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#सुंदर भोजन
kv1nsbvizag · 2 years
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भोजन की छवियों को देखने पर हमारे मस्तिष्क का क्या होता है? यह शोध बताता है
भोजन की छवियों को देखने पर हमारे मस्तिष्क का क्या होता है? यह शोध बताता है
क्या आपने कभी सोचा है कि रेस्तरां में परोसे जाने वाले भोजन की ड्रेसिंग और प्रस्तुति पर जोर क्यों दिया जाता है, कभी-कभी इसके स्वाद से कहीं ज्यादा? मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के वैज्ञानिकों ने पाया है कि न केवल भोजन का स्वाद हमारी स्वाद कलियों को प्रभावित करता है, बल्कि दृश्य उपस्थिति भी हमारे मस्तिष्क के एक विशेष हिस्से में प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है। रिपोर्टों एमआईटी…
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aikoalabama · 4 days
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お仕事お疲れ様です。🍓
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美脚OLの楽しいランチタイム~社員食堂~ 39YouTubeで見てね🌸
Fun lunch time with beautiful legged office ladies - Employee cafeteria - Fun lunch time with sweaty office ladies 美脚OLの楽しいランチタイム~社員食堂~ 汗かきOLちゃんたちと楽しいランチタイム A beautiful and wet female employee with beautiful legs 美女湿身女员工美腿 Una empleada hermosa y mojada con hermosas piernas. Une employée belle et mouillée avec de belles jambes Seorang pegawai wanita cantik dan basah dengan kaki yang indah Eine schöne und feuchte Angestellte mit schönen Beinen खूबसूरत टांगों वाली एक खूबसूरत और गीली महिला कर्मचारी
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narinder-dhawan · 1 year
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*** बहुत सुंदर विचार ***
◆ *अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी* ...
🙏थोड़ा समय निकाल कर अंत तक पूरा पढ़ना 🙏
✍️ मौत के स्वाद का
चटखारे लेता मनुष्य ...
थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ...
*मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है*।---
बकरे का,
गाय का,
भेंस का,
ऊँट का,
सुअर,
हिरण का,
तीतर का,
मुर्गे का,
हलाल का,
बिना हलाल का,
ताजा बकरे का,
भुना हुआ,
छोटी मछली,
बड़ी मछली,
हल्की आंच पर सिका हुआ।
न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के।
क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा....
स्वाद से कारोबार बन गई मौत।
मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स।
नाम *पालन* और मक़सद *हत्या*❗
स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।
जो हमारी तरह बोल नही सकते,
अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं,
उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ?
कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ?
या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?
डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए !
बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...??
जिसे काटा गया होगा ?
जो कराहा होगा ?
जो तड़पा होगा ?
जिसकी आहें निकली होंगी ?
जिसने बद्दुआ भी दी होगी ?
कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो
भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ..❓
क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं .❓
क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है ..❓
धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो।
कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो ।
कभी सोचा ...!!!
क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ?
किसे ठग रहे हो ?
भगवान को ?
अल्लाह को ?
जीसस को?
या खुद को ?
मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!!
आज शनिवार है इसलिए नहीं ...!!!
अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!!
नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....!!!
झूठ पर झूठ....
...झूठ पर झूठ
..झूठ पर झूठ ..
ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हे दी । ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको। लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया।
तुम्ही कहते हो, की हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमे लौटायेगी।
यह संकेत है ईश्वर का।
प्रकृति के साथ रहो।
प्रकृति के होकर रहो।
🙏 🙏
आइए हम सब भाई बहन मिलकर मांसाहार भोजन का सदा सदा के लिए त्याग करें और जीवन भर के लिए शुद्ध सात्विक भोजन ही ग्रहण करने का प्रण लेंl आपका जीवन मंगल मय हो।🙏🙏
जैसा खाओं अन्न,वैसा होगा मन!
पवित्र गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में पूर्ण परमात्मा तथा इस जन्म मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाकर पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी संत की शरण में जाने के लिए कहा है।
वर्तमान में धरती पर एकमात्र तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज है।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें अनमोल पुस्तक ज्ञान गंगा, जीने की राह और गीता तेरा ज्ञान अमृत।
घर बैठे देखें अनमोल सत्संग प्रत्येक शाम साधना चैनल पर 7:30 से 8:30 बजे तक।
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#islamic #fasting #allah #musulman #hadith #quran #niqab #ramadankareem #ramadanmubarak #tarawih
#ramadan #bahrain
#AllahKabir
#SantRampalJiMaharaj #SaintRampalJi
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naveensarohasblog · 2 years
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#मुसलमाननहींसमझेज्ञानकुरआन_Part88 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#मुसलमाननहींसमझेज्ञानकुरआन_Part89
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरआन"
पेज नंबर 228-232
इतना कहकर परमात्मा गुप्त हो गए। सुल्तानी को मूर्छा आ गई। बहुत देर में होश में आया। अन्य मौलवी बुलाया। उसने बांयी बाजु पर ताबीज बाँधकर झाड़फूँक की, कहा कि अब कुछ नहीं होगा। चला गया।
लीला नं. 4:- कुछ दिन बाद राजा सामान्य होकर फिर मौज-मस्ती करने लगा। दिन के समय राजा अब्राहिम अपने नौलखा (जिसमें नौ लाख फलदार पेड़ भिन्न-भिन्न प्रकार के लगाए जाते थे, उसको नौलखा बाग कहते थे।) बाग में सोया करता था। उसके बिस्तर को नौकरानियाँ बिछाया करती थी। फूलों के गुलदस्ते चारों ओर रखा करती थी। नौकरानियों की पोषाक रानियों से भिन्न होती थी। सब बांदियों की पोषाक एक जैसी होती थी। दीन दयाल कबीर जी ने उस अपनी प्यारी आत्मा सम्मन के जीव को काल जाल से निकालने के लिए क्या-क्या उपाय करने पड़े थे। एक दिन परमेश्वर कबीर जी ने नौकरानी का वेश बनाया।( स्त्री रूप धारण किया।) बाग में राजा का बिस्तर (सेज) बिछाया। फूलों केगुलदस्ते अत्यंत सुन्दर तरीके से लगाए और स्वयं उस सेज पर लेट गए। राजा अब्राहिम आया तो देखा, एक बांदी (खवासी) मेरी सेज पर सो रही है। इसको मेरा जरा-सा भी भय नहीं है। सुल्तान ने उसी समय कोड़ा उठाकर लेटे हुए परमेश्वर की कमर पर तीन बार मारा। तीन निशान कमर पर बन गए, खाल उतर गई। बांदी वेश में परमेश्वर ने पलंग से नीचे उतरकर एक बार रोने का अभिनय किया और फिर जोर-जोर से हँसने लगे। दासी को इतनी चोट लगने के पश्चात् भी हँसते देखकर अब्राहिम आश्चर्य में पड़ गया। वह विचार कर रहा था कि बांदी को तो बेहोश हो जाना चाहिए था या मर जाना चाहिए था। राजा ने दासी वेशधारी परमात्मा का हाथ पकड़ा और पूछा कि
हँस किसलिए रही है?
परमात्मा ने कहा कि मैं इस बिस्तर पर एक घड़ी (24 मिनट) लेटी हूँ, विश्राम किया है। एक घड़ी के विश्राम का दण्ड मुझे तीन कोड़े मिला है। मेरे शरीर का चाम भी उतर गया है। मैं इसलिए हँस रही हूँ कि जो इस गंदी सेज पर दिन-रात सोता है, उसका क्या हाल होगा? मुझे तेरे ऊपर तरस आ रहा है भोले प्राणी!
मैं एक घड़ी सेज पर सोई। ताते मेरा यह हाल होई।।जो सोवै दिवस और राता। उनका क्या हाल विधाता।। गैब भये
ख्वासा। सुल्तानी भये उदासा।। यह कौन छलावा भाई। याका भेद समझ ना आई।। यह दृश्य देखकर सुल्तान अधम अचेत हो गया। उठा तब सोचा कि यह क्या हो रहा है? मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।लीला नं. 5:- कुछ समय के पश्चात् मन्त्रिायों-रानियों ने कहा कि राजा को शिकार करने ले जाओ। कई दिनों तक जंगल में रहो। इनके मन की चिंता कम हो जाएगी। ऐसा ही किया गया। पहले दिन ही दोपहर तक कोई जानवर नहीं मिला। राजा को यह सब अच्छा नहीं लगा। जंगल में तो मृगों के झुण्ड के झुण्ड चलते हैं। आज एक हिरण भी नहीं आया है। अचानक एक हिरण दिखाई दिया। राजा ने कहा कि यह हिरण बचकर नहीं जाना चाहिए। जिसके पास से निकल गया, उसकी खैर नहीं। देखते-देखते हिरण राजा के घोड़े के नीचे से निकलकर जंगल की और दौड़ लिया। राजा ने शर्म के मारे घोड़ा पीछे-पीछे दौड़ाया। दूर जाकर हिरण जंगल में छिप गया। राजा तथा घोड़े को बहुत प्यास लगी थी। जान जाने वाली
थी। अल्लाह से जीवन रक्षार्थ जल की याचना की। वापिस अपने पड़ाव की ओर चला। पड़ाव एक घण्टा दूर था। वहाँ तक जीवित बचना कठिन था। कुछ दूर चलकर दाऐं-बायें देखा तो एक जिन्दा फकीर बैठा दिखाई दिया। पास में स्वच्छ जल का छोटा जलाशय था। उसके चारों ओर फलदार वृक्ष थे। मधुर फल लगे थे। राजा को जीवन की किरण दिखाई दी। जल पीया, कुछ फल खाए। घोड़े को पानी पिलाया। वृक्ष से बाँध दिया। जिन्दा बाबा की ओर देखा तो उनके पास तीन सुंदर कुत्ते बँधे थे। एक कुत्ते बाँधने की सांकल (चैन=लोहे की बेल) साथ में रखी थी। सुल्तान ने फकीर को सलाम वालेकम किया। फकीर ने भी उत्तर में वालेकम सलाम बोला। राजा ने कहा, हे फकीर जी! आप तीन कुत्तों का क्या करोगे? इनमें से दो मुझे दे दो। फकीर जी ने कहा, ये कुत्ते मैं किसी को नहीं दे सकता। इनको मैंने पाठ पढ़ाना है। ये तीनों बलख शहर के राजा रहे हैं। मैं इनको समझाता था कि तुम अल्लाह को याद किया करो। इस संसार में सदा नहीं रहोगे। मरकर कुत्ते का जीवन प्राप्त करोगे। अब तुम नान पुलाव-काजू-किशमिश, मनुखा दाख, खीर, हलवा, फल खा रहे हो। यह आपके पूर्व जन्मों के पुण्यों तथा भक्ति का फल मिला है। यदि इस मानव जीवन में भक्ति नहीं करोगे तो कुत्ते आदि के प्राणियों के जीवन में कष्ट उठाओगे। खाने को यह अच्छा भोजन नहीं मिलेगा। झूठे टुकड़े खाया करोगे। टट्टी खाया करोगे, गंदा पानी नाली का पीया करोगे। जब राजा थे, तब इन्होंने मेरी बातों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। ये सोचते थे कि यह फकीर मूर्ख है। राज्य को कौन संभालेगा? रानियों का क्या होगा? अब ये तीनों कुत्ते बने हैं। देखो! मैंने काजू-बादाम, किशमिश मिलाकर बनाया हलवा-खीर इनके सामने रखा है। इनको खाने नहीं देता हूँ। दिखाता हूँ। जब ये खाने की कोशिश करते हैं तो मैं इनको पीटता हूँ। यह कहकर परमेश्वर जी ने जो एक लोहे की बेल खाली रखी थी। उठाकर कुत्तों को मारना शुरू किया। कुत्ते चिल्लाने लगे। परमेश्वर बोले कि खालो न हलवा खिलाऊँ तुमको। झूठा-सूखा टुकड़ा डालूंगा। ऐ घोड़े वाले भाई! यह जो खाली बेल रखी है, यह बताऊँ किसलिए है? जो बलख शहर का राजा सुल्तान अब्राहिम इब्न अधम है। वह भी संसार तथा राज्य की चकाचौंध में अँधा होकर अल्लाह को भूल गया है। अब उसको याद नहीं कि मरकर कुत्ता भी बनूंगा। उसको बहुत बार समझाया है कि भक्ति करले, इन महल रूपी सराय में सदा नहीं रहेगा, परंतु उसको खुदा का कोई खौफ नहीं है। वह तो खुद खुदा बनकर निर्दोष फकीरों को दण्डित कर रहा है। मैं तो यहाँ दूर बैठा हूँ। इसलिए बचा हूँ। वह राजा मरेगा, भक्ति बिना कुत्ता बनेगा। उसको लाकर इस सांकल से बाँधूंगा। जिन्दा फकीर के मुख से ये वचन सुनकर कुत्तों के रूप में अपने पूर्वजों की दुर्दशा देखकर अब्राहिम काँपने लगा और बोला कि हे फकीर जी! बलख शहर का राजा मैं ही हूँ। मुझे क्षमा करो। यह कहकर फकीर के चरणों में गिर गया। कुछ देर पश्चात् उठा तो देखा, वहाँ पर न जिन्दा बाबा था, न जलाशय, न बाग था, न कुत्ते थे। सुल्तानी इसको स्वपन भी नहीं मान सकता था क्योंकि घोड़े के पैर अभी भी भीगे थे। कुछ फल तोड़कर रखे थे, वे भी सुरक्षित थे। सुल्तान को समझते देर नहीं लगी। घोड़े पर चढ़ा और पड़ाव पर आया। मुख से नहीं बोल पाया। हाथ से संकेत किया कि सामान बाँधो और लौट चलो शहर को। कुछ मिनटों में काफिला बलख शहर को चल पड़ा।
लीला नं. 6:- घर में एक कमरे में बैठकर रोने लगा। रानियों ने, मंत्रियों ने समझाना चाहा कि यह तो वैसे ही होता रहता है। मुख्य रानियाँ कह रही थी कि ऐसी बात तो स्त्रिायों के साथ होती हैं, आप तो मर्द हैं। हिम्मत रखो। आप तो प्रजा के पालक हो। इतने में एक कुत्ता आया। उसके सिर में जख्म था। उसमें कीट (कीड़े) ��ोच रहे थे।
कुत्ता बोला, हे सुल्तान अब्राहिम! मैं भी राजा था। जितने प्राणी शिकार में मारे तथा एक राजा के साथ युद्ध में सैनिक मारे, वे आज अपना बदला ले रहे हैं। मेरे सिर में कीड़े बनकर मुझे नोंच रहे हैं। मैं कुछ करने योग्य नहीं हूँ। यही दशा तेरी होगी। अपना भविष्य देख लो। तेरे पीछे-पीछे खुदा भटक रहा है। तू परिवार-राज्य मोह में अपना जीवन नष्ट कर रहा है। (यहलीला भी स्वयं परमेश्वर कबीर जी ने की थी।) यह अंतिम झटका था अब्राहिम को दलदल से निकालने का। उसी रात्रि में मुख पर काली स्याही लेपकर एक अलफी के स्थान पर एक शॉल लपेटा,
फिर एक तकिया, एक लोटा, एक पतला गद्दा यानि बिछौना लेकर घर से कमद के रास्ते पीछे से उतरकर चल पड़ा। (कमद=एक मोटा रस्सा जिसको दो-दो फुट पर गाँठें लगा रखी होती थी जिसके द्वारा छत से आपत्ति के समय उतरते थे।)
लीला नं. 7:- रास्ते में एक मालिन बाग के बाहर बेर बेच रही थी। सुल्तान को भूख लगी थी। सारी रात पैदल चला था। मालन से बेरों का भाव पूछा तो मालिन ने बताया कि एक आने के सेर। (एक रूपये में 16 आने होते थे। एक सेर यानि एक किलोग्राम) राजा के पास आना नहीं था। उसने जो जूती पहन रखी थी, उन दोनों की कीमत उस समय 2) लाख रूपये थी। उनके ऊपर हीरे-पन्ने जड़े थे। राजा ने कहा कि मेरे पास एक आना या रूपया नहीं है। ये जूती हैं, इनकी कीमत अढ़ाई लाख रूपये है। ये दोनों ले लो, मुझे भूख लगी है, एक सेर बेर तोल दो। मालिन एक सेरबेर तोलकर अब्राहिम के शॉल के पल्ले में डालने लगी तो एक बेर नीचे गिर गया। उस बेर को उठाने के लिए मालिन ने भी हाथ बढ़ाया और अब्राहिम ने भी मालिन के हाथ से बेर छीनना चाहा। दोनों अपना बेर होने का दावा करने लगे। उसी समय परमेश्वर कबीर जी प्रकट हुए और कहने लगे, हे गंवार! यह तो मूर्ख है जिसको इतना भी विवेक नहीं कि एक बेर के पीछे उस व्यक्ति से उलझ रही है जिसने अढ़ाई लाख की जूती छोड़ दी। हे मूर्ख! ढ़ाई लाख की जूती छोड़ रहा है और एक पैसे के बेर के ऊपर झगड़ा कर रहा है। ये कैसा त्याग है तेरा? विवेक से काम ले। यह कहकर परमात्मा ने सुल्तान अधम के मुख पर थप्पड़ मारा और अंतर्ध्यान हो गए। जीवन की यात्रा ऐसे भी हो सकती है:- सुल्तान आगे चला तो देखा कि एक निर्धन व्यक्ति एक डले के ऊपर सिर रखकर जमीन पर सो रहा है। उसी समय ��किया तथा बिछौना फैंक दिया। आगे देखा कि एक व्यक्ति नदी से हाथों से जल पी रहा था। लोटा भी
फैंक दिया। काल की भूल-भुलईया में फँसे व्यक्ति को समझाना:- रास्ते में वर्षा होने लगी। शीतल वायु बहने लगी। अब्राहिम ने एक झौंपड़ी देखी जो एक किसान की थी। उसके पास दो बीघा जमीन बिना सिंचाई की थी। एक बूढ़ी गाय जो चार-पाँच बार प्रसव कर चुकी थी। एक काणी स्त्री थी। शीतल वायु के कारण उत्पन्न ठण्ड से बचने के लिए अब्राहिम अधम सुल्तान उस झौंपड़ी के पीछे लेट गया। रात्रि में दोनों पति-पत्नी बातें कर रहे थे कि वर्षा अच्छी हो गई है। गाय का चारा पर्याप्त हो जाएगा। अपने खाने के लिए भी अच्छी फसल पकेगी। अपने ऐसे ठाठ हो जाएंगे, ऐसे तो बलख बुखारे के बादशाह के भी नहीं हैं। सुल्तान अब्राहिम अधम यह सब वार्ता सुनकर उनकी बुद्धि पर पत्थर गिरे जानकर उनको भविष्य के दुःखों से अवगत कराने के उद्देश्य से सूर्योदय तक वहीं पर ठहरा रहा। सुबह उठकर उनकी झौंपड़ी के द्वार पर खड़ा होकर सलाम किया। दोनों पति-पत्नी झौंपड़ी से बाहर आए। अब्राहिम उनको भक्ति करने तथा माया से मुख मोड़ने का ज्ञान देने लगा। कहा कि आपके पास तो एक गाय है, एक स्त्राी है। दो बीघा जमीन है। आप इसी से चिपके बैठे हो। इसे बलख के बादशाह से भी अधिक ठाठ मान रहे हो। यह तो कुछ दिनों का मेला है। तुमको गुरू जी से उपदेश दिला देता हूँ, तुम्हारा जीवन धन्य हो जाएगा। मैं ही बलख शहर वाला सुल्तान अब्राहिम अधम हूँ। मैं उस राज्य को छोड़कर परमात्मा की प्राप्ति के लिए चला हूँ। उन्होंने कहा कि हमें तो लगता नहीं कि आप बलख शहर के राजा हो। यदि ऐसा है तो तेरे जैसा मूर्ख व्यक्ति इस पृथ्वी पर नहीं है। आपकी शिक्षा की हमें आवश्यकता नहीं है। सुल्तान ने कहा कि:- गरीब, रांडी (स्त्राी) ढांडी (गाय) ना तजैं, ये नर कहिये काग। बलख बुखारा त्याग दिया, थी कोई पिछली लाग।। इसके पश्चात् अब्राहिम अधम पृथ्वी का सुल्तान तो नहीं रहा, परंतु भक्ति का सुल्तान बन गया। भक्त राज बन गया। इसलिए उसको सुल्तान या प्यार में सुल्तानी नाम से प्रसिद्धि मिली। आगे की कथा में इसको केवल सुल्तान नाम से ही लिखा-कहा जाएगा। जैसे धर्मदास जी को धनी धर्मदास कहा जाने लगा था। वे भक्ति के धनी थे। वैसे सांसारिक धन की भी कोई कमी नहीं थी। सुल्तान को परमेश्वर मिले और प्रथम मंत्र दिया और कहा कि बाद मेंतेरे को सतनाम, फिर सार शब्द दूंगा।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘सुल्तान बोध‘‘ में पृष्ठ 62 पर प्रमाण है:-
प्रथम पान प्रवाना लेई। पीछे सार शब्द तोई देई।।
तब सतगुरू ने अलख लखाया। करी परतीत परम पद पाया।।
सहज चौका कर दीन्हा पाना (नाम)। काल का बंधन तोड़ बगाना।।
( शेष भाग कल )
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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jayshriram2947 · 2 years
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��िसकी नासिका प्रभु (आप) के पवित्र और सुगंधित (पुष्पादि) सुंदर प्रसाद को नित्य आदर के साथ ग्रहण करती (सूँघती) है और जो आपको अर्पण करके भोजन करते हैं और आपके प्रसाद रूप ही वस्त्राभूषण धारण करते हैं
जिनके मस्तक देवता, गुरु और ब्राह्मणों को देखकर बड़ी नम्रता के साथ प्रेम सहित झुक जाते हैं, जिनके हाथ नित्य श्री रामचन्द्रजी (आप) के चरणों की पूजा करते हैं और जिनके हृदय में श्री रामचन्द्रजी (आप) का ही भरोसा है, दूसरा नहीं
तथा जिनके चरण श्री रामचन्द्रजी (आप) के तीर्थों में चलकर जाते हैं, हे रामजी! आप उनके मन में निवास कीजिए । जो नित्य आपके (राम नाम रूप) मंत्रराज को जपते हैं और परिवार (परिकर) सहित आपकी पूजा करते हैं
जो अनेक प्रकार से तर्पण और हवन करते हैं तथा ब्राह्मणों को भोजन कराकर बहुत दान देते हैं तथा जो गुरु को हृदय में आपसे भी अधिक (बड़ा) जानकर सर्वभाव से सम्मान करके उनकी सेवा करते हैं
और ये सब कर्म करके सबका एक मात्र यही फल माँगते हैं कि श्री रामचन्द्रजी के चरणों में हमारी प्रीति हो, उन लोगों के मन रूपी मंदिरों में सीताजी और रघुकुल को आनंदित करने वाले आप दोनों बसिए
जय सीताराम🏹ᕫ🚩🙏
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jyotishwithakshayg · 1 month
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🌞~ आज दिनांक - 15 मार्च 2024 का वैदिक हिन्दू पंचांग ~🌞
⛅दिन - शुक्रवार
⛅विक्रम संवत् - 2080
⛅अयन - उत्तरायण
⛅ऋतु - वसंत
⛅मास - फाल्गुन
⛅पक्ष - शुक्ल
⛅तिथि - षष्ठी रात्रि 10:09 तक तत्पश्चात सप्तमी
⛅नक्षत्र - कृतिका शाम 04:08 तक तत्पश्चात रोहिणी
⛅योग - विष्कम्भ रात्रि 07:46 तक तत्पश्चात प्रीति
⛅राहु काल - सुबह 11:18 से दोपहर 12:49 तक
⛅सूर्योदय - 06:48
⛅सूर्यास्त - 06:49
⛅दिशा शूल - पश्चिम
⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:12 से 06:00 तक
⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:24 से 01:12 तक
⛅अभिजित मुहूर्त - दोपहर 12:25 से 01:13 तक
⛅व्रत पर्व विवरण - आचार्य सुंदर साहेब पुण्यतिथि (सच्चिदानंद सम्प्रदाय)
⛅विशेष - षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🔹कर्ज-निवारण व धन-वृद्धि हेतु रखें इन बातों का विशेष ध्यान 🔹
🔸झाडू को कभी पैर न लगायें ।
🔸 भोजन बनाने के बाद तवा, कढ़ाई या अन्य बर्तन चूल्हे से उतारकर नीचे रखें ।
🔸 घर के दरवाजे को कभी भी पैर से ठोकर मार के न खोलें ।
🔸 देहली (दहलीज) पर बैठकर कभी भोजन न करें ।
🔸सुबह शाम की पहली रोटी गाय के लिए बनायें व समय-अनुकूलता अनुसार खिला दें ।
🔸 घर के बड़ों को प्रणाम करें । उनके आशीर्वाद से घर में बरकत आती है ।
🔸 रसोईघर में जूठे बर्तन कभी भी नहीं रखें तथा रात्रि में जूठे बर्तन साफ करके ही रखें ।
🔸 घर में गलत जगह शौचालय बन गया हो तो शौचालय में नमक रखने से नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव दूर होता है । नमक को शौचालय के अलावा कहीं भी खुला न रखें । इससे धन-नाश होता है ।
🔸 घर की नकारात्मक ऊर्जा (negative energy) दूर करने के लिए हफ्ते में एक बार नमक मिले पानी से पोंछा लगायें ।
🔸 घर में जितनी भी घड़ियाँ हों उन्हें चालू रखें, बंद होने पर तुरंत ठीक करायें, धनागम अच्छा होगा ।
🔸 घर की छत पर टूटी कुर्सियाँ, बंद घड़ियाँ, गत्ते के खाली डिब्बे, बोतलें, मूर्तियाँ या कबाड़ नहीं रखना चाहिए ।
🔸 घर में जाला या काई न लगने दें ।
🔸घर की दीवारों व फर्श पर पेंसिल, चाक आदि के निशान होने से कर्ज चढ़ता है । निशान हों तो मिटा दें ।
🔸बाधाओं से सुरक्षा हेतु हल्दी व चावल पीसकर उसके घोल से या केवल हल्दी से घर के प्रवेश द्वार पर ॐ बना दें ।
🔸प्रतिदिन प्रातः सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र पहनें । असत्य वचन न बोलें । पूजाघर में दीपक व गौ-चंदन धूपबत्ती जलायें । हो सके तो ताजे पुष्प चढ़ायें और तुलसी या रुद्राक्ष की माला से अपने गुरुमंत्र का कम से कम १००० बार (१० माला) जप करें । जिन्होंने मंत्रदीक्षा नहीं ली हो वे जो भी भगवन्नाम प्रिय लगता हो उसका जप करें ।
https://chat.whatsapp.com/BsWPoSt9qSj7KwBvo9zWID 9837376839
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citizensdaily12 · 2 months
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Bhai Dooj 2024
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Bhai Dooj 2024: हिंदू कैलेंडर के दूसरे शुक्ल पक्ष के दिन भाई दूज मनाया जाता है। यह यमद्वितीया, भाऊ बीज, भाई टीका और भाई फोंटा भी कहलाता है। दिवाली देश भर में बहुत उत्साह से मनाया जाता है। 2024 में यह त्योहार 3 नवंबर, रविवार को मनाया जाएगा। रक्षाबंधन की तरह भाई फोंटा भी मनाया जाता है। बहनों ने सुंदर भोजन के लिए भाइयों को बुलाया है। बहन इस उत्सव में अपने भाई के कल्याण की प्रार्थना करती है और भाई अपनी बहन को हर हानि से बचाने का वादा करता है।
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debankursarkar · 2 months
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मलोकदास जी का दोहा :-
सुंदर देही देखि के, उपजत हैं अनुराग ।
मढी होती चाम मढी तो जीवत खाते काग ।
जिस शरीर के ऊपर तुम्हारा प्रेम उत्पन्न हो रहा है उसे शरीर के ऊपर से चमड़ी उतार दो फिर देखो गिद्ध और काग कैसे तुम्हारे जीवित शरीर को अपना भोजन बनाते हैं।
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astroclasses · 2 months
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dgjatin · 3 months
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डोमिनिका के प्रसिद्ध व्यंजन
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डोमिनिका लोकप्रिय रूप से अपनी सुंदर प्रकृति के लिए जाना जाता है जहां आगंतुक सुंदर नज़ारों, प्राचीन समुद्र तटों, झरनों, हरे-भरे वर्षावनों और लंबी पैदल यात्रा और गोताखोरी के लिए बहुत सारे क्षेत्रों को देख सकते हैं। डोमिनिका में करने के लिए मजेदार और रोमांचक चीजों की कोई कमी नहीं है। इन सबके अलावा यह देश अपने लजीज खाने के लिए भी मशहूर है। डोमिनिका का व्यंजन कैरेबियन, फ्रेंच, एशियाई और अफ्रीकी व्यंजनों का मिश्रण है, जिसके परिणामस्वरूप सबसे स्वादिष्ट भोजन होता है। डोमिनिका में चिकन भी बहुत प्रसिद्ध है।डोमिनिका में बहुत सारे फल भी उगते है, जिसे ऐसे भी खाया जाता है और जूस या स्मूदी में बनाया जाता है।
और अधिक पढ़ने के लिए…
https://jugaadinnews.com/famous-food-of-dominica/
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gourishankarsblog · 3 months
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart24 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart25
पुराण शास्त्र हैं या नहीं ?
इस गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में स्पष्ट किया है कि जिन साधकों की आस्था रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी में अति दृढ है तथा जिनका ज्ञान लोक वेद (दंत कथा) के आधार से इस त्रिगुणमयी माया के द्वारा हरा जा चुका है। वे इन्हीं तीनों प्रधान देवताओं व अन्य देवताओं की भक्ति पर दृढ़ हैं। इनसे ऊपर मुझे (गीता ज्ञान दाता को) नहीं भजते। ऐसे व्यक्ति राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच (नराधमाः) दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं। ये मुझको (गीता ज्ञान देने वाले काल ब्रह्म को) नहीं भजते।
प्रश्न 13 अब हिन्दू साहेबान कहेंगे कि पुराणों में श्राद्ध करना, कर्मकाण्ड करना बताया है। तीर्थों पर जाना पुण्य बताया है। ऋषियों ने तप किए। क्या उनको भी हम गलत मानें? श्री ब्रह्मा जी ने, श्री भक्तोंका पुनर्जन्म नहीं होता।*) विष्णु जी तथा शिव जी ने भी तप किए। क्या वे भी गलत करते रहे हैं?
उत्तर : ऊपर श्रीमद्भगवत गीता से स्पष्ट कर दिया है कि जो घोर तप करते हैं, वे मूर्ख हैं, पापाचारी क्रूरकर्मी हैं, चाहे कोई ऋषि हो या अन्य। उनको वेदों का क-ख का भी ज्ञान नहीं था, सामान्य हिन्दू को तो होगा कहाँ से? गीता में तीर्थों पर जाना कहीं नहीं लिखा है। इसलिए तीर्थ भ्रमण गलत है। शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण है जो गीता में व्यर्थ कहा है।
प्रश्न 14 : क्या पुराण शास्त्र नहीं है?
उत्तर :- पुराणों का ज्ञान ऋषियों का अपना अनुभव है। वेद व गीता प्रभुदत्त (God Given) ज्ञान है जो सत्य है। ऋषियों ने वेदों को पढ़ा। लेकिन ठीक से नहीं समझा। जिस कारण से लोकवेद (एक-दूसरे से सुने ज्ञान के) के आधार से साधना की। कुछ ज्ञान वेदों से लिया यानि ओम् (ॐ) नाम का जाप यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 15 से लिया। तप करने का ज्ञान ब्रह्मा जी से लिया। खिचड़ी ज्ञान के अनुसार साधना करके सिद्धियाँ प्राप्त करके किसी को श्राप, किसी को आशीर्वाद देकर जीवन नष्ट कर गए। गीता में कहा है कि जो मनमाना आचरण यानि शास्त्रविधि त्यागकर साधना करते हैं। उनको कोई लाभ नहीं होता। जो घोर तप को तपते हैं, वे राक्षस स्वभाव के हैं। प्रमाण के लिए : एक बार पांडव वनवास में थे। दुर्योधन के कहने से दुर्वासा ऋषि अठासी हजार ऋषियों को लेकर पाण्डवों के यहाँ गया। मन में दोष लेकर गया था कि पांडव मेरी मन इच्छा अनुसार भोजन करवा नहीं पाएँगे। मैं उनको श्राप दे दूँगा। वे नष्ट हो जाएँगे। क्या यह नेक व्यक्ति का कर्म है? दुष्टात्मा ऐसा करता है। > विचार करो : दुर्वासा महान तपस्वी था। उस घोर तप करने वाले पापाचारी नराधम ने क्या जुल्म करने की ठानी। दुःखियों को और दुःखी करने के उद्देश्य से गया। क्या ये राक्षसी कर्म नहीं था? क्या यह क्रूरकर्मी नराधम नहीं था?
इसी दुर्वासा ऋषि ने बच्चों के मजाक करने से क्रोधवश यादवों को श्राप दे दिया। गलती तीन-चार बच्चों ने (प्रद्यूमन पुत्र श्री कृष्ण आदि ने) की, श्राप पूरे यादव कुल का नाश होने का दे दिया। दुर्वासा के श्राप से 56 करोड़ (छप्पन करोड़) यादव आपस में लड़कर मर गए। श्री कृष्ण जी भी मारे गए। क्या ये राक्षसी कर्म दुर्वासा का नहीं था?
* अन्य कर्म पुराण की रचना करने वाले ऋषियों के सुनो :- वशिष्ठ ऋषि ने एक राजा को राक्षस बनने का श्राप दे दिया। वह राक्षस बनकर दुःखी हुआ। वशिष्ठ ऋषि ने एक अन्य राजा को इसलिए मरने का श्राप दे दिया जिसने ऋषि वशिष्ठ से यज्ञ अनुष्ठान न करवाकर अन्य से करवा लिया। उस राजा ने वशिष्ठ ऋषि को मरने का श्राप दे दिया। दोनों की मृत्यु हो गई।
हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण
वशिष्ठ जी का पुनः जन्म इस प्रकार हुआ जो पुराण कथा है :- दो ऋषि जंगल में तप कर रहे थे। एक अप्सरा स्वर्ग से आई। बहुत सुंदर थी। उसे देखने मात्र से दोनों ऋषियों का वीर्य संखलन (वीर्यपात) हो गया। दोनों ने बारी-बारी जाकर कुटिया में रखे खाली घड़े में वीर्य छोड़ दिया। उससे एक तो वशिष्ठ ऋषि वाली आत्मा का पुनर्जन्म हुआ। नाम वशिष्ठ ही रखा गया। दूसरे का कुंभज ऋषि नाम रखा जो अगस्त ऋषि कहलाया।
विश्वामित्र ऋषि के कर्म : राज त्यागकर जंगल में गया। घोर तप किया। सिद्धियाँ प्राप्त की। वशिष्ठ ऋषि ने उसे राज ऋषि कहा। उससे क्षुब्ध (क्रोधित) होकर वशिष्ठ जी के सौ पुत्रों को मार दिया। जब वशिष्ठ ऋषि ने उसे ब्रह्म-ऋषि कहा तो खुश हुआ क्योंकि विश्वामित्र राज ऋषि कहने से अपना अपमान मानता था। ब्रह्म ऋषि कहलाना चाहता था।
विचार करो! क्या ये राक्षसी कर्म नहीं हैं? ऐसे-ऐसे ऋषियों की रचनाएँ हैं अठारह पुराण।
एक समय ऋषि विश्वामित्र जंगल में कुटिया में बैठा था। एक मैनका नामक उर्वश�� स्वर्ग से आकर कुटी के पास घूम रही थी। विश्वामित्र उस पर आसक्त हो गया। पति-पत्नी व्यवहार किया। एक कन्या का जन्म हुआ। नाम शकुन्तला रखा। कन्या छः महीने की हुई तो उर्वशी स्वर्ग में चली गई। बोली मेरा काम हो गया। तेरी औकात का पता करने इन्द्र ने भेजी थी, वह देख ली। कहते हैं विश्वामित्र उस कन्या को कन्व ऋषि की कुटिया के सामने रखकर फिर से गहरे जंगल में तप करने गया। कन्व ऋषि ने उस कन्या को पाल-पोषकर राजा दुष्यंत से विवाह किया।
> विचार करो : विश्वामित्र पहले उसी गहरे जंगल में घोर तप करके आया ही था। आते ही वशिष्ठ जी के पुत्र मार डाले। उर्वशी से उलझ गया। नाश करवाकर फिर डले ढोने गया। फिर क्या वह गीता पढ़कर गया था। उसी लोक वेद के अनुसार शास्त्रविधि रहित मनमाना आचरण किया। फिर विश्वामित्र ऋषि ने राजा हरिशचन्द्र से छल करके राज्य लिया। राजा हरिशचन्द्र, उनकी पत्नी तारावती तथा पुत्र रोहतास के साथ अत्याचार किए।
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aikoalabama · 15 days
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お仕事お疲れ様です。🍓
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美脚OLの楽しいランチタイム~社員食堂~汗かきOLちゃんたちと楽しいランチタイム 28YouTubeで見てね🌸
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Fun lunch time with beautiful legged office ladies - Employee cafeteria - Fun lunch time with sweaty office ladies 美脚OLの楽しいランチタイム~社員食堂~ 汗かきOLちゃんたちと楽しいランチタイム
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arjupoonia123 · 4 months
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आयरलैंड के पारंपरिक खाद्य पदार्थ
यदि आप आयरलैंड की भूमि में चल रहे हैं और सुंदर स्थानों की खोज कर रहे हैं तो आपका पेट निश्चित रूप से कुछ स्वादिष्ट आयरिश भोजन को तरस जाएगा। आयरिश संस्कृति के बारे में अधिक जानने के लिए, कुछ प्रसिद्ध आयरिश भोजन की कोशिश करना न भूलें।
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9142827685 · 4 months
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( #Muktibodh_part173 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part174
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 335-336
कबीर परमेश्वर जी को संत रविदास जी ने सुबह ही बता दिया था कि हे कबीर जी! आज तो विरोधियों ने बनारस छोड़कर भगाने का कार्य कर दिया। आपके नाम से पत्र भेज रखे हैं और ऐसा-ऐसा लिखा है। लगभग 18 लाख व्यक्ति साधु-संत लंगर खाने पहुँच चुके हैं। कबीर जी ने कहा कि मित्र आजा बैठ जा! दरवाजा बंद करके सांगल लगा ले। आज-आज का दिन बिताकर रात्रि में अपने परिवार को लेकर भाग जाऊँगा। कहीं अन्य शहर-गाँव में निर्वाह कर लूंगा। जब उनको कुछ खाने को मिलेगा ही नहीं तो झल्लाकर गाली-गलौच करके चले जाएंगे। हम सांकल खोलेंगे ही नहीं, यदि किवाड़ तोड़ेंगे तो हाथ जोड़ लूंगा कि मेरा सामर्थ्य आप जी को भण्डारा कराने का नहीं है। गलती से पत्रा डाले गए, मारो भावें छोड़ो। दोनों संत माला लेकर भक्ति करने लगे। मुँह बोले माता-पिता तथा मृतक जीवित किए हुए लड़का तथा लड़की सुबह सैर को गए थे। इतने में दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने दरवाजा खटखटाया। संत रविदास जी ने कहा प्रभु! लगता है कि अतिथि यहाँ पर भी पहुँच गए हैं।
कबीर जी ने कहा कि देख सुराख से बच्चे तो नहीं आ गए हैं। रविदास जी ने देखकर बताया कि नहीं, कोई और ही है। दो-तीन बार दरवाजा खटखटाकर राजा सिकंदर ने अपना परिचय देकर बताया कि आपका दास सिकंदर आया है, आपके दर्शन करना चाहता है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा राजन! आज दरवाजा नहीं खोलूंगा। मेरे नाम से झूठी चिट्ठियाँ भेज रखी हैं, लाखों संत-भक्त पहुँच चुके हैं। रात्रि होते ही मैं अपने परिवार को लेकर कहीं दूर चला जाऊँगा। सिकंदर लोधी ने कहा परवरदिगार! आप मुझे नहीं बहका सकते, मैं आपको निकट से जान चुका हूँ। आप एक बार दरवाजा खोलो, मैं आपके दर्शन करके ही जलपान करूँगा।
परमेश्वर की आज्ञा से रविदास जी ने दरवाजा खोला तो सिकंदर लोधी मुकट पहने-पहने ही चरणों में लोट गया और बताया कि आप अपने आपको छिपाकर बैठे हो, आपने कितना सुंदर भण्डारा लगा रखा है। आपका मित्र केशव आपके संदेश को पाकर सर्व साम��न लेकर आया है।
आपके नाम का अखण्ड भण्डारा चल रहा है। सर्व अतिथि आपके दर्शनाभिलाषी हैं। कह रहे हैं कि देखें तो कौन है कबीर सेठ जिसने ऐसे खुले हाथ से लंगर कराया है। मेरी भी प्रार्थना है कि आप एक बार भण्डारे में घूमकर सबको दर्शन देकर कृतार्थ करें। तब परमेश्वर कबीर जी उठे और कुटिया से बाहर आए तो आकाश से कबीर जी पर फूलों की वर्षा होने लगी तथा आकाश से आकर सिर पर सुन्दर मुकुट अपने आप पहना गया। तब हाथी पर बैठकर कबीर जी तथा रविदास जी व राजा चले तो सिकंदर लोधी परमेश्वर कबीर जी पर चंवर करने लगे और पीलवान से कहा कि हाथी को भण्डारे के साथ से लेकर चल। जो भी देखे और पूछे काशी वालों से कि कबीर सेठ कौन-सा है, उत्तर मिले कि जिसके सिर पर मोरपंख वाला मुकुट है, वह है कबीर सेठ जिस पर सिकंदर लोधी दिल्ली के बादशाह चंवर कर रहे हैं। सब एक स्वर में जय
बोल रहे थे। जय हो कबीर सेठ की, जैसा लिखा था, वैसा ही भण्डारा कराया है। ऐसी व्यवस्था कहीं देखी न सुनी। भोजन खाने का स्थान बहुत लम्बा-चौड़ा था। उसमें घूमकर फिर वहाँ पर आए जहाँ पर केशव टैंट में बैठा था। हाथी से उतरकर कबीर जी तम्बू में पहुँचे तो अपने आप एक सुंदर पलंग आ गया, उसके ऊपर एक गद्दा बिछ गया, ऊपर गलीचे बिछ गए जिनकी झालरों में हीरे, पन्ने, लाल लगे थे। टैंट को ऊपर कर दिया गया जो दो तरफ से बंद था।
खाना खाने के पश्चात् सब दर्शनार्थ वहाँ आने लगे, तब परमेश्वर कबीर जी ने उन परमात्मा के लिए घर त्यागकर आश्रमों में रहने वालों तथा अन्य गृहस्थी व्यक्ति व ब्राह्मणों को आपस में
(केशव तथा कबीर जी ने) आध्यात्मिक प्रश्न-उत्तर करके सत्यज्ञान समझाया। 8 पहर (24 घण्टे) तक सत्संग करके उनका अज्ञान दूर किया। कई लाख साधुओं ने दीक्षा ली और अपना
कल्याण कराया। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था, परंतु परमात्मा को इकट्ठे करे-कराए भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए। उन भक्तों को सतलोक से आया हुआ
उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए। उन्होंने परमेश्वर का तत्त्वज्ञान समझा, दीक्षा ली तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया। सब
भण्डारा पूरा करके सर्व सामान समेटकर बैलों पर रखकर जो सेवादार आए थे, वे चल पड़े।
तब सिकंदर लोधी, शेखतकी, कबीर जी, केशव जी तथा राजा के कई अंगरक्षक भी खड़े थे। अंगरक्षक ने आवाज लगाई कि बैल धरती से छः इन्च ऊपर चल रहे हैं। पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे। यह लीला देखकर सब हैरान थे। फिर कुछ देर बाद देखा तो आसपास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिए और न बनजारे सेवक। सिकंदर लोधी ने पूछा हे कबीर जी! बनजारे और बैल कहाँ गए? परमेश्वर कबीर जी ने उत्तर दिया कि जिस परमात्मा के लोक से आए थे, उसी में चले गए। उसी समय केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी के शरीर में समा गया। सिकंदर राजा ने कहा हे अल्लाहु अकबर! मैं तो पहले ही कह रहा था कि यह सब आप कर रहे
हो, अपने आपको छिपाए हुए हो। शेखतकी तो जल-भुन रहा था। कहने लगा कि ऐसे भण्डारे तो हम अनेकों कर दें। यह तो महौछा-सा किया है। हम तो जग जौनार कर देते।
महौछा कहते हैं वह धर्म अनुष्ठान जो किसी पुरोहित द्वारा पित्तर दोष मिटाने के लिए थोपा गया हो। उसमें व्यक्ति बताए गए नग (Items) मन मारकर सस्ती कीमत के लाकर पूरे करता है, हाथ सिकोड़कर लंगर लगाता है।
जग जौनार कहते हैं जिसके घर कई वर्षों उपरांत संतान उत्पन्न होती है तो दिल खोलकर खर्च करता है, भण्डारा करता है तो खुले हाथों से।
संत गरीबदास जी ने उस भण्डारे के विषय में जिसकी जैसी विचारधारा थी, वह बताई :-
गरीब, कोई कहे जग जौनार करी है, कोई कहे महौछा।
बड़े बड़ाई कर्या करें, गाली काढ़ै औछा।।
◆ भावार्थ है कि जो भले पुरूष थे, वे तो बड़ाई कर रहे थे कि जग जौनार करी है। जो विरोधी थे, ईर्ष्यावश कह रहे थे कि क्या खाक भण्डारा किया है, यह तो महौछा-सा किया है। जब शेखतकी ने ये वचन कहे तो गूंगा तथा बहरा हो गया, शेष जीवन पशु की तरह जीया। अन्य के लिए उदाहरण बना कि अपनी ताकत का दुरूपयोग करना अपराध होता है, उसका भयंकर
फल भोगना पड़ता है।
केशव आन भया बनजारा षट्दल किन्ही हाँस है।
परमेश्वर कबीर जी स्वयं आकर (आन) केशव बनजारा बने। षट्दल कहते हैं गिरी-पुरी, नागा-नाथ, वैष्णों, सन्यासी, शैव आदि छः पंथों के व्यक्तियों को जिन्होंने हँसी-मजाक करके चिट्ठी डाली थी। परमात्मा ने यह सिद्ध किया है कि भक्त सच्चे दिल से मेरे पर विश्वास करके चलता है तो मैं उसकी ऐसे सहायता करता हूँ।
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क्रमशः________________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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more-savi · 4 months
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Bharat mai Ghumane ki Jagah
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Bharat mai Ghumane ki Jagah - Top Places to travel in India
यदि आप Bharat  mai Ghumane ki jagah की तलाश में हैं तो आपकी खोज यहीं समाप्त होती है। Tourist Attractions in Bharat .   भारत, अपने समृद्ध इतिहास और विविध संस्कृति से एक लोकप्रिय पर्यटक गंतव्य है। घूमने के लिए इतने सारे अद्भुत स्थानों के साथ, अपने यात्रा कार्यक्रम को सीमित करना मुश्किल हो सकता है। आप अपनी सूची में इन प्रमुख स्थानों को शामिल करने पर विचार कर सकते हैं: TAJ MAHAL  भारत के आगरा में स्थित मकबरा विश्व की सबसे प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित इमारतों में से एक है। महल, जो मुगल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में बनाया था। ताज महल जटिल संगमरमर के काम, और समरूपता के लिए प्रसिद्ध है। ताज महल के आसपास के गुंबदों, बगीचों और नक्काशी की कठोरता इसे दुनिया का एक आश्चर्य बनाती है। GOA – यह प्राचीन समुद्र तटों, पुर्तगाली विरासत और सुखद जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध है। यह समुद्र तट प्रेमियों, पार्टी वालों और रोमांच चाहने वालों के लिए बहुत लोकप्रिय है। गोवा के कुछ सर्वश्रेष्ठ समुद्र तटों में कैलंगुट, अंजुना और पालोलेम शामिल हैं, जिनमें बहुत सारे रेस्तरां, बार और नाइटलाइफ़ एक जीवंत वातावरण है। गोवा समुद्र तटों, सफ़ेद चर्चों और रंगीन विलाओं के लिए प्रसिद्ध है। KERALA केरल की हरे-भरे समुद्र तटों, शांत समुद्र तटों, अद्भुत संस्कृति और शांतिपूर्ण वातावरण के लिए जाना जाता है। यह भारत के सबसे विविधतापूर्ण राज्यों में से एक है, जहां बाघों, हाथीओं और तेंदुओं की बहुतायत है। कथकली नृत्य जैसी पारंपरिक कलाओं, आयुर्वेदिक चिकित्सा, योग और ध्यान केंद्रों के लिए भी केरल प्रसिद्ध है। यह आराम करने और तरोताजा होने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान है। Also Read - Tourist Places in Gujarat JAIPUR गुलाबी शहर आपका स्वागत करता है! जयपुर, राजस्थान की राजधानी, महलों, किलों और मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। सिटी पैलेस, शाही कलाकृतियों, वस्त्रों और चित्रों का एक संग्रहालय है, सबसे प्रसिद्ध स्थान है। जयपुर में एक और देखने योग्य स्थान अंबर किला है. यह एक सुंदर महल है जो शहर की ओर देखने वाली पहाड़ी की चोटी पर बना है। हवा महल, जो अपनी जटिल जाली के काम के लिए प्रसिद्ध है, और जंतर मंतर देखने लायक हैं। LADAKH: भारत के सबसे उत्तरी भाग में स्थित यह क्षेत्र जंगली पहाड़ों, ऊँची झीलों और बौद्ध मठों के लिए प्रसिद्ध है। रोमांच चाहने वालों और प्रकृति प्रेमियों के लिए यह एक अच्छा स्थान है . VARANASI: गंगा नदी के तट पर वाराणसी शहर विश्व के सबसे पुराने जीवित शहरों में से एक है। यह स्थान आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश करने वालों के लिए सबसे लोकप्रिय यात्रा स्थलों में से एक है क्योंकि इसमें कई घाट, मंदिर और आध्यात्मिक आभामंडल हैं। UDAIPUR: राजस्थान का सबसे सुंदर शहर जयपुर है, जो झीलों, महलों और किलों के लिए प्रसिद्ध है। शहर को अक्सर पूर्व का वेनिस कहा जाता है, और यह एक लोकप्रिय रोमांटिक छुट्टियों का गंतव्य है जो आपको थम जाएगा। Also Read - Tourist Places in Madhya Pradesh AMRITSAR: पंजाब के इसी शहर में सिखों के सबसे पवित्र मंदिर स्वर्ण मंदिर है। अमृतसर स्थानीय संस्कृति में डूबने के इच्छुक यात्रियों के लिए एक आदर्श विकल्प है, जो अपनी जीवंत संस्कृति, स्वादिष्ट भोजन और कुछ सबसे दिलचस्प ऐतिहासिक स्थलों की निकटता से जाना जाता है। HAMPI: इस यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल को कर्नाटक में कई प्राचीन मंदिर, खंडहर और सुंदर नक्काशी मिलती हैं, जो इसे वास्तुकला और इतिहास के प्रेमियों के लिए सबसे लोकप्रिय स्थानों में से एक बनाते हैं। DARJEELING: य�� पश्चिम बंगाल का एक सुंदर हिल स्टेशन है, जो हिमालयी दृश्यों, चाय बागानों और औपनिवेशिक वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यह भी दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे है, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर है। दार्जिलिंग के कुछ सर्वश्रेष्ठ स्थानों में टाइगर हिल है, जहां आप माउंट कंचनजंगा पर सूर्यास्त देख सकते हैं, और घूम मठ, जो यहाँ का सबसे पुराना तिब्बती बौद्ध मठ है। Also Read - Tourist Places in Maharashtra भारत, अपनी समृद्ध संस्कृति और इतिहास से लेकर अपनी बेहतरीन प्राकृतिक सुंदरता तक, आगंतुकों को बहुत कुछ देता है। जब आप भारत घूमते हैं तो इन शीर्ष स्थानों के अलावा बहुत से अद्भुत स्थानों को भी देख सकते हैं। Read the full article
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jyotishwithakshayg · 2 months
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*🌞~ आज दिनांक - 15 फरवरी 2024 का वैदिक हिन्दू पंचांग ~🌞*
*⛅दिन - गुरुवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2080*
*⛅अयन - उत्तरायण*
*⛅ऋतु - शिशिर*
*⛅मास - माघ*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - षष्ठी सुबह 10:12 तक तत्पश्चात सप्तमी*
*⛅नक्षत्र - अश्विनी सुबह 09:26 तक तत्पश्चात भरणी*
*⛅योग - शुक्ल शाम 05:23 तक तत्पश्चात ब्रह्म*
*⛅राहु काल - दोपहर 02:19 से 03:45 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:12*
*⛅सूर्यास्त - 06:35*
*⛅दिशा शूल - दक्षिण*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:31 से 06:22 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:28 से 01:19 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - शीतल षष्ठी (प. बंगाल)*
*⛅विशेष - षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है । सप्तमी को ताड़ का फल खाया जाय तो वह रोग बढ़ानेवाला तथा शरीर का नाशक होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔸भीष्म अष्टमी - 16 फरवरी 24*
*🌹 भीष्म अष्टमी (भीष्म श्राद्ध दिवस है) । इस दिन भीष्मजी के नाम से सूर्य को अर्घ्य दें तो निःसंतान को संतान मिल सकती है और आरोग्य आदि प्राप्त होता है ।*
*वसूनामवताराय शंतनोरात्मजाय च ।*
*अघ्र्यं ददामि भीष्माय आबालब्रह्मचारिणे ।*
*🌹 ईस मंत्र से भीष्माष्टमी के दिन भीष्मजी को तिल, गंध, पुष्प, गंगाजल व कुश मिश्रित अर्ध्य देने से अभीष्ट सिद्ध होता है । वर्षभर के पाप नष्ट हो जाते हैं। सुंदर और गुणवान संतति प्राप्त होती है ।*
*🌹 अचला सप्तमी - 16 फरवरी 24 🌹*
*🔸अचला सप्तमी की महिमा🔸*
*🔸 माघ शुक्ल सप्तमी को अचला सप्तमी, रथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, भानु सप्तमी, अर्क सप्तमी आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया गया है और इसे सूर्य की उपासना के लिए बहुत ही सुन्दर दिन कहा गया है । पुत्र प्राप्ति, पुत्र रक्षा तथा पुत्र अभ्युदय के लिए इस दिन संतान सप्तमी का व्रत भी किया जाता है ।*
*🔸भगवान सूर्य जिस तिथि को पहले-पहल रथ पर आरूढ़ हुए, वह ब्राह्मणों द्वारा माघ मास की सप्तमी बताई गयी है, जिसे रथसप्तमी कहते हैं । उस तिथि को दिया हुआ दान और किया हुआ यज्ञ सब अक्षय माना जाता है । वह सब प्रकार की दरिद्रता को दूर करने वाला और भगवान सूर्य की प्रसन्नता का प्राप्त कराने वाला है । - स्कन्द पुराण*
*🔸भविष्य पुराण के अनुसार सप्तमी तिथि को भगवान् सूर्य का आविर्भाव हुआ था । ये अंड के साथ उत्पन्न हुए और अंड में रहते हुए ही उन्होंने वृद्धि प्राप्त कि । बहुत दिनोंतक अंड में रहने के कारण ये ‘मार्तण्ड’ के नामसे प्रसिद्ध हुए ।*
*🔹भगवान श्रकृष्ण कहते है– राजन ! शुक्ल पक्षकी सप्तमी तिथि को यदि आदित्यवार (रविवार) हो तो उसे विजय सप्तमी कहते है । वह सभी पापोका विनाश करने वाली है । उस दिन किया हुआ स्नान ,दान्, जप, होम तथा उपवास आदि कर्म अनन्त फलदायक होता है । -भविष्य पुराण*
*🔹नारद पुराण में माघ शुक्ल सप्तमी को “अचला व्रत” बताया गया है । यह “त्रिलोचन जयन्ती” है । इसी को रथसप्तमी कहते हैं । यही “भास्कर सप्तमी” भी कहलाती है, जो करोड़ों सूर्य-ग्रहणों के समान है । इसमें अरूणोदय के समय स्नान किया जाता है । इसी सप्तमी को ‘’पुत्रदायक ” व्रत भी बताया गया है । स्वयं भगवान सूर्य ने कहा है - ‘जो माघ शुक्ल सप्तमी को विधिपूर्वक मेरी पूजा करेगा, उसपर अधिक संतुष्ट होकर मैं अपने अंश से उन्सका पुत्र होऊंगा’ । इसलिये उस दिन इन्द्रियसंयमपूर्वक दिन-रात उपवास करे और दूसरे दिन होम करके ब्राह्मणों को दही, भा��, दूध और खीर आदि भोजन करावें ।*
*🔸अग्नि पुराण में अग्निदेव कहते हैं – माघ मासके शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथिको (अष्टदल अथवा द्वादशदल) कमल का निर्माण करके उसमें भगवान् सूर्यका पूजन करना चाहिये । इससे मनुष्य शोकरहित हो जाता है ।*
*🔹चंद्रिका में लिखा है 'माघ शुक्ल सप्तमी सूर्यग्रहण के तुल्य होती है सूर्योदय के समय इसमें स्नान का महाफल होता है ।'*
*🔹चंद्रिका में भी विष्णु ने लिखा है 'माघ शुक्ल सप्तमी यदि अरुणोदय के समय प्रयाग में प्राप्त हो जाए तो कोटि सूर्य ग्रहणों के तुल्य होती है ।'*
*🔹मदनरत्न में भविष्योत्तर पुराण का कथन है की “माघ मास की शुक्लपक्ष सप्तमी कोटि सूर्यों के बराबर है उसमें सूर्य स्नान, दान, अर्घ्य से आयु आरोग्य सम्पदा प्राप्त होती हैं ।''*
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