तथा जो तेजोमय शरीर युक्त प्रभु का दूसरा रूप था वह खड़ा होकर तख्त पर बैठे जिन्दा वाले रूप पर चंवर करने लगा। फिर वह तेजोमय रूप नीचे से गये जिन्दा (कबीर) रूप में समा गया तथा गद्दी पर अकेले कबीर परमेश्वर जिन्दा रूप में बैठे थे और चंवर अपने आप ढुरने लगा।
तब नानक जी ने कहा कि वाहे गुरु, सत्यनाम से प्राप्ति तेरी। इस प्रक्रिया में तीन दिन लग गए। नानक जी की आत्मा को साहेब कबीर जी ने वापस शरीर में प्रवेश कर दिया। तीसरे दिन श्री नानक जी होश में आऐ।
उधर श्री जयराम जी ने (जो श्री नानक जी का बहनोई था) श्री नानक जी को दरिया में डूबा जान कर दूर तक गोताखोरों से तथा जाल डलवा कर खोज करवाई। परन्तु कोशिश निष्फल रही और मान लिया कि श्री नानक जी दरिया के अथाह वेग में बह कर मिट्टी के नीचे दब गए। तीसरे दिन जब नानक जी उसी नदी के किनारे सुबह-सुबह दिखाई दिए तो बहुत व्यक्ति एकत्रित हो गए, बहन नानकी तथा बहनोई श्री जयराम भी दौड़े गए, खुशी का ठिकाना नहीं रहा तथा घर ले आए।
श्री नानक जी अपनी नौकरी पर चले गए। मोदी खाने का दरवाजा खोल दिया तथा कहा जिसको जितना चाहिए, ले जाओ। पूरा खजाना लुटा कर शमशान घाट पर बैठ गए। जब नवाब को पता चला कि श्री नानक खजाना समाप्त करके शमशान घाट पर बैठा है। तब नवाब ने श्री जयराम की उपस्थिति में खजाने का हिसाब करवाया तो सात सौ साठ रूपये अधिक मिले। नवाब ने क्षमा याचना की तथा कहा कि नानक जी आप सात सौ साठ रूपये जो आपके सरकार की ओर अधिक हैं ले लो तथा फिर नौकरी पर आ जाओ। तब श्री नानक जी ने कहा कि अब सच्ची सरकार की नौकरी करूँगा। उस पूर्ण परमात्मा के आदेशानुसार अपना जीवन सफल करूँगा। वह पूर्ण परमात्मा है जो मुझे बेई नदी पर मिला था।
नवाब ने पूछा वह पूर्ण परमात्मा कहाँ रहता है तथा यह आदेश आपको कब हुआ? श्री नानक जी ने कहा वह सच्चखण्ड में रहता हेै। बेई नदी के किनारे से मुझे स्वयं आकर वही पूर्ण परमात्मा सच्चखण्ड (सत्यलोक) लेकर गया था। वह इस पृथ्वी पर भी आकार में आया हुआ है। उसकी खोज करके अपना आत्म कल्याण करवाऊँगा। उस दिन के बाद श्री नानक जी घर त्याग कर पूर्ण परमात्मा की खोज पृथ्वी पर करने के लिए चल पड़े। श्री नानक जी सतनाम तथा वाहिगुरु की रटना लगाते हुए बनारस पहुँचे। इसीलिए अब पवित्र ��िक्ख समाज के श्रद्धालु केवल सत्यनाम श्री वाहिगुरु कहते रहते हैं। सत्यनाम क्या है तथा वाहिगुरु कौन है यह मालूम नहीं है। जबकि सत्यनाम(सच्चानाम) गुरु ग्रन्थ साहेब में लिखा है, जो अन्य मंत्र है।
जैसा की कबीर साहेब ने बताया था कि मैं बनारस (काशी) में रहता हूँ। धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। मेरे गुरु जी काशी में सर्व प्रसिद्ध पंडित रामानन्द जी हैं। इस बात को आधार रखकर श्री नानक जी ने संसार से उदास होकर पहली उदासी यात्रा बनारस (काशी) के लिए प्रारम्भ की (प्रमाण के लिए देखें ‘‘जीवन दस गुरु साहिब‘‘ (लेखक:- सोढ़ी तेजा सिंह जी, प्रकाशक=चतर सिंघ, जीवन सिंघ) पृष्ठ न. 50 पर।)।
परमेश्वर कबीर साहेब जी स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में प्रतिदिन जाया करते थे। जिस दिन श्री नानक जी ने काशी पहुँचना था उससे पहले दिन कबीर साहेब ने अपने पूज्य गुरुदेव रामानन्द जी से कहा कि स्वामी जी कल मैं आश्रम में नहीं आ पाऊँगा। क्योंकि कपड़ा बुनने का कार्य अधिक है। कल सारा दिन लगा कर कार्य निपटा कर फिर आपके दर्शन करने आऊँगा।
काशी (बनारस) में जाकर श्री नानक जी ने पूछा कोई रामानन्द जी महाराज है। सब ने कहा वे आज के दिन सर्व ज्ञान सम्पन्न ऋषि हैं। उनका आश्रम पंचगंगा घाट के पास है। श्री नानक जी ने श्री रामानन्द जी से वार्ता की तथा सच्चखण्ड का वर्णन शुरू किया। तब श्री रामानन्द स्वामी ने कहा यह पहले मुझे किसी शास्त्रा में नहीं मिला परन्तु अब मैं आँखों देख चुका हूँ, क्योंकि वही परमेश्वर स्वयं कबीर नाम से आया हुआ है तथा मर्यादा बनाए रखने के लिए मुझे गुरु कहता है परन्तु मेरे लिए प्राण प्रिय प्रभु है। पूर्ण विवरण चाहिए तो मेरे व्यवहारिक शिष्य परन्तु वास्तविक गुरु कबीर से पूछो, वही आपकी शंका का निवारण कर सकता है।
श्री नानक जी ने पूछा कि कहाँ हैं (परमेश्वर स्वरूप) कबीर साहेब जी ? मुझे शीघ्र मिलवा दो। तब श्री रामानन्द जी ने एक सेवक को श्री नानक जी के साथ कबीर साहेब जी की झोपड़ी पर भेजा। उस सेवक से भी सच्चखण्ड के विषय में वार्ता करते हुए श्री नानक जी चले तो उस कबीर साहेब के सेवक ने भी सच्चखण्ड व सृष्टि रचना जो परमेश्वर कबीर साहेब जी से सुन रखी थी सुनाई। तब श्री नानक जी ने आश्चर्य हुआ कि मेरे से तो कबीर साहेब के चाकर (सेवक) भी अधिक ज्ञान रखते हैं। इसीलिए गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में श्री नानक जी ने कहा है कि -
“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।
नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक”
जिसका भावार्थ है कि हे कबीर परमेश्वर जी मैं नानक कह रहा हूँ कि मेरा उद्धार हो गया, मैं तो आपके सेवकों के चरणों की धूर तुल्य हूँ।
जब नानक जी ने देखा यह धाणक (जुलाहा) वही परमेश्वर है जिसके दर्शन सत्यलोक (सच्चखण्ड) में किए तथा बेई नदी पर हुए थे। वहाँ यह जिन्दा महात्मा के वेश में थे यहाँ धाणक (जुलाहे) के वेश में हैं। यह स्थान अनुसार अपना वेश बदल लेते हैं परन्तु स्वरूप (चेहरा) तो वही है। वही मोहिनी सूरत जो सच्चखण्ड में भी विराजमान था। वही करतार आज धाणक रूप में बैठा है। श्री नानक जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आँखों में आँसू भर गए।
तब श्री नानक जी अपने सच्चे स्वामी अकाल मूर्ति को पाकर चरणों में गिरकर सत्यनाम (सच्चानाम) प्राप्त किया। तब शान्ति पाई तथा अपने प्रभु की महिमा देश विदेश में गाई।
पहले श्री नानकदेव जी एक ओंकार(ओम) मन्त्र का जाप करते थे तथा उसी को सत मान कर कहा करते थे एक ओंकार। उन्हें बेई नदी पर कबीर साहेब ने दर्शन दे कर सतलोक (सच्चखण्ड) दिखाया तथा अपने सतपुरुष रूप को दिखाया। जब सतनाम का जाप दिया तब नानक जी की काल लोक से मुक्ति हुई। नानक जी ने कहा कि:
इसी का प्रमाण गुरु ग्रन्थ सा��िब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29
शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।
मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।
काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।
इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक(मन रूपी) कुत्ता तथा इसके साथ दो (आशा-तृष्णा रूपी) कुतिया अनावश्यक भौंकती(उमंग उठती) रहती हैं तथा सदा नई-नई आशाएँ उत्पन्न(ब्याती हैं) होती हैं। इनको मारने का तरीका(जो सत्यनाम तथा तत्व ज्ञान बिना) झुठा(कुड़) साधन(मुठ मुरदार) था। मुझे धाणक के रूप में हक्का कबीर (सत कबीर) परमात्मा मिला। उन्होनें मुझे वास्तविक उपासना बताई।
नानक जी ने कहा कि उस परमेश्वर(कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति (साख) रहनी थी और न ही कोई अच्छी करनी (भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक (सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार को पार(काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे (नानक जी कहते हैं) भी एही एक तेरे नाम की आश है व यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं।
मुझे धाणक (जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति (स्वरूप) बहुत प्यारी है मन को फंसाने वाली अर्थात् मन मोहिनी है तथा सुन्दर वेश-भूषा में (जिन्दा रूप में) मुझे मिले उसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है धाणक (जुलाहा) फिर बन गया जिन्दा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया भगवान (पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए नानक जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है कि वह धाणक (जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परन्तु है बहुत महिमा(बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप मंे स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने (नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस(वाद-विवाद) की तथा उन्होनें (कबीर साहेब ने) अपने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शन दे कर तथा(नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी ने कहा कि मैं (नानक जी) कुछ करने कराने योग्य नहीं था। फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ (ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जो अपने मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप(जुलाहा रूप में आए करतार कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया? श्री नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूर्ण सोच समझ से कह रहा हूँ कि परमात्मा यही धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में है।
भावार्थ:- श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि यह फासने वाली अर्थात् मनमोहिनी शक्ल सूरत में तथा जिस देश में जाता है वैसा ही वेश बना लेता है, जैसे जिंदा महात्मा रूप में बेई नदी पर मिले, सतलोक में पूर्ण परमात्मा वाले वेश में तथा यहाँ उतर प्रदेश में धाणक(जुलाहे) रूप में स्वयं करतार (पूर्ण प्रभु) विराजमान है। आपसी वार्ता के दौरान हुई नोक-झोंक को याद करके क्षमा याचना करते हुए अधिक भाव से कह रहे हैं कि मैं अपने सत्भाव से कह रहा हूँ कि यही धाणक(जुलाहे) रूप में सत्पुरुष अर्थात् अकाल मूर्त ही है।
दूसरा प्रमाण:- नीचे प्रमाण है जिसमें कबीर परमेश्वर का नाम स्पष्ट लिखा है। श्री गु.ग्रपृष् ठ नं. 721 राग तिलंग महला पहला में है। और अधिक प्रमाण के लिए प्रस्तुत है ‘‘राग तिलंग महला 1‘‘ पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार।
हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।
दूनियाँ मुकामे फानी तहकीक दिलदानी।
मम सर मुई अजराईल गिरफ्त दिल हेच न दानी।।
जन पिसर पदर बिरादराँ कस नेस्त दस्तं गीर।
आखिर बयफ्तम कस नदारद चूँ शब्द तकबीर।।
शबरोज गशतम दरहवा करदेम बदी ख्याल।
गाहे न नेकी कार करदम मम ई चिनी अहवाल।।
बदबख्त हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक।
नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।।
सरलार्थ:-- (कुन करतार) हे शब्द स्वरूपी कर्ता अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि के रचनहार (गोश) निर्गुणी संत रूप में आए (करीम) दयालु (हक्का कबीर) सत कबीर (तू) आप (बेएब परवरदिगार) निर्विकार परमेश्वर हंै। (पेश तोदर) आपके समक्ष अर्थात् आप के द्वार पर (तहकीक) पूरी तरह जान कर (यक अर्ज गुफतम) एक हृदय से विशेष प्रार्थना है कि (दिलदानी) हे महबूब (दुनियां मुकामे) यह संसार रूपी ठिकाना (फानी) नाशवान है (मम सर मूई) जीव के शरीर त्यागने के पश्चात् (अजराईल) अजराईल नामक फरिश्ता यमदूत (गिरफ्त दिल हेच न दानी) बेरहमी के साथ पकड़ कर ले जाता है। उस समय (कस) कोई (दस्तं गीर) साथी (जन) व्यक्ति जैसे (पिसर) बेटा (पदर) पिता (बिरादरां) भाई चारा (नेस्तं) साथ नहीं देता। (आखिर बेफ्तम) अन्त में सर्व उपाय (तकबीर) फर्ज अर्थात् (कस) कोई क्रिया काम नहीं आती (नदारद चूं शब्द) तथा आवाज भी बंद हो जाती है (शबरोज) प्रतिदिन (गशतम) गसत की तरह न रूकने वाली (दर हवा) चलती हुई वायु की तरह (बदी ख्याल) बुरे विचार (करदेम) करते रहते हैं (नेकी कार करदम) शुभ कर्म करने का (मम ई चिनी) मुझे कोई (अहवाल) जरीया अर्थात् साधन (गाहे न) नहीं मिला (बदबख्त) ऐसे बुरे समय में (हम चु) हमारे जैसे (बखील) नादान (गाफील) ला परवाह (बेनजर बेबाक) भक्ति और भगवान का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण ज्ञान नेत्र हीन था तथा ऊवा-बाई का ज्ञान कहता था। (नानक बुगोयद) नानक जी कह रहे हैं कि हे कबीर परमेश्वर आप की कृपा से (तेरे चाकरां पाखाक) आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ (जनु तूरा) बंदा पार हो गया।
केवल हिन्दी अनुवाद:-- हे शब्द स्वरूपी राम अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि रचनहार दयालु ‘‘सतकबीर‘‘ आप निर्विकार परमात्मा हैं। आप के समक्ष एक हृदय से विनती है कि यह पूरी तरह जान लिया है हे महबूब यह संसार रूपी ठिकाना नाशवान है। हे दाता! इस जीव के मरने पर अजराईल नामक यम दूत बेरहमी से पकड़ कर ले जाता है कोई साथी जन जैसे बेटा पिता भाईचारा साथ नहीं देता। अन्त में सभी उपाय और फर्ज कोई क्रिया काम नहीं आता। प्रतिदिन गश्त की तरह न रूकने वाली चलती हुई वायु की तरह बुरे विचार करते रहते हैं। शुभ कर्म करने का मुझे कोई जरीया या साधन नहीं मिला। ऐसे बुरे समय कलियुग में हमारे जैसे नादान लापरवाह, सत मार्ग का ज्ञान न होने से ज्ञान नेत्र हीन था तथा लोकवेद के आधार से अनाप-सनाप ज्ञान कहता रहता था। नानक जी कहते हैं कि मैं आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ बन्दा नानक पार हो गया।
भावार्थ - श्री गुरु नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे हक्का कबीर (सत् कबीर)! आप निर्विकार दयालु परमेश्वर हो। आप से मेरी एक अर्ज है कि मैं तो सत्यज्ञान वाली नजर रहित तथा आपके सत्यज्ञान के सामने तो निर्उत्तर अर्थात् जुबान रहित हो गया हूँ। हे कुल मालिक! मैं ��ो आपके दासों के चरणों की धूल हूँ, मुझे शरण में रखना।
इसके पश्चात् जब श्री नानक जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि पूर्ण परमात्मा तो गीता ज्ञान दाता प्रभु से अन्य ही है। वही पूजा के योग्य है। पूर्ण परमात्मा की भक्ति तथा ज्ञान के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु भी अनभिज्ञ है। परमेश्वर स्वयं ही तत्वदर्शी संत रूप से प्रकट होकर तत्वज्ञान को जन-जन को सुनाता है। जिस ज्ञान को वेद भी नहीं जानते वह तत्वज्ञान केवल पूर्ण परमेश्वर (सतपुरुष) ही स्वयं आकर ज्ञान कराता है। श्री नानक जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में होने के कारण पवित्र गीता जी के ज्ञान पर पूर्ण रूपेण आश्रित थे। फिर स्वयं प्रत्येक हिन्दू श्रद्धालु तथा ब्राह्मण गुरुओं, आचार्यों से गीता जी के सात श्लोकों के विषय में पूछते थे। सर्व गुरुजन निरुतर हो जाते थे, परन्तु श्री नानक जी के विरोधी हो जाते थे। उस समय शिक्षा का अभाव था। उन झूठे गुरुओं की दाल गलती रही। गुरुजन जनता को यह कह कर श्री नानक जी के विरुद्ध भड़काते थे कि श्री नानक झूठ कह रहा है। गीता जी में ऐसा नहीं लिखा है कि श्री कृष्ण जी से ऊपर कोई शक्ति है। कबीर प्रभु से तत्वज्ञान से परिचित होकर श्री नानक जी पवित्र मुसलमान धर्म के श्रद्धालुओं तथा काजी व मुल्लाओं तथा पीरों (गुरुओं) से पूछा करते थे कि पवित्र र्कुआन शरीफ की सूरत फुर्कानि स. 25 आयत 19, 21, 52 से 58, 59 में र्कुआन शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कह रहा है कि सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, सर्व पाप (गुनाहों) का नाश (क्षमा) करने वाला जिसने छः दिन में सृष्टि रचना की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा, जो सर्व के पूजा(इबादिह कबीरा) योग्य है, वह कबीर परमेश्वर है। काफिर लोग (अल्लाह कबीर) कबीर प्रभु को समर्थ नहीं मानते, आप उनकी बातों में मत आना। मेरे द्वारा दिए इस र्कुआन शरीफ के ज्ञान पर विश्वास रखकर उनके साथ ज्ञान चर्चा रूपी संघर्ष करना। उस अल्लाहु अकबिर् अर्थात् अल्लाहु अकबर (कबीर प्रभु) की भक्ति तथा प्राप्ति के विषय में मंा (र्कुआन शरीफ का ज्ञान दाता प्रभु) नहीं जानता। उसके विषय में किसी तत्वदर्शी संत (बाखबर) से पूछो। पवित्र मुसलमान धर्म के मार्ग दर्शकों से पूछा कि यह स्पष्ट है कि श्री र्कुआन शरीफ के ज्ञान दाता प्रभु (जिसे हजरत मुहम्मद जी अपना अल्लाह मानते थे) के अतिरिक्त कोई और समर्थ परमेश्वर है जिसने सारे संसार की रचना की है। वही पूजा के योग्य है। र्कुआन शरीफ का ज्ञान दाता प्रभु अपनी साधना के विषय में तो बता चुका है कि पाँच समय निमाज करो, रोजे रखो, बंग दो। फिर वही प्रभु किसी अन्य समर्थ प्रभु की पूजा के लिए कह रहा है। क्या वह बाखबर(तत्वदर्शी) संत आप किसी को मिला है ? यदि मिला होता तो यह साधना नहीं करते। इसलिए आपकी पूजा वास्तविक नहीं है। क्योंकि पूजा के योग्य पूर्ण मोक्ष दायक पाप विनाशक तो केवल कबीर नामक प्रभु है। आप प्रभु को निराकार कहते हो। र्कुआन शरीफ में सूरत फुर्कानि स. 25 आयत 58-59 में स्पष्ट किया है कि कबीर अल्लाह (कबीर प्रभु) ने छः दिन में सृष्टि रची तथा ऊपर तख्त पर जा बैठा। इससे तो स्पष्ट हुआ कि कबीर नामक अल्लाह साकार है। क्योंकि निराकार के विषय में एक स्थान पर बैठना नहीं कहा जाता। इसी की पुष्टि ‘पवित्र बाईबल‘ उत्पत्ति विषय में कहा है कि प्रभु ने छः दिन में सृष्टि की रचना की तथा सातवंल दिन विश्राम किया अर्थात् आकाश में जा बैठा तथा प्रभु ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। इससे भी स्वसिद्ध है कि परमेश्वर का शरीर भी मनुष्य जैसा है अर्थात् प्रभु साकार है।
आपकी र्कुआन शरीफ सही है परन्तु आप न समझ कर अपना तथा अपने अनुयाईयांे का जीवन व्यर्थ कर रहे हो। आओ आप को अल्लाह कबीर सशरीर दिखाता हूँ। बहुत से श्रद्धालु श्री नानक जी के साथ पूज्य कबीर परमेश्वर की झोपड़ी के पास गए। श्री नानक जी ने कहा कि यही है वह अल्लाहु अकबर, मान जाओ मेरी बात। परन्तु भ्रमित ज्ञान में रंगे श्रद्धालुओं को विश्वास नहीं हुआ। मुल्ला, काजी तथा पीरों ने कहा कि नानक जी झूठ बोल रहे हैं, र्कुआन शरीफ में उपरोक्त विवरण कहीं नहीं लिखा। क्योंकि सर्व समाज अशिक्षित था, वही अज्ञान अंधेरा अभी तक छाया रहा, अब तत्वज्ञान रूपी सूर्य उदय हो चुका है।
गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश -
साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है।
आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।। (पृ. 350)
जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमृत नाम सतगुरु दीआ।। (पृ. 352)
गुरु पुरे ते गति मति पाई। (पृ. 353)
बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे।
सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (पृ. 414)
मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (पृ. 439)
उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि साहिब(प्रभु) एक ही है तथा मेरे गुरु जी ने मुझे उपदेश नाम मन्त्रा दिया, वही नाना रूप धारण कर लेता है अर्थात् वही सतपुरुष है वही जिंदा रूप बना लेता है। वही धाणक रूप में भी विराजमान होकर आम व्यक्ति अर्थात् भक्त की भूमिका करता है। शास्त्रा विरुद्ध पूजा करके सारे जगत् को जन्म-मृत्यु व कर्मफल की आग में जलते देखकर जीवन व्यर्थ होने के डर से भाग कर मैंने गुरु जी के चरणों में शरण ली।
बलिहारी गुरु आपणे दिउहाड़ी सदवार।
जिन माणस ते देवते कीए करत न लागी वार।
आपीनै आप साजिओ आपीनै रचिओ नाउ।
दुयी कुदरति साजीऐ करि आसणु डिठो चाउ।
दाता करता आपि तूं तुसि देवहि करहि पसाउ।
तूं जाणोइ सभसै दे लैसहि जिंद कवाउ करि आसणु डिठो चाउ। (पृ. 463)
भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा जिंदा का रूप बनाकर बेई नदी पर आए अर्थात् जिंदा कहलाए तथा स्वयं ही दो दुनियाँ ऊपर(सतलोक आदि) तथा नीचे(ब्रह्म व परब्रह्म के लोक) को रचकर ऊपर सत्यलोक में आकार में आसन पर बैठ कर चाव के साथ अपने द्वारा रची दुनियाँ को देख रहे हो तथा आप ही स्वयम्भू अर्थात् माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते, स्वयं प्रकट होते हो। यही प्रमाण पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मं. 8 में है कि कविर् मनीषि स्वयम्भूः परिभू व्यवधाता, भावार्थ है कि कबीर परमात्मा सर्वज्ञ है (मनीषि का अर्थ सर्वज्ञ होता है) तथा अपने आप प्रकट होता है। वह सनातन (परिभू) अर्थात् सर्वप्रथम वाला प्रभु है। वह सर्व ब्रह्मण्डों का (व्यवधाता)अर्थात् भिन्न-भिन्न सर्व लोकों का रचनहार है।
एहू जीउ बहुते जनम भरमिआ, ता सतिगुरु शबद सुणाइया।। (पृ. 465)
भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि मेरा यह जीव बहुत समय से जन्म तथा मृत्यु के चक्र में भ्रमता रहा अब पूर्ण सतगुरु ने वास्तविक नाम प्रदान किया। श्री नानक जी के पूर्व जन्म - सतयुग में राजा अम्ब्रीष, त्रोतायुग में राजा जनक हुए थे और फिर नानक जी हुए तथा अन्य योनियों के जन्मों की तो गिनती ही नहीं है। इस निम्न लेख में प्रमाणित है कि कबीर साहेब तथा नानक जी की वार्ता हुई है। यह भी प्रमाण है कि राजा जनक विदेही भी श्री नानक जी थे तथा श्री सुखदेव जी भी राजा जनक का शिष्य हुआ था।
पराण संगली (पंजाबी लीपी में) संपादक: डाॅ. जगजीत सिह खानपुरी पब्लिकेशन ब्यूरो पंजाबी युनिवर्सिटी, पटियाला। प्रकाशित सन् 1961 के पृष्ठ न. 399 से सहाभार
गोष्टी बाबे नानक और कबीर जी की
(कबीर जी)उह गुरु जी चरनि लागि करवै, बीनती को पुन करीअहु देवा।
अगम अपार अभै पद कहिए, सो पाईए कित सेवा।।
मुहि समझाई कहहु गुरु पूरे, भिन्न-भिन्न अर्थ दिखावहु।
जिह बिधि परम अभै पद पाईये, सा विधि मोहि बतावहु।
मन बच करम कृ��ा करि दीजै, दीजै शब्द उचारं।।
कहै कबीर सुनहु गुरु नानक, मैं दीजै शब्द बीचारं।।1।।
(नानक जी)नानक कह सुनों कबीर जी, सिखिया एक हमारी।
तन मन जीव ठौर कह ऐकै, सुंन लागवहु तारी।।
करम अकरम दोऊँ तियागह, सहज कला विधि खेलहु।
जागत कला रहु तुम निसदिन, सतगुरु कल मन मेलहु।।
तजि माया र्निमायल होवहु, मन के तजहु विकारा।
नानक कह सुनहु कबीर जी, इह विधि मिलहु अपारा।।2।।
(कबीर जी)गुरु जी माया सबल निरबल जन तेरा, क्युं अस्थिर मन होई।
काम क्रोध व्यापे मोकु, निस दिन सुरति निरत बुध खोई।।
मन राखऊ तवु पवण सिधारे, पवण राख मन जाही।
मन तन पवण जीवैं होई एकै, सा विधि देहु बुझााई।।3।।
(नानक जी) दिृढ करि आसन बैठहु वाले, उनमनि ध्यान लगावहु।
अलप-अहार खण्ड कर निन्द्रा, काम क्रोध उजावहु।।
नौव दर पकड़ि सहज घट राखो, सुरति निरति रस उपजै।
गुरु प्रसादी जुगति जीवु राखहु, इत मंथत साच निपजै।।4।।
(कबीर जी) (कबीर कवन सुखम कवन स्थूल कवन डाल कवन है मूल)
गुरु जी किया लै बैसऊ, किआ लेहहु उदासी।
कवन अग्नि की धुणी तापऊ कवन मड़ी महि बासी।।5।।
(नानक जी) (नानक ब्रह्म सुखम सुंन असथुल, मन है पवन डाल है मूल)
करम लै सोवहु सुरति लै जागहु, ब्रह्म अग्नि ले तापहु।
निस बासर तुम खोज खुजावहु, संुन मण्डल ले डूम बापहु।।6।।
(सतगुरु कहै सुनहे रे चेला, ईह लछन परकासे)
(गुरु प्रसादि सरब मैं पेखहु, सुंन मण्डल करि वासे)
(कबीर जी) सुआमी जी जाई को कहै, ना जाई वहाँ क्या अचरज होई जाई।
मन भै चक्र रहऊ मन पूरे, सा विध देहु बताई।।7।।
(अपना अनभऊ कहऊ गुरु जी, परम ज्योति किऊं पाई।)
(नानक जी) ससी अर चड़त देख तुम लागे, ऊहाँ कीटी भिरणा होता।
नानक कह सुनहु कबीरा, इत बिध मिल परम तत जोता।।8।।
(कबीर जी) धन धन धन गुरु नानक, जिन मोसो पतित उधारो।
निर्मल जल बतलाइया मो कऊ, राम मिलावन हारो।।9।।
(नानक जी) जब हम भक्त भए सुखदेवा, जनक विदेह किया गुरुदेवा।
कलि महि जुलाहा नाम कबीरा, ढूंड थे चित भईआ न थीरा।।
बहुत भांति कर सिमरन कीना, इहै मन चंचल तबहु न भिना।
जब करि ज्ञान भए उदासी, तब न काटि कालहि फांसी।।
जब हम हार परे सतिगुरु दुआरे, दे गुरु नाम दान लीए उधारे।।10।।
(कबीर जी) सतगुरु पुरुख सतिगुरु पाईया, सतिनाम लै रिदै बसाईआ।
जात कमीना जुलाहा अपराधि, गुरु कृपा ते भगति समाधी।।
मुक्ति भइआ गुरु सतिगुरु बचनी, गईया सु सहसा पीरा।
जुग नानक सतिगुरु जपीअ, कीट मुरीद कबीरा।।11।।
सुनि उपदेश सम्पूर्ण सतगुरु का, मन महि भया अनंद।
मुक्ति का दाता बाबा नानक, रिंचक रामानन्द।।12।।
ऊपर लिखी वाणी ‘प्राण संगली‘ नामक पुस्तक से लिखी हैं। इसमें स्पष्ट लिखा है कि वाणी संख्या 9 तक दोहों में पूरी पंक्ति के अंतिम अक्षर मेल खाते हैं। परन्तु वाणी संख्या 10 की पाँच पंक्तियां तथा वाणी संख्या 11 की पहली दो पक्तियां चैपाई रूप में हैं तथा फिर दो पंक्तियां दोहा रूप में है तथा फिर वाणी संख्या 12 में केवल दो पंक्तियां हैं जो फिर दोहा रूप में है। इससे सिद्ध है कि वास्तविक वाणी को निकाला गया है जो वाणी कबीर साहेब जी के विषय में श्री नानक जी ने सतगुरु रूप में स्वीकार किया होगा। नहीं तो दोहों में चलती आ रही वाणी फिर चैपाईयों में नहीं लिखी जाती। फिर बाद में दोहों में लिखी है। यह सब जान-बूझ कर प्रमाण मिटाने के लिए किया है। वाणी संख्या 10 की पहली पंक्ति ‘जब हम भक्त भए सुखदेवा, जनक विदेही किया गुरुदेवा‘ स्पष्ट करती है कि श्री नानक जी कह रहे हैं कि मैं जनक रूप में था उस समय मेरा शिष्य (भक्त) श्री सुखदेव ऋषि हुए थे। इस वाणी संख्या 10 को नानक जी की ओर से कही मानी जानी चाहिए तो स्पष्ट है कि नानक जी कह रहे है कि मैं हार कर गुरू कबीर के चरणों में गिर गया उन्होंने नाम दान करके उद्धार किया। वास्तव में यह 10 नं. वाणी कही अन्य वाणी से है। यह पंक्ति भी परमेश्वर कबीर साहेब जी की ओर से वार्ता में लिख दिया है। क्योंकि परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपनी शक्ति से श्री नानक जी को पिछले जन्म की चेतना प्रदान की थी। तब नानक जी ने स्वीकार किया था कि वास्तव में मैं जनक था तथा उस समय सुखदेव मेरा भक्त हुआ था।
वाणी संख्या 11 में चार पंक्तियां हैं जबकि वाणी संख्या 10 में पाँच पंक्तियां लिखी हैं। वास्तव में प्रथम पंक्ति ‘जब हम भक्त भए सुखदेवा ... ‘ वाली में अन्य तीन पंक्तियां थी, जिनमें कबीर परमेश्वर को श्री नानक जी ने गुरु स्वीकार किया होगा। उन्हें जान बूझ कर निकाला गया लगता है।
वाणी संख्या 1 व 2 में 6.6 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 3 व 4 में 4.4 पंक्तियाँ, वाणी संख्या 5 व 6 में 3.3 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 7 में 4 पंक्तियाँ हैं, वाणी संख्या 8 में 3 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 9 में 2 पंक्तियाँ है, वाणी संख्या 10 में 5 पंक्तियाँ हैं, वाणी संख्या 11 में 4 पंक्तियाँ है तथा वाणी संख्या 12 में 2 पंक्तियाँ है। यदि ये वाणी पूरी होती तो सर्व वाणीयों (कलियों) में एक जैसी वाणी संख्या होती।
श्री नानक जी ने दोनों की वार्ता जो प्रभु कबीर जी से हुई थी, लिखी थी। परन्तु बाद में प्राण संगली तथा गुरु ग्रन्थ साहिब में उन वाणियों को छोड़ दिया गया जो कबीर परमेश्वर जी को श्री नानक जी का गुरुदेव सिद्ध करती थी। इसी का प्रमाण कृप्या निम्न देखें। दो शब्दों में प्रत्यक्ष प्रमाण है(श्री गुरू ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 1189, 929, 930 पर)।
आगे श्री गुरु ग्रन्थ पृष्ठ नं. 1189
राग बसंत महला 1
चंचल चित न पावै पारा, आवत जात न लागै बारा।
दुख घणों मरीअै करतारा, बिन प्रीतम के कटै न सारा।।1।।
सब उत्तम किस आखवु हीना, हरि भक्ति सचनाम पतिना(रहावु)।
औखद कर थाकी बहुतेरे, किव दुख चुकै बिन गुरु मेरे।।
बिन हर भक्ति दुःख घणोरे, दुख सुख दाते ठाकुर मेरे।।2।।
रोग वडो किंवु बांधवु धिरा, रोग बुझै से काटै पीरा।
मैं अवगुण मन माहि सरीरा, ढुडत खोजत गुरिू मेले बीरा।।3।।
नोट:-- यहाँ पर स्पष्ट है कि अक्षर कबीरा की जगह ‘गुरु मेले बीरा‘ लिखा है। जबकि लिखना था ‘ढुंडत खोजत गुरि मेले कबीरा‘
गुरु का शब्द दास हर नावु, जिवै तू राखहि तिवै रहावु।
जग रोगी कह देखि दिखाऊ, हरि निमाईल निर्मल नावु।।4।।
घट में घर जो देख दिखावै, गुरु महली सो महलि बुलावै।
मन में मनुवा चित्त में चीता, अैसे हर के लोग अतीता।।5।।
हरख सोग ते रहैहि निरासा, अमृत चाख हरि नामि निवासा।।
आप पीछाणे रह लिव लागा, जनम जीति गुरुमति दुख भागा।।6।।
गुरु दिया सच अमृत पिवैऊ, सहज मखु जीवत ही जीवऊ।
अपणे करि राखहु गुरु भावै, तुमरो होई सु तुझहि समावै।।8।।
भोगी कऊ दुःख रोग बिआपै, घटि-घटि रवि रहिया प्रभु आपै।
सुख दुःख ही तै गुरु शब्द अतीता, नानक राम रमै हरि चीता।।9(4)।।
इस ऊपर के शब्द में प्रत्यक्ष प्रमाण है कि श्री नानक जी का कोई आकार रूप में गुरु था जिसने सच्चनाम (सतनाम) दिया तथा उस गुरुदेव को ढूंडते-खोजते काशी में कबीर गुरु मिला तथा वह सतनाम प्राणियों को कर्म-कष्ट रहित करता है तथा हरदम गुरु के वचन में रह कर गुरुदेव द्वारा दिए सत्यनाम (सच्चनाम) का जाप करते रहना चाहिए।
राग रामकली महला 1 दखणी आंैकार
गुरु ग्रन्थ पृष्ठ नं. 929.30
औंकार ब्रह्मा उत्पति। औंकार किया जिन चित।।
औंकार सैल जुग भए। औंकार वेद निरमए।।
औंकार शब्द उधरे। औंकार गुरु मुख तरे।।
ओंम अखर सुन हुँ विचार। ओम अखर त्रिभूवण सार।।
सुण पाण्डे किया लिखहु जंजाला, लिख राम नाम गुरु मुख गोपाला।।1।।रहाऊ।।
ससै सभ जग सहज उपाइया, तीन भवन इक जोती।
गुरु मुख वस्तु परापत होवै, चुण लै मानक मोती।।
समझै सुझै पड़ि-पड़ि बुझै अति निरंतर साचा।
गुरु मुख देखै साच समाले, बिन साचे जग काचा।।2।।
धधै धरम धरे धरमा पुरि गुण करी मन धीरा। {ग्रन्थ साहेब मंे एक ही पंक्ति है।}
यहाँ पंक्ति अधूरी(अपूर्ण) छोड़ रखी है। प्रत्येक पंक्ति में अंतिम अक्षर दो एक जैसे है। जैसे ऊपर लिखी वाणी में ‘‘ज्योति‘‘ फिर दूसरी में ‘‘मोती‘‘। फिर ‘‘साचा‘‘ दूसरी में ‘‘काचा‘‘। यहाँ पर ‘‘धीरा‘‘ अंतिम अक्षर वाली एक ही पंक्ति है। इसमें साहेब कबीर का नाम प्रत्यक्ष था जो कि मान वस होकर ग्रन्थ की छपाई करते समय निकाल दी गई है(छापाकारों ने काटा होगा, संत कभी ऐसी गलती नहीं करते) क्योंकि कबीर साहेब जुलाहा जाति में माने जाते हैं जो उस समय अछूत जानी जाती थी। कहीं गुरु नानक जी का अपमान न हो जाए कि एक जुलाहा नानक जी का पूज्य गुरु व भगवान था।
फिर प्रमाण है ‘‘राग बसंत महला पहला‘‘ पौड़ी नं. 3 आदि ग्रन्थ(पंजाबी) पृष्ठ नं. 1188
नानक हवमों शब्द जलाईया, सतगुरु साचे दरस दिखाईया।।
इस वाणी से भी अति स्पष्ट है कि नानक जी कह रहे हैं कि सत्यनाम (सत्यशब्द) से विकार-अहम्(अभिमान) जल गया तथा मुझे सच्चे सतगुरु ने दर्शन दिए अर्थात् मेरे गुरुदेव के दर्शन हुए। स्पष्ट है कि नानक जी को कोई सतगुरु आकार रूप में अवश्य मिला था। वह ऊपर तथा नीचे पूर्ण प्रमाणित है। स्वयं कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा(अकाल मूर्त) स्वयं सच्चखण्ड से तथा दूसरे रूप में काशी बनारस से आकर प्रत्यक्ष दर्शन देकर सच्चखण्ड (सत्यलोक) भ्रमण करवा के सच्चा नाम उपदेश काशी (बनारस) में प्रदान किया।
आदरणीय गरीबदास जी महाराज {गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर(हरियाणा)} को भी परमेश्वर कबीर जिन्दा महात्मा के रूप में जंगल में मिले थे। इसी प्रकार सतलोक दिखा कर वापिस छोड़ा था। परमेश्वर ने बताया कि मैंने ही श्री नानक जी तथा श्री दादू जी को पार किया था। जब श्री नानक जी ने पूर्ण परमात्मा को सतलोक में भी देखा तथा फिर बनारस (काशी) में जुलाहे का कार्य करते देखा तब उमंग में भरकर कहा था ‘‘वाहेगुरु सत्यनाम‘‘ वाहेगुरु-वाहेगुरु तथा इसी उपरोक्त वाक्य का उच्चारण करते हुए काशी से वापिस आए। जिसको श्री नानक जी के अनुयाईयों ने जाप मंत्र रूप में जाप करना शुरु कर दिया कि यह पवित्र मंत्र श्री नानक जी के मुख कमल से निकला था, परन्तु वास्तविकता को न समझ सके। अब उन से कौन छुटाए, इस नाम के जाप को जो सही नहीं है। क्योंकि वास्तविक मंत्र को बोलकर नहीं सुनाया जाता। उसका सांकेतिक मंत्र ‘सत्यनाम‘ है तथा वाहे गुरु कबीर परमेश्वर को कहा है। इसी का प्रमाण संत गरीबदास साहेब ने अपने सतग्रन्थ साहेब में फुटकर साखी का अंग पृष्ठ न. 386 पर दिया है।
गरीब - झांखी देख कबीर की, नानक कीती वाह।
वाह सिक्खों के गल पड़ी, कौन छुटावै ताह।।
गरीब - हम सुलतानी नानक तारे, दादू कुं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, कांशी माहे कबीर हुआ।।
प्रमाण के लिए ‘‘जीवन दस गुरु साहिबान‘‘ पृष्ठ न. 42 से 44 तक (लेखक - सोढी तेजा सिंघ जी) - (प्रकाशक - चतर सिंघ जीवन सिंघ)
बेई नदी में प्रवेश
”जीवन दस गुरु साहेब से ज्यों का त्यों सहाभार“
गुरु जी प्रत्येक प्रातः बेई नदी में जो कि शहर सुलतानपुर के पास ही बहती है, स्नान करने के लिए जाते थे। एक दिन जब आपने पानी में डुबकी लगाई तो फिर बाहर न आए। कुछ समय ऊपरान्त आप जी के सेवक ने, जो कपड़े पकड़ कर नदी के किनारे बैठा था, घर जाकर जै राम जी को खबर सुनाई कि नानक जी डूब गए हैं तो जै राम जी तैराकों को साथ लेकर नदी पर गए। आप जी को बहुत ढूंढा किन्तु आप नहीं मिले। बहुत देखने के पश्चात् सब लोग अपने अपने घर चले गए।
भाई जैराम जी के घर बहुत चिन्ता और दुःख प्रकट किया जा रहा था कि तीसरे दिन सवेरे ही एक स्नान करने वाले भक्त ने घर आकर बहिन जी को बताया कि आपका भाई नदी के किनारे बैठा है। यह सुनकर भाईआ जैराम जी बेई की तरफ दौड़ पड़े और जब जब पता चलता गया और बहुत से लोग भी वहाँ पहुँच गए। जब इस तरह आपके चारों तरफ लोगों की भीड़ लग गई आप जी चुपचाप अपनी दुकान पहुँच गए। आप जी के साथ स्त्राी और पुरूषों की भीड़ दुकान पर आने लगी। लोगों की भीड़ देख कर गुरु जी ने मोदीखाने का दरवाजा खोल दिया और कहा जिसको जिस चीज की जरूरत है वह उसे ले जाए। मोदीखाना लुटाने के पश्चात् गुरु जी फकीरी चोला पहन कर शमशानघाट में जा बैठे। मोदीखाना लुटाने और गुरु जी के चले जाने की खबर जब नवाब को लगी तो उसने मुंशी द्वारा मोदीखाने की किताबों का हिसाब जैराम को बुलाकर पड़ताल करवाया। हिसाब देखने के पश्चात् मुंशी ने बताया कि गुरु जी के सात सौ साठ रूपये सरकार की तरफ अधिक हैं। इस बात को सुनकर नवाब बहुत खुश हुआ। उसने गुरु जी को बुलाकर कहा कि उदास न हो। अपना फालतू पैसा और मेरे पास से ले कर मोदीखाने का काम जारी रखें। पर गुरु जी ने कहा अब हमने यह काम नहीं करना हमें कुछ और काम करने का भगवान् की तरफ से आदेश हुआ है। नवाब ने पूछा क्या आदेश हुआ है ? तब गुरु जी ने मूल-मंत्र उच्चारण किया।
1 ओंकार सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरू अकाल मूरति अजूनी सब गुरप्रसादि।
नवाब ने पूछा कि यह आदेश आपके भगवान् ने कब दिया ? गुरु जी ने बताया कि जब हम बेई में स्नान करने गए थे तो वहाँ से हम सच्चखण्ड अपने स्वामी के पास चले गए थे वहाँ हमें आदेश हुआ कि नानक जी यह मंत्र आप जपो और बाकियों को जपा कर कलयुग के लोगों को पार लगाओ। इसलिए अब हमें अपने मालिक के इस हुक्म की पालना करनी है। इस सन्दर्भ को भाई गुरदास जी वार 1 पउड़ी 24 में लिखते हैं--
बाबा पैधा सचखण्ड नउनिधि नाम गरीबी पाई।।
अर्थात्--बाबा नानक जी सचखण्ड गए। वहाँ आप को नौनिधियों का खजाना नाम और निर्भयता प्राप्त हुई। यहाँ बेई किनारे जहाँ गुरु जी बेई से बाहर निकल कर प्रकट हुए थे, गुरु द्वारा संत घाट अथवा गुरुद्वारा बेर साहिब, बहुत सुन्दर बना हुआ है। इस स्थान पर ही गुरु जी प्रातः स्नान करके कुछ समय के लिए भगवान् की तरफ ध्यान करके बैठते थे।
जीवन दस गुरु साहेब नामक पुस्तक से लेख समाप्त
“पवित्र कबीर सागर में प्रमाण”
विशेष विचार:- पूरे गुरु ग्रन्थ साहेब में कहीं प्रमाण नहीं है कि श्री नानक जी, परमेश्वर कबीर जी के गुरु जी थे। जैसे गुरु ग्रन्थ साहेब आदरणीय तथा प्रमाणित है, ऐसे ही पवित्र कबीर सागर भी आदरणीय तथा प्रमाणित सद्ग्रन्थ है तथा श्री गुरुग्रन्थ साहेब से पहले का है। इसीलिए तो लगभग चार हजार वाणी ‘कबीर सागर‘ सद्ग्रन्थ से गुरु ग्रन्थ साहिब में ली गई हैं। पवित्र कबीर सागर में विस्तृत विवरण है नानक जी तथा परमेश्वर कबीर साहेब जी की वार्ता का तथा श्री नानक जी के पूज्य गुरुदेव कबीर परमेश्वर जी थे। कृप्या निम्न पढ़ें।
विशेष प्रमाण के लिए कबीर सागर (स्वसमबेदबोध) पृष्ठ न. 158 से 159 से सहाभार:-
नानकशाह कीन्हा तप भारी। सब विधि भये ज्ञान अधिकारी।।
भक्ति भाव ताको समिझाया। तापर सतगुरु कीनो दाया।।
जिंदा रूप धरयो तब भाई। हम पंजाब देश चलि आई।।
अनहद बानी कियौ पुकारा। सुनिकै नानक दरश न���हारा।।
सुनिके अमर लोककी बानी। जानि परा निज समरथ ज्ञानी।।
नानक वचन
आवा पुरूष महागुरु ज्ञानी। अमरलोकी सुनी न बानी।।
अर्ज सुनो प्रभु जिंदा स्वामी। कहँ अमरलोक रहा निजधामी।।
काहु न कही अमर निजबानी। धन्य कबीर परमगुरु ज्ञानी।।
कोई न पावै तुमरो भेदा। खोज थके ब्रह्मा चहुँ वेदा।।
जिन्दा वचन
नानक तव बहुतै तप कीना। निरंकार बहुते दिन चीन्हा।।
निरंकारते पुरूष निनारा। अजर द्वीप ताकी टकसारा।।
पुरूष बिछोह भयौ तव जबते। काल कठिन मग रोंक्यौ तबते।।
इत तव सरिस भक्त नहिं होई। क्यों कि परमपुरूष न भेटेंउ कोई।।
जबते हमते बिछुरे भाई। साठि हजार जन्म भक्त तुम पाई।।
धरि धरि जन्म भक्ति भलकीना। फिर काल चक्र निरंजन दीना।।
गहु मम शब्द तो उतरो पारा। बिन सत शब्द लहै यम द्वारा।।
तुम बड़ भक्त भवसागर आवा। और जीवकी कौन चलावा।।
निरंकार सब सृष्टि भुलावा। तुम करि भक्तिलौटि क्यों आवा।।
नानक वचन
धन्य पुरूष तुम यह पद भाखी। यह पद हमसे गुप्त कह राखी।।
जबलों हम तुमको नहिं पावा। अगम अपार भर्म फैलावा।।
कहो गोसाँई हमते ज्ञाना। परमपुरूष हम तुमको जाना।।
धनि जिंदा प्रभु पुरूष पुराना। बिरले जन तुमको पहिचाना।।
जिन्दा वचन
भये दयाल पुरूष गुरु ज्ञानी। दियो पान परवाना बानी।।
भली भई तुम हमको पावा। सकलो पंथ काल को ध्यावा।।
तुम इतने अब भये निनारा। फेरि जन्म ना होय तुम्हारा।।
भली सुरति तुम हमको चीन्हा। अमर मंत्र हम तुमको दीन्हा।।
स्वसमवेद हम कहि निज बानी। परमपुरूष गति तुम्हैं बखानी।।
नानक वचन
धन्य पुरूष ज्ञानी करतारा। जीवकाज प्रकटे संसारा।।
धनि करता तुम बंदी छोरा। ज्ञान तुम्हार महाबल जोरा।।
दिया नाम दान किया उबारा। नानक अमरलोक पग धारा।।
भावार्थ:- परम पूज्य कबीर प्रभु एक जिन्दा महात्मा का रूप बना कर श्री नानक जी से (पश्चिमी पाकिस्त्तान उस समय पंजाब प्रदेश हिन्दूस्त्तान का ही अंश था) मिलने पंजाब में गए तब श्री नानक साहेब जी से वार्ता हुई। तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि आप जैसी पुण्यात्मा जन्म-मृत्यु का कष्ट भोग रहे हो फिर आम जीव का कहाँ ठिकाना है? जिस निरंकार को आप प्रभु मान कर पूज रहे हो पूर्ण परमात्मा तो इससे भी भिन्न है। वह मैं ही हूँ। जब से आप मेरे से बिछुड़े हो साठ हजार जन्म तो अच्छे-2 उच्च पद भी प्राप्त कर चुके हो जैसे सतयुग में यही पवित्र आत्मा राजा अम्ब्रीष तथा त्रोतायुग में राजा जनक(जो सीता जी के पिता जी थे) हुए तथा कलियुग में श्री नानक साहेब जी हुए। फिर भी जन्म मृत्यु के चक्र में ही हो। मैं आपको सतशब्द अर्थात् सच्चा नाम जाप मन्त्रा बताऊंगा उससे आप अमर हो जाओगे। श्री नानक साहेब जी ने प्रभु कबीर से कहा कि आप बन्दी छोड़ भगवान हो, आपको कोई बिरला सौभाग्यशाली व्यक्ति ही पहचान सकता है।
अमृतवाणी कबीर सागर (अगम निगम बोध, बोध सागर से) पृष्ठ नं. 44
।।नानक वचन।।
।।शब्द।।
वाह वाह कबीर गुरु पूरा है।
पूरे गुरु की मैं बलि जावाँ जाका सकल जहूरा है।।
अधर दुलिच परे है गुरुनके शिव ब्रह्मा जह शूरा है।।
श्वेत ध्वजा फहरात गुरुनकी बाजत अनहद तूरा है।।
पूर्ण कबीर सकल घट दरशै हरदम हाल हजूरा है।।
नाम कबीर जपै बड़भागी नानक चरण को धूरा है।।
विशेष विवेचन:- बाबा नानक जी ने उस कबीर जुलाहे (धाणक) काशी वाले को सत्यलोक (सच्चखण्ड) में आँखों देखा तथा फिर काशी में धाणक (जुलाहे) का कार्य करते हुए तथा बताया कि वही धाणक रूप (जुलाहा) सत्यलोक में सत्यपुरुष रूप में भी रहता है तथा यहाँ भी वही है।
श्री नानक जी ने बचपन में श्री बृजलाल पाण्डे जी से गीता जी को समझा था। पूर्ण परमेश्वर कबीर जी के दर्शन के पश्चात् उन्हीं से प्राप्त तत्वज्ञान के आधार से उसी पाण्डे से गीता जी के सात श्लोकों के विषय में पूछा। श्री बृजलाल पाण्डा निरूतर हो गया। अपनी बेइज्जती जान कर श्री नानक जी से ईष्र्या करने लगा तथा श्री नानक जी के माता-पिता को तथा अन्य हिन्दूओं को कहा कि श्री नानक तो अपने भगवानों का अपमान करता है। जिससे लोगों ने श्री नानक जी की बातों को ध्यान से नहीं सुना। वे सात श्लोक निम्न हैं -
श्री बृजलाल पाण्डे से श्री नानक जी ने पूछा आप कहते हो कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने बोला तथा श्री कृष्ण जी ही श्री विष्णु अवतार हैं। श्री विष्णु जी अजन्मा, सर्वेश्वर, अविनाशी है���। इनके कोई माता-पिता नहीं हैं। आप यह भी कहते हो कि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव है। यही त्रिगुण माया है। परन्तु गीता ज्ञान दाता प्रभु (1). गीता अध्याय 2 श्लोक 12 में तथा (2). अध्याय 4 श्लोक 5 में अपने आप को नाशवान कह रहा है कि मेरे तो जन्म तथा मृत्यु होते हैं तथा ( 3). अध्याय 15 श्लोक 4 तथा (4). अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता प्रभु किसी अन्य परमेश्वर की शरण में जाने को कह रहा है तथा उसी की साधना से सर्व सुख तथा पूर्ण मोक्ष संभव है। मैं (गीता ज्ञान दाता) भी उसी की शरण में हूँ। (5). गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि जिनका ज्ञान त्रिगुण माया के द्वारा हरा जा चुका है। भावार्थ है कि जो साधक तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) की पूजा करते हैं। इनसे अन्य प्रभु की साधना नहीं करते। जिनकी बुद्धि इन्हीं तक सीमित है वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले, मूर्ख मुझे नहीं भजते। उपरोक्त तीनों प्रभुओं (गुणों) की पूजा मना है। फिर गीता ज्ञान दाता ब्रह्म (काल) (6). अध्याय 7 श्लोक 18 में अपनी साधना को (अनुत्तमाम्) अति घटिया कह रहा है। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि पूर्ण मोक्ष तथा परम शान्ति के लिए उस परमेश्वर की शरण में जा, (7). गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में प्रमाण है कि उसके लिए किसी तत्वदर्शी संत की खोज कर। मैं उस परमात्मा के विषय में पूर्ण जानकारी नहीं रखता। उसी तत्वदृष्टा संत द्वारा बताए ज्ञान अनुसार उस परमेश्वर की भक्ति कर। यही प्रश्न परमेश्वर कबीर साहेब जी ने श्री नानक जी से बेई दरिया के किनारे किया था। जिस तत्वज्ञान को समझ कर तथा कबीर परमेश्वर के सतपुरुष रूप में सतलोक (सच्चखण्ड) में तथा धाणक रूप में बनारस (काशी में) दर्शन करके समर्पण करके तत्वज्ञान को जन-जन तक पहुँचाया तथा पूर्ण मोक्ष प्राप्त किया।
विशेष:- पवित्र सिक्ख समाज इस बात से सहमत नहीं है कि श्री नानक साहेब जी के गुरु जी काशी वाला धाणक (जुलाहा) कबीर साहेब जी थे। इसके विपरीत श्री नानक साहेब जी को पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब जी का गुरु जी कहा है। परन्तु श्री नानक साहेब जी के पूज्य गुरु जी का नाम क्या है? इस विषय में पवित्र सिक्ख समाज मौन है, जबकि स्वयं श्री गुरु नानक साहेब जी श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी में महला 1 की अमृतवाणी में स्वयं स्वीकार करते हैं कि मुझे गुरु जी जिंदा रूप में आकार में मिले। वही धाणक(जुलाहा) रूप में सत् कबीर (हक्का कबीर) नाम से पृथ्वी पर भी थे तथा ऊपर अपने सच्चखण्ड में भी वही विराजमान है जिन्होंने मुझे अमृत नाम प्रदान किया।
आदरणीय श्री नानक साहेब जी का आविर्भाव सन् 1469 तथा सतलोक वास सन् 1539 ‘‘पवित्र पुस्तक जीवनी दस गुरु साहिबान‘‘। आदरणीय कबीर साहेब जी धाणक रूप में मृतमण्डल में सन् 1398 में सशरीर प्रकट हुए तथा ��शरीर सतलोक गमन सन् 1518 में ‘‘पवित्र कबीर सागर‘‘। दोनों महापुरुष 49 वर्ष तक समकालीन रहे। श्री गुरु नानक साहेब जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में हुआ। प्रभु प्राप्ति के बाद कहा कि ‘‘न कोई हिन्दू न मुसलमाना‘‘ अर्थात् अज्ञानतावश दो धर्म बना बैठे। सर्व एक परमात्मा सतपुरुष के बच्चे हैं। श्री नानक देव जी ने कोई धर्म नहीं बनाया, बल्कि धर्म की बनावटी जंजीरों से मानव को मुक्त किया तथा शिष्य परम्परा चलाई। जैसे गुरुदेव से नाम दीक्षा लेने वाले भक्तों को शिष्य बोला जाता है, उन्हें पंजाबी भाषा में सिक्ख कहने लगे। जैसे आज इस दास के लगभग सात-आठ लाख शिष्य हैं, परन्तु यह धर्म नहीं है। सर्व पवित्र धर्मों की पुण्यात्माऐं आत्म कल्याण करवा रही हैं। यदि आने वाले समय में कोई धर्म बना बैठे तो वह दुर्भाग्य ही होगा। भेदभाव तथा संघर्ष की नई दीवार ही बनेगी, परन्तु लाभ कुछ नहीं होगा।
विशेष:- केवल एक ही बात को ‘‘कि कौन किसका गुरु तथा कौन किसका शिष्य है‘‘ वाद-विवाद का विषय न बना कर सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। कुछ देर के लिए श्री नानक साहेब जी को परमात्मा कबीर साहेब (कविर्देव) जी का गुरु जी मान लें। यह विचार करें कि इन महापुरुषों ने गुरु-शिष्य की भूमिका करके हमें कितनी अनमोल वाणी रच कर दी हैं तथा हम कितना उनका अनुशरण कर पा रहे हैं।
आज किसी व्यक्ति का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में है, वह अपनी साधना तथा इष्ट को सर्वोच्च मान रहा है। मृत्यु उपरान्त उसी पुण्यात्मा का जन्म पवित्र सिक्ख धर्म में हुआ तो फिर वह उसी साधना को उत्तम मान कर निश्चिंत हो जाएगा, फिर पवित्र मुसलमान धर्म में जन्म मिला तो उपरोक्त साधनाओं के विपरीत पूजा पर आरूढ़ होगा तथा फिर पवित्र ईसाई धर्म में जन्म हुआ तो केवल उसी पूजा पर आधारित हो जाएगा। फिर कभी पवित्र आर्य समाज में वही पुण्यात्मा जन्म लेगी तो केवल हवन यज्ञ करने को ही मुक्ति मार्ग कहेगा। यदि वही पुण्यात्मा पवित्र जैन धर्म मे
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कश्मीर की सच्चाई कश्मीर में नेहरू इंद्रा फिरोज खान खानदान का देन हजारों हिंदुओं का नरसंहार हजारों महिलाओं का सामुहिक बलात्कार हजारों के संख्या में मंदिरों का तोड़ा जाना  लाखो हिंदुओ को अपने ही देश में जान और इज्जत बचाने को भागने को मजबूर होना ये सब हुआ इस्लामिक जिहाद के नाम पे जिसको इस देश का दलाल मीडिया और कथित सेकुलर गद्दार भ्रष्ट नेताओ ने अलगाववाद के नाम पे पुरे देश से उन वीभत्स घटनाओ को छुपाया सोवियत संघ के विघटन के बाद कश्मीर में इस्लामिक जेहादिओं का मनोबल काफी बढ़ गया उसे लगा अब कश्मीर को भी भारत से अलग किया जा सकता है यही नारा लगा था कश्मीर में जागो जागो सुबह हुई रूस ने बाजी हारी है हिंद पर लर्जन तारे हैं अब कश्मीर की बारी है 
हम क्या चाहते आजादी 
आजादी का मतलब क्या ला इलाहा इल्लाह
. अगर कश्मीर में रहना होगा अल्लाहुअकबर कहना होगा
 ऐ जालिमों ऐ काफिरों कश्मीर हमारा है
 यहां क्या चलेगा? निजाम-ए-मुस्तफा
इससे पहले 1986 में राजीव को फारुख अब्दुल्लाह से मनमुटाव हुआ राजीव ने फारुख अब्दुल्ला के बहनोई गुलाम शाह को कश्मीर का मुख्यमंत्री बना दिया खुद को सही ठहराने के लिए गुलाम मोहम्मद ने एक खतरनाक निर्णय लिया. ऐलान हुआ कि जम्मू के न्यू सिविल सेक्रेटेरिएट एरिया में एक पुराने मंदिर को गिराकर भव्य शाह मस्जिद बनवाई जाएगी तो लोगों ने प्रदर्शन किया. कि ये नहीं होगा. जवाब में कट्टरपंथियों ने नारा दे दिया कि इस्लाम खतरे में है.यहाँ से शुरू हुआ कश्मीर में नए सिरे से जिहाद l कश्मीर में हिंदुओं पर हमलों का सिलसिला 1988 में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने गठन के साथ तेज हो गया ये वो संगठन है जो कश्मीर ही नहीं पुरे भारत में जिहाद को संरक्षण देता है  जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया जेहादिओं का नारा था-हम सब एक तुम भागो अपनी औरतों को छोड़कर या इस्लाम कबूल करो या मरो' जो कश्मीर घाटी में हुआ वो भारत के माथे पे कलंक है 1990में आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-इस्लाम ने पुलवामा में कई जगह पोस्टर लगाए थे जिनमें कहा गया कि कश्मीरी  हिन्दू या तो घाटी छोड़ दें अपनी औरतों को यही  छोड़कर या इस्लाम अपना लो या फिर मरने के लिए तैयार रहें इस देश का दुर्भाग्य देखो किसी मीडिया ने ये नहीं बताया की ये इस्लामिक जेहाद है जो इस्लाम के नाम पे हो रहा भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी हिन्दू, तिलक लाल तप्लू की JKLF ने हत्या कर दी गई इसके बाद जस्टिस नीलकांत जिन्होंने मकबूल भट को फांसी की सजा दी उनको पत्नी सहित गोली मारकर हत्या कर दी गई। आतंक के उस दौर में अधिकतर हिंदू नेताओं को मौत की नींद सुला दिया गया एक कश्मीरी हिन्दू नर्स के साथ आतंकियों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद मार-मारकर उसकी हत्या कर दी। घाटी में कई कश्मीरी हिन्दुओ की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। हालात और बदतर हो गए थे। *एक स्थानीय उर्दू अखबार, हिज्ब उल मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई थी कि 'सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं लेकिन वो अपनी औरतों को वही छोड़ दे उससे हम अपनी हरम सजायेंगे या इस्लाम काबुल कर ले या मारे जायेंगे '।
एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र अल सफा ने इस निष्कासन के आदेश 'सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं  लेकिन वो अपनी औरतों को वही छोड़ दे उससे हम अपनी हरम सजायेंगे या इस्लाम काबुल कर ले या मारे जायेंगे को दोहराया।
*मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। सभी कश्मीरियों को कहा गया कि इस्लामिक ड्रेस कोड ही अपनाएं *कश्मीरी हिन्दुओ के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया गया जिसमें लिखा था या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो लेकिन वो अपनी औरतों को वही छोड़ दे उससे हम अपनी हरम सजायेंगे 
 पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लि��ो को भारत से आजादी के लिए भड़काना शुरू कर दिया ! सारे कश्मीर के मस्जिदों में एक टेप चलाया गया ! जिसमे मुस्लिमो को कहा गया कि वो हिन्दुओ को कश्मीर से निकाल बाहर करें ! उसके बाद सारे इस्लामिक जेहादी सडको पर उतर आये ! हजारों मंदिरों में आग लगा दिया उन्होंने कश्मीरी हिन्दुओ के घरो को जला दिया, कश्मीर हिन्दू महिलाओ का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके नग्न शरीर को पेड़ पर लटका दिया गया ! कुछ महिलाओ को जिन्दा जला दिया गया और बाकियों को लोहे के गरम सलाखों से मार दिया गया  बच्चो को स्टील के तार से गला घोटकर मार दिया गया कश्मीरी महिलाये ऊंचे मकानों की छतो से कूद कूद कर जान देने लगी मंदिरो को तोड़ा गया और देखते ही देखते कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन हो गई और कश्मीरी हिन्दू अपने ही देश में विस्थापित होकर दरदर की ठोकर खाने को मजबूर हो गए
कितनी हैरत की बात है कि कश्मीरी मुस्लिम, एक ओर तो कश्मीरी हिन्दुओ की हत्या करते रहे और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोते भी रहे कि उन पर अत्याचार हुआ है और इसलिए उनको भारत से आजादी चाहिए वो कहते है की गुजरात में मुस्लिम विरोधी दंगे हुए थे लेकिन यह कभी नहीं बताते की 750 मुस्लिमों के साथ साथ 310 हिन्दू भी मरे थे और यह भी कभी नहीं बताते कि दंगो की शुरुआत आखिर की किसने, सैंकड़ों निर्दोष हिंदुओ को किसने ट्रैन में ज़िंदा जला दिया उनका क्या कसूर था यही कि वो कार सेवक थे और अयोध्या से लौटकर आ रहे थे  ! हिन्दू कभी भी दंगे की शुरुवात नहीं करता दंगा हमेशा इस्लामिक जेहादी ही शुरू करता है मरता आम नागरिक ही है चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लमान मरनेवाले मासूम बच्चे और महिलाएं होती है देश और दुनिया में शांति लाना है तो इस्लामिक जेहादिओं को जड़ से दुनिया से खत्म करना होगा जो इस्लाम के नाम पे गैर मुसलमानों से नफ़रत सिखाता है मदरसा के माध्यम से
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कुंडली में 12 भाव और मनुष्य जीवन में इसका महत्व क्या होता है ?
कुंडली में 12 भाव होते है। इनका मनुष्य जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ता है। वैसे तो हर कोई जानना चाहता है कि उनके ��ीवन में क्या होगा किस तरह के ग्रह केसा पभाव छोड़ेंगे। आपको बेस्ट अस्त्रोलोगेर इन यु. इस. ये. की मदद से यह जानने में सहायता मिलेगी कि तरह से यह आपकी जिंदगी में प्रवेश कर आपकी पूरी जिंदगी को तहस नहस करके रख देते है। यह आपके लिए सही भी हो सकते है और गलत भी हो सकते है। इसके प्रभाव से आपकी जिंदगी में बहुत ही गहरा असर होता है। जो आपके लिए खतरनाक भी साबित हो सकते है। एक तरफ से देखा जाये तो यह सही भी होते है क्योंकि इनका सही दिशा में चलना आपके लिए बहुत फायदेमंद होता है। सही तरीके से किया काम सफलता के 100 दरवाजे खोलता है।
ठीक वैसे ही इनका प्रभाव होता है जो आपकी जिंदगी में बहुत असरदार होते है। यह आपके लिए उच्चित हो सकते है। इसका इस्तेमाल जरूर करे। हर कोई जनता है कि सही और मेहनत से किया गया काम ही उच्चित होता है।
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कुंडली में 12 भाव
बेस्ट अस्त्रोलोगेर इन यु. इस. ये. के अनुसार जाने कुंडली के भाव क्या है और कैसे होते है ?
प्रथम स्थान लग्न होता है जिसमे के व्यक्तित्व, रूप, रंग, आत्म विश्‍वास, अभिमान, यश-अपयश, सुख-दुख के भावो को पंडित जी देखकर बताते है कि यह किस तरह से अपने जीवन को व्यतीत करेगा। इससे मनुष्य का चरित्र, खुद की कमाई, मकान तथा उसके कोने, दिमागी ताकत, पिछले जन्म का साथ लाया धन, वर्तमान जन्म नियत, पूर्व दिशा और दूसरे से संबंध को परखा जा सकता है।
द्विती भाव में धन लाभ, आर्थिक स्थिति, वाणी, जीभ, संपत्ति, कुटुंब को देखा जा सकता है जिससे कि पत्नी के ससुराल वालो के साथ संबंध किस तरह के होंगे इसको परखा जाता है। धन के लाभ को भी जांचा जा सकता है।
तृतीय भाव में धंधा, भवन, भाई, लेखा जोखा देखा जाता है। इसमें भाई के साथ संबंध को परखा जा सकता है। यह त्रिलोकी का भेद खोलने वाला बन जाता है। इससे आप अपने भाई के बारे जितनी चाहे उतनी जानकारी निकलवा सकते है।
चतुर्थ भाव में माता सुख, शांति, गृह सुख, भूमि, मन, सेहत, सम्मान, पदवी, वाहन सुख, स्तन, छाती को देखा जा सकता है। यह माता और सुख को आपकी जिंदगी में लाता है। बहुत ही प्रिये भाव है जिसकी किस्मत यह होता है उसकी किस्मत चमक जाती है।
पंचम भाव में संतान सुख, प्रेम, शिक्षण, प्रवास, यश, भविष्य, आर्थिक लाभ को देखा जा सकता है। यह संतान से सुख प्राप्ति, भाग्य और धन के राज को खोलने वाला भाव होता है।
षष्ठम भाव से रोग, शोक, शरीर व्याधी त्रास, शत्रु, मामा, नोकर, चाकर, मानसिक क्लेश को देखा जा सकता है। इसमें चाल ढाल, मामा, साले, बहनोई, शरीरिक और आध्यात्मिक शक्तियां, रिश्तेदारों से प्राप्त चीजें और बीमारी का हाल बताया जा सकता है।
सप्तम भाव में पत्नी, पति सुख, वैवाहिक सुख, कोर्ट कचेरी, साझेदारी का कार्य, आकर्षण, यश, अपयश को देखा जा सकता है। इसमें विवाह, संपत्ति, खान पान, परवरिश, पूर्वजन्म का धन, चेहरे की चमक, समझदारी, लड़की, बहन, पोती के बारे में पता लगवाया जा सकता है।
अष्टम भाव में मृत्यु, शोक, दु:ख, आर्थिक संकट, नपुंसकता, अनी‍ती, भ्रष्टाचार, तंत्र कर्म को देखा जा सकता है। यह मृत्यु का घर है इसे श्मशान कहा जाता है। अगर न्र ग्रह अकेला हो तो यह मृत्यु का घर नहीं माना जाता है।
नवम भाव में प्रवास, आध्यात्मिक प्रगति, ग्रंथ लेखन, बुद्धिमत्ता, दूसरा विवाह, भाग्य, बहिन, विदेश योग, स���क्षात्कार का पता लगाया जा सकता है। इंसान पिछले जन्म से क्या लेके आया है और भाग्य कितना ज्यादा जोर दार है।
दशम भाव में कर्म, व्यापार, नौकरी, पितृ सुख, पद प्रतिष्ठा, राजकाज, अधिकार, सम्मान को देखा जा सकता है और इसमें खुद की जायजाद, पिता का सुख, गमी, बेईज्जती, मक्कारी, होशियारी, इंसाफ, पद प्रतिष्ठा का पता लगाया जा सकता है।
एकादश भाव से मित्र, जमाई, लाभ, धन लाभ, भेंट वस्तु, भिन्नलिंगी से संबंध को देखा जा सकता है और यह आय का घर है बचत का नहीं है।
द्वादश भाव से कर्ज, नुकसान, व्यसन, त्रास, संन्यास, अनैतिकता, उपभोग, आत्महत्या, शय्यासुख को देखा जा सकता है। इसमें अचानक से कुछ होना जैसे कि विचार का आना, घटना का घटना और गुप्त बातों का पता चलना। इसमें ग्रह को देखा जाता है। ग्रह ही आपके बारे में जानकारी देते है।
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In the panchayat, the sister-in-law had slapped and in return, the brother-in-law raped and killed; The cruelty is such that even after death, raped | पंचायत में साली ने मारा था थप्पड़ तो बदले में जीजा ने रेप कर मार डाला; नृशंसता ऐसी कि मरने के बाद भी रेप किया
In the panchayat, the sister-in-law had slapped and in return, the brother-in-law raped and killed; The cruelty is such that even after death, raped | पंचायत में साली ने मारा था थप्पड़ तो बदले में जीजा ने रेप कर मार डाला; नृशंसता ऐसी कि मरने के बाद भी रेप किया
Hindi News Local Bihar Muzaffarpur In The Panchayat, The Sister in law Had Slapped And In Return, The Brother in law Raped And Killed; The Cruelty Is Such That Even After Death, Raped मुजफ्फरपुरएक घंटा पहले कॉपी लिंक कटरा में युवती से रेप के बाद बिखरा सामान। कटरा थाना क्षेत्र के एक गांव में घर में अकेली साली के साथ सगे बहनोई ने मंगलवार की रात दुष्कर्म करने के बाद लोढ़ा से सिर पर वार कर मौत के…
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