मनुष्य जीवन केवल सत्य भक्ति करने के लिए ही मीलता है और आज इस प्रथ्वी पर केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही पुर्ण गुरु है और वेद सास्त्रो के अनुसार सत्य भक्ति बताते हैं और इस सत्य भक्ति करने से ही मानव जीवन का कल्याण होगा और मोक्ष गारंटेड होगा अधिक जानकारी के लिए Sant rampal ji Maharaj YouTube channel visit करें 🙏
‘‘शास्त्रों के आधार से पूर्ण संत तारणहार की पहचान’’
श्री सावन सिंह, जो बाबा जयमल सिंह जी के शिष्य तथा डेरा ब्यास के दूसरे गद्दी नशीन हैं। बाबा जयमल सिंह आगरा वाले श्री शिवदयाल सिंह जी (राधास्वामी) के शिष्य थे। अधिक जानकारी के लिए कप्या पढ़ें इसी पुस्तक (धरती पर अवतार) के पष्ठ 55 पर।
श्री सावन सिंह जी ने अपने विचार तथा श्री शिवदयाल (राधास्वामी) के विचारों को पुष्ट करने के लिए ‘‘सन्तमत प्रकाश’’ पुस्तक 5 भागों में लिखी है।
सन्तमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ 261-262 पर ‘‘श्री गुरु ग्रंथ साहेब’’ से श्री नानक जी की अमरवाणी तथा परमेश्वर कबीर जी की अमतवाणी का हवाला देकर अपने मत को पुष्ट करने की कुचेष्टा की है। जो उनके विपरीत ही गई। जो इस प्रकार है:-
पुस्तक ’’सन्तमत प्रकाश भाग-4’’ के पष्ठ 261 पर लिखा है कि ‘‘गुरु ग्रन्थ साहेब’’ में लिखा है:-
सोई गुरु पूरा कहावै, जो दो अख्खर का भेद बतावै।
एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणी निज घर को पावै।।
जै तू पढ़या पंडित बिन, दोय अख्खर बिन दोय नावां। प्रणवत नानक एक लंघाए, जेे कर सच्च समावां।।
फिर परमेेश्वर कबीर जी की वाणी का हवाला देकर लिखा है कि कबीर जी भी यही कहते हैं:-
कह कबीर अखर दोय भाख, होयगा खसम तो लेगा राख।
फिर पष्ठ 262 पर (सन्तमत प्रकाश भाग-4) पर श्री नानक जी की वाणी का हवाला दिया है जो इस प्रकार है:-
उपरोक्त वाणी स्वयं परमेश्वर कबीर जी की है तथा परमात्मा प्राप्त सन्त नानक देव जी की है। इसका अनुवाद व भावार्थ श्री सावन सिंह जी ने गलत किया है कहा है कि वे दो अक्षर पारब्रह्म में आगे जाकर मिलेंगे। राधास्वामी पंथ के संत तथा शाखाओं के संत पांच नाम (ररंकार, औंकार, ज्योतिनिरंजन, सोहम् तथा सतनाम) तथा अकाल मूर्ती, सतपुरूष, शब्द स्वरूपी राम व राधास्वामी नाम दान करते हैं। ढाई घण्टे सुबह व ढाई घण्टे शाम हठ योग करने से मोक्ष बताते हैं। जो साधना किसी भी परमात्मा प्राप्त संत तथा परमेश्वर कबीर जी की अमरवाणी से मेल नहीं खाती।
पूर्वोक्त अमतवाणी में श्री नानक जी तथा परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि ’’तारणहार परम संत’’ वही है। जो दो अक्खर का भेद बताता है, क्योंकि दो अक्खर का जाप करने को कहा है। गुरु मुख होकर अर्थात् गुरु जी जिन दो अक्खर के नाम जाप करने को कहते हैं, वह सतनाम है। उस सतनाम में दोे अक्खर इस प्रकार हैं, ओम् तथा दूसरा-तत् है। जो सांकेतिक है। उसको संत रामपाल जी महाराज के अतिरिक्त कोई नहीं जानता।
फिर ’’एक नाम गुरु मुख जापै नानक होत निहाल’’ जिसका भी अर्थ स्पष्ट है कि दो अक्खरों अर्थात् सतनाम से भिन्न एक नाम और है। जिसे आदि नाम या सारनाम कहा है। वह भी जाप करने का है। उसको भी गुरु जी ही दान करेगा।
एक श्री तुलसी दास हाथरस वाले संत हुए हैं। उन्हांेने कबीर परमेश्वर जी की वाणी को पढ़कर स्वयंभू संत बनकर अपनी वाणी बनाकर ’’घट रामायण’’नामक पुस्तक-2 भागों में लिखी है। ’’घट रामायण’’ भाग-1 पष्ठ 27 पर तुलसी दास जी हाथरस वाले स्पष्ट करते हैं कि ’’पांचों नाम काल के जानों’’...... फिर कहा है
’’सतनाम’’ ले जीव उबारी। आदि नाम ले काल गिराऊँ।
कप्या देखें फोटो कापी पुस्तक ‘‘घट रामायण’’ पहला भाग के पष्ठ 27 की।
इससे भी स्पष्ट है कि पांच नाम काल के हैं। इनसे अन्य सतनाम तथा आदि
नाम जिसे सारनाम भी कहते हैं, अन्य है जो मोक्ष दायक हैं।
निष्कर्ष:- पूर्ण संत तारणहार (सायरन) संत रामपाल दास जी महाराज हैं। जिन्होंने दो अक्खर का भेद बताया है। राधास्वामी वाले, सच्चा सौदा वाले, परम संत तारण हार नहीं हैं। ये सर्व नकली हैं, इनसे बचें तथा सन्त रामपाल जी महाराज के पास आकर अपना कल्याण कराऐं।
प्रार्थना:- कप्या देखें श्री शिवदयाल जी उर्फ राधास्वामी पंथ के पूरे परिवार { ब्यास डेरे वाले, सच्चा सौदा सिरसा तथा जगमाल वाली, गंगवा (हिसार में) जयगुरु देव मथुरा वाले, सावन कपाल मिशन दिल्ली वाले, श्री ठाकुर सिंह वाले तथा दिनोद भिवानी वाले, आगरा वाले स्वयं शिवदयाल सिंह जी हैं} का अज्ञान देखें इसी पुस्तक ‘‘धरती पर अवतार’’ के पष्ठ 55 से 59 पर।
‘‘तारणहार परम सन्त‘‘ की अन्य पहचान
परमेश्वर कबीर जी ने परम सन्त तारणहार जो परमेश्वर कबीर जी का कृप्या पात्र होता है। उसकी पहचान बताते हुए कहा है:-
जो मम सन्त सत शब्द दढ़ावै। वाकै संग सब राड़ बढा़वै।
ऐसे सन्त महन्तन की करणी, धर्मदास मैं तोसे वरणी।।
इस अमर वाणी का भावार्थ है कि:- कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जो मेरा सन्त, सच्चे ज्ञान व सच्चे नाम (सतनाम) के विषय में दढ़ता से बताएगा। उस के साथ, उस समय के सन्त तथा महन्त झगडा़ करेगें। क्योंकि वह सच्चा ज्ञान उन नकलियों के नकली ज्ञान का पर्दा फाश करेगा। यह पहचान भी उस सन्त की होगी। वर्तमान में सन्त रामपाल जी महाराज के सच्चे ज्ञान से बौखला कर करौंथा काण्ड करा दिया। परन्तु परमेश्वर कबीर जी का पंजा सिर पर बराबर बना रहा जिस कारण संत रामपाल जी महाराज तथा अनुयाई सुरक्षित रहे। परमेश्वर का प्रचार पहले से कई गुना बढ़ गया। परमेश्वर सत्��� का साथ देते हैं।
विशेष:- पुस्तक ‘‘जय गुरुदेव की अमरवाणी‘‘ भाग-2 के पष्ठ 43 पर लिखा है कि ‘‘भारत जैसे राष्ट्र में हम प्रत्येक व्यक्ति का आदर करते हैं। इसलिए हमारे विधान में आलोचना करने की स्वत्रांता है और हमारा अनुरोध है कि आलोचना सत्य को सामने रखते हुए करनी चाहिए। जिससे जनहित हो।(शाकाहारी पत्रिका 14
जून 1971)
नोट:- कप्या पढ़ें फोटो कापी पुस्तक ‘‘जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज’’ के पृष्ठ 27,28 तथा पष्ठ 78 से 81 पर। जिसमें स्पष्ट है कि श्री शिवदयाल जी का कोई गुरु नहीं था। जिस कारण से श्री शिवदयाल सिंह (राधा स्वामी पंथ के प्रवर्तक) भूत बने और अपनी शिष्या बुक्की में प्रवेश करके पहले की तरह हुक्का पीने लगे व भोजन खाने लगे तथा शंका समाधान करने लगे।
इसमें लिखा है कि ‘‘जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज’’ का लेखक प्रताप सिंह (जो श्री शिव दयाल जी का छोटा भाई था) कह रहा है कि मैंने कई बार बुक्की में प्रवेश श्री शिव दयाल जी से कई बार प्रार्थना करके आदेश प्राप्त किए थे। इस से स्वसिद्ध है कि श्री शिव दयाल जी प्रेत योनी को प्राप्त हुए। उनका जीवन नष्ट हुआ। अन्य अनुयाई भी वही साधना कर रहे हैं।
उनकी भी यही दशा होगी। इसलिए सर्व से प्रार्थना है कि आप संत रामपाल दास जी महाराज से शास्त्र अनुकूल दो अक्षर अर्थात् सतनाम की साधना प्राप्त करके
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
कबीर सागर में 20वां अध्याय ‘‘मुक्ति बोध‘‘ पृष्ठ 63 पर है। पृष्ठ 63 पर आदिनाम की महिमा है।
(कबीर) साखी, पद बोलें बहु बानी। आदि नाम कोई बिरला जानी।।
आदि नाम निज सार है, बूझ लियो हो हंस। जिन जाना निज नाम को, अमर भये ते वंश।।
आदि नाम निज मंत्र है, और मंत्र सब छार। कहे कबीर निज नाम बिना, बूड़ मरा संसार।।
मुक्ति बोध पृष्ठ 64 का सारांश:-
आदिनाम निःअक्षर सांचा। जाते जीव काल सों बाचा।।
निःअक्षर धुन जहवां होई। ताहि जपे नर बिरला होई।।
जाके बल आवे संसारा। ताहि जपे नर हो भव पारा।।
गुप्त नाम गुरू बिन नहिं पावे। पूरा गुरू हो सोइ लखावे।।
सार मंत्रा लखे जो कोई। विषधर मंडवा निर्मल होई।।
आदि नाम मुक्तामणि सांचा। जो सुमरे जिव सबसों बाचा।।
आदि नाम निज सार है भाई। जमराजा तेहि निकट न आई।।
जब लग गुप्त जाप नहीं जाने। तब लग काल हटा नहिं माने।।
गुप्त जाप ध्वनि जहंवा होई। जो जन जाने बिरला कोई।।
मूल मंत्र जेहि पुरूष के पासा। सोई जनको खोज ले दासा।।
सार मन्त्र मूल है औ सब साखा। कहैं कबीर मैं निज के भाखा।।
लिखो न जाय कहै को पारा। है अक्षर में जो पावै निरबारा।।
लिखो न जाय लिखा में नाहीं। गुरू बिन भेंट न होवे ताहीं।।
भावार्थ:- उपरोक्त वाणी जो पृष्ठ 63-64 पर लिखी है। उनका भावार्थ है कि साखी तथा शब्द आदि बहुत संत गाते हैं, समझाते हैं, परंतु आदिनाम यानि सार शब्द कोई बिरला ही जानता है। आदि नाम मोक्ष का खास मंत्र है। अन्य मंत्र सब राख हैं। मोक्षदायक न होने से व्यर्थ हैं। आदिनाम ही निज मंत्र है। उसके जाप बिना सर्व प्राणी डूब मरे हैं यानि संसार के जन्म-मरण के जाल में फँसे हैं, कष्ट उठा रहे हैं। आदि नाम कहो, उसे निरक्षर कहो, यह सच्चा नाम है। इसी से काल से बचा जा सकता है। निःअक्षर यानि सारशब्द के जाप से स्मरण करते समय जो अंदर आवाज होती है, स्मरण करते समय उस पर ध्यान रखना चाहिए। ऐसे कोई बिरला ही जाप करता है। भावार्थ है कि सार शब्द के स्मरण की विधि पूर्ण संत बताता है, उससे ठीक समझ कर कोई बिरला ही शिष्य ठीक से जाप करता है। जब तक गुप्त जाप का ज्ञान नहीं होगा, तब तक काल दूर नहीं जाएगा। हे भक्त! जिस संत के पास सार शब्द के जाप की गुप्त विधि है, उसको खोज लो।
लिखो न जाय लिखा मैं नाही। गुरू बिन भैंट न होवै ताही।।
लिखो न जाय कहे को पारा। है अक्षर में जो पावै निरबारा।।
भावार्थ:- जो गुप्त जाप है, उसके स्मरण की विधि लिखी नहीं जा सकती, न मैंने लिखी है यानि न ग्रन्थ में लिखाई है। जाप की विधि सबके सामने कही नहीं जा सकती। उसको पूर्ण गुरू ही निखार कर यानि निर्णायक तरीके से बता सकता है। उसके बिना कोई बता नहीं सकता। सार शब्द के जाप की विधि भी अक्षर में है यानि बोलकर बताई-समझाई जाती है।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
संत रामपाल जी महाराज जी का का उद्देश्य है कि सभी मानव, एक सर्वोच्च ईश्वर परमेश्वर कबीर जी की पूजा करें और हमारे मूल निवास सतलोक की ओर वापस लौटें। सर्वोच्च ईश्वर कबीर जी की उपासना करने वाला कोई भी व्यक्ति, आध्यात्मिक नेता जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से अपनी जाति, पंथ, रंग, आस्था या धर्म से बेपरवाह होकर नाम दीक्षा ले सकता है क्योंकि ईश्वर ने प्रत्येक मानव को समान बनाया है।
पूर्ण परमात्मा कविर्देव चारों युगों में आए हैं। सृष्टी व वेदों की रचना से पूर्व भी अनामी लोक में मानव सदृश कविर्देव नाम से विद्यमान थे। कबीर परमात्मा ने फिर सतलोक की रचना की, बाद में परब्रह्म, ब्रह्म के लोकों व वेदों की रचना की इसलिए वेदों में कविर्देव का विवरण है।
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भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि रजगुण ब्रह्मा है, सतगुण विष्णु तथा तमगुण महेश है। यही प्रमाण मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित केवल हिन्दी सचित्र मोटा टाईप) के पृष्ठ 123 है। लिखा है कि ब्रह्म (काल निरंजन) की तीन प्रधान शक्तियां हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश। ये ही तीन देवता हैं, ये ही तीनों गुण हैं। देवी पुराण (श्री वैंकेटेश्वर प्रैस मुंबई से प्रकाशित संस्कृत-हिन्दी सहित) के तीसरे स्कंद में पाँचवें अध्याय के आठवें श्लोक में कहा है:- श्री शिव जी ने कहा कि हे मातः यदि आप हम पर दयावान हैं तो मुझे तमगुण, ब्रह्मा को रजगुण तथा विष्णु को सतगुण क्यों बनाया?
विवेचन:- विचार करें पाठकजन! जो ज्ञान पुराणों, गीता, वेदों में अंकित है, जिसको धर्मगुरू, ब्राह्मण नहीं जान सके, उस ज्ञान को काशी वाला जुलाहा (धाणक) कबीर जी जानते हैं। जिनको वे ब्राह्मण अशिक्षित तथा अज्ञानी कहते थे तो अब कबीर जी को आप क्या कहेंगे? परमेश्वर सर्वज्ञ परमात्मा, सच्चा सतगुरू कहेंगे, जगत गुरू कहेंगे। और विचार करते हैं। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि:-
तीन देव की जो करते भक्ति। उनकी कबहु ना होवै मुक्ति।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि जो साधक भूलवश तीनों देवताओं रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव की भक्ति करते हैं, उनकी कभी मुक्ति नहीं हो सकती। यही प्रमाण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भी है। कहा है कि साधकों ने त्रिगुण यानि तीनों देवताओं (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) को कर्ता मानकर उनकी भक्ति करते हैं। अन्य किसी की बात सुनने को तैयार नहीं हैं। जिनका ज्ञान हरा जा चुका है यानि जिनकी अटूट आस्था इन्हीं तीनों देवताओं पर लगी है, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए हैं, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म (बुरे कर्म) करने वाले मूर्ख हैं। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि वे मेरी (काल ब्रह्म यानि ज्योति निरंजन की) भक्ति नहीं करते। उन देवताओं को मैंने कुछ शक्ति दे रखी है। परंतु इनकी पूजा करने वाले अल्पबुद्धियों (अज्ञानियों) की यह पूजा क्षणिक सुख देती है। स्वर्ग लोक को प्राप्त करके शीघ्र जन्म-मरण के चक्र में गिर जाते हैं।
पृष्ठ 59 की वाणियों में स्पष्ट किया है कि भक्ति उसी की सफल होती है जो काल के लोक में भोले व्यक्ति कुल मर्यादा का बंधन बनाकर रहते हैं, उस लोक लाज यानि कुल मर्यादा से ऊपर उठकर भक्ति करता है। भक्ति करनी चाहिए।
पृष्ठ 60 पर सामान्य ज्ञान है।
भक्ति करे मुक्ति फल पावै। हमरे सत्यलोक में आवै।।
भवतारण बोध पृष्ठ 61-62 पर वाणी है:-
माया और ब्रह्म काल अरू, रज सत तम हैं त्रायदेव।
इन सबही को छोड़कर करो निह अक्षर की सेव (पूजा)।।
भावार्थ:- दुर्गा देवी तथा काल ब्रह्म तथा तीनों देवताओं को इष्ट मानकर भक्ति त्यागकर निःअक्षर यानि पूर्ण परमात्मा की भक्ति आदि नाम (सारनाम) से करो।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘भवतारण बोध‘‘ का सारांश सम्पूर्ण हुआ।
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भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि रजगुण ब्रह्मा है, सतगुण विष्णु तथा तमगुण महेश है। यही प्रमाण मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित केवल हिन्दी सचित्र मोटा टाईप) के पृष्ठ 123 है। लिखा है कि ब्रह्म (काल निरंजन) की तीन प्रधान शक्तियां हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश। ये ही तीन देवता हैं, ये ही तीनों गुण हैं। देवी पुराण (श्री वैंकेटेश्वर प्रैस मुंबई से प्रकाशित संस्कृत-हिन्दी सहित) के तीसरे स्कंद में पाँचवें अध्याय के आठवें श्लोक में कहा है:- श्री शिव जी ने कहा कि हे मातः यदि आप हम पर दयावान हैं तो मुझे तमगुण, ब्रह्मा को रजगुण तथा विष्णु को सतगुण क्यों बनाया?
विवेचन:- विचार करें पाठकजन! जो ज्ञान पुराणों, गीता, वेदों में अंकित है, जिसको धर्मगुरू, ब्राह्मण नहीं जान सके, उस ज्ञान को काशी वाला जुलाहा (धाणक) कबीर जी जानते हैं। जिनको वे ब्राह्मण अशिक्षित तथा अज्ञानी कहते थे तो अब कबीर जी को आप क्या कहेंगे? परमेश्वर सर्वज्ञ परमात्मा, सच्चा सतगुरू कहेंगे, जगत गुरू कहेंगे। और विचार करते हैं। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि:-
तीन देव की जो करते भक्ति। उनकी कबहु ना होवै मुक्ति।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि जो साधक भूलवश तीनों देवताओं रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव की भक्ति करते हैं, उनकी कभी मुक्ति नहीं हो सकती। यही प्रमाण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भी है। कहा है कि साधकों ने त्रिगुण यानि तीनों देवताओं (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) को कर्ता मानकर उनकी भक्ति करते हैं। अन्य किसी की बात सुनने को तैयार नहीं हैं। जिनका ज्ञान हरा जा चुका है यानि जिनकी अटूट आस्था इन्हीं तीनों देवताओं पर लगी है, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए हैं, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म (बुरे कर्म) करने वाले मूर्ख हैं। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि वे मेरी (काल ब्रह्म यानि ज्योति निरंजन की) भक्ति नहीं करते। उन देवताओं को मैंने कुछ शक्ति दे रखी है। परंतु इनकी पूजा करने वाले अल्पबुद्धियों (अज्ञानियों) की यह पूजा क्षणिक सुख देती है। स्वर्ग लोक को प्राप्त करके शीघ्र जन्म-मरण के चक्र में गिर जाते हैं।
पृष्ठ 59 की वाणियों में स्पष्ट किया है कि भक्ति उसी की सफल होती है जो काल के लोक में भोले व्यक्ति कुल मर्यादा का बंधन बनाकर रहते हैं, उस लोक लाज यानि कुल मर्यादा से ऊपर उठकर भक्ति करता है। भक्ति करनी चाहिए।
पृष्ठ 60 पर सामान्य ज्ञान है।
भक्ति करे मुक्ति फल पावै। हमरे सत्यलोक में आवै।।
भवतारण बोध पृष्ठ 61-62 पर वाणी है:-
माया और ब्रह्म काल अरू, रज सत तम हैं त्रायदेव।
इन सबही को छोड़कर करो निह अक्षर की सेव (पूजा)।।
भावार्थ:- दुर्गा देवी तथा काल ब्रह्म तथा तीनों देवताओं को इष्ट मानकर भक्ति त्यागकर निःअक्षर यानि पूर्ण परमात्मा की भक्ति आदि नाम (सारनाम) से करो।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘भवतारण बोध‘‘ का सारांश सम्पूर्ण हुआ।
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
🙏🏻 जी संत जनों 🙏🏻 शुद्ध चेतन निराधार है इनका करो बखान। पारब्रह्म एक रूप है यही यही सेहज पहचान 🙏🏻
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌻🌹🌹🙏🏻 राम झरोखे बैठ के सब का मुजरा ले। जैसी जिनकी चाकरी तो वैसा ही फल दे 🙏🏻 मुझे है काम ईश्वर से जगत रूठे तो रूठन दे 🙏🏻 कुटुंब परिवार सूतधारा , माल धन लाज लोकन की 🙏🏻 हरि के भजन करने में जगत छुटे तो छुटन दे 🙏🏻 करूं कल्याण में अपना बैठ संत संतन की संगत में 🙏🏻 लोग दुनिया के भोगों में, मौज लुटे तो लूटन दे 🙏🏻 लगी मन में लगन मेरे प्रभु किए ध्यान करने की।।।
🙏🏻 प्रीत संसार विषयों से अगर टूटे तो टूटन दे 🙏🏻 दरी सिर पाप की मटकी मेरे गुरुदेव ने पटकी 🙏🏻 वो कबीर दास ने पटकी, अगर फुटे तो फुटन दे🙏🏻🌹🌹🌹🌹🌹🙏🏻🙏🏻 जी संतो सतगुरु देवाय नमः जी 🙏🏻🙏🏻🌹🌹🌹🌹 जी संत जनों हैप्पी रक्षाबंधन जी 🌹🌹🌹
मध्यप्रदेस के सागर शहर में नाम दीक्षा के लिए एक ऐसी आत्मा आई जो कैंसर और जलन के रोग से पीड़ित था और उसे दो आदमी सहारा देकर लाये थे । परमेश्वर ने ऐसी रजा की नाम दीक्षा लेते ही उसकी भयंकर जलन दूर हो गयी और वह बिना किसी के सहारे के अपने पैरों से चलकर गया जी
भोपाल के कोडिनेट र मुकेश से इस नम्बर पर सम्पर्क कर सकते है 07747003357
मध्यप्रदेस के सागर शहर में नाम दीक्षा के लिए एक ऐसी आत्मा आई जो कैंसर और जलन के रोग से पीड़ित था और उसे दो आदमी सहारा देकर लाये थे । परमेश्वर ने ऐसी रजा की नाम दीक्षा लेते ही उसकी भयंकर जलन दूर हो गयी और वह बिना किसी के सहारे के अपने पैरों से चलकर गया जी
भोपाल के को���िनेट र मुकेश से इस नम्बर पर सम्पर्क कर सकते है 07747003357