शास्त्रों (कबीर साहेब की वाणी, वेद, गीता, पुराण, कुराण, धर्मदास साहेब आदि संतों की वाणी) के अध्ययन से मुक्ति नहीं होगी।
इन सभी शास्त्रों का एक ही सार (निचोड़) है कि पूर्ण मुक्ति के लिए पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के प्रतिनिधि संत (जिनको उनके गुरु द्वारा नाम देने की आज्ञा भी हो) से नाम उपदेश लेकर आत्म कल्याण करवाना चाहिए।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि हमारे ऊपर सद्गुरु की महान कृपा हुई कि उन्होंने हमें सत्य ज्ञान का उपदेश दिया और हमने उसको हृदय से ग्रहण कर लिया। पहले हम कांच के समान असत्य को ही धारण किए हुए थे, परन्तु अब सत्य के कारण स्वर्ण के समान हो गए हैं।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने जीवन में एक बार दीनता के सभी सद्गुण धारण कर लेता है, फिर उसके लिए सद्गुरु के दरबार में सब कुछ पूर्ण है। संतों ने यह विचार व्यक्त किया है कि दीनता ही गुरुदेव के लिए सर्वोत्तम भेंट है।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि हमारे ऊपर सद्गुरु की महान कृपा हुई कि उन्होंने हमें सत्य ज्ञान का उपदेश दिया और हमने उसको हृदय से ग्रहण कर लिया। पहले हम कांच के समान असत्य को ही धारण किए हुए थे, परन्तु अब सत्य के कारण स्वर्ण के समान हो गए हैं।
प्रेम बिना धीरज नहीं, बिरह बिना वैराग । सतगुरु बिन जावै नहीं, मन मनसा का दाग ।।
जब तक हृदय में प्रेम न हो, तब तक धैर्य नहीं होता और जब तक जीवन में विरह की व्याकुलता न हो, तब तक वैराग्य नहीं होता। कोई चाहे कितने भी यत्न कर ले, बिना सद्गुरु के मन और हृदय के मैले दाग दूर नहीं हो सकते।
सद्गुरु सच्चे शूरवीर हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। वे शिष्य की अज्ञानता पर ज्ञान-रूपी तीरों (शब्दों) को मारते हैं। कबीरजी कहते हैं कि शिष्य-सेवक को इन वारों (चोटों) को प्रेम से सहना चाहिए, भागना नहीं चाहिए।
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कबीर सांसारिक मोह के कर्म का मुहं काला करके आदर-मान को भी आग लगा देनी चाहिए। व्यर्थ की लोभ-बड़ाई को छोड़कर, सद्गुरु के ज्ञानोपदेश का ही राग प्रेम से अलापना चाहिए।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि ऐसा सच्चा होने से कोई लाभ नहीं, जो सद्गुरु के सत्य-नाम के ज्ञान को नहीं जानता, तो कुछ नहीं जानता। जो सत्य-आचरण की साधना से सत्य का दर्शन करता है, वह सत्य में ही समा जाता है!
#KabirisGod सांच हुआ तो क्या हुआ, नाम न सांचा जान। सांचा होय सांचा मिलै, सांचै मांहि समान।।
कबीर जी कहते है सच्चा होने से कोई लाभ नहीं, जो सद्गुरु के सत्य-नाम के ज्ञान को नहीं जानता, तो कुछ नहीं जानता। जो सत्य-आचरण की साधना से सत्य का दर्शन करता है, वह सत्य में ही समा जाता है
कबीर साहेब जी कहते हैं कि ऐसा सच्चा होने से कोई लाभ नहीं, जो सद्गुरु के सत्य-नाम के ज्ञान को नहीं जानता, तो कुछ नहीं जानता। जो सत्य-आचरण की साधना से सत्य का दर्शन करता है, वह सत्य में ही समा जाता है!
कबीर साहेब जी कहते हैं कि ऐसा सच्चा होने से कोई लाभ नहीं, जो सद्गुरु के सत्य-नाम के ज्ञान को नहीं जानता, तो कुछ नहीं जानता। जो सत्य-आचरण की साधना से सत्य का दर्शन करता है, वह सत्य में ही समा जाता है!
कबीर सांसारिक मोह के कर्म का मुहं काला करके आदर-मान को भी आग लगा देनी चाहिए। व्यर्थ की लोभ-बड़ाई को छोड़कर, सद्गुरु के ज्ञानोपदेश का ही राग प्रेम से अलापना चाहिए।