Chanting of Purushottam Yoga - 15th Adhyaaya of Shreemad Bhagwad Geeta 🙏🏻🙏🏻 - very auspicious to chant / hear during the ongoing Purushottam Maasa ....
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भगवद गीता अध्याय 3 श्लोक 39 भावार्थ : और हे अर्जुन! इस अग्नि के समान कभी न पूर्ण होने वाले काम रूप ज्ञानियों के नित्य वैरी द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढँका हुआ है॥39॥ मनुस्मृति में कहा गया है कि कितना भी विषय-भोग क्यों न किया जाय काम तृप्ति नहीं होती, जिस प्रकार कि निरन्तर ईंधन डालने से अग्नि कभी नहीं बुझती। भौत��क जगत् में समस्त कार्यकलापों का केन्द्रबिन्दु मैथुन (कामसुख) है, अतः इस जगत् को मैथुन्य आगार या विषयी जीवन की हथकड़ियाँ कहा गया है। एक सामान्य बन्दीगृह में अपराधियों को छड़ों के भीतर रखा जाता है इसी प्रकार जो अपराधी भगवान् के नियमों की अवज्ञा करते हैं, वे मैथुन-जीवन द्वारा बन्दी बनाये जाते हैं। इन्द्रियतृप्ति के आधार पर भौतिक सभ्यता की प्रगति का अर्थ है, इस जगत् में जीवात्मा की बन्धन अवधि को बढ़ाना। अतः यह काम अज्ञान का प्रतीक है जिसके द्वारा जीवात्मा को इस संसार में रखा जाता है। इन्द्रियतृप्ति का भोग करते समय हो सकता है कि कुछ प्रसन्नता की अनुभूति हो, किन्तु यह प्रसन्नता की अनुभूति ही इन्द्रियभोक्ता का चरम शत्रु है। यह भगवत गीता सीरीज का अंग है आप पहले के श्लोक मेरी पिछली पोस्ट में जाकर देख सकते हैं, और आगे के भाग के लिए कृपया मेरे साथ बने रहे । . . . #radhekrishna #shubh_chetna #bhagwatgeeta #bhagwatgeetaquote #geetashlok (at USA) https://www.instagram.com/p/CSLqqhUFnpq/?utm_medium=tumblr
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छोटेसे बच्चे ने गीता के कठिन श्लोक बोले। #geeta #bhagvadgita #bhagavadgita #gitashlok #geetashlok #brilliant #balsanskarsewa #balsanskar #balsanskarkendra #bsk #asharamjiashram #asharamjibapu (at Bal Sanskar Kendra) https://www.instagram.com/p/CFHCcNuHxQN/?igshid=1qxsix5xxsnn1
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श्रीभगवानुवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥2.2॥
श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है॥2॥
हरे राम हरे रामा, रामा राम हरे हरे,
हरे कृष्ण हरे कृष्णा ,कृष्णा कृष्णा हरे हरे....
इस ब्रह्माण्ड की सभी प्राणियों का मंगल हो .....
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शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै: ।
सन्न्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ||
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Swipe next for English...तात्पर्य : स्वरुपसिद्ध व्यक्ति से ज्ञान प्राप्त होने का परिणाम यह होता है कि यह पता चल जाता है कि सारे जीव भगवान् श्रीकृष्ण के भिन्न अंश हैं | कृष्ण से पृथक् अस्तित्व का भाव माया (मा – नहीं, या – यह) कहलाती है | कुछ लोग सोचते हैं कि हमें कृष्ण से क्या लेना देना है वे तो केवल महान ऐतिहासिक पुरुष हैं और परब्रह्म तो निराकार है | वस्तुतः जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है यह निराकार ब्रह्म कृष्ण का व्यक्तिगत तेज है | कृष्ण भगवान् के रूप में प्रत्येक वस्तु के कारण हैं | ब्रह्मसंहिता में स्पष्ट कहा गया है कि कृष्ण श्रीभगवान् हैं और सभी कारणों के कारण हैं | यहाँ तक कि लाखों अवतार उनके विभिन्न विस्तार ही हैं | इसी प्रकार सारे जीव भी कृष्ण का अंश हैं | मायावादियों की यह मिथ्या धारणा है कि कृष्ण अपने अनेक अंशों में अपनी निजी पृथक् अस्तित्व को मिटा देते हैं | यह विचार सर्वथा भौतिक है | भौतिक जगत में हमारा अनुभव है कि यदि किसी वस्तु का विखण्डन किया जाय तो उसका मूलस्वरूप नष्ट हो जाता है | किन्तु मायावादी यह नहीं समझ पाते कि परम का अर्थ है कि एक और एक मिलकर एक ही होता है और एक में से एक घटाने पर भी एक बचता है | परब्रह्म का यही स्वरूप है | ब्रह्मविद्या का पर्याप्त ज्ञान न होने के कारण हम माया से आवृत हैं इसीलिए हम अपने को कृष्ण से पृथक् सोचते हैं | यद्यपि हम कृष्ण के भिन्न अंश ही हैं, किन्तु तो भी हम उनसे भिन्न नहीं हैं | जीवों का शारीरिक अन्तर माया है अथवा वास्तविक सत्य नहीं है | हम सभी कृष्ण को प्रसन्न करने के निमित्त हैं | केवल माया के कारण ही अर्जुन ने सोचा कि उसके स्वजनों से उसका क्षणिक शारीरिक सम्बन्ध कृष्ण के शाश्र्वत आध्यात्मिक सम्बन्धों से अधिक महत्त्वपूर्ण है | गीताका सम्पूर्ण उपदेश इसी ओर लक्षित है कि कृष्ण का नित्य दास होने के कारण जीव उनसे पृथक् नहीं हो सकता, कृष्ण से अपने को विलग मानना ही माया कहलाती है | परब्रह्म के भिन्न अंश के रूप में जीवों को एक विशष्ट उद्देश्य पूरा करना होता है | उस उद्देश्य को भुलाने के कारण ही वे अनादिकाल से मानव, पशु, देवता आदि देहों में स्थित हैं | ऐसे शारीरिक अन्तर भगवान् के दिव्य सेवा के विस्मरण से जनित हैं | किन्तु जब कोई कृष्णभावनामृत के माध्यम से दिव्य सेवा में लग जाता है तो वह इस माया से तुरन्त मुक्त हो जाता है | ऐसा ज्ञान केवल प्रामाणिक गुरु से ही प्राप्त हो सकता है और इस तरह वह इस भ्रम को दूर कर सकता है कि जीव कृष्ण के तुल्य है | #geetashlok #geeta #shlok https://www.instagram.com/p/BoSxon3Ajto/?utm_source=ig_tumblr_share&igshid=1sw8oha46k5vi
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Bhagavad Gita - Chapter 2 - Stanza 9 & 10
Bhagavad Gita - Chapter 2 - Stanza 9 & 10 Watch this video to know, what does Sanjaya says to Dhritarashtra about Arjuna's condition.
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Verdict on the dispute whether control of Padmanabhaswamy Temple in Kerala will vest with state govt or royal family: Today, Supreme Court upheld right of Travancore royal family for the management & control of Padmanabhaswamy Temple And, all members of temple committee will be Hindus. . Like , comment and share this information with everyone 🙏🙏🙏🤗🤗🤗 . . . . Jai shree krishna 💕💕💕💕💕#Mahadev#Hanuman #omnamahshivaya#bholenath #harharmahadev #bhole #bholebaba#geetashlok #padmanabhaswamytemple #jaimahakal #shiva#india #hindu #hinduism #ancient #Indiantemple #mythology #ancientindia #hindugods #wahhindia#incredibleindia #discover_india #vedas #templesofindia#indianhistory #indianculture #indianarchitecture#bhagavadgita #krishna #sanskrit (at Padmnabh Temple Area) https://www.instagram.com/p/CCl7-2tgrWD/?igshid=nl8i2gei38pv
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swipe next for English तात्पर्य : इस प्रसंग में यह नहीं सोच लेना चाहिए कि भगवान् के पास कोई काम नहीं है | वे अपनेवैकुण्ठलोक में सदैव व्यस्त रहते हैं | ब्रह्मसंहिता में (५.६) कहा गया है – आत्मारामस्य तस्यास्ति प्रकृत्या न समागमः– वे सतत दिव्य आनन्दमय आध्यात्मिक कार्यों में रत रहते हैं, किन्तु इन भौतिक कार्यों से उनका कोई सरोकार नहीं रहता | सारे भौतिक कार्य उनकी विभिन्न शक्तियों द्वारा सम्पन्न होते रहते हैं | वे सदा ही इस सृष्टि के भौतिक कार्यों के प्रति उदासीन रहते हैं | इस उदासीनता को ही यहाँ पर उदासीनवत् कहा गया है | यद्यपि छोटे से छोटे भौतिक कार्य पर उनका नियन्त्रण रहता है, किन्तु वे उदासीनवत् स्थित रहते हैं | यहाँ पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का उदाहरण दिया जा सकता है, जो अपने आसन पर बैठा रहता है | उसके आदेश से अनेक तरह की बातें घटती रहती हैं – किसी को फाँसी दी जाती है, किसी को कारावास की सजा मिलती है, तो किसी को प्रचुर धनराशी मिलती है, तो भी वह उदासीन रहता है | उसे इस हानि-लाभ से कुछ भी लेना-देना नहीं रहता | वेदान्तसूत्र में (२.१.३४) यह कहा गया है – वैषम्यनैर्घृण्ये न– वे इस जगत् के द्वन्द्वों में स्थित नहीं है | वे इन द्वन्द्वों से अतीत हैं | न ही इस जगत् की सृष्टि तथा प्रलय में ही उनकी आसक्ति रहती है | सारे जीव अपने पूर्वकर्मों के अनुसार विभिन्न योनियाँ ग्रहण करते रहते हैं और भगवान् इसमें कोई व्यवधान नहीं डालते | #geetashlok #geeta #gitashlok #shlok #gita #krishna https://www.instagram.com/p/BwdpbyPgkLM/?utm_source=ig_tumblr_share&igshid=13hfwa9yr1nir
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भगवद गीता अध्याय 1 श्लोक 32-35 हे गोविंद! हमें राज्य हैं सुख अथवा इस जीवन से क्या लाभ क्योंकि जिन सारे लोगों के लिए हमने चाहते हैं वही इस युद्ध भूमि में खड़े हैं। हे मधुसूदन! जब गुरु जन पितृगण पुत्र गण पितामह मामा ससुर पोत्रगण साले तथा अन्य सारे संबंधी अपना अपना धन एवं प्राण देने के लिए तत्पर हैं और मेरे समक्ष खड़े हैं तो फिर में इन सबों से लड़ने को तैयार नहीं , भले ही बदले में मुझे तीनों लोक क्यों ना मिलते हो , इस पृथ्वी की तो बात ही छोड़ दें । भला धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें कोन सी प्रसनता मिलेगी ? यहां पर जाति या परिवार के प्रति अर्जुन का स्नेह आंशिक रूप से इन सब के प्रति उसकी स्वाभाविक करुणा के कारण है। अतः वह युद्ध करने के लिए तैयार नहीं है। हर व्यक्ति अपने वैभव का प्रदर्शन अपने मित्रो तथा परिजनों के समक्ष करना चाहता है किन्तु अर्जुन को भय है कि उसके साथ अपने वैभव का उपयोग नहीं कर सकेगा । भौतिक जीवन का यह सामान्य लेखा जोखा है। किन्तु आध्यात्मिक जीवन इससे सर्वधा भिन्न होता है । अर्जुन अपने संबंधियों को मारना नहीं चाह रहा था और यदि उनको मारने कि आवशयकता हो तो अर्जुन की इच्छा थी कि कृष्ण स्वयं उनका वध करे । इस समय अर्जुन को पता नहीं है कि कृष्ण पहले ही उन्हें मार चुके है वो तो केवल निमित मात्र है । यह भगवान की योजना थी कि इन सबका वध हो । भ��वान किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा से क्षमा कर सकते है किन्तु यदि कोई उनके भक्तों को हानि पहुंचाता है तो वे उसे क्षमा नहीं करते । इसलिए भगवान इन दुराचारियों का वध करने के लिए उद्धत थे यधपी अर्जुन उन्हें क्षमा करना चाहता था । यह भगवत गीता सीरीज का अंग है आप पहले के श्लोक मेरी पिछली पोस्ट में जाकर देख सकते हैं, और आगे के भाग के लिए कृपया मेरे साथ बने रहे । . . . . . #radheradhe🙏 #krishanleela #bhagwadgitachanting #bhagwatgita #bhagwadgitalearnings #krishnaconsciousness #geetasaar #geetadarshan #geetashlok #series #readmorebooks #fallforbooks #bookworm #hindimotivation #hindisanskrit #sanskritshloka #hindi #translation #support #follow #like #save #beattheheat #share #tag #love #hustlers #hustlehard #readersofinstagram #spritualgrowth (at 마투라) https://www.instagram.com/p/CFhT_SCFxna/?igshid=6njrjh29rk53
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नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे । नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने ॥ . . . . हे भगवान ! हे रुद्र ! आपका तेज अनगिनत सूर्योंके तेज समान है । रसरूप, जलमय विग्रहवाले हे भवदेव ! आपको नमस्कार है । . . . . Pic credit :- @maheshshwer_dutt_dubey__ @mahadev_devadidev Photo edited. @shiva_._nimavat #mahadev #mahadev_har #mahadev🙏 #mahadeva #mahadev_🚩 #mahadev_ke_diwaneeee #geetashlok #mahadev_ke_pujari #mahadev_k_diwane #lordshiva #shiva #shiv #shivshankar #shivshakti #bhole #bholenath #aghori #aghoribaba #aghorisadhu #goodmorning #mahakal #mahakalfanclub @mahadev_k_bhaktt (at Kashi - काशी) https://www.instagram.com/p/CCkE7i5AFyn/?igshid=1wjsg6v59j50u
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