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#ब्रह्मदेश
akhaidas · 1 year
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1. (पृष्ठ 32ए 33 पर):-- ठहरो स्वर्ण युग (रामराज्य) आ रहा है। एक अधेड़ उम्र का औदार्य (उदार) अजोड़ महासत्ता #अधिकारी #भारत ही नहीं सारी पृथ्वी पर #स्वर्णयुग लाएगा और अपने #सनातन धर्म का पुनरूत्थान करके #यथार्थभक्ति मार्ग बताकर सर्वश्रेष्ठ #हिन्दू राष्ट्र बनाएगा। तत्पश्चात् #ब्रह्मदेश #पाकिस्तान, बांग्ला, #श्रीलंका, नेपाल, #तिब्बत (तिबेत), #अफगानिस्तान, #मलाया आदि देशों में वही सार्वभौम #धार्मिक #नेता होगा। सत्ताधारी चांडाल चैकडि़यों पर उसकी #सत्ता होगी वह नेता (शायरन) #दुनिया को अधाप मालूम होना है, बस देखते रहो। #saintrampalji https://www.instagram.com/p/Cl4zbqQSdWX/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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ramnik123 · 2 years
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नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों की पुस्तक के पृष्ठ 32, 33 पर लिखा है- *ठहरो स्वर्ण युग (रामराज्य) आ रहा है।* एक अधेड़ उम्र का औदार्य (उदार) अजोड़ महासत्ता अधिकारी भारत ही नहीं सारी पृथ्वी पर स्वर्ण युग लाएगा और अपने सनातन धर्म का पुनरूत्थान करके यथार्थ भक्ति मार्ग
बताकर सर्वश्रेष्ठ हिन्दू राष्ट्र बनाएगा। तत्पश्चात् ब्रह्मदेश, पाकिस्तान, बांगला,
श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत (तिबेत), अफगानिस्तान, मलाया आदि देशों में वही सार्वभौम धार्मिक नेता होगा।
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nankani · 2 years
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नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों की पुस्तक के पृष्ठ 32, 33 पर लिखा है- *ठहरो स्वर्ण युग (रामराज्य) आ रहा है।* एक अधेड़ उम्र का औदार्य (उदार) अजोड़ महासत्ता अधिकारी भारत ही नहीं सारी पृथ्वी पर स्वर्ण युग लाएगा और अपने सनातन धर्म का पुनरूत्थान करके यथार्थ भक्ति मार्ग
बताकर सर्वश्रेष्ठ हिन्दू राष्ट्र बनाएगा। तत्पश्चात् ब्रह्मदेश, पाकिस्तान, बांगला,
श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत (तिबेत), अफगानिस्तान, मलाया आदि देशों में वही सार्वभौम धार्मिक नेता होगा।
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survivetoread · 4 years
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Country Names in Marathi
In Marathi, the overwhelming number of country names are transliterated directly from English. Perhaps this is because most Marathi speakers were and are exposed to foreign geography by way of the English language.
This includes names that are idiosyncratically English, such as:
Germany: जर्मनी [jarmanī]
Greece: ग्रीस [grīs]
Egypt: इजिप्त [ijipt]
Great Britain: ग्रेट ब्रिटन [greṭ briṭan]
Russia: रशिया [raśiyā]
Vatican City: व्हॅटिकन सिटी [vhăṭikan siṭī]
For a great overview of country names in Marathi, have a look at the Marathi Wikipedia. This is also a great way to practice reading Devanagari, as you can try to guess your way through a name by looking at the country’s flag.
Below, I will cover a number of countries that have Marathi names different from their English names. Below that, I will cover names that are similar to English names, but spelled unintuitively.
India
The official and most common name for India is भारत [bhārat]. This is India’s old Sanskrit endonym, and its corresponding adjective is भारतीय [bhāratīya].
The English loanword इंडिया [iṅḍiyā] is also very commonly known and used in conversational Marathi, particularly in the contexts of international relations or sports. Its corresponding adjective is also borrowed from English: इंडियन [iṅḍiyan].
The Urdu loanword हिंदुस्तान [hiṅdustān] is found less commonly in Marathi, but is still understood. This word has a more romantic and poetic air to it, perhaps a bit like ‘Albion’ for Great Britain. Its corresponding adjective is हिंदुस्तानी [hiṅdustānī].
Note that this word has been co-opted by Hindu nationalists and turned into the more Sanskrit-sounding हिंदुस्थान [hiṅdusthān]. Hindu nationalism and right-wing politics is the only context I have found this word used in, so I would not recommend using it.
A final known word for India is the Arabic and Persian हिंद [hiṅd], which is usually not used, although it is understood thanks to Marathi’s proximity to Hindi, where it is used. Its corresponding adjective is हिंदी [hiṅdī].
China
The official name for China is चीन [cīn]. Its corresponding adjective is चिनी [cinī].
The English loandword चायना [cāyanā] is also very common in conversational Marathi, and you may also find this word used in publication often, especially of late. Its corresponding adjective is चायनीज [cāyanīz], which is also more popularly used than the ‘official’ counterpart.
Note that overseas Chinese cuisine (as found in India, the US, the UK, etc.) is exclusively referred to as चायनीज in Marathi. If you say you are eating चिनी जेवण in Marathi, you may be interpreted as saying that you are eating food that is actually from China.
United States
Wikipedia tells me that the proper name for the United States of America is अमेरिकेची संयुक्त संस्थाने [amerikecī saṅyukta saṅsthāne].
However, I have never, ever seen this term used in real life.
Simply अमेरिका [amerikā] is the most recognisable name for the USA in Marathi. For an analogue to ‘United States’, you may simply hear the transliteration from English, युनायटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका [yunāyaṭeḍ sṭeṭs ŏf amerikā].
Perhaps the most common name for the US that isn’t अमेरिका, is the transliteration of the US’ English initials: यू.एस. [yū.es.] or यू.एस.ए. [yū.es.e.].
United Kingdom
Wikipedia says that the proper name for the United Kingdom is संयुक्त राजतंत्र [saṅyukta rājataṅtra].
As with the ‘proper’ name for the USA, I have never heard this term in real life.
Use युनायटेड किंग्डम [yunāyaṭeḍ kiṅgḍam] instead. You can also use the transliteration of the English initials: यू.के. [yū.ke].
Many Marathi speakers may also (incorrectly) use the terms ग्रेट ब्रिटन [greṭ briṭan] or इंग्लंड [iṅglaṅḍ] to refer to the United Kingdom as a whole.
United Arab Emirates
Wikipedia says that the proper name for the UAE is संयुक्त अरब अमिराती [saṅyukta arab amirātī].
No, I have never heard this one used in real life either.
The UAE is best known as simply यू.ए.ई. [yū.e.ī].
Turkey
For some baffling (to me) reason, Marathi refers to this country as तुर्कस्तान [turkastān]. This is not to be confused with Turkestan, which is तुर्केस्तान [turkestān].
The correponding adjective is तुर्कस्तानी [turkastānī], but the Turkish language is known as तुर्की [turkī].
Myanmar / Burma
Myanmar is officially known as म्यानमार [myānamār] in Marathi.
Many Marathi speakers still know the country by its old name, however. This can be the English transliteration बर्मा [barmā], or the Marathi name ब्रह्मदेश [brahmadeś]. I would not recommend using either of these names, as they are antiquated.
Countries with Directions in Their Names
Countries such as South Africa, South Korea, North Korea, etc. officially have their direction terms translated.
Therefore you get:
South Africa: दक्षिण आफ्रिका [dakśiṇ āfrikā]
South Korea: दक्षिण कोरिया [dakśiṇ koriyā]
North Korea: उत्तर कोरिया [uttar koriyā]
South Sudan: दक्षिण सुदान [dakśiṇ sudān]
However, due to English influence, it is also common to transliterate the English directions into Marathi. So you may also often see:
South Africa: साउथ आफ्रिका [sāuth āfrikā]
South Korea: साउथ कोरिया [sāuth koriyā]
North Korea: नॉर्थ कोरिया [nŏrth koriyā]
South Sudan: साउथ सुदान [sāuth sudān]
Country Names with Unintuitive Spellings
Nepal: नेपाळ [nepāḷ]
Sri Lanka: श्रीलंका [śrīlaṅkā]
Iran: इराण [irāṇ]
Japan: जपान [japān]
Afghanistan: अफगाणिस्तान [afagāṇīstān]
Thailand: थायलंड [thāyalaṅḍ]
New Zealand: न्यूझीलंड [nyūzīlaṅḍ] (Notice that it’s a single word)
Portugal: पोर्तुगाल [portugāl]
Israel: इस्रायल [isrāyal]
Sudan: सुदान [sudān]
Madagascar: मादागास्कर [mādāgāskar]
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dgnews · 3 years
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डेढ़ सौ वर्षों में भारत को विभाजित कर कैसे बने 9 नए देश ??
डेढ़ सौ वर्षों में भारत को विभाजित कर कैसे बने 9 नए देश ??
#भारत_के_डेढ़_सौ_वर्ष #भारत_विभाजन डेढ़ सौ वर्षों में भारत को विभाजित कर कैसे बने 9 नए देश.??…..सन 1947 में विशाल भारतवर्ष का पिछले 2500 वर्षों में 24वां विभाजन है।सम्भवत: ही कोई पुस्तक (ग्रन्थ) होगी जिसमें यह वर्णन मिलता हो कि इन आक्रमणकारियों ने अफगानिस्तान, ब्रह्मदेश(बर्मा ,म्यांमार), श्रीलंका (सिंहलद्वीप), नेपाल, तिब्बत (त्रिविष्टप), भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया।…
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kisansatta · 4 years
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राजनीतिक दल प्रतिस्पर्धा और शत्रुता में अंतर करना सीखें
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नागपुर, 25 अक्टूबर (संवाद सूत्र)। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और शत्रुता में अंतर होता है। राजनीतिक दलों को इस अंतर को पहचानने की जरूरत है। प्रजातंत्र में राजनीतिक दल सत्ता में वापसी के लिए एक दूसरे से मुकाबला कर सकते हैं लेकिन राजनीतिक प्रतिस्पर्धा करते समय विवेक का होना आवश्यक है।
नागपुर के डॉ. हेडगेवार स्मृति मंदिर परिसर में स्थित महर्षि व्यास सभागार में आयोजित विजयादशमी और शस्त्रपूजन कार्यक्रम में ऑनलाइन पाथेय देते हुए डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा कि राजनीतिक दल एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। सत्ता से बाहर हुए दल सत्ता में वापसी के लिए विभिन्न प्रयास और हथकंडे अपनाते हैं। यह प्रजातंत्र में चलने वाली एक सामान्य बात है लेकिन उस प्रक्रिया में भी एक विवेक का पालन अपेक्षित है। डॉ. भागवत ने कहा कि राजनीतिक दलों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए। इस प्रतिस्पर्धा के चलते समाज में कटुता, भेद, दूरियों का बढ़ना, आपस में शत्रुता की भावना उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। ऐसी विघटनकारी शक्तियों को बढ़ावा देने वाले तत्व इस देश में हैं। सरकार द्वारा लिए गए फैसले और समाज में घटने वाली घटनाओं पर प्रतिक्रिया देते समय या उसका विरोध करते वक्त विवेक और मर्यादा का पालन करना चाहिए।
सरसंघचालक ने कहा कि किसी चीज का विरोध करते समय राष्ट्रीय एकात्मता के सम्मान का ध्यान रखना चाहिए। समाज में विद्यमान सभी पंथ, प्रांत, जाति, भाषा आदि विविधताओं का सम्मान रखते हुए व संविधान कानून की मर्यादा के अंदर ही अभिव्यक्त होना आवश्यक है। दुर्भाग्य से अपने देश में इन बातों पर प्रामाणिक निष्ठा न रखन��� वाले अथवा इन मूल्यों का विरोध करने वाले लोग भी अपने आप को प्रजातंत्र, संविधान, कानून, पंथनिरपेक्षता आदि मूल्यों के सबसे बड़े रखवाले बताकर समाज को भ्रमित करने का कार्य करते चले आ रहे हैं।
अलगाववादी ताकतों से सतर्क रहें देश में बढ़ती अलगाववादी शक्तियों पर सरसंघचालक ने कहा कि हमारे देश में तथाकथित अल्पसंख्यक तथा अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों को झूठे सपने दिखाकर कपोलकल्पित द्वेष की बातें बताई जा रही हैं। ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसी घोषणाएं करने वाले लोग इन षडयंत्रकारियों में शामिल हैं और उनका नेतृत्व भी करते हैं। राजनीतिक स्वार्थ, कट्टरपन व अलगाव की भावना, भारत के प्रति शत्रुता तथा जागतिक वर्चस्व की महत्वाकांक्षा, इनका एक अजीब सम्मिश्रण भारत की राष्ट्रीय एकात्मता के विरुद्ध काम कर रहा है। इस षडयंत्र को पहचान कर भड़काने वालों के अधीन ना होते हुए, संविधान व कानून का पालन करते हुए, अहिंसक तरीके से व जोड़ने के ही एकमात्र उद्देश्य से हम सबको कार्यरत रहना पड़ेगा। डॉ. भागवत ने आह्वान किया कि देश में सभी लोग अलगाववादी ताकतों से सतर्क रहकर आपसी भाईचारा बनाए रखें।
चीन से सावधान, अन्य पड़ोसियों से बेहतर रिश्ते हों चीन को आड़े हाथों लेते हुए सरसंघचालक ने कहा कि कोरोना महामारी को लेकर चीन की भूमिका संदिग्ध रही है। अपनी शक्तियों के बल में खोया चीन भारत की सीमाओं पर अपने विस्तारवाद को बढावा देने के प्रयास में है। पूरी दुनिया से भाईचारा और दोस्ती भारत का स्वभाव और परंपरा रही है लेकिन हम किसी भी दुस्साहस का करारा जवाब देने में सक्षम हैं। बीते दिनों चीन के साथ हुए संघर्ष में हमारे वीर जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया है। चीन को भारत से कभी इस तरह के मुंहतोड़ जबाब की उम्मीद नहीं रही होगी। नतीजतन चीन को बड़ा धक्का मिला है।
डॉ. भागवत ने बताया कि आर्थिक क्षेत्र में, सामरिक क्षेत्र में, अपनी अंतर्गत सुरक्षा तथा सीमा सुरक्षा व्यवस्थाओं में, पड़ोसी देशों के साथ तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चीन से अधिक बड़ा स्थान प्राप्त करना ही उसकी राक्षसी महत्त्वाकांक्षा के नियंत्रण का एकमात्र उपाय है। इस ओर हमारे शासकों की नीति के कदम बढ़ रहे हैं, ऐसा दिखाई देता है। सरसंघचालक ने आह्वान किया कि श्रीलंका, बांग्लादेश, ब्रह्मदेश, नेपाल जैसे पड़ोसी देश हमारे मित्र भी हैं। उनके साथ हमें अपने सम्बन्धों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने में अपनी गति तीव्र करनी चाहिए। इस कार्य में बाधा उत्पन्न करनेवाले मनमुटाव, मतभेद, विवाद के मुद्दों का जल्द से जल्द निपटारा करना पड़ेगा।
कोरोना से जंग में दिखा जज्बा सरसंघचालक ने कोरोना योद्धाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि कोरोना महामारी से दुनिया में जितना नुकसान हुआ, उस अनुपात में भारत में काफी नियंत्रित रहा है। भारत में इस महामारी की विनाशकता का प्रभाव बाकी देशों से कम दिखाई दे रहा है, इसके कुछ कारण हैं। शासन-प्रशासन ने तत्परतापूर्वक इस संकट से समस्त देशवासियों को सावधान किया, सावधानी के उपाय बताए और उपायों का अमल भी अधिकतम तत्परता से करने की व्यवस्था की। महामारी के खिलाफ जंग में डॉक्टर्स, स्वास्थ्यकर्मी और सफाई कर्मियों का अनूठा योगदान रहा है। अपने परिवार से दूर रह कर इन लोगों ने मरीजों की सेवा की। समाज में कई लोग एक-दूसरे की सहायता करते दिखाई दिए। सरसंघचालक ने कहा कि कोरोना महामारी के संकट काल में हमारी सहनशीलता, आपसी स्नेह, संस्कृति तथा एक-दूसरे को सहायता करने की परंपरा उभर कर सामने आई है। डॉ. भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवक मार्च महीने से ही इस संकट के संदर्भ में समाज में आवश्यक सब प्रकार के सेवा की आपूर्ति करने में जुट गए हैं। सेवा के इस नए चरण में भी वे पूरी शक्ति के साथ सक्रिय रहेंगे। समाज के अन्य बन्धु-बांधव भी लम्बे समय सक्रिय रहने की आवश्यकता को समझते हुए अपने अपने प्रयास जारी रखेंगे यह विश्वास है।
कृषि सुधारों की जरूरत इस अवसर पर सरसंघचालक डॉ. भागवत ने देश में कृषि सुधारों की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि वित्त, कृषि, श्रम, उद्योग तथा शिक्षा नीति में स्व को लाने की इच्छा रख कर कुछ आशा जगाने वाले कदम अवश्य उठाए गए हैं। व्यापक संवाद के आधार पर एक नई शिक्षा नीति घोषित हुई है। उसका संपूर्ण शिक्षा जगत से स्वागत हुआ है, हमने भी उसका स्वागत किया है। “वोकल फॉर लोकल” यह स्वदेशी संभावनाओं वाला उत्तम प्रारंभ है परन्तु इन सबका यशस्वी क्रियान्वयन पूर्ण होने तक बारीकी से ध्यान देना पड़ेगा। सरसंघचालक ने विश्वास जताया कि स्व या आत्मतत्त्व का विचार इस व्यापक रूप से सभी को स्वीकारना होगा, तभी उचित दिशा में चलकर यह यात्रा यशस्वी होगी।
हिन्दू शब्द का विकल्प और नैतिक आचरण सरसंघचालक ने हिन्दू शब्द को लेकर बहुत महत्त्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि समाज में हिन्दू शब्द को उपासना पद्धति से जोड़कर संकुचित किया जाता है। हालांकि हिन्दू जीवन एक पद्धति है लेकिन भारतीय समाज को बांटने वाली शक्तियां हिन्दू शब्द पर छल कर वैचारिक अलगाव पैदा करती है। डॉ. भागवत ने कहा कि हिन्दू शब्द का विकल्प खोज कर उसका प्रयोग किया जाना चाहिए। इस अवसर पर उन्होंने नैतिकतायुक्त आचरण पर जोर देते हुए कहा कि शराब बेच कर धन कमाना हमारी संस्कृति, परंपरा और नैतिकता में शामिल नहीं हो सकता। शराब जैसी चीजें मनुष्य को हानि पहुंचाती हैं, उसके द्वारा अर्जित संपत्ति को नैतिक नहीं कहा जा सकता।
https://is.gd/htdP88 In Focus, Religious, Top #InFocus, #Religious, #Top KISAN SATTA - सच का संकल्प
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chetangurjar17 · 4 years
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हिंदू बौद्ध मंदिर बागान 11 - 12 वीं शताब्दी, म्यांमार, जोकि पहले ब्रह्मदेश के नाम से जाना जाता था और अविभाजित भारत का एक हिस्सा था। Reposted from @pushpendrakulshresthaa https://www.instagram.com/p/CCWNhuzp7Mk/?igshid=echbrqaobpxe
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amti2abvp-blog · 4 years
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*शत्-शत् नमन 16 नवम्बर/जन्म दिवस, ब्रह्मदेश में संघ के प्रचारक रामप्रकाश धीर* ब्रह्मदेश (बर्मा या म्यांमार) भारत का ही प्राचीन भाग है। अंग्रेजों ने जब 1905 में बंग-भंग किया, तो षड्यंत्रपूर्वक इसे भी भारत से अलग कर दिया था। इसी ब्रह्मदेश के मोनीवा नगर में 16 नवम्बर, 1926 को श्री रामप्रकाश धीर का जन्म हुआ था। बर्मी भाषा में उनका नाम ‘सयाजी यू सेन टिन’ कहा जाएगा। उनके पिता श्री नंदलाल जी वहां के प्रसिद्ध व्यापारी एवं ठेकेदार थे। 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां तेजी से बदलीं, तो पूरा परिवार बर्मा छोड़कर भारत में जालंधर आ गया। उस समय रामप्रकाश जी मोनीवा के वैस्ले मिशनरी स्कूल में कक्षा नौ के छात्र थे।   इसके बाद उनकी शेष पढ़ाई भारत में ही हुई। इस दौरान उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हुआ। धीरे-धीरे संघ के विचार ने उनके मन में जड़ जमा ली। 1947 में उन्होंने पंजाब वि.वि. से बी.ए. किया। बी.ए. में उनका एक वैकल्पिक विषय बर्मी भाषा भी था। शिक्षा पूर्ण कर वे संघ के प्रचारक बन गये। उनका प्रारम्भिक जीवन बर्मा में बीता था। अतः उन्हें वहां पर ही संघ की स्थापना करने के लिए भेजा गया; पर 1947-48 में वहां काफी आंतरिक उथल-पुथल हो रही थी। अतः कुछ समय बाद ही उन्हें वापस बुला लिया गया। इसके बाद वे पंजाब में ही प्रचारक रहे, पर संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता डा. मंगलसेन के आग्रह पर 1956 में उन्हें फिर बर्मा भेजा गया। भारत से बाहर स्वयंसेवकों ने कई नामों से संघ जैसे संगठन बनाये हैं। इसी कड़ी में डा. मंगलसेन ने 1950 में बर्मा में ‘भारतीय स्वयंसेवक संघ’ की स्थापना की थी, जो अब ‘सनातन धर्म स्वयंसेवक संघ’ कहलाता है। इसका विस्तार बहुत कठिन था। न साधन थे और न कार्यकर्ता। फिर बर्मा का अधिकांश भाग पहाड़ी है। वहां यातायात के साधन बहुत कम हैं। ऐसे में सैकड़ों मील पैदल चलकर रामप्रकाश जी ने बर्मा के प्रमुख नगरों में संघ की शाखाएं स्थापित कीं। बर्मा मूलतः बौद्ध देश है, जो विशाल हिन्दू धर्म का ही एक भाग है। रामप्रकाश जी ने शाखा के माध्यम से युवाओं को जोड़ा, तो पुरानी पीढ़ी को प्रभावित करने के लिए महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं पर एक प्रदर्शिनी बनायी। इसे देखकर बर्मी शासन और प्रशासन के लोग भी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने इसे बर्मा के सब नगरों में लगाने का आग्रह किया और इसके लिए सहयोग भी दिया। इस प्रकार प्रदर्शिनी के माध्यम से जहां एक ओर हिन्दू और बौद्ध धर्म के बीच समन्वय की स्थापना हुई, वहां रामप्रकाश जी का व्यापक प्रवास भी होने लगा। आगे चलकर यह प्रदर्शिनी थाइलैंड में भी लगायी गय https://www.instagram.com/p/B46nH-tpJOP/?igshid=1gc53i9tv2rpc
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varsha0055 · 7 years
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*हर दिन पावन* 5 अक्तूबर/जन्म-दिवस *केरल में हिन्दू शक्ति के सर्जक भास्कर राव कलम्बी* छोटा होने पर भी केरल में संघ की सर्वाधिक शाखाएं हैं। इसका बहुतांश श्रेय पांच अक्तूबर, 1919 को ब्रह्मदेश में रंगून के पास ग्राम डास (टिनसा) में जन्मे श्री भास्कर राव कलंबी को है। उनके पिता श्री शिवराम कलंबी वहां चिकित्सक थे। https://m.facebook.com/lalwaniprp1969/photos/a.1603164689945520.1073741827.1602933196635336/1890891291172857/?type=3&source=48 (at Ajmer)
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