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#हम दो हमारे दो
shyam-kariya · 3 months
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हम सबको एक रोज़ एक दूसरे के लिए कविता लिखनी चाहिए।
डाकघर जाकर प्रेमपत्रों की मदद करनी चाहिए।
होस्टल की किसी मेज पर अकेले बैठे व्यक्ति को टोक कर उससे बातें करनी चाहिए।
मिलने की जगह तलाशते दो लोगों के लिए धरती पर पाँव भर ज़मीन ही सही पर अलग नाम कर देनी चाहिए।
किसी विद्रोह में हक के लिए जलाई गई एक आग- गाँव में बुझते चूल्हों में जिंदा होनी चाहिए।
हमारे बच्चे मासूम हैं अभी सब बचे न बचे मुल्क में उनके लिए उम्मीद बचनी चाहिए।
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cybergardenturtle · 5 months
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🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर पैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
#MiracleOfGodKabir_In_1513
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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helputrust · 3 months
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लखनऊ 30.01.2024 | पूरे संसार को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की पुण्यतिथि (शहीद दिवस) के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम के अंतर्गत हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्षवर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल तथा ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें सादर नमन किया |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, "आज हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 76वी पुण्यतिथि मना रहे हैं | गांधी जी ने अपने विचारों से विश्व के बड़े से बड़े नैतिक और राजनीतिक नेताओं को  प्रेरित किया | वे मानते थे कि किसी भी देश की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक प्रगति शिक्षा पर ही निर्भर करती है तथा उचित शिक्षा के अभाव में चरित्र निर्माण संभव नहीं है | महात्मा गांधी के विचारों ने दुनिया को नए बदलाव का पाठ पढ़ाने में महत्वपूर्णभूमिका निभाई और दुनियाभर के लोग प्रेरित हुए | महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने बापू को  कर कहा था कि, ‘भविष्य की पीढ़ियों को इस ब���त पर यकीन करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा इंसान कभी धरती पर आया था’ | आज गांधी जी हमारे बीच नहीं है, लेकिन आज भी हम उनके आदर्शों को नहीं भूले हैं । आइए हम सभी यह संकल्प लें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के पद चिन्हों पर चलकर अपने देश को प्रगति की राह पर अग्रसर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, जैसे कि यशस्वी प्रधानमंत्री परम आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी लगातार देश हित में कार्य कर रहे हैं ।भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी और नरेंद्र मोदी दो प्रमुख हस्तियां हैं, जिन्होंने देश के विकास में अलग-अलग भूमिका निभाई हैं । उनकी पृष्ठभूमि, सिद्धांत, नेतृत्व शैली और वैश्विक प्रभाव: सदैव देश हित में निहित है । जय हिंद, जय भारत | 
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवको की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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naveensarohasblog · 11 months
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पवित्र गीता जी का ज्ञान किसने दिया है ?
पवित्र गीता जी के ज्ञान को उस समय बोला गया था जब महाभारत का युद्ध होने जा रहा था ।अर्जुन ने युद्ध करने से इनकार कर दिया था ।युद्ध क्यों हो रहा था इस युद्ध को धर्म युद्ध की संज्ञा भी नहीं दी जा सकती है क्योंकि 2 परिवारों का संपत्ति वितरण का  विशेष था ।
कौरवों तथा पाण्डवों का संपत्ति बँटवारा नहीं हो रहा था।कौरवों ने पांडवों को आधा राज्य भी देने से मना कर दिया था । दोनों पक्षों का बीच बचाव करने के लिए प्रभु श्री कृष्ण जी 3 बार शांतिदूत बनकर गए । परंतु दोनों ही पक्ष अपनी अपनी ज़िद पर अटल रहे । श्री कृष्ण जीने युद्ध से होने वाली हानि से भी परिचित कराते हुए कहा कि न जाने कितनी बहनें विधवा होंगी और न जाने कितने बच्चे अनाथ होगे । महापाप के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा ।युद्ध में न जाने कौन मरेगा और कौन बचेगा ।तीसरी बार जब श्रीकृष्ण  जी समझौता कराने गए तो दोनों पक्षों ने अपने अपने पक्ष वाली राजाओं की सेना सहित सूची पत्र दिखाया तथा कहा कि  इतने राजा हमारे पक्ष में हैं और इतने राजा हमारे पक्ष में ।जब श्री कृष्ण जी ने देखा कि दोनों ही पक्ष टस से मस नहीं हो रहे है ,युद्ध के लिए तैयार हो चुके हैं। तब श्री कृष्ण जी ने सोचा कि एक दाव और है वह भी आज लगा देता हूँ ।श्री कृष्ण जी ने सोचा था कि पाण्डव कही मेरे संबंधी होने के कारण अपनी ज़िद पर इसलिए न छोड़ रहे हों कि श्री 53 हमारे साथ है विजय हमारी ही होगी क्योंकि श्री कृष्ण जी की बहन सुभद्रा जी का विवाह अर्जुन के साथ हुआ था श्री कृष्ण जी ने कहा एक तरफ़ मेरी सर्व सेना होगी और दूसरी तरफ़ मैं होऊँगा और इसके साथ मैं वचनबद्ध भी होता हूँ कि मैं हथियार नहीं भी नहीं उठाऊँगा ।
इस घोषणा से पांडवों की पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई उनको लगा कि अब हमारी हार निश्चित है ।यह विचार कर पांडव सभा से बाहर आ गए कि हम कुछ विचार कर लेते हैं । कुछ समय उपरांत श्री कृष्ण जी को सभा से बाहर आने की प्रार्थना की । श्री कृष्ण जी के बाहर आने पर पाण्डवों ने कहा कि हे भगवान, हमें 5 गाँव दिलवा दो ।हम युद्ध नहीं चाहते हैं ।हमारी इज़्ज़त भी रह जाएगी और आप चाहते हैं कि युद्ध न हो यह भी टल जाएगा ।
पांडवों के इस फ़ैसले से श्रीकृष्ण जी बहुत प्रसन्न हुए तथा सोचा कि बुरा समय टल गया ।सभा में केवल कौरव तथा उनके समर्थक शेष थे । मैं श्रीकृष्ण जी ने कहा दुर्योधन युद्ध टल गया है मेरी भी अपने गाड़ी यहीं हार्दिक इच्छा थी या आप पांडवों को पाँच गाँव दे दो, वे कह रहे हैं कि हम युद्ध नहीं चाहते हैं । दुर्योधन ने कहा कि पांडवों के लिए सुई की नोक तुल्य भी ज़मीन नहीं है यदि उन्हें चाहिए तो युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र के मैदान में आ जाएं । इस बात से श्रीकृष्ण जी नाराज़ होकर बोले कि दुर्योधन तो इंसान नहीं शैतान है कहाँ आधा राज्य और कहाँ पहुँच गाँव।…….
और अधिक जानकारी के लिए सुनिये जगत गुरू रामपाल जी महाराज के अमृत प्रवचन सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रों के आधार पर आधारित साधना टीवी पर रात्रि 7.30 बजे
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helputrust-harsh · 5 days
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धरोहर सेमिनार: हमारी धरोहर, हमारा उत्तरदायित्व | Dharohar Seminar: Our Heritage, Our Responsibility
लखनऊ, 15.09.2023 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (NCZCC) तथा समाज कार्य विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय सभ्यता और संस्कृति को समर्पित सांस्कृतिक कार्यक्रम "धरोहर" के अंतर्गत सेमिनार विषयक "हमारी धरोहर, हमारा उत्तरदायित्व" का आयोजन राधा कमल मुखर्जी सभागार, समाज कार्य विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय में किया गया |
सेमिनार में सम्मानित वक्तागण के रूप में पद्मश्री डॉ विद्या बिंदु सिंह, साहित्यकार, डॉ रवि भट्ट, इतिहासविद, प्रो विभूति राय, डीन, विज्ञान विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय, श्रीमती मीनू खरे, निदेशक, आकाशवाणी तथा प्रो श्री अनूप कुमार भरतिया, विभागाध्यक्ष, समाज कार्य विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने सहभागिता की | सेमिनार का शुभारंभ राष्ट्रगान एवं दीप प्रज्वलन से हुआ | सभी विद्वान वक्ताओं का ट्रस्ट की न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल तथा ट्रस्ट की आंतरिक सलाहकार समिति (जनसंपर्क) की सदस्य तथा सेमिनार की निवेदक वंदना त्रिभुवन सिंह द्वारा प्रशस्ति पत्र से सम्मान किया गया |
डॉ रूपल अग्रवाल ने सभी गणमान्य अतिथियों तथा श्रोताओं का स्वागत करते हुए कहा कि, धरोहर शब्द का अर्थ है विरासत जो कि हमें हमारे पूर्वजों से उपहार में मिली है | दुनिया भर में अनेक इमारतें हैं जिन्हें  देखकर यकीन नहीं होता कि उन्हें इंसान ने बनाया है | इमारत के साथ-साथ हमारी भाषा, धर्म, संस्कृति, साहित्य सभी कुछ हमारी विरासत है, हमारा उपहार है और यह हम सबका कर्तव्य बनता है कि हम इसको सहेज कर रखें, संभाल कर रखें | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट समाज के सभी क्षेत्रों मे कार्य कर रहा है | ट्रस्ट द्वारा समय-समय पर धर्मार्थ, साँस्कृतिक, जागरूकता व अनेक प्रकार के कार्यक्रम कराए जाते हैं | आप सभी से अनुरोध है कि ट्रस्ट को उसके जन सेवा कार्यों मे अपना सहयोग प्रदान करें तथा यह संकल्प लें कि अपनी धरोहर, अपनी विरासत को संभाल कर रखेंगे एवं भारत का नाम विश्व पटल पर सुनहरे अक्षरों में अंकित करेंगे |
प्रोफेसर अनूप कुमार भरतिया ने भारत देश की धरोहर पर प���रकाश डालते हुए कहा कि, समय के अनुसार हर एक चीज परिवर्तित होती जाती है और उसकी प्रकृति में भी परिवर्तन होता जाता है | हमें हमारी संस्कृति, विश्वास और परंपराओं को पूरी तरह से आत्मसात करना चाहिए | पहले के समय में लोगों में सहयोग की भावना होती थी अगर कहीं शादी होती थी तो पूरा गांव शादी की तैयारी में जुट जाता था | लेकिन आज यह संस्कृति समाप्त हो चुकी है आज सारा काम घर वाले नहीं बाहर वाले करते हैं और इसी वजह से लोगों के बीच आत्मीयता कम हो गई है | हमें अपनी उसी आत्मीयता के साथ अपनी धरोहर का अपनी विरासत का संरक्षण करना चाहिए व लोगों को भी इसके लिए जागरूक करना चाहिए | 
प्रोफेसर विभूति राय ने लखनऊ विश्वविद्यालय का इतिहास बताते हुए कहा कि, लखनऊ विश्वविद्यालय एक ऐतिहासिक बिल्डिंग है और करीब 20 वर्ष पूर्व विश्वविद्यालय का नाम बदलने का प्रयास किया, जिसके खिलाफ सभी शिक्षकों को लेकर हम लोगों ने तत्कालीन सरकार के खिलाफ अनशन किया, प्रोटेस्ट मार्च निकाला और कुछ ऐतिहासिक ऐसे पत्र आदि मिल गए जिसके अनुसार इस विश्वविद्यालय का नाम बदला नहीं जा सका |
डॉ रवि भट्ट ने भारतीय इतिहास, संवाद, संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, धरोहर दो प्रकार की होती है, एक मूर्त और एक अमूर्त | मूर्त धरोहर वह धरोहर है जिसे हम छू सकते हैं, देख सकते हैं जैसे हमारी इमारतें लेकिन अमूर्त धरोहर को हम सिर्फ महसूस कर सकते हैं जैसे हमारी भाषा, संस्कृति, साहित्य आदि | मेरा ऐसा मानना है कि हमें मूर्त धरोहर के साथ-साथ अमूर्त धरोहर को सहेज कर रखना चाहिए क्योंकि अमूर्त धरोहर जैसे अपनी भाषा, संस्कृति, साहित्य, इतिहास के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठा करके हम आने वाली पीढ़ियों को जागरूक कर सकते हैं |
पद्मश्री डॉ विद्या बिंदु सिंह ने बताया कि किसी भी देश की धरोहर के आधार पर किसी भी राष्ट्र के महत्व का मूल्यांकन होता है ।मूर्त धरोहर में स्थापत्य कलाएं मूर्तियां चित्र आदि हैं और अमूर्त में जिन्हें देखा नहीं जा सकता वह धरोहर है। पूर्वजों से प्राप्त संस्कार, साहित्य, संगीत, कला संस्कृति के रूप में हम सुरक्षित इसे पाते हैं । इन सब का संरक्षण और भावी पीढ़ियों में इनका प्रसार करना हम सभी का दायित्व है ।
डॉ जानिसार आलम, असिस्टेंट प्रोफेसर, उर्दू विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने सेमिनार में अपना पेपर प्रस्तुतीकरण किया |
छात्र-छात्राओं ने विद्वान वक्ताओं से भारतीय धरोहर एवं विरासत के बारे में कई प्रश्न पूछे जिसका उत्तर पाकर उनके चेहरे खुशी से खिल उठे | प्रश्न पूछने वाले छात्र-छात्राओं को ट्रस्ट द्वारा सम्मानित किया गया |
सेमिनार में डॉ शिखा सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, समाज कार्य विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, स्वयंसेवकों व मीडिया कर्मियों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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sstkabir-0809 · 6 months
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( #MuktiBodh_Part117 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part118
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 231
◆ वाणी नं. 146 :-
गरीब, बाण लगाया बालिया, प्रभास क्षेत्र कै मांहि।
सुक्ष्म देही स्वर्गहिं गये, यहां कुछ बिछर्या नाहिं।।146।।
◆ सरलार्थ :- श्री कृष्ण जी के पैर में बालिया नामक शिकारी ने तीर मारा। श्री कृष्ण जी की मृत्यु हो गई, परंतु सुक्ष्म शरीर स्वर्ग चला गया।(146)
◆ वाणी नं. 147- 149 :-
गरीब, दुर्बासा कोपे तहां, समझ न आई नीच।
छप्पन कोटि जादौं कटे, मची रुधिर की कीच।।147।।
गरीब, गूदड़ गर्भ बनाय करि, कीन्हीं बहुत मजाक।
डरिये सांई संत सैं, सुखदे बोलै साख।।148।।
गरीब, दश हजार पुत्र कटे, गोपी काब्यौं लूटि।
गनिका चढी बिवान में, भाव भक्ति सें छूटि।।149।।
◆ सरलार्थ :- एक समय दुर्वासा ऋषि द्वारिका नगरी के पास वन में आकर ठहरा। धूना अग्नि लगाकर तपस्या करने लगा। दुर्वासा ऋषि श्री कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरू थे।
{ऋषि संदीपनी श्री कृष्ण के अक्षर ज्ञान करवाने वाले शिक्षक (गुरू) थे।} दुर्वासा जी की ख्याति चारों ओर द्वारका नगरी में फैल गई कि ऐसे पहुँचे हुए ऋषि हैं। भूत, भविष्य तथा वर्तमान की सब जानते हैं। द्वारिका के निवासी श्री कृष्ण से अधिक किसी भी ऋषि व देव को नहीं मानते थे। उनको अभिमान था कि हमारे साथ श्री कृष्ण हैं। कोई भी देव, ऋषि व साधु हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। श्री कृष्ण को सर्वशक्तिमान मान रखा था।
द्वारिका के नौजवानों को शरारत सूझी। आपस में विचार किया कि साधु लोग ढोंगी होते हैं। इनकी पोल खोलनी चाहिए। चलो दुर्वासा ऋषि की परीक्षा लेते हैं। श्री कृष्ण के पुत्र प्रधूमन ने गर्भवती स्त्री का स्वांग धारण किया। पेट के ऊपर छोटा कड़ाहा बाँधा। उसके ऊपर रूई-लोगड़ रखकर वस्त्र बाँधकर स्त्री के कपड़े पहना दिए। उसका एक पति बना लिया। सात-आठ नौजवान यादव उनके साथ दुर्वासा के डेरे में गए और प्रणाम करके
निवेदन किया कि ऋषि जी आपका बहुत नाम सुना है कि आप भूत-भविष्य तथा वर्तमान की जानते हैं। ये पति-पत्नी हैं। इनके विवाह के बारह वर्ष बाद परमात्मा ने संतान की आश पूरी की है। ये यह जानना चाहते हैं कि गर्भ में लड़का होगा या लड़की। ये यह जानने के लिए उतावले हो रहे हैं। कृपया बताने का कष्ट करें। दुर्वासा ऋषि ने ध्यान लगाकर देखा तो सब समझ में आ गया। क्रोध में भरकर बोला, बताऊँ क्या होगा? सबने एक स्वर में कहा कि हाँ! ऋषि जी बताओ। दुर्वासा बोला कि इस गर्भ से यादव कुल का नाश होगा। चले जाओ यह���ँ से। सब भाग लिए। गाँव में बुद्धिमान बुजुर्गों को पता चला कि बच्चों ने ऋषि दुर्वासा के साथ मजाक कर दिया। ऋषि ने यादव कुल का नाश होने का शॉप दे दिया है। जुल्म हो गया। सब मरेंगे। अब क्या उपाय किया जाए? सब मिलकर अपने गुरू तथा राजा श्री कृष्ण जी के पास गए तथा सब हाल कह सुनाया। श्री कृष्ण जी से कहा कि इस कहर से आप ही बचा सकते हो। श्री कृष्ण जी ने कहा कि उन सब बच्चों को साथ लेकर ऋषि दुर्वासा के पास जाओ। इनसे क्षमा मँगवाओ। ��ुम भी बच्चों की ओर से क्षमा माँगो। सब मिलकर ऋषि दुर्वासा के पास गए तथा बच्चों से गलती की क्षमा याचना करवाई। स्वयं भी क्षमा याचना की। ऋषि दुर्वासा बोले कि वचन वापिस नहीं हो सकता। सब वापिस श्री कृष्ण के पास आए तथा कहा कि दुर्वासा के शॉप से बचने का उपाय बताऐं। श्री कृष्ण ने कहा कि जो-जो वस्तु गर्भ स्वांग में प्रयोग की थी। उनका नामों-निशान मिटा दो। उन्हीं से अपने कुल का नाश होना कहा है। कपड़े-रूई-लोगड़ को जलाकर उनकी राख को प्रभास क्षेत्रा में नदी में डाल दो। जो लोहे की कड़ाही है, उसे पत्थर पर घिसा-घिसाकर चूरा बनाकर प्रभास क्षेत्र में दरिया में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। द्वारिकावासियों ने अपने गुरू श्री कृष्ण जी के आदेश का पालन किया। लोहे की कड़ाही का एक कड़ा एक व्यक्ति को घिसाने के लिए दिया था। उसने कुछ घिसाया, पूरा नहीं घिसा। वैसे ही जमना दरिया में फैंक दिया।
घिसने से उस कड़े में चमक आ गई थी। एक मछली ने उसे खाने की वस्तु समझकर खा लिया। उस मछली को एक बालिया नाम के भील ने पकड़कर काटा तो कड़ा निकला। उसका लोहा पक्का था। बालिया ने उससे अपने तीर का आगे वाला हिस्सा विषाक्त बनवा
लिया। कड़ाहे का जो लोहे का चूर्ण दरिया में डाला था, उसका तेज-तीखे पत्तों वाला घास उग गया। पत्ते तलवार की तरह पैने थे। कपड़ों तथा रूई-लोगड़ (पुरानी रूई) की राख का
भी घास उग गया।
क्रमशः_________________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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essentiallyoutsider · 17 days
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जगहें
यहां आए नौ महीने पूरे हुए
बल्कि दस दिन ज्‍यादा
इतने में पनप सकता था एक जीवन
बदली जा सकती थी दुनिया
बच सकते थे बचे-खुचे जंगल
लिखी जा सकती थी एक कविता
या कोई उपन्‍यास, लंबी कहानी
पलट सकती थी सत्‍ताएं तानाशाहों की
मूर्त हो सकती थीं जिसके रास्‍ते
कुछ योजनाएं और थोड़ा बहुत लोकमंगल।
जगह बदलने से क्‍या बदल जाता है
जीवन भी और इतना कि पूर्ववर्ती जगहों
के अभाव में उपजे नए खालीपन से
घुल-मिल कर पुरानी एकरसताएं
नए भ्रम रचती हैं? क्‍या आदमी
वही रहता है और केवल धरा नचती है
दिशाएं ठगती हैं?
वैसे, हवा इधर बहुत तेज चलती है
लखपत के किले में जैसे हहराकर गोया
फंस गई हो ईंट-पत्‍थर के परकोटे में
भटकती हुई कहीं और से आकर
जबकि‍ पौधे बदल ही रहे हैं अभी पेड़ों में
जिन पर बसना बोलना सीख रहे
पक्षी सहसा चहचहा उठते हैं भ्रमवश
आधी रात फ्लड लाइट को समझ कर सूरज
और सहसा नींद उचट जाती है
अब जाकर जाना मैंने इतने दिन बाद
ठीक पांच बजे तड़के यहां भी
कहीं से एक ट्रेन धड़धड़ाती हुई आती है।
जगहें कितनी ही बदलीं मैंने पर
बनी रही मेरी सुबहों में ट्रेन की आवाज
धरती पर अलहदा जगहों को जोड़ती होंगी
शायद कुछ ध्‍वनियां, छवियां, कोई राज
मसलन, नहीं होती जहां रेल की पटरी
बजती थी वहां भी सुबह एक सीटी
जैसे गाजीपुर या चौबेपुर में पांच बजे ठीक
जबकि इंदिरापुरम में हुआ करता था
और अब शहादरे में भी काफी करीब है
रेलवे स्‍टेशन तो बनी हुई है
पुरानी लीक।
एक बालकनी है यहां भी
बिलकुल वैसी ही
खड़ा होकर जहां बची हुई दुनिया से
आश्‍वस्‍त होना मेरा कायम है आदतन
एक शगल की तरह जब तब
एक मैदान है हरे घास वाला
जैसा वहां था
और उसमें खेलते बच्‍चे भी
और कभी कभार टहलती हुई औरतें बेढब
दिलाती हैं भरोसा कि हवा कितनी ही
हो जाए संगीन बनी रहेगी उसमें सांस
हम सब की किसी साझे उपक्रम की तरह
उसे कैद करने की साजिशें अपने
उत्‍कर्ष पर हों जब।
देशकाल में स्थि��� यही कुछ छवियां हैं
कुछ ध्‍वनियां हैं
ट्रेन, बच्‍चे और औरतें
घास के मैदान, बालकनी और बढ़ते हुए पौधे
ये कहीं नहीं जाते
और हर कहीं चले आते हैं
हमारे साथ याद दिलाते
कि हमारे चले जाने के बाद भी
कायम रहती है हर जगह
एक भीतर और एक बाहर से
मिलकर ही बनती है हर जगह
और दोनों के ठीक बीचोबीच होने के
मुंडेर पर लटका आदमी कभी भीतर
तो कभी बाहर झांकते तलाशता है अर्थ
पाने और खोने के।
दो जगहों का फर्क जितना सच है
उतनी ही वास्‍तविक हैं खिड़कियां
भीत, परदे, मुंडेर और दीवारें
जिनसे बनती है जगहें और
जगहों को जाने वाले।
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kaumudi · 4 months
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है 
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है 
ہر ایک بات پہ کہتے ہو تم کہ تو کیا ہے
تمہیں کہو کہ یہ انداز گفتگو کیا ہے
न शो'ले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा 
कोई बताओ कि वो शोख़-ए-तुंद-ख़ू क्या है 
نہ شعلہ میں یہ کرشمہ نہ برق میں یہ ادا
کوئی بتاؤ کہ وہ شوخ تند خو کیا ہے
ये रश्क है कि वो होता है हम-सुख़न तुम से 
वगर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़ी-ए-अदू क्या है
یہ رشک ہے کہ وہ ہوتا ہے ہم سخن تم سے
وگرنہ خوف بد آموزی عدو کیا ہے
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन 
हमारे जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है 
چپک رہا ہے بدن پر لہو سے پیراہن
ہمارے جیب کو اب حاجت رفو کیا ہے
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा 
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है 
جلا ہے جسم جہاں دل بھی جل گیا ہوگا
کریدتے ہو جو اب راکھ جستجو کیا ہے
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल 
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
رگوں میں دوڑتے پھرنے کے ہم نہیں قائل
جب آنکھ ہی سے نہ ٹپکا تو پھر لہو کیا ہے
वो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़ 
सिवाए बादा-ए-गुलफ़ाम-ए-मुश्क-बू क्या है 
وہ چیز جس کے لیے ہم کو ہو بہشت عزیز
سوائے بادۂ گلفام مشک بو کیا ہے
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो-चार 
ये शीशा ओ क़दह ओ कूज़ा ओ सुबू क्या है
پیوں شراب اگر خم بھی دیکھ لوں دو چار
یہ شیشہ و قدح و کوزہ و سبو کیا ہے
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी 
तो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है
رہی نہ طاقت گفتار اور اگر ہو بھی
تو کس امید پہ کہیے کہ آرزو کیا ہے
हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता 
वगर्ना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है
ہوا ہے شہہ کا مصاحب پھرے ہے اتراتا
وگرنہ شہر میں غالبؔ کی آبرو کیا ہے
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bakaity-poetry · 1 year
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शायरी, कविता, नज़्म, गजल, सिर्फ दिल्लगी का मसला नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि कविता ने हमेशा इंसान को सांस लेने की सहूलियत दी है। जब चारों ओर से दुनिया घेरती है; घटनाओं और सूचनाओं के तेज प्रवाह में हमारा विवेक चीजों को छान-घोंट के अलग-अलग करने में नाकाम रहता है; और विराट ब्रह्मांड की शाश्वत धक्कापेल के बीच किसी किस्म की व्यवस्था को देख पाने में असमर्थ आदमी का दम घुटने लगता है; जबकि उसके पास उपलब्ध भाषा उसे अपनी स्थिति बयां कर पाने में नाकाफी मालूम देती है; तभी वह कविता की ओर भागता है। जर्मन दार्शनिक विटगेंस्टाइन कहते हैं कि हमारी भाषा की सीमा जितनी है, हमारा दुनिया का ज्ञान भी उतना ही है। यह बात कितनी अहम है, इसे दुनिया को परिभाषित करने में कवियों के प्रयासों से बेहतर समझा जा सकता है।
कबीर को उलटबांसी लिखने की जरूरत क्यों पड़ी? खुसरो डूबने के बाद ही पार लगने की बात क्यों कहते हैं? गालिब के यहां दर्द हद से गुजरने के बाद दवा कैसे हो जाता है? पाश अपनी-अपनी रक्त की नदी को तैर कर पार करने और सूरज को बदनामी से बचाने के लिए रात भर खुद जलने को क्यों कहते हैं? फैज़ वस्ल की राहत के सिवा बाकी राहतों से क्या इशारा कर रहे हैं? दरअसल, एक जबरदस्त हिंसक मानवरोधी सभ्यता में मनुष्य अपनी सीमित भाषा को ही अपनी सुरक्षा छतरी बना कर उसे अपने सिर के ऊपर तान लेता है। उसकी छांव में वह दुनियावी कोलाहल को अपने ढंग से परिभाषित करता है, अपनी ठोस राय बनाता है और उसके भीतर अपनी जगह तय करता है। एक कवि और शायर ऐसा नहीं करता। वह भाषा की तनी हुई छतरी में सीधा छेद कर देता है, ताकि इस छेद से बाहर की दुनिया को देख सके और थोड़ी सांस ले सके। इस तरह वह अपने विनाश की कीमत पर अपने अस्तित्व की संभावनाओं को टटोलता है और दुनिया को उन आयामों में संभवत: समझ लेता है, जो आम लोगों की नजर से प्रायः ओझल होते हैं।
भाषा की सीमाओं के खिलाफ उठी हुई कवि की उंगली दरअसल मनुष्यरोधी कोलाहल से बगावत है। गैलीलियो की कटी हुई उंगली इस बगावत का आदिम प्रतीक है। जरूरी नहीं कि कवि कोलाहल को दुश्मन ही बनाए। वह उससे दोस्ती गांठ कर उसे अपने सोच की नई पृष्ठभूमि में तब्दील कर सकता है। यही उसकी ताकत है। पाश इसीलिए पुलिसिये को भी संबोधित करते हैं। सच्चा कवि कोलाहल से बाइनरी नहीं बनाता। कविता का बाइनरी में जाना कविता की मौत है। कोलाहल से शब्दों को खींच लाना और धूप की तरह आकाश पर उसे उकेर देना कवि का काम है।
कुमाऊं के जनकवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिरदा’ इस बात को बखूबी समझते थे। एक संस्मरण में वे बताते हैं कि एक जनसभा में उन्होंने फ़ैज़ का गीत 'हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे' गाया, तो देखा कि कोने में बैठा एक मजदूर निर्विकार भाव से बैठा ही रहा। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, गोया कुछ समझ ही न आया हो। तब उन्हें लगा कि फ़ैज़ को स्थानीय बनाना होगा। कुमाऊंनी में उनकी लिखी फ़ैज़ की ये पंक्तियां उत्तराखंड में अब अमर हो चुकी हैं: ‘हम ओढ़, बारुड़ी, ल्वार, कुल्ली-कभाड़ी, जै दिन यो दुनी धैं हिसाब ल्यूंलो, एक हांग नि मांगूं, एक भांग नि मांगू, सब खसरा खतौनी किताब ल्यूंलो।'
प्रेमचंद सौ साल पहले कह गए कि साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है, लेकिन उसे हमने बिना अर्थ समझे रट लिया। गिरदा ने अपनी एक कविता में इसे बरतने का क्या खूबसूरत सूत्र दिया है:
ध्वनियों से अक्षर ले आना क्या कहने हैं
अक्षर से फिर ध्वनियों तक जाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाना क्या कहने हैं
गीतों से कोहराम मचाना क्या कहने हैं
प्यार, पीर, संघर्षों से भाषा बनती है
ये मेरा तुमको समझाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? डेल्यूज और गटारी अपनी किताब ह्वॉट इज फिलोसॉफी में लिखते हैं कि दो सौ साल पुरानी पूंजी केंद्रित आधुनिकता हमें कोलाहल से बचाने के लिए एक व्यवस्था देने आई थी। हमने खुद को भूख या बर्बरों के हाथों मारे जाने से बचाने के लिए उस व्यवस्था का गुलाम बनना स्वीकार किया। श्रम की लूट और तर्क पर आधारित आधुनिकता जब ढहने लगी, तो हमारे रहनुमा ही हमारे शिकारी बन गए। इस तरह हम पर थोपी गई व्यवस्था एक बार फिर से कोलाहल में तब्दील होने लगी। इसका नतीजा यह हुआ है कि वैश्वीकरण ने इस धरती पर मौजूद आठ अरब लोगों की जिंदगी और गतिविधियों को तो आपस में जोड़ दिया है लेकिन इन्हें जोड़ने वाला एक साझा ऐतिहासिक सूत्र नदारद है। कोई ऐसा वैचारिक ढांचा नहीं जिधर सांस लेने के लिए मनुष्य देख सके। आर्थिक वैश्वीकरण ने तर्क आधारित विवेक की सार्वभौमिकता और अंतरराष्ट्रीयतावाद की भावना को तोड़ डाला है। ऐसे में राष्ट्रवाद, नस्लवाद, धार्मिक कट्टरता आदि हमारी पहचान को तय कर रहे हैं। इतिहास मजाक बन कर रह गया है। यहीं हमारा कवि और शायर घुट रहे लोगों के काम आ रहा है।
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mittalnisha · 7 months
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अजब लीला
रामानन्द जी पंडित थे जो प्रसिद्ध आचार्य माने जाते थे। उनको कबीर परमेश्वर जी ने अपने सत्यलोक के दर्शन कराए, अपना परिचय कराया। फिर वापिस शरीर में लाकर छोड़ा। उसके पश्चात् स्वामी रामानन्द जी ने कहा:-
दोहू ठौर है एक तू, भया एक से दो । गरीबदास हम कारणें, आए हो मग जोय।।
स्वामी रामानन्द जी ने कहा है कि हे कबीर जी ! आप ऊपर सतलोक में भी हैं, आप यहाँ हमारे पास भी विद्यमान हैं। आप दोनों स्थानों पर लीला कर रहे हैं।
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monudas-world · 8 months
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विधि का विधान परमात्मा का वह अतिशय गोपनीय रहस्य है जो मन और निज मन की गती को जानते हैं वे पारखी होते हैं
हम अपना घर फूंक दिया लुका ले ली हाथ
उसका भी घर फूंक दो जो चले हमारे साथ
घर फूकने का मतलब है अपने अंदर की सारी बुराइयों को खत्म कर दे और यह खत्म हम नहीं कर सकते यह परमात्मा के विधान अनुसार उनकी भक्ति से ही संभव है
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kaminimohan · 8 months
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1405.
शाकाहार या माँसाहार
Veg or Non-veg
शिक्षा-चिकित्सा वार्ता
शिक्षार्थ प्रस्तुति -  कामिनी मोहन पाण्डेय।
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जो खाना हम खाते हैं, वो प्राण है। प्राण ही हमारा जीवन है। जीवन को बनाये रखने के लिये प्राण रूपी भोजन अति आवश्यक है। दूसरे जीवन के प्राण को समाप्त कर जो भजन ग्रहण किया जाता है, उस भोजन के साथ हम मनुष्यों का शरीर सही ढंग से व्यवहार नहीं करता है। जितना हमारा शरीर भोजन के साथ संवेदनशील है, उतना ही प्रकृति में उत्पन्न होने वाले उद्भिज यानी पेड़-पौधे, शाक-सब्जियों, फल और फूल भी संवेदनशील है। हमारा प्रकृति के प्रति व्यवहार और भावना सही ढंग का होना चाहिए, यह वही सही ढंग है, जिस ढंग से ईश्वर ने मनुष्य के शरीर और प्रकृति को रचा है।
जिनके भी कान बाहर दिखाई देते हैं, वे पिण्डज यानी (गर्भ से उत्पन्न होनेवाले) होते हैं ये सभी बच्चे को जन्म देते हैं और जिन जीवों के कान बाहर नहीं दिखाई देते हैं वे अंडे देते हैं। जिन जीवों की आँखों की ऊपरी संरचना गोल होती है, वे सब माँसाहारी होते हैं, जैसे- कुत्ता, बिल्ली, बाज, चिड़िया, शेर, भेड़िया, चील आदि, तो ऐसे जीव जिसकी आँखे गोल हैं वे माँसाहारी ही होते हैं। ठीक उसी तरह जिनकी आँखों की बाहरी संरचना लंबी या लम्बाई में होती है। वे सभी जीव शाकाहारी होते हैं। जैसे - भैंस, हिरण, खरगोश, नीलगाय, गाय, हाथी, बैल, भैंस, बकरी कबूतर आदि। इनकी आँखों की बनावट गोल नहीं होती है। मनुष्य की भी आँखें गोल नहीं बल्कि लंबाई में होती है।
माँसाहारी जीवों के दाँत नुकीले होते है, जबकि शाकाहारी जीवों के दाँत चपटे होते हैं। जिन जीवों के नाखून तीखे नुकीले होते हैं, वे सभी माँसाहारी होते हैं, जैसे- शेर, चीता, सांप, बिल्ली, कुत्ता, बाज, गिद्ध आदि और जिन जीवों के नाखून चौड़े चपटे होते हैं वे सब के सब शाकाहारी होते हैं, जैसे - मनुष्य, गाय, घोड़ा, गधा, बैल, हाथी, ऊँट, हिरण, बकरी आदि। मनुष्य के नाखून तीखे नुकीले नहीं होते हैं बल्कि ये  चौड़े एवं चपटे होते हैं।
मांसाहारियों के लार अम्लीय (acidic) होते हैं, जबकि शाकाहारियों के मुँह के लार ��्षारीय (alkaline) होते हैं। मांसाहारियों में कार्बोहाईड्रेट नहीं होता इस कारण मांसाहारियों की आंतों में बैक्टीरिया की किण्वन (Fermentation) क्रिया नहीं होती हैं। शाकाहारियों के आंतों में (Fermentation) होते हैं, जो कार्बोहाइडेट के पाचन में सहायक होते हैं। मांसाहारियों का रक्त अम्लीय (acidic) होता है, जबकि शाकाहारियों का रक्त क्षारीय (alkaline) होता है।
जिन जीवों को पसीना आता है, वे सभी जीव शाकाहारी होते हैं, जैसे- घोड़ा, बैल, गाय, भैंस, खच्चर आदि, जबकि माँसाहारी जीवों को पसीना नहीं आता है, इसलिए कुदरती तौर पर वे जीव अपनी जीभ निकाल कर लार टपकाते हुए हाँफते रहते हैं। इस प्रकार वे अपनी शरीर की गर्मी को नियंत्रित करते हैं। मनुष्य को भी पसीना आता है और वह अपने तापमान को जीभ निकालकर संतुलित नहीं करता है, इसका अर्थ है कि मनुष्य का शरीर पूर्ण रूप से शाकाहार के लिए सृजित किया गया है।
मांसाहारियों के खून के लिपो प्रोटीन अलग होते हैं। जबकि शाकाहारियों और मनुष्य के खून के लिपो प्रोटीन (lipo – protein) एक जैसे होते हैं।
मांसाहारियों की रीढ़ (spinal cord) की बनावट ऐसी होती है कि वे पीठ पर भार नहीं ढो सकते, जबकि शाकाहारी पीठ पर भार ढो सकते हैं।मांसाहारियों के श्वास की रफ्तार अधिक होती है जबकि शाकाहारियों की कम। मांसाहारी पानी भी कम पीते हैं, जबकि शाकाहारी ज़्यादा पानी पीते हैं।
शाकाहारी प्राणी रात में सोते हैं, दिन में जागते हैं जबकि मांसाहारी प्राणी ऐसा नहीं करते।
मांसाहार क्रूरता की निशानी है। जरूरत पड़ने पर मांसाहार जानवर अपने बच्चे को मारकर खा सकता है। शाकाहारी ऐसा नहीं करते। गुर्राने वाले सभी जानवर मांसाहारी होते हैं, जबकि शाकाहारी गुर्राते नहीं है। शाकाहारी घूंट-घूंट कर होठ बंद कर पानी पीते हैं जबकि मांसाहारी जीभ से चाट-चाट कर पानी पीते हैं। शाकाहारियों के संतान की आँखें पैदा होते ही खुलती हैं, बंद नहीं रहती, जबकि मांसाहारियों की दो से तीन दिनों तक बंद रहती है। सारे तथ्य मांसाहार और शाकाहार की प्रकृति को स्पष्ट करते हैं। वेज या नॉनवेज के टेस्ट की बात करें तो पता चलता है कि टेस्ट मांस का नहीं उसमें प्रयोग किए जाने वाले प्याज, लहसुन और विभिन्न प्रकार के मसालों के मिश्रण का स्वाद होता है, जो हमारे जीभ में पाए जाने वाले चार प्रकार के स्वाद कालिकाओं द्वारा ग्रहण किया जाता है।
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helputrust · 4 months
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लखनऊ, 12.01.2024 | राष्ट्रीय युवा दिवस 2024 (स्वामी विवेकानंद जयंती) के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, लोयोला इंटरनेशनल स्कूल, गोमती नगर, लखनऊ तथा यंग मैनेजर फोरम, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में लोयोला इंटरनेशनल स्कूल, गोमती नगर लखनऊ में सेमिनार "Empowering Youth for Nation Building:Lessons from Swami Vivekananda's Ideals" का आयोजन किया गया | सेमिनार में विशिष्ट वक्ता के रूप में श्री शोभित नारायण अग्रवाल, Youth Volunteer at Ram Krishna Math, Trainer & Practitioner, CA देवेश अग्रवाल व मिस प्रियम गुप्ता, HR Professional and Educator ने विद्यार्थियों को स्वामी विवेकानंद जी के व्यक्तित्व व सिद्धांतों से अवगत कराया तथा यह भी बताया कि किस तरह से स्वामी विवेकानंद द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलकर वे एक अच्छे तथा सफल इंसान बन सकते हैं | सेमिनार का संचालन वंदना त्रिभुवन सिंह ने किया | सेमिनार का शुभारंभ करते हुए श्री शोभित नारायण अग्रवाल, CA देवेश अग्रवाल, मिस प्रियम गुप्ता, डॉ रोहित  चंद्रा, प्रधानाध्यापक, लोयोला इंटरनेशनल स्कूल, गोमती नगर तथा डॉ रूपल अग्रवाल, न्यासी, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने दीप प्रज्वलन किया तथा स्वामी विवेकानंद जी को श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि अर्पित की | सभी अतिथियों का डॉ रूपल अग्रवाल ने प्रतीक चिन्ह द्वारा सम्मान किया | डॉ रूपल अग्रवाल ने सभी सम्मानित अतिथियों का स्वागत किया तथा कहा कि "स्वामी विवेकानंद जी की जन्म जयंती सिर्फ एक उत्सव ही नहीं है बल्कि यह जीवन में कुछकर गुजरने का आवाहन है | स्वामी विवेकानंद मानते थे कि अगर देश को प्रगति की ऊंचाइयों तक ले जाना है तो देश के युवा वर्ग को आगे आना होगा तथा अपनी जिम्मेदारियों  को समझना होगा | आज इस सेमिनार के माध्यम से हम विद्यार्थियों को यही संदेश देना चाहते हैं कि वे अपने सपनों के पीछे भागे तथा जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए तब तक ना रुके |" श्री शोभित नारायण अग्रवाल ने विद्यार्थियों को बताया कि "जैसा आप सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं इसलिए हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए | हमें सुबह उठकर भगवान का, अपने माता-पिता का तथा अपने गुरुजनों का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उन्होंने हमें यह जीवन दिया और हमारी जिंदगी के हर सपने को पूरा करने में हमारी मदद की | उन्होंने बताया कि हमेशा अपने लक्ष्य को बड़ा रखना चाहिए क्योंकि लक्ष्य जितना बड़ा होगा उतनी ही बड़ी उसको पाने की जिद भी होगी क्योंकि स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि "उठो, जागो और अपने लक्ष्य तक पहुंचने से पहले मत रुको |" CA देवेश अग्रवाल ने विद्यार्थियों को उनके करियर के बारे में जानकारी दी और कहा कि "आप जो कुछ भी बनना चाहते हैं उसके बारे में एक सकारात्मक सोच रखें | आप जो कुछ भी बनना चाहते हैं उसको अपने दिमाग में रखकर उसी दिशा में काम करें तभी सफलता निश्चित है | मिस प्रियम गुप्ता ने दो लकड़हारे की कहानी के माध्यम से विद्यार्थियों को  समझाया कि किस तरह से एक युवा लकड़हारे ने अपने दिमाग का सही इस्तेमाल कर कम समय में अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया| उन्होंने बताया कि, "हमें अपने जीवन के लक्ष्य को सही समय पर निर्धारित कर लेना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि हम बनना कुछ और चाहते हैं और दिशा कुछ और पकड़ लेते हैं जिससे बाद में हमें ही अवसाद का शिकार होना पड़ता है इसलिए हमारे लिए यह जरूरी है कि हम लोगों की बातों को समझें, अपने विचारों को सही तरह से लोगों के सामने रखें तथा अपनी कमजोरी पर विजय हासिल करें तभी सफलता निश्चित है | श्री रोहित चंद्रा ने विद्यार्थियों को राष्ट्रीय युवा दिवस की बधाई देते हुए उन्हें स्वामी विवेकानंद के बताए रास्ते पर चलने के लिए कहा तथा यह भी बताया कि "हमारे महापुरुष हमें बहुत कुछ सिखाते हैं जरूरत है उनके बारे में पढ़ने की और उसे समझने की |" सेमिनार में लोयोला इंटरनेशनल स्कूल से शिक्षिकाओं मिस शिखा झुनझुनवाला, मिस कोमल यदुवंशी तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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naveensarohasblog · 2 years
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#गहरीनजरगीता_में_Part_244 के आगे पढिए.....)
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#गहरीनजरगीता_में_part_245
हम पढ़ रहे है पुस्तक "गहरी नजर गीता में"
पेज नंबर 471–472
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।। मृत लड़के सेऊ (शिव) को जीवित करना।।
एक समय साहेब कबीर अपने भक्त सम्मन के यहाँ अचानक दो सेवकों (कमाल व शेखफरीद) के साथ पहुँच गए। सम्मन के घर कुल तीन प्राणी थे। सम्मन, सम्मन की पत्नी नेकी और सम्मन का पुत्र सेऊ। भक्त सम्मन इतना गरीब था कि कई बार अन्न भी घर पर नहीं होता था। सारा परिवार भूखा सो जाता था। आज वही दिन था। भक्त सम्मन ने अपने गुरुदेव कबीर साहेब से पूछा कि साहेब खाने का विचार बताएँ, खाना कब खाओगे? कबीर साहेब ने कहा कि भाई भूख लगी है। भोजन बनाओ। सम्मन अन्दर घर में जा कर अपनी पत्नी नेकी से बोला कि अपने घर अपने गुरुदेव
भगवान आए हैं। जल्दी से भोजन तैयार करो। तब नेकी ने कहा कि घर पर अन्न का एक दाना भी नहीं है। सम्मन ने कहा पड़ोस वालों से उधार मांग लाओ। नेकी ने कहा कि मैं मांगने गई थी लेकिन किसी ने भी उधार आटा नहीं दिया। उन्होंने आटा होते हुए भी जान बूझ कर नहीं दिया और कह रहे हैं कि आज तुम्हारे घर तुम्हारे गुरु जी आए हैं। तुम कहा करते थे कि हमारे गुरु जी भगवान हैं। आपके गुरु जी भगवान हैं तो तुम्हें माँगने की आवश्यकता क्यों पड़ी? ये ही भर देगें
तुम्हारे घर को आदि-2 कह कर मजाक करने लगे। सम्मन ने कहा लाओ आपका चीर गिरवी रख कर तीन सेर आटा ले आता हूँ। नेकी ने कहा यह चीर फटा हुआ है। इसे कोई गिरवी नहीं रखता।
सम्मन सोच में पड़ जाता है और अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए कहता है कि मैं कितना अभागा हूँ। आज घर भगवान आए और मैं उनको भोजन भी नहीं करवा सकता। हे परमात्मा! ऐसे पापी प्राणी को पृथ्वी पर क्यों भेजा। मैं इतना नीच रहा हूँगा कि पिछले जन्म में कोई पुण्य नहीं किया। अब सतगुरु को क्या मुंह दिखाऊँ? यह कह कर अन्दर कोठे में जा कर फूट-2 कर रोने लगा। तब उसकी पत्नी नेकी कहने लगी कि हिम्मत करो। रोवो मत। परमात्मा आए हैं। इन्हें ठेस पहुँचेगी।
सोचंेगे हमारे आने से तंग आ कर रो रहा है। सम्मन चुप हुआ। फिर नेकी ने कहा आज रात्रि में दोनों पिता पुत्र जा कर तीन सेर (पुराना बाट किलो ग्राम के लगभग) आटा चुरा कर लाना। केवल संतों व भक्तों के लिए। तब लड़का सेऊ बोला माँ - गुरु जी कहते हैं चोरी करना पाप है। फिर आप
भी मुझे शिक्षा दिया करती कि बेटा कभी चोरी नहीं करनी चाहिए। जो चोरी करते हैं उनका सर्वनाश होता है। आज आप यह क्या कह रही हो माँ? क्या हम पाप करेंगे माँ? अपना भजन नष्ट हो जाएगा। माँ हम चैरासी लाख योनियों में कष्ट पाएंगे। एैसा मत कहो माँ। माँ आपको मेरी कसम। तब नेकी ने कहा पुत्र तुम ठीक कह रहे हो। चोरी करना पाप है परंतु पुत्रा हम अपने लिए
नहीं बल्कि संतों के लिए करेंगे। नेकी ने कहा बेटा - ये नगर के लोग अपने से बहुत चिड़ते हैं। हमने इनको कहा था कि हमारे गुरुदेव कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) आए हुए हैं। इन्होंने एक मृतक गऊ तथा उसके बच्चे को जीवित कर दिया था जिसके टुकड़े सिंकदर लौधी ने करवाए थे। एक लड़के तथा एक लड़की को जीवित कर दिया। सिंकदर लौधी राजा का जलन का रोग समाप्त कर दिया
तथा श्री रामानन्द जी (कबीर साहेब के गुरुदेव) जो सिंकदर लौधी ने तलवार से कत्ल कर दिया था वे भी कबीर साहेब ने जीवित कर दिए थे। इस बात का ये नगर वाले मजाक कर रहे हैं और
कहते हैं कि आपके गुरु कबीर तो भगवान हैं तुम्हारे घर को भी अन्न से भर देंगे। फिर क्यों अन्न (आटे) के लिए घर घर डोलती फिरती हो?
बेटा ये नादान प्राणी हैं यदि आज साहेब कबीर इस नगरी का अन्न खाए बिना चले गए तो काल भगवान भी इतना नाराज हो जाएगा कि कहीं इस नगरी को समाप्त न कर दे। हे पुत्र! इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। हम नहीं खाएंगे। केवल अपने सतगुरु तथा आए भक्तों
को प्रसाद बना कर खिलाएगें। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्रा नाटियो मत अर्थात् मना नहीं करना। तब अपनी माँ की आँखों के आँसू पौंछता हुआ लड़का सेऊ कहने लगा - माँ रो मत, आपका पुत्रा आपके आदेश का पालन करेगा। माँ आप तो बहुत अच्छी हो न।
अर्ध रात्रि के समय दोनों पिता (सम्मन) पुत्रा (सेऊ) चोरी करने के लिए चले दिए। एक सेठ की दुकान की दीवार में छिद्र किया। सम्मन ने कहा कि पुत्रा मैं अन्दर जाता हूँ। यदि कोई व्यक्ति
आए तो धीरे से कह देना मैं आपको आटा पकड़ा दूंगा और ले कर भाग जाना। तब सेऊ ने कहा नहीं पिता जी, मैं अन्दर जाऊँगा। यदि मैं पकड़ा भी गया तो बच्चा समझ कर माफ कर दिया जाऊँगा। सम्मन ने कहा पुत्रा यदि आपको पकड़ कर मार दिया तो मैं और तेरी माँ कैसे जीवित रहेंगे? सेऊ प्रार्थना करता हुआ छिद्र द्वार से अन्दर दुकान में प्रवेश कर जाता है। तब सम्मन ने कहा पुत्र केवल तीन सेर आटा लाना, अधिक नहीं। लड़का सेऊ लगभग तीन सेर आटा अपनी फटी
पुरानी चद्दर में बाँध कर चलने लगा तो अंधेरे में तराजू के पलड़े पर पैर रखा गया। जोर दार आवाज हुई जिससे दुकानदार जाग गया और सेऊ को चोर-चोर करके पकड़ लिया और रस्से से बाँध दिया। इससे पहले सेऊ ने वह चद्दर में बँधा हुआ आटा उस छिद्र से बाहर फैंक दिया और कहा पिता जी मुझे सेठ ने पकड़ लिया है। आप आटा ले जाओ और सतगुरु व भक्तों को भोजन करवाना। मेरी चिंता मत करना। आटा ले कर सम्मन घर पर गया तो सेऊ को न पा कर नेकी ने
पूछा लड़का कहाँ है? सम्मन ने कहा उसे सेठ जी ने पकड़ कर थम्ब से बाँध दिया। तब नेकी ने कहा कि आप वापिस जाओ और लड़के सेऊ का सिर काट लाओ। क्योंकि लड़के को पहचान कर अपने घर पर लाएंगे। फिर सतगुरु को देख कर नगर वाले कहेंगे कि ये हैं जो चोरी करवाते हैं। हो सकता है सतगुरु देव को परेशान करें। हम पापी प्राणी अपने दाता को भोजन के स्थान पर कैद न दिखा दें। यह कह कर माँ अपने बेटे का सिर काटने के लिए अपने पति से कह रही है वह भी
गुरुदेव जी के लिए। सम्मन ने हाथ में कर्द (लम्बा छुरा) लिया तथा दुकान पर जा कर कहा सेऊ बेटा, एक बार गर्दन बाहर निकाल। कुछ जरूरी बातें करनी हैं। कल तो हम नहीं मिल पाएंगे। हो
सकता है ये आपको मरवा दें। तब सेऊ उस सेठ (बनिए) से कहता है कि सेठ जी बाहर मेरा बाप खड़ा है। कोई जरूरी बात करना चाहता है। कृप्या करके मेरे रस्से को इतना ढीला कर दो कि मेरी गर्दन छिद्र से बाहर निकल जाए। तब सेठ ने उसकी बात को स्वीकार करके रस्सा इतना ढीला
कर दिया कि गर्दन आसानी से बाहर निकल गई। तब सेऊ ने कहा पिता जी मेरी गर्दन काट दो।
यदि आप मेरी गर्दन नहीं काटोगे तो आप मेरे पिता नहीं हो। सम्मन ने एक दम कर्द मारी और सिर काट कर घर ले गया। सेठ ने लड़के का कत्ल हुआ देख कर उसके शव को घसीट कर साथ ही एक पजावा (ईटें पकाने का भट्ठा) था उस खण्डहर में डाल गया।
जब नेकी ने सम्मन से कहा कि आप वापिस जाओ और लड़के का धड़ भी बाहर मिलेगा उठा लाओ। जब सम्मन दुकान पर पहुँचा उस समय तक सेठ ने उस दुकान की दीवार के छिद्र को बंद
कर लिया था। सम्मन ने शव कीे घसीट (चिन्हों) को देखते हुए शव के पास पहुँच कर उसे उठा लाया। ला कर अन्दर कोठे में रख कर ऊपर पुराने कपड़े (गुदड़) डाल दिए और सिर को अलमारी के ताख (एक हिस्से) में रख कर खिड़की बंद कर दी।
कुछ समय के बाद सूर्य उदय हुआ। नेकी ने स्नान किया। फिर सतगुरु व भक्तों का खाना बनाया। फिर सतगुरु कबीर साहेब जी से भोजन करने की प्रार्थना की। नेकी ने साहेब कबीर व
दोनों भक्त (कमाल तथा शेख फरीद), तीनों के सामने आदर के साथ भोजन परोस दिया। साहेब कबीर ने कहा इसे छः दौनों में डाल कर आप तीनों भी साथ बैठो। यह प्रेम प्रसाद पाओ। बहुत
प्रार्थना करने पर भी साहेब कबीर नहीं माने तो छः दौनों में प्रसाद परोसा गया। पाँचों प्रसाद के लिए बैठ गए। तब साहेब कबीर ने कहा:-
आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद पे्रम।
शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित्य क्षेम।।
भावार्थ:- साहेब कबीर ने कहा कि सेऊ आओ भोजन पाओ। सिर तो चोरों के कटते हैं। संतों।(भक्तों) के नहीं। उनको तो क्षमा होती है। साहेब कबीर ने इतना कहा था उसी समय सेऊ के धड़ पर सिर लग गया। कटे हुए का कोई निशान भी गर्दन पर नहीं था तथा पंगत (पंक्ति) में बैठ कर भोजन करने लगा। बोलो कबीर साहेब (कविरमितौजा) की जय।
गरीब, सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठा पंगत माहीं।
नहीं घरहरा गर्दन कै, औह सेऊ अक नाहीं।।
भावार्थ:- जो सिर अलमारी की ताक में रखा था। वह लड़के शिव (सेऊ) के धड़ पर अपने आप लग गया। लड़का जीवित होकर उठकर भोजन खाने वाली पंक्ति में आकर बैठ गया। सम्मन
(पिता) तथा नेकी (माता) को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही बेटा सेऊ है कि नहीं क्योंकि लड़की की गर्दन पर कटे का निशान (चिन्ह) भी नहीं था।
सम्मन तथा नेकी ने देखा कि गर्दन पर कोई चिन्ह भी नहीं है। लड़का जीवित कैसे हुआ? अन्दर जा कर देखा तो वहाँ शव तथा शीश नहीं था। केवल रक्त के छीटें लगे थे जो इस पापी मन
के संश्य को समाप्त करने के लिए प्रमाण बकाया था। ऐसी-2 बहुत लीलाएँ साहेब कबीर (कविरग्नि) ने की हैं जिनसे यह स्वसिद्ध है कि ये ही पूर्ण
परमात्मा हैं। सामवेद संख्या नं. 822 में कहा है कि कविर्देव अपने विधिवत् साधक साथी की आयु बढ़ा देता है।
( अब आगे अगले भाग में)
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rukabir1 · 10 months
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[6/28, 7:30 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡परमात्मा ने हम मनुष्यों के खाने के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं, मांस खाने का आदेश नहीं दिया।
[6/28, 7:30 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡ कबीर, तिलभर मछली खायके, कोटि गऊ दे दान। काशी करौंत ले मरे, तो भी नरक निदान।।तिल के समान भी मछली खाने वाले चाहे करोड़ो गाय दान कर लें, चाहे काशी कारोंत में सिर कटा ले वे नरक में अवश्य जाएंगे।
[6/28, 7:31 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡अगर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति होती, तो सबसे पहले मांसाहारी जानवरों को होती, जो केवल मांस ही खाते हैं।मांस खाकर आप परमात्मा के बनाए विधान को तोड़कर परमात्मा के दोषी बन रहे हो। ऐसा करने वाले को नर्क में डाला जाता है।
[6/28, 7:31 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡झोटे बकरे मुरगे ताई। लेखा सब ही लेत गुसाईं।। मग मोर मारे महमंता। अचरा चर हैं जीव अनंता।।किसी भी प्राणी की हत्या करो वह परमात्मा सब का हिसाब लेता है।
[6/28, 7:31 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡गरीब, जीव हिंसा जो करते हैं, या आगे क्या पाप। कंटक जुनी जिहान में, सिंह भेड़िया और सांप।।जो जीव हिंसा करते हैं उससे बड़ा पाप नहीं है। जीव हत्या करने वाले वे करोड़ो जन्म शेर, भेड़िया और साँप के पाते हैं।
[6/28, 7:31 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡एक तरफ तो आप भक्ति करते हो, और दूसरी तरफ आप बेजुबान निर्दोष जानवरों की हत्या कर उनका मांस खाते हो। सभी जीव परमात्मा की प्यारी आत्मा है, तो फिर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति कैसे होगी?
[6/28, 7:31 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡कबीर परमात्मा ने कहा है कि अच्छा शाकाहार खाना खाओ। बासमती चावल पकाओ। उसमें घी तथा खांड (मीठा) डालकर खाओ और भक्ति करो। (कूड़े काम) बुरे (पाप) कर्म त्याग दो। मिट्टी मांस न पकाओ।
[6/28, 7:31 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡कबीर परमात्मा ने कहा कि दोनों धर्म, दया भाव रखो। मेरा वचन मानो कि सूअर तथा गाय में एक ही बोलनहार है यानि एक ही जीव है। न गाय खाओ, न सूअर खाओ।दोनूं दीन दया करौ, मानौं बचन हमार। गरीबदास गऊ सूर में, एकै बोलन हार।।
[6/28, 7:32 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡बकरी, मुर्गी (कुकड़ी), गाय, गधा, सूअर को खाते हैं। भक्ति की (रीस) नकल भी करते हैं। ऐसे पाप करने वालों से परमात्मा दूर है। जीव हत्या करने वाले नरक के भागी।
[6/28, 7:32 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡मांस खाने वाले शैतानकबीर, मांस खाय ते ढेड़ सब, मद पीवे सो नीच।कुल की दुर्मति पर हरै, राम कहे सो ऊंच।।कबीर परमेश्वर ने मांस खाने वाले को ढेड़ एवं शराब का सेवन करने वाले को नीच कहकर सम्बोधित किया है। तथा राम/परमात्मा की इबादत करने वाले को श्रेष्ठ बताया है। चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का व्यक्ति हो।
[6/28, 7:32 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡कबीर परमात्मा सर्व का पिता है। उसके प्राणियों को मारने वाले से वह कभी खुश नहीं होता।कबीर-माँस अहारी मानई, प्रत्यक्ष राक्षस जानि। ताकी संगति मति करै, होइ भक्ति में हानि।।
[6/28, 7:32 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡मांस खाना महापापकबीर, मांस मछलिया खात हैं, सुरापान से हेत। ते नर नरकै जाहिंगे, माता पिता समेत।परमात्मा कबीर जी कहते हैं जो मनुष्य मांस, मछली खाते हैं वह नरक में माता पिता के साथ जाते हैं। मांस खाना महापाप है। यह हमारे किसी भी धर्म की पवित्र पुस्तक में नही लिखा है।
[6/28, 7:32 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡जो गल काटै और का, अपना रहै कटाय।साईं के दरबार में बदला कहीं न जाय॥जो व्यक्ति किसी जीव का गला काटता है उसे आगे चलकर अपना गला कटवाना पड़ेगा। परमात्मा के दरबार में करनी का फल अवश्य मिलता है।
[6/28, 7:32 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡मांस खाना हरामनबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया, 1लाख 80 को सौगंध जिन नहीं करद चलाया।अरस कुरस पर अल्लह तख्त है खालिक बिन नहीं खाली,वे पैगंबर पाक़ पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।।गरीबदासजी बताते हैं कि नबी मुहम्मद जी परमात्मा की बहुत नेक आत्मा थी। उन्होंने कभी मांस नहीं खाया, न अपने 1,80,000 शिष्यों को खाने को कहा।
[6/28, 7:33 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡जीव हत्या महापापकाटा कूटी जो करै, ते पाखंड को भेष।निश्चय राम न जानहीं, कहैं कबीर संदेस।।कबीर परमेश्वर ने कहा है कि जो पशु को मारकर उसकी देह काटा करते हैं वह सब पाखंडी हैं। परमात्मा के विधान को नहीं जानते- यही मेरा संदेश है।
[6/28, 7:33 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡ पवित्र बाइबल में उत्पत्ति 1:30 पर परमेश्वर ने कहा - और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगने वाले जन्तु हैं, जिन में जीवन के प्राण हैं, उन सब के खाने के लिये मैं ने सब हरे हरे छोटे पेड़ दिए हैं; और वैसा ही हो गया।
[6/28, 7:33 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡ पवित्र बाइबल में उत्पत्ति 1:29 पर फिर परमेश्वर ने कहा सुनो जितने बीज वाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर है और जितने वृक्षों में बीज वाले फल होते हैं वे सब मेंने तुम को दिए हैं वह तुम्हारे भोजन के लिए हैं।आज़ का मान�� समाज मांस खाकर महापाप का भागी बन रहा है।
[6/28, 7:33 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡Romans 14:21माँस नहीं खाना श्रेष्ठ है, शराब नहीं पीना अच्छा है और कुछ भी ऐसा नहीं करना उत्तम है जो तेरे भाई को पाप में ढकेलता हो।
[6/28, 7:33 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡ जीव हनै हिंसा करे, प्रकट पाप सिर होय।निगम पुनि ऐसे पाप ते, भिस्त गया ना कोय।परमात्मा कबीर जी कहते हैं कि जींस हिंसा करने से पाप ही लगता है। ऐसा महापाप करके भिस्त (स्वर्ग) कोई नहीं गया। तो फिर हे भोले मानव फिर ऐसा महापाप क्यों करता है।
[6/28, 7:33 AM] Arun Patil Bagat Ji Malkapur: ⚡भगवान ने मनुष्य को शाकाहारी भोजन खाने के आदेश दिये हैं - पवित्र बाइबल
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saathi · 11 months
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बदलाव
🌟 नया
अब वेब पर पोस्ट एडिटर पोस्ट को शेड्यूल और बैकडेट करने के लिए हमेशा आपके डिवाइस टाइमज़ोन का इस्तेमाल करता है. अब आपके ब्लॉग की टाइमज़ोन सेटिंग का इस्तेमाल सिर्फ़ आपके ब्लॉग के पंक्ति शेड्यूल और आपके ब्लॉग की कस्टम थीम (अगर इसके पास कोई है) पर टाइमस्टैम्प की गणना करने के लिए किया जाता है.
वेब पर ही ऊपर बताई गई बात जैसी एक और बात है, हम पंक्ति पेज पर जो प्रकाशन समय दिखाते हैं, अब उन्हें ब्लॉग टाइमज़ोन के बजाय हमेशा आपके डिवाइस टाइमज़ोन में भी दिखाया जाता है.
iOS ऐप में खोजें बटन सबसे नीचे की पंक्ति में अपनी पुरानी जगह पर वापस आ गया है और नई पोस्ट या मेसेज बनाने जैसे एक्शन को सबसे नीचे दाईं तरफ़ तैरते एक्शन बटन पर भेज दिया गया है.
Tumblr Labs, Tumblr पर एक नई टीम है, @labs (सिर्फ़ EN) पर उनका ब्लॉग देखकर जानते रहें कि वो किस चीज़ पर काम कर रहे हैं!
वेब पर हमने सीधे Tumblr के ज़रिये आपके ब्लॉग के लिए कस्टम डोमेन खरीदने के लिए सहायता शुरू की है. ब्लॉग से लिंक किए हुए मौजूदा कस्टम डोमेन फिर भी काम करेंगे, लेकिन आने वाले समय में कस्टम डोमेन को Tumblr के ज़रिये ही खरीदना पड़ेगा. हम अब भी एक डोमेन ट्रांसफ़र फ़्लो पर काम कर रहे हैं, आगे और भी आने वाले हैं!
हमने अपलोड की हुई ऑडियो फ़ाइलों के लिए दैनिक सीमा 6 से बढ़ाकर 10 कर दी है.
🛠️ सुधार
अब आप एक बार फिर से सबसे नए iOS ऐप में टेक्स्ट चुन सकते हैं.
सबसे नए Android ऐप में अब ऑडियो वाले विज्ञापन ऑटो-प्ले नहीं होंगे. अगर अब भी आपको यह समस्या हो रही है, तो कृपया सीधे अपने डैशबोर्ड से 3 बिन्दुओं वाले मेनू (●●●) का इस्तेमाल करके ऐसे विज्ञापन की रिपोर्ट करें या विज्ञापनदाता के नाम, जिस URL पर वो चला गया था और वो लगभग तारीख/समय जब आपने उसे देखा था के साथ सहायता से संपर्क करें . धन्यवाद!
अब प्राइवेट पोस्ट की वजह से ब्लॉग की पब्लिक पोस्ट गिनती बढ़ती नहीं है और उन्हें हटाए जाने पर ये गिनती घटती नहीं है.
हमने वेब पर वो बग सुधार दिया जो लॉगिन के दौरान पासवर्ड के दो-कारक प्रमाणीकरण कोड को सही फ़ील्ड में भरने नहीं दे रहा था.
🚧 जारी
हमारा स्टाफ़ हमारे डॉक्स को अपडेट करने पर कड़ी मेहनत कर रहा है. अगर आपको कोई गड़बड़ी या कुछ पुराना दिखाई दे, तो कृपया हमें फ़ीडबैक भेजें!
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