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templeinindia · 1 year
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कार्तवीर्यार्जुनॊनाम राजाबाहुसहस्रवान्।
तस्यस्मरण मात्रॆण गतम् नष्टम् च लभ्यतॆ॥
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अलाभकारी संस्था के आय और व्यय के मुख्य स्रोत क्या है। 2024
दोस्तों एक अलाभकारी संस्था का मुख्य उद्देश समाज की सेवा करना होता है। जिस कारण इनके आय और व्यय के मुख्य स्त्रोत निम्नलिखित होते हैं। अलाभकारी संस्था के आय और व्यय के मुख्य स्रोत क्या है। अलाभकारी संस्थाओ के आय के स्त्रोत 1. चन्दा (Subscription) 2. सहायता (Subsidy) 3. प्रवेश शुल्क (Entrance Fee) 4. सदस्यता शुल्क (Membership Fee) 5. दान (Donation) 6. इन्वेस्टमेंट आदि से प्राप्त आय (Income…
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merikheti · 2 years
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चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ
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दोस्तों, आज हम बात करेंगे गन्ने के विषय में, गन्ना एक बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है। गन्ना भारत की सबसे आवश्यक वाणिज्यिक फसलों में से एक माना जाता है। चीनी का मुख्य स्त्रोत गन्ने को ही माना जाता है। सबसे ज्यादा चीनी उत्पाद करने व���ला देश भारत है। गन्ने की खेती से किसानों का आय निर्यात का साधन बना रहता है, गन्ने की फसल किसानों को रोजगार देती है। गन्ने की फसल से विदेशों में उच्च दाम की प्राप्ति होती है। गन्ने की फसल से जुड़ी आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जुड़े रहे।
गन्ने की आधुनिक खेती की सम्पूर्ण जानकारी
गन्ने की फ़सल के लिए भूमि का चयन
गन्ने की फसल की अच्छी प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम अच्छी भूमि का चयन करना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है। वैसे सभी प्रकार की मिट्टियां भूमि के लिए उचित है, परंतु दोमट मिट्टी सबसे अच्छी और सर्वोत्तम मानी जाती है। मिट्टी पलटने वाले हल द्वारा लगभग दो से तीन बार जुताई करनी चाहिए। खेतों में आड़ी तिरछी जुताई करना उचित होगा। खेतों में जुताई करने के बाद मिट्टियों को भुरभुरा कर लेना आवश्यक होता है। पाटा चला कर भली प्रकार से भूमि को समतल कर ले। बीज बोने के पश्चात आपको जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना आवश्यक है।
गन्ने की बुवाई का सही समय
किसी भी फसल को बोते समय आपको सही समय का चुनाव करना बहुत ही जरुरी होता है। यदि आप सही समय पर सही बुवाई करेंगे, तो आप की फसल ज्यादा उत्पाद करेगी। किसानों के अनुसार गन्ने की फसल के लिए सबसे उत्तम समय अक्टूबर और नवंबर के बीच का होता है, क्योंकि इस समय गन्ने की पैदावार अच्छी होती है और यह महीना सबसे सर्वोत्तम माना जाता है। वैसे गन्ने की बुवाई के लिए आप बसंत कालीन फरवरी और मार्च का महीना भी चुन सकते हैं।
गन्ने की फ़सल के लिए बीज की मात्रा/ बोने का तरीका
गन्ने की फसल की बुवाई करने के लिए लगभग एक लाख 25 हज़ार के करीब आंखें प्रति हेक्टर गन्ने के टुकड़े कुछ इस प्रकार छोटे-छोटे करें, कि इनमें से दो से तीन आंखें नजर आए। गन्ने के किए गए इन टुकड़ों को आपको 2 ग्राम प्रति लीटर कार्बेंन्डाजिम के घोल में 10 से 20 मिनट तक डूबा कर अच्छी तरह से रखना है।
इन गन्ने के टुकड़ों को आपको नालियों में रखकर मिट्टी से अच्छी तरह से ढक देना है, उसके बाद खेतों में हल्की सी सिंचाई कर दें।
किसानों के अनुसार गन्ने की फसल का बीज रोपण करने का यह सबसे उत्तम तरीका है।
गन्ने की फ़सल के लिए उर्वरक की मात्रा
गन्ने की फसल के लिए किसान 300 कि. नत्रजन का प्रयोग करते हैं। वहीं दूसरी ओर लगभग 650 किलो यूरिया तथा 80 किलो स्फुर का इस्तेमाल करते हैं। सुपरफास्फेट 500 कि0 , पोटाश 90 किलो और 150 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टर के हिसाब से प्रयोग करते हैं।
स्फुर और पोटाश की मात्रा का प्रयोग खेतों में बुवाई के समय गरेडों में दिया जाता है। वही नत्रजन का इस्तेमाल फसल बोने के बाद अंकुरण आने के टाइम पर इस्तेमाल किया जाता है। अंकुरण आने के बाद खेतों में हल्की मिट्टी चढ़ाएं। यदि नत्रजन आपके पास नहीं है तो गोबर की खाद या हरी खाद का भी इस्तेमाल कर सकते है। यह दोनों खाद फसलों के लिए लाभदायक होती है।
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गन्ने की फ़सल के लिए निंदाई गुड़ाई
जैसा कि हम सब जानते हैं, गन्ने की फसल किसानों के लिए कितनी उपयोगी होती है। भारत देश में गन्ना सबसे ज्यादा उत्पादन होता है चीनी के मुख्य स्त्रोत के तौर पर। इस प्रकार किसानों को गन्ने की फसल की सुरक्षा करने के लिए विभिन्न विभिन्न तरह से निराई गुड़ाई करते रहना जरूरी है। गन्ने की फसल बोने के बाद, 4 हफ्तों तक खरपतवार की रोकथाम करना बहुत जरूरी होता है, इसलिए तीन से चार दिन बाद निंदाई करना महत्वपूर्ण होता है। गन्ने में अंकुरण आने से पहले रसायनिक नियंत्रण के द्वारा अट्राजिन 160 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में अच्छी तरह से घोलकर पूरे खेतों में छिड़काव करना आवश्यक है। खेतों में खरपतवार की स्थिति के लिए लगभग 2 से 4 डी सोडियम साल्ट 400 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में घोल का छिड़काव करना चाहिए। ध्यान रखें, जब आप यह छिड़काव करें तो खेतों में नमी बनी रहना जरूरी है।
गन्ने की फ़सल में मिट्टी चढ़ाने की प्रतिक्रिया
किसानों के अनुसार गन्ने की फसल गिरने का भय होता है इसीलिए रीजर का इस्तेमाल कर मिट्टी चढ़ाना चाहिए। मिट्टी अलग-अलग प्रकार से खेतों में चढ़ाई जाती है। यदि किसानों ने अक्टूबर और नवंबर के बीच में बुवाई की होगी, तो पहली मिट्टी फरवरी-मार्च में चढ़ाई जाती है।
गन्ने की फसल में आखरी मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया मई के महीने में की जाती है और जब गन्ने में कल्ले फूटने लगे तब मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया नहीं की जाती।
गन्ने की फसल की सिंचाई
गन्ने की फसल की सिंचाई किसान शीतकाल में 15 दिन के अंदर करते हैं तथा ज्यादा गर्मी में आठ से 10 दिन के अंदर सिंचाई की प्रक्रिया को शुरू कर देते हैं। किसान खेतों में सिंचाई की मात्रा को और कम करने के लिए कभी-कभी गरेड़ों का भी इस्तेमाल करते हैं। इन गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों को 4 से 6 मोटी बिछावन चढ़ाई जाती है। गर्मी के मौसम में पानी की मात्रा कम होने के वक्त एक गरेड़ छोड़ कर सिंचाई करना शुरू करें।
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गन्ने की फ़सल की बंधाई की प्रक्रिया
किसान गन्ने को गिरने से सुरक्षित रखने के लिए, गन्ने की डंडी या तने को सूखी पत्तियों द्वारा अच्छे से बांध देते हैं। इस पत्तियों द्वारा गन्ने बांधने की प्रक्रिया से गन्ने गिरने नहीं पाते और पूरी तरह से सुरक्षित रहते हैं। किसान अगस्त के आखिरी महीने या सितंबर महीने में गन्ने बांधने की प्रक्रिया को शुरू करते हैं।
हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल “चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ” पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में गन्ने से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद है, जो आपके बहुत काम आ सकती हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट हैं, तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया पर शेयर करते रहें।
धन्यवाद।
source चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ
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srbachchan · 5 months
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DAY 5762
Jalsa, Mumbai Nov 26/27, 2023 Sun/Mon 1:42 PM
Nov 27 , 1907 .. पूज्य बाबूजी की जन्म तिथि , प्रार्थनाएँ सदा, प्रेरणा स्त्रोत
🙏
in remembrance of Babuji .. and more .. a lifetime of inspirational presence and guidance ..
❤️
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Amitabh Bachchan
and to all the Ef dearest that wish him on this special day .. my extreme gratitude .. and apology for not being able to respond to them individually .. the numbers are too large .. 🌹
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hindisoup · 2 years
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Online/phone vocabulary in Hindi
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I did it, I finally did it - switched my iPhone to Hindi. It's been a blast finding my way around familiar apps over the past couple of days. First of all, my phone is finally showing me the respect I deserve by calling me आप and I'm quite chuffed!
Since many social media and technology-related words are just English written in Devanagari script (like टैग or फ़ॉलो) I haven't felt quite as lost as I could have I guess.
In the list below I haven't included many Hinglish words as they are quite self-explanatory but I have taken note of a bunch of words I was already familiar with but hadn't realised the way they are used in modern Hindi online lingo - such as जोड़ना which I've learned to mean to add, link or combine (like pieces together or whatnot) - but which is used apparently to also in the same sense as to post or attach something - e.g. 'Fiona ने एक नई फ़ोटो जोड़ी' on FB.
Here we go:
Phone
संपर्क - contact (masculine) आपातकालीन संपर्क - emergency contact (masculine) प्रथमाक्षर - initials (masculine) छूटी - missed (call) (adjective) निम्न पावर मोड - low power mode (masculine) सक्रिय करना - to activate (transitive)
Email / messaging
प्रेषित - sent (adjective) तारांकित - starred (adjective) प्रेषक - sender (masculine) प्रति - to: (postposition) अपठित - unread, unseen (adjective) चिह्नित करना - to mark (transitive) गोपनीय - encrypted (adjective)
Text editing
संपादित करना - to edit (transitive) सहेजना - to save (transitive) रद्द करना - to cancel (transitive) पूर्ण - done (adjective) नक़ल बनाना - to duplicate, make a copy (transitive) रीड ओनली संस्करण - read-only version (masculine)
Social media
सदस्य - user, subscriber (masculine) हालिया - recent (adjective) नवीनतम - latest (adjective) अनाम - anonymous (adjective) असली पोस्टर - original poster (op) (masculine by default) स्त्रोत - source (masculine) छवि - image, picture (feminine) जोड़ना - to attach, post (transitive) प्रतिक्रिया - reaction, response (feminine) उल्लेख - mention (masculine) रुझान में - in trend, trending (adverb)
Browsing
मुख्यपृष्ठ - front page (masculine) दर्ज करना - to enter (a code or information) (transitive) जांच जारी होना - to be searched (intransitive) परिणाम - (search) result (masculine) शीर्ष - top, most (masculine) निम्न - low, less (adjective) सारांश - summary (masculine)
Settings
ध्वनियाँ - sounds (feminine, plural) खाता - account (masculine) सूचना - notification (feminine) सुचित करना - to notity, inform (transitive) गोपनीयता - privacy (feminine) निजता नीति - privacy policy (feminine) मानक - standard (adjective) समर्थन करना - to support (software) (transitive) प्राथमिकता देना - to prioritize (transitive) प्रचलित - prevailing (already saved) (adjective)
Video/music apps
प्रशंसक - fan (masculine) नमूना - sample (masculine) विजेता - winner (masculine) संपादक - editor (masculine) चयनित / चुनिंदा - chosen, selected (adjective)
Shopping
मुद्रा - currency (feminine) समीक्षा - review (feminine) प्रायोजित - sponsored, promoted (adjective) क्रम से लगाना - to arrange, sort
Calendar
आमंत्रित - invited (adjective) अस्वीकृत - declined, denied (adjective) समाप्ति - end (time) (feminine) समय क्षेत्र - time zone (masculine) आरंभिक वार - starting day (of the week) (masculine)
Maps
आगमन - arrival (time) (masculine) उपग्रह - satellite (feminine) प्रदाता - provider (masculine) भोजनालय - restaurant (masculine) दिशानिर्देश - guidance, directions (masculine)
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bhaktibharat · 6 months
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✨ ललिता पञ्चमी - Lalita Panchami
❀ ललिता पंचमी को देवी ललिता की पूजा की जाती हैं, तथा ललिता देवी को ही त्रिपुर सुंदरी तथा षोडशी के नाम से भी जाना जाता है।
❀ देवी त्रिपुर सुंदरी दस महाविद्याओं में से एक हैं, जिनकी पूजा गुप्त नवरात्रि में भी की जाती है।
❀ ललिता पंचमी को ही *उपांग ललिता पंचमी व्रत* तथा *ललिता पंचमी व्रत* के नाम से भी जाना जाता है।
📲 https://www.bhaktibharat.com/festival/lalita-panchami
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✨ ललिता सहस्त्रनाम स्त्रोत - Lalitha Sahasranama Stotram
📲 https://www.bhaktibharat.com/mantra/lalitha-sahasranama-stotram
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seemasharmaasblogger · 8 months
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रात का मायाजाल
https://homemakerwithpen.blogspot.com/2023/07/Raatkamayajal.html
सुनो मेरे लाल !
रात का मायाजाल
ठग है, समान काल
एक तीर लग छूटी
माया के तूणीर से
उत्साह का उत्तेजन
और आयु का आवेश,
जो हुआ आखेटक सचेत,
किया पुत्र के हृदय में प्रवेश,
माया महाठगिनी लूट गई परिवेश,
ऋतु सा वृष्ट प्रचेत,
माँ
सुन चुका पहले ये ताल
बूझो ना और हाल
बुझी माँ बोली,
इस तम को मुझे चीर जाने दे
तू घर रह मुझे भिड़ जाने दे
पीड़ा भी भूल इसे दूंगी हकाल
कर्म कोई द्विक
जब न्यून ना माने द्विग
भले हो भिक्षा सा स्वत्व
धन खल का नही तत्व
सुन सत्य भी निष्ठ
वाचाल रहा अभिष्ठ
कर्ण सा धृष्ट
भोग लिया अनिष्ट
जहां दुर्भाग्य ही था तिष्ठ
रक्षक क्या होता समर्थ
यथा सुवाक्य हुआ द्विअर्थ
चार घेर में खेल रहे द्युत
किसी विद्युत सा द्रुत
समझ धन का सुगम स्त्रोत
एक विजेता से रूष्ट
हारे ने लहराया मुष्ट
जब तक रक्त ना हो सका तुष्ट
यश और सफलता से आत्मलुब्ध
माया हो तृप्त बढ़ चली,
पर पराक्रम करने संतुष्ट।
द्वारा : प्राची शर्मा
©️ 2023
प्राची शर्मा::सर्वाधिकार सुरक्षित
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iskconchd · 1 year
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श्रीमद्‌ भगवद्‌गीता यथारूप 2.17 https://srimadbhagavadgita.in/2/17 अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् । विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥ २.१७ ॥ TRANSLATION जो सारे शरीर में व्याप्त है उसे ही अविनाशी समझो । उस अव्यय आत्मा को नष्ट करने में कोई भी समर्थ नहीं है । PURPORT इस श्लोक में सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त आत्मा की प्रकृति का अधिक स्पष्ट वर्णन हुआ है । सभी लोग समझते हैं कि जो सारे शरीर में व्याप्त है वह चेतना है । प्रत्येक व्यक्ति को शरीर में किसी अंश या पुरे भाग में सुख-दुख का अनुभव होता है । किन्तु चेतना की यह व्याप्ति किसी के शरीर तक ही सीमित रहती है । एक शरीर के सुख तथा दुख का बोध दुसरे शरीर को नहीं हो पाता । फलतः प्रत्येक शरीर में व्यष्टि आत्मा है और इस आत्मा की उपस्थिति का लक्षण व्यष्टि चेतना द्वारा परिलक्षित होता है । इस आत्मा को बाल के अग्रभाग के दस हजारवें भाग के तुल्य बताया जाता है । श्र्वेताश्र्वतर उपनिषद् में (५.९) इसकी पुष्टि हुई है – बालाग्रशतभागस्य शतधा कल्पितस्य च । भागो जीवः स विज्ञेयः स चानन्त्याय कल्पते ॥ “यदि बाल के अग्रभाग को एक सौ भागों में विभाजित किया जाय और फिर इनमें से प्रत्येक भाग को एक सौ भागों में विभाजित किया जाय तो इस तरह के प्रत्येक भाग की माप आत्मा का परिमाप है ।” इसी प्रकार यही कथन निम्नलिखित श्लोक में मिलता है – केशाग्रशतभागस्य शतांशः सादृशात्मकः । जीवः सूक्ष्मस्वरूपोSयं संख्यातीतो हि चित्कणः ॥ “आत्मा के परमाणुओं के अनन्त कण हैं जो माप में बाल के अगले भाग (नोक) के दस हजारवें भाग के बराबर हैं ।” इस प्रकार आत्मा का प्रत्येक कण भौतिक परमाणुओं से भी छोटा है और ऐसे असंख्य कण हैं । यह अत्यन्त लघु आत्म-संफुलिंग भौतिक शरीर का मूल आधार है और इस आत्म-संफुलिंग का प्रभाव सारे शरीर में उसी तरह व्याप्त है जिस प्रकार किसी औषधि का प्रभाव व्याप्त रहता है । आत्मा की यह धरा (विद्युतधारा) सारे शरीर में चेतना के रूप में अनुभव की जाती हैं और यही आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण है । सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी समझ सकता है कि यह भौतिक संयोग के फलस्वरूप नहीं है, अपितु आत्मा के कारण है । मुण्डक उपनिषद् में (३.१.९) सूक्ष्म (परमाणविक) आत्मा की और अधिक विवेचना हुई है – एषोSणुरात्मा चेतसा वेदितव्यो यस्मिन्प्राणः पञ्चधा संविवेश । प्राणैश्र्चितं सर्वमोतं प्रजानां यस्मिन् विशुद्धे विभवत्येष आत्मा ॥ “आत्मा आकार में अणु तुल्य है जिसे पूर्ण बुद्धि के द्वारा जाना जा सकता है । यह अणु-आत्मा पाँच प्रकार के प्राणों में तैर रहा है (प्राण, अपान, व्यान, समान और उड़ान); यह हृदय के भीतर स्थित है और देहधारी जीव के पुरे शरीर में अपने प्रभाव का विस्तार करता है । जब आत्मा को पाँच वायुओं के कल्मष से शुद्ध कर लिया जाता है तो इसका आध्यात्मिक प्रभाव प्रकट होता है ।” हठ-योग का प्रयोजन विविध आसनों द्वारा उन पाँच प्रकार के प्राणों को नियन्त्रित करना है जो आत्मा की घेरे हुए हैं । यह योग किसी भौतिक लाभ के लिए नहीं, अपितु भौतिक आकाश के बन्धन से अणु-आत्मा की मुक्ति के लिए किया जाता है । इस प्रकार अणु-आत्मा को सारे वैदिक साहित्य ने स्वीकारा है और प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति अपने व्यावहारिक अनुभव से इसका प्रत्यक्ष अनुभव करता है । केवल मुर्ख व्यक्ति ही इस अणु-आत्मा को सर्वव्यापी विष्णु-तत्त्व के रूप में सोच सकता है । अणु-आत्मा का प्रभाव पुरे शरीर में व्याप्त हो सकता है । मुण्डक उपनिषद् के अनुसार यह अणु-आत्मा प्रत्येक जीव के हृदय में स्थित है और चूँकि भौतिक विज्ञानी इस अणु-आत्मा को माप सकने में असमर्थ हैं, उसे उनमें से कुछ यह अनुभव करते हैं कि आत्मा है ही नहीं । व्यष्टि आत्मा तो निस्सन्देह परमात्मा के साथ-साथ हृदय में हैं और इसीलिए शारीरिक गतियों की साड़ी शक्ति शरीर के इसी भाग से उद्भूत है । जो लाल रक्तगण फेफड़ों से आक्सीजन ले जाते हैं वे आत्मा से ही शक्ति प्राप्त करते हैं । अतः जब आत्मा इस स्थान से निकल जाता है तो रक्तोपादक संलयन (फ्यूज़न) बंद हो जाता है । औषधि विज्ञान लाल रक्तकणों की महत्ता को स्वीकार करता है, किन्तु वह यह निश्चित नहीं कर पाता कि शक्ति का स्त्रोत आत्मा है । जो भी हो, औषधि विज्ञान यह स्वीकार करता है कि शरीर की सारी शक्ति का उद्गमस्थल हृदय है । पूर्ण आत्मा के ऐसे अनुकणों की तुलना सूर्य-प्रकाश के कणों से की जाती है । इस सूर्य-प्रकाश में असंख्य तेजोमय अणु होते हैं । इसी प्रकार परमेश्र्वर के अंश उनकी किरणों के परमाणु स्फुलिंग है और प्रभा या परा शक्ति कहलाते हैं । अतः चाहे कोई वैदिक ज्ञान का अनुगामी हो या आधुनिक विज्ञान का, वह शरीर में आत्मा के अस्तित्व को नकार नहीं सकता । भगवान् ने स्वयं भगवद्गीता में आत्मा के इस विज्ञान का विशद वर्णन किया है । ----- Srimad Bhagavad Gita As It Is 2.17 avināśi tu tad viddhi yena sarvam idaṁ tatam vināśam avyayasyāsya na kaścit kartum arhati TRANSLATION That which pervades the entire body you should know to be indestructible. No one is able to destroy that imperishable soul. PURPORT This verse more clearly explains the real nature of the soul, which is spread all over the body. Anyone can understand what is spread all over the body: it is consciousness. Everyone is conscious of the pains and pleasures of the body in part or as a whole. This spreading of consciousness is limited within one’s own body. The pains and pleasures of one body are unknown to another. Therefore, each and every body is the embodiment of an individual soul, and the symptom of the soul’s presence is perceived as individual consciousness. This soul is described as one ten-thousandth part of the upper portion of the hair point in size. The Śvetāśvatara Upaniṣad (5.9) confirms this: bālāgra-śata-bhāgasya śatadhā kalpitasya ca bhāgo jīvaḥ sa vijñeyaḥ sa cānantyāya kalpate “When the upper point of a hair is divided into one hundred parts and again each of such parts is further divided into one hundred parts, each such part is the measurement of the dimension of the spirit soul.” Similarly the same version is stated: keśāgra-śata-bhāgasya śatāṁśaḥ sādṛśātmakaḥ jīvaḥ sūkṣma-svarūpo ’yaṁ saṅkhyātīto hi cit-kaṇaḥ “There are innumerable particles of spiritual atoms, which are measured as one ten-thousandth of the upper portion of the hair.” Therefore, the individual particle of spirit soul is a spiritual atom smaller than the material atoms, and such atoms are innumerable. This very small spiritual spark is the basic principle of the material body, and the influence of such a spiritual spark is spread all over the body as the influence of the active principle of some medicine spreads throughout the body. This current of the spirit soul is felt all over the body as consciousness, and that is the proof of the presence of the soul. Any layman can understand that the material body minus consciousness is a dead body, and this consciousness cannot be revived in the body by any means of material administration. Therefore, consciousness is not due to any amount of material combination, but to the spirit soul. In the Muṇḍaka Upaniṣad (3.1.9) the measurement of the atomic spirit soul is further explained: eṣo ’ṇur ātmā cetasā veditavyo yasmin prāṇaḥ pañcadhā saṁviveśa prāṇaiś cittaṁ sarvam otaṁ prajānāṁ yasmin viśuddhe vibhavaty eṣa ātmā “The soul is atomic in size and can be perceived by perfect intelligence. This atomic soul is floating in the five kinds of air (prāṇa, apāna, vyāna, samāna and udāna), is situated within the heart, and spreads its influence all over the body of the embodied living entities. When the soul is purified from the contamination of the five kinds of material air, its spiritual influence is exhibited.” The haṭha-yoga system is meant for controlling the five kinds of air encircling the pure soul by different kinds of sitting postures – not for any material profit, but for liberation of the minute soul from the entanglement of the material atmosphere. So the constitution of the atomic soul is admitted in all Vedic literatures, and it is also actually felt in the practical experience of any sane man. Only the insane man can think of this atomic soul as all-pervading viṣṇu-tattva. The influence of the atomic soul can be spread all over a particular body. According to the Muṇḍaka Upaniṣad, this atomic soul is situated in the heart of every living entity, and because the measurement of the atomic soul is beyond the power of appreciation of the material scientists, some of them assert foolishly that there is no soul. The individual atomic soul is definitely there in the heart along with the Supersoul, and thus all the energies of bodily movement are emanating from this part of the body. The corpuscles which carry the oxygen from the lungs gather energy from the soul. When the soul passes away from this position, the activity of the blood, generating fusion, ceases. Medical science accepts the importance of the red corpuscles, but it cannot ascertain that the source of the energy is the soul. Medical science, however, does admit that the heart is the seat of all energies of the body. Such atomic particles of the spirit whole are compared to the sunshine molecules. In the sunshine there are innumerable radiant molecules. Similarly, the fragmental parts of the Supreme Lord are atomic sparks of the rays of the Supreme Lord, called by the name prabhā, or superior energy. So whether one follows Vedic knowledge or modern science, one cannot deny the existence of the spirit soul in the body, and the science of the soul is explicitly described in the Bhagavad-gītā by the Personality of Godhead Himself. ----- #krishna #iskconphotos #motivation #success #love #bhagavatamin #india #creativity #inspiration #life #spdailyquotes #devotion
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naveensarohasblog · 2 years
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part109
‘‘कबीर देव द्वारा ऋषि रामानन्द के आश्रम में दो रूप धारण करना’’
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स्वामी रामानन्द जी ने परमेश्वर कबीर जी से कहा कि ‘‘आपने झूठ क्यों बोला?’’ कबीर परमेश्वर जी बोले! कैसा झूठ स्वामी जी? स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि आप कह रहे थे कि आपने मेरे से नाम ले रखा है। आपने मेरे से उपदेश कब लिया? बालक रूपधारी कबीर परमेश्वर जी बोले एक समय आप स्नान करने के लिए पँचगंगा घाट पर गए थे। मैं वहाँ लेटा हुआ था। आपके पैरों की खड़ाऊँ मेरे सिर में लगी थी! आपने कहा था कि बेटा राम नाम बोलो। रामानन्द जी बोले-हाँ, अब कुछ याद आया। परन्तु वह तो बहुत छोटा बच्चा था (क्योंकि उस समय पाँच वर्ष की आयु के बच्चे बहुत बड़े हो जाया करते थे तथा पाँच वर्ष के बच्चे के शरीर तथा ढ़ाई वर्ष के बच्चे के शरीर में दुगुना अन्तर हो जाता है)। कबीर परमेश्वर जी ने कहा स्वामी जी देखो, मैं ऐसा था। स्वामी रामानन्द जी के सामने भी खड़े हैं और एक ढाई वर्षीय बच्चे का दूसरा रूप बना कर किसी सेवक की वहाँ पर चारपाई बिछी थी उसके ऊपर विराजमान हो गए।
रामानन्द जी ने छः बार तो इधर देखा और छः बार उधर देखा। फिर आँखें मलमल कर देखा कि कहीं तेरी आँखें धोखा तो नहीं खा रही हैं। इस प्रकार देख ही रहे थे कि इतने में कबीर परमेश्वर जी का छोटे वाला रूप हवा में उड़ा और कबीर परमेश्वर जी के बड़े पाँच वर्ष वाले स्वरूप में समा गया। पाँच वर्ष वाले स्वरूप में कबीर परमेश्वर जी रह गए।
रामानन्द जी बोले कि मेरा संशय मिट गया कि आप ही पूर्ण ब्रह्म हो। हे परमेश्वर! आपको कैसे पहचान सकते हैं। आप किस जाति में उत्पन्न तथा कैसी वेश भूषा में खड़े हो। हम नादान प्राणी आप के साथ वाद-विवाद करके दोषी हो गए, क्षमा करना परमेश्वर कविर्देव, मैं आपका अनजान बच्चा हूँ। रामानन्द जी ने फिर अपनी अन्य शंकाओं का निवारण करवाया।
शंका:- हे कविर्देव! मैं राम-राम कोई मन्त्रा शिष्यों को जाप करने को नहीं देता। यदि आपने मुझसे दीक्षा ली है तो वह मन्त्रा बताईए जो मैं शिष्य को जाप करने को देता हूँ।
उत्तर कबीर देव का:- हे स्वामी जी! आप ओम् नाम जाप करने को देते हो तथा ओ3म् भगवते वासुदेवाय नमः का जाप तथा विष्णु स्त्रोत की आवर्ती की भी आज्ञा देते हो।
शंका:- आपने जो मन्त्र बताया यह तो सही है। एक शंका और है उसका भी निवारण कीजिए। मैं जिसे शिष्य बनाता हूँ उसे एक चिन्ह देता हूँ। वह आपके पास नहीं है।
उत्तर:- बन्दी छोड़ कबीर देव बोले हे गुरुदेव! आप तुलसी की लकड़ी के एक मणके की कण्ठी (माला) गले में पहनने के लिए देते हो। यह देखो गुरु जी उसी दिन आपने अपनी कण्ठी गले से निकाल कर मेरे गले में पहनाई थी। यह कहते हुए कविर्देव ने अपने कुर्ते के नीचे गले में पहनी वही कण्ठी (माला) सार्वजनिक कर दी। रामानन्द जी समझ गए यह कोई साधारण बच्चा नहीं है। यह प्रभु का भेजा हुआ कोई तत्त्वदर्शी आत्मा है। इस से ज्ञान चर्चा करनी चाहिए। चर्चा के विषय को आगे बढ़ाते हुए स्वामी रामानन्द जी बोले हे बालक कबीर! आप अपने आपको परमेश्वर कहते हो परमात्मा ऐसा अर्थात् मनुष्य जैसा थोड़े ही है।
हे कबीर जी! उस स्थान (परम धाम) को यदि एक बार दिखा दे तो मन शान्त हो जाएगा। मैं वर्षों से ध्यान योग अर्थात् हठयोग करता हूँ। मैं समाधिस्थ होकर आकाश में बहुत ऊपर तक सैर कर आता हूँ। परमेश्वर कबीर जी ने कहा है स्वामी जी! आप समाधिस्थ होइए।
स्वामी रामानन्द जी का हठयोग ध्यान (मैडिटेशन) करना नित्य का अभ्यास था तुरन्त ही समाधिस्थ हो गए। समाधि दशा में स्वामी जी की सूरति (ध्यान) त्रिवेणी तक जाती थी। त्रिवेणी पर तीन रास्ते हो जाते हैं। बाँया रास्ता धर्मराज के लोक तथा ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के लोकों तथा स्वर्ग लोक आदि को जाता है। दायाँ रास्ता अठासी हजार खेड़ों (नगरियों) की ओर जाता है। सामने वाला रास्ता ब्रह्म लोक को जाता है। वह ब्रह्मरंद्र भी कहा जाता है। स्वामी रामानन्द जी कई जन्मों से साधना करते हुए आ रहे थे। ��स कारण से इनका ध्यान तुरन्त लग जाता था। बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी को ध्यान में आगे मिले तथा वहाँ का सर्व भेद रामानन्द जी को बताया। हे स्वामी जी! आप की भक्ति साधना कई जन्मों की संचित है। जिस समय आप शरीर त्याग कर जाओगे इस बाऐं रास्ते से जाओगे इस रास्ते में स्वचालित द्वार (एटोमैटिक खुलने वाले गेट) लगे है। जिस साधक की जिस भी लोक की साधना होती है। वह धर्मराय के पास जाकर अपना लेखा (।बबवनदज) करवाकर इसी रास्ते से आगे चलता है। उसी लोक का द्वार अपने आप खुल जाता है। वह द्वार तुरन्त बन्द हो जाता है। वह प्राणी पुनः उस रास्ते से लौट नहीं सकता। उस लोक में समय पूरा होने के पश्चात् पुनः उसी मार्ग से धर्मराज के पास आकर अन्य जीवन प्राप्त करता है।
धर्मराय का लोक भी उसी बाई और जाने वाले रास्ते में सर्व प्रथम है। उस धर्मराज के लोक में प्रत्येक की भक्ति अनुसार स्थान तय होता है। आप (स्वामी रामानन्द) जी की भक्ति का आधार विष्णु जी का लोक है। आप अपने पुण्यों को इस लोक में समाप्त करके पुनः पृथ्वी लोक पर शरीर धारण करोगे। यह हरहट के कूएं जैसा चक्र आपकी साधना से कभी समाप्त नहीं होगा। यह जन्म मृत्यु का चक्र तो केवल मेरे द्वारा बताए तत्त्वज्ञान द्वारा ही समाप्त होना सम्भव है। परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा हे स्वामी जी! जो सामने वाला द्वार है यह ब्रह्मरन्द्र है। यह वेदों में लिखे किसी भी मन्त्रा जाप से नहीं खुलता यह तो मेरे द्वारा बताए सत्यनाम (जो दो मन्त्रा का होता है एक ॐ मन्त्र तथा दूसरा तत् यह तत् सांकेतिक है वास्तविक नाम मन्त्रा तो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) के जाप से खुलता है। ऐसा कह कर परमेश्वर कबीर जी ने सत्यनाम (दो मन्त्रों के नाम) का जाप किया। तुरन्त ही सामने वाला द्वार (ब्रह्मरन्द्र) खुल गया। परमेश्वर कबीर जी अपने साथ स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को लेकर उस ब्रह्मरन्द्र में प्रवेश कर गए। पश्चात् वह द्वार तुरन्त बन्द हो गया। उस द्वार से निकल कर लम्बा रास्ता तय किया ब्रह्मलोक में गए आगे फिर तीन रास्ते हैं। बाई ओर एक रास्ता महास्वर्ग में जाता है। उस महास्वर्ग में नकली (क्नचसपबंजम) सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोकों की रचना काल ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा से करा रखी है। प्राणियों को धोखा देने के लिए। उन सर्व नकली लोकों को दिखा कर वापस आए। दाई और सप्तपुरी, ध्रुव लोक आदि हैं। सामने वाला द्वार वहाँ जाता है जहाँ पर गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म अपनी योग माया से छुपा रहता है। वहाँ तीन स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान क्षेत्र है। जिसमें काल ब्रह्म तथा दुर्गा (प्रकृति) देवी पति-पत्नी रूप में साकार रूप में रहते हैं। उस समय जिस पुत्र का जन्म होता है वह रजोगुण युक्त होता है। उसका नाम ब्रह्मा रख देता है उस बालक को युवा होने तक अचेत रखकर परवरिश करते हैं। युवा होने पर काल ब्रह्म स्वयं विष्णु रूप धारण करके अपनी नाभी से कमल का फूल प्रकट करता है। उस कमल के फूल पर युवा अवस्था प्राप्त होने पर ब्रह्मा जी को रख कर सचेत कर देता है। इसी प्रकार एक सतोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उसमें दोनों (दुर्गा व काल ब्रह्म) पति-पत्नी रूप में रह कर अन्य पुत्र सतोगुण प्रधान उत्पन्न करते हैं। उसका नाम विष्णु रखते हैं। उसे भी युवा होने तक अचेत रखते हैं। शेष शय्या पर सचेत करते हैं। अन्य शेषनाग ब्रह्म ही अपनी शक्ति से उत्पन्न करता है। इसी प्रकार एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उस में वे दोनों (दुर्गा तथा काल ब्रह्म) पति-पत्नी व्यवहार से तमोगुण प्रधान पुत्र उत्पन्न करते हैं। उसका नाम शिव रखते हैं। उसे भी युवा अवस्था प्राप्त होने तक अचेत रखते हैं। युवा होने पर तीनों को सचेत करके इनका विवाह, प्रकृति (दुर्गा) द्वारा उत्पन्न तीनों लड़कियों से करते हैं। इस प्रकार यह काल ब्रह्म अपना सृष्टि चक्र चलाता है।
परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को वह रास्ता दिखाया तथा इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में फिर तीन रास्ते है बाई ओर फिर नकली सतलोक, अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोक की रचना की हुई है। दाई ओर बारह भक्तों का निवास स्थान बनाया है, जिनको अपना ज्ञान प्रचारक बनाकर जनता को शास्त्रविरूद्ध ज्ञान पर आधारित करवाता है। सामने वाला द्वार तप्त शिला की ओर जाता है। जहाँ पर यह काल ब्रह्म एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सुक्ष्म शरीरों को तपाकर उनसे मैल निकाल कर खाता है। उस काल ब्रह्म के उस लोक के ऊपर एक द्वार है जो परब्रह्म (अक्षर पुरूष) के सात शंख ब्रह्मण्डों में खुलता है। परब्रह्म के ब्रह्मण्डों के अन्तिम सिरे पर एक द्वार है जो सत्यपुरूष (परम अक्षर ब्रह्म) के लोक सत्यलोक की भंवर गुफा में खुलता है। फिर आगे सत्यलोक है जो वास्तविक सत्यलोक है। सत्यलोक में पूर्ण परमात्मा कबीर जी अन्य तेजोमय मानव सदृश शरीर में एक गुबन्द (गुम्मज) में एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं। वहाँ सत्यलोक की सर्व वस्तुऐं तथा सत्यलोक वासी सफेद प्रकाश युक्त हैं। सत्यपुरूष के शरीर का प्रकाश अत्यधिक सफेद है। सत्यपुरूष के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश एक लाख सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिलेजुले प्रकाश से भी अधिक है। परमेश्वर कबीर जी स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को साथ लेकर सत्यलोक में गए। वहाँ सर्व आत्माओं का भी मानव सदृश शरीर है। उनके शरीर का भी सफेद प्रकाश है। परन्तु सत्यलोक निवासियों के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों के प्रकाश के समान है। बालक रूपधारी कविर्देव ने अपने ही अन्य स्वरूप पर चंवर किया। जो स्वरूप अत्यधिक तेजोमय था तथा सिंहासन पर एक सफेद गुबन्द में विराज मान था। स्वामी रामानन्द जी ने सोचा कि पूर्ण परमात्मा तो यह है जो तेजोमय शरीर युक्त है। यह बाल रूपधारी आत्मा कबीर यहाँ का अनुचर अर्थात् सेवक होगा। स्वामी रामानन्द जी ने इतना विचार ही किया था। उसी समय सिंहासन पर विराजमान तेजोमय शरीर युक्त परमात्मा सिंहासन त्यागकर खड़ा हो गया तथा बालक कबीर जी को सिंहासन पर बैठने के लिए प्रार्थना की नीचे से रामानन्द जी के साथ गया बालक कबीर जी उस सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा वह तेजोमय शरीर धारी प्रभु बालक के सिर पर श्रद्धा से चंवर करने लगा। रामानन्द जी ने सोचा यह परमात्मा इस बच्चे पर चंवर करने लगा। यह बालक यहां का नौकर (सेवक) नहीं हो सकता। इतने में तेजोमय शरीर वाला परमात्मा उस बालक कबीर जी के शरीर में समा गया। बालक कबीर जी का शरीर उसी प्रकार उतने ही प्रकाश युक्त हो गया जितना पहले सिंहासन पर बैठे पुरूष (परमेश्वर) का था। इतनी लीला करके स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को वापस शरीर में भेज दिया। महर्षि रामानन्द जी ने आँखे खोल कर देखा तो बालक रूपधारी परमेश्वर कबीर जी को सामने भी बैठा पाया। महर्षि रामानन्द जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि यह बालक कबीर जी ही परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् वासुदेव (कुल का मालिक) है। दोनों स्थानों (ऊपर सत्यलोक में तथा नीचे पृथ्वी लोक में) पर स्वयं ही लीला कर रहा है। यही परम दिव्य पुरूष अर्थात् आदि पुरूष है। सत्यलोक में जहाँ पर यह परमात्मा मूल रूप में निवास करता है वह सनातन परमधाम है। परमेश्वर कबीर जी ने इसी प्रकार सन्त गरीबदास जी महाराज छुड़ानी (हरयाणा) वाले को सर्व ब्रह्मण्डों को प्रत्यक्ष दिखाया था। उनका ज्ञान योग खोल दिया था तथा परमेश्वर ने गरीबदास जी महाराज को स्वामी रामानन्द जी के विषय में बताया था कि किस प्रकार मैंने स्वामी जी को शरण में लिया था। महाराज गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी में उल्लेख किया है।
तहाँ वहाँ चित चक्रित भया, देखि फजल दरबार। गरीबदास सिजदा किया, हम पाये दीदार।।
बोलत रामानन्द जी सुन कबिर करतार। गरीबदास सब रूप में तुमही बोलनहार।।
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणें उतरे हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम सन्त हो तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस।।
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि भर्म कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरै दृढ विश्वास।।
सुन बे सुन से तुम परे, ऊरै से हमरे तीर। गरीबदास सरबंग में, अविगत पुरूष कबीर।।
कोटि-2 सिजदा किए, कोटि-2 प्रणाम। गरीबदास अनहद अधर, हम परसे तुम धाम।।
बोले रामानन्द जी, सुनों कबीर सुभान। गरीबदास मुक्ता भये, उधरे पिण्ड अरू प्राण।।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ:- सत्यलोक में तथा काशी नगर में पृथ्वी पर दोनों स्थानों पर परमात्मा कबीर जी को देख कर स्वामी रामानन्द जी ने कहा है कबीर परमात्मा आप दोनों स्थानों पर लीला कर रहे हो। आप ही निज ब्रह्म अर्थात् गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि उत्तम पुरूष अर्थात् वास्तविक परमेश्वर तो क्षर पुरूष (काल ब्रह्म) तथा अक्षर पुरूष (परब्रह्म) से अन्य ही है। वही परमात्मा कहा जाता है। जो तीनों लोकों ��ें प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है वह परम अक्षर ब्रह्म आप ही हैं। आप ही की शक्ति से सर्व प्राणी गति कर रहे हैं। मैंने आप का वह सनातन परम धाम आँखों देखा है तथा वास्तविक अनहद धुन तो ऊपर सत्यलोक में है। ऐसा कह कर स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर के चरणों में कोटि-2 प्रणाम किया तथा कहा आप परमेश्वर हो, आप ही सतगुरु तथा आप ही तत्त्वदर्शी सन्त हो आप ही हंस अर्थात् नीर-क्षीर को भिन्न-2 करने वाले सच्चे भक्त के गुणों युक्त हो। कबीर भक्त नाम से यहाँ पर प्रसिद्ध हो वास्तव में आप परमात्मा हो। मैं आपका भक्त आप मेरे गुरु जी। परमेश्वर कबीर जी ने कहा हे स्वामी जी ! गुरु जी तो आप ही रहो। मैं आपका शिष्य हूँ। यह गुरु परम्परा बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है। यदि आप मेरे गुरु जी रूप में नहीं रहोगे तो भविष्य में सन्त व भक्त कहा करेंगे कि गुरु बनाने की कोई अवश्यकता नहीं है। सीधा ही परमात्मा से ही सम्पर्क करो। ‘‘कबीर’’ ने भी गुरु नहीं बनाया था।
हे स्वामी जी! काल प्रेरित व्यक्ति ऐसी-2 बातें बना कर श्रद्धालुओं को भक्ति की दिशा से भ्रष्ट किया करेंगे तथा काल के जाल में फाँसे रखेंगे। इसलिए संसार की दृष्टि में आप मेरे गुरु जी की भूमिका कीजिये तथा वास्तव में जो साधना की विधि मैं बताऊँ आप वैसे भक्ति कीजिए। स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर जी की बात को स्वीकार किया। कबीर परमेश्वर जी एक रूप में स्वामी रामानन्द जी को तत्त्वज्ञान सुना रहे थे तथा अन्य रूप धारण करके कुछ ही समय उपरान्त अपने घर पर आ गए। क्योंकि वहाँ नीरू तथा नीमा अति चिन्तित थे। बच्चे को सकुशल घर लौट आने पर नीरू तथा नीमा ने परमेश्वर का शुक्रिया किया। अपने बच्चे कबीर को सीने से लगा कर नीमा रोने लगी तथा बच्चे को अपने पति नीरू के पास ले गई। नीरू ने भी बच्चे कबीर से प्यार किया। नीरू ने पूछा बेटा! आपको उन ब्राह्मणों ने मारा तो नहीं? कबीर जी बोले नहीं पिता जी! स्वामी रामानन्द जी बहुत अच्छे हैं। मैंने उनको गुरु बना लिया है। उन्होंने मुझको सर्व ब्राह्मण समाज के समक्ष सीने से लगा कर कहा यह मेरा शिष्य है। आज से मैं सर्व हिन्दू समाज के सर्व जातियों के व्यक्तियों को शिष्य बनाया करूँगा। माता-पिता (नीरू तथा नीमा) अति प्रसन्न हुए तथा घर के कार्य में व्यस्त हो गए।
स्वामी रामानन्द जी ने कहा हे कबीर जी! हम सर्व की बुद्धि पर पत्थर पड़े थे आपने ही अज्ञान रूपी पत्थरों को हटाया है। बड़े पुण्यकर्मों से आपका दर्शन सुलभ हुआ है।
(यह शब्द अगम निगम बोध के पृष्ठ 38 पर लिखा है।)
मेरा नाम कबीरा हूँ जगत गुरू जाहिरा।(टेक)
तीन लोक में यश है मेरा, त्रिकुटी है अस्थाना। पाँच-तीन हम ही ने किन्हें, जातें रचा जिहाना।।
गगन मण्डल में बासा मेरा, नौवें कमल प्रमाना। ब्रह्म बीज हम ही से आया, बनी जो मूर्ति नाना।।
संखो लहर मेहर की उपजैं, बाजै अनहद बाजा। गुप्त भेद वाही को देंगे, शरण हमरी आजा।।
भव बंधन से लेऊँ छुड़ाई, निर्मल करूं शरीरा। सुर नर मुनि कोई भेद न पावै, पावै संत गंभीरा।।
बेद-कतेब में भेद ना पूरा, काल जाल जंजाला। कह कबीर सुनो गुरू रामानन्द, अमर ज्ञान उजाला।।
अब विश्व की उत्पत्ति (सृष्टि रचना) का ज्ञान कराता हूँ जो स्वयं परमेश्वर ने अपने द्वारा रचे जगत का ज्ञान बताया है। आगे पढ़ें अध्याय 3 में।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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dhanashrisstuff · 1 year
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मराठीकट्टा कथा कविता आणि बरेच काही हे एक ऑनलाइन व्यासपीठ आहे ज्याचा उद्देश मराठी कथा, कविता आणि इतर संबंधित सामग्रीचा सर्वसमावेशक संग्रह प्रदान करणे आहे. मराठी साहित्य, संस्कृती आणि परंपरा यांना एकत्र आणण्याच्या दृष्टीकोनातून त्याची स्थापना करण्यात आली. ज्यांना मराठी भाषा आणि संस्कृतीशी जोडून राहायचे आहे त्यांच्यासाठी हे एक उत्तम स्त��रोत आहे.
एक सुंदर कविता
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helputrust · 2 years
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https://fb.me/e/1Fk5a65np | 08.05.2022, रक्तदान जागरूकता अभियान |
अंतरराष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस 8 मई के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की जनहित में आपसे साल में एक बार "रक्तदान" करने की अपील है l आप यदि स्वयं रक्त दान नहीं कर सकते, तो कृपया अपने प्रयास से एक मनुष्य को अवश्य प्रेरित करके "रक्तदान" में सहयोग व सहभागिता सुनिश्चित करवाए, इतनी सी आपसे प्रार्थना है |
क्या है थैलेसीमिया बीमारी ?
थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रक्त विकार है जो माता पिता से बच्चों में जाता है जिससे शरीर की हीमोग्लोबिन के निर्माण की प्रक्रिया ठीक से काम नहीं करती है और रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। दुनिया में लगभग 27 करोड़ थैलेसीमिया के मरीज हैं व भारत में इसकी संख्या लगभग 1 से 1.5 लाख है। जिनके जीवन को बचाने के लिये प्रति वर्ष लाखों यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है।
मुझे रक्तदान क्यों करना चाहिए ?            
1.   क्योंकि आप ही इसके एक मात्र स्त्रोत हैं l
2.   क्योंकि कई रोगियों को इसकी आवश्यकता होती है l
3.   क्योंकि आप स्वस्थ हैं l
4.   क्योंकि इससे आपको कोई नुकसान नहीं होता है l
5.   क्योंकि आप दूसरों की परवाह करते हैं l                          
रक्तदान करने पर क्या मुझे कमज़ोरी महसूस होगी ?
आपके शरीर में लगभग 5 से 6 लीटर रक्त होता है l आप केवल 350-450 मि. लीटर रक्त का दान करते हैं l जो कि 24 से 36 घंटों के अन्दर आपकी रक्त प्रणाली द्वारा वापस बन जाता है l आप रक्तदान करने के तुरंत बाद ही अपने काम पर जा सकते हैं l
मुझे यह कैसे पता चले कि मैं रक्तदान करने योग्य हूँ ?
आपके द्वारा रक्तदान तब ही किया जा सकता है, जब आपका हीमोग्लोबिन 12.5 से अधिक हो व चिकित्सक द्वारा स्वस्थ बताये गए हो l आपकी उम्र 18 से 60 वर्ष के मध्य हो और आपका वजन 40 किलो से अधिक हो l अगर आपको कभी कोई बीमारी हुई हो तो कृपया चिकित्सक को ज़रूर बताएं l यह आपके व मरीज की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है l
मुझे रक्त क्यों देना चाहिए, जबकि मैं इसे खरीदने में समर्थ हूँ ?
जो रक्त आप पैसे से खरीद सकते हैं जरुरी नहीं कि वह बीमारी रहित हो l इस रक्त के साथ बीमारी मरीज तक भी पहुँच सकती है l क्या आप अपने किसी प्रियजन की ज़िन्दगी को खतरे में डालना चाहते हैं ? यह समाज के गरीब वर्ग का शोषण भी है और इसे रोकना चाहिए l अगर आप रक्तदान करना चाहते हैं तो रक्तदान शिविर अथवा अपने नज़दीकी ब्लड बैंक में जाइये l
मैं रक्तदान कब कर सकता हूँ ?
आप सुरक्षात्मक तरीके से हर तीन माह में एक बार रक्तदान कर सकते हैं l कृपया अपने मित्रों को अवश्य साथ ले जाएं l
मुझे रक्तदान करने से क्या मिलेगा ?
कोई भी दान श्रेष्ठ होता है l रक्तदान सभी दानों में सर्वोत्तम है l क्योंकि यह एक मानव जीवन को बचाता है l किसी की ज़रूरत में मदद करना आपको संतुष्टि का अनुभव कराता है l
प्रत्येक रक्तदाता को धन्यवाद स्वरुप एक प्रशस्ति-पत्र तथा रक्तदाता कार्ड दिया जाता है, जिससे वह स्वयं व प्रियजनों के लिए जरुरत के समय रक्त प्राप्त कर सकते हैं l
रक्तदान शिविर / ब्लड बैंक में आपके ब्लड ग्रुप की जानकारी भी आपको दी जाती है l
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templeinindia · 1 year
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अमोघ शिव कवच बहुत की कल्याणकारी कवच है, इस कल्याणकारी एवं अति शीघ्र फल प्रदान करने वाले कवच  का कोई दूसरा सार ही नहीं है ।
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मंगलवार के दिन हनुमान जी को प्रसन्न करने के तरीके, बन जाएंगे सभी बिगड़े काम
ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि सप्ताह के सातों दिन कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में होने वाली समस्याओं से मुक्ति मिल सकती हैं। ऐसे ही मंगलवार के दिन के लिए भी ज्योतिष शास्त्र में उपाय बताए गए हैं।
✅ मंगलवार के दिन हनुमान जी को विशेष सामग्री चढ़ाएं। आप पांच पान के पत्ते लें और उस पर लड्डू रख कर हनुमान जी अर्पित करें। ऐसा कर आपको हनुमान जी का विशेष आशीर्वाद मिलेगा।
✅ एक पेपर पर अपनी परेशानियों को साफ-साफ लिख कर हनुमान जी व भगवान श्री राम के सामने रख दें। उसके बाद 51 बार राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। ऐसा करने से आपकी परेशानियां हल होना शुरू हो जाएंगी।
✅ मंगलवार के दिन हनुमान जी को गुड़ चढ़ाने का विशेष महत्व है। ऐसा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त होता। भगवान को अर्पित किया गुड़ आप भी ग्रहण करें। उसके बाद ही किसी काम पर जाएं।
✅ मंगलवार के दिन हनुमान जी के सामने अपने परेशानियों को बताएं। उसको हल करने के लिए प्रार्थना करें। उसके बाद गरीब जरूरतमंदों की सहायता करें। ऐसा करने से आपकी परेशानियां दूर हो जाएंगी।
Astrologer Subham Shastri Ji
Call : - +91- 9888520774
To Know More Visit: https://www.astrologersubhamshastri.com/
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hindunidhi · 5 days
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शिव के अनसुने किस्से: जानिए भोलेनाथ से जुड़े वो रहस्य जो आज भी हैं अनदेखे
भगवान शिव, जिन्हें भोलेनाथ, महादेव और शिवशंकर के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में सबसे पूजनीय देवताओं में से एक हैं। वे विनाश और सृजन के देवता हैं, और उन्हें भगवान विष्णु और ब्रह्मा के साथ त्रिमूर्ति का हिस्सा माना जाता है। भगवान शिव के जीवन से जुड़ी कई कहानियां और किस्से हैं, जिनमें से कुछ प्रसिद्ध हैं और कुछ अनसुनी।
भारतीय संस्कृति में भगवान शिव को उनकी अद्वितीयता और गौरव के लिए पूजा जाता है। वे सृष्टि के प्रारंभक, सर्वशक्तिमान, और संहारक हैं। उनके विभिन्न रूप, तप, और रहस्य भक्तों को आकर्षित करते हैं और उनके जीवन में अनगिनत किस्से और गहरे रहस्य हैं। ये रहस्य हमें उनके महत्वपूर्ण सिद्धांतों और जीवन की अद्वितीयता के प्रति जागरूक करते हैं।
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शिव चालीसा और शिव जी की आरती
भगवान शिव, जो हिन्दू धर्म में प्रमुख देव हैं, उनकी भक्ति से जुड़े स्त्रोत हैं। शिव चालीसा, जिसका अर्थ है "चालीस पद," भगवान शिव के गुणों, दिव्य कार्यों और महत्त्व का वर्णन करने वाली हार्दिक स्तुति है। ऐसा माना जाता है कि चालीसा का पाठ करने से शांति मिलती है, बाधाएं दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शिव आरती प्रकाश की भेंट चढ़ाने वाली प्रार्थना है, जिसमें भजन और मंत्र शामिल होते हैं। आरती करना कृतज्ञता व्यक्त करने और कल्याण एवं समृद्धि के लिए शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका है। ये दोनों स्त्रोत, पूजा के दौरान या व्यक्तिगत रूप से जपने पर, भगवान शिव की कृपा से जुड़ने के प्रभावी मार्ग हैं।
अनसुने किस्से:
नीलकंठ:
समुद्र मंथन के समय निकले विष को भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया था, जिसके कारण उनका कंठ नीला हो गया था।
गंगा अवतरण:
भगवान शिव ने देवी गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया था, जिससे गंगा नदी पृथ्वी पर अवतरित हुई थी।
त्रिशूल धारण:
भगवान शिव के त्रिशूल के तीन अंक ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करते हैं।
नटराज:
नटराज स्वरूप में भगवान शिव नृत्य करते हुए ब्रह्मांड के निर्माण, विनाश और पुनर्निर्माण का प्रतीक हैं।
सोमनाथ:
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भगवान चंद्रमा ने सोमनाथ में उनकी पूजा की थी।
अर्धनारीश्वर:
शिव के अर्धनारीश्वर रूप का महत्वपूर्ण संदेश है। यह रूप शिव और पार्वती माता के आपसी मेल-जोल को दर्शाता है, और सृष्टि के द्वंद्वों को समानता और संतुलन के माध्यम से प्रतिष्ठित करता है।
शिव और विष्णु:
शिव और विष्णु के बीच आध्यात्मिक युद्ध का कथन भी महत्वपूर्ण है। यह युद्ध ब्रह्मा की गलतियों को सुधारने के लिए हुआ था और इससे हमें धर्म और न्याय के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का संदेश मिलता है।
महाकाल:
शिव को "महाकाल" के रूप में भी पूजा जाता है, जो समय और मृत्यु का प्रतिनिधित्व करता है। इससे हमें समय के महत्व और जीवन के मूल्य की याद दिलाई जाती है।
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prakhar-pravakta · 10 days
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श्री रामानुज वैष्णव मंडल की भजन कीर्तन 21 अप्रैल को रीवा रोड फ्लाई ओवर के पास विंध्या गार्डन के पीछे
सतना श्री रामानुज वैष्णव मंडल द्वारा दिनांक 21  अप्रैल 2024 दिन रविवार को दोपहर ठीक 4.30 बजे से रीवा रोड विंध्या गार्डन के पीछे सुनीता गुप्ता जी के निवास में भजन संकीर्तन का आयोजन किया गया है मंडल के व्यवस्थापक श्री बद्री प्रसाद गुप्ता ने सभी वैष्णव भागवतों से आग्रह किया है की 21 अप्रैल 2024 को 4.30 बजे सुनीता गुप्ता  के निवास में सपरिवार पहुंचे और भजन संकीर्तन, छंद,छप्पै,स्त्रोत पाठ के साथ…
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dgnews · 12 days
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मन से रावण जो निकाले राम उसके मन में हैं : समाजसेवी पंकज जैन जिनके मन में है श्री राम, भाग्य में हैं उसके वैकुण्ठ धाम : समाजसेवी पंकज जैन श्रीराम नवमी के पावन पर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं : समाजसेवी पंकज जैन
आगरा। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राम नवमी मनाई जाती है। इस दिन प्रभु श्रीराम धरती पर अवतरित हुए थे। इस साल 17 अप्रैल को राम नवमी का त्योहार मनाया जा रहा है। इस शुभ अवसर पर समाजसेवी पंकज जैन ने कहा कि “भगवान राम हम सबके आराध्य हैं, प्रेरणा स्त्रोत हैं। उनका न्याय और सामाजिक समानता पर आधारित जीवन हर सच्चरित्र इंसान के लिए एक आदर्श है।”तो आइए, श्रीराम नवमी के पावन पर्व पर हम…
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