हाई बीपी की समस्या को दूर करेगा बालासन, जानें इसे करने का सही तरीका
हाई बीपी की समस्या को दूर करेगा बालासन, जानें इसे करने का सही तरीका
Yoga to Control High Blood Pressure: हाई ब्लड प्रेशर एक बहुत बड़ा खतरा बन चुका है. लोग तमाम दवाइयां खाते हैं और हाई ब्लड प्रेशर से निजात पाने के लिए काफी कोशिश करते हैं. तमाम कोशिशों के बाद भी हाई ब्लड प्रेशर से राहत नहीं मिल पाती है. ब्लड प्रेशर अधिक हो या फिर कम उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि हाई ब्लड प्रेशर के कारण आपको हार्ट संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. ब्लड प्रेशर की समस्या कई कारणों…
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तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हमें अपने शरीर, मन और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए सच्ची भक्ति की आवश्यकता है। यह सभी रोगों को जड़ से खत्म कर सकता है। योग का अभ्यास ऐसा नहीं कर सकता।
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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2023 : वसुधैव कुटुंबकम के लिए योग | Yoga for Vasudhaiva Kutumbakam
आइए हम सब मिलकर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आह्वान "करे योग रहे निरोग" का पालन करें – हर्ष वर्धन अग्रवाल
योग है स्वस्थ रहने की गारंटी - हर्षवर्धन अग्रवाल
लखनऊ, 21.06.2023 | माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की "करे योग रहे निरोग" की अपील का स्वागत करते हुए, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने "अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2023" के अवसर पर इंदिरा नगर के सेक्टर 25 के रामायण पार्क में "योग अभ्यास कार्यक्रम" का आयोजन किया तथा सभी को नियमित रूप से योग करने के लिए प्रेरित करते हुए बताया कि योग स्वस्थ रहने की गारंटी है ।
"अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2023" की थीम "वसुधैव कुटुंबकम के लिए योग" को अपनाते हुए ट्रस्ट के पदाधिकारियों एवं स्वयंसेवकों ने हर वर्ग के लोगों से नियमित योगाभ्यास करने की अपील की क्योंकि हमारी धरती हमारा परिवार है तथा धरती पर सभी लोगों के स्वास्थ्य के लिए योग की अत्यधिक उपयोगिता है ।
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि "योग प्राचीन काल से भारत की संस्कृ ति का हिस्साध रहा है | भारत में ऋषि मुनियों के दौर से योगाभ्यास होता आ रहा है एवं ये हर एक भारतवासी को गौरवांवित करने वाला दिन है कि भारत की पहल पर योग के महत्व को देखते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनाया गया तथा-कथा हमारे देश भारत के साथ-साथ अब पूरी दुनिया योग की ताकत को मान रही है | योग न सिर्फ हमारे शरीर को निरोगी बनाता है, बल्कि हमें मानसिक मजबूती भी देता है | इस आधुनिक और भागदौड़ भरे जीवन में योग संतुलन खोजने के महत्व पर जोर देता है एवं शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सद्भाव को बढ़ावा देता है । अगर संक्षिप्त में कहें तो योग ही एक ऐसी कला है जिससे जटिल से जटिल रोगों को दूर किया जा सकता है और स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है इसलिए जनहित में खुद भी योग करें एवं दूसरों को भी योग करने के लिए प्रेरित करें |" हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी कहते है कि हमे योग को जानना भी है, हमे योग को जीना भी है, हमे योग को पाना भी है, हमे योग को अपनाना भी है तो हम सबको योग को अपनी जीवन शैली मे अपनाना चाहिए |
प्रशिक्षक श्री शिवम गुप्ता ने प्रार्थना, ग्रीवा संचालन, स्कन्ध संचालन, कटि संचालन, हस्तोत्थानासन, पादहस्तासन, समकोणासन, अर्धचक्रासन, ताडासन, पृक्षासन, अस्वतासन, कोणासन, त्रिकोणाकार, वीरभद्रासन, अग्निसार, कपालभाति, ध्यान, भ्रामरी, शांतिपाठ आसन का प्रशिक्षण प्रदान किया |
इस अवसर पर सेक्टर 25, इंदिरा नगर के निवासीगण श्री ओम प्रकाश शाक्य, श्री जे पी गुप्ता, श्री आर के शर्मा, श्रीमती शशि कुकरेजा, श्री ऋषिकेश उपाध्याय, श्रीमती सुनीता शर्मा तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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क्या कोई ऐसा उपाय है जिसके करने से कुंडली के सभी ग्रहों के शुभ परिणाम प्राप्त हो?
ज्योतिष या कुंडली के अनुसार, व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति और उनकी दशाएं उसके जीवन में विभिन्न प्रभाव डाल सकती हैं। हालांकि, कोई भी ऐसा उपाय जो सभी ग्रहों के शुभ परिणाम सुनिश्चित करे, वैदिक ज्योतिष में सामान्यत: संभावना के बारे में हैं।
ध्यान और मेधा भड़ाना: योग और ध्यान के माध्यम से मानसिक शांति बनाए रखना ग्रहों के प्रभाव को कम कर सकता है।
दान और सेवा: धर्मिक और नैतिक कार्यों के माध्यम से ग्रहों के प्रभाव को शांत करने के लिए दान और सेवा करना उपयुक्त हो सकता है।
मंत्र जाप: कुछ विशेष मंत्रों का जाप करना भी ग्रहों के प्रभाव को शांत करने में सहायक हो सकता है।
योग और प्राणायाम: योग और प्राणायाम के अभ्यास से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारा जा सकता है, जिससे ग्रहों का प्रभाव कम हो सकता है।
यह उपाय शांति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए हो सकते हैं, लेकिन कृपया ध्यान दें कि ये विचार विशिष्ट धार्मिक अनुष्ठानों और विशेष शिक्षा के साथ आएंगे। जिसके लिए आप Kundli Chakra 2022 Professional सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सकते है।
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#गरिमा_गीता_की_Part_59
‘‘भक्ति का नियम’’
अध्याय 8 श्लोक 6 का अनुवाद: हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! यह नियम है कि मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को सुमरण करता हुआ अर्थात् जिस भी देव की उपासना करता हुआ शरीर का त्याग करता है उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी के भक्ति भाव में भावित रहता है। इसलिए उसी को प्राप्त होता है।(6)
सूक्ष्मवेद में भी यही नियम बताया है:-
कबीर, जहाँ आशा तहाँ बासा होई। मन कर्म वचन सुमरियो सोई।।
अध्याय 8 श्लोक 7 का अनुवाद: इसलिये हे अर्जुन! तू सब समय में निरन्तर मेरा सुमरण कर और युद्ध भी कर इस प्रकार मुझ में अर्पण किये हुए मन-बुद्धिसे युक्त होकर तू निःसन्देह मुझको ही प्राप्त होगा अर्थात् जब कभी तेरा मनुष्य का जन्म होगा मेरी साधना पर लगेगा तथा मेरे पास ही रहेगा।(7)
गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति को कहा है:-
अध्याय 8 श्लोक 8 का अनुवाद: हे पार्थ! परमेश्वर के नाम जाप के अभ्यास रूप योग से युक्त अर्थात् उस पूर्ण परमात्मा की पूजा में लीन दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरन्तर चिन्तन करता हुआ भक्त परम दिव्य परमात्मा को अर्थात परम अक्षर ब्रह्म को ही प्राप्त होता है।(8)
अध्याय 8 श्लोक 9 का अनुवाद: कविर्देव, अर्थात् कबीर परमेश्वर जो कवि रूप से प्रसिद्ध होता है वह अनादि, सबके नियन्ता सूक्ष्मसे भी अति सूक्ष्म, सबके धारण-पोषण करने वाले अचिन्त्य-स्वरूप सूर्य के सदृश नित्य प्रकाशमान है। जो उस अज्ञानरूप अंधकार से अति परे सच्चिदानन्द घन परमेश्वर यानि परम अक्षर ब्रह्म का सुमरण करता है।(9)
अध्याय 8 श्लोक 10 का अनुवाद: वह भक्तियुक्त साधक अन्तकाल में नाम के जाप की भक्ति की शक्ति के प्रभाव से भृकुटी के मध्य में प्राण को अच्छी प्रकार स्थापित करके फिर निश्चल मन से स्मरण करता हुआ उस दिव्यरूप परम भगवान को ही प्राप्त होता है।(10)
अध्याय 8 श्लोक 11 का अनुवादः उपरोक्त श्लोक 8 से 10 में वर्णित जिस सच्चिदानन्द घन परमेश्वर को वेद के जानने वाले अर्थात् तत्वदर्शी सन्त वास्तव में अविनाशी कहते हैं। जिसमें यत्नशील रागरहित साधक जन प्रवेश करते हैं अर्थात् प्राप्त करते हैं जिसे चाहने वाले ब्रह्मचर्य का आचरण करते हैं अर्थात् ब्रह्मचारी रहकर यानि प्रत्येक कार्य में संयम रखने वाले उस परमात्मा को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। उस पद अर्थात् पूर्ण परमात्मा को प्राप्त कराने वाली भक्ति पद्धति को (उस पूजा विधि को) तेरे लिए संक्षेप में अर्थात् सांकेतिक रूप से कहूँगा।
अध्याय 8 श्लोक 12 का अनुवाद:- जो भक्ति पद अर्थात् पद्यति बताने जा रहा हूँ उस में साधक सर्व इन्द्रियों के द्वारों को नियमित करके मन को हृदय देश में तथा श्वांसों को मस्तिक में स्थिर करके परमात्मा के स्मरण के ध्यान में मन को लगा करके योग स्थित करके यानि एक स्थान स्मरण पर टिकाकर साधना में स्थित होता है।
अध्याय 8 श्लोक 13 का अनुवाद: गीता ज्ञान दाता ब्रह्म कह रहा है कि उपरोक्त श्लोक 11. 12 में जिस पूर्ण मोक्ष मार्ग के नाम जाप में तीन अक्षर का जाप कहा है उस में मुझ ब्रह्म का तो यह ओं/ऊँ एक अक्षर है उच्चारण करते हुए स्मरन करने अर्थात् साधना करने का जो शरीर त्यागकर जाता हुआ स्मरण करता है अर्थात् अंतिम समय में स्मरण करता हुआ मर जाता है वह यानि ओं (ॐ) के जाप से होने वाली परम गति को प्राप्त होता है। {अपनी गति को तो गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम कहा है।(13)}
अध्याय 8 श्लोक 14 का अनुवाद: हे अर्जुन! जो अनन्यचित होकर सदा ही निरन्तर मुझको सुमरण करता है उस नित्य निरन्तर युक्त हुए योगीके लिये मैं सुलभ हूँ।(14)
अध्याय 8 श्लोक 15 का अनुवाद: मुझको प्राप्त साधक तो क्षणभंगुर दुःख के घर बार-बार जन्म-मरण में हैं परम अर्थात् पूर्ण परमात्मा की साधना से होने वाली सिद्धि को प्राप्त महात्माजन जन्म-मरण को नहीं प्राप्त होते। यही प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5 व 9 तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 अध्याय 18 श्लोक 62 में है जिनमें कहा है कि मेरे तथा तेरे अनेकों जन्म व मृत्यु हो चुके हैं परन्तु उस परमेश्वर को प्राप्त करके ही साधक सदा के लिए जन्म मरण से मुक्त हो जाता है वह फिर लौट कर इस क्षण भंगुर लोक में नहीं आता।(15)
अध्याय 8 श्लोक 16 का अनुवाद: हे अर्जुन! ब्रह्मलोक से लेकर सब लोक बारम्बार उत्पत्ति नाश वाले हैं परन्तु हे कुन्ती पुत्र जो यह नहीं जानते वे मुझे प्राप्त होकर भी फिर जन्मते हैं।(16)
‘‘दूसरे अव्यक्त यानि अक्षर पुरूष का ज्ञान’’
अध्याय 8 श्लोक 17 का अनुवाद: अक्षर पुरूष यानि परब्रह्म का जो एक दिन है, उसको एक हजार युग की अवधिवाला और रात्रि को भी एक हजार युगतक की अवधिवाली तत्व से जानते हैं। वे तत्वदर्शी संत दिन-रात्रि के तत्व को जानने वाले हैं।(17)
नोट:- इसका पूरा वर्णन सारांश में पढ़ें।
अध्याय 8 श्लोक 18 का अनुवाद: सम्पूर्ण प्रत्यक्ष आकार में आया संसार अक्षर पुरूष यानि परब्रह्म के दिन के प्रवेशकाल में अव्यक्त से अर्थात् अदृश अक्षर पुरूष से उत्पन्न होते हैं और रात्रि आने पर उस अदृश अर्थात् परोक्ष अक्षर पुरूष में ही लीन हो जाते हैं।(18)
अध्याय 8 श्लोक 19 का अनुवाद: हे पार्थ! यह प्राणी समुदाय उत्पन्न हो होकर संस्कार वश होकर रात्रि के प्रवेशकाल में लीन होता है और दिन के प्रवेशकाल में फिर उत्पन्न होता है।(19)
‘‘तीसरे अव्यक्त यानि परम अक्षर ब्रह्म का ज्ञान’’
विशेष:- श्लोक नं. 20 से 22 में परम अक्षर ब्रह्म की महिमा बताई है जो वास्तव में अविनाशी है। सर्व प्राणियों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता।
अध्याय 8 श्लोक 20 का अनुवाद: परंतु उस अव्यक्त अर्थात् गुप्त परब्रह्म से भी अति परे दूसरा जो आदि अव्यक्त अर्थात् परोक्ष भाव है वह परम दिव्य पुरुष यानि परम अक्षर ब्रह्म सब प्राणियों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता।(20)
अध्याय 8 श्लोक 21 का अनुवाद: अदृश अर्थात् परोक्ष अविनाशी इस नाम से कहा गया है अज्ञान के अंधकार में छुपे गुप्त स्थान को परमगति कहते हैं जिसे प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं आते (तत् धाम परमम् मम) क्योंकि काल ब्रह्म भी सतलोक में रहता था। इसलिए अपना परम धाम कहता है। वह लोक मेरे लोक से श्रेष्ठ है।(21)
अध्याय 8 श्लोक 22 का अनुवाद: हे पार्थ! जिस परमात्मा के अन्तर्गत सर्व प्राणी हैं और जिस सच्चिदानन्दघन परमात्मा से यह समस्त जगत् परिपूर्ण है जिस के विषय में उपरोक्त श्लोक 20, 21 में तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4 तथा 17 में व अध्याय 18 श्लोक 46, 61, 62, तथा 66 में कहा है। वह श्रेष्ठ परमात्मा तो अनन्य भक्ति से ही प्राप्त होने योग्य है।(22)
अध्याय 8 श्लोक 23 का अनुवाद: हे अर्जुन! जिस काल में शरीर त्यागकर गये हुए योगीजन वापस न लौटने वाली गति को और जिस काल में गये हुए वापस लौटने वाली गति को ही प्राप्त होते हैं उस गुप्त काल को अर्थात् दोनों मार्गों को कहूँगा।(23)
अध्याय 8 श्लोक 24 का अनुवाद: प्रकाशमय अग्नि दिन का कर्ता है शुक्लपक्ष कहा है और उतरायण (जब सूर्य उत्तर की ओर रहता है) के छः महीनों का है उस मार्ग में मरकर गये हुए परमात्मा को तत्व से जानने वाले योगीजन परमात्मा को प्राप्त होते हैं।(24)
अध्याय 8 श्लोक 25 का अनुवाद: अन्धकार रात्रि-का कर्ता है तथा कृष्णपक्ष है और दक्षिणायन के छः महीनों का है उस मार्ग में मरकर गया हुआ योगी चन्द्रमा की ज्योति को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है।(25)
अध्याय 8 श्लोक 26 का अनुवाद: क्योंकि जगत्के ये दो प्रकार के शुक्ल और कृष्ण मोक्ष मार्ग सनातन माने गये हैं इनमें एक के द्वारा गया हुआ जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता उस परमगति को प्राप्त होता है और दूसरे मार्ग द्वारा गया हुआ फिर वापस आता है अर्थात् जन्म-मरण को प्राप्त होता है।(26)
अध्याय 8 श्लोक 27 का अनुवाद: हे पार्थ! इस प्रकार इन दोनों मार्गों की भिन्नता को तत्व से जानकर कोई भी योगी मोहित नहीं होता इस कारण हे अर्जुन! तू सब कालमें समबुद्धिरूप योग से युक्त हो अर्थात् निरन्तर पूर्ण परमात्मा प्राप्ति के लिये साधन करने वाला हो।(27)
अध्याय 8 श्लोक 28 का अनुवाद: साधक इस पूर्वोक्त रहस्य को तत्व से जानकर वेदों के पढ़नें में तथा यज्ञ तप और दानादि के करने में जो पुण्यफल कहा है उस सबको निःसन्देह मुझ में त्याग कर वेदों से आगे वाला ज्ञान जानकर शास्त्र विधि अनुसार साधना करता है तथा अन्त समय में पूर्ण परमात्मा के उत्तम लोक (सतलोक) को प्राप्त होता है।(28)
विशेष:- पाठकजन भ्रम में न पड़ें कि कहीं हमारी मृत्यु उतरायण वाले शुक्ल पक्ष में न हो और हम परमात्मा को प्राप्त न हो सकें। सतगुरू का हंस सत्य साधना करता है। जिस कारण से उसकी मृत्यु अपने आप (automatic) ही उतरायण वाले शुक्ल पक्ष में होती है। भक्ति का यही तो विशेष प्रभाव है।
उदाहरण:- जैसे भैंस या गाय गर्भ धारण करती है तो बच्चे के जन्म के समय योनि अपने आप नरम होकर फैल जाती है और बच्चा अपने आप बाहर आ जाता है। परंतु गोबर का गुदा द्वार है, गोबर उसी से बाहर आता है। उसमें कोई विशेष प्रक्रिया नहीं होती। परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति करने वालों के लिए उतरायण शुक्ल पक्ष अपने आप प्राप्त होता है। जो भक्ति नहीं करते, वे गोबर तुल्य हैं। उनको अपने आप दक्षिणायन कृष्ण पक्ष प्राप्त होता है।
इसी तीन पुरूषों (प्रभुओं) का ज्ञान गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी है। उन्हीं का वर्णन गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25, अध्याय 9 श्लोक 4 में है तथा गीता अध्याय 8 श्लोक 18-22 में है।
प्रथम अव्यक्त काल ब्रह्म यानि गीता ज्ञान देने वाला है जिसका प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में है।
दूसरा अव्यक्त:- गीता अध्याय 8 श्लोक 18-19 में दूसरे अव्यक्त यानि अक्षर पुरूष का वर्णन है।
तीसरा अव्यक्त:- तीसरा अव्यक्त यानि परम अक्षर ब्रह्म का गीता अध्याय 8 श्लोक 20-22 में वर्णन है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#RightWayToMeditate
⭐हमें अपने शरीर, मन और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए सच्ची भक्ति की आवश्यकता है। यह सभी रोगों को जड़ से खत्म कर सकता है। योग का अभ्यास ऐसा नहीं कर सकता।⭐🌟⭐
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योग क्या है ?
योग क्या है ?
हम में से ज्यादा तर लोग आज योग को मात्र शारीरिक स्वाथ्य के रूप में लेते है , कुछ आसान और शरीर की अलग अलग मुद्राओ को करना ही योग मानते है ,आधुनिक युग में योग के अलग -अलग तरीके आपको दिखाए जाते है जो की लुभावने होते है पर क्या वो आपके लिए लाभकारी है ,ये समझने के लिए पहले हमे योग क्या है ये जानना होगा -
शरीर, मन और आत्मा का एकीकरण है योग
शरीर, मन और आत्मा का एकीकरण ही योग कहा गया है ,योग का अर्थ ही है जोड़ना / मिलाना ,और भी सरल शब्दों में कहा जाये तो अपने शरीर को स्वस्थ्य से ,मन को अच्छे विचारो से और अपनी आत्मा को परमात्मा से मिलाना /जोड़ना या मिलाने का प्रयास करना ही योग है ,
योग एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो हमारे शरीर, मन और आत्मा के एकीकरण को समर्पित है। यह एक अद्वैत सिद्धांत है जो मनुष्य के सम्पूर्ण विकास और पूर्णता को प्राप्त करने की मार्गदर्शन करता है। योग आत्मा की अनुभूति और उसके अभिविकास को संभव बनाता है, जिससे हम आनंद, शांति, स्वस्थता और सच्ची संतुष्टि की अनुभूति कर सकते हैं।
योग का शास्त्रीय आधार पतंजलि के 'योग सूत्र' माना जाता है। पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया है, जिन्हें 'अष्टांग योग' कहा जाता है। ये अष्टांग योग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि हैं। इन अंगों के माध्यम से, योगी अपने मन को नियंत्रित करते हैं, शरीर को स्वस्थ रखते हैं और आत्मा के साथ अद्वैत अनुभव करते हैं।
योग के माध्यम से हम अपने शरीर की स्थायित्वता, लचीलापन, शक्ति और स्थैर्य को विकसित करते हैं। आसनों के द्वारा हम अपने शरीर को सुव्यस्थ और लचीला बनाते हैं। प्राणायाम के माध्यम से हम अपने प्राण (श्वास-प्रश्वास) को नियंत्रित करते हैं और अपने मन को शांत करते हैं। प्रत्याहार के द्वारा हम अपने इंद्रियों को इन्द्रिय विषयों से वश में लाते हैं और मन को बाहरी विषयों से आंतरिक मंदिर में नियंत्रित करते हैं। इस प्रकार योगी अपने मन को नियंत्रित कर अपनी चिंताओं और विचारों को स्वयं संयमित करते हैं।
योग का ध्यान और समाधि अंग मन को एकाग्र करने, उसे अपनी सच्ची पहचान में ले जाने और आत्मा के साथ एकीकृत होने के लिए हैं। योगी ध्यान के माध्यम से अपने आंतरिक स्वरूप की पहचान करते हैं और समाधि में वह अपनी अस्तित्वता को भुल जाता है और परमात्मा के साथ अभिन्न हो जाता है। इस स्थिति में, योगी को सच्ची आनंद, शांति और आत्मिक समृद्धि की अनुभूति होती है।
योग आजकल एक प्रमुख ध्यान विधा के रूप में भी चर्चा में है। यहालांकि, योग केवल एक ध्यान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक पूर्ण जीवनशैली को भी दर्शाता है। योग का अभ्यास व्यक्ति को तनाव, रोग, मानसिक चिंताओं और अनियंत्रित मन के साथ निपटने में मदद करता है। योग के माध्यम से हम अपनी आंतरिक शक्तियों को जागृत करते हैं, स्वस्थ और खुश जीवन जीते हैं और स्वयं को संतुष्ट रखते हैं।
योग का महत्वपूर्ण अंश योगासन है, जिसमें विभिन्न शारीरिक पोज़ और आसनों को प्रदर्शित किया जाता है। योगासनों के अभ्यास से हमारे शरीर की लचीलापन, संतुलन, स्थायित्व और शक्ति में सुधार होती है। इसके अलावा, योग आसनों के द्वारा हम विभिन्न रोगों को नियंत्रित कर सकते हैं, जैसे कि मधुमेह, हृदय रोग, अस्थमा, अवसाद आदि।
यो��� का अभ्यास मनोरोगों में भी मदद करता है। ध्यान और मन को नियंत्रित करके हम स्वयं को शांत और स्वस्थ बना सकते हैं। योग का अभ्यास करने से मन में स्थिरता और एकाग्रता की स्थिति बढ़ती है, जिससे समस्याओं और टेंशन को नियंत्रित किया जा सकताहै।
योग का अभ्यास सिर्फ शारीरिक और मानसिक लाभों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा के साथ एकीकृत होने की भी साधना है। जब हम योग के माध्यम से अपने मन को नियंत्रित करते हैं और अपनी आंतरिक स्वरूप को पहचानते हैं, तब हम एक ऊँचे स्तर पर उठते हैं और अपने स्वभाव के मूल्यों को समझते हैं। इस प्रकार, योग हमें सच्ची स्वतंत्रता, आनंद और मुक्ति की अनुभूति दिलाताहै।
योग हमारे शरीर, मन और आत्मा के एकीकरण को साधना करने और समर्पित होने का एक विज्ञान है। इसके माध्यम से हम अपनी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं और एक सुखी, स्वस्थ और पूर्ण जीवन जी सकते हैं। योग का अभ्यास करने से हम अपनी सामर्थ्यों को पहचानते हैं और आपातकाल में भी स्थिर रहते हैं। इसलिए, योग हमारे जीवन का अटूट हिस्सा है और हमें स्वस्थ, स्थिर और संतुष्ट बनाने में सहायता प्रदान करता है। योग का अभ्यास आपकी जीवनशैली को सुधारता है और आपको एक सकारात्मक दिशा में ले जाता है।
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तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
हमें अपने शरीर, मन और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए सच्ची भक्ति की आवश्यकता है। यह सभी रोगों को जड़ से खत्म कर सकता है। योग का अभ्यास ऐसा नहीं कर सकता।
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गीता!
अध्याय 10 के श्लोक 10 कहा में कहा है कि अभ्यास योग में युक्त सप्रेम बजने वालों कि बुद्धि में अज्ञान रूपी अंधकार करदेता हूं जिससे वे मुझ काल को प्राप्त होते हैं।
- संत रामपाल जी महाराज
#सतभक्ति_संदेश
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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के लिए केवल 15 दिन शेष हैं, आइए योग के दैनिक अभ्यास के माध्यम से अपने मन, शरीर और आत्मा को संतुलन में लाएं। #PMBJP #PMBI #BPPI #JanAushadhi https://www.instagram.com/p/CednzwpPF8t/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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Patanjali Yog Sutra | B.K.S Iyengar | Path to Inner Peace and Spiritual Growth | A Guide to Yoga Philosophy and Practice for Personal Transformation and Well-being | Book in Hindi
Book Link : https://www.amazon.in/dp/9351865975
यह पुस्तक योग के महत्वपूर्ण और प्राचीन ग्रंथ "योगसूत्र" का संकलन है।
योगसूत्र विभिन्न योगी तथा ध्येय जीवन की उत्कृष्टता के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
पुस्तक व्यक्ति को अपने आत्मा की खोज में मार्गदर्शन करती है।
योगसूत्र के अभ्यास से व्यक्ति अपने अंदर के महान् गुणों को जानने और विकसित कर सकता है।
योग के अभ्यास से व्यक्ति का मस्तिष्क और हृदय शांति और स्थिरता की स्थिति में रहता है।
योगसूत्र के अभ्यास से व्यक्ति का व्यक्तिगत और आध्यात्मिक विकास होता है।
पुस्तक में दिए गए सूत्र व्यक्ति को संतुलित और स्वस्थ जीवन जीने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
योगसूत्र के अभ्यास से व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुधरता है।
योगसूत्र व्यक्ति को सत्य, संयम और सफलता की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
योग के अभ्यास से व्यक्ति आत्मविश्वास और स्वायत्तता में सुधार करता है और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करता है।
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#Tuesdaymotivation
हमें अपने शरीर मन और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए अच्छी भक्ति की आवश्यकता है यह सभी रोग को जड़ से खत्म कर सकता है योग का अभ्यास ऐसा नहीं कर सकता..!
अधिक जानकारी के लिए देखे ईश्वर चैनल सुबह 6:00 बजे से और पढ़े पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा
Kabir is God 🌎🪷🌹
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👨⚕️ दिल का दौरा के बाद स्वस्थ रहने के टिप्स
दिल का दौरा के बाद अपने दिल की देखभाल करना बहुत जरूरी है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं:
धूम्रपान छोड़ें: धूम्रपान छोड़ने से आपके दिल की सेहत में सुधार हो सकता है और दोबारा दिल का दौरा पड़ने का खतरा कम हो जाता है।
अपने रक्तचाप को नियंत्रित रखें: नियमित रूप से अपने रक्तचाप की जाँच करें और इसे स्वस्थ सीमा में रखें।
अपने कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित रखें: कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित रखकर दिल की अन्य समस्याओं से बचा जा सकता है।
स्वस्थ आहार लें: अपने आहार में अधिक फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज और कम वसा वाले प्रोटीन शामिल करें।
तनाव के स्तर को नियंत्रित रखें: योग, ध्यान या गहरी साँस लेने की तकनीकों का अभ्यास करें ताकि आप तनाव को अच्छी तरह से प्रबंधित कर सकें।
सक्रिय रहें: अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार नियमित शारीरिक गतिविधियों में शामिल हों ताकि आपका दिल मजबूत बना रहे।
व्यक्तिगत देखभाल और अधिक सलाह के लिए, आप Dr. Md. Farhan Shikoh, MBBS, MD (Medicine), DM (Cardiology) से संपर्क कर सकते हैं। पता: सुकून हार्ट केयर, सैनिक मार्केट, मेन रोड, रांची, झारखंड: 834001. संपर्क: 6200784486 या drfarhancardiologist.com पर जाएँ।
इन कदमों को उठाकर आप एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं और दिल की समस्याओं से बच सकते हैं। स्वस्थ रहें और अपना ख्याल रखें! ❤️
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YouTube : https://youtu.be/FWoYvf4_UCU
आइए हम सब मिलकर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आह्वान "करे योग रहे निरोग" का पालन करें – हर्ष वर्धन अग्रवाल
योग है स्वस्थ रहने की गारंटी - हर्षवर्धन अग्रवाल
लखनऊ, 21.06.2023 | माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की "करे योग रहे निरोग" की अपील का स्वागत करते हुए, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने "अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2023" के अवसर पर इंदिरा नगर के सेक्टर 25 के रामायण पार्क में "योग अभ्यास कार्यक्रम" का आयोजन किया तथा सभी को नियमित रूप से योग करने के लिए प्रेरित करते हुए बताया कि योग स्वस्थ रहने की गारंटी है ।
"अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2023" की थीम "वसुधैव कुटुंबकम के लिए योग" को अपनाते हुए ट्रस्ट के पदाधिकारियों एवं स्वयंसेवकों ने हर वर्ग के लोगों से नियमित योगाभ्यास करने की अपील की क्योंकि हमारी धरती हमारा परिवार है तथा धरती पर सभी लोगों के स्वास्थ्य के लिए योग की अत्यधिक उपयोगिता है ।
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि "योग प्राचीन काल से भारत की संस्कृति का हिस्सा ��हा है | भारत में ऋषि मुनियों के दौर से योगाभ्यास होता आ रहा है एवं ये हर एक भारतवासी को गौरवांवित करने वाला दिन है कि भारत की पहल पर योग के महत्व को देखते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनाया गया तथा-कथा हमारे देश भारत के साथ-साथ अब पूरी दुनिया योग की ताकत को मान रही है | योग न सिर्फ हमारे शरीर को निरोगी बनाता है, बल्कि हमें मानसिक मजबूती भी देता है | इस आधुनिक और भागदौड़ भरे जीवन में योग संतुलन खोजने के महत्व पर जोर देता है एवं शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सद्भाव को बढ़ावा देता है । अगर संक्षिप्त में कहें तो योग ही एक ऐसी कला है जिससे जटिल से जटिल रोगों को दूर किया जा सकता है और स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है इसलिए जनहित में खुद भी योग करें एवं दूसरों को भी योग करने के लिए प्रेरित करें |" हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी कहते है कि हमे योग को जानना भी है, हमे योग को जीना भी है, हमे योग को पाना भी है, हमे योग को अपनाना भी है तो हम सबको योग को अपनी जीवन शैली मे अपनाना चाहिए |
प्रशिक्षक श्री शिवम गुप्ता ने प्रार्थना, ग्रीवा संचालन, स्कन्ध संचालन, कटि संचालन, हस्तोत्थानासन, पादहस्तासन, समकोणासन, अर्धचक्रासन, ताडासन, पृक्षासन, अस्वतासन, कोणासन, त्रिकोणाकार, वीरभद्रासन, अग्निसार, कपालभाति, ध्यान, भ्रामरी, शांतिपाठ आसन का प्रशिक्षण प्रदान किया |
इस अवसर पर सेक्टर 25, इंदिरा नगर के निवासीगण श्री ओम प्रकाश शाक्य, श्री जे पी गुप्ता, श्री आर के शर्मा, श्रीमती शशि कुकरेजा, श्री ऋषिकेश उपाध्याय, श्रीमती सुनीता शर्मा तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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हमें अपने शरीर, मन और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए सच्ची भक्ति की आवश्यकता है। यह सभी रोगों को जड़ से खत्म कर सकता है। योग का अभ्यास ऐसा नहीं कर सकता।
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‘‘कबीर देव द्वारा ऋषि रामानन्द के आश्रम में दो रूप धारण करना’’
स्वामी रामानन्द जी ने परमेश्वर कबीर जी से कहा कि ‘‘आपने झूठ क्यों बोला?’’ कबीर परमेश्वर जी बोले! कैसा झूठ स्वामी जी? स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि आप कह रहे थे कि आपने मेरे से नाम ले रखा है। आपने मेरे से उपदेश कब लिया? बालक रूपधारी कबीर परमेश्वर जी बोले एक समय आप स्नान करने के लिए पँचगंगा घाट पर गए थे। मैं वहाँ लेटा हुआ था। आपके पैरों की खड़ाऊँ मेरे सिर में लगी थी! आपने कहा था कि बेटा राम नाम बोलो। रामानन्द जी बोले-हाँ, अब कुछ याद आया। परन्तु वह तो बहुत छोटा बच्चा था (क्योंकि उस समय पाँच वर्ष की आयु के बच्चे बहुत बड़े हो जाया करते थे तथा पाँच वर्ष के बच्चे के शरीर तथा ढ़ाई वर्ष के बच्चे के शरीर में दुगुना अन्तर हो जाता है)। कबीर परमेश्वर जी ने कहा स्वामी जी देखो, मैं ऐसा था। स्वामी रामानन्द जी के सामने भी खड़े हैं और एक ढाई वर्षीय बच्चे का दूसरा रूप बना कर किसी सेवक की वहाँ पर चारपाई बिछी थी उसके ऊपर विराजमान हो गए।
रामानन्द जी ने छः बार तो इधर देखा और छः बार उधर देखा। फिर आँखें मलमल कर देखा कि कहीं तेरी आँखें धोखा तो नहीं खा रही हैं। इस प्रकार देख ही रहे थे कि इतने में कबीर परमेश्वर जी का छोटे वाला रूप हवा में उड़ा और कबीर परमेश्वर जी के बड़े पाँच वर्ष वाले स्वरूप में समा गया। पाँच वर्ष वाले स्वरूप में कबीर परमेश्वर जी रह गए।
रामानन्द जी बोले कि मेरा संशय मिट गया कि आप ही पूर्ण ब्रह्म हो। हे परमेश्वर! आपको कैसे पहचान सकते हैं। आप किस जाति में उत्पन्न तथा कैसी वेश भूषा में खड़े हो। हम नादान प्राणी आप के साथ वाद-विवाद करके दोषी हो गए, क्षमा करना परमेश्वर कविर्देव, मैं आपका अनजान बच्चा हूँ। रामानन्द जी ने फिर अपनी अन्य शंकाओं का निवारण करवाया।
शंका:- हे कविर्देव! मैं राम-राम कोई मन्त्रा शिष्यों को जाप करने को नहीं देता। यदि आपने मुझसे दीक्षा ली है तो वह मन्त्रा बताईए जो मैं शिष्य को जाप करने को देता हूँ।
उत्तर कबीर देव का:- हे स्वामी जी! आप ओम् नाम जाप करने को देते हो तथा ओ3म् भगवते वासुदेवाय नमः का जाप तथा विष्णु स्त्रोत की आवर्ती की भी आज्ञा देते हो।
शंका:- आपने जो मन्त्र बताया यह तो सही है। एक शंका और है उसका भी निवारण कीजिए। मैं जिसे शिष्य बनाता हूँ उसे एक चिन्ह देता हूँ। वह आपके पास नहीं है।
उत्तर:- बन्दी छोड़ कबीर देव बोले हे गुरुदेव! आप तुलसी की लकड़ी के एक मणके की कण्ठी (माला) गले में पहनने के लिए देते हो। यह देखो गुरु जी उसी दिन आपने अपनी कण्ठी गले से निकाल कर मेरे गले में पहनाई थी। यह कहते हुए कविर्देव ने अपने कुर्ते के नीचे गले में पहनी वही कण्ठी (माला) सार्वजनिक कर दी। रामानन्द जी समझ गए यह कोई साधारण बच्चा नहीं है। यह प्रभु का भेजा हुआ कोई तत्त्वदर्शी आत्मा है। इस से ज्ञान चर्चा करनी चाहिए। चर्चा के विषय को आगे बढ़ाते हुए स्वामी रामानन्द जी बोले हे बालक कबीर! आप अपने आपको परमेश्वर कहते हो परमात्मा ऐसा अर्थात् मनुष्य जैसा थोड़े ही है।
हे कबीर जी! उस स्थान (परम धाम) को यदि एक बार दिखा दे तो मन शान्त हो जाएगा। मैं वर्षों से ध्यान योग अर्थात् हठयोग करता हूँ। मैं समाधिस्थ होकर आकाश में बहुत ऊपर तक सैर कर आता हूँ। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है स्वामी जी! आप समाधिस्थ होइए।
स्वामी रामानन्द जी का हठयोग ध्यान (मैडिटेशन) करना नित्य का अभ्यास था तुरन्त ही समाधिस्थ हो गए। समाधि दशा में स्वामी जी की सूरति (ध्यान) त्रिवेणी तक जाती थी। त्रिवेणी पर तीन रास्ते हो जाते हैं। बाँया रास्ता धर्मराज के लोक तथा ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के लोकों तथा स्वर्ग लोक आदि को जाता है। दायाँ रास्ता अठासी हजार खेड़ों (नगरियों) की ओर जाता है। सामने वाला रास्ता ब्रह्म लोक को जाता है। वह ब्रह्मरंद्र भी कहा जाता है। स्वामी रामानन्द जी कई जन्मों से साधना करते हुए आ रह��� थे। इस कारण से इनका ध्यान तुरन्त लग जाता था। बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी को ध्यान में आगे मिले तथा वहाँ का सर्व भेद रामानन्द जी को बताया। हे स्वामी जी! आप की भक्ति साधना कई जन्मों की संचित है। जिस समय आप शरीर त्याग कर जाओगे इस बाऐं रास्ते से जाओगे इस रास्ते में स्वचालित द्वार (एटोमैटिक खुलने वाले गेट) लगे है। जिस साधक की जिस भी लोक की साधना होती है। वह धर्मराय के पास जाकर अपना लेखा (।बबवनदज) करवाकर इसी रास्ते से आगे चलता है। उसी लोक का द्वार अपने आप खुल जाता है। वह द्वार तुरन्त बन्द हो जाता है। वह प्राणी पुनः उस रास्ते से लौट नहीं सकता। उस लोक में समय पूरा होने के पश्चात् पुनः उसी मार्ग से धर्मराज के पास आकर अन्य जीवन प्राप्त करता है।
धर्मराय का लोक भी उसी बाई और जाने वाले रास्ते में सर्व प्रथम है। उस धर्मराज के लोक में प्रत्येक की भक्ति अनुसार स्थान तय होता है। आप (स्वामी रामानन्द) जी की भक्ति का आधार विष्णु जी का लोक है। आप अपने पुण्यों को इस लोक में समाप्त करके पुनः पृथ्वी लोक पर शरीर धारण करोगे। यह हरहट के कूएं जैसा चक्र आपकी साधना से कभी समाप्त नहीं होगा। यह जन्म मृत्यु का चक्र तो केवल मेरे द्वारा बताए तत्त्वज्ञान द्वारा ही समाप्त होना सम्भव है। परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा हे स्वामी जी! जो सामने वाला द्वार है यह ब्रह्मरन्द्र है। यह वेदों में लिखे किसी भी मन्त्रा जाप से नहीं खुलता यह तो मेरे द्वारा बताए सत्यनाम (जो दो मन्त्रा का होता है एक ॐ मन्त्र तथा दूसरा तत् यह तत् सांकेतिक है वास्तविक नाम मन्त्रा तो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) के जाप से खुलता है। ऐसा कह कर परमेश्वर कबीर जी ने सत्यनाम (दो मन्त्रों के नाम) का जाप किया। तुरन्त ही सामने वाला द्वार (ब्रह्मरन्द्र) खुल गया। परमेश्वर कबीर जी अपने साथ स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को लेकर उस ब्रह्मरन्द्र में प्रवेश कर गए। पश्चात् वह द्वार तुरन्त बन्द हो गया। उस द्वार से निकल कर लम्बा रास्ता तय किया ब्रह्मलोक में गए आगे फिर तीन रास्ते हैं। बाई ओर एक रास्ता महास्वर्ग में जाता है। उस महास्वर्ग में नकली (क्नचसपबंजम) सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोकों की रचना काल ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा से करा रखी है। प्राणियों को धोखा देने के लिए। उन सर्व नकली लोकों को दिखा कर वापस आए। दाई और सप्तपुरी, ध्रुव लोक आदि हैं। सामने वाला द्वार वहाँ जाता है जहाँ पर गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म अपनी योग माया से छुपा रहता है। वहाँ तीन स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान क्षेत्र है। जिसमें काल ब्रह्म तथा दुर्गा (प्रकृति) देवी पति-पत्नी रूप में साकार रूप में रहते हैं। उस समय जिस पुत्र का जन्म होता है वह रजोगुण युक्त होता है। उसका नाम ब्रह्मा रख देता है उस बालक को युवा होने तक अचेत रखकर परवरिश करते हैं। युवा होने पर काल ब्रह्म स्वयं विष्णु रूप धारण करके अपनी नाभी से कमल का फूल प्रकट करता है। उस कमल के फूल पर युवा अवस्था प्राप्त होने पर ब्रह्मा जी को रख कर सचेत कर देता है। इसी प्रकार एक सतोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उसमें दोनों (दुर्गा व काल ब्रह्म) पति-पत्नी रूप में रह कर अन्य पुत्र सतोगुण प्रधान उत्पन्न करते हैं। उसका नाम विष्णु रखते हैं। उसे भी युवा होने तक अचेत रखते हैं। शेष शय्या पर सचेत करते हैं। अन्य शेषनाग ब्रह्म ही अपनी शक्ति से उत्पन्न करता है। इसी प्रकार एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उस में वे दोनों (दुर्गा तथा काल ब्रह्म) पति-पत्नी व्यवहार से तमोगुण प्रधान पुत्र उत्पन्न करते हैं। उसका नाम शिव रखते हैं। उसे भी युवा अवस्था प्राप्त होने तक अचेत रखते हैं। युवा होने पर तीनों को सचेत करके इनका विवाह, प्रकृति (दुर्गा) द्वारा उत्पन्न तीनों लड़कियों से करते हैं। इस प्रकार यह काल ब्रह्म अपना सृष्टि चक्र चलाता है।
परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को वह रास्ता दिखाया तथा इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में फिर तीन रास्ते है बाई ओर फिर नकली सतलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोक की रचना की हुई है। दाई ओर बारह भक्तों का निवास स्थान बनाया है, जिनको अपना ज्ञान प्रचारक बनाकर जनता को शास्त्रविरूद्ध ज्ञान पर आधारित करवाता है। सामने वाला द्वार तप्त शिला की ओर जाता है। जहाँ पर यह काल ब्रह्म एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सुक्ष्म शरीरों को तपाकर उनसे मैल निकाल कर खाता है। उस काल ब्रह्म के उस लोक के ऊपर एक द्वार है जो परब्रह्म (अक्षर पुरूष) के सात शंख ब्रह्मण्डों में खुलता है। परब्रह्म के ब्रह्मण्डों के अन्तिम सिरे पर एक द्वार है जो सत्यपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) के लोक सत्यलोक की भंवर गुफा में खुलता है। फिर आगे सत्यलोक है जो वास्तविक सत्यलोक है। सत्यलोक में पूर्ण परमात्मा कबीर जी अन्य तेजोमय मानव सदृश शरीर में एक गुबन्द (गुम्मज) में एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं। वहाँ सत्यलोक की सर्व वस्तुऐं तथा सत्यलोक वासी सफेद प्रकाश युक्त हैं। सत्यपुरूष के शरीर का प्रकाश अत्यधिक सफेद है। सत्यपुरूष के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश एक लाख सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिलेजुले प्रकाश से भी अधिक है। परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को साथ लेकर सत्यलोक में गए। वहाँ सर्व आत्माओं का भी मानव सदृश शरीर है। उनके शरीर का भी सफेद प्रकाश है। परन्तु सत्यलोक निवासियों के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों के प्रकाश के समान है। बालक रूपधारी कविर्देव ने अपने ही अन्य स्वरूप पर चंवर किया। जो स्वरूप अत्यधिक तेजोमय था तथा सिंहासन पर एक सफेद गुबन्द में विराज मान था। स्वामी रामानन्द जी ने सोचा कि पूर्ण परमात्मा तो यह है जो तेजोमय शरीर युक्त है। यह बाल रूपधारी आत्मा कबीर यहाँ का अनुचर अर्थात् सेवक होगा। स्वामी रामानन्द जी ने इतना विचार ही किया था। उसी समय सिंहासन पर विराजमान तेजोमय शरीर युक्त परमात्मा सिंहासन त्यागकर खड़ा हो गया तथा बालक कबीर जी को सिंहासन पर बैठने के लिए प्रार्थना की नीचे से रामानन्द जी के साथ गया बालक कबीर जी उस सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा वह तेजोमय शरीर धारी प्रभु बालक के सिर पर श्रद्धा से चंवर करने लगा। रामानन्द जी ने सोचा यह परमात्मा इस बच्चे पर चंवर करने लगा। यह बालक यहां का नौकर (सेवक) नहीं हो सकता। इतने में तेजोमय शरीर वाला परमात्मा उस बालक कबीर जी के शरीर में समा गया। बालक कबीर जी का शरीर उसी प्रकार उतने ही प्रकाश युक्त हो गया जितना पहले सिंहासन पर बैठे पुरूष (परमेश्वर) का था। इतनी लीला करके स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को वापस शरीर में भेज दिया। महर्षि रामानन्द जी ने आँखे खोल कर देखा तो बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी को सामने भी बैठा पाया। महर्षि रामानन्द जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि यह बालक कबीर जी ही परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् वासुदेव (कुल का मालिक) है। दोनों स्थानों (ऊपर सत्यलोक में तथा नीचे पृथ्वी लोक में) पर स्वयं ही लीला कर रहा है। यही परम दिव्य पुरूष अर्थात् आदि पुरूष है। सत्यलोक में जहाँ पर यह परमात्मा मूल रूप में निवास करता है वह सनातन परमधाम है। परमेश्वर कबीर जी ने इसी प्रकार सन्त गरीबदास जी महाराज छुड़ानी (हरयाणा) वाले को सर्व ब्रह्मण्डों को प्रत्यक्ष दिखाया था। उनका ज्ञान योग खोल दिया था तथा परमेश्वर ने गरीबदास जी महाराज को स्वामी रामानन्द जी के विषय में बताया था कि किस प्रकार मैंने स्वामी जी को शरण में लिया था। महाराज गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी में उल्लेख किया है।
तहाँ वहाँ चित चक्रित भया, देखि फजल दरबार। गरीबदास सिजदा किया, हम पाये दीदार।।
बोलत रामानन्द जी सुन कबिर करतार। गरीबदास सब रूप में तुमही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम सन्त हो तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि भर्म कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ विश्वास।।
सुन बे सुन से तुम परे, ऊरै से हमरे तीर। गरीबदास सरबंग में, अविगत पुरूष कबीर।।
कोटि-2 सिजदा किए, कोटि-2 प्रणाम। गरीबदास अनहद अधर, हम परसे तुम धाम।।
बोले रामानन्द जी, सुनों कबीर सुभान। गरीबदास मुक्ता भये, उधरे पिण्ड अरू प्राण।।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ:- सत्यलोक में तथा काशी नगर में पृथ्वी पर दोनों स्थानों पर परमात्मा कबीर जी को देख कर स्वामी रामानन्द जी ने कहा है कबीर परमात्मा आप दोनों स्थानों पर लीला कर रहे हो। आप ही निज ब्रह्म अर्थात् गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि उत्तम पुरूष अर्थात् वास्तविक परमेश्वर तो क्षर पुरूष (काल ब्रह्म) तथा अक्षर पुरूष (परब्रह्म) से अन्य ही है। वही परमात्मा कहा जाता है। जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है वह परम अक्षर ब्रह्म आप ही हैं। आप ही की शक्ति से सर्व प्राणी गति कर रहे हैं। मैंने आप का वह सनातन परम धाम आँखों देखा है तथा वास्तविक अनहद धुन तो ऊपर सत्यलोक में है। ऐसा कह कर स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर के चरणों में कोटि-2 प्रणाम किया तथा कहा आप परमेश्वर हो, आप ही सतगुरु तथा आप ही तत्त्वदर्शी सन्त हो आप ही हंस अर्थात् नीर-क्षीर को भिन्न-2 करने वाले सच्चे भक्त के गुणों युक्त हो। कबीर भक्त नाम से यहाँ पर प्रसिद्ध हो वास्तव में आप परमात्मा हो। मैं आपका भक्त आप मेरे गुरु जी। परमेश्वर कबीर जी ने कहा हे स्वामी जी ! गुरु जी तो आप ही रहो। मैं आपका शिष्य हूँ। यह गुरु परम्परा बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है। यदि आप मेरे गुरु जी रूप में नहीं रहोगे तो भविष्य में सन्त व भक्त कहा करेंगे कि गुरु बनाने की कोई अवश्यकता नहीं है। सीधा ही परमात्मा से ही सम्पर्क करो। ‘‘कबीर’’ ने भी गुरु नहीं बनाया था।
हे स्वामी जी! काल प्रेरित व्यक्ति ऐसी-2 बातें बना कर श्रद्धालुओं को भक्ति की दिशा से भ्रष्ट किया करेंगे तथा काल के जाल में फाँसे रखेंगे। इसलिए संसार की दृष्टि में आप मेरे गुरु जी की भूमिका कीजिये तथा वास्तव में जो साधना की विधि मैं बताऊँ आप वैसे भक्ति कीजिए। स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर जी की बात को स्वीकार किया। कबीर परमेश्वर जी एक रूप में स्वामी रामानन्द जी को तत्त्वज्ञान सुना रहे थे तथा अन्य रूप धारण करके कुछ ही समय उपरान्त अपने घर पर आ गए। क्योंकि वहाँ नीरू तथा नीमा अति चिन्तित थे। बच्चे को सकुशल घर लौट आने पर नीरू तथा नीमा ने परमेश्वर का शुक्रिया किया। अपने बच्चे कबीर को सीने से लगा कर नीमा रोने लगी तथा बच्चे को अपने पति नीरू के पास ले गई। नीरू ने भी बच्चे कबीर से प्यार किया। नीरू ने पूछा बेटा! आपको उन ब्राह्मणों ने मारा तो नहीं? कबीर जी बोले नहीं पिता जी! स्वामी रामानन्द जी बहुत अच्छे हैं। मैंने उनको गुरु बना लिया है। उन्होंने मुझको सर्व ब्राह्मण समाज के समक्ष सीने से लगा कर कहा यह मेरा शिष्य है। आज से मैं सर्व हिन्दू समाज के सर्व जातियों के व्यक्तियों को शिष्य बनाया करूँगा। माता-पिता (नीरू तथा नीमा) अति प्रसन्न हुए तथा घर के कार्य में व्यस्त हो गए।
स्वामी रामानन्द जी ने कहा हे कबीर जी! हम सर्व की बुद्धि पर पत्थर पड़े थे आपने ही अज्ञान रूपी पत्थरों को हटाया है। बड़े पुण्यकर्मों से आपका दर्शन सुलभ हुआ है।
(यह शब्द अगम निगम बोध के पृष्ठ 38 पर लिखा है।)
मेरा नाम कबीरा हूँ जगत गुरू जाहिरा।(टेक)
तीन लोक में यश है मेरा, त्रिकुटी है अस्थाना। पाँच-तीन हम ही ने किन्हें, जातें रचा जिहाना।।
गगन मण्डल में बासा मेरा, नौवें कमल प्रमाना। ब्रह्म बीज हम ही से आया, बनी जो मूर्ति नाना।।
संखो लहर मेहर की उप��ैं, बाजै अनहद बाजा। गुप्त भेद वाही को देंगे, शरण हमरी आजा।।
भव बंधन से लेऊँ छुड़ाई, निर्मल करूं शरीरा। सुर नर मुनि कोई भेद न पावै, पावै संत गंभीरा।।
बेद-कतेब में भेद ना पूरा, काल जाल जंजाला। कह कबीर सुनो गुरू रामानन्द, अमर ज्ञान उजाला।।
अब विश्व की उत्पत्ति (सृष्टि रचना) का ज्ञान कराता हूँ जो स्वयं परमेश्वर ने अपने द्वारा रचे जगत का ज्ञान बताया है। आगे पढ़ें अध्याय 3 में।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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