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#एक दिन अचानक
sensazioneultra · 9 months
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Shabana Azmi as Neeta
एक दिन अचानक | SUDDENLY, ONE DAY (1989) dir. Mrinal Sen
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sakshiiiisingh · 1 year
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#मूर्ख कछुआ | The foolish tortoise#questkahaniya#story#quest#kahani#बलवान कछुए की मूर्खता#एक सरोवर में विशाल नाम का एक कछुआ रहा करता था। उसके पास एक मजबूत कवच था। यह कवच शत्रुओं से बचाता#एक बार भैंस तालाब पर पानी पीने आई थी। भैंस का पैर विशाल पर पड़ गया था। फिर भी विशाल को नहीं हुआ। उ#यह कवच विशाल को कुछ दिनों में भारी लगने लगा। उसने सोचा इस कवच से बाहर निकल कर जिंदगी को जीना चाहि#मुझे कवच की जरूरत नहीं है।#विशाल ने अगले ही दिन कवच को तालाब में छोड़कर आसपास घूमने लगा।#अचानक हिरण का झुंड तालाब में पानी पीने आया। ढेर सारी हिरनिया अपने बच्चों के साथ पानी पीने आई थी#उन हिरणियों के पैरों से विशाल को चोट लगी#वह रोने लगा।#आज उसने अपना कवच नहीं पहना था। जिसके कारण काफी चोट जोर से लग रही थी।#विशाल रोता-रोता वापस तालाब में गया और कवच को पहन लिया। कम से कम कवच से जान तो बचती है।#मोरल –#प्रकृति से मिली हुई चीज को सम्मान पूर्वक स्वीकार करना चाहिए वरना जान खतरे में पड़ सकती है।#Popular Stories#⦿ लालची शेर की कहानी : https://www.youtube.com/watch?v=ZlMYa...#⦿ एक चिड़िया ने गाँव मे लगी आग को कैसे भुझायी : https://www.youtube.com/watch?v=sb95O...#⦿ जीवन संघर्ष : https://www.youtube.com/watch?v=pNfdH...#Youtube
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delhidreamboy · 5 months
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दोस्त की बीवी के साथ रात भर चुदाई
दोस्तो, सबसे पहले मैं अपना परिचय दे देता हूँ.
मेरा नाम समीर है मैं बहराइच शहर का रहने वाला हूँ. मैं पाँच फिट ग्यारह इंच लम्बा हूँ और मेरे बाल काफ़ी लम्बे हैं.
मैं अपने दोस्तों में सबसे ज्यादा स्मार्ट हूँ.
सेक्स मेरी कमज़ोरी है.
किसी भी लड़की को देखता हूँ तो अपने पर कंट्रोल नहीं कर पाता और मौक़ा मिलते ही मुठ मार लेता हूँ.
मैं अपने दोस्त जुनैद खान की शादी में ना जा सका था.
उस दिन किसी काम के सिलसिले में फंस गया था.
��सके बाद मैं अपने कामों में ऐसा फंसा कि क़रीब पाँच साल तक दोस्ती यारी सब भूल गया.
जब मैं काम से थोड़ा आजाद हुआ तो दोस्तों की याद आई.
मगर अब दोस्त भी सब अपने अपने कामों में लगे हुए थे.
फिर एक दिन अचानक से जुनैद से यहीं मार्केट में मुलाक़ात हुई.
उसके साथ उसकी बीवी भी थी.
हम दोनों दोस्त अपनी बातों में मस्त हो गया.
कुछ देर में मेरी नज़र जुनैद की बीवी पर पड़ी.
वह बड़ी मस्त माल थी. यह Xxx सेक्सी हिंदी कहानी उसी के साथ की है.
उसके 36 साइज़ के चूचे और 38 इंच की गांड एकदम आग बरपा रही थी.
मैंने भाभी से हैलो की और सॉरी बोलते हुए कहा- सॉरी भाभी, मैंने आप पर ध्यान ही नहीं दिया. हम दोनों दोस्त अपनी पुरानी यादों में मस्त हो गए, माफ़ी चाहता हूँ!
जुनैद की बीवी ने जवाब दिया- आपने मुझ पर ध्यान नहीं दिया, कोई बात नहीं. पर आप शादी में भी नहीं आए. जुनैद हमेशा आपकी बातें करते रहते थे. मैं भी आपसे मिलने को उतावली थी.
ये कहती हुई उसने मेरे हाथ को दबा दिया.
मैं समझ गया कि भाभी चालू माल है.
मैंने बात को खत्म करते हुए हंसते हुए कहा- अरे भाभी, यहीं सब बातें कर लेंगी या कभी घर भी बुलाएंगी.
फिर हमारी बातें ख़त्म हुईं.
भाभी ने जाते वक्त कहा- आपका घर है, जब चाहें आ जाएं. जुनैद तो रात को दो के बाद ही आते हैं. आपकी जब मर्ज़ी हो, आ जाइए.
मैं भाभी का इशारा समझ गया और वहां से निकलते हुआ बोला- ओके भाभी, आपसे जल्दी ही मिलता हूँ.
मैं वहां से निकल गया.
इस बात को दो दिन हो गए थे.
मैं घर पर आराम कर रहा था.
उसी वक्त व्हाट्सैप पर अनजान नम्बर से एक मैसेज आया ‘क्या कर रहे हो मेरी जान!’
मेरे दोस्त अक्सर मैसेज से मुझे परेशान करते रहते हैं तो मैंने इस मैसेज पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया कि किसी दोस्त ने अनजान नंबर से मैसेज करके मुझसे शैतानी की होगी.
मैं उस मैसेज का बिना कोई जवाब दिए सो गया.
सुबह जब उठा तो देखा कि उसी नंबर से काफ़ी मैसेज आए हुए थे और दो मिस्ड कॉल भी थीं.
मैंने उसी नंबर पर कॉलबैक की, तो उधर से एक सुरीली सी आवाज़ आई- हैलो मिस्टर स���ीर, गुड मॉर्निंग. कैसी कटी आपकी रात!
मैंने भी बिना कुछ सोचे समझे सीधा बोल दिया कि अपनी भाभी के साथ सपने में कबड्डी खेलता रहा.
मेरी इस बात से उस तरफ से ज़ोर ज़ोर की हंसी के साथ आवाज आई- सही पहचाना, मैं ही हूँ आपकी कबड्डी खेलने वाली भाभी.
मैंने एकदम से अपने कहे पर खेद जताते हुए उनसे पूछा- सॉरी मेम, आप कौन?
‘मैं नादिया भाभी बोल रही हूँ.’
मैंने अब स्क्रीन पर उनका नंबर और ट्रू कॉलर पर आया हुआ नाम देखा.
फिर कहा- जी हां मुझे पता लग गया है. ट्रू कॉलरपर आपका नाम लिखा हुआ आया है. आप बताएं भाभीजान … सुबह सुबह अपने देवर को कैसे याद कर लिया?
वह बोली- सुबह सुबह तो छोड़िए, मैं तो सारी रात से आपको काफ़ी याद कर रही थी. कई मैसेज किये और दो बार कॉल भी किया, पर आपने फ़ोन ही नहीं उठाया. लगता है मुझसे नाराज़ हैं?
मैंने कहा- अरे भाभी जान, आपसे नाराज़ होकर कहां जाऊंगा. अपन तो दिल से ही आपके ही पास हैं.
वह हंसती हुई कहने लगी- काफ़ी अनुभव है आपको बात करने का … लगता है काफ़ी गर्लफ़्रेंड पटा रखी हैं.
मैं बोला- गर्लफ्रेंड तो नहीं, हां आप जैसी कुछ भाभियां हैं. जो समय समय पर अनुभव करवा देती हैं.
नादिया भाभी मेरी बात को क़ाटती हुई बोली- अच्छा वो सब छोड़ो … ये बताओ कि क्या आप मेरे घर आ सकते हैं?
मैंने कहा- कोई ज़रूरी काम हो, तो अभी आ जाऊं?
उधर से जवाब आया- अरे यार समीर … कल से जुनैद घर पर है नहीं. मैं अकेले बोर हो रही हूँ. आप आ जाएंगे तो आपसे जरा दिल बहला लूँगी.
मैं खुश होते हुए बोला- भाभी अभी तो सुबह हुई है, रात को आता हूँ.
उसने कहा- चलो मैं आपका इंतजार करूंगी.
कुछ देर और इधर उधर की बातचीत के बाद मैंने फ़ोन कट कर दिया.
अब मुझे और भाभी को रात का बेसब्री से इंतज़ार था कि कब रात हो और हम दोनों का मिलन हो.
मैं सोच रहा था कि बस कैसे भी करके नादिया भाभी को चोद लूं.
तो मैं नहाने गया तो झांटें साफ कर लीं.
रात होते ही मैंने मेडिकल से दो पैकेट कंडोम के ले लिए और भाभी के घर चला आया.
उनके घर पहुंचते ही मैंने दरवाजे की घंटी बजाई.
कुछ पल बाद दरवाज़ा खुला. दरवाजा खुलते ही मैं भाभी को देखता रह गया.
भाभी तो कहीं से शादीशुदा लग ही नहीं रही थी. उसने शॉर्ट्स और टॉप पहना था.
उसका रेड कलर का टॉप एकदम पारदर्शी था.
उस टॉप में से भाभी के दोनों चूचे और उन पर तने हुए गुलाबी निप्पल साफ़ दिख रहे थे.
उसने ब्रा नहीं पहनी थी.
सीन देख कर तो दिल कर रहा था कि अभी ही इसे पकड़ कर चोद दूँ. पर ऐसा करना ठीक नहीं होता है.
सेक्स का जो मज़ा आराम से करने में है, वह ज़बरदस्ती में नहीं है.
हालांकि मेरा मुँह खुला का खुला रह गया था.
भाभी ने इतराते हुए कहा- अन्दर आ जाओ, फिर इस खुले हुए मुँह का इलाज भी कर देती हूँ.
मैं झेंप गया.
अन्दर जाते ही मैंने अपनी पैंट एडजस्ट की क्योंकि मेरा लंड खड़ा हो गया था.
भाभी ने बैठने को कहा और बोली- क्या लोगे, चाय कॉफ़ी!
मैंने कहा- भाभी आप जो देंगी, प्यार से ले लूँगा. वैसे दूध मिल जाता तो और अच्छा होता.
भाभी मुस्कुराती हुई अपने दूध हिला कर बोलीं- ठीक है, मैं लाती हूँ.
वह किचन जाने के लिए मुड़ी ही थी कि मैंने हाथ बढ़ाया और भाभी को अपनी ओर खींच लिया.
हम दोनों बेड पर गिर गए.
भाभी ने कहा- अरे, ये क्या कर रहे हो देवर जी?
मैंने कहा- भाभी, मैं तो दूध ताज़ा वाला ही पीता हूँ.
ये कहते हुए मैंने भाभी का टॉप तेज़ी से खींचा और उसको बाहर निकाल फेंका.
मैं उसके दोनों रसभरे चूचों पर टूट पड़ा.
भाभी की 36 साइज़ की चूचियां मेरे हाथों में नहीं आ रही थीं.
नादिया भाभी को अपने नीचे दबा कर उसकी दोनों चूचियों को हाथ से पकड़ कर मसलने लगा और एक चूची के निप्पल को अपने होंठों में दबा कर खींच खींच कर चूसने लगा.
भाभी की मादक आहें और कराहें निकलना शुरू हो गईं.
मैंने क़रीब दस मिनट तक भाभी के दोनों चूचे चूसे … और चूस चूस लाल कर दिए.
अब हम दोनों का किस चालू हुआ.
मैं भाभी के पूरे बदन पर किस करता रहा.
वह आपे से बाहर हो रही थी.
किस करते करते मैं नीचे को सरकने लगा और भाभी की चूत पर आ गया.
भाभी की चूत शॉर्ट्स से ढकी हुई थी.
मैंने झटके से शॉर्ट्स को उतारा और चूत के अन्दर अपनी ज़ुबान डाल कर चूसने लगा.
अपनी चूत पर मेरी जुबान का अहसास पाते ही भाभी एकदम से सिहर उठी और छटपटाने लगी.
मैंने उसकी दोनों टांगों को अपने हाथों से दबोचा और चूत को चाटना शुरू कर दिया.
भाभी की चिकनी चूत एकदम कचौड़ी सी फूली हुई थी और रस छोड़ रही थी.
उसकी चूत का नमकीन रस चाटने से मुझे नशा सा आ गया और मैं पूरी शिद्दत से उसकी चूत को चाटने में तब तक लगा रहा, जब तक चूत का पानी नहीं निकल गया.
मैं चूत का रस चाटने लगा और चाट चाट कर भाभी की चूत को वापस कांच सा चमका दिया.
अब वह एकदम से निढाल हो गई थी और तेज तेज सांसें भर रही थी.
कुछ देर के बाद मैं उसके चेहरे को चूमने लगा तो वह बोली- सच में बड़े जानवर हो तुम … तुमने मेरी चूत में से पानी निकाल कर इसमें दोगुनी आग लगा दी है.
मैंने कहा- नादिया मेरी जान … अभी फायर बिर्गेड वाला पाइप खड़ा है … कहो तो तत्काल पाइप घुसेड़ कर आग बुझा दूँ.
वह बोली- आग तो बुझवानी ही है, पर उसके पहले मुझे उस पाइप को प्यार करना है जो मेरी आग बुझाएगा.
मैंने कहा- हां हां कर लो प्यार!
ये कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख दिया.
उसने लंड मसलते हुए कहा- ये तो बड़ा अकड़ रहा है. इसे पहले मेरे मुँह में डालो … मैं इसकी अकड़ निकालती हूँ.
हम दोनों 69 की पोजीशन में आ गए.
नादिया भाभी ने मेरे लंड को बहुत प्यार से चूसा और उसे एकदम गर्म लोहे से तप्त सरिया बना दिया.
वह मेरे लौड़े को गले के आखिरी छोर तक लेकर चूस रही थी.
मैंने आह भरते हुए कहा- आह भाभी … मेरी जान और चूसो.
उधर भाभी भी दुबारा से गर्मा गई थी.
उससे रहा ना गया और वह बोली- समीर, मैं बहुत प्यासी हूँ. पहले मेरी चूत की प्यास मिटा दो. जुनैद के साथ कभी ऐसा मज़ा नहीं आया. वह तो मेरे ऊपर चढ़ता है और दो मिनट में झड़ कर सो जाता है. आज तक न तो उसने कभी मुझे ओरल सेक्स का सुख नहीं दिया.
मैंने कहा- अरे मेरी भाभी जान … अभी तो ये शुरुआत है. अगर आपको मुझसे चुदवाने में मज़ा ना आया, तो मेरा नाम भी समीर नहीं.
बस ये कह कर मैंने भाभी को अपनी तरफ़ खींचा और लंड पर कंडोम लगा कर अपने लंड को भाभी की मखमली चूत पर सैट कर दिया.
लौड़े को सैट करते ही मैंने एक ज़ोरदार धक्का मारा. मेरा लंड भाभी की चूत को चीरता हुआ अन्दर घुसता चला गया.
एकदम से लौड़े ने चूत को फाड़ा, तो भाभी की चीख निकल गई.
भाभी की आंख से आंसू निकल आए और वह चिल्लाने लगी- समीर, मेरी चूत फट गई है, प्लीज़ निकाल लो.
लेकिन मैंने भाभी की एक ना सुनी और दोबारा झटका मार कर अपने लंड को पूरा अन्दर तक डाल दिया.
फिर मैं थोड़ी देर रुक गया.
Xxx सेक्सी भाभी दर्द से चीखती रही और छटपटाती रही.
कुछ देर बाद जब भाभी के चेहरे पर थोड़ा बदलाव आया और वह अपनी गांड को थोड़ा थोड़ा हिलाने लगी, तो मैं समझ गया कि भाभी को मज़ा आने लगा है.
अब मैंने भाभी को और तेज़ी से चोदना चालू कर दिया.
भाभी का सुर बदल गया था और वह बार बार कह रही थी- समीर, और तेज चोदो … और तेज.
यही सब कहते हुए वह अपने सर को इधर से उधर पटक रही थी.
हम दोनों की चुदाई का यह सिलसिला क़रीब बीस मिनट तक चला.
उसके बाद वह झड़ गई और उसके झड़ते ही मैं भी कंडोम में निकल गया.
झड़ने के बाद काफी थकान हो गई थी तो हम दोनों ऐसे ही नंगे सो गए.
आधा घंटा बाद उठे और वापस चुदाई चालू हो गई.
उस रात हम दोनों ने चार बार सेक्स किया.
यह सिलसिला अभी तक चल रहा है.
मैं आगे बताऊंगा कि भाभी की बहन को सेक्स की गोली खिला कर उसकी सील पैक चूत को कैसे चोदा.
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essentiallyoutsider · 28 days
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चाहिए थोड़ा दुख
खबरें देखता रहता हूं दिन भर और
कुछ नहीं लिखता मैं
देखता हूं रील, तस्‍वीर और वीडियो
दूसरों का नाच गाना सोना नहाना
सब कुछ पर बेमन
सीने में जाने किसका है वजन
जो काटे नहीं कटता वक्‍त की तरह
गोकि मैं हूं बहुत बहुत व्‍यस्‍त और
ऐसा सिर्फ दिखाने के लिए नहीं है चूंकि
मैं फोन नहीं उठाता किसी का
मैं वाकई व्‍यस्‍त हूं, और जाने
किन खयालों में मस्‍त हूं कि अब
कुछ भी छू कर नहीं जाता
निकल लेता है ऊपर से या नीचे से
या दाएं से और बाएं से
सर्र से पर मेरी रूह को तो छोड़ दें
त्‍वचा तक को कष्‍ट नहीं होता।
ये जो वजन है
यही दुख का सहन है
वैसे कारण कम नहीं हैं दुखी होने के
दूसरी सहस्राब्दि के तीसरे दशक में, लेकिन
दुख की कमी अखरती है रोज-ब-रोज
जबकि समृद्धि इतनी भी नहीं आई
कि खा पी लें दो चार पुश्‍तें
या फिर कम से कम जी जाएं विशुद्ध
हरामखोर बन के ही बेटा बेटी
या अकेले मैं ही।
मैंने सिकोड़ लिया खुद को बेहद
तितली से लार्वा बनने के बाद भी
फोन आ जाते हैं दिन में दो चार
और सभी उड़ते हुए से करते हैं बात
चुनाव आ गया बॉस, क्‍या प्‍लान है
मेरा मन तो कतई म्‍लान है यह कह देना
हास्‍यास्‍पद बन जाने की हद तक
संन्‍यस्‍त हो जाने की उलाहना को आमंत्रित करता
बेकल आदमी का एकल गान है।
एक कल्‍पना है
जिसका ठोस प्रारूप कागज पर उतारना
इतना कठिन है कि महीनों हो गए
और इतना आसान, कि लगता है
एक रोज बैठूंगा और लिख दूंगा
रोज आता है वह एक रोज
और बीत जाता है रोज
अब उसकी भी तीव्रता चुक रही है
तारीख करीब आ रही है और धौंकनी
धुक धुक रही है
कि क्‍या 4 जून के बाद भी करते रहना होगा
वही सब चूतियापा
जिसके सहारे काट दिए दस साल
अत्‍यंत सुरक्षित, सुविधाजनक
बिना खोए एक क्षण भी आपा
बदले में उपजा लिए कुछ रोग जिन्‍हें
डॉक्‍टर साहब जीवनशैली जनित कहते हैं
जबकि इस बीच न जीवन ही खास रहा
न कोई शैली, सिवाय खुद को
बचाने की एक अदद थैली
आदमी से बन गए कंगारू
स्‍वस्‍थ से हो गए बीमारू
कीड़े पनपते रहे भीतर ही भीतर
बाहर चिल्‍लाते रहे फासीवाद और
भरता रहा मन में दुचित्‍तेपन का
गंदा पीला मवाद।
यार, ऐसे तो नहीं जीना था
सिवाय इस राहत के कि
जीने की भौतिक परिस्थितियां ही
गढ़ती हैं मनुष्‍य को
यह दलील चाहे जितना डिस्‍काउंट दे दे
लेकिन मन तो जानता है (न) कि
दुनिया के सामने आदमी कितनी फानता है
और घर के भीतर चादर कितनी तानता है।
अगर ये सरकार बदल भी जाए तो क्‍या होगा मेरा
यही सोच सोच कर हलकान हुआ जाता हूं
जबकि सभी दोस्‍त ठीक उलटा सोच रहे हैं
जरूरी नहीं कि दोस्‍त एक जैसा सोचें
बिलकुल इसी लोकतांत्रिक आस्‍था ने दोस्‍त
कम कर दिए हैं और जो बच रहे हैं
वे फोन करते हैं और मानकर चलते हैं
मैं उनके जैसी बात कहूंगा हुंकारी भरूंगा
मैं तो अब किसी को फोन नहीं करता
न बाहर जाता हूं मिलने
बहुत जिच की किसी ��े तो घर
बुला लेता हूं और जानता हूं कि
दस में से दो आ जाएं तो बहुत
इस तरह कटता है मेरा क्‍लेश और
बच जाता है वक्‍त
चूंकि मैं हूं बहुत बहुत व्‍यस्‍त
बचे हुए वक्‍त में मैं कुछ नहीं करता
यह जानते हुए भी लगातार लोगों से बचता
फिरता हूं क्‍योंकि वे जब मिलते हैं तो
ऐसा लगता है कि बेहतर होता कुछ न करते
घर पर ही रहते और ऐसा
तकरीबन हर बार होता है
हर दिन बस यही संतोष
मुझे बचा ले जाता है
कि मेरा खाली समय कोई बददिमाग
पॉलिटिकली करेक्‍ट
बुनियादी रूप से मूर्ख और अतिमहत्‍वाकांक्षी
लेकिन अनिवार्यत: मुझे जानने वाला मनुष्‍य
नहीं खाता है।
लोगों को ना करते दुख होता है
ना नहीं करने के अपने दुख हैं
आखिर कितनों की इच्‍छाओं, महत्‍वाकांक्षाओं
और मूर्खतापूर्ण लिप्‍साओं की आत्‍यंन्तिक रूप से
मौद्रिक परियोजनाओं में
आदमी कंसल्‍टेंट बन सकता है एक साथ?
आपके बगैर तो ये नहीं होगा
आपका होना तो जरूरी है
रोज दो चार लोग ऐसी बातें कह के मुझे
फुलाते रहते हैं और घंटे भर की ऊर्जा
उनके निजी स्‍वार्थों की भेंट चढ़ जाती है
इतने में दस आदमी कांग्रेस से भाजपा में और
चार आदमी भाजपा से कांग्रेस में चले जाते हैं
हेडलाइन बदल जाती है
किसी के यहां छापा पड़ जाता है
तो किसी को जेल हो जाती है
फिर अचानक कोई ऐसा नाम ट्रेंड करने लगता है
जिसे जानने में बची हुई ऊर्जा खप जाती है।
मुझे वाकई ये बातें जानने का शौक नहीं
ज्‍यादा जरूरी यह सोचना है कि अगले टाइम
क्‍या छौंकना है लौकी, करेला या भिंडी
और किस विधि से उन्‍‍हें बनना है
यह और भी अहम है पर संतों के कहे
ये दुनिया एक वहम है और मैं
इस वहम का अनिवार्य नागरिक हूं
और औसत लोगों से दस ग्राम ज्‍यादा
जागरिक हूं और यह विशिष्‍टता 2014 के बाद
अर्जित की हुई नहीं है क्‍योंकि उससे पहले भी
मैं जग रहा था जब सौ करोड़ हिंदू
सो रहा था इस देश का जो आज मुझसे
कहीं ज्‍यादा जाग चुका है और
मेरे जैसा आदमी बाजार से भाग चुका है
भागा हुआ आदमी घर में दुबक कर
खबरें ही देख सकता है और गाहे-बगाहे सजने वाली
महफिलों में अपने प्रासंगिक होने के सुबूत
उछाल के फेंक सकता है।
दरअसल मैं इसी की तैयारी करता हूं
इसीलिए खबरें देखता रहता हूं
पर लिखता कुछ नहीं
बस देखता हूं दूसरों का नाच गाना
सोना नहाना सब कुछ
नियमित लेकिन बेमन।
कब आ जाए परीक्षा की घड़ी
खींच लिया जाए सरेबाजार और
पूछ दिया जाए बताओ क्‍या है खबर
और कह सकूं बेधड़क मैं कि सरकार बहादुर
गरीबों में बांटने वाले हैं ईडी के पास आया धन।
छुपा ले जाऊं वो बात जो पता है
सारे जमाने को लेकिन कहने की है मनाही
कि एक स्‍वतंत्र देश का लोकतांत्रिक ढंग से
चुना गया प्रधानमंत्री कर रहा था सात साल से
धनकुबेरों से हजारों करोड़ रुपये की उगाही
खुलवाकर कुछ लाख गरीबों का खाता जनधन।
सच बोलने और प्रिय बोलने के द्वंद्व का समाधान
मैंने इस तरह किया है
बीते बरसों में जमकर झूठ को जिया है
स्‍वांग किया है, अभिनय किया है
जहां गाली देनी थी वहां जय-जय किया है
और सीने पर रख लिया है एक पत्‍थर
विशालकाय
अकेले बैठा पीटता रहता हूं छाती हाय हाय
कि कुछ तो दुख मने, एकाध कविता बने
लगे हाथ कम से कम भ्रम ही हो कि वही हैं हम
जो हुआ करते थे पहले और अकसर सोचा करते थे
किसके बाप में है दम जो साला हमको बदले।
ये तैंतालीस की उम्र का लफड़ा है या जमाने की हवा
छूछी देह ही बरामद हुई हर बार जब-जब
खुद को छुवा
हर सुबह चेहरे पर उग आती है फुंसी गोया
दुख का निशान देह पर उभर आता हो
मिटाने में जिसे आधा दिन गुजर जाता हो
दुख हो या न हो, दिखना नहीं चाहिए
ऐसी मॉडेस्‍टी ने हमें किसी का नहीं छोड़ा
भरता गया मवाद बढ़ता गया फोड़ा
अल्‍ला से मेघ पानी छाया कुछ न मांगिए
बस थोड़ा सा जेनुइन दुख जिसे हम भी
गा सकें, बजा सकें और हताशाओं के
अपने मिट्टी के गमले में सजा सकें
और उसे साक्षी मानकर आवाहन करें
प्रकृति का कि लौट आओ ओ आत्‍मा
कम से कम कुछ तो दो करुणा कि
स्‍पर्श कर सकें वे लोग, वे जगहें, वे हादसे
जिनकी खबरें देखता रहता हूं मैं
दिन भर और कुछ भी नहीं लिख पाता।
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srbachchan · 2 years
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DAY 5320
Jalsa, Mumbai                     Sept 3/4,  2022                 Sat/Sun  12:34 AM
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Avni .. the little one before me .. challenged , by sight , filled with the strength and maturity of God’s grace .. she came to KBC day before in the audience and on my regular photograph enabling round with the accompanied audience .. I meet her .. 
Her clarity of thought .. her fearless confidence .. her capable ability to accept her condition, and to be able to express to any other , her normalcy was astonishing .. 
I am medically prevented from any close proximity to public presence, and the routine at KBC had to be altered to adhere to the protocol set by my medical team .. but this moment was filled with an emotion that could only be felt ..
I touched her and held her hand to give her the sense of my presence along her .. she described how she saw and knew about me and my films .. she had written a letter too in 2019 for my birthday .. and asked me whether I did get it .. she told me she followed me on the social media and I assured her I would follow her .. this morning I did - both at Insta and FB .. and on the T as well ..
She spoke with the normalcy of any , and many .. had senses and feelings too ..
She said she was very jealous and envious when I wiped the tears of the lady contestants that came on the Hot Seat .. 
I just looked at here pleasant heavenly face and could not say a word in response .. inside, I was holding back my own tears .. 
I have often in my moments of alone and in the comparison of the several medical moments I have faced, attempted to give and express a reality that keeps coming back to me .. 
There have been several occasions during my medical torments when I have lost the functioning of various parts of my body - the details I shall NOT go into - they will sound the seeking of sympathy ; but no .. what has been expressed has been this  .. I lost the usage .. but the Grace of the Almighty and the prayers and wishes of the well wishers, the blessings of my elders, gave them back to me .. perhaps not of the same value as before the issue, but I got it back .. 
They that have lost their abilities and never got them back make you ridden with a kind of guilt .. especially when I do encounter the little ones like Avni and many others that I have had the moments to see, meet and spend time with ..
I lost and got it back .. they did not ..
The fairness of life .. unbalanced .. a bias in a sense .. 
And I have often searched whether it was a matter to be grateful and  filled with benefit .. or a lamentation for the other .. 
Life too has such unbalanced virtues and regrets   .. 
The discrepancy of existence, its inconsistent demeanour - the ‘opening of the pot of gold and finding it filled with poison’ ..
“और अचानक एक दिन 
तुमने उठा ही तो लिया 
उस कनक - घट का ढक्कन , 
पाया उसे विश-रस भरा “
and suddenly one day when you lifted the lid of that pot of gold found it filled with the poisonous juices   .. 
“दुल्हन की जिसे पहनायी गई थी पोशाक ,
वो तो थी सड़ी गली लाश  ।”
the bride that had been dressed in her bridal finery was indeed a decomposed festered melted decayed dead body  ..
the reality of life as discovered by Gautam Buddha, when he stepped out from the grandiose luxury of his Palace, for the first time .. to find that life was not the pot of gold or that bridal , dressed in all the finery, bride .. 
the reality stunned him and changed his life .. he set out , alienating himself from his princely Kingdom to preach that life is but a  pierced arrow in your body - that arrow of pain  .. what resides within us is the outcome of our karma .. karma is immoveable .. pain and sorrow is the design of life .. the foundation of pain, is desire .. if you can defeat and have victory over desire , you can have achieved nirvana .. 
“दुःख का इच्छा है आधार , अगर इच्छा को लो जीत , पा सकते हो दुखों से निस्तार , पा सकते हो निर्वाण पुनीत   !!”
the glorious words of Babuji’s poem - 
Buddha aur Naachghar  - बुद्ध और नाचघर 
One instance, can bring about the inner philosophy of life .. you can never be too far away from it .. 
KARMA .. DESIRE .. pierced arrow .. flowing river .. sacrifice .. 
too much of pain in one post .. the lightening of the text then and the spread of the visuals for its change .. 
not the pot of gold or the bride in her finery .. BUT ..
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jogging on to the set .. to give pace and liberation .. 
Love 
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Amitabh Bachchan
ps : the poem of Avni for me on my birthday in 2019  
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sirfdabba · 1 day
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याद है, उस दिन जब हम, उस बगुले के आकार वाले एक बादल का पीछा करते,
कुछ चार मील चलते,
दुनिया जहां की बातो को, हल्दी सा, मुस्कानों के पीछे छिपाई जख्मों पे मलते,
पक्षियों को पहचानते, चूकते, पतंगों को ललकारते,
पत्थरो को उड़ाते, एक दूसरे को चिढ़ाते,
बस चल रहे थे, चलते जा रहे थे,
और, अचानक से, तुम रुक गए।
तुम रुक गए, ताकि, ओरियो बिस्कुट के टुकड़े ले जा रही चिटियो की कतार को देख पाओ,
चार मिल चलकर फूल चुकी सांसों को रोक पाओ,
एक अंजान पेड़ के नीचे बैठ, शाम की रोशनी में अपनी कुम्हार सी कलात्मक हथेलियों को सेक पाओ,
कुछ पुरानी जख्मों को, बस यूं ही, मजे के लिए, नोक पाओ।
पता है, उस पल में मुझे लगा था की, मैं तुम पे एक कविता लिखना चाहती हूं।
संस्कृति
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naveensarohasblog · 2 years
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#गहरीनजरगीता_में_Part_244 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#गहरीनजरगीता_में_part_245
हम पढ़ रहे है पुस्तक "गहरी नजर गीता में"
पेज नंबर 471–472
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।। मृत लड़के सेऊ (शिव) को जीवित करना।।
एक समय साहेब कबीर अपने भक्त सम्मन के यहाँ अचानक दो सेवकों (कमाल व शेखफरीद) के साथ पहुँच गए। सम्मन के घर कुल तीन प्राणी थे। सम्मन, सम्मन की पत्नी नेकी और सम्मन का पुत्र सेऊ। भक्त सम्मन इतना गरीब था कि कई बार अन्न भी घर पर नहीं होता था। सारा परिवार भूखा सो जाता था। आज वही दिन था। भक्त सम्मन ने अपने गुरुदेव कबीर साहेब से पूछा कि साहेब खाने का विचार बताएँ, खाना कब खाओगे? कबीर साहेब ने कहा कि भाई भूख लगी है। भोजन बनाओ। सम्मन अन्दर घर में जा कर अपनी पत्नी नेकी से बोला कि अपने घर अपने गुरुदेव
भगवान आए हैं। जल्दी से भोजन तैयार करो। तब नेकी ने कहा कि घर पर अन्न का एक दाना भी नहीं है। सम्मन ने कहा पड़ोस वालों से उधार मांग लाओ। नेकी ने कहा कि मैं मांगने गई थी लेकिन किसी ने भी उधार आटा नहीं दिया। उन्होंने आटा होते हुए भी जान बूझ कर नहीं दिया और कह रहे हैं कि आज तुम्हारे घर तुम्हारे गुरु जी आए हैं। तुम कहा करते थे कि हमारे गुरु जी भगवान हैं। आपके गुरु जी भगवान हैं तो तुम्हें माँगने की आवश्यकता क्यों पड़ी? ये ही भर देगें
तुम्हारे घर को आदि-2 कह कर मजाक करने लगे। सम्मन ने कहा लाओ आपका चीर गिरवी रख कर तीन सेर आटा ले आता हूँ। नेकी ने कहा यह चीर फटा हुआ है। इसे कोई गिरवी नहीं रखता।
सम्मन सोच में पड़ जाता है और अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए कहता है कि मैं कितना अभागा हूँ। आज घर भगवान आए और मैं उनको भोजन भी नहीं करवा सकता। हे परमात्मा! ऐसे पापी प्राणी को पृथ्वी पर क्यों भेजा। मैं इतना नीच रहा हूँगा कि पिछले जन्म में कोई पुण्य नहीं किया। अब सतगुरु को क्या मुंह दिखाऊँ? यह कह कर अन्दर कोठे में जा कर फूट-2 कर रोने लगा। तब उसकी पत्नी नेकी कहने लगी कि हिम्मत करो। रोवो मत। परमात्मा आए हैं। इन्हें ��ेस पहुँचेगी।
सोचंेगे हमारे आने से तंग आ कर रो रहा है। सम्मन चुप हुआ। फिर नेकी ने कहा आज रात्रि में दोनों पिता पुत्र जा कर तीन सेर (पुराना बाट किलो ग्राम के लगभग) आटा चुरा कर लाना। केवल संतों व भक्तों के लिए। तब लड़का सेऊ बोला माँ - गुरु जी कहते हैं चोरी करना पाप है। फिर आप
भी मुझे शिक्षा दिया करती कि बेटा कभी चोरी नहीं करनी चाहिए। जो चोरी करते हैं उनका सर्वनाश होता है। आज आप यह क्या कह रही हो माँ? क्या हम पाप करेंगे माँ? अपना भजन नष्ट हो जाएगा। माँ हम चैरासी लाख योनियों में कष्ट पाएंगे। एैसा मत कहो माँ। माँ आपको मेरी कसम। तब नेकी ने कहा पुत्र तुम ठीक कह रहे हो। चोरी करना पाप है परंतु पुत्रा हम अपने लिए
नहीं बल्कि संतों के लिए करेंगे। नेकी ने कहा बेटा - ये नगर के लोग अपने से बहुत चिड़ते हैं। हमने इनको कहा था कि हमारे गुरुदेव कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) आए हुए हैं। इन्होंने एक मृतक गऊ तथा उसके बच्चे को जीवित कर दिया था जिसके टुकड़े सिंकदर लौधी ने करवाए थे। एक लड़के तथा एक लड़की को जीवित कर दिया। सिंकदर लौधी राजा का जलन का रोग समाप्त कर दिया
तथा श्री रामानन्द जी (कबीर साहेब के गुरुदेव) जो सिंकदर लौधी ने तलवार से कत्ल कर दिया था वे भी कबीर साहेब ने जीवित कर दिए थे। इस बात का ये नगर वाले मजाक कर रहे हैं और
कहते हैं कि आपके गुरु कबीर तो भगवान हैं तुम्हारे घर को भी अन्न से भर देंगे। फिर क्यों अन्न (आटे) के लिए घर घर डोलती फिरती हो?
बेटा ये नादान प्राणी हैं यदि आज साहेब कबीर इस नगरी का अन्न खाए बिना चले गए तो काल भगवान भी इतना नाराज हो जाएगा कि कहीं इस नगरी को समाप्त न कर दे। हे पुत्र! इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। हम नहीं खाएंगे। केवल अपने सतगुरु तथा आए भक्तों
को प्रसाद बना कर खिलाएगें। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्रा नाटियो मत अर्थात् मना नहीं करना। तब अपनी माँ की आँखों के आँसू पौंछता हुआ लड़का सेऊ कहने लगा - माँ रो मत, आपका पुत्रा आपके आदेश का पालन करेगा। माँ आप तो बहुत अच्छी हो न।
अर्ध रात्रि के समय दोनों पिता (सम्मन) पुत्रा (सेऊ) चोरी करने के लिए चले दिए। एक सेठ की दुकान की दीवार में छिद्र किया। सम्मन ने कहा कि पुत्रा मैं अन्दर जाता हूँ। यदि कोई व्यक्ति
आए तो धीरे से कह देना मैं आपको आटा पकड़ा ���ूंगा और ले कर भाग जाना। तब सेऊ ने कहा नहीं पिता जी, मैं अन्दर जाऊँगा। यदि मैं पकड़ा भी गया तो बच्चा समझ कर माफ कर दिया जाऊँगा। सम्मन ने कहा पुत्रा यदि आपको पकड़ कर मार दिया तो मैं और तेरी माँ कैसे जीवित रहेंगे? सेऊ प्रार्थना करता हुआ छिद्र द्वार से अन्दर दुकान में प्रवेश कर जाता है। तब सम्मन ने कहा पुत्र केवल तीन सेर आटा लाना, अधिक नहीं। लड़का सेऊ लगभग तीन सेर आटा अपनी फटी
पुरानी चद्दर में बाँध कर चलने लगा तो अंधेरे में तराजू के पलड़े पर पैर रखा गया। जोर दार आवाज हुई जिससे दुकानदार जाग गया और सेऊ को चोर-चोर करके पकड़ लिया और रस्से से बाँध दिया। इससे पहले सेऊ ने वह चद्दर में बँधा हुआ आटा उस छिद्र से बाहर फैंक दिया और कहा पिता जी मुझे सेठ ने पकड़ लिया है। आप आटा ले जाओ और सतगुरु व भक्तों को भोजन करवाना। मेरी चिंता मत करना। आटा ले कर सम्मन घर पर गया तो सेऊ को न पा कर नेकी ने
पूछा लड़का कहाँ है? सम्मन ने कहा उसे सेठ जी ने पकड़ कर थम्ब से बाँध दिया। तब नेकी ने कहा कि आप वापिस जाओ और लड़के सेऊ का सिर काट लाओ। क्योंकि लड़के को पहचान कर अपने घर पर लाएंगे। फिर सतगुरु को देख कर नगर वाले कहेंगे कि ये हैं जो चोरी करवाते हैं। हो सकता है सतगुरु देव को परेशान करें। हम पापी प्राणी अपने दाता को भोजन के स्थान पर कैद न दिखा दें। यह कह कर माँ अपने बेटे का सिर काटने के लिए अपने पति से कह रही है वह भी
गुरुदेव जी के लिए। सम्मन ने हाथ में कर्द (लम्बा छुरा) लिया तथा दुकान पर जा कर कहा सेऊ बेटा, एक बार गर्दन बाहर निकाल। कुछ जरूरी बातें करनी हैं। कल तो हम नहीं मिल पाएंगे। हो
सकता है ये आपको मरवा दें। तब सेऊ उस सेठ (बनिए) से कहता है कि सेठ जी बाहर मेरा बाप खड़ा है। कोई जरूरी बात करना चाहता है। कृप्या करके मेरे रस्से को इतना ढीला कर दो कि मेरी गर्दन छिद्र से बाहर निकल जाए। तब सेठ ने उसकी बात को स्वीकार करके रस्सा इतना ढीला
कर दिया कि गर्दन आसानी से बाहर निकल गई। तब सेऊ ने कहा पिता जी मेरी गर्दन काट दो।
यदि आप मेरी गर्दन नहीं काटोगे तो आप मेरे पिता नहीं हो। सम्मन ने एक दम कर्द मारी और सिर काट कर घर ले गया। सेठ ने लड़के का कत्ल हुआ देख कर उसके शव को घसीट कर साथ ही एक पजावा (ईटें पकाने का भट्ठा) था उस खण्डहर में डाल गया।
जब नेकी ने सम्मन से कहा कि आप वापिस जाओ और लड़के का धड़ भी बाहर मिलेगा उठा लाओ। जब सम्मन दुकान पर पहुँचा उस समय तक सेठ ने उस दुकान की दीवार के छिद्र को बंद
कर लिया था। सम्मन ने शव कीे घसीट (चिन्हों) को देखते हुए शव के पास पहुँच कर उसे उठा लाया। ला कर अन्दर कोठे में रख कर ऊपर पुराने कपड़े (गुदड़) डाल दिए और सिर को अलमारी के ताख (एक हिस्से) में रख कर खिड़की बंद कर दी।
कुछ समय के बाद सूर्य उदय हुआ। नेकी ने स्नान किया। फिर सतगुरु व भक्तों का खाना बनाया। फिर सतगुरु कबीर साहेब जी से भोजन करने की प्रार्थना की। नेकी ने साहेब कबीर व
दोनों भक्त (कमाल तथा शेख फरीद), तीनों के सामने आदर के साथ भोजन परोस दिया। साहेब कबीर ने कहा इसे छः दौनों में डाल कर आप तीनों भी साथ बैठो। यह प्रेम प्रसाद पाओ। बहुत
प्रार्थना करने पर भी साहेब कबीर नहीं माने तो छः दौनों में प्रसाद परोसा गया। पाँचों प्रसाद के लिए बैठ गए। तब साहेब कबीर ने कहा:-
आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद पे्रम।
शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित्य क्षेम।।
भावार्थ:- साहेब कबीर ने कहा कि सेऊ आओ भोजन पाओ। सिर तो चोरों के कटते हैं। संतों।(भक्तों) के नहीं। उनको तो क्षमा होती है। साहेब कबीर ने इतना कहा था उसी समय सेऊ के धड़ पर सिर लग गया। कटे हुए का कोई निशान भी गर्दन पर नहीं था तथा पंगत (पंक्ति) में बैठ कर भोजन करने लगा। बोलो कबीर साहेब (कविरमितौजा) की जय।
गरीब, सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठा पंगत माहीं।
नहीं घरहरा गर्दन कै, औह सेऊ अक नाहीं।।
भावार्थ:- जो सिर अलमारी की ताक में रखा था। वह लड़के शिव (सेऊ) के धड़ पर अपने आप लग गया। लड़का जीवित होकर उठकर भोजन खाने वाली पंक्ति में आकर बैठ गया। सम्मन
(पिता) तथा नेकी (माता) को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही बेटा सेऊ है कि नहीं क्योंकि लड़की की गर्दन पर कटे का निशान (चिन्ह) भी नहीं था।
सम्मन तथा नेकी ने देखा कि गर्दन पर कोई चिन्ह भी नहीं है। लड़का जीवित कैसे हुआ? अन्दर जा कर देखा तो वहाँ शव तथा शीश नहीं था। केवल रक्त के छीटें लगे थे जो इस पापी मन
के संश्य को समाप्त करने के लिए प्रमाण बकाया था। ऐसी-2 बहुत लीलाएँ साहेब कबीर (कविरग्नि) ने की हैं जिनसे यह स्वसिद्ध है कि ये ही पूर्ण
परमात्मा हैं। सामवेद संख्या नं. 822 में कहा है कि कविर्देव अपने विधिवत् साधक साथी की आयु बढ़ा देता है।
( अब आगे अगले भाग में)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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deepaksahu91 · 11 months
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जगन्नाथ पुरी के पंडे की रक्षा करना
एक दिन कबीर साहेब राजा सिकन्दर लोदी और वीर सिंह बघेल के सामने बैठे थे। अचानक अपने पैरों पर कमंडल से हिमजल डालने लगे। जब राजाओं ने पूछा तो कबीर साहेब ने बताया कि जगन्नाथपुरी में एक रामसहाय पंडा है उसके पैरों में गर्म खिचड़ी गिर गई है उसे ही बचा रह हूँ।
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"Sant Rampal Ji Maharaj"
Kabir Prakat Diwas 4 june 2023
Visit :- 👉 Sant Rampal Ji Maharaj on YouTube Channel
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vikaskumarsworld · 8 months
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🎍मानव समाज के मसीहा संत रामपाल जी महाराज🎍
विश्व सुप्रसिद्ध भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के अनुसार स्वतंत्रता के 4 वर्ष बाद संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना जिला सोनीपत हरियाणा में हुआ
नास्त्रेदमस ने सन् 1555 में लिखा है कि एक अद्वितीय हिन्दू संत अचानक प्रकाश में आयेगा। मैं छाती ठोक कर कहता हूँ कि मेरे उस ग्रेट शायरन का कृतत्व और उसका गूढ़ गहरा ज्ञान ही सबकी खाल उतारेगा। वह संत आध्यात्मिक चमत्कारों से आधुनिक वैज्ञानिकों की आँखें चकाचौंध करेगा। उस महापुरुष पर झूठा देशद्रोह का आरोप भी लगेगा।
यह भविष्यवाणी उनके लिए हुई थी
सिक्ख धर्म के पवित्र ग्रंथ
"जन्म साखी भाई बाले वाली" में भी लिखा है कि उस महान संत का जन्म जाट जाति में होगा और उसका प्रचार क्षेत्र बरवाला होगा
"उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम फिरता दाने दाने नूं सर्व कला सतगुरु साहेब की हरी आये हरियाणें नूं"
मानव कल्याण के लिए संत रामपालजी महाराज ने अपनी जे.ई. की सरकारी पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया था।
संत रामपाल जी महाराज जी का संघर्ष शुरू होता है। सन 1994 के बाद संत रामपाल जी महाराज जी जूनियर इंजीनियर की नौकरी और खुशहाल परिवार को छोड़ कर पूरे विश्व की आत्माओं को जगाने में लग गए। उसके बाद संत रामपाल जी महाराज जी ने दिन रात एक करके भक्त समाज को जागरूक किया और भटके हुई आत्माओं को मोक्ष का रास्ता दिखाते हुए कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य एक ऐसे स्वच्छ समाज की स्थापना करना है जो चोरी, जारी, ठगी, रिश्वतखोरी, नशे से दूर हो।
आज हकीकत में उनके ज्ञान से यह सम्भव हो रहा है। विश्व में प्रेम व शांति स्थापित करना व कुरीतियों, पाखंडवाद, नशा, दहेज प्रथा आदि को समाप्त कर��े सबको एक परमात्मा की भक्ति करवाकर सुखी बनाना और ��ूर्ण मोक्ष देना है।
कलयुग में सतयुग जैसा माहौल बनाना ही है संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य
कबीर साहेब की वाणी है: कलयुग मध्य सतयुग लाऊं।
ताते सत कबीर कहाऊं।।
इस वाणी को कबीर साहेब जी ने वर्तमान समय के लिए बोला था, आज स्वय कबीर साहेब जी ही संत रामपाल जी महाराज के रूप में धरती पर आकर अपनी वाणी को सच कर रहे हैं।
संत रामपाल जी द्वारा चलाये मार्ग का मूल उद्देश्य है दुनिया में सतयुग जैसा माहौल बनाना।
#PropheciesAboutSantRampalJi
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#SantRampalJiMaharaj
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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पवित्र पुस्तक "धरती पर अवतार"
https://bit.ly/DhartiParAvtar16.5.2000
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ashfaqqahmad · 11 months
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Mirov
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#चैप्टर_1: अगर कभी ध्यान से सोचा जाये तो इंसान का अस्तित्व वह कुल इनफार्मेशन भर है जो वह अपनी आखिरी सांस तक हासिल करता है। यही उसकी मेमोरी है, यही उसके होने का अहसास है और यही उसका जीवन है। अगर किसी दिमाग़ से यह सारी इनफार्मेशन खुरच कर निकाल ली जाये तो फिर भले उसका शरीर बाकी रहे, लेकिन वह इंसान खत्म हो जायेगा, उसका अस्तित्व, "मैं" होने का अहसास मिट जायेगा और इसी से तो वह था। अब उसकी यह इनफार्मेशन अगर किसी दूसरे ब्लैंक दिमाग़ में या किसी आर्टिफिशियल ह्युमन में डाल दी जाये तो उसी इनफार्मेशन के सहारे वह कृत्रिम इंसान ख़ुद को वही इंसान समझेगा।
सोचिये कि कितना दिलचस्प है यह मेमोरी और इंसानी अस्तित्व का खेल… प्रस्तुत कहानी इसी विचार से शुरु होती है। इस विस्तृत कहानी का पहला चैप्टर इसी विचार से पैदा एक खोज है, जो एक चार सौ साल पुरानी हिमालयन रीज़न में दबी लाश की मेमोरी और आधुनिक युग के एक आर्टिफिशियल मानव के मेल के साथ शुरु होती है और अतीत में दबा एक ऐसा फसाना सामने आता है, जिससे ढेरों तरह की उलझनें खड़ी हो जाती हैं।
वहां मुगल साम्राज्य के उत्तरी किनारे पर बसी एक घाटी में वह सभ्यता मौजूद थी जो अपने महापूर्वज के लिये सोना-चांदी, क़ीमती कलाकृतियां/धरोहरें आदि लूट कर उस जगह इकट्ठी कर रही थी जो सत्रहवीं सदी में इक्कीसवीं सदी की आधुनिक सुविधाओं के साथ मौजूद थी, जो उस दौर में संभव ही नहीं था— लेकिन वह जगह ऐसे वीरानों में और भी जाने कितने पीछे से मौजूद थी। उन लुटेरों का महापूर्वज ख़ुद को दो सौ साल पुराना बताता था, जबकि दिखने में वह बस बत्तीस-चौंतीस की उम्र का ही था और वह झूठ भी नहीं बोल रहा था।
उन पुरानी स्मृतियों से जूझते एडगर वैलेंस के लिये वह सवाल ही नहीं बवाले जान नहीं थे, बल्कि आधुनिक दौर के वह लोग भी थे, जो उस पर अपने बाॅस को मारने और उनकी एक मोटी रकम लूटने का इल्ज़ाम लगा रहे थे— वह लड़की भी थी जो उस पर अपना शरीर लेने का इल्ज़ाम लगा रही थी और उससे अपना शरीर वापस चाहती थी, जबकि उसे ऐसा कुछ भी याद नहीं था।
#चैप्टर_2: एक आदमी अचानक ग़ायब होने के सौ साल बाद प्रकट होता है और बताता है कि उसने तो सिर्फ चार दिन किसी रहस्मयी जगह पर गुज़ारे हैं, और उसकी उम्र भी वही थी, जिससे दुनिया भर के लोगों की दिलचस्पी उस घाटी में हो जाती है, जहां वह रहस्यमयी जगह मौजूद थी। कुछ लोग हैं दुनिया में, जो सेटी (सर्च फाॅर एक्सट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस) के लिये काम करते हैं या एन्शेंट एस्ट्रानाॅट थ्योरिस्ट कहलाते हैं— दुनिया भर में एलियन एग्जिस्टेंस के सबूत ढूंढते फिरते हैं और उन्हें एनालाईज करते हैं। उन्हें सौ साल बाद सामने आये इसी आदमी के भरोसे उस घाटी में एलियन एग्जिस्टेंस की भरपूर संभावनाएं दिखती हैं और वे इसका रहस्य पता करना चाहते हैं।
लेकिन उस घाटी के मुसाफिर बस वही नहीं थे— एक टीम वह भी थी, जिसके लोगों के देशों से सम्बंधित धरोहरें जो चार-पांच सौ साल पीछे के अतीत में चुराई गई थीं और सैकड़ों साल तक गुमशुदा रहने के बाद अब एकाएक नीलामी के ज़रिये बेची जाने लगी थीं— और बेचने वाले उसी खास घाटी में बैठे थे। उनके सिवा वे दो टीमें भी थीं, जिन्होंने चार सौ साल पीछे के इतिहास में दफन उस कहानी का पता लगाया था और अब वे न सिर्फ उस खज़ाने को हासिल करना चाहते थे, बल्कि उस जगह के राज़ को भी पता करना चाहते थे।
#चैप्टर_3: हम अपने ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स में जितना कुछ देख जान पाते हैं, वह बस यूनिवर्स का चार-पांच प्रतिशत है और बाकी में जो अबूझ मटेरियल है, उसे हम डार्क मैटर और डार्क एनर्जी कह कर सम्बोधित करते हैं— लेकिन कहीं वही 94-95% यूनिवर्स ही तो असल यूनिवर्स नहीं है, जिसके लिये शैडो यूनिवर्स शब्द का इस्तेमाल होता है— और हमारा अपना जाना-पहचाना यूनिवर्स उस यूनिवर्स में आई मामूली एनाॅमली भर हो। कहानी का तीसरा चैप्टर इसी संभावना को साकार करते हुए इस वास्तविक यूनिवर्स का खाका खींचता है, जहां सब अनोखा है— उससे उलट, जो हमारा देखा और जाना-पहचाना है।
वहां भी सभ्यताएं हैं, तरक्की के पैमाने पर जीरो से लेकर वहां तक, कि वे पूरे यूनिवर्स तक को रीडिजाइन करने की क्षमता रखती हैं। जो सबसे तरक्कीशुदा सभ्यताएं हैं, वे इसी धुरी के अंतर्गत एक दूसरे के साथ संघर्ष में उलझे हैं और पृथ्वी से ट्रांसफार्म हो कर वहां पहुंचे लोगों को भी अपने साथ यह कह कर उलझा लेते हैं कि अगर उनका यूनिवर्स रीडिजाईन होता है तो इंसानों का यूनिवर्स ही कोलैप्स हो जायेगा। इस कठिन संघर्ष के अंतिम मरहले पर एक ऐसा महायुद्ध होता है, जिसमें पूरी की पूरी सभ्यताएं मिट जाती हैं।
तीनों किताबें एक साथ पब्लिश की गई हैं और ऑनलाइन बिक्री के लिये अमेज़न/फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध हैं। जिन्हें डिजिटल फार्मेट में पढ़ना पसंद है, उनके लिये यह सुविधा किंडल पर मौजूद है। सभी लिंक पोस्ट के साथ ही संलग्न हैं।
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crzayfrog · 1 year
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भाभी के साथ हसीन रात
राधिका 35, एक बड़े घराने की घरेलू महिला था, बिलकुल अपने संस्कृति और धर्म को मानने वाली महिला थी, उनका पति एक बैंक के मैनेजर पोस्ट पर काम करते थे, और उनका नया नया सादी हुआ था, और वो अपने मायके और ससुराल से दूर असम आई हुई थी क्योंकि उनके हब्बी विक्रांत का ट्रांसफर वहीं हुआ था
कबीर 23, ग्रेज्यूशन पहला पार्ट में दाखिला करा कर, छोटे मोटे ऑफिस में काम करके अपना पढ़ाई का खर्चा उठा रहा था, परिवार सामर्थ नही था की कबीर को पढ़ा सके या उसके लिए कुछ कर सके, और शायद ये बात कबीर भी कुछ हद्द तक जानता था, समय बीतता गया और कबीर भी सही ट्रैक पर आ गया
बीते दो तीन साल
कबीर शुरू से शर्मिला था और वो उसका लगाव औरतों और लड़कियों में कम था, अब यूं कहे की उसे अपने कैरियर का खतरा लगता या वो ये सब चक्कर में नही फसना चाहता था
कुछ दिन बाद एक कंपनी का कॉल आया, कबीर ने बहुत ही सोच समझ कर उत्तर देते गया और उसकी नौकरी फ्लिपकार्ट में लग गई , अच्छे सैलरी पैकेज के साथ, ये बात उसने पहले अपने मां बाबूजी को बताया फिर अपने दोस्तों के साथ जश्न किया
करीब एक साल बाद वो ऑफिस के लिए रोजमर्रा की तरह निकलता और शाम को लौटता, उसे इतना तक पता नही की कोई उसे लंबे समय से ताड़ रहा है
वो ठहड़ा सीधा साधा, काम पी जाता और शाम को लौटता, एक दिन ऐसा समय आया की भाभी ने जानकर कबीर के तरफ इशारा की, तो कबीर को वहम लगा और उस दिन भी बिना देखे कबीर ऑफिस चला गया
अचानक से राधिका अपना सारी का पल्लू को कमर में बांधे हुए, कबीर के पास पहुंची और बोली बहरा है क्या, सुनाई नही देता है
4 दिन से चिल्ला रही हूं और तुम हो की इग्नोर किए जा रहे हो, किस बात का इतना घमंड है तुझ में, ये पकड़ो तुम्हारा चड्डी उस दिन हवा में उर के हमारे बालकनी में आ गिरा था, मुझे भी कोई शौक नही है तुम्हे बुलाने का पर किसी के मेहनत का मैं फिजूल बर्बाद नही होना देना चाहती
राधिका वही गरम मिजाज में वहां से चली गई और ढेड़ सारा बात कबीर को सुना दी, उसे समझ नही आ रहा था की क्या बोले, वो शांत से उस भाभी को देखे जा रहा था, ऐसे जैसे उसकी शिक्षिका ने कवीर को किसी ��ात को लेकर ताना मार कर गई हो
अब कबीर को समझ नही आ रहा था की जो चड्डी सामने वाला भाभी से मिला है वो उसका है भी या नहीं उसे समझ नही आ रहा था, क्योंकि कबीर सब अपना सामान बहुत संयोज के रखता है
खैर उसने उठाया और चला गया, क्योंकि वो इतना सुन लिया था की उसे बाहर में रहने की हिम्मत नही हुई, समय उस दिन कैसे काट गया, कुछ भी पता नही चला
अगले दिन सुबह करीब 5 बजे रोज की तरह कबीर निकला और बाहर टहलने लगा, ठीक 5 मिनट बाद भाभी भी बालकनी में खुले बाल के साथ आ गई, बड़े गले का मैक्सी और काजल का अधूरापन जैसे दिखना ये कबीर के जहन में छा गई
कभी कबीर देखता तो कभी वो, धीरे धीरे दोनो में नजदीकियां आने लगी, और रोज की तरह भाभी समय पर आ जाती, एक दिन रविवार का समय था, राधिका अपने कमरे तक से बाहर नहीं निकली
इधर कबीर पूरा परेशान, समझ नही आ रहा था क्या करे, फिर उसने जैसे तैसे खुद को संभाला और अपने कमरे में बिना कुछ खाए सो गया
शाम करीब 5:15 हो रहा था तभी राधिका उसके कमरे में आई और बोली, आज बाहर क्यूं नही आए
कबीर को तेज गुस्सा आया और वो निगल गया, जान गया था की अभी गुस्सा करना ठीक नहीं, उसने बस एक बात कहा, सुबह से आप कहां थी, बस यही कारण था की हम आपको इग्नोर करते थे और मुझे ये भी पता था, की वो चड्डी हमारा नही था
राधिका मुस्कुराते हुए बोली, मैं जानती हूं पर तुम्हे पता है की मैं 6 महीना से परेशान थी तुम्हारे लिए, किसी का कैसे होने दूं और फाई राधिका बड़े ही बेशर्म होकर गले लगा ली
अब इनबॉक्स में चर्चा कर सकते हैं
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sujit-kumar · 1 year
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 126
परमात्मा कबीर जी की भक्ति से हुए भक्तों को लाभ‘‘
’’परमात्मा ने की जीवन रक्षा‘‘
।। बन्दी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय ।।
मुझ दास का नाम रोहित दास पुत्र श्री रामबाबू दास ग्राम उदयपुरा जिला-रायसेन (मध्यप्रदेश) है। सतगुरु देव जी से नाम-उपदेश लेने से पहले मेरे घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। मेरी पत्नी बीमार रहती थी। इतनी परेशानियाँ होने के बावजूद भी हम देवी-देवताओं की भक्ति करते रहते थे। हम जयगुरुदेव पंथ से जुड़े हुए थे। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मेरी माता जी ने जयगुरुदेव पंथ में परमात्मा को पाने के लिए बहुत ही कठिन साधना की। 72 दिन तक भोजन नहीं किया। उनके हाथ-पैर पूर्ण रूप से काम करना बंद कर गए। उनकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि वह अपने हाथों से खाना भी नहीं खा पाती थी।
एक बार हम जयगुरूदेव मथुरा गए हुए थे। वहाँ पर संत रामपाल जी के भक्तों ने पुस्तकें वितरित की। कार्यक्रम के दौरान वहाँ पर उस पुस्तक के बारे में बताया कि कोई भी सदस्य इस पुस्तक को खोलकर न पढ़े। इसको पढ़ने से आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाएगी। ऐसा उन लोगों ने बोला और जो संत रामपाल जी के शिष्य जो वहाँ पुस्तक वितरित कर रहे थे, बाबा जयगुरूदेव के भक्तों ने उनको पकड़कर पीटा। सारी पुस्तकों को इकठ्ठा करके जला दिया। उसी समय दास के मन में आया कि आखिर इस पुस्तक में ऐसा क्या है? लेकिन मुझे वो पुस्तक प्राप्त नहीं हो पाई थी। कुछ समय बाद गाँव के एक भक्त ने ज्ञान गंगा पुस्तक लाकर दी। टी.वी. पर सत्संग भी दिखाया। ज्ञान समझकर दास उनके साथ सतलोक आश्रम बरवाला में आया और नाम-दीक्षा ली। दीक्षा लेने के बाद लाभ ही लाभ बढ़ते गए।
एक बार मेरी पत्नी (भक्तमति राधा) के सीने में तेज दर्द हुआ। मैंने कहा उपदेश लेने का, लेकिन उनको परमात्मा पर विश्वास नहीं था, परंतु दर्द बढ़ने पर उन्होंने सतलोक आश्रम बरवाला जाने का विचार किया। ठंड के दिन थे। ट्रेन में बहुत तेज ठण्ड लग रही थी। मेरी पत्नी ने मन ही मन कहा कि यदि परमात्मा हैं तो मुझे ठंड से बचाये। कुछ देर के बाद एक सफेद कंबल मेरी पत्नी के ऊपर आकर गिरा। मैंने पूछा कि यह कंबल किसका है? जितने भी लोग केबिन में बैठे थे, सभी ने मना कर दिया। मैंने कहा कि यह कंबल परमात्मा ने दिया है।
तब मेरी पत्नी को बरवाला आश्रम पहुँचने से पहले ही परमात्मा पर पूर्ण विश्वास हो गया और सतलोक आश्रम बरवाला पहँुचते ही उन्होंने नाम-उपदेश ले लिया। नाम-उपदेश के पश्चात् ही उनके सीने का दर्द भी ठीक हो गया।
सबसे बड़ा लाभ परमात्मा ने मेरे छोटे बेटे अरूण दास को नया जीवन दान देकर किया। उसे एक रात 10-11 बजे के आसपास अचानक सीने में दर्द और सांस लेने में दिक्कत होने लगी। वह पूरा पसीने से भीग गया और बैड से नीचे गिर गया। बेटे की हालत देखकर तो मैंने उसे मृत ही मान लिया था। मेरी बेटी ने कहा कि सतगुरु देव जी से अरदास लगा लो। मैंने कहा कि रात 11ः00 बजे अरदास नहीं लगती और मेरे पास आश्रम में अरदास लगाने का नम्बर भी नहीं है। मेरी बेटी ने मोबाइल से संभाग काॅर्डिनेटर से अरदास का मोबाइल नंबर लेकर सतगुरु देव जी से अरदास लगाई। अरदास लगाने के बाद बेटा सांस लेने लगा। हम उसे तुरंत हाॅस्पिटल लेकर गये। उन्होंने कहा कि आपके पास 1 घंटा है।
यह कहकर दूसरे हाॅस्पिटल में रैफर कर दिया। लेकिन वहाँ पर भी एक बोतल लगाकर तीसरे हाॅस्पिटल में रैफर कर दिया। वहाँ पर 15 दिन तक मेरे बेटे को आॅक्सीजन लगी रही। उसके बाद सारी रिपोर्ट नाॅर्मल आ रही थी। डाॅक्टर भी हैरान थे। उनको समझ नहीं आ रहा था कि बीमारी क्या है?
रिपोर्ट सारी नाॅर्मल आ रही हैं। यह बहुत बड़ा चमत्कार मालिक ने किया, लड़का पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया।
सतगुरु जो चाहे सो करहीं, चैदह कोटि दूत जम डरहीं।
ऊत भूत जम त्रास निवारैं, चित्र-गुप्त के कागज फारैं।।
एक बार मेरा बड़ा बेटा तरूण दास काॅलेज से घर आ रहा था। उसकी बस का एक्सीडेन्ट हो गया जिसमें तीन बच्चों की मृत्यु हो गयी। लेकिन मेरे बेटे को मामूली खरोंचें ही आई और मेरे बेटे को परमात्मा ने नया जीवन दान दिया।
सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम-उपदेश लेने के बाद अब मेरी माता जी के भी हाथ काम करने लगे हैं। अब वे अपने हाथों से खाना खा पाती हैं। आज परमात्मा से नाम-उपदेश लेने के पश्चात् हमारी आर्थिक स्थिति बिल्कुल ठीक है तथा हम सपरिवार पूर्ण रूप से ठीक हैं तथा परमात्मा की भक्ति कर रहे हैं। आप सभी से हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि पूर्ण परमात्मा धरती पर सतगुरु रामपाल जी महाराज के रूप में आए हुए हैं। उन्हें पहचानें तथा नाम-उपदेश लेकर अपना कल्याण कराएँ तथा जन्म-मरण से छुटकारा पाएँ।
।। सत साहिब ।।
भक्त रोहित दास
ग्राम-उदयपुरा, जिला रायसेन (मध्यप्रदेश)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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rush2crush · 1 year
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पिंजरे का परिंदा
मेरे घर बचपन में एक पंछी आया था जिसे घर के सभी लोग प्यार से मिठ्ठू तोता कहकर बुलाते थे। मेरी दीदी को तोता देते हुए पिता जी उससे बोले "देखो बेटा! काफ़ी मोल भाव करने के बाद बाज़ार से यह तोता खरीद कर लाया हूं। इस बार अगर यह तोता पिंजरे से उड़ा तो मैं फिर कभी भी नहीं लाऊंगा। भला गुड़िया दीदी को इन सब बातों से क्या लेना देना था । वह तो सिर्फ मिठ्ठू के साथ खेलने में व्यस्त थी,लेकिन मां और घर के सभी सदस्य पिता जी की बातों को समझ रहे थे इसलिए इस बार एक नया पिंजरा भी मंगवा कर रख लिया गया था। तोता का पिंजरा इतना प्यारा और अनोखा लग रहा था जिसे देखकर मेरी आंखें भी खुशी से चमक रही थी। घर के सभी लोग उसे स्नेह से पालने लगे और उसका ख्याल भी रखा जाने लगा । मिठ्ठू को समय पर पानी,फल,मिर्च और खाना देना घर के सभी लोगों की जिम्मेवारी बन गई थी। गुड़िया दीदी हर रोज मिठ्ठू को देखकर सोती थी और उसे जागने के बाद दिन भर निहारा करती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि मिठ्ठू तोता अब गुड़िया कटोरे कटोरे बोलने लगा था। हर रोज मिठ्ठू तोता को पिंजरा में खाना मिलता और उसे खाकर दिन भर वो गुड़िया कटोरे कटोरे बोलता रहता था। कुछ सालों तक यह सिलसिला चलता रहा,लेकिन एक दिन अचानक सुबह सुबह गुड़िया दीदी जोर जोर से रोने लगी उसकी आवाज़ को सुनकर घर के सभी लोग बाहर आंगन में आकर देखा तो वे सब लोग हतप्रभ रह गए। गुड़िया उस पिंजरे को अपने सीने से लगाकर जोर जोर से रो रही थी। उसकी आवाज़ में इतनी करुणा और ममता भरी हुई थी कि आस पास के लोग भी कारण जानने के लिए मेरे आंगन में पहुंच गए। अब घर व बाहर के लोग यह जान गए थे कि बात उस पिंजरे वाले तोते की है जो कल रात पिंजरे को तोड़कर कहीं उड़ गया। सब लोग मेरी दीदी को समझा रहे थे तभी पिता जी को आंगन में आता हुआ देखकर उनके पास जाकर मै लिपट कर रोते हुए कहा "पापा यह तोता हर बार क्यूं भाग जाता है, तब उन्होंने हम दोनों भाई बहन को गोद में बैठकर एक कविता सुनाया: हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएँगे, कनक-तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएंगे।
नीड़ न दो चाहे टहनी का, आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो, लेकिन पंख दिए हैं तो, आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।”
शिव मंगल सिंह सुमन द्वारा रचित उस कविता का अर्थ उस वक्त नहीं बल्कि ज्ञान होने पर समझ में आया लेकिन साथ ही साथ मेरे हृदय में एक भाव भी जागा कि आख़िर क्यूं? कोई पंछी गुलामी के पिंजरों में बंधकर नहीं रहना चाहता है। इस भाव को सार्थकता प्रदान करने के लिए मैंने भी एक तोता पाला। जिसकी तस्वीर आज देखकर मुझे मेरे बचपन के तोते की कहानी याद आ गई।संभवतः इस तोते से एक ऐसा लगाओ बन गया था जो मेरी कदमों की आहट सुनकर जोर जोर से मेरा नाम पुकारने लगता था। लोगों को आश्चर्य तब होता था जब वह पूरे आसमान को छूने के बाद भी मेरे छत पर आकर बैठ जाता और मैं खुशी से फूलते हुए पिता जी से कहता था "देखिए मेरा तोता कहीं नहीं भागता है", लेकिन एक दिन ऐसा आया जब वह पिंजरा से बाहर तो निकल जाता था लेकिन उसके उड़ने की जिज्ञासा शांत हो गई थी,कारण जानने के बाद मालूम चला एक दिन मिठ्ठू घायल होकर आसमान से मेरे ही छत पर आ गिरा था। यह सुनकर उस वक्त अपनी पीड़ा से मैं खुद मुक्त नहीं हो पा रहा था ऐसा लग रहा था मानो मेरी जिद्द ने एक आजाद परिंदे को गुलाम बना लिए हों। मेरे लाख कोशिशों के बाद भी वह तोता आसमान की ओर फिर कभी नहीं देखा और अंततः उसने उसी पिंजरे में अपना दम तोड दिया जिसमें उसे कैद करके कई बरसों तक मैंने रखा था। ये सोचकर कि अगर प्यार और स्नेह मिले तो गुलामी की जंजीरें से बंधकर भी पंछी और आदमी जी सकता है,लेकिन शायद मैं गलत था बिल्कुल गलत था।
@अनजान मुसाफ़िर
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kaminimohan · 2 years
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1314
जीतना नहीं आया
- कामिनी मोहन।
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सब देखते
सुनते
समझते
कुछ उष्म
कुछ सुगंध समेटकर
अचानक से एक दिन
बिना कुछ कहे
सब छोड़कर चल दिए थे।
तुम नहीं मरते
पर जिस देह में रहकर
तुम उमगते थे
सत्-रज्-तम् के प्रवाह में घुलकर
कर्म के मोती चुनते थे।
करते थे
दस प्राण-सात चक्र पर नियंत्रण
श्वास में घुलकर नाड़ियों में
विचरण करते थे
देह चाहे थक जाए
पर तुम नहीं थकते थे।
जो जीवन गीत हृदय ने बुने थे
जो गीत छुपकर तुमने सुने थे
कई धुनों, कई रागों के साक्षी
हर बार तुम ही तो बने थे।
गैलेक्सी के किस कोने पर
प्रेम के भीगे बिछौने पर
स्वर जो कंठ से निकले
कहाँ रख दिए।
भाषाएँ तुम्हारी हम बोलते हैं
स्पर्श में हर पल तुम्हें टटोलते हैं
गेह, नेह, श्रेय, प्रेय की हैं तुम्हारी भाषाएँ
हम बोलते-पढ़ते सोचते हैं।
पर मीमांसा के मेह में भीगना नहीं आया
तर्क, वितर्क और कुतर्क में
इस देह को तुमसे जीतना नहीं आया।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
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santram · 2 years
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🍃 *कबीर बड़ा या कृष्ण* 🍃
*(Part_128)*
*’’अनहोनी की परमात्मा ने‘‘*
*(शादी के 16 साल बाद संतान प्राप्ति)*
📜सतगुरु के दरबार में कमी काहे की नाहीं। हंसा मौज न पावता तेरी चूक चाकरी माहीं।।
मैं भक्त रामजी दास ग्राम-कटरा पोस्ट-सलेहा, जिला-पन्ना (मध्यप्रदेश) का निवासी हूँ। मैं बचपन से परमात्मा की खोज में लगा हुआ था और हिन्दू धर्म के मंदिरों व धामों आदि पर जाता रहता था। साथ ही एक कबीरपंथी संत से नाम-उपदेश भी लिया हुआ था। मेरी शादी को कई साल बीत गए थे। लेकिन हमें कोई संतान प्राप्ति नहीं हुई। जहाँ मैडिकल फेल हो जाता है, वहाँ परमात्मा का विधान शुरू होता है।
कई जगह (देवी-देवताओं के पास मंदिर-मस्जिद, झाड़-फंूक करवाया) गए, वैष्णो देवी जम्मू भी गया, बड़े-बड़े डाॅक्टरों को दिखाया। सबसे पहले सिविल अस्पताल मैहर में डाॅ. श्रीमति एस. बी. अवधाय��� एम.डी., प्रसूति एवम् स्त्राी रोग चिकित्सक को दिखाया और अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी के द्वारा उन्होंने देखा कि उनकी बच्चेदानी में गाँठें हैं, वे निकालनी पड़ेंगी। इसके लिए सतना में जाना पड़ेगा। 18 फरवरी 2009 में शकुंतलम् नर्सिंग होम सतना में बच्चेदानी का आॅपरेशन हुआ। इसके बाद भी हमें संतान प्राप्ति नहीं हुई। लेकिन दवाएँ चलती रही। इसके बाद सन् 2012 में शारदा हाॅस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर सतना में डाॅ. महेन्द्र सिंह के यहाँ 1 वर्ष तक इलाज चला। फिर अंत में डाॅक्टरों ने हमें बोल दिया कि आप टेस्ट-ट्यूब बेबी करवा सकते हैं। परंतु उसकी भी कोई गारंटी नहीं है। उसमें लाख दो लाख रूपये खर्च आता है।
हम गरीब आदमी इतनी बड़ी रकम कहाँ से लाते? हमने मना कर दिया। हमने दुनिया के लोगों की रोज की बातों से तंग आकर फैसला किया कि चलो! रोज की खिच-खिच से अच्छा हम नोएडा (उत्तर प्रदेश) चलते हैं। वहीं काम करेंगे और वहीं इलाज करवाएँगे। फिर हमने सुन रखा था कि वैष्णों देवी जाने से संतान प्राप्ति होती है तो जुलाई 2012 में कटरा (जम्मू) जाकर वैष्णों देवी की यात्रा की। इससे भी कोई राहत नहीं मिली। हम मकर सक्रांति को जनवरी 2013 को घर आये। हम साधना चैनल पर सत्संग कार्यक्रम देखते थे। मेरे पिता जी बोले कि कबीर साहेब जी का सत्संग आता है, आप भी देखो। हमने सत्संग देखा और पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’’ मंगवाई जो हमारे घर निःशुल्क प्राप्त हुई। पिताजी बोले कि आप बरवाला आश्रम चले जाओ, परमात्मा शायद दया करें।
हम दोनों ने 21 अप्रैल 2013 को सतलोक आश्रम बरवाला में सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम-दीक्षा लेकर अरदास लगाई कि कई साल हो गए, हमें संतान प्राप्ति नहीं हो रही है। परमात्मा बोले कि बेटा! भक्ति करो, परमात्मा दया करेंगे। इस प्रकार चलते-चलते नवम्बर 2014 में बरवाला कांड की लीला हो गई। हम घर आ गए। हमें पता लग गया था कि ये मानव जीवन किसलिए मिला है और हम भक्ति करने लगे थे। कुछ दिनों बाद फिर घर-परिवार वाले और रिश्तेदार वही पुराना रोना रोने लगे कि एक संतान तो होनी ही चाहिए। गाँव के लोग तो कभी-कभी यहाँ तक बोलने लगे कि इनका तो मुँह भी नहीं देखना चाहिए। एक दिन भक्तमति बोली कि चलो दवा करवाते हैं। परमात्मा दवा के लिए तो मना नहीं करते। हमने गुरु जी से अरदास लगाई कि दवा करवा लें। गुरु जी बोले कि करवा लो, परमात्मा दया करेंगे। फिर हमने डाॅ. आभा पाठक नर्सिंग होम सतना में मार्च 2019 में इलाज शुरू किया। उन्होंने भी लाॅस्ट में बोल दिया कि हम ऐसे केस नहीं लेते। आपका तो भगवान ही मालिक है। अब मेडिकल और सांइस दोनों फेल हो चुके थे। डाॅक्टर मैडम के ऐसे बोलने पर हमने फैसला कर लिया कि अब हम कहीं दवा नहीं करवाएँगे।
जो करेंगे, वो सब बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज ही करेंगे। फिर सितम्बर 2020 में परमात्मा ने अपने कोटे से एक भक्त आत्मा हमें संतान रूप में दी जो हमारी किस्मत में नहीं थी। वह परमात्मा ने दी। यहाँ तक कि जब हमारी भक्तमति घर से बाहर निकलती थी तो लोग बोलते थे कि यह बांझ है, इसका मुँह नहीं देखना चाहिए। परमात्मा ने उन्हें भी दिखा दिया।
उसके बाद तो परमात्मा पल-पल हमारे साथ चमत्कार करते हैं। एक समय की बात है, हम और भक्तमति मोटरसाइकिल पर कहीं जा रहे थे। अचानक हमारा एक्सीडेंट हो गया। भक्तमति का सिर फट गया। मुँह से झाग निकलने लगा, मानो मृत्यु हो गई हो। अस्पताल में डाॅक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि ये बेहोश हैं और सिर की चोट है। अगर इनको होश नहीं आया तो ये कोमा में भी जा सकती हैं। सुबह 10ः00 बजे हमारा एक्सीडेंट हुआ था और शाम को 3ः00 बजे के आसपास भक्तमति जी को होश आ गया और हम घर आ गये।
एक जगह दास मजदूरी करता है। एक जगह काम के लिए गया था। जिनके यहाँ काम करना था, उनका मकान जर्जर था। जैसे ही दास ने प्रवेश किया, उस मकान में ऊपर से एक लकड़ी का गार्डर मेरे ऊपर गिर गया और लोगों ने कहा कि यह तो मर गया होगा। लेकिन जब दास ने ऊपर देखा तो सिर से 6 अंगुल ऊपर वह गार्डर का टुकड़ा हवा में लटकता रहा। जब दास ने उसको देखा तो दास के आँसू निकलने लगे। परमात्मा की केवल एक वाणी याद आई कि:-
संत शरण में आने से आई टले बला।
जे मस्तक में सूली हो, वो काँटे में टल जा।।
।। सत साहेब।।
आपका दास
रामजी कोरी, ग्राम: कटरा,
जिलाः पन्ना (मध्यप्रदेश)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर ��्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
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breathclinic · 19 hours
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स्लीप एपनिया नींद से संबंधित एक खतरनाक विकार है
क्षण जोर से खर्राटे लेना। नींद के दौरान अचानक सांस बंद होने की समस्या, यह अक्सर दूसरे लोग ही देख पाते हैं। नींद के दौरान हांफना सुबह उठने के साथ अक्सर मुंह का सूखा रहना। सुबह अत्यधिक सिरदर्द बना रहना। सोने में कठिनाई (अनिद्रा) दिन में बहुत नींद आना (हाइपरसोमनिया) Consult with Dr. Pankaj Gulati a famous Pulmonologist in Jaipur. Call us at 7878264902
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