चलो गणतंत्र दिवस मनाते हैं
अपनी माटी का तिलक लगाते हैं
लोकतंत्र के इस राष्ट्रीय पर्व पर चलिए आज एक शपथ खाते हैं
नफरत को मिटा कर दिलों में प्यार बसाएंगे
तेरा - मेरा नहीं ये देश तो हमारा है सब को समझाएंगे
हम सब मिलकर अपने देश का मान बढ़ाएंगे
जरूरत पड़ गई कभी अगर वतन पर न्योछावर हम अपने प्राण कर जाएंगे
मजाल जो हुई किसी की बुरी नीयत से तिरंगा छूने की
उसका सिर वहीं धड़ से अलग कर आएंगे
राष्ट्र पर हरगिज़ अब आंच ना आने देंगे
शहीदों के खून से मिली है आजादी इसे व्यर्थ न जाने देंगे
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सब है भाई भाई क्योंकि भारती है हमारी माई, यही है सच्चाई।
अभिमान है मुझे कि मैं इस देश की बेटी कहलाइ।
चलो सब मिलकर ध्वज फहराते हैं
भारत मां की जय जयकार गाते हैं
अपने तिरंगे को सलामी दे आते हैं
आज जो खाई है शपथ वह फिर दुहराते हैं
झुक कर अपने देश की मिट्टी चूम आते हैं।
चलो गणतंत्र का शुभ पर्व मनाते हैं
उन वीर सपूतों को प्रणाम कर आते हैं
जिनके बलिदानों से आज हम स्वतंत्रता का सुख भोग पाते हैं
हम उन महान आत्माओं को साक्षी मान प्रण लेते हैं
अखंड भारत की अखंडता बरकरार रखेंगे
हम सदा ऐसे ही अपने प्यारे राष्ट्र का मान रखेंगे
कतरे - कतरे में अपने हम हिंदुस्तान रखेंगे।
चलो यह लोक पर्व मनाते हैं
घर-घर तिरंगा लहराते हैं
एक दूजे को गले लगाते हैं
भारतीय हैं हम सब को गर्व से बताते हैं।
मिले बार-बार जन्म हमें इसी वतन में प्रभु से प्रार्थना कर आते हैं
चलो गणतंत्र दिवस मनाते हैं
अपनी माटी का तिलक लगाते हैं।
@PratimaPandey
©PratimaPandey
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गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं। 🙂🙏
जय हिंद । जय भारत ।
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तुमसे पूछे कोई
तुमने मुझको कहां खो दिया
तो बतला देना के ख्वाबों के दर्मिया
बड़ी मुश्किल से तो मिलती हैं नौकरियां
साक्षात्कार वाले दिन ही मैं था सो गया
बस किस्सा ही खत्म हो गया ।
@Pratima Pandey
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अंजाने में हुई गलतियों का वो नहीं मानते हैं बुरा
जान कर जो कर रहे हैं खता उन्हें नहीं बख्शेंगे खुदा ।
@Pratima Pandey
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जरा -जरा सी रोशनी
अंधेरे रास्तों पर है ये मंजिलों की वाहिनी ..।
@Pratima Pandey
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हमारी राष्ट्रभाषा
भारत की भाषा रूपी स्तम्भ है वो
विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाती है जो
पूरी दुनिया में हमें पहचान दिलाती है वो
अत्यंत प्राचीन समृद्ध और सरल है वह भाषा
देश की संस्कृति और संस्कारों की है वो छाया
हमारा सम्मान स्वाभिमान और गर्व है हमारी राष्ट्रभाषा ।
@Pratima Pandey
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#10january
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मुसाफिर-ए-इश्क..।❤️
जिस पेड़ के नीचे बैठ कर तुम गुनगुनाया करते थे,
उसी पेड़ की डाली पर तोता- मैना शाम बिताने आया करते थे!
मुझे याद है कैसे हम - तुम एक दूजे को देख मस्काया करते थे।
मेरे घर की खिड़की के दरवाज़े उसकी एक टहनी से हाथ मिलाया करते थे,
जब रोज़ शाम को हम चाय लिए बरामदे में आ जाय करते थे।
तरह -तरह के गाने गाकर तब तुम मेरा मन बहलाया करते थे।
कुछ तो था जो बस शुरू हुआ था,
कैसे दूर -दूर होकर भी हम तुम पास रहा करते थे,
दोनों ही एक दूसरे के लिए खास रहा करते थे!
एक सच से हम - तुम अंजान थे,
श्याद दोनों ही नादान थे।
जो शुरू हुआ था ,उसे खत्म होना ही था।
मूसाफिरों को अपना अपना घर छोड़ना ही था,
एक ठिकाने को हम - तुम घर समझ बैठे थे,
छप्पर को घर की छत समझ बैठे थे।
अपने - अपने सफ़र पर हम - तुम चल दिए थे,
मगर उस पेड़ पर यादों के निशान कई थे।
सुना है अब भी रहेतें हैं हम - तुम वहां, तोता - मैना की जुबानी वो पेड़ जब भी सुनाता है हमारी कहानी.....।
@Pratima Pandey
#DPratima
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मंजिल
देर से ही सही तू मिलेगी जरूर ।
मेरी अंधेरी रातों का ,तू ही तो है उम्मीद ए नूर,
मुझे तब भी था ,मुझे अब भी है खुद की मेहनत पर गुरूर।
सितम कितने भी वक़्त कर ले ,मुझे हारने को कर ना पाएगा मजबूर
तेरे मिलने तलक, चलती रहूंगी मैं जरूर ।
हर सजा मुझे है अभी मंजूर,
सुना है मेहनत का फल मीठा होता है बहुत।
मस्किलें मुझे अब ना रख पाएंगी तुझसे दूर,
मेरे हौसलें कहते हैं ,तुझसे मुलाकात से पहले
चाटनी पड़ती है ,सभी को धूर।
क्या हुआ ! जो गिर गई, उठ के झट से दौड़ूंगी जरूर,
तेरे मिलने तलक, चलती रहूंगी मैं जरूर ।
@Pratima Pandey
#DPratima
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मुसाफिर-ए-इश्क..।❤️
जिस पेड़ के नीचे बैठ कर तुम गुनगुनाया करते थे,
उसी पेड़ की डाली पर तोता- मैना शाम बिताने आया करते थे!
मुझे याद है कैसे हम - तुम एक दूजे को देख मस्काया करते थे।
मेरे घर की खिड़की के दरवाज़े उसकी एक टहनी से हाथ मिलाया करते थे,
जब रोज़ शाम को हम चाय लिए बरामदे में आ जाय करते थे।
तरह -तरह के गाने गाकर तब तुम मेरा मन बहलाया करते थे।
कुछ तो था जो बस शुरू हुआ था,
कैसे दूर -दूर होकर भी हम तुम पास रहा करते थे,
दोनों ही एक दूसरे के लिए खास रहा करते थे!
एक सच से हम - तुम अंजान थे,
श्याद दोनों ही नादान थे।
जो शुरू हुआ था ,उसे खत्म होना ही था।
मूसाफिरों को अपना अपना घर छोड़ना ही था,
एक ठिकाने को हम - तुम घर समझ बैठे थे,
छप्पर को घर की छत समझ बैठे थे।
अपने - अपने सफ़र पर हम - तुम चल दिए थे,
मगर उस पेड़ पर यादों के निशान कई थे।
सुना है अब भी रहेतें हैं हम - तुम वहां, तोता - मैना की जुबानी वो पेड़ जब भी सुनाता है हमारी कहानी.....।
@Pratima Pandey
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जीवन - चक्र..!
हर शाम के बाद सहर है आती,
हर सहर के बाद है आती शाम।
क्यूं धीरज खोता है रे मन,
नहीं रहते सदा मौसम समान।
तेरे जीवन का ये अंधकार भी मिट जाएगा इक रोज,
नए प्रभात के संग तू करेगा फिर मौज ।
हंसले मुस्कुराले कोई गीत नया तू गाले
जीवन जो चला गया , नहीं आने वाला लौट।
@Pratima Pandey
#DPratima
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#DPratima
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