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#नोक
todaypostlive · 2 years
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बंदूक की नोक पर डकैतों ने की दो घरों से लाखों रुपए के जेवरात सहित नकद की लूट
बंदूक की नोक पर डकैतों ने की दो घरों से लाखों रुपए के जेवरात सहित नकद की लूट
रामगढ़। जिले में बंदूक की नोक पर दो घरों में एक ही समय हुई डकैती की घटना ने शहरवासियों को दहशत में डाल दिया है।  रविवार की देर रात शहर के जरा टोला, शिवपुरी इलाके में हुई वारदात की गूंज सोमवार को शहर में सुनाई दी। सोमवार को रामगढ़ पुलिस उन डकैतों को पकड़ने के लिए अपनी एड़ी चोटी की जोर लगा चुकी है। लेकिन डकैत उनकी बहुत से कोसों दूर हैं। आम नागरिक से लेकर व्यापारी तक इस घटना से सकते में हैं। …
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nayesubah · 2 years
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पिस्तौल की नोक पर घरवालों को बंधक बनाया, छुड़ाने पहुंची पुलिस को भी 4 घंटे रखा कमरे में बंद, गिरफ्तार
पिस्तौल की नोक पर घरवालों को बंधक बनाया, छुड़ाने पहुंची पुलिस को भी 4 घंटे रखा कमरे में बंद, गिरफ्तार
Bihar: पश्चिमी चंपारण जिले के बानुछापर थाना क्षेत्र अंतर्गत महेंद्र कॉलोनी मोहल्ले में सोमवार की सुबह एक शिक्षक के घर में एक सिरफिरा युवक घुस आया और घरवालों को बंधक बना लिया सूचना पर पुलिस की टीम पहुंची जिसमें बानुछापर ओपी प्रभारी समेत दो पुलिसवाले सिविल ड्रेस में घर में घुसे तो इन दोनों को भी पिस्तौल की नोक पर एक कमरे में बंद कर दिया गया, करीब 5 घंटे की मशक्कत के बाद युवक को गिरफ्तार किया जा…
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naveensarohasblog · 11 months
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पवित्र गीता जी का ज्ञान किसने दिया है ?
पवित्र गीता जी के ज्ञान को उस समय बोला गया था जब महाभारत का युद्ध होने जा रहा था ।अर्जुन ने युद्ध करने से इनकार कर दिया था ।युद्ध क्यों हो रहा था इस युद्ध को धर्म युद्ध की संज्ञा भी नहीं दी जा सकती है क्योंकि 2 परिवारों का संपत्ति वितरण का  विशेष था ।
कौरवों तथा पाण्डवों का संपत्ति बँटवारा नहीं हो रहा था।कौरवों ने पांडवों को आधा राज्य भी देने से मना कर दिया था । दोनों पक्षों का बीच बचाव करने के लिए प्रभु श्री कृष्ण जी 3 बार शांतिदूत बनकर गए । परंतु दोनों ही पक्ष अपनी अपनी ज़िद पर अटल रहे । श्री कृष्ण जीने युद्ध से होने वाली हानि से भी परिचित कराते हुए कहा कि न जाने कितनी बहनें विधवा होंगी और न जाने कितने बच्चे अनाथ होगे । महापाप के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा ।युद्ध में न जाने कौन मरेगा और कौन बचेगा ।तीसरी बार जब श्रीकृष्ण  जी समझौता कराने गए तो दोनों पक्षों ने अपने अपने पक्ष वाली राजाओं की सेना सहित सूची पत्र दिखाया तथा कहा कि  इतने राजा हमारे पक्ष में हैं और इतने राजा हमारे पक्ष में ।जब श्री कृष्ण जी ने देखा कि दोनों ही पक्ष टस से मस नहीं हो रहे है ,युद्ध के लिए तैयार हो चुके हैं। तब श्री कृष्ण जी ने सोचा कि एक दाव और है वह भी आज लगा देता हूँ ।श्री कृष्ण जी ने सोचा था कि पाण्डव कही मेरे संबंधी होने के कारण अपनी ज़िद पर इसलिए न छोड़ रहे हों कि श्री 53 हमारे साथ है विजय हमारी ही होगी क्योंकि श्री कृष्ण जी की बहन सुभद्रा जी का विवाह अर्जुन के साथ हुआ था श्री कृष्ण जी ने कहा एक तरफ़ मेरी सर्व सेना होगी और दूसरी तरफ़ मैं होऊँगा और इसके साथ मैं वचनबद्ध भी होता हूँ कि मैं हथियार नहीं भी नहीं उठाऊँगा ।
इस घोषणा से पांडवों क�� पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई उनको लगा कि अब हमारी हार निश्चित है ।यह विचार कर पांडव सभा से बाहर आ गए कि हम कुछ विचार कर लेते हैं । कुछ समय उपरांत श्री कृष्ण जी को सभा से बाहर आने की प्रार्थना की । श्री कृष्ण जी के बाहर आने पर पाण्डवों ने कहा कि हे भगवान, हमें 5 गाँव दिलवा दो ।हम युद्ध नहीं चाहते हैं ।हमारी इज़्ज़त भी रह जाएगी और आप चाहते हैं कि युद्ध न हो यह भी टल जाएगा ।
पांडवों के इस फ़ैसले से श्रीकृष्ण जी बहुत प्रसन्न हुए तथा सोचा कि बुरा समय टल गया ।सभा में केवल कौरव तथा उनके समर्थक शेष थे । मैं श्रीकृष्ण जी ने कहा दुर्योधन युद्ध टल गया है मेरी भी अपने गाड़ी यहीं हार्दिक इच्छा थी या आप पांडवों को पाँच गाँव दे दो, वे कह रहे हैं कि हम युद्ध नहीं चाहते हैं । दुर्योधन ने कहा कि पांडवों के लिए सुई की नोक तुल्य भी ज़मीन नहीं है यदि उन्हें चाहिए तो युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र के मैदान में आ जाएं । इस बात से श्रीकृष्ण जी नाराज़ होकर बोले कि दुर्योधन तो इंसान नहीं शैतान है कहाँ आधा राज्य और कहाँ पहुँच गाँव।…….
और अधिक जानकारी के लिए सुनिये जगत गुरू रामपाल जी महाराज के अमृत प्रवचन सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रों के आधार पर आधारित साधना टीवी पर रात्रि 7.30 बजे
और
YouTube Channel
Sant Rampal Ji Maharaj
पर भी सुन सकते हैं ।
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the-sound-ofrain · 11 months
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इतिहास कलम की नोक पर नहीं, तलवार की धार पर लिखी गई है । कई पन्नो पर जो दाग थे, उन्हे कला का नाम दिया गया l
- अय्���ारी
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deepjams4 · 2 months
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एक प्याली चाय!
एक प्याली चाय बहाना सही हुज़ूर मगर हम मिलेंगे
ख़ूब बातें करेंगे आपसे सुनेंगे कुछ अपनी भी कहेंगे!
हर बात की हर घूँट में मीठी यादों की भरमार होगी
थोड़ा हँसेंगे थोड़ा हँसायेंगे माहौल ठहाकों से भरेंगे!
बातों के ढेरों बिस्कुट प्याली में डुबोके मज़े से खाएँगे
मिज़ाज-पुर्सी ज़रूरत है मगर ज़ख़्म कुरेदने से बचेंगे!
मुमकिन है कभी आँखें चमक उठें तो कभी भीग जायें
इस धूप बारिश खेल में यादों के इंद्रधनुषी रंग खिलेंगे!
किवाड़ों के पीछे बंद हैं गये वक्त की सतरंगी सी यादें
उमड़ते जज़्बात की चाबी से सारे बंद किवाड़ खुलेंगे!
बेशक बातें पुरानी ही रहेंगी नया चाहे कुछ ही कहेंगे
सब क़िस्से यादों के तहख़ाने से बाहर निकलके रहेंगे!
मज़ाक़ के लहजे में हल्की-फुल्की नोक झोंक रहेगी
अपने दिल पर कुछ न लेंगे सारा माहौल रंगीन करेंगे!
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iskconchd · 1 year
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श्रीमद्‌ भगवद्‌गीता यथारूप 2.17 https://srimadbhagavadgita.in/2/17 अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् । विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥ २.१७ ॥ TRANSLATION जो सारे शरीर में व्याप्त है उसे ही अविनाशी समझो । उस अव्यय आत्मा को नष्ट करने में कोई भी समर्थ नहीं है । PURPORT इस श्लोक में सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त आत्मा की प्रकृति का अधिक स्पष्ट वर्णन हुआ है । सभी लोग समझते हैं कि जो सारे शरीर में व्याप्त है वह चेतना है । प्रत्येक व्यक्ति को शरीर में किसी अंश या पुरे भाग में सुख-दुख का अनुभव होता है । किन्तु चेतना की यह व्याप्ति किसी के शरीर तक ही सीमित रहती है । एक शरीर के सुख तथा दुख का बोध दुसरे शरीर को नहीं हो पाता । फलतः प्रत्येक शरीर में व्यष्टि आत्मा है और इस आत्मा की उपस्थिति का लक्षण व्यष्टि चेतना द्वारा परिलक्षित होता है । इस आत्मा को बाल के अग्रभाग के दस हजारवें भाग के तुल्य बताया जाता है । श्र्वेताश्र्वतर उपनिषद् में (५.९) इसकी पुष्टि हुई है – बालाग्रशतभागस्य शतधा कल्पितस्य च । भागो जीवः स विज्ञेयः स चानन्त्याय कल्पते ॥ “यदि बाल के अग्रभाग को एक सौ भागों में विभाजित किया जाय और फिर इनमें से प्रत्येक भाग को एक सौ भागों में विभाजित किया जाय तो इस तरह के प्रत्येक भाग की माप आत्मा का परिमाप है ।” इसी प्रकार यही कथन निम्नलिखित श्लोक में मिलता है – केशाग्रशतभागस्य शतांशः सादृशात्मकः । जीवः सूक्ष्मस्वरूपोSयं संख्यातीतो हि चित्कणः ॥ “आत्मा के परमाणुओं के अनन्त कण हैं जो माप में बाल के अगले भाग (नोक) के दस हजारवें भाग के बराबर हैं ।” इस प्रकार आत्मा का प्रत्येक कण भौतिक परमाणुओं से भी छोटा है और ऐसे असंख्य कण हैं । यह अत्यन्त लघु आत्म-संफुलिंग भौतिक शरीर का मूल आधार है और इस आत्म-संफुलिंग का प्रभाव सारे शरीर में उसी तरह व्याप्त है जिस प्रकार किसी औषधि का प्रभाव व्याप्त रहता है । आत्मा की यह धरा (विद्युतधारा) सारे शरीर में चेतना के रूप में अनुभव की जाती हैं और यही आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण है । सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी समझ सकता है कि यह भौतिक संयोग के फलस्वरूप नहीं है, अपितु आत्मा के कारण है । मुण्डक उपनिषद् में (३.१.९) स��क्ष्म (परमाणविक) आत्मा की और अधिक विवेचना हुई है – एषोSणुरात्मा चेतसा वेदितव्यो यस्मिन्प्राणः पञ्चधा संविवेश । प्राणैश्र्चितं सर्वमोतं प्रजानां यस्मिन् विशुद्धे विभवत्येष आत्मा ॥ “आत्मा आकार में अणु तुल्य है जिसे पूर्ण बुद्धि के द्वारा जाना जा सकता है । यह अणु-आत्मा पाँच प्रकार के प्राणों में तैर रहा है (प्राण, अपान, व्यान, समान और उड़ान); यह हृदय के भीतर स्थित है और देहधारी जीव के पुरे शरीर में अपने प्रभाव का विस्तार करता है । जब आत्मा को पाँच वायुओं के कल्मष से शुद्ध कर लिया जाता है तो इसका आध्यात्मिक प्रभाव प्रकट होता है ।” हठ-योग का प्रयोजन विविध आसनों द्वारा उन पाँच प्रकार के प्राणों को नियन्त्रित करना है जो आत्मा की घेरे हुए हैं । यह योग किसी भौतिक लाभ के लिए नहीं, अपितु भौतिक आकाश के बन्धन से अणु-आत्मा की मुक्ति के लिए किया जाता है । इस प्रकार अणु-आत्मा को सारे वैदिक साहित्य ने स्वीकारा है और प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति अपने व्यावहारिक अनुभव से इसका प्रत्यक्ष अनुभव करता है । केवल मुर्ख व्यक्ति ही इस अणु-आत्मा को सर्वव्यापी विष्णु-तत्त्व के रूप में सोच सकता है । अणु-आत्मा का प्रभाव पुरे शरीर में व्याप्त हो सकता है । मुण्डक उपनिषद् के अनुसार यह अणु-आत्मा प्रत्येक जीव के हृदय में स्थित है और चूँकि भौतिक विज्ञानी इस अणु-आत्मा को माप सकने में असमर्थ हैं, उसे उनमें से कुछ यह अनुभव करते हैं कि आत्मा है ही नहीं । व्यष्टि आत्मा तो निस्सन्देह परमात्मा के साथ-साथ हृदय में हैं और इसीलिए शारीरिक गतियों की साड़ी शक्ति शरीर के इसी भाग से उद्भूत है । जो लाल रक्तगण फेफड़ों से आक्सीजन ले जाते हैं वे आत्मा से ही शक्ति प्राप्त करते हैं । अतः जब आत्मा इस स्थान से निकल जाता है तो रक्तोपादक संलयन (फ्यूज़न) बंद हो जाता है । औषधि विज्ञान लाल रक्तकणों की महत्ता को स्वीकार करता है, किन्तु वह यह निश्चित नहीं कर पाता कि शक्ति का स्त्रोत आत्मा है । जो भी हो, औषधि विज्ञान यह स्वीकार करता है कि शरीर की सारी शक्ति का उद्गमस्थल हृदय है । पूर्ण आत्मा के ऐसे अनुकणों की तुलना सूर्य-प्रकाश के कणों से की जाती है । इस सूर्य-प्रकाश में असंख्य तेजोमय अणु होते हैं । इसी प्रकार परमेश्र्वर के अंश उनकी किरणों के परमाणु स्फुलिंग है और प्रभा या परा शक्ति कहलाते हैं । अतः चाहे कोई वैदिक ज्ञान का अनुगामी हो या आधुनिक विज्ञान का, वह शरीर में आत्मा के अस्तित्व को नकार नहीं सकता । भगवान् ने स्वयं भगवद्गीता में आत्मा के इस विज्ञान का विशद वर्णन किया है । ----- Srimad Bhagavad Gita As It Is 2.17 avināśi tu tad viddhi yena sarvam idaṁ tatam vināśam avyayasyāsya na kaścit kartum arhati TRANSLATION That which pervades the entire body you should know to be indestructible. No one is able to destroy that imperishable soul. PURPORT This verse more clearly explains the real nature of the soul, which is spread all over the body. Anyone can understand what is spread all over the body: it is consciousness. Everyone is conscious of the pains and pleasures of the body in part or as a whole. This spreading of consciousness is limited within one’s own body. The pains and pleasures of one body are unknown to another. Therefore, each and every body is the embodiment of an individual soul, and the symptom of the soul’s presence is perceived as individual consciousness. This soul is described as one ten-thousandth part of the upper portion of the hair point in size. The Śvetāśvatara Upaniṣad (5.9) confirms this: bālāgra-śata-bhāgasya śatadhā kalpitasya ca bhāgo jīvaḥ sa vijñeyaḥ sa cānantyāya kalpate “When the upper point of a hair is divided into one hundred parts and again each of such parts is further divided into one hundred parts, each such part is the measurement of the dimension of the spirit soul.” Similarly the same version is stated: keśāgra-śata-bhāgasya śatāṁśaḥ sādṛśātmakaḥ jīvaḥ sūkṣma-svarūpo ’yaṁ saṅkhyātīto hi cit-kaṇaḥ “There are innumerable particles of spiritual atoms, which are measured as one ten-thousandth of the upper portion of the hair.” Therefore, the individual particle of spirit soul is a spiritual atom smaller than the material atoms, and such atoms are innumerable. This very small spiritual spark is the basic principle of the material body, and the influence of such a spiritual spark is spread all over the body as the influence of the active principle of some medicine spreads throughout the body. This current of the spirit soul is felt all over the body as consciousness, and that is the proof of the presence of the soul. Any layman can understand that the material body minus consciousness is a dead body, and this consciousness cannot be revived in the body by any means of material administration. Therefore, consciousness is not due to any amount of material combination, but to the spirit soul. In the Muṇḍaka Upaniṣad (3.1.9) the measurement of the atomic spirit soul is further explained: eṣo ’ṇur ātmā cetasā veditavyo yasmin prāṇaḥ pañcadhā saṁviveśa prāṇaiś cittaṁ sarvam otaṁ prajānāṁ yasmin viśuddhe vibhavaty eṣa ātmā “The soul is atomic in size and can be perceived by perfect intelligence. This atomic soul is floating in the five kinds of air (prāṇa, apāna, vyāna, samāna and udāna), is situated within the heart, and spreads its influence all over the body of the embodied living entities. When the soul is purified from the contamination of the five kinds of material air, its spiritual influence is exhibited.” The haṭha-yoga system is meant for controlling the five kinds of air encircling the pure soul by different kinds of sitting postures – not for any material profit, but for liberation of the minute soul from the entanglement of the material atmosphere. So the constitution of the atomic soul is admitted in all Vedic literatures, and it is also actually felt in the practical experience of any sane man. Only the insane man can think of this atomic soul as all-pervading viṣṇu-tattva. The influence of the atomic soul can be spread all over a particular body. According to the Muṇḍaka Upaniṣad, this atomic soul is situated in the heart of every living entity, and because the measurement of the atomic soul is beyond the power of appreciation of the material scientists, some of them assert foolishly that there is no soul. The individual atomic soul is definitely there in the heart along with the Supersoul, and thus all the energies of bodily movement are emanating from this part of the body. The corpuscles which carry the oxygen from the lungs gather energy from the soul. When the soul passes away from this position, the activity of the blood, generating fusion, ceases. Medical science accepts the importance of the red corpuscles, but it cannot ascertain that the source of the energy is the soul. Medical science, however, does admit that the heart is the seat of all energies of the body. Such atomic particles of the spirit whole are compared to the sunshine molecules. In the sunshine there are innumerable radiant molecules. Similarly, the fragmental parts of the Supreme Lord are atomic sparks of the rays of the Supreme Lord, called by the name prabhā, or superior energy. So whether one follows Vedic knowledge or modern science, one cannot deny the existence of the spirit soul in the body, and the science of the soul is explicitly described in the Bhagavad-gītā by the Personality of Godhead Himself. ----- #krishna #iskconphotos #motivation #success #love #bhagavatamin #india #creativity #inspiration #life #spdailyquotes #devotion
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shippersark · 26 days
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dgnews · 1 month
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आम चुनाव में अर्जुन की आंख चाहिए
– ललित गर्ग- लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और चुनाव का माहौल गरमा रहा है। चुनावों की तारीखें घोषित किए जाने के साथ ही जैसी कि उम्मीद थी, सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बयानबाजी और तेज हो गई। कौरव रूपी विपक्षी दल एवं पाण्डव रूपी भाजपा के बीच इस चुनाव में असली जंग सत्य और असत्य के बीच है। सत्ता पक्ष और विपक्ष की यह नोक-झोंक ही तो लोकतंत्र की खूबसूरती है, यह जितनी शालीन एवं उग्र होगी, लोकतंत्र…
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Best Sexologist in Patna: Dr. Sunil Dubey | Now say goodbye to infertility
पुरुषों को बांझपन का सामना क्यों करना पड़ता है: जानिए इसके वास्तविक तथ्य को
नमस्कार दोस्तों, सबसे पहले हम आप सभी को धन्यवाद देना चाहेंगे क्योकि आपने हमें पुरुष प्रजनन प्रणाली और बांझपन के कारणों के बारे में जानने के लिए इतने सारे संदेश भेजे कि हम आपके कायल हो गए। आपका स्नेह हमारी कामयाबी है।
हम इस महत्वपूर्ण यौन विषय पर चर्चा विश्व के प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुनील दुबे के साथ करे रहे है जो कि भारत के शीर्ष रैंक के सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर हैं। उनका नाम और ख्याति पूरी दुनिया भर में फैली हुई है। वर्तमान में, वह दुबे क्लिनिक में सभी यौन रोगियों का इलाज करते हैं एवं शेष समय वे दुबे लैब और रिसर्च सेंटर में अपने शोध में बिताते हैं।दुबे  क्लिनिक बिहार का पहला आयुर्वेदिक क्लिनिक है जो सभी गुणवत्ता उद्देश्यों के लिए प्रामाणिक और पंजीकृत है।
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वह अपने अनुभवों और यौन रोगियों की समस्याओं का विवरण बहुत सटीक ढंग से हमारे साथ साझा कर रहे हैं। उम्मीद है उन स���ी पुरुषों को लाभ मिलेगा जो इस बांझपन की बीमारी से पीड़ित हैं। नये मरीजों को भी उनकी समस्याओं के निदान में मदद मिलेगी। पाठकगण इसी तरह हमें मैसेज भेजते रहे और अपना निदान पाते रहे।
आज दुनिया में हर पांच में से एक मरीज पुरुष बांझपन का शिकार हो रहा है। इसका मुख्य कारण लोगों की अनियमित जीवनशैली और यौन शिक्षा की कमी है। नौकरी और करियर को लेकर लोग इतने उत्साहित हैं कि शादी का असली उम्र ही भूल गए हैं। कोई भी चीज़ तभी अच्छी लगती है जब वह प्रकृति के साथ हो,  न कि उसके विरुद्ध।
विज्ञान चाहे कितनी भी तरक्की कर ले, वह प्रकृति से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता। यह सर्वमान्य सत्य है कि आयुर्वेद एक प्राकृतिक उपचार पद्धति है और यह किसी भी रोग का संपूर्ण समाधान प्रदान करती है। इसका न तो हमारे शरीर पर कोई दुष्प्रभाव होता है और न ही किसी प्रकार की कृत्रिम मिलावट होती है। यही कारण है कि जब कोई भी यौन रोगी तमाम दवाइयों और इलाजों से थक जाता है तो वह प्राकृतिक चिकित्सा की शरण में जाता है।
डॉ. सुनील दुबे जो न केवल पटना के सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट हैं बल्कि पूरे विश्व के प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य भी हैं। उन्होंने पुरुष और महिला यौन रोग के इलाज के लिए शोध करने में अपने बहुमूल्य पांच वर्ष बिताए और आखिरकार उन्हें सफलता मिली। आज पांच लाख से अधिक यौन रोगी दुबे क्लीनिक के इलाज से खुश और संतुष्ट हैं। यह इस क्लिनिक की बड़ी सफलता का उदाहरण है।
पुरुष प्रजनन प्रणाली का अवलोकन:
पुरुष प्रजनन प्रणाली में आंतरिक भाग (जैसे प्रोस्टेट ग्रंथि, वास डेफेरेंस और मूत्रमार्ग) और बाहरी भाग (जैसे लिंग, वृषण और अंडकोश) शामिल होते हैं। प्रजनन क्षमता और यौन लक्षण हमेशा इस पुरुष प्रजनन प्रणाली के सामान्य कामकाज के साथ-साथ मस्तिष्क से निकलने वाले हार्मोन श्राव पर निर्भर करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार हमारा शरीर होगा, ठीक उसी प्रकार हमारे शरीर का विकास होगा।
शिश्न  जो कि जड़ में होती है जो पेट के निचले हिस्से की संरचनाओं और पैल्विक हड्डियों से जुड़ी होती है, शाफ़्ट का दृश्य भाग और लिंग शिश्न का सिरा शंकु के आकार का होता है। मूत्रमार्ग का उद्घाटन, जो कि वीर्य और मूत्र का परिवहन करने वाला चैनल है, ग्लान्स पेनाइल की नोक पर स्थित होता है।
शुक्राणु अंडकोष में छोटी नलिकाओं की एक प्रणाली के भीतर विकसित होता है जिसे सेमिनिफेरस ट्यूब भी कहा जाता है। जन्म के समय, इन नलिकाओं में साधारण गोल कोशिकाएँ होती हैं। यौवन के दौरान टेस्टोस्टेरोन और अन्य हार्मोन इन कोशिकाओं को शुक्राणु कोशिकाओं में बदलने का कारण बनते हैं।
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लिंग के बड़े आकार का मिथक:
पूरी दुनिया में 100 में से 95% लोगों के खड़े लिंग का आकार 16 सेमी होता है। केवल 5% लोगों का आकार या आयाम 16 सेमी से बड़ा है। अगर हम गहराई से देखें तो पाते हैं कि 100 में से 5% से ज्यादा लोगों का लिंग 10 सेमी से छोटे आकार में खड़ा होता है। और अंत में वे लोग ही क्लिनिक में आते हैं जो 10 सेमी से कम छोटे लिंग के आकार से पीड़ित होते हैं।
पुरुष बांझपन के लिए जिम्मेदार कारक:
यदि आप एक पुरुष हैं और पुरुष बांझपन की भयावह स्थिति का सामना कर रहे हैं तो आपको हमेशा इस बांझपन के कारण के लिए अपने जिम्मेदार कारकों को जानना चाहिए। बिहार के सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. सुनील दुबे का कहना है कि आम तौर पर इनफर्टिलिटी कारणों के लिए पुरुष केवल 20-25% जिम्मेदार होता हैं, बाकी 30-40 % प्रमुख कारक होते हैं। उनका यह भी कहना है कि इस पुरुष बांझपन के कई कारण हैं जो नीचे हैं:-
पुरुष बांझपन के प्राथमिक कारक में शुक्राणु का विकार।
वीर्य की खराब गुणवत्ता इस यौन समस्या का कारण है।
रुकावट के साथ स्खलन इस समस्या का कारण हो सकता है।
हार्मोनल असंतुलन इस समस्या को हमेशा बढ़ाता है।
इम्यूनोलॉजिकल इनफर्टिलिटी एक प्रकार की पुरुष यौन समस्या है।
दवाइयों का अधिक सेवन इस बांझपन की समस्या को बढ़ावा देता है।
अन्य कारक- यौन रोग इस समस्या का कारण हो सकता है
पुरुष बांझपन का स्थायी समाधान केवल आयुर्वेद में
यदि आप बांझपन की समस्या से निजात पाने के लिए स्थायी समाधान चाहते हैं तो आपको पारंपरिक और प्राकृतिक चिकित्सा पर विश्वास करना होगा। यह एक आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान है जिसके पास किसी भी समस्या से छुटकारा पाने का वास्तविक व प्राकृतिक उपचार है। दुबे क्लिनिक भारत का सबसे विश्वसनीय और सफल आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान क्लिनिक है जो किसी भी यौन समस्याओं का संपूर्ण समाधान प्रदान करता है।
दिलचस्प बात तो यह है कि यह प्रमाणित क्लिनिक 60 वर्षों से यौन रोगियों की सेवा करता आ रहा है। पूरे भारत से यौन रोगी जब भी किसी यौन समस्या का सामना करते हैं तो वे हमेशा इस क्लिनिक को एक बार जरूर याद करते हैं। डॉ. सुनील दुबे विवाहित और अविवाहित दोनों यौन रोगियों का इलाज करते हैं और वह स्वर्ण पदक विजेता और भारत गौरव से सम्मानित भारत के वरिष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट हैं। वर्त्तमान समय में, पुरे भारत के मरीज दुबे क्लिनिक से एक बार अवश्य सम्पर्क करते है।
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डॉ. सुनील दुबे अपनी प्राकृतिक चिकित्साओं में संपूर्ण प्राकृतिक औषधियाँ प्रदान करते हैं। जो लोग आयुर्वेद और उसकी शक्तिशाली औषधि पर भरोसा करते है उन्हें उपचार के तीन सप्ताह के भीतर तुरंत परिणाम मिलता है। आप सभी लोगो से निवेदन है कि इधर उधर न भटके।  दुबे क्लिनिक में उपलब्ध प्रमाणित और अनुभवी यौन स्वास्थ्य देखभाल डॉक्टर पर भरोसा करें। यह गारंटी है कि आप एक निश्चित समय के भीतर अपनी यौन समस्याओं में सुधार कर लेंगे।
यदि आप भारत में रहते हैं, तो दुबे क्लिनिक में अपॉइंटमेंट लें। अपॉइंटमेंट फ़ोन पर प्रतिदिन प्रातः 08:00 बजे से रात्रि 20:00 बजे तक उपलब्ध हैं। दुबे क्लिनिक पर जाएँ जहाँ यह क्लिनिक सभी उन्नत चिकित्सा उपकरणों से सुसज्जित है। अपना इलाज कराएं और अपनी समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा पाएं।
शुभकामना सहित:
दुबे क्लिनिक
भारत में एक प्रमाणित क्लिनिक
डॉ. सुनील दुबे, गोल्ड मेडलिस्ट सेक्सोलॉजिस्ट
बी.ए.एम.एस. (रांची) | एम.आर.एस.एच. (लंदन) | पीएच.डी. आयुर्वेद में (यूएसए)
स्थान: दुबे मार्केट, लंगर टोली, चौराहा, पटना - 04
हेल्पलाइन नंबर: +91 98350 92586; +91 91555 55112
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मुसलमान
शाहों का ताज जूतियों के नोक पर रखते हैं हम मुसलमान है मुहब्बत बे हिसाब रखते हैं जुल्म ब तशददुद का सामना पैदाइशी फरीजा अपना हम हर नामरूद फिरौंन अबू जेहल का हिसाब रखते हैं तू क्या डराएगा हमे हमारे कत्ल ब गारत गरी से तारीख ए दुनिया के हर जालिम को पांव तले रखते हैं हमे किसी तख्त वा ताज की जरूरत क्या है दुनिया में हम हर तख्ता दार के लिए आह्नी दीवार ए ईमान रखते हैं
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sadhudas98 · 3 months
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#GodNightTuesday
#श्राद्ध_करने_की_श्रेष्ठ_विधि
हे अर्जुन ! तू सर्व भाव से उस पूर्ण परमात्मा की शरण में चला जा।
गीता अध्याय 18 नोक 62
श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी तथा ब्रह्म व परब्रह्म की भक्ति से पाप तथा पुण्य दोनों का फल भोगना पड़ता है, पुण्य स्वर्ग में तथा पाप नरक में व चौरासी लाख प्राणियों के शरीर में भिन्न भिन्न यातनाएं भोगनी पड़ती हैं।
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ashokkumarpareek · 3 months
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#GodNightTuesday
#श्राद्ध_करने_की_श्रेष्ठ_विधि
हे अर्जुन ! तू सर्व भाव से उस पूर्ण परमात्मा की शरण में चला जा।
गीता अध्याय 18 नोक 62
श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी तथा ब्रह्म व परब्रह्म की भक्ति से पाप तथा पुण्य दोनों का फल भोगना पड़ता है, पुण्य स्वर्ग में तथा पाप नरक में व चौरासी लाख प्राणियों के शरीर में भिन्न भिन्न यातनाएं भोगनी पड़ती हैं।
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naveensarohasblog · 2 years
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#गरिमा_गीता_की_Part_3
”पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी का ज्ञान किसने कहा?“
पवित्र गीता जी के ज्ञान को उस समय बोला गया था जब महाभारत का युद्ध होने जा रहा था। अर्जुन ने युद्ध करने से इन्कार कर दिया था। युद्ध क्यों हो रहा था? इस युद्ध को
धर्मयुद्ध की संज्ञा भी नहीं दी जा सकती क्योंकि दो परिवारों का सम्पत्ति वितरण का विषय था।
कौरवों तथा पाण्डवों का सम्पत्ति बंटवारा नहीं हो रहा था। कौरवों ने पाण्डवों को आधा राज्य भी देने से मना कर दिया था। दोनों पक्षों का बीच-बचाव करने के लिए प्रभु श्री कृष्ण जी तीन बार शान्ति दूत बन कर गए। परन्तु दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जिद्द पर अटल थे। श्री कृष्ण जी ने युद्ध से होने वाली हानि से भी परिचित कराते हुए कहा कि न जाने कितनी बहन विधवा होंगी ? न जाने कितने बच्चे अनाथ होंगे ? महापाप के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा। युद्ध में न जाने कौन मरे, कौन बचे ? तीसरी बार जब श्री कृष्ण जी समझौता करवाने गए तो दोनों पक्षों ने अपने-अपने पक्ष वाले राजाओं की सेना सहित सूची पत्रा दिखाया तथा कहा कि इतने राजा हमारे पक्ष में हैं तथा इतने हमारे पक्ष में। जब श्री कृष्ण जी ने देखा कि दोनों ही पक्ष
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टस से मस नहीं हो रहे हैं, युद्ध के लिए तैयार हो चुके हैं। तब श्री कृष्ण जी ने सोचा कि एक दाव और है वह भी आज लगा देता हूँ। श्री कृष्ण जी ने सोचा कि कहीं पाण्डव मेरे सम्बन्धी होने के कारण अपनी जिद्द इसलिए न छोड़ रहे हों कि श्री कृष्ण हमारे साथ हैं, विजय हमारी ही होगी(क्योंकि श्री कृष्ण जी की बहन सुभद्रा जी का विवाह श्री अर्जुन जी से हुआ था)। श्री कृष्ण जी ने कहा कि एक तरफ मेरी सर्व सेना होगी और दूसरी तरफ मैं होऊँगा और इसके साथ-साथ मैं वचन बद्ध भी होता हूँ कि मैं हथियार भी नहीं उठाऊँगा। इस घोषणा से पाण्डवों के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। उनको लगा कि अब हमारी पराजय निश्चित है। यह विचार कर पाँचों पाण्डव यह कह कर सभा से बाहर गए कि हम कुछ विचार कर लें। कुछ समय उपरान्त श्री कृष्ण जी को सभा से बाहर आने की प्रार्थना की। श्री कृष्ण जी के बाहर आने पर पाण्डवों ने कहा कि हे भगवन्! हमें पाँच गाँव दिलवा दो। हम युद्ध नहीं चाहते हैं। हमारी इज्जत भी रह जाएगी और आप चाहते हैं कि युद्ध न हो, यह भी टल जाएगा। श्री कृष्ण से अपनी राय बताकर अपने घर चले गए।
पाण्डवों के इस फैसले से श्री कृष्ण जी बहुत प्रसन्न हुए तथा सोचा कि बुरा समय टल गया। श्री कृष्ण जी वापिस आए, सभा में केवल कौरव तथा उनके समर्थक शेष थे। श्री कृष्ण जी ने कहा दुर्योधन युद्ध टल गया है। मेरी भी ��ह हार्दिक इच्छा थी। आप पाण्डवों को पाँच गाँव दे दो, वे कह रहे हैं कि हम युद्ध नहीं चाहते। दुर्योधन ने कहा कि पाण्डवों के लिए सुई की नोक तुल्य भी जमीन नहीं है। यदि उन्हंे राज्य चाहिए तो युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र के मैदान में आ जाऐं। इस बात से श्री कृष्ण जी ने नाराज होकर कहा कि दुर्योधन तू इंसान नहीं शैतान है। कहाँ आधा राज्य और कहाँ पाँच गाँव? मेरी बात मान ले, पाँच गाँव दे दे। श्री कृष्ण से नाराज होकर दुर्योधन ने सभा में उपस्थित योद्धाओं को आज्ञा दी कि श्री कृष्ण को पकड़ो तथा कारागार में डाल दो। आज्ञा मिलते ही योद्धाओं ने श्री कृष्ण जी को चारों तरफ से घेर लिया।
श्री कृष्ण जी ने अपना विराट रूप दिखाया। जिस कारण सर्व योद्धा और कौरव डर कर कुर्सियों के नीचे घुस गए तथा शरीर के तेज प्रकाश से आँखें बंद हो गई। कृष्ण जी वहाँ से निकल गए।
विचार करें:- उपरोक्त विराट रूप दिखाने का प्रमाण संक्षिप्त महाभारत गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित में प्रत्यक्ष है।
प्रमाण:- ‘‘गीता ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा’’:-
जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पवित्र गीता जी का ज्ञान सुनाते समय अध्याय 11 श्लोक 32 में पवित्र गीता बोलने वाला प्रभु कह रहा है कि ‘अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।‘ जरा सोचें कि श्री कृष्ण जी तो पहले से ही श्री अर्जुन जी के साथ थे। यदि पवित्र गीता जी के ज्ञान को श्री कृष्ण जी बोल रहे होते तो यह नहीं कहते कि अब प्रवृत्त हुआ हूँ। फिर अध्याय 11 श्लोक 21 व 46 में अर्जुन कह रहा है कि भगवन् ! आप तो ऋषियों, देवताओं तथा सिद्धों को भी खा रहे हो, जो आप का ही गुणगान पवित्रा वेदों के मंत्रों द्वारा उच्चारण कर रहे हैं तथा अपने जीवन की रक्षा के लिए मंगल कामना कर रहे हैं। कुछ आपके दाढ़ों में लटक रहे हैं, कुछ आप के मुख में समा रहे हैं। हे सहò बाहु अर्थात् हजार भुजा वाले भगवान! आप अपने उसी चतुर्भुज रूप में आईये। मैं आपके विकराल रूप को देखकर धीरज नहीं रख पा रहा हूँ।
गीता अध्याय 11 श्लोक 31 में अर्जुन ने पूछा कि हे महानुभाव! उग्र रूप वाले आप कौन हैं? मुझे बतलाईए।
श्री कृष्ण जी तो अर्जुन के साले थे। श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था। क्या व्यक्ति अपने साले को भी नहीं जानता? इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा, काल ब्रह्म ने बोला था।
अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाले प्रभु काल ने कहा है कि ‘हे अर्जुन! यह मेरा वास्तविक काल रूप है, जिसे तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था।‘
उपरोक्त विवरण से एक तथ्य तो यह सिद्ध हुआ कि कौरवों की सभा में विराट रूप श्री कृष्ण जी ने दिखाया था तथा कुरूक्षेत्र में युद्ध के मैदान में विराट रूप काल (श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रेतवत् प्रवेश करके अपना विराट रूप काल) ने दिखाया था। नहीं तो यह नहीं कहता कि यह विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा है। क्योंकि श्री कृष्ण जी अपना विराट रूप कौरवों की सभा में पहले ही दिखा चुके थे जो अनेकों ने देखा था।
दूसरी यह बात सिद्ध हुई कि पवित्र गीता जी को बोलने वाला काल(ब्रह्म-ज्योति निरंजन) है, न कि श्री कृष्ण जी। क्योंकि श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ तथा बाद में कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण जी काल नहीं हो सकते। उनके दर्शन मात्रा को तो दूर-दूर क्षेत्र के स्त्राी तथा पुरुष तड़फा करते थे। पशु-पक्षी भी उनको प्यार करते थे। यही प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 24,25 में है जिसमें गीता ज्ञान दाता प्रभु ने कहा है कि बुद्धिहीन जन समुदाय मेरे उस घटिया (अनुत्तम) अटल विधान को नहीं जानते कि मैं कभी भी मनुष्यकी तरह किसी के सामने प्रकट नहीं होता। मैं अपनी योगमाया से छिपा रहता हूँ।
गीता अध्याय 4 श्लोक 9 में कहा है कि हे अर्जुन! मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। भावार्थ है कि काल ब्रह्म अन्य के शरीर में प्रवेश करके कार्य करता है। जैसे श्री कृष्ण जी ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि मैं महाभारत के युद्ध में किसी को मारने के लिए शस्त्र भी नहीं उठाऊँगा। श्री कृष्ण में काल ब्रह्म ने प्रवेश होकर रथ का पहिया उठाकर अनेकों सैनिकों को मार डाला। पाप श्री कृष्ण जी के जिम्मे कर दिए। प्रतिज्ञा भी समाप्त करके कलंकित किया।
जिस समय काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण जी के शरीर से बाहर निकालकर अपना विराट रूप दिखाया, वह बहुत प्रकाशमान था। अर्जुन भयभीत हो गया तथा श्री कृष्ण उस विराट रूप के प्रकाश में ओझल हो गया था। इसलिए पूछ रहा था कि आप कौन हो? क्या अपने साले से भी यह पूछा जाता है कि आप कौन हो? इसलिए गीता का ज्ञान काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके बोला था।
उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान दाता श्री कृष्ण जी नहीं है क्योंकि श्री कृष्ण जी तो सर्व समक्ष साक्षात् थे। श्री कृष्ण नहीं कहते कि मैं अपनी योग माया से छिपा रहता हूँ। इसलिए गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी के अन्दर प्रेतवत् प्रवेश करके काल ने बोला था।
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pacificleo · 3 months
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चमारों की गली -अदम गोंडवी
आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको
जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर
है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी
चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा
कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई
कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है
थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को
डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से
आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में
होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी
चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई
दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया
और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज में होश में आई तो कृष्णा थी पिता की गोद में
जुड़ गई थी भीड़ जिसमें जोर था सैलाब था जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था
बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है
कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं कच्चा खा जाएँगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं
कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें
बोला कृष्णा से बहन सो जा मेरे अनुरोध से बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से
पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में वे इकट्ठे हो गए थे सरचंप के दालान में
दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक पर देखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर
क्या कहें सरपंच भाई क्या ज़माना आ गया कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया
कहती है सरकार कि आपस मिलजुल कर रहो सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो
देखिए ना यह जो कृष्णा है चमारो के यहाँ पड़ गया है सीप का मोती गँवारों के यहाँ
जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है हाथ न पुट्ठे पे रखने देती है मगरूर है
भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ
आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई
वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही
जानते हैं आप मंगल एक ही मक़्क़ार है हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है
कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की गाँव की गलियों में क्या इज़्ज़त रहे्गी आपकी
बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया था
क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था
रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुर ज़ोर था भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था
सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में
घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने - "जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने"
निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर
गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया सुन पड़ा फिर "माल वो चोरी का तूने क्या किया"
"कैसी चोरी, माल कैसा" उसने जैसे ही कहा एक लाठी फिर पड़ी बस होश फिर जाता रहा
होश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर -
"मेरा मुँह क्या देखते हो ! इसके मुँह में थूक दो आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो"
और फिर प्रतिशोध की आंधी वहाँ चलने लगी बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी
दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था
घर को जलते देखकर वे होश को खोने लगे कुछ तो मन ही मन मगर कुछ जोर से रोने लगे
"कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं" यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल से आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से
फिर दहाड़े, "इनको डंडों से सुधारा जाएगा ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा
इक सिपाही ने कहा, "साइकिल किधर को मोड़ दें होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें"
बोला थानेदार, "मुर्गे की तरह मत बांग दो होश में आया नहीं तो लाठियों पर टांग लो
ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है, जेल है"
पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल "कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्णा का हाल" उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को
धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को
मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में
गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही
हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए!
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jaygurudev2023 · 4 months
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himhks91 · 4 months
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बंदूक़ की नोक पर BHU में बलात्कार, BJP के गुंडों को किसने बचाया 60 दिन?
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Why media did not cover it,that is why they are called godi media.
By hiding or suppressing such information ,society does not benefit at all,nor does good governance get anywhere,the ruling party becomes hidding places of criminal.
I never knew that the girl was raped ,it is so horrendous .It has tarnished the image of IIT BHU as well as BJP.
Pm Modi is mp from this place how come he did not take notice of it.He should have been very proactive in booking these criminals.
Three people were killed for similar instance,immediately in HYDERABAD for they were poor.Atleast in this case the criminals should have been bought to justice.
What message BJP is giving ,they r protecting such people of their party b it the wrestling girls or in this case
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