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#भेजकर
cybergardenturtle · 5 months
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🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर पैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
#MiracleOfGodKabir_In_1513
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
#SantRampalJiMaharaj
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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vaidicphysics · 2 months
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वेदों पर किये गये आक्षेपों का उत्तर
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भूमिका सभी वेदानुरागी महानुभावो! जैसा कि आपको विदित है कि मैंने विगत श्रावणी पर्व वि० सं० २०८० तदनुसार ३० जुलाई २०२३ को सभी वेदविरोधियों का आह्वान किया था कि वे वेदादि शास्त्रों पर जो भी आक्षेप करना चाहें, खुलकर ३१ दिसम्बर २०२३ तक कर सकते हैं। हमने इस घोषणा का पर्याप्त प्रचार किया और करवाया भी था। इस पर हमें कुल १३४ पृष्ठ के आक्षेप प्राप्त हुए हैं। इन आक्षेपों को हमने अपने एक पत्र के साथ देश के शंकराचार्यों के अतिरिक्त पौराणिक जगत् में महामण्डलेश्वर श्री स्वामी गोविन्द गिरि, श्री स्वामी रामभद्राचार्य, श्री स्वामी चिदानन्द सरस्वती आदि कई विद्वानों को भेजा था। आर्यसमाज में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, परोपकारिणी सभा, वानप्रस्थ साधक आश्रम (रोजड़), दर्शन योग महाविद्यालय (रोजड़), गुरुकुल काँगड़ी हरिद्वार तथा सभी प्रसिद्ध आर्य विद्वानों को भेजकर निवेदन किया था कि ऋषि दयानन्द के २०० वें जन्मोत्सव फाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी वि० सं० २०८० तदनुसार ५ मार्च २०२४ तक जिन आक्षेपों का उत्तर दिया जा सकता है, लिखकर हमें भेजने का कष्ट करें। उस उत्तर को हम अपने स्तर से प्रकाशित और प्रचारित करेंगे।
यद्यपि मुझे ही सब प्रश्नों के उत्तर देने चाहिए, परन्तु मैंने विचार किया कि इन आक्षेपों का उत्तर देने का श्रेय मुझे ही क्यों मिले और वेदविरोधियों को यह भी न लगे कि आर्यसमाज में एक ही विद्वान् है। इसके साथ मैंने यह भी विचार किया कि मेरे उत्तर देने के पश्चात् कोई विद्वान् यह न कहे कि हमें उत्तर देने का अवसर नहीं मिला, यदि हमें अवसर मिलता, तो हम और भी अच्छा उत्तर देते। दुर्भाग्य की बात यह है कि निर्धारित समय के पूर्ण होने के पश्चात् तक कहीं से कोई भी उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है। बड़े-बड़े शंकराचार्य, महामण्डलेश्वर, महापण्डित, गुरु परम्परा से पढ़े महावैयाकरण, दार्शनिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता, योगी एवं वेद विज्ञान अन्वेषक कोई भी एक प्रश्न का भी उत्तर नहीं दे पाये। तब यह तो निश्चित हो ही गया कि ये आक्षेप वा प्रश्न सामान्य नहीं हैं। आक्षेपकर्त्ताओं ने पौराणिक तथा आर्यसमाजी दोनों के ही भाष्यों को आधार बनाकर गम्भीर व घृणित आक्षेप किये हैं। उन्होंने गायत्री परिवार को भी अपना निशाना बनाया है, परन्तु सभी मौन बैठे हैं, लेकिन मैं मौन नहीं रह सकता। इस कारण इन आक्षेपों का धीरे-धीरे क्रमश: उत्तर देना प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं जो उत्तर दूँगा उसको कोई भी वैदिक विद्वान्, जो आज मौन बैठे हैं, गलत कहने के अधिकारी नहीं रह पायेंगे, न मेरे उत्तर और वेदमन्त्रों के भाष्यों पर नुक्ताचीनी करने के अधिकारी रहेंगे। आज धर्म और अधर्म का युद्ध हो रहा है, उसका मूक दर्शक सच्चा वेदभक्त नहीं कहला सकता। मैंने चुनौती स्वीकारी तो है, उनकी भाँति मौन तो नहीं बैठा। वेद पर किये गये आक्षेपों पर मौन रहना भी उन आक्षेपों का मौन समर्थन करना ही है। यद्यपि मैं बहुत व्यस्त हूँ, पुनरपि धीरे-धीरे एक-एक प्रश्न का उत्तर देता रहूँगा। मैं सभी उत्तरदायी महानुभावों से दिनकर जी के शब्दों में यह अवश्य कहना चाहूँगा—
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध। मनुष्य इस संसार का सबसे विचारशील प्राणी है। इसी प्रकार इस ब्रह्माण्ड में ज��ाँ भी कोई विचारशील प्राणी रहते हैं, वे भी सभी मनुष्य ही कहे जायेंगे। यूँ तो ज्ञान प्रत्येक जीवधारी का एक प्रमुख लक्षण है। ज्ञान से ही किसी की चेतना का प्रकाशन होता है, सूक्ष्म जीवाणुओं से लेकर हम मनुष्यों तक सभी प्राणी जीवनयापन के क्रियाकलापों में भी अपने ज्ञान और विचार का प्रयोग करते ही हैं। जीवन-मरण, भूख-प्यास, गमनागमन, सन्तति-जनन, भय, निद्रा और जागरण आदि सबके पीछे भी ज्ञान और विचार का सहयोग रहता ही है, तब महर्षि यास्क ने ‘मत्वा कर्माणि सीव्यतीति मनुष्य:’ कहकर मनुष्य को परिभाषित क्यों किया? इसके लिए ऋषि दयानन्द द्वारा प्रस्तुत आर्यसमाज के पाँचवें नियम ‘सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिए’ पर विचार करना आवश्यक है। विचार करना और सत्य-असत्य पर विचार करना इन दोनों में बहुत भेद है, जो हमें पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों से पृथक् करता है। विचार वे भी करते हैं, परन्तु उनका विचार केवल जीवनयापन की क्रियाओं तक सीमित रहता है।
इधर सत्य और असत्य पर विचार जीवनयापन करने की सीमा से बाहर भी ले जाकर परोपकार में प्रवृत्त करके मोक्ष तक की यात्रा करा सकता है। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि जीवनयापन के विचार तक सीमित रहने वाले प्राणी जन्म से ही आवश्यक स्वाभाविक ज्ञान प्राप्त किये हुए होते हैं, परन्तु मनुष्य जैसा सर्वाधिक बुद्धिमान् प्राणी पशु-पक्षियोंं की अपेक्षा न्यूनतर ज्ञान लेकर जन्म लेता है। वह अपने परिवेश और समाज से सीखता है। इस कारण केवल मनुष्य के लिए ही समाज तथा शिक्षण-संस्थानों की आवश्यकता होती है। इनके अभाव में मनुष्य पशु-पक्षियों को देखकर उन जैसा ही बन जाता है। हाँ, उनकी भाँति उड़ने जैसी क्रियाएँ नहींं कर सकता। समाज और शिक्षा के अभाव में वह मानवीय भाषा और ज्ञान दोनों ही दृष्टि से पूर्णत: वंचित रह जाता है। यदि उसे पशु-पक्षियों को भी न देखने दिया जाये, तब उसके  आहार-विहार में भी कठिनाई आ सकती है। इसके विपरीत करोड़ों वर्षों से हमारे साथ रह रहे गाय-भैंस, घोड़ा आदि प्राणी हमारा एक भी व्यवहार नहीं सीख पाते। हाँ, वे अपने स्वामी की भाषा और संकेतों को कुछ समझकर तदनुकूल खान-पान आदि व्यवहार अवश्य कर लेते हैं। इस कारण कुछ पशु यत्किंचित् प्रशिक्षित भी किये जा सकते हैं, परन्तु मनुष्य की भाँति उन्हें शिक्षित, सुसंस्कृत, सभ्य एवं विद्वान् नहीं बनाया जा सकता। यही हममें और उनमें अन्तर है। अब प्रश्न यह उठता है कि जो मनुष्य जन्म लेते समय पशु-पक्षियों की अपेक्षा मूर्ख होता है, जीवनयापन में भी सक्षम नहीं होता, वह सबसे अधिक विद्वान्, सभ्य व सुशिक्षित कैसे हो जाता है?
जब मनुष्य की प्रथम पीढ़ी इस पृथिवी पर जन्मी होगी, तब उसने अपने चारों ओर पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों को ही देखा होगा, तब यदि वह पीढ़ी उनसे कुछ सीखती, तो उन्हीं के जैसा व्यवहार करती और उनकी सन्तान भी उनसे वैसे ही व्यवहार सीखती। आज तक भी हम पशुओं जैसे ही रहते, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। हमने विज्ञान की ऊँचाइयों को भी छूआ। वैदिक काल में हमारे पूर्वज नाना लोक-लोकान्तरोंं की यात्रा भी करते थे। कला, संगीत, साहित्य आदि के क्षेत्र में भी मनुष्य का चरमोत्कर्ष हुुआ, परन्तु पशु-पक्षी अपनी उछल-कूद से आगे बढ़कर कुछ भी नहीं सीख पाए। मनुष्य को ऐसा अवसर कैसे प्राप्त हो गया? उसने किसकी संगति से यह सब सीखा? इसके व���षय में कोई भी नास्तिक कुछ भी विचार नहीं करता। वह इसके लिए विकासवाद की कल्पनाओं का आश्रय लेता देखा जाता है। यदि विकास से ही सब कुछ सम्भव हो जाता, तब तो पशु-पक्षी भी अब तक वैज्ञानिक बन गये होते, क्योंकि उनका जन्म तो हमसे भी पूर्व में हुआ था। इस कारण उनको विकसित होने के लिए हमारी अपेक्षा अधिक समय ही मिला है। इसके साथ ही यदि विकास से ही सब कुछ स्वत: सिद्ध हो जाता, तो मनुष्य के लिए भी किसी प्रकार के विद्यालय और समाज की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु ऐसा नहीं है। नास्तिकों को इस बात पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि मनुष्य में भाषा और ज्ञान का विकास कहाँ से हुआ?
इस विषय में विस्तार से जानने के लिए मेरा ग्रन्थ ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ अवश्य पठनीय है, जिससे यह सिद्ध होता है कि प्रथम पीढ़ी के चार सर्वाधिक समर्थ ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य एवं अंगिरा ने ब्रह्माण्ड से उन ध्वनियों को अपने आत्मा और अन्त:करण से सुना, जो ब्रह्माण्ड में परा और पश्यन्ती रूप में विद्यमान थीं। उन ध्वनियों को ही वेदमन्त्र कहा गया। उन वेदमन्त्रों का अर्थ बताने वाला ईश्वर के अतिरिक्त और कोई भी नहीं था। दूसरे मनुष्य तो इन ध्वनियों को ब्रह्माण्ड से ग्रहण करने में भी समर्थ नहींं थे, भले ही उनका प्रातिभ ज्ञान एवं ऋतम्भरा ऋषि स्तर की थी। सृष्टि के आदि में सभी मनुष्य ऋषि कोटि के ब्राह्मण वर्ण के ही थे, अन्य कोई वर्ण भूमण्डल में नहीं था। उन चार ऋषियों को समाधि अवस्था में ईश्वर ने ही उन मन्त्रों के अर्थ का ज्ञान दिया। उन चारों ने मिलकर महर्षि ब्रह्मा को चारों वेदों का ज्ञान दिया और महर्षि ब्रह्मा से फिर ज्ञान की परम्परा सभी मनुष्यों तक पहुँचती चली गई। इस प्रकार ब्रह्माण्ड की इन ध्वनियों से ही मनुष्य ने भाषा और ज्ञान दोनों ही सीखे। इस कारण मनुष्य नामक प्राणी सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ बन गया।
ध्यातव्य है कि प्रथम पीढ़ी में जन्मे सभी मनुष्य मोक्ष से पुनरावृत्त होकर आते हैं। इसी कारण ये सभी ऋषि कोटि के ही होते हैं। ज्ञान की परम्परा किस प्रकार आगे बढ़ती गयी और मनुष्य की ऋतम्भरा कैसे धीरे-धीरे क्षीण होती गयी और मनुष्यों को वेदार्थ समझाने के लिए कैसे-कैसे ग्रन्थों की रचना आवश्यक होती चली गई और कैसा-कैसा साहित्य रचा गया, इसकी जानकारी के लिए मेरा ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पठनीय है। वेद को वेद से समझने की प्रज्ञा मनुष्य में जब समाप्त वा न्यून हो जाती है, तभी उसके लिए किसी अन्य ग्रन्थ की आवश्यकता होती है। धीरे-धीरे वेदार्थ में सहायक आर्ष ग्रन्थ भी मनुष्य के लिए दुरूह हो गये और आज तो स्थिति यह है कि वेद एवं आर्ष ग्रन्थों के प्रवक्ता भी इनके यथार्थ से अति दूर चले गये हैं। इस कारण वेद तो क्या, आर्ष ग्रन्थ भी कथित बुद्धिमान् मानव के लिए अबूझ पहेली बन गये हैं। इस स्थिति से उबारने के लिए ऋषि दयानन्द सरस्वती और उनके महान् गुरु प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती ने बहुत प्रयत्न किया, परन्तु समयाभाव आदि परिस्थितियों के कारण ऋषि दयानन्द के वेदभाष्य एवं अन्य ग्रन्थ वेद के रहस्यों को खोलने के लिए संकेतमात्र ही रह गये। वे वेद के यथार्थ को जानने के लिए सुमार्ग पर चलने वाले पथिक के रेत में बने हुुए पदचिह्न के समान थे। गन्तव्य की ओर गये हुए पदचिह्न किसी भी भ्रान्त पथिक के लिए महत्त्वपूर्ण सहायक होते हैं।
दुर्भाग्य से ऋषि दयानन्द के अनुयायियों ने ऋषि के बनाये हुए कुछ पदचिह्नों को ही गन्तव्य समझ लिया और वेदार्थ को समझने के लिए उन्होंने कोई ठोस प्रयत्न नहीं किया। उनका यह कर्म महापुरुषों की प्रतिमाओं को ही परमात्मा मानने की भूल करने जैसा ही था। इसका परिणाम यह हुआ कि ऋषि दयानन्द के अनुयायी विद्वान् भी वेदादि शास्त्रों के भाष्य करने में आचार्य सायण आदि के सरल प्रतीत होने वाले परन्तु वास्तव में भ्रान्त पथ के पथिक बन गये। इसी कारण पौराणिक (कथित सनातनी) भाष्यकारों की भाँति आर्य विद्वानों के भाष्यों में भी अश्लीलता, पशुबलि, मांसाहार, नरबलि, छुआछूत आदि पाप विद्यमान हैं। यद्यपि उन्होंने शास्त्रों को इन पापों से मुक्त करने का पूर्ण प्रयास किया, परन्तु वे इसमें पूर्णत: सफल नहीं हो सके। इसी कारण इनके भाष्यों में सायण आदि आचार्यों के भाष्यों की अपेक्षा ये दोष कम मात्रा में विद्यमान हैं, परन्तु वेद और ऋषियों के ग्रन्थों में एक भी दोष का विद्यमान होना वेद के अपौरुषेयत्व और ऋषियों के ऋषित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने के लिए पर्याप्त होता है। इसलिए ऋषि दयानन्द के भाष्य के अतिरिक्त सभी भाष्य दोषपूर्ण और मिथ्या हैं। हाँ, ऋषि दयानन्द के भाष्य भी सांकेतिक पदचिह्न मात्र होने के कारण सात्त्विक व तर्कसंगत व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं।
इसके लिए सब मनुष्यों को यह अति उचित है कि वे वेद के रहस्य को समझने के लिए ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ ग्रन्थ का गहन अध्ययन करें। जो विद्वान् वेद और ऋषियों की प्रज्ञा की गहराइयों में और अधिक उतरना चाहते हैं, उन्हें ‘वेदविज्ञान-आलोक’ और ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। जो आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर रहे शिक्षक वा विद्यार्थी वेद का सामान्य परिचय चाहते हैं, उन्हें ऋषि दयानन्द कृत ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ एवं ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ और प्रिय विशाल आर्य कृत ‘परिचय वैदिक भौतिकी’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। अब हम क्रमश: वेदादि शास्त्रों पर किये गये आक्षेपों का समाधान प्रस्तुत करेंगे—
क्रमशः... ✍ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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ईसा जी परमेश्वर नहीं थे, उनके द्वारा किये गये चमत्कार भी पूर्व निर्धारित थे
हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। अपने अवतार की महिमा करवाकर कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
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wiseballoonking · 4 months
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ईसा जी परमेश्वर नहीं थे, उनके द्वारा किये गये चमत्कार भी पूर्व निर्धारित थे
हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। अपने अवतार की महिमा करवाकर कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
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absabhindime · 3 months
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Valentine Day Quotes in Hindi ( Images )2024 | वैलेंटाइन डे कोट्स हिंदी 
Valentine Day किसी भी प्रेमी-जोड़े के लिए बेहद ही खास दिन होता है। Valentine Day उनके लिए भी बहुत खास होता है जो अपने प्यार का इज़हार करना चाहते है। ऐसे कई couples होते हैं जो अपने प्यार का इज़हार कुछ रोमांटिक और हसीन तरीके से करते हैं। व कुछ लोग Message और Quotes भेजकर भी करते है ।
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meenumeenu · 4 months
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#TrueStoryOfJesus
ईसा जी परमेश्वर नहीं थे, उनके द्वारा किये गये चमत्कार भी पूर्व निर्धारित थे
हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। अपने अवतार की महिमा करवाकर कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
#KabirIsGod
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mathscliniccounseling · 8 months
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अगर आपके पाल्य का Mathematics का पाया कच्चा है तो हमारे यूट्यूब चॅनेल पर अनुभवी पारंगत प्राध्यापक द्वारा सरल पद्धती से बनाये व्हिडिओ देखिये l जिससे Mathematics का डर कम होगा और पढणे मे रुची बढेगी l प्लिज लिंक को ओपन कीजिये, अगर आपको व्हिडिओ पसंद आया तो SUBSCRIBE करिये 👍 और 8-12 वी कक्षा मे पढ रहे विद्यार्थीयोंको जिनको याद नही रहता उनको भेजकर SUBSCRIBE करवायिये l Playing with Numbers Tests of Divisibility of numbers
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prince-kumar · 1 year
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#BibleFacts
🔮 ईसा जी परमेश्वर नहीं थे, उनके द्वारा किये गये चमत्कार भी पूर्व निर्धारित थे
हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। अपने अवतार की महिमा करवाकर कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
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santram · 1 year
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#BibleFacts
🔮 ईसा जी परमेश्वर नहीं थे, उनके द्वारा किये गये चमत्कार भी पूर्व निर्धारित थे
हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। अपने अवतार की महिमा करवाकर कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
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kumarianamee · 2 years
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#UntoldTruthOfJesus
🔮 ईसा जी परमेश्वर नहीं थे, उनके द्वारा किये गये चमत्कार भी पूर्व निर्धारित थे
हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। अपने अवतार की महिमा करवाकर कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
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gstitreturn · 22 hours
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pawankumar1976 · 28 days
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#Facts_About_EasterSunday
#KabirIsGod #jesus #jesuschrist #easter
#bible #reelkarofeelkaro #viralpostfb #trending
#SantRampalJiMaharaj
🌟 ईसा जी परमेश्वर नहीं थे, उनके द्वारा किये गये चमत्कार भी पूर्व निर्धारित थे
हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। अपने अवतार की महिमा करवाकर कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
🌟मांस खाने का आदेश परमेश्वर का नहीं है
प्रमाण:- कोरिंथियन 2:12, 17
एक आत्मा किसी में प्रवेश करके बोल रही है।
(17) हम उन लोगों में से नहीं है जो परमेश्वर के वचनों में मिलावट करते हैं।
इससे स्पष्ट है कि ईसा जी में अन्य फरिश्ते और अन्य आत्माएं भी बोलती हैं जो अपनी तरफ से मिलावट करके बोलती हैं।
बाईबल में मांस खाने का आदेश अन्य आत्माओं का है, प्रभु का नहीं।
🌟 ईसा मसीह की मृत्यु
हजरत ईसा मसीह की मृत्यु 30 वर्ष की आयु में हुई जो पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरी मृत्यु निकट है।
(मत्ती 26ः24-55 पृष्ठ 42-44)
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thakur70anil · 28 days
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SA True Story | आज अगर मैं जीवित हूँ तो ये संत रामपाल जी की ही रजा है | ...
पवित्र वेदों व गीता जी आदि पवित्र सदग्रंथों में प्रमाण मिलता है कि जब-जब धर्म की हानि होती है व अधर्म की वृद्धि होती है तब परमेश्वर स्वयं आकर या अपने परम संत यानी सच्चे सतगुरु को भेजकर सत्य ज्ञान के द्वारा धर्म की पुनर्स्थापना करता है।
वर्तमान में परम संत रामपाल जी महाराज द्वारा ही सत्य ज्ञान दिया जा रहा है। पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी से नाम उपदेश लें, अपना कल्याण कराएं।
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ईसा जी परमेश्वर नहीं थे, उनके द्वारा किये गये चमत्कार भी पूर्व निर्धारित थे
हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। अपने अवतार की महिमा करवाकर कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
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satyaprakashdas · 28 days
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#🌟 ईसा जी परमेश्वर नहीं थे, उनके द्वारा किये गये चमत्कार भी पूर्व निर्धारित थे
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हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। अपने अवतार की महिमा करवाकर कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
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rukabir1 · 28 days
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[3/30, 8:31 PM] Arun Das Patil: 🌟भ्रांति : ईसाई धर्म के लोग मानते हैं कि परमात्मा निराकार है।
सच्चाई : जबकि संत रामपाल जी महाराज पवित्र बाइबिल के उत्पत्ति ग्रंथ 1:26, 27 से बताते हैं कि परमेश्वर ने मानव को अपने स्वरूप में उत्पन्न किया। जिससे स्पष्ट है कि परमात्मा साकार है।
[3/30, 8:31 PM] Arun Das Patil: 🌟भ्रांति: ईसाई धर्म के लोगों, मिशनरियों व पादरियों का मानना है कि बाइबिल में मांस खाने का आदेश परमेश्वर का है।
सच्चाई: जबकि संत रामपाल जी महाराज बाइबिल के उत्पत्ति ग्रंथ 1:29 से बताते हैं कि प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीज वाले फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं। जिससे स्पष्ट है कि परमात्मा का आदेश माँस खाने का नहीं है।
[3/30, 8:31 PM] Arun Das Patil: 🌟भ्रांति : ईसाई धर्म की मान्यता है कि क्रस किये जाने के तीन दिन बाद ईसा मसीह फिर से जिंदा हो गए थे।
सच्चाई : जबकि यह बात पूर्णतः सत्य नहीं है। संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि पूर्ण परमात्मा ही भक्ति की आस्था बनाए रखने के लिए ईसा जी की मृत्यु के पश्चात् ईसा जी का रूप धारण करके प्रकट होकर ईसाईयों के विश्वास को प्रभु भक्ति पर दृढ़ रखा था, नहीं तो ईसा जी के पूर्व चमत्कारों को देखते हुए ईसा जी का अंत देखकर कोई भी व्यक्ति भक्ति साधना नहीं करता और वे नास्तिक हो जाते। जिसका प्रमाण पवित्र बाइबिल में यूहन्ना ग्रन्थ अध्याय 16 श्लोक 4-15 में दिया गया है कि जिसे ईसाई धर्म के लोग शैतान कहते हैं, वह वास्तव में ब्रह्म काल जिसका प्रमाण पवित्र श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 11 श्लोक 21, 32 में है, यह शैतान काल यही चाहता है कि कोई भक्ति न करे यानि सभी नास्तिक बन जायें।
[3/30, 8:32 PM] Arun Das Patil: 🌟ईसाई धर्म हो या मुसलमान धर्म पुनर्जन्म को नहीं मानते। इनकी धारणा है कि एक बार सभी मरते जायेंगे और इन्हें कब्रों में दबाते जायेंगे। जब कयामत (प्रलय) आएगी तो परमात्मा अच्छे कर्म करने वालों को स्वर्ग में और बुरे कर्म करने वालों को नरक में डालेगा।
जबकि संत रामपाल जी महाराज जी जीवनी हजरत मुहम्मद पुस्तक के पृष्ठ 161, 164-165 से स्पष्ट करते हैं कि मुहम्मद जी ने ऊपर हजरत आदम, ईसा, मूसा, दाऊद, अब्राहिम सभी को देखा। जबकि मुसलमान धर्म और ईसाई धर्म के अनुसार अभी कयामत आई ही नहीं। जिससे स्पष्ट है कि पुनर्जन्म की धारणा इन दोनों ही धर्म में गलत है।
[3/30, 8:32 PM] Arun Das Patil: 🌟ईसा मसीह का जन्म एक देवता से हुआ।
प्रमाण : पवित्र बाईबल मती रचित सुसमाचार मती=1ः25 पृष्ठ नं. 1-2 पर।
ईसा मसीह की पूज्य माता जी का नाम मरियम तथा पूज्य पिताजी का नाम यूसुफ था। परन्तु मरियम को गर्भ एक देवता से रहा था। इस पर यूसुफ ने आपत्ति की तथा मरियम को त्यागना चाहा तो स्वपन में (फरिश्ते) देवदूत ने ऐसा न करने को कहा तथा यूसुफ ने डर के मारे मरियम का त्याग न करके उसके साथ पति-पत्नी रूप में रहे। देवता से गर्भवती हुई मरियम ने ईसा को जन्म दिया।
[3/30, 8:32 PM] Arun Das Patil: 🌟 ईसा जी भगवान नहीं थे, वह तो एक ईश्वर की भक्ति बताते थे
हजरत ईसा जी को भी पूर्ण परमात्मा सत्यलोक से आकर मिले तथा एक परमेश्वर का मार्ग समझाया। इसके बाद ईसा जी एक ईश्वर की भक्ति समझाने लगे। लोगों ने बहुत विरोध किया। बीच-बीच में ब्रह्म(काल) के फरिश्ते हजरत ईसा जी को विचलित करते रहे तथा वास्तविक ज्ञान को दूर रखा।
[3/30, 8:32 PM] Arun Das Patil: 🌟 हजरत ईसा जी पाप नहीं काट सकते
हजरत यीशु का जन्म तथा मृत्यु व जो जो भी चमत्कार किए वे पहले ब्रह्म(ज्योति निरंजन) के द्वारा निर्धारित थे। यह प्रमाण पवित्र बाईबल में है कि एक व्यक्ति जन्म से अंधा था। वह हजरत यीशु मसीह के आशीर्वाद से वह ठीक हो गया। शिष्यों ने पूछा इस व्यक्ति ने कौन-सा पाप किया था। यीशु जी ने कहा कि इसका कोई पाप नहीं है। यह तो इसलिए हुआ है कि प्रभु की महिमा प्रकट करनी है। भावार्थ यह है कि यदि पाप होता तो हजरत यीशु आँखे ठीक नहीं कर सकते थे।
[3/30, 8:32 PM] Arun Das Patil: 🌟 ईसा जी परमेश्वर नहीं थे, उनके द्वारा किये गये चमत्कार भी पूर्व निर्धारित थे
हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। अपने अवतार की महिमा करवाकर कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
[3/30, 8:32 PM] Arun Das Patil: 🌟 ईसा मसीह की मृत्यु
हजरत ईसा मसीह की मृत्यु 30 वर्ष की आयु में हुई जो पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरी मृत्यु निकट है।
(मत्ती 26ः24-55 पृष्ठ 42-44)
[3/30, 8:33 PM] Arun Das Patil: 🌟 परमेश्वर अमर है, लेकिन ईसा मसीह जी की मृत्यु हुई
हजरत ईसा मसीह की मृत्यु पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरे बारह शिष्यों में से ही एक मुझे विरोधियों को पकड़वाएगा।  एक ईसा मसीह का खास यहूंदा इकसरौती नामक शिष्य था, जिसने तीस रूपये के लालच में अपने गुरु जी को विरोधियों के हवाले कर दिया।
(मत्ती 26ः24-55 पृष्ठ 42-44)
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