FYJC के तीसरे दौर में दाखिले के बाद 2 लाख से ज्यादा सीटें खाली
FYJC के तीसरे दौर में दाखिले के बाद 2 लाख से ज्यादा सीटें खाली
प्रथम वर्ष के जूनियर कॉलेज (एफवाईजेसी = कक्षा XI) के लिए केंद्रीकृत प्रवेश प्रक्रिया (सीएपी) के तीसरे दौर के पूरा होने के बाद 2 लाख से अधिक 3.7 लाख सीटों में से खाली पड़ी है।
इनमें से 1.4 लाख से अधिक सीटें प्रवेश के विशेष दौर के लिए खुलेंगी, जो कि अंतिम सीएपी दौर होगा।
बाकी सीटें कोटा प्रवेश के लिए हैं, जिनमें आंतरिक, अल्पसंख्यक या प्रबंधन कोटे के तहत शामिल हैं।
आवंटित सीटों पर प्रवेश की पुष्टि…
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कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की।
एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की। एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा। सोलह पुत्रों के नाम हैं:-(1) ‘‘कूर्म’’, (2)‘‘ज्ञानी’’, (3) ‘‘विवेक’’, (4) ‘‘तेज’’, (5) ‘‘सहज’’, (6) ‘‘सन्तोष’’, (7)‘‘सुरति’’, (8) ‘‘आनन्द’’, (9) ‘‘क्षमा’’, (10) ‘‘निष्काम’’, (11) ‘जलरंगी‘ (12)‘‘अचिन्त’’, (13) ‘‘पे्रम’’, (14) ‘‘दयाल’’, (15) ‘‘धैर्य’’ (16) ‘‘योग संतायन’’ अर्थात् ‘‘योगजीत‘‘।
सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सत्यलोक की अन्य रचना का भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की। अचिन्त ने अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की शब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना। अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया, वहाँ आनन्द आया तथा सो गया। लम्बे समय तक बाहर नहीं आया। तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगाने के लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जल लेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डे को मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ा। अण्डे की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की निंद्रा भंग हुई। उसने अण्डे को क्रोध से देखा जिस कारण से अण्डे के दो भाग हो गए। उसमें से ज्योति निंरजन (क्षर पुरुष) निकला जो आगे चलकर ‘काल‘ कहलाया। इसका वास्तविक नाम ‘‘कैल‘‘ है। तब सतपुरुष (कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत के द्वीप में रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीप में रहने लगे (बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई कि कहीं फिर प्रभुता की तड़फ न बन जाए, क्योंकि समर्थ बिन कार्य सफल नहीं होता) फिर पूर्ण धनी कविर्देव ने सर्व रचना स्वयं की। अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री) शक्ति उत्पन्न की, जिससे सर्व ब्रह्माण्डों को स्थापित किया। इसी को पराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व आत्माओं को अपने ही अन्दर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर सदृश उत्पन्न किया। प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा जिसका तेज 16 (सोलह) सूर्यों जैसा मानव सदृश ही है। परन्तु परमेश्वर के शरीर के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश करोड़ों सूर्यों से भी ज्यादा है। बहुत समय उपरान्त क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) ने सोचा कि हम तीनों (अचिन्त
अक्षर पुरुष - क्षर पुरुष) एक द्वीप में रह रहे हैं तथा अन्य एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। मैं भी साधना करके अलग द्वीप प्राप्त करूँगा। उसने ऐसा विचार करके एक पैर पर खड़ा होकर सत्तर (70) युग तक तप किया।
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🍃 *ज्ञान गंगा* 🍃
*(Part - 43)*
*यथार्थ ज्ञान प्रकाश विषय*
*परमेश्वर के विषय में शास्त्र क्या बताते हैं ?*
प्रभु - स्वामी - ईश - राम - खुदा - अल्लाह - रब - मालिक - साहेब - देव - भगवान
गौड। यह सर्व शक्ति बोधक शब्द हैं जो भिन्न-भिन्न भाषाओं में उच्चारण किए व लिखे जाते हैं।
‘‘प्रभु‘‘ की महिमा से प्रत्येक प्राणी प्रभावित है कि कोई शक्ति है जो परम सुखदायक व कष्ट निवारक है। वह कौन है? कैसा है? कहाँ है? कैसे मिलता है? यह प्रश्नवाचक चिन्ह अभी तक पूर्ण रूप से नहीं हट पाया। यह शंका इस पुस्तक से पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगी।
जो शक्ति अन्धे को आँखें प्रदान करे, गूंगे को आवाज, बहरे को कानों से श्रवण करवा दे, बाँझ को पुत्र दे, निर्धन को धनवान बना दे, रोगी को स्वस्थ करे, जिस के यदि दर्शन हो जायें तो अति आनन्द हो, जो सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, पूर्ण शान्तिदायक जगत गुरु तथा सर्वज्ञ है, जिसकी आज्ञा बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता अर्थात् सर्वशक्तिमान जिसके सामने कुछ भी असम्भव नहीं है। ऐसे गुण जिसमें है वह वास्तव में प्रभु (स्वामी, ईश, राम, भगवान, खुदा, अल्लाह, रहीम, मालिक, रब, गौड) कहलाता है।
यहाँ पर एक बात विशेष विचारणीय है कि किसी भी शक्ति का ज्ञान किसी शास्त्र से ही होता है। उसी शास्त्र के आधार पर गुरुजन अपने अनुयाइयों को मार्गदर्शन करते हैं। वह शास्त्र (धार्मिक पुस्तकें) हैं चारों वेद (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद), श्री मद्भागवत गीता, श्री मद्भागवत सुधासागर, अठारह पुराण, महाभारत, बाईबल, कुरान आदि प्रमाणित पवित्र शास्त्र हैं। चारों वेद स्वयं पूर्ण परमात्मा के आदेश से ज्योति निरंजन (काल) ने समुद्र के अन्दर अपने स्वांसों के द्वारा गुप्त छिपा दिया तथा प्रथम बार सागर मन्थन के समय यह चारों वेद श्री ब्रह्मा जी को प्राप्त हुए। जो ब्रह्मा जी (क्षर पुरुष के ज्येष्ठ पुत्र) ने पढे़ तथा जैसा समझ सका उसी आधार पर संसार में ज्ञान का प्रचार अपने वंशजों (ऋषियों) के द्वारा करवाया। पूर्ण परमात्मा ने पाँचवां ‘‘स्वसम‘‘ (सूक्ष्म) वेद भी ब्रह्म (काल) को दिया था जो इस ज्योति निरंजन ने अपने पास गुप्त रखा तथा उसे समाप्त कर दिया।
कुछ समय उपरान्त अर्थात् एक कल्प (एक हजार चतुर्युग) के बाद तीन लोक (पृथ्वी लोक, स्वर्गलोक, पाताललोक) के सर्व प्राणी प्रलय (विनाश) हो जाते हैं। फिर ज्योति निरंजन (काल) के निर्देश से ब्रह्मा अपनी रात्री समाप्त होने पर (ब्रह्मा की रात्री एक हजार चतुर्युग की होती है तथा इतना ही दिन) जब दिन प्रारम्भ होता है, रजोगुण से प्रभावित करके प्राणियों की उत्पत्ति तीनों लोकों में शुरू करता है।
तब सतयुग की शुरुआत में वही चारों वेद काल (ब्रह्म) स्वयं ब्रह्मा को फिर प्रदान करता है तथा फिर प्राकृतिक उथल-पुथल के कारण चारों पवित्र वेदों का ज्ञान समाप्त हो जाता है। उसके पश्चात् फिर समय अनुसार अन्य ऋषियों में प्रवेश करके दोबारा लिखवाता है। फिर भी समय अनुसार प्राकृतिक उथल-पुथल के बाद स्वार्थी लोगों के द्वारा वेदों में बदलाव करके वास्तविक ज्ञान संसार से लुप्त कर दिया जाता है। वही काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) महाभारत युद्ध के समय श्री कृष्ण में प्रवेश करके चारों वेदों का संक्षिप्त विवरण श्रीमद्भागवत गीता के रूप में दिया तथा कहा कि अर्जुन यही ज्ञान मैंने पहले सूर्य से कहा था। उसने अपने पुत्र वैवश्वत् अर्थात् मनु से तथा वैवश्वत् अर्थात् मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु से कहा था। परन्तु बीच में यह उत्तम ज्ञान प्राय समाप्त हो गया था।
इस काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) ने श्री वेदव्यास ऋषि के शरीर में प्रवेश करके चारों वेद, महाभारत, अठारह पुराण, श्रीमद्भागवतगीता, श्री सुधासागर को पुनः लिपिबद्ध (संस्कृत भाषा में) करवाया जो आज सभी को उपलब्ध हैं। ये सर्व शास्त्र श्रेष्ठ हैं। अब इन शास्त्रों को कलयुगी ऋषियों ने भाषा-भाष्य अर्थात् हिन्दी अनुवाद करके अपने विचार मिलाने की कोशिश की है, जो स्पष्ट गलत दिखाई देते हैं और व्याख्या से मेल नहीं खाते हैं। यह सर्व शास्त्र महर्षि व्यास जी द्वारा लगभग 5300 (पाँच हजार तीन सौ) वर्ष पूर्व दोबारा लिखे गए थे। उस समय हिन्दु धर्म, इसाई धर्म, मुसलमान धर्म व सिक्ख धर्म आदि कुछ भी नहीं थे। एक वेदों के मानने वाले आर्य ही हुआ करते थे। कर्म आधार पर जाति होती थी तथा केवल चार वर्ण (क्षत्रि-वैश्य-ब्राह्मण तथा शुद्र) ही थे।
इससे एक तो यह प्रमाणित हो जाता है कि यह सर्व शास्त्र किसी धर्म या व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है। यह केवल मानव मात्र के कल्याण हेतु हैं। दूसरे यह प्रमाणित होता है कि हमारे पूर्वज एक थे। जिनके संस्कार आपस में मिले जुले हैं।
सर्व प्रथम पवित्र शास्त्र गीता जी पर विचार करते हैं।
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कैसे अजामेल मृत होने के बाद फिर से जिवित हों गया!!
वैश्या मैनका के पास जाने लगा। दोनों को नगर से निकाल दिया गया। दोनों लगभग 40-45 वर्ष की आयु के हो गए थे। संतान कोई नहीं थी। परमेश्वर कबीर जी कहते हैं, गरीबदास जी ने बताया है :-
गोता मारूं स्वर्ग में, जा पैठूं पाताल। गरीबदास ढूंढ़त फिरूं, हीरे मानिक लाल।।
कबीर, भक्ति बीज विनशै नहीं, आय पड़ो सो झोल। जे कंचन बिष्टा पड़े, घटै न ताका मोल।।
भावार्थ :- कबीर परमेश्वर जी ने संत गरीबदास जी को बताया कि मैं अपनी अच्छी आत्माओं को खोजता फिरता हूँ। स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल लोक में कहीं भी मिले, मैं वहीं पहुँच जाता हूँ। उनको पुनः भक्ति की प्रेरणा करता हूँ। मनुष्य जन्म के भूले उद्देश्य की याद
दिलाकर भक्ति करने को कहता हूँ। वे अच्छी आत्माऐं पूर्व के किसी जन्म में मेरी शरण में आई होती हैं, परंतु पुनः जन्म में कोई संत न मिलने के कारण वे भक्ति न करके या तो धन संग्रह करने में व्यस्त हो जाती हैं या बुराईयों में फँसकर शराब, माँस खाने-पीने में जीवन
नष्ट कर देती हैं या फिर अपराधी बनकर जनता के लिए दुःखदाई बनकर बेमौत मारी जाती हैं। उनको उस दलदल से निकालने के लिए मैं कोई न कोई कारण बनाता हूँ। वे आत्माऐं तत्वज्ञान के अभाव से बुराईयों रूपी कीचड़ में गिर तो जाती हैं, परंतु जैसे कंचन (स्वर्ण) टट्टी में गिर जाए तो उसका मूल्य कम नहीं होता। टट्टी (बिष्टा) से निकालकर साफ कर ले। उसी मोल बिकता है। इसी प्रकार जो जीव मानव शरीर में एक बार मेरी (कबीर परमेश्वर जी की) शरण में किसी जन्म में आ जाता है। प्रथम, द्वितीय या तीनों मंत्रों में से कोई भी प्राप्त कर लेता है। किसी कारण से नाम खंडित हो जाता है, मृत्य हो जाती है तो उसको मैं नहीं छोडूंगा। कलयुग में सब जीव पार होते हैं। यदि कलयुग में भी कोई उपदेशी रह जाता है तो सतयुग, त्रोतायुग, द्वापरयुग में उन्हीं की भक्ति से मैं बिना नाम लिए, बिना धर्म-कर्म किए आपत्ति आने पर अनोखी लीला करके रक्षा करता हूँ। उसको फिर भक्ति पर लगाता हूँ। उनमें परमात्मा में आस्था बनाए रखता हूँ।
एक दिन नारद जी काशी में आए तथा किसी से पूछा कि मुझे अच्छे भक्त का घर बताओ। मैंने रात्रि में रूकना है। मेरा भजन बने, उसको सेवा का लाभ मिले। उस व्यक्ति ने मजाक सूझा और कहा कि आप सामने कच्चे रास्ते जंगल की ओर जाओ। वहाँ एक बहुत अच्छा भक्त रहता है। भक्त तो एकान्त में ही रहते हैं ना। आप कृपा जाओ। लगभग एक मील (आधा कोस) दूर उसकी कुटी है। गर्मी का मौसम था। सूर्य अस्त होने में 1) घंटा शेष था। नारद जी को द्वार पर देखकर मैनका अति प्रसन्न हुई क्योंकि प्रथम बार कोई मनुष्य उनके घर आया था, वह भी ऋषि। पूर्व जन्म के भक्ति-संस्कार अंदर जमा थे, उन पर जैसे बारिश का जल गिर गया हो, ऐसे एकदम अंकुरित हो गए। मैनका ने ऋषि जी का अत्यधिक सत्कार किया। कहा कि न जाने कौन-से जन्म के शुभ कर्म आगे आए हैं जो हम पापियों के घर भगवान स्वरूप ऋषि जी आए हैं। ऋषि जी के बैठने के लिए एक वृक्ष के नीचे चटाई बिछा दी। उसके ऊपर मृगछाला बिछाकर बैठने को कहा। नारद जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि वास्तव में ये पक्के भक्त हैं। बहुत अच्छा समय बीतेगा। कुछ देर में अजामेल आया और जो तीतर-खरगोश मारकर लाया था, वह लाठी में टाँगकर आँगन में प्रवेश हुआ। अपनी पत्नी से कहा कि ले रसोई तैयार कर। सामने ऋषि जी को बैठे देखकर दण्डवत् प्रणाम किया और अपने भाग्य को सराहने लगा। कहा कि ऋषि जी! मैं स्नान करके आता हूँ, तब आपके चरण चम्पी करूँगा। यह कहकर अजामेल निकट के तालाब पर चला गया।
नारद जी ने मैनका से पूछा कि देवी! यह कौन है? उत्तर मिला कि यह मेरा पति अजामेल है। नारद जी को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह क्या चक्रव्यूह है? विचार तो भक्तों से भी ऊपर, परंतु कर्म कैसे? नारद जी ने कहा कि देवी! सच-सच बता, माजरा क्या है? शहर में मैंने पूछा था कि किसी अच्छे भक्त का घर बताओ तो आपका एकांत स्थान वाला घर बताया था। आपके व्यवहार से मुझे पूर्ण संतोष हुआ कि सच में भक्तों के घर आ गया हूँ।
यह माँसाहारी आपका पति है तो आप भी माँसाहारी हैं। मेरे साथ मजाक हुआ है। ऋषि नारद उठकर चलने लगा। मैनका ने चरण पकड़ लिये। तब तक अजामेल भी आ गया। अजामेल भी समझ गया कि ऋषि जी गलती से आये हैं। अब जा रहे हैं। पूर्व के भक्ति संस्कार के कारण ऋषि जी के दोनों ने चरण पकड़ लिए और कहा कि हमारे घर से ऋषि भूखा जाएगा तो हमारा नरक में वास होगा। ऋषि जी! आपको हमें मारकर हमारे शव के ऊपर पैर रखकर जाना होगा। नारद जी ने कहा कि आप तो अपराधी हैं। तुम्हारा दर्शन भी अशुभ है।
अजामेल ने कहा कि हे स्वामी जी! आप तो पतितों का उद्धार करने वाले हो। हम पतितों का उद्धार करें। हमें कुछ ज्ञान सुनाओ। हम आपको कुछ खाए बिना नहीं जाने देंगे। नारद जी ने सोचा कि कहीं ये मलेच्छ यहीं काम-तमाम न कर दें यानि मार न दें, ये तो बेरहम होते हैं, बड़ी संकट में जान आई। कुछ विचार करके नारद जी ने कहा कि यदि कुछ खिलाना चाहते हो तो प्रतिज्ञा लो कि कभी जीव हिंसा नहीं करेंगे। माँस-शराब का सेवन नहीं करेंगे। दोनों ने एक सुर में हाँ कर दी। सौगंद है गुरूदेव! कभी जीव हिंसा नहीं करेंगे, कभी शराब-माँस का सेवन नहीं करेंगे। नारद जी ने कहा कि पहले यह माँस दूर डालकर आओ और शाकाहारी भोजन पकाओ। तुरंत अजामेल ने वह माँस दूर जंगल में डाला। मैनका ने कुटी की सफाई की। फिर पानी छिड़का। चूल्हा लीपा। अजामेल बोला कि मैं शहर से आटा लाता हूँ। मैनका तुम सब्जी बनाओ। नारद जी की जान में जान आई। भोजन खाया। गर्मी का मौसम था। एक वृक्ष के नीचे नारद जी की चटाई बिछा दी। स्वयं दोनों बारी-बारी सारी रात पंखे से हवा चलाते रहे। नारद जी बैठकर भजन करने लगे। फिर कुछ देर निकली, तब देखा कि दोनों अडिग सेवा कर रहे हैं। नारद जी ने कहा कि आप दोनों भक्ति करो।
राम का नाम जाप करो। दोनों ने कहा कि ऋषि जी! भक्ति नहीं कर सकते। रूचि ही नहीं बनती। और सेवा बताओ।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि :-
कबीर, पिछले पाप से, हरि चर्चा ना सुहावै। कै ऊँघै कै उठ चलै, कै औरे बात चलावै।।
तुलसी, पिछले पाप से, हरि चर्चा ना भावै। जैसे ज्वर के वेग से, भूख विदा हो जावै।।
भावार्थ :- जैसे ज्वर यानि बुखार के कारण रोगी को भूख नहीं लगती। वैसे ही पापों के प्रभाव से व्यक्ति को परमात्मा की चर्चा में रूचि नहीं होती। या तो सत्संग में ऊँघने लगेगा या कोई अन्य चर्चा करने लगेगा। उसको श्रोता बोलने से मना करेगा तो उठकर चला जाएगा।
यही दशा अजामेल तथा मैनका की थी। नारद जी ने कहा कि हे अजामेल! एक आज्ञा का पालन अवश्य करना। आपकी पत्नी को लड़का उत्पन्न होगा। उसका नाम ‘नारायण’ रखना। ऋषि जी चले गए। अजामेल को पुत्र प्राप्त हुआ। उसका नाम नारायण रखा। इकलौते पुत्र में अत्यधिक मोह हो गया। जरा भी इधर-उधर हो जाए तो अजामेल अरे नारायण आजा बेटा करने लगा। ऋषि जी का उद्देश्य था कि यह कर्महीन दंपति इसी बहाने परमात्मा को याद कर लेगा तो कल्याण हो जाएगा। नारद जी ने कहा था कि अंत समय में यदि यम के दूत जीव को लेने आ जाऐं तो नारायण कहने से छोड़कर चले जाते हैं।
भगवान के दूत आकर ले जाते हैं। एक दिन अचानक अजामेल की मृत्यु हो गई। यम के दूत आ गए। उनको देखकर कहा कि कहाँ गया नारायण बेटा, आजा।
{पौराणिक लोग कहते हैं कि ऐसा कहते ही भगवान विष्णु के दूत आए और यमदूतों से कहा कि इसकी आत्मा को हम लेकर जाऐंगे। इसने नारायण को पुकारा है। यमदूतों ने कहा कि धर्मराज का हमारे को आदेश है पेश करने का। इसी बात पर दोनों का युद्ध हुआ। भगवान के दूत अजामेल को ले गए।}
वास्तव में यमदूत धर्मराज के पास लेकर गए। धर्मराज ने अजामेल का खाता खोला तो उसकी चार वर्ष की आयु शेष थी। फिर देखा कि इसी काशी शहर में दूसरा अजामेल है। उसके पिता का अन्य नाम है। उसको लाना था। उसे लाओ। इसको तुरंत छोड़कर आओ।
अजामेल की मृत्यु के पश्चात् उसकी पत्नी रो-रोकर विलाप कर रही थी। विचार कर रही थी कि अब इस जंगल में कैसे रह पाऊँगी। बच्चे का पालन कैसे करूंगी? यह क्या बनी भगवान? वह रोती-रोती लकडि़याँ इकट्ठी कर रही थी। कुटी के पास में शव को खींचकर ले गई। इतने में अजामेल उठकर बैठ गया। कुछ देर तो शरीर ने कार्य ही नहीं किया।
कुछ समय के बाद अपनी पत्नी से कहा कि यह क्या कर रही हो? पत्नी की खुशी का ठिकाना नहीं था। कहा कि आपकी मृत्यु हो गई थी। अजामेल ने बताया कि यम के दूत मुझे धर्मराज के पास लेकर गए। मेरा खाता देखा तो मेरी चार वर्ष आयु शेष थी। मुझे छोड़ दिया और काशी शहर से एक अन्य अजामेल को लेकर जाऐंगे, उसकी मृत्यु होगी। अगले दिन अजामेल शहर गया तो अजामेल के शव को शमशान घाट ले जा रहे थे, तुरंत वापिस आया। अपनी पत्नी से बताया कि वह अजामेल मर गया है, उसका अंतिम संस्कार करने जा रहे हैं। अब अजामेल को भय हुआ कि भक्ति नहीं की तो ऊपर बुरी तरह पिटाई हो रही थी, नरक में हाहाकार मचा था। नारद जी आए तो अजामेल ने कहा कि गुरू जी! मेरे साथ ऐसा हुआ। मेरी आयु चार वर्ष की बताई थी। एक वर्ष कम हो चुका है। बच्चा छोटा है, मेरी आयु बढ़ा दो। नारद जी ने कहा कि नारायण-नारायण जपने से किसी की आयु नहीं बढ़ती। जो समय धर्मराज ने लिखा है, उससे एक श्वांस भी घट-बढ़ नहीं सकता।
कथा सुनाई...........
शेष अगले भाग में.......
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1. Old= पुराना
2. Bet= शर्त
3. But= लेकिन
4. Bed= बिस्तर
5. Bet= शर्त
6. Tub= नांद
7. Tube= नाल
8. Debut= प्रथम प्रवेश
9. Due= बकाया
10. Debt= उधार
11. Rack= हटया करने का साधन
12. Track= पगडंडी
13. Car= गाड़ी
14. Rat= चूहा
15. Art= कला
16. Cart= शकट
17. Cat= बिल्ली
18. Act= कार्यवाही करना
19. House= मकान
20. She= वह
21. Hose= नली
22. Shoe= जूता
23. Use= उपयोग
24. Sue= मुक़दमा चलाना
25. State = राज्य
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प्रचंड तापमान ने जेईई-एडवांस्ड परीक्षार्थियों की ली दोहरी परीक्षा
जेईई-एडवांस्ड, 2024: देश के 222 शहरों व राजस्थान में कोटा सहित 10 शहरों के परीक्षा केंद्रों पर दो शिफ्ट में हुये दोनों पेपर।
23 आईआईटी की 17,385 सीटों पर हुई परीक्षा, जेईई-मेन से क्वालिफाई 2.50 लाख में से करीब 1.90 लाख ने दी जेईई-एडवांस्ड परीक्षा
न्यूजवेव@कोटा
आईआईटी, मद्रास द्वारा आयोजित जेईई-एडवांस्ड,2024 परीक्षा रविवार को देश के 222 शहरों के 709 परीक्षा केंद्रों पर कम्प्यूटर बेस्ड मोड में हुई। राजस्थान में कोटा सहित 10 शहरों में यह परीक्षा हुई। इसमें सफल अभ्यार्थियों को देश की 23 आईआईटी की 17,385 सीटों पर प्रवेश दिया जायेगा। आईआईटी में गर्ल्स को 20 प्रतिशत सुपर न्यूमरेरी आरक्षण होने से उनमें उत्साह देखा गया। इसका रिजल्ट 9 जून रविवार को घोषित होगा।
परीक्षा में पेपर-1 सुबह 9 से 12 बजे तक एवं पेपर-2 दोपहर 2ः30 बजे से शाम 5ः30 बजे तक हुआ। रविवार को प्रचंड गर्मी में 47 डिग्री तापमान ने परीक्षार्थियों और उनके अभिभावकों की दोहरी परीक्षा ली। इस वर्ष जेईई-मेन से क्वालिफाई 2.50 लाख में से 1,91,283 ने पंजीयन कराया था, जिसमें से करीब 1.90 लाख परीक्षार्थी इस परीक्षा में शामिल हुये हैं।
इस वर्ष आईआईटी ने पेपर पेटर्न में कोई बदलाव नहीं किया। कुल 360 अंकों की परीक्षा में पेपर-1 व पेपर-2 के प्रत्येक पेपर में 180 अंकों के 51 बहुवैकल्पिक प्रश्न पूछे गये। जिसमें तीनो विषयों से 17-17 प्रश्न पूछे गये। सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को प्रत्येक विषय में न्यूनतम प्राप्तांक 10 व कुल 35 लाने होंगे जबकि ओबीसी-एनसीएल वर्ग में प्रत्येक विषय में न्यूनतम 9 अंक व कुल 31.5 प्राप्तांक अनिवार्य है। इसी तरह, एससी, एसटी व दिव्यांग वर्ग के लिये प्रत्येक विषय में प्राप्तांक 5 व कुल 17.5 अंक होना आवश्यक है। गत वर्ष जेईई-एडवांस्ड में 1.89,487 पंजीकृत में से 1.80,372 ने परीक्षा दी थी, जिसमंे से कुल 43,769 क्वालिफाई घोषित किये गये थे। इस वर्ष 10 हजार परीक्षार्थी अधिक होने से क्वालिफाई की संख्या भी अधिक रहेगी।
फाइनल ‘आंसर की’ 2 जून को
जेईई-एडवांस्ड वेबसाइट के अनुसार, परीक्षा में दोनों पेपर के जवाबों की कॉपी 24 मई शाम 5 बजे जारी कर दी जायेगी। जिससे परीक्षार्थी अपने स्कोर का आकलन कर सकेंगे। अधिकृत फाइनल ‘आंसर की’ 2 जून प्रातः 10 बजे जारी कर दी जायेगी। परीक्षार्थियों ने बताया कि इस वर्ष पेपर-1 में मैथ्स एवं केमिस्ट्री के प्रश्न मॉडरेट लेवल के रहे जबकि फिजिक्स के प्रश्नों का स्तर कठिन रहा। जबकि पेपर-2 में मैथ्स के प्रश्न कठिन रहे। कोटा में प्रमुख कोचिग संस्थानों के विशेषज्ञ पेपर में तीनों विषयों के प्रश्नों को हल कर सही उत्तर का विश्लेषण करते रहे। जिससे परीक्षार्थियों को अपने संभावित स्कोर का आंकलन करने में मदद मिलेगी।
12वीं बोर्ड में 75 प्रतिशत अंक अनिवार्य
जेईई-एडवांस्ड 2024 से आईआईटी संस्थानों में प्रवेश प्राप्त करने के लिये सामान्य वर्ग के क्वालिफाई परीक्षार्थियों का 12वीं बोर्ड परीक्षा में न्यूनतम 75 प्रतिशत अंकों से पास होना आवश्यक है। एससी, एसटी व पीडब्ल्यूडी अभ्यर्थियों के लिये 12वीं में न्यूनतम 62 प्रतिशत अंक अनिवार्य हैं। साथ ही, क्वालिफाई अभ्यर्थी न्यूनतम 5 विषयों में उत्तीर्ण हो और श्रेणीवार शीर्ष 20 प्रतिशत सफल परीक्षार्थियों में भी होना चाहिये।
कोटा में 2 परीक्षा केंद्रों पर बेटियों को मौका
जेईई-एडवांस्ड परीक्षा सीबीटी मोड में होने से कोटा में दो परीक्षा केंद्र रहे। पहला सुभाष नगर प्रथम में वायबेल सॉल्यूशन, तथा दूसरा, इंद्रप्रस्थ इंडस्ट्रियल एरिया में डिजिटल डेस्क केेंद्र पर शांतिपूर्वक पेपर हुये। सभी अभ्यर्थियों को कडी सुरक्षा जांच के बाद प्रवेश दिया गया। अभिभावक परीक्षा केंद्रों के बाहर प्रचंड तापमान में छाते लगाकर खडे़ रहे। दोनों पेपर के बीच ब्रेक में परीक्षार्थियों को पानी, जूस व ठंडे पेय पदार्थ पिलाकर राहत प्रदान की।
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Regional Marathi Text Bulletin, Chhatrapati Sambhajinagar
Date – 21 May 2024
Time 18.10 to 18.20
Language Marathi
आकाशवाणी छत्रपती संभाजीनगर
प्रादेशिक बातम्या
दिनांक – २१ मे २०२४ सायंकाळी ६.१०
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बारावीचा निकाल ९३ पूर्णांक ३७ टक्के-छत्रपती संभाजीनगरची तनिषा बोरामणीकर हिचा वाणिज्य शाखेत राज्यात प्रथम क्रमांक.
छत्रपती संभाजीनगर विभागातून ९४ टक्के, तर लातूर विभागातून ९२ टक्के विद्यार्थी उत्तीर्ण.
पुण्यात दोन जणांच्या अपघाती मृत्यूस कारणीभूत अल्पवयीन चालकाच्या पित्यास छत्रपती संभाजीनगरातून अटक.
आणि
मराठवाड्यासह राज्यात पुढचे तीन दिवस पावसाचा इशारा.
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महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक आणि उच्च माध्यमिक शिक्षण मंडळाच्या वतीनं फेब्रुवारी - मार्च २०२४ मध्ये घेण्यात आलेल्या इयत्ता बारावीच्या परीक्षेचा निकाल आज मंडळाचे अध्यक्ष शरद गोसावी यांनी जाहीर केला. या परीक्षेत यंदा ९३ पूर्णांक ३७ टक्के विद्यार्थी उत्तीर्ण झाले. यंदाही मुलींचं उत्तीर्ण होण्याचं प्रमाण अधिक असून त्याची टक्केवारी ९५ पूर्णांक ४४ इतकी आहे, तर ९१ पूर्णांक ६० टक्के इतकी मुलं उत्तीर्ण झाली आहेत. कोकण विभागाचा निकाल सर्वाधिक ९७ पूर्णांक ५१ टक्के इतका लागला असून, सर्वात कमी निकाल मुंबई विभागाचा ९१ पूर्णांक ९५ टक्के इतका आहे. छत्रपती संभाजीनगर विभागाचा निकाल ९४ पूर्णांक शून्य आठ टक्के, तर लातूर विभागाचा निकाल ९२ पूर्णांक ३६ टक्के इतका लागला आहे. त्याशिवाय पुणे विभागाचा ९४ पूर्णांक ४४, नागपूर ९३ पूर्णांक १२, कोल्हापूर ९४ पूर्णांक २४, अमरावती ९३, तर नाशिक विभागाचा ९४ पूर्णांक ७१ टक्के निकाल लागला आहे.
छत्रपती संभाजीनगर इथल्या देवगिरी महाविद्यालयातली विद्यार्थीनी तनिषा सागर बोरामणीकर हिने वाणिज्य शाखेत ६०० पैकी ६०० गुण घेत राज्यात प्रथम क्रमांक पटकावला आहे
छत्रपती संभाजीनगर विभागात इयत्ता बारावीच्या निकालात बीड जिल्हा प्रथम क्रमांकावर असून या जिल्ह्याचा निकाल ९५ पूर्णांक सत्तर टक्के इतका लागला आहे. छत्रपती संभाजीनगर आणि जालना जिल्ह्याचा निकाल ९४ पूर्णांक ७१ टक्के, हिंगोलीचा ९४ पूर्णांक ०८टक्के, तर परभणी जिल्ह्याचा निकाल ९० पूर्णांक ४२ टक्के इतका लागला आहे.
लातूर विभागात लातूर जिल्ह्याचा सर्वाधिक म्हणजे ९२ पूर्णांक एकोणचाळीस टक्के निकाल लागला असून, धाराशिव जिल्ह्याचा निकाल ८९ पूर्णांक ७८ टक्के तर नांदेड जिल्ह्याचा निकाल ८९ पूर्णांक ७४ टक्के लागला आहे.
हा निकाल मंडळाच्या अधिकृत संकेतस्थळावर उपलब्ध करुन देण्यात आला आहे. गुणपडताळणीसाठी आणि उत्तरपत्रिका छायाप्रतीसाठी पाच जूनपर्यंत सशुल्क ऑनलाईन अर्ज करता येणार आहे.
बारावीच्या परीक्षेत उत्तीर्ण झालेल्या सगळ्या विद्यार्थ्यांचं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे यांनी अभिनंदन केलं असून, त्यांना पुढच्या वाटचालीसाठी शुभेच्छा दिल्या आहेत. तसंच, या परीक्षेत यश न मिळालेल्या विद्यार्थ्यांनी खचून न जाता नव्या उमेदीनं पुन्हा सुरुवात करावी, असंही मुख्यमंत्र्यांनी आपल्या याबाबतच्या संदेशात म्हटलं आहे.
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स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाडा विद्यापीठाच्या प्रवेश प्रक्रियांना येत्या एक जून पासून सुरुवात होणार आहे, कुलगुरू डॉक्टर मनोहर चासकर यांनी ही माहिती दिली. नवीन शैक्षणिक धोरणानुसार यावर्षी पारंपारिक अभ्यासक्रमांसोबतच रोजगाराभिमुख असे अनेक नवे अभ्यासक्रम सुरू करण्यात येणार आहे. वेगवेगळ्या उद्योग कंपन्यांशी सामंजस्य करार करून, कौशल्यावर आधारीत अभ्यासक्रमांसह व्हॅल्यू ॲडेड अभ्यासक्रम राबवले जाणार असल्याचं कुलगुरू चासकर यांनी सांगितलं.
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पुण्यात भरधाव कार चालवून दोन तरुणांच्या मृत्यूस कारणीभूत ठरलेल्या अल्पवयीन मुलाचे वडील, विशाल अग्रवाल यांना छत्रपती संभाजीनगर इथून अटक करण्यात आली आहे. बांधकाम व्यावसायिक असलेले अग्रवाल ��त्रपती संभाजीनगर इथं असल्याची माहिती पुणे पोलिसांना मिळाली होती, त्यानुसार स्थानिक पोलिसांनी रेल्वेस्थानक परिसरातल्या एका लॉजमधून अग्रवाल यांना तर शहराच्या मध्यवर्ती भागातल्या अन्य एका लॉजमधून त्यांच्या दोन सहकाऱ्यांना अटक करून पुणे पोलिसांकडे सोपवलं.
दरम्यान, अल्पवयीन मुलांना मद्य दिल्याप्रकरणी पुणे पोलिसांनी बार मालक आणि मॅनेजरला देखील ताब्यात घेतलं आहे.
उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांनी आज पुणे पोलीस आयुक्तालयाला भेट देऊन या अपघात प्रकरणाचा आढावा घेतला, त्यानंतर पत्रकारांशी संवाद साधत, सदर आरोपी १७ वर्ष आठ महिने वयाचा असल्याची माहिती फडणवीस यांनी दिली. या आरोपीचा वयस्क म्हणून विचार करण्यासंदर्भात बालहक्क आयोगात दाद मागणार असल्याचं फडणवीस यांनी सांगितलं. आयोगाचा एकदोन दिवसांत निर्णय येऊन सदर आरोपीचा रिमांड मिळेल, अशी आशा फडणवीस यांनी व्यक्त केली. दरम्यान, या प्रकरणाची न्यायालयीन चौकशी व्हावी, अशी मागणी विधानसभेचे विरोधी पक्षनेते विजय वडेट्टीवार यांनी केली आहे.
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माजी पंतप्रधान राजीव गांधी यांच्या पुण्यतिथीनिमित्त देशभरात आज दहशतवाद विरोधी दिवस पाळण्यात आला. २१ मे १९९१ रोजी लिबरेशन टायगर्स ऑफ तमिल इलम या दहशतवादी संघटनेनं तामिळनाडूमधल्या श्रीपेरुम्बुदूर इथं केलेल्या बॉम्बस्फोटात राजीव गांधी यांचं निधन झालं होतं. राजीव गांधी यांच्या पुण्यतिथीनिमित्त आज त्यांना सर्वत्र अभिवादन करण्यात आलं.
पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी राजीव गांधी यांना अभिवादन केलं. काँग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, काँग्रेस नेते सोनिया गांधी आणि राहुल गांधी यांनी दिल्लीतल्या राजघाट इथल्या वीर भूमी या राजीव गांधी यांच्या समाधीस्थळावर त्यांना आदरांजली अर्पण केली.
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे यांनी आपल्या निवासस्थानी राजीव गांधी यांच्या प्रतिमेला पुष्पहार अर्पण करून अभिवादन केलं.
मुंबईत मंत्रालयात सामान्य प्रशासन विभागाच्या उपसचिव रोशनी कदम पाटील यांनी राजीव गांधी यांच्या प्रतिमेला पुष्पहार अर्पण करून अभिवादन केलं. मंत्रालयातल्या अधिकारी आणि कर्मचाऱ्यांना यावेळी रोशनी कदम पाटील यांनी दहशतवाद आणि हिंसाचारविरोधी दिनाची शपथ दिली.
छत्रपती संभाजीनगर इथं जिल्हाधिकारी कार्यालयात निवासी उपजिल्हाधिकारी विनोद खिरोळकर यांच्या उपस्थितीत राजीव गांधी यांच्या प्रतिमेला पुष्पहार अर्पण करून, कार्यालयातील अधिकारी, कर्मचारी यांना दहशतावाद तसंच हिंसाचार विरोधी दिनानिमित्त शपथ देण्यात आली.
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राज्यात येत्या तीन दिवसांत तुरळक ठिकाणी मेघगर्जना आणि विजांच्या कडकडाटासह पाऊस पडण्याचा अंदाज हवामान विभागानं वर्तवला आहे. मराठवाड्यात अनेक ठिकाणी वादळी वारे आणि विजांच्या कडकडाटासह हलका ते मध्यम स्वरूपाच्या पावसाचा अंदाज आहे.
दरम्यान, हिंगोली जिल्ह्यात वरुड चक्रपाण शिवारात आज दुपारी साडेतीनच्या सुमाराला वादळी वाऱ्यासह अवकाळी पाऊस झाला. या पावसामुळे परिसरात मोठ्या प्रमाणात नुकसान झाल्याचं वृत्त आहे. अनेक ठिकाणी झाडं उन्मळून पडली, घरावरचे पत्रे उडाले आणि काही ठिकाणी विद्युत खांबही कोसळल्याचं आमच्या वार्ताहरानं कळवलं आहे.
बुलडाणा जिल्ह्यात काल झालेल्या अवकाळी पावसात खामगाव तालुक्यातल्या पळशी इथे अंगावर वीज कोसळून भगवान धानोरकर या शेतकऱ्याचा मृत्यू झाल्याचं आमच्या वार्ताहरानं कळवलं आहे.
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छत्रपती संभाजीनगर शहरात मान्सूनपूर्व नालेसफाईचं काम एप्रिल महिन्यापासून सुरू झालेलं असून आतापर्यंत सुमारे पंचाहत्तर टक्के काम पूर्ण झालं आहे. मनपा आयुक्त तथा प्रशासक जी.श्रीकांत यांनी, नागरिकांच्या याबाबतीतल्या तक्रारींचा निपटारा करण्यासाठी नियंत्रण कक्ष स्थापन करण्याचे आदेश दिले आहेत. ज्या नागरिकांना नालेसफाईच्या कामाबाबत तक्रार नोंदवायची असेल त्यांनी ती नियंत्रण कक्षाच्या ८५ ५१ ०५ ८० ८० या भ्रमणध्वनी क्रमांकावर नोंदवावी असं आवाहन कार्यकारी अभियंता अमोल कुलकर्णी यांनी केलं आहे.
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येत्या खरीप हंगामात लातूर जिल्ह्यात बियाणं, खतं, कीटकनाशकं इत्यादि कृषी निविष्ठांच्या गुणवत्ता आणि दर्जाबाबतच्या तक्रारींचं निवारण करण्यासाठी अकरा तक्रार निवारण कक्ष स्थापन करण्यात आल्याची माहिती लातूरच्या जिल्हा अधीक्षक कृषी अधिकाऱ्यांनी दिली आहे. जिल्हा स्तरावरच्या नियंत्रण कक्षाचा भ्रमणध्वनी क्रमांक ९४ ०४ ५० ५६ २० हा असल्याचंही त्यांनी सांगितलं आहे.
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जपान मध्ये सुरू असलेल्या जागतिक पॅराॲथलेटिक अजिंक्यपद स्पर्धेत आज भारताच्या एकता भयाननं क्लब थ्रो या क्रीडा प्रकारात सुवर्ण पदक जिंकलं. या स्पर्धेत भारताच्याच कशिश लाकडानं रजत पदक जिंकलं. या स्पर्धा येत्या पंचवीस तारखेपर्यंत चालणार आहेत.
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इंडियन प्रिमियर लीग - आयपीएल क्रिकेट स्पर्धेत आज प्लेऑफसाठी कोलकाता नाईट रायडर्स आणि सनरायजर्स हैद्राबाद यांच्यात सामना होणार आहे. अहमदाबाद इथं संध्याकाळी साडेसात वाजता या सामन्याला सुरुवात होणार आहे.
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कल्पकतेच्या माध्यमातून समाजातल्या सभ्यतेला जपणं, हेच लेखकाचं सर्वश्रेष्ठ काम आहे, असं प्रतिपादन प्रसिद्ध लेखक कृष्णात खोत यांनी केलं आहे. मराठवाडा साहित्य परिषदेच्या परभणी शाखेनं दिवंगत कादंबरीकार भारत काळे यांच्या तृतीय स्मृती दिनानिमित्तानं आयोजित केलेल्या 'मी आणि माझे कादंबरी लेखन'या विषयावरील व्याख्यानात ते आज परभणी इथे बोलत होते.
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#MuktiBodh_Part282
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 536-539
”परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों की स्थापना“
कबीर परमेश्वर (कविर्देव) ने आगे बताया है कि परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने अपने कार्य में गफलत की क्योंकि यह मानसरोवर में सो गया तथा जब परमेश्वर (मैंनें अर्थात् कबीर साहेब ने) उस सरोवर में अण्डा छोड़ा तो अक्षर पुरुष (परब्रह्म) ने उसे क्रोध से देखा। इन दोनों अपराधों के कारण इसे भी सात शंख ब्रह्माण्ड़ों सहित सतलोक से बाहर कर दिया।
अन्य कारण अक्षर पुरुष (परब्रह्म) अपने साथी ब्रह्म (क्षर पुरुष) की विदाई में व्याकुल होकर परमपिता कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की याद भूलकर उसी को याद करने लगा तथा सोचा कि क्षर पुरुष (ब्रह्म) तो बहुत आनन्द मना रहा होगा, वह स्वतंत्र राज्य करेगा, मैं पीछे रह गया तथा अन्य कुछ आत्माएँ जो परब्रह्म के साथ सात शंख ब्रह्माण्डों में जन्म-मृत्यु का
कर्मदण्ड भोग रही हैं, उन हंस आत्माओं की विदाई की याद में खो गई जो ब्रह्म (काल) के साथ इक्कीस ब्रह्माण्डों में फंसी हैं तथा पूर्ण परमात्मा, सुखदाई कविर्देव की याद भुला दी।
परमेश्वर कविर् देव के बार-बार समझाने पर भी आस्था कम नहीं हुई। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने सोचा कि मैं भी अलग स्थान प्राप्त करूँ तो अच्छा रहे। यह सोच कर राज्य प्राप्ति की
इच्छा से सारनाम का जाप प्रारम्भ कर दिया। इसी प्रकार अन्य आत्माओं ने (जो परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों में फंसी हैं) सोचा कि वे जो ब्रह्म के साथ आत्माएँ गई हैं वे तो वहाँ मौज-मस्ती मनाएँगे, हम पीछे रह गये। परब्रह्म के मन में यह धारणा बनी कि क्षर पुरुष
अलग होकर बहुत सुखी होगा। यह विचार कर अन्तरात्मा से भिन्न स्थान प्राप्ति की ठान ली। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने हठ योग नहीं किया, परन्तु केवल अलग राज्य प्राप्ति के लिए
सहज ध्यान योग विशेष कसक के साथ करता रहा। अलग स्थान प्राप्त करने के लिए पागलों की तरह विचरने लगा, खाना-पीना भी त्याग दिया। अन्य कुछ आत्माएँ जो पहले काल ब्रह्म के साथ गई आत्माओं के प्रेम में व्याकुल थी, वे अक्षर पुरूष के वैराग्य पर आसक्त होकर उसे चाहने लगी। पूर्ण प्रभु के पूछने पर परब्रह्म ने अलग स्थान माँगा तथा कुछ हंसात्माओं
के लिए भी याचना की। तब कविर्देव ने कहा कि जो आत्मा आपके साथ स्वेच्छा से जाना चाहें उन्हें भेज देता हूँ। पूर्ण प्रभु ने पूछा कि कौन हंस आत्मा परब्रह्म के साथ जाना चाहता है, सहमति व्यक्त करे। बहुत समय उपरान्त एक हंस ने स्वीकृति दी, फिर देखा-देखी उन सर्व आत्माओं ने भी सहमति व्यक्त कर दी। सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को स्त्रा रूप
बनाया, उसका नाम ईश्वरी माया (प्रकृति सुरति) रखा तथा अन्य आत्माओं को उस ईश्वरी माया में प्रवेश करके अचिन्त द्वारा अक्षर पुरुष (परब्रह्म) के पास भेजा। (पतिव्रता पद से गिरने की सजा पाई।) कई युगों तक दोनों सात शंख ब्रह्माण्डों में रहे, परन्तु परब्रह्म ने दुर्व्यवहार नहीं किया। ईश्वरी माया की स्वेच्छा से अंगीकार किया तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री (योनि) बनाई। ईश्वरी देवी की सहमति से संतान उत्पन्न की।
इस लिए परब्रह्म के लोक (सात शंख ब्रह्माण्डों) में प्राणियों को तप्तशिला का कष्ट नहीं है तथा वहाँ पशु-पक्षी भी ब्रह्म लोक के देवों से अच्छे चरित्र युक्त हैं। आयु भी बहुत लम्बी है, परन्तु जन्म - मृत्यु कर्माधार पर कर्मदण्ड तथा परिश्रम करके ही उदर पूर्ति होती है। स्वर्ग तथा नरक भी ऐसे ही बने हैं। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) को सात शंख ब्रह्माण्ड उसके इच्छा रूपी भक्ति ध्यान अर्थात् सहज समाधि विधि से की उस की कमाई के प्रतिफल में प्रदान किये तथा सत्यलोक से भिन्न स्थान पर गोलाकार परिधि में बन्द करके सात शंख ब्रह्माण्डों सहित अक्षर ब्रह्म व ईश्वरी माया को निष्कासित कर दिया।
पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) असंख्य ब्रह्माण्डों जो सत्यलोक आदि में हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्डों तथा परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों का भी प्रभु (मालिक) है अर्थात् परमेश्वर कविर्देव कुल का मालिक है।
श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि के चार-चार भुजाएं तथा 16 कलाएं हैं तथा प्रकृति देवी (दुर्गा) की आठ भुजाएं हैं तथा 64 कलाएं हैं। ब्रह्म (क्षर पुरुष) की एक
हजार भुजाएं हैं तथा एक हजार कलाएं है तथा इक्कीस ब्रह्माण्ड़ों का प्रभु है। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) की दस हजार भुजाएं हैं तथा दस हजार कला हैं तथा सात शंख ब्रह्माण्डों का प्रभु है।
पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर पुरुष अर्थात् सतपुरुष) की असंख्य भुजाएं तथा असंख्य कलाएं हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्ड व परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों सहित असंख्य ब्रह्माण्डों का प्रभु है। प्रत्येक प्रभु अपनी सर्व भुजाओं को समेट कर केवल दो भुजाएं भी रख सकते हैं तथा जब
चाहें सर्व भुजाओं को भी प्रकट कर सकते हैं। पूर्ण परमात्मा परब्रह्म के प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भी अलग स्थान बनाकर अन्य रूप में गुप्त रहता है। यूं समझो जैसे एक घूमने वाला कैमरा
बाहर लगा देते हैं तथा अन्दर टी.वी. (टेलीविजन) रख देते हैं। टी.वी. पर बाहर का सर्व दृश्य नजर आता है तथा दूसरा टी.वी. बाहर रख कर अन्दर का कैमरा स्थाई करके रख दिया जाए, उसमें केवल अन्दर बैठे प्रबन्धक का चित्रा दिखाई देता है। जिससे सर्व कर्मचारी सावधान रहते हैं।
इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा अपने सतलोक में बैठ कर सर्व को नियंत्रित किए हुए हैं तथा प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भी सतगुरु कविर्देव विद्यमान रहते हैं जैसे सूर्य दूर होते हुए भी अपना प्रभाव अन्य लोकों में बनाए हुए है।
क्रमशः_____
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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पेज नंबर 536-539
”परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों की स्थापना“
कबीर परमेश्वर (कविर्देव) ने आगे बताया है कि परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने अपने कार्य में गफलत की क्योंकि यह मानसरोवर में सो गया तथा जब परमेश्वर (मैंनें अर्थात् कबीर साहेब ने) उस सरोवर में अण्डा छोड़ा तो अक्षर पुरुष (परब्रह्म) ने उसे क्रोध से देखा। इन दोनों अपराधों के कारण इसे भी सात शंख ब्रह्माण्ड़ों सहित सतलोक से बाहर कर दिया।
अन्य कारण अक्षर पुरुष (परब्रह्म) अपने साथी ब्रह्म (क्षर पुरुष) की विदाई में व्याकुल होकर परमपिता कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की याद भूलकर उसी को याद करने लगा तथा सोचा कि क्षर पुरुष (ब्रह्म) तो बहुत आनन्द मना रहा होगा, वह स्वतंत्र राज्य करेगा, मैं पीछे रह गया तथा अन्य कुछ आत्माएँ जो परब्रह्म के साथ सात शंख ब्रह्माण्डों में जन्म-मृत्यु का
कर्मदण्ड भोग रही हैं, उन हंस आत्माओं की विदाई की याद में खो गई जो ब्रह्म (काल) के साथ इक्कीस ब्रह्माण्डों में फंसी हैं तथा पूर्ण परमात्मा, सुखदाई कविर्देव की याद भुला दी।
परमेश्वर कविर् देव के बार-बार समझाने पर भी आस्था कम नहीं हुई। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने सोचा कि मैं भी अलग स्थान प्राप्त करूँ तो अच्छा रहे। यह सोच कर राज्य प्राप्ति की
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अलग होकर बहुत सुखी होगा। यह विचार कर अन्तरात्मा से भिन्न स्थान प्राप्ति की ठान ली। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने हठ योग नहीं किया, परन्तु केवल अलग राज्य प्राप्ति के लिए
सहज ध्यान योग विशेष कसक के साथ करता रहा। अलग स्थान प्राप्त करने के लिए पागलों की तरह विचरने लगा, खाना-पीना भी त्याग दिया। अन्य कुछ आत्माएँ जो पहले काल ब्रह्म के साथ गई आत्माओं के प्रेम में व्याकुल थी, वे अक्षर पुरूष के वैराग्य पर आसक्त होकर उसे चाहने लगी। पूर्ण प्रभु के पूछने पर परब्रह्म ने अलग स्थान माँगा तथा कुछ हंसात्माओं
के लिए भी याचना की। तब कविर्देव ने कहा कि जो आत्मा आपके साथ स्वेच्छा से जाना चाहें उन्हें भेज देता हूँ। पूर्ण प्रभु ने पूछा कि कौन हंस आत्मा परब्रह्म के साथ जाना चाहता है, सहमति व्यक्त करे। बहुत समय उपरान्त एक हंस ने स्वीकृति दी, फिर देखा-देखी उन सर्व आत्माओं ने भी सहमति व्यक्त कर दी। सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को स्त्रा रूप
बनाया, उसका नाम ईश्वरी माया (प्रकृति सुरति) रखा तथा अन्य आत्माओं को उस ईश्वरी माया में प्रवेश करके अचिन्त द्वारा अक्षर पुरुष (परब्रह्म) के पास भेजा। (पतिव्रता पद से गिरने की सजा पाई।) कई युगों तक दोनों सात शंख ब्रह्माण्डों में रहे, परन्तु परब्रह्म ने दुर्व्यवहार नहीं किया। ईश्वरी माया की स्वेच्छा से अंगीकार किया तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री (योनि) बनाई। ईश्वरी देवी की सहमति से संतान उत्पन्न की।
इस लिए परब्रह्म के लोक (सात शंख ब्रह्माण्डों) में प्राणियों को तप्तशिला का कष्ट नहीं है तथा वहाँ पशु-पक्षी भी ब्रह्म लोक के देवों से अच्छे चरित्र युक्त हैं। आयु भी बहुत लम्बी है, परन्तु जन्म - मृत्यु कर्माधार पर कर्मदण्ड तथा परिश्रम करके ही उदर पूर्ति होती है। स्वर्ग तथा नरक भी ऐसे ही बने हैं। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) को सात शंख ब्रह्माण्ड उसके इच्छा रूपी भक्ति ध्यान अर्थात् सहज समाधि विधि से की उस की कमाई के प्रतिफल में प्रदान किये तथा सत्यलोक से भिन्न स्थान पर गोलाकार परिधि में बन्द करके सात शंख ब्रह्माण्डों सहित अक्षर ब्रह्म व ईश्वरी माया को निष्कासित कर दिया।
पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) असंख्य ब्रह्माण्डों जो सत्यलोक आदि में हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्डों तथा परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों का भी प्रभु (मालिक) है अर्थात् परमेश्वर कविर्देव कुल का मालिक है।
श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि के चार-चार भुजाएं तथा 16 कलाएं हैं तथा प्रकृति देव��� (दुर्गा) की आठ भुजाएं हैं तथा 64 कलाएं हैं। ब्रह्म (क्षर पुरुष) की एक
हजार भुजाएं हैं तथा एक हजार कलाएं है तथा इक्कीस ब्रह्माण्ड़ों का प्रभु है। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) की दस हजार भुजाएं हैं तथा दस हजार कला हैं तथा सात शंख ब्रह्माण्डों का प्रभु है।
पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर पुरुष अर्थात् सतपुरुष) की असंख्य भुजाएं तथा असंख्य कलाएं हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्ड व परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्डों सहित असंख्य ब्रह्माण्डों का प्रभु है। प्रत्येक प्रभु अपनी सर्व भुजाओं को समेट कर केवल दो भुजाएं भी रख सकते हैं तथा जब
चाहें सर्व भुजाओं को भी प्रकट कर सकते हैं। पूर्ण परमात्मा परब्रह्म के प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भी अलग स्थान बनाकर अन्य रूप में गुप्त रहता है। यूं समझो जैसे एक घूमने वाला कैमरा
बाहर लगा देते हैं तथा अन्दर टी.वी. (टेलीविजन) रख देते हैं। टी.वी. पर बाहर का सर्व दृश्य नजर आता है तथा दूसरा टी.वी. बाहर रख कर अन्दर का कैमरा स्थाई करके रख दिया जाए, उसमें केवल अन्दर बैठे प्रबन्धक का चित्रा दिखाई देता है। जिससे सर्व कर्मचारी सावधान रहते हैं।
इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा अपने सतलोक में बैठ कर सर्व को नियंत्रित किए हुए हैं तथा प्रत्येक ब्रह्माण्ड में भी सतगुरु कविर्देव विद्यमान रहते हैं जैसे सूर्य दूर होते हुए भी अपना प्रभाव अन्य लोकों में बनाए हुए है।
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Harvey Weinstein appears in court after New York rape conviction overturned
2 मिनट पढ़ें आखरी अपडेट : 02 मई 2024 | सुबह 7:33 बजे प्रथम
हार्वे विंस्टीन बुधवार को मैनहट्टन कोर्टहाउस पहुंचे, पिछले हफ्ते अपील अदालत द्वारा 2020 के बलात्कार की सजा को पलट दिए जाने के बाद उनकी पहली उपस्थिति थी।
वेनस्टीन के वकील, आर्थर ऐडाला के अनुसार, नेवी ब्लू सूट पहने वेनस्टीन मैनहट्टन में प्रारंभिक सुनवाई में प्रवेश करते समय एक अदालत अधिकारी द्वारा धक्का देकर व्हीलचेयर पर बैठे थे, जिसमें…
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अप्रैल 2024 व्रत-त्योहार
अप्रैल में हिंदू नववर्ष और सौर नववर्ष का शुभारंभ होगा. हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है, वहीं सौर नववर्ष का शुभारंभ सूर्य देव के मेष राशि में प्रवेश करने पर होता है. हिंदू नववर्ष के दिन से ही चैत्र नवरात्रि भी शुरू होती है, जिसमें मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा होती है और व्रत रखा जाता है. नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना के साथ होती है और पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करते हैं. वह नवदुर्गा में प्रथम हैं. महाराष्ट्र में उस दिन गुड़ी पडवा मनाते हैं. नवरात्रि के नौवें दिन भगवान श्रीराम का जन्मदिन होगा. उस दिन राम नवमी मनाई जाएगी. अयोध्या के राम मंदिर में भव्य आयोजन होगा.
1 अप्रैल, सोमवार: शीतला सप्तमी
2 अप्रैल, मंगलवार: बसौड़ा, शीतला अष्टमी, मासिक कालाष्टमी
4 अप्रैल, गुरुवार: बुध अस्त
5 अप्रैल, शुक्रवार: पापमोचनी एकादशी व्रत
6 अप्रैल, शनिवार: शनि प्रदोष व्रत
7 अप्रैल, रविवार: चैत्र मासिक शिवरात्रि
8 अप्रैल, सोमवार: साल का पहला सूर्य ग्रहण, सोमवती अमावस्या, चैत्र अमावस्या
9 अप्रैल, मंगलवार: चैत्र नवरात्रि प्रारंभ, कलश स्थापना, मां शैलपुत्री पूजा, हिंदू नववर्ष प्रारंभ, झूलेलाल जयंती, गुड़ी पडवा, मीन में बुध गोचर
11 अप्रैल, गुरुवार: गणगौर, मत्स्य जयंती, ईद
12 अप्रैल, शुक्रवार: विनायक चतुर्थी
13 अप्रैल, शनिवार: मेष संक्रांति, सौर नववर्ष प्रारंभ, वैशाखी, मेष राशि में सूर्य गोचर
14 अप्रैल, रविवार: यमुना छठ
16 अप्रैल, मंगलवार: दुर्गा अष्टमी
17 अप्रैल, बुधवार: राम नवमी, चैत्र नवरात्रि पारण
19 अप्रैल, शुक्रवार: कामदा एकादशी व्रत
20 अप्रैल, शनिवार: वामन द्वादशी
21 अप्रैल, रविवार: महावीर जयंती, रवि प्रदोष व्रत, अनंग त्रयोदशी
23 अप्रैल, मंगलवार: हनुमान जयंती, चैत्र पूर्णिमा व्रत, मीन राशि में मंगल गोचर
24 अप्रैल, बुधवार: चैत्र पूर्णिमा का स्नान-दान
25 अप्रैल, गुरुवार: वैशाख माह का प्रारंभ, मेष राशि में शुक्र गोचर
27 अप्रैल, शनिवार: विकट संकष्टी चतुर्थी
Astrologer Subham Shastri
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सैम्स ओडिशा +2 पहली मेरिट सूची 2022: कब, कहां और वेबसाइट की जांच करें
सैम्स ओडिशा +2 पहली मेरिट सूची 2022: कब, कहां और वेबसाइट की जांच करें
सैम्स ओडिशा +2 मेरिट लिस्ट 2022: उच्च शिक्षा निदेशालय, ओडिशा (छात्र शैक्षणिक प्रबंधन प्रणाली, एसएएमएस) कल यानि 17 अगस्त को दोपहर 3 बजे +2 बोर्ड परीक्षा के लिए पहली प्रवेश सूची जारी करेगा। परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले उम्मीदवार आधिकारिक एसएएमएस वेबसाइट पर पहली प्रवेश सूची देख सकते हैं – samsodisha.gov.in.
इस साल सभी जूनियर कॉलेजों में 20 जुलाई से प्रवेश प्रक्रिया शुरू हुई थी। ऑनलाइन आवेदन…
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#गरिमा_गीता_की_Part_105
हम काल के लोक में कैसे आए?
जिस समय क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) एक पैर पर खड़ा होकर तप कर रहा था। तब हम सभी आत्माऐं इस क्षर पुरुष पर आकर्षित हो गए। जैसे जवान बच्चे अभिनेता व अभिनेत्री पर आसक्त हो जाते हैं। लेना एक न देने दो। व्यर्थ में चाहने लग जाते हैं। वे अपनी कमाई करने के लिए नाचते-कूदते हैं। युवा-बच्चे उन्हें देखकर अपना धन नष्ट करते हैं। ठ��क इसी प्रकार हम अपने परमपिता सतपुरुष को छोड़कर काल पुरुष (क्षर पुरुष) को हृदय से चाहने लग गए थे। जो परमेश्वर हमें सर्व सुख सुविधा दे रहा था। उससे मुँह मोड़कर इस नकली ड्रामा करने वाले काल ब्रह्म को चाहने लगे। सत पुरुष जी ने बीच-बीच में बहुत बार आकाशवाणी की कि बच्चो तुम इस काल की क्रिया को मत देखो, मस्त रहो। हम ऊपर से तो सावधान हो गए, परन्तु अन्दर से चाहते रहे। परमेश्वर तो अन्तर्यामी है। इन्होंने जान लिया कि ये यहाँ रखने के योग्य नहीं रहे। काल पुरुष (क्षर पुरुष = ज्योति निरंजन) ने जब दो बार तप करके फल प्राप्त कर लिया तब उसने सोचा कि अब कुछ जीवात्मा भी मेरे साथ रहनी चाहिए। मेरा अकेले का दिल नहीं लगेगा। इसलिए जीवात्मा प्राप्ति के लिए तप करना शुरु किया। 64 युग तक तप करने के पश्चात् परमेश्वर जी ने पूछा कि ज्योति निरंजन अब किसलिए तप कर रहा है? क्षर पुरुष ने कहा कि कुछ आत्माएं प्रदान करो, मेरा अकेले का दिल नहीं लगता। सतपुरुष ने कहा कि तेरे तप के बदले में और ब्रह्माण्ड दे सकता हूं, परन्तु अपनी आत्माएं नहीं दूँगा। ये मेरे शरीर से उत्पन्न हुई हैं। हाँ, यदि वे स्वयं जाना चाहते हैं तो वह जा सकते हैं। युवा कविर् (समर्थ कबीर) के वचन सुनकर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्मा पहले से ही उस पर आसक्त थे। हम उसे चारों तरफ से घेरकर खड़े हो गए। ज्योति निरंजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्माण्ड प्राप्त किए हैं। वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे? हम सभी हंसों ने जो आज 21 ब्रह्माण्डों में परेशान हैं, कहा कि हम तैयार हैं। यदि पिता जी आज्ञा दें, तब क्षर पुरूष(काल), पूर्ण ब्रह्म महान् कविर् (समर्थ कबीर प्रभु) के पास गया तथा सर्व वार्ता कही। तब कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूँगा। क्षर पुरूष तथा परम अक्षर पुरूष (कविर्िमतौजा) दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए। सत् कविर्देव ने कहा कि जो हंसात्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता हैं, हाथ ऊपर करके स्वीकृति दें। अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई। किसी ने स्वीकृति नहीं दी। बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा। तत्पश्चात् एक हंस आत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ। फिर तो उसकी देखा-देखी (जो आज काल(ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्माण्डों में फँसी हैं) हम सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी। परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है, मैं उन सर्व हंस आत्माओं को आपके पास भेज दूँगा। ज्योति निरंजन अपने 21 ब्रह्माण्डों में चला गया। उस समय तक यह इक्कीस ब्रह्माण्ड सतलोक में ही थे।
तत्पश्चात् पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की का रूप दिया परन्तु स्त्राी इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को (जिन्होंने ज्योति निरंजन (ब्रह्म) के साथ जाने की सहमति दी थी) उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा (आदि माया/प्रकृति देवी/दुर्गा) पड़ा तथा सत्यपुरूष ने कहा कि पुत्री मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी है। जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना। पूर्ण ब्रह्म कर्विदेव (कबीर साहेब) ने अपने पुत्र सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरूष के पास भिजवा दिया। सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी ने इस बहन के शरीर में उन सब आत्माओं को प्रवेश कर दिया है, जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी। इसको वचन शक्ति प्रदान की है, आप जितने जीव चाहोगे प्रकृति अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी। यह कहकर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया।
युवा होने के कारण लड़की का रंग-रूप निखरा हुआ था। ब्रह्म के अन्दर विषय-वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रकृति देवी के साथ अभद्र गतिविधि प्रारम्भ की। तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है। आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूँगी। आप मैथुन परम्परा शुरू मत करो। आप भी उसी पिता के शब्द से अण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूँ। आप मेरे बड़े भाई हो, बहन-भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा। परन्तु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्राी इन्द्री (भग) प्रकृति को लगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी। उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जत रक्षा के लिए कोई और चारा न देखकर सूक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजन के खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्ण ब्रह्म कविर् देव से अपनी रक्षा के लिए याचना की। उसी समय कर्विदेव(कविर् देव) अपने पुत्र योग संतायन अर्थात् जोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्म के उदर से बाहर निकाला तथा कहा ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम ‘काल‘ होगा। तेरे जन्म-मृत्यु होते रहेंगे। इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरूष होगा तथा एक लाख मानव शरीर धारी प्रणियों को प्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाख उत्पन्न किया करेगा। आप दोनों को इक्कीस ब्रह्माण्ड सहित निष्कासित किया जाता है। इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्माण्ड विमान की तरह चल पड़े। सहज दास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से सोलह शंख कोस (एक कोस लगभग 3 कि.मी. का होता है) की दूरी पर आकर रूक गए।
विशेष विवरण:- अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है।
पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसे सतपुरूष, अकालपुरूष, शब्द स्वरूपी राम, परम अक्षर ब्रह्म/पुरूष आदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।
परब्रह्म जिसे अक्षर पुरूष भी कहा जाता है। यह वास्तव में अविनाशी नहीं है। यह सात शंख ब्रह्माण्डों का स्वामी है।
ब्रह्म जिसे ज्योति निरंजन, काल, कैल, क्षर पुरूष तथा धर्मराय आदि नामों से जाना जाता है जो केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी है। अब आगे इसी ब्रह्म (काल) की सृष्टि के एक ब्रह्माण्ड का परिचय दिया जाएगा जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगेः- ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव।
ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्माण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म (क्षर पुरूष) स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है। उनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ही रखता है। जो ब्रह्म का पुत्र ब्रह्मा है, वह एक ब्रह्माण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) में एक रजोगुण विभाग का मंत्री (स्वामी) है। इसे त्रिलोकिय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है, उसे महाब्रह्मा व ब्रह्मलोकिय ब्रह्मा कहा है। इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव, महाशिव, महाविष्णु भी कहा है।
श्री विष्णु पुराण में प्रमाण:- चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230-231 पर श्री ब्रह्मा जी ने कहाः- जिस अजन्मा सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य, अन्त, स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते। (श्लोक 83)
जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जो पुरूष रूप है तथा जो रूद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनन्त रूप से सम्पूर्ण जगत् को धारण करता है। (श्लोक 86)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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जीतपुरसिमरा क्रिकेट कपको उपाधि मकवानपुरलाई, पर्सा ७ विकेटले पराजित
सुरुचि भण्डारी
बारा, ११ चैत । प्रथम जीतपुरसिमरा क्रिकेट कपको उपाधि मकवानपुर क्रिकेट संघले जितेको छ ।
जीतपुरसिमरा ४ स्थित सेज क्रिकेट मैदानमा शनिबार सम्पन्न फाइनल खेलमा पर्सा क्रिकेट संघलाई ७ विकेटले पराजित गर्दै मकवानपुरले उपाधि उचालेको हो ।
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पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव की पत्रिका का विमोचन:27 मार्च को आचार्य सुनील सागर का भव्य मंगल प्रवेश होगा
वैशाली नगर के नर्सरी सर्किल स्थित श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर के प्रथम तल पर नवनिर्मित जिनालय का श्रीमज्जिनेन्द्र महावीर जिन बिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं विश्व शांति महायज्ञ आचार्य सुनील सागर महाराज ससंघ के सानिध्य में 27 मार्च से 1 अप्रैल तक वैशाली नगर के गांधी पथ स्थित जानकी पैराडाइज में आयोजित होगा। इस आयोजन के लिए शनिवार को पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव समिति के पदाधिकारियों ने…
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