भारत के राज्यों के लोक नृत्य की सूची | Bharat ke Lok Nritya
भारत के राज्यों के लोक नृत्य की सूची | Bharat ke Lok Nritya
Bharat ke Lok Nritya in Hindi : नमस्कार दोस्तों! देखा जाये तो पूरी दूनिया में भारत देश को विविध संस्कृतियों और परम्पराओं का देश माना जाता है। आजकल हर तरह की Competitive Exams में अकसर भारत के राज्यों के लोक नृत्य (Indian States And Folk Dances) से जुड़े सामान्य ज्ञान के सवाल जवाब पूछे जाते हे उसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने आपके लिए भारत के राज्यों के लोक नृत्य की सूची तैयार की हुयी…
दहेज के कारण बेटी परिवार पर भार मानी जाने लगी है और उसको गर्भ में ही मारने का सिलसिला शुरू है।जो माता-पिता के लिए महापाप का कारण बनता है। बेटी देवी का स्वरूप है। हमारी कुपरम्पराओं ने बेटी को दुश्मन बना दिया।
- जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज।
💰श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
◆ वाणी नं. 134-136 का सरलार्थ :- सुक्ष्म मन की मार सर्व जीवों पर गिरती है। सब एक समान सुक्ष्म मन के सामने विवश हैं। जब तक पूर्ण सतगुरू नहीं मिलता, तब तक सुक्ष्म मन के सामने विवेक कार्य नहीं करता। हिन्दु धर्म के श्रद्धालु श्री शिव जी को तो सक्षम मानते हैं। सब देवों का देव यानि महादेव कहते हैं। सुक्ष्म मन के कारण वे भी मार खा गए।
◆ प्रमाण :- जिस समय भस्मासुर ने तप करके भस्मकण्डा श्री शिव जी से वचनबद्ध करके ले लिया था। तब भस्मासुर ने शिव से कहा कि मैं तेरे को भस्म करूँगा। तेरे को मारकर तेरी पत्नी पार्वती को अपनी पत्नी बनाऊँगा। तब भय के कारण श्री शिव जी भाग लिए। भस्मासुर में भी सिद्धियां थी। वह भी साथ दौड़ा। शिवजी भय के कारण अधिक गति
से दौड़ा तथा एक मोड़ पर मुड़ गया। उसी मोड़ पर एक सुंदर स्त्री खड़ी थी। उसने भस्मासुर की ओर अश्लील दृष्टि से देखा और बोली कि शिव तो आसपास रूकेगा नहीं, जाने दे। आजा मेरे साथ मौज-मस्ती कर ले। मैं तेरा ही इंतजार कर रही हूँ। तुम पूर्ण मर्द हो, शक्तिशाली हो। भस्मासुर पर काम वासना का भूत सवार था ही, उसे और क्या चाहिए था? उसी समय रूक गया। युवती ने उसका हाथ पकड़कर नचाया। गंडहथ नृत्य करते समय हाथ सिर पर करना होता है। भस्मासुर का भस्मकण्डे वाला हाथ भस्मासुर के सिर पर करने को युवती ने कहा कि इस नृत्य में दांया हाथ सिर पर करते हैं। यह नृत्य पूरा करके मिलन करेंगे। ज्यों ही भस्मासुर ने भस्मकण्डे वाला हाथ सिर पर किया तो युवती ने बोला भस्म। उसी समय भस्मासुर जलकर नष्ट हो गया। वह युवती भगवान स्वयं ही शिव शंकर की जान की रक्षा के लिए बने थे।, परंतु महिमा विष्णु को दी। विष्णु रूप में प्रकट होकर परमात्मा उस भस्मकण्डे को लेकर श्री शिव के सामने खडे़ हो गए तथा शिव से कहा हे शिव!
इतने तेज क्यों दौड़ रहे हो? शिव ने सब बात बताई कि आप भी दौड़ जाओ। भस्मासुर मुझे मारने को मेरे पीछे लगा है। तब विष्णु रूपधारी परमात्मा ने कहा कि देख! आपका
भस्मकण्डा मेरे पास है। शिव ने तुरंत पहचान लिया और रूककर पूछा कि यह आपको कैसे मिला? विश्वास नहीं हो रहा है। भगवान ने कहा यह न पूछ। अपना कण्डा लो और घर को जाओ। परंतु शिव को विश्वास नहीं हो रहा था कि उग्र रूप धारण किए भस्मासुर से कैसे ये भस्मकण्डा लिया। जिद कर ली। तब परमात्मा ने कहा कि फिर बताऊँगा। इतना कहकर अंतर्ध्यान (अदृश्य) हो गए। शिव कुछ आगे गया तो देखा कि एक अति सुंदर युवती
अर्धनग्न शरीर में मस्ती से एक बाग में टहल रही थी। दूर तक कोई व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा था। शिवजी ने इधर-उधर देखा और लड़की की ओर मिलन के उद्देश्य से चले। लड़की शिव को देखकर मुस्कुराकर आगे को कुछ तेज चाल से चटक-मटककर चल पड़ी।
शिव ने मुस्कट के बाद लड़की का हाथ पकड़ा। तब तक शिव का वीर्यपतन हो चुका था। उसी समय विष्णु रूप में परमात्मा खड़े थे और कहा कि मैंने भस्मासुर को इस प्रकार वश में करके गंडहथ नाच नचाकर भस्म किया है।
संत गरीबदास जी ने सुक्ष्म मन की शक्ति बताई है कि शिवजी की पत्नी पार्वती तीन लोक में अति सुंदर स्त्रियों में से एक थी। अपनी पत्नी को छोड़कर शिवजी ने चंचल माया
यानि बद नारी से मिलन (sex) करने के लिए उसे पकड़ लिया। यह सुक्ष्म मन की उत्पत्ति का उत्पात है।
◆ वाणी नं. 137-141 का सरलार्थ :-
◆ इन्हीं काल प्रेरित आत्माओं (देवियों) ने ब्रह्मादिक (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को भी मोहित कर लिया यानि अपने जाल में फँसा रखा है। शेष यानि अन्य बचे हुए गणेश जी भी स्त्री से संग में रहे। गणेश जी के दो पुत्र थे। एक का नाम शुभम्=शुभ, दूसरे लाभम्=लाभ था। शंकर (शिव जी) की अडिग
(विचलित न होने वाली) समाधि
(आंतरिक ध्यान) लगी थी जो हमेशा (सदा) ध्यान में रहते हैं। उनको भी मोहिनी अप्सरा (स्वर्ग की देवी) ने मोहित करके डगमग कर दिया था।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 958-975 का सरलार्थ :- जिंदा रूप में परमेश्वर कबीर जी ने तर्क-वितर्क करके यथार्थ अध्यात्म ज्ञान समझाया। प्रश्न किया कि जो शालिगराम (मूर्तियाँ) लिए हुए हो, ये किस लोक से आए हैं? अड़सठ तीर्थ के स्नान व भ्रमण से किस लोक में साधक जाएगा? यह तत्काल बता। राम तथा कृष्ण कौन-से लोक में रहते हैं?
जिनको आप शालिगराम कहते हो, ये तो जड़ (निर्जीव) हैं। इनके सामने घंटा बजाने का कोई लाभ नहीं। ये न सुन सकते हैं, न बोल सकते हैं। ये तो पत्थर या अन्य धातु से बने हैं। हे धर्मदास! कहाँ भटक रहे हो? (निजपद निहकामी) सतलोक को (चीन्ह) पहचान। जिस परमेश्वर की शक्ति से प्रत्येक जीव बोलता है, हे धर्मदास! उसको नहीं जाना। चिदानंद परमेश्वर को पहचान। इन पत्थर व धातु को पटक दे। परमेश्वर कबीर जी जिंदा बाबा ने कहा कि हे धर्मदास! राम-कृष्ण तो करोड़ों जन्म लेकर मर लिए। (धनी) मालिक सदा से एक ही है। वह कभी नहीं मरता। आप विवेक से काम लो। ये आपके पत्थर व पीतल धातु के भगवानों को दरिया में छोड़कर देखो, डूब जाएँगे तो ये आपकी क्या मदद करेंगे? इनको मूर्तिकार ने काट-पीट, कूटकर इनकी छाती पर पैर रखकर (तरासा) काटकर रूप दिया।
इनका रचनहार तो कारीगर है। ये जगत के उत्पत्तिकर्ता व दुःख हरता कैसे हैं? ऐसी पूजा कौन करे? जिस परमेश्वर ने माता के गर्भ में रक्षा की, खान-पान दिया, सुरक्षित जन्म दिया,
उसकी भक्ति कर। यह पत्थर-पीतल तथा तीर्थ के जल की पूजा की (बोदी) कमजोर आशा त्याग दे। जिंदा बाबा ने कहा कि जो पूर्ण परमात्मा सब सृष्टि की रचना करके इससे भिन्न रहता है। अपनी शक्ति से सब ब्रह्माण्डों को चला व संभाल रहा है, उसका विचार कर।
उसका शरीर श्वांस से नहीं चलता। वह सबसे ऊपर के लोक में रहता है। आपकी समझ में नहीं आता है। उसकी शक्ति सर्वव्यापक है। उसका आश्रम (स्थाई स्थान) अधर-अधार यानि सबसे ऊपर है। वह अजर-अमर अविनाशी है।
धर्मदास जी ने कहा :-
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 976-981 :-
बोलत है धर्मदास, सुनौं जिंदे मम बाणी।
कौन तुम्हारी जाति, कहांसैं आये प्राणी।।976।।
ये अचरज की बात, कही तैं मोसैं लीला।
नामा के पीया दूध, पत्थरसैं करी करीला।।977।।
नरसीला नित नाच, पत्थर के आगै रहते।
जाकी हूंडी झालि, सांवल जो शाह कहंते।।978।।
पत्थर सेयै रैंदास, दूध जिन बेगि पिलाया।
सुनौ जिंद जगदीश, कहां तुम ज्ञान सुनाया।।979।।
परमेश्वर प्रवानि, पत्थर नहीं कहिये जिंदा।
नामा की छांनि छिवाई, दइ देखो सर संधा।।980।।
दोहा-सिरगुण सेवा सार है, निरगुण सें नहीं नेह।
सुन जिंदे जगदीश तूं, हम शिक्षा क्या देह।।981।।
‘‘धर्मदास वचन’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 976-981 का सरलार्थ :- धर्मदास जी कुछ नाराज होकर परमेश्वर से बोले कि हे (प्राणी) जीव! तेरी जाति क्या है? कहाँ से आया है? आपने मेरे से
बड़ी (अचरज) हैरान कर देने वाली बातें कही हैं, सुनो! नामदेव ने पत्थर के देव को दूध ��िलाया। नरसी भक्त नित्य पत्थर के सामने नृत्य किया करता यानि पत्थर की मूर्ति की पूजा करता था। उसकी (हूंडी झाली) ड्रॉफ्ट कैश किया। वहाँ पर सांवल शाह कहलाया।
रविदास ने पत्थर की मूर्ति को दूध पिलाया। हे जिन्दा! तू यह क्या शिक्षा दे रहा है कि पत्थर की पूजा त्याग दो। ये मूर्ति परमेश्वर समान हैं। इनको पत्थर न कहो। नामदेव की छान
(झोंपड़ी की छत) छवाई (डाली)। देख ले परमेश्वर की लीला। हम तो सर्गुण (पत्थर की मूर्ति जो साक्षात आकार है) की पूजा सही मानते हैं। निर्गुण से हमारा लगाव नहीं है। हे जिन्दा! मुझे क्या शिक्षा दे रहा है?
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 982-988 :-
बौलै जिंद कबीर, सुनौ बाणी धर्मदासा।
हम खालिक हम खलक, सकल हमरा प्रकाशा।।982।।
हमहीं से चंद्र अरू सूर, हमही से पानी और पवना।
हमही से धरणि आकाश, रहैं हम चौदह भवना।।983।।
हम रचे सब पाषान नदी यह सब खेल हमारा।
अचराचर चहुं खानि, बनी बिधि अठारा भारा।।984।।
हमही सृष्टि संजोग, बिजोग किया बोह भांती।
हमही आदि अनादि, हमैं अबिगत कै नाती।।985।।
हमही माया मूल, हमही हैं ब्रह्म उजागर।
हमही अधरि बसंत, हमहि हैं सुखकै सागर।।986।।
हमही से ब्रह्मा बिष्णु, ईश है कला हमारी।
हमही पद प्रवानि, कलप कोटि जुग तारी।।987।।
दोहा-हम साहिब सत्यपुरूष हैं, यह सब रूप हमार।
जिंद कहै धर्मदाससैं, शब्द सत्य घनसार।।988।।
‘‘परमेश्वर कबीर वचन’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 982-988 का सरलार्थ :- हे धर्मदास! आपने जो भक्त बताए हैं, वे पूर्व जन्म के परमेश्वर के परम भक्त थे। सत्य साधना किया करते थे जिससे उनमें भक्ति-शक्ति जमा थी। किसी कारण से वे पार नहीं हो सके। उनको तुरंत मानव जन्म मिला। जहाँ उनका जन्म हुआ, उस क्षेत्रा में जो लोकवेद प्रचलित था, वे उसी के आधार से
साधना करने लगे। जब उनके ऊपर कोई आपत्ति आई तो उनकी इज्जत रखने व भक्ति तथा भगवान में आस्था मानव की बनाए रखने के लिए मैंने वह लीला की थी। मैं समर्थ परमेश्वर हूँ। यह सब सृष्टि मेरी रचना है। हम (खालिक) संसार के मालिक हैं। (खलक) संसार हमसे ही उत्पन्न है। हमने यानि मैंने अपनी शक्ति से चाँद, सूर्य, तारे, सब ग्रह तथा ब्रह्माण्ड उत्पन्न किए हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की आत्मा की उत्पत्ति मैंने की है। हे धर्मदास! मैं सतपुरूष हूँ। यह सब मेरी आत्माएँ हैं जो जीव रूप में रह रहे हैं। यह सत्य वचन है।
धर्मदास जी ने अपनी शंका बताई। कहा कि :-
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 989-994 :-
बोलत हैं धर्मदास, सुनौं सरबंगी देवा। देखत पिण्ड अरू प्राण, कहौ तुम अलख अभेवा।।989।।
नाद बिंद की देह, शरीर है प्राण तुम्हारै। तुम बोलत बड़ बात, नहीं आवत दिल म्हारै।।990।।
खान पान अस्थान, देह में बोलत दीशं। कैसे अलख स्वरूप, भेद कहियो जगदीशं।।991।।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
नवनिर्मित संसद भवन देश की आधुनिक धरोहर - हर्ष वर्धन अग्रवाल
उत्तर प्रदेश में उत्पन्न कत्थक नृत्य है हमारे प्रदेश का गौरव - डॉ रूपल अग्रवाल
लखनऊ, 28.05.2023 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार व उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंन्द्र (NCZCC) के संयुक्त तत्वावधान में, सांस्कृतिक कार्यक्रम “धरोहर” थीम के अंतर्गत "श्री राम कथा एवं कृष्ण लीला : कत्थक नृत्य" का आयोजन सी एम एस ऑडिटोरियम, सिटी मोंटेसरी स्कूल, विशाल खंड, गोमती नगर, लखनऊ में किया गया । सांस्कृतिक कार्यक्रम धरोहर के तहत ध्वनि फाउंडेशन द्वारा श्री राम कथा एवं कृष्ण लीला पर कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया गया| भारतीय सभ्यता और संस्कृति को समर्पित इस कार्यक्रम में कुशल एवं अनुभवी कलाकारों द्वारा भगवान राम और भगवान श्री कृष्ण की जीवन लीलाओं को कथक नृत्य द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसमें सर्वप्रथम गणेश वंदना की प्रस्तुति दी गई तत्पश्चात राम प्रसंग, राम भजन, विष्णु दशावतार, महाभारत, कृष्ण ठुमरी, राम ठुमरी प्रस्तुत की गयी |
कार्यक्रम का शुभारम्भ राष्ट्रगान से हुआ तत्पश्चात हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल तथा ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्यगण डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ संतोष कुमार श्रीवास्तव, श्री एम० पी० अवस्थी, श्री अशोक कुमार जायसवाल, श्री एम०पी० सिंह, श्री विनय त्रिपाठी, प्रोफ़ेसर राज कुमार सिंह, डॉ अलका निवेदन, श्री पंकज अवस्थी, द्वारा दीप प्रज्जवलन किया गया ।
सभागार में उपस्थित सभी अतिथिगणों का स्वागत करते हुऐ हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि आज का दिन देश व देशवासियों के लिए गौरव का दिन है जब देश में नए संसद भवन को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देश को समर्पित किया है | कहना उचित होगा कि नए विकसित भारत की शुरुआत माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कर दी जिसकी आधारशिला नया संसद भवन है | नवनिर्मित संसद भवन देश की आधुनिक धरोहर है । हम सब मिलकर माननीय प्रधानमंत्री जी का आभार व्यक्त करते है | आज का यह कार्यक्रम संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (NCZCC) के संयुक्त तत्वावधान में धरोहर थीम के अंतर्गत आयोजित किया जा रहा है I जिसमें श्री राम कथा एवं कृष्ण लीला पर कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया जाएगा | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा धरोहर थीम के अंतर्गत 28.04.2023 को लोक नृत्य व नृत्य नाटिका राम भी रहीम भी, अवधी नृत्य नाटिका वैदेही के राम, महारास, राजस्थानी लोक नृत्य घूमर, का प्रस्तुतीकरण किया गया था तथा दिनांक 07.05.2023 को काकोरी ट्रेन एक्शन नाटक का मंचन किया गया था | इसी कड़ी में आज यह कत्थक नृत्य आप सबके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है | माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मूल मंत्र "सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास" एवं "आत्मनिर्भर भारत" का अनुसरण करते हुए हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट निरंतर ही जनहित के कार्यों में लगा हुआ है | ट्रस्ट द्वारा समय-समय पर विभिन्न महत्वपूर्ण दिवसों पर अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमो के द्वारा विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता एवं जनहित में वस्त्र दान, रक्तदान और शिक्षा दान की अपील भी की जा रही है | महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत ट्रस्ट द्वारा निःशस्त्र आत्मरक्षा कला प्रशिक्षण कार्यशाला, सिलाई कौशल प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है | साथ ही आगामी 01 जून 2023 से नि:शुल्क पाककला प्रशिक्षण कार्यशाला का भी आयोजन किया जाएगा जिसके अंतर्गत कटहल से 25 प्रकार के व्यंजन बनाने सिखाए जाएंगे | आप सभी के सहयोग एवं विश्वास के साथ ट्रस्ट समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु प्रतिबद्ध है | ट्रस्ट द्वारा वर्ष 2012 से आयोजित किये गए सभी कार्यक्रमों का वीडियो ट्रस्ट के यूट्यूब चैनल हेल्प यू ट्रस्ट पर उपलब्ध है | आप ट्रस्ट के यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करके हमारे द्वारा आयोजित सभी कार्यक्रमों की वीडियो देख सकते हैं | सिटी मोंटेसरी स्कूल के संस्थापक परम आदरणीय डॉ जगदीश गाँधी जी का आभार है कि उन्होंने यह सभागार कार्यक्रम आयोजन के लिए उपलब्ध कराया | गाँधी जी हमेशा जनहित तथा सामाजिक कार्यों के लिए तैयार रहते है | शेरवूड कॉलेज ऑफ़ मैनेजमेंट के अध्यक्ष श्री के.बी. लाल जी का आभार है कि उन्होंने कार्यक्रम के सफल संचालन के लिए अपने कॉलेज के छात्र उपलब्ध कराये |
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने कहा कि, "शास्त्रीय नृत्य की बात आती है तो उत्तर प्रदेश से उत्पन्न हुई कथक नृत्य कला का नाम अवश्य लिया जाता है। कथक भारत के उन चुनिंदा शास्त्रीय नृत्यों में से एक है जिसे सीखने के लिए दुनियाभर से लोग भारत आते हैं और इसकी सराहना करते हैं । आज हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार एवं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में हम माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी के "उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश" के मंत्र को साकार करते हुए उत्तर प्रदेश से उत्पन्न हुए कत्थक नृत्य के द्वारा भारत की वैभवशाली सभ्यता और संस्कृति को नमन करते हैं तथा उसे हमेशा सहेज कर रखने का संकल्प लेते हैं |"
सांस्कृतिक कलाकारों रिचा तिवारी, अनुराधा यादव, आरती शुक्ला, मलखान सिंह एवं निधि निगम ने कत्थक नृत्य द्वारा भगवान श्री राम जी के आदर्श चरित्र, अलौकिक आचरण और व्यक्तित्व की झांकी दिखाई तथा यह बताया कि श्रीराम के सिद्धांत इस समय में बहुत जरूरी है तथा यह इस समय की पुकार है कि प्रभु राम धर्म की स्थापना करने के लिए फिर से अवतार लें | भगवान श्री कृष्ण की जीवन लीला को नृत्य द्वारा प्रस्तुत करते हुए कलाकारों ने उनकी बाल लीलाओं के साथ-साथ उनके प्रेम व धर्म परायणता को भी परिलक्षित किया | सभी कलाकारों को उनकी कुशल प्रस्तुति हेतु हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्यों द्वारा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया |
कार्यक्रम के अंत में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के आंतरिक सलाहकार समिति के सदस्य श्री महेंद्र भीष्म ने सभी का धन्यवाद व आभ���र व्यक्त किया | कार्यक्रम का संचालन डॉ अलका निवेदन ने किया I
कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ० रूपल अग्रवाल तथा ट्रस्ट की आतंरिक सलाहकार समिति के सदस्यगण डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ संतोष कुमार श्रीवास्तव, श्री एम०पी० अवस्थी, श्री अशोक कुमार जायसवाल, श्री एम०पी० सिंह, श्री विनय त्रिपाठी, प्रोफ़ेसर राज कुमार सिंह, डॉ अलका निवेदन, श्री पंकज अवस्थी तथा शहर के गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही |
उत्तराखंड के गढ़वाल में सदियों से दिवाली को बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। कुमाऊं के क्षेत्र में इसे बूढ़ी दीपावली कहा जाता है। इस पर्व के दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं। रात में स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भैला जलाकर उसे घुमाया जाता है और ढोल नगाड़ों के साथ आग के चार��ं ओर लोक नृत्य किया जाता है।
मान्यता है कि जब भगवान राम 14 वर्ष बाद लंका विजय कर अयोध्या पहुंचे तो लोगों ने दिए जलाकर उनका स्वागत किया और उसे दीपावली के त्योहार के रूप में मनाया। कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में लोगों को इसकी जानकारी 11 दिन बाद मिली। इसलिए यहां पर दिवाली के 11 दिन बाद यह इगास मनाई जाती है।
वहीं, सबसे प्रचलित मान्यता के अनुसार गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे। करीब 400 साल पहले राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा। इसी बीच बग्वाल (दिवाली) का त्यौहार भी था, परंतु इस त्योहार तक कोई भी सैनिक वापस न आ सका। सबने सोचा माधो सिंह और उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गए, इसलिए किसी ने भी दिवाली (बग्वाल) नहीं मनाई। लेकिन दीपावली के ठीक 11वें दिन माधो सिंह भंडारी अपने सैनिकों के साथ तिब्बत से दवापाघाट युद्ध जीत वापस लौट आए। इसी खुशी में दिवाली मनाई गई।
खास बात ये है कि यह पर्व भैलो खेलकर मनाया जाता है। तिल, भंगजीरे, हिसर और चीड़ की सूखी लकड़ी के छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर इन्हें विशेष रस्सी से बांधकर भैलो तैयार किया जाता है। बग्वाल के दिन पूजा अर्चना कर भैलो का तिलक किया जाता है। फिर ग्रामीण एक स्थान पर एकत्रित होकर भैलो खेलते हैं। भैलो पर आग लगाकर इसे चारों ओर घुमाया जाता है।
संगीत - music (masculine), also मौसीक़ी (feminine)
* पारम्परिक संगीत - traditional music
* शास्त्रीय संगीत - classical music
* लोक संगीत - folk music
* वाद्य संगीत - instrumental music
* पत्रक संगीत - sheet music
संगीत सुनना - to listen to music (transitive)
ध्वनि - sound, tone (feminine)
स्वर - 1. voice, sound (masculine), also आवाज़, वाणी (feminine)
2. tune, note, also सुर (masculine)
* notes and sounds can be for example कोमल (soft) or तीव्र, ऊँचा (high pitched).
स्वर-तरंग, ध्वनि-तरंग - sound wave (feminine)
सुर - 1. sound, tone, note, 2. tune, melody (masculine)
गायन, गाना, गान- 1. singing, 2. song, also गीत (masculine)
* गाना, गान करना - to sing (transitive)
* गायन शैली - singing style (feminine)
गायकी - the art of singing (feminine)
गायक - singer (masculine), गायिका (feminine)
* मुख्य गायक - lead singer
* बैकअप गायक - backup singer
वादक - musician, artist (masculine)
मंडली, मंडलिका - group, gathering (feminine)
* संगीत-मंडली - band
* गायक मंडली - choir
रॉक समूह - rock group (masculine)
बाजा - 1. orchestra, 2. instrument (masculine), also साज़ (masculine)
* पीतल का बाजा - brass instrument
वादन, बजाना - playing (masculine)
बजना - to ring, to play (intransitive)
बजाना - to play (transitive)
* एकल बजाना - to play a solo
* वाद्य बजाना - to play an instrument
वाद्य - 1. musical (adjective), 2. instrument (masculine),
also वाद्य-यंत्र, बाजा (masculine)
* फूँक वाद्य, सुषिर वाद्य, वायुवाद्य - wind instrument
* तालवाद्य, घात वाद्य, अवनद्ध वाद्य - percussion instrument
* तंतुवाद्य, तारवाला वाद्य - string instrument
तार - string (masculine)
ताल - rhythm, beat (masculine), also लय (feminine)
* ताल में होना - to be in rhythm, with the beat
लय - rhythm, singing in tune, tune, melody (feminine)
ताली - clap (feminine)
* ताली बजाना - to clap (transitive)
गति - tempo, speed (feminine)
* in music tempo can be द्रुत (fast) or धीमी (slow)
सुरीला - melodious, harmoniuous (adjective)
नृत्य, नृत्त, नाच, नाचना - dancing (masculine)
* नाचना, नृत्य करना - to dance (transitive)
नर्तक, नचनिया - dancer (masculine), नर्तकी (feminine)
भजन - devotional song, hymn (masculine)
लोकगीत - folk song
रचना - composition (feminine)
* रचना करना - to compose (transitive)
रचित - composed (adjective)
संगीतकार - composer, musician (masculine)
संगीतज्ञ - musical scholar (masculine)
गाने के बोल - song lyrics (masculine)
श्रोता - audience, listener (masculine)
सुनाई देना - to be heard (transitive), also सुनाई पड़ना (intransitive)
* मुझे कोई सुंदर गाना सुनाई दे रहा है - I hear a beautiful song
ध्वनि की गुणवत्ता - sound quality (feminine)
Instruments
बाँसुरी, मुरली - flute (feminine)
* अनुप्रस्थ बांसुरी - transverse flute, western concert flute
* बांसुरीवादक - flute player (masculine)
शहनाई - clarinet (feminine)
ओबाउ - oboe (masculine)
अलगोजा - bassoon (masculine)
फ्रेंच भोंपू - French horn (masculine)
तुरही - trumpet, sometimes used for other brass instruments like tuba or trombone (feminine)
बिगुल - bugle (masculine)
मुँह का बाजा - mouth organ, harmonica (masculine)
तबला - tabla, a pair of Indian hand drums (masculine)
डमरु - damru, a small Indian drum shaped like an hourglass (masculine)
ढोल - dhol, a big Indian drum (masculine), also ढोलक, ढोलकी (feminine)
झ��ंझ - cymbal (feminine)
ताल, मंजीरा - taal, manjira, pair of small Indian hand cymbals (masculine)
चंग - tambourine (feminine), also डफ (masculine)
सिलाफ़न - xylophone (masculine)
हारमोनियम, पेटी बाजा - harmonium (masculine)
मशक बाजा - bagpipe (masculine)
महावाद्य - piano (masculine)
भव्य पियानो - grand piano (masculine)
* छोटी कुंजियाँ - minor keys (feminine)
* बड़ी कुंजियाँ - major keys (feminine)
* सप्तक - octave (masculine)
गिटार - guitar (masculine or feminine)
* बास गिटार - bass guitar
बेला - violin, fiddle (feminine)
* धनुष - bow (masculine)
सितार - sitar (feminine)
सारंगी - sarangi, an Indian stringed instrument (feminine)
सरोद - sarod, an Indian stringed instrument (masculine)
वीणा - veena, an Indian lute (feminine)
पेडल वीणा - harp (feminine)
वायलनचेलो - cello (masculine)
डबलबस - contra bass, double bass (masculine or feminine)
श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
राजस्थानी संस्कृति, विविधता और परंपरा को बढ़ावा देना है उद्देश्य-घनश्याम गोयल The aim is to promote Rajasthani culture, diversity and tradition - Ghanshyam Goyal
*होली मिलन महोत्सव में राजस्थानी लोकगीतों और नृत्यों से मंत्रमुग्ध हुए जालना वासी
पांच क्विंटल फूलों के साथ मनाई गई फूलों की होली
जालना: महाराष्ट्र मारवाड़ी चैरिटेबल फाउंडेशन जालना, मारवाड़ी सम्मेलन और मारवाड़ी युवा मंच जालना के संयुक्त तत्वावधान में शहर के जैन विद्यालय के प्रांगण में आयोजित पधारो म्हारो देश होली मिलन महोत्सव में जालना वासियों ने राजस्थानी लोक गीत और नृत्य का आनंद लिया. होली की…
श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।