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#शनिदेव की पूजा कैसे करें
rudrjobdesk · 2 years
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2 जुलाई का दिन इन 5 राशि वालों के लिए बेहद खास, शनिदेव की पूजा से कटेंगे कष्ट
2 जुलाई का दिन इन 5 राशि वालों के लिए बेहद खास, शनिदेव की पूजा से कटेंगे कष्ट
Saturday Shani Grah Upay: 2 जुलाई 2022 को शनिवार है। शनिवार का दिन न्यायदेवता शनिदेव को समर्पित माना गया है। शनिदेव की स्थिति में परिवर्तन होने से कई राशि वालों पर शनि महादशा शुरू होती है। वर्तमान में शनिदेव कुंभ राशि में गोचर कर रहे हैं। शनि 5 जून 2022 से वक्री अवस्था में हैं। शनि 12 जुलाई को मकर राशि में प्रवेश करेंगे। जानें किन राशि वालों के लिए शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा करने से होगा…
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jyotishwithakshayg · 4 months
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Aaj Ka Rashifal 24 February 2024: इन राशियों के जीवन में आने-वाला है उतार-चढ़ाव, विस्तार से जाने अपना आज का राशिफल
शनिदेव की कृपा से इन राशियों के जीवन में आएगा उतार-चढ़ाव
शनिवार का दिन हनुमान जी और शनिदेव को समर्पित होता है। इस दिन विधि-विधान से हनुमान जी और शनिदेव की पूजा-अर्चना की जाती है। हनुमान जी और शनिदेव की पूजा-उपासना करने से जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है।
Aaj Ka Rashifal:
मेष राशि : आज का दिन व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों स्तरों पर दूसरों के साथ जुड़ने का है। अपनी अंतर्दृष्टि और राय शेयर करने से न डरें। बस दूसरों की जरूरतों के साथ अपनी जरूरतों को बैलेंस्ड करना याद रखें, क्योंकि आपकी खुद की भलाई को बनाए रखने के लिए खुद की देखभाल महत्वपूर्ण है। आज आपके रिश्तों में थोड़ी खटास आ सकती है, लेकिन अभी उम्मीद का दामन न छोड़ें। विवाद से बचने के बजाय अपने प्रियजनों के साथ खुलकर और ईमानदारी से संवाद करने की कोशिश करें।
वृषभ राशि : जो लोग वित्त और विदेशी ग्राहकों के साथ काम करते हैं, उन्हें विकास के ज्यादा अवसर दिखाई देंगे। व्यापारी आज किसी नई पार्टनरशिप की शुरुआत न करें क्योंकि सितारे उसके समर्थन में नहीं हैं। वित्त के लिए आपके सितारे आज बहुत अच्छे हैं। आप वित्त में मजबूत होंगे और कई विकल्पों में निवेश करने का यह एक अच्छा समय है। लंबी अवधि के निवेश के लिए शेयर बाजार, सट्टा कारोबार और म्यूचुअल फंड अच्छे विकल्प हैं।
मिथुन राशि : आज अपने प्रियजनों के साथ अपनी बातचीत पर ध्यान दें। हालांकि अपने आप को कुछ सख्त प्यार दिखाना और अपने आप पर सख्त होना ठीक है, लेकिन सुनिश्चित करें कि इसे अपने रिश्ते में न आने दें। अपने करीबी लोगों के साथ कठोर होने से बचें। अवसर आज आपके दरवाजे पर इंतजार कर रहे हैं। जोखिम लेने से न डरें क्योंकि वे आपको कुछ बड़ा करने की ओर ले जा सकते हैं। लेकिन अपने लिए खड़े होने के लिए भी तैयार रहें, क्योंकि कोई आपको नीचा दिखाने की कोशिश कर सकता है।
कर्क राशि : पैसों से जुड़े मामले आपके दिमाग पर भारी पड़ सकते हैं। लेकिन डरे मत। आपकी मेहनत और संकल्प रंग लाएगा। हालांकि, आवेगी खर्च से सावधान रहें और अपने वित्त पर नियंत्रण रखें। याद रखें, एक पैसा बचाया एक अर्जित पैसा है। आत्म-देखभाल के लिए समय निकालें, ऐसी गतिविधियों में शामिल हों जो आपको खुश करें और अपने प्रियजनों से जुड़ें। याद रखें, आपका मानसिक स्वास्थ्य उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि आपका शारीरिक स्वास्थ्य। जरूरत पड़ने पर पेशेवर मदद लेने में संकोच न करें।
सिंह राशि : घरेलू जीवन में विवाद आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं लेकिन शारीरिक रूप से आप आज अच्छे रहेंगे। ऑफिस मे�� मल्टीटास्किंग की उम्मीद है और चुनौतियां पैदा होंगी। आर्थिक रूप से आज आप अच्छा करेंगे। आपकी लव लाइफ आज खराब हो सकती है क्योंकि कुछ मनमुटाव रहेगा। रिश्तों में बाहरी लोगों की दखलअंदाजी से सावधान रहें। दांपत्य संबंधों में यह ज्यादा परेशानी भरा हो सकता है। आज आपको धैर्य रखने और अच्छे श्रोता बनने की जरूरत है।
कन्या राशि : आज अपने पैसे से चेक इन करने का अच्छा समय है। बेहतर जानकारी प्राप्त करने के तरीके खोजें और अच्छे निर्णय लें कि आप अपने वित्तीय संसाधनों का बेहतर उपयोग कैसे कर सकते हैं। आर्थिक सलाह के लिए यह एक सकारात्मक समय हो सकता है। आज आप अपनी भावनाओं पर विशेष ध्यान दें और इस बात का ध्यान रखें कि आपको अपने शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य की अच्छी देखभाल करने के लिए क्या चाहिए। ऊर्जा आज उन कर्क राशि वालों के लिए एकदम सही है जिन्हें शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह से इलाज की आवश्यकता है।
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prabhushriram · 11 months
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Shanivar Vrat : कैसे रखें शनिवार व्रत, जानिए पूजन विधि और कथा
शनि देव को लोग भयभीत क्यों मानते हैं? इसके कई कारण हैं। प्राचीन हिन्दू पौराणिक कथाओं और ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को गहरे दुःख और पीड़ा का प्रतीक माना जाता है। शनि को न्याय के देवता भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वह कर्मों की न्यायपूर्ण फल देने वाला है। उनका प्रभाव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर शास्त्रों में विस्तार से वर्णित किया गया है। शनि देव का रंग काला होता है, जो उनकी पहचान है। काला रंग उनके गहरे और अदृश्य स्वभाव को प्रतिष्ठित करता है। इसलिए, लोग काले रंग को शनि देव के संकेत के रूप में मानते हैं।
शनि देव की ग्रह शास्त्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। शनि के ग्रहण की स्थिति और दशा व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालती हैं। उनके प्रभाव के अनुसार, एक उन्हें बड़ी कठिनाइयों, संकटों और परेशानियों का कारण माना जाता है। यह कहा जाता है कि शनि देव की दया और कृपा पाने के लिए मनुष्य को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसलिए उन्हें भय और आपत्ति का प्रतीक माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में शनि देव का महत्वपूर्ण स्थान है। शनि ग्रह एक ऐसा ग्रह है जिसका प्रभाव जीवन में सामान्यतः दुखों, बाधाओं और कठिनाइयों को बढ़ा देता है। इसलिए, जब कोई व्यक्ति शनि के प्रभाव में होता है, तो उसे विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
शनि देव का प्रभाव व्यक्ति के कर्मों पर भी ह��ता है। शास्त्रों में कहा जाता है कि जो लोग अच्छे कर्म करते हैं, उन्हें शनि देव का प्रभाव शांतिपूर्ण और अनुकूल होता है। वे उनकी दया और कृपा को प्राप्त करते हैं। वहीं, जो लोग बुरे कर्म करते हैं, उनके लिए शनि देव का प्रभाव कठोर और परेशान करने वाला होता है। इसलिए, शनि देव अच्छे कर्मों को प्रोत्साहित करने और बुरे कर्मों को संशोधित करने का संकेत देते हैं।
यद्यपि शनि देव का भय और पीड़ा का संकेत दिया जाता है, लेकिन उनकी पूजा और उपासना भी विशेष महत्वपूर्ण है। शनि देव की उपासना और उनके कृपा को प्राप्त करने से मान्यता है कि व्यक्ति के जीवन में दुःखों का समाधान होता है और उन्हें समृद्धि और सुख मिलता है। 
शनि पूजा करने से कई फायदे हो सकते हैं। यह कुछ मुख्य फायदे हैं:
·    शनि पूजा करने से शनि देवता की कृपा मिलती है और शनि के दोषों का प्रभाव कम होता है।
·    यह पूजा जीवन में खुशहाली, संपत्ति और सफलता लाने में मदद कर सकती है।
·     शनि पूजा से भय, चिंता और तनाव कम होते हैं और मानसिक शांति मिलती है।
·     यह पूजा न्याय, धार्मिकता और ईमानदारी को बढ़ावा देती है।
·      शनि पूजा करने से आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है और व्यापार में वृद्धि हो सकती है।
·       यह पूजा शनि की क्रोध से बचाती है और नकारात्मकता को दूर करती है।
·        शनि पूजा से स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है और रोगों से बचाव हो सकता है।
 यदि आप शनि पूजा करना चाहते हैं, तो प्रभू श्रीराम इंडियाज़ बेस्ट अगरबत्ती एवं धूप आपके लिए लाया है शनि देव पूजा किट जिसकी मदद से नियमनुसार भगवान शनि देव को अति प्रसन्न कर सकते हैं। 
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विधि (Shani Vrat Vidhi)
याद रखें, शनि पूजा को समर्पित होने के लिए समय, स्थान और नियमों का पालन करना महत्वपूर्ण होता है। यह पूजा और व्रत शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु होता है.
1)    काला तिल, तेल, काला वस्त्र, काली उड़द शनि देव को अत्यंत प्रिय है. इनसे ही पूजा होती है. शनि देव का स्त्रोत पाठ करें.
2)    शनिवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं परंतु श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारम्भ करना अति मंगलकारी है ।
3)    इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि सहित पूजन करनी चाहिए।
4)    शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवन्ती का फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए।
5)    शनि मंत्रों का जाप करें: शनि देवता के मंत्रों का जाप करना शनि के दोषों को शांत करने में मदद कर सकता है। "ॐ शं शनैश्चराय नमः" और "शनैश्चराय नमः" जैसे मंत्रों का नियमित जाप करना शुभ माना जाता है।
6)    तिल के तेल का दान करें: शनिवार को तिल के तेल का दान करना शनि देवता को प्रसन्न करने का एक प्रभावी तरीका है। आप तिल के तेल के एक छोटे बोतल को मंदिर में या शनि देवता के सामने रख सकते हैं और इसे दान कर सकते हैं।
7)    शनि देवता के व्रत रखें: आप शनि देवता के व्रत रख सकते हैं, जिसमें आपको शनिवार को नौ व्रत रखने होंगे। इस व्रत के दौरान आपको शनि देवता की पूजा करनी होगी, नियमित जाप करना होगा, और सत्विक आहार लेना होगा।
शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए। शनि महाराज की पूजा के पश्चात राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए। इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल देना चाहिए और पीपल में सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। शनिवार के दिन भक्तों को शनि महाराज के नाम से व्रत रखना चाहिए।
शनि व्रत कथा (Shani Vrat katha)
एक समय सभी नवग्रहओं : सूर्य, चंद्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में विवाद छिड़ गया, कि इनमें सबसे बड़ा कौन है? सभीआपसं ऎंल ड़ने लगे, और कोई निर्णय ना होने पर देवराज इंद्र के पास निर्णय कराने पहुंचे. इंद्र इससे घबरा गये, और इस निर्णय को देने में अपनी असमर्थता जतायी. परन्तु उन्होंने कहा, कि इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य हैं, जो कि अति न्यायप्रिय हैं. वे ही इसका निर्णय कर सकते हैं. सभी ग्रह एक साथ राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे, और अपना विवाद बताया। साथ ही निर्णय के लिये कहा। राजा इस समस्या से अति चिंतित हो उठे, क्योंकि वे जानते थे, कि जिस किसी को भी छोटा बताया, वही कुपित हो उठेगा. तब राजा को एक उपाय सूझा. उन्होंने सुवर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन बनवाये, और उन्हें इसी क्रम से रख दिय. फ़िर उन सबसे निवेदन किया, कि आप सभी अपने अपने सिंहासन पर स्थान ग्रहण करें. जो अंतिम सिंहासन पर बठेगा, वही सबसे छोटा होगा. इस अनुसार लौह सिंहासन सबसे बाद में होने के कारण, शनिदेव सबसे बाद में बैठे. तो वही सबसे छोटे कहलाये. उन्होंने सोच, कि राजा ने यह जान बूझ कर किया है. उन्होंने कुपित हो कर राजा से कहा “राजा! तू मुझे नहीं जानता. सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेड़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, व बुद्ध और शुक्र एक एक महीने विचरण करते हैं. परन्तु मैं ढाई से साढ़े-सात साल तक रहता हुं. बड़े बड़ों का मैंने विनाश किया है. श्री राम की साढ़े साती आने पर उन्हें वनवास हो गया, रावण की आने पर उसकी लंका को बंदरों की सेना से परास्त होना पढ़ा.अब तुम सावधान रहना. ” ऐसा कहकर कुपित होते हुए शनिदेव वहां से चले. अन्य देवता खुशी खुशी चले गये. कुछ समय बाद राजा की साढ़े साती आयी. तब शनि देव घोड़ों के सौदागर बनकर वहां आये. उनके साथ कई बढ़िया घड़े थे. राजा ने यह समाचार सुन अपने अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने की अज्ञा दी. उसने कई अच्छे घोड़े खरीदे व एक सर्वोत्तम घोड़े को राजा को सवारी हेतु दिया. राजा ज्यों ही उसपर बैठा, वह घोड़ा सरपट वन की ओर भागा. भषण वन में पहुंच वह अंतर्धान हो गया, और राजा भूखा प्यासा भटकता रहा. तब एक ग्वाले ने उसे पानी पिलाया. राजा ने प्रसन्न हो कर उसे अपनी अंगूठी दी. वह अंगूठी देकर राजा नगर को चल दिया, और वहां अपना नाम उज्जैन निवासी वीका बताया. वहां एक सेठ की दूकान उसने जल इत्यादि पिया. और कुछ विश्राम भी किया. भाग्यवश उस दिन सेठ की बड़ी बिक्री हुई. सेठ उसे खाना इत्यादि कराने खुश होकर अपने साथ घर ले गया. वहां उसने एक खूंटी पर देखा, कि एक हार टंगा है, जिसे खूंटी निगल रही है. थोड्क्षी देर में पूरा हार गायब था। तब सेठ ने आने पर देखा कि हार गायब जहै। उसने समझा कि वीका ने ही उसे चुराया है। उसने वीका को कोतवाल के पास पकड्क्षवा दिया। फिर राजा ने भी उसे चोर समझ कर हाथ पैर कटवा दिये। वह चैरंगिया बन गया।और नगर के बहर फिंकवा दिया गया। वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसे दया आयी, और उसने एवीका को अपनी गाडी़ में बिठा लिया। वह अपनी जीभ से बैलों को हांकने लगा। उस काल राजा की शनि दशा समाप्त हो गयी। वर्षा काल आने पर वह मल्हार गाने लगा। तब वह जिस नगर में था, वहां की राजकुमारी मनभावनी को वह इतना भाया, कि उसने मन ही मन प्रण कर लिया, कि वह उस राग गाने वाले से ही विवाह करेगी। उसने दासी को ढूंढने भेजा। दासी ने बताया कि वह एक चौरंगिया है। परन्तु राजकुमारी ना मानी। अगले ही दिन से उठते ही वह अनशन पर बैठ गयी, कि बिवाह करेगी तोइ उसी से। उसे बहुतेरा समझाने पर भी जब वह ना मानी, तो राजा ने उस तेली को बुला भेजा, और विवाह की तैयारी करने को कहा।फिर उसका विवाह राजकुमारी से हो गया। तब एक दिन सोते हुए स्वप्न में शनिदेव ने रानजा से कहा: राजन्, देखा तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुःख झेला है। तब राजा नेउससे क्षमा मांगी, और प्रार्थना की , कि हे शनिदेव जैसा दुःख मुझे दिया है, किसी और को ना दें। शनिदेव मान गये, और कहा: जो मेरी कथा और व्रत कहेगा, उसे मेरी दशा में कोई दुःख ना होगा। जो नित्य मेरा ध्यान करेगा, और चींटियों को आटा डालेगा, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे। साथ ही राजा को हाथ पैर भी वापस दिये। प्रातः आंख खुलने पर राजकुमारी ने देखा, तो वह आश्चर्यचकित रह गयी। वीका ने उसे बताया, कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। सभी अत्यंत प्रसन्न हुए। सेतठ ने जब सुना, तो वह पैरों पर गिर्कर क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहा, कि वह तो शनिदेव का कोप था। इसमें किसी का कोई दोष नहीं। सेठ ने फिर भी निवेदन किया, कि मुझे शांति तब ही मिलेगी जब आप मेरे घर चलकर भोजन करेंगे। सेठ ने अपने घर नाना प्रकार के व्यंजनों ने राजा का सत्कार किया। साथ ही सबने देखा, कि जो खूंटी हार निगल गयी थी, वही अब उसे उगल रही थी। सेठ ने अनेक मोहरें देकर राजा का धन्यवाद किया, और अपनी कन्या श्रीकंवरी से पाणिग्रहण का निवदन किया। राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। कुछ समय पश्चात राजा अपनी दोनों रानियों मनभावनी और श्रीकंवरी को साभी दहेज सहित लेकर उज्जैन नगरी को चले। वहां पुरवासियों ने सीमा पर ही उनका स्वागत किया। सारे नगर में दीपमाला हुई, व सबने खुशी मनायी। राजा ने घोषणा की , कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया थ, जबकि असल में वही सर्वोपरि हैं। तबसे सारे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा नियमित होने लगी। सारी प्रजा ने बहुत समय खुशी और आनंद के साथ बीताया। जो कोई शनि देव की इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं। व्रत के दिन इस कथा को अवश्य पढ़ना चाहिये।
शनिदेव को पसंद है आक का फूल इसे मदार का फूल भी कहा जाता है. आक भी नीले रंग का ही होता है. आक के अलावा आप चाहें तो शनिदेव को नीले रंग के अपराजिता के फूल (Aparajita flower) भी अर्पित कर सकते हैं. शनिवार को शनिदेव के चरणों में नीले रंग के 5 फूल चढ़ाने से शनिदेव जल्दी प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
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samaychakra · 1 year
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शनिदेव की पूजा कैसे करें?
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blogalien · 2 years
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शनिवार की आरती कथा-विधि I सप्तवार व्रत कथा I शनिवार व्रत कथा
शनिवार की आरती कथा-विधि I सप्तवार व्रत कथा I शनिवार व्रत कथा
शनिवार की आरती कथा-विधि हिंदी में  Sanivar Vrat Katha   शनिवार की आरती कथा-विधि : शनिवार के व्रत की कथा और आरती किस प्रकार से कैसे करें ! हमारे सनातन में हर वार की व्रत कथा और आरती का महत्त्व बताया गया है ! सप्तवार व्रत कथा के बारे में जानने के लिए हम एक सप्तवार व्रत कथा की सीरिज ला रहे है ! इसको पढ़कर आप इसके महत्त्व को जाने !      -: सप्तवार व्रत,आरती कथा-विधि :- रविवार की आरती कथा-विधि सोमवार…
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#घर पर शनिदेव की पूजा कैसे करें?#शनि देव का व्रत कैसे किया जाता है?#शनि देव के कितने व्रत रखने चाहिए?#शनि देव को कैसे खुश करें?#शनि देव व्रत में क्या खाएं?#शनि महाराज को क्या क्या चढ़ता है?#शनिदेव का व्रत रखने से क्या फल मिलता है?#शनिदेव की पूजा करते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए?#शनिदेव को क्या क्या पसंद है?#शनिवार का उद्यापन कैसे करें?#शनिवार का व्रत कब खोलना चाहिए?#शनिवार के दिन क्या खरीदना चाहिए?#शनिवार के दिन सोना खरीद सकते हैं क्या?#शनिवार को कौन सा काम नहीं करना चाहिए?#शनिवार को क्या क्या चीज नहीं खाना चाहिए?#शनिवार को खिचड़ी क्यों खाना चाहिए?#शनिवार को गाय को क्या खिलाना चाहिए?#शनिवार को सफाई करने से क्या होता है?#सोम मंगल शुक्र शनिवार के व्रत को क्या कहा जाता है?
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khutkhuta · 2 years
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शनिवार को इस तरह करें व्रत पूजा
शनिवार को इस तरह करें व्रत पूजा
शनिवार को अधिपति देव शनि देवता का दिन कहा जाता है । शनि देवता व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं, इसीलिए इन्हें न्याय का देवता कहा जाता है। कहते हैं की शनि की द्रष्टि जिस मनुष्य पर पड जाए या तो वो राजा बन जाता है या बिलकुल रंक। शनि की महादशा का सामना कर रहे व्यक्तियों को शनिवार का व्रत रखना चाहिए क्योंकि अगर कर्मों के फलदाता आपके पूजा से खुश हैं, तो आपके जीवन से दुखों का अंत हो…
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everynewsnow · 3 years
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शनिदेव आप पर नाराज है या प्रसन्न, इन आसान लक्षणों से पहचानें
शनिदेव आप पर नाराज है या प्रसन्न, इन आसान लक्षणों से पहचानें
शनि के कृपा पात्र होते हैं ये लोग: ऐसी पहचान … सनातन धर्म में हर देवता का सप्ताह में एक निश्चित दिन माना गया है। साथ ही ये भी माना जाता है कि उस दिन के अनुसार निश्चित किए गए देवता की उनके ही दिन पूजा करने से वे जल्द प्रसन्न भी हो जाते हैं। ऐसे में नवग्रहो में सबसे क्रूर ग्रह शनि देव का दिन शनिवार माना जाता है। शनिदेव का प्रकोप का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी दशा को तो छोड़िये उनका…
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countryconnect · 2 years
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Shanidev: पीपल की पूजा करने से क्‍यों मिट जाता है शनि का प्रकोप?
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Shanidev: शनिदेव को न्यायकर्ता कहा जाता है. वे व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं. यदि शनि किसी से प्रसन्न हों तो उस व्यक्ति के जीवन में किसी तरह की कमी नहीं रहती. वहीं यदि शनि किसी से नाराज हो जाएं तो उसे शारीरिक, आर्थिक और मानसिक, तीनों तरह से प्रताड़ित करते हैं. ऐसे व्यक्ति को जीवन में तमाम कष्ट झेलने पड़ते हैं. लेकिन अगर ऐसे कष्ट के समय समय में व्यक्ति पीपल के वृक्ष की पूजा करे तो उसके जीवन से शनि से जुड़ी पीड़ा समाप्त हो जाती है. शनिवार के दिन पीपल की पूजा करने से शनिदेव से जुड़े कष्टों से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है. शनिदेव से खुद कहा है कि जो भी व्यक्ति पीपल की पूजा करेगा, पीपल को स्पर्श करेगा, उसके सारे मनोरथ सिद्ध होंगे. उसे कभी शनि से जुड़े कष्ट नहीं झेलने पड़ेंगे. जब किसी इंसान पर शनिदेव की महादशा चल रही होती है तो उसे पीपल की पूजा का उपाय जरूर बताया जाता है। कई बार मन में यह सवाल उठता है कि ब्रम्‍हांड के सबसे शक्तिशाली और क्रूर ग्रह शनि का क्रोध मात्र पीपल वृक्ष की पूजा करने से कैसे शान्‍त हो जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं शनि और पीपल से सम्‍बंधित वह पौराणिक कथा जिसके बारे में आपने शायद ही पहले कभी सुना हो।पुराणों की माने तो एक बार त्रेता युग मे अकाल पड़ गया था । उसी युग मे एक कौशिक मुनि अपने बच्च��� के साथ रहते थे । बच्चो क��� पेट न भरने के कारण मुनि अपने बच्चो को लेकर दूसरे राज्य मे रोज़ी रोटी के लिए जा रहे थे। रास्ते मे बच्चो का पेट न भरने के कारण मुनि ने एक बच्चे को रास्ते मे ही छोड़ दिया था । बच्चा रोते रोते रात को एक पीपल के पेड़ के नीचे सो गया था तथा पीपल के पेड़ के नीचे रहने लगा था। तथा पीपल के पेड़ के फल खा कर बड़ा होने लगा था। तथा कठिन तपस्या करने लगा था। एक दिन ऋषि नारद वहाँ से जा रहे थे । नारद जी को उस बच्चे पर दया आ गयी तथा नारद जी ने उस बच्चे को पूरी शिक्षा दी थी तथा विष्णु भगवान की पूजा का विधान बता दिया था। अब बालक भगवान विष्णु की तपस्या करने लगा था । एक दिन भगवान विष्णु ने आकर बालक को दर्शन दिये तथा विष्णु भगवान ने कहा कि हे बालक मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूँ। आप कोई वरदान मांग लो। बालक ने विष्णु भगवान से सिर्फ भक्ति और योग मांग लिया था । अब बालक उस वरदान को पाकर पीपल के पेड़ के नीचे ही बहुत बड़ा तपस्वी और योगी हो गया था।एक दिन बालक ने नारद जी से पूछा कि हे प्रभु हमारे परिवार की यह हालत क्यो हुई है । मेरे पिता ने मुझे भूख के कारण छोड़ दिया था और आजकल वो कहा है। नारद जी ने कहा बेटा आपका यह हाल शानिमहाराज ने किया है । देखो आकाश मे यह शनैश्चर दिखाई दे रहा है । बालक ने शनैश्चर को उग्र दृष्टि से देखा और क्रोध से उस शनैश्चर को नीचे गिरा दिया । उसके कारण शनैश्चर का पैर टूट गया । और शनि असहाय हो गया था। शनि का यह हाल देखकर नारद जी बहुत प्रसन्न हुए। नारद जी ने सभी देवताओ को शनि का यह हाल दिखाया था। शनि का यह हाल देखकर ब्रह्मा जी भी वहाँ आ गए थे । और बालक से कहा कि मैं ब्रह्मा हूँ आपने बहुत कठिन तप किया है। आपके परिवार की यह दुर्दशा शनि ने ही की है । आपने शनि को जीत लिया है। आपने पीपल के फल खाकर जीवंन जीया है । इसलिए आज से आपका नाम पिपलाद ऋषि के नाम जाना जाएगा।और आज से जो आपको याद करेगा उसके सात जन्म के पाप नष्ट हो जाएँगे। तथा पीपल की पूजा करने से आज के बाद शनि कभी कष्ट नहीं देगा । ब्रह्मा जी ने पिपलाद बालक को कहा कि अब आप इस शनि को आकाश मे स्थापित कर दो। बालक ने शनि को ब्रह्माण्ड मे स्थापित कर दिया। तथा पिपलाद ऋषि ने शनि से यह वायदा लिया कि जो पीपल के वृक्ष की पूजा करेगा उसको आप कभी कष्ट नहीं दोगे। शनैश्चर ने ब्रह्मा जी के सामने यह वायदा ऋषि पिपलाद को दिया था। उस दिन से यह परंपरा है जो ऋषि पिपलाद को याद करके शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करता है उसको शनि की साढ़े साती , शनि की ढैया और शनि महादशा कष्ट कारी नहीं होती है। शनि की पूजा और व्रत शनि की पूजा और व्रत एक वर्ष तक लगातार करनी चाहिए। शनि कों तिल और सरसो का तेल बहुत पसंद है इसलिए तेल का दान भी शनिवार को करना चाहिए। पूजा करने से तो दुष्ट मनुष्य भी प्रसन्न हो जाता है। 1. हर शनिवार को पीपल के पेड़ की जड़ को स्पर्श करके प्रणाम करें और शाम के समय सरसों के तेल का दीपक जलाएं और 5 या 9 बार पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करें. ऐसा करने से शनि से जुड़े सारे कष्ट दूर होते हैं. परिवार में सुख समृद्धि आती है. 2. गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूं. श्रीकृष्ण भगवान को शनिदेव अपना इष्टदेव मानते हैं. ऐसे में वे पीपल की पूजा से अत्यंत प्रसन्न होते हैं. यदि आपकी नौकरी में समस्या आ रही है, या सफल नहीं हो पा रहे हैं तो आप हर शनिवार को दूध में गुड़ और पानी मिलाकर पीपल में डालें. आप चाहें तो ये काम रोजाना भी कर सकते हैं. ऐसा करने से व्यक्ति तेजी से सफलता की सीढ़ी चढ़ता है. 3. शनिवार को पीपल का एक पत्ता उठाकर घर लाएं. उस पर इत्र लगाएं और इस पत्ते को अपने पर्स में रख लें. हर महीने पत्ते को बदल लें. ऐसा करने से धन की कभी कोई कमी नहीं रहती है. 4. किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति चाहते हैं तो किसी पुराने पीपल के पेड़ के पास जाएं. इस दौरान अपने साथ लाल पेन, थोड़ा लाल कपड़ा और कलावा ले जाएं. साथ में आटे से बना घी का दीपक लेकर जाएं. पीपल के नीचे घी का दीपक जलाएं और सामने खड़े होकर हनुमान चालीसा का पाठ करें. इसके बाद एक पीपल का पत्ता बिना तोड़े उस पर अपनी कामना को लिखें और पेड़ की डाली पर सात बार कलावा लपेटें. उस कलावे को अपने हा�� पर भी लपेटें. इसके बाद पीपल के पेड़ के पास से थोड़ी सी मिट्टी लें और इसे लाल कपड़े में लपेट लें. फिर इस लाल कपड़े में बंधी मिट्टी को लाकर उस स्थान पर रख दें, जहां आप धन रखते हैं. इससे घर में काफी समृद्धि आती है और हर मनोकामना पूरी हो जाती है. Read the full article
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kisansatta · 4 years
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Shani Jayanti 2020: जानिए शनि जयंती पर कैसे करें पूजा
शनि जयंती 22 मई को है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, शनि जयंती प्रति वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाई जाती है। शनि जयंती हिंदू पंचांग के ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाई जाती है। इस दिन शनिदेव की पूजा की जाती है। विशेषकर शनि की साढ़े साती, शनि की ढ़ैय्या आदि शनि दोष से पीड़ित जातकों के लिये इस दिन का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। शनि राशिचक्र की दसवीं व ग्यारहवी राशि मकर और कुंभ के अधिपति हैं। एक राशि में शनि लगभग 18 महीने तक रहते हैं। शनि का महादशा का काल भी 19 साल का होता है।धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से शनि का महत्वपूर्ण स्थान है। आस्था के दृष्टि से देखें तो शनि को देवता की संज्ञा दी गई है और ज्योतिष में इसे एक क्रूर ग्रह माना गया है।
शनिदेव को भगवान सूर्य और उनकी पत्‍नी छाया की संतान माना जाता है। वैसे तो 9 ग्रहों के परिवार में इन्‍हें सबसे क्रूर ग्रह माना जाता है। लेकिन असल में शनि न्‍याय और कर्मों के देवता हैं। यदि आप किसी के साथ धोखाधड़ी नहीं करते और किसी पर कोई जुल्म या अत्याचार नहीं करते यानी किसी भी बुरे काम में नहीं हैं तो आपको शनि से घबराने की आवश्‍यकता नहीं है। शनिदेव भले मानुषों का कभी बुरा नहीं करते।शनि जिन्हें कर्मफलदाता माना जाता है। दंडाधिकारी कहा जाता है, न्यायप्रिय माना जाता है। जो अपनी दृष्टि से राजा को भी रंक बना सकते हैं। हिंदू धर्म में शनि देवता भी हैं और नवग्रहों में प्रमुख ग्रह भी जिन्हें ज्योतिषशास्त्र में बहुत अधिक महत्व मिला है। शनिदेव को सूर्य का पुत्र माना जाता है। मान्यता है कि ज्येष्ठ माह की अमावस्या को ही सूर्यदेव एवं छाया (संवर्णा) की संतान के रूप में शनि का जन्म हुआ। आइए जानते हैं शनि जयंती का मुहूर्त और इसके जन्म से जुड़ी महत्वपूर्ण कथा।
शनि जयंती 2020 मुहूर्त-
अमावस्या तिथि आरंभ – 21:35 बजे (21 मई 2020) अमावस्या तिथि समाप्त – 23:07 बजे (22 मई 2020) 
शनि ग्रह के जन्म से जुड़ी कथा-
शनि और सूर्य देव के बीच कट्टर शत्रुता है। जबकि इन दोनों के बीच पिता-पुत्र का संबंध है। सूर्य देव शनि के पिता हैं। सवाल ये है कि पिता-पुत्र का संबंध होने के बावजूद इन दोनों के बीच इतनी गहरी दुश्मनी क्यों है। इसका जवाब हमें पौराणिक कथाओं में मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है-कहते हैं सूर्य देव का विवाह संज्ञा के साथ हुआ था। लेकिन सूर्यदेव का तेज इतना था कि संज्ञा उनके इस तेज को सहन नहीं कर पाती थीं।
समय बीतता गया और धीरे-धीरे संज्ञा सूर्य देव के विशाल तेज को सहन करती गईं। दोनों की वैवस्त मनु, यम और यमी नामक संतानें भी हुईं। लेकिन अब संज्ञा के लिए सूर्य देव का तेज सहना मुश्किल होने लगा। ऐसे में उन्हें एक उपाय सूझा। उपाय था कि संज्ञा अपनी परछाई छाया को सूर्यदेव के पास छोड़ कर चली जाए। संज्ञा ने ऐसा ही किया। इस दौरान सूर्यदेव को भी छाया पर जरा भी संदेह नहीं हुआ। दोनों खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करने लगे। दोनों से सावर्ण्य मनु, तपती, भद्रा एवं शनि का जन्म हुआ।
उधर जब शनि छाया के गर्भ में थे तो छाया तपस्यारत रहती थीं और व्रत उपवास भी खूब किया करती थीं। कहते हैं कि उनके अत्यधिक व्रत उपवास करने से शनिदेव का रंग काला हो गया। जब शनि का जन्म हुआ तो सूर्य देव अपनी इस संतान को देखकर हैरान हो गए। उन्होंने शनि के काले रंग को देखकर उसे अपनाने से इंकार कर दिया और छाया पर आरोप लगाया कि यह उनका पुत्र नहीं हो सकता, लाख समझाने पर भी सूर्यदेव नहीं माने। स्वयं और अपनी माता के अपमान ��े कारण शनि देव सूर्य देव से शत्रु का भाव रखने लगे। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब किसी व्यक्ति कीकुंडली में शनि और सूर्य एक ही भाव में बैठे हों तो उस व्यक्ति के अपने पिता या अपने पुत्र से कटु संबंध रहेंगे। शनि देव भगवान शिव के भक्त हैं। उन्हें न्याय का देवता कहा जाता है।
शनि पूजा की विधि-
शनिदेव की पूजा करने के लिये कुछ अलग नहीं करना होता। इनकी पूजा भी अन्य देवी-देवताओं की तरह ही होती है। शनि जयंती के दिन उपवास भी रखा जाता है। व्रती को प्रात:काल उठने के पश्चात नित्यकर्म से निबटने के पश्चात स्नानादि से स्वच्छ होना चाहिये। इसके पश्चात लकड़ी के एक पाट पर साफ-सुथरे काले रंग के कपड़े को बिछाना चाहिये। कपड़ा नया हो तो बहुत अच्छा अन्यथा साफ अवश्य होना चाहिये। फिर इस पर शनिदेव की प्रतिमा स्थापित करें। यदि प्रतिमा या तस्वीर न भी हो तो एक सुपारी के दोनों और शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाये। इसके पश्चात धूप जलाएं। फिर इस स्वरूप को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से स्नान करवायें। सिंदूर, कुमकुम, काजल, अबीर, गुलाल आदि के साथ-साथ नीले या काले फूल शनिदेव को अर्पित करें। इमरती व तेल से बने पदार्थ अर्पित करें। श्री फल के साथ-साथ अन्य फल भी अर्पित कर सकते हैं। पंचोपचार व पूजन की इस प्रक्रिया के बाद शनि मंत्र की एक माला का जाप करें। माला जाप के बाद शनि चालीसा का पाठ करें। फिर शनिदेव की आरती उतार कर पूजा संपन्न करें।
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🙏🙏🕉🌹🌹October 19 शुभ शनिवार :ॐ शं शनैचराय नमः, ॐ हं हनुमते नमः❣प्रेम से बोलो जय श्री राम, दोड़ के आएंगे हनुमान अगर कोई शनि की पीड़ा है तो उसे अवश्य दूर करेंगे श्री हनुमान ❣❣ हनुमानजी की पूजा से शांत रहते हैं शनिदेव... हनुमानजी की पूजा करने से दुख और भय दूर होते हैं और शनिदेव भी अपनी कृपा बनाए रखते हैं. शास्त्रों की मानें तो शनिदेव ने हनुमानजी को वचन दिया था कि जो इंसान उनका ध्यान करेगा उसकी वह हमेशा रक्षा करेंगे... हनुमानजी की पूजा से शांत रहते हैं शनिदेव... शनि पूजा का शुभ दिन है शनिवार हनुमानजी को बल, बुद्धि, विद्या, शौर्य और निर्भयता का प्रतीक माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार अगर किसी भी संकट या परेशानी में संकटकाल हनुमानजी को याद किया जाए तो वह उस विपदा को हर लेते हैं और इसी लिए संकटमोचन कहा गया है.🌹 शनिग्रह को शांत करने के लिए करें बजरंगबली की पूजा बजरंगबली ने शनि महाराज को कष्टों से मुक्त कराया था और उनकी रक्षा की थी इसलिए शनि देवता ने यह वचन दिया था हनुमानजी की उपासना करने वालों को वे कभी कष्ट नहीं देंगे. शनि या साढ़ेसाती की वजह से होने वाले कष्टों के निवारण हेतु हनुमानजी की आराधना करनी चाहिए.🌹 ऐसे करें हनुमानजी की पूजा बजरंगबली की पूजा से शनि का प्रकोप शांत होता है. सूर्य व मंगल के साथ शनि की शत्रुता व योगों के कारण उत्पन्न कष्ट भी दूर हो जाते हैं. हनुमान जयंती के अलावा मंगलवार-शनिवार हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए आदर्श दिन माने गए हैं. यह दोनों दिन उन्हें प्रिय हैं.🌹 कैसे करें मंगलवार-शनिवार के दिन पूजा..... 🕉 - मंगलवार-शनिवार को सूर्योदय के समय नहाकर श्री हनुमते नमः मंत्र का जप करें. - मंगलवार-शनिवार को सुबह तांबे के लोटे में जल और सिंदूर मिश्रित कर श्री हनुमानजी को अर्पित करें. - लगातार दस मंगलवार-शनिवार तक श्री हनुमान को गुड़ का भोग लगाएं. - हर मंगलवार-शनिवार को श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें. - 10 मंगलवार-शनिवार तक श्री हनुमान के मंदिर में जाकर केले का प्रसाद चढ़ाएं. - चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर श्री हनुमान को अर्पित करें. यह उपाय 3 मंगलवार-शनिवार के दिन करने से शीघ्र सफलता मिलती है. : 🌹🌹🕉🙏🙏 https://www.instagram.com/p/B3yA3ZQg7BR/?igshid=15ai7ep7ce3fa
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rudrjobdesk · 2 years
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मेष से लेकर मीन राशि तक वाले शनिवार को जरूर करें ये छोटा सा उपाय, कभी नहीं पड़ेगा शनि का अशुभ प्रभाव
मेष से लेकर मीन राशि तक वाले शनिवार को जरूर करें ये छोटा सा उपाय, कभी नहीं पड़ेगा शनि का अशुभ प्रभाव
शनि के अशुभ प्रभावों से हर कोई भयभीत रहता है। शनि के अशुभ होने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष में 12 राशियों का वर्णन है। हर राशि पर शनि का शुभ- अशुभ प्रभाव पड़ता है। शनि के अशुभ होने पर जहां व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वहीं शनि के शुभ होने पर व्यक्ति का सोया हुआ भाग्य भी जाग जाता है। शनि के अशुभ प्रभावों से दूर रहने के लिए शनिवार के दिन…
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vedicvaani · 5 years
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Shani Jayanti​  3rd June 2019
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 शनि जयंती 03 जून को यानी आज मनाई जा रही है, यह हर वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाई जाती है। इस तिथि को शनिदेव जी का जन्म हुआ था। इस दिन अगर हम विधि विधान से पूजा अर्चना करें तो शनिदेव जल्द प्रसन्न होंगे और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करेंगे। ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा जी आज हमें बता रहे हैं कि शनि जयंती के दिन कैसे पूजा-अर्चना करनी चाहिए ताकि शनिदेव से मनोवांछित फल की प्राप्ति की जा सकें।
बीज मंत्र - ॐ शं शनैश्चराय नम: मंत्र - ॐ प्रां. प्रीं. प्रौ. स: शनैश्चराय नम:
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ivxtimes · 4 years
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मंगलवार को करें ये खास उपाय Image Source : INSTAGRAM/DEVGYAN.IN/
श्रावण शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि और मंगलवार का दिन है। प्रतिपदा तिथि रात 9 बजकर 25 मिनट तक रहेगी। जैसे सावन में सोमवार का महत्त्व होता है कुछ वैसा ही सावन में मंगलवार का भी महत्त्व होता है। सावन महीने में पड़ने वाले मंगलवार को भौम व्रत किया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा के मंगला गौरी स्वरूप की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखकर देवी मंगला गौरी की पूजा करने से जातक को सभी प्रकार की समस्यायों से छुटकारा मिलता है और सुख समृद्धि में वृद्धि होती है।  
शाम 5 बजकर 34 मिनट तक वज्र योग रहेगा। इस योग में वाहन आदि नहीं खरीदे जाते हैं अन्यथा उससे हानि या दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है। इस योग में सोना खरीदने से फायदा नहीं होता और यदि कपड़ा खरीदा जाए तो वह जल्द ही फट जाता है या खराब निकलता है। इसके आलावा वज्र योग के स्वामी मंगल हैं और आज दोनों चीज़ें एक साथ पड़ने से ये दिन खास हो गया है। 
साथ ही आज रात 8 बजकर 30 मिनट तक पुष्य नक्षत्र रहेगा। सत्ताईस नक्षत्रों की श्रेणी में से पुष्य आठवां नक्षत्र है। यह एक शुभ नक्षत्र है। इस नक्षत्र के दौरान शुभ कार्य करने से सफलता मिलती है। इस नक्षत्र के स्वामी शनिदेव है। पुष्य का अर्थ होता है- पोषण करने वाला। साथ ही पुष्य नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह गाय के थन को माना जाता है, जबकि वनस्पतियों में इसका संबंध पीपल के पे��़ से बताया गया है। लिहाजा जिन लोगों का जन्म पुष्य नक्षत्र ��ें हुआ हो उन लोगों को आज के दिन कम से कम एक पीपल का पेड़ लगाना चाहिए।
मंगलवार के दिन भौम व्रत, मंगला गौरी पूजा, वज्र योग और पुष्य नक्षत्र के संयोग में किये जाने वाले उपायों के बारे में। जानिए आचार्य इंदु प्रकाश से।
अगर आपकी सेहत में लगातार उतार-चढ़ाव बने रहते हैं, जिसके चलते आप अपने काम को समय पर नहीं कर पाते हैं, तो आज के दिन आपको सुबह स्नान आदि के उपरांत संकट नाशक हनुमानाष्टक का 7 बार पाठ करना चाहिए।
अगर आप जीवन में खूब तरक्की पाना चाहते हैं, सफलता के शिखर पर पहुंचना चाहते हैं, तो आज मंगलवार के दिन हनुमान मन्दिर की छत पर सवा दो हाथ लंबी लाल रंग की पताका लगानी चाहिए। साथ ही इस मंत्र का 11 बार जप करना चाहिए। मंत्र है- ऊँ नमो भगवते पंचवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रूं रूं रूं रूं रूं रुद्रमूर्तये सकलजन वशकराय स्वाहा।।
आज के दिन ऐसा करने से आप जीवन में खूब तरक्की करेंगे।
राशिफल 21 जुलाई: वृष राशि वालों की किस्मत होगी साथ, बाकी राशियों का ऐसा रहेगा हाल
 अगर आप अपने जीवन में हर प्रकार की बाधाओं से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो आज के दिन देवी मां को लाल रंग की पोशाक चढ़ाएं। अगर पूरी पोशाक न चढ़ा पायें, तो केवल लाल चुनरी ही चढ़ाएं। साथ ही दुर्गा जी के इस मंत्र का पांच बार जप करें। मंत्र है-   'सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः।|'
आज के दिन ऐसा करने से आपको अपने जीवन में हर प्रकार की बाधाओं से छुटकारा मिलेगा। .
अगर आपके बिजनेस का फ्लो धीमी गति से चल रहा है तो उस फ्लो को फिर से बढ़ाने के लिये आज के दिन पुष्य नक्षत्र के दौरान पीपल का एक पत्ता लेकर आएं। अब उस पत्ते पर बींचो-बीच काले स्कैच पेन से एक बिन्दु बनाएं और उस बिन्दु को 5 मिनट तक लगातार देखते रहें। इसके बाद उस पत्ते को नदी में बहा दें, और शनि के इस मंत्र का जाप करें। मन्त्र है- 'ऊँ श्रीं ह्रीं शं शनैश्चराय नमः। आज के दिन ऐसा करने से आपके बिजनेस का फ्लो फिर से बढ़ने लगेगा।
अगर आप अपने घर की सुख-सम्पदा में स्थायी रूप से बढ़ोत्तरी करना चाहते हैं तो आज के दिन पुष्य नक्षत्र के दौरान आपको इस मंत्र का जाप करना चाहिए, जाप के लिये मंत्र इस प्रकार है-
'ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः। आज के दिन ऐसा करने से आपके घर की सुख-सम्पदा में स्थायी रूप से बढ़ोत्तरी होगी। 
कैसे हर आर्थिक समस्या से निलकेंगे बाहर? अगर आप हर तरह के सुख-साधनों और आरोग्य की प्राप्ति करना चाहते हैं, तो आज के दिन सुबह स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनकर देवी दुर्गा के इस मंत्र का 11 बार जप करें। मंत्र है-
'देहि सौभाग्य मारोग्यं देहि मे परमं सुखम्
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषों जहि।|' इस प्रकार मंत्र जप करने के बाद देवी मां को प्रणाम करें। आज के दिन ऐसा करने से आपको हर तरह के सुख-साधनों और आरोग्य की प्राप्ति होगी। 
अंधे के समान होता है इस एक चीज की पहचान न करने वाला मनुष्य, जरा सी चूक पड़ सकती है भारी
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हनुमान जी
अगर आप कुछ-कुछ दिनों के अंतराल में अपने आपको आर्थिक समस्याओं से घिरा पाते हैं और अब इस स्थिति से जल्द से जल्द बाहर निकलना चाहते हैं, तो अपनी डांवाडौल आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिये आज के दिन आपको हनुमान जी के इस मंत्र का जाप करना चाहि���। मंत्र इस प्रकार है-"ऊँ हं हनुमते नमः।" सआज के दिन हनुमान जी के इस मंत्र का 21 बार जाप करने से भी आपकी डांवाडौल आर्थिक स्थिति पहले की अपेक्षा बेहतर होगी और साथ ही आपको धन लाभ के अवसर भी प्राप्त होंगे।
 अगर आप अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाना चाहते हैं और एक कामयाब इंसान बनना चाहते हैं, तो आज के दिन मंदिर में भगवान को पीले फूल और फल अर्पित करें। साथ ही घी का दीपक जलाएं। आज के दिन ऐसा करने से आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी और आप एक कामयाब इंसान बनेंगे। 
अगर आपके घर-परिवार में किसी प्रकार की निगेटिविटी बनी हुई है, जिसके चलते सबका मन अशांत हो गया है, तो आज मंगलवार के दिन आपको श्री हनुमान के इस मंत्र का 11 बार जप करना चाहिए। मंत्र है- ॐ नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रौं ह्रः सकल भूत प्रमथनाय स्वाहा।|
इस प्रकार मंत्र जप के बाद हनुमान जी को पुष्प अर्पित करें। आज के दिन ऐसा करने से आपके घर-परिवार में चल रही परेशानी दूर होगी और सबका मन शांत रहेगा। 
अगर आपको जीवन में किसी चीज़ का भय बना रहता है, कोई नया काम शुरू करने से आपको डर लगता है, तो आज के दिन आपको सुबह स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनकर देवी दुर्गा की विधि-पूर्वक धूप-दीप आदि से पूजा करनी चाहिए और पूजा के समय ही एक एकाक्षी नारियल लेकर, उस पर सात बार मौली लपेटकर देवी मां के सामने रखना चाहिए। पूजा के बाद उस  सकाक्षी नारियल को वहां से उठाकर अपने पास रख लें। आज के दिन ऐसा करने से आप जल्द ही अपने भय पर काबू पा लेंगे। 
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moneycontrolnews · 4 years
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शनिदेव का नाम जब भी आता है तो सभी के मन में डर हो जाता है। लेकिन आपको बता दें की शनि महाराज सभी को बुरा परिणाम नहीं दिखाते, वे मनुष्य के कर्मों के अनुसार ही परिणाम दिखाते हैं।   पढ़ें ये खबर- क्या आप पर भी है शनि की कुदृष्टि तो करें ये उपाय, जानें कैसे पड़ती है टेढ़ी नजर   ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनिदेव की टेढ़ी नजर पड़ने पर व्यक्ति के लिये बहुत बुरा माना जाता है। शनि की अशुभ दृष्टि पड़ने पर व्यक्ति का मानसिक, शारीरिक और आर्थिक तीनों में बहुत कष्ट मिलता है। शनि की चाल, साढ़ेसाती, शनि की ढैय्या शनि के राशि परिवर्तन से सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। साल 2020 में 24 जनवरी को शनिदेव राशि परिवर्तन कर रहे हैं। जिसके अनुसार शनिदेव सभी राशियों पर प्रभाव डालेंगे और कुछ राशियों पर साढ़ासाती लगेगी। कुछ राशियों पर ढैय्या तो कुछ राशियों को इससे लाभ भी मिलेगा। 24 जनवरी से कुंभ राशि वालों की साढ़ेसाती शुरु होगी। इसके साथ ही तुला और मिथुन राशि वाले जातकों की ढैय्या शुरु हो जाएगी। लेकिन क्या आपको पता है शनि की अशुभ छाया सिर्फ एक राशि से दूसरी राशि में गोचर के कारण ही नहीं होती बल्कि कुछ अन्य कारणों से भी पड़ती है। आइए जानते हैं शनि की अशुभ छाया के कारण...   शनि की पूजा में ना करें तांबे के बर्तन का इस्तेमाल सामान्यतः जब भी हम कोई पूजा करते हैं तो तांबे के लोटे का उपयोग करते हैं। लेकिन आपको बता दें कि शनिदेव की पूजा में कभी तांबे के लोटे का उपयोग नहीं करना चाहिये। क्योंकि तांबा सूर्य की धातु मानी जाती है और सूर्य देव को शनि का पिता माना जाता है और शनिदेव अपने पिता सूर्य से बैर रखते हैं। इसके पीछे एक कथा भी छिपी है। इसलिये शनिदेव की पूजा में तांबे की जगह लोहे या फिर मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल करें।   शनिदेव की पूजा में ना करें लाल रंग का उपयोग शनिदेव की पूजा करते समय कभी भी किसी लाल चीज का उपयोग नहीं करना चाहिये। क्योंकि लाल रंग मंगल ग्रह से संबंधित होता है और मंगल ग्रह से शनिदेव की शत्रुता है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिये काले और नीले रंग की चीजों का इस्तेमाल करने चाहिये। कभी भी शनिदेव को लाल चीजें जैसे लाल कपड़े, लाल फूल और फल नहीं चढ़ाना चाहिये।   शनिदेव की पूजा में दिशा का रखें ध्यान शनिदेव की पूजा करते समय दिशा का हमेशा ध्यान रखना चाहिये। क्योंकि शनिदेव पश्चिम दिशा के स्वामी माने जाते हैं और शनिदेव की पूजा करते समय हमेशा अपना मुंह पश्चिम दिशा में रखना चहिये। अगर आप पश्चिम दिशा के अलावा किसी दिशा में अपना मुंह रखकर पूजा करते हैं तो आप पर शनि की अशुभ छाया पड़ती है।   कभी शनिदेव की आंखों में आंखे ना डालें जब भी हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो हम भगवान की आंखों में आंखे डालकर प्रार्थना करते हैं। लेकिन जब भी आप शनिदेव के दर्शन करने जायें तो एक बात का हमेशा ध्यान रखें की शनिदेव की आंखों में आंखें कभी ना डालें क्योंकि ऐसा करने से शनि की टेढ़ी नजर व्यक्ति पर पड़ती है और उसका अनिष्ट शुरु हो जाता है। source https://www.patrika.com/religion-news/shani-rashi-parivartan-24-january-ashubh-chaya-reasons-on-person-5618324/
http://poojakamahatva.blogspot.com/2020/01/blog-post_95.html
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bhaktipravah-blog · 6 years
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शनिदेव की पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए करें इस स्त्रोत का पाठ नमस्कार दोस्तों, आज की चर्चा में हम आपको बताएँगे की कैसे आप भी शनिदेव की पीड़ा से मुक्ति पा सकते है वो भी एक दम आसान से और प्रभावशाली उपायों से. शनिदेव ईमानदार लोगों के लिए यश, धन, पद और सम्मान का ग्रह है। शनि देव संतुलन एवं न्याय के ग्रह हैं। शनि देव अर्थ, धर्म, कर्म और न्याय के प्रतीक हैं। शनि देव ही धन-संपत्ति, वैभव और मोक्ष भी देते हैं। कहते हैं शनि देव पापी व्यक्तियों के लिए अत्यंत कष्टकारक हैं। शनि की दशा आने पर जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं, जिससे जीवन पूरी तरह से डगमगा सकता है परंतु शनि देव कुछ लोगों को अत्यंत शुभ और श्रेष्ट फल देते है। तो आइए जानते हैं शनि देव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा दृष्टि पाने के लिए कौनसे उपाय करने चाहिए. इन्द्रनीलद्युति: शूली वरदो गृध्रवाहन:। बाणबाणासनधर: कर्तव्योर्कसुतस्तथा।। अर्थात – सूर्यपुत्र शनिदेव के शरीर की कान्ति इन्द्रनीलमणि की-सी है। वे गीध पर सवार होते हैं और हाथ में धनुष-बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण किए रहते हैं। दण्डाधिकारी (न्यायाधीश) हैं शनिदेव शनिदेव दण्डनायक ग्रह हैं। मनुष्य हो या देव, पशु हो या पक्षी, राजा हो या रंक, प्राणी का कर्म इस जन्म का हो पूर्वजन्म का, सबके लिए उनके कर्मानुसार दण्ड का निर्णय शनिदेव ही करते हैं। शनिदेव का सम्बन्ध नियम, नैतिकता व अनुशासन से है। इनकी अवहेलना करने पर शनिदेव की कृपा से कुपित हो जाते हैं और जीवन से सुख-चैन, खुशी व आनन्द को दूरकर दरिद्रता, दु:ख, कष्ट, झंझट व बाधाएं आदि प्रदान करते हैं। यदि शनि का दण्ड मिलते-मिलते प्राणी स्वयं में सुधार कर लेता है तो सजा की अवधि समाप्त होने पर वह उसे अपार धन-दौलत, वैभव, ऐश्वर्य, दीर्घायु और दार्शनिक चिन्तन शक्ति प्रदान करते हैं। शनि की पीड़ा दूर करने के लिए हनुमानजी की उपासना, सूर्यपूजा, शनिचालीसा का पाठ, पीपल की पूजा, नीलम व काले घोड़े की नाल की अंगूठी धारण करना आदि उपाय किए जाते हैं; किन्तु इन सबसे अधिक प्रभावशाली एक उपाय है जिससे शनिदेव की पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है, वह है राजा दशरथ द्वारा की गई शनिदेव की स्तुति का पाठ। पद्मपुराण की कथा के अनुसार एक बार राजा दशरथ को ज्योतिषियों ने बताया कि शनिदेव रोहिणी को भेद कर आगे जाने वाले हैं जिसे शकटभेद योग कहते हैं। इस कारण पृथ्वी पर बारह वर्ष का अकाल पड़ेगा। राजा दशरथ ने वशिष्ठऋषि आदि ब्राह्मणों से इससे बचने का उपाय पूछा परन्तु सबने यही कहा कि यह योग असाध्य है। इस योग के आने पर प्रजा पानी ��र अन्न के बिना तड़प-तड़प कर मर जाएगी। प्रजा को कष्ट से बचाने के लिए राजा दशरथ अपने दिव्य अस्त्र व धनुष लेकर नक्षत्रमण्डल में गए। वहां उन्होंने पहले तो प्रतिदिन की तरह शनिदेव को प्रणाम किया फिर शनिदेव को लक्ष्य करके अपने धनुष पर संहारास्त्र का संधान (निशाना लगाना) किया। राजा दशरथ के साहस को देखकर शनिदेव ने कहा - मेरी दृष्टि में आकर देव-दैत्य सब भस्म हो जाते हैं, किन्तु तुम बच गए। तुम्हारे साहस और पुरुषार्थ से मैं प्रसन्न हूं, वर मांगो। राजा दशरथ ने कहा–आप कभी शकटभेदन न करें और पृथ्वी पर कभी बारह वर्षों का अकाल न पड़ने दें और इसके बाद राजा दशरथ ने शनिदेव की स्तुति की शनि दशरथ स्त्रोतम राजा दशरथ द्वारा की गयी शनिदेव की स्तुति नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च। नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।। नमो निर्मांसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।। नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुन:। नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।। नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:। नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने।। नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते। सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।। अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते। नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तु ते।। तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च। नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।। ज्ञानचक्षु नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे। तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।। देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा:। त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।। प्रसादं कुरु मे देव वरार्होऽहमुपागत:।। (पद्मपुराण, उ. ३४।२७-३५) दशरथ स्तोत्र का हिन्दी अर्थ : जिनके शरीर का वर्ण कृष्ण, नील तथा भगवान शंकर के समान है, उन शनिदेव को नमस्कार है। जो जगत के लिए कालाग्नि एवं कृतान्तरूप हैं, उन शनैश्चर को बारम्बार नमस्कार है। जिनका शरीर कंकाल है तथा जिनकी दाढ़ी-मूंछ और जटा बढ़ी हुई हैं, उन शनिदेव को प्रणाम है। जिनके बड़े-बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट और भयानक आकार है, उन शनैश्चर को नमस्कार है। जिनके शरीर का ढांचा फैला हुआ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लम्बे-चौड़े, किन्तु सूखे शरीर वाले हैं तथा जिनकी दाढ़ें कालरूप हैं, उन शनैश्चर को बारम्बार नमस्कार है। शनिदेव! आपके नेत्र खोखले के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना कठिन है, आप घोर, रौद्र, भीषण और विकराल हैं। आपको नमस्कार है। बलीमुख! आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। सूर्यनन्दन! भास्करपुत्र! अभय देने वाले देवता! आपको प्रणाम है। नीचे की ओर दृष्टि रखने वाले शनिदेव! आपको नमस्कार है। संवर्तक! आपको प्रणाम है। मन्दगति से चलने वाले शनैश्चर! आपका प्रतीक तलवार के समान है, आपको पुन:-पुन: प्रणाम है। आपने तपस्या से अपने देह को दग्ध कर लिया है; आप सदा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं। आपको सदा नमस्कार है। ज्ञाननेत्र! आपको प्रणाम है। कश्यपनन्दन सूर्य के पुत्र शनिदेव! आपको नमस्कार है। आप संतुष्ट होने पर राज्य सुख दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्काल छीन लेते हैं। देवता, असुर, मनुष्य,सिद्ध, विद्याधर और नाग–ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। देव! मुझ पर प्रसन्न होइए। मैं वर पाने के योग्य हूँ और आपकी शरण में आया हूँ। शनिदेव ने स्वयं बताया अपनी पीड़ा से मुक्ति का उपाय राजा दशरथ ने शनिदेव से कहा कि आप किसी को पीड़ा न पहुंचायें। शनिदेव ने कहा–यह वर असंभव है क्योंकि जीवों के कर्मानुसार सुख-दु:ख देने के लिए ही ग्रहों की नियुक्ति हुई है; किन्तु मैं तुम्हें वर देता हूँ कि जो तुम्हारी इस स्तुति को पढ़ेगा, वह पीड़ा से मुक्त हो जाएगा। शनिदेव ने राजा दशरथ को पुन: वर देते हुए कहा–‘किसी भी प्राणी के मृत्युस्थान, जन्मस्थान या चतुर्थस्थान में मैं रहूं तो उसे मृत्यु का कष्ट दे सकता हूँ; किन्तु जो श्रद्धायुक्त होकर पवित्रता से मेरी लोहप्रतिमा का शमीपत्रों से पूजन करेगा और तिल मिले हुए उड़द-भात, लोहा, काली गौ या काला बैल ब्राह्मण को दान करता है और मेरे दिन (शनिवार) को हाथ जोड़कर इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे मैं कभी पीड़ा नहीं दूंगा। गोचर में, जन्मलग्न में, दशाओं में तथा अन्तर्दशाओं में ग्रहपीड़ा को दूर करके मैं उसकी सदा रक्षा करुंगा। इसी उपाय से सारा संसार मेरी पीड़ा से मुक्त हो सकता है।’ शनिदेव द्वारा स्वयं बताए गए उपायों को करके मनुष्य शनि की पीड़ा से मुक्त हो सकता है। जो लोग संस्कृत में स्तोत्र पाठ करने में असमर्थ हैं, वे हिन्दी में स्तोत्रपाठ कर सकते हैं। एकाग्रता से, श्रद्धा से व पवित्रता से की गयी हिन्दी में स्तुति का भी वही फल प्राप्त होता है जो संस्कृत में पाठ करने से होता है। क्या शनि पीड़ा को कम किया जा सकता है? इन उपायों के द्वारा साध्य पापकर्म के फल-भोग से तो मुक्ति मिल जाती है और दु:ख में कुछ कमी आ जाती है, किन्तु असाध्य पाप-कर्मों के फल-भोग में पूजा-पाठ, जप-तप भी अपना पूरा प्रभाव नहीं दिखा पाते। उन्हें तो भोगना ही पड़ता है। वे मनुष्य में सहनशक्ति दे देते हैं जिससे दु:ख ज्यादा महसूस नहीं होता। जय जय शनिदेव
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everynewsnow · 3 years
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शनिदेव आप पर नाराज है या प्रसन्न, इन आसान लक्षणों से पहचानें
शनिदेव आप पर नाराज है या प्रसन्न, इन आसान लक्षणों से पहचानें
शनि के कृपा पात्र होते हैं ये लोग: ऐसी पहचान … सनातन धर्म में हर देवता का सप्ताह में एक निश्चित दिन माना गया है। साथ ही ये भी माना जाता है कि उस दिन के अनुसार निश्चित किए गए देवता की उनके ही दिन पूजा करने से वे जल्द प्रसन्न भी हो जाते हैं। ऐसे में नवग्रहो में सबसे क्रूर ग्रह शनि देव का दिन शनिवार माना जाता है। शनिदेव का प्रकोप का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी दशा को तो छोड़िये उनका…
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