आज का पंचांग और राशियों का हाल, 20 जून 2023, मंगलवार
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
*🚩🔱ॐगं गणपतये नमः🔱🚩*
🌹 *सुप्रभात जय श्री राधे कृष्णा*🌹
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
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※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
आज आषाढ़ी गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन है। आज मां ब्रह्मचारिणी का पूजन करने का विशेष महत्व है। साथ ही आज मंगलवार मां दुर्गा का दिन भी है। अपने संकटों को दूर करने के लिए हनुमान मंदिर में बैठकर सुंदरकांड का पाठ करें। हनुमानजी को हलवे का नैवेद्य लगाएं। हनुमानजी को मीठे पान का बीड़ा भेंट करें, समस्या शीघ्र दूर होगी। आज दुर्गा मंदिर में दर्शन करें, माता को मीठा पान का बीड़ा भेंट करें और वहीं बैठकर दुर्गा चालीसा का पाठ करने से मनोकामना पूरी होती है। शत्रुओं को परास्त करने के लिए, मुकदमें में जीत या रोग दूर करने के लिए आज दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से हवन संपन्न करवाएं।
विक्रम संवत : 2080 शालिवाहन शके : 1945 मास : आषाढ़ शुक्ल पक्ष ऋतु : ग्रीष्म अयन : उत्तरायण तिथि : द्वितीया दोप 1:06 तक नक्षत्र : पुनर्वसु रात्रि 10:35 तक योग : ध्रुव रात्रि 1:46 तक करण : कौलव दोप 1:06 तक सूर्योदय : 5:43:36 सूर्यास्त : 7:12:48 दिनकाल : 13 घंटे 29 मिनट 12 सेकंड रात्रिकाल : 10 घंटे 30 मिनट 59 सेकंड चंद्रोदय : प्रात: 7:14 चंद्रास्त : रात्रि 9:18
आज की ग्रह स्थिति सूर्य राशि : मिथुन, दोपहर 3:57 से कर्क में चंद्र राशि : मिथुन मंगल : कर्क बुध : वृषभ में अस्त पूर्व में रात्रि 1:50 पर गुरु : मेष शुक्र : कर्क शनि : कुंभ वक्री राहु : मेष केतु : तुला
दिन का चौघड़िया लाभ : प्रात: 10:47 से दोप 12:28 अमृत : दोप 12:28 से 2:09
रात्रि का चौघड़िया लाभ : रात्रि 8:32 से 9:51 त्याज्य समय राहु काल : दोप 3:51 से सायं 5:32 यम घंट : प्रात: 9:06 से 10:47
आज विशेष : आज का शुभ रंग : लाल आज के पूज्य देव : हनुमान जी आज का मंत्र : ऊं हं हनुमते नम:
आज राशियों का हाल, 20 जून 2023, मंगलवार
मेष : घर-परिवार में खुशी का माहौल रहेगा हनुमान जी की कृपा से आज का दिन काफी बढ़िया रहेगा। आज आपके सारे काम वक्त पर पूरे होंगे। घर-परिवार में खुशी का माहौल रहेगा।
वृषभ : स्वास्थ्य का ध्यान रखें आज का दिन आपके लिए काफी ठीक-ठाक रहेगा। कहीं से अच्छा जॉब ऑफर मिल सकता है। स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
मिथुन : परिवार में आनंद का वातावरण रहेगा हनुमान जी की कृपा से आज का दिन आपके लिए सामान्य रहेगा। आपके परिवार में आनंद का वातावरण रहेगा। आपके सम्मान में वृद्धि होती है।
कर्क: आपको बॉस का सहयोग मिलेगा हनुमान जी की कृपा से आज का दिन आपके लिए मंगलकारी होगा। नौकरी में आपको बॉस का सहयोग मिलेगा, घर-परिवार में सब कुशल मंगल रहने वाला है।
सिंह : अटके काम वक्त पर पूरे होंगे हनुमान जी की कृपा से आज का दिन आपके लिए ठीक-ठाक रहेगा। अटके काम वक्त पर पूरे होंगे। जो आप चाहते हैं वो आपको आज मिल जाएगा।
कन्या : मित्रों संग मुलाकात हो सकती है हनुमान जी की कृपा से आज का दिन आपके लिए बढ़िया रहेगा। घर-परिवार के सुख-शांति बनी रहेगी। मित्रों संग मुलाकात हो सकती है। धन लाभ हो सकता है।
तुला : बाहर वालों से मेल-जोल बढ़ेगा हनुमान जी की कृपा से आज का दिन आपके लिए सुखद रहेगा। परिवार में शांति बनी रहेगी। अविवाहितों के विवाह की बात होगी। बाहर वालों से मेल-जोल बढ़ेगा।
वृश्चिक : पारिवारिक रिश्तों में भी मिठास रहेगी हनुमान जी की कृपा से आज का दिन आपके लिए काफी बढ़िया रहने वाला है। आपका वैवाहिक जीवन मधुर रहेगा। पारिवारिक रिश्तों में भी मिठास रहेगी ।
धनु : टीचरों के लिए दिन काफी अच्छा हनुमान जी की कृपा से आज का दिन आपके लिए अच्छा रहेगा। टीचरों के लिए दिन काफी अच्छा रहने वाला है। घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी।
मकर : आपकी मेहनत रंग लाएगी हनुमान जी की कृपा से आज का दिन आपके लिए काफी ठीक-ठाक रहेगा। आपकी मेहनत रंग लाएगी। आप जो काम लंबे वक्त से करना चाहते हैं, उसमें सफलता मिलेगी।
कुंभ: अर्थ लाभ के आसार नजर आ रहे हनुमान जी की कृपा से आज का दिन आपके लिए काफी अच्छा रहेगा। लवमेट्स के लिए दिन अच्छा रहेगा। अर्थ लाभ के आसार नजर आ रहे हैं। धनलाभ के योग हैं।
मीन: प्रमोशन के योग नजर आ रहे हनुमान जी की कृपा से आज का दिन आपके लिए अच्छा रहेगा। बिजनेस में तरक्की होगी। नौकरीपेशा लोगों को प्रमोशन के योग नजर आ रहे हैं। सुख-शांति बनी रहेगी।
समाज में तत्वज्ञान के अभाव में लोग शंका करते हैं कि कबीर साहेब जी काशी वाला जुलाहा धाणक पूर्ण परमात्मा कैसे हो सकता है? लेकिन सच्चाई तो यही है कि वेदों में कविर्देव काशी वाला जुलाहा पूर्ण परमात्मा है।
आप जी से निवेदन है सच्चाई को समझने की कोशिश करें दंत कथा पर विश्वास न करें हम हम आपको प्रमाण सहित बता रहे हैं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही सृष्टि का मालिक है
कबीर परमेश्वर जी आज से लगभग 600 साल पहले काशी शहर के लहरतारा तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398) सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे।
नीमा नामक पति-पत्नी जो हिदू से जबरन मुसलमान बना दिए थे परंतु उनकी आस्था भगवान शिव में ही थी वे प्रतिदिन लहरतारा तालाब पर स्नान करने जाते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी l एक बार नीरू नीमा स्नान करने जा रहे थे और नीमा रास्ते में भगवान शिव से प्रार्थना कर रही थी कि हे भगवान शिव आप अपने दासों को भी एक बच्चा दें दें। आप के घर में क्या कमी है भगवान हमारा भी जीवन सफल हो जाएगा। दुनिया के ताने सुन-सुन कर आत्मा बहुत दुखी हो रही है । हम से ऐसी कौन सी गलती हो गई जिस कारण मुझे बच्चे का मुख देखने को तरसना पड़ रहा है। यह
कह कर नीमा फूट-फूट कर रोने लगी तब नीरू ने धैर्य दिलाते हुए कहा हे नीमा हमारे भाग्य में संतान नहीं है यदि भाग्य में संतान होती तो भगवान शिव अवश्य संतान देते। आप रो-रो कर आंखें खराब कर लोगी। आप का बार-बार रोना मेरे से देखा नहीं जाता। यह कह कर नीरू की भी आंखें भर आईं।
जब लहरतारा तालाब पर पहुंचे तो पहले स्नान नीमा ने किया फिर नीरू स्ना�� करने लगे तो नीमा ने देखा कमल के फूल पर एक बच्चा लेट रहा है और अपने एक पैर के अंगूठे को मुंह में चूस रहा है नीरू से कहने लगी देखो जी बच्चा है डूब जाएगा नीरू ने जैसे ही देखा कमल के फूल सहित बच्चे को उठा लिया l
जब उसको घर लेकर आए तो देखने वाले भी हैरान रह गए
काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर l
कोई कहे ब्रह्मा विष्णु है कोई कहे इंद्र कुबेर ll
जब नीरू नीमा बालक रूप मैं परमात्मा को घर लेकर आए थे उस समय मुल्ला और काजी लड़के का नाम रखने के लिए कुरान शरीफ लेकर नीरू के घर गए l
काजी ने क़ुरान शरीफ़ पुस्तक को कही से खोला। उस पेज पर पहली लाइन में कबीरन् लिखा था। काजियों ने सोचा “कबीर” नाम का अर्थ बड़ा होता है। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा। यह तो ऊंचे घरानों के बच्चों के रखने योग्य है। शिशु रूपधारी परमेश्वर, काजियों के मन के दोष को जानते थे।
काजियों ने फिर कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अक्षर लिखे थे उसके अलावा कुछ नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान खोल डाली जिस भी पेज को खोलते उसी मैं कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए। काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मंत्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात अल्लाहु अकबर हूं। मेरा नाम “कबीर” ही रखो। काजियों ने अपने साथ लाई कुरान को वहीं पटक दिया तथा चले गए।
परमेश्वर की परवरिश कुंवारी गाय के दूध से हुई
जैसा वेदों मैं प्रमाण है l
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में लिखा है कि जब पूर्ण परमात्मा शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर आता है तो उसका पालन पोषण कुंवारी गाय से होता है।
अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
5 वर्ष की आयु में ही कबीर जी ने अपने लीलामय शरीर से वहां के जाने-माने संतों के साथ आध्यात्मिक विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया था। कोई भी संत या ऋषि उनके आध्यात्मिक ज्ञान का उत्तर कभी नहीं दे सके।
कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज इस धरती पर अवतरित हुए हैं आपसे निवेदन है संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर अपना कल्याण कराएं।
#KabirPrakatDiwas
#SantRampalJiMaharaj
#परमेश्वरकबीर_प्रकट दिवस2023
#AppearanceOfGodKabirInKalyug
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
समाज में तत्वज्ञान के अभाव में लोग शंका करते हैं कि कबीर साहेब जी काशी वाला जुलाहा धाणक पूर्ण परमात्मा कैसे हो सकता है? लेकिन सच्चाई तो यही है कि वेदों में कविर्देव काशी वाला जुलाहा पूर्ण परमात्मा है।
आप जी से निवेदन है सच्चाई को समझने की कोशिश करें दंत कथा पर विश्वास न करें हम हम आपको प्रमाण सहित बता रहे हैं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही सृष्टि का मालिक है
कबीर परमेश्वर जी आज से लगभग 600 साल पहले काशी शहर के लहरतारा तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398) सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे।
नीमा नामक पति-पत्नी जो हिदू से जबरन मुसलमान बना दिए थे परंतु उनकी आस्था भगवान शिव में ही थी वे प्रतिदिन लहरतारा तालाब पर स्नान करने जाते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी l एक बार नीरू नीमा स्नान करने जा रहे थे और नीमा रास्ते में भगवान शिव से प्रार्थना कर रही थी कि हे भगवान शिव आप अपने दासों को भी एक बच्चा दें दें। आप के घर में क्या कमी है भगवान हमारा भी जीवन सफल हो जाएगा। दुनिया के ताने सुन-सुन कर आत्मा बहुत दुखी हो रही है । हम से ऐसी कौन सी गलती हो गई जिस कारण मुझे बच्चे का मुख देखने को तरसना पड़ रहा है। यह
कह कर नीमा फूट-फूट कर रोने लगी तब नीरू ने धैर्य दिलाते हुए कहा हे नीमा हमारे भाग्य में संतान नहीं है यदि भाग्य में संतान होती तो भगवान शिव अवश्य संतान देते। आप रो-रो कर आंखें खराब कर लोगी। आप का बार-बार रोना मेरे से देखा नहीं जाता। यह कह कर नीरू की भी आंखें भर आईं।
जब लहरतारा तालाब पर पहुंचे तो पहले स्नान नीमा ने किया फिर नीरू स्नान करने लगे तो नीमा ने देखा कमल के फूल पर एक बच्चा लेट रहा है और अपने एक पैर के अंगूठे को मुंह में चूस रहा है नीरू से कहने लगी देखो जी बच्चा है डूब जाएगा नीरू ने जैसे ही देखा कमल के फूल सहित बच्चे को उठा लिया l
जब उसको घर लेकर आए तो देखने वाले भी हैरान रह गए
काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर l
कोई कहे ब्रह्मा विष्णु है कोई कहे इंद्र कुबेर ll
जब नीरू नीमा बालक रूप मैं परमात्मा को घर लेकर आए थे उस समय मुल्ला और काजी लड़के का नाम रखने के लिए कुरान शरीफ लेकर नीरू के घर गए l
काजी ने क़ुरान शरीफ़ पुस्तक को कही से खोला। उस पेज पर पहली लाइन में कबीरन् लिखा था। काजियों ने सोचा “कबीर” नाम का अर्थ बड़ा होता है। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा। यह तो ऊंचे घरानों के बच्चों के रखने योग्य है। शिशु रूपधारी परमेश्वर, काजियों के मन के दोष को जानते थे।
काजियों ने फिर कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अक्षर लिखे थे उसके अलावा कुछ नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान खोल डाली जिस भी पेज को खोलते उसी मैं कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए। काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मंत्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही ��दल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात अल्लाहु अकबर हूं। मेरा नाम “कबीर” ही रखो। काजियों ने अपने साथ लाई कुरान को वहीं पटक दिया तथा चले गए।
परमेश्वर की परवरिश कुंवारी गाय के दूध से हुई
जैसा वेदों मैं प्रमाण है l
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में लिखा है कि जब पूर्ण परमात्मा शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर आता है तो उसका पालन पोषण कुंवारी गाय से होता है।
अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
5 वर्ष की आयु में ही कबीर जी ने अपने लीलामय शरीर से वहां के जाने-माने संतों के साथ आध्यात्मिक विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया था। कोई भी संत या ऋषि उनके आध्यात्मिक ज्ञान का उत्तर कभी नहीं दे सके।
कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज इस धरती पर अवतरित हुए हैं आपसे निवेदन है संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर अपना कल्याण कराएं।
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आप जी से निवेदन है सच्चाई को समझने की कोशिश करें दंत कथा पर विश्वास न करें हम हम आपको प्रमाण सहित बता रहे हैं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही सृष्टि का मालिक है
कबीर परमेश्वर जी आज से लगभग 600 साल पहले काशी शहर के लहरतारा तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398) सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे।
नीमा नामक पति-पत्नी जो हिदू से जबरन मुसलमान बना दिए थे परंतु उनकी आस्था भगवान शिव में ही थी वे प्रतिदिन लहरतारा तालाब पर स्नान करने जाते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी l एक बार नीरू नीमा स्नान करने जा रहे थे और नीमा रास्ते में भगवान शिव से प्रार्थना कर रही थी कि हे भगवान शिव आप अपने दासों को भी एक बच्चा दें दें। आप के घर में क्या कमी है भगवान हमारा भी जीवन सफल हो जाएगा। दुनिया के ताने सुन-सुन कर आत्मा बहुत दुखी हो रही है । हम से ऐसी कौन सी गलती हो गई जिस कारण मुझे बच्चे का मुख देखने को तरसना पड़ रहा है। यह
कह कर नीमा फूट-फूट कर रोने लगी तब नीरू ने धैर्य दिलाते हुए कहा हे नीमा हमारे भाग्य में संतान नहीं है यदि भाग्य में संतान होती तो भगवान शिव अवश्य संतान देते। आप रो-रो कर आंखें खराब कर लोगी। आप का बार-बार रोना मेरे से देखा नहीं जाता। यह कह कर नीरू की भी आंखें भर आईं।
जब लहरतारा तालाब पर पहुंचे तो पहले स्नान नीमा ने किया फिर नीरू स्नान करने लगे तो नीमा ने देखा कमल के फूल पर एक बच्चा लेट रहा है और अपने एक पैर के अंगूठे को मुंह में चूस रहा है नीरू से कहने लगी देखो जी बच्चा है डूब जाएगा नीरू ने जैसे ही देखा कमल के फूल सहित बच्चे को उठा लिया l
जब उसको घर लेकर आए तो देखने वाले भी हैरान रह गए
काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर l
कोई कहे ब्रह्मा विष्णु है कोई कहे इंद्र कुबेर ll
जब नीरू नीमा बालक रूप मैं परमात्मा को घर लेकर आए थे उस समय मुल्ला और काजी लड़के का नाम रखने के लिए कुरान शरीफ लेकर नीरू के घर गए l
काजी ने क़ुरान शरीफ़ पुस्तक को कही से खोला। उस पेज पर पहली लाइन में कबीरन् लिखा था। काजियों ने सोचा “कबीर” नाम का अर्थ बड़ा होता है। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा। यह तो ऊंचे घरानों के बच्चों के रखने योग्य है। शिशु रूपधारी परमेश्वर, काजियों के मन के दोष को जानते थे।
काजियों ने फिर कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अक्षर लिखे थे उसके अलावा कुछ नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान खोल डाली जिस भी पेज को खोलते उसी मैं कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए। काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मंत्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात अल्लाहु अकबर हूं। मेरा नाम “कबीर” ही रखो। काजियों ने अपने साथ लाई कुरान को वहीं पटक दिया तथा चले गए।
परमेश्वर की परवरिश कुंवारी गाय के दूध से हुई
जैसा वेदों मैं प्रमाण है l
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में लिखा है कि जब पूर्ण परमात्मा शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर आता है तो उसका पालन पोषण कुंवारी गाय से होता है।
अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
5 वर्ष की आयु में ही कबीर जी ने अपने लीलामय शरीर से वहां के जाने-माने संतों के साथ आध्यात्मिक विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया था। कोई भी संत या ऋषि उनके आध्यात्मिक ज्ञान का उत्तर कभी नहीं दे सके।
कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज इस धरती पर अवतरित हुए हैं आपसे निवेदन है संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर अपना कल्याण कराएं।
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समाज में तत्वज्ञान के अभाव में लोग शंका करते हैं कि कबीर साहेब जी काशी वाला जुलाहा धाणक पूर्ण परमात्मा कैसे हो सकता है? लेकिन सच्चाई तो यही है कि वेदों में कविर्देव काशी वाला जुलाहा पूर्ण परमात्मा है।
आप जी से निवेदन है सच्चाई को समझने की कोशिश करें दंत कथा पर विश्वास न करें हम हम आपको प्रमाण सहित बता रहे हैं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही सृष्टि का मालिक है
कबीर परमेश्वर जी आज से लगभग 600 साल पहले काशी शहर के लहरतारा तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398) सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे।
नीमा नामक पति-पत्नी जो हिदू से जबरन मुसलमान बना दिए थे परंतु उनकी आस्था भगवान शिव में ही थी वे प्रतिदिन लहरतारा तालाब पर स्नान करने जाते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी l एक बार नीरू नीमा स्नान करने जा रहे थे और नीमा रास्ते में भगवान शिव से प्रार्थना कर रही थी कि हे भगवान शिव आप अपने दासों को भी एक बच्चा दें दें। आप के घर में क्या कमी है भगवान हमारा भी जीवन सफल हो जाएगा। दुनिया के ताने सुन-सुन कर आत्मा बहुत दुखी हो रही है । हम से ऐसी कौन सी गलती हो गई जिस कारण मुझे बच्चे का मुख देखने को तरसना पड़ रहा है। यह
कह कर नीमा फूट-फूट कर रोने लगी तब नीरू ने धैर्य दिलाते हुए कहा हे नीमा हमारे भाग्य में संतान नहीं है यदि भाग्य में संतान होती तो भगवान शिव अवश्य संतान देते। आप रो-रो कर आंखें खराब कर लोगी। आप का बार-बार रोना मेरे से देखा नहीं जाता। यह कह कर नीरू की भी आंखें भर आईं।
जब लहरतारा तालाब पर पहुंचे तो पहले स्नान नीमा ने किया फिर नीरू स्नान करने लगे तो नीमा ने देखा कमल के फूल पर एक बच्चा लेट रहा है और अपने एक पैर के अंगूठे को मुंह में चूस रहा है नीरू से कहने लगी देखो जी बच्चा है डूब जाएगा नीरू ने जैसे ही देखा कमल के फूल सहित बच्चे को उठा लिया l
जब उसको घर लेकर आए तो देखने वाले भी हैरान रह गए
काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर l
कोई कहे ब्रह्मा विष्णु है कोई कहे इंद्र कुबेर ll
जब नीरू नीमा बालक रूप मैं परमात्मा को घर लेकर आए थे उस समय मुल्ला और काजी लड़के का नाम रखने के लिए कुरान शरीफ लेकर नीरू के घर गए l
काजी ने क़ुरान शरीफ़ पुस्तक को कही से खोला। उस पेज पर पहली लाइन में कबीरन् लिखा था। काजियों ने सोचा “कबीर” नाम का अर्थ बड़ा होता है। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा। यह तो ऊंचे घरानों के बच्चों के रखने योग्य है। शिशु रूपधारी परमेश्वर, काजियों के मन के दोष को जानते थे।
काजियों ने फिर कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अक्षर लिखे थे उसके अलावा कुछ नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान खोल डाली जिस भी पेज को खोलते उसी मैं कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए। काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मंत्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात अल्लाहु अकबर हूं। मेरा नाम “कबीर” ही रखो। काजियों ने अपने साथ लाई कुरान को वहीं पटक दिया तथा चले गए।
परमेश्वर की परवरिश कुंवारी गाय के दूध से हुई
जैसा वेदों मैं प्रमाण है l
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में लिखा है कि जब पूर्ण परमात्मा शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर आता है तो उसका पालन पोषण कुंवारी गाय से होता है।
अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
5 वर्ष की आयु में ही कबीर जी ने अपने लीलामय शरीर से वहां के जाने-माने संतों के साथ आध्यात्मिक विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया था। कोई भी संत या ऋषि उनके आध्यात्मिक ज्ञान का उत्तर कभी नहीं दे सके।
कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज इस धरती पर अवतरित हुए हैं आपसे निवेदन है संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर अपना कल्याण कराएं।
#KabirPrakatDiwas
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#परमेश्वरकबीर_प्रकट दिवस2023
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
समाज में तत्वज्ञान के अभाव में लोग शंका करते हैं कि कबीर साहेब जी काशी वाला जुलाहा धाणक पूर्ण परमात्मा कैसे हो सकता है? लेकिन सच्चाई तो यही है कि वेदों में कविर्देव काशी वाला जुलाहा पूर्ण परमात्मा है।
आप जी से निवेदन है सच्चाई को समझने की कोशिश करें दंत कथा पर विश्वास न करें हम हम आपको प्रमाण सहित बता रहे हैं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही सृष्टि का मालिक है
कबीर परमेश्वर जी आज से लगभग 600 साल पहले काशी शहर के लहरतारा तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398) सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे।
नीमा नामक पति-पत्नी जो हिदू से जबरन मुसलमान बना दिए थे परंतु उनकी आस्था भगवान शिव में ही थी वे प्रतिदिन लहरतारा तालाब पर स्नान करने जाते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी l एक बार नीरू नीमा स्नान करने जा रहे थे और नीमा रास्ते में भगवान शिव से प्रार्थना कर रही थी कि हे भगवान शिव आप अपने दासों को भी एक बच्चा दें दें। आप के घर में क्या कमी है भगवान हमारा भी जीवन सफल हो जाएगा। दुनिया के ताने सुन-सुन कर आत्मा बहुत दुखी हो रही है । हम से ऐसी कौन सी गलती हो गई जिस कारण मुझे बच्चे का मुख देखने को तरसना पड़ रहा है। यह
कह कर नीमा फूट-फूट कर रोने लगी तब नीरू ने धैर्य दिलाते हुए कहा हे नीमा हमारे भाग्य में संतान नहीं है यदि भाग्य में संतान होती तो भगवान शिव अवश्य संतान देते। आप रो-रो कर आंखें खराब कर लोगी। आप का बार-बार रोना मेरे से देखा नहीं जाता। यह कह कर नीरू की भी आंखें भर आईं।
जब लहरतारा तालाब पर पहुंचे तो पहले स्नान नीमा ने किया फिर नीरू स्नान करने लगे तो नीमा ने देखा कमल के फूल पर एक बच्चा लेट रहा है और अपने एक पैर के अंगूठे को मुंह में चूस रहा है नीरू से कहने लगी देखो जी बच्चा है डूब जाएगा नीरू ने जैसे ही देखा कमल के फूल सहित बच्चे को उठा लिया l
जब उसको घर लेकर आए तो देखने वाले भी हैरान रह गए
काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर l
कोई कहे ब्रह्मा विष्णु है कोई कहे इंद्र कुबेर ll
जब नीरू नीमा बालक रूप मैं परमात्मा को घर लेकर आए थे उस समय मुल्ला और काजी लड़के का नाम रखने के लिए कुरान शरीफ लेकर नीरू के घर गए l
काजी ने क़ुरान शरीफ़ पुस्तक को कही से खोला। उस पेज पर पहली लाइन में कबीरन् लिखा था। काजियों ने सोचा “कबीर” नाम का अर्थ बड़ा होता है। इस छोटे जाति (जुलाहे अर्थात धाणक) के बालक का नाम कबीर रखना शोभा नहीं देगा। यह तो ऊंचे घरानों के बच्चों के रखने योग्य है। शिशु रूपधारी परमेश्वर, काजियों के मन के दोष को जानते थे।
काजियों ने फिर कुरान शरीफ को नाम रखने के उद्देश्य से खोला। उन दोनों पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अक्षर लिखे थे उसके अलावा कुछ नहीं था। काजियों ने फिर कुरान शरीफ को खोला उन पृष्ठों पर भी कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान खोल डाली जिस भी पेज को खोलते उसी मैं कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए। काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मंत्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात अल्लाहु अकबर हूं। मेरा नाम “कबीर” ही रखो। काजियों ने अपने साथ लाई कुरान को वहीं पटक दिया तथा चले गए।
परमेश्वर की परवरिश कुंवारी गाय के दूध से हुई
जैसा वेदों मैं प्रमाण है l
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में लिखा है कि जब पूर्ण परमात्मा शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर आता है तो उसका पालन पोषण कुंवारी गाय से होता है।
अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।।
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काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
5 वर्ष की आयु में ही कबीर जी ने अपने लीलामय शरीर से वहां के जाने-माने संतों के साथ आध्यात्मिक विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया था। कोई भी संत या ऋषि उनके आध्यात्मिक ज्ञान का उत्तर कभी नहीं दे सके।
कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज इस धरती पर अवतरित हुए हैं आपसे निवेदन है संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर अपना कल्याण कराएं।
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श्रावणी पर्व की महत्ता
डॉविवेकआर्य
सावन मास श्रावण का परिवर्तित नाम है। इस मास की वैदिक महत्ता ऋषि मुनियों के समय से प्रचलित है।विक्रमी संवत के अनुसार श्रावण पांचवा मास है। प्राचीन काल में श्रवण मास को जीवन का अभिन्न अंग समझा जाता था। कालांतर में विदेशी संस्कृति के प्रचार से जनमानस इसे भूल गया है।श्रावणी पर्व के तीन लाभ है।
आध्यात्मिक, वैज्ञानिक एवं सामाजिक
आध्यात्मिक पक्ष-
श्रावण का अर्थ…
अविनाशी का अर्थ है अजरों अमर, जिसका कभी नाश ना हो, परमात्मा को अजन्मा, अजर-अमर कहते हैं। अज्ञानता वश हिन्दू धर्म में श्री ब्रह्मा श्री विष्णु तथा श्री शंकर जी को विशेषकर अविनाशी प्रभू माना जाता है। लेकिन श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध अध्याय 5 पेज 123 पर स्पष्ट प्रमाण है की तीनों गुण रजोगुण ब्रह्मा जी, सतोगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुऐ है तथा यह तीनो प्रभु नाशवान है।
गीता जी श्लोक 15.16-15.17 में भी पूर्ण वर्णन किया गया है की जो इन तीन देवों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की भक्ति करते हैं उनकी मुक्ति कभी नहीं हो सकती। हे नादान प्राणियों इनकी उपासना में मत भटको। पूर्ण परमात्मा की साधना करो।
हमारे सभी धार्मिक ग्��न्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है कि वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब है जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है वही अविनाशी परमेश्वर है, हम सभी आत्माओं का जनक है।
तत्वज्ञान के अभाव से श्रद्धालु शंका व्यक्त करते हैं कि जुलाहे रूप में कबीर जी तो वि. सं. 1455 (सन् 1398) में काशी में आए हैं। वेदों में कविर्देव यही काशी वाला जुलाहा (धाणक) कैसे पूर्ण परमात्मा हो सकता है?
इसका उत्तर यह है की पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अन्तध्र्यान हो जाते हैं।
जिन जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा के साक्षात्कार किये है उन्होंने बताया है की वास्तव में परमात्मा आकार में है। मनुष्य सदृश शरीर युक्त हैं। परंतु परमेश्वर का शरीर नाडि़यों के योग से बना पांच तत्व का नहीं है। एक नूर तत्व से बना है। पूर्ण परमात्मा जब चाहे यहाँ प्रकट हो जाते हैं वे कभी मां से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे सर्व के उत्पत्ति करता हैं। (प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25, ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17, 18 आदि)
कलयुग में भी कबीर परमेश्वर ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत 1455 सन् 1398 ब्रह्म मुहूर्त मैं कशी शहर के लहरतारा सरोवर मैं कमल के फूल पर एक नवजात शिशु का रूप धारण करके प्रकट हुए थे ।
कबीर परमेश्वर 120 वर्ष तक रहे और कविताओं व् लोकोक्तियों द्वारा अपने तत्वज्ञान का प्रचार किया था।
कबीर साहेब कहते हैं-
मात-पिता मेरे घर नहीं, ना मेरे घर दासी।
तारण -तरण अभय पद दाता, हूँ कबीर अविनाशी ।।
इससे सिद्ध है की वास्तविक परमेश्वर सिर्फ कबीर जी है।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं, शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि अब हम अपना भगवान पहचान सकते हैं। अब हम खुद शास्त्र पढ़ कर यह देख सकते हैं कि हमारे पवित्र सदग्रंथों में क्या लिखा है। ज़रूर Visit करें "Satlok Ashram” यूट्यूब चैनल।
अविनाशी का अर्थ है अजरों अमर, जिसका कभी नाश ना हो, परमात्मा को अजन्मा, अजर-अमर कहते हैं। अज्ञानता वश हिन्दू धर्म में श्री ब्रह्मा श्री विष्णु तथा श्री शंकर जी को विशेषकर अविनाशी प्रभू माना जाता है। लेकिन श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध अध्याय 5 पेज 123 पर स्पष्ट प्रमाण है की तीनों गुण रजोगुण ब्रह्मा जी, सतोगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुऐ है तथा यह तीनो प्रभु नाशवान है।
गीता जी श्लोक 15.16-15.17 में भी पूर्ण वर्णन किया गया है की जो इन तीन देवों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की भक्ति करते हैं उनकी मुक्ति कभी नहीं हो सकती। हे नादान प्राणियों इनकी उपासना में मत भटको। पूर्ण परमात्मा की साधना करो।
हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है कि वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब है जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है वही अविनाशी परमेश्वर है, हम सभी आत्माओं का जनक है।
तत्वज्ञान के अभाव से श्रद्धालु शंका व्यक्त करते हैं कि जुलाहे रूप में कबीर जी तो वि. सं. 1455 (सन् 1398) में काशी में आए हैं। वेदों में कविर्देव यही काशी वाला जुलाहा (धाणक) कैसे पूर्ण परमात्मा हो सकता है?
इसका उत्तर यह है की पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अन्तध्र्यान हो जाते हैं।
जिन जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा के साक्षात्कार किये है उन्होंने बताया है की वास्तव में परमात्मा आकार में है। मनुष्य सदृश शरीर युक्त हैं। परंतु परमेश्वर का शरीर नाडि़यों के योग से बना पांच तत्व का नहीं है। एक नूर तत्व से बना है। पूर्ण परमात्मा जब चाहे यहाँ प्रकट हो जाते हैं वे कभी मां से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे सर्व के उत्पत्ति करता हैं। (प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25, ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17, 18 आदि)
कलयुग में भी कबीर परमेश्वर ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत 1455 सन् 1398 ब्रह्म मुहूर्त मैं कशी शहर के लहरतारा सरोवर मैं कमल के फूल पर एक नवजात शिशु का रूप धारण करके प्रकट हुए थे ।
कबीर परमेश्वर 120 वर्ष तक रहे और कविताओं व् लोकोक्तियों द्वारा अपने तत्वज्ञान का प्रचार किया था।
कबीर साहेब कहते हैं-
मात-पिता मेरे घर नहीं, ना मेरे घर दासी।
तारण -तरण अभय पद दाता, हूँ कबीर अविनाशी ।।
इससे सिद्ध है की वास्तविक परमेश्वर सिर्फ कबीर जी है।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं, शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि अब हम अपना भगवान पहचान सकते हैं। अब हम खुद शास्त्र पढ़ कर यह देख सकते हैं कि हमारे पवित्र सदग्रंथों में क्या लिखा है। ज़रूर Visit करें "Satlok Ashram” यूट्यूब चैनल।
आषाढ़ मास में श्रीहरि का पूजन भी किया जाता है, इससे धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष की पूर्ति होती है। आज का दिन अत्यंत विशेष है। आज सोमवार के दिन से पवित्र आषाढ़ मास प्रारंभ हो रहा है। आषाढ़ मास भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष महत्व रखता है और सोमवार से मास का प्रारंभ होना अत्यंत फलदायी है। आज भगवान श्रीगणेश, माता पार्वती और कुमार कार्तिकेय, नंदी सहित भगवान शिव का अभिषेक, पूजन करें। विभिन्न स्तोत्र आदि का पाठ करें। संभव हो तो आज सोमवार का व्रत अवश्य रखें। जिस कामना की पूर्ति के लिए व्रत रखेंगे वह अवश्य पूरी होगी। यहां पेश है आज का पंचांग, जिसमें शुभ-अशुभ योग देखकर पूरे दिन की प्लानिंग कर लीजिए।
आज का पंचांग, 5 जून 2023, सोमवार
विक्रम संवत : 2080
शालिवाहन शके : 1945
मास : आषाढ़ कृष्ण पक्ष
ऋतु : ग्रीष्म
अयन : उत्तरायण
तिथि : प्रथमा प्रात: 6:38 तक पश्चात द्वितीया रात्रि 3:48 तक (द्वितीया का क्षय)
सूर्य राशि : वृषभ चंद्र राशि : धनु मंगल : कर्क बुध : मेष गुरु : मेष शुक्र : कर्क शनि : कुंभ राहु : मेष केतु : तुला दिन का चौघड़िया अमृत : प्रात: 5:42 से 7:23 शुभ : प्रात: 9:04 से 10:45 चर : दोप 2:06 से 3:47 लाभ : दोप 3:47 से सायं 5:27 अमृत : सायं 5:27 से 7:08 अभिजित : प्रात: 11:58 से दोप 12:52 रात्रि का चौघड़िया चर : सायं 7:08 से रात्रि 8:27 त्याज्य समय राहु काल : प्रात: 7:23 से 9:04 यम घंट : प्रात: 10:45 से दोप 12:25
आज विशेष : आषाढ़ मास प्रारंभ आज का शुभ रंग : सफेद, पिंक आज के पूज्य देव : श्री शिवजी आज का मंत्र : ऊं नम: शिवाय
आज का राशिफल मेष से मीन तक
मेष के लिए दिन अच्छा, जानिए बाकी राशियों का हाल, दोस्तों संग रिश्ते बढ़िया होंगे शिवजी की कृपा से आज का दिन आपके लिए ठीक-ठाक रहेगा। दोस्तों संग रिश्ते बढ़िया होंगे। आपको आज अपनी मेहनत का फल मिलेगा, जिससे आप बहुत खुश होंगे।
वृषभ : आज आपका मन काम में लगेगा शिवजी की कृपा से आज का दिन आपके लिए बेहतर रहेगा। मन काम में लगेगा और उसके नतीजे भी काफी अच्छें आएंगे। छात्रों के लिए भी आज का दिन सुखद है। सेहत बढ़िया रहेगी।
मिथुन : किसी की बात को दिल ने ना लगाएं शिवजी की कृपा से आज का दिन आपके लिए सामान्य रहेगा। किसी की बात को दिल ने ना लगाएं वरना काफी तकलीफ होगी। पठन-पाठन में भी मन लगेगा। नौकरी वालों के लिए दिन सुखद है।
कर्क: काम की अधिकता से मन खिन्न रहेगा शिवजी की कृपा से आज का दिन आपके लिए ठीक-ठीक रहने वाला है। काम की अधिकता से थोड़ा मन खिन्न हो सकता है। धन योग के भी आसार हैं। किसी पुराने मित्र से मुलाकात हो सकती है।
सिंह : दिन आपके लिए सकारात्मक रहेगा शिवजी की कृपा से आज का दिन आपके लिए सकारात्मक रहेगा। किसी खास के घर आने से आपको काफी खुशी होगी। अपनों संग सुख-दुख बांटने का मौका मिलेगा तो वहीं नौकरी वालों के लिए दिन अच्छा है।
कन्या :दांपत्य जीवन में नई खुशियां आएंगी शिवजी की कृपा से आज का दिन आपके लिए ऊर्जावान रहेगा। दांपत्य जीवन में नई खुशियां आएंगी। आपका स्वास्थ्य बेहतर बना रहेगा। लवमेट्स को भी साथ में वक्त व्यतीत करने का मौका मिलेगा।
तुला : लोगों को तरक्की हो सकती है शिवजी की कृपा से आज का दिन आपके पक्ष में रहेगा। नौकरी करने वाले लोगों को तरक्की हो सकती है। आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। परिवार में सुख-शांति आएगी, पति-पत्नी आपस में भी काफी खुश रहेंगे।
वृश्चिक : नौकरी वालों को प्रमोशन मिल सकता है शिवजी की कृपा से आज का दिन आपके लिए अच्छा ही रहेगा। नौकरी वालों को प्रमोशन मिल सकता है। छात्रों के लिए दिन थोड़ा संघर्ष भरा रह सकता है तो वहीं बिजनेस वालों के लिए भी दिन काफी ठीक-ठाक रहेगा।
धनु : दिन सामान्य रहेगा शिवजी की कृपा से आज का दिन आपके लिए ठीक ठाक रहेगा। संगीत से जुड़े लोगों के लिए भी दिन काफी बढ़िया है। जीवनसाथी के साथ मधुर पल व्यतीत करने का मौका मिलेगा।
मकर : जीवनसाथी के साथ मधुर पल बिताएंगे शिवजी की कृपा से आज का दिन आपके लिए काफी ठीक-ठाक रहेगा। आज जीवनसाथी के साथ मधुर पल बिताएंगे। किसी के घर आने से काफी खुशियां मिलेंगी। संगीत के छात्रों के लिए दिन काफी अच्छा रहेगा।
कुंभ: आपके मन में नए विचार आएंगे शिवजी की कृपा से आज का दिन आपके लिए काफी ठीक रहेगा, आज आपके मन में नए विचार आएंगे। दफ्तर में सहकर्मियों के साथ आपके संबंध मजबूत होंगे। बॉस आपके काम की तारीफ कर सकते हैं।
मीन: लवमेट्स आज बाहर घूमने जा सकते हैं शिवजी की कृपा से आज का दिन काफी अच्छा रहने वाला है लेकिन थोड़ा सा अपनी सेहत के प्रति लापरवाही ना बरतें। लवमेट्स आज बाहर घूमने जा सकते हैं। बच्चों संग पार्टी करने का मौका मिलेगा।
अविनाशी का अर्थ है अजरों अमर, जिसका कभी नाश ना हो, परमात्मा को अजन्मा, अजर-अमर कहते हैं। अज्ञानता वश हिन्दू धर्म में श्री ब्रह्मा श्री विष्णु तथा श्री शंकर जी को विशेषकर अविनाशी प्रभू माना जाता है। लेकिन श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध अध्याय 5 पेज 123 पर स्पष्ट प्रमाण है की तीनों गुण रजोगुण ब्रह्मा जी, सतोगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुऐ है तथा यह तीनो प्रभु नाशवान है।
गीता जी श्लोक 15.16-15.17 में भी पूर्ण वर्णन किया गया है की जो इन तीन देवों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की भक्ति करते हैं उनकी मुक्ति कभी नहीं हो सकती। हे नादान प्राणियों इनकी उपासना में मत भटको। पूर्ण परमात्मा की साधना करो।
हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है कि वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब है जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है वही अविनाशी परमेश्वर है, हम सभी आत्माओं का जनक है।
तत्वज्ञान के अभाव से श्रद्धालु शंका व्यक्त करते हैं कि जुलाहे रूप में कबीर जी तो वि. सं. 1455 (सन् 1398) में काशी में आए हैं। वेदों में कविर्देव यही काशी वाला जुलाहा (धाणक) कैसे पूर्ण परमात्मा हो सकता है?
इसका उत्तर यह है की पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अन्तध्र्यान हो जाते हैं।
जिन जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा के साक्षात्कार किये है उन्होंने बताया है की वास्तव में परमात्मा आकार में है। मनुष्य सदृश शरीर युक्त हैं। परंतु परमेश्वर का शरीर नाडि़यों के योग से बना पांच तत्व का नहीं है। एक नूर तत्व से बना है। पूर्ण परमात्मा जब चाहे यहाँ प्रकट हो जाते हैं वे कभी मां से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे सर्व के उत्पत��ति करता हैं। (प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25, ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17, 18 आदि)
कलयुग में भी कबीर परमेश्वर ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत 1455 सन् 1398 ब्रह्म मुहूर्त मैं कशी शहर के लहरतारा सरोवर मैं कमल के फूल पर एक नवजात शिशु का रूप धारण करके प्रकट हुए थे ।
कबीर परमेश्वर 120 वर्ष तक रहे और कविताओं व् लोकोक्तियों द्वारा अपने तत्वज्ञान का प्रचार किया था।
कबीर साहेब कहते हैं-
मात-पिता मेरे घर नहीं, ना मेरे घर दासी।
तारण -तरण अभय पद दाता, हूँ कबीर अविनाशी ।।
इससे सिद्ध है की वास्तविक परमेश्वर सिर्फ कबीर जी है।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं, शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि अब हम अपना भगवान पहचान सकते हैं। अब हम खुद शास्त्र पढ़ कर यह देख सकते हैं कि हमारे पवित्र सदग्रंथों में क्या लिखा है। ज़रूर Visit करें "Satlok Ashram” यूट्यूब चैनल।
अविनाशी का अर्थ है अजरों अमर, जिसका कभी नाश ना हो, परमात्मा को अजन्मा, अजर-अमर कहते हैं। अज्ञानता वश हिन्दू धर्म में श्री ब्रह्मा श्री विष्णु तथा श्री शंकर जी को विशेषकर अविनाशी प्रभू माना जाता है। लेकिन श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध अध्याय 5 पेज 123 पर स्पष्ट प्रमाण है की तीनों गुण रजोगुण ब्रह्मा जी, सतोगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुऐ है तथा यह तीनो प्रभु नाशवान है।
गीता जी श्लोक 15.16-15.17 में भी पूर्ण वर्णन किया गया है की जो इन तीन देवों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की भक्ति करते हैं उनकी मुक्ति कभी नहीं हो सकती। हे नादान प्राणियों इनकी उपासना में मत भटको। पूर्ण परमात्मा की साधना करो।
हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है कि वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब है जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है वही अविनाशी परमेश्वर है, हम सभी आत्माओं का जनक है।
तत्वज्ञान के अभाव से श्रद्धालु शंका व्यक्त करते हैं कि जुलाहे रूप में कबीर जी तो वि. सं. 1455 (सन् 1398) में काशी में आए हैं। वेदों में कविर्देव यही काशी वाला जुलाहा (धाणक) कैसे पूर्ण परमात्मा हो सकता है?
इसका उत्तर यह है की पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अन्तध्र्यान हो जाते हैं।
जिन जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा के साक्षात्कार किये है उन्होंने बताया है की वास्तव में परमात्मा आकार में है। मनुष्य सदृश शरीर युक्त हैं। परंतु परमेश्वर का शरीर नाडि़यों के योग से बना पांच तत्व का नहीं है। एक नूर तत्व से बना है। पूर्ण परमात्मा जब चाहे यहाँ प्रकट हो जाते हैं वे कभी मां से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे सर्व के उत्पत्ति करता हैं। (प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25, ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17, 18 आदि)
कलयुग में भी कबीर परमेश्वर ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत 1455 सन् 1398 ब्रह्म मुहूर्त मैं कशी शहर के लहरतारा सरोवर मैं कमल के फूल पर एक नवजात शिशु का रूप धारण करके प्रकट हुए थे ।
कबीर परमेश्वर 120 वर्ष तक रहे और कविताओं व् लोकोक्तियों द्वारा अपने तत्वज्ञान का प्रचार किया था।
कबीर साहेब कहते हैं-
मात-पिता मेरे घर नहीं, ना मेरे घर दासी।
तारण -तरण अभय पद दाता, हूँ कबीर अविनाशी ।।
इससे सिद्ध है की वास्तविक परमेश्वर सिर्फ कबीर जी है।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं, शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि अब हम अपना भगवान पहचान सकते हैं। अब हम खुद शास्त्र पढ़ कर यह देख सकते हैं कि हमारे पवित्र सदग्रंथों में क्या लिखा है। ज़रूर Visit करें "Satlok Ashram” यूट्यूब चैनल।
अविनाशी का अर्थ है अजरों अमर, जिसका कभी नाश ना हो, परमात्मा को अजन्मा, अजर-अमर कहते हैं। अज्ञानता वश हिन्दू धर्म में श्री ब्रह्मा श्री विष्णु तथा श्री शंकर जी को विशेषकर अविनाशी प्रभू माना जाता है। लेकिन श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध अध्याय 5 पेज 123 पर स्पष्ट प्रमाण है की तीनों गुण रजोगुण ब्रह्मा जी, सतोगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुऐ है तथा यह तीनो प्रभु नाशवान है।
गीता जी श्लोक 15.16-15.17 में भी पूर्ण वर्णन किया गया है की जो इन तीन देवों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की भक्ति करते हैं उनकी मुक्ति कभी नहीं हो सकती। हे नादान प्राणियों इनकी उपासना में मत भटको। पूर्ण परमात्मा की साधना करो।
हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है कि वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब है जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है वही अविनाशी परमेश्वर है, हम सभी आत्माओं का जनक है।
तत्वज्ञान के अभाव से श्रद्धालु शंका व्यक्त करते हैं कि जुलाहे रूप में कबीर जी तो वि. सं. 1455 (सन् 1398) में काशी में आए हैं। वेदों में कविर्देव यही काशी वाला जुलाहा (धाणक) कैसे पूर्ण परमात्मा हो सकता है?
इसका उत्तर यह है की पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अन्तध्र्यान हो जाते हैं।
जिन जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा के साक्षात्कार किये है उन्होंने बताया है की वास्तव में परमात्मा आकार में है। मनुष्य सदृश शरीर युक्त हैं। परंतु परमेश्वर का शरीर नाडि़यों के योग से बना पांच तत्व का नहीं है। एक नूर तत्व से बना है। पूर्ण परमात्मा जब चाहे यहाँ प्रकट हो जाते हैं वे कभी मां से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे सर्व के उत्पत्ति करता हैं। (प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25, ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17, 18 आदि)
कलयुग में भी कबीर परमेश्वर ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत 1455 सन् 1398 ब्रह्म मुहूर्त मैं कशी शहर के लहरतारा सरोवर मैं कमल के फूल पर एक नवजात शिशु का रूप धारण करके प्रकट हुए थे ।
कबीर परमेश्वर 120 वर्ष तक रहे और कविताओं व् लोकोक्तियों द्वारा अपने तत्वज्ञान का प्रचार किया था।
कबीर साहेब कहते हैं-
मात-पिता मेरे घर नहीं, ना मेरे घर दासी।
तारण -तरण अभय पद दाता, हूँ कबीर अविनाशी ।।
इससे सिद्ध है की वास्तविक परमेश्वर सिर्फ कबीर जी है।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं, शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि अब हम अपना भगवान पहचान सकते हैं। अब हम खुद शास्त्र पढ़ कर यह देख सकते हैं कि हमारे पवित्र सदग्रंथों में क्या लिखा है। ज़रूर Visit करें "Satlok Ashram” यूट्यूब चैनल।
।। नमो नमः ।। ।।भाग्यचक्र ।। आज का पञ्चाङ्ग :- संवत :- २०७९ दिनांक :- 08 सितंबर 2022 सूर्योदय :- 06:12 सूर्यास्त :- 18:38 सूर्य राशि :- सिंह चंद्र राशि :- मकर मास :- भाद्रपद तिथि :- त्रियोदशी वार :- गुरुवार नक्षत्र :- श्रवण योग :- अतिगण करण :- कौलव अयन:- दक्षिणायन पक्ष :- शुक्ल ऋतू :- वर्षा लाभ :- 12:24 - 13:57 अमृत:- 13:58 - 15:32 शुभ :- 17:04 - 18:37 राहु काल :- 13:58 - 15:32 जय महाकाल महाराज :- *पितृपक्ष ( श्राद्धपक्ष ):-* इस वर्ष पितृपक्ष ( श्राद्ध पक्ष ) 10-सितंबर-2022 शनिवार से प्रारंभ हो रहा है, जो 25-सितंबर-2022 रविवार तक रहेगा। 25 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ इसका समापन होगा l विशेष :- वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है। आज का मंत्र :- ""|| ॐ बृं बृहस्पतये नमः ||"" *🙏नारायण नारायण🙏* जय महाकालेश्वर महाराज। माँ महालक्ष्मी की कृपा सदैव आपके परिवार पर बनी रहे। 🙏🌹जय महाकालेश्वर महाराज🌹🙏 महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग का आज का भस्म आरती श्रृंँगार दर्शन। 08 सितंबर 2022 ( गुरुवार ) जय महाकालेश्वर महाराज। सभी प्रकार के ज्योतिष समाधान हेतु। Whatsapp@9522222969 https://www.facebook.com/Bhagyachakraujjain शुभम भवतु ! 9522222969 https://www.instagram.com/p/CiO55jrLgLK/?igshid=NGJjMDIxMWI=