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#भारतीय कृषि विशेषज्ञ
mewaruniversity · 28 days
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MoU signed between Mewar University and CIAH
मेवाड़ विश्वविद्यालय, गंगरार, चित्तौड़गढ़ और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर और इसके क्षेत्रीय स्टेशन, केंद्रीय बागवानी प्रयोग स्टेशन, वेजलपुर (गुजरात) के बीच एक अवधि के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए।
इस अवसर पर कृषि संकाय डीन डॉ. वाई. सुदर्शन ने जानकारी दी कि पारस्परिक हित की परियोजनाओं पर सहयोगात्मक अनुसंधान करने के लिए छात्र और संकाय के आदान-प्रदान के लिए पांच साल की अवधि के लिए यह एमओयू साइन हुआ है। उन्होने बताया कि मेवाड़ विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) आलोक मिश्रा ने इस अवसर पर छात्रों और कर्मचारियों के लाभ के लिए केंद्रीय संस्थानों के साथ आपसी सहयोग के महत्व को रेखांकित किया। कुलपति डॉ. मिश्रा ने कहा कि यह समझौता ज्ञापन मेवाड़ क्षेत्र की बागवानी फसलों, विशेषकर फलों और सब्जियों को और अधिक समृद्ध, प्रसंस्करण और विपणन योग्य बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा। कार्यक्रम में बागवानी विशेषज्ञ डॉ. मनोहर मेघवाल ने इस एमओयू के लाभों के बारे में बताया।
समझौता ज्ञापन पर मेवाड़ विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) आलोक मिश्रा और केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर के निदेशक डॉ. जगदीश राणे ने हस्ताक्षर किए।
कृषि संकाय के एसोसिएट डीन डॉ. गौतम सिंह धाकड़ ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर डॉ. राजा रामासामी, डीन, इंजीनियरिंग संकाय, कृषि संकाय और छात्र उपस्थित थे।
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khetikisaniwala · 9 months
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लौकी और करेले की खेती-एक हज़ार प्लांट्स,1-लाख रुपए तक कमाई!
कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यहां के किसान विभिन्न फसलें उगाते हैं और अपने मेहनत से अच्छा मुनाफा कमाते हैं। लौकी और करेले की खेती एक ऐसी कृषि प्रथा है जिस��ें कम निवेश और कामयाबी के साथ अच्छी कमाई की जा सकती है।
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यह लाभकारी व्यवसायिक विकल्प है जिसे किसान छोटे या बड़े स्तर पर अपना सकते हैं। इस लेख में, हम Lauki Aur Karele Ki kheti के बारे में विस्तार से जानेंगे, जो एक हजार प्लांट्स से एक लाख रुपए तक कमाई का मौका प्रदान करती है।
1. लौकी और करेले की खेती के लिए भूमि का चयन
अगर आप लौकी और करेले की खेती में रुचि रखते हैं, तो सबसे पहले आपको उपयुक्त भूमि का चयन करना होगा। लौकी और करेले उगाने के लिए मृदा को नींबू या नींबू की खेती से पहले धो देना चाहिए, जिससे कीटाणुओं का संक्षेपण हो। धान और गेहूं जैसी फसलों के लिए उचित खेती तैयार करें।
2. बीज का चयन और रोपण
लौकी और करेले की खेती के लिए उचित बीज का चयन करना महत्वपूर्ण है। आपको उच्च गुणवत्ता वाले बीज खरीदने चाहिए जो उगाने के लिए सबसे अच्छे हों। बीज रोपण के दौरान ध्यान दें कि प्रत्येक पौधे के बीच विशेष दूरी रखी जाए ताकि वे अच्छे से विकसित हो सकें।
3. उचित जलवायु और पानी का उपयोग
लौकी और करेले की खेती के लिए उचित जलवायु महत्वपूर्ण है। यह फसल गर्म और धूपी जलवायु को पसंद करती है और तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच रहना उचित होता है। इसके अलावा, समय-समय पर पानी की आपूर्ति का ध्यान रखना भी जरूरी है, खासतौर पर गर्मियों में।
4. खरपतवार और कीट प्रबंधन
लौकी और करेले की खेती में खरपतवार और कीटों का सामना करना आम बात है। यह फसल विभिन्न प्रकार के कीटाणुओं के लक्षित बन जाती है जो उन्हें हराने के लिए उचित प्रबंधन की आवश्यकता होती है। पेस्टिसाइड्स के उपयोग से पहले एक विशेषज्ञ की सलाह लेना सुनिश्चित करें ताकि पर्याप्त सुरक्षा उपायों का पालन किया जा सके।
5. उपयुक्त खेती की देखभाल
लौकी और करेले की खेती में उचित देखभाल बढ़ जाती है जब पौधे विकसित होते हैं। समय-समय पर खेती जाँच करें और उन्हें बीमारियों और कीटों से मुक्त रखने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। उचित खेती की देखभाल से फसल का उत्पादन बढ़ाना संभव होता है जो आपकी कमाई को बढ़ा सकता है।
6. फसल कटाई और बिक्री
लौकी और करेले के पौधे पक जाने पर उन्हें कट देना और बिक्री के लिए तैयार करना एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। उचित समय पर फसल कटाई करना महत्वपूर्ण है ताकि पौधे अधिक उपज दे सकें और उचित मूल्य पर उन्हें बेचने का प्रबंधन करना भी जरूरी है।
7. लौकी और करेले की खेती में टिप्स
उपयोगी लाभ
लौकी और करेले की खेती एक लाभकारी व्यवसायिक विकल्प है जो किसानों को अधिक उत्पादन और मुनाफे का मौका प्रदान करता है। यह खेती कम निवेश और समय में उचित प्रबंधन के साथ किया जा सकता है और किसान इससे एक लाख रुपए तक कमा सकते हैं।
तोरई की बेल को उगाने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
1. ज़मीन की तैयारी: तोरई की बेल को उगाने के लिए एक धान्यवंत और नींबूवाले मिट्टी की आवश्यकता होती है। उच्च गुणवत्ता वाली मिट्टी का चयन करें जो आपके पास खेती के लिए उपयुक्त हो।
2. बीज का चयन: अच्छे गुणवत्ता वाले बीज का चयन करें। बीज की खराबी, दाने, और कीटाणु मुक्त होने का ध्यान रखें।
3. बीज का बोना: तोरई के बीज को एक गहरे और नरम खेत में 1 इंच तक की गहराई तक बोने। बीजों के बीच न्यूनतम 12-18 इंच की दूरी रखें।
4. पानी की देखभाल: तोरई को उगाने के बाद ध्यान दें कि पौधों को प्राथमिक 4 सप्ताहों में नियमित रूप से पानी दिया जाए। पानी देने की सिवाय, पौधों को साफ और स्वच्छ रखें।
5. खेत की देखभाल: तोरई पौधों के चारों ओर कीटाणु और विषाणुओं से बचने के लिए खेत की देखभाल करें। ज्यादा पीड़कारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का उपयोग करें।
6. ट्रेलिंग: जब पौधे 5 से 6 हफ्तों के हो जाएं, तो उन्हें समर्थन के लिए ट्रेलिंग का उपयोग करें। ट्रेलिंग तोरई को सही तरीके से ऊपर उठाकर बंधने में मदद करता है जिससे पौधा बेहतर रूप से विकसित हो सकता है।
याद रखें कि तोरई की बेल को गर्मी और धूप वाली स्थानों पर उगाने के लिए अधिक उपयुक्त होता है |
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erichintlindialtd · 11 months
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Earthworms: The Unsung Heroes of Farming!
केंचुए का स्वागत करें। जैविक  खेती का समर्थन करें।
हर सफल खेत की गहराइयों में छिपा हुआ एक महान हीरो, जो मिट्टी के नीचे अथक प्रयास करता है, और उपजाऊ मौसम के लिए मौलिक आधार बनाता है। 
मिलिए खेती के अनसुने हीरो से- केंचुए से 🐛 🐛 
केंचुए, ये अद्भुत प्राणी स्वस्थ और उपजाऊ खेत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जब वे मिट्टी में छेद करते हैं, तो वे  हवा, पानी और पोषक तत्व गहराई तक पहुंच सकते हैं।
उनके केंचुआ खाद  प्राकृतिक खाद होते हैं, जो वनस्पतियों को पोषण प्रदान करते हैं।
केंचुए प्रकृति के पुनर्चक्रण विशेषज्ञ हैं, जो #जैविक कचरे का उपभोग करते हैं और इसे पोषक तत्वों से भरपूर केंचुआ खाद  में बदलते हैं।
उनकी खुदाई की गतिविधियां मिट्टी की संरचना में सुधार करती हैं, बेहतर जल घुसपैठ और प्रतिधारण को बढ़ावा देती हैं।
किसान अपनी फसलों को पोषण देने के लिए केंचुओं की ढलाई की शक्ति का उपयोग करते हैं, जिससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम हो जाती है।
जैविक खेती के तरीकों को अपनाकर, हम उन्नत जीवन पद्धतियों को संवार सकते हैं, जहाँ #केंचुए खुशहाली से विकसित हो सकते हैं।
स्वस्थ मिट्टी बनाने और उन्नत  कृषि को बढ़ावा देने के लिए #किसानों के साथ मिलकर काम करते हैं
चलो खेती के नम्र केंचुए को सम्मान दें, उनके खेती में योगदान को पहचानें और पृथ्वी के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को मानें।
केंचुए का स्वागत करें। जैविक  खेती का समर्थन करें।
आपके खेत में केंचुओं की संख्या बढ़ाने का उपाय है भारतीय किसानों की पसंद ईभू संजीवनी। यह एक जैविक उत्पाद है जो आईएसओ प्रमाणित भी है, और १००% जैविक (आर्गेनिक) है। 🌱🌍
तो आप किस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं…? मिट्टी और जान बचाने के लिए आज ही अपनी  ईभु संजीवनी का आर्डर दें।
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prabudhajanata · 1 year
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मुंबई: (Godrej Agrovet)गोदरेज एग्रोवेट के ऑयल पाम बिजनेस ने समाधान नाम की एक अभूतपूर्व पहल शुरू की है। यह एक वन स्टॉप सॉल्यूशन सेंटर है जो ऑयल पाम किसानों को ज्ञान, उपकरण, सेवाएं और समाधान का व्यापक पैकेज प्रदान करेगा। 'समाधान' का उद्देश्य ताड़ के तेल उद्योग में एक महत्वपूर्ण संबल बनना है और ताड़ के तेल के किसानों को नवीनतम कृषि तकनीकों को अपनाकर और उनकी उत्पादकता को बढ़ाकर उनकी पैदावार का अनुकूलन करने में सहायता करना है। आधुनिक तकनीकों की जानकारी और उनकी सुलभता सुनिश्चित करने पर जोर देने के साथ, 'समाधान' किसानों को ताड़ के तेल की खेती में उद्यम करने के बारे में सोच-विचार कर निर्णय लेने में सक्षम बनाएगा जिससे उनकी आय में निरंतर वृद्धि हो सकेगी। अगस्त 2021 में खाद्य तेल - ऑयल पाम पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमईओ-ओपी) के लॉन्च के बाद से, विविधीकृत कृषि-व्यवसाय कंपनी एवं भारत में ऑयल पाम क्षेत्र में अग्रणी, गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड ने अगले पांच वर्षों के दौरान 60,000 हेक्टेयर अतिरिक्त ऑयल पाम के वृक्षारोपण का लक्ष्य रखा था ताकि भारत में ताड़ के तेल के दीर्घकालीन सतत विकास का समर्थन कर सके। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कंपनी ने 'समाधान' सेंटर विकसित किया है। प्रत्येक समाधान केंद्र के जरिए ~2,000 हेक्टेयर ऑयल पॉम के रोपण का समर्थन करने और किसानों को आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों एवं विशेषज्ञ सलाह के उपयोग के माध्यम से परिपक्व बागानों में निरंतर उत्पादकता हासिल करने में मदद करने का इरादा है। इस पहल के माध्यम से, गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड ने भारतीय ऑयल पाम के किसानों के साथ वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियों को साझा करने, और किसानों को विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में इन पद्धतियों को अपनाने में मदद की योजना बनाई है। यह किसानों को विकासात्मक वित्त, सरकारी सब्सिडी/योजनाओं और अन्य सुविधाओं का लाभ उठाने में सहायता करने में भी मदद करेगा। गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री बलराम सिंह यादव ने इस पहल के बारे में बताते हुए कहा, “ऑयल पाम के कारोबार में तीस से अधिक वर्षों के अनुभव के साथ, हम स्थायी तरीके से पाम ऑयल रोपण प्रक्रियाओं के बारे में किसानों को शिक्षित करने हेतु काम कर रहे हैं। समाधान की मदद से, हम उद्योग के विस्तार और समृद्धि के लिए हल प्रदान करने की उम्मीद करते हैं। हम इन ताड़ के तेल का उत्पादन ��रने वाले किसानों को विभिन्न प्रकार के संसाधन, सेवाएं, पेशेवर मार्गदर्शन और नवीनतम तकनीक प्रदान करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। हमने हाल ही में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में दो केंद्र खोले हैं और मार्च 2023 तक हम इसका विस्तार करना चाहते हैं। 2027 तक, हमारी योजना इनके समान 50 और केंद्र स्थापित करने की है।" खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन - ऑयल पाम (एनएमईओ-ओपी) ने अगस्त 2021 में लॉन्च होने के बाद से ऑयल पाम उद्योग में उत्साह और गति की एक नई भावना पैदा की है। यह कार्यक्रम भारत सरकार की एक ऐतिहासिक पहल है जिसका उद्देश्य विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र में, ताड़ के तेल का दीर्घकालिक सतत विकास और नए किसानों को अतिरिक्त सहायता प्रदान करते हुए, उन्हें नया खेत शुरू करने की चुनौतियों से उबरने में मदद करना है। कृषि और किसान कल्याण म���त्रालय ने एनएमईओ-ओपी योजना के तहत 2027 तक 1,000,000 हेक्टेयर तेल ताड़ की खेती करने का लक्ष्य रखा है। लंबे समय तक टिकाऊ विकास के लिए वायबिलिटी गैप पेमेंट (वीजीपी) कार्यक्रम की शुरूआत और नए किसानों के लिए बढ़ा हुआ प्रोत्साहन दो ऐसी प्रमुख विशेषताएं हैं जो इसे उद्योग के लिए अद्वितीय और सहायक बनाती हैं।
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merikheti · 2 years
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घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम
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भारत के किसानों के लिए कृषि के अलावा पशुपालन का भी अपना ही एक अलग महत्व होता है। छोटे से लेकर बड़े भारतीय किसान एवं ग्रामीण महिलाएं, पशुपालन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था को एक ठोस आधार प्रदान करने के अलावा, खेती की मदद से ही पशुओं के लिए चारा एवं फसल अवशेष प्रबंधन (crop residue management) की भी व्यवस्था हो जाती है और बदले में इन पशुओं से मिले हुए ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल खेत में ही करके उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है।
एजोला चारा (Azolla or Mosquito ferns)
अलग-अलग पशुओं को अलग-अलग प्रकार का चारा खिलाया जाता है, इसी श्रेणी में एक विशेष तरह का चारा होता है जिसे ‘एजोला चारा‘ के नाम से जाना जाता है।
यह एक सस्ता और पौष्टिक पशु आहार होता है, जिसे खिलाने से पशुओं में वसा एवं वसा रहित पदार्थ वाली दूध बढ़ाने में मदद मिलती है।
अजोला चारा की मदद से पशुओं में बांझपन की समस्या को दूर किया जा सकता है, साथ ही उनके शरीर में होने वाली फास्फोरस की कमी को भी दूर किया जा सकता है।
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इसके अलावा पशुओं में कैल्शियम और आयरन की आवश्यकता की पूर्ति करने से उनका शारीरिक विकास भी बहुत अच्छे से हो पाता है।
समशीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाला यह अजोला एक जलीय फर्न होता है।
अजोला की लोकप्रिय प्रजाति पिन्नाटा भारत से किसानों के द्वारा उगाई जाती है। यदि अजोला की विशेषताओं की बात करें तो यह पानी में बहुत ही तेजी से वृद्धि करते हैं और उनमें अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोटीन होने की वजह से जानवर आसानी से पचा भी लेते है।
अजोला में 25 से 30% प्रोटीन, 60 से 70 मिलीग्राम तक कैल्शियम और 100 ग्राम तक आयरन की मात्रा पाई जाती है।
कम उत्पादन लागत वाला वाला यह चारा पशुओं के लिए एक जैविक वर्धक का कार्य भी करता है।
एक किसान होने के नाते आप जानते ही होंगे, कि रिजका और नेपियर जैसा चारा भारतीय पशुओं को खिलाया जाता रहा है, लेकिन इनकी तुलना में अजोला पांच गुना तक अच्छी गुणवत्ता का प्रोटीन और दस गुना अधिक उत्पादन दे सकता है।
अजोला चारा उत्पादन के लिए आपको किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं होगी, बल्कि किसान खुद ही आसानी से घर पर ही इसको ऊगा सकते है।
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इसके लिए आपको क्षेत्र को समतल करना होगा और चारों ओर ईंट खड़ी करके एक दीवार बनाई जाती है।
उसके अंदर क्यारी बनाई जाती है जिससे पानी स्टोर किया जाता है और प्लांट को लगभग 2 मीटर गहरे गड्ढे में बनाकर शुरुआत की जा सकती है।
इसके लिए किसी छायादार स्थान का चुनाव करना होगा और 100 किलोग्राम छनी हुई मिट्टी की परत बिछा देनी होगी, जोकि अजोला को पोषक तत्व प्रदान करने में सहायक होती है।
इसके बाद लगभग पन्द्रह लीटर पानी में पांच किलो गोबर का घोल बनाकर उस मिट्टी पर फैला देना होगा।
अपने प्लांट में आकार के अनुसार 500 लीटर पानी भर ले और इस क्यारी में तैयार मिश्रण पर, बाजार से खरीद कर 2 किलो ताजा अजोला को फैला देना चाहिए। इसके पश्चात 10 लीटर हल्के पानी को अच्छी तरीके से छिड़क देना होगा।
इसके बाद 15 से 20 दिनों तक क्यारियों में अजोला की वर्द्धि होना शुरू हो जाएगी। इक्कीसवें दिन की शुरुआत से ही इसकी उत्पादकता को और तेज करने के लिए सुपरफ़ास्फेट और गोबर का घोल मिलाकर समय-समय पर क्यारी में डालना होगा।
यदि आप अपने खेत से तैयार अजोला को अपनी मुर्गियों को खिलाते हैं, तो सिर्फ 30 से 35 ग्राम तक खिलाने से ही उनके शरीर के वजन एवं अंडा उत्पादन क्षमता में 20% तक की वृद्धि हो सकती है, एवं बकरियों को 200 ग्राम ताजा अजोला खिलाने से उनके दुग्ध उत्पादन में 30% की वृद्धि देखी गई है।
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अजोला के उत्पादन के दौरान उसे संक्रमण से मुक्त रहना अनिवार्य हो जाता है, इसके लिए सीधी और पर्याप्त सूरज की रोशनी वाले स्थान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हालांकि किसी पेड़ के नीचे भी लगाया जा सकता है लेकिन ध्यान रहे कि वहां पर सूरज की रोशनी भी आनी चाहिए।
साथ ही अजोला उत्पादन के लिए 20 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को उचित माना जाता है।
सही मात्रा में गोबर का घोल और उर्वरक डालने पर आपके खेत में उगने वाली अजोला की मात्रा को दोगुना किया जा सकता है।
यदि आप स्वयं पशुपालन या मुर्गी पालन नहीं करते हैं, तो उत्पादन इकाई का एक सेंटर खोल कर, इस तैयार अजोला को बाजार में भी बेच सकते है।
उत्तर प्रदेश, बिहार तथा झारखंड जैसे राज्यों में ऐसी उत्पादन इकाइयां काफी मुनाफा कमाती हुई देखी गई है और युवा किसान इकाइयों के स्थापन में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
किसान भाइयों को जानना होगा कि पशुओं के लिए एक आदर्श आहार के रूप में काम करने के अलावा, अजोला का इस्तेमाल भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में हरी खाद के रूप में भी किया जाता है। इसे आप 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अपने खेत में फैला सकते हैं, तो आपके खेत की उत्पादकता आसानी से 20% तक बढ़ सकती है। लेकिन भारतीय किसान इसे खेत में फैलाने की तुलना में बाजार में बेचना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि वहां पर इसकी कीमत काफी ज्यादा मिलती है।
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आशा करते हैं, घर में तैयार किया गया अजोला चारा भारतीय किसानों के पशुओं के साथ ही उनके खेत के लिए भी उपयोगी साबित होगा और हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी उन्हें पूरी तरीके से पसंद आई होगी।
Source घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम
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hariharan5901 · 2 years
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वैश्विक प्रतिकूलताओं के बावजूद वित्त वर्ष 2013 में भारतीय अर्थव्यवस्था 7-7.8% बढ़ेगी: विशेषज्ञ
वैश्विक प्रतिकूलताओं के बावजूद वित्त वर्ष 2013 में भारतीय अर्थव्यवस्था 7-7.8% बढ़ेगी: विशेषज्ञ
NEW DELHI: भारतीय अर्थव्यवस्था इस वित्त वर्ष में 7-7.8 प्रतिशत की वृद्धि कर सकती है, जो कि बेहतर कृषि उत्पादन और मुख्य रूप से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक बाधाओं के बीच एक पुनर्जीवित ग्रामीण अर्थव्यवस्था है, प्रख्यात अर्थशास्त्रियों ने कहा। प्रख्यात अर्थशास्त्री और बीआर अंबेडकर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (बेस) के कुलपति एनआर भानुमूर्ति ने कहा कि वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था बाहरी स्रोतों…
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ckpcity · 4 years
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2021 फूड समिट के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रमुख द्वारा वैज्ञानिक समूह के लिए नामित भारत के दो कृषि विशेषज्ञ
2021 फूड समिट के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रमुख द्वारा वैज्ञानिक समूह के लिए नामित भारत के दो कृषि विशेषज्ञ
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संयुक्त राष्ट्र ध्वज की फाइल छवि। (फोटो क्रेडिट: गेटी इमेजेज)
ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रो। रतन लाल और इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट की डॉ। उमा लेले, गुटेरेस द्वारा नामित वैज्ञानिक समूह के सदस्यों में से हैं।
PTI संयुक्त राष्ट्र
आखरी अपडेट: 1 जुलाई, 2020, 11:46 AM IST
भारत से आने वाले दो प्रतिष्ठित कृषि विशेषज्ञों को एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समूह का सदस्य बनाया गया है,…
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chirantannews · 3 years
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सहकारिता से स्वावलंबन स्किल से स्टार्टप
सहकारिता से स्वावलंबन स्किल से स्टार्टप
उज्जैन। सहकारिता मंत्रालय भारत शासन के अधीन भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ एवं सहकारी शिक्षा क्षेत्रीय परियोजना उज्जैन द्वारा ग्रामीण एवं कमजोर वर्ग की महिलाओं के स्वयं सहायता समूह के लिए सहकारिता से स्वावलंबन विषय पर नेतृत्व विकास कार्यशाला का आयोजन किया। मुख्य अतिथि श्रीमती रेखा तिवारी वरिष्ठ वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र उज्जैन, वरिष्ठ विषय विशेषज्ञ श्रीमती माधुरी सोलंकी पूर्व प्रोफेसर मुंबई…
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officeofomsingh · 3 years
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पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्म विभूषण एवं रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मनित, अनुवांशिकी विशेषज्ञ व अंतर्राष्ट्रीय प्रशासक, प्रसिद्ध भारतीय कृषि वैज्ञानिक एवं हरित क्रांति के जनक डॉ एम.एस. स्वामीनाथन जी को जन्मदिन की असीम शुभकामनाएं। आपके दीर्घायु जीवन एवं उत्तम स्वास्थ की ईश्वर से कामना https://www.instagram.com/p/CSSBcxthEvd/?utm_medium=tumblr
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abhay121996-blog · 3 years
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इतिहास में दर्ज 02 अगस्त की महत्वपूर्ण घटनाएं Divya Sandesh
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इतिहास में दर्ज 02 अगस्त की महत्वपूर्ण घटनाएं
जिन्होंने की थी तिरंगे की कल्पनाः 02 अगस्त 1876 को मौजूदा आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भटलापेनुमारु में पिंगली वेंकैया का जन्म हुआ। पिंगली वेंकैया राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक हैं। सच्चे देशभक्त और कृषि वैज्ञानिक वेंकैया कई भाषाओं के ज्ञाता थे। भूविज्ञान एवं कृषि क्षेत्र को लेकर उनकी गहरी दिलचस्पी थी, वे हीरे की खदान के विशेषज्ञ थे। ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा के दौरान उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के एंग्लो-बोअर युद्ध में हिस्सा लिया। इसी दौरान वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए।
वर्तमान आंध्र प्रदेश के काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान वेंकैया ने भारत का अपना राष्ट्रीय ध्वज होने की जरूरत पर बल दिया। यह विचार महात्मा गांधी को पसंद आया। उन्होंने वेंकैया को राष्ट्रीय ध्वज की रूपरेखा तैयार करने की सलाह दी। लगभग पांच साल तक तीस विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों के अध्ययन के बाद वेंकैया ने तिरंगे का प्रारूप तैयार किया और 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में महात्मा गांधी से मिलकर उन्हें बताया।
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हालांकि जालंधर के हंसराज ने झंडे में प्रगति के प्रतीक चक्र चिह्न का सुझाव दिया। वर्ष 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफेद और हरे, तीन रंगों वाले इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। बाद में राष्ट्रीय ध्वज में तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली।
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अन्य अहम घटनाएंः 1763ः मुर्शिदाबाद पर कब्जे के बाद ब्रिटिश सेना ने गिरिया के युद्ध में मीर कासिम को हराया। 1790ः अमेरिका में पहली बार जनगणना हुई। 1858ः ब्रिटिश सरकार ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित किया, जिससे भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश राजशाही के हाथों चला गया। 1955ः सोवियत संघ ने परमाणु परीक्षण किया। 1987ः विश्वनाथन आनंद ने विश्व जूनियर शतरंग चैम्पियनशिप जीती। 1990ः इराक की सेना ने कुवैत पर हमला कर उसपर कब्जा कर लिया।
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kisansatta · 4 years
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आखिर क्यों है कांग्रेस राज्यों में कृषि बिल का विरोध ?
भारतीय राजनीती में आज के समय में बीजेपी सत्ता की कुर्सी का रास्ता किसानों को ढाल बना कर पार करने को सोच रही हैं। जाहिर है केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए 3 कृषि विधेयकों को लेकर पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों में जोरदार हल्लाबोल है। भारत जिस देश को कृषि प्रधान देश कहा जाता हैं। साथ ही देश के इन इलाकों को भारत के अनाज का कटोरा कहा जाता है। बता दें हरित क्रांति के समय से ही यहां बहुत शानदार मंडियां स्थापित हैं। विपक्ष के जोरदार हंगामें के बीच कृषि सुधार से संबंधित दो बिल राज्यसभा में ध्वनि मत से पारित हो गए। नाराज़ विपक्षी दल बिल के पारित होने के बाद राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव ले आए। उपसभापति पर कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बिल पर चर्चा के दौरान उनके रवैये ने लोकतांत्रिक परंपराओं और प्रक्रियाओं को नुकसान पहुंचाया है। साथ ही आपको बता दें भारत सरकार की ओर से कृषि सुधार बिल कहे जा रहे तीन में से दो विधेयक रविवार को राज्यसभा में ध्वनि मत से पारित हो गए। अब इस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अंतिम मुहर लगनी बाकी है जिसके बाद यह क़ानून बन जाएगा।
आइये जानते हैं आखिर क्या है यह तीन विधेयक?
1- भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रस्ताव में कृषि सुधारों को टारगेट करते हुए लाए गए यह तीन विधेयक हैं- द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) बिल 2020, द फार्मर्स (एम्पॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइज एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस बिल 2020 और द एसेंशियल कमोडिटीज (अमेंडमेंट) बिल 2020।
2- साथ ही जानकारी के लिए आपको बता दें इन तीनों ही कानूनों को केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान 5 जून 2020 को ऑर्डिनेंस की शक्ल में लागू किया था। तब से ही इन पर बवाल मचा हुआ है। केंद्र सरकार इन्हें अब तक का सबसे बड़ा कृषि सुधार कह रही है। लेकिन, वही दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों को इसमें किसानों का शोषण और कॉर्पोरेट्स का फायदा दिख रहा है।
3- कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों के विरोध के बाद भी एसेंशियल कमोडिटीज (अमेंडमेंट) बिल लोकसभा में पारित हो गया है। अब यह चर्चा के लिए राज्यसभा में जाएगा। वहां से पास होने पर कानून औपचारिक रूप से लागू हो जाएगा। सरकार की कोशिश इसी सत्र में इन तीनों ही कानूनों को संसद से पारित कराने की है।
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विपक्षी का हल्लाबोल केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव से कांग्रेस के नेतृत्व में करीब छह विपक्षी पार्टियों ने इन विधेयकों का संसद में जोरदार विरोध किया है। एनडीए के घटक दल शिरोमणि अकाली दल ने भी बिल के विरोध में वोटिंग की। साथ ही आपको बता दें कांग्रेस का साथ देने वालों में तृणमूल कांग्रेस, बसपा, एनसीपी और माकपा साथ दे रहे है। बहरहाल, महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार चला रही शिवसेना इस बिल पर सरकार के साथ खड़ी दिखाई दी। बीजेडी, टीआरएस और वायएसआर कांग्रेस पार्टी ने भी एसेंशियल कमोडिटी (अमेंडमेंट) ऑर्डिनेंस पर सरकार का साथ दिया।
बिल का विरोध सिर्फ़ पंजाब-हरियाणा में ही क्यों
आपको जानकर हैरानी होगी की पंजाब में सत्ताधारी कांग्रेस पहले से ही विधेयक का विरोध कर रही है। जिससे किसानों, आढ़तियों और कारोबारियों की आशंका को लेकर कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं कि, जब मंडी के बाहर बिना शुल्क का क��रोबार होगा तो फिर मंडी में कोई शुल्क देना क्यों चाहेगा। उन्होंने बताया कि पंजाब और हरियाणा में बासमती निर्यातकों और कॉटन स्पिनिंग और जिनिंग मिल एसोसिएशनों ने मंडी शुल्क समाप्त करने की मांग की है। पंजाब और हरियाणा में विरोध होने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा में एपीएमसी मंडियों का अच्छा इन्फ्रास्ट्रक्चर है और एमएसपी पर गेहूं और धान की ज्यादा खरीद होती है। यही वजह है की बिल का विरोध पंजाब-हरियाणा में ज्यादा हो रहा हैं।
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vilaspatelvlogs · 4 years
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भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक रतन लाल को 'वर्ल्ड फूड प्राइज' मिला, फसलों के जरिए जलवायु परिवर्तन को कम करने की तरकीब निकाली
भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक रतन लाल को ‘वर्ल्ड फूड प्राइज’ मिला, फसलों के जरिए जलवायु परिवर्तन को कम करने की तरकीब निकाली
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अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा- डॉ. रतन लाल ने करीब 50 करोड़ किसानों की मदद की
डॉ. रतन लाल ने फसलों की ऐसी तकनीकों को बढ़ावा दिया, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम किया जा सकता है
दैनिक भास्कर
Jun 12, 2020, 08:28 PM IST
डि मोइन. भारतीय मूल के अमेरिकी सॉइल साइंटिस्ट (मिट्‌टी के विशेषज्ञ) डॉ. रतन लाल को 2020 के वर्ल्ड फूड प्राइज से सम्मानित किया गया है। इस पुरस्कार को कृषि क्षेत्र…
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पृष्ठभूमि
मेकांग, गंगा सहयोग (एमजीसी) 6 देशों की एक पहल है, जिसमें भारत और 5 आसियान देश, अर्थात कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं, जो पर्यटन, संस्कृति, शिक्षा, परिवहन और संचार के क्षेत्र में सहयोग के लिए संगठित हुए हैं।
इसकी शुरुआत 10 नवंबर, 2000 को लाओस की राजधानी वियनतियाने में की गई थी। गंगा और मेकांग दोनों सभ्यतामूलक नदियां हैं। एमजीसी का उद्देश्य इन दो प्रमुख नदी घाटियों के बीच रहने वाले लोगों को करीब लाना है। यह सदस्य देशों के बीच सदियों से चले आ रहे सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संबंधों को भी जोड़ना चाहता है। एमजीसी की पहली मंत्रिस्तरीय बैठक वियनतियाने में 9-13 नवंबर, 2000 के मध्य आयोजित की गई थी। जिसमें चार क्षेत्रों अर्थात पर्यटन, संस्कृति, शिक्षा और परिवहन में सहयोग पर सहमति बनी ।
वर्तमान परिदृश्य
मेकांग-गंगा सहयोग की दसवीं मंत्रिस्तरीय बैठक बैंकॉक, थाईलैंड में 1 अगस्त, 2019 को आयोजित की गई। इस बैठक में वर्ष 2016-2018 की एमजीसी योजना में हुई प्रगति की समीक्षा की गई तथा सहयोग के तीन नए क्षेत्रों अर्थात जल संसाधन प्रबंधन, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, कौशल विकास और क्षमता निर्माण पर परियोजना आधारित सहयोग के साथ नई एमजीसी योजना, 2019-2022 को अपनाया गया।
प्रमुख समझौते
1.     सांस्कृतिक सहयोग      
राष्ट्रीय हथकरघा संवर्धन विकास एजेंसियों को शामिल कर एमजीसी एशियाई पारंपरिक वस्त्र संग्रहालय (एटीटीएम), सिएम रिज, कंबोडिया में एमजीसी में शामिल देशों के हाथ से बुने हुए विभिन्न कपड़ों का प्रदर्शन करने के लिए सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ-साथ कपड़ा प्रदर्शनी का आयोजन करना। प्रतिनिधिमंडलों के आदान-प्रदान तथा कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्मारकों के संरक्षण में क्षमता निर्माण और सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना। è नालंदा विश्वविद्यालय में एक साझा अभिलेखीय संसाधन केंद्र (सीएआरसी) की स्थापना करना, जिसमें शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और विद्वानों के उपयोग के लिए पुरातत्व स्थलों, विश्व विरासत, व्यापार के इतिहास, जनसंख्या और धार्मिक वितरण डेटा तथा भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच ऐतिहासिक संपर्क जैसे क्षेत्रों पर जानकारी का भंडार हो। हरियाणा के सूरजकुंड मेले, राजस्थान के पुष्कर मेले, मणिपुर के संगोई महोत्सव, नगालैंड के हॉर्नविल महोत्सव और ओडिशा के बाली जात्रा जैसे भारत के प्रमुख सांस्कृतिक मेलों और उत्सवों में शिल्पकारों और सांस्कृतिक मंडलों को आमंत्रित करना तथा एमजीसी देशों के सांस्कृतिक मेलों और समारोहों में भारतीय शिल्पकारों और कलाकारों की उत्साहपूर्ण भागीदारी को प्रोत्साहित करना। सूचना प्रसार और प्रचार के लिए मेकांग देशों में महत्वपूर्ण यात्रा, मेलों और सांस्कृतिक समारोहों का एक संयुक्त कैलेंडर विकसित करना। वर्ष 2020 में एमजीसी की 20वीं वर्षगांठ मनाने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना।
2. पर्यटन सहयोग
एमजीसी देशों के प्रमुख बौद्ध स्थलों के लिए ट्रैवल एजेंसियों और मीडिया परिचय यात्राओं का आयोजन करना तथा बौद्ध सर्किट के लिए टूर पैकेज को प्रोत्साहित करना।
एमजीसी देशों की समृद्ध पाक परंपराओं को प्रदर्शित करना तथा उन्हें लोकप्रिय बनाने के लिए खाद्य उत्सवों का आयोजन करना।
पर्यटन और यात्रा प्रबंधन, आतिथ्य प्रबंधन आदि में डिप्लोमा और प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रमों के लिए छात्रवृत्ति के प्रस्ताव के माध्यम से छात्रों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना।
3. शिक्षा में सहयोग
एमजीसी में शामिल देशों के छात्रों द्वारा उपयोग को बढ़ाने के लिए भारतीय सांस्कृतिक परिषद (आईसीसीआर) द्वारा दी गई 50 एमजीसी छात्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करना।
राष्ट्रीय संस्थानों के बीच संकायों और छात्रों के आदान-प्रदान के माध्यम से चिकित्सा की पारंपरिक प्रणालियों में प्रशिक्षण को बढ़ावा देना। इसके लिए आयुष मंत्रालय, भारत सरकार आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी और योग में स्नातक/स्नातकोत्तर/पीएचडी करने के इच्छुक छात्रों के लिए एमजीसी देशों को प्रतिवर्ष 10 छात्रवृत्तियां प्रदान करेगा।
एमजीसी को समर्पित एक वेबसाइट लांच करना, जो क्षेत्रीय समूह की ब्रांडिंग में योगदान करेगी और विभिन्न संयुक्त कार्यक्रमों और गतिविधियों के बारे में उपयोगी जानकारी प्रदान करेगी।
4. सार्वजनिक स्वास्थ्य और पारंपरिक चिकित्सा में सहयोग
भारत में नई दिल्ली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च में अधिक प्रकोप वाले संचारी और गैर-संचारी रोगों के उन्मूलन पर एमजीसी देशों के अधिकारियों के लिए दूसरी कार्यशाला-सह-प्रशिक्षण का आयोजन करना।
अनुरोध करने पर मेकांग देशों में भारतीय आयुर्वेद विशेषज्ञ भेजना।
पारंपरिक और पूरक चिकित्सा पर एक क्षेत्रीय कार्यशाला का आयोजन करना।
5. कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सहयोग      
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के फसल विज्ञान प्रभाग द्वारा मशीनीकरण के माध्यम से चावल जर्मप्लाज्म के संरक्षण और उत्पादकता बढ़ाने पर एक कार्यशाला का आयोजन करना।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मत्स्य विज्ञान विभाग/पशु विज्ञान प्रभाग द्वारा स्थायी मत्स्य पालन और डेयरी पर कार्यशाला आयोजित करना।
राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान, हैदराबाद में एमजीसी देशों के पेशेवरों के लिए ‘एकीकृत ग्रामीण विकास एवं स्थायी विकास लक्ष्यों’ (एसीडीजीएस) पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
6. जल संसाधन प्रबंधन में सहयोग
भारत सामुदायिक खेती और जल संसाधन में अनुभवों और सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित करेगा।
सतत जल प्रबंधन, जल संचयन, जल डेटा संग्रह, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन, एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन, भूजल प्रबंधन, सीमा पार बेसिन प्रबंधन, जल गुणवत्ता निगरानी, बाढ़ और सूखा प्रबंधन तथा आपदा में कमी इत्यादि क्षेत्रों में सहयोगात्मक परियोजनाएं आरंभ करना।
7. विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सहयोग
कृषि, परिवहन, संचार, औद्योगिक ज्ञान हस्तांतरण, ई-कॉमर्स, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT), स्वास्थ्य, ऊर्जा और पर्यावरण, भोजन इत्यादि में सामाजिक नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए किसी एक एमजीसी देश में एक नवाचार मंच आयोजित करना।
8. परिवहन और संचार में सहयोग
भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग को कंबोडिया, लाओस और वियतनाम तक विस्तारित करने की व्यवहार्यता की जांच करना और आर्थिक विकास के गलियारे के रूप में इसका विकास करना। भारत-म्यांमार-थाईलैंड मोटरवाहन समझौते के समापन के तरीकों और साधनों का अन्वेषण करना, जिससे सीमाओं के पार माल और यात्रियों की निर्बाध आवाजाही तथा अधिक से अधिक व्यापार और पर्यटन हो सके। एमजीसी देशों के लिए भारतीय राजमार्ग अभियंता अकादमी, नोएडा में व्यवहार्यता अध्ययन की तैयारी और राजमार्ग परियोजनाओं के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तथा राजमार्गों के निर्माण और रख-रखाव के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना। आईसीटी उद्योग के  बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ई-गवर्नेंस, ई-कॉमर्स, ई-शिक्षा और अन्य संबंधित ई-सेवाओं के अनुभवों और सूचनाओं के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
9. कौशल विकास और क्षमता निर्माण
एमजीसी देशों के लिए राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी और बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक नमूना सर्वेक्षण के क्षेत्रों में प्रशिक्षण और छात्रवृत्ति कार्यक्रम आयोजित करना।
व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों और कौशल विकास प्राधिकरणों के विशेषज्ञों द्वारा विनिमय यात्राओं के माध्यम से ज्ञान साझा करने की सुविधा प्रदान करना।
थाईलैंड के वार्षिक अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण पाठ्यक्रम एआईटीसी के अंतर्गत एमजीसी क्षेत्रों से संबंधित विषयों पर सहयोग के साथ-साथ अन्य प्रासंगिक मुद्दों पर एसडीजी के अनुरूप वार्षिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
अन्य प्रमुख तथ्य
1. भारत या किसी अन्य एमजीसी देश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों पर केंद्रित एक व्यापार प्रदर्शनी के साथ एमजीसी व्यापार मेले का आयोजन करना।
2.   आसियान और पूर्वी एशिया के लिए जकार्ता स्थित आर्थिक अनुसंधान संस्थान (ERIA) द्वारा ‘क्षेत्रीय उत्पादन शृंखला में एमजीसी एमएसएमई के एकीकरण : संभावनाओं और चुनौतियों’ पर अनुसंधान  अध्ययन करने का कार्य सौंपना।
3.   वर्ष 2020 में वियतनाम द्वारा आयोजित किए जाने वाले आसियान भारत बिजनेस एक्सपो और शिखर सम्मेलन के अवसर पर एमजीसी बिजनेस मंच का आयोजन करना।
विशिष्ट तथ्य
आसियान अर्थात दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन की स्थापना 8 अगस्त, 1967 को बैंकाक, थाईलैंड में हुई थी। थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर और फिलीपींस इसके संस्थापक सदस्य देश हैं। ब्रुनोई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया इसमें बाद में शामिल हुए।   भारत अपनी लुक ईस्ट नीति, अब एक्ट ईस्ट नीति के तहत इस संगठन में शामिल होना चाहता है। जिसमें एमजीसी मंच एक ब्रिज के रूप में काम करेगा।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि एमजीसी सहयोग के माध्यम से भारत अपनी क्षेत्रीय, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आकांक्षाओं को पूरा कर सकेगा। साथ ही आसियान जैसे क्षेत्रीय मंच के सहयोग में भागीदारी बढ़ेगी।
सं. अनिल दुबे
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भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक रतन लाल को 'वर्ल्ड फूड प्राइज' मिला, फसलों के जरिए जलवायु परिवर्तन को कम करने की तरकीब निकाली
भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक रतन लाल को ‘वर्ल्ड फूड प्राइज’ मिला, फसलों के जरिए जलवायु परिवर्तन को कम करने की तरकीब निकाली
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Jun 13, 2020, 08:20 PM IST
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techihacks7750 · 4 years
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भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक रतन लाल को 'वर्ल्ड फूड प्राइज' मिला, फसलों के जरिए जलवायु परिवर्तन को कम करने की तरकीब निकाली
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reviewsground · 4 years
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Rattan Lal; Who Is Rattan Lal? IIndian-American soil scientist Dr Rattan Lal Wins 2020 World Food Prize | भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक रतन लाल को 'वर्ल्ड फूड प्राइज' मिला, फसलों के जरिए जलवायु परिवर्तन को कम करने की तरकीब निकाली
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Jun 12, 2020, 08:28 PM IST
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