iPhone 14 सीरीज में पूरे लाइनअप में 6GB RAM की सुविधा की पुष्टि: विवरण
iPhone 14 सीरीज में पूरे लाइनअप में 6GB RAM की सुविधा की पुष्टि: विवरण
एक रिपोर्ट के अनुसार, Apple की iPhone 14 श्रृंखला – जिसमें iPhone 14, iPhone 14 Plus, iPhone 14 Pro और iPhone 14 Pro Max शामिल हैं, में 6GB RAM है। हालाँकि, नवीनतम iPhone 14 श्रृंखला में उपयोग की जाने वाली मेमोरी का प्रकार वर्तमान में अज्ञात है। क्यूपर्टिनो स्थित तकनीकी दिग्गज अपने फोन पर रैम के प्रकार और क्षमता का विज्ञापन नहीं करते हैं। IPhone 14 प्रो मॉडल में पहले 6GB LPDRR5 रैम होने की अफवाह…
View On WordPress
0 notes
मैकबुक एयर (2022), 13-इंच मैकबुक प्रो (2022) एम2 चिप्स के साथ लॉन्च
मैकबुक एयर (2022), 13-इंच मैकबुक प्रो (2022) एम2 चिप्स के साथ लॉन्च
Apple ने WWDC 2022 में अपने नवीनतम M2 चिपसेट का अनावरण किया, साथ ही कंपनी के इन-हाउस चिपसेट – मैकबुक एयर (2022), और 13-इंच मैकबुक प्रो (2022) द्वारा संचालित होने वाले पहले दो कंप्यूटरों के साथ। नवीनतम मॉडल पहली पीढ़ी के ऐप्पल सिलिकॉन चिप के उत्तराधिकारी से लैस हैं जिसे डब्ल्यूडब्ल्यूडीसी 2020 में घोषित किया गया था। मैकबुक एयर कंपनी के मैकबुक एयर लैपटॉप का पहला रीफ्रेश है क्योंकि एम 1 संचालित…
View On WordPress
0 notes
माथुर ब्राह्मणों के गोत्र 7 हैं। ये प्राचीन सप्त ऋषियों की प्रतिष्ठा में उन्हीं के द्वारा स्थापित हुए थे। इनकी ऐतिहासिकता संदेह से परे है। इन सात गोत्रों के गोत्रकार ऋषियों की परम्परा में नाम इस प्रकार हैं।
दक्ष गोत्र
कुत्स गोत्र
वशिष्ठ गोत्र
भार्गव गोत्र
भारद्वाज गोत्र
धौम्य गोत्र
सौश्रवस गोत्र
दक्ष गोत्र परिचय
दक्ष गोत्र प्रजापति ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों में सर्व प्रतिष्ठित प्रजापतियों के पति (10 ब्रह्मपुत्रों की धर्म परिषद के अध्यक्ष) रूप में सर्वोपरि सम्मानित थे। 9400 वि0पू0 की ब्रह्मदेव की मानसी सृष्टि के केन्द्र ब्रह्मपुर्या माथुर महर्षियों के क्षेत्र मालाधारी गली ब्रह्मपुरी पद्मनाभ स्थल के ये अधिष्ठाता थे।
आदि प्रयागतीर्थ मथुरा के उत्तरगोल सूर्यपुर में प्रजापत्य याज्ञ करके प्रजापति विभु स्वयंभू ब्रह्मदेव ने इन्हें समष्ट वेद-वेदज्ञ यज्ञ कर्मकर्ता प्रजापितयों का अधिष्ठाता नियुक्त किया था। ऋग्वेद में इनके मन्त्र हैं। देवों से पूजित होने और बड़े-बड़े यज्ञों, संस्कारों, धार्मिक कृत्यों के सर्बश्रेष्ठ नियन्ता होने के कारण ये अपार विद्याओं के समुद्र तथा अपार द्रव्य राशि के स्वामी थे। इनका अपना विशाल आश्रम मथुरा के सुयार्श्व गिरि पर था ऐसी हरिवंश पुराण से ज्ञात होता है।
इन्होंने अपने दक्षपुर (छौंका पाइसा) में महासत्र का आयोजन करके माथुर महर्षियों की ब्रह्मविद्या से अर्चना करके समस्त सुपार्श्व गिरि को सुवर्ण से आच्छादित कर उसकी शिखरों को रत्नों से देदीप्यमान कर उस समय (9400 वि0पू0) एक मात्र कर्मनिष्ठ लोकवंद्य देवपूजित माथुर चतुर्वेद ब्राह्मणों को दान में अर्पित कीं और उन्हें यह निर्देश दिया कि वे अनकी प्रदत्त पुण्य भूमि को खण्ड-खण्ड करके कभी विभाजित न करें उसका सम्मिलित रूप से उपभोग करते रहें।
उनके इस निर्देश पर भी उन ब्राह्मणों के वंशजों ने लोभ वश स्वर्ण बटोरकर उस शोभायमान पर्वत की श्री हीन करके कई खण्डों में विभाजित कर डाला। इस अनैतिक आचरण से खिन्न और कुपित होकर महामान्य दक्ष ने उन्हें शाप दिया कि वे लालची, कलही, भिक्षुक और कुल मान्यता से शून्य प्रतिष्ठा हीन हो जायेगें। महापुण्य दक्ष के सुपाश्व के विभिन्न शिखिर खण्ड मथुरा में आज भी पाइसा नामों से (गजा पाइसा, नगला पाइसा, शीतला पाइसा, कुत्स पाइसा, छौंका पाइसा) नामों से प्रसिद्ध हैं ध्यान देने की बात हे कि पाइसा शब्द का प्रयोग भारत के और किसी भी स्थान में कही भी प्रयुक्त नहीं है।
दक्ष यज्ञ- प्रजापति दक्ष ने अनेक बहु दक्षिणा युक्त यज्ञ किये। इनमें वह यज्ञ सर्वाधिक विख्यात है जिसमें इनका कन्या सती ने यज्ञ कुण्ड में कूदकर प्राणों की आहुति दी तथा भगवान यछ्र के गण रूप से वीरभद्र द्वारा देवों और ऋषियों का महाप्रतारण हुआ। पुराणों के अनुसार महात्मा दक्ष के प्रसूति नाम की पत्नी से 16 कन्यायें हुई थीं। इनमें से 13 उन्होंने प्रजापति ब्रह्मा को दी अत: वे ब्रह्मदेव के श्वसुर होने से महान गौरव पद को प्राप्त हुए।
उन्होंने स्वाहा पुत्री अग्निदेव प्रमथ माथुर को दी जिससे वे माथुरों के गोत्रकार बनकर मातामह बने। उन्होंने स्वधा नाम की पुत्री पितगों को दौं अत: पितृगण भी उनकी जामाता बनकर श्राद्धों में आदर पाते रहे। उनको उबसे छोटी स्नेहमयी लाडली पुत्री सती थी जो त्र्यंवक रूद्रदेव को ब्याही गयी। इतने प्रधान देवों का पितृ तुल्य श्वसुर पदधारी होने से दक्ष को महाअभियान हो गया। एक वार ब्रह्माजी की सभा (ब्रह्म कुण्ड गोवर्धन शिखर) पर उनके पहुँचने पर सभी देवों ने उन्हें नमन और अभ्युत्थान दिया परन्तु भगवान रूद्र गम्भीर मुद्रा में बैठे रहे इससे उन्होंने रूद्र द्वारा अपना अपमान किया जाना अनुभव किया और प्रतिकार रूप में एक विशाल यज्ञमूर्ति प्रभविष्णु की अर्चना युक्त जो अष्टभुज धारी महाविष्णु थे एक यज्ञ का आयोजन मथुरा में यमुना तट पर कनखल तीर्थ में आयोजन किया।
इस यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने अहंकारवश रूद्र को आमन्त्रित नहीं करते हुए यज्ञवेदी पर उनका देव आसन भी नहीं स्थापित किया। देवी सती यज्ञ में बिना बुलाये ही माता पिता के स्नेह से आतुर होकर पधारीं और यज्ञ मण्डप में भगवान रूद्र का आसग न देख महाक्षुब्ध होकर यज्ञाग्नि के विशाल कुण्ड में दलांग लगाकर आत्माहुति दे दी। तब रूद्र भगवान की भृकुटी भंग से उनके गण वीरभद्र (भील सरदार) ने भूत सेना लेकर यज्ञ का विध्वंश किया जिसमें पूषा, भग, भृगु आदि सभासद ताड़ित और दण्डित हुए और अन्त में शिरच्छेद के बाद अज���मुख दक्ष भगवान रूद्र कों शरणागत हुआ। भगवान रूद्र की यह एतिहासिक घटना 9358 वि0पू0 की है तथा ब्रह्मर्षि देश के मथुरा सूरसेनपुर में घटित हुई । विद्वान मूल तथ्यों से भटक जाने के कारण हरिद्वार इसे या अन्यत्र कहीं खोजते-फिरते हैं जबकि हरिद्वार (गंगाद्वार) भगीरथ के गंगावतरण के समय 4771 वि0पू0 में स्थापित हुआ।
मथुरा में यमुना के तठ पर अभी भी कनखस तीर्थ एक अति पुरत्तन पुराण वर्णित तीर्थ मौजूद है, यही समीप में भगवान रूद्र का त्र्यंवक (तिंदुक) तीर्थ तथा वीरभद्र गणों और मरूतों के युद्ध का स्थल मरूत क्षेत्र (मारू गली) सती मांता का पुरातन मठ (दाऊजी मन्दिर जहाँ क्षुरधारी मरूत ढाल बरवार वारे हनुमान के नाम से स्थित हैं। मथुरा में ही भूतनगर (नगला भूतिया) वीरभद्रेश्वरूद्रदेव , दक्षपुरी छौंका पाइसा तथा उसके निवासी दक्ष गोत्रिय माथुर छौंका वंश (महाक्रोधी , अभिमानी) अभी स्थित हैं। दक्ष की कथा विस्तार से भागवत आदि अनेक पुराणों में वर्णन की गयी है।
दक्ष वेद-प्रशस्त देव सम्मानित राजर्षि थें। इनके पुत्रों का वर्णन ऋग् 10-143 में तथा इन्द्र द्वारा इनकी रक्षा ऋग्0 1-15-3 में आश्विनी कुमारों द्वारा इन्हें बृद्ध से तरूण किये जाने का कथन ऋग्0 10-143-1 में है। वे दक्ष स्मृति नाम के धर्मशास्त्र के कर्ता है जिसमें आश्रम धर्म , आचार धर्म , आशीच , श्राद्ध, संस्कारों, व्यवहार धर्म तथा सुवर्ण दान के महान्म के प्रकरण कहे गये हैं।
मन्वन्तरों में समयों में सप्तऋषियों में आद्य स्थापना
मानव वंशों को "स्वस्वं चरित्र शिक्षेरेन पृथिव्यां सर्वमानवा:" का निर्णायक उद्घघोष प्रवर्तित करने वाले स्वायंभू मनुदेव के समय के सप्तऋषियों की धर्मपरिषद में माथुरों के आदि महापुरूषों में दक्ष आदि का प्रमाण है।
1- स्वायंभूमनु का मन्वन्तर काल 9000 वि0पू0 चैत्र शुक्ल 3 के समय उनके सप्तऋषि मण्डल में
1. आँगिरस, 2. अत्रि, 3. क्रतु, 4. पुलस्त्य, 5. पुलह, 6. मरोचि, 7. वशिष्ठ समाहित थे।
इनमें से ब्रतु, पुलस्त्य , पुलह के वंश आसुरी सम्पर्क में आकर ब्रह्मर्षि देश से बाहर उत्तर, पश्चिम भूखण्डों एशिया यूरोप सुदूर दक्षिण आदि में चले गये। आँगिरस (कुत्स) , दक्ष (आत्रेय वंश) मरोचि (कश्यप धौम्यवंश) वशिष्ठ (वेदव्यास वंश) मुरा मण्डल में अनु राजधानी में रहे तथापि देव, दानव, आसुर पोरोहिव्यधारी इन वहिर्गत महर्षियों को भी विश्व संगठन प्रवर्तक मान मनु महाराज ने इन्हें मण्डल बाह्य नहीं किया।
2- स्वारोर्चिष मन्वतर- 9962 वि0पू0 भाद्र पद कृष्ण 3 के प्रवर्तन समय के सप्त ऋषियों में माथुर वंश के भार्गव गोत्रिय और्व तथा आंगिरस वंशज वृहस्पति देव, आत्रेय पुत्र निश्च्यवन अन्य 4 महर्षियों के मण्डल में स्थापित हुए।
3- उत्तम मन्वर - (8530 वि0पू0 पाल्गुन कृष्ण 3 को स्थापित) मन्वतन्र के सप्तऋषि मण्डल के वशिष्ठ वंशों माथुर महर्षि ऊध्ववाहु शुक सदन सुतया आदि सम्मानित हुए थे।
4- तामस मनु क मन्वंतर - (8360 वि0पू0 पौष शुक्ल 1 में) माथुरों का अग्नि (प्रमथ) वंश चैत्र ज्योर्तिधीम धात् आदि सदस्यों के रूप में स्थापित था।
5- रैवत मन्वंतर - (8186 वि0पू0 आषाढ़ शुक्ल 10) स्थापित में सप्तर्षि मण्डल में माथुर महामुमि वशिष्ठ के वंशज सत्यनेत्र, अर्ध्वबाहु, वेदबाहु, वेदशिरा आदि धर्म प्रवर्तक थे।
6- चाक्षुष मन्वंतर - (7428 वि0पू0 माघ शुक्ल 7) प्रवर्तित के सप्तर्षि मण्डल में भगवान आदि नारायण (गताश्रम नारायण) के अशंभूत्त विराट मत्स्यपति ब्रजमण्डल संस्थापक भगवान विराज, श्रीयमुना जी के पिता विवस्वान सूर्य परिवार के विवस्वंतदेव, सहिणु सुधामा, सुमेधा आदि माथुर मुनीन्द्र लोकधर्म प्रतिपालक रहे। इस मन्वन्तर में ही बैकुण्ठलोक के स्थापक भगवान बैकुण्ठनाथ (बैकुण्ठतीर्थ मथुरा) तथा विरजरूप में प्रभु दीर्घ विस्णु के लोक संस्थापक अवतार हुए।
7- वेवस्वत मन्वंतर - (6379 वि0पू0 श्रावण कृष्ण 8) प्रवर्तित के महाविश्व विस्तृत सप्तऋषि मण्डल में माथुर ब्राह्माणों के पूजनीय पुर्व पुरूष अत्रि (दक्ष गोत्र) , कश्यप (धौम्य पूर्वज) , यमदंग्नि (भार्गव गोत्र) परशुराम अवतार के पिता वशिष्ठ (महर्षि वेदव्यास के पूर्वज ) विश्वामित्र सौश्रवस गोत्र पूर्व पुरूष ) देवपूजित विश्वधर्म के संचालक थे। केवल गौतम महर्षि जो गौतम आश्रम (गोकर्ण) टीला कैलाश) पर रहते थे आंगिरसों से विरोध उत्पन्म हो जाने के कारण भगवान माहेश्वर रूद्र की अनुज्ञा से मथुरा त्याग कर कुवेरबन (वर्तमान वृन्दावन) में (गौतमपारा) बसाकर जाकर रह गये। इनके वंशज गौतम ब्राह्मण अभी भी इस स्थान पर बसते हैं। इन ऋषियों के वंशधर बाद के व्यतीत मन्वन्तरों में सप्तर्षि मण्डलों में भी स्थापिय रहे।
यह भी प्रमाणित तथ्य है कि इन सभी मन्वन्तरों की स्थापना आद्य मनु की पुरी मथुरा सूरसेनपुरी में ही परम्पराबद्ध रूप से होती रहीं और ये ब्रह्मर्षि देश के पवित्र देवक्षेत्र में जहाँ-तहाँ स्थापित हो धर्म प्रशासन चलाते रहे। इस प्रकार परम सुनिश्चित सुपुष्ठ इतिहास परम्परा और शास्त्र प्रमाण से माथुर ब्राह्मणों की प्राचीनता और पदगरिमा की प्रशस्त स्थिति स्पष्ट है। अनेक युगों में ऋषियों की उपस्थिति
प्राय: यह शंका उठाई जाती है कि देव और ऋषि एक ही रूप में प्राय: प्रत्येक काल और युग में उपस्थित दीखते हैं जिससे उनकी आयु और जीवन स्थिति में अति असंवद्धता प्रगट होती है। इस सन्दर्भ में शास्त्र पद्धति की एक महत्वपूर्ण बात हमें जान लेनी चाहिये। भारतीय परम्परा के संस्थापकों ने देवों ब्रह्मपुत्र ऋषियों के लिये अजरामर रूप में बने रहने के लिये अमरत्व की एक विशेष प्रक्रिया स्थपित की थी जिसके अनुसार जिन देवों और ऋषि-महार्षियों को त्रिकाल व्याप्त पदों पर प्रितष्ठित किये गये थे उनके वे पद पीठ आसन या गादी नाम से स्थिर थे। ब्रह्मा, इन्द्र , अग्नि, वरूण , कुवेर, यम, सूर्य , चन्द, आदि देव कोई एक व्यक्ति नहीं अपितु ये प्रतिष्ठा सपद थे। इन पदों पर एक व्यक्ति के पद मुक्त होने से तत्काल पूर्व ही दूसरे पदधारी की प्रतिष्ठा कर दी जाती थी जिससे साधारण प्रजा को यह ज्ञात ही नहीं हो पाता था कि कौन पदधारी कब बदला। ब्रह्मा, इन्द्र, आदि अनेक हुए हैं इसी प्रकार कश्यप , अत्रि , वशिष्ठ, अंगिरा , नारद, भृगु, दक्ष आदि बहुत से हुए हैं वे सभी अपने पदों पर आसनारूढ या पदारूढ होते रहे हैं। इसी कारण से वेदों-पुराणों में किसी देवता या महर्षि का बृद्धता से लाठी टेककर चलना या उनकी मृत्यु होने का कथन नहीं है। वे प्राय: सामर्थ्यशाली दशा में ही पद मुक्त होकर उत्तर ध्रुव के महाप्रयाण लोक को प्रस्थान कर जाते थे। इस तथ्य का आधुनिक काल में प्रमाण जगद्गुरु शंकराचार्य की पाद पीट है जहां शंकराचार्य देव आदि स्थापना से अभी तक अजर-अमर बने विराजमान हैं। देवों, ऋषियों का प्रत्येक युग में एक उसी नाम से वर्तमान रहने का यही गूढातिगूढ रहस्य है जिसे हमें समझ लेना चाहिये।
दक्ष गोत्र के प्रवर - गोत्रकार ऋषि के गोत्र में आगे या पीछे जो विशिष्ट सन्मानित या यशस्वी पुरूष होते हैं वे प्रवरीजन कहे जाते हैं और उन्हीं से पूर्वजों को मान्यता यह बतलाती है कि इस गोत्र के में गोत्रकार के अतिरकित और भी प्रवर्ग्य साधक महानुभाव हुए है। दक्ष गोत्र के तीन प्रवर हैं। 1. आत्रेये 2. गाविष्ठर 3. पूर्वातिथि।
1. आत्रेय - महर्षि अत्रि के पुत्र थे। ये चन्द्र पुत्र अत्रि के छोटे पुत्र थे। महर्षि दक्ष के पुत्र न होने से इन्हें मानस पुत्र बनाया था तथा चन्द्रमा दत्तात्नेय के माह होने पर भी दक्ष वंश में चले जाने से इन्हें अत्रिवंश में नहीं गिना गया। ये वेदज्ञ विपुल यज्ञ कर्ता थे। मंटी ऋषि के के ये शिष्य थे तथा इनने वैत्तरेय संहिता का पद पाठ निर्धारण किया था। इनकी शास्त्रीय रचना आत्नेयी शिक्षा तथा आत्नेयी संहिता है।
2. गाविष्ठर - ये यज्ञ और वेद विद्या के महान आचार्य थे। समाइगय राजेश्वर वभ्रु के यज्ञों को इनने गृत्समद ऋषि के सा सम्पन्न कराये थे।
3. पूर्वातिथि - ये अत्रि कुल के महान आचार्य थे। इनका समय 8758 वि0पू0 है। भारतीय इतिहास काल में दक्ष दो हुए हैं। पहले दक्ष प्रजापति पुत्र दक्ष दूसरे प्राचेतस दक्ष। माथुरों के गोत्रकार प्रथम दक्ष है। दक्षों का वेद ऋग्वेद है। शाखा आश्वलायनी है तथा कुलदेवी महाविद्या देवी है। इनकी 4 अल्ल हैं 1. दक्ष, 2. ककोर, 3. पूरवे, 4. साजने। अल्ल उपजाति या आस्पद को कहते है। मनु ने इसे 'विख्याति' नाम दिया हे। आस्पद का अर्थ है आदर्शपद जो कुल के आदर्श कर्म या स्थान को संकेत करता है। जिस संज्ञा से समूह की लोक के ख्याति होती है उसे आख्यात या आख्या कहा जाता है। अलंकृति सूचक कुल नाम को अल्ह या अल्ल कहते है। दक्ष - ये दक्ष प्रजापति के पदासीन ज्येष्ठ (टीकैत) पुत्रों का वर्ग है। ये अधिक तर द्विजातियों के यज्ञोपवीत, विवाह , यज्ञ, अनुष्ठान आदि संस्कार कराते है। दक्ष ये मूल अल्ल है। 2. ककोर - ये यादवों की कुकुर शाखा के कुलाचार्य थे। इनका पुरा मथुरा में कुकुरपुरी , घाटी ककोरन के नाम से स्थित है। ये यादवों के पुरोहित होने से बड़े समृद्ध और सम्पत्तियों के स्वामी थे। कौंकेरा, ककोरी, कक्कु, कांकरौली, कांकरवार, ककोड़ा इनके विस्तार क्षेत्र थे। इस वंश में महापूजय श्री उजागरदेव जी वामन राजाओं के पुरोहित बड़े चौबेजी थे जो बादशाह अकबर के दरबार में सम्मान पाते थे। 3. पूरवे - ये सम्राट पुरूरवा च्रन्द्रवंशी के पुरोहित कुल में से हैं।
4. साजने या फैंचरे - ये साध्यजनों के पति गन्धर्वराज उपरिचर वसु (फैंचरी ब्रज) के पुरोहित थे। उपरिचर वसु बहुत शक्तिशाली सम्राट था। जिस इन्द्रदेव ने अपना ध्वज (झण्डा) देकर इन्द्र ध्वज पूजन की उत्सव विधि का उपदेश किया था। जिसे गंधारी केतुओं ने सद्दे और अलम के रूप में पूजना और उत्सव में प्रयुक्त तथा रण में फ��राना सीखा। उपरिचय मगध देश के जरासंध परिवार का पूर्व पुरूष था तथा मत्स्य देश के राजा सम्स्या और वेद व्यास माता मत्स्यगन्धा सत्यवती भी इसी वंश में उत्पन्न हुए थे। उसका राज्य गोपाचल क्षेत्र (ग्वालियर) में पिछोर पचाड़ गांग क्षेत्र में था।
5.सोखिया - मीठे वर्ग में यह अल्ल है जो सौंख खेड़ा में शौनक क्षेत्र में बसने से प्रख्यात हुई है।
6. जुनारिया - यह अल्ल अब देखने में नहीं आती है जान्हवी गंगा के प्रवर्तक जन्हु ऋषि (राजा) के प्रशासन क्षेत्र पुण्य क्षेत्र तीर्थों के केन्द्र में निवास करने से यह नाम प्रसिद्ध था जो जान्हवी के लोप होने के साथ ही अलक्ष हो गया है।
दक्ष का बहुत बड़ा परिवार था। प्रथम दक्ष (9400 वि0पू0) की 16 कन्याओं से प्रजापति ब्रह्मा, ऋग्वेद प्रतिष्ठापक अग्निदेव , पितृदेव तथा सती के पतिदेव रूद्र से प्राय: सभी देवों और ऋषियों के परिवार बढ़े और फंले। दूसरे प्रचेतरा दक्ष (7822 वि0पू0) में इसकी 60 कन्याओं में से ऋषि कश्यप आदि द्वारा सारे विश्व (यूरोप, एशिया, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका) के मानव वंश विश्व में विस्तारित हुए। अत: माथुरों का दक्ष वंश सारे संसार की जातियों और भूखण्डों का आद्य जनक और संस्कृति शिक्षक है ऐसा सिद्ध होता है।
कुत्स गोत्र
दक्ष के बाद कुत्स गोत्र सर्वाधिक व्यापक महान और पूजनीय सिद्ध होता है। कुत्स वंश के आद्य पुरूष महर्षि अंगिरा थे। जिनका वेदों पुराणों में सर्वाधिक वर्णन है। अंगिरा और भृगु आद्य अग्नि उत्पादक यज्ञ प्रवर्तक थे, तथा अग्निदेव (प्रमथो) के साथ समस्त विश्व में पर्यटन कर जंगली प्रजाओं को अग्नि का प्रयोग बताकर उन्हें सभ्यता के पथ में आगे बढ़ाने का इनने प्रयास किया था।
कुत्स महर्षि - आंगिरसों के कुल में उत्पन्न हुए थे। कुत्स का समय (6103 वि0पू0) है, तथा इनका मथुरा में आश्रम कुत्स सुपार्श्व श्रंग (कुत्स पाइसा या अपभ्रंश में कुत्ता पाइसा) कहा जाता है। कुत्स आचार शिथिल लोगों की कठोर शब्दों में भर्त्सना (कुत्सा) करते थे।, जो उनकी धर्म दृढ़ता और सावधान मनस्थिति का द्योतक था। इसी से आतंकित होकर प्रताड़ित जन उनके नाम को कुत्स कसे कुत्ता बनाने लगे। महर्षि कुत्स का एक और आश्रम गुजरात में भी था जिसे कुत्सारण्य की जगह ऐसे ही लोग 'कुतियाना गाँव' कहने लगे। कुत्स बड़े स्वरूप वान थे एक बार इन्द्र के महल में सजधज कर जाने पर इन्द्रानी इन्दे पहिचान न सकी क्योंकि ये वज्र धारथ कर इन्द्र के साथ संग्रामों में जाते थे। इन्द्र से इनकी ऐसी मित्रता थी कि एक बार सूर्य देव से इनका विरोध होने पर इन्द्र ने सूर्य के रथ का एक पहिया निकाल लिया तथा दूसरा भी निकाल कर इन्हें दे दिया 2। एक बार घर आने पर कहना न मानकर घर जाने को तैयार इन्द्र को इनने रस्सियों से बाँध लिया।3।। इनके वंशधर कौत्स ने अयोध्या सम्राट रघु (4181 वि0पू0) से अपने गुरु विश्वामित्र के शिष्य बरतन्तु (तेतूरा गाँव मथुरा) को गुरुदक्षिणा देने को 14 करोड़ स्वर्ण मुद्रा माँगी। रघु उस समय महान विश्वजित यज्ञ में सारा कोष दान कर चुके थे। कोषगारपति की सूचना से उद्विन्न हो रघु न कुवेर पर चढ़ाई करने का निश्चय किया। सायंकाल रथ आयुधों से सजवाया, प्रात: ही चढ़ाई करने वाले थे, तभी रात्रि में कुबेर ने स्वर्ण वृष्टि कर राज्य का पूरा कोष स्वर्ग से भर गया है। रघु ने हर्षित होकर कौत्स मुनि से सम्पूर्ण कोष का सुवर्ण ले जाने की प्रार्थना की परन्तु कौत्स ने कहा- "राजन् मैं 14 कोटि से एक कौड़ी भी ज़्यादा नहीं लूंगा। इतना ही तों मुझे गुरुदक्षिणा में देना है" राजा चंकित रह गया और आज्ञानुसार द्रव्य बरतन्तु मुनि के आश्रम में ऊँटों-गाड़ी , बैलों से पहुँचाया। माथुरों का 6000 वर्ष पूर्व असाधारण त्याग का वह एक सर्व पुरातन महान प्रमाण है।
कौत्स मान्धाता के गुरु थे। इनको भगीरथ ने अपनी कन्या दी थी ये बेद मंत्र कर्ता बड़े परिवार के स्वामी थे अत: इनके परिवार के 70 ऋषियों के नाम ऋग्वेद मण्डल में मंडल 1 3,5,810 में उपलब्ध है। इनके पुत्र अंगिरा के अग्नि, इन्द्र, विश्वेदेव, अश्विनौ, उषा , सूर्य रूद्र, रात्रि, सोम, भृगुगण आदि की स्तुति के मन्त्र ऋग्वेद मंडल 1 में है। इससे इनका इन सभी वैदिक देवों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध अनेक यज्ञों में उपस्थित होना तथा इन देवों से इन्हें प्रभूत दक्षिणा गो, स्वर्ण मिलने का संकेत मिलता है। कुत्स के 12 शिष्यों के मन्त्र ऋग् 5-31 में हैं। वेद वर्णन से ज्ञात होता है कि दस्युभज इनके इन्द्रादि द्वारा सम्मान से कुपित थे, अत: इनके परम मित्र इन्द्र ने इनकी रक्षा के लिये शुष्ण (सुसनेर) कुयव (जावरा) (सापर बड़ौद) वासी दस्युओं को मारकर उनके दुर्ग ध्वस्त किये थे। शत्रुओं द्वारा कूप में डाले गये इनका इन्द्र ने उद्धार किया 3। इन्द्र ने प्रसन्न होकर कुत्स को वेतसु (तस्सोखर) तुग्र (ताल गाँव) , मधैम (दियानौ मथुरा) नाम के क्षेत्र अर्पण किये थे।
आंगिरस - आंगिरस वंश से इनकी परम्परा निरन्तर चलती है। इनका समय 9400 वि0पू0 चलता है। इनका आश्रम मथुरा में अम्बरीष टीले के सामने स्यायंभूमनु के सरस्वती तटवर्ती विन्दुसरोवर के यमुना तट समीप है जिसे प्राचीन बाराह पुराण के मथुरा महात्म में "आंगिरस तीर्थ लिखा है। प्राचीन ऋषियों में आंगिरसों का महत्व सर्वाधिक है। ये इतने गौरवशाली थे कि सवय नामक इन्द्र स्वयं आकर इन्हें पिता बनाकर इनका पुत्र बनकर इनके घर में रहा था। "अभूदिन्द्र: स्वयं तस्यं तनय: सव्य नामक:। अंगिरावंश वेदों के स्तोत्र पढ़ने में अद्वितीय परिगत थे। इनके स्तोत्र द्वारस्तंभों की तरह स्थिरता युक्त और अचल है। इन्द्र ने अंगिराओं ने (इंगलैड के ब्रात्य ब्रिटिशों के शिक्षकों के ) साथ पणियों (फिनशियनों) द्वारा चुराई गायें (पिनियन पर्वत) पर पायीं। इन्द्र से यह प्रार्थना भी की गयी है। कि - 'हे सर्वशक्तिशाली देव जिन्होंने नौम���ीना (नवम्बर) में यज्ञ समाप्त किया है तथा दस महीना (दिसम्बर) में यज्ञ की पूर्ति की हैं, ऐसे सप्त संख्याओं वाले सद्गति पात्र महा मेधावी के सुखकर स्तोत्रों से तुम स्तुत किये गये हो । अंगिराओं ने मन्त्रों द्वारा अग्निदेव (माथुर देव) की स्तुति करके महावली और दृढ अंगों वाले (पानीपत वासी) पणि असुर को मन्त्र वल से नष्ट कर दिया था तथा हम अन्य ऋषियों के लिये द्युलोक (ब्रहमण्डल द्यौसरेस द्यौतानौ) देव क्षेत्र का मार्ग खोल दिया था। अंगिरसों ने इन्द्र के लिये अन्न अर्पित कर, अग्नि ज्वालाओं द्वारा इन्द्र का पूजन और हविदान कर यज्ञ कर्म के प्रधान पुरूषों के रूप अशव गौ तथा बहुत सा द्रव्य प्राप्त किया। अंगिरावंशी अंगिरसों ने मथुरा के भांडीरबन में "आंगिरससत्र" किया जिसमें विष्णु से कल्याण कामना का संकल्प था। इसी सत्र में श्रीकृष्ण बल राम ने अपने सखा भेज कर यज्ञान्न (मधुयुवत पुरोडाश) की याचना की और यज्ञ पत्नियों द्वारा सत्कृत और पूर्ण तृप्त होकर माथुरों की कर्म श्रेष्ठता का बंदन करते हुए इन्हें सदैव घृत पूर्णित और उत्तम भोजनों से सर्वत्र सब युगो में आदरित होने का वरदान दिया।
माथुर ब्राह्मणों के उच्चतिउच्च सदाचार और ज्ञान गौरव के आगे नत मस्तक होकर देवकीनन्दन श्रीकृष्ण ने आंगिरस प्रवरी घोर अंगिरस महर्षि से उपनिषदों का अध्ययन करके दुर्लभ ब्रह्मा विद्या भी प्राप्ति की जिसका उपयोग उन्होंने "श्री मद् भागवद गीता" में करके विश्व को सर्वोच्च दार्शसिक तत्व चिंतन के पथ पर चलने का दर्शन शास्त्र दिया। आंगिरसों की वैदिक वाणी से उत्पन्न आसुरी वैकृत भाषायें ग्रीस देश की ग्रीक, इगलेंड की आंगिरसी इंगलिश तथा अंगो��ा की महाबृषो "हवशियों" की भाषा अंगोलियन हैं , जो आंगिरसी शिक्षा के लिये कभी समर्पित थीं। आंगिरसों ने धर्म शास्त्र ग्रन्थ समृतियों का भी प्रवर्तन किया है। आंगिरा ने मथुरा के चित्रकेतु राजा वि0पू0 9332 के मृत पुत्र को जीवितकर ज्ञानोपदेश कराया । आंगरिसों ने स्वर्ग जाने में आदित्यों से स्पर्धा की तब आदित्य पहिले स्वर्ग पहुंच गय आंगिरा 60 वर्ष यज्ञ करने के बाद स्वर्ग पहंचे। आंगिरस पहिले ब्राह्मण थे जिनने सर्व प्रथम वाणी (भाषा) और छंद रचना ज्ञान देवों से प्राप्त दिया। आंगिरसों के परिवारों में गौत्र प्रवर्तक ऋषियों के नाम इस प्रकार हैं-बृहस्पति भारद्वाज , आश्वलायन, गालव, पैल, कात्यायन, वामदेव, मुद्गल , मार्कड, तैतरेय, शौंग, (शुंग) , पतंजल्लि, दीर्घतमा, शुक्ल, मांधाता , यौवनाश्व , अंवरीष आदि ।
यौवनाश्व प्रवर – कुत्स गोत्र का यौवनाश्व प्रवर युवनाश्व पुत्र चक्रवर्ती सम्राट मांधाता के आत्म समर्पण का द्योतक है। मान्धाता यौवनाश्व का समय 5576 वि0पू0 है। भागवत के कथन से यौवनाश्व मांधाता पुत्र अंवरीष का पुत्र था जो अंगिराओं के शिष्यत्व से क्षातियोपेत ब्राह्मण बने। मांधाता यौवनाश्व चक्रवर्ती सूर्यवंशी सम्राट था और इसका साम्राज्य पश्चिम समुद्र तट कच्छ करांची (दांता राज्य) से पूर्व में जापान द्वीप तक था जो सूर्य उदय और सूर्य अस्त का क्षेत्र था। मथुरा के नमक व्यापार पर एकाधिकार के लिये लवणासुर ने इसका राज्य छीन लिया। यह मथुरा माथुर ब्राह्मणों और माथुरों के आराध्य वाराह देव का परम भक्त था तथा वाराह देव की पूजा इसने सारे भारत वर्ष में फैलायी थी। भरना मथुरा के क्षेत्र वासी महर्षि सौभरि से इसने श्री यमुना महारानी का पंचाग उपासना मार्ग ग्रहण किया और उन्हें अपनी 50 कन्यायें देकर उनका राजवैभव विस्तृत किया। ऋग्वेद में इनका मन्त्र 10-134 पर है।
कुत्स गोत्र का वेद ऋग्वेद शाखा आशवलायनी तथा कुल देवी महाविद्या जी है। कुत्स गोत्र के आस्पद भी बहुत महत्व पूर्ण हैं जो अपनी प्रमाणिक श्रेष्ठता के विस्तार को प्रतिपादित करते हैं।
1. मिहारी - ये सबसे अधिक ज्ञानी गुणी लोक सम्मानित और समाज के सरदार शीर्ष वर्ग में से हैं। यही एक ऐसा वर्ग है जो अपने महा महिमा मंडित आद्य पूर्वज श्री ज्ञान तपो मूर्ति उद्धवाचार्य देव के गुणों का गर्व करता हुआ एक ही उनके 200 से भी अधिक परिवारों में माथुर पुरी के प्रधान केन्द्र स्थान मिहार पुरा में अवस्थित हैं प्रलय में भी नष्ट न होने वाले ब्रज द्युलोक महालोक (महजन तप) महारानौ महरौली के आद्यक्षेत्र से वाराह यज्ञ में उतर कर मथुरापुरी में आकर पूजित होकर स्थापित हुए। नन्द जशोदा तथा ब्रज के गो संस्कृति के अधिष्ठाता गोपों घोषपालों देवों के गोष्ठ रक्षकजनों को नंद मैहैर, मैहेर जसोध, मैहर गोपेशनंद आदि अपने शिष्यतत्व पद देकर तथा प्रख्यात ज्योतिर्बिद विक्रम के नवरत्न शिरोमणि बाराह मिहिर को भी बाद की प्रतिष्ठा से प्ररित किया। महलोंक के ये महामहर्षि प्रजापति दक्ष के पड़ौस में बसकर भी अपना कोई पाइसा न बनाकर दक्ष के कोप से मुक्त तथा दक्ष की प्रतिष्ठा युक्त मेत्री से विभूषित रहे। इन्होने गोप प्रजाओं को सादा पौष्टिक आहार महेरी खाने की सरल "सादाजीवन उच्च विचार मयी" पद्धति देकर सहज स्वाभिमानी बनाया। कहते हैं नंदराय गोपपति ने इन्हीं की सेवा कर आशीर्वाद साधना से पूर्ण पुरूषोत्तम श्री कृष्ण और धीर गंभीर लोक नमरकृत श्री बलराम देव जैसे पुत्र प्राप्त किये थे प्रमाण रूप पुरातन "कंस मेला" में दौनों भाई कंस विजय कर इनकहीं की गोद में विराजते विश्राम आरती अंगीकार करते हैं । इनके पुर के समीप वेश्रवण कुवेर का पुर (सरवन पुरा) है तथा रत्न सरोवर तथा स्वर्ण कलशधारी रत्नेश्वर शिव का देवस्थान है। जिसे "सोने का कलसा" वाला देव अभी भी कहा जाता है।
2. शांडिल्य- ये नंद गोपकुल के पुरोहित थे। इनका शाँडिल्य भक्तिसूत्र नारद भक्तिसूत्र के बाद भक्ति सम्प्रदाय का मान्य ग्रन्थ है। श्रीकृष्ण बलराम की रक्षा हेतु सदा प्रयत्नशील रहते थे। इनका वंश प्राचीन है। कर्मपुराण के अनुसार थे असित (देवल) के पुत्र 5014 वि0पू0 में विद्यमान थे। महाभारत से इनकी संशगत उपस्थिति 4814 वि0पू0 में विद्यमान थे । महाभारत से इनकी वंशगत उपस्थिति 4814 वि0पू0 में भी थी। कृष्णकाल में इनका समय 3107 वि0पू0 है। इनका धर्मशास्त्र 'सांडिल्य स्मृति' हैं।
3. अकोर - यह अल्ल प्राय: विलुप्त है। मथुरा के समीप अर्कस्थ अकोस गांव में ये रहते थे। जो अर्क सूर्य का स्थल प्राचीन मथुरा के पंच स्थलों में से था।
4. धोरमई - ये मथुरा के निकट ध्रुवपुरी घौरैरा के वासी थे। धोरवई ध्रुव का अटल पद (अटल्ला चौकी) वर्तमान ब्रन्दावन के निकट है। धुरवा, धुरैरा (रज के ) धुर्रा , धुरपद, गाढी का धुरा, धुरंथर, ध्रुव काल के माथुरी भाषा के शब्द हैं।
5. गुनारे - मथुरा के मधुवन के समीप फाल्गुनतीर्थ पालीखेड़ा तथा फालैन में इनका निवास था। ब्रज के फाल्गुनी यज्ञ (होली) के महीना में ही अर्जुन का जन्म होने पर इन्होंने फाल्गुनी बालक के जन्म का महोत्सव किया था। गुना क्षेत्र ग्वालियर गोपाचल में भी हैं। इनका समय 3110 वि0पू0 के लगभग है।
6. खलहरे - ये यज्ञ कर्म में ब्रीहि यव धान्य उलूखलों मे कूटकर यज्ञहवि प्रस्तुत करते थे। ऐसे उलूखलनंदराय के भी गोकुल में थे जिनमें से एक ऊखल से श्री कृष्ण को माता यशोदा ने बाँधा था तभी से उनका नाम दामोदर पड़ा । महावन में ऊखल बंधन का स्थान अभी है। यहीं यमलार्जुन तीर्थ भी है।
7. मारोठिया - 49 मरूतगणों का प्रदेश मरूधन्व (मारवाड़) प्रसिद्ध है। मरूतों की पुरी मारौठ तथा मरूदगण वंशी (आंधी तूफान के देवता) मारौठिया, मराठा, राठौर प्रसिद्ध हैं ये दक्ष यज्ञ के समय अपने मरूत क्षेत्र (मारू गली) में दक्ष और देव पक्ष की रक्षा हेतु वीरभद्र की भूतसेना से लड़े थे। मारूगली में भी मारू राजा का महल मारू देवता, मारूगण, तीरभद्र वीर प्रतिमां अभी मथुरा में है।
8. सनौरे - ये 12 अदित्यों में पूषन सूर्य के वंशधर हैं। उशीनर देश के राजा शिवि महादानी के ये पुरोहित थे। ब्रज में अपने क्षेत्र चौमां में ये सन (पटसन फुलसन अलसी) कुटवा कर ऋषियां और ब्रह्मचारियों के लिये क्षौममेखला और क्षौमपट कारीगरों से बनवाकर प्रस्तुत करते थे।
9. सौनियां - ये ब्रजसीमा सोनहद के वासी थे। गंधारी शकुनी को शकुन शाऊत्र सगुनौती विद्या सिखाने से तथा सगुन चिरैया द्वारा प्रश्नोत्तर देने से "शाकुने तु बृहस्पति" के प्रमाण से अंगिराओं की विद्या के आचार्य थे सगुनियों से सौनियां नाम पाया । ये मीठों में ही हैं।
10. सद्द - ये सद्द देवों की देवसद या ऋषियों की धर्म परिषद के धर्म निर्णायक सदस्य 'सद्द' हैं। इनकी परिषद् परम्परा मौर्य गुप्तकाल तक स्थापित थी सद्दू पांड़े की वैठक श्री नाथ जी के समय की जतीपुरा में है। वर्हिषद प्रियब्रत वंशी सम्राट की पुरी वहेड़ी उत्तर पाँचाल में अभी वर्तमान है। यहीं प्रियब्रत पुरी पीलीभीत तथा हविर्धान की हविर्धानी हल्द्वानी है इनका ही अपभ्रंश नाम सद्द है।
11. कुसकिया - ये विश्वामित्र के दादा कुशिक के पुर कुशकगली मथुरा के प्राचीन निवासी हैं। ये मीठों में है। कुशिकापुर के लोग पीछे मुसलिम बना लिये गये तथा कुशिकपुर पर मसजिद बना कर कब्जा कर लिया गया। कुशिक के पुत्र गाधि का गाध���पुरा (नया गोकुल के निकट) तथा विश्वामित्र तीर्थ स्वामीघाट मथुरा ही में हैं।
12. सिरोहिया - ये सिरोही राज्य में जाकर आश्रय पाने से सिरोहिया कहे गये। ये भी मीठे वर्ग में हैं। किसी समय सिरोही की तलवारें बहुत नामी होती थीं। असुर असिलोमा के अश्वारोही सैनिक दल की यह प्राचीन पुरी थी।
8 notes
·
View notes
🎍कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।🎍
कबीर साहेब जी को हम भारत के महान कवी और संत के रूप में जानते हैं। वे हिंदी साहित्य के निपुण विद्वान और भक्तिकाल के महान प्रवर्तक रहे हैं। कबीर साहेब ने समाज में फैली धार्मिक कुरीतियों की कड़ी निंदा की थी और लोगों को सतमार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया था।
लेकिन कबीर साहेब वास्तव में कौन थे? जिन्होंने अपने तत्वज्ञान से 600 वर्ष पूर्व 64 लाख शिष्य बनाये थे।
वास्तव में कबीर साहेब पूर्ण परमेश्वर हैं, उन्होंने 600 वर्ष पूर्व अनेकों लीलाएं व चमत्कार किये थे, जो कि सिर्फ एक परमेश्वर ही कर सकता है।
जैसे कि कबीर साहेब ने कम महेनताना मिलने के बावजूद, काशी में 3 दिन तक 18 लाख लोगों के लिए भंडारा आयोजित किया था और साथ ही सभी को एक स्वर्ण की मोहर तथा एक दोहर दान दी थी।
ऐसे ही एक समय दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने कबीर साहेब से शर्त लगाई कि यदि वे 13 गाड़ी खाली कागजों को 60 घण्टे में लिख देवे, तो वे कबीर साहेब को भगवान मान लेंगे। तब कबीर परमात्मा ने अपनी डंडी (सोटी) उन तेरह गाड़ियों में रखें कागजों पर घुमा दी और उसी समय सर्व कागजों में संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान लिख दिया था।
एक बार सिकन्दर लोधी के धार्मिक गुरु शेख तकी ने शर्त रखी कि यदि कबीर जी मुर्दे को जीवित कर दे तो हम भी इनको अल्लाह मान लेंगे। कबीर साहेब ने दरिया में बहकर जा रहे बालक क�� जीवित कर दिया था।
ऐसी ऐसी अनेको लीलाएं कबीर साहेब ने की थी, इससे सिद्ध है की कबीर साहेब पूर्ण परमेश्वर हैं।
कबीर परमेश्वर चारों युगों में भिन भिन नाम से अवतरित होतें है, कलयुग में सन् 1398 (संवत 1455) में ब्रह्ममुहूर्त के समय ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को कबीर परमेश्वर नवजात शिशु के रुप में कशी के लहरतारा तालाब पर कमल के फूल पर प्रकट हुए थे। इस घटना के प्रत्यक्ष साक्षी पंडित रामानंद के शिष्य ऋषि अष्टानंद जी थे।
परमेश्वर कबीर जी ने अपनी मधुर वाणियों में लोगों को समझाते हुए बताया है कि मैं अविगत से चलकर आया हूं इस बात को ये दुनिया वाले नहीं जानते हैं मैं स्वयं अविनाशी परमात्मा हूं।
अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।
ना मेरा कोई जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
कबीर- माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहे का पुत्र आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
हाड चाम लोहू न मेरे, जाने कोई सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
पवित्र ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 16, 17 व अनेकों वेद मन्त्रों में भी यह प्रमाण है कि परमात्मा का नाम कबीर है वह बालक रूप में धरती पर प्रकट होकर कबीर वाणी के माध्यम से अपने वास्तविक ज्ञान को पुण्यात्माओं तक पहुँचाते हैं तथा वह कवियों की तरह आचरण करते हुए दोहों और चौपाईयों के माध्यम से लोगों को सतभक्ति प्रदान करते हैं।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज आज के समय में कबीर जी के पगचिन्हों पर चलने वाले महान संत हैं। कबीर जी द्वारा बताई गई सच्ची भक्ति को वे हमारे धार्मिक ग्रंथों से प्रमाणित करके बतातें है।
#SantRampalJiMaharaj
#GodKabir_Appears_In_4_Yugas
अधिक जानकारी के लिए "Sant Rampal Ji Maharaj" App Play Store से डाउनलोड करें और "Sant Rampal Ji Maharaj" YouTube Channel पर Videos देखें और Subscribe करें।
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
⬇️⬇️
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
Download करें
पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
https://bit.ly/KabirParmeshwarBook
2 notes
·
View notes
#गहरीनजरगीता_में_Part_243 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#गहरीनजरगीता_में_part_244
हम पढ़ रहे है पुस्तक "गहरी नजर गीता में"
पेज नंबर 467–470
।। मृत लड़के कमाल को जीवित करना।।
एक लड़के का शव (लगभग 12 वर्ष का) नदी में बहता हुआ आ रहा था। सिकंदर लौधी के धार्मिक गुरु (पीर) शेखतकी ने कहा कि मैं तो कबीर साहेब को तब खुदा मानूं जब मेरे सामने इस मुर्दे को जीवित कर दे। साहेब ने सोचा कि यदि यह शेखतकी मेरी बात को मान लेगा और पूर्ण
परमात्मा को जान लेगा तो हो सकता है सर्व मुसलमानों को सतमार्ग पर लगा कर काल के जाल से मुक्त करवा दे। सिकंदर लौधी राजा तथा सैकड़ों सैनिक उस दरिया पर विद्यमान थे। तब साहेब कबीर ने कहा कि शेख जी - पहले आप प्रयत्न करें, कहीं बाद में कहो कि यह तो मैं भी कर सकता
था। इस पर शेखतकी ने कहा कि ये कबीर तो सोचता है कि कुछ समय पश्चात यह मुर्दा बह कर आगे निकल जाएगा और मुसीबत टल जाएगी। साहेब कबीर ने उसी समय कहा कि हे जीवात्मा! जहाँ भी है कबीर हुक्म से इस शव में प्रवेश कर और बाहर आजा। तुरंत ही वह बारह वर्षीय लड़का जीवित हो कर बाहर आया और साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम की। सब उपस्थित व्यक्तियों ने
कहा कि साहेब ने कमाल कर दिया। उस लड़के का नाम ‘कमाल‘ रख दिया तथा साहेब ने उसे अपने बच्चे के रूप में अपने साथ रखा। इस घटना की चर्चा दूर-2 तक होने लगी। कबीर साहेब की महिमा बहुत हो गई। लाखों बुद्धिमान भक्त आत्मा एक परमात्मा (साहेब कबीर) की शरण में आ
कर अपना आत्म कल्याण करवाने लगे। परंतु शेखतकी अपनी बेईज्जती मान कर साहेब कबीर से ईष्र्या रखने लगा।
।। मृत लड़की कमाली को जीवित करना।।
एक दिन शेखतकी अवसर पाकर बहु सँख्या में मुसलमानों को बहकाकर सिंकदर लौधी के पास ले गया। उस समय साहेब कबीर सिंकदर लौधी के विशेष आग्रह पर उनके मकान पर दिल्ली में ही थे। सिंकदर लौधी ने इतने व्यक्तियों के आने का कारण पूछा तो बताया कि शेखतकी कह
रहा है कि यह कबीर काफिर है। कोई जादू जन्त्रा जानता है। यदि यह कबीर मेरी लड़की जो मर चुकी है और लगभग 15 दिन से कब्र में दबा रखी है, को जीवित कर देगा तो मैं और सर्व उपस्थित व्यक्ति भी इस कबीर की शरण में आ जाएंगे अन्यथा इस काफिर को सजा दी जाएगी। साहेब
कबीर यही सोच कर कि हो सकता है यह नादान आत्मा ऐसे ही सतमार्ग स्वीकार कर ले, अपना भी उद्धार कर ले और अन्य आत्माओं का भी कल्याण करवा दे। चूंकि ये सर्व प्राणी आज चाहे मुसलमान हैं चाहे हिन्दू हैं, चाहे सिक्ख हैं और चाहे ईसाई बने हुए हैं सब कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) का ही अंश हैं। काल भगवान इनको भ्रमित किए हुए है। कबीर साहेब ने कहा कि आज से तीसरे दिन आपकी कब्र में दबी हुई लड़की जीवित हो जाएगी। निश्चित समय पर हजारों की
संख्या में दर्शक कब्र के आस-पास खड़े हो गए। कबीर साहेब ने कहा हे शेखतकी! आप भी कोशिश करें। उपस्थित जनों ने कहा कि यदि शेखतकी के पास शक्ति होती तो अपनी बच्ची को कौन मरने दे? कृप्या आप ही दया करें। तब कबीर साहेब ने कब्र फुड़वा कर उस कई दिन पुराने शव को जीवित कर दिया। वह लगभग 13 वर्ष की लड़की का शव था। तब सभी उपस्थित व्यक्तियों ने कहा
कि कबीर साहेब ने कमाल कर दिया - कमाल कर दिया। कबीर साहेब ने उस लड़की का नाम कमाली रखा। लड़की ने अपने पिता शेखतकी के साथ जाने से मना कर दिया तथा कहा कि हे
नादान प्राणियों! यह स्वयं पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष) आए हैं। इनके चरणों में गिर कर अपना आत्म-कल्याण करवा लो। यह दयालु परमेश्वर हैं। हजारों व्यक्तियों ने साहेब के (मद्भक्त) मतावलम्बी अर्थात् साहेब कबीर के विचारों के अनुसार भक्त बन कर अपना कल्याण करवाया
अर्थात् नाम दान लिया तथा कबीर साहेब ने उस कमाली लड़की को अपनी बेटी रूप में रखा।
( अब आगे अगले भाग में)
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
4 notes
·
View notes
आगजनी का शिकार मृतकों के बच्चों को मिलेगी 13 लाख रुपए की सहायता और चार-चार हजार रुपए निराश्रित पेंशन -बिधायक अग्रवाल
ब्यूरो प्रमुख नफीसा बनो दतिया
इंदरगढ़। थाना लॉच क्षेत्र के ग्राम तिघरू में 28 मई की दोपहर हुई आगजनी की घटना में पति-पत्नी एवं एक मासूम बच्ची की मौत हो गई थी और एक बच्चा आग से जल गया जिसका दतिया अस्पताल में उपचार जारी है इस दुखद घटना को लेकर सेंवढा विधायक प्रदीप अग्रवाल मृतकों के परिजनों के बीच पहुंचे और परिजनों को इस दुखद घटना पर ढाढस बधाया ।
ग्राम तिघरू में मृतकों के परिजनों के बीच उपस्थित…
View On WordPress
0 notes
Road Accident on Rishikesh-Badrinath Highway: ट्रॉला और सूमो गाड़ी की टक्कर, 11 यात्री घायल
Srinagar (Uttarakhand): उत्तराखंड के श्रीनगर में बुधवार सुबह को ऋषिकेश-बद्रीनाथ राजमार्ग पर एक ट्रोला और सूमो गाड़ी की आमने सामने की टक्कर हो गई। सूमो में सवार सभी 11 यात्री घायल हो गए जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
घटना बागवान क्षेत्र में ऋषिकेश-बद्रीनाथ राजमार्ग पर हुई। सूमो गाड़ी (यूए 07एम5229) श्रीनगर से ऋषिकेश की तरफ आ रही थी। तभी सामने से आ रहे तेज रफ्तार ट्रोला (पीबी 13 बीआर…
View On WordPress
0 notes
Stocks to Buy: Here's why Anand Rathi suggests HAL, Titan, Aegis Logistics
3 मिनट पढ़ें आखरी अपडेट : 13 मई 2024 | सुबह 6:39 बजे प्रथम
एजिस लॉजिस्टिक्स
एजिस लॉजिस्टिक्स ने अपने मूल्य व्यवहार में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा। इसके दैनिक चार्ट की विस्तृत जांच से एक महत्वपूर्ण घटना का पता चलता है: अपने हालिया शिखर से 19 प्रतिशत सुधार के बाद मध्य बोलिंगर बैंड पर एक तेजी से कैंडलस्टिक का उद्भव।
यह सूक्ष्म अवलोकन संकेतक विश्लेषण से एक सम्मोहक अंतर्दृष्टि द्वारा पूरक है, क्योंकि…
View On WordPress
0 notes
Viral Photo: मां के सामने दोनों बच्चियों की मौत… बाथरूम में इस हालत में मिलीं विधायक की दोनों भतीजियां
Mohammad Salim Shabbo Qureshi: मुरादाबाद देहात सीट से सपा विधायक नासिर कुरेशी के छोटे भाई और देश के सबसे बड़े मांस निर्यातक हाजी मोहम्मद सलीम शब्बो कुरेशी के दिल्ली स्थित घर में भीषण आग लग गई। इससे पहले कि पुलिस और अग्निशमन दल आग पर काबू पाते, मांस निर्यातक की दो बेटियों गुलश्ना (15) और अनाया (13) की दम घुटने से मौत हो गई। निर्यातक की पत्नी गुलिस्तां कुरैशी, नौकर आदि ने किसी तरह भागकर जान बचा ली, लेकिन उनकी दो बेटियां पहली मंजिल पर बाथरूम में फंस गईं। मीट निर्यातक सलीम का उत्तरी दिल्ली के सदर बाजार के कुरैश नगर में चमेलियन रोड पर आलीशान दो मंजिला बंगला है। करीब 750 गज जमीन पर बने इस बंगले में उनकी पत्नी गुलिस्तां कुरैशी, बेटे शारिक और खिजर के अलावा दो बेटियां गुलश्ना और अनाया रहती थीं। सलीम बिजनेस के सिलसिले में दुबई गया हुआ है।
Mohammad Salim Shabbo Qureshi: बचावकर्मी बंगले के अंदर जाते हैं
मंगलवार दोपहर 2.07 बजे बंगले के ग्राउंड फ्लोर पर बने होम थिएटर से अचानक धुआं उठने लगा। देखते ही देखते धुएं ने आग का रूप ले लिया। ग्राउंड फ्लोर पर होने के कारण सलीम की पत्नी गुलिस्तां, गार्ड, ड्राइवर और दो नौकर बाहर चले गए।
आग लगने के कारणों का पता लगाने में जुटी टीम
पहली मंजिल पर कमरे में मौजूद दोनों बेटियां फंस गईं। बचने के लिए दोनों ने खुद को बाथरूम में बंद कर लिया. इसी बीच पुलिस और फायर ब्रिगेड पहुंच गई और आग पर काबू पाने के प्रयास शुरू कर दिए। फायर ब्रिगेड कर्मी बीए सेट (मास्क) पहनकर घर में दाखिल हुए। शीशा तोड़कर धुआं निकाला गया।
रेस्क्यू टीम शीशा तोड़कर अंदर दाखिल हुई
आग पर काबू पाने के बाद जब घर की तलाशी ली गई तो बेटियां कहीं नजर नहीं आईं। पहली मंजिल पर बंद बाथरूम का दरवाजा तोड़ा गया तो दोनों बेहोश मिले। उन्हें तुरंत पास के जीवन माला अस्पताल ले जाया गया, जहां दोनों को मृत घोषित कर दिया गया। जांच टीम ने जांच के लिए नमूने लिए। दोनों बच्चियों की मौत उनकी मां के सामने ही हो गई मंगलवार दोपहर कुरैश नगर के अमानत मकान में जब आग लगी तो सलीम के चारों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे। दरअसल, रोजे की वजह से सभी लोग सुबह सेहरी खाकर देर से उठते थे. दोपहर को जब घर में आग लगी तो सलीम के दोनों बेटे ग्राउंड फ्लोर पर बने कमरे में सो रहे थे। दोनों बेटियां पहली मंजिल पर बने कमरे में सो रही थीं। जांच टीम ने जांच के लिए नमूने लिए। मां गुलिस्तां अपने काम में व्यस्त थी। आग लगने के बाद जब थिएटर से धुआं उठा तो गुलिस्तां ने अपने बेटों शारिक और खिजर को बाहर निकाला। दोनों बेटियां ऊपर अपने कमरे में फंस गईं। बेटों को बाहर छोड़कर गुलिस्तां ने घर में घुसने की कोशिश की तो अंदर आग और धुआं फैला हुआ था।
Mohammad Salim Shabbo Qureshi: जांच टीम मौके पर
इसके बावजूद जब गुलिस्तां अंदर घुसने लगा तो बाहर मौजूद लोगों की भीड़ ने उसे रोक दिया. गुलशना और अनाया की मौत उनकी मां के सामने ही हो गई. परिवार के एक सदस्य ने बताया कि हाजी सलीम का बड़ा बेटा बीबीए प्रथम वर्ष का छात्र है। बड़ी बेटी 11वीं क्लास में आ गई थी.
घटना के बाद जांच टीम मौके पर पहुंची
अनाया आठवीं क्लास में पढ़ती थी. छोटा बेटा खिजर छठी क्लास में पढ़ता है. एक पड़ोसी ने बताया कि हाजी सलीम कुरेशी का आलीशान मकान पूरे इलाके में चर्��ा में था. घर में सेंट्रलाइज्ड एसी के अलावा 12-14 लोगों के लिए मूवी देखने के लिए थिएटर भी है. थिएटर में आग एसी से शुरू हुई. थिएटर में ज्वलनशील पदार्थ होने के कारण यह तेजी से पूरे घर में फैल गया और दो लड़कियों की जान चली गयी.
0 notes
Anxiety Meaning in Hindi - चिंता: कारण, पहचान, प्रकार, और उपचार
चिंता एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है जिसमें व्यक्ति को अत्यधिक तनाव और चिंता का सामना करना पड़ता है। यह मात्र तनाव से परे है, जो अक्सर भविष्य के बारे में तर्कहीन विचारों और आशंकाओं के साथ दिमाग में घुसपैठ करता है। आजकल की भागदौड़ भरी जीवनशैली में, ऐसा लगता है कि व्यक्तियों का चिंता से घिरा रहना सामान्य बात हो गई है। अक्सर भूतकाल और भविष्य को लेकर लोगों के मन में चिंता बनी रहती है, थोड़ी चिंता होना सामान्य बात है, लेकिन जब यही चिंता एक गंभीर मानसिक बीमारी का रूप धारण कर लेती है तब महत्वपूर्ण हो जाता है कि सही समय पर इसका इलाज किया जाए। चिंता से जूझ रहे व्यक्तियों को बेचैनी, हृदय गति में वृद्धि और तनाव जैसे शारीरिक लक्षणों का अनुभव हो सकता है। चिंता के लक्षण में मनोबल की कमी, नींद की कमी, तनाव, और शारीरिक कमजोरी शामिल हो सकती हैं। यह मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर सकती है, जैसे कि नौकरी, परिवार, और सामाजिक संबंध। चिंता का सामाधान उपचार के माध्यम से संभव है। लेकिन उससे पहले यह महत्वपूर्ण है कि लोग इसे गंभीरता से लें और सही समय पर इलाज करवाएँ।
चिंता विकार मानसिक बीमारी का एक सामान्य उदाहरण है। यह 13 से 18 वर्ष की आयुवर्ग के 31.9% किशोरों को प्रभावित करता है। हर साल, किशोरों के अलावा अधिक आयुवर्ग के लोग भी इससे प्रभावित होते हैं। आइए, जानते हैं चिंता का अर्थ, इसके लक्षण, प्रकार, कारण, और रोकथाम के बारे में विस्तार से।
एक्सपर्ट सुझाव के लिए कॉल करें +91 9667064100
चिंता का अर्थ क्या है?
चिंता ( Anxiety Meaning in Hindi): चिंता शब्द का अर्थ डर और बेचैनी से जुड़ा होता है। जब कोई व्यक्ति किसी चिंता में डूबा होता है, तो उसे अचानक से पसीना आ सकता है, बेचैनी हो सकती है और तनाव (टेंशन) के साथ दिल की धड़कन भी तेज हो सकती है। चिंता के कारण पसीना आना, बेचैनी, या दिल की धड़कन का तेज होना आदि को सामान्य प्रतिक्रिया माना जाता है। कोई बुरी खबर सुनने पर, परीक्षा या इंटरव्यू से पहले, या जीवन में घटित किसी दुखद घटना को याद कर चिंतित हो जाना, ये सभी सामान्य चिंता के उदाहरण हैं। चिंता एक सामान्य अनुभव हो सकती है, लेकिन जब यह बहुत अधिक और स्थायी हो जाती है, तो इसे मानसिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में जाना जा सकता है, जिसे चिंता विकार कहा जाता है।
चिंता विकार का क्या अर्थ है?
चिंता विकार ( Anxiety Meaning in Hindi ) एक मानसिक समस्या है, जिससे प्रभावित व्यक्ति अपनी चिंता से मुक्ति पाने में समर्थ नहीं होता। समय के साथ, इस समस्या के लक्षण और भी विकट हो सकते हैं। चिंता विकार मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों की एक श्रेणी को संदर्भित करता है जिसमें लगातार, अत्यधिक चिंता, भय या आशंका होती है जो किसी व्यक्ति के दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण रू��� से हस्तक्षेप करती है।
चिंता और विकार के बीच में अंतर क्या है?
चिंता, तनाव या कथित खतरे के प्रति डर से जुड़ी एक सामान्य प्रतिक्रिया है। यह मानवीय अनुभव का एक स्वाभाविक हिस्सा है और यह व्यक्ति-दर-व्यक्ति व्यापक रूप से भिन्न हो सकता है। चिंता जब अत्यधिक हो और लगातार बनी रहती हो तो यह एक विकार बन जाती है और दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण रूप से हस्तक्षेप करती है। सामान्य चिंता और चिंता विकार के बीच कुछ प्रमुख अंतर यहां दिए गए हैं:
सामान्य चिंता: कभी-कभी तनाव या चिंता ( Anxiety Meaning in Hindi) की भावनाएँ किसी विशिष्ट स्थिति या समस्या के अनुरूप होती हैं। सामान्य चिंता समस्या हल होने के बाद अपने आप ख़त्म हो जाती है।
चिंता विकार: चिंता विकार ऐसी स्थिति है जिसमें चिंता या भय अत्यधिक और एक विस्तारित अवधि (आमतौर पर छह महीने या अधिक) तक रहता है और किसी विशिष्ट स्थिति से सीधे संबंधित नहीं होता है।
सामान्य चिंता की पहचान :
बिल भुगतान से पहले की चिंता
नौकरी के लिए साक्षात्कार और परीक्षा से पहले की चिंता
स्टेज पर जाने से पहले पेट में दर्द की
किसी विशिष्ट वस्तु का भय, जैसे सड़क पर आवारा कुत्ते द्वारा काट लिया जाना
किसी करीबी की मौत पर चिंता
किसी बड़े काम से पहले पसीना आना
चिंता विकार ( चिंता रोग - Anxiety Meaning In Hindi) की पहचान :
बेवजह चिंता करना
लोगों के सामने जाने से डरना
लोगों से बात करने का डर
लिफ्ट में जाने का डर कि वापस नहीं आ पाएंगे
फुसफुसाना
चीजों को बार-बार सेट करने की आदत
यह विश्वास करना कि आप मरने वाले हैं या कोई आपको मार डालेगा
पुरानी बातों को बार-बार याद करना
Resource: https://www.felixhospital.com/blogs/anxiety-meaning-in-hindi
0 notes
ननिहाल आई 13 साल की बच्ची के साथ तीन दिन तक किया गैंगरेप, मुख्य आरोपी गिरफ्तार
ननिहाल आई 13 साल की बच्ची के साथ तीन दिन तक किया गैंगरेप, मुख्य आरोपी गिरफ्तार
Sri ganganagar Crime News: पंजाब से अपने ननिहाल आई 13 साल की बच्ची से सामुहिक होने का मामला सामने आया है.दरअसल गजसिंहपुर के एक गांव में 13 साल की बच्ची से उसी गांव के 38 वर्षीय एक शख्स पर लगातार तीन दिन तक रेप रिपीट करने का आरोप लगा है. इतना ही नहीं दुष्कर्म के मुख्य आरोपी का दोस्त भी घिनौनी घटना में साथ देता रहा था.
हालांकि की इन दोनों आरोपियों के खिलाफ सामुहिक की धाराओ में गजसिंहपुर पुलिस ने…
View On WordPress
0 notes
kolhan student rape : कोल्हान में बलात्कार की बड़ी घटना, स्कूली छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म
चाईबासा: पश्चिमी सिंहभूम जिले के मझगांव थाना अंतर्गत गडकेशना गांव में 13 वर्षीय स्कूली छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला थाना में दर्ज कराया गया है. बुधवार को पीड़ित छात्रा के परिजन मझगांव थाना को सूचना दी. घटना के संबंध में पीडि़ता की मां ने बताया कि मंगलवार सुबह 11 बजे बेटी नहाने के लिए गांव से कुछ दूरी पर स्थित तालाब पर गई थी. उस दौरान तालाब पर कोई नहीं था. जल्दी से मेरी बेटी नहा कर आने…
View On WordPress
0 notes
भगवान श्रीकृष्ण ने 13 साल की बच्ची को जमीन में मूर्ति दबे होने का सपना दिया। फिर उस जगह पर खुदाई के दौरान, जमीन से भगवान श्रीकृष्ण की प्राचीन मूर्ति निकली है। ये अद्भुत घटना उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की है।
#shrikrishna #jaishreekrishna #shahjahanpur #uttarpradesh #hindu #hindutemple #hindugods #hinduism #hindurashtra #hindudharma #hindutva #sanatandharma #hindithoughts #hindiquotes #facts #hindifacts #dailyfacts #rochaktathya #hinduactivist #hinduactivists_ #thehindu #hindinews #hindiwriting ....
@hinduactivists_
0 notes
अन्तर्राज्यीय 04 शातिर चोर गिरफ्तार, जेवरात, नकदी सहित उपकरण व चार पहिया वाहन बराद
सिद्धार्थनगर। जनपद के विभिन्न थानों में हुई चोरियों का खुलासा करते हुए सिद्धार्थनगर पुलिस ने 03 पुरूष व 01 सहित अन्तर्राज्यीय 25 हजार रू. के इनामिया कुल 04 शातिर चोर को गिरफ्तार कर माननीय न्यायालय भेजा है। इनके पास से भारी मात्रा में सफेद व पीला धातु के जेवर, नकदी रूपया तथा चोरी करने का औजार और एक चार पहिया वाहन बरामद किया है। पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थनगर अभिषेक अग्रवाल ने 26 दिसम्बर 2023 को अपने कार्यालय पर प्रेस कान्फ्रेंस में यह जानकारी दिया है।
- थाना बांसी व एसओजी/सर्विलांस की संयुक्त टीम ने जनपद के थाना बांसी, खेसरहा व डुमरियागंज में हुई चोरी की घटनाओं का किया सफल अनावरण।
- गिरफ्तार 04 अभियुक्त के कब्जे से चोरी के भारी मात्रा में जेवरात व ₹42,950/- नकद व चोरी करने के उपकरण व घटना में प्रयुक्त चार पहिया वाहन बरामद हुआ है।
पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थनगर ने जारी प्रेस नोट में बताया कि थाना बांसी के ग्राम थुम्हवा माफी व बनगाई नानकार में दिनांक 20/21 दिसम्बर 2023 को रात्रि में हुई चोरी की घटनाओं का सफल अनावरण करने हेतु एक विशेष पुलिस टीम का गठन किया गया था। गठित टीम द्वारा अपराध एवं अपराधियों के विरूद्ध चलाये जा रहे अभियान के क्रम में दिनांक 25 दिसम्बर 2023 को थाना बांसी व एसओजी/सर्विलांस की संयुक्त टीम द्वारा डुमरियागंज-बासी मार्ग पर सरयू नहर से 03 नफर अभियुक्तों व 01 नफर अभियुक्ता को गिरफ्तार किया गया।
गिरफ्तार अभियुक्तों के कब्जे से चोरी के सफेद व पीली धातु के भारी मात्रा में जेवरात व ₹42,950/- नकद व चोरी करने के उपकरण व घटना में प्रयुक्त चार पहिया वाहन बरामद कर थाना बांसी पर पंजीकृत मु0अ0सं0- 366/2023 धारा 457,380 भा0द0वि0 व
थाना खेसरहा पर पंजीकृत मु0अ0सं0- 275/2023 धारा 380 भा0दं0वि0 व थाना डुमरियागंज मु0अ0सं0- 317/2023 धारा 457, 380 भा0दं0वि0 का सफल अनावरण किया गया।
गिरफ्तारी व बरामदगी के आधार पर मुकदमा उपरोक्त में धारा 411/413 भा0द0वि0 की बढोत्तरी कर नियमानुसार आवश्यक विधिक कार्यवाही करते हुए अभियुक्तों को माननीय न्यायालय भेजा गया।
पूछताछ में चोरों ने यह जानकारी दिया-
अभियुक्तों से पूछताछ किया गया तो बताये कि हम लोग गैंग बनाकर चार पहिया बाहन से अपने जनपद से काफी दूर के जनपदों में जाकर वहां के रेलवे स्टेशन व बस अड्डे पर वाहन को खड़ा कर ई-रिक्शा व टेम्पो से शाम को भ्रमण कर ऐसे घरों की रेकी करते हैं जो सड़क से काफी दूर न हो तथा बडे हों को तय/निश्चित करते हैं।
हम लोग मोबाइल का प्रयोग नहीं करते हैं। केवल दो मोबाइल फोन लेकर आते हैं। एक मोबाइल गाडी में रहता है तथा दूसरा फोन गैंग लीडर नीलू उर्फ शान मो. के पास रहता है। फोन बन्द रहते हैं, वाई-फाई डिवाइस जो चार पहिया वाहन में लगी है, का इस्तेमाल करते हैं। हम लोग विशेष प्रकार के कटर व अन्य संसाधनों का प्रयोग कर तय/निशाना बनाये गये घरों में चोरी करने के उपरान्त ड्राइबर व अन्य साथियों को फोन आन कर लोकेशन भेजकर बुलाकर भाग जाते हैं। आज शान मो. अन्सारी उर्फ नीलू अन्सारी किसी अन्य जनपद में घटना करने के लिये हम लोगों को ले जा रहा था कि आप लोगों द्वारा पकड लिया गया।
अनावरित अभियोगों का विवरण-
1- मु0अ0सं0- 366/2023 धारा 457,380,411,413 भा0द0वि0 थाना बांसी जनपद सिद्धार्थनगर।
2- मु0अ0सं0- 275/2023 धारा 380 भा0दं0वि0 थाना खेसरहा जनपद सिद्धार्थनगर।
3- मु0अ0सं0- 317/2023 धारा 457, 380 भा0दं0वि0 थाना डुमरियागंज जनपद सिद्धार्थनगर।
गिरफ्तार चोरों का विवरण-
01. शान मोहम्मद अन्सारी उर्फ नीलू अन्सारी पुत्र शहमीन निवासी मोहल्ला एजाज नगर गौटिया थाना बारादरी जिला बरेली।
02. सादिक अली पुत्र अली दराज निवासी गढिया पैगम्बरपुर थाना हजरतपुर जिला बंदायू।
03. आलम पुत्र अली दराज निवासी गढिया पैगम्बरपुर थाना हजरतपुर जिला बंदायू।
04. नसीबन पत्नी अजमत अली उर्फ दुलारे निवासी गढिया पैगम्बरपुर थाना हजरतपुर जिला बंदायू।
पुलिस ने अपने प्रेस-नोट में यह भी बताया कि अभियुक्त लोग जनपद बरेली, शाहजहांपुर, दिल्ली से जेल गये हैं, अन्य जनपदों से अपराधिक इतिहास के बारे में जानकारी की जा रही है।
बरामदगी का विवरण-
01. 02 जोडी पाजेब (सफेद धातु)
02. 05 अदद अंगूठी (पीली धातु)
03. 02 अदद सिकड़ (पीली धातु)
04. 01 अदद कंठी चेन (पीली धातु)
05. 02 जोडी पायल (सफेद धातु)
06. 01 अदद नथिया (पीली धातु)
07. 01 अदद टप (पीली धातु)
08. 01 जोडी चूडी (पीली धातु)
09. 02 जोडी बाली (पीली धातु)
10. 01 अदद बोल्ट कटर (विशेष प्रकार का)
11. 01 अदद पेंचकश
12. रु0 42,950/- नगद
13. एक चार पहिया वाहन बोलेरो काले रंग की UP 24 BB 1563 (घटना में प्रयुक्त)
गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में प्रभारी निरीक्षक विन्देश्वरी मणि त्रिपाठी थाना बांसी। उ0नि0 शेषनाथ यादव प्रभारी एसओजी टीम जनपद सिद्धार्थनगर। उ0नि0 सुरेंद्र सिंह प्रभारी सर्विलांस टीम जनपद सिद्धार्थनगर। उ0नि0 राजनाथ सिंह, हरिओम कुशवाहा, थाना बांसी, हे0का0 राजीव शुक्ला, दिलीप कुमार, आशुतोष धर दूबे, का0 विरेन्द्र तिवारी, छविराज एसओजी टीम सिद्धार्थनगर।
हे0का0 जनार्दन, हिन्दे आजाद, विवेक मिश्रा व का0 अभिनन्द सर्विलांस टीम सिद्धार्थनगर। मुख्य आरक्षी रामाज्ञा पासवान, रमेश चौहान थाना बांसी, आरक्षी राजमणि गौड़, महिला आरक्षी पूजा वर्मा थाना बांसी आदि शामिल रहे।
Read the full article
0 notes